इन 10 होममेड ब्लीच से पाएं पार्लर जैसा निखार

गरमी में टैनिंग होना आम बात है, लेकिन अगर टैनिंग खत्म न हो तो यह प्रौब्लम बन सकती है. आजकल बाजार में कई तरह के ब्लीच मौजूद होते हैं. टैनिंग को कम करने का काम करते हैं, लेकिन कभी-कभी यह एलर्जी का कारण भी बन जाते हैं. जिससे कई तरह की स्किन प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है. इसीलिए हम होममेड चीजों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं. पर क्या आपको ब्लीच के होममेड औप्शंस पता हैं, जिससे आप टैनिंग से बिना किसी एलर्जी की टेन्शन लिए छुटकारा पा सकते हैं.

1. नेचुरल ब्लीच के लिए परफेक्ट है दही

दही को थोड़ा सा लेकर नहाने से पहले अपने चेहरे और गरदन पर रगड़ें. इससे डेड स्‍किन हटने के साथ-साथ स्किन की गंदगी भी दूर होगी.

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2. टैनिंग के लिए बेस्ट है संतरा

संतरे में भरपूर विटामिन सी और ब्‍लीचिंग गुण होते हैं. इससे चेहरे पर पड़े काले दाग धब्‍बे दूर होते हैं, इसलिये संतरे के रस और दही को अपने फेस पैक में डाल कर लगाएं.

3. नेचुरल ब्लीच के लिए पपीता करें ट्राई

थोड़ा सा पका पपीता मसल कर दूध के साथ मिक्‍स करके पेस्‍ट बनाएं. फिर इसे चेहरे और गरदन पर लगाएं. फिर इसे 10-12 मिनट के बाद ठंडे पानी से धो लें.

4. नेचुरल ब्लीच के लिए हनी है बेस्ट

हनी को सीधे चेहरे पर लगाइए या फिर आप इसे नींबू के रस के साथ मिक्‍स कर के भी लगा सकती हैं.

5. खीरा और एलोवेरा करें ट्राई

खीरे और एलोवेरा का रस मिक्‍स करके चेहरे पर 20 मिनट तक के लिये लगाएं. इससे स्‍किन फ्रेश और गंदगी दूर हो जाएगी.

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6. नेचुरल ब्लीच के लिए ट्राई करें टमाटर  

पका हुआ टमाटर लें, उसमें थोड़ी सी दही डालें. इस पेस्‍ट को चेहरे पर 15 मिनट तक के लिये लगाएं. यह एसिडिक होता है जो स्किन को ब्‍लीच कर देता है.

7. होममेड ब्लीच के लिए ट्राई करें बेसन

बेसन में थोड़ा सा पानी मिलाइये और पेस्‍ट बनाइये. इसे चेहरे पर लगाइये और जब यह सूख जाए तब इसे धो लीजिये.

8. टैनिंग के लिए बेस्ट है आलू

एक कच्‍चा आलू घिस कर उसमें कुछ बूंद गुलाब जल की मिलाइये। फिर 20 मिनट के बाद चेहरे को धो लीजिये। इससे डार्क सर्कल भी दूर हो जाते हैं।

9. ओटमील का पाउडर करें ट्राई

ओटमील का पावडर बनाइये और इसमें टमाटर कर रस मिलाइये. टमाटर ब्‍लीच का काम करता है और ओट्स स्‍क्रब का काम करता है. इसे स्किन पर लगाइये.

10. बादाम करें ट्राई

दो बादाम को रातभर पानी में भिगो दीजिये. सुबह पेस्‍ट बनाइये और चेहरे पर 10 मिनट तक के लिये लगाएं. इससे स्किन वाइट और साफ हो जाएगी.

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Romantic Story In Hindi: सुधा का सत्य- भाग 3- कौनसा सच छिपा रही थी सुधा

लेखिका- रमा प्रभाकर   

समय बीत रहा था, विनीत के साथ निधि ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया तो एक बार फिर सुधा को अपनी छूटी  हुई पढ़ाई का ध्यान आया. इस बार वह सबकुछ भूल कर अपनी पढ़ाई में जुट गई. धीरेंद्र के साथ उस के संबंध फिर से सामान्य हो चले थे. अब की बार सुधा ने पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी और पास हो गई. सुधा को धीरेंद्र ने भी खुले दिल से बधाई दी.

सुधा और धीरेंद्र के सामान्य गति से चलते जीवन में पल्लवी के पत्र से एक नया तूफान उठ खड़ा हुआ. एक दिन दुखी हो कर उस ने धीरेंद्र से पूछ ही लिया, ‘‘तुम कितनी बार मेरे धीरज की परीक्षा लोगे? क्यों बारबार मुझे इस तरह सलीब पर चढ़ाते हो? आखिर यह किस दोष के लिए सजा देते हो, मुझे पता तो चले…’’

‘‘क्या बेकार की बकवास करती हो. तुम्हें कौन फांसी पर चढ़ाए दे रहा है? मैं क्या करता हूं, क्या नहीं करता, इस से तुम्हारे घर में तो कोई कमी नहीं आ रही है. फिर क्यों हर समय अपना दुखड़ा रोती रहती हो? मैं तो तुम से कोई शिकायत नहीं करता, न तुम से कुछ चाहता ही हूं.’’

धीरेंद्र की यह बात सुधा समझ नहीं पाती थी. बोली, ‘‘मेरा रोनाधोना कुछ नहीं है. मैं तो बस, यही जानना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्या है जो तुम्हें घर में नहीं मिलता और उस के लिए तुम्हें बाहर भागना पड़ता है. आखिर मुझ में क्या कमी है? क्या मैं बदसूरत हूं, अनपढ़ हूं. बेशऊर हूं, जो तुम्हारे लायक नहीं हूं और इसलिए तुम्हें बाहर भागना पड़ता है. बताओ, आखिर कब तक यह बरदाश्त करती रहूंगी कि बाहर तुम से पहली बार मिलने वाला किसी सोना को, या रीना को, या पल्लवी को तुम्हारी पत्नी समझता रहे.’’

धीरेंद्र ने सुधा की इस बात का उत्तर नहीं दिया. इन दिनों धीरेंद्र के पास घर के लिए  कम ही समय होता था. उतने कम समय में भी उन के और सुधा के बीच बहुत ही सीमित बातों का आदानप्रदान होता था.

एक दिन धीरेंद्र जल्दी ही दफ्तर से घर आ गया. लेकिन जब वह अपनी अटैची में कुछ कपड़े भर कर बाहर जाने लगा तो सूचना देने भर को सुधा को बोलता गया था, ‘‘बाहर जा रहा हूं. एक हफ्ते में लौट आऊंगा.’’

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लेकिन वह तीसरे दिन ही लौट आया. 2 दिन से वह गुमसुम बना घर में ही रह रहा था. सुधा ने धीरेंद्र को ऐसा तो कभी नहीं देखा था. उसे कारण जानने की उत्सुकता तो जरूर थी, लेकिन खुद बोल कर वह धीरेंद्र से कुछ पूछने में हिचकिचा रही थी.

उस दिन रात को खाना खा कर बच्चे सोने के लिए अपने कमरे में चले गए थे. धीरेंद्र सोफे पर बैठा कोई किताब पढ़ रहा था और सुधा क्रोशिया धागे में उलझी उंगलियां चलाती पता नहीं किस सोच में डूबी थी.

टनटन कर के घड़ी ने 10 बजाए तो धीरेंद्र ने अपने हाथ की किताब बंद कर के एक ओर रख दी. सुधा भी अपने हाथ के क्रोशिए और धागे को लपेट कर उठ खड़ी हुई. धीरेंद्र काफी समय से अपनी बात करने के लिए उपयुक्त अवसर का इंतजार कर रहा था. अभी जैसे उसे वह समय मिल गया. अपनी जगह से उठ कर जाने को तैयार सुधा को संबोधित कर के वह बोला, ‘‘तुम्हें जान कर खुशी होगी कि पल्लवी ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या…’’ आश्चर्य से सुधा जहां खड़ी थी वहीं रुक गई.

‘‘पल्लवी को अपना समझ कर मैं ने उस के लिए क्या कुछ नहीं किया था. उस की तरक्की के लिए कितनी कोशिश मैं ने की है, यह मैं ही जानता हूं. जैसे ही तरक्की पर तबादला हो कर वह यहां से गई, उस ने मुझ से संबंध ही तोड़ लिए. अब उस ने शादी भी कर ली है.

‘‘उसी से मिलने गया था. मुझे देख कर वह ऐसा नाटक करने लगी जैसे वह मुझे ठीक से जानती तक नहीं है. नाशुकरेपन की कहीं तो कोई हद होती है. लेकिन तुम्हें इन बातों से क्या मतलब? तुम तो सुन कर खुश ही होगी,’’ धीरेंद्र स्वगत भाषण सा कर रहा था.

जब वह अपना बोलना खत्म कर चुका तब सुधा बोली, ‘‘यह पल्लवी की कहानी बंद होना मेरे लिए कोई नई बात नहीं रह गई है. पहले भी कितनी ही ऐसी कहानियां बंद हो चुकी हैं और आगे भी न जाने कितनी ऐसी कहानियां शुरू होंगी और बंद होंगी. अब तो इन बातों से खुश या दुखी होने की स्थितियों से मैं काफी आगे आ चुकी हूं.

‘‘इस समय तो मैं एक ही बात सोच रही हूं, तुम्हारी ललिता, सोना, रीना, पल्लवी की तरह मैं भी स्त्री हूं. देखने- भालने में मैं उन से कम सुंदर नहीं रही हूं. पढ़ाई में भी अब मुझे शर्मिंदा हो कर मुंह छिपाने की जरूरत नहीं है. फिर क्या कारण है कि ये सब तो तुम्हारे प्यार के योग्य साबित हुईं और खूब सुखी रहीं, जबकि अपनी सारी एकनिष्ठता और अपने इस घर को बनाए रखने के सारे प्रयत्नों के बाद भी मुझे सिवा कुढ़न और जलन के कुछ नहीं मिला.

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, लेकिन तुम्हारा कुछ भी मेरे लिए कभी नहीं रहा. वे तुम्हारी कुछ भी नहीं थीं, फिर भी तुम्हारा सबकुछ उन का था. सारी जिंदगी मैं तुम्हारी ओर इस आशा में ताकती रही कि कभी कुछ समय को ही सही तुम केवल मेरे ही बन कर रहोगे. लेकिन यह मेरी मृगतृष्णा है. जानती हूं, यह इच्छा इस जीवन में तो शायद कभी पूरी नहीं होगी.

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‘‘पल्लवी ने शादी कर ली, तुम कहते हो कि मुझे खुशी होगी. लेकिन तुम्हारी इस पल्लवी की शादी ने मेरे सामने एक और ही सत्य उजागर किया है. मैं अभी यह सोच रही थी कि अपने जीवन के उन सालों में जब छोटेछोटे दुखसुख भी बहुत महसूस होते हैं तब मैं, बस तुम्हारी ही ओर आशा भरी निगाहों से क्यों ताकती रही? तुम्हारी तरह मैं ने भी अपने विवाह और अपने सुख को अलगअलग कर के क्यों नहीं देखा?

‘‘अगर पति जीवन में सुख और संतोष नहीं भर पा रहा तो खाली जीवन जीना कोई मजबूरी तो नहीं थी. जैसे तुम ललिता, सोना, रीना या पल्लवी में सुखसंतोष पाते रहे, वैसे मैं भी किसी अन्य व्यक्ति का सहारा ले कर क्यों नहीं सुखी बन गई? क्यों आदर्शों की वेदी पर अपनी बलि चढ़ाती रही?’’

सुधा की बातों को सुन कर धीरेंद्र का चेहरा सफेद पड़ गया. अचानक वह आगे बढ़ आया. सुधा को कंधों से पकड़ कर बोला, ‘‘क्या बकवास कर रही हो? तुम होश में तो हो कि तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मुझे मालूम है कि मैं क्या कह रही हूं. मैं पूरे होश में तो अब आई हूं. जीवन भर तुम मेरे सामने जो कुछ करते रहे, उस से सीख लेने की अक्ल मुझे पहले कभी क्यों नहीं आई. अब मैं यही सोच कर तो परेशान हो रही हूं.

‘‘पहले मेरी व्यथा का कारण तुम्हारे प्रेम प्रसंग ही थे. जब भी तुम्हारे साथ किसी का नाम सुनती थी, मेरे अंतर में कहीं कुछ टूटता सा चला जाता था. हर नए प्रसंग के साथ यह टूटना बढ़ता जाता था और उस टूटन को मेरे साथ मेरे बच्चे भी भुगतते थे.

‘‘अब तो मेरी व्यथा दोगुनी हो गई है. तुम्हीं बताओ, अगर मैं ने तुम्हारे जैसे रास्ते को पकड़ लिया होता तो क्या मैं भी पल्लवी की तरह सुखी न रहती? जब वह तुम्हारे साथ थी, तब तुम्हारा सबकुछ पल्लवी का था अब शादी कर के वह अपने घर में पहुंच गई है तो वहां भी सबकुछ उस का है. पल्लवी को प्रेमी भी मिला था और फिर अब पति भी मिल गया है, और मुझे क्या मिला? मुझे कुछ भी नहीं मिला…’’

सुधा इतनी बिलख कर पहले कभी नहीं रोई थी जितनी अपनी बात खत्म करने से पहले ही वह इस समय रो दी थी.

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Romantic Story In Hindi: सुधा का सत्य- भाग 2- कौनसा सच छिपा रही थी सुधा

लेखिका- रमा प्रभाकर   

पता नहीं ऐसा क्यों होता था. सुधा जब भी परेशान होती थी, उस के सिर में दर्द शुरू हो जाता था. इस समय भी वह हलकाहलका सिरदर्द महसूस कर रही थी. अभी वह अलमारी में कपड़े जैसेतैसे भर कर कमरे से बाहर ही आई थी कि पीछे से विनीत आ गया.

‘‘मां, मैं सारंग के घर खेलने जाऊं?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम कहीं नहीं जाओगे. बैठ कर पढ़ो,’’ सुधा ने रूखेपन से कहा.

‘‘लेकिन मां, मैं अभी तो स्कूल से आया हूं. इस समय तो मैं रोज ही खेलने जाता हूं,’’ उस ने अपने पक्ष में दलील दी.

‘‘तो ठीक है, बाहर जा कर खेलो,’’ सुधा ने उसे टालना चाहा. वह इस समय कुछ देर अकेली रहना चाहती थी.

‘‘पर मां, मैं उसे कह चुका हूं कि आज मैं उस के घर आऊंगा,’’ विनीत अपनी बात पर अड़ गया.

‘‘मैं ने कहा न कि कहीं भी नहीं जाना है. अब मेरा सिर मत खाओ. जाओ यहां से,’’ सुधा झल्ला गई.

‘‘मां, बस एक बार, आज उस के घर चले जाने दो. उस के चाचाजी अमेरिका से बहुत अच्छे खिलौने लाए हैं. मैं ने उस से कहा है कि मैं आज देखने आऊंगा. मां, आज मुझे जाने दो न,’’ विनीत अनुनय पर उतर आया.

पर सुधा आज दूसरे ही मूड में थी. उस का गुस्सा एकदम भड़क उठा, ‘‘बेवकूफ, मैं इतनी देर से मना कर रही हूं, बात समझना ही नहीं चाहता. पीछे ही पड़ गया है. ठीक है, कहने से बात समझ में नहीं आ रही है न तो ले, तुझे दूसरे तरीके से समझाती हूं…’’

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सुधा ने अपनी बात खत्म करने से पहले ही विनीत के गाल पर चटचट कई चांटे जड़ दिए. मां के इस रूप से अचंभित विनीत न तो कुछ बोला और न ही रोया, बस चुपचाप आंखें फाड़े मां को ताकता रहा.

चांटों से लाल पड़े गाल और विस्मय से फैली आंखों वाले विनीत को देख कर सुधा अपने होश में लौट आई. विनीत यदाकदा ही उस से पूछ कर सारंग के घर चला जाता था. आज सुधा को क्या हो गया था, जो उस ने अकारण ही अपने मासूम बेटे को पीट डाला था. सारा क्रोध धीरेंद्र के कारण था, पर उस पर तो बस चला नहीं, गुस्सा उतरा निर्दोष विनीत पर.

उस का सारा रोष निरीहता में बदल गया. वह दरवाजे की चौखट से माथा टिका कर रो दी.सुधा की यह व्यथा कोई आज की नई व्यथा नहीं थी. धीरेंद्र के शादी से पहले के प्रेमप्रसंगों को भी उस के साथियों ने मजाकमजाक में सुना डाला था. पर वे सब उस समय तक बीती बातें हो गई थीं, लेकिन ललिता वाली घटना ने तो सुधा को झकझोर कर रख दिया था. बाद में भी जब कभी धीरेंद्र के किसी प्रेमप्रसंग की चर्चा उस तक पहुंचती तो वह बिखर जाती थी. लेकिन ललिता वाली घटना से तो वह बहुत समय तक उबर नहीं पाई थी.

तब धीरेंद्र ने भी सुधा को मनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया था, ‘बीती ताहि बिसार दे’ कह कर उस ने कान पकड़ कर कसमें तक खा डाली थीं, पर सुधा को अब धीरेंद्र की हर बात जहर सी लगती थी.

तभी एक दिन सुबहसुबह मनीष ने नाचनाच कर सारा घर सिर पर उठा लिया था, ‘‘भैया पास हो गए हैं. देखो, इस अखबार में उन का नाम छपा है.’’

धीरेंद्र ने एक प्रतियोगी परीक्षा दी थी. उस का परिणाम आ गया था. धीरेंद्र की इस सफलता ने सारे बिखराव को पल भर में समेट दिया था. अब तो धीरेंद्र का भविष्य ही बदल जाने वाला था. सारे घर के साथ सुधा भी धीरेंद्र की इस सफलता से उस के प्रति अपनी सारी कड़वाहट को भूल गई. उसे लगा कि यह उस के नए सुखी जीवन की शुरुआत की सूचना है, जो धीरेंद्र के परीक्षा परिणाम के रूप में आई है.

इस के बाद काफी समय व्यस्तता में ही निकल गया था. धीरेंद्र ने अपनी नई नौकरी का कार्यभार संभाल लिया था. नई जगह और नए सम्मान ने सुधा के जीवन में भी उमंग भर दी थी. उस के मन में धीरेंद्र के प्रति एक नए विश्वास और प्रेम ने जन्म ले लिया था. तभी उस ने निर्णय लिया था. वह धीरेंद्र के इस नए पद के अनुरूप ही अपनेआप को बना लेगी. वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करेगी.

सुधा के इस निर्णय पर धीरेंद्र ने अपनी सहमति ही जताई थी. अब घर के कामों के लिए उन्हें नौकर रखने की सुविधा हो गई थी. इसलिए सुधा की पढ़ाई शुरू करने की सुविधा जुटते देर नहीं लगी. वह बेफिक्र हो कर प्राइवेट बी.ए. करने की तैयारी में जुट गई.

कभी ऐसा भी होता है कि मन का सोचा आसानी से पूरा नहीं होता. सुधा के साथ यही हुआ. उस की सारी मेहनत, सुविधा एक ओर रखी रह गई. सुधा परीक्षा ही नहीं दे सकी. पर इस बाधा का बुरा मानने का न तो उस के पास समय था और न इच्छा ही थी. एक खूबसूरत स्वस्थ बेटे की मां बन कर एक तो क्या, वह कई बी.ए. की डिगरियों का मोह छोड़ने को तैयार थी.

विनीत 2 साल का ही हुआ था कि उस की बहन निधि आ गई और इन दोनों के बीच सुधा धीरेंद्र तक को भूल गई. उन के साथ वह ऐसी बंधी कि बाहर की दुनिया के उस के सारे संपर्क ही खत्म से हो गए.

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घर और बच्चों के बीच उलझी सुधा तक धीरेंद्र की गतिविधियों की उड़ती खबर कभीकभी पहुंच जाती थी कि वह अपने दफ्तर की कुछ महिला कर्मचारियों पर अधिक ही मेहरबान रहता है. पिछले कुछ सालों के धीरेंद्र के व्यवहार से सुधा समझ बैठी थी कि अब उस में उम्र की गंभीरता आ गई है और वह पुराने वाला दिलफेंक धीरेंद्र नहीं रहा है. इसलिए उस ने इन अफवाहों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.

एक दिन सुहास आया, तब धीरेंद्र घर पर नहीं था. उस ने सुधा को घंटे भर में ही सारी सूचनाएं दे डालीं और जातेजाते बोल गया, ‘‘दोस्त के साथ गद्दारी तो कर रहा हूं, लेकिन उस की भलाई के लिए कर रहा हूं. इसलिए मन में कोई मलाल तो नहीं है. बस, थोड़ा सा डर है कि यह बात पता लगने पर धीरेंद्र मुझे छोड़ेगा तो नहीं. शायद लड़ाई ही कर बैठे. लेकिन वह तो मैं भुगत लूंगा. अब भाभीजी, आगे आप उसे ठीक करने का उपाय करें.’’

उस दिन सुधा मन ही मन योजनाएं बनाती रही कि किस तरह वह धीरेंद्र को लाजवाब कर के माफी मंगवा कर रहेगी. लेकिन जब उस का धीरेंद्र से सामना हुआ तो शुरुआत ही गलत हो गई. धीरेंद्र ने उस के सभी आक्रमणों को काट कर बेकार करना शुरू कर दिया. अंत में जब कुछ नहीं सूझा तो सुधा का रोनाधोना शुरू हो गया. बात वहीं खत्म हो गई, लेकिन सुधा के मन में उन लड़कियों के नाम कांटे की तरह चुभते रहे थे. तब उन नामों में पल्लवी का नाम नहीं था.

आगे पढ़ें- सुधा और धीरेंद्र के सामान्य गति से…

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किसको कहे कोई अपना- भाग 3- सुधा के साथ क्यों नही था उसका परिवार

2 दिनों बाद रक्षाबंधन था. बड़ी हवेली में ही सब आते और यहीं राखी मनाई जाती. वह बेताबी से रक्षाबंधन का इंतजार करने लगी. उसे पूरा भरोसा था सब उसी का साथ देंगे. उस की सेवा और पूरे परिवार के लिए समर्पण किसी से छिपा न था. बेटा अतुल भी आने वाला था. राजेश्वर की प्रेमकहानी उसी दिन सुनाई जाएगी.

रक्षाबंधन वाले दिन सवेरे उठ कर सुधा ने पकवान और खाना बना कर रख दिया. देखतेदेखते सभी आ गए. राखी बांध कर बहनें नेग के लिए सुधा की ओर देखने लगीं. पर सुधा चुप बैठी रही. उस ने देवरानी को भोजन परोसने को कहा तो सब हैरान रह गए. सौसौ मनुहार से खाना खिलाने वाली सुधा को क्या हो गया? खाने के बाद सुधा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘आज सब के सामने अपनी एक समस्या बता रही हूं. कृपया, मुझे आज इस का कोई समाधान बताएं.’’ यह कह कर सुधा ने राजेश्वर की सारी प्रेमकहानी आरंभ से अंत तक सुना दी.

इस बीच न जाने कब राजेश्वर उठ कर बाहर चले गए. कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा. फिर बड़ी ननद बोली, ‘‘भाभी, इस उम्र में आप को भैया पर यही लांछन लगाने को मिला था.’’ छोटी ननद बोली, ‘‘भैया इतने बड़े ओहदे पर हैं आप तो उन के पद की गरिमा भी भूल गई हैं. आप उन के सामने क्या हैं? उन के मुकाबले में कुछ भी नहीं, फिर भी भैया को आप से कोई शिकायत नहीं है.’’

सुधा ननदों की बातें सुन कर हैरान हो रही थी कि देवर बोला, ‘‘भाभी, मेरे राम जैसे भाई पर इलजाम लगाते शर्म न आई.’’ देवरानी मुंह में पल्लू दिए अपनी हंसी को भरसक दबाने की कोशिश कर रही थी. बस, अतुल ही सिर नीचा किए बैठा था.

अब सुधा का धैर्य जवाब दे गया. वह सोचने लगी, ये वही ननदें, देवर और पति हैं जिन की सेवा में मैं ने खुद को भुला दिया. जिन के लिए मैं ने अपने संगीत, रूपरंग की बलि चढ़ा दी. मेरे अस्तित्व और स्वाभिमान पर इतना बड़ा आघात. अपने गहने, कपड़े, सेवाएं दे कर आज तक इन की मांगें पूरी करती आई हूं.

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सब बहाने से उठ कर जाने लगे तो सुधा तिलमिला उठी, बोली, ‘‘तो सुनिए आप के उसी राम सदृश्य भाई ने मेरे साथ विश्वासघात किया है. आज मैं ने भी उन से तलाक ले कर अलग रहने का फैसला लिया है.’’ सुधा को उम्मीद थी कि सब मुझे मनाने आगे आएंगे.

अभी वह यह सोच ही रही रही थी कि राजेश्वर की आवाज आई, ‘‘आज सब राखी का नेग ले कर नहीं जाएंगे?’’ देखतेदेखते राजेश्वर ने 500 रुपए के नोट की गड्डी निकाली. बहनों के साथ छोटी भाभी को भी रुपए दिए. नेग ले कर सब घर जाने को तैयार हो गए. सुधा मूर्ति की तरह बैठी रही.

जातेजाते ननदें सुधा को गीता का ज्ञान देने लगीं, ‘‘भाभी बुजुर्ग हो गई हो, बेतुकी बातें बोलना छोड़ समझदार बनो.’’ देवर भी कहां पीछे रहने वाले थे, बोले, ‘‘इस उम्र में तलाक ले कर पूरे खानदान का नाम रोशन करोगी क्या?’’ और पत्नी का हाथ पकड़ निकल गए.

अतुल ही खिन्न सा बैठा रहा. सब के जाते ही घर में मरघट सा सन्नाटा पसर गया. अतुल भी घर में आने वाले भयंकर तूफान के अंदेशे से बचने के लिए घर से बाहर निकल गया.

अब सुधा और राजेश्वर दोनों ही सांप और नेवले की तरह एकदूसरे पर आक्रमण करने लगे. सुधा अपनी सेवाओं और घर के लिए की कुरबानियों की दुहाई देती रही तो राजेश्वर उस की पत्नी के रूप में नाकाबिलीयत के किस्से सुनाते रहे.

राजेश्वर ने आखिरकार सोचा, सुधा तलाक की गीदड़ भभकी दे रही है. जाएगी कहां? मायके में एक भाईभाभी रह गए थे. वे भी जायदाद बेच कर विदेश जा बसे. पढ़ाईलिखाई में कुछ खास न तो डिगरी ही है, न 46 की उम्र में कोईर् नौकरी के योग्य है. इसलिए सुधा से मुखातिब हो कर बोले, ‘‘जो जी में आए करो. तुम्हारी योग्यता तो बस किचन तक की है. यह तुम भी जानती हो.’’

सुधा तिलमिला कर बोली, ‘‘मैं ग्रेजुएट हूं, संगीत जानती हूं. तुम ने मेरे स्वाभिमान को ललकारा है और कुरबानियों को नकारा है. अब क्या तुम्हें ऐसे ही छोड़ दूंगी, गुजाराभत्ता भी लूंगी और हवेली में हिस्सा भी. मेरा बेटा है अपने दादा की जायदाद पर उस का भी हक है.’’

यह सुन राजेश्वर सन्न रह गए. पैर पटकते घर से बाहर चले गए. सुधा सिर से पैर तक सुलग रही थी. उस ने अंजू को फोन कर बुलवा लिया. अंजू आ गई तो उस ने सारी बातें कह सुनाईं.

अंजू बोली, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लो बूआ. एक बार तलाक की अर्जी लग गई, फिर लौटने पर किरकिरी होगी.’’

सुधा बोली, ‘‘सब स्वार्थ से मेरे साथ जुड़े थे. स्वार्थ खत्म होते ही दूर हो गए. तुम अर्जी लगा दो.’’

अतुल घर आ गया था. यह सब जान कर बोला, ‘‘मां, अकेले रह लोगी न? मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है. आप के साथ अन्याय तो हुआ है पर मैं पापा को भी नहीं छोड़ूंगा. वैसे भी मम्मी, मैं ने अपनी एक सहपाठिन से विवाह करने का मन बना लिया है. आप दोनों के पास आताजाता रहूंगा. शादी कोर्ट में करूंगा.’’

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अतुल की व्यावहारिकता देख सुधा हैरान रह गई. काश, उस के पास भी ऐसी व्यावहारिक बुद्धि होती तो वह समय रहते संभल जाती और अपनों से न छली जाती.

तलाक की अर्जी पर राजेश्वर ने भी साइन कर दिए. वे गरिमा के साथ सुखमय जीवन के सपने देखने लगे. पहली पेशी पर जज द्वारा कारण पूछे जाने में दोनों ने खुल कर एकदूसरे की कमियों का बखान किया. जज ने समझौते के लिए 6 महीने का समय दिया. सुधा को 40 हजार रुपए गुजारे भत्ते और हवेली के पिछले हिस्से में रहने का अधिकार मिला. बाद में विधिवत म्यूचुअल तलाक हो गया. राजेश्वर गरिमा के फ्लैट में शिफ्ट हो गए.

अब सुधा को अपनेपराए की पहचान हो गई. सेवाभाव, परिवार के लिए त्याग, बलिदान की नाकामी का एहसास अच्छी तरह हो गया. सब से बड़ी सीख सुधा को यह मिली कि इस जीवन में उस ने अपने वजूद को, गुणों को, रूपरंग को दांव पर लगा कर जो फैसले किए वे गलत थे. चाहे जितनी सेवा कर लो, परिवार के लिए कुरबानी दे दो पर अपने वजूद को दरकिनार न करो. अब वह अपनी बाकी जिंदगी को संवारने के लिए कटिबद्ध हो गई. 2 कमरे, 4 लड़कियों को किराए पर दे दिए. रौनक भी रहेगी और कुछ आमदनी भी हो जाएगी. कालेज के रिटायर्ड संगीत सर के घर जा नियमित रियाज करना शुरू कर दिया. कुछ ही समय बाद संगीत सम्मेलनों में अपने गुरुजी के साथ जा कर शिरकत भी करने लगी.

समय का पहिया आगे निकल गया था. एक दिन सुधा एक संगीत प्रोग्राम में जजमैंट करने आ रही थी कि उस की कार लालबत्ती पर रुक गई. कार की खिड़की से बाहर देखने पर सड़कपार किसी डाक्टर के क्लिनिक से राजेश्वर एक युवक का सहारा लिए निकल रहे थे. एकदम कमजोर हो चुके थे. आसपास गरिमा या कोई और नहीं था. तभी हरी बत्ती हो गई. गाड़ी बढ़ गई.

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Romantic Story In Hindi: सुधा का सत्य- भाग 1- कौनसा सच छिपा रही थी सुधा

लेखिका- रमा प्रभाकर   

‘‘यह किस का प्रेमपत्र है?’’ सुधा ने धीरेंद्र के सामने गुलाबी रंग का लिफाफा रखते हुए कहा.

‘‘यह प्रेमपत्र है, तो जाहिर है कि किसी प्रेमिका का ही होगा,’’ सुधा ने जितना चिढ़ कर प्रश्न किया था धीरेंद्र ने उतनी ही लापरवाही से उत्तर दिया तो वह बुरी तरह बिफर गई.

‘‘कितने बेशर्म इनसान हो तुम. तुम ने अपने चेहरे पर इतने मुखौटे लगाए हुए हैं कि मैं आज तक तुम्हारे असली रूप को समझ नहीं सकी हूं. क्या मैं जान सकती हूं कि तुम्हारे जीवन में आने वाली प्रेमिकाओं में इस का क्रमांक क्या है?’’

सुधा ने आज जैसे लड़ने के लिए कमर कस ली थी, लेकिन धीरेंद्र ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. दफ्तर से लौट कर वह फिर से बाहर निकल जाने को तैयार हो रहा था.

कमीज पहनता हुआ बोला, ‘‘सुधा, तुम्हें मेरी ओर देखने की फुरसत ही कहां रहती है? तुम्हारे बच्चे, तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारी सहेलियां, रिश्तेदार इन सब की देखभाल और आवभगत के बाद अपने इस पति नाम के प्राणी के लिए तुम्हारे पास न तो समय बचता है और न ही शक्ति.

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‘‘आखिर मैं भी इनसान हूं्. मेरी भी इच्छाएं हैं. मुझे भी लगता है कि कोई ऐसा हो जो मेरी, केवल मेरी बात सुने और माने, मेरी आवश्यकताएं समझे. अगर मुझे यह सब करने वाली कोई मिल गई है तो तुम्हें चिढ़ क्यों हो रही है? बल्कि तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए कि अब तुम्हें मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है.’’

धीरेंद्र की बात पर सुधा का खून खौलने लगा, ‘‘क्या कहने आप के, अच्छा, यह बताओ जब बच्चे नहीं थे, मेरी पढ़ाई नहीं चल रही थी, सहेलियां, रिश्तेदार कोई भी नहीं था, मेरा सारा समय जब केवल तुम्हारे लिए ही था, तब इन देखभाल करने वालियों की तुम्हें क्यों जरूरत पड़ गई थी?’’ सुधा का इशारा ललिता वाली घटना की ओर था.

तब उन के विवाह को साल भर ही हुआ था. एक दिन भोलू की मां धुले कपड़े छत पर सुखा कर नीचे आई तो चौके में काम करती सुधा को देख कर चौंक गई, ‘अरे, बहूरानी, तुम यहां चौके में बैठी हो. ऊपर तुम्हारे कमरे में धीरेंद्र बाबू किसी लड़की से बतिया रहे हैं.’

भोलू की मां की बात को समझने में अम्मांजी को जरा भी देर नहीं लगी. वह झट अपने हाथ का काम छोड़ कर उठ खड़ी हुई थीं, ‘देखूं, धीरेंद्र किस से बात कर रहा है?’ कह कर वह छत की ओर जाने वाली सीढि़यों की ओर चल पड़ी थीं.

सुधा कुछ देर तक तो अनिश्चय की हालत में रुकी रही, पर जल्दी ही गैस बंद कर के वह भी उन के पीछे चल पड़ी थी.

ऊपर के दृश्य की शुरुआत तो सुधा नहीं देख सकी लेकिन जो कुछ भी उस ने देखा, उस से स्थिति का अंदाजा लगाने में उसे तनिक भी नहीं सोचना पड़ा. खुले दरवाजे पर अम्मांजी चंडी का रूप धरे खड़ी थीं. अंदर कमरे में सकपकाए से धीरेंद्र के पास ही सफेद फक चेहरे और कांपती काया में पड़ोस की ललिता खड़ी थी.

इस घटना का पता तो गिनेचुने लोगों के बीच ही सीमित रहा, लेकिन इस के परिणाम सभी की समझ में आए थे. पड़ोसिन सुमित्रा भाभी ने अपनी छोटी बहन ललिता को एक ही हफ्ते में पढ़ाई छुड़वा कर वापस भिजवा दिया था. उस के बाद दोनों घरों के बीच जो गहरे स्नेहिल संबंध थे, वे भी बिखर गए थे.

अभी सुधा ने उसी घटना को ले कर व्यंग्य किया था. धीरेंद्र इस पर खीज गया. बोला, ‘‘पुरानी बातें क्यों उखाड़ती हो? उस बात का इस से क्या संबंध है?’’

‘‘है क्यों नहीं? खूब संबंध है. वह भी तुम्हारी प्रेमिका थी और यह भी जैसा तुम कह रहे हो, तुम्हारी प्रेमिका है. बस, फर्क यही है कि वह तीसरी या चौथी प्रेमिका रही होगी और यह 5वीं या छठी प्रेमिका है,’’ सुधा चिल्लाई.

‘‘चुप करो, सुधा, तुम एक बार बोलना शुरू करती हो तो बोलती चली जाती हो. पल्लवी को तुम इस श्रेणी में नहीं रख सकतीं. तुम क्या जानो, वह मेरा कितना ध्यान रखती है.’’

‘‘सब जानती हूं. और यह भी जानती हूं कि अगर ये ध्यान रखने वालियां तुम्हारे जीवन में न आतीं तो भी तुम अच्छी तरह जिंदा रहते. तब कम से कम दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीने की मजबूरी तो न होती.’’

सुधा को लगा कि वह अगर कुछ क्षण और वहां रुकी तो रो पड़ेगी. धीरेंद्र के सामने वह अब कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. पहले भी जब कभी धीरेंद्र के प्रेमप्रसंग के भेद खुले थे, वह खूब रोईधोई थी, लेकिन धीरेंद्र पर इस का कोई विशेष असर कभी नहीं पड़ा था.

धीरेंद्र तो अपनी टाई ठीक कर के, जूतों को एक बार फिर ब्रश से चमका कर घर से निकल गया, लेकिन सुधा के मन में तूफान पैदा कर गया. अंदर कमरे में जा कर सुधा ने सारे ऊनी कपड़े और स्वेटर आदि फिर से अलमारी में भर दिए.

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सर्दियां बीत चुकी थीं. अब गरमियों के दिनों की हलकीहलकी खुनक दोपहर की धूप में चढ़नी शुरू हो गई थी. आज सुधा ने सोचा था कि वह घर भर के सारे ऊनी कपड़े निकाल कर बाहर धूप में डाल देगी. 2 दिन अच्छी धूप दिखा कर ऊनी कपड़ों में नेप्थलीन की गोलियां डाल कर उन्हें बक्सों में वह हर साल बंद कर दिया करती थी.

आज भी धूप में डालने से पहले वह हर कपड़े की जेब टटोल कर खाली करती जा रही थी. तभी धीरेंद्र के स्लेटी रंग के सूट के कोट की अंदर की जेब में उसे यह गुलाबी लिफाफा मिला था.

बहुत साल पहले स्कूल के दिनों में सुधा ने एक प्रेमपत्र पढ़ा था, जो उस के बगल की सीट पर बैठने वाली लड़की ने उसे दिखाया था. यह पत्र उस लड़की को रोज स्कूल के फाटक पर मिलने वाले एक लड़के ने दिया था. उस पत्र की पहली पंक्ति सुधा को आज भी अच्छी तरह याद थी, ‘सेवा में निवेदन है कि आप मेरे दिल में बैठ चुकी हैं…’

धीरेंद्र के कोट की जेब से मिला पत्र भी कुछ इसी प्रकार से अंगरेजी में लिखा गया प्रेमपत्र था. बेहद बचकानी भावुकता में किसी लड़की ने धीरेंद्र को यह पत्र लिखा था. पत्र पढ़ कर सुधा के तनमन में आग सी लग गई थी.

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Social Story In Hindi: मैं कमजोर नहीं हूं- भाग 2- मां और बेटी ने किसे सिखाया सबक

कहने लगा, ‘तुम बिन ब्याही बच्चे की मां हो,?’ इस सवाल पर मैं सन्न रह गई. मेरे बुरे समय ने यहां भी मेरा पीछा न छोड़ा. पहले तो खुद को संयत किया, फिर बोली, ‘इतने बड़े आरोप के पीछे आप के पास सुबूत क्या है?’

कहने लगा कि जिस अस्पताल में तुम ने बच्चा जना था उस की नर्स मुझे जानती थी. वह मेरे गांव की रहने वाली थी. एक दिन तुम और मैं एक मौल में खरीदारी कर रहे थे. तभी उस नर्स नें तुम्हें पहचान लिया. उस ने एक दिन मुझे अपने घर बुलाया, फिर तुम्हारे बारे में पूछा. मैं ने बताया कि तुम मेरी पत्नी हो. मैं ने महसूस किया कि वह मुझ से कुछ बताना चाहती है मगर संकोचवश नहीं कह रही थी. मैं ने जोर दिया. तो वह बेाली, ‘क्या अपनी पत्नी के बारे में तुम ने कुछ पता किया था?’

‘मैं कुछ समझा नहीं?’

‘जैसे, वह कहां की रहने वाली है, उस का घरपरिवार कैसा है, लड़की का चालचलन कैसा है?’

‘मेरे पापा और उस के पापा एक ही औफिस में काम करते थे. सजातीय होने के कारण मेरे पापा ने बात चलाई. लड़की देखी, अच्छी लगी, पढ़ीलिखी थी. उन्होंने दहेज भी काफी दिया. नर्स ने यहीं बात खत्म करनी चाही मगर मैं ने सत्य उगलवा कर ही दम लिया.

मेरे पति के कथन से मुझे गहरी निराशा हुई. एक स्त्री से मुझे ऐसी उम्मीद न थी. उस ने मेरा बसाबसाया घर उजाड़ दिया. सत्य सत्य होता है. वह लाख छिपाने पर भी नहीं छिपता. मुझे मांपापा दोनों पर गुस्सा आया क्यों नहीं साफसाफ बता कर शादी की. अगर उसे मेरी जरूरत होती तो शादी करता, वरना मैं जैसे थी वैसी ही खुश थी.

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दुख तो बहुत हुआ मगर मैं ने भी सोच लिया था कि रोनेधोने से काम नहीं चलेगा. शादी कोई अंतिम रास्ता नहीं. मुझे बरगला कर मेरा यौनशोषण करने वाला चैन की जिंदगी जिए और मैं तिलतिल कर खुद को जलाऊं और अपने समय को कोसूं. नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं जिऊंगी और अपनी शर्तो पर.

मांपापा दोनों दुखी थे. मैं ने कहा, ‘आप मुझे या खुद को क्यों अपराधी मानते हैं? शादी का संबंध बच्चे पैदा करना होता है. तो वह मैं ने बिन ब्याहे कर दिया. अब रहा किसी के साथ का, तो मेरे समय में लिखा होगा तो कोई न कोई मिल ही जाएगा जो सबकुछ जानते हुए भी मुझे अपनाने से गुरेज नहीं करेगा. वास्तव में मुझे ऐसे ही इंसान की जरूरत है.’

चित्त शांत हुआ तो मैं ने एक कंपनी में नौकरी कर ली. एक रोज एक दंपती ने मेरे फ्लैट के दरवाजे पर दस्तक दी. मां ने दरवाजा खोला. उस वक्त मैं दूसरे कमरे में थी. वे लोग मां के जानपहचान के थे. उन्हें देख कर मां के माथे पर बल पड़ गए. मां ने उन्हें डाइंनिग रूम में बिठाया. उन के साथ एक 8 साल का लड़का भी था. लड़के को मेरे कमरे में भेज कर मां न जाने क्या उन के साथ खुसुरफुसुर करती रहीं. इस बीच वह लड़का मेरे साथ घुलमिल गया. करीब आधे घंटे के बाद मैं ने देखा कि वे दंपती जा चुके थे. मुझे आश्चर्य हुआ क्येांकि वह लडका तो यहीं रह गया. जब उस लडके को पता चला कि उस के कथित मांबाप चले गए तो वह रोने लगा. मुझे दया आई. उसे सीने से लगा कर चुप कराने लगी.

‘मम्मी, इसे क्यों नहीं ले गई?’ मैं ने अपनी मां से पूछा. मां ने इशारे से मुझे चुप करा दिया.

‘अब यह यहीं रहेगा.’ कहने को तो मां ने कह दिया मगर तत्काल उस में सुधार करते हुए बोलीं, ‘कुछ दिनेां के लिए. जैसे ही इस के मांबाप विदेश से आ जाएंगे, यह उन्हीं के पास चला जाएगा.‘

मुझे मां के कथन संदिग्ध लगे. उन्हें अन्य कमरे में ले जा कर वस्तुस्थिति की सहीसही जानकारी हासिल करने का प्रयास किया तो मां कहने लगीं, ‘तुम से क्या छिपाना. यह तुम्हारा ही बेटा है.’ यह सुनते ही मैं क्षणांश भावविभोर हो गई. मां आगे बोलीं, ‘इसी बच्चे को तुम ने जन्म दिया था. लोकलाज के भय से मैं ने इस बच्चे को जन्मते ही अपने एक रिश्तेदार को दे दिया था. वे निसंतान थीं. मगर अब उन की अपनी औलाद हो चुकी है. वे इसे रखने के लिए तैयार नहीं हैं.’

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मैं ने उस लड़के को देखा. वह अब भी रोए जा रहा था. मेरे दिल में मां की ममता उमड़ पड़ी. कितना अभागा था यह बच्चा. असल मां जिंदा थी तो भी गैर के पास पल रहा था? यह सोच कर मेरा कलेजा फट गया. उसे सीने से लगाया, मेरा मन भीग गया था. वह लड़का मेरे लिए अंधेरे में चिराग की तरह था. कुदरत को मैं ने लाखलाख धन्यवाद दिया जिस ने मुझे जीने का मकसद दे दिया. मैं ने बच्चे का नाम पूछा, तो उस ने आकाश बताया. जब वह शांत हुआ तो मां ने मुझे एकांत में बुला कर दबे स्वर में कहा, ‘अभी इस के सामने तुम्हें मां बताना मुनासिब नहीं होगा. तुम इसे इतना प्यार दो कि वह अपने पूर्व मांबाप को भूल जाए. फिर मौका देख कर बता देना कि तुम इस की असली मां हो.’

‘क्या वह मानेगा, क्या वह यह नहीं पूछेगा कि मैं इतने दिन कहां रही, मेरे पिता कहां है? तब?’

‘तब की तब देखी जाएगी. अभी मैं जैसा कह रही हूं वैसा ही करो.’ मां ने यह कहा तो मुझे उन से तर्क करना मुनासिब न लगा. मैं कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आई. उस के करीब आ कर प्यार से पुचकारते हुए बोली, ‘मैं तुम्हें आकाश नाम से पुकारूं, तो कैसा लगेगा?’ नाक सुघड़ते हुए वह बोला, ‘अच्छा.’

‘तो ठीक है आकाश, आज मैं तुम्हें आइसक्रीम खिलाने ले चलती हूं, कैसा रहेगा?’ मैं खुश थी. मेरे प्यार की तपिश पा कर उस के चेहरे पर मुसकान की रेखाएं खिंच गईं. जल्दीजल्दी मैं ने अपने कपड़े बदले. उस को ले कर आइसक्रीम पार्लर में पहुंची. उस दिन मैं ने आकाश पर जीभर प्यार उड़ेला. क्यों न उड़ेलती. वह मेरे शरीर का अंश था. वर्षों तक उस के रूपरंग को ले कर तरसती रहती थी कि आज मेरा बेटा जिंदा होता तो कैसा होता. मां ने कहा था कि वह मरा हुआ पैदा हुआ था. अगर जिंदा भी बतातीं तो क्या मैं उसे पालने लायक थी? मैं तो उस वक्त खुद एक बच्ची थी.

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Monsoon Special: सब्जियों और फलों के छिलकों से बनाएं ये रेसिपी

सब्जियां और फल हर घर में खाये जाते हैं. आमतौर पर छिल्कों को यूं ही फेंक दिया जाता है. जब कि सब्जी और फलों के ये छिल्के पौष्टिकता से भरपूर होते हैं. इनमें जिंक, विटामिन्स, मिनरल्स, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो हमारे पाचनतंत्र, श्वसन तंत्र, दांतो, हड्डियों और त्वचा के लिए अत्यंत लाभप्रद होते हैं इसलिए सब्जियों के साथ साथ इनके छिल्कों को भी भोजन में शामिल किया जाना चाहिए. इन छिल्कों से हम सब्जी, चटनी और परांठा बड़ी आसानी से बना सकते हैं. तो आइए देखते हैं कि सब्जी और फलों के छिल्कों से हम विभिन्न व्यंजन कैसे बना सकते हैं-

-तरबूज के छिलकों की सब्जी

कितने लोंगों के लिए          4

बनने में लगने वाला समय     20 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

तरबूज के छिलके              8

तेल                                1 टीस्पून

मैथीदाना                         1/4 टीस्पून

हल्दी पाउडर                    1/4 टीस्पून

नमक                               स्वादानुसार

कटी हरी मिर्च                   4

लाल मिर्च पाउडर             1/4 टीस्पून

नीबू का रस                     1/2 टीस्पून

पोदीना पाउडर                 1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर                  1/2 टीस्पून

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विधि

तरबूज के छिल्कों का हरा भाग अलग करके सफेद हिस्से को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. गर्म तेल में हरी मिर्च और मैथीदाना  तड़काकर हल्दी पाउडर और तरबूज के कटे टुकड़े डालें. नमक डालकर अच्छी तरह चलाएं. ढककर गलने तक पकाएं. जब टुकड़े गल जाएं तो ढक्कन हटाकर लाल मिर्च और अमचूर पाउडर डालें और खोलकर ही पानी सूखने तक पकाएं. पोदीना पाउडर डालकर परांठा या रोटी के साथ सर्व करें.

-लौकी के छिल्कों की चटनी

कितने लोंगों के लिए      6

बनने में लगने वाला समय    10 मिनट

मील टाइप                     वेज

सामग्री

लौकी के छिल्के           1 कप

पोदीना                       1 कप

हरा धनिया                 1/2 कप

हरी मिर्च                    6

अदरक                       1 इंच टुकड़ा

धनिया पाउडर             1/2 टीस्पून

जीरा                           1/4 टीस्पून

हींग                             1 चुटकी

नमक                          1/2 टीस्पून

अमचूर पाउडर             1 टेबलस्पून

बारीक सेंव                    1 टीस्पून

विधि

लौकी के छिल्कों को धोकर मोटा मोटा काट लें. अब समस्त सामग्री को मिक्सी के जार में डालकर 1/4 कप पानी की सहायता से पीस लें. स्वादिष्ट और पौष्टिक चटनी तैयार है.

-करेले के छिल्कों का परांठा

कितने लोंगों के लिए            4

बनने में लगने वाला समय     20 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

करेले के छिलके            1 कप

गेहूं का आटा                 1 कप

बेसन                            1/2 कप

मैदा                              1/2 कप

हींग                              चुटकी भर

अजवाइन                       1/4 चम्मच

नमक                             1/2 टीस्पून

दही                                1 कप

सेकने के लिए तेल             पर्याप्त मात्रा में

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विधि

छिल्कों में 1/2 टीस्पून नमक लगाकर आधे घण्टे के लिये रख दें. गेहूं के आटे में बेसन, मैदा, अजवाइन, हींग, 1/2 टीस्पून नमक और 1 टीस्पून तेल मिलाएं. आधे घण्टे के बाद छिल्कों को धोकर छलनी से छानकर पूरा पानी निकाल दें. छिल्कों को दही के साथ मिक्सी में पीस लें. अब दही के मिश्रण  को आटे में मिलाकर गुनगुने पानी की सहायता से नरम गूंथ लें. तैयार आटे से छोटी छोटी लोई लेकर परांठे बनाकर तेल लगाकर सुनहरा होने तक दोनों तरफ से सेंककर अचार या चटनी के साथ सर्व करें.

जानें जैकलीन फर्नांडिस ने रचा कौनसा नया इतिहास, पढ़ें खबर

पिछले कुछ समय से इस बात की चर्चाएं काफी गर्म रही हैं कि बॉलीवुड अदाकारा पहली बार किच्चा सुदीप संग कन्नड़ भाषा की थ्री डी फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’में अभिनय कर रही हैं. वैसे यह फिल्म 14 भाषाओं में 55 देशों में 19 अगस्त 2021 को प्रदर्शित होने वाली है. अनूप भंडारी लिखित व निर्देशित फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’के निर्माताओं जैकलीन फर्नाडिश का इस फिल्म में लुक जग जाहिर कर दिया है. इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश ने किच्चा सुदीप संग कैमियो किया है और उनका किरदार काफी रोचक है. मजेदार बात यह है कि निर्माताओें ने जैकलीन के लुक वाला फिल्म‘‘विक्रांत रोणा का पोस्टर पूरे मंुबई में लगाए हैं।इन होर्डिंग से यह बात भी उजागर होती है कि इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश के किरदार का नाम रकील डी‘कोस्टा उर्फ गडंग रक्कम्मा है।

जैकलीन फर्नाडिश के इस लुक में कई जातियों का मेल है. वह ‘गडंग रक्कम्मा‘ का किरदार निभाती हुई नजर आएंगी, जो एक काल्पनिक जगह पर  मधुशाला चलाती हैं. जहां विक्रांत रोणा(किच्चा सुदीप) उससे मिलता है. इस फिल्म में जैकलीन का सिर्फ अहम किरदार ही नहीं है, बल्कि किच्चा सुदीप के साथ थिरकते हुए भी नजर आने वाली हैं.

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फिल्म‘‘विक्रांत रोणा’’ के निर्माता जैक मंजूनाथ कहते हैं-‘‘हमारी इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश की एंट्री के साथ दुनिया के नए हीरो की कहानी और भी रोमांचक हो जाती है. फिल्म में जैकलीन ने कमाल की छाप छोड़ी है और उसकी एक झलक साझा करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. हम एक ऐसा सिनेमा बना रहे हैं,  जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखेगी.  फिल्म के प्रति लोगों की उत्सुकता देखकर हमें बेहद खुशी हो रही है. ‘‘

निर्देशक अनूप भंडारी कहते हैं-‘‘प्रत्येक घोषणा के साथ दर्शकों को आश्चर्य चकित करने के सिलसिले को बरकरार रखने में हमें मजा आ रहा है. जैकलीन के पोस्टर की घोषणा फिल्म के स्तर को एक बार फिर से दर्शाती है. हम दर्शकों की आशाओं पर खरे उतरने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ताकि उनका थिएटर में अपना कीमती समय देकर देखना सफल हो. ‘‘


जबकि जैकलीन फर्नाडिश कहती हैं-‘‘फिल्म से जुड़ी पूरी टीम ने मेरा सेट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. फिल्म के मेकिंग से जुड़े हर क्षण मेरे लिए रोमांचकारी रहे हैं. मैं निर्माताओं की तहे दिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने उन्होंने इतने भव्य रूप से पोस्टर का अन्वेषण किया. यह फिल्म मेरी लिए बहुत ही खास और यादगार रहेगी. ‘‘

बहुभाषी एक्शन एडवेंचरस फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’के लेखक व निर्देशक अनूप भंडारी, निर्माता जैक मंजुनाथ और शालिनी मंजूनाथ ( शालिनी आर्ट्स), सह निर्माता  अलंकार पांडियन (इन्वेनियो फिल्म्स),  संगीतकार बी अजनीश लोकनाथ,  कैमरामैन विलियम डेविड और शिवकुमार हैं. फिल्म ‘विक्रांत रोणा’में किच्चा सुदीप,  निरूप भंडारी और नीता अशोक और जैकलीन फर्नांडीस की अहम भूमिकाएं हैं.

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स्टार प्लस के सीरियल पांड्या स्टोर में आए दिन नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं, जिसके चलते औडियंस को सीरियल बेहद पसंद आ रहा है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में धरा कि जिंदगी में कुछ ऐसा होना वाला है, जिससे सभी हैरान रह जाएंगे. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

धरा को ताने मारते हैं पड़ोसी

अब तक आपने देखा कि तीनों भाई मिलकर धरा और गौतम की नए कमरे में फर्स्ट नाइट की तैयारियां करते हैं. वहीं अगले दिन सभी घरवाले फेस्टिवल की तैयारियां करते हैं, जिसके चलते धरा के पड़ोसी अपने बच्चों को लेकर आते हैं, जिससे रिशिता गुस्सा हो जाती है. वहीं रिशिता के गुस्से को देखकर पड़ोसी धरा और सुमन पर ताना कसते हैं कि वह बच्चों को गोद ले लें क्योंकि उन्हें खुद के नाती-पोते नही मिलेंगे. हालांकि रिशिता, धरा के लिए स्टैंड लेती है और पड़ोसियों को रोकती है.

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सुमन करेगी खुदखुशी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शिवा और रिशिता के बदले बर्ताव को देखकर सुमन अपना आपा खो देगी और घर में बड़ी लड़ाई हो जाएगी. हालांकि धरा अपनी तरफ से मामले को सुलझाने की कोशिश करेगी और अपनी सास सुमन से कहेगी कि आप कुछ मत कहिए, जिसे सुनकर वह भड़क जाएगी और धरा की बातों का गलत मतलब निकाल कर कुए में कूद जाएगी, जिसे देखकर पूरा परिवार हैरान हो जाएगा.

बता दें, सीरियल की लीड एक्ट्रेस धरा यानी शाइनी दोशी हाल ही में शादी के बंधन में बंधी हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुई थी. हालांकि वह शादी के तुरंत बाद शूटिंग पर दोबारा लौट आई हैं, जिसके बाद शो की टीआरपी में भी उठाल देखने को मिला है.

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उसके हिस्से के दुख: भाग 2- क्यों मदद नही करना चाहते थे अंजलि के सास-ससुर

उमा बीच में एकाध बार कोमल और शीतल को अंजलि और विनय से मिलवा लाई थी. उमा अंजलि के कपड़ों का बैग भी ले गई थी. अब अंजलि भी लगातार हौस्पिटल में ही थी. विनय सामान्य दिखने की कोशिश तो करते, पर मन ही मन बहुत चिंतित थे.

बारबार अंजलि से कह रहे थे, ‘‘यार, हमेशा हैल्थ का इतना ध्यान रखा और अब कितने दिनों से हौस्पिटल में पड़े हैं.’’

अंदर से खुद भयभीत अंजलि हौसला बढ़ाती, ‘‘कोई बात नहीं, रिपोर्ट ठीक ही होगी. बस, फिर चलेंगे घर,’’ अंजलि विनय को क्या, जैसे खुद को तसल्ली दे रही थी.

रिपोर्ट क्या आई, विनय और अंजलि के जीवन में दुखों का जैसे एक सैलाब  सा आ गया. क्या करें, क्या होगा. किसी को कुछ समझ नहीं आया. विनय को ब्रेन कैंसर था जो इतना फैल चुका था कि औपरेशन असंभव था और लास्ट स्टेज थी. सब के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अंजलि को तो लगा कि एक पल में ही उस की दुनिया बदल गईर् है. डाक्टर के सामने ही फूटफूट कर रो दी वह. विनय अवाक थे. राकेश अंजलि को चुप करवाता हुआ खुद भी रो रहा था.

डाक्टर ने अंजलि से कहा, ‘‘आप आइए, आप से कुछ बातें करनी है.’’

विनय को रूम में छोड़ अंजलि और राकेश डाक्टर के कैबिन में गए.

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डाक्टर ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘आप को अब खुद मानसिक रूप से बहुत मजबूत होना है. सब से दुख की बात है कि विनय के पास सिर्फ 2-3 महीने ही हैं.’’

‘‘क्या?’’ अंजलि रो पड़ी.

राकेश ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘कोई इलाज तो होगा? आज साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है… क्या हम उन्हें विदेश ले जाने की कोशिश करें, डाक्टर साहब?’’

‘‘उन्हें अब कहीं भी ले जाने से फायदा नहीं है. लास्ट स्टेज है. कीमो और रैडिएशन ट्राई करते हैं, अगर बौडी को सूट कर गया तो थोड़े दिन और बढ़ जाएंगे और आप को बहुत सारी बातें समझनी होंगी. उन्हें बातबात पर चिड़चिड़ाहट हो सकती है, मूड स्विंग्स होंगे, मैमोरी लौस भी हो सकता है. उन के साथ अचानक ये सब हुआ है, वे मानसिक रूप से बहुत अस्थिर होंगे. आप को बहुत धैर्य रखना होगा.’’

टूटेहारे तीनों 10 दिन बाद घर वापस आ गए. घर के पास ही एक बहुत अच्छा हौस्पिटल था. कीमोथैरेपी और रैडिएशन के लिए रोज जाना था. वहीं जाने में सुविधा थी तो वहां डाक्टर को दिखा कर आगे के लिए इलाज शुरू हो गया. सुबह सब का नाश्ता बना कर बेटियों को स्कूल भेज अंजलि 10 बजे विनय के साथ हौस्पिटल जाती. आने में 1-2 बज जाते. आ कर लंच बनाना, विनय को खिलाना, फिर उन्हें आराम करवाना, पर विनय आराम करना कहां जानते थे. हाईपरएक्टिव इंसान थे.

हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहते थे अब तक. अब धीरेधीरे स्टैमिना कम हो रहा था. रैडिएशन के साइड इफैक्ट भी बहुत साफ नजर आते थे. काफी कमजोरी रहने लगी थी. जल्दी थकते थे, घर में भी चलनेफिरने में थकते दिखाई दे रहे थे. कार चलाना तो अब बंद ही हो गया था. हौस्पिटल आनेजाने के लिए एक ड्राइवर को बुलाया जाता था. विनय की गिरती सेहत, भविष्य में आने वाली परेशानियों का डर, घर में अनिष्ट की आशंका हर तरफ दिखाई देने लगी थी.

बहुत कम लोगों को ही विनय की बीमारी का पता था. विनय अब अपने सारे बीमे के पेपर्स, सारे फंड्स खोल कर बैठे रहते, 1-1 चीज अंजलि को समझते कि कैसे क्या करना है. वे यह महसूस कर चुके थे कि किसी भी दिन कुछ हो जाएगा.

अब तक विनय को हर बात, हर काम खुद करने की आदत थी. स्वभाव  से वे काफी पजैसिव और डौमिनेटिंग टाइप के इंसान थे. अब हर बात में अंजलि और बच्चों पर निर्भर होना पड़ रहा था तो उन्हें बातबात पर गुस्सा आने लगा था. कभी भी चिढ़ जाते, बहुत गुस्सा करते. अंजलि को दोहरी तकलीफ होती. एक तरफ असाध्य बीमारी, उस पर विनय का गुस्सा और चिड़चिड़ाहट. कभीकभी उसे सजा सी लगने लगती कि उसे क्यों इतना शारीरिक और मानसिक कष्ट झेलना पड़ रहा है.

एक महीने में ही उस का चार किलोग्राम वजन कम हो गया था. विनय की जगह वह बीमार लगने लगी थी. रातभर उठ कर विनय को देखती रहती कि ठीक तो हैं. वे जब से बेहोश हुए थे, एक रात भी अंजलि चैन से नहीं सो पाई थी.

एक दिन अंजलि जैसे ही दोपहर में थक कर थोड़ा लेटी, विनय ने कहा, ‘‘अरे, याद आया, एक पेपर का फोटोस्टेट करवाना है.’’

‘‘ठीक है, अभी शाम को करवा लाऊंगी या कोमलशीतल स्कूल से आएंगी तो करवा लाऊंगी, आप को अकेले छोड़ कर नहीं निकलूंगी.’’

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‘‘नहीं, अभी चाहिए, मैं थोड़े पेपर्स ठीक कर रहा हूं.’’

‘‘आप भी आराम कर लो, शाम को ले आऊंगी.’’

विनय बुरी तरह चिढ़ गए, ‘‘अब छोटेछोटे कामों के लिए तुम्हें कितनी बार कहना पड़ता है. मेरी मजबूरी है. तुम्हें पता है न, मेरा हर काम समय पर परफैक्ट रहता है. टालना मेरी आदत नहीं है. अब कितनी बार एक ही काम को कहना पड़ता है.’’

थक कर लेटी अंजलि विजय की चिड़चिड़ पर उठ कर बैठ गई, ‘‘अभी जाना जरूरी है? बारिश भी तेज है.’’

‘‘हां, अभी जरूरी है.’’

अंजलि को गुस्से के मारे रोना आ गया. जब से विनय बेहोश हुए थे, एक मिनट भी अंजलि ने विनय को घर में अकेला नहीं छोड़ा था. इतने में बच्चे आ गए तो वह उन्हें खान दे कर तैयार हो कर तेज बारिश में ही घर से निकल गई. जा कर फोटोस्टेट करवाया, फिर रास्ते में खुद को ही समझने लगी कि विनय छोटेछोटे काम हमें कहते हुए मानसिक तनाव झेलते होंगे, इतनी बड़ी बीमारी के आखिरी दिन हैं… उन्हें कैसा लगता होगा. जब यह महसूस होता होगा कि किसी भी दिन वे नहीं रहेंगे, किस मानसिक यंत्रणा में रहते होंगे. फिर विनय के पक्ष में ही सोचती हुई अपना गुस्सा, झंझलाहट भूलने की कोशिश करने लगी.

अचानक अंजलि की परेशानियां तब और बढ़ गईं जब मुंबई में ही इस समय उस के देवर के पास रहने वाले उस के सासससुर महेश और मालती विनय की बीमारी का पता चलने पर उस के पास रहने आ गए. महेश और मालती कुछ महीने विनय के छोटे भाई विजय के पास रहते थे, कुछ महीने यहां. 86 साल के महेश और 80 साल की मालती दोनों शारीरिक रूप से बेहद खराब स्थिति में थे. दोनों बिना सहारे के उठबैठ भी नहीं पाते थे. बस, अंजलि को बातबात पर टोकने, सारा दिन उस की गलतियां बताने की शक्ति उन में आज भी थी. कभीकभी कुछ बुजुर्ग भी तो अपनी शारीरिकमानसिक अवस्था भूल कर किसी भी उम्र में दुर्व्यवहार करना नहीं छोड़ते.

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