क्राइम शो देखने की लत को कैसे दूर करूं ?

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता

के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

प्रधानमंत्री मोदी ने बढ़ाया खिलाड़ियों का हौसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने लोकप्रिय कार्यक्रम “मन की बात” में टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों की हौसला अफजाई की.

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में खिलाडियों के जीवन संघर्ष और उससे निकल कर इस मुकाम तक पहुंचने की गाथा को सराहा. उन्होंने कहा कि टोक्यो जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे . उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है .  एक बस कंडक्टर की बेटी  प्रियंका ने बचपन से ही मेडल के प्रति आकर्षण था जिसने उन्हें रेस वाकिंग का चैंपियन बनाया.

प्रधानमंत्री ने बढ़ाया खिलाड़ियों का हौसला

इसी के क्रम में उन्होंने वाराणसी के शिवपाल सिंह का नाम लिया जो जेवलिन थ्रो के खिलाड़ी हैं.  शिवपाल का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है . इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में पारंगत हैं . पीएम ने कहा कि परिवार की यही परंपरा उनके लिए टोक्यो ओलंपिक में काम आने वाली है .

मुख्यमंत्री ने दिया प्रधानमंत्री को धन्यवाद

मुख्यमंत्री योगी ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि उन्होंने हमेशा खेलों को बढ़ावा दिया. मुख्यमंत्री ने कहा कि पी एम की प्रेरणा से ही उनकी सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की नीति अपनाई जिससे अनेक खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल की.

ट्रोलिंग का शिकार हुई Barrister Babu की बड़ी बोंदिता, सपोर्ट में आया अनिरुद्ध

कलर्स टीवी के सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ (Barrister Babu) की छोटी बोंदिता का सफर पिछले दिनों खत्म हो गया है. हालांकि बड़ी बोंदिता का भी चुनाव किया जा चुका है. लेकिन फैंस को बड़ी बोंदिता यानी आंचल साहू का शो में होना पसंद नहीं आ रहा है, जिसके चलते एक्ट्रेस ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं. वहीं अब इस मामले में सीरियल के लीड एक्टर प्रविश्ट मिश्रा यानी अनिरुद्ध सपोर्ट के लिए सामने आए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला…

नए प्रोमो के चलते ट्रोल हुईं बड़ी बोंदिता

 

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दऱअसल, सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ में जल्द ही 8 साल लंबा लीप आने वाला है, जिसमें बड़ी बोंदिता दिखाई देंगी वहीं इस प्रोमो को देखने के बाद फैंस का गुस्सा देखने को मिल रहा है. फैंस का मानना है कि अंचल साहू की जगह औरा भटनागर को ही बोंदिता को किरदार निभाना चाहिए. इसी बीच टीवी सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ के अनिरुद्ध यानी प्रविष्ठ मिश्रा (Pravisht Mishra) अंचल साहू के सपोर्ट में खड़े हुए हैं.

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अनिरुद्ध ने दिया साथ

 

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सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ का प्रोमो शेयर करते हुए प्रविष्ठ मिश्रा आंचल साहू के बारे में लिखा, ‘इस शो की कहानी मेरे दिल के बहुत करीब है. हम सब इस शो को और भी बेहतर बनाना चाहते हैं. मुझे उम्मीद है कि बदलाव होने पर भी फैंस इस शो को उतना ही प्यार देंगे. मैंने प्रोमो में आ रहे कुछ कमेंट देखे हैं. हमारी टीम आपकी भावनाओं की कद्र करती है. एक कलाकार होने के नाते औरा भटनागर कमाल की चाइल्ड एक्ट्रेस हैं. आप सभी ने छोटी बोंदिता को बहुत प्यार दिया है. आप सभी लोगों से ज्यादा मैं उस बच्ची से प्यार करता हूं लेकिन हमें कहानी आगे बढ़ानी ही होगी. आपको बड़ी बोंदिता को भी एक मौका देना होगा. मैं अंचल साहू का स्वागत कपना चाहता हूं. अब से अंचल साहू भी सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ के परिवार का हिस्सा है. मैं अनुरोध करता हूं कि अंचल साहू को लेकर फैंस किसी तरह की कोई नकारात्म खबर न फैलाएं. मेरी तरफ से आप सभी को ढ़ेर सारा प्यार…. देखते रहिए सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’….’

 

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बता दें, सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ में लीप से पहले बोंदिता (Aurra Bhatnagar) और अनिरुद्ध (Pravisht Mishra) हमेशा के लिए जुदा हो जाएंगे, जिसके कारण जहां बोंदिता विदेश चली जाएगी तो वहीं अनिरुद्ध बोंदिता से नफरत करने लगेगा. अब देखना है कि लीप के बाद की कहानी क्या फैंस को पसंद आती है.

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‘काव्या’ से मिलने पहुंचे औफस्क्रीन ससुर Mithun Chakraborty, Anupamaa के साथ भी दिए पोज

टीवी शो अनुपमा इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है. जहां शो की टीआरपी पहले नंबर पर है तो वहीं सेट पर गुटबाजी की खबरों को लेकर सीरियल सुर्खियों में छाया हुआ है. वहीं लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो वनराज और काव्या की शादी के बाद सीरियल की कहानी में फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. इसी बीच सीरियल के सेट पर काव्या यानी मदालसा शर्मा के औफस्क्रीन ससुर यानी बौलीवुड के दिग्गज एक्टर मिथुन चक्रवर्ती पहुंचे. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज…

मदालसा को मिला सरप्राइज

सीरियल अनुपमा में काव्या से जहां उनके सास ससुर नाराज हैं तो वहीं रियल लाइफ में मदालसा के सास ससुर उनसे बेहद प्यार करते हैं, जिसके चलते सीरियल के सेट पर मदालसा शर्मा के औफस्क्रीन सुसर मिथुन चक्रवर्ती ने सरप्राइज दिया. दरअसल, हाल ही में, मदालसा शर्मा उर्फ काव्या को अनुपमा के सेट पर उनके ससुर और दिग्गज अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती अचानक पहुंचे, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं.

 

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अनुपमा संग फोटो की शेयर

 

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अनुपमा के प्रोडक्शन हाउस ने सोशलमीडिया पर शो की टीम के साथ मिथुन चक्रवर्ती की एक फोटो शेयर की है. वहीं शो की दूसरी कास्ट यानी रुपाली गांगुली और दूसरे कास्ट मेंबर्स के साथ खींची गई फोटोज भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसे देखकर फैंस एक्साइटेड हैं.

बता दें, कुछ दिनों पहले काव्या यानी मदालसा शर्मा की मां शीला देवी और उनके औफस्क्रीन पति मिमोह चक्रवर्ती भी अनुपमा के सेट पर पहुंचे थे, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुई थी. वहीं मिमोह शो की दूसरी कास्ट संग मस्ती करते हुए भी नजर आए. वहीं सीरियल की बात करें तो फैमिली ड्रामा के चलते अनुपमा की लाइफ में कई परेशानियां आने वाली है, जिसका कारण काव्या होगी.

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मुक्ति का बंधन- भाग 2: अभ्रा क्या बंधनों से मुक्त हो पाई?

अब नाना की हिदायत होने लगी कि मैं रात को फोन न पकड़ूं, दोपहर तक न सोई रहूं, भले ही रात 3 बजे तक नींद आई हो. मेरा ड्रायर से गीले बाल सुखाना उन्हें गवारा न था जबकि होटल में हमें ऐसी ही हिदायतें दी गई थीं क्योंकि हमें ड्यूटी में गीले बाल ले कर आना मना था. पोशाक मेरी मरजी की मैं पहनूं तो नाना की सभ्यता में खलल पड़ता.

मतलब इन कोलाहलों ने मेरे अंतर्मन को सन्नाटे में तबदील कर दिया था. नाना अपनी जगह सही थे. और मैं अब बच्ची नहीं रह गई थी, यह सब नाना को समझाते रहने की एक बड़ी कठिन परिस्थिति से मैं जूझने को मजबूर थी.

अब बहुत हो चुका था. अंतर्मुखी होना मेरी खासीयत से ज्यादा नियति हो गई थी. प्यारइमोशन, सुखदुख अब मैं किसी से साझा नहीं करना चाहती थी. मुझे अपने पापा के आदेशोंनिर्देशों, नाना के अफसोसों, मां की प्यारभरी फिक्रों से नफरत होने लगी थी. मैं सब से दूर जाना चाहती थी. और तब जाने कैसे इस निर्बंध के बंधन में जकड़ कर यहां आ पहुंची थी. यह था उस की अभी तक की जिंदगी का इतिहास.

खुली खिड़की से कुहरा मेरी तरफ बढ़ता सा नजर आया, जैसे अब आ कर मुझे पूरी तरह जकड़ लेगा और मैं खो जाऊंगी इस घने से शून्य में.

ठंड से जकड़न बढ़ती जा रही थी मेरी. पीछे से जैसे कुहरे ने हाथ रखा हो मेरी पीठ पर. मैं सिहर कर पीछे मुड़ी. ओह, प्रबाल वापस आ गया था और अपना ठंडा बर्फीला हाथ मेरी पीठ पर रख मुझे बुला रहा था. वह बोला, ‘‘यह लो अदरक वाली चाय. मैं पी कर तुम्हारे लिए एक ले आया. इस लौज के नीचे क्या मस्त चाय बन रही है. यहां से दूर उस सामने पहाड़ी तक घने कुहरे की चादर बिछ गई है. चलो न, अब तैयार हो कर पैदल चलें पहाड़ी तक.’’

मैं ने चाय ली और उस से थोड़ी मोहलत मांगी. वह नीचे चला गया.

6 फुट का यह लंबा, गोरा, गठीला, रोबीला नौजवान मेरी एक बात पर मेरे साथ कहीं भी चला जाता है. मेरे लिए लोगों से कितनी ही बातें सुनता है और मैं कभी इस से ढंग से बात ही नहीं कर पाती. आज इस की इच्छा का मान रखना चाहिए मुझे.

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वूलन ट्राउजर पर ग्रे कलर की हूडी चढ़ा कर मैं नीचे आ गई. वह मेरे इंतजार में इधरउधर घूमते हुए अगलबगल के छोटे होटलों में लंच के लिए जानकारी जुटा रहा था. मेरी 5 फुट 4 इंच की हाइट और उस की 6 फुट की हाइट के साथ खड़े होते ही अपने ठिगनेपन के एहसास भर से बिदक कर मैं हमेशा उस से दूर जा खड़ी होती हूं और वह एक रहस्यमयी मुसकान के साथ मेरी ओर देख कर फिर दूसरी ओर देखने लगता है.

छत्तीसगढ़ के मनोरम जशपुर में क्रिसमस का यह दिसंबरी महीना गुलाबी खुमारी से पत्तेपत्ते को मदहोश किए था. पहाड़ी तक पहुंचने की सड़क बर्फीली लेकिन चमकीली हो रही थी. पास ही दोनों ओर खाईनुमा ढलानों में मकानों और पेड़ों की कतारें एकदूसरे से दूरियों के बावजूद जैसे लिपटे खड़े दिख रहे थे.

प्रकृति और मानव जिजीविषा का अनुपम समागम. जितना यहां तालमेल है मानव और प्रकृति के बीच, हम शहर के कारिंदों में कहां? रहना होता है बित्तेभर की दूरी में और दिल की खाई पाटे नहीं पाटी जाती.

प्रबाल आगे निकल रहा था. इस कुहेलिका ने उसे कुतूहल से भर दिया था और अकसर मेरा ध्यान रखने वाला प्रबाल आज कुदरत के नजारों में डूबा हुआ आगे बढ़ गया था.

मैं ने घड़ी देखी. सुबह के 8 बज रहे थे. कल आए थे हम दोनों यहां.

होटल मैरियट में क्रिसमस की भारी व्यस्तता के बाद 28 और 29 दिसंबर को हम दोनों को छुट्टी मिली थी.

20 साल की उम्र भारतीय समाज में शिशुकाल ही मानी जाती है, अपने परिवार और रिश्तेदारों में तो अवश्य. ऐसे में पीछे जरूर ही पहाड़ टूट कर ध्वंस लीला चलने की उम्मीद कर सकती हूं. वह भी जब बिना बताए एक लड़के के साथ मैं यहां आ गई हूं.

प्रबाल को मैं 2 सालों से जानती हूं. कालेज में भी वह मेरा अच्छा दोस्त रहा. और इस ट्रेनिंग में भी बराबर मुझे समझने का और साथ देने का जैसे बीड़ा ही उठा रखा था उस ने.

प्रबाल रुक कर मेरा इंतजार कर रहा था. पास जाते ही उस ने एक ऊंची पहाड़ी के पास गोल से एक सफेद रुई से मेघ की ओर इशारा किया. मैं ने देखा तो उस ने कहा, ‘‘ठीक तुम्हारी तरह है यह मेघ.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘तुम भी तो ऐसी ही सफेद रुई सी लगती हो कोमल, लेकिन अंदर दर्द का गुबार भरा हुआ, लगता है बरस पड़ोगी अभी. लेकिन बिन बरसे ही निकल जाती हो दूर बिना किसी से कुछ कहे.’’

मैं खुद को कठोर दिखाने का प्रयास करती रहती हूं, लेकिन सच, शरमा गई थी अभी, कैसे समझ पाता है वह इतना मुझे. उस के साथ मेरी दोस्ती बड़ी सरल सी है. ‘कुछ तो है’ जैसा होते भी जैसे कुछ नहीं है. उस के साथ क्यों आई, न जानते हुए भी मुझे उस के साथ ही आने की इच्छा हुई, जाने क्यों. वह भी तो कभी किसी बात पर मुझे मना नहीं करता.

‘‘एकदम अविश्वसनीय,’’ मैं अचानक बोल पड़ी तो वह अवाक हुआ, ‘‘क्या?’’

‘‘तुम्हारा यों बोलना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कभी कहते नहीं ऐसे.’’

झेंपते हुए वह आगे बढ़ गया. मैं नहीं बढ़ पाई. वहीं रुकी रही. सोच रही थी पीछे क्या हो रहा होगा. नाना, पापा, मां ‘क्यों और क्यों नहीं’ के सवाल लिए सब बरसने को तैयार खड़े मिलेंगे.

77 साल की उम्र में कई तरह की शारीरिक, मानसिक परेशानियों की वजह से थकेहारे नाना अब भी सहर्ष उस युवा लड़की की जिम्मेदारी उठाने को तत्पर थे, जो दबंग दामाद की व्रिदोहिणी बेटी थी और कभी भी उन की नपीतुली कटोरी में नहीं उतरने वाली थी. मेरे अचानक कहीं चले जाने की बात नाना को, मेरे पापा को बतानी पड़ी, कहीं मैं कुछ करगुजर जाऊं और पूरे परिवार को पछताना पड़े.

मैं ने अपना फोन खोला तो पापा के ढेरों संदेश दिखे, ज्यादातर धमकीभरे.

‘पापा, मैं जिऊंगी, मेरी सांसों को आप मेरी मां की तरह डब्बे में बंद नहीं कर सकते. भले ही कितनी ही माइनस हो जाए औक्सीजन मेरे लिए, मैं सांसें तो पूरी लूंगी, पापा,’ मैं ने सोचा.

मैं पीछे से जा कर प्रबाल के बराबर चलने लगी थी. हम एक पहाड़ी पर आ पहुंचे थे. दूधिया कुहरा छंट गया था और अब सूरज की चंपई किरणों ने हमें अपने आलिंगन में ले लिया था.

प्रबाल ने झिझकते हुए मेरा हाथ पकड़ा. मैं धड़कनों को महसूस कर रही थी. मैं ने उस के हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर उस के पीठ पर हाथ रखा और कहा, ‘‘प्रबाल, हम दोस्त क्यों हैं, कभी यह सवाल तुम ने सोचा है?’’

‘‘तुम यह सवाल क्यों सोचती हो?’’

‘‘जरूरी है प्रबाल, मेरे लिए यह सवाल जरूरी है. मैं खुद को बहुत अच्छी तरह जानती हूं, इसलिए.’’

‘‘मैं ने तो सोचा नहीं. बस.’’

‘‘अगर सोचोगे नहीं तो आगे चल कर शायद पछताना भी पड़े.’’

‘‘तुम तो अपने घर वालों के बारे में सबकुछ बता ही चुकी हो, मेरे बारे में भी जानती ही हो कि मेरे बड़े भाई इंजीनियर हैं, शादीशुदा हैं, बेंगलुरु में जौब करते हैं, मम्मीपापा दोनों सरकारी जौब में थे और अब दोनों ही रिटायर हो चुके हैं, काफी पैंशन मिलती है, घरबार है. मेरी होटल की पढ़ाई को नाक कटाने वाला मान कर वे मुझ से सीधेमुंह बात नहीं करते थे. तो खानदान से लगभग बिछड़ा हुआ मैं अपने बलबूते ताकत जुटाने की कोशिश कर रहा हूं और तब तक पापा के पैसे से फलफूल रहा हूं. क्या तुम्हें मेरे इन विशेषणों से कोई परेशानी है?’’

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‘‘इसलिए, इसलिए ही प्रबाल, मैं तुम से बात करना चाह रही थी. तुम ने लक्ष्य निर्धारित कर के दौड़ना शुरू कर दिया है लेकिन जिसे संग लिए तुम दौड़ में जीतना चाहते हो वह तो सैर पर निकली है. उसे तो तुम्हारे लक्ष्य से कोई वास्ता नहीं, प्रबाल. उसे अभी हवाओं के कतरों को अपनी झोली में भरने की फिक्र है.’’

‘‘समझता हूं अभ्रा. लेकिन मुझे तुम्हारे साथ की आदत हो गई है. इसलिए नहीं कि तुम बहुत खूबसूरत, मासूम, गोरी और स्लिम हो या तुम अपने पापा की इकलौती हो, या तुम्हारा ब्यूटी सैंस बिंदास है, बल्कि इसलिए कि हम दोनों की सोच में बहुत अंतर नहीं, हम एकदूसरे को एकदूसरे पर थोपते नहीं. और हम समानांतर साथ चल सकते हैं बहुत दूर, इसलिए.’’

‘‘पर उम्मीद के बंधन में मैं नहीं बंध सकती प्रबाल. मैं खरा उतरने से आजिज आ गई हूं. भूल जाओ मुझे और जिन पलों में जब तक साथ हैं उतने में ही जीने दो मुझे.’’

प्रबाल मुझे अपलक देखता रहा. सूरज की भरपूर रोशनी के बावजूद सारे कुहरे उस के चेहरे पर ही आ कर जम गए थे जैसे. हम वापसी में सारे रास्ते चुप रहे और अपने कमरे में आ कर कुछ देर अपनेअपने पलंग पर लेटे रहे.

हम थक कर सो तो गए थे लेकिन हमारे अंदर भी एक कोलाहल था और बाहर भी.

कोलकाता वापस जा कर इस कोलाहल ने मेरे जीवन में भारी संघर्ष का रूप ले लिया. एक लड़के के साथ भागी हुई लड़की फिर से वापस आई है. यह तो भारतीय समाज में कलंक ही नहीं, मौत के समान दंडनीय है. भला हो कानून का जो अंधा है, इसलिए सारे पक्षों को देख पाता है, वरना आंख वालों से इस की उम्मीद नहीं.

मांपापा दोनों इस बीच नाना के पास आ गए थे और पापा अपने मोरचे पर तहकीकात में मुस्तैद रहते हुए भी अपनी कटी नाक के लिए मुझ पर जीभर लानत भेज रहे थे.

नाना ने आते ही मुझे लड़के से बात कराने पर जोर देना चाहा. बात करा दूं तो शादी के लिए ठोकाबजाया जा सके.

अब किस तरह किसकिस को समझाऊं कि इन लोगों की नापतोल से बाहर भागी थी मैं, और साथ था एक समझने वाला दोस्त.

पापा ने इस बीच फरमान सुना दिया, ‘‘सब बंद. पढ़ाई के नाम पर सारे चोंचले बंद. तुम मेरे साथ वापस चल रही हो, एक लड़का देखूंगा और तुम्हें विदा कर दूंगा. सांप नहीं पाल सकता मैं.’’

‘क्या मुझे नाना की बात से हमदर्दी थी? या मैं पापा के आगे घुटने टेक दूं? नहीं पापा, मैं जिऊंगी मां के इतिहास को पलट कर. मैं जिऊंगी खुद की सांसों के सहारे,’ यह सब सोचती मैं सभी को अनदेखा कर अपनी ट्रेनिंग पूरी करने को होटल के लिए निकल गई. होटल पहुंच कर नाना को फोन कर दिया कि ट्रेनी के लिए बने होटल के बंकर में ही मैं रह जाऊंगी, पर वापस उन के घर अब नहीं जाऊंगी.

मुझे होटल से 4 हजार रुपए भत्ते के मिलते और होटल में ही रहनाखाना फ्री था. यह ट्रेनिंग पीरियड कट जाने के लिए काफी था. लेकिन बाद की बात भी माने रखने वाली थी.

मेरे बंकर में रह जाने से प्रबाल को मेरे पीछे के हालात का अनुमान हो गया था और उस की मेरे प्रति सहानुभूति से मुझे उन्हीं गृहस्थी के पचड़े की बदबू सी महसूस हो रही थी. प्रबाल मेरे सख्त रवैए के प्रति अचंभित था. आखिर लड़की को क्या जरा भी सहारा नहीं चाहिए?

नहीं प्रबाल, मैं अपनी सांसें खुद अपने ही संघर्ष की ऊष्मा से तैयार करूंगी.

होटल में रह जाने के मेरे निर्णय की गाज नाना और मां पर गिरी. पापा मां को बिना लिए ही लौट गए इस हिदायत के साथ कि नाना और मां मिल कर जितना बिगाड़ना है मुझे बिगाड़ते रहें, वे अब जिम्मेदार नहीं.

इधर नाना से भी और गिड़गिड़ाया न गया, मां तो पापा के आगे थीं ही गूंगी.

मां की दुर्गति देख यही लगा कि मैं पापा के आगे हथियार डाल दूं और पापा के ढूंढ़े कसाई के खूंटे से बंध जाऊं. लेकिन यह मेरी दुर्गति की इंतहा हो जाती और मां के भविष्य की सुधार की कोई गारंटी भी नहीं थी.

दूसरी मुश्किल थी अगले 6 महीने की कालेज फीस का इंतजाम करना, जो

50 हजार रुपए के करीब थी और यह नाना से लेने की कोशिश पापा के साथ बवाल को अगले पड़ाव तक ले जाने के लिए काफी थी. तो क्या करती, प्रबाल के फीस भर देने के अनुरोध को मजबूरी में मान जाती या पढ़ाई और जिंदगी छोड़ सामंती अहंकार के आगे फिर टूट कर गिर जाती?

साल के बीच से एजुकेशन लोन मिलना मुश्किल था. मैं ने प्रबाल से ही कहना बेहतर समझा. उस ने सालभर की फीस भर दी और मेरी तसल्ली के लिए इस बात पर राजी हो गया कि मैं कोर्स पूरा होते ही नौकरी कर के उस का कर्ज चुका दूंगी.

एक दिन मैं ट्रेनी की हैसियत से होटल की ड्यूटी के तहत रिसैप्शन काउंटर पर खड़ी थी. पापा एक 30 वर्षीय युवक के साथ अचानक कार से उतर कर मेरे पास आए.

पापा ने मुझे मेरे एचआर मैनेजर का मेल दिखाया. मेरे यहां से रवानगी का इंतजाम करा लिया था उन्होंने.

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मैं जल्द एचआर मैनेजर मैम से मिलने गई और वस्तुस्थिति का संक्षेप में खुलासा कर उन से सकारात्मक फीडबैक ले कर पापा के साथ दुर्गापुर लौट गई. हां, जातेजाते एक शर्त लगा दी कि मां वापस आएंगी, तभी आप का कहा सुनूंगी.

अजायबघर के उस लड़की घूरने वाले शख्स, जिसे पापा साथ लाए थे, के आगे पापा को हां कहना पड़ा.

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प्रो-एक्टिव नीति से कोरोना की तीसरी लहर का होगा मुकाबला

कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों व किशारों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है. उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों की स्वास्थ्य, सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से घर-घर मेडिकल किट वितरण का विशेष अभियान शुरू किया है. प्रदेश में रविवार से 75 जनपदों में 50 लाख के करीब मेडिकल किटों का वितरण के कार्य को शुरू किया गया है. करीब 75 हजार निगरानी समितियों की मदद से लक्षण युक्त बच्चों की पहचान का काम भी शुरू कर दिया गया है. कोरोना की पहली और दूसरी लहर में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी समितियों ने अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में एक बार फिर से सरकार ने इन निगरानी समितियों को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. बता दें कि तीसरी लहर का डट कर मुकाबला करने के लिए प्रदेश की 3011 पीएचसी और 855 सीएचसी को सभी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया गया है.

महानिदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) डॉ डीएस नेगी ने बताया कि मेडिकल किट के वितरण के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. मेडिकल किट को बच्चों व किशोरों को उनकी उम्र के अनुसार अलग-अलग चार वर्गों में विभाजित किया गया है. नवजात शिशु से लेकर एक साल तक और एक से पांच वर्ष की उम्र के बच्चों की मेडिकल किट में पैरासिटामोल सीरप की दो शीशी, मल्टी विटामिन सीरप की एक शीशी और दो पैकेट ओआरएस घोल रखा गया है. छह से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों और 13 से 17 वर्ष की उम्र के किशोरों की मेडिकल किट में पैरासिटामोल की आठ टैबलेट, मल्टी विटामिन की सात टैबलेट, आइवरमेक्टिन छह मिली ग्राम की तीन गोली और दो पैकेट ओआरएस घोल रखा गया है. उन्होंने बताया कि प्रदेश के सभी अस्पतालों में तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं. अस्पतालों कोई कमी न हो इस बात भी ध्यान रखा जा रहा है.

कोरोना के लक्षणों समेत मौसमी बीमारी से बचाएगी दवाएं

मेडिकल-किट में उपलब्ध दवाईयां कोविड-19 के लक्षणों से बचाव के साथ 18 साल से कम उम्र के बच्चों का मौसमी बीमारियों से भी बचाएंगी. तीसरी लहर से बचाव के लिए सरकार ने प्रदेश में 75000 निगरानी समितियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण को गति देने के लिए 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के चार लाख से अधिक सदस्यों को लगाया गया है.

 प्रो-एक्टिव नीति के तहत प्रदेश में किया जा रहा काम

प्रदेश में विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के संबंध में योगी सरकार प्रो-एक्टिव नीति अपना रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू और एनआईसीयू की स्थापना को तेजी से पूरा किया जा रहा है. पीडियाट्रिक विशेषज्ञ, नर्सिंग स्टाफ अथवा टेक्निशियन की जरूरत के अनुसार जिलावार स्थिति का आकलन करते हुए पर्याप्त मानव संसाधन की व्यवस्था युद्धस्तर पर कराई जा रही है. अस्पतालों में बाइपैप मशीन, मोबाइल एक्स-रे मशीन समेत जरूरी उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है. बता दें कि प्रदेश में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के पहले चरण का प्रशिक्षण का कार्य पूरा हो गया है. इनके जरिए अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.

प्रदेश में महज 3165 एक्टिव केस

कोरोना संक्रमण के मामलों में उत्तर प्रदेश की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है. पिछले 24 घंटों में प्रदेश में संक्रमण के महज 222 नए मामले दर्ज किए गए हैं. प्रदेश में कोविड रिकवरी रेट 98.5 प्रतिशत पहुंच गया है. प्रदेश में अब तक पांच करोड़  70 लाख 85 हजार 424 कोरोना की जांचें की जा चुकी हैं. मिशन जून के तहत निराधृत लक्ष्य को तय समय सीमा से पहले हासिल करने वाले यूपी में अब तक तीन करोड़ चार लाख 51 हजार 330 वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं.

ओडीओपी से कामगारों की होगी तरक्‍की, छात्र भी बनेंगे आत्‍मनिर्भर

एकेटीयू से सम्‍बद्ध प्रदेश के तकनीकी एवं प्रबंधन संस्‍थानों में पढ़ने वाले छात्र ओडीओपी से जुड़े हर जिले के उत्‍पाद का एक नई पहचान देंगे. ओडीओपी उत्‍पादों को कैसे तकनीक से जोड़ कर उनको नई पहचान दी जाए. इसे लेकर छात्र अपना आइडियाज देंगे. ओडीओपी विभाग के साथ मिलकर एकेटीयू एक मेगा हैकाथन का आयोजन करने जा रहा है.

अभी हाली ही में ओडीओपी विभाग व एकेटीयू की ओर से लखनऊ की चिकनकारी व जरदोजी को कैसे नई पहचान दिलाई जाए. इस पर हैकाथन का आयोजन किया गया था. इसमें लखनऊ समेत प्रदेश के अन्‍य जिलों के इंजीनियरिंग कॉलेजों के 70 से अधिक छात्रों ने अपने आइडियाज एकेटीयू को भेजे थे. इसमें 5 छात्रों के आइडियाज को फाइनल राउंड में चुना गया था. छात्रों के बेहतर रूझान को देखते हुए अब ओडीओपी प्रदेश के हर जिले के ओडीओपी उत्‍पाद को लेकर मेगा हैकाथन का आयोजित करने की तैयारी कर रहा है. उत्‍तर प्रदेश सरकार के सूक्ष्‍म मध्‍यम एवं लघु उद्योग विभाग व एकेटीयू के बीच ओडीओपी उत्‍पादों को बढ़ावा देने के लिए एक एमओयू हुआ है. जिसके तहत इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.

एक जनपद – एक उत्पाद उत्‍तर प्रदेश सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजना है. इसका उद्देश्य प्रदेश के अलग अलग जनपदों में बनने वाले उत्‍पादों को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहचान दिलवाना और कामगारों को रोजगार के अवसर उपलब्‍ध करा कर उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाना है. उत्‍तर प्रदेश में ऐसे उत्‍पाद बनते हैं, जो पूरे देश में कहीं नहीं बनते हैं. इसमें प्राचीन एवं पौष्टिक कालानमक चावल, फिरोजाबाद का कांच उत्‍पाद, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, दुर्लभ एवं अकल्पनीय गेहूं डंठल शिल्प, विश्व प्रसिद्ध चिकनकारी, कपड़ों पर जरी-जरदोजी का काम, मृत पशु से प्राप्त सींगों व हड्डियों से अति जटिल शिल्प कार्य आदि है. इन कलाओं से ही उन जनपदों की पहचान होती है. इनमें से तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो अपनी पहचान खो रहे थे. सरकार उनको ओडीओपी के तहत फिर से पहचान दिला रही है.

एमएसएमई से समझौते के बाद एकेटीयू पूरे प्रदेश के हर जिले के ओडीओपी उत्‍पाद को नई पहचान देने के लिए मेगा हैकाथन का आयोजन करेगा. इसमें बीटेक व एमबीए के छात्र-छात्राएं एक जनपद, एक उत्‍पाद योजना से जुड़े उत्‍पादों को कैसे तकनीक से जोड़कर बेहतर बनाया जाए, जिससे वह उत्‍पाद अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नई पहचान बना सके. इस पर अपने आइडियाज देंगे.

Monsoon Special: तो बारिश में भी खूबसूरत रहेगी स्किन

मौनसून का सुहावना मौसम, झमाझम बारिश में लौंग ड्राइव पर जाने व गरमगरम पकौड़े खाने का जो मजा होता है, वह किसी और मौसम में नहीं होता. यह मौसम दिल को छू जाता है, क्योंकि चिपचिपी व उमसभरी गरमी से राहत जो मिलती है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मौसम जितना आप को तरोताजा व रिलैक्स फील करवाता है, उतना ही इस मौसम में स्किन ऐलर्जी का भी डर बना रहता है. ऐसे में अगर स्किन की प्रौपर केयर नहीं की जाती तो यह हमारी सुंदरता को खराब करने का काम कर सकता है.

तो आइए जानते हैं इस संबंध में फरीदाबाद के ‘एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज’ के डर्मैटोलौजिस्ट डाक्टर अमित बांगा से:

कौनकौन सी स्किन ऐलर्जी का डर

मौनसून में स्किन ऐलर्जी एक बड़ी समस्या है. जानिए, कौनकौन सी स्किन ऐलर्जी का डर इस मौसम में हो सकता है और कैसे इन से बचा जा सकता है:

ऐक्जिमा

यह एक ऐसा रोग है, जिस में स्किन पर ज्यादा पसीना आने, टैंपरेचर के बढ़ने, स्किन की प्रोटैक्टिव लेयर डैमेज होने व मौइस्चर खत्म होने के कारण स्किन पर रैडनैस, जलन, सूजन, खुजली व स्किन पर पपड़ी बन कर निकलने के कारण स्किन से खून भी निकलने लगता है.

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ऐसी स्थिति में घरेलू ट्रीटमैंट्स व सैलून का रुख करने के बजाय डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह लेनी चाहिए ताकि स्थिति और खराब न हो, क्योंकि इस में असहनीय दर्द व खुजली आप की स्किन की खूबसूरती को बिगाड़ने का काम करती है. इस मौसम में आमतौर पर डाईशिदरोटिक ऐक्जिमा होता है, जिस में स्किन के अंदर छोटेछोटे छाले पड़ जाते हैं.

कौनकौन से टैस्ट: ऐक्जिमा का पता लगाने के लिए पैच टैस्ट, ऐलर्जी टैस्ट व खाने से कुछ चीजें हटाई जाती हैं ताकि ऐलर्जी के सही कारणों के बारे में पता लगाया जा सके.

क्या है ट्रीटमैंट: स्किन को हमेशा मौइस्चराइज रखें. हमेशा माइल्ड सोप व क्रीम्स का ही चयन करें. इस बात का ध्यान रखें कि इन में ड्राई व परफ्यूम न हो. डर्मैटोलौजिस्ट टैस्टेड क्रीम्स लगाएं. स्थिति ज्यादा खराब होने पर डाक्टर ऐंटीबायोटिक दवाएं भी देते हैं.

किन चीजों से बचें: इस दौरान बहुत गरम पानी से नहाने से बचें, साथ ही बहुत ही हार्श साबुन, क्रीम्स व मौइस्चराइजर का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये स्किन के मौइस्चर को चुराने के साथसाथ स्किन को और ड्राई बना देते हैं.

अत: अपनी स्किन को क्लीन व मौइस्चराइज रखें ताकि उस पर पसीना न जमने पाए. नायलौन के कपड़े पहनने के बजाय कौटन के खुलेखुले कपड़े पहनें और कभी इन्फैक्शन वाली जगह न खुरचें.

रिंगवर्म

बदलते मौसम में स्किन पर रिंगवर्म यानी दाद की समस्या होना आम है खासकर सैंसिटिव स्किन पर, क्योंकि बारिश के बाद मौसम में बढ़ती उमस व चिपचिपापन फंगस को बढ़ाने के लिए अनुकूल माना जाता है.

इस में शुरुआत में स्किन पर छोटे व लाल रंग के निशान पड़ने शुरू होते हैं, जिन के बारबार कपड़े से टच होने पर इन्फैक्शन बढ़ जाता है.

क्या है ट्रीटमैंट: लूज कौटन के कपड़े पहनें. जब भी बाहर से आएं तो नहाएं जरूर ताकि स्किन पर जमी गंदगी व पसीना शरीर पर चिपकने न पाए. स्किन को मौइस्चराइज रखें.

अंडरआर्म्स पर ऐंटीफंगल पाउडर अप्लाई करें. इस बात का ध्यान रखें कि सैल्फ ट्रीटमैंट व कैमिस्ट से इस की दवा न लें, क्योंकि उस में स्टेराइड्स होते हैं, जो स्थिति को और खराब कर सकते हैं.

किन चीजों से बचें: जिस जगह पर इन्फैक्शन हुआ है, उस पर इरिटेशन होने पर भी उसे रगड़े नहीं और न ही बारबार टच करें, क्योंकि इस से इन्फैक्शन और अधिक बढ़ने की संभावना रहती है. साथ ही पसीना आने पर शरीर को साफ करती रहें वरना इस इन्फैक्शन को और अधिक बढ़ने के लिए माहौल मिलने से आप के लिए परेशानी बढ़ सकती है.

हाइपरपिगमैंटेशन

ज्यादा उमस के कारण मौनसून में हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या भी आम है. इस में चेहरे की स्किन डल व उस पर डार्क पैचेज नजर  आने लगते हैं. यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब सूर्य के सीधे संपर्क में आने से मेलोनौसाइट्स अति सक्रिय हो जाते हैं.

मौनसून के मौसम में कभीकभी सूर्य के प्रकाश का बहुत तीव्र न होने पर भी मैलानिन का अधिक उत्पादन होता है, जिस से स्किन पर हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या पैदा हो जाती है. जिन लोगों की ऐक्ने प्रोन व सैंसिटिव स्किन होती है, उन्हें इस मौसम में यह समस्या ज्यादा परेशान करती है.

क्या है ट्रीटमैंट: आप अभी तक विटामिन ए का इस्तेमाल ऐजिंग को रोकने के लिए करती होंगी. लेकिन बता दें कि इसे हफ्ते में 3 दिन चेहरे पर अप्लाई करने से यह हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या का भी जड़ से निदान करने का काम करता है. ‘जर्नल औफ कुटेनियस एवं ऐस्थेनिक सर्जरी’ में प्रकाशित शोध के अनुसार, हाइड्रोक्विनोन हाइपरपिगमैंटेशन का बेहतरीन उपचार है.

वहीं विटामिन सी युक्त क्रीम में ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज होने के कारण यह कोलेजन के उत्पादन को बढ़ा कर दागधब्बों को दूर कर के पिगमैंटेशन को दूर करने में सहायक होती है. आप इस मौसम में लाइट वेट, जैल व वाटर बेस्ड, नौन औयली व नौन कमेडोजेनिक सनस्क्रीन खरीदें, क्योंकि यह पोर्स को ब्लौक नहीं करता है.

किन चीजों से बचें: सूर्य के सीधे संपर्क में आने से बचें और अगर जरूरी होने पर घर से बाहर निकलना पड़े तो सनस्क्रीन लगा कर व खुद को कवर कर के ही निकलें. स्किन को बारबार छूने की आदत से बचें.

स्कैबीज

यह एक संक्रमण बीमारी है. वैसे तो इस बीमारी का शिकार कोई भी बन सकता है, लेकिन इस का शिकार ज्यादातर बच्चे बनते हैं. यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल जाती है. यह एक छोटे कीट के कारण होती है, जिस से स्किन पर जलन, खुजली, लाल निशान इत्यादि पड़ जाते हैं.

यह सोफा, फर्नीचर इत्यादि जगह पर भी 4-5 दिनों तक जीवित रहता है और जब कोई इसे टच कर लेता है, तो वह भी संक्रमित हो जाता है. इस में आमतौर पर खुजली रात के समय ज्यादा होती है और जब हम उसे खुजलाते हैं तो वहां घाव बनने से स्थिति और खराब हो जाती है. इसलिए तुरंत इस के लक्षण दिखाई देने पर डाक्टर को दिखाएं.

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क्या है ट्रीटमैंट: डर्मैटोलौजिस्ट आप को परमेथ्रिन क्रीम लगाने की सलाह देते हैं, जो कीट व उस के अंडों को नष्ट करने का काम करती है. वहीं 1% जीबीएचपी क्रीम लगाने को भी कहा जाता है.

लेकिन इसे खुद से ट्राई न करें, बल्कि डाक्टर इसे कैसे व कब लगाना है अच्छी तरह से गाइड करते हैं. प्रौपर ट्रीटमैंट आप को 15-20 दिनों में ठीक कर देता है. लेकिन अगर आप खुद से इस का इलाज करती हैं तो यह बीमारी महीनों या फिर सालोंसाल खिंच जाती है.

किन चीजों से बचें: जिन जगहों पर इन्फैक्शन हुआ है, उन्हें खुजलाएं नहीं और न ही टच करें. अगर टच करें भी तो हाथों को तुरंत वाश करें, क्योंकि इस से दूसरी जगह संक्रमण की संभावना नहीं रहती है. जिस भी साबुन, क्रीम व औयल का इस्तेमाल करें, उस में नीम ट्री ऐक्सट्रैक्ट हो. यह कीट को मारने में काफी कारगर होता है.

साथ ही आप ऐसैंशियल औयल जैसे क्लोव औयल या लैवेंडर औयल प्रभावित जगह पर लगाएं. यह कीट को मारने के साथसाथ स्किन को ठंडक पहुंचाने का भी काम करता है. वहीं ऐलोवेरा जैल स्किन की जलन व इचिंग को दूर करने में मदद करता है.

हीट रैश

उमस, पसीने व साफसफाई का ध्यान नहीं रखने की वजह से स्किन के पोर्स बंद हो जाते हैं, जिस के कारण शरीर के अंदर छोटेछोटे छाले पड़ जाते हैं, जिन में परेशान करने वाली जलन व खुजली होती है. असल में उमस के कारण आने वाला पसीना स्किन के कौंटैक्ट में जब ज्यादा देर रहता है, तो स्किन पर उस का रिएक्शन रैशेज के रूप में सामने आता है, जिस के लिए समय पर सही ट्रीटमैंट की जरूरत होती है.

क्या है ट्रीटमैंट: घर में आते ही कपड़े बदलें व शरीर का तापमान सामान्य होने के बाद ठंडे पानी से बाथ लें. फिर स्किन पर सेलामाइन लोशन में थोड़ा सा ऐलोवेरा जैल डाल कर लगाएं. यह स्किन इरिटेशन को दूर कर के रैशेज की प्रौब्लम से राहत दिलवाने का काम करता है. साथ ही कौटन के कपड़े पहनें.

किन चीजों से बचें: ऐसे समय में तब बाहर निकलने से बचें जब बहुत ज्यादा गरमी हो. ऐसी ऐक्सरसाइज करने से बचें, जिस से बौडी बहुत ज्यादा वार्म हो जाती हो. ढीले व कंफर्ट कपड़े पहनने के साथसाथ बौडी को ठंडा व हाइड्रेट रखें.

टिनिया कैपिटिस

यह एक ऐसी बीमारी है, जो फंगल इन्फैक्शन के कारण स्कैल्प, बांहें और पलकों पर होती है, जिस में हेयर शौफ्ट और फोलिकल्स पर अटैक करने की क्षमता होती है. यह बीमारी मौइस्चर वाली जगह पर पनपनी है, इसलिए जिन्हें ज्यादा पसीना आता है, उन्हें आसानी से अपना शिकार बना लेती है.

इस के कारण बाल टूटने की समस्या, जिस से वह एरिया गंजा लगने लगता है. मवाद से भरे घाव, सूजन, स्किन का लाल पड़ना, जलन, पैची स्किन इत्यादि अन्य परेशानियां शामिल हैं.

अगर समय पर इलाज नहीं करवाया जाता तो हमेशा के लिए दाग पड़ने के साथसाथ गंजेपन की भी समस्या हो सकती है. इसलिए तुरंत डाक्टर को दिखाने की जरूरत होती है.

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क्या है ट्रीटमैंट: लाइट वेट औयल, मौइस्चराइजर युक्त शैंपू व कंडीशनर लगाने की सलाह दी जाती है. हाइजीन का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. अगर कोई भी संक्रमित व्यक्ति का हेयरब्रश, पर्सनल सामान इस्तेमाल करता है तो उसे भी इस बीमारी के होने का डर रहता है.

मनोज कुमार की पोती की शादी में इतना महंगा था उर्वशी रौतेला का लुक, कीमत जानकर फैंस हुए हैरान

बौलीवुड एक्‍ट्रेस उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) अपने फिटनेस और फैशन को लेकर हमेशा सुर्खियों में छाई रहती हैं. वहीं हाल ही में शेयर किया गया उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) वेडिंग लुक सोशलमीडिया पर छा गया है. दरअसल, बौलीवड के मशहूर एक्‍टर मनोज कुमार की पोती मुस्‍कान गोस्‍वामी की शादी में उर्वशी का ट्रैडिशनल लुक देखने को मिला. वहीं इस लुक से ज्यादा इस साड़ी की कीमत ने फैंस को चौंका दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

58 लाख का था पूरा लुक

मुस्‍कान गोस्‍वामी के प्रीवेडिंग फंक्शन में उर्वशी ने गुजराती पटोला साड़ी कैरी की थी, जिसके साथ गोल्ड ज्वैलरी कैरी की थी. वहीं खबरों की मानें तो उनका लुक पूरे 58 लाख रुपये का था, जिसे सुनकर फैंस के होश उड़ गए हैं.


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इतना लगा था साड़ी बनने में समय

उर्वशी रौतेला के स्‍टाइलिस्‍ट ने एक इंटरव्यू में बताया कि ‘उर्वशी की पटोला साड़ी को बनने में 6 महीने का वक्‍त लगा, जिसमें 70 से ज्‍यादा दिन सिल्‍क थ्रेड्स की कलरिंग और करीब 25 दिन बुनाई में लगे थे. करीब 12 लोगों ने दो साल से ज्‍यादा वक्‍त तक इस पर काम किया था. ‘

शादी में था कुछ ऐसा लुक

मेहंदी के अलावा शादी में एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ने ग्रीन कलर का चुनाव किया, जिसके दुपट्टे पर लगाए गए गोटे में मल्टीकलर वर्क का इस्तेमाल किया गया है. वहीं इसके साथ कैरी की गई ज्वैलरी की बात करें तो इस लुक के साथ भी गोल्ड ज्वैलरी और कुंदन का मिक्स काम किया था, जो उनके लुक के साथ एकदम खूबसूरत लग रहा था. वहीं मेकअप तो उनके लुक पर चार चांद लगा रहा था.

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दूरी- भाग 1 : समाज और परस्थितियों से क्यों अनजान थी वह

लेखक- भावना सक्सेना

फरीदाबाद बसअड्डे पर बस खाली हो रही थी. जब वह बस में बैठी थी तो नहीं सोचा था कहां जाना है. बाहर अंधेरा घिर चुका था. जब तक उजाला था, कोई चिंता न थी. दोपहर से सड़कें नापती, बसों में इधरउधर घूमती रही. दिल्ली छोड़ना चाहती थी. जाना कहां है, सोचा न था. चार्ल्स डिकेन्स के डेविड कौपरफील्ड की मानिंद बस चल पड़ी थी. भूल गई थी कि वह तो सिर्फ एक कहानी थी, और उस में कुछ सचाई हो भी तो उस समय का समाज और परिस्थितियां एकदम अलग थीं.

वह सुबह स्कूल के लिए सामान्यरूप से निकली थी. पूरा दिन स्कूल में उपस्थित भी रही. अनमनी थी, उदास थी पर यों निकल जाने का कोई इरादा न था. छुट्टी के समय न जाने क्या सूझा. बस्ता पेड़ पर टांग कर गई तो थी कैंटीन से एक चिप्स का पैकेट लेने, लेकिन कैंटीन के पास वाले छोटे गेट को खुला देख कर बाहर निकल आई. खाली हाथ स्कूल के पीछे के पहाड़ी रास्ते पर आ गई. कहां जा रही है, कुछ पता न था. कुछ सोचा भी नहीं था. बारबार, बस, मां के बोल मस्तिष्क में घूम रहे थे. अंधेरा घिरने पर जी घबराने लगा था. अब कदम वापस मोड़ भी नहीं सकती थी. मां का रौद्र रूप बारबार सामने आ जाता था. उस गुस्से से बचने के लिए ही वह निकली थी. निकली भी क्या, बस यों लगा था जैसे कुछ देर के लिए सबकुछ से बहुत दूर हो जाना चाहती है, कोई बोल न पड़े कान में…

पर अब कहां जाए? उसे किसी सराय का पता न था. जो पैसे थे, उन से उस ने बस की टिकट ली थी. अंधेरे में बस से उतरने की हिम्मत न हुई. चुपचाप बैठी रही. कुछ ऐसे नीचे सरक गई कि आगे, पीछे से खड़े हो कर देखने पर किसी को दिखाई न दे. सोचा था ड्राइवर बस खड़ी कर के चला जाएगा और वह रातभर बस में सुरक्षित रह सकेगी.

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बाहर हवा में खुनक थी. अंदर पेट में कुलबुलाहट थी. प्यास से होंठ सूख रहे थे. पर वह चुपचाप बैठी रही. नानीमामी बहुत याद आ रही थीं. घर से कोई भी कहीं जाता, पूड़ीसब्जी बांध कर पानी के साथ देती थीं. पर वह कहां किसी से कह कर आई थी. न घर से आई थी, न कहीं जाने को आई थी. बस, चली आई थी. किसी के बस में चढ़ने की आहट आई. उस ने अपनी आंखें कस कर भींच लीं. पदचाप बहुत करीब आ गई और फिर रुक गई. उस की सांस भी लगभग रुक गई. न आंखें खोलते बन रहा था, न बंद रखी जा रही थीं. जीवविज्ञान में जहां हृदय का स्थान बताया था वहां बहुत भारी लग रहा था. गले में कुछ आ कर फंस गया था. वह एक पल था जैसे एक सदी. अनंत सा लगा था.

‘‘कौन हो तुम? आंख खोलो,’’ कंडक्टर सामने खड़ा था, ‘‘मैं तो यों ही देखने चढ़ गया था कि किसी का सामान वगैरा तो नहीं छूट गया. तुम उतरी क्यों नहीं? जानती नहीं, यह बस आगे नहीं जाएगी.’’ उस के चेहरे का असमंजस, भय वह एक ही पल में पढ़ गया था, ‘‘कहां जाओगी?’’

उस समय, उस के मुंह से अटकते हुए निकला, ‘‘जी…जी, मैं सुबह दूसरी बस से चली जाऊंगी, मुझे रात में यहीं बैठे रहने दीजिए.’’

‘‘जाना कहां है?’’

…यह तो उसे भी नहीं पता था कि जाना कहां है.

कुछ जवाब न पा कर कंडक्टर फिर बोला, ‘‘घर कहां है?’’

यह वह बताना नहीं चाहती थी, डर था वह घर फोन करेगा और उस के आगे की तो कल्पना से ही वह घबरा गई. बस, इतना ही बोली, ‘‘मैं सुबह चली जाऊंगी.’’

‘‘तुम यहां बस में नहीं रह सकती, मुझे बस बंद कर के घर जाना है.’’

‘‘मुझे अंदर ही बंद कर दें, प्लीज.’’

‘‘अजीब लड़की हो, मैं रातभर यहां खड़ा नहीं रह सकता,’’ वह झल्ला उठा था, ‘‘मेरे साथ चलो.’’

कोई दूसरा रास्ता न था उस के पास. इसलिए न कोई प्रश्न, न डर, पीछेपीछे चल पड़ी.

बसअड्डे तक पहुंचे तो कंडक्टर ने इशारा कर एक रिकशा रुकवाया और बोला, ‘‘बैठो.’’ रिकशा तेज चलने से ठंडी हवा लगने लगी थी. कुछ हवा, कुछ अंधेरा, वह कांप गई.

उस की सिहरन को सहयात्री ने महसूस करते हुए भी अनदेखा किया और फिर एक प्रश्न उस की ओर उछाल दिया, ‘‘घर क्यों छोड़ कर आई हो?’’

‘‘मैं वहां रहना नहीं चाहती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कोई मुझे प्यार नहीं करता, मैं वहां अनचाही हूं, अवांछित हूं.’’

‘‘सुबह कहां जाओगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कहां रहोगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कोई तो होगा जो तुम्हें खोजेगा.’’

‘‘वे सब खोजेंगे.’’

‘‘फिर?’’

‘‘परेशान होंगे, और मैं यही चाहती हूं क्योंकि वे मुझे प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम सब से ज्यादा किसे प्यार करती हो?’’

‘‘अपनी नानी से, मैं 3 महीने की थी जब मेरी मां ने मुझे उन के पास छोड़ दिया.’’

‘‘वे कहां रहती हैं?’’

‘‘मथुरा में.’’

‘‘तो मथुरा ही चली जाओ?’’

‘‘मेरे पास टिकट के पैसे नहीं हैं.’’ अब वह लगभग रोंआसी हो उठी थी.

वह ‘हूंह’ कह कर चुप हो गया था.

हवा को चीरता मोड़ों पर घंटी टुनटुनाता रिकशा आगे बढ़ता रहा और जब एक संकरी गली में मुड़ा तो वह कसमसा गई थी. आंखें फाड़ कर देखना चाहा था घर. घुप्प अंधेरी रात में लंबी पतली गली के सिवा कुछ न दिखा था. कुछ फिल्मों के खौफनाक दृश्यों के नजारे उभर आए थे. देखी तो उस ने ‘उमराव जान’ भी थी. आवाज से उस की तंद्रा टूटी.

‘‘बस भइया, इधर ही रोकना,’’ उस ने कहा तो रिकशा रुक गया और उन के उतरते ही अपने पैसे ले कर रिकशेवाला अंधेरे को चीरता सा उसी में समा गया था. वह वहां से भाग जाना चाहती थी. कंडक्टर ने उस का हाथ पकड़ एक दरवाजे पर दस्तक दी थी. सांकल खटखटाने की आवाज सारी गली में गूंज गई थी.

भीतर से हलकी आवाज आई थी, ‘‘कौन?’’

‘‘दरवाजा खोलो, पूनम,’’ और दरवाजा खोलते ही अंदर का प्रकाश क्षीण हो सड़क पर फैल गया. उस पर नजर पड़ते ही दरवाजा खोलने वाली युवती अचकचा गई थी. एक ओर हट कर उन्हें अंदर तो आने दिया पर उस का सारा वजूद उसे बाहर धकेलरहा था. दरवाजा एक छोटे से कमरे में खुला था, ठीक सामने एक कार्निस पर 2 फूलदान सजे थे, बीच में कुछ मोहक तसवीरें. एक कोने में एक छोटा सा रैक था जिस पर कुछ डब्बे थे, कुछ कनस्तर, एक स्टोव और कुछ बरतन, सब करीने से लगे थे. एक ओर छोटा पलंग जिस पर साफ धुली चादर बिछी थी और 2 तकिए थे. चादर पर कोई सिलवट तक न थी.

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कुल मिला कर कम आय में सुचारु रूप से चल रही सुघड़ गृहस्थी का आदर्श चित्र था. वह भी ऐसा ही चित्र बनाना चाहती थी. बस, अभी तक उस चित्र में वह अकेली थी. अकेली, हां यही तो वह कह रहा था. ‘‘पूनम, यह लड़की बसअड्डे पर अकेली थी. मैं साथ ले आया. सुबह बस पर बिठा दूंगा, अपनी नानी के घर मथुरा चली जाएगी.’ युवती की आंखों में शिकायत थी, गरदन की अकड़ नाराजगी दिखा रही थी. वह भी समझ रहा था और शायद स्थिति को सहज करने की गरज से बोला, ‘‘अरे, आज दोपहर से कुछ नहीं खाया, कुछ मिलेगा क्या?’’

युवती चुपचाप 2 थालियां परोस लाई और पलंग के आगे स्टूल पर रखते हुए बोली, ‘‘हाथमुंह धो कर खा लो, ज्यादा कुछ नहीं है. बस, तुम्हारे लिए ही रखा था.’’ दोपहर से तो उस ने भी कुछ नहीं खाया था किंतु इस अवांछिता से उस की भूख बिलकुल मर गई थी. घर का खाना याद हो आया, सब तो खापी कर सो गए होंगे, शायद. क्या कोई उस के लिए परेशान भी हो रहा होगा? जैसेतैसे एक रोटी निगल कर उस ने कमरे के कोने में बनी मोरी पर हाथ धो लिए और सिमट कर कमरे में पड़ी इकलौती प्लास्टिक की कुरसी पर बैठ गई.

पूनम नाम की उस युवती ने पलंग पर पड़ी चादर को झाड़ा और चादर के साथ शायद नाराजगी को भी. फिर जरा कोमल स्वर में बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा, घर क्यों छोड़ आई?’’ ‘‘जी’’ कह कर वह अचकचा गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, कोई बात नहीं. सो जाओ, बहुत थकी होगी.’’ शायद वह उस की आंखों के भाव समझ गई थी. एक ही पलंग दुविधा उत्पन्न कर रहा था. तय हुआ महिलाएं पलंग पर सोएंगी और वह आदमी नीचे दरी बिछा कर. वे दोनों दिनभर के कामों से थके, लेटते ही सो गए थे. हलके खर्राटों की आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. उस की आंख में तो नींद थी ही नहीं, प्रश्न ही प्रश्न थे. ऐसे प्रश्न जिन का वह उत्तर खोजती रही थी सदा.

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