किस काम की ऐसी राजनीति

भारत में नेता पति के मरने के बाद उस की जगह पत्नी लेती है तो मोदीशाह की पार्टी डायनैस्टी डायनैस्टी चीखने लगती है कि गांधी परिवार की तरह उन्होंने राजनीति को विरासत का खेल बना डाला है. पर यह तो दुनियाभर में हो रहा है.

अमेरिका में गत नवंबर में हुए चुनाव में रिपब्लिक पार्टी के जीते ल्यूक लैटलो की जीतने के बाद कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई. डोनाल्ड ट्रंप की मेहरबानी से उस की पूर्व पत्नी जूलिया लैटलो को टिकट मिल गया और वह लुईसियाना की एक सीट से लड़ी. उसे 65% वोट मिले और विरोधी डैमोक्रेटिक पार्टी की सांड्रा क्रिसटोफे को सिर्फ 27%.

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राजनीति असल में पतिपत्नी दोनों मिल कर करते हैं. जहां औरतें ज्यादा मुखर होती हैं वहां पति बैकग्रांउड में रहते हुए भी बहुत कुछ करते हैं. घर का माहौल ही राजनीतिमय हो जाता है और नेता पति की पत्नी न चाहे तो भी राजनीतिक भंवर में फंस ही जाती है.

भारत में जो हल्ला मोदीशाह की पार्टी मचाती है वह असल में डर के कारण मचाती है. उन की पार्टी को मालूम है कि उन के यहां मोतीलाल के पुत्र जवाहर, जवाहरलाल की पुत्री इंदिरा, इंदिरा के पुत्र राजीव, राजीव की पत्नी सोनिया, सोनिया के पुत्र राहुल हैं ही नहीं.

मोदी ने शादी करी पर पत्नी छोड़ दी और बच्चे नहीं हुए. शाह

ने बेटे का कामधाम तो करा दिया पर वारिस नहीं बनाया क्योंकि असल में दोनों आरएसएस की देन हैं और उस के लीडर बहुत से गैरशादीशुदा ही रहे हैं. वे परिवारवाद को सहते हैं पर बढ़ावा नहीं देते.

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दुनिया के बहुत से देशों में जहां राजवंश नहीं है लोकतंत्र के बावजूद राजनीति धरोहर घरों में बंटती रहती है. वैसे भी बचपन से सीखे हुए जने पर भरोसा करने में नुकसान क्या है? क्यों इस पर आपत्ति की जाए?

जूलिया ल्यूक की जगह जीती है तो राबड़ी लालू की जगह बनी थी. यह न गलत है और न चूंचूं करने की बात.

Summer Special: गर्मियों में नहीं पहनें इन 5 फेब्रिक के कपड़ें, हो सकती हैं ये दिक्कतें

गर्मियों के मौसम में हमारे डेली यूज़ कपड़े कैसे होने चाहिए इसका विशेषतौर पर ध्यान देना चाहिए. आप जिस तरह के कपड़े पहने हुए हैं क्या आपको उतना आराम मिल रहा है, यह जानना बहुत जरूरी है.

अनकंफर्टेबल कपड़े आप पर बोझ बन जाते हैं जब आप गर्मी के दिनों में कुछ इस तरह के कपड़े पहते हैं. जिन्हें समर-डे में कभी नहीं पहनना चाहिए. आज हम ऐसे ही कपड़ों के बारे में जानेंगे और आपको बताएंगे कि आपको गर्मी के मौसम में किस तरह के कपड़ों से दूरी बनाकर रखना चाहिए. तो चलिए जानते नहीं उन कपड़ों के बारे में-

  • पॉलिएस्टर के कपड़े
  • डेनिम के कपड़े
  • मखमली कपड़े
  • फीता और जाल वाले कपड़े
  • रेशम या शैटन के कपड़े

पॉलिएस्टर के कपड़े

लोकप्रिय आउटफिट्स को पहनना आज के युवाओं की पहली पसंद बन गया है. लेकिन कपड़े कैसे पहने जाएं यह भी ध्यान में रखना चाहिए. बात अगर पॉलिएस्टर के कपड़ों की करें तो ऐसे कपड़े न तो पसीना ही सोख पाते हैं और इनसे उमस अलग से लगने लगती है. पॉलिएस्टर के कपड़े शादी, पार्टी के लिए रखें. अगर आप नॉर्मल दिनों में डेली यूज के लिए इस तरह की ड्रेस गर्मियों के दिनों में पहनते हैं तो यह पसीने नहीं सोखता साथ ही इसे पहनने से दाग पड़ जाते हैं.  क्योंकि यह पानी प्रतिरोधी कपड़े होते हैं और यह पसीने को अवशोषित नहीं कर पाता.

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डेनिम के कपड़े

युवाओं की पहली पसंद डेनिम के कपड़े माने जाते हैं. डेनिम की शर्ट t-shirt जीन्स युवाओं को लुभाती है. हालांकि गर्मियों में डेनिम के कपड़े को अवॉइड करना चाहिए, क्योंकि यह बहुत ही भारी-भरकम कपड़े लगते हैं और गर्मी में जितने आप  हल्के कपड़े पहन सकें उतना ही आपके लिए अच्छा होता है. डेनिम के कपड़े पहनने से ना तो आप सांस ले पाते हैं और ना ही ठीक से काम ही कर पाते हो. ऐसे खिंचाव वाले कपड़े आराम नहीं दे पाते हैं. यह कपड़ा आपको पसीने से नहीं रोक सकता. साथ ही आपको और भी ज्यादा गर्म फील कराएगा. आप बेचैनी महसूस करेंगे.

मखमली कपड़े

गर्मी में कपड़ों का चयन बहुत जरूरी होता है. बात अगर मखमली कपड़ों की करें तो वेलवेट के कपड़े गर्मियों में बहुत उबाऊ लगते हैं. यह मोटे और भारी होते हैं. यह भी कपड़े गर्म होते हैं. अगर आप गर्मियों में मखमली कपड़ों की ड्रेस पहनने की सोच रहे हैं तो यह गलती आप ना करें.

फीता और जाल वाले कपड़े

आज कल डिजाइनिंग कपड़े पहनने का शौक सभी को है. बात अगर फीता या जालीदार कपड़ों की करें तो यह देखने में हवादार जरूर लगते हैं लेकिन इससे भी बहुत ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि इसके साइड इफेक्ट होते हैं. गर्मियों में अगर आप फीता या जालीदार कपड़े पहनते हैं तो इससे आपके शरीर में खुजली और लालिमा आ सकती है. जाहिर सी बात है यह कपड़े सिंथेटिक होते हैं जिसकी वजह से रैशेज पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे कपड़े पहनने से बचना चाहिए.

रेशम या साटन के कपड़े

चूंकि गर्मी में पसीना बहुत ज्यादा आता है इसलिए हल्के और लाइट कपड़े पहने चाहिए. लेकिन अगर आप रेशम या साटन के कपड़ों का गर्मी के दिनों चमन कर रहे हैं तो ऐसे कपड़ों का सिलेक्शन आप बिल्कुल भी ना करें. क्योंकि अगर इस तरह के कपड़े पहनते हैं तो यह आपको इससे आराम नहीं मिलेगी. साथ ही धूप और पसीने से आप चिलचिलाते रहेंगे. हालांकि इस तरह के कपड़ों को आप शादी पार्टी के लिए रख सकते हैं. सिल्क के कपड़े पहनने से पसीना बहुत आता है और आप बेचैनी फील करते हैं.

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गर्मियों में जो आपको कंफर्ट लगे ऐसे ही कपड़े पहने चाहिए जैसे कि कॉटन के कपड़े आपके लिए फिट रहेंगे. कॉटन के कपड़े पहनने से पसीना भी नहीं आता है और ठंडक का अहसास भी होता है. इससे आप अपने आपको बेचैनी फील नहीं कर पाएंगे और आपका काम में भी मन लगेगा.

दूसरों की तुलना में अपनी तुलना ना करें

ज्यादातर मामलों में तो देखा गया है कि सामने वाले ने जिस तरह के कपड़े पहने हैं व्यक्ति उसी तरह का कपड़ा पहनना चाहता है. जिससे उसे असहज फील होता है. मौसम के अनुसार ही आप कपड़ों का चयन करें. न्यू ट्रेन्ड में आप गर्मियों के मौसम में किस तरह के परिधान धारण करने चाहिए, मार्केट में जाकर आप देख सकते हो. स्टाइलिश और बेस्ट लुक देने वाले गर्मियों के कपड़े मार्केट में उपलब्ध हैं.

7 Tips: स्किन का ख्याल रखे विटामिन सी

दूसरे कई विटामिन की तरह विटामिन सी भी हमारी स्किन के लिए काफी लाभदायक माना गया है. बदलता मौसम, प्रदूषण और सूरज की हानिकारक किरणे आपकी स्किन को डैमेज कर देती हैं जिसके कारण आपकी स्किन डल नज़र आने लगती है. ऐसे में अपनी स्किन को डैमेज से बचाने और निखार बरकरार रखने के लिए जरूरी है की आप अपनी स्किन केयर रुटीन में विटामिन सी को शामिल करें. आप विटामिन सी को क्रीम या सीरम के जरिए अपनी स्किन पर इस्तेमाल कर सकती हैं. चलिए जानते हैं कि विटामिन सी आपकी स्किन के लिए किस तरह लाभदायक है :

1. सन डैमेज से स्किन का रिपेयर-

ज़्यादा देर धूप में रहने से आपकी स्किन डैमेज होती है, जिसके कारण आपकी स्किन पर सन स्पॉट्स दिखाई देने लगते हैं. साथ ही स्किन ड्राई और बेजान नज़र आती है और आपके चेहरे की रंगत आसमान हो जाती है. ऐसे समय में यह ज़रूरी है की आप अपनी स्किन की खास देखभाल करना ना भूलें. विटामिन सी एक ऐसा तत्व है जो आपकी स्किन को सन डैमेज से बचाकर फेस पर ग्लो बरकरार रखने में मदद करता है.

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2. फाइन लाइंस और रिंकल्स करे गायब-

बढ़ती उम्र के साथ साथ फाइन लाइंस और रिंकल्स की समस्या भी बढ़ जाती हैं और जब एजिंग की बात आती है तो विटामिन सी आपकी स्किन के लिए एक जरूरी विटामिन माना गया है. यह स्किन में कसाव को बढ़ाता है और स्किन में कोलेजन नामक तत्व के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है जिसके कारण आपकी स्किन जवां नज़र आती है.

3. रंगत को करे समान-

चेहरे पर दाग धब्बे और सन स्पॉट्स को हल्का करने के लिए विटामिन सी काफी लाभदायक माना गया है. यह स्किन से रेडनेस और अन इवन स्किन टोन से लड़ने में मदद करता है. विटामिन सी के रोज़ाना उपयोग करने से आपकी स्किन पहले से ज़्यादा ग्लोइंग और साफ नज़र आने लगती है. यह आपकी स्किन को रिपेयर करने में मदद करता है.

विटामिन सी के स्किन के लिए काफी फायदे हैं. लेकिन आप विटामिन सी क्रीम या सीरम अपने चेहरे पर इस्तेमाल करने से पहले जान लें कि कुछ ऐसे भी तत्व होते हैं जिनके साथ इस विटामिन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. चलिए जानते हैं की विटामिन सी को किस के साथ इस्तेमाल ना करें-

4. विटामिन सी और विटामिन बी3-

ध्यान रहे कभी भी विटामिन सी और विटामिन बी3 यानी नियासिनामाइड को एक साथ इस्तेमाल ना करें. ऐसा करने से आपकी स्किन पर रेडनेस और पिंपल्स की शिकायत हो सकती है.

5. विटामिन सी और रेटिनॉल-

इन दोनो को एक साथ या एक ही समय पर अपनी स्किन पर इस्तेमाल कभी ना करें. ऐसा करने से आपकी स्किन काफी सेंसिटिव हो जाती है और सूरज की हानिकारक किरणों से आसानी से डैमेज हो सकती है. साथ ही स्किन में खुजली और अन्य रिएक्शन की शिकायत भी हो सकती है.

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6. विटामिन सी और बेंजोयल पेरोडाइड-

अगर दोनो तत्वों को एक साथ इस्तेमाल किया जाए तो बेंजोयल पेरोक्साइड आसानी से विटामिन सी को ऑक्सीडाइज कर उससे होने वाले फायदे को रोकता है. जिसके कारण न तो विटामिन सी का स्किन पर कोई असर होता है और न ही बेंजोयल पेरोक्साइड का.

7. विटामिन सी और एसिड-

ए-एच-ए और बी-एच-ए जैसे एसिड्स को कभी भी विटामिन सी के साथ इस्तेमाल ना करें. ऐसा करने से आपकी स्किन में रिएक्शन हो सकता है. आप चाहें तो दिन में विटामिन सी और रात में एसिड का इस्तेमाल कर सकती हैं लेकिन एक ही समय पर दोनो को अपनी स्किन पर न लगाएं.

बच्चा सब सीख लेता है

बच्चा तो एक कोरी स्लेट की तरह होता है वो बहुत सारी चीजों के बारे में तब तक जागरूक नहीं हो सकता जब तक कि माता पिता उसको न समझायें. इसी लिए बच्चे की पहली पढाई तो उसके घर पर ही होती है. माता पिता को इसके लिए बहुत पहाड़ नहीं तोड़ना पड़ता है बस कोशिश करते रहना चाहिए कि

बच्चे को जब समय मिले अच्छी आदते सिखाई जाएं मिसाल के तौर पर हाथ साफ रखने की आदत सिखाना. बच्चों पर एक शोध किया गया तो देखा गया कि वो जीभ से हथेली को चाटना और उस पर दांत लगाने में बहुत आनंद महसूस कर रहे थे. यही बच्चे पेट मे कृमि की तथा पेचिश और अतिसार की समस्या से भी पीड़ित हो रहे थे. इन बच्चों को बार बार हाथ धोने के लिए प्रेरित किया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि पंद्रह दिन बाद वो पेट की बीमारी से मुक्त हो चुके थे.

इसके लिए उनको कुछ जानवरों की कहानियाँ सुनाई जो हाथ नहीं धोते थे और हमेशा डाक्टर के पास जाते थे. यह कहानी बहुत काम की साबित हुई.

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आजकल तो बच्चो को सड़क पर कचरा न फैलाने की , कूड़ा सदैव कूडे़दान मे डालने की , हमेशा किनारे चलने की आदतें कहानी बनाकर सिखाई जाती हैं जो उनको बहुत भाती हैं. यह बहुत जरूरी भी है कि जितना हो सके बच्चे को सफाई पसंद और जागरूक बनाना चाहिए इससे उसका अपना भविष्य बहुत उज्जवल होगा. किसी बाल मनोवैज्ञानिक ने यह बिलकुल सच ही कहा है कि बच्चों को अगर उनकी रुचि के हिसाब से कुछ भी समझाया जाता है तो उसे सारी जिंदगी यह चीजें नहीं भूलती. लेकिन यह बात भी सही है कि छोटे बच्चे को कुछ सिखाना आसान काम नही है. इसके लिए मां को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. हर समय बच्चे का ध्यान रखना पड़ता है, बच्चे ने खाना खाने से पहले हाथ धोए या नहीं,गंदे हाथ साफ किए या नहीं आदि क्योंकि छोटे से मासूम बच्चे यह समझ नहीं पाते कि क्या ठीक है और क्या गलत. इसके लिए उन्हें कुछ खास चीजों को सिखाना बहुत जरूरी है.

बच्चे का एक प्रमुख स्वभाव यह होता है कि वो हर अच्छी और बुरी चीज को बिलकुल पास जाकर अपने हाथों से छूते हैं वो जानना चाहते हैं कि यह क्या है. फिर चाहे वो कोई खाने की चीज हो, कोई भी सामान हो , मिट्टी हो, कोई पालतू जानवर या फिर कंकड पत्थर वो बहुत ही जिज्ञासु होते हैं उन पर पूरी नजर रखनी ही चाहिए . बच्चों को समय-समय पर उसकी गलती बताएं कि जो चीज वे छू रहे हैं, उसमें कीटाणु हो सकते हैं. इनके के बारे में बच्चे को सही जानकारी देना और गंदगी से कितनी खुजली हो सकती है बीमारी हो सकती है यह सब समझाना बहुत जरूरी है.

उठने-बैठने के कायदे क्या होते हैं और हमको अपनी गरदन झुकानी नहीं चाहिए और बहुत खुश होकर बातचीत करनी चाहिए बहुत सारे बच्चे किसी कारण से शर्मीले हो जाते हैं उनको यह सिखाना चाहिए कि किसी की बात का जवाब देते समय उनसे आंखें मिलाकर हंसकर बात कीजिये .

बच्चे को खांसते हुए रूमाल या टिशू रखने और किसी के सामने नहीं दूर हटकर छींकने,टेबल पर बगैर हिले डुले बैठने और चम्मच से खाने और बगैर सुडुक बुडुक की आवाज के पीने की चीजें कैसे उपयोग मे लेते है यह सब करके ही बताएं. बच्चे किसी को देखने के बाद आंख,नाक कान आदि में अंगुलिया डालते हैं तो उन्हें बताएं कि नाक साफ करना कोई गलत बात नहीं है लेकिन इसे किसी के सामने नहीं बल्कि बाथरूम में जाकर टीशू से साफ करें और नाक कान, आंख, दांत आदि को उंगली से छू लिया है तो साफ करने के बाद हाथ जरूर धो लें. यह भी एक प्रमाणित तथ्य है कि बच्चे बहुत ही जल्दी सीख लेते हैं जरा सा उनकी तारीफ कर दी जाती है तो वह आगे बढ़कर अपना काम खुद करेंगे. जैसे टॉयलेट जाने के बाद खुद को साफ करना. जब बच्चा ऐसा करने लगे तो समझ जाएं कि यही वह समय है जब आप उन्हें टॉयलेट जाने का सलीका सीखा सकते हैं. पहले-पहले अभिभावक और बच्चे को यह काम बहुत अटपटा और जटिल जरूर लगेगा लेकिन धीरे-धीरे बच्चा जल्दी सीख जाएगा.

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बच्चे को कुछ गुनगुनाकर या फिर किसी कहानी से जोड़कर यह बता सकते हैं कि हर रोज दांतों को साफ करना बहुत जरूरी है. बच्चों के लिए शुरू में यह काम आलस वाला जरूर लगता है. मगर वो बस एक बार भी यह समझ जायें कि दांत न होने से कुछ भी नहीं खाया जा सकता तो दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत वो अपने आप ही पक्की कर डालेंगे.

Summer Special: समर में कैसी हो लौंजरी

समर सीजन कूल कलर्स के साथ कूल फैब्रिक खासकर महिलाओं को खूब भाता है. उन के लिए तो यह सीजन खुद को सुपर सैक्सी दिखाने का होता है. ऐसे में क्या आप नहीं चाहतीं कि आप के आउटर आउटफिट्स के साथसाथ आप की इनरवियर भी इतनी सैक्सी हो कि जब आप उस पर स्ट्रिप वाली ड्रैस या फिर और कोई हौट सी ड्रैस पहनें तो आप का सुपर सैक्सी लुक लोगों को आप अपना बना दे?

मगर समर सीजन में स्टाइल के साथसाथ कंफर्ट का भी पूरा ध्यान रखना होगा वरना आप का यह फैशन आप को परेशान कर देगा.

आइए, जानें कि समर में आप की लौंजरी कैसी होनी चाहिए:

कौटन फैब्रिक है बैस्ट

आप को मार्केट में डिफरैंट डिजाइन व डिफरैंट फैब्रिक की लौंजरी मिल जाएगी, जिसे देख कर भले आप एक बार में उस के प्रति अटै्रक्ट हो जाएं, लेकिन इस बात का खास ध्यान रखें कि उस का फैब्रिक कौटन का ही हो, क्योंकि इस फैब्रिक की खास बात यह है कि इस में मौइस्चर को अब्सौर्ब करने की क्षमता होती है.

इस से कंफर्ट के साथसाथ पूरा दिन कूल भी फील करती हैं. इस की शरीर को ठंडक देने वाली प्रौपर्टी आप के शरीर पर किसी भी तरह की ऐलर्जी नहीं होने देती. तो फिर कौटन लौंजरी से खुद को रखें सुपर कूल.

साइज का खास ध्यान

जिस तरह हर किसी की फिजिक अलगअलग होती है, उसी तरह सभी को लौंजरी अलगअलग साइज फिट बैठते हैं. इसलिए अपने कप साइज व पैंटी साइज के हिसाब से ही लौंजरी चुनें. करीब 70% महिलाएं गलत साइज की ब्रा का चयन करती हैं.

जहां ज्यादा फिट ब्रा पहनने से स्किन पर रैड निशान पड़ने के साथसाथ ऐलर्जी तक हो जाती है, जो काफी पीड़ादायक होती है. इस से ब्लड सर्कुलेशन भी प्रभावित होता है, जो हैल्थ के लिए बिलकुल सही नहीं होता है, वहीं ढीली ब्रा पहनने से कप्स को सही आकार नहीं मिल पाता है, जिस से धीरेधीरे ब्रैस्ट लटक जाती है, जो आप की फिगर को बिगाड़ने का ही काम करती है. इसलिए जब भी लौंजरी खरीदें तो साइज का ध्यान जरूर रखें.

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करें न्यूड शेड का चयन

अगर आप गरमियों में न्यूड शेड ब्रा का चयन करेंगी तो आप को काफी कंफर्ट फील होगा, क्योंकि ये कलर्स कूल इफैक्ट देने के कारण आप को टैनिंग से भी दूर रखते हैं. अगर आप ज्यादा डार्क कलर की ब्रा पहनती हैं तो आप को ज्यादा गरमी लगने के साथसाथ स्किन टैन होने का भी डर बना रहता है. हो सकता है कि आप को ब्लैक ब्रा व पैंटी काफी सैक्सी लगे, लेकिन कूलकूल फील करवाने के लिए इस समर न्यूड शेड का ही चयन करें.

लवलैस ब्रा

इस समर सैक्सी दिखने के लिए आप लैस स्टाइल ब्रा चूज करें, क्योंकि एक तो आप इसे लो कट टौप्स, टैंक टौप्स बगैरा के साथ वियर कर सकती हैं, जो आप के स्टाइल को तो ऐन्हांस करने का काम करती है, साथ ही इस की बनावट भी ऐसी होती है कि यह आप की ब्रैस्ट को हलका फील करवाने के साथसाथ इस पसीना भरे मौसम में आप की स्किन को हवा देने का काम भी करती है. तो फिर यह ब्रा आप को देगी स्टाइलिश, सैक्सी और कंफर्ट लुक.

चूज स्टै्रपलैस ब्रा

स्ट्रैपलैस ब्रा जहां हर तरह की हौट ड्रैस के साथ सूट कर जाती है, वहीं इस से कंधों को भी काफी खुलाखुला व रिलैक्स फील होता है. इस से कंधों पर रैडनैस व इरिटेशन नहीं होती है, क्योंकि जब लंबे समय तक ब्रा पहनती हैं तो कप्स को अच्छी तरह होल्ड करने के लिए स्ट्रैप्स का सहारा लिया जाता है, जिस से कंधों पर थोड़ा खिंचाव महसूस होता है.

लेकिन यह भी सच है कि कुछ महिलाओं को स्ट्रैपलैस ब्रा पहनने में काफी अनकंफर्टेबल फील होता है. ऐसे में वे पहले रिमूवेबल स्ट्रैप वाली ब्रा ट्राई करें, जिस में स्ट्रैप्स को रिमूव कर के भी पहन सकती हैं और स्ट्रैप्स के साथ भी. ऐसा करने से धीरेधीरे उन्हें स्ट्रैपलैस ब्रा की आदत पड़ जाएगी और फिर यदि एक बार अगर यह आदत लग गई तो फिर वे इस की दीवानी हो जाएंगी.

टीशर्ट ब्रा है बैस्ट

गरमियों में टीशर्ट ब्रा आप के लिए बैस्ट रहेगी, क्योंकि यह काफी पतले कपड़े से बनी होने के कारण वायरफ्री भी होती है. इस के कारण आप इसे पूरे दिन बिना किसी दर्द व असुविधा के पहन सकती हैं. टीशर्ट ब्रा उन महिलाओं के लिए बैस्ट है, जिन्हें गरमियों में ज्यादा पसीना होने की शिकायत होती है.

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पैंटीज हो ज्यादा कंफर्ट

जब बात हो समर में पैंटी खरीदने की, तो जरा भी लापरवाही ठीक नहीं, क्योंकि यह एरिया बहुत ही संवेदनशील होता है और साथ ही इस एरिया में ज्यादा पसीना भी आने के कारण स्किन के कटने व रैड पड़ने के चांसेज ज्यादा रहते हैं. इसलिए जब भी पैंटी खरीदें तो ध्यान रखें कि वह नैचुरल फैब्रिक यानी कौटन की बनी हो और उस पर बहुत ही हैवी ऐंब्रौयडरी न की हुई हो, क्योंकि इस से स्किन को नुकसान पहुंच सकता है.

Serial Story: तू तू मैं मैं– भाग 1

“जाओ फ्लेट नंबर सी 212 से कार की चाबी मांग कर लाओ. जल्दी आना. रोज इस के चक्कर में लेट हो जाती हूं,”अनुभा अपनी कार के पीछे लगी दूसरी कार को देख कर भुनभुनाई.

गार्ड अपनी हंसी रोकता हुआ चला गया. पिछले 6 महीने से वह इन दोनों का तमाशा देखता चला आ रहा है. एक महीने आगेपीछे ही दोनों ने इस सोसायटी में फ्लैट किराए पर लिया है, तभी से दोनों का हर बात पर झगड़ा मचा रहता है. फ्लैट नंबर 312 में ऊपरी मंजिल पर अनुभा रहती है. सोसायटी मीटिंग में भी दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप करते दिखाई देते हैं.

सौरभ ने शिकायत की थी कि उस के बाथरूम में लीकेज हो रहा है. इस के लिए उस ने प्लम्बर बुलवाया, छुट्टी भी ली और अनुभा को भी बता दिया था कि प्लम्बर आ कर ऊपरी मंजिल से उस का बाथरूम से लीकेज चेक करेगा, खर्चा भी वह खुद उठाने को तैयार है. पहले तो कुछ नहीं बोली, मगर जब प्लम्बर आ गया तो अपना फ्लैट बंद कर औफिस चली गई. आधा घंटा भी वह रुकने को तैयार नहीं हुई.

सौरभ ने सोसायटी की मीटिंग में इस मुद्दे को उठाया तो अनुभा ने उस पर अकेली महिला के घर अनजान आदमी को भेजने का आरोप लगा दिया.

बात बाथरूम के लीकेज से भटक कर नारीवाद, अस्मिता, बढ़ते बलात्कार पर पहुंच गई. यह देख सौरभ दांत किटकिटा कर रह गया. उस का बाथरूम आज तक ठीक न हो सका.

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अब तो दोनों के बीच इतना झगड़ा बढ़ चुका है कि अब सामंजस्य से काम होना नामुमकिन हो चुका है.

इस वसुधा सोसायटी में शुरू में पार्किंग की समस्या नहीं थी. पूरब और पश्चिम दिशा में बने दोनों गेट से गाड़ियां आजा सकती थीं और दोनों तरफ पार्किंग की सुविधा भी थी, मगर पांच वर्ष पूर्व से पश्चिम दिशा में बनी नई सोसायटी वसुंधरा के लोगों ने पिछले गेट की सड़क पर अपना दावा ठोंक कर पश्चिम गेट को बंद कर ताला लगा दिया.

वैसे तो वह सड़क वसुंधरा सोसायटी ने ही अपनी बिल्डिंग तैयार करते समय बनवाई थी. जैसेजैसे वसुंधरा में परिवार बसने लगे, पार्किंग की जगह कम पड़ने लगी, तो उन्होंने वसुधा के पश्चिम गेट को बंद कर उस सड़क का इस्तेमाल पार्किंग के रूप में करना शुरू कर दिया.

वसुधा सोसायटी के नए नियम बन गए, जो ‘पहले आओ पहले पाओ’ पर आधारित थे. किसी की भी पार्किंग की जगह निश्चित न होने पर भी लोगों ने आपसी समझबूझ से एकदूसरे के आगेपीछे गाड़ी खड़ी करना शुरू कर दिया. जो सुबह देर से जाते थे, वे गाड़ी दीवार से लगा कर खड़ी कर देते. जिन्हें जल्दी जाना होता, वे उस के पीछे खड़ी करते. सभी परिवार 15 साल पहले, सालभर के अंतराल में यहां आ कर बसे थे. सभी के परिवार एकदूसरे को अच्छे से पहचानते हैं. अगर किसी की गाड़ी आगेपीछे करनी होती तो गार्ड चाबी मांग कर ले आता. अभी भी कुछ फ्लैट्स खाली पड़े हैं, जिन के मालिक कभी दिखाई नहीं देते. कुछ में किराएदार बदलते रहते हैं. ऐसे किराएदारों के विषय में, पड़ोसियों के अतिरिक्त अन्य किसी का ध्यान नहीं जाता था, मगर सौरभ और अनुभा तो इतने फेमस हो गए हैं कि उन की जोड़ी का नाम “तूतू, मैंमैं ”रख दिया गया.

आंखें मलता हुआ सौरभ जब पार्किंग में आया, तो अनुभा को देखते ही उस का पारा आसमान में चढ़ गया. वह बोला, “जब तुम्हें जल्दी जाना था तो अपनी गाड़ी आगे क्यों खड़ी की? कुछ देर बाहर खड़ी कर, बाद में पीछे खड़ी करती.”

“मुझे औफिस से फोन आया है, इसलिए आज जल्दी निकलना है,” अनुभा ने कहा.

“झूठ बोलना तो कोई तुम से सीखे,” सौरभ ने कहा.

“तुम तो जैसे राजा हरिश्चन्द्र की औलाद हो?” अनुभा की भी त्योरी चढ़ गई.

“आज सुबहसुबह तुम्हारा मुंह देख लिया है. अब तो पूरा दिन बरबाद होने वाला है,” कह कर सौरभ ने गाड़ी निकाल कर बाउंड्रीवाल के बाहर खड़ा कर दी और अनुभा को कोसते हुए अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गया.

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मोहिनी अपने फ्लैट से नित्य ही यह तमाशा देखती रहती है. उस के बच्चे विदेश में बस गए हैं, अपने पति संग दिनभर कितनी बातें करे? उसे तो फोन पर अपनी सहेलियों के संग नमकमिर्च लगा कर, सोसायटी की खबरें फैलाने में जो मजा आता है, किसी अन्य पदार्थ में नहीं मिल सकता. उस के पति धीरेंद्र को उस की इन हरकतों पर बड़ा गुस्सा आता है. वे मन मसोस कर रह जाते हैं कि अभी मोहिनी से कुछ कहा, तो वह फोन रख कर मेरे संग ही बहसबाजी में जुट जाएगी.

“सुन कविता, आज फिर सुबहसुबह “तूतू, मैंमैं” शुरू हो गए. बस हाथापाई रह गई है, गालीगलौज पर तो उतर ही आए हैं.“

“अरे कुछ दिन रुक, फिर वे तुझे एकदूसरे के बाल नोचते भी नजर आएंगे,” कह कर कविता हंसी.

“मैं तो उसी दिन का इंतजार कर रही हूं,” मोहिनी खिलखिला उठी.

धीरेंद्र चिढ़ कर उस कमरे से उठ कर बाहर चला गया.

महीनेभर के अंदर ही सौरभ ने गार्ड से अनुभा की कार की चाबी मांग कर लाने को कहा, मगर अनुभा खुद आ गई.

“मेरी गाड़ी को गार्ड के हाथों सौंप कर ठुकवाना चाहते हो क्या?” आते ही अनुभा उलझ गई.

“ नहीं, गाड़ी को मैं ही बेक कर लगा देता, तुम ने आने का कष्ट क्यों किया?” सौरभ ने चिढ़ कर कहा.

“मैं अपनी गाड़ी किसी को छूने भी न दूं,” अनुभा इठलाई.

“मुझे भी लोगों की गाड़ियां बैक करने का शौक नहीं है, बस सुबहसुबह तुम्हारा मुंह देख कर अपना दिन खराब नहीं करना चाह रहा था, इसीलिए चाबी मंगाई थी,” सौरभ ने भी अपनी भड़ास निकाली.

“अपनी शक्ल देखी है कभी आईने में?” कह कर अनुभा कार में सवार हो गई और गाड़ी को बैक करने लगी.

“खुद जैसे हूर की परी होगी,” सौरभ गुस्से से बोला और अपने औफिस को निकल गया.

औफिस में सौरभ का मन न लगा. बहुत सोचविचार कर उस ने प्रिंटर का बटन दबा दिया. अगले दिन पार्किंग में पोस्टर चिपका हुआ था, जिस में सौरभ ने अपने पूरे महीने औफिस से आनेजाने की समयतालिका चिपका दी और फोन नंबर लिख कर अपनी गाड़ी दीवार से लगा दी.

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दूसरे दिन अनुभा ने भी एक पोस्टर चिपका दिया, जिस में सौरभ को नसीहत देते हुए लिखा था कि किस दिन वह गाड़ी दीवार से लगा कर खड़ी करे और किस दिन उस की गाड़ी के पीछे.

लोग दोनों की पोस्टरबाजी पर खूब हंसते.

आगे पढ़ें- सोसायटी की मीटिंग में सौरभ ने…

Serial Story: तू तू मैं मैं– भाग 3

सुबह सौरभ ने दलिया बनाया, तो उसे अनुभा की याद आ गई. उस ने वीडियो काल किया.

अनुभा ने कहा, “मेरा बुखार रातभर लगातार चढ़ताउतरता रहा. मैं दूधब्रेड खा कर दवा खा लूंगी. तुम्हारे क्या हाल हैं?“

“मेरी खांसी तो अभी ठीक नहीं हुई, छींकें भी आ रही हैं, गले में खराश भी बनी हुई है. दवा तो मैं भी लगातार खा रहा हूं,” सौरभ ने बताया.

“पता नहीं, क्या हुआ है?रिपोर्ट कब आएगी?” अनुभा ने पूछा.

“ कल शाम तक तो आ ही जाएगी. मैं ने दलिया बनाया है. तुम्हें दे भी नहीं सकता. हो सकता है, मैं पोजीटिव हूं और तुम निगेटिव हो.”

“इस का उलटा भी तो हो सकता है. रातभर इतने घटिया, डरावने सपने आते रहे कि बारबार नींद खुलती रही. एसी नहीं चलाया, तो कभी गरमी, कभी ठंड, तो कभी पसीना आता रहा,” बोलतेबोलते अनुभा की सांस फूल गई.

“अच्छा हुआ, उस दिन दीदी की जिद से औक्सीमीटर और थर्मल स्कैनर भी खरीद लिए थे. मैं तो लगातार चेक कर रहा हूं. तुम औक्सीमीटर में औक्सीजन लेवल चेक करो, नाइंटी थ्री से नीचे का मतलब, कोविड सैंटर में भरती हो जाओ.”

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“क्यों डरा रहे हो? हो सकता है, मुझे वायरल फीवर ही हो.”

“ठीक है. रिपोर्ट जल्द आने वाली है, तब तक अपना ध्यान रखो.”

अनुभा सोच में पड़ गई. अगर रिपोर्ट पोजीटिव आ गई तो क्या होगा? सोसायटी से मदद की उम्मीद बेकार है. किसी कोविड सैंटर में ही चली जाएगी. उस की आंखों में आंसू आ गए. किसी तरह उस ने एक दिन और गुजारा.

अगले दिन उस के पास अनुभा का फोन आ गया, “हैलो सौरभ कैसे हो? तुम्हें फोन आया क्या?”

“हां, मेरा तो ‘इक्विवोकल…’ आया है.”

“इस का क्या मतलब है?” अनुभा ने पूछा.

“मतलब, वायरस तो हैं, पर उस की चेन नहीं मिली कि मुझे पोजीटिव कहा जाए यानी न तो नेगेटिव और न ही पोजीटिव ‘संदिग्ध’,” सौरभ ने बताया.

“मेरा तो पोजीटिव आ गया है. अभी मैं ने किसी को नहीं बताया,” अनुभा ने कहा.

“तुम्हारे नाम का पोस्टर चिपका जाएंगे तो सभी को खुद ही पता चल जाएगा, वैसे, अब तबियत कैसी है तुम्हारी?” सौरभ ने पूछा.

“बुखार नहीं जा रहा,” अनुभा रोआंसी हो उठी.

“रुको, मैं तुम्हारी काल दीदी के साथ लेता हूं, उन से अपनी परेशानी कह सकती हो.”

दीदी से बात कर अनुभा को बड़ी राहत मिली. उन्होंने उस की कुछ दवा भी बदली, जिन्हें सौरभ ला कर दे गया और उसे दिन में 3-4 बार औक्सीलेवल चेक करने और पेट के बल लेटने को भी कहा.

2-3 दिन बाद बुखार तो उतर गया, मगर डायरिया, पेट में दर्द शुरू हो गया. दवा खाते ही पूरा खाना उलटी में निकल जाता.

समीक्षा ने फिर से उसे कुछ दवा बताई. सौरभ उस के दरवाजे पर फल, दवा के साथ कभी खिचड़ी, तो कभी दलिया रख देता.

पहले तो अनुभा को ऐसा लगा मानो वह कभी ठीक न हो पाएगी. वह दिन में कई बार अपना औक्सिजन लेवल चेक करती, मगर सौरभ और समीक्षा के साथ ने उस के अंदर ऊर्जा का संचार किया. उसे अवसाद में जाने से बचा लिया.

2 हफ्ते के अंदर उस की तबियत में सुधार आ गया, वरना बीमारी की दहशत, मरने वालों के आंकड़े, औक्सिजन की कमी के समाचार उस के दिमाग में घूमते रहते थे.

अनुभा को आज कुछ अच्छा महसूस हो रहा है. एक तो उस के दरवाजे पर चिपका पोस्टर हट गया है. दूसरा, आज बड़े दिनों बाद उसे कुछ चटपटा खाने का मन कर रहा है वरना इतने दिनों से जो भी जबरदस्ती खा रही थी, वह उसे भूसा ही लग रहा था.

“सौरभ आलू के परांठे खाने हैं तो आ जाओ, गरमागरम खाने में ही मजा आता है,” अनुभा ने सौरभ को फोन किया.

”अरे वाह, मेरे तो फेवरेट हैं. तुम इतना लोड मत लो. मैं आ कर तुम्हारी मदद करता हूं.“

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सौरभ फटाफट तैयार हो कर ऊपर पहुंचा, तो अनुभा परांठा सेंक रही थी. अनुभा के हाथ में वाकई स्वाद है. नाश्ता करने के बाद सौरभ ने कुछ सोचा, फिर बोल ही पड़ा, “अनुभा, तुम कोरोना काल की वजह से इतनी सौफ्ट हो गई हो या कोई और कारण है?”

“सच कहूं तो मैं ने नारियल के खोल का आवरण अपना लिया है. मैं बाहरी दुनिया के लिए झगड़ालू मुंहफट बन कर रह गई हूं. अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करूं? अकेले रह कर जौब करना आसान है क्या? इस से पहले जिस सोसायटी में रहती थी, वहां मेरे शांत स्वभाव की वजह से अनेक मित्र बन गए थे, लेकिन सभी अपने काम के वक्त मुझ से मीठामीठा बोल कर काम करवा लेते, मेरे फ्लैट को छुट्टी के दिन अपनी किट्टी पार्टी के लिए भी मांग लेते. मैं संकोचवश मना नहीं कर पाती थी. मेरी सहेली तृष्णा ने जब यह देखा, तो उस ने मुझे समझाया कि ये लोग मदद देना भी जानते हैं या सिर्फ लेना ही जानते हैं? एक बार आजमा भी लेना. और हुआ भी यही, जब मैं वायरल से पीड़ित हुई, तो मैं ने कई लोगों को फोन किया. सभी अपनी हिदायत फोन पर ही दे कर बैठ गए.
मेरे फ्लैट में झांकने भी न आए, तभी मैं ने भी तृष्णा की बात गांठ बांध ली और इस सोसायटी में आ कर एक नया रूप धारण कर लिया. मेरे स्वभाव की वजह से लोग दूरी बना कर ही रखते हैं. वहां तो जवान लड़कों की बात छोड़ो, अधेड़ भी जबरदस्ती चिपकने लगते थे. यहां सब जानते हैं कि इतनी लड़ाका है. इस से दूर ही रहो,” कह कर अनुभा हंसने लगी.

“ओह… तो तुम मुझे भी, उन्हीं छिछोरों में शामिल समझ कर झगड़ा करती थी,” सौरभ ने पूछा.

“नहीं, ऐसी बात नहीं है,” अनुभा मुसकराई.

तभी सौरभ और अनुभा का फोन एकसाथ बज उठा. समीक्षा की काल थी.

“अरे सौरभ, आज तुम कहां हो? अच्छा, अनुभा के फ्लैट में…” समीक्षा चहकी.

“अनुभा ने पोस्ट कोविड पार्टी दी है, आलू के परांठे… खा कर मजा आ गया दीदी.”

“अरे अनुभा, अभी 15 दिन ज्यादा मेहनत न करना, धीरेधीरे कर के, अपनी ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज बढ़ाती जाना. और सौरभ, तुम भी अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना.”

“थैंक्स दीदी, आप के कंसल्टेंट्स और सौरभ की हैल्प ने मुझे बचा लिया, वरना मुझे कोविड सैंटर में भरती होना पड़ता. अपनी बचत पर भी कैंची चलानी पड़ती. लाखों के बिल बने हैं लोगों के, हफ्तादस दिन ही भरती होने के,” अनुभा बोली.

“अरे छोड़ो कोरोना का रोना, तुम दोनों साथ में कितने अच्छे लग रहे हो,” समीक्षा बोली.

“अरे दीदी, वह बात नहीं है, जो आप समझ कर बैठी हैं,” सौरभ ने कहा.

“क्यों…? मैं ने कुछ गलत कहा क्या अनुभा?” समीक्षा पूछ बैठी.

“ नहीं दीदी, आप ने बिलकुल सही कहा है. मैं तो अब नीचे के फ्लोर में सौरभ के पास का, फ्लैट लेने की सोच रही हूं. ऐसा हीरा फिर मुझे कहां मिलेगा?”

“ये हुई न बात, बल्कि अगलबगल के फ्लैट ले लो,” समीक्षा ने सलाह दी.

“ये आइडिया अच्छा है,” दोनों ही एकसाथ बोल पड़े.

अगले दिन पार्किंग में नया पोस्टर चिपका था, जिस में सौरभ और अनुभा ने एक साथ 2 फ्लैट्स लेने की डिमांड रखी थी.

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“अरे कविता, कुछ पता चला तुझे? सारा मजा खत्म हो गया,” कामिनी ने फोन किया.

“क्या हुआ कामिनी?” कविता पूछ बैठी.

“अरे, “तूतू, मैंमैं” तो अब “तोतामैना“ बन गए रे…”

Serial Story: तू तू मैं मैं– भाग 2

सोसायटी की मीटिंग में सौरभ ने पार्किंग का मुद्दा उठाया, तो सभी ने इसे आपसी सहमति से सुलझाने को कहा.

सौरभ ने अपने बाथरूम के लीकेज की बात जैसे ही उठाई, अनुभा गुस्से से बोल पड़ी, “इतनी ही परेशानी है, तो अपना फ्लैट क्यों नहीं बदल लेते? किराए का घर है… कौन सा तुम ने खरीद लिया है?”

“लगता है, यही करना पड़ेगा, जिस से मेरी बहुत सी परेशानी दूर हो जाएगी.”

फिर से झगड़ा बढ़ता देख लोगों ने बीचबचाव कर उन्हें शांत बैठने को कहा.

अगले दिन एक नया पोस्टर चिपका था, जिस में सौरभ ने फ्लैट बदलने के लिए लोगों से इसी सोसायटी के अन्य खाली फ्लैट की जानकारी देने का अनुरोध किया था.

अनुभा क्यों पीछे रहती, उस ने भी अपना फ्लैट बदलने के लिए पोस्टर चिपका दिया.

मार्च का महीना अपने साथ लौकडाउन भी ले आया. लोग घरों में दुबक गए. वर्क फ्रॉम होम होने से अनुभा और सौरभ का झगड़ा भी बंद हो गया. वे भी अपने फ्लैट्स में सीमित हो गए. अप्रैल, मई, जून तो यही सोच कर कट गए कि शायद अब कोरोना का प्रकोप कम होगा, मगर जुलाई आतेआते तो शहर में पांव पसारने लगा और अगस्त के महीने से सोसायटी के अंदर भी पहुंच गया. सोसायटी की ए विंग सील हो गई, तो कभी बी विंग सील हुई. सी विंग के रहने वाले दहशत में थे कि उन के विंग का नंबर जल्द लगने वाला है.

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अनुभा और सौरभ सब से ज्यादा तनाव में आ गए. इस सोसायटी में सभी संयुक्त या एकल परिवार के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं. घर के बुजुर्ग बच्चों के संग नया तालमेल बैठा रहे हैं. मगर, अनुभा और सौरभ नितांत अकेले पड़ गए.

अनुभा तो फिर भी आसपड़ोस के दोचार परिवारों का नंबर अपने पास रखे हुए थी, मगर सौरभ ने कभी इस की जरूरत न समझी, केवल सोसायटी के अध्यक्ष का नंबर ही उस के पास था. घर वालों के फोन दिनरात आते रहते थे. उस की बड़ी बहन समीक्षा दिल्ली के सरकारी अस्पताल में डाक्टर थी. वह लगातार सौरभ को रोज नई दवाओं के प्रयोग और सावधानियों के विषय में चर्चा करती. गुड़गांव में पोस्टेड सौरभ उस की नसीहत एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता. उधर मोहिनी और कविता की गौसिप का मसाला खत्म हो गया था. दोनों को किट्टी पार्टी के बंद होने से ज्यादा सौरभ और अनुभा की “तूतू, मैंमैं” का नजारा बंद हो जाने का अफसोस होता. पार्किंग एरिया शांत पड़ा था.

सौरभ को हलकी खांसी और गले में खराश सी महसूस हुई. उस ने अपनी दीदी समीक्षा को यह बात बताई, तो उस ने उसे तुरंत पेरासिटामोल से ले कर विटामिन सी तक की कई दवाओं को तुरंत ला कर सेवन करने, कुनकुने पानी से गरारा करने जैसी कई हिदायतों के साथ तुरंत कोविड टेस्ट कराने को कहा.

पहले तो सौरभ टालमटोल करता रहा, किंतु वीडियो काल के दौरान उस की बारबार होने वाली खांसी ने समीक्षा को परेशान कर दिया. वह हर एक घंटे बाद उसे फोन कर यही कहे “तुम अभी तक टेस्ट कराने नहीं गए?”

सौरभ को थकान सी महसूस हो रही थी, मगर अपनी दीदी की जिद के आगे उस ने हथियार डाल दिए.

पार्किंग एरिया में अपनी कार के पीछे अनुभा की गाड़ी देख कर सौरभ का मूड उखड़ गया. उस के अंदर अनुभा से बहस करने की बिलकुल भी एनर्जी नहीं बची थी. उस ने गार्ड से चाबी मांग कर लाने को कहा. अंदर ही अंदर वह बहुत डरा हुआ था कि अनुभा झगड़ा शुरू न कर दे, किंतु उस की सोच के विपरीत उस का फोन बजा.

“सौरभ, मेरी गाड़ी दीवार से लगा कर खड़ी कर देना, अपनी गाड़ी पीछे लगा लो. मैं गार्ड के हाथ चाबी भेज रही हूं.”

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि लौकडाउन ने इस के दिमाग के ताले खोल दिए क्या, वरना तो यही कहती थी कि “मैं तो अपनी गाड़ी किसी को हाथ तक लगाने न दूं.“

गार्ड चाबी ले कर आया और उस ने बताया, “लगता है, मैडम की तबियत ज्यादा ही खराब है. कह रही थीं कि चाबी सौरभ को दे देना.”

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सौरभ ने अपनी गाड़ी बाहर निकाली. जैसे ही वह सोसायटी के गेट तक पहुंचा, अचानक उसे खयाल आया कि अनुभा
से उस की बीमारी के विषय में पूछा ही नहीं. वह तुरंत लौट कर आया और अनुभा के फ्लैट में पहुंच गया.

“तुम चाबी गार्ड के हाथ भेज देते,“ अनुभा उसे देख कर चौंक गई.

“फीवर आ रहा है क्या?” सौरभ ने पूछा.

“हां, कल रात तेज सिरदर्द हुआ और सुबह होतेहोते इतना तेज फीवर आ गया कि पूरा शरीर दुखने लगा है. इतना तेज दर्द है मानो शरीर के ऊपर से ट्रक गुजर गया हो,” उस की आंखों में कृतज्ञता के आंसू भर आए. ऐसी दयनीय दशा में, कोरोना काल में, उस का हालचाल वही इनसान ले रहा था, जिस से उस ने सीधे मुंह कभी बात न की, उलटा लड़ाई ही लड़ी थी.

“चलो मेरे साथ, मैं कोविड टेस्ट कराने जा रहा हूं, तुम भी अपना टेस्ट और चेकअप करा लेना.”

“मुझे कोरोना कैसे हो सकता है? मैं तो कहीं आतीजाती भी नहीं हूं?” अनुभा ने कहा.

“मेरी दीदी डाक्टर हैं. उस ने तो मुझे खांसी होने पर ही टेस्ट कराने को कह दिया है. तुम्हें तो फीवर भी है. चलो मेरे साथ,” सौरभ के जोर देने पर अनुभा मना न कर सकी.

अनुभा कार की पिछली सीट पर जा कर बैठ गई. सौरभ ने कार का एसी बंद ही रखा और उस की विंडो खोल दी. अस्पताल से भी वही दवाओं का परचा मिला, जो समीक्षा ने बताया था. दवा, फल, पनीर खरीद कर वे वापस आ गए.

अनुभा तो ब्रेड के सहारे दवा निगल गई. उस के शरीर में देर तक खड़े हो कर खाना बनाने की ताकत नहीं बची थी.

सौरभ ने खिचड़ी बनाई. तभी समीक्षा ने वीडियो काल कर उसे अपने सामने सारी दवाएं खाने को कहा. उस ने अनुभा के विषय में बताया तो दीदी नाराज हो गईं कि उसे अपने साथ क्यों ले गए, टैक्सी करा देते. फिर शांत हो गईं और बोलीं, “चलो जो हो गया, सो हो गया. अब वीडियो काल कर के पूछ लेना, उस के फ्लैट में न जाना.”

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दीदी से बात खत्म कर सौरभ सोचने लगा कि दीदी उसे मेरी गर्लफ्रेंड समझ रही हैं शायद, उन्हें नहीं पता कि हम दोनों एकदूसरे के दोस्त नहीं बल्कि दुश्मन हैं.

आगे पढ़ें- अनुभा सोच में पड़ गई. अगर रिपोर्ट पोजीटिव आ गई तो क्या होगा?…

मोटरिंग वर्ल्ड अवार्ड्स 2021: टू-व्हीलर्स

हर साल मोटरिंग वर्ल्ड की टीम पिछले साल लॉन्च हुए सभी टू-व्हीलर्स पर नजर डालती है और देखती है कि कौन सा टू-व्हीलर्स किस कैटेगरी में टॉप पर है. देखा जाए तो ये काम जिनता महत्वपूर्ण है इसे करने में हमें उनता ही मज़ा आता है. हर टू-व्हीलर को लेकर एक पूरी लिस्ट तैयार होती है जिसमें सबसे बेहतर को ढूंढने के लिए खूब बातचीत होती है, लड़ाईयां होती हैं, खूब ठिठोली भी होती है और एक पूरे एक्सामिनेशन के बाद ही एक शोर्टलिस्ट जूरी तक पहुंचती है. क्योंकि ओटोमोटिव सेक्टर में जो प्रोडक्ट्स बेस्ट साबित होते हैं सिर्फ वही पाते हैं मोटरिंग वर्ल्ड अवार्ड. साल 2021 में कौन से टू-व्हीलर्स इस लिस्ट में शामिल हुए यहां देखिए- 

Commuter of the Year

Hero MotoCorp Passion Pro

इस कैटेगरी में Hero MotoCorp Passion Pro के इर्द-गिर्द भी कोई दूसरा टू-व्हीलर नहीं पहुंच पाया. आरामदायक, कुशल और स्टायलिश. अपनी कीमत में  Hero MotoCorp Passion Pro कमाल का सौदा है.

Premium Commuter of the Year

Hero MotoCorp Xtreme 160R

वैसे पहली बार में ही सभी नए प्लेटफोर्म पर पहुंच आसान नहीं है लेकिन ये कर दिखाया है Hero MotoCorp Xtreme 160R ने. इसकी शानदार मोटर और आसान हैंडलिंग ये सुनिश्चित करती है कि जब भी आप इसे चलाएं तो आपके चेहरे पर मुस्कान बिखरी हो.

Electric Scooter of the Year

Bajaj Chetak

सुप्रसिद्घ नाम बजाज चेतक ने पूरे इलेक्ट्रीफाइड फोर्मेट में आकर new-age mobility की जो लहर पैदा की है वो काबिले तारीफ है, वैसे आश्चर्य की बात है कि Bajaj Chetak ने ये ट्रॉफी केवल अपनी राइड क्वालिटी के दम पर जीती है.

Premium Motorcycle of the Year

Husqvarna Svartpilen 250

मोटर साइकिल की दुनिया में काफी पुराना नाम जोकि इंडिया के लिए फिलहाल नया है. ऐसा फंकी डिजाइन जो आपने कभी नहीं देखा होगा. अपने अलग अंदाज के चलते ही Husqvarna Svartpilen 250 ने Premium Motorcycle of the Year अवोर्ड अपने नाम किया है.

Design of the Year

Bajaj Chetak

सिर्फ लुक की नहीं बल्कि सौंदर्य और सुविधा की बारिक डिटेल की बात करें तो पहले डिजाइन की सोच और फिर उसको हकीकत बनाने में बजाज ने चेतक में शानदार काम किया है. इस साल की बात करें तो अपने आकर्षक लुक के मामले में चेतक ने किसी को अपने करीब तक नहीं आने दिया.

Adventure Motorcycle of the Year

KTM 390 Adventure

इलेक्ट्रॉनिक्स पैकेज और उपकरण जो हमने कभी बड़ी बाइक के बाहर नहीं देखे. जानदार मोटर और इसकी शानदार कीमत ने हमें इसका कायल बना दिया.

Performance Motorcycle of the Year

Triumph Tiger 900

हम भारतीय टाइगर को अच्छे  

हम भारतीय जानते हैं कि बाघ कैसे हो सकते हैं और अब हम यह भी जानते हैं कि जब एक टाइगर खुद को एक नए अंदाज़ में पेश करता है तो वो अपनी बुलंदियों को फिर पा लेता है. Triumph Tiger 900 ने ठीक ऐसे ही ऑल-अराउंड, ऑल सिज़न मोटरसाइकिल की कैटेगरी में किसी को अपनी करीब नहीं आने दिया.

Cruiser of the Year 

Harley-Davidson Low Rider S

लुक्स की बात हो या साउंड की या फिर सड़क पर धूम मचाने की Milwaukee’s V-twins का इस सब में कोई जवाब नहीं है. घूमने में सभी की पहली पसंद Harley-Davidson Low Rider S है तभी तो मिला है इसे Cruiser of the Year का अवोर्ड.

Motorcycle of the Year

Royal Enfield Meteor 350

एक दिल जो नई शांति के साथ पुराने ही अंदाज में धड़कता है. इसको पहले से भी बेहतरीन ढंग से बनाया गया है, इसे चलाना जितना एडिक्टिव है उतना ही मेडिटिव भी है. तभी तो टू-व्हीलर्स में सबसे सम्मानजनक Motorcycle of the Year अवोर्ड Royal Enfield Meteor 350 ने अपने नाम किया है.

A heart that beats like the days of yore, but with modern peace of mind. Its manners are as addictive as they’re meditative. And it’s put together better than ever before, too. A worthy winner of our outright two-wheeled honour — the Royal Enfield Meteor 350.

स्वरा भास्कर ने की बच्चों की मदद, पढ़ें खबर

फिल्म दर फिल्म विविधतापूर्ण अभिनय करते हुए अपनी एक अलग पहचान बना चुकी अभिनेत्री स्वरा भास्कर हमेशा सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय देने के लिए भी जानी जाती हैं.  पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह अक्सर जरुरतमंदों की खुले हाथ मदद भी करती रहती हैं.  कुछ समय पहले अभिनेत्री स्वरा भास्कर एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में  लखनउ गयी थीं. वही से  वह अचानक बदायूं स्थित नेकपुर में संचालित विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरण पहुंच गयी. वास्तव में कचरे के ढेर में मिली बालिका अपर्णा से मिलने की चाहत ही उन्हें वहां तक खींच ले गई थी. वहां पर स्वरा ने पूरा दिन बच्चों के साथ बिताने के बाद स्वरा ने संचालक अनुप कुमार सक्सेना और प्रबंधक प्रियंका जौहरी से वादा किया था कि वह इन बच्चों से जल्द ही दोबारा मिलेंगी.

मगर कोरोना संकटकाल की परिस्थिति को मध्यनजर रखते हुए स्वरा भास्कर ने महसूस किया उनके लिए अभी तुरंत उस दत्त्क गृह जाना संभव नही होगा,पर उनका दिल अभी भी बच्चो के पास ही था. अंततः स्वरा ने कल एक हजार डायपर और बेबी केयर प्रोडक्ट्स दत्तक केंद्र में भिजवाएं है. इससे बच्चों के प्रति स्वरा का लगाव और प्यार दिखाई देता है.   स्वरा की इस पहल से प्रेरणा लेकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इस तरह के नेक काम कर समाज में अपना योगदान दंेगे,ऐसी उम्मीद की जा सकती है.

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संचालक अनुप कुमार सक्सेना ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है-‘‘स्वरा भास्कर जी, हमारे दत्तक ग्रहण अभिकरण बदायूं में आयी और आकर उन्होंने मेरठ मे कूढ़े के ढेर में मिली बच्ची को अपने गले लगाया और दुलार किया.  उनका मन अनाथ बच्चों के लिए काफी व्यथित दिखायी दे रहा था. लगा के मानो एक तरफ वो लोग है जो इन मासूम बच्चों का तिरस्कार करते है  , तो एक तरफ ऐसे लोग भी है जो सफलता के बुलंदियों पर पहुंचकर भी ऐसे बच्चों के प्रत प्रेम और वासल्य रखते है. स्वरा भास्कर जी ने मुझे आश्वासन दिया था कि वह हमारी संस्था में ऐसे बच्चों के लिए सहानभूति पूर्वक सहयोग करती रहेंगी. मैं उनकी ऐसी श्रेष्ठ भावना के लिए ह्रदय से नमन करता हूं.  मेरा मानना है कि सेलिब्रिटीज समाजसुधारक या कहें महान चिंतक ऐसे बच्चों के लिए कार्य करते रहेंगे या हमारी जैसी संस्थाओंका यथासंभव सहयोग कर मनोबल बढ़ाएंगे, तो संभव है की सामाजिक चेतना की नई आयाम विस्थापित हों. मैं स्वरा जी को बधाई और खासतौर से विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरण परिवार के तरफ से सादर अभिनंदन करता हूं और उनको नमन करता हूं. ‘‘

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