पूर्व कथा
पिता की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी कल्पना के ऊपर आ जाती है. हालांकि उसे जल्द ही कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी.
थोड़े ही दिनों में कल्पना ने घर की काया पलट दी लेकिन इस बदलाव को उस की मां समझ नहीं पा रही थीं. मां की प्रश्नभरी नजरों का सामना होते ही वह किनारा कर लेती और मां के बारबार पूछने पर डबल ड्यूटी की बात कहती. लेकिन कभीकभी कल्पना के व्यवहार को देख कर उस की मां परेशान हो जातीं.
इसी बीच उस की मां टेलरिंग की दुकान खोल लेती हैं. बेटी को सयानी होते देख उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगती है. तभी कल्पना के बड़े मामाजी एक ऊंचे राजनीतिक घराने का रिश्ता ले कर आते हैं. बिना दानदहेज के ही शादी हो जाती है.
सुहागरात के दिन कल्पना और प्रमेश दोनों एकदूसरे को देख कर चौंक जाते हैं. प्रमेश उस पर अपने परिवार को धोखा देने का आरोप लगाता है लेकिन मजबूर कल्पना उसे अपनी सारी असलियत साफसाफ बता देती है सारी रात आंखों में गुजारने के बाद प्रमेश उसे चुप रहने के लिए कहता है. अब आगे…
गतांक से आगे…
कल्पना किंकर्तव्यविमूढ़ हो थोड़ी देर खड़ी सोचती रही कि संभव है प्रमेश उसे माफ कर दे. एक नई ईमानदार जिंदगी जीने का संकल्प ले एकदूसरे के दोषों को भुला दे तो दूसरे की निगाह में गिरने से भी बच जाएंगे और उसे तो नवजीवन ही मिल जाएगा. वह सारा जीवन प्रमेश की दासी बन कर काट देगी. इसी मनमंथन में डूबी थी कि बाहर नातेरिश्तेदारों की हलचल सुनाई पड़ने लगी.
कल्पना के मामा रस्मोरिवाज के अनुसार उसे विदा करा ले गए. घर पहुंच कर कल्पना के मामा सुमित्रा से बोले, ‘‘दीदी, कल्पना ने तो सब का मन मोह लिया है. सब ने बडे़ प्रेम से इसे विदा किया. मेरे स्वागत- सत्कार में भी कोई कमी नहीं रखी. पैसे का घमंड उन्हें छू नहीं सका है. क्यों कल्पना बेटी, मैं गलत तो नहीं कह रहा?’’
कल्पना मानो नींद से जागी हो. वह अपने ही खयालों में डूबी थी. बनावटी हंसी हंस कर बोली, ‘‘हां मामाजी, आप सही कह रहे हैं.’’
इतना सुनना था कि सुमित्रा ने तो पूरे महल्ले में उस की ससुराल के बखान में खूब गीत गाए. जो कोई बेटी से मिलने आता उसी से आगे बढ़ कर वह बतातीं :
‘‘देखो, इतना बड़ा घर, जमीन- जायदाद पर घमंड छू नहीं गया है इस के ससुराल वालों को. मेरी बेटी को रानी की तरह सम्मान देते हैं. मुझ बेवा का उन्हें आशीर्वाद लगे कि वे दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें. चौधरीजी जबजब चुनाव लड़ें तबतब जीतें.’’
महल्ले में कभी कोई हंस कर कह देता, ‘‘कल्पना जैसी सुंदर लड़की पूरे महल्ले में नहीं है. इस का रूपरंग इसे इतने बडे़ घर में ले गया. इस मामले में चौधरीजी की तारीफ तो करनी ही पडे़गी क्योंकि दहेज के आगे लड़की के रूपगुण की कद्र आज के जमाने में कौन करता है. यह तो उन का बड़प्पन है.’’
छोटे भाईबहनों की जिद पर उस दिन कल्पना उन्हें घुमाने ले गई थी. एक दुकान पर आइसक्रीम खरीद रही थी कि पीछे से किसी ने उस की आंखों को हथेली से
ढांप कर उस से
पूछा, ‘‘पहचानो तो जानें?’’
यह सुरीली आवाज ज्यों ही कल्पना के कानों में पड़ी वह हंसते हुए बोली, ‘‘अच्छा, हाथ हटाओ. मैं ने तुम्हें पहचान लिया. तुम मधु हो.’’
मधु ने हाथ हटा लिया और खिल- खिला पड़ी.
‘‘आओ कल्पना, आइसक्रीम ले कर सामने वाले पार्क में बैठते हैं,’’ मधु ने कहा तो वे सब पार्क की ओर बढ़ गए.
कोमल हरी घास पर बैठते दोनों ने थोड़ी राहत की सांस ली. बच्चे पार्क में लगे झूले की तरफ बढ़ गए. मधु और कल्पना अकेले रह गईं.
मधु ने कल्पना के कंधों पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम खुश तो हो न?’’
‘‘हां,’’ कल्पना ने उपेक्षा से कहा.
‘‘इस संक्षिप्त उत्तर से मुझे यही लगता है कि तुम कुछ छिपा रही हो.’’
‘‘छिपाऊंगी भला क्यों,’’ हंसते हुए कल्पना बोली, ‘‘हो सकता है कि देखने वालों को खुश न लगती हूं क्योंकि नए लोगों के बीच में अपने को एडजस्ट करने में समय तो लगेगा ही. कहां हम साधारण लोग और कहां वे पैसे वाले.’’
मधु ने एक लंबी सांस खींची और कहा, ‘‘देखो कल्पना, समाज में आज भी औरत और पुरुष के लिए अलगअलग मापदंड हैं. जो चीज आदमी के लिए गर्व की बात हो सकती है वही औरत के लिए अवांछनीय…’’
क्षण भर को कल्पना कांप गई. वह जान गई कि मधु क्या कहना चाहती है. उस ने प्रत्यक्ष यही दर्शाया कि उसे अपने वैवाहिक संबंधों की चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं है. प्रमेश उस का पति है और वह उस की निंदा नहीं सुनना चाह रही थी. किंतु मधु उस की परेशानी समझ कर भी उसे सबकुछ बताने के लिए बेचैन थी इसीलिए कल्पना का हाथ मजबूती से पकड़ कर मधु बोली, ‘‘मैं तेरी सहेली हूं. तेरे दिल का हाल मुझ से छिपा नहीं है. प्रमेश नशे में धुत मुझे कल जिस होटल के कमरे में मिला था बस, तेरे ऊपर गालियों की बौछार कर रहा था. कह रहा था कि सुंदरता के जाल में बिना सोचेसमझे फंस गया. सोसाइटी में उस के परिवार की एक इमेज है, इस कारण परिवार वाले चुप हैं. पापा के मंत्री बनते ही कल्पना नाम का कांटा मैं अपने जीवन से निकाल फेंकूंगा और एक आजाद पंछी की तरह आकाश में उड़ता रहूंगा.’’
‘‘यह सुन कर मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘कल्पना कौन है?’ तो प्रमेश बोला, ‘तुम्हारी तरह एक कालगर्ल.’’’
क्षणभर को कल्पना का चेहरा स्याह हो गया. ढकीछिपी बात सामने वाले पर उजागर हो जाए तो व्यक्ति अपने को कटे पत्ते सा महसूस करने लगता है. यही हाल कल्पना का था. घर लौटी तो उस के चेहरे की बदली रंगत को देख सुमित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है…घूमने गई थी खुश होने के लिए या उदास होने को? तबीयत तो ठीक है न?’’
‘‘हां मां,’’ एक लंबी सांस खींच कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘मां, मैं ने नौकरी छोड़ कर ठीक नहीं किया.’’
सुमित्रा कल्पना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, तुम इतने बडे़ घर में ब्याही गई हो, तुम्हें अब क्या जरूरत है नौकरी की. मेरी दुकान भी अच्छीखासी चलती है. खाने व जीने भर को खूब मिल जाता है.’’
‘‘मां, मरे को गंगा किनारे फूंक कर लोग कथा सुनते हैं. तुम ने भी मुझे विदा कर यही किया होगा,’’ झुंझला कर कल्पना जाने क्या सोच यह कह गई.
‘‘यह क्या अंटसंट बक रही है? सभी बेटी विदा कर जो करते हैं वह मैं ने भी किया है तो इस में गलत क्या है?’’
कल्पना प्रथा व रीतिरिवाज पर बहुत कुछ बोलना चाह रही थी क्योंकि उस के भीतर एक झुंझलाहट थी जिसे वह किसी से बांट नहीं सकती थी पर बेटी को चुप देख कर मां बोलीं, ‘‘तुम्हारे ओवरटाइम को ले कर मैं आज बता रही हूं कि बहुत सशंकित थी पर आज लगता है कि मेरी शंका गलत थी और मेरी बेटी अपनी जगह सही थी.’’
यह सुन कर कल्पना भीतर तक हिल गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. अगले ही क्षण अपने को संभालते हुए उस ने बात बदल दी. यह सोच कर कि कहीं मां अपनी शंका उजागर कर उस के मुंह पर कीचड़ के काले धब्बे न देख लें.
3 माह गुजर गए. कल्पना को विदा कराने कोई नहीं आया. महल्ले की छींटाकशी व कानाफूसी जब सुमित्रा के कानों तक पहुंची तो उन्होंने खुद कल्पना के ससुराल फोन किया. फोन चौधरीजी ने खुद उठाया.
वह बोलीं, ‘‘भाई साहब प्रणाम. 3 महीने हो गए कल्पना को मायके आए. बेटी मां के घर पर बोझ नहीं होती पर विवाह के बाद वह अपने घर ही शोभा देती है.’’
चौधरीजी ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘बहनजी, प्रमेश तो साल भर के लिए ट्रेनिंग पर गया है. सोचा, बहू का मन अकेले क्या लगेगा?’’
‘‘पर लोग तो तरहतरह की बातें कर रहे हैं.’’
‘‘जनताजनार्दन की बात है तो कुछ सोचना पडे़गा.’’
‘‘आप कहें चौधरीजी तो कल्पना के मामा खुद ही छोड़ जाएं,’’ शीघ्रता से सुमित्रा बोलीं.
चौधरीजी ने ‘ठीक है’ कह कर फोन काट दिया.
आगे पढें- विधानसभा के चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी थी. चौधरीजी के…