2 हसीनाओं के साथ ठुमके लगाएगा वनराज तो बेटे संग मिलकर अनुपमा ने की मस्ती, देखें वीडियो

टीआरपी चार्ट्स में सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupmaa) इन दिनों धमाल मचा रहा है, जिसका कारण शो के कलाकारों की मेहनत और मेकर्स द्वारा लाए गए ट्विस्ट हैं. हालांकि आने वाले दिनों में शो की कहानी मजेदार ट्विस्ट लेने वाली हैं, जिसमें अनुपमा के बरसों पुराने प्यार की एंट्री होगी. वहीं शो के कलाकार आने वाले ट्विस्ट के बीच मस्ती करते नजर आ रहे हैं, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

काव्या ने वनराज संग लगाए ठुमके

दरअसल, हाल ही में मिथुन च्रकवर्ती (Mithun Chakraborty) की बहू और सीरियल अनुपमा में काव्या का रोल निभा रहीं मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) ने ‘Don’ Rush’ गाने पर डांस से धमाल मचाते हुए एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उनका साथ वनराज यानी सुधांशु पांडे और किंजल दे रही हैं. दोनो की यह वीडियो फैंस को काफी पसंद आ रही है.

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अनुपमा भी नहीं हैं पीछे

राजन शाही (Rajan Shahi) के सीरियल अनुपमा के सेट पर रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) अपने ऑनस्क्रीन बेटे समर यानी पारस कलनावत संग जमकर धमाल मचाते हुए नजर आए. होली शूटिंग के दौरान दोनों जहां डांस करते दिखे तो वहीं एक दूसरे को छोड़ते हुए भी नजर आए.

सीरियल में आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल के सेट पर मस्ती के बीच अनुपमा की कहानी में भी नया मोड़ आएगा. दरअसल, शो में होली के दौरान काव्या, वनराज को रंग लगाने के लिए शाह हाउस में कदम रखेगी. हालांकि पहला रंग गलती से अनुपमा वनराज के लगा देगी, जिसके बाद काव्या का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगी. इसी बीच शो में अनुपमा के पुराने प्यार की एंट्री होगी, जो तलाक के बाद अनुपमा की कहानी को नया मोड़ देता नजर आएगा.

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कहीं आप हाइपर लोर्डोसिस के शिकार तो नहीं 

महिलाओं ने सालों से सुन्दरता को बनाये रखने के लिए अपने शरीर और केशों का प्रयोग किसी न किसी रूप में किया है. इसके लिए वे अपनी शारीरिक कष्ट को नहीं, बल्कि सुन्दरता के पैमाने को अधिक महत्व दिया है. ये केवल भारत में नहीं, बल्कि विश्व की सभी देशों में किसी न किसी रूप में देखने को मिलता है. चीन में ‘फुट बाइंडिंग’ की प्रथा सालों पहले थी, जहाँ छोटे पांव वाली महिलाओं को सुंदर माना जाता था, इसलिए लड़कियां अपने पांव के साइज़ से आधी साइज़ के जूते पहना करती थी, जिसके लिए छोटी उम्र से उनके पांव को बैंडेज से लपेट कर छोटे शूज पहनाये जाते थे, हालाँकि बाद में इस पर बैन लगा दिया गया है, क्योंकि इससे कई शारीरिक समस्याएं महिलाओं को होने लगी थी. फिर भी कुछ महिलाएं आज भी चोरी-छुपे फुट बाइंडिंग करवाती है, क्योंकि उन्हें ये पसंद है. इतना ही नहीं अफ्रीका और म्यांमार की महिलाएं अपनी गर्दन की सुन्दरता को बढाने के लिए छोटी उम्र से नेक रिंग पहनाती है, ताकि उनके गर्दन स्ट्रेच होकर पतली हो जाय और उसका नाम खूबसूरत महिलाओं की श्रेणी में आ जाय और उन्हें अच्छा पार्टनर मिले.  

 कुछ इसी तरह विश्व की सुंदरियां और मॉडल्स भी रैंप पर वाक करते समय या किसी अवार्ड शो में भाग लेते समय अपने  ‘बैक बटक्स’ को हाईलाइट कर चलती है, क्योंकि ये लुक उन सुन्दरियों या मॉडल्स के लिए सैक्सी और सुन्दर होने का प्रतीक है. कई देशों में ‘बटक्स’ को हाईलाइट करने के लिए कॉस्मेटिक ब्यूटी का सहारा लिया जाता है, जिसमे एक इंजेक्शन के द्वारा ‘बटक्स’ को हाईलाइट कर दिया जाता है. इसे अफ्रीका से लेकर अमेरिका, यूरोप, भारत आदि सभी देशों की महिलाएं सैक्सी मानती है, लेकिन अधिक दिनों तक गलत पोस्चर के साथ रहने पर कई प्रकार के बैक पैन, कमर दर्द, स्लिप डिस्क आदि की समस्या हो सकती है.

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इस बारें में मुंबई की अपोलो स्पेक्ट्रा के इंटरवेंशनल स्पाइन & पैन मेनेजमेंट स्पेशलिस्ट डॉ. कैलाश कोठारी कहते है कि शरीर में कुछ जगहों पर नार्मल कर्व होते है, नेक की कर्व आगे की तरफ होती है, जबकि कॉनकेव पीछे की तरफ होती है. इसके अलावा चेस्ट वाली हड्डी को काइफोसिस और सरवाईकल वाली कर्व को लोर्डोसिस कहते है, लेकिन जब मॉडल्स और एक्ट्रेसेस जरुरत से अधिक हाई हील पहनती है या वेट लॉस पर अधिक ध्यान देती है, तो उनके कर्व नार्मल से एक्सेस हो जाती है. उसे ही हाइपर लोर्डोसिस कहते है, जिसमें जरुरत से अधिक कर्व होता है. ये कर्व कई बार अधिक मोटापे की वजह से भी होता है, क्योंकि फैट सेल्स अधिकतर लोअर बैक पोर्शन में जमा हो जाते है. कई बार किसी-किसी में कर्व कम भी होता है, उसे लॉस ऑफ़ लोर्डोसिस कहते है. बैक मसल्स के कमजोर हो जाने पर मांसपेशियों में ऐठन, स्लिपडिस्क या आर्थराइटिस की वजह से होता है, ऐसे में वे मसल्स हड्डियों को खीच लेते है. नार्मल कर्व लॉस हो जाती है. किसी प्रकार की गलत संरचना शरीर में होने पर महिला में होने पर उसे ठीक करना जरुरी है. बैक बटक्स को ऊँचा कर चलना गलत स्ट्रक्चर का प्रतीक है, सुन्दरता नहीं. नियमित इसी तरह चलने से स्पाइन का शेप भी वैसा हो जाता है, हाईपर लोर्डोसिस में कर्व पीछे की तरफ अधिकतर लोअर बैक में होता है. हाइपर लोर्डोसिस और लॉस ऑफ़ लोर्डोसिस दोनों ही स्पाइन के नार्मल कंडीशन नहीं होते. ये जन्म से नहीं बल्कि, बाद में गलत पोस्चर, विटामिन की कमी या किसी प्रकार की इंज्यूरी से होती है. ये ब्यूटी किसी भी हालत में नहीं है पर ऐसे चलने पर महिला सुंदर दिखती है, इसलिए इसे सभी फोलो करते रहते है. हाइपर लोर्डोसिस में टाइट और टेन्स मसल्स शरीर के अग्रिम भाग में होता है और वीक मसल्स बैक की तरफ होता है. ऐसी कर्वेचर से महिलाओं के स्पाइन, कमर, घुटने और बैक पोर्शन में दर्द, आर्थराइटिस आदि बढ़ जाती है. उम्र के बढ़ने के साथ-साथ ये समस्याएं भी विकसित हो जाती है. 

इसके आगे डॉक्टर कैलाश कहते है कि इस पोस्चर में लगातार रहने पर ही इसका प्रभाव पता चलता है, क्योंकि ये स्लो पाइजन का काम करती है. लगातार हाई हील पहनना और गलत पोस्चर में चलने से ये समस्या आती है. कई बार ये समस्या एक साल बाद तो कई बार 6 साल या 10 साल बाद भी होता है. उम्र के साथ हड्डियों, स्पाइन, और शरीर का डिजनरेशन होता रहता है,जिससे आर्थराइटिस प्रॉब्लम, मसल्स स्टिफनेस, घुटनों में समस्या आदि होने लगती है. कई बार यंग मॉडल्स में भी स्पोंडीलाईटिस की समस्या होती है. 

हाइपर लोर्डोसिस होने पर आदतों को बदलना पड़ता है. कुछ स्पेशल व्यायाम करना पड़ता है, फिजियोथेरेपी की सहायता से उनके मसल्स को मजबूती दी जाती है, इससे स्पाइन धीरे-धीरे अपने पोस्चर में आ जाता है. जितना समय व्यक्ति अपने पोस्चर को बिगाड़ने में लगाया है उतना ही समय उसे ठीक करने में भी लगता है.

इसके आगे डॉक्टर कहते है कि ब्यूटी को लेकर किये गए प्रयोग को महिलाएं छोड़ नहीं सकती, इसलिए कुछ बातें एक्ट्रेसेस और मॉडल्स को ध्यान में रखने की जरुरत है. हाई हील पहनने वालों के एड़ी और पाँव ऊपर की तरफ होते है, जिससे घुटनों की हड्डियाँ घूम जाती है और घुटनों पर इसका प्रभाव सीधा पड़ता है. इससे लिगामेंट इंज्यूरी, स्प्रेन, एन्केल स्वेलिंग और ओस्टो आर्थराइटिस हो सकती है. इसके अलावा कई महिलाएं पांव पर इंज्यूरी होने पर भी हील पहनती रहती है. क्रोनिक प्रॉब्लम अलग होती है. पांव के हिसाब से छोटे जूते पहनने पर प्लान्टर फेसियाटिस यानि पैर के नीचे के भाग की फेसिया में इन्फ्लेमेशन हो जाता है और ये सालो साल तक चलता है.

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अपने अनुभव के बारें में डॉ. कैलाश कहते है कि कई एक्ट्रेसेस और मॉडल्स मेरे पास गर्दन दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द की शिकायत लेकर आती है, लेकिन वे बहुत देर से मेरे पास आती है, क्योंकि हड्डी की कोई समस्या शुरू में पता नहीं चलता. कुछ समय गुजर जाने के बाद वे डॉक्टर्स के पास आती है, ऐसे में उन्हें फिजियोथेरेपी, रेडियो फ्रीक्वेंसी ऑपरेशन और दवा आदि कई प्रकार के इलाज से ठीक किया जाता है. गलत पोस्चर से निकलने के कुछ सुझाव निम्न है,   

  • हाई हील को स्पेशल अवसर के लिए रखें, ताकि किसी प्रकार की समस्या बाद में न हो. स्पेशल पार्टी या अवसर पर पहुंचकर ही हील पहने. मॉडल और एक्ट्रेसेस को इसे फोलो करना बहुत आवश्यक है. बाकी समय में फ्लैट चप्पल या शूज पहने. डेढ़ इंच से अधिक हील पहनने से बचे. डेढ़ इंच की हील से पोस्चर ख़राब नहीं होगा.
  • हाइपर लोर्डोसिस की शिकार महिलाओं को नियमित स्ट्रेच करना, योगा, लोअर बॉडी वर्कआउट, मसल्स बिल्डिंग आदि करें, तो उसे ठीक किया जा सकता है. 
  • जितना हो सके सही पोस्चर में चलने की कोशिश करें. 
  • वजन न बढे इसका ख्याल रखे, संतुलित भोजन लें.
  • विटामिन की कमी न हो इसकी जाँच समय-समय पर करवाते रहे. 

Holi Special: मीठे में बनाएं गुलाबी बादाम पिस्ता पार्सल

भारतीय पर्वों में मीठे के बिना त्यौहारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती. पर्व हो या कोई खुशी की बात मुंह मीठा कराना तो हमारी परंपरा है. त्यौहारों पर बाजार में मिलने वाली मिठाईयों में मिलावट होने का अंदेशा होता है इसलिए बेहतर है कि घर पर ही थोड़ी सी मेहनत करके स्वादिष्ट और सेहतमंद मिठाईयां बनाई जाएं. होली रंगों का त्यौहार है तो मिठाइयों में भी रंगीनियत होनी चाहिए. इसीलिए आज हम आपको गुलाबी रंगत लिए गुलाबी बादाम पिस्ता पार्सल बनाना बता रहे हैं जिसे बनाना तो बहुत आसान है ही साथ ही यह खाने में भी बेहद स्वादिष्ट है. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोंगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री (कवर के लिए)

मैदा 2 कप
रवा 1/4 कप
बेकिंग सोडा 1/8 टीस्पून
घी 1/2 कप
चुकन्दर ज्यूस 2 कप
तलने के लिए घी

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सामग्री(भरावन के लिए)

मावा 250 ग्राम
किसा नारियल 1 टेबलस्पून
दरदरे बादाम 1/2 कप
दरदरे पिस्ता 1/2 कप
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
शकर 1 टेबलस्पून
चाशनी के लिए शकर 1 कप

विधि

एक पैन में पिस्ता और बादाम को हल्का सा रोस्ट करके एक प्लेट में निकाल लें. अब इसी पैन में मंदी आंच पर हल्का भूरा होने तक मावे को भून लें. मावे के ठंडा होने पर किसा नारियल, बादाम, पिस्ता, इलायची पाउडर और पिसी शकर भली भांति मिलाकर भरावन तैयार कर लें.
मैदा, सूजी, बेकिंग पाउडर और घी को हाथ से मसलकर मिलाएं. आधा कप चुकन्दर के जूस की मदद से पूरी जैसा कड़ा मैदा गूंथ लें. इसे साफ सूती कपड़े से ढककर आधे घण्टे के लिए रख दें. आधे घण्टे बाद मैदा को दो भागों में बांट लें. एक लोई से चकले पर बड़ी रोटी जैसा बेलकर 2 इंच के चौकोर टुकड़े काट लें. एक कटोरी में 1 टीस्पून मैदा और 2 टेबलस्पून पानी मिलाएं. अब एक चौकोर टुकड़े के बीच में एक चम्मच मिश्रण रखें. किनारों पर मैदे का घोल लगाएं और ऊपर से दूसरा चौकोर टुकड़ा रखकर चारों तरफ से चिपका दें. पार्सल के किनारों को कांटे से हल्के से दबा दें. इसी प्रकार सारे पार्सल तैयार कर लें. अब इन्हें गरम घी में मंदी आंच पर भूरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें.चुकन्दर के ज्यूस में शकर मिलाकर एक तार की चाशनी बनाएं. तले गर्म गर्म पार्सल को गुलाबी चाशनी में 2 से 3 मिनट डुबोकर निकाल लें. ठंडा होने पर प्रयोग करें.

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मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है, इससे छुटकारा पाने का उपाय बताएं?

सवाल-

मैं 53 वर्षीय सिंगल मदर हूं. मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहती हूं कि बिना सर्जरी के क्या घुटनों के दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब-

घुटनों में दर्द, कड़ापन और मूवमैंट प्रभावित होने के कारण जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है लेकिन कई लोग लंबे समय तक इन परेशानियों को सहते रहते हैं. उन्हें लगता है कि इन सब से छुटकारा पाने का केवल एक ही विकल्प है, नी रिप्लेसमैंट सर्जरी. लेकिन यह जानना जरूरी है कि सर्जरी एकमात्र और अंतिम विकल्प नहीं है. कई नौन सर्जिकल उपचार भी उपलब्ध हैं, जैसे फिजियोथेरैपी, दवाइयां, इन्जैक्शन, नए बायलौजिकल उपचार, जिन में ह्यालुरोनिक इंजेक्शन और पीआरपी जैसे प्राकृतिक उपचार भी शामिल हैं. सर्जरी का विकल्प तब चुना जाता है जब नौनसर्जिकल उपचारों से मरीज को आराम नहीं मिलता है.

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डॉक्टर अतुल मिश्रा, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा

कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान गठिया के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को घुटने के दर्द से अधिक समस्या हुई है.

घुटनों और जोड़ों के दर्द के कारण उन्हें चलनेफिरने और खासतौर पर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है. घुटनों में दर्द का मुख्य कारण गठिया है और इसके लिए उठनेबैठने का तौर तरीका भी काफी हद तक जिम्मेदार है. नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं.

भारत के लोगों में घुटने मोड़ कर और पालथी मार कर बैठने की अक्सर आदत होती है. सामूहिक भोजन करना हो, घर के कामकाज करने हो या आपस में बातें करनी हों-इन सभी कामों में महिलाएं घुटने मोड़ कर ही बैठती है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने की यह शैली हमारी आदतों में शुमार हो गई है और इस आदत के कारण यहां लोग कुर्सी, सोफे या पलंग पर भी घुटने मोड़ कर बैठना पसंद करते हैं. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है जिससे कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है. हालांकि इस के असर तुरंत नहीं दिखते लेकिन उम्र बढ़ जाने पर घुटने की समस्या हो जाती है.”

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बैठने का तरीका दे सकता है घुटने का दर्द

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Holi Special: ऐसे करें फटाफट घर को क्लीन

क्या आपके मन में कभी यह खयाल नहीं आया कि काश आपका घर भी किसी महल जैसा चमकता रहे. अगर आप सफाई करते समय कुछ बातों का ध्यान रखेंगी तो आपका घर भी उतना ही साफ रहेगा, जितने  होटल और महल रहते हैं. कुछ आसान टिप्स आपके घर को महल जैया सुंदर और साफ-सुथरा बनाने में आपकी मदद करेंगे.

1. क्लीनिंग प्लान बनाएं

सफाई करते समय आपको वैज्ञानिक सोच अपनाने की जरूरत होती है. आपके घर में जितने भी कमरे हैं, उनमें सामान के अनुसार प्लान ऑफ अटैक बनाएं. अगर आपको पता होगा कि आप क्या साफ करने जा रही हैं और किस क्रम में तो आपका न केवल समय बचेगा, बल्कि आप कई स्टेप्स दोहराएंगी भी नहीं. इसलिए सफाई की शुरुआत से पहले क्लीनिंग चेकलिस्ट बनाएं और उस पर अमल करें.

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2. ऊपर से शुरू करें

आपको कमरे की सफाई हमेशा ऊपर से नीचे की ओर करनी चाहिए. धूल नीचे गिरती है और आप कभी नहीं चाहेंगी कि कमरे के नीचे वाले हिस्से की सफाई आपको फिर से करनी पड़े.

3. फर्नीचर को भूल न जाना

ज्यादातर महिलाएं फर्श, खिड़कियों जैसी चीजों पर ही फोकस करती हैं और सोफा व दूसरे फर्नीचर भूल जाती हैं. आप हर फर्नीचर की सफाई अच्छी तरह से वैक्यूम क्लीनर से करें. धूल-मिट्टी के कण सोफे का कपड़ा खराब कर सकते हैं.

4. बिस्तर बचाएं

गद्दों के ऊपर कवर या फिर मैट्रेस प्रोटेक्टर्स लगाकर रखें. इससे गद्दे न केवल साफ रहते हैं, बल्कि ज्यादा चलते भी हैं. अगर बिस्तर पर कुछ गिर जाए तो सीधे गद्दों पर दाग नहीं लगता. कवर आप समय-समय पर साफ करती रहें. इससे एलर्जी की आशंका भी नहीं रहेगी. ऐसा ही तकियों के साथ भी करें. तकियों को हमेशा कवर चढ़ा कर रखें. कवर चेन वाले हों तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

5. बल्ब की सफाई जरूरी

कमरे में मौजूद हर बल्ब की सफाई नियमित रूप से करें. सफाई करने से पहले उन्हें बंद कर दें और फिर उन्हें ठंडा होने दें. इससे बिजली की भी बचत होगी.

6. प्रोजेक्ट पर फोकस

कुछ चीजें आप रोज साफ नहीं करतीं, इनका नंबर कई-कई दिनों में आता है. चूंकि ये चीजें रोज-रोज साफ नहीं होतीं इसलिए जब नजर आती हैं तो बहुत गंदी नजर आती हैं और इन्हें साफ करना सिर दर्द लगता है. ऐसी चीजों के लिए एक मासिक कलेंडर बनाएं. जैसे एक दिन आप कमरों के पंखों के लिए रखें और एक दिन लैंप शेड्स की सफाई के लिए. हर काम के लिए रोज 15 मिनट का वक्त निर्धारित कर लें. ऐसा करने से आपका घर हमेशा साफ-सुथरा लगेगा और जब अगली दिवाली आएगी तो भी सफाई को लेकर कोई तनाव महसूस नहीं होगा और न ही किसी चीज को साफ करने की खास जरूरत होगी.

7. उपकरणों की देखभाल करें

कमरे की साफ-सफाई सर्वोच्च प्राथमिकता है, लेकिन सफाई के काम आ रहे उपकरणों को कभी न भूलें. याद रखें, अच्छे से अच्छा वैक्यूम क्लीनर भी बंद पड़ सकता है. हर महीने अपने वैक्यूम क्लीनर को जांचें और उसके ब्रश साफ करें. जो भी क्लीनर आप इस्तेमाल कर रही हैं, उनकी एक्सपायरी डेट देखें.

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8. खिड़कियां खोलें

जब भी कमरे की सफाई करें, जहां तक संभव हो, प्राकृतिक रोशनी का इस्तेमाल करें. अगर आप साफ-सफाई में रसायनों का इस्तेमाल कर रही हैं तो हवा का अंदर-बाहर आना-जाना बहुत जरूरी है. फिर ऐसा करना पर्यावरण के लिए भी अच्छा है.

9. रसायन सावधानी से

अलग-अलग तरह के क्लीनर इस्तेमाल कर रही हैं तो क्लीनर आपस में न मिलाएं. कुछ क्लीनर आपस में हानिकारक रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे उनसे जहरीली गैस निकलती है. अलग-अलग क्लीनर के लिए अलग-अलग कपड़ा लें.

मुझे फ्लाई करना बहुत  पसंद है- मेघा सिंघानिया

मेघा सिंघानिया, हैड, कैबिन क्रू डिपार्टमैंट, एअर एशिया, इंडिया.

एअर एशिया इंडिया के कैबिन क्रू डिपार्टमैंट की हैड मेघा सिंघानिया की शख्सियत अनूठी है. 10 साल से अधिक ऐविएशन इंडस्ट्री में काम करने वाली मेघा को हमेशा चुनौतियां पसंद हैं.

मेघा से उन की सफल जर्नी और काम की चुनौतियों के बारे में हुई बात के कुछ अंश पेश हैं:

ऐविएशन के क्षेत्र में आने की वजह क्या है?

मुझे शुरू से शो विज वाले काम पसंद हैं. मसलन, ग्रूमिंग करना, कोचिंग करना और सेवा उद्योग आदि. मैं इन तीनों क्षेत्रों में काम करना चाहती थी और हमेशा कुछ अलग करने की इच्छा रही है ताकि सामने वालों को चुनौती दे सकूं. 2004 में मिस इंडिया के इवेंट में 30 महिलाओं के साथ फाइनल राउंड तक पहुंचना मेरे लिए एक बड़ी बात थी.

इस के बाद लोग मुझे पहचानने लगे और मुझे एअर एशिया में काम करने का मौका मिला. यहां मैं ने जाना कि एअरलाइंस सिर्फ रोजगार ही नहीं देतीं, बल्कि उन में बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिलता है. 10 साल यहां काम करने के बाद पता चला ग्लैमर, कोचिंग और सर्विस यहां है. यहां काफी कुछ सीखने के अलावा अच्छी ग्रोथ भी होती है. यहां मैं करीब 700 लड़कों और लड़कियों को ट्रेनिंग देती हूं और यह काम करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगता है.

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इस क्षेत्र में चुनौतियां कितनी हैं और उन से कैसे निकलीं?

शुरू में मैं ने भी कैबिन कू्र की तरह काम किया और काम को समझ, क्योंकि घर पर काम करना और हवाईजहाज में काम करने में बहुत अंतर है, क्योंकि यहां अलगअलग जगहों से अलगअलग स्वभाव और मानसिकता के लोग आते हैं. ऐसे में सर्विस को संभाल कर बात करना पड़ता है, जो आसान नहीं होता. लोगों में यह धारणा है कि कैबिन क्रू सजधज कर सिर्फ खाना परोसतीं और सामान रखती हैं, जबकि यहां फार्स्ट ऐड, सैफ्टी, सिक्यूरिटी आदि सब उन्हें सीखना पड़ता है.

वे एक फायर फाइटर का काम करती हैं, क्योंकि इमरजैंसी में उन्हें सही निर्णय लेना पड़ता है. इस के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग भी होती है. नई चीजों को सीखने के बाद मेरी आंखें खुलीं और मैं ने पाया कि एक यूनिफौर्म के अंदर कितनी सारी यूनिफौर्म होती हैं और इस का भार कैबिन क्रू पर भी बहुत होता है.

मेरे सामने कई बार चुनौतियां आईं, पर कंपनी ने बहुत साथ दिया. असल में फ्लाइट पर जाने में अच्छा लगता है और जब यात्रियों को उन के गंतव्य स्थल तक पहुंचा दिया जाता है, तो खुशी मिलती है.

क्या कभी आप को ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ा?

ऐविएशन इंडस्ट्री में ऐसी बात नहीं है, क्योंकि पायलट, इंजीनियर, गैस्ट सर्विस औफिसर, कैबिन क्रू आदि सब जगह महिलाएं काम कर रही हैं. यह इंडस्ट्री सर्विस रिलेटेड है, इसलिए यहां महिलाओं को ही अधिक प्राथमिकता दी जाती है. यहां कोई समस्या महिलाओं के प्रमोशन को ले कर नहीं होती. यहां महिलाएं पुरुषों की तुलना में 3 गुना ज्यादा हैं.

क्या महिलाओं के लिए इस फील्ड में कैरियर बनाना मुश्किल है?

मुश्किल नहीं, पर चैलेंजेस हैं, क्योंकि यह काम शिफ्ट में होता है, इसलिए सुबह, रात या दिन में ड्यूटी होती है, लेकिन मन बना लेने से काम करना आसान हो जाता है. इस क्षेत्र में किसी भी उम्र की महिलाएं अगर फिट है, तो काम कर सकती है. यहां महिलाओं को मैटरनिटी लीव भी दी जाती है.

कोविड 19 के समय में टीम को लीड करना कितना मुश्किल था?

टीम में कुछ लोगों का औफिस एअरक्राफ्ट है, क्योंकि वे रोज फ्लाई करते रहते हैं. कोविड-19 के समय उन लोगों को एअरक्राफ्ट से अलग कर लौकडाउन में घर पर बैठा दिया गया. यहां काम करने वाले कैबिन क्रू 18 से 25 वर्ष के बीच के होते हैं. घर पर बैठना उन के लिए मुश्किल था. वे अपने घर भी नहीं जा सकते थे, क्योंकि फ्लाइट्स बंद थी.

उस समय उन्हें सहयोग करना बहुत जरूरी था, क्योंकि ये सारे यंग हैं और काम न होने की वजह से घबराने लगे थे. इस के लिए मैं ने ट्रेनिंग की व्यवस्था की. रोज उन से बात करना, उन का हालचाल पूछना आदि करती थी. इस के अलावा कोविड की सारी जानकारी वर्चुअली दी गई ताकि वे पैनिक न हो जाए. उन के पेरैंट्स यहां नहीं थे, ऐसे में टीम को रोज मोटिवेशन देना पड़ता था. मानसिक रूप से मुझे उन का साथ देना पड़ा.

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कोरोना के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? क्या आप घर जा पाती थीं और यदि हां तो घर वालों की प्रतिक्रिया क्या होती थी?

कोरोना के दौरान पहले लौकडाउन हुआ, फिर औफिस खुला भी तो बहुत सारी रिस्ट्रिकशन थीं. घर से निकलने के बाद और औफिस से निकल कर घर पहुंचना एक चुनौती थी. औफिस में हर तरह की सावधानी बरती जा रही थी, इसलिए वहां काम करना मुश्किल नहीं था.

इस के अलावा हमें घर से काम करने की भी अनुमति दी गई थी. मैं औफिस अपनी गाड़ी से जाती थी और उसे दिन में कई बार सैनिटाइज करती थी. घर पहुंचने पर अपना सामान अलग रख कर उसे सैनिटाइज करना, नहाना आदि करना पड़ता था. इस के अलावा मैं ने एक औक्सिमीटर भी अपने पास रख लिया था, जिस से मैं अपना औक्सीजन लेवल देखती थी, 94 से नीचे होने पर डाक्टर से कैसे मिलना है, इस की जानकारी भी दे दी गई थी.

घर वालों ने मेरा बहुत साथ दिया है,  क्योंकि उन्हें पता है कि मैं ऐविएशन में हूं. उन्हें पता है कि मेरा रूटीन घर पहुंचने के बाद कैसा रहता है. मैं ने खुद सीख कर घर वालों को भी सिखा दिया था.

नई जिंदगी: भाग 2- हालात की मारी कौलगर्ल बनी कल्पना की क्या थी असलियत

मां के कहे को अनसुना करते हुए कल्पना बीच में बोली, ‘‘सारे दिन हाथ में डंडा घुमाओ या फिर सलाम ठोंको. इस के अलावा सिपाही का कोई काम नहीं. किसी ताकतवर अपराधी को पकड़ लो तो उलटे आफत. किसी की शिकायत अधिकारी से करने जाओ तो वह ऐसे देखता है मानो वह बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो और फिर इस की भी कीमत मांगता है. तुम से क्या बताऊं, मां, इन अधिकारियों के कारण ही तो मैं…’’

आवेश में कहतेकहते कल्पना की जबान एकदम से रुक गई फिर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘जीनेखाने की कीमत चुकानी पड़ती है. तुम जाओ मां, मैं आज कुछ भी नहीं खाऊंगी. मुझे भूख नहीं है.’’

कहते हैं न कि चोर जब तक पकड़ा नहीं जाता चोर नहीं कहलाता. लोग गलत काम करने से उतना नहीं डरते जितना समाज में होने वाली बदनामी से डरते हैं. समाज के सामने यदि सबकुछ ढकाछिपा है तो सब ठीक. अपनी नजर में अपनी इज्जत की कोई परवा नहीं करता. सुमित्रा अपनी बेटी के दफ्तर व वहां के काम के ढंग से वाकिफ थीं इसलिए उन्होंने निष्कर्ष यही निकाला कि बेटी सयानी है, उस की जितनी जल्दी हो सके शादी कर देनी चाहिए.

सुमित्रा को अब किसी सहारे की जरूरत नहीं थी क्योंकि उन की अपनी दुकान अच्छी चलने लगी थी. बेटी अपने घर चली जाए तो वह एक जिम्मेदारी से छुटकारा पा सकें, यही सोच कर उन्होंने कुछ लोगों से कल्पना के विवाह की चर्चा की. चूंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक होने के बाद वे भी अब सुखदुख के साथी बने खडे़ थे जो तंगी के समय उस के घर की ओर देखते भी नहीं थे. अब खतरा नहीं था कि सुमित्रा अपना दुखड़ा सुना कर उन से अपने लिए कुछ उम्मीद कर सकती हैं. अब कुछ देने की स्थिति में भी वह थीं.

सुमित्रा के बडे़ भाई एक रिश्ता ले कर आए थे. अच्छे खातापीता परिवार था. जमीनजायदाद काफी थी. लड़के के पिता कसबे के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में थे और उन की राजनीतिक पहुंच थी. कल्पना की सुंदरता से प्रभावित हो कर वह यह शादी 1 रुपए में करना चाहते थे. दहेज न ले कर वह चाहते थे लाखों लोगों की वाहवाही व प्रचार, क्योंकि उन की नजर अगले विधानसभा चुनाव पर टिकी थी और सुमित्रा जैसी विधवा दर्जी की सिपाही बेटी के साथ अपने बेरोजगार बेटे का विवाह कर वह न केवल एक विधवा बेसहारा को धन्य कर देना चाहते थे बल्कि उस पूरे इलाके में वाहवाही पाना चाहते थे.

कल्पना का विवाह हो गया. सुमित्रा ने राहत की सांस ली. बेटी के पांव पूज वह अपने को धन्य मान रही थीं. बेटी को विदा करते समय सभी बड़ीबूढ़ी व खुद सुमित्रा उसे समझा रही थीं कि अब वही तुम्हारा घर है. सुख मिले या दुख सब चुपचाप सहना. मां के घर से बेटी की डोली उठती है और पति के घर से अर्थी.

कल्पना की सुहागरात थी. फूलों से महकते कमरे में एक विशेष मादकता बिखरी थी. वह डरीसहमी सेज पर बैठी थी. तमाम कुशंकाओं से उस का जी घबरा रहा था. एक तरफ खुशी तो दूसरी तरफ भय से शरीर में विचित्र संवेदना हो रही थी. नईनवेली दुलहन जैसी उत्तेजना के स्थान पर आशंकित उस का मन उस सेज से उठ कर भाग जाने को कर रहा था. वह अजीब पसोपेश में पड़ी थी कि उस के पति प्रमेश ने कमरे में प्रवेश किया. वह बिस्तर पर सिकुड़ कर बैठ गई और उस का दिल जोर से धड़कने लगा. चेहरे पर रक्तप्रवाह बढ़ जाने से वह रक्तिम हो उठा था. इतने खूबसूरत तराशे चेहरे पर पसीने की बूंदें फफोलों की तरह जान पड़ रही थीं.

प्रमेश ने जैसे ही घूंघट उठाया और दोनों की नजरें मिलीं वह सकते में आ गया. उस का हाथ पीछे हट गया. उस ने कल्पना को परे ढकेलते हुए कहा, ‘‘ऐसा लगता है हम पहले भी कहीं मिल चुके  हैं.’’

‘‘मुझे याद नहीं,’’ कल्पना ने धीमे स्वर में कहा.

क्रोध के मारे प्रमेश की मांसपेशियां तन गईं. उस के माथे पर बल पड़ गए और होंठ व नथुने फड़कने लगे. शरीर कांपने से वह उत्तेजित हो कर बोला, ‘‘तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हें सब अच्छी तरह से याद है.’’

कल्पना को जिस बात का भय था वही हुआ. प्रमेश के हावभाव को देखते हुए वह अब अपने को संयत कर चुकी थी. आने वाले आंधी, तूफान व बाढ़ से सामना करने की शक्ति उस में आ गई थी. वह इस सच को जान गई थी कि अब उसे सच के धरातल पर सबकुछ सहना, झेलना व पाना था.

प्रमेश उस के चेहरे को गौर से देखते हुए आगे बोला, ‘‘तुम कालगर्ल हो. स्त्री के नाम पर कलंक. इतना बड़ा धोखा मेरे परिवार के साथ करने की तुम्हारे घर वालों की हिम्मत कैसे हुई? मैं अभी जा कर सब को तुम्हारी असलियत बताता हूं.’’

यह कह कर प्रमेश ने जैसे ही उठने का उपक्रम किया, कल्पना दोनों हाथ बंद दरवाजे पर रख कर सामने खड़ी हो गई और बोली, ‘‘पहले आप मेरी मजबूरी भी सुन लीजिए फिर आप को जो भी फैसला लेना है, लीजिए. मेरा जीवन तो तबाह हो गया जिस की आशंका से मैं कुछ पल पहले तक बहुत विचलित थी. कम से कम अब उस दशा से मुझे मुक्ति मिल गई है. मेरे गले में मेरा अतीत फांस की तरह गड़ रहा था. अफसोस है कि ऐसा कुछ मैं ने शादी की स्वीकृति देने से पहले यदि महसूस किया होता तो आज यह दिन मुझे न देखना पड़ता.

‘‘हर युवा लड़की के दिल में अरमान होते हैं कि उस का एक घर, पति व परिवार हो और यह भावना ही मेरे जीवन की ठोस धरती पर ज्यादा प्रबल हो गई थी, नहीं तो मुझे क्या अधिकार था किसी को धोखा देने का.’’

कल्पना एक पल को रुकी. उस ने प्रमेश को देखा जिस के चेहरे पर पहले जैसी उत्तेजना नहीं थी. वह आगे बोली, ‘‘यह सच है कि मैं कालगर्ल का धंधा करती थी लेकिन यह भी सच है कि मैं कालगर्ल स्वेच्छा से नहीं बनी बल्कि मेरे हालात ने मुझे कालगर्ल बनाया. जब मुझे सिपाही की नौकरी मिली तो मैं बहुत खुश थी. एक दिन मेरे अधिकारी ने मुझे बुलाया और पूछा कि तुम्हारा जाति प्रमाणपत्र कहां है. यदि तुम ने फौरन जाति प्रमाणपत्र नहीं जमा किया तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. नौकरी जाने का भय मुझ पर इस कदर हावी था कि मैं घबराहट में समझ न सकी कि क्या करूं.

‘‘मेरा जन्म बिहार में हुआ था. वहां आनेजाने में लगभग एक सप्ताह लग जाता. फिर जाते ही प्रमाणपत्र तो नहीं मिल जाता. मेरी आंखों के सामने मेरे छोटे भाईबहन व मां के उम्मीद से भरे चेहरे घूम गए, जिन्हें मेरा ही सहारा था. वैसे भी हम लोग पिता की मृत्यु के बाद घोर गरीबी में दिन गुजार रहे थे. मेरी नौकरी से घर में सूखी रोटी का इंतजाम होता था.

‘‘मैं अपने अधिकारी से बहुत गिड़गिड़ाई कि कम से कम 10 दिन की छुट्टी व कुछ पैसा एडवांस दे दें तो मैं जाति प्रमाणपत्र ला दूंगी किंतु वह टस से मस नहीं हुए. उलटे उन्होंने कहा कि तुम्हारी नई नौकरी है, अभी छुट्टी भी नहीं मिल सकती और न ही एडवांस पैसा.

‘‘यह सुन कर मेरे हाथपैर फूल गए. मैं उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाई और शायद यही मेरी सब से बड़ी भूल थी. यदि हड़बड़ाहट के बजाय मैं ने थोड़ा धैर्य से काम लिया होता तो मैं उन के झांसे में आने से शायद बच जाती.

‘‘मैं कुछ भी सोच पाने की स्थिति में न थी और इस का अधिकारी ने पूरापूरा फायदा उठाया और मुझे भरोसा दिया कि यदि मैं उन के आदेशों का पालन करती रही तो मुझे न तो बिहार जाना पडे़गा और न ही एडवांस रुपयों की जरूरत पडे़गी. उन्होंने उस शाम मुझे अपने बताए स्थान पर बुलाया और एक पेय पिलाया जिस से मुझे हलकाहलका नशा छा गया. उस के बाद उन्होंने मेरे शरीर के साथ मनमानी की और मेरे पर्स में कुछ रुपए डाल दिए. इस के बाद तो मैं उन के हाथ की कठपुतली बन गई.

‘‘मैं ने तो अपनी मजबूरी बता दी और आज भी स्वीकारती हूं कि यदि मैं ने धैर्य से काम लिया होता तो इस विनाश से बच जाती पर आप की क्या मजबूरी थी? आप बाहर जा कर अपने रिश्तेदारों के बीच अपनी सफाई में क्या कहेंगे? आप एक कालगर्ल के साथ क्या कर रहे थे, इस का उत्तर आप दे पाएंगे?’’

दरवाजे से अपना हाथ हटाते हुए कल्पना बोली, ‘‘बाहर जाने से पहले मेरा कुसूर बता दीजिए फिर जो सजा आप मुझे देंगे वह मंजूर होगी.’’

प्रमेश अपने सिर को दोनों हाथों में पकडे़ चुपचाप आंखें फाडे़ छत की ओर देख रहा था. कल्पना भी दरवाजा छोड़ कर दीवार से टिक कर जमीन पर बैठ गई. मनमंथन दोनों में चल रहा था. कल्पना आशंकित थी कि समाज में औरत और आदमी के लिए आज भी अलगअलग मापदंड हैं. प्रमेश पुरुष है, घरपरिवार वाले उस का ही साथ देंगे. उस में दोष क्यों देखेंगे? सारी लांछनाकलंक तो उस के हिस्से में आएगा. अब तो मां के यहां भी ठिकाना न रहेगा.

अपने कलंकित जीवन से छुटकारा पाने के लिए उसे यह हक तो कतई न था कि दूसरों को अंधेरे में रखती. यह तो इत्तफाक था कि प्रमेश दूध का धुला नहीं है. आज यदि किसी चरित्रवान युवक के साथ ब्याह दी जाती तो क्या अपने अंत:-करण से कभी सुखशांति पाती. जरूर उस के मन का चोर उसे जबतब घेरता. हमेशा यह भय बना रहता कि कहीं कोई उसे पहचान न ले. इतनी दूर तक सोच कर ही उसे विवाह करना था. क्या पता जीवन के सफर में कोई ऐसा हमराही मिल ही जाता जो सबकुछ जान कर भी उस का हाथ थामने को तैयार हो जाता.

दोनों की आंखों में प्रथम मिलन की खुमारी दूरदूर तक नजर नहीं आ रही थी. फटी आंखों से दोनों सोच में डूबे सुबह होने का इंतजार कर रहे थे. चिडि़यों की चहचहाहट से सुबह होने का आभास होते ही प्रमेश उठा, अपने केशों को हाथ के पोरों से संवार और कमरे से निकलने के पहले कल्पना से बोला, ‘‘देखो, जो हुआ सो हुआ. तुम किसी प्रकार का नाटक नहीं करोगी, समझीं. हमारा परिवार इज्जतदार लोगों का है.’’

नई जिंदगी: भाग 4- हालात की मारी कौलगर्ल बनी कल्पना की क्या थी असलियत

कल्पना ससुराल वापस आ गई. वातावरण काफी बदला हुआ था. रिश्तेदार जा चुके थे. घर की औरतें उसे अछूत समझ कर न बात करतीं न ढंग से उस की बात का उत्तर देतीं. खाना बनाने से ले कर बरतन साफ करने तक का सारा काम कल्पना  को अकेले करना पड़ता था. दिन भर की थकी जब वह अपने कमरे में जाती तो मरणासन्न हो जाती पर उसे काम करने में एक संतोष, एक आशा की किरण दिखाई दे रही थी. हो न हो उस की सेवा सभी के दिलों को जीत ले और वह उसे माफ कर दें.

विधानसभा के चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी थी. चौधरीजी के घर गहमागहमी शुरू हो गई थी. तमाम नेता बैठक में विचारविमर्श कर रहे थे कि आज की राजनीति में सबकुछ अनिश्चित है. मतदाता विस्मय से बदलते परिदृश्यों को देख रहा है. थोडे़थोडे़ समय में होने वाले चुनावों में उस का विश्वास नहीं रहा. अब की बार कोई नया मुद्दा होना चाहिए जो लोगों के दिलों में उतर जाएं. फिर कुछ नेता चौधरीजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘क्या रखा जाए मुद्दा, चौधरीजी.’’

‘‘हमारा नारा होगा, ‘समर्थ, गरीब कन्याओं को वधू बनाएं, नई रोशनी घर में लाएं.’’’ चौधरीजी सीना तान कर बोले, ‘‘इस का असर जादू की तरह होगा. दुर्बल समुदाय का वोट हमारी पार्टी की झोली में गिरेगा क्योंकि यह सत्य पर आधारित है. आप लोगों को तो पता ही है मैं ने अपने बेटे की शादी….’’

चौधरी की बात पूरी होने से पहले एकसाथ कई आवाजें हवा में गूंजीं.

‘‘जीहां, जीहां. आप के बेटे ने तो बिना ननुकर किए आप की पसंद को अपनी पसंद बना लिया…नहीं तो आजकल के लड़के बिना देखे, बात किए राजी कहां होते हैं.’’

चौधरीजी इस पर टीकाटिप्पणी करने के बजाय आगे बोले, ‘‘अन्य सभी राजनीतिक दलों के बारे में यह जान लिया गया है कि वे जो कहते हैं वह करते नहीं हैं. हर राजनीतिक पार्टी झूठ और वचन भंग के दलदल में धंसती पाई गई है. हमारे संकल्पों में एक तरह की फौलादी ताकत दिखाई पड़ती है. भारतीय स्वयं कमजोर हैं पर सचाई की कद्र करते हैं.’’

चुनाव का दिन भी आ गया. चौधरीजी का नारा हट कर था. घिसेपिटे नारे जाति, धर्म, भ्रष्टाचार से बिलकुल अलग. लोग भी घिसेपिटे नारे पुराने रेकार्डों की तरह सुन कर थक गए थे. एक नया नारा ‘उद्धार’ अपने नए आकर्षण के साथ लोगों के दिलों में उतर गया. नौजवानों में एक नई लहर दौड़ गई और वोट चौधरीजी के पक्ष में खूब गिरे.

राजनीति में एक परंपरा सी बन गई है. आकर्षक नारा दे कर जीतो और उस के बाद उस नारे का खून कर दो. चौधरीजी के विचार इस से इतर न थे. परंपरा का निर्वाह करना वह बखूबी जानते थे. राजनीति का चस्का ही ऐसा होता है कि कुरसी के लिए लोग अपनी बीवीबच्चों तक को दांव पर लगा देते हैं. स्वार्थ और लोभ राजनीति को कठोर व बेशर्म बना देते हैं.

इधर चौधरीजी चुनाव जीते उधर योजना के अनुसार कल्पना को खत्म करने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए. पर हर बार वह साफ बच गई. उसे खरोंच तक न लगी. चौधरीजी का परिवार तो यही सोचता कि पता नहीं कौन सा रहस्यमयी चमत्कार हो जाता है जो वह बच जाती है पर हकीकत तो यह थी कि पुलिस में सालों नौकरी कर कल्पना यह तो जान ही गई थी कि उस के खिलाफ घर में षड्यंत्र रचा गया है अत: वह अपना हर कदम फूंकफूंक कर रखती थी.

एक बार उस को छत पर सूख रहे कपड़ोें को लाने भेजा गया और पीछे सीढि़यों पर मोबिल आयल डाल दिया गया पर वह कपड़ों का गट्ठर सुरक्षित ले कर उतर आई. यहां भी कल्पना की सूझबूझ काम आई. इसी प्रकार टांड़ पर आगे 10 लिटर का भारी कूकर रख बाहर से एग्जास्ट फैन के छेद से डंडे द्वारा कुकर को जोर से ठेला गया ताकि सीधे नीचे खड़ी कल्पना के सिर पर गिरे जो उस समय रोटी बना रही थी पर जैसे ही डंडे को कुकर की तरफ बढ़ते उस ने देखा अपने हाथ की लोई गिरा कर उसे उठाने के लिए वह आगे सरक गई. इतने में कुकर ठीक उसी जगह गिरा जहां वह खड़ी थी.

कल्पना ने इस घटना पर सब के सामने यही जाहिर किया कि कुकर गिरने के पीछे बिल्ली की करतूत है, क्योंकि एक दिन रात में उस ने ज्यों रसोई की बत्ती जलाई थी कि ऊपर से यही कुकर गिरा था. ऊपर नजर डाली तो मोटी बिल्ली थी जो उसी छेद से भाग गई थी. इस के बाद खुद मेज पर चढ़ कर कल्पना ने उस कुकर को आगे से हटा कर पीछे दीवार के सहारे लगा दिया था.

दरअसल, घर के लोग कल्पना को कुछ इस तरह जान से मारना चाह रहे थे कि उन की बदनामी न हो. ऐसा लगे कि वह कोई हादसा था और उस हादसे के बाद चौधरीजी मन ही मन सोच रहे थे कि वह कल्पना की प्रतिमा गांव के चौराहे पर लगवा देंगे और उस प्रतिमा का अनावरण उस की मां से करा देंगे. वोट तो जो उन के पक्ष में पड़ने थे वह पड़ ही गए हैं. अब दुर्घटना की खबर मिलते ही एक कुशल एक्टर की भूमिका थोड़ी देर जनता के सामने करनी है और इसी का रिहर्सल मन ही मन वह करने लगे.

अपने खयालों में खोए चौधरीजी यह भूल गए कि वह रफ्तार से सड़क पर गाड़ी चला रहे हैं. सामने से आता एक ट्रक चौधरीजी की गाड़ी पर अनियंत्रित हो कर टक्कर मार गया.

आग की तरह उन की दुर्घटना की खबर चारों ओर फैल गई. चौधरीजी काफी घायल हो गए थे. उन का दाहिना टखना इतनी बुरी तरह कुचल गया था कि उसे काटना डाक्टरों की मजबूरी बन गई थी. बड़ी मुश्किल से उन्हें होश आया था. होश आने पर उन्होंने देखा कि उन के हाथों पर प्लास्टर चढ़ा है और घर पर उन्हें कम से कम 6 माह तक विश्राम करना था.

शुरुआत में तो बेटे, पत्नी और परिवार के दूसरे लोगों ने उन की देखभाल की पर धीरेधीरे सभी अपने रोजमर्रा के कामों में मशगूल हो गए क्योंकि घर पर बैठना किसी को रास नहीं आ रहा था.

चौधरी की मजबूरी थी बिस्तर पर पडे़ रहना. घर पर नर्स, नौकर व कल्पना ही बचते थे. चौधरीजी का मलमूत्र बाहर फेंकने में नर्स नखरे दिखाती थी. जमादार कभी आता कभी नहीं आता. ऐसे में कल्पना चुपचाप पौट बाहर ले कर जाती और फिर साफ कर वापस उन की चारपाई के नीचे रख देती.

चौधरीजी की पत्नी सजसंवर कर पर्स लटका जब घर से निकलतीं तो ऐसा लगता मानो उन के न जाने से बाहर का कामकाज सब ठप हो जाएगा.

कहते हैं कि विपरीत परिस्थिति में लोगों के ज्ञानचक्षु काम करने लगते हैं. उस की तार्किक शक्ति बढ़ जाती है. सभी बातें दर्पण की तरह उसे साफ दिखाई पड़ने लगती हैं. वह अपने को भी जानने लगता है और आसपास के वातावरण की सचाई को भी पहचानने लगता है. इनसान मीठी चुपड़ी बातों से अनुकूल समय में धोखा खा सकता है पर विषम दशा में मन सिर्फ सच को देखता है. कोई धोखा कोई बातें अपना जादू चलाने में सफल नहीं होतीं.

चौधरीजी को पत्नी, बेटे सब स्वार्थी जान पड़ रहे थे. सब मतलब के यार जिन्हें सिर्फ उन से मिलने वाले लाभ से सरोकार था. बस, कोई अपना समय उन के पास बैठ कर बरबाद नहीं करना चाहता था. सभी का सुबह घर से निकलने के पहले मानो हाजिरी देना जरूरी हो, उन के कमरे में आते और कभी नर्स को कभी कल्पना को निर्देश दे कर चले जाते ताकि सुनने वाले को ऐसा लगे कि उन्हें कितनी चिंता है.

चौधरीजी इस झूठे दिखावे से भीतर से दुखी तो होते थे पर इसे भी वह अपने कर्मों का दंड मानने लगे थे. अब वह पहले वाले चौधरी नहीं थे. मौत के मुंह से क्या निकले उन की पूरी काया ही पलट गई थी. बाहर भोलीभाली जनता को ठगने वाला यदि अपने ही लोगों से ठगा जाए तो क्या बुराई है. जो फसल बोई है उसे काटना तो पडे़गा ही न. यह सोच सबकुछ जानसमझ कर भी वह परिवार वालों के सामने अनजान बने रहते.

इस भीड़ में कल्पना द्वारा की गई सच्ची सेवा व उन के प्रति उस की निष्ठा अपनी अलग पहचान बना गई. जो देखभाल चौधरीजी की घर पर कल्पना ने की उस से वह द्रवित हुए बिना न रह सके. एक दिन सब के जाने के बाद बिस्तर पर पडे़ चौधरीजी ने अपने दोनों हाथ जोड़ कल्पना से कहा, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो.’’

उन के बोलने में प्रायश्चित की पीड़ा थी. वह समझ रहे थे कि इस लड़की पर क्याक्या अत्याचार नहीं किए गए पर उस ने उफ् तक न किया. क्या यह जानती न होगी कि घर भर के लोग उस के साथ क्या खेल रच रहे हैं.

कल्पना जान कर भी अनजान बनते हुए बोली, ‘‘आप मेरे पिता समान हैं. मुझ से माफी मांग कर शर्मिंदा न कीजिए.’’

चौधरीजी मन ही मन अपने को धिक्कारने लगे. क्या उन का निखट्टू बेटा दूध का धुला है. आवारा आज भी ऐयाशी करता है. उस के पास उन की बनाई जायदाद के अलावा अपना क्या है? आज घर से निकाल दिया जाए तो दानेदाने को तरसे. उस की क्या मजबूरी है जो ऐयाशी करता है.

सारे दिन आवारा घूमने के अलावा उस को आता भी क्या है. इस त्यागमयी सुंदर पत्नी को छोड़ने की कल्पना भी कैसे कर सकता है. यह तो उस निठल्ले को भी धीरेधीरे राह पर ले आएगी. ऐसी कार्यकुशल पत्नी पा कर तो उसे धन्य हो जाना चाहिए. किसी मजबूरी में उठा गलत कदम यदि अपनी सही राह पकड़ ले तो दूसरों का पथप्रदर्शक बन सकता है. वह कल्पना के साथ अब अपने जीते जी अन्याय न होने देंगे. सोचतेसोचते चौधरी की आंख लग गई. उन का चेहरा तनावमुक्त था.

नई जिंदगी: भाग 3- हालात की मारी कौलगर्ल बनी कल्पना की क्या थी असलियत

पूर्व कथा

पिता की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी कल्पना के ऊपर आ जाती है. हालांकि उसे जल्द ही कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी.

थोड़े ही दिनों में कल्पना ने घर की काया पलट दी लेकिन इस बदलाव को उस की मां समझ नहीं पा रही थीं. मां की प्रश्नभरी नजरों का सामना होते ही वह किनारा कर लेती और मां के बारबार पूछने पर डबल ड्यूटी की बात कहती. लेकिन कभीकभी कल्पना के व्यवहार को देख कर उस की मां परेशान हो जातीं.

इसी बीच उस की मां टेलरिंग की दुकान खोल लेती हैं. बेटी को सयानी होते देख उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगती है. तभी कल्पना के बड़े मामाजी एक ऊंचे राजनीतिक घराने का रिश्ता ले कर आते हैं. बिना दानदहेज के ही शादी हो जाती है.

सुहागरात के दिन कल्पना और प्रमेश दोनों एकदूसरे को देख कर चौंक जाते हैं. प्रमेश उस पर अपने परिवार को धोखा देने का आरोप लगाता है लेकिन मजबूर कल्पना उसे अपनी सारी असलियत साफसाफ बता देती है सारी रात आंखों में गुजारने के बाद प्रमेश उसे चुप रहने के लिए कहता है. अब आगे…

गतांक से आगे…

कल्पना किंकर्तव्यविमूढ़ हो थोड़ी देर खड़ी सोचती रही कि संभव है प्रमेश उसे माफ कर दे. एक नई ईमानदार जिंदगी जीने का संकल्प ले एकदूसरे के दोषों को भुला दे तो दूसरे की निगाह में गिरने से भी बच जाएंगे और उसे तो नवजीवन ही मिल जाएगा. वह सारा जीवन प्रमेश की दासी बन कर काट देगी. इसी मनमंथन में डूबी थी कि बाहर नातेरिश्तेदारों की हलचल सुनाई पड़ने लगी.

कल्पना के मामा रस्मोरिवाज के अनुसार उसे विदा करा ले गए. घर पहुंच कर कल्पना के मामा सुमित्रा से बोले, ‘‘दीदी, कल्पना ने तो सब का मन मोह लिया है. सब ने बडे़ प्रेम से इसे विदा किया. मेरे स्वागत- सत्कार में भी कोई कमी नहीं रखी. पैसे का घमंड उन्हें छू नहीं सका है. क्यों कल्पना बेटी, मैं गलत तो नहीं कह रहा?’’

कल्पना मानो नींद से जागी हो. वह अपने ही खयालों में डूबी थी. बनावटी हंसी हंस कर बोली, ‘‘हां मामाजी, आप सही कह रहे हैं.’’

इतना सुनना था कि सुमित्रा ने तो पूरे महल्ले में उस की ससुराल के बखान में खूब गीत गाए. जो कोई बेटी से मिलने आता उसी से आगे बढ़ कर वह बतातीं :

‘‘देखो, इतना बड़ा घर, जमीन- जायदाद पर घमंड छू नहीं गया है इस के ससुराल वालों को. मेरी बेटी को रानी की तरह सम्मान देते हैं. मुझ बेवा का उन्हें आशीर्वाद लगे कि वे दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें. चौधरीजी जबजब चुनाव लड़ें तबतब जीतें.’’

महल्ले में कभी कोई हंस कर कह देता, ‘‘कल्पना जैसी सुंदर लड़की पूरे महल्ले में नहीं है. इस का रूपरंग इसे इतने बडे़ घर में ले गया. इस मामले में चौधरीजी की तारीफ तो करनी ही पडे़गी क्योंकि दहेज के आगे लड़की के रूपगुण की कद्र आज के जमाने में कौन करता है. यह तो उन का बड़प्पन है.’’

छोटे भाईबहनों की जिद पर उस दिन कल्पना उन्हें घुमाने ले गई थी. एक दुकान पर आइसक्रीम खरीद रही थी कि पीछे से किसी ने उस की आंखों को हथेली से

ढांप कर उस से

पूछा, ‘‘पहचानो तो जानें?’’

यह सुरीली आवाज ज्यों ही कल्पना के कानों में पड़ी वह हंसते हुए बोली, ‘‘अच्छा, हाथ हटाओ. मैं ने तुम्हें पहचान लिया. तुम मधु हो.’’

मधु ने हाथ हटा लिया और खिल- खिला पड़ी.

‘‘आओ कल्पना, आइसक्रीम ले कर सामने वाले पार्क में बैठते हैं,’’ मधु ने कहा तो वे सब पार्क की ओर बढ़ गए.

कोमल हरी घास पर बैठते दोनों ने थोड़ी राहत की सांस ली. बच्चे पार्क में लगे झूले की तरफ बढ़ गए. मधु और कल्पना अकेले रह गईं.

मधु ने कल्पना के कंधों पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम खुश तो हो न?’’

‘‘हां,’’ कल्पना ने उपेक्षा से कहा.

‘‘इस संक्षिप्त उत्तर से मुझे यही लगता है कि तुम कुछ छिपा रही हो.’’

‘‘छिपाऊंगी भला क्यों,’’ हंसते हुए कल्पना बोली, ‘‘हो सकता है कि देखने वालों को खुश न लगती हूं क्योंकि नए लोगों के बीच में अपने को एडजस्ट करने में समय तो लगेगा ही. कहां हम साधारण लोग और कहां वे पैसे वाले.’’

मधु ने एक लंबी सांस खींची और कहा, ‘‘देखो कल्पना, समाज में आज भी औरत और पुरुष के लिए अलगअलग मापदंड हैं. जो चीज आदमी के लिए गर्व की बात हो सकती है वही औरत के लिए अवांछनीय…’’

क्षण भर को कल्पना कांप गई. वह जान गई कि मधु क्या कहना चाहती है. उस ने प्रत्यक्ष यही दर्शाया कि उसे अपने वैवाहिक संबंधों की चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं है. प्रमेश उस का पति है और वह उस की निंदा नहीं सुनना चाह रही थी. किंतु मधु उस की परेशानी समझ कर भी उसे सबकुछ बताने के लिए बेचैन थी इसीलिए कल्पना का हाथ मजबूती से पकड़ कर मधु बोली, ‘‘मैं तेरी सहेली हूं. तेरे दिल का हाल मुझ से छिपा नहीं है. प्रमेश नशे में धुत मुझे कल जिस होटल के कमरे में मिला था बस, तेरे ऊपर गालियों की बौछार कर रहा था. कह रहा था कि सुंदरता के जाल में बिना सोचेसमझे फंस गया. सोसाइटी में उस के परिवार की एक इमेज है, इस कारण परिवार वाले चुप हैं. पापा के मंत्री बनते ही कल्पना नाम का कांटा मैं अपने जीवन से निकाल फेंकूंगा और एक आजाद पंछी की तरह आकाश में उड़ता रहूंगा.’’

‘‘यह सुन कर मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘कल्पना कौन है?’ तो प्रमेश बोला, ‘तुम्हारी तरह एक कालगर्ल.’’’

क्षणभर को कल्पना का चेहरा स्याह हो गया. ढकीछिपी बात सामने वाले पर उजागर हो जाए तो व्यक्ति अपने को कटे पत्ते सा महसूस करने लगता है. यही हाल कल्पना का था. घर लौटी तो उस के चेहरे की बदली रंगत को देख सुमित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है…घूमने गई थी खुश होने के लिए या उदास होने को? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां मां,’’ एक लंबी सांस खींच कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘मां, मैं ने नौकरी छोड़ कर ठीक नहीं किया.’’

सुमित्रा कल्पना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, तुम इतने बडे़ घर में ब्याही गई हो, तुम्हें अब क्या जरूरत है नौकरी की. मेरी दुकान भी अच्छीखासी चलती है. खाने व जीने भर को खूब मिल जाता है.’’

‘‘मां, मरे को गंगा किनारे फूंक कर लोग कथा सुनते हैं. तुम ने भी मुझे विदा कर यही किया होगा,’’ झुंझला कर कल्पना जाने क्या सोच यह कह गई.

‘‘यह क्या अंटसंट बक रही है? सभी बेटी विदा कर जो करते हैं वह मैं ने भी किया है तो इस में गलत क्या है?’’

कल्पना प्रथा व रीतिरिवाज पर बहुत कुछ बोलना चाह रही थी क्योंकि उस के भीतर एक झुंझलाहट थी जिसे वह किसी से बांट नहीं सकती थी पर बेटी को चुप देख कर मां बोलीं, ‘‘तुम्हारे ओवरटाइम को ले कर मैं आज बता रही हूं कि बहुत सशंकित थी पर आज लगता है कि मेरी शंका गलत थी और मेरी बेटी अपनी जगह सही थी.’’

यह सुन कर कल्पना भीतर तक हिल गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. अगले ही क्षण अपने को संभालते हुए उस ने बात बदल दी. यह सोच कर कि कहीं मां अपनी शंका उजागर कर उस के मुंह पर कीचड़ के काले धब्बे न देख लें.

3 माह गुजर गए. कल्पना को विदा कराने कोई नहीं आया. महल्ले की छींटाकशी व कानाफूसी जब सुमित्रा के कानों तक पहुंची तो उन्होंने खुद कल्पना के ससुराल फोन किया. फोन चौधरीजी ने खुद उठाया.

वह बोलीं, ‘‘भाई साहब प्रणाम. 3 महीने हो गए कल्पना को मायके आए. बेटी मां के घर पर बोझ नहीं होती पर विवाह के बाद वह अपने घर ही शोभा देती है.’’

चौधरीजी ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘बहनजी, प्रमेश तो साल भर के लिए ट्रेनिंग पर गया है. सोचा, बहू का मन अकेले क्या लगेगा?’’

‘‘पर लोग तो तरहतरह की बातें कर रहे हैं.’’

‘‘जनताजनार्दन की बात है तो कुछ सोचना पडे़गा.’’

‘‘आप कहें चौधरीजी तो कल्पना के मामा खुद ही छोड़ जाएं,’’ शीघ्रता से सुमित्रा बोलीं.

चौधरीजी ने ‘ठीक है’ कह कर फोन काट दिया.

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नई जिंदगी: भाग 1-हालात की मारी कौलगर्ल बनी कल्पना की क्या थी असलियत

पिता की असामयिक मौत ने कल्पना पर जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया था. आर्थिक तंगी के चलते जिंदगी के हर कदम पर उसे समझौता करना पड़ रहा था. लेकिन जब उस ने एक नई जिंदगी की शुरुआत करनी चाही तो अतीत के काले साए ने वहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ा.

कई बार इनसान की मजबूरी उसके मुंह पर ताला लगा देती है और वह चाह कर भी नहीं कह पाता जो कहना चाहता है. सुमित्रा के साथ भी यही था. घर की जरूरतों के अलावा कम उम्र के बच्चों के भरणपोषण का बोझ उन की सोच पर परदा डाले हुए था. वह अपनी शंका का समाधान बेटी से करना चाहती थीं पर मन में कहीं डर था जो बहुत कुछ जानसमझ कर भी उन्हें नासमझ बनाए हुए था.

पति की असामयिक मौत ने उन की कमर ही तोड़ दी थी. 4 छोटे बच्चों व 1 सयानी बेटी का बोझ ले कर वह किस के दरवाजे पर जाएं. उन की बड़ी बेटी कल्पना पर ही घर का सारा बोझ आ पड़ा था. उन्होंने साल भर के अंदर बेटी के हाथ पीले करने का विचार बनाया था क्योंकि बेटी कल्पना को कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी. आज बेटी की नौकरी न होती तो सुमित्रा के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई होती.

बच्चे कभी स्कूल फीस के लिए तो कभी यूनीफार्म के लिए झींका करते और सुमित्रा उन पर झुंझलाती रहतीं, ‘‘कहां से लाऊं इतना पैसा कि तुम सब की मांग पूरी करूं. मुझे ही बाजार में ले जाओ और बेच कर सब अपनीअपनी इच्छा पूरी कर लो.’’

कल्पना कितनी बार घर में ऐसे दृश्य देख चुकी थी. आर्थिक तंगी के चलते आएदिन चिकचिक लगी रहती. उस की कमाई से दो वक्त की रोटी छोड़ खर्च के लिए बचता ही क्या था. भाई- बहनों के सहमेसहमे चेहरे उस की नींद उड़ा देते थे और वह घंटों बिस्तर पर पड़ी सोचा करती थी.

कल्पना की ड्यूटी गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर थी. वह रोज देखती कि उस के साथी सिपाही किस प्रकार से सीधेसादे यात्रियों को परेशान कर पैसा ऐंठते थे. ट्रेन से उतरने के बाद सभी को प्लेटफार्म से बाहर जाने की जल्दी रहती है. बस, इसी का वे वरदी वाले पूरा लाभ उठा रहे थे.

‘‘कोई गैरकानूनी चीज तो नहीं है. खोलो अटैची,’’ कह कर हड़काते और सीधेसादे यात्री खोलनेदिखाने और बंद करने की परेशानी से बचने के लिए 10- 20 रुपए का नोट आगे कर देते. सिपाही मुसकरा देते और बिना जांचेदेखे आगे बढ़ जाने देते.

यदि कोई पैसे देने में आनाकानी करता, कानून की बात करता तो वे उस की अटैची, सूटकेस खोल कर सामान इस कदर इधरउधर सीढि़यों पर बिखेर देते कि उसे समेट कर रखने में भी भारी असुविधा होती और दूसरे यात्रियों को एक सबक मिल जाता.

ऐसे ही एक युवक का हाथ एक सिपाही ने पकड़ा जो होस्टल से आ रहा था. सिपाही ने कहा, ‘‘अपना सामान खोलो.’’

लड़का किसी वीआईपी का था, जिसे सी.आई.एस.एफ. की सुरक्षा प्राप्त थी. इस से पहले कि लड़का कुछ बोलता उस के पिता के सुरक्षादल के इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, यह मेरे साहब का लड़का है.’’

तुरंत सिपाही के हाथों की पकड़ ढीली हो गई और वह बेशर्मी से हंस पड़ा. एक बुजुर्ग यह कहते हुए निकल गए, ‘‘बरखुरदार, आज रिश्वतखोरी में नौकरी से हाथ धो बैठते.’’

कल्पना यह सबकुछ देख कर चकित रह गई लेकिन उस सिपाही पर इस का कुछ असर नहीं पड़ा था. उस ने वह वैसे ही अपना धंधा चालू रखा था. जाहिर है भ्रष्ट कमाई का जब कुछ हिस्सा अधिकारी की जेब में जाएगा तो मातहत बेखौफ तो काम करेगा ही.

कल्पना का जब भी अपनी मां सुमित्रा से सामना होता, वह नजरें नहीं मिलाती बल्कि हमेशा अपने को व्यस्त दर्शाती. उस के चेहरे की झुंझलाहट मां की प्रश्न भरी नजरों से उस को बचाने में सफल रहती और सुमित्रा चाह कर भी कुछ पूछने का साहस नहीं कर पातीं.

कमाऊ बेटी ने घर की स्थिति को पटरी पर ला दिया था. रोजरोज की परेशानी और दुकानदार से उधार को ले कर तकरार व कहासुनी से सुमित्रा को राहत मिल गई थी. उसे याद आता कि जब कभी दुकानदार पिछले कर्ज को ले कर पड़ोसियों के सामने फजीहत करता, वह शर्म से पानीपानी हो जाती थीं पर छोटेछोटे बच्चों के लिए तमाम लाजशर्म ताक पर रख उलटे  हंसते हुए कहतीं कि अगली बार उधार जरूर चुकता कर दूंगी. दुकानदार एक हिकारत भरी नजर डाल कर इशारा करता कि जाओ. सुमित्रा तकदीर को कोसते घर पहुंचतीं और बाहर का सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देती थीं.

आज उन को इस शर्मिंदगी व झुंझलाहट से नजात मिल गई थी. कल्पना ने घर की काया ही पलट दी थी. उन्हें बेटी पर बड़ा प्यार आता. कुछ समय तक तो उन का ध्यान इस ओर नहीं गया कि परिस्थिति में इतना आश्चर्यजनक बदलाव इतनी जल्दी कैसे और क्यों आ गया किंतु धीरेधीरे उन के मन में कुछ शंका हुई. कई दिनों तक अपने से सवालजवाब करने की हिम्मत बटोरी उन्होंने और से पूछा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कल्पना बेटी कि तुम दिन की ड्यूटी के बाद फिर रात को क्यों जाती हो…’’

अभी सुमित्रा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कल्पना ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘मां, मैं डबल ड्यूटी करती हूं. और कुछ पूछना है?’’

कल्पना ने यह बात इतने रूखे और तल्ख शब्दों में कही कि वह चुप हो गईं. चाह कर भी आगे कुछ न पूछ पाईं और कल्पना अपना पर्स उठा कर घर से निकल गई. हर रोज का यह सिलसिला देख एक दिन सुमित्रा का धैर्य टूट गया. कल्पना आधी रात को लौटी तो वह ऊंचे स्वर में बोलीं, ‘‘आखिर ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो आधी रात बीते घर लौटती हो. मैं दिन भर घर के काम में पिसती हूं, रात तुम्हारी चिंता में चहलकदमी करते बिताती हूं.’’

मां की बात सुन कर कल्पना का प्रेम उन के प्रति जाग उठा था पर फिर पता नहीं क्या सोच कर पीछे हट गई, मानो मां के निकट जाने का उस में साहस न हो.

‘‘मां, तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे लिए मत जागा करो. एक चाबी मेरे पास है न. तुम अंदर से लाक कर के सो जाया करो. मैं जब ड्यूटी से लौटूंगी, खुद ताला खोल कर आ जाया करूंगी.’’

‘‘पहले तुम अपनी शक्ल शीशे में देखो, लगता है सारा तेज किसी ने चूस लिया है,’’ सुमित्रा बेहद कठोर लहजे में बोलीं.

कल्पना के भीतर एक टीस उठी और वह अपनी मां के कहे शब्दों का विरोध न कर सकी.

सुबह का समय था. पक्षियों की चहचहाहट के साथ सूर्य की किरणों ने अपने रंग बिखेरे. सुमित्रा का पूरा परिवार आंगन में बैठा चाय पी रहा था. उन की एक पड़ोसिन भी आ गई थीं. कल्पना को देख वह बोली, ‘‘अरे, बिटिया, तुम तो पुलिस में सिपाही हो, तुम्हारी बड़ी धाक होगी. तुम ने तो अपने घर की काया ही पलट दी. तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है?’’

कल्पना ऐसे प्रश्नों से बचना चाहती थी. इस से पहले कि वह कुछ बोलती उस की छोटी बहन ने अपनी दीदी की तनख्वाह बढ़ाचढ़ा कर बता दी तो घर के बाकी लोग खिलखिला कर हंस दिए और बात आईगई हो गई.

सुमित्रा बड़ी बेटी की मेहनत को देख कर एक अजीब कशमकश में जी रही थीं. इस मानसिक तनाव से बचने के लिए सुमित्रा ने सिलाई का काम शुरू कर दिया पर बडे़ घरों की औरतें अपने कपड़े सिलने को न देती थीं और मजदूर घरों से पर्याप्त सिलाई न मिलती इसलिए उन्होंने दरजी की दुकानों से तुरपाई के लिए कपडे़ लाना शुरू कर दिया. शुरुआत में हर काम में थोड़ीबहुत कठिनाई आती है सो उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा.

जैसेजैसे सुमित्रा की बाजार में पहचान बनी वैसेवैसे उन का काम भी बढ़ता गया. अब उन्हें घर पर बैठे ही आर्डर मिलने लगे तो उन्होंने अपनी एक टेलरिंग की दुकान खोल ली.

5 सालों के संघर्ष के बाद सुमित्रा को दुकान से अच्छीखासी आय होने लगी. अब उन्हें दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलती. कई कारीगर दुकान पर अपना हाथ बंटाने के लिए रख लिए थे.

कल्पना ड्यूटी से आने के बाद औंधेमुंह बिस्तर पर लेट गई. छोटी बहन खाना खाने के लिए 2 बार बुलाने आई पर हर बार उसे डांट कर भगा दिया. सुमित्रा खुद आईं और बेटी की पीठ पर हाथ फेरते हुए बडे़ प्यार से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, खाना ठंडा हो रहा है?’’

कल्पना उठ कर बैठ गई. उस के रोंआसे चेहरे को देख कर सुमित्रा भांप गई कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पुचकारते हुए कहा, ‘‘बहादुर बच्चे दुखी नहीं होते. जरूर कुछ आफिस में किसी से कहासुनी हो गई होगी, क्यों?’’

‘‘वह चपरासी, दो टके का आदमी मुझ से कहता है कि मेरी औकात क्या है…’’ कल्पना रो पड़ी.

‘‘वजह?’’ सुमित्रा ने धीरे से पूछा.

‘‘यह सब इस कारण क्योंकि वह मुझ से ज्यादा तनख्वाह पाता है. एक सिपाही की कुछ हैसियत नहीं होती, मां.’’

‘‘ज्यादा तनख्वाह पाता है तो उस की उम्र भी तुम से दोगुनी होगी. इस में इतनी हीनभावना पालने की क्या जरूरत…’’

आगे पढ़ें- आवेश में कहतेकहते कल्पना की जबान…

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