जानें क्या है इमोजी

यह एक इलैक्ट्रौनिक चित्रों का समूह है. इस में हम अपनी भावनाओं को इस इलैक्ट्रौनिक संचार का उपयोग कर के व्यक्त करते हैं. इमोजी भावना, वस्तु या प्रतीक के एक दृश्य का रिप्रेजैंटेशन होता है. यह विभिन्न फोन या सोशल नैटवर्किंग साइट पर विभिन्न रूपों में होता है.

सबसे पहले डिजाइन किस ने किया

शिगेताका कुरिता ने 25 साल की उम्र में इमोजी का सब से पहला सैट बनाया था, जिस में लगभग 176 इमोजी थीं. दिलचस्प बात यह है कि फादर औफ इमोजी कहे जाने वाले शिगेताका कुरिता न इंजीनियर थे और न ही कोई डिजाइनर. उन्होंने तो अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी.

इमोजी की शुरुआत कब और कैसे हुई

1990 के दशक के आखिर में यानी 1998-1999 में रंगबिरंगी इमोजी का इस्तेमाल शुरू हुआ. एक जापानी टैलीकौम कंपनी के कर्मचारी शिगेताका कुरिता ने इस कंपनी की मोबाइल इंटरनैट सर्विस के लिए इमोजी बनाई थीं. इस मोबाइल इंटरनैट में ईमेल भेजने के लिए कैरेक्टर की संख्या 250 थी, जिस में हंसी, दुख, क्रोध, सरप्राइज और कन्फ्यूजन का भाव दर्शाने वाली इमोजी भी शामिल थीं.

जापान में इमोजी को लोकप्रिय होता देख 2007 में सब से पहले ऐप्पल आईफोन ने अपने मोबाइल फोन में इमोजी की बोर्ड को शामिल किया, जिस में एसएमएस, चैटिंग, व्हाट्सऐप, मैसेज करने के दौरान अपने भाव प्रकट करने के लिए इमोजी का इस्तेमाल किया जाने लगा और फिर इमोजी सब से तेजी से बढ़ती भाषाओं में से एक हो गई.

– 2013 में इमोजी शब्द को औक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में शामिल किया गया.

– 2015 में इमोजी को ‘वर्ड औफ द ईयर’ घोषित किया गया.

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– 2016 में न्यूयौर्क में ‘म्यूजियम औफ मौर्डन आर्ट’ ने अपने स्थाई कलैक्शन में शिगेताका कुरिता की 176 इमोजी के पहले सैट को शामिल किया. हौलीवुड में एक ऐनिमेटेड मूवी भी बनाई गई, जिस में 250 इमोजी दिखाई गईं.

– अब तक इमोजी की संख्या 2,666 हो गई है.

– यूनिकोड कमेटी के मुताबिक, हर साल सैकड़ों नई इमोजी के आवेदन मिलते हैं.

इमोजी दिवस

इमोजीपीडिया के संस्थापक जेरेमी बर्ज ने 2014 में विश्व इमोजी दिवस मनाने का निर्णय लिया था. उस के बाद से 14 जुलाई को विश्व इमोजी दिवस को वैश्विक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा.

इंस्टैंट मैसेजिंग एवं व्हाट्सऐप पर उपलब्ध इमोजी लोगों के बीच स्पष्ट भाव को प्रकट करने का काम करती हैं, लेकिन व्हाट्सऐप की एक इमोजी पर अब खतरा मंडराने लगा है. दरअसल, एक भारतीय ने व्हाट्सऐप की एक आपत्तिजनक इमोजी को ले कर लीगल नोटिस भेजा है. गुरमीत सिंह नाम के इस भारतीय ऐडवोकेट ने व्हाट्सऐप की मिडल फिंगर को ले कर आपत्ति जताई है. अपनी शिकायत में उन्होंने बताया कि मिडल फिंगर इमोजी न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि यह अश्लीलता का प्रतीत भी है.

सोशल मीडिया में इस्तेमाल होने वाली इमोजी पर ब्रिटेन की अदालतों ने चिंता जताई है. देश में कानूनी विवादों में इन इमोजी का उपयोग केस को और पेचीदा बना रहा है. इसलिए वकील इन डिजिटल प्रतीकों के संदर्भ में एक गाइडलाइन जारी करने का आग्रह कर रहे हैं. ब्रिटेन की अदालतों में आपराधिक, पारिवारिक एवं व्यवसाय या रोजगार संबंधी कानूनी विवादों की सुनवाई में प्रस्तुत सुबूतों में ये इमोजी काफी देखने को मिल रही हैं.

सैंटा क्लैरा विश्वविद्यालय में कानून विभाग के प्रोफैसर एरिक गोल्डमैन का कहना है कि 2018 में 53 मामलों में इमोजी शामिल थीं, जो 2017 में 33 और 2016 में 26 इमोजी की तुलना में लगभग दोगुनी हो गईं. गोल्डमैन के अनुसार लोगों के डिवाइस और सोशल मीडिया प्लेटफौर्म भी एक ही इमोजी को अलगअलग तरीकों से प्रदर्शित कर सकते हैं और वह भी भेजने वाले और पाने वाले की जानकारी के बिना इस से अनायास ही विवाद होने का अंदेशा रहता है.

यौन शोषण के मामलों में ज्यादा उपयोग

गोल्डमैन के शोध में सामने आया है कि इमोजी अब ज्यादातर कानूनी मामलों में नजर आने लगी हैं. यौन शोषण संबंधी मामलों में ये सब से ज्यादा उपयोग की जाती हैं. तेजी से बढ़ते मामलों के बावजूद इन की कानूनी रूप से व्याख्या नहीं की गई है, जबकि अब नए ऐनिमेटेड (जिफ फाइल) और पहले से ज्यादा व्यक्तिगत इमोजी आ गई हैं जो चुनौती बन गई हैं.

वर्कप्लेस पर इमोजी का इस्तेमाल बिगाड़ सकता है छवि: अपने सहकर्मी को ईमेल करते वक्त, खुश हो कर या ईमेल को प्र्रभावी बनाने के लिए अगर आप इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, तो यह आप के प्रोफैशनल कैरियर के लिए अच्छा नहीं है. एक हालिया शोध की मानें तो कार्यस्थल पर इमोजी का इस्तेमाल आप की छवि किस हद तक प्रभावित कर सकता है, यह आप सोच भी नहीं सकते. इसराईल की एक यूनिवर्सिटी में किए गए शोध के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि ईमेल के साथ स्माइली या अन्य इमोजी आप को पेशवर तौर पर अयोग्य साबित करती हैं.

शोध में शामिल डा. इला गिल्क्सन के अनुसार, पहली बार किसी शोध के नतीजे इमोजी के प्रयोग के प्रभाव का सुबूत पेश कर रहे हैं. उन के मुताबिक वास्तविक मुसकान के विपरीत इन इमोजी का इस्तेमाल कर के अगर आप सोचते हैं कि इस ईमेल के जरीए आप गरमजोशी दिखाने में कामयाब रहे हैं, तो यह गलत है. इस से आप की प्रोफैशनल क्षमताओं पर संदेह किया जा सकता है. औपचारिक बिजनैस ईमेल में एक स्माइली, स्माइली नहीं होती. शोधकर्ताओं ने इस शोध में 29 अलगअलग देशों के 54 प्रतिभागियों को शामिल किया था.

अगर आप व्हाट्सऐप, फेसबुक या किसी अन्य मैसेजिंग सर्विस पर कोई भी टैक्स बिना इमोजी के नहीं भेजते हैं तो आप के दिमाग पर सैक्स थोड़ा हावी हो सकता है. यह हम नहीं, ‘डेटिंग वैबसाइट मैच डौट कौम’ का एक नया शोध कहता है.

क्या कहता है शोध

‘डेटिंग वैबसाइट मैच डौट कौम’ के शोध के मुताबिक वे लोग, जो अपने लगभग हर टैक्स्ट मैसेज में इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, उन का दिमाग ज्यादातर वक्त सैक्स के बारे में सोचता रहता है. इस शोध में अहम भूमिका निभाने वाली हैलेन फिशर के अनुसार इमोजी इस्तेमाल करने वाले न केवल ज्यादा सैक्स करते हैं, बल्कि वे ज्यादा डेट्स पर भी जाते हैं, साथ ही इन लोगों की शादी करने की संभावना इमोजी का इस्तेमाल कम या बिलकुल नहीं करने वाले लोगों की तुलना में दोगुनी होती है.

किन लोगों पर हुआ शोध: 25 देशों में 8 अलगअलग भाषाओं में काम कर रही इस वैबसाइट ने कुछ वक्त पहले भी शोध किया था, जिस के मुताबिक सर्वे में शामिल आधे से भी ज्यादा महिला और पुरुष अपनी डेट के साथ फ्लर्ट करते समय ‘विंक’ इमोजी का इस्तेमाल करते थे. शोध में यह भी पाया गया कि इस तरह की बातचीत में दूसरी सब से ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली प्रचलित इमोजी ‘स्माइली’ थी.

5,000 लोगों पर हुए इस शोध में 36 से 40% लोग ऐसे थे, जो हर मैसेज में 1 से अधिक इमोजी का इस्तेमाल करते थे. पाया गया कि ये लोग दिन में कईकई बार सैक्स के बारे में सोचते थे. वहीं जो लोग सैक्स के बारे में कभी नहीं सोचते थे उन के मैसेज में इमोजी का इस्तेमाल न के बराबर था. वहीं कई लोग ऐसे भी थे, जो सैक्स के बारे में दिन में बस एक बार सोचते थे और इमोजी का इस्तेमाल करते तो थे, लेकिन हर मैसेज पर नहीं.

इस शोध के मुताबिक इस शोध में शामिल 54% लोग, जो अपने संदेशों में इमोजी का इस्तेमाल करते थे, उन 31% लोगों की तुलना में अधिक सैक्स करते थे, जो इमोजी का इस्तेमाल नहीं किया करते थे.

पीरियड्स पर इमोजी

मार्च, 2019 से इमोजी की लिस्ट में पीरियड्स इमोजी भी शामिल हो गई है. यह इमोजी लाल रंग की खून की एक बूंद है. लोगों की रूढि़वादी सोच के दायरे को तोड़ने और पीरियड्स पर खुल कर बात करने में यह पीरियड्स इमोजी एक बड़ा कदम है. इस की मांग में यूके की ‘प्लान इंटरनैशनल यूके’ ने एक कैंपेन चलाया था.

मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप अपने नए बीटा अपडेट में कुछ नई इमोजी ले कर आया है जिन की डिजाइन बदल गई है. नए ऐंड्रौयड बीटा अपडेट में ऐसी 155 इमोजी हैं, जिन की डिजाइन बदल गई है. ऐंड्रौयड बीटा टेस्टर नए अपडेट 2.19.139 में ये इमोजी देख सकते हैं.

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आज स्मार्टफोन हमारी जरूरत बन गया है. इस के बिना तो हमारा काम ही नहीं चल सकता. रोज हम ट्विटर, फेसबुक समेत कई चीजों का इस्तेमाल करते हैं. अपनी बातों को ज्यादा शौर्ट में ऐक्सप्रैस करने के लिए हम इन पर बनीं इमोजी का इस्तेमाल कर लेते हैं. लेकिन इन में दी गईं 1000 से भी ज्यादा इमोजी में कुछ के तो हमें मतलब ही समझ में नहीं आते.

मगर अब इन सभी इमोजी कैरेक्टर को समझने के लिए मिल गया है सब से आसान उपाय और वह है इमोजीपीडिया. इस इमोजीपीडिया पर आप को हर इमोजी का मतलब मिल जाएगा.

Bigg Boss 14 के घर से बाहर आते ही ‘नागिन’ बनीं राखी सावंत! जानें क्या है मामला

बिग बौस 14 में अपनी कौमेडी से फिनाले तक पहुंचने वाली राखी सावंत इन दिनों सुर्खियों में छाई हुई हैं. जहां वह अपनी बीमार मां के साथ समय बीता रही हैं तो वहीं सोशलमीडिया के जरिए फैंस को एंटरटेन करती नजर आ रही हैं. इसी बीच राखी सावंत ने एक वीडियो फैंस के साथ शेयर किया है, जिससे फैंस अंदाजा लगा रहे हैं कि उन्हें नागिन 6 का हिस्सा बनने का औफर मिल गया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

नागिन बनीं राखी सावंत

राखी सावंत ने अपना एक ऐसा ही मजेदार वीडियो शेयर किया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया है. दरअसल, राखी सावंत के द्वारा शेयर की गई वीडियो में श्रीदेवी की फिल्म ‘नगीना’ के मशहूर गाने की क्लिप नजर आ रही है. वहीं खास बात यह है कि इस वीडियो में श्रीदेवी की जगह राखी का चेहरा नजर आ रहा है.

 

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फिल्म का लिखा गलत नाम

 

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मजेदार वीडियो शेयर करते हुए राखी सावंत ने श्रीदेवी की फिल्म का नाम गलत लिख दिया. वहीं कैप्शन में राखी ने अपने फैन्स से सवाल पूछते हुए लिखा, ‘मुझे श्रीदेवी जी से प्यार है. फिल्म नागिन मेरी फेवरेट फिल्मों में से एक है और अगर यह दोबारा बनाई जाए तो उन्हें किसे कास्ट करना चाहिए…देखें और कॉमेंट में अपनी पसंद बताएं.’

रुबीना से नाराज हैं राखी

 

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हाल ही में राखी सावंत ने खुलासा किया एक इवेंट में Rubina Dilaik और Abhinav Shukla को लेकर कहा था कि वह उनकी मां को देखने तक नहीं आए. दरअसल, राखी ने कहा कि मैंने न्यूज में देखा कि रुबीना ने कहा है कि मेरी मदद करेंगी लेकिन मैं उन्हें बता दूं, मुझे उनकी किसी मदद की जरूरत नहीं है. लेकिन मेरी मां चाहती हैं तुमसे एक बार मुलाकात करना. हालांकि बिग बौस 14 के घर में रुबीना दिलैक ने कहा था कि वह घर से निकलते ही राखी सावंत की मां से मिलने जाएंगी. लेकिन इसके बाद शो में उनकी काफी लड़ाई हो गई थी.

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बता दें, राखी सावंत की मां कैंसर से जूझ रही हैं. हालांकि अब वह ठीक हो रही हैं. वहीं कई सितारे जहां उनसे मिलने पहुंचे तो वहीं सलमान खान ने उनकी पूरी मदद करने का हौसला भी दिया.

बा के रोल से खुद को रिलेट नहीं करतीं ‘अनुपमा’ फेम अल्पना बुच, पढ़ें खबर

स्टार प्लस की नंबर वन धारावाहिक अनुपमा में बा की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अल्पना बुच थिएटर और टीवी आर्टिस्ट है. फ़िल्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से उन्हें बचपन से ही कला का माहौल मिला है, यही वजह है कि उन्होंने अभिनय के अलावा कभी कुछ सोचा नहीं. वह केवल हिंदी ही नहीं, गुजराती फिल्मों और थिएटर की भी प्रसिद्ध अभिनेत्री है. उन्हें हर नया काम उत्साह देता है और हर नयी चुनौती वह खुद लेती है. स्वभाव से विनम्र और हंसमुख अल्पना का काम के दौरान मुलाकात टीवी और थिएटर आर्टिस्ट मेहुल बुच से हुई. प्यार हुआ, शादी की और एक बेटी भाव्या की माँ बनी. उन्होंने माँ बनने के बाद भी अभिनय नहीं छोड़ा. गृहशोभा के लिए उन्होंने खास बात की और बताया कि कॉलेज के ज़माने में उन्होंने इस प्रोग्रेसिव विचार रखने वाली पत्रिका को काफी पढ़ा है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, आइये जाने, उनकी कहानी उनकी जुबानी.

सवाल-धारावाहिक मेंबाकी भूमिका से आप कितना रिलेट कर पाती है?

मैं बा की भूमिका से खुद को रिलेट नहीं कर पाती, क्योंकि मेरी उम्र सास बनने लायक नहीं है और मेरा बेटा नहीं है, इसलिए सास तो मैं कभी बन नहीं सकती. मेरी खुद की सास बहुत ही अच्छी थी. वह हमेशा दुनिया से आगे सोचती थी, इसलिए मुझे आज़ादी भी खूब मिली है. मैंने शादी के बाद भी अभिनय करना नहीं छोड़ा.

बा की भूमिका से पहले मैंने प्यार और कॉमेडी की भूमिका निभाई थी. पहले इसे करने में अजीब लगा, क्योंकि कोई सास कैसे किसी बहू को कही जाने आने से मना कर सकती है या डांट सकती है, लेकिन मैंने कई ऐसे घर देखे है, जहाँ बहू को आज भी पूछकर बाहर जाना पड़ता है, छोटे शहरों में आज भी ऐसा चलता है. मुझे एक बात इस चरित्र में गलत नहीं लगता, जब सास अपने घर के संस्कार और रीतिरिवाज बहू या बेटे को सिखाती है. सबको ये समझना पड़ेगा कि उसकी सोच 20 साल पुरानी है और उसी हिसाब से वह चलती है, उसे आधुनिक बनाना संभव नहीं.

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सवाल-इस भूमिका को करने में आपको किसी का सहारा लेना पड़ा?

शुरू-शुरू में चरित्र के बारें में निर्देशक ने काफी समझाया कि यहाँ मैं एक सास की भूमिका निभा रही हूं. मुझे गुस्से से बात करनी है. इस तरह इस चरित्र में घुसने में करीब 12 दिन लगे.

सवाल-धारावाहिक में किसी चरित्र को काफी दिन करना पड़ता है, ऐसे में उस भूमिका से निकल कर घर में अल्पना बनना कितना मुश्किल होता है?

जब भी मेकअप उतरता है और मैं मेकअप रूम के दरवाजे से बाहर निकलती हूं,तो उस चरित्र को वही छोड़कर आ जाती हूं. उसे घर नहीं लाती.

सवाल-सास बहू का रिश्ता अच्छा न होने की वजह क्या मानती है?

इसकी वजह सोच और परिवार का माहौल होता है. मुझे भी शादी के बाद दो-तीन साल सास की किसी बात को जोर देकर कहना पसंद नहीं होता था, लेकिन धीरे-धीरे बाद में मैंने देखा कि उसकी हर बातें सही है. असल में किसी भी रिश्ते को जमने में समय लगता है और सास-बहू दोनों को इसमें सामंजस्य बिठाना पड़ता है. सास को ये समझना पड़ेगा कि आपने बहू को जन्म नहीं दिया है, इसलिए उसे इस रिश्ते को समझने में समय लगेगा और बहू को भी सामंजस्य सास से बनाने की जरुरत है. दोनों तरफ से कोशिश होने पर रिश्ता सही हो जाता है.

सवाल-कुछ महिलाएं शादी या बच्चा होने के बाद काम छोड़कर घर बैठ जाती है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

हर महिला को उसके माता-पिता ने अपना समय और पैसे देकर इस काबिल बनाया है कि वह आत्मनिर्भर बनें, लेकिन अगर महिला शादी या बच्चा होने पर काम छोड़ देती है, तो उसकी शिक्षा, कैरियर सब समाप्त हो जाता है. मेरे हिसाब से परिवार में संतुलन बनाये रखने की हमेशा जरुरत होती है, क्योंकि कुछ महिलाएं अपने बच्चे के साथ रहने के लिए कैरियर छोड़ देती है, तो कुछ परिवार और बच्चे को छोड़कर काम पर चली जाती है. दोनों स्थिति सही नहीं है. जीवन में हमेशा सभी को सामंजस्य बनाकर चलना पड़ता है. आज भी परिवार के साथ कैरियर को बनाये रखने का संघर्ष महिला के साथ ही होता है, लेकिन अब समय बदला है, दोनों ही काम करते है, ऐसे में पति भी कई जगह बच्चे को सम्हाल लेते है. मैं सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वे अपने कैरियर को कभी न छोड़े, क्योंकि बच्चे के बड़े होने पर उनका कैरियर ही उनके साथ रहता है और वे उसे तब एन्जॉय कर सकते है, क्योंकि आज के बच्चे अधिकतर अपने पेरेंट्स को छोड़कर विदेश चले जाते है. सही संतुलन करने पर शुरू में चुनौती अवश्य आती है, पर बाद में एक अच्छा भविष्य सामने दिखता है.

सवाल-महिलाओं को खास कर फिल्मों में पुरुषों की तुलना में कम पैसे दिया जाता है, इस असमानता की वजह क्या मानती है?

अभी इसमें काफी हद तक समानता आई है, क्योंकि आज महिलाओं की संख्या पहले से हर क्षेत्र में काफी बढ़ चुकी है. अब डरना पुरुषों को है, उनके पास पैसों की कमी होने वाली है. एक्ट्रेसेस को भले ही फीस कम मिले,पर टीवी, फिल्मों या वेब में दर्शक महिला को ही देखते है और उन्हें काम मिलना आसान हो चुका है. अभी औरते पीछे नहीं, वे कमा भी अधिक रही है.

सवाल-महिलाओं के आगे बढ़ने के बावजूद आजकल महिलाओं के साथ रेप, डोमेस्टिक वायलेंस, एसिड अटैक आदि में कमी नहीं आ रही है, इसे कैसे सुधारा जा सकता है?

इसके लिए महिलाओं का आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है, क्योंकि सामने वाले को पता होता है कि अगर मैंने पत्नी के साथ वायलेंस या कुछ गलत किया, तो ये कभी भी मुझे छोड़कर जा सकती है, क्योंकि ये कमाऊ है, लेकिन कई बार कुछ महिलाएं अपने पति से इमोशनली जुड़ जाती है, ऐसे में वे डोमेस्टिक वायलेंस को नजरंदाज करती है, जबकि ये ठीक नहीं. पुरुष  पत्नी की भावनाओं को अच्छी तरह समझते है और उसी प्रकार से व्यवहार करते है. असल में औरत शोषण की शिकार खुद बनती है और जवाबदेही भी उस महिला की ही है. कभी भी पुरुषों की इन आदतों को छुपाना ठीक नहीं होता, उसे अपने दोस्तों या पेरेंट्स को अवश्य बता देना चाहिए ताकि पानी सिर के ऊपर से बहने से पहले रोक लिया जाय. कोई भी गलत काम महिलाओं के लिए कम अवश्य हुई है, पर ख़त्म नहीं हुई.

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सवाल-क्या गुजराती फिल्मों में भी काम कर रही है?

मैने अभी दो गुजराती फिल्में की है, जो इस साल रिलीज पर है. इसके अलावा मैं गुजराती थिएटर से भी जुडी हुई हूं. फिल्म का माध्यम और धारावाहिक में काफी अंतर है, फिल्म चल गई तो लोग याद करते है, नहीं तो भूल जाते है, टीवी में घर में एक चरित्र बार-बार दिखाई पड़ने से दर्शक उससे जुड़ जाता है. फेम अधिक मिलता है, जबकि एक कलाकार के रूप में फिल्म करने में मजा आता है. माहौल अलग होता है और खुद को बड़े पर्दे पर देखना पसंद है. फिल्म में काम करना मुझे अच्छा लगता है.

सवाल- क्या कुछ मलाल रह गया है ?

मैंने वेब सीरीज नहीं की है, उसे करना चाहती हूं, क्योंकि धारावाहिक अनुपमा से मुझे अभी वक़्त नहीं मिल रहा है.

सवाल-किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

शो नहीं, गुजराती थिएटर ने मेरी जिंदगी बदली है और मेरे सभी नाटक मुझे आज भी बहुत पसंद है.

सवाल-अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है? महिला दिवस को अधिक मनाया जाता है, पुरुष दिवस को क्यों नहीं?

असल में 365 दिन पुरुषों का ही होता है, जबकि महिलाओं के लिए एक दिन सेलिब्रेट करने का मिलता है इसलिए इतनी जोर शोर से मनाया जाता है. समय बहुत बदला है, आगे भी बदलेगा, लेकिन महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ, आत्मविश्वास, शक्ति, हिम्मत आदि होने की जरुरत है, ताकि वे अपने सपने को पूरा कर सकें.

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Shweta Tiwari ने बताया घरेलू हिंसा का दर्द, बेटी पलक के लिए कही ये बात

टीवी एक्ट्रेस श्वेता तिवारी आए दिन अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में जहां उनके वजन कम करने को लेकर वह चर्चा में थीं तो वहीं घरेलू हिंसा पर अपने संघर्ष के चलते खबरों में छा गई हैं. दरअसल, हाल ही में श्वेता तिवारी ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह घरेलू हिंसा के अपने संघर्ष का दर्द बयां कर रही हैं. साथ ही अपनी बेटी को भी इस बात को लेकर सलाह देती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं श्वेता तिवारी की वायरल वीडियो…

बेटी के लिए शेयर किया वीडियो

श्वेता ने अपनी 20 साल की बेटी पलक तिवारी (Palak Tiwari) के लिए एक इमोशनल वीडियो पोस्ट करते हुए अपने घरेलू हिंसा के दर्द को बयान किया. दरअसल, वीडियो में श्वेता तिवारी ने कहा, ‘मैंने जीवन में बहुत कुछ झेला है और हर कदम पर जब मैंने खुद को कमजोर महसूस किया, तो मैंने हिम्मत जुटाने के लिए खुद को खींचा. जो सही है, उसकी खातिर अपनी बेटी की खातिर खड़ी हो गई. उसने मुझे अपनी लाइफ के अच्‍छे और बुरे वक्‍त में देखा है.’

 

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बच्चों के लिए उठाएं कदम

 

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श्वेता आगे कहती हैं, ‘कई महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे इसके खिलाफ कुछ नहीं बोलती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनके बच्चों को प्रभावित कर सकता है. लेकिन यदि आप चुप रहती हैं तो आपके बच्चे चुप रहना सीखेंगे. वे घरेलू हिंसा को स्वीकार करना सीखेंगे और अगर आप इसके खिलाफ एक कदम उठाती हैं तो आपके बच्चे मजबूत बनेंगे. गलत और सही के बीच फर्क करने में सक्षम होंगे.’

बेटी के लिए लड़ी लड़ाई

 

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बेटी के लिए कदम उठाते हुए श्वेता तिवारी ने कहा ‘वे लोग अब भी घरेलू हिंसा के खिलाफ कदम उठाने के लिए मेरी आलोचना करते हैं. लेकिन मैंने जो किया, उसने मेरी बेटी को मजबूत बनाया है. मैं सिर्फ अपनी बेटी को बताना चाहती हूं कि मैं हमेशा उसके साथ हूं. लेकिन उसे अपनी लड़ाई खुद लड़ने की जरूरत है. मैं शायद हमेशा उसकी ढाल बनकर नहीं रह सकती. लेकिन मुझे उम्‍मीद है कि मेरा एक्सपीरियंस और सही फैसला उसे जिंदगी में सही दिशा में जाने के लिए मार्गदर्शन करेगा. जहां आप किसी भी स्‍थ‍िति का सामना करने की शक्‍ति‍ और अखंडता पाते हैं. जब तक आप खुद के लिए नहीं लड़ते, लोग आप पर भरोसा नहीं करते हैं.’

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बता दें, श्वेता तिवारी दो शादी कर चुकी हैं. पहली शादी उन्होंने पति राजा चौधरी (Raja Chaudhry) से की थी, जिसके बाद उन्होंने राजा चौधरी पर घरेलू हिंसा (Domestic Violence) के आरोप लगाए थे. वहीं राजा चौधरी से उनकी बेटी पलक तिवारी हैं. वहीं दूसरी शादी उन्होंने अभिनव कोहली से की है. हालांकि इस शादी में भी उनका रिश्ता कुछ ठीक नहीं चला. इसी के चलते खबरें हैं कि अभिनव कोहली ने श्वेता तिवारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट जाने का फैसला किया है.

ट्रेंड में हैं थीम बेस्ड केक्स

जिंदगी के प्रत्येक लम्हे को खास बनाते हैं केक. एक दशक पूर्व तक केक केवल बर्थडे और शादी की सालगिरह पर ही काटा जाता था वहीं आज केक के बिना कोई भी सेलिब्रेशन अधूरा लगता है. छोटे से छोटे और बड़े से बड़े आयोजन पर केक काटने से उस दिन के खास होने का अहसास होता है. इसीलिए केक के नित नए स्वरूप देखने को मिलते हैं. पहले जहां मैदा, सूजी और आटे से सामान्य केक बनाकर आइसिंग शुगर में रंग आदि मिलाकर सजाया जाता था वहीं आज थीम बेस्ड केक का चलन जोरों पर है. जिसमें न केवल बेसिक केक में थीम का स्वाद समाया होता है बल्कि सजावट भी थीम पर ही आधारित होती है. आजकल एक्टिविटी और फन बेस्ड केक का ट्रेंड चल रहा है.

इन नए केक्स की उत्तपत्ति विभिन्न देशों से हुई है. केक के इतिहास के बारे में बताते हुए कोर्टयार्ड मेरिएट के प्रमुख शेप अभिषेक कुकरेती कहते है , “दुनिया का केक से परिचय इटली ने कराया है यहां पर केक में नित नए प्रयोग किये जाते हैं. केक के सभी इनोवेटिव विचारों का जनक इटली ही है.” यहां पर हम आपको केक की नवीन और ट्रेंडिंग थीम्स से परिचय करा रहे हैं ताकि आप भी बेकरी में इनकी डिमांड करके इन्हें आजमा सकें-

-पिनाटा केक

मेक्सिको से उत्पन्न पिनाटा केक व्हाइट, पिंक और ब्राउन चॉकलेट से बना एक डोम होता है जिसके अंदर विविध प्रकार की चॉकलेट, टॉफी, आदि सरप्राइज के रूप में रखी होतीं हैं इसे काटने के बजाय हैमर से फोड़ा जाता है. इसे सर्व करते समय साथ में चाकू के स्थान पर हैमर दिया जाता है. इसके राउंड, स्फियर, चौकोर और ज्योमेट्रिकल शेप सर्वाधिक पॉपुलर हैं.

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-आइलैंड केक

सबसे पहले इस केक को मेरीलैंड के पास बसे स्मिथ आइलैंड में करीब 1800 में बनाया गया था. अब लगभग करीब 200 वर्ष बाद यह केक पुनः चलन में है. इसको आइलैंड के प्राकृतिक नजारे, समुद्री बीच की खूबसूरती और अंडर वाटर ब्यूटी से सजाया जाता है. इसे सजाने के लिए बहुत बारीकी और धैर्य की आवश्यकता होती है.

-पुल मी अप केक

 

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इसका ओरिजिन पुर्तगाल को माना जाता है. इसे बोलो सुनामी केक भी कहा जाता है. डॉल के आकार में बनाये जाने वाले इस केक के सिंड्रेला कट गाउन को व्हाइट क्रीम से तैयार किया जाता है. ऊपरी हिस्से में जिलेटिन शीट लगाकर उसमें गनाश भर दिया जाता है और जिलेटिन शीट को ऊपर खींचते ही गनाश के रंग से डॉल का पूरा गाउन रंग जाता है. इसकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए साधारण रंगों की अपेक्षा एडिबल ग्लिटर्स का प्रयोग किया जाता है.

-टाइल्ड केक

 

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इटली से जन्मा यह केक 60 प्लस लोंगों में बहुत लोकप्रिय है. इस केक को टाइल्स की तरह बनाया जाता है जिसमें आप कोई फोटो या मैसेज लगा सकते हैं परन्तु इस फोटो या सन्देश को पजल की भांति लगाया जाता है और पजल के साल्व होने के बाद ही केक को खाया जाता है. पजल होने के कारण बच्चे भी इसे पसन्द करते हैं.

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मेरी कमर के निचले भाग और कूल्हों में लगातार दर्द बना रहता है, इसे ठीक करने का उपाय बताएं?

सवाल

मैं 45 वर्षीय बैंककर्मी हूं. पिछले कुछ महीनों से मेरी कमर के निचले भाग और कूल्हों में लगातार दर्द बना रहता है. जांच कराने पर पता चला कि मुझे सियाटिका है. कृपया इसे ठीक करने के उपाय बताएं?

जवाब-

सियाटिका में दर्द कमर के निचले भाग से शुरू हो कर कूल्हों और पैरों तक पहुंच जाता है. सियाटिका नर्व पर दबाव पड़ने या उस में खराबी आने से यह समस्या हो सकती है. डिस्क की खराबी या स्पाइन से संबंधित दूसरी समस्याओं जैसे स्पाइन के संकरे या कंप्रैस होने के कारण सियाटिका नर्व में खराबी आ सकती है. हालांकि सियाटिका के कारण होने वाला दर्द बहुत गंभीर होता है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह बिना औपरेशन के ही कुछ सप्ताह में ठीक हो जाता है. कई लोगों को हौट पैक्स, कोल्ड पैक्स और स्ट्रैचिंग से इस समस्या में आराम मिलता है. लेकिन जिन लोगों में सियाटिका के कारण पैर अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं या ब्लैडर या बाउल में परिवर्तन आने से मलमूत्र त्यागने की आदतों में बदलाव आ जाता है उन के लिए औपरेशन कराना जरूरी हो जाता है.

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डॉ. मनीष वैश्य, सह-निदेशक, न्युरो सर्जरी विभाग, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली,

सिरदर्द के बाद कमर दर्द आज सब से आम स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या बनती जा रही है. बढ़ती उम्र के लोगों को ही नहीं युवाओं को भी यह दर्द बहुत सता रहा है. महिलाएं कमर दर्द की आसान शिकार होती हैं 90 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन के किसी न किसी स्‍तर पर कमर दर्द से पीड़ित रहती हैं. खासकर कामकाजी महिलाएं जो ऑफिसों में बैठ कर लगातार काम करती हैं. उन में रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ने से कमर दर्द की समस्या हो जाती है.

कमर दर्द

हमारी रीढ़ की हड्डी में 32 कशेरूकाएं होती हैं जिस में से 22 गति करती हैं जब इन की गति अपर्याप्‍त होती है या ठीक नहीं होती तो कई सारी समस्‍याएं पैदा हो जाती हैं रीढ़ की हड्डी के अलावा हमारी कमर की बनावट में कार्टिलेज (डिस्‍क), जोड़, मांसपेशियां, लिगामेंट आदि शामिल होते हैं इस में से किसीकिसी में भी समस्या आने पर कमर दर्द हो सकता है इस से खड़े होने, झुकने, मुड़ने में बहुत तकलीफ होती है अगर शुरूआती दर्द में ही उचित कदम उठा लिए जाएं तो यह समस्‍या गंभीर रूप नहीं लेगी.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या करें जब सताए कमर दर्द

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

स्मार्ट किचन टिप्स के साथ आप भी हो जाएं फास्ट

आजकल हर किसी के पास बहुत सीमित सा वक्त होता है और खास कर महिलाओ के पास. वह खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पातीं, क्योंकि इनका ज्यादातर समय रसोई में व घर के बाकी काम करते समय निकल जाता है. तो थोड़े बहुत समय की बचत के लिए हर कोई यह चाहता है की उन्हें कुछ स्मार्ट हैक मिल जाए. जिससे उनका काम जल्दी निपट सके और उनके समय की भी बचत हो सके. तो आइए जानते हैं हर रोज प्रयोग किए जाने वाले कुछ स्मार्ट हैक जो आपके समय की बचत कर सकते हैं.

बने हुए खाने को स्टोर करना :

अगर आप अपने खाने को लंबे समय तक प्रयोग करना चाहती हैं और उसे बनने के कई घंटे बाद भी ताजा रखना चाहती हैं तो यह हैक प्रयोग कर सकते हैं. आप ज्यादा मात्रा में खाना बनाएं और उसे स्टोर करते समय छोटी छोटी मात्रा में अलग अलग स्टोर करें. स्टोर करने से पहले यह ध्यान रखें की खाना पूरी तरह से ठंडा हो जाए. अब इस खाने को फ्रिज में स्टोर करके रख दें. स्टडीज का भी कहना है कि इस खाने का पोषण आने वाले 2 या 3 दिन तक कहीं नहीं जाएगा.

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कम मेहनत से खाने में अधिक पोषण एड करें :

आप अपनी स्मूदी में दो चम्मच अलसी मिला कर उसमें फाइबर व ओमेगा 3 की मात्रा बढ़ा सकते हैं. अपनी दही की कटोरी में एक चम्मच बी पोलेन मिलाएं और इनसे आपका इन्सुलिन व शुगर लेवल नियंत्रित हो सकते हैं. अपने सलाद में 25 से 30 ग्राम टोफू मिला सकते हैं और उसमें प्रोटीन की मात्रा बढ़ा सकते हैं. आप अपने रोटी बनाने वाले आटे को चने के आटे से रिप्लेस करके उसमें कार्ब की मात्रा कम कर सकते हैं.

ऐसे बढ़ाएं अपनी डाइट में एंटी ऑक्सिडेंट की मात्रा :

क्योंकि एंटी ऑक्सिडेंट आपके शरीर को बहुत सी बीमारियों जिनमें कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी भी शामिल है, से बचाते हैं, इसलिए इनकी मांग हर डाइट में अधिक ही रहती है. अपनी डाइट में सिंपल तरीके से एंटी ऑक्सिडेंट एड करने के लिए आप नींबू के छिलके का प्रयोग कर सकते हैं जोकि एंटी ऑक्सिडेंट के साथ साथ आपको पोषण भी देता है. नींबू का प्रयोग करने की बजाए आपको नींबू के छिलके का प्रयोग करना चाहिए. इसका प्रयोग करने के लिए आप नींबू के छिलकों को एक साथ स्टोर रखें और जब भी पानी पिएं उस छिलके को पानी में मिला लें और उसके बाद पिएं. इससे आपकी कैंसर का रिस्क भी कम होता है.

कुकिंग के लिए आयरन पोट्स का प्रयोग करें :

जब आप खाना पकाते हैं तो अक्सर नॉन स्टिक पैन का प्रयोग करते हैं, लेकिन अगर आप इनकी बजाए आयरन के बर्तनों का प्रयोग करते हैं तो यह आपकी डाइट में ज्यादा आयरन व न्यूट्रीशन एड कर देते हैं. इसलिए आज से ही नॉन स्टिक पैन को बाए बोल दें.

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ब्रोकली को बॉयल करने की बजाए स्टीम करें :

ब्रोकली एक बहुत ही हेल्दी व पोषक सब्जी होती है. लेकिन अगर आप इसे उबाल कर बना रहे हैं तो उबालने के कारण उसके कंपाउंड खत्म हो जाते हैं इसलिए आपको हमेशा ब्रोकली बॉयल करने की बजाए स्टीम करके ही पकानी चाहिए. यह बनाने में भी आसान रहेगी और आपके लिए अधिक हेल्दी भी रहेगी.

अगर आप ऊपर लिखित हैक का प्रयोग करके कुकिंग करते हैं तो आपका थोड़ा बहुत समय भी बच जाएगा और आपको ज्यादा पौष्टिक खाना भी खाने को मिलेगा जिस कारण आपकी सेहत बहुत बेहतर बन सकती है. इसलिए आपको इनमें से कुछ हैक का प्रयोग तो अवश्य ही करना चाहिए.

गंदी बात नहीं औरत का और्गेज्म

हाल ही में दूसरे देशों में नैशनल और्गेज्म डे मनाया गया और वहां इस से जुड़ी बातें लोग खुले तौर पर करते भी रहते हैं. वहीं भारत में सैक्स और और्गेज्म पर बात करने से लोग मुंह छिपाने लगते हैं. यहां तक कि ज्यादातर लोग अपने ही साथी या पार्टनर से भी इस पर बात नहीं कर पाते. एक बेहद दिलचस्प बात यह भी है कि हिंदी में और्गेज्म का मतलब तृप्ति है जो इस शब्द का सही अर्थ नहीं है.

महिला और पुरुष दोनों एकदूसरे से शारीरिक तौर पर बेहद अलग हैं और दोनों पर धर्म से नियंत्रित समाज का नजरिया और भी अलग है. जहां पुरुषों को सभी प्रकार की छूट बचपन से ही भेंट में मिल जाती है, वहीं महिलाओं को बचपन से ही अलग तरीकों से पाला जाता है. उन के लिए तमाम तरह के नियमबंधन बनाए जाते हैं. उन के बचपन से वयस्क होने की दहलीज तक आते आते उन्हें इस तरह की शिक्षा दी जाती है कि वे अपने शरीर से जुड़ी बातें चाह कर भी नहीं कर पाती हैं.

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जो पुरुषों के लिए वह महिलाओं के लिए गलत क्यों:

अगर एक महिला बिना पुरुष के साथ संबंध बनाए शारीरिक सुख प्राप्त करने में सक्षम है तो इस बात को यह पूरा समाज हजम नहीं कर पाता. हम यहां सीधे तौर पर मास्टरबेशन यानी हस्तमैथुन पर बात कर रहे हैं, जिस के बारे में ज्यादातर लड़के 10-12 साल की उम्र में ही जान लेते हैं, पर लड़कियों को वयस्क होने तक भी इस बात की पूरी जानकारी नहीं होती है. अगर वे बिना किसी पुरुष के साथ संबंध बनाए शारीरिक सुख प्राप्त करती हैं तो उसे वे अपने दोस्तों में स्वीकार नहीं कर पातीं. समाज में यह धारणा जो बना दी गई है कि पुरुषों के लिए मास्टरबेशन ठीक है पर महिलाओं के लिए गलत है.

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मास्टरबेशन सही तो और्गेज्म गलत क्यों…

इसी तरह मास्टरबेशन पर बात करना एक पुरुष के लिए बेहद साधारण बात है पर एक महिला के लिए ऐसा मसला है जो उस का होते हुए भी उस का नहीं है. जबकि ऐसे मुद्दों पर बात करना बेहद जरूरी है. यह जितनी आसानी से पुरुष के लिए स्वीकार्य है, उतना ही एक औरत के लिए भी होना जरूरी है.

लड़कियां तो अगर अपनी सब से सामान्य चीजों जैसे पीरियड्स और ब्रा जैसी चीजों पर भी बात करने का साहस जुटाती हैं, तो उन्हें पब्लिकली ट्रोल किया जाता है, शेम किया जाता है. ऐसे में और्गेज्म और वह भी लड़कियों के और्गेज्म पर बात करना तो कल्पना से भी परे की बात है.

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बौलीवुड ने शुरू की कोशिश…

‘वीरे दी वैडिंग’ और ‘लस्ट स्टोरीज’ ऐसी फिल्में हैं जिन में महिला से जुड़े शारीरिक सुख के मुद्दे पर थोड़ी रोशनी डालने का प्रयास किया गया, लेकिन भारतीय मर्दों ने खुल कर उस पर बातचीत करने के बजाय इन फिल्मों की और इन की हीरोइनों को ही ट्रोल किया.

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मर्दों को यह पता ही नहीं:

ज्यादातर भारतीय मर्द नहीं जानते कि महिलाओं का भी और्गेज्म उतना ही मैटर करता है, जितना उन का. दरअसल, इंटरकोर्स यानी शारीरिक संबंध के वक्त उन को इस बारे में खयाल ही न आना एक तरह से पितृसत्ता का हावी होना ही बताता है.

इस पर जयपुरिया अस्पताल, जयपुर की अधीक्षक विमला जैन का कहना है, ‘‘भारतीय पुरुष लड़कियों के मास्टरबेशन को इसलिए भी हजम नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें अपनी सत्ता, मर्द होने की धमक पर यह हमले जैसा लगता है, जबकि कई ऐसी रिसर्च बताती हैं कि 62% महिलाओं को और्गेज्म मास्टरबेशन के वक्त ही होता है. यह भी दूसरी सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का ही एक हिस्सा है. स्वास्थ्य पर इस का सीधा असर होता है, लेकिन भारतीय मर्द यह शायद ही समझें. उन्हें लगता है कि और्गेज्म पुरुषों के अधिकार क्षेत्र का ही मसला है, सामाजिक टैबू है.’’

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इन मुद्दों पर यौन शिक्षा से जुड़े पहलुओं पर खुल कर बात हो ताकि एक स्वस्थ और बराबरी वाला समाज बनाया जा सके. घरों में औरतें हर समय खीजी सी और तनाव में न रहें या उन्हें अछूतपन न लगे और वे अन्य रिस्क न लें इस के लिए जरूरी है कि इन बातों को कम से कम लड़कियां तो आपस में खुल कर कर सकें.                                   –

बेहद खतरनाक हो सकती हैं ये 5 दवाइयां

कई लोग बिना सोचे-समझे अपने मन से ही दवाइयां खरीद लेते हैं और उसे दर्द को कम करने के लिए खा लेते हैं. बिना डौक्टर की सलाह के खुद से दवाई लेना हमारी हेल्थ के लिए सबसे बड़ी गलती होती है. वहीं कई दवाइयों के बारे में हमारी गलत सोच भी हमारी हेल्थ को नुकसान पहुंचा देती हैं. आज हम आपकी इस दवाइयों की गलत सोच को बदलने के लिए कुछ दवाइयों के बारे में बताएंगे, जिसे आप डेली लाइफस्टाइल में बिना कुछ सोचे समझे इस्तेमाल कर लेते हैं. जानें कौन सी हैं ये दवाएं

1. नींद की गोलियां में होता है ड्रग

आमतौर पर नींद की गोलियां अत्यधिक नशीली होती हैं. सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि यह हमारे दिमाग की हरकातों पर प्रभाव डालती हैं. यह दवाई मनुष्‍य की पूरी दिनचर्या को खराब कर देती है. साथ ही लगातार यह दवाई खाने से शरीर पर धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होने लगता है, जिससे हाई डोज़ की दवाई खानी पड़ जाती है. इसके लगातार सेवन से अवसाद भी हो जाता है.

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2. नेचुरल डाइजेशन को बिगाड़ सकती है ऐन्टैसड / ऐन्टैसिड 

यह दवाई जो आप पेट खराब होने पर लेते हैं, आपको फायदे की जगह पर नुकसान पहुंचा सकती है. इसको अगर कभी-कभी लिया गया तो ठीक वरना यह आपके नेचुरल डाइजेशन को खराब कर सकती है. फिर आपका शरीर जरुरी पोषक तत्‍व को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाएगा, जिससे किडनी में स्‍टोन, पाइल्‍स और पेट का अल्‍सर होने की संभावना होती है.

3. कोल्ड की मेडीसिन हो सकती है खतरनाक

आमतौर पर सारी ही सर्दी और जुखाम की दवाइयां बच्‍चों के लिये खतरनाक होती हैं. यह फेफडो़ को प्रभावित करती हैं. अगर इन दवाइयों का ओवरडोज़ हो जाए तो साइड इफेक्‍ट हो सकता है और शायद मृत्‍यु भी.

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4. सिरदर्द की दवा से रहें बचकर

हो सकता है कि इन दवाओं को खाने से तुरंत राहत मिल जाए लेकिन यह दवाएं आगे चल कर बहुत परेशानी खड़ी कर सकती हैं. इसलिये कोशिश कीजिये कि दवा ना खाएं और सिर की मसाज ले लें.

5. डिप्रेशन की दवा के हैं कई साइडइफेक्ट

इस दवा के भी कई खतरनाक साइड इफेक्‍ट होते हैं. यह दवाई मस्तिष्क के एक क्षेत्र पर प्रभाव डालती है जो कि सेरोटोनिन और ग्‍लूकोज लेवल को नियंत्रित करता है. यही कारण है कि आप इस दवाई का सेवन करने से मोटे होते चले जाते हैं.

यह कैसी मानसिकता

हिंदू मानसिकता एक तरह से इसलामी मानसिकता की तरह  है और जो ट्रीटमैंट हिंदू कट्टरपंथी ट्रोल अंतर्राष्ट्रीय गायिका रिहाना और टीनएजर क्लाईमेट ऐक्टीविस्ट ग्रेटा गनबर्ग को दे रहे हैं कि वह औरत है, चुप रहे. वैसे ही इसलामी देश तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एरडोगान कर रहे हैं.

एक ऐक्टीविस्ट आयसे बुगरा के एरडोगान का नाम न ले कर पति के नाम से जोड़ कर संबोधित करते हैं और खिंचाई करते हैं ताकि अपने मोदीनुमा कट्टरनुमा समर्थकों को समझा सकें कि औरतों की जगह पिता या पति के कारण ही होती है. आयसे बुगरा तुर्की में प्रोफैसर हैं और विद्वान हैं पर ऐक्टीविस्ट एरडोगान के लिए वैसे ही सिर्फ पति की संपत्ति है जैसे भगवा गैंग के अनुसार सोनिया गांधी बार डांसर हैं.

औरतों के प्रति अपमानजनक सोच घरघर में मौजूद है और यह उन के व्यक्तित्व का कचूमर निकाल देती है. थोड़े दिनों में शादी हो जाती है, जहां पति के चरण धो कर गंदा पानी पीने को अमृत पीना कहा जाए वह याद नहीं होगा तो क्या होगा.

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3 तलाक पर होहल्ला मचाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के बाद हिंदू औरतों के सुधारों के लिए एक कदम नहीं उठाया है. उन्हें नौकरियां नहीं दी हैं. उन्हें पिता या पति की संपत्ति पर अधिक हक नहीं दिलाया है. वे कम आय कर या संपत्ति कर दें, ऐसा कोई सुधार नहीं पेश किया है. वे पढ़लिख कर खुली सोच वाली बनें ऐसा कोई प्रयास नहीं किया है.

किसान आंदोलन में भाग लेने वाली औरतों को बारबार हट जाने को कहा जा रहा है, क्योंकि आज की कट्टर संस्कृति के रखवाले नहीं चाहते कि वे पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिला कर चलें. नागरिक संशोधन कानून का विरोध करने के लिए दिल्ली के शाहीनबाग में बैठी दादियों के बारे में सरकार को चिंता यही थी कि कहीं यही औरतें राजनीतिक सत्ता में हिस्सा न मांगने लग जाएं.

औरतों को गुलाम रखने का प्रयास काफी सुनियोजित है. सैकड़ों कथाएं लिखी गई हैं और बारबार दोहराई गई हैं, जिन में औरतें का चरित्र एक से ज्यादा नहीं होता. मशहूर फिल्म ‘शोले’ के 2 महत्त्वपूर्ण पात्र जया भादुड़ी और हेमामालिनी दोनों को बेचारी दिखाया गया है. एक विधवा है, जो एक पुरुष पर मोहित है पर प्रेम प्रकट नहीं कर पाती, दूसरी तांगे वाली है पर उसे बातूनी दिखा कर व उस का चरित्र नाचने वाली का दिखा कर पुरुष सेविका तक सीमित कर दिया गया.

कमला हैरिस ने अपने बलबूते पर बिना किसी पिता या पति के अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद को पाया है पर भारत जैसे देशों में कहीं ढोलनगाड़े नहीं बजाए गए, उलटे उन की भतीजी मीना हैरिस द्वारा किसान आंदोलन का समर्थन करने पर बुराभला कहा जाने लगा है और चरित्र हनन की कोशिश हो रही है.

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चरित्र हनन करने वाले ऊंची जातियों के ट्रोल कंपनी के मुलाजिम जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं वह न ट्विटर को अटपटी लगती है न तुर्की के एरडोगान को और न भारत के मोदीशाह को. वे औरतों को क्या समझते हैं, यह हम सब जानते हैं. अमित शाह की पत्नी कभी दिखती नहीं हैं और सोशल मीडिया के अनुसार उन का शौक शौपिंग में ही है या धार्मिक बातें सुनने में.

इसलामी और कट्टर हिंदू असल में औरतों को किसी तरह का प्रतिष्ठित पद नहीं देना चाहते. जब तक कट्टर नेताओं के हाथों में शक्ति है औरतें 10वीं सदी में रहेंगी, सिर्फ सजावटी गुडि़याएं. हमारे यहां तो वे त्याग व बलिदान की मूर्तियां हैं सिर्फ पति के लिए.

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