बच्चों पर करियर प्रेशर

हर माता-पिता का सपना होता है उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या सीए बनें.  यह बात बचपन से ही उनके दिमाग में बिठा दिया जाता है कि उन्हें तो डॉक्टर या इंजीनियर ही बनना है.  ऐसे ही दवाब से बचने के लिए कुछ छात्रों ने नीट और जेईई की फर्जी मार्कशीट बना डाली.  टाइम्स ऑफ इंडिया को मिले डॉक्यूमेंट्स के अनुसार, करीब 30 छात्रों के पेरेंट्स ने बच्चों पर भरोसा करके एक जगह नहीं, बल्कि ऊपरी लेवल तक शिकायत कर दी.  पेरेंट्स ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय और नैशनल टेस्टिंग एजेंसी को भी शिकायत भेजी.

लेकिन चौंकने वाले खुलासे यह हुए कि यहाँ खामी एजेंसी की जांच में नहीं, बल्कि छात्रों की शातिर दिमाग की थी.  मानव संसाधन के एक अधिकारी के बयान के अनुसार उम्मीदवार ने असली मार्कशीट के क्यूआर को ही नकली वाली शीट में इस्तेमाल किया.  उसी क्यूआर के जरिये जांच आगे बढ़ी तो सारा मामला सामने आ गया और पता चला कि दूसरी मार्कशीट बाहर तैयार की गई थी.  कुल मिलाकर इस पूरे मामले में छात्रों पर ही कार्रवाई शुरू कर दी गई.

लेकिन यहाँ दोषी बच्चों से ज्यादा माँ बाप हैं.  बच्चों पर इंजीनियर, डॉक्टर बनने का इतना ज्यादा दवाब बनाने लगते हैं कि बच्चे समझ नहीं पाते की क्या करें.  बच्चा अगर समझाना भी चाहें और कहें कि वह अपने अनुसार करियर चुनना चाहते हैं, तो माता-पिता उन्हें ही डांट कर चुप करा देते हैं.   ‘अब हमें समझाओगे ? हमें सब पता है,  जैसी दलीलें देकर उनका ही मुंह बंद करवा देते हैं.  लेकिन यह नहीं समझना चाहते कि बच्चा क्या चाहता है, उसकी काबिलियत कितनी है और वह किस फील्ड में जाना चाहता है.

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अंकित, न तो इंजीनियर बनना चाहता था और न ही उसकी रुचि मैनेजमेंट करने की था.  लेकिन पिता की जिद के आगे उसकी एक न चली और 12वीं के बाद उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बैंगलोर भेज दिया गया.  लेकिन दो साल के अदंर ही वह घर वापस आ गया क्योंकि पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लगा.  फिर माँ की जिद के चलते मैनेजमेट की पढ़ाई करने लगा.  लेकिन वहाँ भी वह असफल हो गया.   आज वह बेरोजगार है.   शुरू से कह रहा था उसे इन सब में रुचि नहीं है, वह तो एग्रीकल्चरल  में जाना चाहता है.   मगर किसी ने उसकी एक न सुनी और उस पर दवाब बनाता रहा.  आज हालात ये हो गए हैं कि वह किसी भी चीज में इन्टरेस्ट लेना बंद कर दिया है.

कोटा में पढ़ाई कर रहा एक छात्र अपने माता-पिता के नाम चिट्ठी लिखता है, ‘माफ करना पापा, मैं आपके सपनों को पूरा नहीं कर पाऊँगा.  लेकिन आप लोग छोटे भाई पर करियर बनाने का दवाब मत बनाना.  वह जो बनना चाहे बनने देना’  और फिर वह आत्महत्या कर लेता है.  वंदना इसलिए पंखे से लटक गई क्योंकि वह अपने माता-पिता के सपनों पर खरी नहीं उतर पाई.  उसके पेरेंट्स उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे.  यह घटनाएँ समाज को बेचैन करने के लिए काफी है, क्योंकि यहाँ बच्चे पर उसके विपरीत करियर बनाने के लिए दवाब बनाया गया.

हर कोई चाहता है कि उनके सपने पूरे हो.  कुछ लोगों के सपने पूरे हो जाते हैं तो कुछ के अधूरे रह जाते हैं.  लेकिन अपने उसी अधूरे सपने को माँ-बाप बच्चों के जरिए पूरे होते देखना चाहते हैं.  लेकिन सपने पूरे करने के इस जद्दोजहद में जो बिखर जाते हैं, वे सपने बच्चों के ही होते हैं.  अपने बच्चों के लिए बेहतर सोचते-सोचते माता-पिता उनके भाग्य विधाता बन जाते हैं, उनके फैसले खुद लेने लगते हैं.  लेकिन यह नहीं समझते कि उनके फैसले के दवाब में बच्चे का दम घूंट रहा है.

ये हर घर की कहानी है.  यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए पेरेंट्स बहुत मेहनत करते हैं और पैसे खर्चने में भी पीछे नहीं रहते, फिर भी बच्चा उनकी उम्मीद पर खरा इसलिए नहीं उतर पाता, क्योंकि उस फील्ड में उसकी रुचि ही नहीं है इसलिए बार-बार वह असफल हो जाता है.

यही बात माता-पिता को समझाने के लिए एक सोशल एक्सपेरिमेंट किया गया.  जिसमें बच्चों और उनके माता-पिता को एक कमरे में बुलाया गया.  बच्चों और पेरेंट्स को अलग-अलग कैनवास दिए गए, जो वो बड़े होकर बनना चाहते हैं.  और माता-पिता से वो चित्र बनाने को कहा गया जो वो अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं.  आखिर में जब दोनों कैनवास को एक साथ दिखाया गया तो नतीजे चौंकने वाले थे.  दोनों चित्र एक दूसरे से विपरीत थे.  पेरेंट्स हैरान थे.  कुछ को तो पता भी नहीं था कि उनके बच्चे के सपने क्या हैं.   माता-पिता बच्चों पर दवाब बनाते हैं, लेकिन बच्चे क्या बनना चाहते हैं कोई नहीं पूछता.  माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएं लादते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि बच्चे में कैपिसिटी कितनी है या उसे वह बनने की इच्छा है भी या नहीं.  जबरन बच्चे पर डॉक्टर, इंजीनियर, सीए या एबीए करने का दवाब बनाने लगते हैं.  सपने देखने लगते हैं कि उनका बच्चा बड़ा अधिकारी बनें, भले ही इसके लिए बच्चे का सपना टूट कर बिखर ही क्यों न जाए.  बच्चे कई बार अपने माता-पिता का सपना पूरा न कर पाने के कारण खुद को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे एक छात्र जान दे रहा है.  क्योंकि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने माता-पिता के सपनों को साकार करें.  आज अधिकांश माता-पिता जॉब करते हैं इसलिए वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते.  बच्चे या तो क्रेच में या आया के भरोसे पलते हैं .  और फिर उनसे यह उम्मीद लगाई जाती है कि बच्चे वही करें जो माता-पिता चाहें ? आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं.  उन्हें इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास ले जाया जा रहा है.

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18 साल की रिचा, पढ़ाई के बाद मॉडलिंग करना चाहती है लेकिन उसके पापा उसे इंजीनियर बनना चाहते है और उसकी माँ चाहती है बेटी बैंक में जाए.  हालात ये हैं कि वह लड़की डिप्रेशन का शिकार हो चुकी है और उसका मनोचिकित्सक से इलाज चल रहा है.   लेकिन हमें यह बात समझनी होगी कि देश में जीतने भी महान व्यक्ति हुए वह बहुत बड़े डॉक्टर, इंजीनियर या सीए नहीं थे.  देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने तो आईआईटी पास नहीं किया था.  जेईई में फेल होने के बाद भी सत्या नडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ बने थे.  और कलपना चावला, जिन पर देश को गर्व है, उन्होंने आईआईटी परीक्षा पास नहीं की थी, लेकिन उन्होंने इतिहास रच दिया.

आइंस्टीन चार साल तक बोल नहीं पाए थे और सात साल तक लिख नहीं पाए थे.  उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था लेकिन वे एक महान व्यक्ति बनें.  थॉमस एडिशन को शिक्षक ने स्टुपिड बताते हुए कहा था, यह लड़का कुछ नहीं कर सकता.  लेकिन उसी एडिशन ने बल्ब का आविष्कार किया था.

बच्चों पर मनोवौज्ञानिक प्रभाव 

2014 में जारी एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में परीक्षाओं में असफल होने के बाद 2,471 छात्रों ने अपनी जान खत्म कर ली.  2012 में यह संख्या 2,246 पर आँकी गई थी.  विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज़्यादातर आत्महत्याओं का कारण पढ़ाई के लिए बच्चों पर माता-पिता का दवाब और अच्छे रिजल्ट की उम्मीद थी.  इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि माता-पिता की तरफ से बच्चों पर पढ़ाई और करियर का दवाब बहुत बड़ा है.  महाराष्ट्र और तमिलनाडू इसका उदाहरण हैं जहां बच्चों पर उनके माता-पिता द्वारा हाई स्कूल में विज्ञान और गणित लेने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बन सकें.  बच्चों के अपने सपने क्या है, वह क्या चाहते हैं उसे अनदेखा कर दिया जाता है.

नशे की गिरफ्त में बच्चे 

किशोर बच्चों में माता-पिता द्वारा डाले गए अत्यधिक दवाब से तनाव में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.  जब बच्चों पर माता-पिता का अधिक दवाब बनने लगता है और उन्हें इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, तब वह नशे की गिरफ्त में पड़ जाते हैं.  बच्चे के मन मुताबिक काम करने से जब उन्हें रोका जाता है तब वह डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं और अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं.  यहाँ माता-पिता को यह समझने की जरूरत है कि कहीं वह अपने बच्चे पर जरूरत से ज्यादा दवाब तो नहीं बना रहे हैं ?

माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों के अच्छे मार्गदर्शक बनें.  एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में माता-पिता को बच्चे के मन में आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उसकी उत्कृष्टता पर ध्यान दिलाना होता है.  यह भी माता-पिता की ही ज़िम्मेदारी है कि उनका बच्चा उनकी बात दिल से स्वीकार करें न की ज़ोर जबर्दस्ती से.

लड़का और लड़की में भेदभाव

कई बार माता-पिता अपने बच्चों को लड़का या लड़की होने के अनुसार व्यवहार करने के लिए उन्हें कहते हैं.  जैसे अगर लड़की है तो उन्हें यह नसीहत दी जाती है कि वो स्पोर्ट्स में भाग न लें और लड़कों को अपनी भावनाएं छिपाने की सलाह दी जाती है.  ऐसा करने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

माता-पिता अपने बच्चों के करियर को लेकर परेशान तो रहते हैं साथ में बच्चों को भी वह यह बोलकर परेशान कर देते हैं कि ‘देखो, फलां की बेटी ने सीए कंपीट कर लिया.  अगर अभी मेहनत नहीं करोगी /करोगे, और अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचोगे, तो तुम्हारा फ्यूचर बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता’ यह लाइन ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के सामने दोहराते हैं.  लेकिन भविष्य और करियर को लेकर बच्चों पर ज्यादा दवाब भी, उनके करियर को बर्बाद कर सकता है.  करियर ऑप्शन के बारे में ज्यादा सोचना या बेहतर रिजल्ट के लिए अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता से ज्यादा दवाब डालना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.  यह बच्चों की परफ़ोर्मेंस पर असर डाल सकता है, जो कि उनपर अतिरिक्त प्रेशर का कारण बन सकता है.

हाल ही में एक सर्वे आया, जिसमें कहा गया कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों के बजाए उनके करियर को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं.  सर्वे के मुताबिक, 51 फीसदी माता-पिता के लिए बच्चों की खुशी से ज्यादा उनका सफल करियर महत्वपूर्ण होता है.   बच्चों का करियर कौन चुने ? अभिभावक या बच्चा खुद, यह सबसे बड़ा सवाल है.  इस पर एक महान व्यक्ति का कहना है कि बच्चे को पालना एक बीस वर्षीय प्लान है.  अगर इस पर ढंग से काम लिया गया तो आपकी ज़िंदगी बेहतर होगी, नहीं तो ताउम्र बच्चे को पालना पड़ सकता है.  कौन नहीं चाहता कि उनका बच्चा समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करें, नाम और शोहरत कमाए, लेकिन इन सब के लिए जरूरी है पहले बच्चों की खुशियों को महत्व दिया जाए.  उसकी काबलियत के अनुसार उसे मनचाहा करियर चुनने की आजादी देना.

नितिन होनहार छात्र है और सोशल साइंस पढ़ने में उसे खूब मजा आता है.  लेकिन जब 11वीं में सब्जेक्ट चुनने की बारी आई तो उसने आर्ट्स लेना चाहा.  लेकिन टीचर्स कहने लगें कि ‘अरे, तुम तो पढ़ाई में तेज हो, फिर आर्ट्स क्यों लेना चाहते हो ? तुम्हें तो साइंस पढ़ना चाहिए.  उसके प्रिंसिपल ने भी वही बात दोहराई.  उसके मम्मी पापा  भी वही बात दोहराते हुए बोले कि नहीं तुम आर्ट्स नहीं ले सकते.  दोस्त-रिश्तेदार क्या कहेंगे कि तुम्हारा बच्चा पढ़ने में तेज नहीं है.  यहाँ माँ-बाप को इस बात की चिंता सताने लगी कि दोस्त और नातेरिशतेदार क्या कहेंगे.  लेकिन ठहर कर एक बार यह नहीं सोचा कि उनके बच्चे क्या चाहते हैं.  यह तो वही बात हुई कि बच्चे को जबर्दस्ती पानी में ठेल दो और कहो कि तैरो, नहीं तो लोग हसेंगे.   फिर तो डुबना उसका तय ही है.   हर साल 10वी और 12वीं की रिजल्ट के समय नंबर गेम में फँसकर बच्चे डिप्रेशन में चले जाते हैं या अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ ? 

मनोचिकित्सक डॉ. नियति दीवान के मुताबिक, भारतीय माँ-बाप का लक्ष्य चुनने का तरीका सही नहीं है.  हम विदेशी संस्कृति के दवाब में हैं.  यह नहीं देखते कि हमारा बच्चा इससे खुश भी हैं या नहीं.  लेकिन माँ-बाप को समझना चाहिए कि बच्चे की खुशी से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है.  बच्चा तभी अपनी मंजिल तक पहुँच पाएगा, जब वह वाकई में खुश होगा.

बच्चों पर सपने थोपना गलत 

अक्सर देखा गया है माता-पिता अपने सपने बच्चों पर थौपते हैं.  लेकिन यह बात नहीं समझते कि बच्चों के सपने उनसे अलग हो सकते हैं.  यहाँ अगर बच्चा माता-पिता के सपने पूरा करता है, तो जीवन भर इस ग्लानि में गुजार देगा कि उसके अपने सपने पूरे नहीं हो पाएँ.  और अगर माता-पिता के सपने नहीं पूरा कर पाया, तो इस अफसोस में रहेगा कि उनके सपने पूरे नहीं हो पाएँ.  यह दोनों बातें बच्चों के लाइफ स्टाइल पर असर डाल सकता है जो उनके स्वास्थ्य पर आगे जाकर प्रभाव डाल सकता है.  बच्चे जो भी करियर का चुनाव करता है अपने लिए, उसमें माता-पिता को साथ देना चाहिए.  बच्चों में कितनी क्षमता है वह क्या कर सकता है क्या नहीं, माता-पिता से बेहतर कोई नहीं जान सकता.

करियर प्रेशर में सेहत का ध्यान 

हाई मार्क्स के लिए सेहत का ध्यान न रखना और शारीरिक क्षमता से ज्यादा पढ़ना, अपने दोस्त या कॉलेजमेट से बेहतर कॉलेज या प्लेसमेंट प्राप्त करने की ज्यादा फिक्र, अच्छी सैलरी वाली नौकरी पाने की चिंता, जबतर्दस्ती थोपे गए करियर का दवाब, अपने मनपसंद करियर के न चुन पाने का दुख आदि, बच्चे को कई स्वास्थ्य समस्याएँ प्रदान कर सकता है, जो की बच्चे के भविष्य के लिए हानिकारक है और यहाँ तक कि उनके लिए जानलेबा भी साबित हो सकता है.

करियर प्रेशर की वजह से बच्चे कई समस्याओं से घिर सकते हैं, जैसे कि हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, एंग्जायटी, दिल की बीमारी, शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, माइग्रेन, सुसाइट टेंडेंसी आदि.

माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे के व्यवहार और भावनाओं पर नजर रखें.  बच्चे के साथ विश्वास बना कर चलें.  उनकी बातों का विरोध न कर धर्य से उनकी बात सुनें.  बच्चे पर किसी खास करियर या अपनी उम्मीदों का दवाब न बनाएँ.  बच्चे जिस भी फील्ड में जाना चाहता है उसमें उसका साथ दें.

हर इंसान की सोच और सपने अलग-अलग होते हैं.  लेकिन माता-पिता के दवाब में आकर बच्चे अपने सपने भूल जाते हैं.  लेकिन आज के पेरेंट्स को यह बात समझनी होगी कि जब वे अपने बच्चों के करियर के सपने सँजोएँ, तो बच्चों की रुचि का पूरा ध्यान रखें.  क्योंकि सफलता उसी काम में मिलती है जिसमें इंसान की खुशी हो, जो वह करना चाहता हो.  आज करियर की कमी नहीं है.  आज वो समय भी नहीं रहा कि अपनी हॉबी को करियर न बनाया जा सके.  बच्चों के जरिए अपनी अधूरी ख्वाइशों को पूरा करने या लोग क्या कहेंगे के बजाय बच्चों की ख्वाबों को आकार दें.  बच्चे अपनी काबलियत के हिसाब से अपना करियर और ज़िंदगी बना लेंगे.  आने वाले कल में हो सकता है यही बच्चे एपीजे अब्दुल कलाम, कलपना चावला, सचिन, सानिया बन जाएँ.

बच्चों के करियर के लिए फाइनेंशियल प्लानिग 

सिर्फ 24 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों के करियर के लिए वित्तीय रूप से तैयारी करते हैं.  एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि इन अभिभावकों में ज़्यादातर परंपरागत विकल्पो, मसलन मेडिसिन और इंजीनियरिंग से लेकर गैर परंपरागत विकल्पों, मसलन फैशन डिजाइनिग और शेफ के रूप में अपने बच्चों का करियर बनाने को भविष्य के लिए पैसे जमा करते हैं.

अवीवा इंडिया की एक रिपोर्ट, सात शहरों में मुंबई, पुणे, बेंगलूर, कोलकाता, नयी दिल्ली, हैदराबाद तथा चेन्नई में 11,300 अभिभावकों के जवाब पर  आधारित है.  इसमें यह तथ्य सामने आया कि बच्चों के सपनों तथा इसके लिए उनके माता-पिता की वित्तीय तैयारियां में काफी अंतर है.  अवीवा इंडिया की मुख्य अंजलि मल्होत्रा कहती हैं कि “भारत में बच्चे बड़े सपने देखते हैं लेकिन अभिभावक इसके लिए तैयारी में पीछे रह जाते हैं हालांकि, बच्चों की शिक्षा के लिए बजट उनकी प्राथमिकता होती है, लेकिन वास्तव में बचत प्रक्रिया के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती” रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि बच्चों की महत्वकांक्षाएं कुछ परंपरा से हटकर करियर विकल्पों की ओर जा रही है, वहीं अभिभावकों की इसके लिए तैयारी कमजोर है.

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ये पंख बनाएंगे उड़ान को आसान

श्रुति की जिद थी कि उसे आगे की पढ़ाई हॉस्टल में रहकर ही करनी है वहीं उसकी माँ इसके जरा भी पक्ष में नहीं थी. श्रुति का देर तक सोना, अपने मैले कपड़े बाथरूम में छोड़ देना, खाने के नाम पर सौ नखरे करना जैसे कई कारण माँ की धारणा को पुख्ता कर रहे थे वहीं श्रुति का कहना था कि सिर पर पड़ेगा तो सब सीख जाऊँगी. लेकिन माँ को कहने भर से भला विश्वास कैसे होता.

एक दिन श्रुति की सहेली मिताली उससे मिलने आई. माँ ने चाय का पूछा तो मिताली ने कहा- “आंटी! आप बैठिए, चाय मैं बनाकर लाती हूँ.”

माँ उसे आश्चर्य से देख रही थी. मिताली लपककर रसोई में गई और झपककर तीन कप चाय बना लाई. साथ में बिस्किट और नमकीन भी रखे थे. माँ ने कुछ कहा तो नहीं लेकिन एक चुभती सी निगाह श्रुति पर डालकर चाय पीने लगी.

“तूने ये सब कब सीख लिया?” श्रुति ने आश्चर्य से पूछा.

“अरे यार, क्या बताऊँ? तुझे तो पता है ना कि इंजीनियरिंग के लिए बाहर का कॉलेज मिला है. दो महीने बाद जाना है. सोचा कुछ प्री ट्रेनिंग ही ले लूँ ताकि अनजान जगह पर परेशान न होना पड़े.” मिताली ने कहा.
“तुझे पता है नेहा के साथ पिछले साल क्या हुआ था जब वो एमबीए करने पुणे गई थी?”
“क्या?” माँ बीच में ही बोल पड़ी.

“हॉस्टल का खाना उसे अच्छा नहीं लगा तो वह एक पीजी में रहने लगी लेकिन वहाँ भी एक साथ कई लड़कियों का खाना बनता था. नेहा को वो खाना भी नहीं ज़चा. जचता भी कैसे? कहाँ राजस्थान और कहाँ महाराष्ट्र. अब खुद को तो कुछ बनाना आता नहीं था सो बाहर से मंगवाने लगी. नतीजा! होटल का खा-खाकर वजन तो बढ़ा ही, पेट भी खराब रहने लगा. जांच में पता चला पेट में अल्सर हो गया. अब तो सबसे कहती है कि बाहर का रोज खाने से तो अच्छा है खिचड़ी-दलिया बना लो.” मिताली ने नेहा की पूरी कहानी सुनाई तो श्रुति की आँखें आश्चर्य से फैल गई.

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“मैं कहती हूँ ना कि कुछ बनाना करना सीख ले लेकिन इसे कुछ समझ मेंआए तब ना? देखना ये भी नेहा की तरह ही परेशान होगी. अरे घर से बाहर अकेले रहना आसान है क्या?” माँ ने श्रुति को सुनाते हुये कहा आखिर वह भी तो इसी नाव की सवारी करना चाह रही थी.

“अरे आंटी, सिर्फ खाना ही तो एक समस्या नहीं होती ना! और भी गम हैं जमाने में मुहोब्बत के सिवा.” शायराना होने के साथ मिताली ने एक जोरदार ठहाका लगाया.

तो चलिए श्रुति के साथ-साथ हम सब भी जानते हैं कि घर से बाहर रहने जा रहे युवाओं को वे कौन सी खास बातें जाननी-सीखनी चाहिए है जो उनके प्रवास को परेशानी रहित बना सकती है.

व्यक्तिगत ट्रेनिंग

1. घर से बाहर निकलने के बाद सबसे पहली समस्या खाने को लेकर आती है. यूँ तो अमूमन सभी संस्थाओं में होस्टल के साथ-साथ मेस की व्यवस्था भी होती है लेकिन ये जरूरी नहीं कि हर रोज बनने वाला सामुहिक खाना-नाश्ता आपकी पसंद का ही हो इसलिये आपको कुछ बेसिक फूड बनाना आना चाहिए. और वे खास डिशेज भी जो आपको पसंद हों.

2. खाना आपने बना लिया तो बर्तन भी इस्तेमाल किये होंगे लेकिन सब जानते हैं कि बर्तन साफ करना कितनी टेढ़ी खीर है. घर में अवश्य ही सहायिका आती होगी लेकिन यहाँ तो ये काम खुद आपको ही करना पड़ेगा इसलिए बर्तन मांजने की ट्रेनिंग भी बाहर जाने वालों के लिए जरूरी है.

3. खाना बनाने के लिए जिस उपकरण का उपयोग किया गया यथा हीटर, गैस स्टोव या फिर इंडक्शन प्लेट इनके रखरखाव की सामान्य जानकारी भी आपको होनी चाहिए.

4. खाने के बाद बारी आती है कपड़ों की. रोज पहनने या फिर चद्दर-तोलिये बेशक धोबी से धुलवाए जा सकते हैं लेकिन अंतर्वस्त्र तो खुद ही धोने चाहिए. आपात स्थिति के लिए कपङे सही तरीके से इस्त्री करने भी आने चाहिए.

5. रोटी, कपड़े के बाद मकान की बारी. जिस घर, होस्टल या पीजी में आप रह रहे हैं उसकी नियमित साफ-सफाई होनी जरूरी है. यह न केवल आपकी सेहत के लिए अच्छा है बल्कि कारीने से व्यवस्थित कमरा आपको उत्साही बनाये रखने में भी सहायक है. कमरे में बिखरा हुआ सामान नकारात्मक ऊर्जा लाता है.

6. यदि कमरा किसी के साथ शेयर कर रहे हैं तो रूमपार्टनर के साथ दोस्ताना रहें. याद रखिए कि यही वह व्यक्ति होगा जो सबसे पहले आपकी मदद के लिए उपलब्ध होगा.

तकनीकी ट्रेनिंग

व्यक्तिगत आवश्यक ट्रेनिंग के साथ-साथ कुछ अन्य तकनीकी बातों की जानकारी होनी भी बहुत जरूरी हैं. ये बातें चाहे रोजाना काम में आने वाली नहीं है लेकिन इनकी महत्ती भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.

1. यात्रा के लिए ऑनलाइन टिकट बुक करवाना.

2. ऑनलाइन ट्रांसक्शन करना.

3. बैंक और पोस्ट ऑफिस से जुड़े सामान्य कामकाज.

4. इंटरनेट डेटा का सही इस्तेमाल.

5. अपने सामान की सही तरीके से पैकिंग करना.

6. आपातकालीन दवाओं की जानकारी होना.

7. खर्च के लिए मिलने वाले पैसे का सही इस्तेमाल.

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व्यावहारिक ट्रेनिंग

व्यक्तिगत और तकनीकी ट्रेनिंग तो किसी अन्य व्यक्ति की मदद भी ली जा सकती है लेकिन व्यावहारिक ट्रेनिंग तो आपको स्वयं ही लेनी होगी. निम्नलिखित बातें बेहद जरूरी हैं जो आपको जाननी चाहियें.

1. बाहर जाने पर सबसे जरूरी बात है कि आपका आत्मविश्वास बना रहे. आत्मविश्वास आपको किसी भी अप्रिय स्थिति में सहज बने रहने एवं सही निर्णय लेने में मदद करता है.

2. अनजान व्यक्तियों के साथ व्यवहार में भी कुशल होना बहुत जरूरी है. आपका व्यवहार आपकी बहुत सी समस्याओं को हल कर सकता है.

3. शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी खयाल रखें. अकेलापन न खले इसलिए अपने शौक कायम रखें. दोस्तों और घरवालों के साथ नियमित संवाद बनाए रखें.

उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर यदि आप अपने भविष्य की उड़ान भरेंगे तो निश्चय ही आसमान छू लेंगे.

वैकल्पिक स्त्रीरोग को महिलाएं ना करें नजरअंदाज, हो सकता है नुकसान

मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा की सीनियर कंसल्टेंट और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ मंजू गुप्ता द्वारा इनपुट

कोविड-19 के शुरुआती फेज में हॉस्पिटल के बेड्स बहुत तेजी से भर रहे थे और इसलिए पूरी दुनिया के डॉक्टरों ने कुछ चिकित्सा प्रक्रियाओं को स्थगित करने का फैसला किया था. कई सर्जरी जो एमरजेंसी की स्थिति में नहीं होती, उन्हें वैकल्पिक सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है. इस तरह की सर्जरी को कोरोना के चरम काल में स्थगित कर दिया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में कोविड मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सके. हालाँकि 2020 की आखिरी तिमाही में कुछ क्षेत्रों में वैकल्पिक सर्जरी फिर से शुरू हुई, लेकिन यह देखा गया है कि कई मरीजों को अभी भी हॉस्पिटल जाकर अपनी वैकल्पिक सर्जरी करवाने में शंका हो रही है. कई मेडिकल एसोसिएशन और हॉस्पिटल्स ने कोविड-19 के दौर में वैकल्पिक सर्जरी के लिए अपने खुद के सुरक्षा दिशानिर्देश जारी किए हैं.

वैकल्पिक सर्जरी के कॉमन टाइप (प्रकार)

विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, “वैकल्पिक सर्जरी” को किसी भी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, वैकल्पिक सर्जरी से मतलब ऐसी सर्जरी से होता है जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभाव न हो या जिसे तीन महीने तक स्थगित करने पर मरीज के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. इन नॉन-एमरजेंसी प्रक्रियाओं में निम्नलिखित सर्जरी शामिल हैं:

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● कॉस्मेटिक सर्जरी

● डर्मटोलॉजी प्रक्रिया

● आई सर्जरी (नेत्र शल्य चिकित्सा) जैसे मोतियाबिंद सर्जरी

● पित्ताशय की थैली (गैललब्लड्डेर) की सर्जरी

● स्त्री रोग संबंधी सर्जरी, जैसे कि हिस्टेरेक्टॉमी

● आर्थोपेडिक सर्जरी

● प्रोस्टेट सर्जरी

गैर-जरूरी रिप्रोडक्टिव हेल्थ केयर (प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल) में देरी होने से पड़ने वाला प्रभाव

प्रेग्नेंसी केयर (गर्भावस्था देखभाल)

प्रसवपूर्व अल्ट्रासाउंड और भ्रूण के सर्वेक्षण सहित प्रसव पूर्व देखभाल में देरी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे गंभीर खतरा हो सकता है. यदि डाक्टर भ्रूण के विकास में कोई अनियमित वृद्धि देखता है, तो उसे सर्जरी की जरुरत हो सकती है. इससे विशिष्ट जन्म दोष वाले बच्चों के दीर्घकालिक परिणाम को बेहतर बनाने में मदद करता है.

स्त्री रोग संबंधी कैंसर

ओवेरियन ट्यूमर से सम्बंधित सर्जरी को लेकर डाक्टरों ने सुझाव दिया है कि इस तरह की सर्जरी में देरी नहीं करनी चाहिए. ओवेरियन कैंसर या सर्वाइकल कैंसर जोकि स्टेज 1B में होती है तो इसके सर्जरी में देरी नहीं होनी चाहिए. जिस मरीज में जानलेवा आंत में रुकावट या हैमरेज होता है उन्हें भी तुरंत मेडिकल हस्तक्षेप की जरुरत होती है.

आपातकालीन गर्भनिरोधक प्रक्रिया

कोविड-19 द्वारा लगे लॉकडाउन में कई जगहों पर इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता में कमी देखी गई थी, इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोली की प्रभावकारिता तब होती है जितनी जल्दी आप इसे खाते हैं जितना जल्दी आप इसे खायेंगे उतना ही ज्यादा इसका प्रभाव होगा. जितनी जल्दी हो सके अपने असुरक्षित यौन संबंध के बाद इन गर्भनिरोधक गोलियों को खाएं. ये गोलियां केवल तभी प्रभावी होती है जब इसका उपयोग गर्भावस्था होने से पहले किया जाता है. इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों में पहले से ही स्थापित हो चुकी गर्भावस्था को समाप्त करने में कोई क्षमता नहीं होती है.

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सौम्य स्त्री रोग संबंधी कंडीशन

फाइब्रॉएड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक दर्द और सौम्य ओवेरियन की सर्जरी में कई महीनों तक देरी हो सकती है. फाइब्रॉएड के ट्रीटमेंट में देरी होने से एनीमिया, बांझपन और किडनी, आंत्र, मूत्राशय या संचार प्रणालियों में परेशानी आ सकती है जोकि लॉन्गटर्म कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती है.

स्लिप डिस्क से जुड़ी समस्या और उसका इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 42 साल है. कोविड-19 के कारण वर्क फ्रौम होम के चलते मुझे कमर के निचले हिस्से में दर्द रहने लगा है. कभीकभी यह दर्द असहनीय हो जाता है. क्या करूं?

जवाब

कोविड-19 के दौरान गैजेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण कई लोग स्पाइन से संबंधित समस्याओं के शिकार हुए हैं. अगर आप ध्यान न देंगी तो समस्या गंभीर हो जाएगी. तुरंत डाक्टर को दिखाएं. फिजियोथेरैपी और पेन किलर की सहायता से 80% लोगों को आराम मिल जाता है. जिन की समस्या गंभीर होती है उन के लिए एमआरआई, ऐक्सरे और दूसरी जांच की जाती है.

सवाल-

मैं 22 वर्षीय कालेज स्टूडैंट हूं. कुछ समय पहले मेरा माइनर ऐक्सीडैंट हो गया था. उस के बाद से मुझे स्लिप डिस्क की समस्या हो गई है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप की उम्र बहुत कम है, इसलिए आप किसी अच्छे न्यूरोसर्जन से जांच कराएं. स्लिप डिस्क का उपचार इस पर निर्भर होता है कि समस्या किस स्तर पर है और डिस्क में कितनी खराबी आ गई है. दवाइयों और फिजियोथेरैपी से इसे ठीक करने का प्रयास किया जा सकता है. स्लिम डिस्क के 90% मामलों में औपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन 10% मामलों में सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है.

सवाल-

मैं 32 वर्षीय कंप्यूटर औपरेटर हूं. पिछले 2 माह से कमर में दर्द हो रहा है. जांच करवाने पर बल्जिंग डिस्क होने का पता चला है. कृपया बताएं कि इस से कैसे बचा जा सकता है और इस का क्या उपचार है?

जवाब

इस बीमारी से बचाव के लिए आप एक ही जगह पर लगातार न बैठे. थोड़ीथोड़ी देर में उठें और चले तथा अपने बैठने और खड़े रहने का ढंग सही रखें ताकि रीढ़ और डिस्क पर दबाव कम पड़े. इस के अलावा हर दिन कम से कम 20 से 30 मिनट तक व्यायाम जरूर करें. मामूली समस्या को फिजियोथेरैपी द्वारा भी ठीक किया जा सकता है, लेकिन इस का सब से कारगर उपचार आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमैंट है. इस सर्जिकल प्रक्रिया के द्वारा क्षतिग्रस्त डिस्क को कृत्रिम डिस्क से बदल दिया जाता है.

-डा. मनीष वैश्य

निदेशक, न्यूरो विभाग, मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, वैशाली, गाजियाबाद. 

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

फैमिली के लिए बनाएं हैल्दी और टेस्टी दही-पनीर रोल

स्नैक्स में अनहैल्दी चीजें हर कोई खाता है. लेकिन क्या आपने स्नैक्स के लिए कोई हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राय की है. दही-पनीर रोल स्नैक्स के लिए सबसे आसान और हेल्दी रेसिपी है. इसे आप अपनी फैमिली के लिए शाम के नाश्ते में खिला सकते हैं. तो आइए आपको बताते हैं दही-पनीर रोल की ये खास रेसिपी…

हमें चाहिए-

–  6 ब्रैड पीस

–  3 बड़े चम्मच गाढ़ा दही

–  2 बड़े चम्मच पनीर कसा

–  1 हरीमिर्च कटी

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–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  2 बड़े चम्मच मक्खन पिघला

–  1 बड़ा चम्मच मैदा

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

ब्रैड पीसों को बेलन की सहायता से बेल कर कुछ पतला कर लें. दही में पनीर, नमक, हरीमिर्च, बारीक कटा हुआ धनिया अच्छी तरह मिला लें. ब्रैड पीस पर मक्खन लगा लें. मैदे में थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्ट बना लें. ब्रैड पर दही का थोड़ा सा मिश्रण रखें. किनारों पर मैदे का पेस्ट लगा लें. अच्छी तरह से कसा रोल बना कर फौयल पेपर में लपेट कर कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें. परोसने से पहले एक पैन में थोड़ा सा तेल लगा कर चारों ओर से सुनहरा सेंक लें.

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समर कलेक्शन के लिए परफेक्ट हैं सारा अली खान के ये लुक्स, देखें फोटोज

गरमियों की शुरुआत हो चुकी हैं. वहीं अब नए-नए फैशन ने भी मार्केट में जगह बना ली है. इसी बीच बौलीवुड एक्ट्रेसेस ने भी अपने समर कलेक्शन की झलक फैंस को दिखाना शुरु कर दिया है. एक्ट्रेस सारा अली खान इन दिनों टीएनएजर्स के लिए फैशन सेंसेशन हैं. उनका सिंपल और स्टाइलिश फैशन फैंस को काफी पसंद आता है. इसीलिए आज हम सारा अली खान के कुछ समर कलेक्शन की झलक आपको दिखाएंगे, जिसे आप आसानी से ट्राय कर सकती हैं.

पार्टी के लिए कुछ ऐसा रहता है सारा का लुक

बीते दिनों अपने भाई के बर्थडे की पार्टी में सारा अली खान बेहद सिंपल लुक में नजर आईं थीं. सिंपल शिमरी प्रिंटेड ड्रैस के साथ हाई हील्स में सारा बेहद ही खूबसूरत लग रही थीं. इस लुक को समर पार्टी के ट्राय किया जा सकता है. आप चाहें तो इस ड्रैस के साथ शूज भी ट्राय कर सकती हैं, जो आपके लुक को कूल और फैशनेबल बनाएगा.

 

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सिंपल लुक के साथ नजर आईं सारा

 

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हाल ही में सारा अली खान एक फोटोशूट की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह ब्लैक डैनिम के साथ प्रिंटेड क्रौप टौप संग कोट पहने नजर आ रही हैं. सारा का ये लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. इस लुक को आप समर में कोट की बजाय श्रग के साथ भी ट्राय कर सकती हैं.

फंक्शन में पहनें कुछ नया

 

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विंटर हो या समर, फंक्शन कभी भी आ सकता है तो अगर आप समर क्लेक्शन में कुछ खास ओकेजन के लिए इंडियन ड्रैस की तलाश कर रही हैं तो सारा अली खान का ये ब्लैक कौटन सूट जरुर ट्राय करें. बौटम नेक वाले इस प्लेन सूट के साथ प्लाजो परफेक्ट औप्शन साबित होगा. इसके साथ आप झुमके भी ट्राय कर सकती हैं.

फ्लावर प्रिंटेड ड्रैस है परफेक्ट औप्शन

 

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गरमियों में फ्लावर प्रिंटेड ड्रैसेस का कलेक्शन सभी के पास होता है. अगर आप भी इस कलेक्शन को अपने वौर्डरोब में शामिल करना चाहते हैं तो सारा अली खान की ये प्रिंटेड ड्रैसेस ट्राय कर सकते हैं.

 

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ट्राउजर करें ट्राय

 

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समर में ट्राउजर और डैनिम के कई औप्शन मार्केट में मौजूद होते हैं तो आप कलरफुल डैनिम ट्राय कर सकती हैं. इसके साथ आप क्रौप टौप का इस्तेमाल करें तो अच्छा औप्शन रहेगा.

हर लड़की के पास होने चाहिये ये 6 ब्यूटी प्रोडक्ट

कई बार हम दुकानों पर जाते है और वही ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट खरीदते हैं जो उस समय हमारे मन को भा जाते हैं. पर हम वह चीजें खरीदना भूल जाते हैं जिसकी असलियत में हमें जरुरत होती है. लड़कियों के लिये कुछ ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट बहुत जरुरी हैं, जो उनके पास होने ही चाहिये. आइये जानते हैं उनके बारे में-

1. फेस क्रीम

बाहर निकलते वक्‍त चेहरा ही शरीर का एक भाग होता है जो कि हमेशा खुला ही रहता है. तो इसके लिये एक स्‍पेशल क्रीम होनी चाहिये, जो पूरे चेहरे को ढंक ले.

हम केवल अपने चेहरे पर मौइस्‍चराइजर लगा लेते हैं और सोटचते हैं कि हमारे चेहकरे की त्वचा सही रहेगी पर क्‍या हमारे पूरे शरीर को नमी की जरुरत नहीं होती. नहाने के बाद पूरे शरीर पर बौडी लोशन लगाना चाहिये.

ये भी पढ़ें- 5 Tips: कैसे चुनें सही फेस क्रीम

2. फेस वाश

चेहरे को कभी भी साबुन से नहीं धोना चाहिये क्‍योंकि महिलाओं की स्‍किन बहुत पतली होती है. इसके लिये हमेशा अच्‍छी कंपनी का फेस वाश ही चुने जो कि हल्‍का हो और आप उसे रोज प्रयोग कर सकें.

3. स्‍क्रब

फेस वाश की ही तरह से स्‍क्रब भी होता है, लेकिन यह चेहरे से डेड स्‍किन और ब्‍लैकहेड को साफ करता है. आपको ऐसा स्‍क्रब प्रयोग करना चाहिये जिसमें सिलिका या सैंड ना मिला हो. इसके लिये आप नेचुरल स्‍क्रब का इस्‍तमाल करें.

4. बौडी लोशन

बदलते मौसम के लिए स्किन केयर जरुरी है, जिसके लिए हर जगह हमारे पास बौडी लोशन होना जरुरी है. इसीलिए कहीं भी जाते समय अपने साथ बौडी लोशन रखना ना भूलें.

5. स्‍किन टोनर

स्‍क्रब करने के बाद स्‍किन के पोर्स खुल जाते हैं, तो ऐसे में इन पोर्स को बंद करने की जरुरत होती है. इसके लिये आप एक अच्‍छा स्‍किन टोनर खरीद लें वरना गंदगी फिर से आपके चेहरे पर बैठ जाएगी.

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6. क्‍लींजिंग लोशन

भले ही आपके पास कितने ही लोशन और क्रीम क्‍यों ना हों, लेकिन क्‍लींजर की जगह कोई नहीं ले सकता. यह चेहरे से मेकअप हटाने का कार्य करता है.

जानें क्या है इमोजी

यह एक इलैक्ट्रौनिक चित्रों का समूह है. इस में हम अपनी भावनाओं को इस इलैक्ट्रौनिक संचार का उपयोग कर के व्यक्त करते हैं. इमोजी भावना, वस्तु या प्रतीक के एक दृश्य का रिप्रेजैंटेशन होता है. यह विभिन्न फोन या सोशल नैटवर्किंग साइट पर विभिन्न रूपों में होता है.

सबसे पहले डिजाइन किस ने किया

शिगेताका कुरिता ने 25 साल की उम्र में इमोजी का सब से पहला सैट बनाया था, जिस में लगभग 176 इमोजी थीं. दिलचस्प बात यह है कि फादर औफ इमोजी कहे जाने वाले शिगेताका कुरिता न इंजीनियर थे और न ही कोई डिजाइनर. उन्होंने तो अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी.

इमोजी की शुरुआत कब और कैसे हुई

1990 के दशक के आखिर में यानी 1998-1999 में रंगबिरंगी इमोजी का इस्तेमाल शुरू हुआ. एक जापानी टैलीकौम कंपनी के कर्मचारी शिगेताका कुरिता ने इस कंपनी की मोबाइल इंटरनैट सर्विस के लिए इमोजी बनाई थीं. इस मोबाइल इंटरनैट में ईमेल भेजने के लिए कैरेक्टर की संख्या 250 थी, जिस में हंसी, दुख, क्रोध, सरप्राइज और कन्फ्यूजन का भाव दर्शाने वाली इमोजी भी शामिल थीं.

जापान में इमोजी को लोकप्रिय होता देख 2007 में सब से पहले ऐप्पल आईफोन ने अपने मोबाइल फोन में इमोजी की बोर्ड को शामिल किया, जिस में एसएमएस, चैटिंग, व्हाट्सऐप, मैसेज करने के दौरान अपने भाव प्रकट करने के लिए इमोजी का इस्तेमाल किया जाने लगा और फिर इमोजी सब से तेजी से बढ़ती भाषाओं में से एक हो गई.

– 2013 में इमोजी शब्द को औक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में शामिल किया गया.

– 2015 में इमोजी को ‘वर्ड औफ द ईयर’ घोषित किया गया.

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– 2016 में न्यूयौर्क में ‘म्यूजियम औफ मौर्डन आर्ट’ ने अपने स्थाई कलैक्शन में शिगेताका कुरिता की 176 इमोजी के पहले सैट को शामिल किया. हौलीवुड में एक ऐनिमेटेड मूवी भी बनाई गई, जिस में 250 इमोजी दिखाई गईं.

– अब तक इमोजी की संख्या 2,666 हो गई है.

– यूनिकोड कमेटी के मुताबिक, हर साल सैकड़ों नई इमोजी के आवेदन मिलते हैं.

इमोजी दिवस

इमोजीपीडिया के संस्थापक जेरेमी बर्ज ने 2014 में विश्व इमोजी दिवस मनाने का निर्णय लिया था. उस के बाद से 14 जुलाई को विश्व इमोजी दिवस को वैश्विक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा.

इंस्टैंट मैसेजिंग एवं व्हाट्सऐप पर उपलब्ध इमोजी लोगों के बीच स्पष्ट भाव को प्रकट करने का काम करती हैं, लेकिन व्हाट्सऐप की एक इमोजी पर अब खतरा मंडराने लगा है. दरअसल, एक भारतीय ने व्हाट्सऐप की एक आपत्तिजनक इमोजी को ले कर लीगल नोटिस भेजा है. गुरमीत सिंह नाम के इस भारतीय ऐडवोकेट ने व्हाट्सऐप की मिडल फिंगर को ले कर आपत्ति जताई है. अपनी शिकायत में उन्होंने बताया कि मिडल फिंगर इमोजी न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि यह अश्लीलता का प्रतीत भी है.

सोशल मीडिया में इस्तेमाल होने वाली इमोजी पर ब्रिटेन की अदालतों ने चिंता जताई है. देश में कानूनी विवादों में इन इमोजी का उपयोग केस को और पेचीदा बना रहा है. इसलिए वकील इन डिजिटल प्रतीकों के संदर्भ में एक गाइडलाइन जारी करने का आग्रह कर रहे हैं. ब्रिटेन की अदालतों में आपराधिक, पारिवारिक एवं व्यवसाय या रोजगार संबंधी कानूनी विवादों की सुनवाई में प्रस्तुत सुबूतों में ये इमोजी काफी देखने को मिल रही हैं.

सैंटा क्लैरा विश्वविद्यालय में कानून विभाग के प्रोफैसर एरिक गोल्डमैन का कहना है कि 2018 में 53 मामलों में इमोजी शामिल थीं, जो 2017 में 33 और 2016 में 26 इमोजी की तुलना में लगभग दोगुनी हो गईं. गोल्डमैन के अनुसार लोगों के डिवाइस और सोशल मीडिया प्लेटफौर्म भी एक ही इमोजी को अलगअलग तरीकों से प्रदर्शित कर सकते हैं और वह भी भेजने वाले और पाने वाले की जानकारी के बिना इस से अनायास ही विवाद होने का अंदेशा रहता है.

यौन शोषण के मामलों में ज्यादा उपयोग

गोल्डमैन के शोध में सामने आया है कि इमोजी अब ज्यादातर कानूनी मामलों में नजर आने लगी हैं. यौन शोषण संबंधी मामलों में ये सब से ज्यादा उपयोग की जाती हैं. तेजी से बढ़ते मामलों के बावजूद इन की कानूनी रूप से व्याख्या नहीं की गई है, जबकि अब नए ऐनिमेटेड (जिफ फाइल) और पहले से ज्यादा व्यक्तिगत इमोजी आ गई हैं जो चुनौती बन गई हैं.

वर्कप्लेस पर इमोजी का इस्तेमाल बिगाड़ सकता है छवि: अपने सहकर्मी को ईमेल करते वक्त, खुश हो कर या ईमेल को प्र्रभावी बनाने के लिए अगर आप इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, तो यह आप के प्रोफैशनल कैरियर के लिए अच्छा नहीं है. एक हालिया शोध की मानें तो कार्यस्थल पर इमोजी का इस्तेमाल आप की छवि किस हद तक प्रभावित कर सकता है, यह आप सोच भी नहीं सकते. इसराईल की एक यूनिवर्सिटी में किए गए शोध के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि ईमेल के साथ स्माइली या अन्य इमोजी आप को पेशवर तौर पर अयोग्य साबित करती हैं.

शोध में शामिल डा. इला गिल्क्सन के अनुसार, पहली बार किसी शोध के नतीजे इमोजी के प्रयोग के प्रभाव का सुबूत पेश कर रहे हैं. उन के मुताबिक वास्तविक मुसकान के विपरीत इन इमोजी का इस्तेमाल कर के अगर आप सोचते हैं कि इस ईमेल के जरीए आप गरमजोशी दिखाने में कामयाब रहे हैं, तो यह गलत है. इस से आप की प्रोफैशनल क्षमताओं पर संदेह किया जा सकता है. औपचारिक बिजनैस ईमेल में एक स्माइली, स्माइली नहीं होती. शोधकर्ताओं ने इस शोध में 29 अलगअलग देशों के 54 प्रतिभागियों को शामिल किया था.

अगर आप व्हाट्सऐप, फेसबुक या किसी अन्य मैसेजिंग सर्विस पर कोई भी टैक्स बिना इमोजी के नहीं भेजते हैं तो आप के दिमाग पर सैक्स थोड़ा हावी हो सकता है. यह हम नहीं, ‘डेटिंग वैबसाइट मैच डौट कौम’ का एक नया शोध कहता है.

क्या कहता है शोध

‘डेटिंग वैबसाइट मैच डौट कौम’ के शोध के मुताबिक वे लोग, जो अपने लगभग हर टैक्स्ट मैसेज में इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, उन का दिमाग ज्यादातर वक्त सैक्स के बारे में सोचता रहता है. इस शोध में अहम भूमिका निभाने वाली हैलेन फिशर के अनुसार इमोजी इस्तेमाल करने वाले न केवल ज्यादा सैक्स करते हैं, बल्कि वे ज्यादा डेट्स पर भी जाते हैं, साथ ही इन लोगों की शादी करने की संभावना इमोजी का इस्तेमाल कम या बिलकुल नहीं करने वाले लोगों की तुलना में दोगुनी होती है.

किन लोगों पर हुआ शोध: 25 देशों में 8 अलगअलग भाषाओं में काम कर रही इस वैबसाइट ने कुछ वक्त पहले भी शोध किया था, जिस के मुताबिक सर्वे में शामिल आधे से भी ज्यादा महिला और पुरुष अपनी डेट के साथ फ्लर्ट करते समय ‘विंक’ इमोजी का इस्तेमाल करते थे. शोध में यह भी पाया गया कि इस तरह की बातचीत में दूसरी सब से ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली प्रचलित इमोजी ‘स्माइली’ थी.

5,000 लोगों पर हुए इस शोध में 36 से 40% लोग ऐसे थे, जो हर मैसेज में 1 से अधिक इमोजी का इस्तेमाल करते थे. पाया गया कि ये लोग दिन में कईकई बार सैक्स के बारे में सोचते थे. वहीं जो लोग सैक्स के बारे में कभी नहीं सोचते थे उन के मैसेज में इमोजी का इस्तेमाल न के बराबर था. वहीं कई लोग ऐसे भी थे, जो सैक्स के बारे में दिन में बस एक बार सोचते थे और इमोजी का इस्तेमाल करते तो थे, लेकिन हर मैसेज पर नहीं.

इस शोध के मुताबिक इस शोध में शामिल 54% लोग, जो अपने संदेशों में इमोजी का इस्तेमाल करते थे, उन 31% लोगों की तुलना में अधिक सैक्स करते थे, जो इमोजी का इस्तेमाल नहीं किया करते थे.

पीरियड्स पर इमोजी

मार्च, 2019 से इमोजी की लिस्ट में पीरियड्स इमोजी भी शामिल हो गई है. यह इमोजी लाल रंग की खून की एक बूंद है. लोगों की रूढि़वादी सोच के दायरे को तोड़ने और पीरियड्स पर खुल कर बात करने में यह पीरियड्स इमोजी एक बड़ा कदम है. इस की मांग में यूके की ‘प्लान इंटरनैशनल यूके’ ने एक कैंपेन चलाया था.

मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप अपने नए बीटा अपडेट में कुछ नई इमोजी ले कर आया है जिन की डिजाइन बदल गई है. नए ऐंड्रौयड बीटा अपडेट में ऐसी 155 इमोजी हैं, जिन की डिजाइन बदल गई है. ऐंड्रौयड बीटा टेस्टर नए अपडेट 2.19.139 में ये इमोजी देख सकते हैं.

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आज स्मार्टफोन हमारी जरूरत बन गया है. इस के बिना तो हमारा काम ही नहीं चल सकता. रोज हम ट्विटर, फेसबुक समेत कई चीजों का इस्तेमाल करते हैं. अपनी बातों को ज्यादा शौर्ट में ऐक्सप्रैस करने के लिए हम इन पर बनीं इमोजी का इस्तेमाल कर लेते हैं. लेकिन इन में दी गईं 1000 से भी ज्यादा इमोजी में कुछ के तो हमें मतलब ही समझ में नहीं आते.

मगर अब इन सभी इमोजी कैरेक्टर को समझने के लिए मिल गया है सब से आसान उपाय और वह है इमोजीपीडिया. इस इमोजीपीडिया पर आप को हर इमोजी का मतलब मिल जाएगा.

Bigg Boss 14 के घर से बाहर आते ही ‘नागिन’ बनीं राखी सावंत! जानें क्या है मामला

बिग बौस 14 में अपनी कौमेडी से फिनाले तक पहुंचने वाली राखी सावंत इन दिनों सुर्खियों में छाई हुई हैं. जहां वह अपनी बीमार मां के साथ समय बीता रही हैं तो वहीं सोशलमीडिया के जरिए फैंस को एंटरटेन करती नजर आ रही हैं. इसी बीच राखी सावंत ने एक वीडियो फैंस के साथ शेयर किया है, जिससे फैंस अंदाजा लगा रहे हैं कि उन्हें नागिन 6 का हिस्सा बनने का औफर मिल गया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

नागिन बनीं राखी सावंत

राखी सावंत ने अपना एक ऐसा ही मजेदार वीडियो शेयर किया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया है. दरअसल, राखी सावंत के द्वारा शेयर की गई वीडियो में श्रीदेवी की फिल्म ‘नगीना’ के मशहूर गाने की क्लिप नजर आ रही है. वहीं खास बात यह है कि इस वीडियो में श्रीदेवी की जगह राखी का चेहरा नजर आ रहा है.

 

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ये भी पढ़ें- बा के रोल से खुद को रिलेट नहीं करतीं ‘अनुपमा’ फेम अल्पना बुच, पढ़ें खबर

फिल्म का लिखा गलत नाम

 

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मजेदार वीडियो शेयर करते हुए राखी सावंत ने श्रीदेवी की फिल्म का नाम गलत लिख दिया. वहीं कैप्शन में राखी ने अपने फैन्स से सवाल पूछते हुए लिखा, ‘मुझे श्रीदेवी जी से प्यार है. फिल्म नागिन मेरी फेवरेट फिल्मों में से एक है और अगर यह दोबारा बनाई जाए तो उन्हें किसे कास्ट करना चाहिए…देखें और कॉमेंट में अपनी पसंद बताएं.’

रुबीना से नाराज हैं राखी

 

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हाल ही में राखी सावंत ने खुलासा किया एक इवेंट में Rubina Dilaik और Abhinav Shukla को लेकर कहा था कि वह उनकी मां को देखने तक नहीं आए. दरअसल, राखी ने कहा कि मैंने न्यूज में देखा कि रुबीना ने कहा है कि मेरी मदद करेंगी लेकिन मैं उन्हें बता दूं, मुझे उनकी किसी मदद की जरूरत नहीं है. लेकिन मेरी मां चाहती हैं तुमसे एक बार मुलाकात करना. हालांकि बिग बौस 14 के घर में रुबीना दिलैक ने कहा था कि वह घर से निकलते ही राखी सावंत की मां से मिलने जाएंगी. लेकिन इसके बाद शो में उनकी काफी लड़ाई हो गई थी.

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बता दें, राखी सावंत की मां कैंसर से जूझ रही हैं. हालांकि अब वह ठीक हो रही हैं. वहीं कई सितारे जहां उनसे मिलने पहुंचे तो वहीं सलमान खान ने उनकी पूरी मदद करने का हौसला भी दिया.

बा के रोल से खुद को रिलेट नहीं करतीं ‘अनुपमा’ फेम अल्पना बुच, पढ़ें खबर

स्टार प्लस की नंबर वन धारावाहिक अनुपमा में बा की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अल्पना बुच थिएटर और टीवी आर्टिस्ट है. फ़िल्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से उन्हें बचपन से ही कला का माहौल मिला है, यही वजह है कि उन्होंने अभिनय के अलावा कभी कुछ सोचा नहीं. वह केवल हिंदी ही नहीं, गुजराती फिल्मों और थिएटर की भी प्रसिद्ध अभिनेत्री है. उन्हें हर नया काम उत्साह देता है और हर नयी चुनौती वह खुद लेती है. स्वभाव से विनम्र और हंसमुख अल्पना का काम के दौरान मुलाकात टीवी और थिएटर आर्टिस्ट मेहुल बुच से हुई. प्यार हुआ, शादी की और एक बेटी भाव्या की माँ बनी. उन्होंने माँ बनने के बाद भी अभिनय नहीं छोड़ा. गृहशोभा के लिए उन्होंने खास बात की और बताया कि कॉलेज के ज़माने में उन्होंने इस प्रोग्रेसिव विचार रखने वाली पत्रिका को काफी पढ़ा है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, आइये जाने, उनकी कहानी उनकी जुबानी.

सवाल-धारावाहिक मेंबाकी भूमिका से आप कितना रिलेट कर पाती है?

मैं बा की भूमिका से खुद को रिलेट नहीं कर पाती, क्योंकि मेरी उम्र सास बनने लायक नहीं है और मेरा बेटा नहीं है, इसलिए सास तो मैं कभी बन नहीं सकती. मेरी खुद की सास बहुत ही अच्छी थी. वह हमेशा दुनिया से आगे सोचती थी, इसलिए मुझे आज़ादी भी खूब मिली है. मैंने शादी के बाद भी अभिनय करना नहीं छोड़ा.

बा की भूमिका से पहले मैंने प्यार और कॉमेडी की भूमिका निभाई थी. पहले इसे करने में अजीब लगा, क्योंकि कोई सास कैसे किसी बहू को कही जाने आने से मना कर सकती है या डांट सकती है, लेकिन मैंने कई ऐसे घर देखे है, जहाँ बहू को आज भी पूछकर बाहर जाना पड़ता है, छोटे शहरों में आज भी ऐसा चलता है. मुझे एक बात इस चरित्र में गलत नहीं लगता, जब सास अपने घर के संस्कार और रीतिरिवाज बहू या बेटे को सिखाती है. सबको ये समझना पड़ेगा कि उसकी सोच 20 साल पुरानी है और उसी हिसाब से वह चलती है, उसे आधुनिक बनाना संभव नहीं.

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सवाल-इस भूमिका को करने में आपको किसी का सहारा लेना पड़ा?

शुरू-शुरू में चरित्र के बारें में निर्देशक ने काफी समझाया कि यहाँ मैं एक सास की भूमिका निभा रही हूं. मुझे गुस्से से बात करनी है. इस तरह इस चरित्र में घुसने में करीब 12 दिन लगे.

सवाल-धारावाहिक में किसी चरित्र को काफी दिन करना पड़ता है, ऐसे में उस भूमिका से निकल कर घर में अल्पना बनना कितना मुश्किल होता है?

जब भी मेकअप उतरता है और मैं मेकअप रूम के दरवाजे से बाहर निकलती हूं,तो उस चरित्र को वही छोड़कर आ जाती हूं. उसे घर नहीं लाती.

सवाल-सास बहू का रिश्ता अच्छा न होने की वजह क्या मानती है?

इसकी वजह सोच और परिवार का माहौल होता है. मुझे भी शादी के बाद दो-तीन साल सास की किसी बात को जोर देकर कहना पसंद नहीं होता था, लेकिन धीरे-धीरे बाद में मैंने देखा कि उसकी हर बातें सही है. असल में किसी भी रिश्ते को जमने में समय लगता है और सास-बहू दोनों को इसमें सामंजस्य बिठाना पड़ता है. सास को ये समझना पड़ेगा कि आपने बहू को जन्म नहीं दिया है, इसलिए उसे इस रिश्ते को समझने में समय लगेगा और बहू को भी सामंजस्य सास से बनाने की जरुरत है. दोनों तरफ से कोशिश होने पर रिश्ता सही हो जाता है.

सवाल-कुछ महिलाएं शादी या बच्चा होने के बाद काम छोड़कर घर बैठ जाती है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

हर महिला को उसके माता-पिता ने अपना समय और पैसे देकर इस काबिल बनाया है कि वह आत्मनिर्भर बनें, लेकिन अगर महिला शादी या बच्चा होने पर काम छोड़ देती है, तो उसकी शिक्षा, कैरियर सब समाप्त हो जाता है. मेरे हिसाब से परिवार में संतुलन बनाये रखने की हमेशा जरुरत होती है, क्योंकि कुछ महिलाएं अपने बच्चे के साथ रहने के लिए कैरियर छोड़ देती है, तो कुछ परिवार और बच्चे को छोड़कर काम पर चली जाती है. दोनों स्थिति सही नहीं है. जीवन में हमेशा सभी को सामंजस्य बनाकर चलना पड़ता है. आज भी परिवार के साथ कैरियर को बनाये रखने का संघर्ष महिला के साथ ही होता है, लेकिन अब समय बदला है, दोनों ही काम करते है, ऐसे में पति भी कई जगह बच्चे को सम्हाल लेते है. मैं सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वे अपने कैरियर को कभी न छोड़े, क्योंकि बच्चे के बड़े होने पर उनका कैरियर ही उनके साथ रहता है और वे उसे तब एन्जॉय कर सकते है, क्योंकि आज के बच्चे अधिकतर अपने पेरेंट्स को छोड़कर विदेश चले जाते है. सही संतुलन करने पर शुरू में चुनौती अवश्य आती है, पर बाद में एक अच्छा भविष्य सामने दिखता है.

सवाल-महिलाओं को खास कर फिल्मों में पुरुषों की तुलना में कम पैसे दिया जाता है, इस असमानता की वजह क्या मानती है?

अभी इसमें काफी हद तक समानता आई है, क्योंकि आज महिलाओं की संख्या पहले से हर क्षेत्र में काफी बढ़ चुकी है. अब डरना पुरुषों को है, उनके पास पैसों की कमी होने वाली है. एक्ट्रेसेस को भले ही फीस कम मिले,पर टीवी, फिल्मों या वेब में दर्शक महिला को ही देखते है और उन्हें काम मिलना आसान हो चुका है. अभी औरते पीछे नहीं, वे कमा भी अधिक रही है.

सवाल-महिलाओं के आगे बढ़ने के बावजूद आजकल महिलाओं के साथ रेप, डोमेस्टिक वायलेंस, एसिड अटैक आदि में कमी नहीं आ रही है, इसे कैसे सुधारा जा सकता है?

इसके लिए महिलाओं का आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है, क्योंकि सामने वाले को पता होता है कि अगर मैंने पत्नी के साथ वायलेंस या कुछ गलत किया, तो ये कभी भी मुझे छोड़कर जा सकती है, क्योंकि ये कमाऊ है, लेकिन कई बार कुछ महिलाएं अपने पति से इमोशनली जुड़ जाती है, ऐसे में वे डोमेस्टिक वायलेंस को नजरंदाज करती है, जबकि ये ठीक नहीं. पुरुष  पत्नी की भावनाओं को अच्छी तरह समझते है और उसी प्रकार से व्यवहार करते है. असल में औरत शोषण की शिकार खुद बनती है और जवाबदेही भी उस महिला की ही है. कभी भी पुरुषों की इन आदतों को छुपाना ठीक नहीं होता, उसे अपने दोस्तों या पेरेंट्स को अवश्य बता देना चाहिए ताकि पानी सिर के ऊपर से बहने से पहले रोक लिया जाय. कोई भी गलत काम महिलाओं के लिए कम अवश्य हुई है, पर ख़त्म नहीं हुई.

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सवाल-क्या गुजराती फिल्मों में भी काम कर रही है?

मैने अभी दो गुजराती फिल्में की है, जो इस साल रिलीज पर है. इसके अलावा मैं गुजराती थिएटर से भी जुडी हुई हूं. फिल्म का माध्यम और धारावाहिक में काफी अंतर है, फिल्म चल गई तो लोग याद करते है, नहीं तो भूल जाते है, टीवी में घर में एक चरित्र बार-बार दिखाई पड़ने से दर्शक उससे जुड़ जाता है. फेम अधिक मिलता है, जबकि एक कलाकार के रूप में फिल्म करने में मजा आता है. माहौल अलग होता है और खुद को बड़े पर्दे पर देखना पसंद है. फिल्म में काम करना मुझे अच्छा लगता है.

सवाल- क्या कुछ मलाल रह गया है ?

मैंने वेब सीरीज नहीं की है, उसे करना चाहती हूं, क्योंकि धारावाहिक अनुपमा से मुझे अभी वक़्त नहीं मिल रहा है.

सवाल-किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

शो नहीं, गुजराती थिएटर ने मेरी जिंदगी बदली है और मेरे सभी नाटक मुझे आज भी बहुत पसंद है.

सवाल-अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है? महिला दिवस को अधिक मनाया जाता है, पुरुष दिवस को क्यों नहीं?

असल में 365 दिन पुरुषों का ही होता है, जबकि महिलाओं के लिए एक दिन सेलिब्रेट करने का मिलता है इसलिए इतनी जोर शोर से मनाया जाता है. समय बहुत बदला है, आगे भी बदलेगा, लेकिन महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ, आत्मविश्वास, शक्ति, हिम्मत आदि होने की जरुरत है, ताकि वे अपने सपने को पूरा कर सकें.

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