Summer Special: बचे चावलों से झटपट बनाएं मैक्सिकन फ्राइड राइस

बच्चों को चायनीज, इटैलियन और मैक्सिकन जैसी कॉन्टिनेंटल डिशेज बहुत पसंद आती हैं. आजकल कोरोना के कारण बाहर से खाना मंगवाना भी सम्भव नहीं है, यही नहीं बच्चे लंबे समय से घरों में कैद हैं, और घर में रहते हुए दिन में विविधतापूर्ण भोजन भी उनकी डिमांड में शामिल रहता ही है. आमतौर पर घर में चावल बच ही जाते हैं.  घर में बचे इन्हीं चावलों से आप बड़ी आसानी से उन्हें मेक्सिकन राइस बनाकर खिला सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है.

बनने में लगने वाला समय      20 मिनट

कितने लोंगों के लिए              4

मील टाइप                           वेज

सामग्री

पके चावल                        2 कप

उबला लोबिया                   1/4 कप

उबला राजमा                      1/4 कप

कटा प्याज                          1

गाजर बारीक कटी                1

शिमला मिर्च बारीक कटी       1

टमाटर कटे                       1/2 कप

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उबले कॉर्न                         1/4 कप

कटा प्याज                         1

लहसुन की कली                 3

तेल                                   2 टेबलस्पून

जीरा                                  1/4 टीस्पून

धनिया पाउडर                      1/2 टीस्पून

ऑरिगेनो                              1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                   1/2 टीस्पून

चीज क्यूब                              2

टोमैटो सॉस                          1 टेबलस्पून

विधि

गर्म तेल में जीरा तड़काकर प्याज और लहसुन डालकर सॉते करें. अब शिमला मिर्च, गाजर, टमाटर और नमक डालकर ढक दें ताकि टमाटर गल जाएं. लोबिया, राजमा, कॉर्न तथा सभी मसाले डालकर 5 मिनट तक ढककर पकाएं. 5 मिनट बाद पके चावल और टोमेटो सॉस डालकर भली भांति चलाएं. सर्विंग डिश में डालकर ऊपर से चीज किसें. हरे धनिया से गार्निश करके सर्व करें.

नोट-मैक्सिकन राइस बनाने के लिए ताजे की अपेक्षा रखे हुए चावलों का प्रयोग करना सही रहता है.

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मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है, इसका क्या मतलब है?

सवाल- 

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है. इस का क्या मतलब है? क्या हृदय वाकई काम करना बंद कर देता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर एक स्थिति है जिस में कमजोर हृदय खून की सामान्य मात्रा पंप करने में सक्षम नहीं होता. इस से वह पूरे शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता. हार्ट फेल्योर को बीमारी नहीं कहा जा सकता. यह एक क्रौनिक सिंड्रोम है, जो आमतौर पर धीरेधीरे विकसित होता है. इस से शरीर को सामान्य ढंग से काम करते रहने के लिए पोषण मिलना कम होता जाता है.

हार्ट फेल्योर की स्थिति अकसर इसलिए बनती है कि या तो आप की मैडिकल स्थिति ऐसी बन जाती है या फिर पहले से ऐसी होती है. इस में कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक या उच्च रक्तचाप शामिल है. इस से आप का हृदय क्षतिग्रस्त हो गया होता है या उस पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ गया होता है. इसे भले ही हार्ट फेल्योर कहा जाता है पर इस का मतलब यह नहीं कि आप का हृदय काम करना बंद करने वाला है. इस का मतलब है कि आप के हृदय को आप के शरीर की जरूरतें पूरी करने में खासकर गतिविधियों के दौरान मुश्किल हो रही है.

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हार्ट अटैक एक बहुत ही गंभीर स्थिति होती है जिसमें हमारी जान जाने तक का खतरा भी होता है. इसमें हमारा रक्त प्रवाह ब्लॉक हो जाता है और हमारे ह्रदय की मसल्स डेमेज होने लगती हैं. जैसा कि हमने आज तक देखा या सुना है हम सोचते हैं कि हार्ट अटैक के लक्षण केवल छाती में दर्द होना या फिर जमीन पर गिरना ही होते हैं. परन्तु असल में जब आप को हार्ट अटैक आने की सम्भावना होती है तो यह लक्षण आप के आस पास भी नहीं फिरते हैं. हार्ट अटैक के कुछ लक्षण बहुत ही अजीब व हैरान पूर्वक भी हो सकते हैं जिनमें से एक लक्षण होता है उबासियां लेना. क्या आप चौंक गए? चलिए जानते हैं इसके बारे में.

उबासी लेने हार्ट अटैक के बीच का सम्बन्ध

आम तौर पर हम उबासी लेने को नींद आने का एक लक्षण मानते हैं या जब हम बहुत अधिक थक जाते हैं और हमें सोने की जरूरत होती है तब हमें उबासी आती है. परन्तु यदि आप ने नींद भी ले ली और आप थके हुए भी नहीं है तो भी अगर आप को उबासियां आ रही हैं तो यह एक गंभीर लक्षण हो सकता है. आप को इसे हल्के में नहीं टाल देना चाहिए.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- अधिक उबासी लेना हो सकता है आने वाले हार्ट अटैक का संकेत

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Summer Special: एवोकैडो Oil से मिलते हैं स्किन को कई फायदे

नैचुरल चीजें ही हमारी सभी परेशानियों का एक हल हैं, फिर चाहें वो त्वचा संबंधी परेशानी हो या सेहत से जुड़ी हुई या फिर कुछ और. नेचर इन सब चीजों का एक ही सॉल्यूशन है.इस वजह से आज हम आपके लिए एवोकैडो ऑयल से त्वचा को होने वाले कुछ कमाल के फायदे लेकर आए हैं. एवोकैडो डायबिटीज और शुगर में लाभदायक होता है, वहीं इसका तेल खाने के पोषण में वृद्धि करता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जितना फायदेमंद यह तेल सेहत के लिए है, सुंदरता बढ़ाने में इसका तेल उतना ही गुणकारी होता है. आइए जानते हैं की अपनी ब्यूटी किट में क्यों शामिल करना चाहिए यह तेल .

गुणों का खजाना है एवोकैडो

एवोकैडो बहुत पौष्टिक होते हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जैसे  विटामिन K , फोलेट ,विटामिन सी , पोटेशियम ,विटामिन बी 5 ,विटामिन बी 6, विटामिन ई. एवोकैडो ऑयल न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है. यह एंटीऑक्सीडेंट होता है, इसमें जरूरी फैटी एसिड्स होते हैं, मिनरल्स होते हैं और विटामिन्स होते हैं. इस ऑयल को स्किन पर डायरेक्ट अप्लाई करने या अन्य ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ डायल्यूट करके इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. एवोकैडो ऑयल प्राकृतिक सनब्लॉक की तरह काम करता है. सुबह नहाने के बाद आप इसे पूरी बॉडी पर सकती हैं. साथ ही रात को सोने से पहले भी इसे मॉइश्चराइजर या नाइट क्रीम की जगह इस्तेमाल कर सकती हैं. यह त्वचा को नम और सॉफ्ट बनाए रखने में मददगार है.

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एंटी एजिंग गुण

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है , हमे कई त्वचा की समस्याओं का सामना करना पड़ता है . जैसे की ड्राई स्किन , झुर्रियां , मुंहासे , कोलेजन का न बनना आदि . एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्व त्वचा को नमी देते हैं, झुर्रियों को रोकते हैं, कोलेजन के बनने को बढ़ावा देते हैं व साथ ही सूजन को रोकते हैं. ये सभी लाभ त्वचा को लंबे समय तक जवां बनाए रखते हैं.

फ्री रेडिकल्स से लड़ता है

फ्री रेडिकल्स न केवल बीमारी में योगदान करते हैं, बल्कि वे एज स्पॉट्स , झुर्रियां और स्किन कैंसर जैसी अधिक गंभीर बीमारियों सहित कई प्रकार के अवांछित त्वचा परिवर्तनों को भी बढ़ाते हैं. पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा से भरपूर, एवोकैडो तेल फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से लड़ने में मदद करता है.

सनबर्न को शांत करने में करता है मदद

क्योंकि एवोकैडो तेल विटामिन ई, बीटा-कैरोटीन, विटामिन डी, प्रोटीन, लेसिथिन और फैटी एसिड से भरपूर होता है, इसलिए यह त्वचा को शांत करने और सनबर्न के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करता है . एवोकैडो तेल में पॉलीहाइड्रोक्सिलेटेड फैटी अल्कोहल होते हैं जो यू.वी.ए और यू.वी.बी किरणों से होने वाले नुकसान को रोकते हैं और उनका इलाज करते हैं. एवोकैडो तेल से भरपूर सनस्क्रीन लगाएं या जब आप धूप में रहने के बाद अंदर आते हैं तो शुद्ध एवोकैडो तेल लगाएं.

सूजन और त्वचा की जलन कम करने में ता है काम

एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन के गुणों से भरपूर एवोकैडो एक्जिमा और सोरायसिस से जुड़ी रूखी, खुरदरी और परतदार त्वचा को ठीक करने में मदद करता है . धूप और प्रदूषण के प्रभाव की वजह से अक्सर त्वचा में जलन होती है . इसको दूर करने के लिए एवोकैडो तेल का उपयोग फायदेमंद हो सकता है.

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उत्कृष्ट मॉइश्चराइजेशन गुण जो मुँहासे की रोकथाम में करते है भी मदद

त्वचा की सबसे बाहरी परत, जिसे एपिडर्मिस के नाम से जाना जाता है, एवोकैडो तेल में मौजूद पोषक तत्वों को आसानी से अब्जॉर्ब कर लेती है, जो नई त्वचा बनाने में भी मदद करती है. इसमें मौजूद फाइट स्टेरोल्स और ओलिक एसिड त्वचा को गहराई से मॉइस्चराइज करके दूसरी परत तक पहुंचाता है . यह संवेदनशील और बेहद रूखी त्वचा वाले लोगों के लिए भी उपयुक्त है. एवोकैडो तेल में लिनोलिक एसिड होता है जो मुंहासे होने से  रोकता है. यह रोम छिद्रों को बंद किए बिना भी त्वचा को हाइड्रेट रखता है जो मुहांसों के खतरे को कम करता है.

अगर आपको त्वचा में खुजली, पैचेज, ड्राईनेस जैसी दिक्कतें हो रही हों तो एवोकैडो ऑयल जरूर लगाएं. इससे आपको इन परेशानियों से जल्द राहत मिलेगी. साथ ही अल्ट्रा वॉयलट किरणों से बचने के लिए भी आप इस तेल को अप्लाई कर सकते हैं.

अलग हो जाना समस्या का हल नहीं है

सुनीता और रंजन और उन के 2 बच्चे- एकदम परफैक्ट फैमिली. संयुक्त परिवार का कोई झंझट नहीं, पर पुनीता और रंजन की फिर भी अकसर लड़ाई हो जाती है. रंजन इस बात को ले कर नाराज रहता है कि वह दिन भर खटता है और पुनीता का पैसे खर्चने पर कोई अंकुश नहीं है. वह चाहता है कि पुनीता भी नौकरी करे, पर बच्चों को कौन संभालेगा, यह सवाल उछाल कर वह चुप हो जाती है. वैसे भी वह नौकरी के झंझट में नहीं पड़ना चाहती है.

पैसा कहां और किस तरह खर्चा जाए, इस बात पर जब भी उन की लड़ाई होती है, वह अपने मायके चली जाती है. बच्चों पर, घर पर और अपने शौक पूरे करने में खर्च होने वाले पैसे को ले कर झगड़ा होना उन के जीवन में आम बात हो गई है. वह कई बार रंजन से अलग हो जाने के बारे में सोच चुकी है. रंजन उसे बहुत हिसाब से पैसे देता है और 1-1 पैसे का हिसाब भी लेता है. पुनीता को लगता है इस तरह तो उस का दम घुट जाएगा. रंजन की कंजूसी की आदत उसे खलती है.

सीमा हाउसवाइफ है और उस के पति मेहुल की अच्छी नौकरी और कमाई है, इसलिए पैसे को ले कर उन के जीवन में कोई किचकिच नहीं है. लेकिन उन के बीच इस बात को ले कर लड़ाई होती है कि मेहुल उसे समय नहीं देता है. वह अकसर टूर पर रहता है और जब शहर में होता है तो भी घर लेट आता है. छुट्टी वाले दिन भी वह अपना लैपटौप लिए बैठा रहता है. उस का कहना है कि उस की कंपनी उसे काम के ही पैसे देती है और जैसी शान की जिंदगी वे जी रहे हैं, उस के लिए 24 घंटे भी काम करें तो कम हैं.

सीमा मेहुल के घर आते ही उस से समय न देने के लिए लड़ना शुरू कर देती है. वह तो उसे धमकी भी देती है कि वह उसे छोड़ कर चली जाएगी. इस बात को मेहुल हंसी में उड़ा देता है कि उसे कोई परवाह नहीं है.

सोनिया को अपने पति से कोई शिकायत नहीं है, न ही संयुक्त परिवार में रहने पर उसे कोई आपत्ति है. विवाह को 6 वर्ष हो गए हैं, 2 बच्चे भी हैं. लेकिन इन दिनों वह महसूस कर रही है कि उस के और उस के पति के बीच बेवजह लड़ाई होने लगी है और उस की वजह हैं उन के रिश्तेदार, जो उन के बीच के संबंधों को बिगाड़ने में लगे हैं. कभी उस की ननद आ कर कोई कड़वी बात कह जाती है, तो कभी बूआसास उस के पति को उस के खिलाफ भड़काने लगती हैं.

रिश्तेदारों की वजह से बिगड़ते उन के संबंध धीरेधीरे टूटने के कगार तक पहुंच चुके हैं. वह कई बार अपने पति को समझा चुकी है कि इन फुजूल की बातों पर ध्यान न दें, पर वह सोनिया की कमियां गिनाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता है.

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नमिता और समीर के झगड़े की वजह है समीर की फ्लर्ट करने की आदत. वह नमिता के रिश्ते की बहनों और भाभियों से तो फ्लर्ट करता ही है, उस की सहेलियों पर भी लाइन मारता है. इस बात को ले कर उन का अकसर झगड़ा हो जाता है. नमिता उस की इस आदत से इतनी तंग आ चुकी है कि वह उस से अलग होना चाहती है.

गलत आप भी हो सकती हैं

इन चारों उदाहरणों में आपसी झगड़े की वजहें बेशक अलगअलग हैं, पर पति की ज्यादतियों की वजह से पत्नियां पति से अलग हो जाने की बात सोचती हैं. उन की नजरों में उन के पति सब से बड़े खलनायक हैं, जिन से अलग हो कर ही उन को सुकून मिलेगा. लेकिन अलग हो जाना, मायके चले जाना या फिर तलाक लेना परेशानी का सही हल हो सकता है? कहना आसान है कि आपस में नहीं बनती, इसलिए अलग होना चाहती हूं, पर उस से क्या होगा? पति से अलग हो कर आजादी की सांस लेने से क्या सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा?

एक बार अपने भीतर झांक कर तो देखिए कि क्या आप के पति ही इन झगड़ों के लिए दोषी हैं या आप भी उस में बराबर की दोषी हैं. सीधी सी बात है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. फिर रिश्ता तोड़ कर क्या हासिल हो जाएगा? आप तो जैसी हैं, वैसी रहेंगी. इस तरह तो किसी के साथ भी ऐडजस्ट करने में आप को दिक्कत आ सकती है.

तलाक का अर्थ ही है बदलाव और यह समझ लें कि किसी भी तरह के बदलाव का सामना करना आसान नहीं होता है. कई बार मन पीछे की तरफ भी देखता है. नई जिंदगी की शुरुआत करते समय जब दिक्कतें आती हैं तो मन कई बार बीती जिंदगी को याद कर एक गिल्ट से भी भर जाता है. पति की गल्तियां निकालने से पहले यह तो सोचें कि क्या आप अपने को बदल सकती हैं? अगर नहीं तो पति से इस तरह की उम्मीद क्यों रखती हैं? उस के लिए भी तो बदलना आसान नहीं है, फिर झगड़े से क्या फायदा?

कोई साथ नहीं देता

झगड़े से तंग आ कर तलाक लेने का फैसला अकसर हम गुस्से में या दूसरों के भड़काने पर करते हैं, पर उस के दूरगामी परिणामों से पूरी तरह बेखबर होते हैं. मायके वाले या रिश्तेदार कुछ समय तो साथ देते हैं, फिर यह कह कर पीछे हट जाते हैं कि अब आगे जो होगा उसे स्वयं भुगतने के लिए तैयार रहो.

अंजना की ही बात लें. उस का पति से विवाह के बाद से किसी न किसी बात पर झगड़ा होता रहता था. वह उस की किसी बात को सुनती ही नहीं थी, क्योंकि उसे इस बात पर घमंड था कि उस के मायके वाले बहुत पैसे वाले हैं और जब वह चाहे वहां जा कर रह सकती है. एक बार बात बहुत बढ़ जाने पर भाई ने उस के पति को घर से निकल जाने को कहा तो वह अड़ गया कि बिना कोर्ट के फैसले के वह यहां से नहीं जाएगा. जब भाई जाने लगे तो अंजना ने पूछा कि अगर रात को उस के पति ने उसे मारापीटा तो वह क्या करेगी? इस पर भाई बोला कि 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को बुला लेना.

उस के बाद कुछ दिन तो भाई उसे फोन पर अदालत में केस फाइल करने की सलाह देते रहे. पर जब उस ने कहा कि वह अकेली अदालत नहीं जा सकती है तो भाई व्यस्तता का रोना ले कर बैठ गया. अंजना ने 1-2 बार अदालत के चक्कर अकेले काटे, पर उसे जल्द ही एहसास हो गया कि तलाक लेना आसान नहीं है. आज वह अपने पति के साथ ही रह रही है और समझ चुकी है कि जिन मायके वालों के सिर पर वह नाचती थी, वे दूर तक उस का साथ नहीं देंगे. न ही वह अकेले अदालत के चक्कर लगा सकती है.

ऐडजस्ट कर लें

तलाक की प्रक्रिया कितनी कठिन है, यह वही जान सकते हैं, जो इस से गुजरते हैं. अखबारों में पढ़ें तो पता चल जाएगा कि तलाक के मुकदमे कितनेकितने साल चलते हैं. मैंटेनैंस पाने के लिए क्याक्या करना पड़ता है. फिर बच्चों की कस्टडी का सवाल आता है. बच्चे आप को मिल भी जाते हैं तो उन की परवरिश कैसे करेंगी? जहां एक ओर वकीलों की जिरहें परेशान करती हैं, वहीं दूसरी ओर अदालतों के चक्कर लगाते हुए बरसों निकल जाते हैं. अलग हो जाने के बाद भय सब से ज्यादा घेर लेता है. बदलाव का डर, पैसा कमाने का डर, मानसिक स्थिरता का डर, समाज की सोच और सुरक्षा का डर, ये भय हर तरह से आप को कमजोर बना सकते हैं.

कोई भी कदम उठाने से पहले यह अच्छी तरह सोच लें कि क्या आप आने वाली जिंदगी अकेली काट सकती हैं. नातेरिश्तेदार कुछ दिन या महीनों तक आप का साथ देंगे, फिर कोई आगे बढ़ कर आप की मुश्किलों का समाधान करने नहीं आएगा.

आप का मनोबल बनाए रखने के लिए हर समय कोई भी आप के साथ नहीं होगा. कोई भी फैसला लेने से पहले जिस से आप की जिंदगी पूरी तरह से बदल सकती हो, ठंडे दिमाग से आने वाली दिक्कतों के बारे में हर कोण से सोचें. बच्चे अगर आप के साथ हैं तो भी वे आप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. वे आप को हमेशा अपने पिता से दूर करने के लिए जिम्मेदार मानते रहेंगे. हो सकता है कि बड़े हो कर वे आप को छोड़ पिता का पास चले जाएं.

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मान लेते हैं कि आप दूसरा विवाह कर लेती हैं तब क्या वहां आप को ऐडजस्ट नहीं करना पड़ेगा? बदलना तो तब भी आप को पड़ेगा और हो सकता है पहले से ज्यादा, क्योंकि हर बार तो तलाक नहीं लिया जा सकता. फिर पहले ही क्यों न ऐडजस्ट कर लिया जाए. पहले ही थोड़ा दब कर रह लें तो नौबत यहां तक क्यों पहुंचेगी. पति जैसा भी है उसे अपनाने में ही समझदारी है, वरना बाकी जिंदगी जीना आसान नहीं होगा.

झगड़ा होता भी है तो होने दें, चाहें तो आपस में एकदूसरे को लाख भलाबुरा कह लें, पर अलग होने की बात अपने मन में न लाएं. घर तोड़ना आसान है पर दोबारा बसाना बहुत मुश्किल है. जिंदगी में तब हर चीज को नए सिरे से ढालना होता है. जब आप तब ढलने के लिए तैयार है, तो पहले ही यह कदम क्यों न उठा लें.

डिलीवरी के बाद बढ़ता डिप्रेशन

समीरा की बेबी अभी मात्र डेढ़ माह की है. लेकिन समीरा की स्थिति देख कर पूरे परिवार के लोग काफी उल झन में हैं. उस के पति विमल को आफिस से छुट्टी ले कर घर बैठना पड़ रहा है. इतना ही नहीं, स्थिति यहां तक आ गई कि हार कर उसे गांव से अपनी मां को भी बुलाना पड़ गया. बच्ची की देखभाल का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है. करीब 2 साल पहले जब समीरा का अचानक गर्भपात हो गया था तब भी इसी तरह की परेशानी हुई थी. तब गोद में बच्चा नहीं था, लेकिन इस बार परेशानी थोड़ी ज्यादा है. करीब 2 सप्ताह से समीरा मानसिक परेशानी और अवसाद के दौर से गुजर रही है और हमेशा अपनेआप में खोई रहती है, सदा चिंतित व परेशान तो रहती ही है खानेपीने की भी कोई सुध नहीं. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, मन ही मन कुछ न कुछ बुदबुदाती रहती है. नन्ही बिटिया की ओर तो वह ताकती तक नहीं.

ऐसी बात भी नहीं कि प्रसव से पहले या बाद में उसे किसी तरह की परेशानी हुई हो. डिलीवरी भी शहर के अच्छे प्राइवेट नर्सिंगहोम में हुई थी, बिना किसी कंप्लीकेशन के. लड़की होने पर वह काफी खुश हुई थी. उस की इच्छा भी थी कि लड़की हो. लेकिन अब वह एकदम से सुधबुध खो बैठी है. जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो विमल उसे ले कर उसी अस्पताल में गया, जहां उस की डिलीवरी हुई थी. जांच करने के बाद पति से डाक्टर ने कहा कि समीरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो गई है. इसी कारण वह इस तरह का व्यवहार कर रही है. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा. हां, थोड़े दिनों तक मां तथा बच्ची दोनों की निगरानी रखने की जरूरत पड़ेगी.

गंभीर रोग

स्त्रीरोग विशेषज्ञ इसे गंभीर रोग मानते हैं. प्रसव के कुछ माह के बाद कई महिलाएं मानसिक परेशानियों का शिकार होने लगती हैं. इसे चिकित्सकीय भाषा में पोस्टपार्टम डिपे्रशन कहते हैं. ऐसा गर्भपात हो जाने या मृत शिशु के जन्म के बाद भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में प्रसूता मानसिक तनाव और डिप्रेशन के दौर से गुजरने लगती है और अपनेआप को एकदम असहाय समझने लगती है. गर्भपात होने या फिर मृत शिशु के जन्म से वह काफी परेशान हो जाती है. भीतर से एकदम से टूट जाती है. लेकिन सुंदर और स्वस्थ बच्चा होने के बावजूद जब प्रसूता डिप्रेशन का शिकार होती है तब वह अपनी संतान के प्रति काफी लापरवाह रहने लगती है. ये लक्षण कुछ माह तक रह सकते हैं और कई बार धीरेधीरे ठीक हो जाते हैं. लेकिन कई बार यह रोग विकराल रूप धारण कर लेता है, जिसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं.

19 वर्षीय गौरी के बेटे अंकुर की उम्र फिलहाल डेढ़ साल है. जब वह मात्र डेढ़ माह का था तो गौरी को भी समीरा की ही तरह अचानक डिप्रेशन के दौरे पड़ने लगे थे. ऐसी बात नहीं कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी रही हो, न ही पति के साथ किसी तरह का मनमुटाव था. कभी दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध भी नहीं रहे. उस का पति एक बैंक में अधिकारी है और वे अच्छा सा 2 रूम का फ्लैट ले कर कानपुर के एक पौश इलाके में रह रहे हैं. लेकिन अंकुर जब 1 माह का था, तभी गौरी के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा था. मानसिक तनाव और अवसाद के कारण खाने के प्रति उसे एकदम अरुचि हो गई थी. इन चीजों की ओर वह देखना भी नहीं चाहती थी.

धीरेधीरे नींद भी कम आने लगी थी. रातरात भर वह जागती रहती. पति बारबार इस का कारण जानने की कोशिश करते, पर वह कुछ नहीं बोलती थी. ज्यादा कुरेदने पर पति से ही  झगड़ने लगती. धीरेधीरे उस की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई. जब स्थिति ज्यादा बिगड़ने लगी तो उस के पति उसे शहर के एक प्रसिद्ध मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले कर गए. चिकित्सक ने पति को बताया कि गौरी पोस्टपार्टम साइकोसिस नामक रोग से पीडि़त है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का वीभत्स रूप है. ऐसी मरीज कई बार आत्महत्या की कोशिश भी कर सकती है. इतना ही नहीं, कई बार ऐसी मरीज अपने नवजात शिशु को भी शारीरिक क्षति पहुंच सकती है. इसलिए बिना देर किए ऐसी मरीज को इलाज के लिए किसी योग्य चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए.

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रोग के कारण

प्रश्न उठता है कि प्रसव के बाद होने वाले इस तरह के मानसिक रोग के क्या कारण हैं? क्यों प्रसव के बाद कोई महिला इस तरह का व्यवहार करने लगती है? प्रसूति विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा गर्भधारण के बाद शरीर में पाए जाने वाले कई तरह के हरमोंस के स्तर में परिवर्तन की वजह से होता है. इस कारण कोई भी महिला प्रसव के बाद कुछ महीनों में ऐसा व्यवहार कर सकती है. बच्चा किसी भी तरह का हो सकता है- जीवित, स्वस्थ या फिर मृत. इस तरह के लक्षण गर्भपात के बाद भी देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि इस स्थिति में भी शरीर में हारमोंस में बदलाव होते हैं.

इस के अतिरिक्त कई और दूसरे कारण भी हैं. वे महिलाएं, जो प्रसव के पहले से ही डिप्रेशन नामक रोग की शिकार होती हैं या फिर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार पहले भी हो चुकी होती हैं, उन्हें भी दोबारा इस के होने की संभावना ज्यादा होती है. यदि परिवार, पति या दोस्तों का सपोर्ट नहीं मिलता है तो भी वे इस तरह की परेशानियों की शिकार हो सकती हैं. ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं का परिवार के साथ मधुर संबंध नहीं होता या फिर दांपत्य जीवन में हमेशा तनाव रहता है, वे अकसर इस तरह की परेशानियों से घिर जाती हैं यानी परिवार तथा घरेलू वातावरण का प्रभाव गर्भावस्था, प्रसव के समय या फिर प्रसवोपरांत तो पड़ता ही है.

शीघ्र इलाज कराएं

ऐसा नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है या फिर यह भूतप्रेत के कुप्रभाव का प्रतिफल है. इस का इलाज संभव है. इस के लिए चिकित्सक डिप्रेशन को दूर करने वाली दवा तो देते ही हैं, काउंसलिंग की भी सहायता ली जाती है. कई मरीजों को जब परेशानियां ज्यादा होने लगती हैं तो उन्हें काउंसलिंग और दवा दोनों की जरूरत पड़ती है. वे महिलाएं, जो स्तनपान कराती हैं, उन्हें ऐसी एंटीडिप्रेसिव दवा दी जाती है, जो सुरक्षित हो.

परिवार का सपोर्ट जरूरी

ऐसी स्थिति में पति का सहयोग बहुत जरूरी है. इस के बिना मरीज की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी और समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर वह पागलपन की भी शिकार हो सकती है. मरीज को कभी नहीं लगना चाहिए कि परिवार के लोग उस की उपेक्षा कर रहे हैं. कई बार अपेक्षित संतान नहीं होने यानी लड़के की चाह में लड़की हो जाने के कारण भी पति या परिवार के दूसरे सदस्य प्रसूता के साथ ठीक व्यवहार नहीं करते. इस कारण भी महिलाएं इस तरह की समस्या की गिरफ्त में आ जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति आने पर मरीज के साथ घर के लोगों का व्यवहार सामान्य तथा सौहार्दपूर्ण हो.

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मरीज और बच्चे को कभी भी एकांत में नहीं छोड़ना चाहिए. मरीज को न तो उदास होने का मौका देना चाहिए और न ही ऊलजलूल सोचने का. एकांत मिलने के साथ ही ऐसे मरीजों के मन में कई तरह के अच्छेबुरे विचार आते हैं. यदि मरीज अपनी संतान के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार अपनाती है, उस की उचित देखभाल करने में कोताही बरतती है तो बच्चे की देखभाल के लिए अलग से कोई व्यवस्था करनी चाहिए. समय पर दूध पिलाने, मलमूत्र साफ करने, नहलानेधुलाने आदि कार्यों के लिए बच्चे को घर की बुजुर्ग महिलाओं के सिपुर्द कर देना चाहिए.

सही इलाज से मरीज अपनेआप बेहतर महसूस करने लगती है. मामूली लक्षणों की स्थिति में मरीज को दवा की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ काउंसलिंग के द्वारा ही मरीज को कुछ दिनों में ही फायदा होने लगता है. धीरेधीरे भूख लगने लगती है, चेहरे से मायूसी, तनाव, उल झन और अवसाद के लक्षण गायब होने लगते हैं. शारीरिक स्फूर्ति लौटने लगती है. मन में बुरे विचार आने बंद होने लगते हैं. कई बार मरीज को चिकित्सक कुछ व्यायाम तथा योग करने की भी सलाह देते हैं ताकि तनाव दूर हो और रात को अच्छी नींद आने से मरीज अपनेआप को हलका महसूस करे.

जीवनज्योति- भाग 1: क्या पूरा हुआ ज्योति का आई.पी.एस. बनने का सपना

लेखक- मनोज सिन्हा

‘‘इस घर में रुपए के पेड़ नहीं लगा रखे हैं मैं ने कि जब चाहूं नोट तोड़तोड़ कर तुम सब की हर इच्छा पूरी करता रहूं. जूतियों के नीचे दब कर मुनीमगीरी करता हूं उस सेठ की बारह घंटे, तब जा कर एक दिन का अनाज इस परिवार के पेट में डाल पाता हूं.

वर्षों से दरक रही किसी वेदना का बांध अचानक आज ध्वस्त हो गया था. चोट खाए सिंह की भांति दहाड़ उठे थे मुंशी रामप्यारे सहाय.

आंखों से चिंगारियां बरसने लगी थीं. मन के अंदर फूट पड़े ज्वालामुखी का खौलता लावा शब्दों के रूप में बाहर आ कर सब को झुलसानेजलाने लगा था.

सुमित्रा इस घटना से हतप्रभ थी. उस ने आत्मीयता के शीतल जल से इस धधकती ज्वाला को शांत करने की भरसक कोशिश की थी.

‘‘सब जानते हैं जी और समझते भी हैं कि किस मुसीबत से आप इस घर का…’’

‘‘खाक समझते हैं. एक साधारण मुनीम की औलाद होने का उन्हें जरा भी एहसास है? नखरे तो ऐसे हैं इन के जैसे इन का बाप मैं नहीं, कोई कलक्टर, गवर्नर है.’’

‘‘छि:छि:, अब इन बच्चों के साथसाथ आप मुझे भी गाली दे रहे हैं जी, कहां जाएंगे ये? अब आप से अपनी जरूरतों को नहीं कहेंगे तो क्या दूसरे से कहेंगे?’’

‘‘तो क्या करूं मैं? चोरी करूं, डाका डालूं या आत्महत्या कर लूं इन की जरूरतों की खातिर…और यह सब तुम्हारी शह का नतीजा है. बच्चे अच्छे स्कूल- कालिज में पढ़ेंगे, बड़े आदमी बनेंगे, सिर ऊंचा कर के जिएंगे? कुछ नहीं करेंगे ये तीनों. बस, मुझे बेमौत मारेंगे.’’

एक पल को पसर आए सन्नाटे के बाद दूसरे ही पल यह बवंडर ज्योति की ओर बढ़ चला था, ‘‘और तू, किस ने कहा था तुझ से हर महीने फार्म भरने, परीक्षा देने के नाम पर पैसे उड़ाने को? कभी रिटेन, कभी पीटी तो कभी इंटरव्यू, हर महीने मेमसाहब की सवारी तैयार. कभी दिल्ली, कभी पटना, कभी कोलकाता…’’

तिरस्कार का यह अपदंश बिलकुल नया था ज्योति के लिए. बाबूजी का यह विकराल रूप उसे पहले कभी देखने को नहीं मिला था. बड़ीबड़ी आंखों में पानी की एक परत उमड़ आई थी जिसे पलकों पर ही संभाल लिया था ज्योति ने.

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भावनाओं की यह उमड़घुमड़ सुमित्रा की नजरों से छिप न सकी थी. कचोट उठा था मां का दिल, ‘‘देखिए, जो कहना है आप मुझ से कहिए न…ज्योति अब बच्ची नहीं रही, बड़ी हो गई है. एक जवान बेटी को भला इस तरह दुत्कारना…’’

‘‘हां… हां, जवान हो गई है तभी तो कह रहा हूं कि क्यों बोझ बन कर जिंदा है ये मेरी जिंदगी में. किसी नदी, तालाब में जा कर डूब क्यों नहीं मरती. कम से कम एक दायित्व से तो मुझे मुक्ति मिलती.’’

सर्वस्व झनझना उठा था ज्योति का. आहत भावनाएं इस से पहले कि रुदन बन कर बाहर आतीं, दुपट्टे से भींच कर दबा दिया था उस ने अपने मुंह को.

स्वयं को रोकतेथामते सुमित्रा भी बिफर उठी थीं, ‘‘कुछ होश भी है आप को?’’

‘‘होश है, तभी तो बोल रहा हूं कि आज अगर इस की जगह घर में बेटा होता तो कमा कर लाता. परिवार का सहारा होता. मगर यह लड़की तो अभिशाप है, एक अभिशाप.’’

‘‘हद करते हैं आप भी, अगर यह लड़की है तो क्या यह इस का दोष है?’’

‘‘हां, यह लड़की है. यही दोष है इस का. मुझ गरीब की कुटिया में सांसें ले कर इतनी जल्दी जवान हो गई, यह दोष है इस का. और इस घर में 3-3 लड़कियां ही पैदा कीं तुम ने. यह दोष है तुम्हारा,’’ कहतेकहते मुंशीजी का स्वर रुंधने लगा था.

‘‘आज पता नहीं क्या हो गया है आप को. आप जैसा धैर्यवान और समझदार इनसान भी ऐसी घटिया बात सोच सकता है. इस मानसिकता के साथ बोल सकता है, मैं ने तो कभी कल्पना तक नहीं की थी.’’

‘‘तो मैं ने कब कल्पना की थी कि सीमित आय की जरूरतें इतनी असीमित हो जाएंगी. तुम्हीं बताओ कि खानेदाने के लिए अपनी पगार खर्च करूं या पेट पर पत्थर बांध कर इस के ब्याह के लिए रोकड़े जमा करूं. उस पर से इस लड़की के यह चोंचले कि बड़ा आफीसर ही बनना है. कंगले की ड्योढ़ी पर बैठ कर आसमान झुकाने चली है. जब तक जिंदा रहेगी इस बाप की छाती पर बैठ कर मूंग ही तो दलेगी…’’ और इसी के साथ फफक पड़े थे स्वयं मुंशीजी भी.

मुंशीजी की यह हुंकार आर्तनाद बन इस कमरे में पसर गई थी और वहां खड़ा हर व्यक्ति सन्नाटे की चादर को ओढ़ कर खुद को इस हादसे का कारण मान बैठा था.

ज्योति इस बार दिल्ली से सिविल सर्विसेज का साक्षात्कार दे आई थी. संतुष्ट तो थी ही इस परीक्षा से, मगर उस के भरोसे ही बैठ जाना, संघर्षों की इतिश्री करना न तो बुद्धिमानी थी न ही उस की मानसिकता. बैंक प्रोबेशनरी आफीसर का फार्म भरना था, कल 150 रुपए का ड्राफ्ट बनवाना है उसे, बस, इतना ही तो मां से बाबूजी को कहलवाया था कि वह हत्थे से उखड़ गए थे. क्याक्या नहीं कह डाला उन्होंने.

नीतू और पिंकी ने भी बाबूजी का ऐसा रौद्र रूप पहले कभी नहीं देखा था. दोनों अब तक भीतर ही भीतर कांप रही थीं.

इस हादसे ने ज्योति की हर आकांक्षा, हर उम्मीद का गला घोंट दिया था. सकते का आवरण ढीला पड़ते ही मनोबल और धैर्य भी साथ छोड़ गए थे. अचानक टीसने लगा उस का अंतर्मन. सुबकती, सिसकती ज्योति एक चीत्कार के साथ रो पड़ी थी. और इन असह्य परिस्थितियों का बोझ उठाए सरपट वह अपने कमरे की ओर भागी थी.

‘‘चैन मिल गया आप को. दूर हो गया सारा पागलपन, क्याक्या नहीं कह डाला आप ने ज्योति को?

‘‘एक छोटी सी बात पर इतना बड़ा कुहराम…जवान बेटी है, इतना भी नहीं सोचा आप ने. यदि उस ने कुछ ऊंचनीच कर लिया तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे हम…’’ सुमित्रा के रुंधते गले ने शब्दों का दामन छोड़ दिया था. टपकते आंसुओं को पोंछती हुई वह भी कमरे से निकल गई थी. नीतू और पिंकी भी मां के पीछेपीछे चल पड़ी थीं.

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इस कमरे में अकेले मुंशीजी ठगे से रह गए थे. एक ऐसा दावानल जिस की तपिश में झुलस कर सभी अपने उन से दूर हो गए थे. आंखें अब भी नम थीं. मुंशीजी खुद ब खुद ही बुदबुदा उठे थे, ‘ताना मारेगी, दुनिया मुझ पर थूकेगी. एक मैं ही तो बचा हूं सारी दुनिया में अकेला. सब का दोषी है ये मुंशी रामप्यारे सहाय. ढाई हजार पगार पाने वाला, 3-3 लड़कियों का गरीब, लाचार बाप.’

उधर कमरे में कुहनियों के बीच मुंह छिपा कर ज्योति रोती ही जा रही थी. मां का स्नेहिल स्पर्श भी आज उसे ममता- विहीन लग रहा था. उसे लग रहा था जैसे वह सचमुच एक लाश है, एक चेतना -शून्य देह. कोई बाहरी स्पर्श, कोई अनुभूति, कोई संवेदना, कोई सांत्वना उसे अर्थहीन लग रही थी. बस, कलेजे में रहरह कर एक हूक सी उठती थी और अविरल अश्रुधार निकल पड़ती थी.

सुमित्रा ने खूब सहलायासमझाया था उसे. वस्तुस्थिति के इस पीड़ादायक धरातल पर बाबूजी की मनोदशा विश्लेषित करती हुई सुमित्रा ने यह जताने की कोशिश की थी कि किसी भी व्यक्ति के लिए इस तरह अचानक बरस पड़ना कोई असामान्य बात नहीं थी. नीतू और पिंकी ने भी दीदी को बहलाने, गुदगुदाने, रिझाने की बहुत कोशिश की थी, मगर सब व्यर्थ.

जिज्ञासावश नीतू ने मां से एक संजीदा सा सवाल पूछ ही लिया, ‘‘मां, लड़की होना क्या सच में एक सामाजिक अभिशाप है?’’

‘‘नहीं, बेटी, इस संसार में लड़की हो कर पैदा होना बड़े सौभाग्य की बात है, गर्व की बात है. हां, ‘औरत’ जाति नहीं नीतू, ‘गरीबी’ अभिशाप है… गरीबी?’’ यह वाक्य सुमित्रा का सिर्फ उत्तर ही नहीं, बल्कि भोगा हुआ यथार्थ था.

शरद की सर्द रात. घर में एक अजीब सी खामोशी थी. नीतू और पिंकी तो गहरी नींद में थीं मगर ज्योति, सुमित्रा और मुंशीजी की बंद आंखों में शाम की घटना का असर अब तक भरा था. मुंशीजी बारबार करवट बदल रहे थे. सुमित्रा ने जानबूझ कर उन्हें छेड़ना उचित नहीं समझा था.

कहने को तो मुंशीजी सबकुछ कह गए थे मगर अब अवसादों ने उन्हें धिक्कारना शुरू कर दिया था. उन के मुंह से निकला एकएक शब्द उन्हें नागफनी के बड़ेबड़े झाड़ में तब्दील हो कर उन की आत्मा तक को छलनी कर रहा था.

मुंशीजी की आंखों के सामने ज्योति का रोताबिलखता चेहरा जितनी बार घूम जाता उतनी बार वह कलप उठते थे.

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फिल्मों की शूटिंग शुरू करने की इजाजत के लिए FWICE ने महाराष्ट्र CM से लगाई गुहार, पढ़ें खबर

कोरोना की दूसरी लहर के चलते महाराष्ट्र में पिछले दो माह से फिल्म,टीवी सीरियल,लघु फिल्मों व वेब सीरीज की शूटिंग सहित सारे काम काज बंद हैं. इससे फिल्म इंडस्ट्री को कई हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है. डेली वेजेस वर्करों की आर्थिक हालात जरुरत से ज्यादा खराब है. पिछले माह ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज’और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई संगठनो ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंुबई व उसके आसपास,जहां पर कोरोना के मामले कम आ रहे हैं,वहां पर शूटिंग शुरू करने की इजाजत देने की मांग की थी. लेकिन महाराष्ट् के मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद एक जून से छूट नही मिली,बल्कि प्रतिबंध ही लगे हुए हैं.

परणिामतः फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई)  और कोआर्डिनेशन कमेटी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पत्र लिखकर मांग की है कि  इंटरटेनमेंट इंडस्ट्रीज का काम फिर से शुरू करने की वह अनुमति दें.   इस पत्र  में एफडब्लूआइसीई ने और कोआर्डिनेशन कमेटी  लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इस साल भी फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान पहुंचाया है. महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते केसेज के मद्देनजर अप्रैल 2021 के बाद से टीवी सीरियलों,फिल्म, वेब सीरीज की शूटिंग पर पाबंदी लगा दी गई थी. शूटिंग बंद होने के कारण एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकार के हाथ से उनका काम निकल गया,जबकि कई लोग हैदराबाद, गुजरात, राजस्थान जैसे दूसरे शहर चले गए. फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई) ने सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खत लिखकर मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को काम वापस शुरू करने,फिल्मों आदि की शूटिंग व अन्य पोस्ट प्रोडक्शन वर्क करने  की इजाजत देने का अनुरोध किया है.  इस पत्र में एफडब्लूआइसीई  के अध्यक्ष बीएन तिवारी,महासचिव अशोक दुबे, कोषाध्यक्ष गंगेश्वर लाल श्रीवास्तव, चीफ एडवाइजर अशोक पंडित और चीफ एडवाइजर शरद शेलार के हस्ताक्षर हैं.

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पत्र में एफडब्लूआइसीई ने लिखा कि उनकी तरफ से कई बार मुख्यमंत्री को इस विषय पर लिखा गया,पर मुख्यमंत्री ऑफिस ने इसका कोई जवाब नहीं दिया ना ही इसपर कोई फैसला लिया गया.  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयज (एफडब्लूआइसीई) ने कहा है कि लाखों कलाकार, वर्कर और टेक्नीशीयन पिछले डेढ़ साल से बेरोजगार हैं और फिल्म इंडस्ट्री ही उनका एकमात्र कमाई का जरिया है. लॉकडाउन की वजह से कई मजदूरों की जिंदगियां प्रभावघ्ति हुई है.

एफडब्लूआइसीई  ने आगे लिखा कि महाराष्ट्र में लॉकडाउन को अगले 15 दिन के लिए बढ़ाने से कलाकारों, वर्कर्स और टेक्नशीयंस को झटका लगा है और इंडस्ट्री की इकोनॉमी पर भी असर होगा. इसकी वजह से निर्माता भी प्रभावित हुए हैं जिन्होंने अपनी निर्माणाधीन फिल्मो में पैसे लगाए और लॉकडाउन के कारण वह फिल्में रुक गयी. पत्र में  एफडब्लूआइसीई के पदाधिकारियों ने समस्या बताते हुए लिखा कि उन्हें रोज कई फोन आते हैं और सभी काम दोबारा शुरू किए जाने का अनुरोध करते हैं.

एफडब्लूआइसीई की तरफ से मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे से शूटिंग का काम दोबारा शुरू किए जाने की स्पेशल इजाजत मांगी गई है. इसके साथ ही एफडब्लूआइसीई ने यह आश्वासन दिया है कि वह काम के समय कोरोना से बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी सभी नियमों का पालन करेंगे.

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अल्पसंख्यक समुदाय के टीकाकरण पर उत्तर प्रदेश का जोर

कोरोना टीकाकरण को लेकर मुख्य मंत्री योगी आदित्यसनाथ की जनता से की गई अपील का असर मंगलवार को नजर आया. खासकर अल्पलसंख्यरक समुदाय के लोगों में टीकाकरण को लेकर काफी उत्सा ह नजर आया. लख्न ऊ के छोटे इमामबाड़े में बनाए गए कोविड टीकाकरण केन्द्रत पर सुबह से ही टीका लगवाने के लिए लम्बी् लाइन दिखाई दी. इसे पहले इस्लाकमिक सेंटर आफॅ इंडिया ईदगाह में वैक्सीीनेशन सेंटर बनाया गया है. इस मौके पर शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद व जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने टीकाकरण केन्द्रस पहुंच कर व्ययवस्थानओं का जायजा लिया. इस दौरान उन्हों ने लोगों को टीकाकरण के फायदे बताए .

यूपी में मंगलवार से विश्वो के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई है. इस पूरे अभियान के दौरान एक करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जाएगा. उत्तर प्रदेश में 18 से 44 वर्ष की आयु के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में दो-दो और शहरी क्षेत्र में तीन-तीन विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं. बड़े जिलों में आवश्यकता के अनुसार दो केंद्र बढ़ाने की अनुमति दी गई है. वहीं 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के अभिभावकों के लिए भी दो-दो विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं.

अल्पकसंख्यएक समुदाय में उत्साह

लखनऊ में हुसैनाबाद स्थित छोटे इमामबाड़े में कोरोना वैक्सी्नेशन के लिए बड़ा केन्द्रक बनाया गया था. सुबह से ही लोग उत्साहह के साथ टीकाकरण अभियान में शामिल हो रहे थे. इस मौके पर इमाम ए जुमा मौलाना कल्बेय जवाद ने टीकाकरण केन्द्रब पहुंच कर लोगों को टीके के फायदे बताए . उन्होंेने कहा कि कोरोना से बचाव का एक मात्र तरीका कोरोना टीका है. उन्होंोने लोगों से अपील की वह किसी भी तरह की अफवाह में न आए और अपना टीकाकरण कराए. टीकाकरण को लेकर अफवाहे फैलाने वाले मुस्लिम समुदाय के दुश्मलन है.

हुसैनाबाद निवासी शहजाद ने बताया कि सरकार ने पुराने लखनऊ में बड़ा केन्द्र बनाकर लोगों को राहत दी है. पुराने लखनऊ के लोगों को टीका लगवाने के लिए काफी दूर जाना पड़ रहा था. ऐसे में जिन लोगों के पास साधन नहीं थे, वह टीका नहीं लगवा रहे थे. सरकार छोटा इमामबाड़े में केन्द्र लगाने से लोगों को काफी राहत पहुंची है. छोटे इमामबाड़े में 18 से 44 साल के लोगों का अलग टीकाकरण किया जा रहा था जबकि 44 से ऊपर के लोगों का टीकाकरण अलग से किया जा रहा था. टीकाकरण केन्द्रं पर सेल्फीि प्वाजइंट भी बनवाया गया था. जहां पर युवाओं ने टीका लगवाने के बाद अपनी सेल्फी ली. वहीं, मौके पर मौजूद सिविल डिफेंस कर्मी लोगों के बीच सोशल डि‍स्टेंपसिंग बनाने का काम कर रहे थे.

टीकाकरण केन्द्र पर बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाएं भी उपस्थित थी. जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने छोटा इमामबाड़ा स्थित टीकाकरण केन्द्र का निरीक्षण किया. उन्होंरने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से आसपास के इलाकों से टीकाकरण केन्द्रे तक लाने के लिए विशेष बसों का संचालन भी किया गया था. इसमें बिल्लौसचपुरा, अकबरीगेट आदि से बसें लोगों को टीकाकरण केन्द्रे तक ला रही थी. वहीं, सरकार ने जून महीने में एक करोड़ टीके लगाकर इस संख्या को तीन करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.

काव्या को शादी का गिफ्ट देगी अनुपमा तो वनराज को देगी ये ताना

सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी इन दिनों धमाकेदार मोड़ ले रही है. जहां काव्या की शादी के सपनों पर पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है तो वहीं अनुपमा के सामने नई चुनौतियां आने वाली हैं. इसी बीच शो के मेकर्स ने दर्शकों के लिए एक नया प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें अनुपमा, काव्या और वनराज को उनकी नई जिंदगी की शुरुआत के लिए गिफ्ट देती नजर आ रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है प्रोमो में खास…

वनराज को अनुपमा मारेगी ताना

 

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अपकमिंग एपिसोड्स की झलक दिखाते हुए अनुपमा के मेकर्स ने प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें वनराज (Sudhanshu Pandey) काव्या की मांग भरता हुआ नजर आ रहा है. वहीं इस दौरान अनुपमा दोनों को एक तोहफा भी दे रही है. दरअसल, प्रोमो में अनुपमा, काव्या (Madalsha Sharma) को शगुन के कंगन और खानदानी जेवर, जो कि स्त्री धन की निशानी है. वह काव्या को देती नजर आ रही है. हालांकि बा इस बात से नाराज दिखाई दे रही हैं. लेकिन अनुपमा किसी की नहीं सुनती. दूसरी तरफ अनुपमा, वनराज को ताना मारते हुए काव्या संग इस रिश्ते को ईमानदारी के साथ निभाने की सलाह देती नजर आ रही है.

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काव्या ने दी थी अनुपमा को धमकी

 

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बीते एपिसोड की बात करें तो वनराज, काव्या संग शादी से पहले गायब हो गया था, जिसके बाद काव्या गुस्से में अनपुमा को फोन करके उसे उसके परिवार को जेल भेजने की धमकी देते हुए नजर आती है.वहीं अनुपमा पर हाथ उठाने की भी कोशिश करती हुई दिखती है. हालांकि अनुपमा काव्या की इस हरकत का करारा जवाब देती नजर आती है.

 

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बता दें. अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा के नए सफर की शुरुआत होगी, जिसमें वह अकेले अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाती हुई नजर आएगी. वहीं अब देखना ये है कि उसे अपने सपनों की मंजिल मिलेगी.

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करण मेहरा के आरोपों पर वाइफ निशा रावल ने तोड़ी चुप्पी, किए ये खुलासे

ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम करण मेहरा और निशा रावल का मामला इन दिनों सुर्खियों में हैं. निशा रावल ने करण मेहरा पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था तो वहीं जमानत मिलने के बाद करण मेहरा ने अपना पक्ष सामने रखते हुए निशा और उनके भाई में पर मारपीट का आरोप लगाया था. हालांकि निशा ने अब इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ दी है. आइए आपको बताते हैं क्या कहती हैं निशा रावल…

मीडिया के सामने बयां किया दर्द

दरअसल, एक्ट्रेस निशा रावल ने हाल ही में अपने घर के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा कि करण की आज और 14 साल पहले की इमेज में कोई बदलाव नहीं आया है. चूंकि स्क्रीन और फैंस के बीच उनकी इमेज एक आदर्श लड़के की रही है तो मैंने भी कोशिश की है कि उनकी इमेज ऐसी ही बनी रही. क्योंकि इससे उनके करियर पर असर पड़ता. वह हर बार गलती करते और कहते थे कि ऐसी गलती नहीं होगी.

 

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अब्यूज करते हैं करण मेहरा

अपने रिश्ते को लेकर निशा आगे कहती हैं कि मैंने करण से इस रिश्ते को खत्म करने के लिए कहा था, जिसके लिए वह राजी हो गए थे. इसके लिए हमने अपने अपने वकील से भी बात कर ली थी. वहीं चंडीगढ़ से आने के बाद क्वांरटीन होने के बाद सोमवार रात को हमारी बहस हुई. वह हमेशा मुझे फिजिकली, मेंटली और इमोशनली अब्यूज करते रहे हैं और अब लगता है कि मुझे स्टैंड लेना चाहिए था, जिसके बाद सोमवार रात कहा कि मुझे तुम्हारी शक्ल पसंद नहीं है मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता. मेरे भाई पिछले चार दिनों से रिश्ते को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने मेरी सारी ज्वैलरी ले ली. रही बात एलि‍मनी की, मैंने उनसे यही कहा कि आप पर भी भार न आए, हमारे ऊपर भार न आए.

 

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बेटे के लिए उठाई आवाज

घरेलू हिंसा के बारे में निशा कहती हैं कि यह पहली बार नहीं है कि करण ने पीटा है. एक्टर होने के कारण वह जानते हैं कि कौन से रूम में कैमरा और कहां नजर नहीं आना चाहिए. कितनी बार मेरे आंखों में काले घेरे पड़े हैं और चोंटे आई हैं, जिसका हिसाब नहीं है. मैंने उन्हें नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं उनसे प्यार करती थी और आज भी मैं उनसे प्यार करती हूं, तभी तो उनका अफेयर होने के बावजूद मैं थप्पड़ खा रही हूं. मैं अपने बेटे काविश के लिए बुरा उदाहरण नहीं बनना चाहती इसीलिए आज यहां आई हूं. मैं अपने बेटे के लिए करण जैसा पिता नहीं चाहती. कल उसने मुझे मारा और मेरा गला दबाने की कोशिश की.

 

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पति के आरोपों का दिया जवाब

 

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करण के बाइपोलर वाले आरोप पर निशा कहती हैं, करण अपने बचाव के लिए कहेंगे ही. यह मेरे लिए शॉकिंग नहीं है. मैं अपना सिर क्यों फोडूंगी, मैं एक एक्टर हूं अपने चेहरे से मुझे प्यार है. मेरा एक बच्चा है, मैं क्यों रिस्क लूंगी. मुझे बाइपॉलर है.  लेकिन मैं पागल नहीं हूं. 2014 सितंबर में मैनें पांच महीने का बच्चा खोया था. इसी बीच हस्बैंड आपको मार रहे हैं. तो मैं डॉक्टर से जाकर मिली, मेंटल हेल्थ से अवेयरनेस बहुत जरूरी है. मैं करण की वजह से डिप्रेशन में चली गई थी.

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बच्चे की कस्टडी लेंगी निशा

 

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बेटे की कस्टडी को लेकर निशा कहती हैं कि मैं अपने बच्चे की जिम्मेदारी लूंगी. मुझे नहीं लगता कि करण काविश की कस्टडी में इंट्रेस्टेड हैं. मैंने जब पूछा कि अगर काविश तुम्हारे पास रहता है, तो क्या करोगे. उन्होंने सीधा जवाब दिया कि शूटिंग के वक्त इसे पापा-मम्मी के पास दिल्ली छोड़कर आऊंगा. आप ही बताएं, हमारी तो बच्चे की कस्टडी को लेकर कोई बहस ही नहीं हुई. वह काविश के साथ रहना चाहते ही नहीं हैं.

बता दें बीते दिन जमानत मिलने के बाद निशा और उनके भाई पर मारपीट का आरोप लगाया है, वहीं दूसरी तरफ निशा के सपोर्ट में उनके दोस्त भी खड़े हो गए हैं. अब देखना है कि करण के सपोर्ट में कौन खड़ा होता हुआ नजर आता है.

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