अगर आपको भी है नेल्स चबाने की आदत, तो हो जाइए अलर्ट

आजकल की डेली बिजी लाइफस्टाइल में कईं लोगों में नेल्स को खाने की आदत हो जाती है. नेल्स हमारी खूबसूरती को बढ़ाते है, लेकिन नेल्स चबाकर हम अपनी खूबसूरती में दाग लगा देते हैं. नेल्स में कई तरह की बिमारियों वाले जर्म यानी विषाणु पाए जाते हैं, जो हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकते हैं. कई बार यह भी कहा जाता है कि नेल्स चबाना टेन्शन होने की निशानी होती है, जिससे हम छुटकारा जल्दी नहीं पा पाते. लेकिन क्या आपको पता है कि नेल्स चबाने की आपकी ये आदत आपकी हेल्थ को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है. आज हम आपको नेल्स चबाने से होने वाली बिमारियों के बारे में बताएंगे…

1. गंदे नेल्स चबाने से पनपते हैं रोगजनक बैक्टीरिया

नेल्स में साल्मोनेला और ई कोलाई जैसे रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया पनपते हैं. जब आप दांतों से नेल्स काटते हैं तो ये बैक्टीरिया आपके मुंह में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं. ऐसे में आपका बीमार होना तय है. कई शोध भी कहते हैं कि हमारे नेल्स उंगलियों से दोगुने गंदे होते हैं. ऐसे में नेल्स चबाना हमारे लिए बेहद हानिकारक हो सकता है.

2. स्किन इन्फेक्शन होने का हो सकता है खतरा

नेल्स चबाने से उसके आस-पास की स्किन सेल्स को भी नुकसान होता हैं. ऐसे में पैरोनिशिया से पीड़ित होने का खतरा होता है. यह एक स्किन इन्फेक्शन है जो नेल्स की आस-पास की त्वचा में होता है.

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3. दांतों को भी पहुंचता है नुकसान

नेल्स चबाने से आपके दांतों पर बहुत बुरा असर पड़ता है. नेल्स से निकलने वाली गंदगी आपके दांतों को कमजोर करने लगती है. एक रिसर्च से ये बात सामने आई है कि अधिक नेल्स चबाने वाले लोग तनाव में ज्यादा रहते हैं. नेल्स चबाने से नाखूनों की गंदगी दांतों तक पहुंचती रहती है जिससे दांत भी कमजोर होने लगते हैं.

4. स्किन में हो सकता है घाव

लगातार नेल्स चबाने वाले लोग डर्मेटोफेजिया नाम की बीमारी के शिकार हो जाते हैं. इस बीमारी में स्किन पर घाव बनने लगते हैं. यहां तक की इसके इंफेक्शन से नसों को भी नुकसान पहुंचता है.

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5. कैंसर का भी होता है खतरा

हमेशा नेल्स चबाने से आंतों का कैंसर हो सकता है. दरअसल नेल्स चबाने से नेल्स में मौजूद बैक्टीरिया हमारी आंतों तक पहुंच जाते हैं जो कैंसर जैसे रोग भी दे सकते हैं.

200 की कीमत के इन कलरफुल आईलाइनर से पाएं ब्यूटीफुल आंखें

आजकल बिजी लाइफस्टाइल में चाहें कौलेज गर्ल्स हो या महिलाएं मेकअप के लिए लाइनर और लिपस्टिक लगाना पसंद करती हैं. वहीं मार्केट में लाइनर में भी कईं वैरायटी आ गई है. आजकल लाइनर के लिए अलग-अलग कलर मार्केट में पौपुलर हैं. आप चाहें तो उन्हें पार्टी हो या औफिस या कहीं घूमना हो इन आइलाइनर को लगाकर अपनी खूबसूरत आंखों को एक नया लुक दे सकते हैं, लेकिन कुछ लोग सोचते होंगे कि कलरफुल आइलाइनर महंगे आते होंगे. पर आज हम आपको 200 रूपए की कीमत में 4 आईलाइनर के बारे में बताएंगे, जिसे आप मार्केट या औनलाइन से आसानी से खरीद सकते हैं.

1. लैक्मे इंस्टा ब्लू आईलाइनर (Lakme Insta Eye Liner, Blue)

अगर आप कहीं बाहर घूमने जा रहें हैं और आपका आउटफिट ब्लू है तो ये लाईनर आपके लिए परफेक्ट है और अगर आप कोई सिंपल आउट्फिट पहन रहें हैं तो ये आपके फेस को ब्राइट लुक भी देगा. ये आपको दुकानों में 118 या 120 में आसानी से मिल जाएगा.

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2. लैक्मे इंस्टा आई लाइनर, ग्रीन (Lakme Insta Eye Liner, Green)

अगर आप लाईनर के लिए ग्रीन यानी हरा रंग ट्राई करें. इसका गहरा हरा कलर लंबे समय तक रहेगा. साथ ही वौटर प्रूफ की वजह से अगर आपको पसीने में लाईनर खराब होने का डर है. साथ ही यह लगाते समय सूख जाता है. इसे आप मार्केट से 120 रूपए में मिल जाएगा.

3. लैक्मे इंस्टा आई लाइनर, गोल्डन (Lakme Insta Eye Liner, Golden)

शादी या पार्टी में अक्सर लोग गोल्डन का पैटर्न जरूर रखते हैं. गोल्डन कलर आपको रौयल लुक देने का काम करता है. इसीलिए लैक्में का गोल्डन कलर आईलाइनर आपके लुक को भी एक रौयल लुक देगा. ये आईलाइनर आपको मार्केट से 120 रूपए से आसानी से मिल जाएगा.

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4. ब्लू हैवन कलर मैट आईलाइनर (Blue Heaven Color Matte Eyeliner)

अगर आप ब्लू हैवन के प्रौडक्टस का इस्तेमाल करते हैं तो ब्लू हैवन का कलर मैट आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकते हैं. ब्लू हैवन का ब्राउन आईलाइनर आप कौलेज या कहीं घूमने के लिए ट्राई कर सकती हैं. ये आपको मार्केट या औनलाइन 95 रूपए में खरीद सकते हैं.

Serial Story: चलो एक बार फिर से… – भाग 3

काव्या अब संतुष्ट थी कि उस ने मनन को पूरी तरह से पा लिया है. झूम उठती थी वह जब मनन उसे प्यार से सिरफिरी कहता था. मगर उस का यह खुमार भी जल्द ही उतर गया. 2-3 साल तो मनन के मन का भौंरा काव्या के तन के पराग पर मंडराता रहा, मगर फिर वही ढाक के तीन पात… मनन फिर से अपने काम की तरफ झुकने लगा और काव्या को नजरअंदाज करने लगा. अब काव्या के पास भी समर्पण के लिए कुछ नहीं बचा था. वह परेशानी में और भी अधिक दीवानी होने लगी. कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता… उन का रिश्ता भी पूरे विभाग में चर्चा का विषय बन गया. लोग सामने तो मनन की गरिमा का खयाल कर लेते थे, मगर पीठ पीछे उसे काव्या का भविष्य बरबाद करने के लिए जिम्मेदार ठहराते थे. हालांकि मनन तो अपनी तरफ से इस रिश्ते को नकारने की बहुत कोशिश करता था, मगर काव्या का दीवानापन उन के रिश्ते की हकीकत को बयां कर ही देता था, बल्कि वह तो खुद चाहती थी कि लोग उसे मनन के नाम से जानें.

बात उड़तेउड़ते दोनों के घर तक पहुंच गई. जहां काव्या की मां उस की शादी पर

जोर देने लगीं, वहीं प्रिया ने भी मनन से इस रिश्ते की सचाई के बारे में सवाल किए. प्रिया को तो मनन ने अपने शब्दों के जाल में उलझा लिया था, मगर विहान और विवान के सवालों के जवाब थे उन के पास… एक पिता भला अपने बच्चों से यह कैसे कह सकता है कि उन की मां की नाराजगी का कारण उस के नाजायज संबंध हैं. मनन काव्या से प्यार तो करता था, मगर एक पिता की जिम्मेदारियां भी बखूबी समझाता था. वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता था.

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इधर काव्या की दीवानगी भी मनन के लिए परेशानी का कारण बनने लगी थी. एक दिन काव्या ने मनन को अकेले में मिलने के लिए बुलाया. मनन को उस दिन प्रिया के साथ बच्चों के स्कूल पेरैंटटीचर मीटिंग में जाना था, इसलिए उस ने मना कर दिया. यही बात काव्या को नागवार गुजरी. वह लगातार मनन को फोन करने लगी, मगर मनन उस की मानसिकता अच्छी तरह समझता था. उस ने अपने मोबाइल को साइलैंट मोड पर डाल दिया. मीटिंग से फ्री हो कर मनन ने फोन देखा तो काव्या की 20 मिस्ड कौल देख कर उस का सिर चकरा गया. एक मैसेज भी था कि अगर मुझ से मिलने नहीं आए तो मुझे हमेशा के लिए खो दोगे. ‘‘सिरफिरी है, कुछ भी कर सकती है,’’ सोचते हुए मनन ने उसे फोन लगाया. सारी बात समझाने पर काव्या ने उसे घर आ कर सौरी बोलने की शर्त पर माफ किया. इतने दिनों बाद एकांत मिलने पर दोनों का बहकना तो स्वाभाविक ही था.

ज्वार उतरने के बाद काव्या ने कहा, ‘‘मनन, हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है? सब लोग मुझ पर शादी करने का दबाव बना रहे हैं.’’ ‘‘सही ही तो कर रहे हैं सब. अब तुम्हें भी इस बारे में सोचना चाहिए,’’ मनन ने कपड़े पहनते हुए कहा.

‘‘शर्म नहीं आती तुम्हें मुझ से ऐसी बात करते हुए… क्या तुम मेरे साथ बिस्तर पर किसी और की कल्पना कर सकते हो?’’ काव्या तड़प उठी. ‘‘नहीं कर सकता… मगर हकीकत यही है कि मैं तुम्हें प्यार तो कर सकता हूं और करता भी हूं, मगर एक सुरक्षित भविष्य नहीं दे सकता,’’ मनन ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मगर तुम्हारे बिना तो मेरा कोई भविष्य ही नहीं है,’’ काव्या के आंसू बहने लगे. मनन समझ नहीं पा रहा था कि इस सिरफिरी को कैसे समझाए. तभी मनन का कोई जरूरी कौल आ गई और वह काव्या को हैरानपरेशान छोड़ चला गया. काव्या ने अपनेआप से प्रश्न किया कि क्या मनन उस का इस्तेमाल कर रहा है… उसे धोखा दे रहा है?

नहीं, बिलकुल नहीं… मनन ने कभी उस से शादी का कोई झूठा वादा नहीं किया, बल्कि पहले दिन से ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी. प्यार की पहल खुद उसी ने की थी… उसी ने मनन को निमंत्रण दिया था अपने पास आने का…’’ काव्या को जवाब मिला. तो फिर क्यों वह मनन को जवाबदेह बनाना चाह रही है… क्यों वह अपनी इस स्थिति के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा रही है… काव्या दोराहे पर खड़ी थी. एक तरफ मनन का प्यार था, मगर उस पर अधिकार नहीं था और दूसरी तरफ ऐसा भविष्य था जिस के सुखी होने की कोई गारंटी नहीं थी. क्या करे, क्या न करे… कहीं और शादी कर भी ले तो क्या मनन को भुला पाएगी? उस के इतना पास रह कर क्या किसी और को अपनी बगल में जगह दे पाएगी? प्रश्न बहुत से थे, मगर जवाब कहीं नहीं थे. इसी कशमकश में काव्या अपने लिए आने वाले हर रिश्ते को नकारती जा रही थी.

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इसी बीच प्रमोशन के साथ ही मनन का ट्रांसफर दूसरे सैक्शन में हो गया. अब काव्या के लिए मनन को रोज देखना भी मुश्किल हो गया था. प्रमोशन के साथ ही उस की जिम्मेदारियां भी पहले से काफी बढ़ गई थीं. इधर विहान और विवान भी स्कूल से कालेज में आ गए थे. मनन को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखना पड़ता था. इस तरह काव्या से उस का संपर्क कम से कमतर होता गया. मनन की बेरुखी से काव्या डिप्रैशन में रहने लगी. वह दिन देखती न रात… बारबार मनन को फोन, मैसेज करने लगी तो मनन ने उस का मोबाइल नंबर ब्लौक कर दिया. एक दिन काव्या को कहीं से खबर मिली कि मनन विभाग की तरफ से किसी ट्रेनिंग के लिए चेन्नई जा रहा है और फिर वहीं 3 साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर रहेगा. काव्या को सदमा सा लगा. वह सुबहसुबह उस के औफिस में पहुंच गई. मनन अभी तक आया नहीं था. वह वहीं बैठ कर उस का इंतजार करने लगी. जैसे ही मनन चैंबर में घुसा काव्या फूटफूट कर रोने लगी. रोतेरोते बोली, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताने लायक भी नहीं समझा?’’

मनन घबरा गया. उस ने फौरन चैंबर का गेट बंद किया और काव्या को पानी का गिलास थमाया. वह कुछ शांत हुई तो मनन बोला, ‘‘बता देता तो क्या तुम मुझे जाने देतीं?’’ ‘‘इतना अधिकार तो तुम ने मुझे कभी दिया ही नहीं कि मैं तुम्हें रोक सकूं,’’ काव्या ने गहरी निराशा से कहा.

‘‘काव्या, मैं जानबूझ कर तुम से दूर जाना चाहता हूं ताकि तुम अपने भविष्य के बारे में सोच सको, क्योंकि मैं जानता हूं कि जब तक मैं तुम्हारे आसपास हूं, तुम मेरे अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकती. मैं इतना प्यार देने के लिए हमेशा तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा…’’ ‘‘मैं अपने स्वार्थ की खातिर तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकता. मुझे लगता है कि हमें अपने रिश्ते को यही छोड़ कर आगे बढ़ना चहिए. मैं ने तुम्हें हमेशा बिना शर्त प्यार किया है और करता रहूंगा. मगर मैं इसे सामाजिक मान्यता नहीं दे सकता… काश, तुम ने मुझे प्यार न किया होता… मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसीलिए चाहता हूं कि तुम हमेशा खुश रहो… हम चाहे कहीं भी रहें, तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगी…’’

सुन कर काव्या को सदमा तो लगा, मगर मनन सच ही कह रहा था. अंधेरे में भटकने से बेहतर है कि उसे अब नया चिराग जला कर आगे बढ़ जाना चाहिए. काव्या ने अपने आंसू पोंछ, फिर से मुसकराई, फिर उठते हुए मनन से हाथ मिलाते हुए बोली, ‘‘नए प्रोजैक्ट के लिए औल द बैस्ट… चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों… और हां, मुझे पहले प्यार की अनुभूति देने के लिए शुक्रिया…’’ और फिर आत्मविश्वास के साथ चैंबर से बाहर निकल गई.

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Serial Story: चलो एक बार फिर से… – भाग 2

दोपहर में नमनजी ने एक मेल दिखाते हुए काव्या से उस का रिप्लाई बनाने को कहा. कंपनी सैक्रेटरी ने आज ही औफिस स्टाफ की कंप्लीट डिटेल मंगवाई थी. रिपोर्ट बनाते समय अचानक काव्या मुसकरा उठी जब मनन की डिटेल बनाते समय उसे पता चला कि अगले महीने ही मनन का जन्मदिन है. मन ही मन उस ने मनन के लिए सरप्राइज प्लान कर लिया. जन्मदिन वाले दिन सुबहसुबह काव्या ने मनन को फोन किया, ‘‘हैप्पी बर्थडे सर.’’

‘‘थैंकयू सो मच. मगर तुम्हें कैसे पता?’’ मनन ने पूछा. ‘‘यही तो अपनी खास बात है सर… जिसे यादों में रखते हैं उस की हर बात याद रखते हैं,’’ काव्या ने शायराना अंदाज में इठलाते हुए कहा.

मनन उस के बचपने पर मुसकरा उठा. ‘‘सिर्फ थैंकयू से काम नहीं चलेगा… ट्रीट तो बनती है…’’ काव्या ने अगला तीर छोड़ा.

‘‘औफकोर्स… बोलो कहां लोगी?’’ ‘‘जहां आप ले चलो… आप साथ होंगे तो कहीं भी चलेगा…’’ काव्या धीरेधीरे मुद्दे की तरफ आ रही थी. अंत में तय हुआ कि मनन उसे मैटिनी शो में फिल्म दिखाएगा. मनन के साथ 3 घंटे उस की बगल में बैठने की कल्पना कर के ही काव्या हवा में उड़ रही थी. उस ने मनन से कहा कि फिल्म के टिकट वह औनलाइन बुक करवा लेगी. अच्छी तरह चैक कर के काव्या ने लास्ट रौ की 2 कौर्नर सीट बुक करवा ली. अपनी पहली जीत पर उत्साह से भरी वह आधा घंटा पहले ही पहुंच कर हौल के बाहर मनन का इंतजार करने लगी. मगर मनन फिल्म शुरू होने पर ही आ पाया. उसे देखते ही काव्या ने मुसकरा कर एक बार फिर उसे बर्थडे विश किया और दोनों हौल में चले गए. चूंकि फिल्म स्टार्ट हो चुकी थी और हौल में अंधेरा था इसलिए काव्या ने धीरे से मनन का हाथ थाम लिया.

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फिल्म बहुत ही कौमेडी थी. काव्या हर पंच पर हंसहंस के दोहरी हुई जा रही थी. 1-2 बार तो वह मनन के कंधे से ही सट गई. इंटरवल के बाद एक डरावने से सीन को देख कर उस ने मनन का हाथ कस कर थाम लिया. एक बार हाथ थामा तो फिर उस ने पूरी फिल्म में उसे पकड़े रखा. मनन ने भी हाथ छुड़ाने की ज्यादा कोशिश नहीं की. फिल्म खत्म होते ही हौल खाली होने लगा. काव्या ने कहा, ‘‘2 मिनट रुक जाते हैं. अभी भीड़ बहुत है,’’ फिर अपने पर्स में कुछ टटोलने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह लो… आप से ट्रीट तो ले ली और बर्थडे गिफ्ट दिया ही नहीं… आप अपनी आंखें बंद कीजिए…’’

मनन ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, काव्या ने एक गहरा चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया. मनन ने ऐसे सरप्राइज गिफ्ट की कोई कल्पना नहीं की थी. उस का दिल तेजी से धड़कने लगा और अनजाने ही उस के हाथ काव्या के इर्दगिर्द लिपट गए. काव्या के लिए यह एकदम अनछुआ एहसास था. उस का रोमरोम भीग गया. वह मनन के कान में धीरे से बुदबुदाई, ‘‘यह जन्मदिन आप को जिंदगी भर याद रहेगा.’’

मनन अभी भी असमंजस में था कि इस राह पर कदम आगे बढ़ाए या फिर यहीं रुक जाए… हिचकोले खाता यह रिश्ता धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. जब भी काव्या मनन के साथ होती तो मनन उसे एक समर्पित प्रेमी सा लगता और जब वह उस से दूर होती तो उसे यह महसूस होता जैसे कि मनन से उस का रिश्ता ही नहीं है… जहां काव्या हर वक्त उसी के खयालों में खोई रहती, वहीं मनन के लिए उस का काम उस की पहली प्राथमिकता थी और उस के बाद उस के बच्चे. कव्या औफिस से जाने के बाद भी मनन के संपर्क में रहना चाहती थी, मगर मनन औफिस के बाद न तो उस का फोन उठाता था और न ही किसी मैसेज का जवाब देता था. कुल मिला कर काव्या उस के लिए दीवानी हो चुकी थी. मगर मनन शायद अभी भी इस रिश्ते को ले कर गंभीर नहीं था.

एक दिन सुबहसुबह मनन ने काव्या को चैंबर में बुला कर कहा, ‘‘काव्या, मुझे घर पर मैसेज मत किया करो… घर जाने के बाद बच्चे मेरे मोबाइल में गेम खेलने लगते हैं… ऐसे में कभी तुम्हारा कोई मैसेज किसी के हाथ लग गया तो बवाल मच जाएगा.’’ ‘‘क्यों? क्या तुम डरते हो?’’ काव्या ने

उसे ललकारा. ‘‘बात डरने की नहीं है… यह हम दोनों का निजी रिश्ता है. इसे सार्वजनिक कर के इस का अपमान नहीं करना चाहिए… कहते हैं न कि खूबसूरती की लोगों की बुरी नजर लग जाती और मैं नहीं चाहता कि हमारे इस खूबसूरत रिश्ते को किसी की नजर लगे,’’ मनन ने काव्या को बातों के जाल में उलझा दिया, क्योंकि वह जानता था कि प्यार से न समझाया गया तो काव्या अभी यही रोनाधोना शुरू कर देगी.

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अपने पूरे समर्पण के बाद भी काव्या मनन को अपने लिए दीवाना नहीं बना पा रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा क्या करे जिस से मनन सिर्फ उस का हो कर रहे. वह मनन को कैसे जताए कि वह उस से कितना प्यार करती हैं… उस के लिए किस हद से गुजर सकती है… किसी से भी बगावत कर सकती है. आखिर काव्या को एक तरीका सूझ ही गया.

मनन अभी औफिस के लिए घर से निकला ही था कि काव्या का फोन आया. बेहद कमजोर सी आवाज में उस ने कहा, ‘‘मनन, मुझे तेज बुखार है और मां भी 2 दिन से नानी के घर गई हुई हैं. प्लीज, मुझे कोई दवा ला दो और हां मैं आज औफिस नहीं आ सकूंगी.’’

ममन ने घड़ी देखी. अभी आधा घंटा था उस के पास… उस ने रास्ते में एक मैडिकल स्टोर से बुखार की दवा ली और काव्या के घर पहुंचा. डोरबैल बजाई तो अंदर से आवाज आई, ‘‘दरवाला खुला है, आ जाओ.’’

मनन अंदर आ गया. आज पहली बार वह काव्या के घर आया था. काव्या बिस्तर पर लेटी हुई थी. मनन ने इधरउधर देखा, घर में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. मनन ने प्यार से काव्या के सिर पर हाथ रखा तो चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, तुम्हें तो बुखार है ही नहीं.’’

वह उस से लिपट कर सिसक उठी. रोतेरोते बोली, ‘‘मनन, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती… मैं नहीं जानती कि मैं क्या करूं… तुम्हें कैसे अपने प्यार की गहराई दिखाऊं… तुम्हीं बताओ कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से तुम्हें बांध सकूं… हमेशा के लिए अपना बना सकूं…’’ ‘‘मैं तो तुम्हारा ही हूं पगली… क्या तुम्हें अपने प्यार पर भरोसा नहीं है?’’ मनन ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘भरोसा तो मुझे तुम पर अपनेआप से भी ज्यादा है,’’ कह कर काव्या उस से और भी कस कर लिपट गई. ‘‘बिलकुल सिरफिरी हो तुम,’’ कह कर मनन उस के बालों को सहलातासहलाता उस के आंसुओं के साथ बहने लगा. तनहाइयों ने उन का भरपूर साथ दिया और दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. अपना मन तो काव्या पहले ही उसे दे चुकी थी आज अपना तन भी उस ने अपने प्रिय को सौंप दिया था. शादीशुदा मनन के लिए यह कोई अनोखी बात नहीं थी, मगर काव्या का कुंआरा तन पहली बार प्यार की सतरंगी फुहारों से तरबतर हुआ था. आज उस ने पहली बार कायनात का सब से वर्जित फल चखा था.

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Serial Story: चलो एक बार फिर से… – भाग 1

‘‘काव्या,कल जो लैटर्स तुम्हें ड्राफ्टिंग के लिए दिए थे, वे हो गया क्या?’’ औफिस सुपरिंटेंडैंट नमनजी की आवाज सुन कर मोबाइल पर चैट करती काव्या की उंगलियां थम गईं. उस ने नमनजी को ‘गुड मौर्निंग’ कहा और फिर अपनी टेबल की दराज से कुछ रफ पेपर निकाल कर उन की तरफ बढ़ा दिए. देखते ही नमनजी का पारा चढ़ गया.

बोले, ‘‘यह क्या है? न तो इंग्लिश में स्पैलिंग सही हैं और न हिंदी में मात्राएं… यह होती है क्या ड्राफ्टिंग? आजकल तुम्हारा ध्यान काम पर

नहीं है.’’ ‘‘सर, आप चिंता न करें, कंप्यूटर सारी मिस्टेक्स सही कर देगा,’’ काव्या ने लापरवाही से कहा. नमनजी कुछ तीखा कहते उस से पहले ही काव्या का मोबाइल बज उठा. वह ‘ऐक्सक्यूज मी’ कहती हुई अपना मोबाइल ले कर रूम से बाहर निकल गई. आधा घंटा बतियाने के बाद चहकती हुई काव्या वापस आई तो देखा नमनजी कंप्यूटर पर उन्हीं लैटर्स को टाइप कर रहे थे. वह जानती है कि इन्हें कंप्यूटर पर काम करना नहीं आता. नमनजी को परेशान होता देख उसे कुछ अपराधबोध हुआ. मगर काव्या भी क्या करे? मनन का फोन या मैसेज देखते ही बावली सी हो उठती है. फिर उसे कुछ और दिखाई या सुनाई ही नहीं देता.

‘‘आप रहने दीजिए सर. मैं टाइप कर देती हूं,’’ काव्या ने उन के पास जा कर कहा. ‘‘साहब आते ही होंगे… लैटर्स तैयार नहीं मिले तो गुस्सा करेंगे…’’ नमनजी ने अपनी नाराजगी को पीते हुए कहा.

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‘‘सर तो आज लंच के बाद आएंगे… बिग बौस के साथ मीटिंग में जा रहे हैं,’’ काव्या बोली. ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘यों ही… वह कल सर फोन पर बिग बौस से बात कर रहे थे. तब मैं ने सुना था,’’ काव्या को लगा मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह सकपका गई और फिर नमनजी से लैटर्स ले कर चुपचाप टाइप करने लगी. काव्या को इस औफिस में जौइन किए लगभग 4 साल हो गए थे. अपने पापा की मृत्यु के बाद सरकारी नियमानुसार उसे यहां क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. नमनजी ने ही उसे औफिस का सारा काम सिखाया था. चूंकि वे काव्या के पापा के सहकर्मी थे, इस नाते भी वह उन्हें पिता सा सम्मान देती थी. शुरूशुरू में जब उस ने जौइन किया था तो कितना उत्साह था उस में हर नए काम को सीखने का. मगर जब से ये नए बौस मनन आए हैं, काव्या का मन तो बस उन के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है.

काव्या का कुंआरा मन मनन को देखते ही दीवाना सा हो गया था. 5 फुट 8 इंच हाइट, हलका सांवला रंग और एकदम परफैक्ट कदकाठी… और बातचीत का अंदाज तो इतना लुभावना कि उसे शब्दों का जादूगर ही कहने का मन करता था. असंभव शब्द तो जैसे नैपोलियन की तरह उस की डिक्शनरी में भी नहीं था. हर मुश्किल का हल था उस के पास… काव्या को लगता था कि बस वे बोलते ही रहें और वह सुनती रहे… ऐसे ही जीवनसाथी की तो कल्पना की थी उस ने अपने लिए. मनन नई विचारधारा का हाईटैक औफिसर था. वह पेपरलैस वर्क का पक्षधर था. औफिस के सारे काम कंप्यूटर और मेल से करने पर जोर देता था. उस ने नमनजी जैसे रिटायरमैंट के करीब व्यक्ति को भी जब मेल करना सिखा दिया तो काव्या उस की फैन हो गई. सिर्फ काव्या ही नहीं, बल्कि औफिस का सारा स्टाफ ही मनन के व्यवहार का कायल था. वह अपने औफिस को भी परिवार ही समझता था. स्टाफ के हर सदस्य में पर्सनल टच रखता था. उस का मानना था कि हम दिन का एक अहम हिस्सा जिन के साथ बिताते हैं, उन के बारे में हमें पूरी जानकारी होनी चाहिए और उन से जुड़ी हर अच्छी और बुरी बात में हमें उन के साथ खड़े रहना चाहिए.

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अपनी इस नीति के तहत हर दिन किसी एक व्यक्ति को अपने चैंबर में बुला कर चाय की चुसकियों के साथ मनन उन से व्यक्तिगत स्तर पर ढेर सी बातें करता था. इसी सिलसिले में काव्या को भी अपने साथ चाय पीने के लिए आमंत्रित करता था.

जिस दिन मनन के साथ काव्या की औफिस डेट होती थी, वह बड़े ही मन से तैयार हो कर आती थी. कभीकभी अपने हाथ से बने स्नैक्स भी मनन को खिलाती थी. अपने स्वभाव के अनुसार वह उस की हर बात की तारीफ करती थी. काव्या को लगता था जैसे वह हर डेट के बाद मनन के और भी करीब आ जाती है. पता नहीं क्या था मनन की गहरी आंखों में कि उस ने एक बार झांका तो बस उन में डूबती ही चली गई.

मनन को शायद काव्या की मनोदशा का कुछकुछ अंदाजा हो गया था, इसलिए वह अब काव्या को अपने चैंबर में अकेले कम ही बुलाता था. एक बार बातोंबातों में मनन ने उस से अपनी पत्नी प्रिया और 2 बच्चों विहान और विवान का जिक्र भी किया था. बच्चों में तो काव्या ने दिलचस्पी दिखाई थी, मगर पत्नी का जिक्र आते ही उस का मुंह उतर गया, जिसे मनन की अनुभवी आंखों ने फौरन ताड़ लिया. पिछले साल मनन अपने बच्चों की गरमी की छुट्टियों में परिवार सहित शिमला घूमने गया था. उस की गैरमौजूदगी में काव्या को पहली बार यह एहसास हुआ कि मनन उस के लिए कितना जरूरी हो गया है. मनन का खाली चैंबर उसे काटने को दौड़ता था. दिल के हाथों मजबूर हो कर तीसरे दिन काव्या ने हिम्मत जुटा कर मनन को फोन लगाया. पूरा दिन उस का फोन नौट रीचेबल आता रहा. शायद पहाड़ी इलाके में नैटवर्क कमजोर था. आखिरकार उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ दिया-

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‘‘मिसिंग यू… कम सून.’’ देर रात मैसेज देखने के बाद मनन ने रिप्लाई में सिर्फ 2 स्माइली भेजीं. मगर वे भी काव्या

के लिए अमृत की बूंदों के समान थीं. 1 हफ्ते बाद जब मनन औफिस आया तो उसे देखते ही काव्या खिल उठी. उस ने थोड़ी देर तो मनन के बुलावे का इंतजार किया, फिर खुद ही उस के चैंबर में जा कर उस के ट्रिप के बारे में पूछने लगी. मनन ने भी उत्साह से उसे अपने सारे अनुभव बताए. मनन महसूस कर रहा था कि जबजब भी प्रिया का जिक्र आता, काव्या कुछ बुझ सी जाती. कई दिनों के बाद दोनों ने साथ चाय पी थी. आज काव्या बहुत खुश थी.

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इंटीमेट सीन करने को नहीं मिला- शाइनी दोशी

मूलतया गुजराती, मगर मुंबई में पलीबढ़ी शाइनी की जिंदगी में उस वक्त बहुत बड़ा तूफान आ गया, जब अचानक उन के पिता का देहांत हो गया. उस के बाद शाइनी को अपनी मां व भाई  के साथ मुंबई छोड़ कर अहमदाबाद जाना पड़ा था. मगर शाइनी की ‘सिंगल मदर’ ने संघर्ष कर शाइनी के अंदर अभिनेत्री बनने का उत्साह उस वक्त भरा, जब शाइनी ने स्वयं अभिनेत्री बनने की बात सोची तक न थी. अंधेरे के बाद उजाले के आगमन की ही तरह मुसीबत के ही वक्त शाइनी दोशी का एक प्रिंट ऐड देख कर फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने उन्हें बुला कर अपने बड़े बजट के टीवी सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ में मुख्य किरदार निभाने का अवसर दिया. उस के बाद उन्हें पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. प्र्रस्तुत हैं, शाइनी दोशी से हुई ऐक्सक्लूसिब बातचीत के अंश: अभिनय का शौक कैसे लगा?

मैं मुंबई में जन्मी हूं पर गुजराती हूं. लेकिन बाद में हम लोग अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे. अभी भी मेरा पूरा परिवार अहमदाबाद में ही है. जब मैं अहमदाबाद में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी, तभी मैं ने कई सारे प्रिंट के विज्ञापन करने शुरू कर दिए थे. फिर मुझे टीवी सीरियलों में अभिनय करने का अवसर मिला. तब से मेरी अभिनय यात्रा चलती जा रही है.

आप ने संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी. इसे 8 साल हो गए. अब अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

मेरी 8 वर्ष के कैरियर की एक बहुत ही खूबसूरत यात्रा रही है. इस बीच बहुत सारे उतारचढ़ाव भी रहे हैं. हमेशा ऐसा नहीं हुआ कि मैं सिर्फ ऊपर ही चढ़ी हूं. मैं ने नीचे का रास्ता भी देखा है. मैं सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ के बाद और कई सीरियलों में अभिनय कर चुकी हूं. इन में से कुछ जबरदस्त सफल हुए तो कुछ नहीं चले. मैं ने ‘सरस्वतीचंद्र’ के अपने किरदार को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया था. मुझे काफी लोकप्रियता मिली थी. लोगों ने मुझे कलाकार के तौर पर पहचानना शुरू किया था. इस के बाद टीवी सीरियलों का सिलसिला चलता ही रहा. पहले सीरियल से ही टीवी इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोग मुझे पहचानने लगे थे.

अब तक के अपने कैरियर में टर्निंग पौइंट किसे मानती हैं?

मेरी नजर में मेरा पहला सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ ही मेरे कैरियर का सब से बड़ा टर्निंग पौइंट रहा. यह बड़े बजट का सीरियल था. जब आप प्रिंट विज्ञापन कर रहे होते हैं, तो विश्वभर में आप की कोई पहचान नहीं हो पाती है. आप ने जिस क्षेत्र में विज्ञापन किया होता, उसी के आसपास के लोग जानने लगते हैं, जबकि सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ से मुझे राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली, क्योंकि इस सीरियल को जबरदस्त लोकप्रियता मिली थी. तभी लोगों ने मुझे पहचाना था. इसलिए भी ‘सरस्वतीचंद्र’ मेरे लिए सब से बड़ा टर्निंग पौइंट रहा.

इस के बाद मुझे हर सीरियल में अभिनय करने के बाद कुछ न कुछ नया सीखने को मिला. फिर चाहे वह अभिनय के संदर्भ में हो या किरदारों के संबंध में. मैं ने अभिनय करते हुए ही अभिनय सीखा. मैं ने अभिनय की कोई ट्रेनिंग हासिल नहीं की है. मुझे शूटिंग के दौरान सैट पर ही व्यावहारिक सीख मिली.

किस सीरियल ने आप के कैरियर को सब से अधिक नुकसान पहुंचाया?

मैं कुदरत की आभारी हूं कि मेरे किसी भी सीरियल से मेरा कैरियर नीचे नहीं गया. हर सीरियल से मेरा कैरियर निरंतर ऊंचाइयों पर ही पहुंचा. कैरियर में उतार से मेरा मतलब एक सीरियल की समाप्ति के बाद दूसरे सीरियल के मिलने में लगने वाले वक्त को ले कर है.

एक सीरियल का प्रसारण खत्म होने के बाद दूसरे सीरियल के मिलने में कई बार 6 माह से 1 साल तक का भी समय लगा, जबकि मैं लगातार काम करने में विश्वास रखती हूं. ऐसे में मेरे लिए इंतजार करना थोड़ा सा कठिन होता है, क्योंकि आप के पास अपनी पसंद का कोई काम नहीं होता है. जब तक पसंदीदा काम नहीं मिलता है तब तक इंतजार जारी ही रहता है. मेरी मां ‘सिंगल मदर’ हैं, तो उन के ऊपर भी सारी जिम्मेदारियां होती हैं. कभी अच्छे दिन होते हैं तो कभी बुरे दिन होते हैं. ये सब तो चलता ही रहता है. बुरे दिन भी इतने बुरे नहीं होते हैं कि सबकुछ जिंदगी से खत्म हो गया हो.

आप ने अपनी मां को संघर्ष करते हुए देख कर उन से क्या सीखा?

मेरी मां मुझे बेटी नहीं बेटा मानती हैं. वैसे तो हमारे घर में भैया, भाभी व उन का छोटा बेटा है, लेकिन जब आप का समय बुरा चलता है, तो सारी चीजें अपनेआप बिखर जाती हैं. उस समय मैं ने अपनी मां से सिर्फ एक ही बात सीखी थी कि कभी हार नहीं मानना चाहिए. आप अपनी यात्रा चालू रखें. आप की यात्रा में उतारचढ़ाव आते रहेंगे, पर उसे अपने काम पर किसी भी तरह से जाहिर न होने दें. मेरी मां एक दोस्त की तरह आज भी मेरे साथ खड़ी हैं. मां हमेशा कहती हैं कि कभी हार नहीं माननी चाहिए. जिंदगी कभी रुकती नहीं है. उसे हमेशा चलते रहना चाहिए.

अकसर कहा जाता है कि रिऐलिटी शोज पहले से ही स्क्रिप्टेड होते हैं?

मुझे ऐसा नहीं लगता. मैं ने तो ‘खतरों के खिलाड़ी’ रिऐलिटी शो किया है, यह स्क्रिप्टेड कैसे हो सकता है? अगर आप वहां पर स्टंट नहीं करेंगे, तो वहीं के वहीं हार जाएंगे. वहां पर कोई चीटिंग भी नहीं हो सकती है, क्योंकि वहां हर हर स्टंट की टाइमिंग रिकौर्ड होती है. मैं ने ‘खतरों के खिलाड़ी’ के अलावा कोई दूसरा रिऐलिटी शो नहीं किया है. इसलिए दूसरे रिऐलिटी शो को ले कर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकती.

आप 8 सालों से सिर्फ टीवी कर रही हैं. आप ने फिल्मों के लिए कोशिश नहीं की?

मैं ने कोशिश जरूर की, लेकिन अब तक कोई पसंदीदा फिल्म नहीं मिली, इसलिए नहीं की.

अब ओटीटी प्लेटफौर्म के चलते नईनई वैब सीरीज बन रही हैं. क्या आप वैब सीरीज करने की सोच रही हैं?

मैं वैब सीरीज करना चाहती हूं बशर्ते उस में कुछ बेहतरीन व चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने का मौका मिले. मैं ने ओटीटी प्लेटफौर्म पर वैब सीरीज के लिए अपनी तरफ से थोड़े प्रयास भी किए. मैं ने काफी सारे औडिशन दिए हैं. कभी कुछ चीजें बन भी जाती थीं, तो मुझे कंटैंट पसंद नहीं आता था या मुझे उस किरदार को निभाने के लिए प्रेरणा नहीं मिल रही थी. इसलिए अब तक नहीं कर पाई. पर में वेब सीरीज में जरूर अभिनय करना चाहूंगी.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहती हों?

फिलहाल मैं अपने सपनों का किरदार यानी धारा पंड्या का किरदार निभा रही हूं. मुझे धारा का किरदार बहुत ही ज्यादा फैशिनेटिंग लग रहा है. मुझे बहुत मजा आ रहा है. बहुत ऐक्साइटमैंट भी है. जब मैं सेट पर जाती हूं तो मुझे अपने हर सीन को करने के लिए बहुत ज्यादा ऐक्साइटमैंट रहती है. हां. मुझे आलिया भट्ट द्वारा निभाए गए कुछ किरदार जरूर काफी पसंद हैं. मुझे वे किरदार बहुत ज्यादा फैशिनेटिंग लगते हैं, जहां हमें अपनेआप को निभाने का मौका मिलता है. मुझे ज्यादा ग्लैमरस किरदार निभाने में आनंद नहीं आता.

ग्लैमरस किरदार न निभाने या अंगप्रदर्शन न करना चाहती हों, इसलिए कुछ फिल्में न मिली हों?

नहीं, ऐसी तो समस्या कभी नहीं हुई. मैं ने खुद को सीमाओं में बांध कर नहीं रखा कि मुझे यह नहीं करना है, क्योंकि मैं इस बात में यकीन करती हूं कि कभी भी किसी भी चीज के लिए न नहीं बोलना चाहिए. मैं ने आज तक यह नहीं कहा कि मुझे ग्लैमरस किरदार नहीं निभाने हैं या अपनेआप को ऐक्सपोज नहीं करना है. यह एक अलग बात है कि अब तक कंटैंट के हिसाब से मुझे कोई भी ऐक्सपोज करने वाला या इंटीमेट सीन करने को नहीं मिला है. यदि किसी पटकथा में इस तरह के दृश्य जबरन डाले गए होते हैं, तो मैं स्वीकार नहीं करती.

आप का फिटनैस मंत्र क्या है?

मैं सबकुछ खाती हूं. मेरी जानकारी के अनुसार हमारे शरीर को हर चीज की जरूरत होती है. चाहे फिटनैस या ऐक्सरसाइज हो. लौकडाउन से पहले मैं अपने फिटनैस ट्रेनर से जुड़ी रहती थी. हमेशा समय पर उन का संदेश आ जाता था कि मैडम समय हो गया है आ जाइए. मुझे ऐसा लगता था ट्रेनर है, जो मुझ से वर्कआउट करवा रहा है.

मैं ने कभी अपनेआप वर्कआउट नहीं किया था. मेरी कभी यह इच्छा नहीं रही कि शरीर ऐसा होना चाहिए. लेकिन जब लौकडाउन हुआ और मेरा सीरियल ‘आलिफ लैला’ अचानक बंद हो गया. तब घर पर रहते हुए मैं ने 1 माह तक काफी कुछ खाया. जिस से मेरा वजन अचानक ज्यादा बढ़ गया. तब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि शाइनी तुम्हारा वजन अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गया है. यह परदे पर बहुत ज्यादा भद्दा लगेगा. तब मैं ने कुछ वीडियो देख कर ऐक्सरसाइज शुरू की.  फिर मैं हर दिन अपने लिए 1 घंटा निकालती थी, जहां पर मैं जम कर वर्कआउट करती थी.

आप सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय रहती हैं और क्या लिखना या पोस्ट करना पसंद करती हैं?

मैं बहुत ज्यादा सोचसमझ कर अपनी चीजें डालती हूं. पहले तो मैं बिलकुल भी पोस्ट नहीं करती थी. मैं ने लौकडाउन में सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा पोस्ट करना शुरू कर दिया था, क्योंकि मुझे भी लगा कि लोगों को भी पता चलना चाहिए कि शाइनी दोशी कौन है? किरदार के पीछे या स्क्रीन के पीछे वह कैसी हैं? तो मैं ने कई सारी चीजें पोस्ट करनी शुरू की. लेकिन मैं अपनी निजी जिंदगी को सोशल मीडिया पर ज्यादा शेयर करना पसंद नहीं करती हूं, क्योंकि जब निजता की बात आती है, तब मैं बहुत ज्यादा प्राइवेसी चाहती हूं. मुझे प्राइवेसी बहुत ज्यादा पसंद है.

सोशल मीडिया में भी इंस्टाग्राम पर पोस्ट करना बहुत अच्छा लगता है. मैं अपने सीरियल व संगीत की चर्चा इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती हूं ताकि मुझे भी पता चले कि मैं क्या कर रही हूं. पर वह भी बहुत ज्यादा चुनिंदा है.

आप उन लड़कियों को क्या सलाह देना चाहेंगी, जो अपनी सिंगल मदर के साथ रह रही हैं?

मुझे तो लगता है कि लड़कियां कहीं से भी लड़कों से कम नहीं है. इसलिए किसी भी लड़की को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे किसी के ऊपर निर्भर रहने की जरूरत है. आप मेहनत करें, क्योंकि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. मेहनत कभी न कभी अच्छा फल देती ही है. रात के बाद दिन भी होता है. सुबह भी होती है. जिंदगी में भी सूर्योदय होगा, यह हमेशा याद रखें.

जिंदगी में अच्छी उम्मीद की किरण का आना तय है. आप सिर्फ संघर्ष कीजिए. एक अकेली मां सिंगल मदर के लिए चीजों को संभालना इतना आसान नहीं होता है, बहुत मुश्किल होता है. पर जब तक आप के अंदर पैशन है, आत्मनिर्भर रहने का जज्बा है, तब तक आप सबकुछ खुद से कर सकती हैं. हर घटना का जिंदगी में घटित होने के पीछे कोई न कोई मकसद होता है, जिस का एहसास सही वक्त पर ही इंसान को होता है. कई सवालों के जवाब इंसान को खुद व खुद वक्त देता है.

यदि मेरे पापा जीवित रहते तो, वे मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखते. तब शायद मैं इतना मेहनत व संघर्ष न करती और आज जिस मुकाम पर हूं, वहां न होती.

प्रैग्नेंसी की झूठी खबर पर भड़कीं गौहर खान, सोशलमीडिया पर कही ये बात

Bigg Boss 7 की विनर रह चुकीं एक्ट्रेस गौहर खान (Gauahar Khan) के पिता का बीते दिनों निधन हो गया था, जिसके कारण वह इन दिनों सुर्खियों में हैं. इसी बीच गौहर खान की प्रैग्नेंसी की खबर सोशलमीडिया पर छा गई हैं. हालांकि अब गौहर ने प्रैग्नेंसी की खबर पर अपना रिएक्शन दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

प्रैग्नेंसी की न्यूज पर आया गौहर को गुस्सा

दरअसल, बीते दिनों गौहर खान के पिता का गंभीर बीमारी के चलते निधन हुआ था. वहीं उनकी अंतिम यात्रा में वह अपने खास रिश्तेदारों और महिलाओं के साथ शामिल भी हुई थीं. इसी बीच एक न्यूज वेबसाइट ने खबर छाप दी कि गौहर खान प्रैग्नेंट हैं, जिसके कारण सोशलमीडिया पर फैंस ने गौहर से सवाल पूछना शुरु कर दिया. वहीं अब इस खबर को लेकर गौहर का गुस्सा सामने आया है.

 

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ये भी पढ़ें- सौतन काव्या की वनराज से शादी कराएगी अनुपमा तो समर उठाएगा ये कदम

ट्वीट कर लगाई लताड़

वेबसाइट की खबर को रीट्वीट करते हुए गौहर खान ने लिखा है, ‘तुम्हारा दिमाग खराब है और फैक्ट्स भी… पति जैद दरबार के 12 साल छोटे वाली बात सरासर गलत है, इसलिए लिखने से पहले देख लिया करो कि क्या लिख रहे हो. मैंने हाल में ही अपने पिता को खोया है, इसलिए जब बिना तथ्यों की खबर लिखो तो थोड़े सेंसेटिव रहो. वैसे मैं प्रेग्नेंट नहीं हूं, धन्यवाद…’.

पिता को याद कर शेयर किया था पोस्ट

 

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पिछले दिनों गौहर ने अपने पिता को याद करते हुए एक पोस्ट शेयर किया था, जिसमें उनके शादी की वीडियो भी शामिल थी. दरअसल, वीडियो में गौहर के पिता उनकी शादी के दिन प्रेयर करते नजर आ रहे थें.

 

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बता दें, बीते कुछ महीने पहले ही गौहर खान शादी के बंधन में बंधी हैं. उनके पति जैद दरबार म्यूजिक कंपोजर स्माइल दरबार के बेटे हैं.

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सौतन काव्या की वनराज से शादी कराएगी अनुपमा तो समर उठाएगा ये कदम

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में काव्या शाह हाउस में कदम रख चुकी है. वहीं इसका असर पूरे परिवार पर देखने को भी मिल रहा है. दरअसल, डरी हुई काव्या की मदद के लिए अनुपमा ने जहां मदद का हाथ बढ़ाया है तो वहीं बा को ये फैसला बिल्कुल पसंद नही आ रहा, जिसके कारण सीरियल में लड़ाईयां देखने को मिल रही है. इसी बीच समर और नंदनी के रिश्ते के कारण वनराज का गुस्सा और बढ़ते हुए देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या के कारण बढ़ रही हैं दूरियां

अब तक आपने देखा कि काव्या के साथ हुए हादसे के कारण अनुपमा उसकी मदद को तैयार हो गई है. हालांकि पूरा परिवार इस फैसले के खिलाफ है. इसी कारण परिवार के बीच झगड़े देखने को मिल रहे हैं. दरअसल, वनराज, नंदिनी और समर के रिश्ते के खिलाफ है. हालांकि अनुपमा और काव्या इस रिश्ते को कुबूल कर रहे हैं. लेकिन वनराज मानने को तैयार नही है. वहीं इसके चलते वनराज और समर के बीच झगड़े देखने को मिल रहे हैं.

 

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अनुपमा लेगी ये फैसला

 

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वनराज और काव्या के रिश्ते से नाराज बा पूरी तरह इस रिश्ते को मानने के लिए तैयार नही है. लेकिन आने वाले एपिसोड में अनुपमा, काव्या और वनराज की शादी का फैसला लेती हुई नजर आने वाली है. दरअसल, तलाक के बाद नई शुरुआत कर चुकी अनुपमा अब पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहती. वहीं काव्या के साथ हुए हादसे के बाद अब वह वनराज को शादी के लिए मनाती दिखेगी. वहीं इस दौरान वह काव्या और वनराज की शादी की तैयारी भी करती नजर आएगी.

 

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समर लेगा बड़ा फैसला

दूसरी तरफ, महाशिवरात्री के मौके पर वनराज, समर को कहेगा कि वह नंदिनी के साथ रिश्ते को भूल जाए और त्यौहार को खराब ना करें लेकिन समर जल्द ऐसा कुछ करेगा कि सभी घरवाले हैरान हो जाएंगे. वहीं इस मौके पर वनराज अनजाने में अनुपमा की मांग भरने की कोशिश करेगा, जिसे काव्या देख लेगी. अब देखना ये है कि वनराज के खिलाफ क्या कदम उठाएगा समर…

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बच्चों पर करियर प्रेशर

हर माता-पिता का सपना होता है उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या सीए बनें.  यह बात बचपन से ही उनके दिमाग में बिठा दिया जाता है कि उन्हें तो डॉक्टर या इंजीनियर ही बनना है.  ऐसे ही दवाब से बचने के लिए कुछ छात्रों ने नीट और जेईई की फर्जी मार्कशीट बना डाली.  टाइम्स ऑफ इंडिया को मिले डॉक्यूमेंट्स के अनुसार, करीब 30 छात्रों के पेरेंट्स ने बच्चों पर भरोसा करके एक जगह नहीं, बल्कि ऊपरी लेवल तक शिकायत कर दी.  पेरेंट्स ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय और नैशनल टेस्टिंग एजेंसी को भी शिकायत भेजी.

लेकिन चौंकने वाले खुलासे यह हुए कि यहाँ खामी एजेंसी की जांच में नहीं, बल्कि छात्रों की शातिर दिमाग की थी.  मानव संसाधन के एक अधिकारी के बयान के अनुसार उम्मीदवार ने असली मार्कशीट के क्यूआर को ही नकली वाली शीट में इस्तेमाल किया.  उसी क्यूआर के जरिये जांच आगे बढ़ी तो सारा मामला सामने आ गया और पता चला कि दूसरी मार्कशीट बाहर तैयार की गई थी.  कुल मिलाकर इस पूरे मामले में छात्रों पर ही कार्रवाई शुरू कर दी गई.

लेकिन यहाँ दोषी बच्चों से ज्यादा माँ बाप हैं.  बच्चों पर इंजीनियर, डॉक्टर बनने का इतना ज्यादा दवाब बनाने लगते हैं कि बच्चे समझ नहीं पाते की क्या करें.  बच्चा अगर समझाना भी चाहें और कहें कि वह अपने अनुसार करियर चुनना चाहते हैं, तो माता-पिता उन्हें ही डांट कर चुप करा देते हैं.   ‘अब हमें समझाओगे ? हमें सब पता है,  जैसी दलीलें देकर उनका ही मुंह बंद करवा देते हैं.  लेकिन यह नहीं समझना चाहते कि बच्चा क्या चाहता है, उसकी काबिलियत कितनी है और वह किस फील्ड में जाना चाहता है.

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अंकित, न तो इंजीनियर बनना चाहता था और न ही उसकी रुचि मैनेजमेंट करने की था.  लेकिन पिता की जिद के आगे उसकी एक न चली और 12वीं के बाद उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बैंगलोर भेज दिया गया.  लेकिन दो साल के अदंर ही वह घर वापस आ गया क्योंकि पढ़ाई में उसका मन ही नहीं लगा.  फिर माँ की जिद के चलते मैनेजमेट की पढ़ाई करने लगा.  लेकिन वहाँ भी वह असफल हो गया.   आज वह बेरोजगार है.   शुरू से कह रहा था उसे इन सब में रुचि नहीं है, वह तो एग्रीकल्चरल  में जाना चाहता है.   मगर किसी ने उसकी एक न सुनी और उस पर दवाब बनाता रहा.  आज हालात ये हो गए हैं कि वह किसी भी चीज में इन्टरेस्ट लेना बंद कर दिया है.

कोटा में पढ़ाई कर रहा एक छात्र अपने माता-पिता के नाम चिट्ठी लिखता है, ‘माफ करना पापा, मैं आपके सपनों को पूरा नहीं कर पाऊँगा.  लेकिन आप लोग छोटे भाई पर करियर बनाने का दवाब मत बनाना.  वह जो बनना चाहे बनने देना’  और फिर वह आत्महत्या कर लेता है.  वंदना इसलिए पंखे से लटक गई क्योंकि वह अपने माता-पिता के सपनों पर खरी नहीं उतर पाई.  उसके पेरेंट्स उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे.  यह घटनाएँ समाज को बेचैन करने के लिए काफी है, क्योंकि यहाँ बच्चे पर उसके विपरीत करियर बनाने के लिए दवाब बनाया गया.

हर कोई चाहता है कि उनके सपने पूरे हो.  कुछ लोगों के सपने पूरे हो जाते हैं तो कुछ के अधूरे रह जाते हैं.  लेकिन अपने उसी अधूरे सपने को माँ-बाप बच्चों के जरिए पूरे होते देखना चाहते हैं.  लेकिन सपने पूरे करने के इस जद्दोजहद में जो बिखर जाते हैं, वे सपने बच्चों के ही होते हैं.  अपने बच्चों के लिए बेहतर सोचते-सोचते माता-पिता उनके भाग्य विधाता बन जाते हैं, उनके फैसले खुद लेने लगते हैं.  लेकिन यह नहीं समझते कि उनके फैसले के दवाब में बच्चे का दम घूंट रहा है.

ये हर घर की कहानी है.  यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए पेरेंट्स बहुत मेहनत करते हैं और पैसे खर्चने में भी पीछे नहीं रहते, फिर भी बच्चा उनकी उम्मीद पर खरा इसलिए नहीं उतर पाता, क्योंकि उस फील्ड में उसकी रुचि ही नहीं है इसलिए बार-बार वह असफल हो जाता है.

यही बात माता-पिता को समझाने के लिए एक सोशल एक्सपेरिमेंट किया गया.  जिसमें बच्चों और उनके माता-पिता को एक कमरे में बुलाया गया.  बच्चों और पेरेंट्स को अलग-अलग कैनवास दिए गए, जो वो बड़े होकर बनना चाहते हैं.  और माता-पिता से वो चित्र बनाने को कहा गया जो वो अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं.  आखिर में जब दोनों कैनवास को एक साथ दिखाया गया तो नतीजे चौंकने वाले थे.  दोनों चित्र एक दूसरे से विपरीत थे.  पेरेंट्स हैरान थे.  कुछ को तो पता भी नहीं था कि उनके बच्चे के सपने क्या हैं.   माता-पिता बच्चों पर दवाब बनाते हैं, लेकिन बच्चे क्या बनना चाहते हैं कोई नहीं पूछता.  माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएं लादते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि बच्चे में कैपिसिटी कितनी है या उसे वह बनने की इच्छा है भी या नहीं.  जबरन बच्चे पर डॉक्टर, इंजीनियर, सीए या एबीए करने का दवाब बनाने लगते हैं.  सपने देखने लगते हैं कि उनका बच्चा बड़ा अधिकारी बनें, भले ही इसके लिए बच्चे का सपना टूट कर बिखर ही क्यों न जाए.  बच्चे कई बार अपने माता-पिता का सपना पूरा न कर पाने के कारण खुद को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे एक छात्र जान दे रहा है.  क्योंकि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने माता-पिता के सपनों को साकार करें.  आज अधिकांश माता-पिता जॉब करते हैं इसलिए वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते.  बच्चे या तो क्रेच में या आया के भरोसे पलते हैं .  और फिर उनसे यह उम्मीद लगाई जाती है कि बच्चे वही करें जो माता-पिता चाहें ? आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं.  उन्हें इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास ले जाया जा रहा है.

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18 साल की रिचा, पढ़ाई के बाद मॉडलिंग करना चाहती है लेकिन उसके पापा उसे इंजीनियर बनना चाहते है और उसकी माँ चाहती है बेटी बैंक में जाए.  हालात ये हैं कि वह लड़की डिप्रेशन का शिकार हो चुकी है और उसका मनोचिकित्सक से इलाज चल रहा है.   लेकिन हमें यह बात समझनी होगी कि देश में जीतने भी महान व्यक्ति हुए वह बहुत बड़े डॉक्टर, इंजीनियर या सीए नहीं थे.  देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने तो आईआईटी पास नहीं किया था.  जेईई में फेल होने के बाद भी सत्या नडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ बने थे.  और कलपना चावला, जिन पर देश को गर्व है, उन्होंने आईआईटी परीक्षा पास नहीं की थी, लेकिन उन्होंने इतिहास रच दिया.

आइंस्टीन चार साल तक बोल नहीं पाए थे और सात साल तक लिख नहीं पाए थे.  उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था लेकिन वे एक महान व्यक्ति बनें.  थॉमस एडिशन को शिक्षक ने स्टुपिड बताते हुए कहा था, यह लड़का कुछ नहीं कर सकता.  लेकिन उसी एडिशन ने बल्ब का आविष्कार किया था.

बच्चों पर मनोवौज्ञानिक प्रभाव 

2014 में जारी एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में परीक्षाओं में असफल होने के बाद 2,471 छात्रों ने अपनी जान खत्म कर ली.  2012 में यह संख्या 2,246 पर आँकी गई थी.  विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज़्यादातर आत्महत्याओं का कारण पढ़ाई के लिए बच्चों पर माता-पिता का दवाब और अच्छे रिजल्ट की उम्मीद थी.  इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि माता-पिता की तरफ से बच्चों पर पढ़ाई और करियर का दवाब बहुत बड़ा है.  महाराष्ट्र और तमिलनाडू इसका उदाहरण हैं जहां बच्चों पर उनके माता-पिता द्वारा हाई स्कूल में विज्ञान और गणित लेने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बन सकें.  बच्चों के अपने सपने क्या है, वह क्या चाहते हैं उसे अनदेखा कर दिया जाता है.

नशे की गिरफ्त में बच्चे 

किशोर बच्चों में माता-पिता द्वारा डाले गए अत्यधिक दवाब से तनाव में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.  जब बच्चों पर माता-पिता का अधिक दवाब बनने लगता है और उन्हें इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, तब वह नशे की गिरफ्त में पड़ जाते हैं.  बच्चे के मन मुताबिक काम करने से जब उन्हें रोका जाता है तब वह डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं और अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं.  यहाँ माता-पिता को यह समझने की जरूरत है कि कहीं वह अपने बच्चे पर जरूरत से ज्यादा दवाब तो नहीं बना रहे हैं ?

माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों के अच्छे मार्गदर्शक बनें.  एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में माता-पिता को बच्चे के मन में आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उसकी उत्कृष्टता पर ध्यान दिलाना होता है.  यह भी माता-पिता की ही ज़िम्मेदारी है कि उनका बच्चा उनकी बात दिल से स्वीकार करें न की ज़ोर जबर्दस्ती से.

लड़का और लड़की में भेदभाव

कई बार माता-पिता अपने बच्चों को लड़का या लड़की होने के अनुसार व्यवहार करने के लिए उन्हें कहते हैं.  जैसे अगर लड़की है तो उन्हें यह नसीहत दी जाती है कि वो स्पोर्ट्स में भाग न लें और लड़कों को अपनी भावनाएं छिपाने की सलाह दी जाती है.  ऐसा करने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

माता-पिता अपने बच्चों के करियर को लेकर परेशान तो रहते हैं साथ में बच्चों को भी वह यह बोलकर परेशान कर देते हैं कि ‘देखो, फलां की बेटी ने सीए कंपीट कर लिया.  अगर अभी मेहनत नहीं करोगी /करोगे, और अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचोगे, तो तुम्हारा फ्यूचर बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता’ यह लाइन ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के सामने दोहराते हैं.  लेकिन भविष्य और करियर को लेकर बच्चों पर ज्यादा दवाब भी, उनके करियर को बर्बाद कर सकता है.  करियर ऑप्शन के बारे में ज्यादा सोचना या बेहतर रिजल्ट के लिए अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता से ज्यादा दवाब डालना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.  यह बच्चों की परफ़ोर्मेंस पर असर डाल सकता है, जो कि उनपर अतिरिक्त प्रेशर का कारण बन सकता है.

हाल ही में एक सर्वे आया, जिसमें कहा गया कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों के बजाए उनके करियर को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं.  सर्वे के मुताबिक, 51 फीसदी माता-पिता के लिए बच्चों की खुशी से ज्यादा उनका सफल करियर महत्वपूर्ण होता है.   बच्चों का करियर कौन चुने ? अभिभावक या बच्चा खुद, यह सबसे बड़ा सवाल है.  इस पर एक महान व्यक्ति का कहना है कि बच्चे को पालना एक बीस वर्षीय प्लान है.  अगर इस पर ढंग से काम लिया गया तो आपकी ज़िंदगी बेहतर होगी, नहीं तो ताउम्र बच्चे को पालना पड़ सकता है.  कौन नहीं चाहता कि उनका बच्चा समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करें, नाम और शोहरत कमाए, लेकिन इन सब के लिए जरूरी है पहले बच्चों की खुशियों को महत्व दिया जाए.  उसकी काबलियत के अनुसार उसे मनचाहा करियर चुनने की आजादी देना.

नितिन होनहार छात्र है और सोशल साइंस पढ़ने में उसे खूब मजा आता है.  लेकिन जब 11वीं में सब्जेक्ट चुनने की बारी आई तो उसने आर्ट्स लेना चाहा.  लेकिन टीचर्स कहने लगें कि ‘अरे, तुम तो पढ़ाई में तेज हो, फिर आर्ट्स क्यों लेना चाहते हो ? तुम्हें तो साइंस पढ़ना चाहिए.  उसके प्रिंसिपल ने भी वही बात दोहराई.  उसके मम्मी पापा  भी वही बात दोहराते हुए बोले कि नहीं तुम आर्ट्स नहीं ले सकते.  दोस्त-रिश्तेदार क्या कहेंगे कि तुम्हारा बच्चा पढ़ने में तेज नहीं है.  यहाँ माँ-बाप को इस बात की चिंता सताने लगी कि दोस्त और नातेरिशतेदार क्या कहेंगे.  लेकिन ठहर कर एक बार यह नहीं सोचा कि उनके बच्चे क्या चाहते हैं.  यह तो वही बात हुई कि बच्चे को जबर्दस्ती पानी में ठेल दो और कहो कि तैरो, नहीं तो लोग हसेंगे.   फिर तो डुबना उसका तय ही है.   हर साल 10वी और 12वीं की रिजल्ट के समय नंबर गेम में फँसकर बच्चे डिप्रेशन में चले जाते हैं या अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ ? 

मनोचिकित्सक डॉ. नियति दीवान के मुताबिक, भारतीय माँ-बाप का लक्ष्य चुनने का तरीका सही नहीं है.  हम विदेशी संस्कृति के दवाब में हैं.  यह नहीं देखते कि हमारा बच्चा इससे खुश भी हैं या नहीं.  लेकिन माँ-बाप को समझना चाहिए कि बच्चे की खुशी से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है.  बच्चा तभी अपनी मंजिल तक पहुँच पाएगा, जब वह वाकई में खुश होगा.

बच्चों पर सपने थोपना गलत 

अक्सर देखा गया है माता-पिता अपने सपने बच्चों पर थौपते हैं.  लेकिन यह बात नहीं समझते कि बच्चों के सपने उनसे अलग हो सकते हैं.  यहाँ अगर बच्चा माता-पिता के सपने पूरा करता है, तो जीवन भर इस ग्लानि में गुजार देगा कि उसके अपने सपने पूरे नहीं हो पाएँ.  और अगर माता-पिता के सपने नहीं पूरा कर पाया, तो इस अफसोस में रहेगा कि उनके सपने पूरे नहीं हो पाएँ.  यह दोनों बातें बच्चों के लाइफ स्टाइल पर असर डाल सकता है जो उनके स्वास्थ्य पर आगे जाकर प्रभाव डाल सकता है.  बच्चे जो भी करियर का चुनाव करता है अपने लिए, उसमें माता-पिता को साथ देना चाहिए.  बच्चों में कितनी क्षमता है वह क्या कर सकता है क्या नहीं, माता-पिता से बेहतर कोई नहीं जान सकता.

करियर प्रेशर में सेहत का ध्यान 

हाई मार्क्स के लिए सेहत का ध्यान न रखना और शारीरिक क्षमता से ज्यादा पढ़ना, अपने दोस्त या कॉलेजमेट से बेहतर कॉलेज या प्लेसमेंट प्राप्त करने की ज्यादा फिक्र, अच्छी सैलरी वाली नौकरी पाने की चिंता, जबतर्दस्ती थोपे गए करियर का दवाब, अपने मनपसंद करियर के न चुन पाने का दुख आदि, बच्चे को कई स्वास्थ्य समस्याएँ प्रदान कर सकता है, जो की बच्चे के भविष्य के लिए हानिकारक है और यहाँ तक कि उनके लिए जानलेबा भी साबित हो सकता है.

करियर प्रेशर की वजह से बच्चे कई समस्याओं से घिर सकते हैं, जैसे कि हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, एंग्जायटी, दिल की बीमारी, शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, माइग्रेन, सुसाइट टेंडेंसी आदि.

माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे के व्यवहार और भावनाओं पर नजर रखें.  बच्चे के साथ विश्वास बना कर चलें.  उनकी बातों का विरोध न कर धर्य से उनकी बात सुनें.  बच्चे पर किसी खास करियर या अपनी उम्मीदों का दवाब न बनाएँ.  बच्चे जिस भी फील्ड में जाना चाहता है उसमें उसका साथ दें.

हर इंसान की सोच और सपने अलग-अलग होते हैं.  लेकिन माता-पिता के दवाब में आकर बच्चे अपने सपने भूल जाते हैं.  लेकिन आज के पेरेंट्स को यह बात समझनी होगी कि जब वे अपने बच्चों के करियर के सपने सँजोएँ, तो बच्चों की रुचि का पूरा ध्यान रखें.  क्योंकि सफलता उसी काम में मिलती है जिसमें इंसान की खुशी हो, जो वह करना चाहता हो.  आज करियर की कमी नहीं है.  आज वो समय भी नहीं रहा कि अपनी हॉबी को करियर न बनाया जा सके.  बच्चों के जरिए अपनी अधूरी ख्वाइशों को पूरा करने या लोग क्या कहेंगे के बजाय बच्चों की ख्वाबों को आकार दें.  बच्चे अपनी काबलियत के हिसाब से अपना करियर और ज़िंदगी बना लेंगे.  आने वाले कल में हो सकता है यही बच्चे एपीजे अब्दुल कलाम, कलपना चावला, सचिन, सानिया बन जाएँ.

बच्चों के करियर के लिए फाइनेंशियल प्लानिग 

सिर्फ 24 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों के करियर के लिए वित्तीय रूप से तैयारी करते हैं.  एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि इन अभिभावकों में ज़्यादातर परंपरागत विकल्पो, मसलन मेडिसिन और इंजीनियरिंग से लेकर गैर परंपरागत विकल्पों, मसलन फैशन डिजाइनिग और शेफ के रूप में अपने बच्चों का करियर बनाने को भविष्य के लिए पैसे जमा करते हैं.

अवीवा इंडिया की एक रिपोर्ट, सात शहरों में मुंबई, पुणे, बेंगलूर, कोलकाता, नयी दिल्ली, हैदराबाद तथा चेन्नई में 11,300 अभिभावकों के जवाब पर  आधारित है.  इसमें यह तथ्य सामने आया कि बच्चों के सपनों तथा इसके लिए उनके माता-पिता की वित्तीय तैयारियां में काफी अंतर है.  अवीवा इंडिया की मुख्य अंजलि मल्होत्रा कहती हैं कि “भारत में बच्चे बड़े सपने देखते हैं लेकिन अभिभावक इसके लिए तैयारी में पीछे रह जाते हैं हालांकि, बच्चों की शिक्षा के लिए बजट उनकी प्राथमिकता होती है, लेकिन वास्तव में बचत प्रक्रिया के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती” रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि बच्चों की महत्वकांक्षाएं कुछ परंपरा से हटकर करियर विकल्पों की ओर जा रही है, वहीं अभिभावकों की इसके लिए तैयारी कमजोर है.

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ये पंख बनाएंगे उड़ान को आसान

श्रुति की जिद थी कि उसे आगे की पढ़ाई हॉस्टल में रहकर ही करनी है वहीं उसकी माँ इसके जरा भी पक्ष में नहीं थी. श्रुति का देर तक सोना, अपने मैले कपड़े बाथरूम में छोड़ देना, खाने के नाम पर सौ नखरे करना जैसे कई कारण माँ की धारणा को पुख्ता कर रहे थे वहीं श्रुति का कहना था कि सिर पर पड़ेगा तो सब सीख जाऊँगी. लेकिन माँ को कहने भर से भला विश्वास कैसे होता.

एक दिन श्रुति की सहेली मिताली उससे मिलने आई. माँ ने चाय का पूछा तो मिताली ने कहा- “आंटी! आप बैठिए, चाय मैं बनाकर लाती हूँ.”

माँ उसे आश्चर्य से देख रही थी. मिताली लपककर रसोई में गई और झपककर तीन कप चाय बना लाई. साथ में बिस्किट और नमकीन भी रखे थे. माँ ने कुछ कहा तो नहीं लेकिन एक चुभती सी निगाह श्रुति पर डालकर चाय पीने लगी.

“तूने ये सब कब सीख लिया?” श्रुति ने आश्चर्य से पूछा.

“अरे यार, क्या बताऊँ? तुझे तो पता है ना कि इंजीनियरिंग के लिए बाहर का कॉलेज मिला है. दो महीने बाद जाना है. सोचा कुछ प्री ट्रेनिंग ही ले लूँ ताकि अनजान जगह पर परेशान न होना पड़े.” मिताली ने कहा.
“तुझे पता है नेहा के साथ पिछले साल क्या हुआ था जब वो एमबीए करने पुणे गई थी?”
“क्या?” माँ बीच में ही बोल पड़ी.

“हॉस्टल का खाना उसे अच्छा नहीं लगा तो वह एक पीजी में रहने लगी लेकिन वहाँ भी एक साथ कई लड़कियों का खाना बनता था. नेहा को वो खाना भी नहीं ज़चा. जचता भी कैसे? कहाँ राजस्थान और कहाँ महाराष्ट्र. अब खुद को तो कुछ बनाना आता नहीं था सो बाहर से मंगवाने लगी. नतीजा! होटल का खा-खाकर वजन तो बढ़ा ही, पेट भी खराब रहने लगा. जांच में पता चला पेट में अल्सर हो गया. अब तो सबसे कहती है कि बाहर का रोज खाने से तो अच्छा है खिचड़ी-दलिया बना लो.” मिताली ने नेहा की पूरी कहानी सुनाई तो श्रुति की आँखें आश्चर्य से फैल गई.

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“मैं कहती हूँ ना कि कुछ बनाना करना सीख ले लेकिन इसे कुछ समझ मेंआए तब ना? देखना ये भी नेहा की तरह ही परेशान होगी. अरे घर से बाहर अकेले रहना आसान है क्या?” माँ ने श्रुति को सुनाते हुये कहा आखिर वह भी तो इसी नाव की सवारी करना चाह रही थी.

“अरे आंटी, सिर्फ खाना ही तो एक समस्या नहीं होती ना! और भी गम हैं जमाने में मुहोब्बत के सिवा.” शायराना होने के साथ मिताली ने एक जोरदार ठहाका लगाया.

तो चलिए श्रुति के साथ-साथ हम सब भी जानते हैं कि घर से बाहर रहने जा रहे युवाओं को वे कौन सी खास बातें जाननी-सीखनी चाहिए है जो उनके प्रवास को परेशानी रहित बना सकती है.

व्यक्तिगत ट्रेनिंग

1. घर से बाहर निकलने के बाद सबसे पहली समस्या खाने को लेकर आती है. यूँ तो अमूमन सभी संस्थाओं में होस्टल के साथ-साथ मेस की व्यवस्था भी होती है लेकिन ये जरूरी नहीं कि हर रोज बनने वाला सामुहिक खाना-नाश्ता आपकी पसंद का ही हो इसलिये आपको कुछ बेसिक फूड बनाना आना चाहिए. और वे खास डिशेज भी जो आपको पसंद हों.

2. खाना आपने बना लिया तो बर्तन भी इस्तेमाल किये होंगे लेकिन सब जानते हैं कि बर्तन साफ करना कितनी टेढ़ी खीर है. घर में अवश्य ही सहायिका आती होगी लेकिन यहाँ तो ये काम खुद आपको ही करना पड़ेगा इसलिए बर्तन मांजने की ट्रेनिंग भी बाहर जाने वालों के लिए जरूरी है.

3. खाना बनाने के लिए जिस उपकरण का उपयोग किया गया यथा हीटर, गैस स्टोव या फिर इंडक्शन प्लेट इनके रखरखाव की सामान्य जानकारी भी आपको होनी चाहिए.

4. खाने के बाद बारी आती है कपड़ों की. रोज पहनने या फिर चद्दर-तोलिये बेशक धोबी से धुलवाए जा सकते हैं लेकिन अंतर्वस्त्र तो खुद ही धोने चाहिए. आपात स्थिति के लिए कपङे सही तरीके से इस्त्री करने भी आने चाहिए.

5. रोटी, कपड़े के बाद मकान की बारी. जिस घर, होस्टल या पीजी में आप रह रहे हैं उसकी नियमित साफ-सफाई होनी जरूरी है. यह न केवल आपकी सेहत के लिए अच्छा है बल्कि कारीने से व्यवस्थित कमरा आपको उत्साही बनाये रखने में भी सहायक है. कमरे में बिखरा हुआ सामान नकारात्मक ऊर्जा लाता है.

6. यदि कमरा किसी के साथ शेयर कर रहे हैं तो रूमपार्टनर के साथ दोस्ताना रहें. याद रखिए कि यही वह व्यक्ति होगा जो सबसे पहले आपकी मदद के लिए उपलब्ध होगा.

तकनीकी ट्रेनिंग

व्यक्तिगत आवश्यक ट्रेनिंग के साथ-साथ कुछ अन्य तकनीकी बातों की जानकारी होनी भी बहुत जरूरी हैं. ये बातें चाहे रोजाना काम में आने वाली नहीं है लेकिन इनकी महत्ती भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.

1. यात्रा के लिए ऑनलाइन टिकट बुक करवाना.

2. ऑनलाइन ट्रांसक्शन करना.

3. बैंक और पोस्ट ऑफिस से जुड़े सामान्य कामकाज.

4. इंटरनेट डेटा का सही इस्तेमाल.

5. अपने सामान की सही तरीके से पैकिंग करना.

6. आपातकालीन दवाओं की जानकारी होना.

7. खर्च के लिए मिलने वाले पैसे का सही इस्तेमाल.

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व्यावहारिक ट्रेनिंग

व्यक्तिगत और तकनीकी ट्रेनिंग तो किसी अन्य व्यक्ति की मदद भी ली जा सकती है लेकिन व्यावहारिक ट्रेनिंग तो आपको स्वयं ही लेनी होगी. निम्नलिखित बातें बेहद जरूरी हैं जो आपको जाननी चाहियें.

1. बाहर जाने पर सबसे जरूरी बात है कि आपका आत्मविश्वास बना रहे. आत्मविश्वास आपको किसी भी अप्रिय स्थिति में सहज बने रहने एवं सही निर्णय लेने में मदद करता है.

2. अनजान व्यक्तियों के साथ व्यवहार में भी कुशल होना बहुत जरूरी है. आपका व्यवहार आपकी बहुत सी समस्याओं को हल कर सकता है.

3. शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी खयाल रखें. अकेलापन न खले इसलिए अपने शौक कायम रखें. दोस्तों और घरवालों के साथ नियमित संवाद बनाए रखें.

उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर यदि आप अपने भविष्य की उड़ान भरेंगे तो निश्चय ही आसमान छू लेंगे.

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