सक्सैस के लिए शौर्टकट नहीं लेना चाहिए- रेवतीकांत

रेवतीकांत

चीफ डिजाइन आफिसर, टाइटन कंपनी लिमिटेड 

रेवतीकांत आज एक जानापहचाना नाम है. यकीनन यहां तक पहुंचने में कड़ी मेहनत, मजबूत इरादे और लगन की जरूरत होती है. हम ने रेवतीकांत से उन की पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ के बारे में बात की. पेश हैं, बातचीत के कुछ अंश:

अपने बारे में कुछ बताएं?

टाइटन कंपनी में मेरी जर्नी काफी लंबी रही है. मुझे इस कंपनी में काम करते हुए 30 साल पूरे हो चुके हैं. टाइटन की सब से बड़ी खासियत यह है कि यहां पर फ्रीडम बहुत है और अवसर भी काफी ज्यादा हैं. 30 सालों से मैं ने भी यहां काफी अलगअलग चीजें की हैं. ऐसा नहीं है कि मैं पिछले 30 सालों से डिजाइन में हूं. मेरा बैकग्राउंड मार्केटिंग से रहा है. मैं ने मार्केटिंग रिसर्च में जौइन किया था. इस के बाद मैं मेन मार्केटिंग में शिफ्ट हुई. मैं ने 10 साल दुबई में काम किया. जब मैं भारत वापस आई तो मुझे लगा कि कुछ और ट्राई करना चाहिए. तब मेरी रुचि प्रोडक्ट डिजाइन की तरफ ज्यादा हुई.

जब मैं साल 2005 में भारत आई तो जापान हैड करने की जिम्मेदारी संभाली. यहां पर मेरा काम घडि़यां खरीदने का था, जो कि टाइटन डिजाइन स्टूडियो के नाम से जाना जाता है. यहां पर मैं ने 5 से 6 साल काम किया. यह काम मुझे काफी इंट्रैस्टिंग लगा. यहां काम कर के मुझे समझ आया कि इस काम में काफी संभावना है, इस में मैं कंपनी के लिए बहुत वैल्यू ऐड कर सकती हूं.

इस के बाद ज्वैलरी बिजनैस की जिम्मेदारी मिली. यह मेरे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि भारत में ज्वैलरी मार्केट काफी बड़ा है. यह मेरे लिए काफी बड़ी जिम्मेदारी थी जिसे मैं ने बखूबी तरीके से निभाया.

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टाइटन के साथ काम करते हुए आप को लगभग 30 साल हो चुके हैं, हमें  अपनी यात्रा और ऐक्सपीरियंस के बारे  में कुछ बताएं.

जब मैं ज्वैलरी बिजनैस में गई तो फिर मैं ने इस क्षेत्र में बेहतर से बेहतरीन करने का सोचा. मैं ने 7 से 8 साल ज्वैलरी डिजाइन को हैड किया. इस में मेरा काफी शानदार ऐक्सपीरियंस रहा, क्योंकि हम ने ज्वैलरी बिजनैस में काफी कुछ किया. हम ने कंज्यूमर्स के हिसाब से डिजाइन बनाए.

इस क्षेत्र में आने के लिए आप को प्रेरणा कहां से मिली?

मैं जब घर से बाहर निकली तो बहुत बड़ा ड्रीम ले कर नहीं आई थी, लेकिन मैं ने यह जरूर सोचा कि मैं जो भी काम करूंगी वह पूरी लगन से करूंगी और अपना पूरा योगदान दूंगी. मैं ने अपनी लाइफ में पौजिटिविटी को काफी अहमियत दी है. साथ ही मेरा यह मानना है कि किसी भी चीज को पाने के लिए लगन और मेहनत काफी जरूरी है और मैं ने अपनी लाइफ में काफी मेहनत और लगन से काम किया है.

ग्लास सिलिंग को ले कर आप का क्या ऐक्सपीरियंस रहा है?

मेरे कैरियर की शुरुआत ऐसी कंपनी में हुई है जहां पर इन चीजों को अहमियत नहीं दी जाती है. हां, लेकिन एक बात जरूर है कि महिलाओं को किसी भी फील्ड में काफी ज्यादा स्ट्रगल करना पड़ता है. कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है.

मेरा महिलाओं से यह कहना है कि जो भी काम करो, पूरे कौंफिडैंस के साथ करना चाहिए. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सही रास्ते पर चल कर काम करना है, गलत लोगों से दूर रहना है और कभी भी सक्सैस के लिए शौर्टकट नहीं लेना चाहिए.

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महामारी के इस समय में आप अपने काम और घर को किस तरह मैनेज करती हैं?

वर्किंग वूमन के लिए यह समय काफी कठिन है. शुरूआत में मुझे घर से काम करने में काफी दिक्कतें आई थीं, क्योंकि घर में काम करने के लिए कोई और नहीं है, तो घर का काम भी करना है और औफिस का भी. लेकिन अब धीरेधीरे आदत पड़ गई है. यहां एक बात ध्यान देने वाली यह है कि घर में और भी लोग होते हैं तो घर के काम में सब की मदद लेनी चाहिए, चाहे वे पुरुष हों, ऐसे में घर का काम बंट जाता है और महिलाओं को घर के काम का प्रैशर फील नहीं होता.

इन 17 तरीकों से करें एल्युमिनियम फौयल का इस्तेमाल

एल्युमिनियम फौयल का इस्तेमाल हर घर में खाना पैक करने के लिए किया जाता है लेकिन इस बात को कम लोग ही जानते हैं कि एल्युमिनियम पेपर से क्लीनिंग और कुकिंग जैसे कई काम लिए जा सकते हैं. आज हम आपको एल्युमिनियम फौयल से खाना पैक करने के अलावा और भी कई कमाल के फायदे बता रहे हैं.

1. अक्सर जब पौधों पर तेज धूप पड़ती है तो वे मुर्झा जाते हैं. ऐसे में पौधों की जड़ों पर एल्युमिनियम फौयल लपेट दें जिससे प्लांट्स खराब नहीं होंगे और जल्दी बड़े भी हो जाएंगे.

2. फल काटकर रखने के कुछ समय बाद ही वे काले हो जाते हैं खासकर सेब. ऐसे में कटे हुए फलों को एल्युमिनियम फौयल में लपेट कर रखें जिससे वे ज्यादा समय तक ताजे रहेंगे और काले भी नहीं होंगे.

3. हरे धनिए को ज्यादा दिनों तक ताजा रखने के लिए उसे एल्युमिनियम फौयल में लपेट कर फ्रिज में रखें.

4. बालों पर डाय लगाते वक्त अक्सर आपके चश्में की डंडियों पर भी रंग लग जाता है. एल्युमिनियम फौयल से अगर चश्मे के इस हिस्से को ढंक लेंगे तो बिना टेंशन के डाय लगा सकती हैं.

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5. पुताई करते वक्त दरवाजे के हैंडल, स्टापर पर रंग न लगे इसके लिए इन्हें फौयल से ढक लें. यह आसानी से निकल भी जाते हैं. पेंटर अक्सर इन जगहों पर कागज लगा लेते हैं जो कारगर उपाय नहीं है.

6. प्रोफेशनल फोटोग्राफर्स अंधेरे से लड़ने के लिए रिफ्लेक्टर्स का उपयोग करते हैं. आप सिर्फ एक मोटे कार्डबोर्ड पर एल्युमिनियम फौयल लगा लेंगी तो यह बेहतरीन रिफ्लेक्टर साबित होगा.

7. फौयल को आसानी से एक गीले स्पौन्ज से पोछा जा सकता है इसलिए इन्हें ऐसी जगह बिछाया जा सकता है जहां सफाई करना थोड़ा कठिन हो.

8. एक प्लास्टिक केबिन के इर्द-गिर्द फौयल चिपका दें. अब इसमें सिल्वर का सामान रखें. 1/4 कप वाशिंग सोडा और गरम पानी इसमें डालें. हिलाकर 10-15 मिनट तक सोक करके रखें.

9. बारबेक्यू ग्रिल पर चिपका हुआ खाना एल्युमिनियम फौयल के एक बौल से खुरच कर साफ किया जा सकता है.

10. स्टील के कूचे की तरह ही एल्युमिनियम फौयल का कूचा बनाकर जले हुए बरतन वगैरह भी साफ किए जा सकता है. खासकर कैसरोल और कास्ट आयरन बर्तन इससे साफ करेंगी तो उन पर स्क्रैच भी नहीं आएंगे.

11. हेवी ड्यूटी फौयल से अपने फर्नीचर के पैर को ढक दें. अब आप ये फर्नीचर कारपेट पर रखेंगी तो कारपेट पर गड्ढे नहीं पड़ेंगे. कारपेट अगर डेलिकेट है तो भी कोई नुकसान नहीं होगा और फर्नीचर का निचला हिस्सा साफ और सुरक्षित भी बना रहेगा.

12. एल्युमिनियम फौयल हीट रिफ्लेक्ट करता है. तो अपने आयरन बोर्ड के नीचे एक शीट बिछाकर रखें. इससे आपके कपड़े कम समय में प्रेस हो जाएंगे.

13. अगर आप जल्दी में हैं और फनल नहीं है तो एल्युमिनियम फौयल को कोन शेप देकर उससे फनल का काम भी लिया जा सकता है.

14. कई बार रिमोट में सेल लगाने की जगह पर एक गैप हो जाता है. इस गैप को एल्युमिनियम फौयल से आसानी से भरा जा सकता है. यह सर्किट पूरा करने का काम कर देते हैं.

15. फ्रिज में कच्चा नौनवेज या पनीर रखने से पहले उसे फौयल पेपर में लपेट लें. इससे फ्रिज से दुर्गंध नहीं आएगी.

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16. वाशिंग मशीन में कपड़े ड्राई करती हैं तो कपड़ों के साथ एल्युमिनियम फौयल की एक बौल बनाकर ड्रायर में डाल दें. ऐसा करने से कपड़े जल्दी सूख जाएंगे.

17. कैंची की धार तेज करने में भी एल्युमिनियम फौयल सक्षम है. इसे धार पर रगड़कर साफ कर सकती हैं. फौयल पर कैंची चलाएंगे तो भी धार तेज होगी.

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Serial Story: रुपहली चमक- भाग 4

तब मैं ने उस की आंखों में गहरी नजर से झांकते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हारी इस परम सखी पामेला से मिल सकता हूं?’’

अब चौंकने व स्तब्ध रह जाने की बारी सुकेशनी की थी. वह चकित स्वर में बोली, ‘‘तुम क्यों उस से मिलना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मेरी अपेक्षा उस के सान्निध्य में तुम अधिक खुश रहती हो और यह मैं स्वयं अपनी आंखों से देख चुका हूं,’’ मैं ने संयत स्वर में कहा.

ऐसा लगा कि उस पर किसी ने घड़ों पानी एकसाथ उड़ेल दिया हो, पर एका- एक उस ने शर्म को उतार कर बेशर्मी का बाना पहन लिया और बोली, ‘‘ओह, तो तुम्हें पता लग गया है, पर इस से क्या…मैं और पाल अच्छे मित्र हैं.’’

अब मैं चीख पड़ा, ‘‘मत बतलाओ मुझे कि वह तुम्हारा मित्र है. मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि इस देश में पले लोगों के मित्र की परिभाषा क्या होती है? यदि ऐसा ही था तो तुम ने कभी उसे घर क्यों नहीं बुलाया? मुझ से क्यों नहीं मिलवाया? मुझे पता है क्योंकि तुम्हारे मन में चोर था, तभी तो उस के साथ सारा दिन स्कूल में व्यतीत करने के पश्चात तुम्हें सप्ताह में 3-4 दिन उस के घर भी मिलने जाना पड़ता था. तुम और पाल अमेरिका जा कर मौज करो और मैं तुम्हारा नाममात्र का पति अपनी नौकरी के साथ इन बच्चों का पालनपोषण करूं. शायद ही इस दुनिया में कोई ऐसा बेगैरत पति होगा जो ऐसा करेगा.’’

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कुछ क्षण ठहर कर मैं फिर बोला था, ‘‘तुम्हें पाल अच्छा लगता है न? तो ठीक है, तुम्हें तुम्हारा पाल, तुम्हारा देश, तुम्हारा सुख मुबारक हो, तुम उस के साथ अमेरिका खुशीखुशी जा सकती हो. पर एक बात ध्यान से सुन लो, हमारे विवाह में तुम्हारे मातापिता ने कन्यादान कर के तुम्हारा दायित्व मुझे सौंपा था.

‘‘यदि तुम मुझ से संतुष्ट व खुश नहीं हो तो मैं तुम्हें मुक्त कर दूंगा. पर इस के पहले तुम पाल के पास जाओ, तुम उसे चाहती हो न? और वह भी तुम्हें चाहता है…तो जाओ और जा कर उस से पूछो कि वह तुम से विवाह करेगा? यदि करेगा तो मैं तुम्हें तलाक दे कर इन बच्चों के साथ सदा के लिए भारत चला जाऊंगा. मैं अपने बच्चों को यहां के खुले व बेशर्म वातावरण में खराब नहीं होने दूंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि भविष्य में मैं कभी भी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा.’’

सुकेशनी मुझे आंखें फाड़े देखती रही. ऐसा लगा कि उसे मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. वह भौचक्के स्वर में बोली, ‘‘तो तुम्हें कोई एतराज नहीं है?’’

मैं शांत पर खीजे स्वर में बोला, ‘‘नहीं, 10 लोगों से तुम्हारे बारे में तरह- तरह के किस्से सुनने से तो यही अच्छा होगा कि तुम पाल से विवाह कर लो.’’

सुकेशनी उसी समय पर्स उठा कर बाहर चली गई. उस की आधी बची चाय में से अभी तक थोड़ीथोड़ी भाप निकल रही थी. मेरे संतप्त हृदय का भी यही हाल था. मैं समझ गया कि वह पाल के घर गई है. मैं दोनों बच्चों को साथ ले कर पार्क में चला गया.

मुझे सुखसुविधाओं से संपन्न इस घर से विरक्ति सी हो रही थी. विरक्ति से उत्पन्न घुटन मुझे सांस नहीं लेने दे रही थी. मैं रोना चाहता था, पर बच्चों के सामने रो भी नहीं सकता था. पार्क में ठंडी हवा में टहलने से मन कुछ शांत हुआ. हाथ में हाथ डाले अनेक जोड़े वहां टहल रहे थे, उन्हें देख कर मैं और भी उदास हो गया. तभी एहसास हुआ कि रात घिर आई है और मैं बच्चों को ले कर घर आ गया.

लगभग 10-15 मिनट के बाद ही सुकेशनी के आने की आहट हुई.

मैं सोचने लगा कि वह आ कर खिले हुए मुख से मुझे एक और खुश- खबरी सुनाएगी. मैं उदास व खोयाखोया सा बैठा रहा. वह कमरे में आई, पर उदास, निढाल व थकीथकी सी. मैं अभी भी चुप रहा.

उस चुप्पी को भंग करते हुए सुकेशनी बोली, ‘‘विशेष, मुझे क्षमा कर दो, मैं तुम्हारी अपराधी हूं. मैं तुम से दंड चाहती हूं…वह यह कि तुम मुझे जिंदगी भर के लिए अपने हृदयरूपी पिंजरे में कैद कर लो. पाल मुझे खिलौना समझ कर मुझ से खेल रहा था. विवाह की बात सुनते ही वह साफ इनकार कर गया और बोला, ‘मैं ने तुम से विवाह करने की बात तो कभी सोची भी नहीं, यह बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे? क्या तुम अपने पति व बच्चों को जरा भी नहीं चाहती हो? कैसी औरत हो तुम? जब तुम उन से प्यार नहीं कर सकीं तो मुझ से क्या कर पाओगी?’

‘‘विशेष, मुझे अपनी भयंकर भूल का उसी समय एहसास हो गया. मैं तुम से वादा करती हूं कि ऐसी भूल मैं भविष्य में कभी भी नहीं दोहराऊंगी. मुझे एक और अवसर दे दो, विशेष. मैं ने सोच लिया है कि उस स्कूल से अपना तबादला करवा लूंगी. आज से मैं तुम्हारे व बच्चों के प्रति अपने सभी उत्तरदायित्व पूरी ईमानदारी के साथ निभाऊंगी,’’ कहतेकहते वह हिचकियां ले कर रोते हुए मेरे पैरों पर गिर पड़ी.

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मैं ने उसे बांहों से पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘सुकु, तुम एक भयंकर भूल कर रही थीं, पर तुम्हें सही समय पर ही अपनी भूल का एहसास हो गया, यह अच्छी बात है. मैं संकीर्ण विचारधारा का नहीं हूं, पर मेरा यह दृष्टिकोण है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्यादा व सीमाओं में रहना चाहिए. फिर भी मैं तुम्हें क्षमा कर रहा हूं और तुम्हारे लिए तुम्हारे द्वारा मांगा दंड ही निर्धारित कर रहा हूं अर्थात जीवन भर तुम्हें अपने हृदयरूपी पिंजरे में कैद रखूंगा. तुम्हारे लिए यह अंतिम अवसर है और मुझे विश्वास है कि तुम अपनी कही बातों का पालन करोगी.’’

दोनों बच्चे वहीं आ गए थे, जिन्हें सुकु ने अपनी बांहों में समेट लिया. आंसू उस की आंखों में झिलमिला रहे थे. बच्चों के चेहरों को देख कर ऐसा लगा कि उन्हें वर्षों बाद अपनी मां मिली हो और मुझे भी एक तरह से उसी दिन अपनी पत्नी मिली थी क्योंकि सुकु की आंखों में बहते हुए आंसुओं में उस का मिथ्या- भिमान, जिद, अहं मुझे साफ बहते दिखाई दे रहे थे.

उसी रात हम दोनों ने यह निर्णय लिया कि अपने मतभेदों को बजाय झगड़ा कर के और बढ़ाने के, बच्चों की अनुपस्थिति में एकसाथ बैठ कर सुलझाएंगे. तभी सुकु ने अनुप्रिया व अनन्य का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो बच्चो, तुम्हें कल स्कूल भी तो जाना है.’’

मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से सुकु की ओर देखा तो वह बोली, ‘‘विशेष, मैं एक माह की छुट्टी ले लूंगी. मुझे वर्षों से बिखरा घर सहेजना है.’’

मैं कुछ न बोल कर मुसकराता रहा. दोनों बच्चे मेरे दोनों गालों पर स्नेहचिह्न अंकित कर अपनी मां का हाथ पकड़े खुशीखुशी सोने के कमरे में चले गए.

मुझे गहन काले बादलों में रुपहली चमक दृष्टिगोचर हो रही थी. ऐसी चमक, जो सूर्योदय की प्रतीक थी.

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Serial Story: रुपहली चमक- भाग 3

कुछ ही दिनों बाद सुकु को एक स्कूल में नौकरी मिल गई. तब तक मैं शिशुसदन की तलाश भी कर चुका था. मैं और सुकु दोनों बच्चों के साथ वहां पहुंचे. वहां की संचालिका करीब 35 वर्षीय एक अंगरेज स्त्री थी. उस ने कहा कि वह 25 पौंड प्रति सप्ताह लेगी. हम ने उसे अपने बच्चों के बारे में संक्षेप में सबकुछ बताया और यह निश्चित किया कि अगले दिन से साढ़े 8 बजे हम दोनों बच्चों को वहां पहुंचा दिया करेंगे और शाम को वापस ले जाया करेंगे.

घर आ कर सुकु ने दोनों बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं व अनुप्रिया की पसंदनापसंद चीजों की सूची बनाई. बच्चों के सारे सामान के बैग के साथ हम ने बच्चों को दूसरे दिन शिशुसदन पहुंचा दिया. इस प्रकार बच्चों की समस्या का समाधान हो गया था.

सुकु साढ़े 8 बजे दोनों बच्चों को शिशुसदन छोड़ती हुई स्कूल चली जाती थी और लौटते समय उन्हें लेते हुए घर चली आती थी. कुछ माह यों ही व्यतीत हो गए. अनुप्रिया कुछ दुबली लगने लगी थी लेकिन अनन्य का स्वास्थ्य ठीक था.

एक दिन सुकु की अनुपस्थिति में मैं ने अनु से पूछा, ‘‘बेटे अनु, तुम्हें शिशुसदन में रहना अच्छा नहीं लगता है क्या?’’

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वह पलकें झपकाते हुए मासूमियत भरे स्वर में बोली, ‘‘पिताजी, यदि मैं कहूं कि मुझे वहां अच्छा नहीं लगता तो क्या मां नौकरी छोड़ देंगी?’’

छोटी सी बच्ची की इस तर्कसंगत बात को सुन कर मैं खामोश हो गया. उस दिन मैं ने मन में सोचा कि जो उम्र बच्चों को मां के साथ अपने परिवार में गुजारनी चाहिए, वह उम्र उन्हें एक नितांत ही अनजान स्त्री व परिवार के साथ व्यतीत करनी पड़ रही है.

परंतु सुकु के पास यह सब सोचने- समझने का समय नहीं था. वह तो स्वयं को शतप्रतिशत सही समझती थी. शीघ्र ही उस ने कार ले ली. मैं अब भी बस से फैक्टरी जाता था.

देखतेदेखते 3 वर्ष व्यतीत हो गए. इस अंतराल में हमारे मध्य सैकड़ों बार झगड़े हुए थे. अनु अब प्राथमिक स्कूल व अनन्य नर्सरी स्कूल में जाता था. अब दोनों बच्चों को हम दूसरे शिशुसदन में भेजने लगे थे.

जब से बच्चे नए शिशुसदन में जाने लगे थे तब से सुकु के आने के समय में मैं ने आधे घंटे का अंतर लक्ष्य करना आरंभ किया था. एक दिन मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम आजकल समय से नहीं आती हो, कहां रह जाती हो?’’

उस ने उत्तर दिया, ‘‘कभीकभी स्कूल के पास रहने वाली पामेला के घर चली जाती हूं. वह मेरी अच्छी मित्र है, चाय के लिए खींच कर ले जाती है.’’

उस समय तो मैं कुछ न बोला पर मेरे चेहरे के भाव छिप न सके थे. परंतु मुझे सप्ताह में कभी 2 तो कभी 3 दिन उस का देर से आना जरा भी न भाया था. मैं झगड़े की वजह से चुप था क्योंकि बच्चे भी समझदार हो चले थे और मैं नहीं चाहता था कि वे मातापिता के झगड़ों के प्रत्यक्ष गवाह बनें. अत: मैं खून के घूंट पी कर रह जाता.

एक दिन मेरे एक भारतीय मित्र अभिन्न ने बताया, ‘‘विशेष, तुम्हारी पत्नी तो मेरी गली में रहने वाले पाल के घर अकसर ही आती है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘भई, मैं भाभीजी व कार दोनों को ही पहचानता हूं,’’ वह धीरे से बोला.

फिर मैं ने स्वयं को सांत्वना देते हुए सोचा कि पामेला शायद पाल की पत्नी होगी. पर नहीं, मेरा यह अनुमान भी गलत निकला. मेरे उसी मित्र ने फिर बताया कि पाल अविवाहित है. अब मेरे लिए काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई. किसी पति के लिए इस से अधिक शर्मनाक बात भला और क्या होगी कि उसे अपनी पत्नी के गलत आचरण की सूचना किसी तीसरे से मिले.

दूसरे दिन मैं रोज की तरह फैक्टरी गया, पर काम में मन नहीं लगा. अत: 11 बजे मैं ने अपने मैनेजर से अस्वस्थ होने की बात कह कर उस दिन का अवकाश मांगा और सीधे सुकु के स्कूल में पहुंचा. मैं पहली बार वहां गया था. अत: पहचाने जाने का भय भी नहीं था. मैं ने एक कर्मचारी से पाल के बारे में पूछा तो उस ने कैंटीन की ओर इशारा किया. मैं वहां पहुंचा तो देखा कि पाल और सुकेशनी अगलबगल बैठे हुए कौफी की चुसकियां ले रहे हैं और जोरजोर से हंस रहे हैं.

लंबे कद का गोल चेहरे व नीली आंखों वाला लगभग 35 वर्षीय अंगरेज युवक पाल ठहाके लगाता हुआ बीचबीच में सुकु के कंधों को दबाना नहीं भूलता था, ‘जब यहां अर्थात सार्वजनिक स्थल पर यह हाल है तो अपने घर पर न जाने क्या करता होगा?’ यह सोचते ही सुकेशनी के प्रति इतनी घृणा हुई कि इच्छा हुई, उसी क्षण अपनी दुश्चरित्र पत्नी के मुंह पर थूक दूं. परंतु वहां पर मैं ने कोई दृश्य उपस्थित करना उचित न समझा और सीधे घर लौट आया.

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उस दिन प्रथम बार मुझे विदेश आने पर पछतावा हो रहा था. इस इच्छा के कारण मैं ने अपने मातापिता के अनमोल प्यार को धूल बराबर भी महत्त्व नहीं दिया था. संभवत: इसी का दंड मुझे मिल रहा था. मेरे हिस्से का प्यार किसी और को मिल रहा था. मेरी पत्नी ने मुझे तो निरा बेवकूफ समझा था. मैं विश्वास की डोर थामे न जाने कब तक बैठा रहता यदि मेरे मित्र अभिन्न ने मेरे हाथ से वह डोर झटक कर यथार्थ का दर्शन न कराया होता.

आज मैं अपना मनोविश्लेषण कर रहा था, सोच रहा था कि मनुष्य कभीकभी अपनी अदम्य आकांक्षाओं के समक्ष किस हद तक स्वार्थी व लोभी हो जाता है. मैं विदेश आना चाहता था. यह जानते हुए भी कि मैं अपने मातापिता की एकमात्र संतान हूं और मेरे विदेश जाने से ये लोग कितने अकेले पड़ जाएंगे, उन्हें संतान सुख से वंचित हो जाना पड़ेगा. फिर भी मैं ने आगापीछा सोचे बगैर विदेश गमन की इस अदम्य लालसा के समक्ष स्वयं को इस तरह समर्पित कर दिया, जैसे मातापिता से कभी मेरा कोई संबंध ही न रहा हो. यह क्या मेरी भयंकर भूल न थी?

मेरे पिता इतने अच्छे पद पर कार्यरत थे. क्या मेरे लिए योग्य लड़की खोजना उन के लिए असंभव था? मेरे मातापिता अपने पोतापोती का मुंह देखने को तरस गए और मैं ने कुछ फोटो भेज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली. उस दिन पहली बार मेरे अंतर्मन ने मुझे अपने मातापिता का अपराधी सिद्ध कर दिया. उस ने मुझे बारबार धिक्कारा.

मेरे मातापिता ने मुझे भलीभांति पालपोस कर क्या इसीलिए बड़ा किया था कि मैं अपने जीवन से उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंकूं? उस दिन मुझे उन के दुख का अनुमान हो रहा था, वह भी इसलिए कि मुझे भी मेरी पत्नी ने दूध में पड़ी मक्खी की भांति अपने जीवन से निकाल बाहर फेंका था. दूसरे की स्थिति का भान तो तभी होता है, जब स्वयं उस स्थिति को भोगना पड़े.

शाम को बच्चों को ले कर सुकेशनी घर आई. कपड़े बदल कर अनु व अनन्य टेलीविजन देखने लगे. मैं वहीं बैठा रहा. तभी सुकु भी कपड़े बदल कर आई व चाय के लिए पूछने लगी, ‘नहीं’ का संक्षिप्त उत्तर पा कर वह स्वयं के लिए चाय बनाने चली गई.

थोड़ी देर बाद चाय का प्याला हाथ में लिए हुए वह आई और बोली, ‘‘विशेष, बढि़या खबर सुनो, मैं स्कूल की ओर से 2 वर्ष के प्रशिक्षण हेतु अमेरिका जा रही हूं.’’ मैं समझ गया कि मुझ से पूछा नहीं बल्कि बताया जा रहा है.

मैं ने पूछा, ‘‘और बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे केवल मेरे नहीं, तुम्हारे भी हैं और उन्हें साथ ले जाने का कोई औचित्य भी नहीं है.’’

तब मैं ने शांत स्वर में ही पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ और कौनकौन जा रहा है?’’

‘‘मेरे ही स्कूल के कुछ लोग.’’

‘‘अच्छा…तो एक बात बताओ, उन कुछ लोगों में पामेला भी है?’’

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एक क्षण के लिए सुकेशनी का चेहरा फक पड़ गया. ऐसा प्रतीत हुआ कि उसे आभास हो गया है कि मुझे उस की तथाकथित सखी पामेला के विषय में सबकुछ ज्ञात हो गया है. फिर भी वह सकपकाए स्वर में बोली, ‘‘हां.’’

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Serial Story: रुपहली चमक- भाग 2

देखतेदेखते 1 वर्ष बीत गया था. एकाएक ऐसा लगा जैसे मुझे किसी ने खाई में गिराना चाहा हो. हड़बड़ा कर मैं ने देखा, सामने सुकु खड़ी थी. वह मुझे हिलाहिला कर पूछ रही थी, ‘‘विशेष, कहां खो गए?’’

एकाएक मैं अतीत से वर्तमान में आ गया.

‘‘विशेष, तुम्हें पिताजी बुला रहे हैं,’’ मैं सुकु के साथ ही उस के पिता के अध्ययन कक्ष में पहुंचा तो वे बोले, ‘‘बेटा विशेष, मैं ने तुम्हारे लिए बरमिंघम शहर में एक नौकरी का प्रबंध किया है, तुम्हें साक्षात्कार हेतु बुलाया गया है.’’

मैं ने हड़बड़ा कर उत्तर दिया, ‘‘पर पिताजी, मैं तो अभी आगे पढ़ना चाहता हूं…’’

वे बात काटते हुए बोले, ‘‘बेटे, यहां के हालात दिनप्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं. यहां पर काम मिलना मुश्किल होता जा रहा है. वह तो कहो कि उस फैक्टरी के मालिक मेरे मित्र हैं. अत: तुम्हें बगैर किसी अनुभव के ही काम मिल रहा है. मेरा कहा मानो, तुम बरमिंघम जा कर साक्षात्कार दे ही डालो. रही पढ़ाई की बात, तो बेटे, तुम्हारे सामने अभी पूरा जीवन पड़ा है. पढ़ लेना, जितना चाहो.’’

मुझे उन की बात में तर्क व अनुभव दोनों ही दृष्टिगोचर हुए. अत: मैं उन की बात मानते हुए निश्चित दिन साक्षात्कार हेतु बरमिंघम चला गया.

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यह डब्बाबंद खाद्य पदार्थ बनाने वाली एक बड़ी फैक्टरी थी. साक्षात्कार के बाद ही मुझे पता चल गया कि मुझे यहां नौकरी मिल गई है. मैं प्रसन्न मन से लंदन पहुंचा व सब को यह खुशखबरी बता डाली.

सुकु के मातापिता निश्चिंत हो गए कि दामाद आत्मनिर्भर होने जा रहा है और सुकु इस बात से बड़ी प्रसन्न हुई कि अन्य लड़कियों की भांति वह भी अब अपना अलग घर बनाने व सजाने जा रही है. ससुरजी ने हमारे साथ जा कर किराए के फ्लैट व अन्य आवश्यक वस्तुओं का प्रबंध कर दिया. हम फ्लैट में रहने के लिए भी आ गए. हमें व्यवस्थित होता देख कर मेरे ससुर एक हफ्ते के पश्चात लंदन वापस चले गए.

हम दोनों बड़े ही उत्साहित और खुश थे. सुकु घर को सजाने की नवीन योजनाएं बनाने लगी. पर उन योजनाओं में मां बनने की योजना भी सम्मिलित रही, यह मुझे बाद में पता चला. 9 माह के पश्चात मैं एक फूल सी कोमल व अत्यंत सुंदर बच्ची का पिता बन गया.

सुकु की मां 2 माह पूर्व ही सब संभालने आ गई थीं. इधर मैं ने भी कार चलाना सीखना आरंभ किया हुआ था. आशा थी कि ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त होते ही कोई बढि़या हालत की पुरानी कार खरीद लूंगा. पर बच्ची के आ जाने से खर्चे कुछ ऐसे बढ़े कि मुझे कार खरीदने की बात को फिलहाल कुछ समय तक भूल जाना पड़ा. बच्ची का नाम हम ने अनुप्रिया रखा था.

समय अपनी गति से बीतता जा रहा था. अनुप्रिया के प्रथम जन्मदिन पर मैं ने ढाई हजार पौंड की एक पुरानी कार खरीद ली थी. 2-3 माह बाद ही एक दिन सुकु ने अपने दोबारा गर्भवती होने की सूचना मुझे दी तो मैं अचंभित रह गया. परंतु सुकु ने समझाया, ‘‘देखो, यदि परिवार जल्दी ही पूर्ण हो जाए तो बुराई क्या है? 2 बच्चे हो जाएं तो मैं भी जल्दी मुक्त हो जाऊंगी व नौकरी कर सकूंगी.’’

मैं पुन: अपने कार्यों में व्यस्त हो गया. कहना आवश्यक न होगा कि मुझे घर के सभी कार्यों में सुकु की सहायता अंगरेज पतियों की भांति करनी पड़ती थी. यहां तक तो ठीक था, पर मुझे एक बात बहुत खलती थी और वह थी सुकु की तेज जबान व दबंग स्वभाव. मुझ से दबने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था, इस के विपरीत वह मुझ पर पूर्ण रूप से हावी हो जाना चाहती थी. यहां पर मैं समझौता करने को तैयार न था. फलस्वरूप घर में झगड़े होते रहते थे.

इन्हीं झगड़ों के मध्य सुकु ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. मेरी सास इस बार भी यहीं पर थीं. नाती पा कर वह निहाल हो गई थीं. मैं ने अपने घर के लिए अनुप्रिया के साथ अनन्य की फोटो खींच कर पत्र व फोटो अपने मातापिता को भेज दी थी कि वे भी अपने पोते की खबर से खुश होंगे.

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2 बच्चों की वजह से हमारे खर्चे बहुत बढ़ रहे थे. इस देश में जहां आमदनी अच्छी थी, वहां महंगाई भी बहुत अधिक थी. बच्चों का पालनपोषण यहां बहुत महंगा पड़ता है. अत: मैं ने कार पर होने वाले खर्चे को बचाने के लिए अपनी कार 2 हजार पौंड में बेच दी. यह बात सुकु को बहुत बुरी लगी क्योंकि उसे अब खरीदारी करने के लिए टैक्सी और बसों पर निर्भर रहना पड़ता था. कार बिकने के परिणामस्वरूप प्राप्त 2 हजार पौंड को मैं ने बैंक में जमा कर दिया था. मैं फैक्टरी बस से चला जाता था. कार के रखरखाव व पैट्रोल पर होने वाले खर्चे अब बचने लगे थे.

अनुप्रिया ढाई वर्ष की तथा अनन्य 3 माह का हो चला था कि मुझे पता चला कि सुकु नौकरी की तलाश कर रही है. मैं ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम नौकरी करोगी तो बच्चों को कौन संभालेगा?’’

वह चिढ़े हुए स्वर में फुफकारते हुए बोली, ‘‘अच्छा…तो तुम चाहते हो कि इन बच्चों को संभालने के लिए मैं दिनरात घर में ही घुसी रहूं? इन के लिए तुम्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है, किसी अच्छे शिशुसदन में इन का प्रबंध भी हो जाएगा.’’

मैं ने उत्तेजित हो कर पूछा, ‘‘तो क्या तुम दृढ़ निश्चय कर चुकी हो कि नौकरी अवश्य करोगी?’’

तब वह धीरे से बोली, ‘‘हां, विशेष, हमें कार की आवश्यकता है, उस के बिना हमारा काम कैसे चलेगा?’’

तब मैं ने कहा, ‘‘हमारा न कह कर केवल ‘अपना’ काम कहो. बच्चों की देखभाल का उत्तरदायित्व तुम्हें बोझ लग रहा है. कार की आवश्यकता के आगे तुम बच्चों की आवश्यकताओं के महत्त्व को नकार रही हो. यदि ऐसा ही था तो मां बनने का शौक क्यों पाला था?’’

पर मेरी इन बातों को अनसुनी सी करती हुई वह ऊपर सोने के कमरे में चली गई और मैं सोचता रहा, यह कैसी नारी है जो भौतिक साधनों के समक्ष अपने ही बच्चों की उपेक्षा कर रही है.

अनन्य सिर्फ 3 माह का है, उसे मां की आवश्यकता है. यह उसे शिशुसदन के भरोसे छोड़ कर नौकरी करना चाहती है. क्या 2-3 वर्ष और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी?

अंत में सुकु की अनुपस्थिति में मैं ने उस के पिता को फोन किया व परिस्थितियों से अवगत करा दिया. सुन कर वे बोले, ‘‘विशेष, सुकेशनी तो आरंभ से ही बहुत जिद्दी है, वह सदा से मनमानी करती आई है. यदि उस ने अपने मन में नौकरी करने की ठान ली है तो वह नौकरी कर के ही मानेगी. अत: बजाय घर में झगड़ा कर के घर का वातावरण विषमय बनाओ, अच्छा यह होगा कि अभी से किसी अच्छे शिशुसदन की तलाश जारी कर दो.’’

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मैं सुकु के पिता की बहुत इज्जत करता था. अत: उन की बात को मान कर किसी अच्छे शिशुसदन की तलाश में लग गया.

आगे पढ़ें- कुछ ही दिनों बाद सुकु को…

Serial Story: रुपहली चमक- भाग 1

उस दिन सुबह से ही आसमान पर बादल छाए हुए थे और सदा की भांति मुझे उदास कर गए थे, न जाने क्यों ये बादल मेरे मन के अंधेरों को और भी अधिक गहन कर देते हैं और तब आरंभ हो जाता है मेरे भीतर का द्वंद्व. इस अंतर्द्वंद्व में मैं कभी विजयी हुआ हूं तो कभी बुरी तरह पराजित भी हुआ हूं.

मैं आत्मविश्लेषण करते हुए कभी तो स्वयं को दोषी पाता हूं तो कभी बिलकुल निर्दोष. सोचता हूं, दुनिया में और भी तो लोग हैं. सब के सब बड़े संतुष्ट प्रतीत होते हैं या फिर यह मेरा भ्रम मात्र है अर्थात सब मेरी ही तरह सुखी होने का ढोंग रचाते होंगे. खैर, जो भी हो, मैं उस दिन उदास था. उस उदासी के दौर में मुझे अपनी ममताभरी मां बहुत याद आईं.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में मेरे घर में सभी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. पिता अच्छे पद पर कार्यरत थे. मैं अपने मातापिता की एकमात्र संतान था. न जाने क्यों, कब और कैसे विदेश देखने तथा वहीं बसने की इच्छा मन में उत्पन्न हो गई. मित्रों के मुख से जब कभी अमेरिका, इंगलैंड में बसे हुए उन के संबंधियों के बारे में सुनता तो मेरी यह इच्छा प्रबल हो उठती थी. मां तो कभी भी नहीं चाहती थीं कि मैं विदेश जाऊं क्योंकि लेदे कर उन का एकमात्र चिराग मैं ही तो था.

एक दिन कालेज में मेरे साथ बी.एससी. में पढ़ने वाले मित्र सुरेश ने मुझे बताया कि उस के इंगलैंड में बसे हुए मौसाजी का पत्र आया है. वे अपनी एकमात्र पुत्री सुकेशनी के लिए भारत के किसी पढ़ेलिखे लड़के को इंगलैंड बुलाना चाहते हैं. वहां और मित्र भी बैठे हुए थे. मैं ने बात ही बात में पूछ लिया, ‘‘सुरेश, तुम्हारी बहन सुकेशनी है कैसी?’’

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सुनते ही सुरेश ठहाका लगाते हुए बोला, ‘‘क्यों, तू शादी करेगा उस से?’’

उस का यह कहना था कि सभी मित्र खिलखिला कर हंस पड़े. मैं झेंप कर पुस्तकालय की ओर बढ़ गया. उन सब के ठहाके वहां तक भी मेरा पीछा करते रहे.

उस के कुछ दिन पश्चात मैं किसी आवश्यक काम से सुरेश के घर गया हुआ था. उस के मातापिता भी घर पर थे. हम सभी ने एकसाथ चाय पी. तभी सुरेश के पिता ने पूछा, ‘‘विशेष, तुम बी.एससी. के बाद क्या रोगे?’’

‘‘जी, चाचाजी, मैं एम.एससी. में प्रवेश लूंगा. मेरे मातापिता भी यही चाहते हैं.’’

तभी सुरेश की मां ने मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘सुरेश कह रहा था कि तुम विदेश जाने के बड़े इच्छुक हो. अपनी बहन की लड़की के लिए हमें अच्छा पढ़ालिखा लड़का चाहिए. तुम्हें व तुम्हारे परिवार को हम लोग भलीभांति जानते हैं, कहो तो तुम्हारे लिए बात चलाएं?’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘जी, आप मेरे मातापिता से बात कर लें,’’ मैं उन्हें नमस्ते कह कर बाहर निकल गया.

अगले रविवार को सुरेश के माता- पिता हमारे घर आए. मैं ने मां को पहले ही सब बता दिया था. मां तो वैसे भी मेरी इस इच्छा को मेरा पागलपन ही समझती थीं लेकिन इस रिश्ते की बात सुन कर वे बौखला सी गईं जबकि पिताजी तटस्थ थे. न जाने क्यों? यह मुझे ज्ञात नहीं था. परंतु मां पर तो मानो वज्र ही गिर पड़ा. हम सभी ने एकसाथ नाश्ता किया. उन लोगों ने अपना प्रस्ताव रख दिया था.

सुन कर मां बोलीं, ‘‘बहनजी, एक ही तो बेटा है हमारा, वह भी हम से दूर चला जाएगा तो यह हम कैसे सह पाएंगे?’’

सुरेश की मां बोलीं, ‘‘बहनजी, सहने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. भाई साहब की अवकाशप्राप्ति के पश्चात आप लोग भी वहीं बस जाइएगा.’’

मैं ने पिताजी के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुसकराहट सहज ही देख ली थी. वे बोले, ‘‘बहनजी, आप हमारी चिंता छोड़ दीजिए. आप बात चलाइए, मैं विशेष की एक फोटो आप को दे रहा हूं.’’

फोटो की बात चलने पर सुरेश की मां ने भी सुकेशनी की एक रंगीन फोटो हमारे सामने रख दी. लड़की बहुत सुंदर तो नहीं थी पर ऐसी अनाकर्षक भी नहीं थी. फिर मैं ने भला कब अपने लिए अद्वितीय सुंदरी की कामना की थी. मेरे लिए तो यह साधारण सी लड़की ही विश्वसुंदरी से कम न थी क्योंकि इसी की बदौलत तो मेरी वर्षों से सहेजी मनोकामना पूर्ण होने जा रही थी.

बात चलाई गई और सुरेश के मौसामौसी अपनी पुत्री सहित एक माह के उपरांत ही भारत आ गए. मुझे तो उन लोगों ने फोटो देख कर ही पसंद कर लिया था.

बड़ी धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ. सुकेशनी फोटो की अपेक्षा कुछ अच्छी थी, पर रिश्तेदार दबी जबान से कहते सुने गए कि राजकुमार जैसा सुंदर लड़का अपने जोड़ की पत्नी न पा सका.

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पिताजी ने मेरा पारपत्र दौड़धूप कर के बनवा लिया था व वीजा के लिए प्रयत्न सुकेशनी के पिता अर्थात मेरे ससुर कर रहे थे. चूंकि सुकेशनी इंगलैंड में ही जन्मी थी, अत: वीजा मिलने में भी अधिक परेशानी नहीं हुई. शादी के 1 माह पश्चात ही मुझे सदा के लिए अपनी पत्नी के घर जाने हेतु विदा हो जाना था. लोग तो बेटी की विदाई पर आंसू बहाए जा रहे थे. मां बराबर रोए जा रही थीं परंतु अपनी जननी के आंसू भी मुझे विचलित न कर सके. निश्चित दिन मैं भारत से इंगलैंड के लिए रवाना हुआ.

हवाई जहाज में मेरे समीप बैठी मेरी पत्नी शरमाईसकुचाई ही रही परंतु जब हम लंदन स्थित अपने घर पहुंचे तो सुकेशनी ने साड़ी ऐसे उतार फेंकी, जैसे लोग केले का छिलका फेंकते हैं. मैं क्षण भर के लिए हतप्रभ रह गया. उस ने चिपकी हुई जींस व बिना बांहों वाला ब्लाउज पहना तो ऐसा लगा कि अब वह अपने वास्तविक रूप में वापस आई है, मानो अभी तक तो वह अभिनय ही कर रही थी. एक क्षण के लिए मेरे मन के अंदर यह विचार कौंध गया कि कहीं इस ने शादी को भी अभिनय ही तो नहीं समझ लिया है. पर बाद में लगा कि 22 वर्षीय युवती शादी को मजाक तो कदापि न समझेगी.

कान्वेंट स्कूल में आरंभ से ही पढ़े होने के कारण भाषा की समस्या तो मेरे लिए बिलकुल ही न थी. भारत में अटकअटक कर हिंदी बोलने वाली सुकेशनी, जिसे मैं प्यार से सुकू कहने लगा था, केवल अंगरेजी ही बोलती थी. यहां पर आधुनिक सुखसुविधाओं से संपन्न घर मुझे कुछ दिनों तक तो असीम सुख का एहसास दिलाता रहा. सुकु जब फर्राटेदार अंगरेजी बोलती हुई मेरे कंधों पर हाथ मारते हुए बेशरमी से हंसती तो मेरे सासससुर मानो निहाल हो जाते. परंतु मैं आखिरकार था तो भारतीय सभ्यता व संस्कृति की मिट्टी में ही उपजा पौधा, इसलिए मुझे यह सब बड़ा अजीब सा लगता था, पर विदेश में बसने की इच्छा के समक्ष मैं ने इन बातों को अधिक महत्त्व देना उचित न समझा.

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वायरल वीडियो पर ट्रोलर्स ने रुबीना दिलैक को कहा ‘घमंडी’ तो एक्ट्रेस ने दिया ये जवाब

बिग बौस 14 की ट्रौफी जीतने के बाद से एक्ट्रेस रुबीना दिलैक सुर्खियों में छाई हुई हैं. जहां फैंस उनकी तारीफें करते नहीं थक रहे तो वहीं कुछ ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल करने का मौका नही छोड़ रहे. दरअसल, बीते हफ्ते एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह मुंबई एयरपोर्ट पर फोटोग्राफर्स के सवालों को नजरअंदाज करती हुई नजर आईं थीं. इस वीडियो के कारण रुबीना दिलैक को ट्रोलिंग का काफी सामना करना पडा था. वहीं कुछ लोगों ने उन्हें घमंडी भी कह दिया था. लेकिन अब रुबीना ने एक इंटरव्यू में इस वीडियो पर अपना रिएक्शन दिया है.

ये था वायरल वीडियो

फोटोग्राफर्स के कई बार सवाल करने के बाद भी वीडियो में रुबीना बिना कुछ बोले चुपचाप वहां से जाने की वीडियो को देखकर रुबीना को खूब ट्रोलर्स ने ‘घमंडी’, ‘अकड़ वाली मैम’ जैसी कई बातें कहीं थीं. हालांकि अब रुबीना ने इस मामले में चुप्पी तोड़ते हुए एक इंटरव्यू में कहा कि ‘अब जब सभी लोग यह जान गए हैं कि मैं चंडीगढ़ में शूट कर रही हूं. मेरे परिवार के कई लोग चंडीगढ़ में भी रहते हैं. मेरे पिता के भाई और बहन वहां रहते हैं. जब मैं बिग बॉस के घर में थी तभी मेरी बुआ का हार्ट अटैक से जनवरी में निधन हो गया. मेरे परिवार ने मुझे इस बारे में जानकारी नहीं दी थी.’

 

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रुबीना से छिपी थी ये बात

शो का हिस्सा होने के कारण रुबीना के परिवार ने यह बात उनसे छुपाई थी, क्‍योंकि दादी मां नहीं चाहती थीं कि वह दुखी हों. इसी के चलते आगे रुबीना ने कहा, ‘बुआ के निधन से परिवार का गहरा सदमा लगा. लेकिन बिग बॉस-14 में मेरी जीत के जश्‍न के बीच वह इस दुख को भी झेल रहे थे. ऐसे में जब मैंने अपने पैरेंट्स को बताया कि मैं चंडीगढ़ जा रही हूं, तब उन्‍होंने मुझे बुआ के निधन की जानकारी दी थी. इसलिए मैं उस वक्‍त सदमे में थी.’

बता दें, रुबीना दिलैक के दो म्‍यूजिक वीडियोज में नजर आने वाली हैं, जिसमें से एक में वह अपने पति अभिनव शुक्ला संग दिखेंगे. वहीं इस गानें को गाने वाली बौलीवुड की पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ होंगी.

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‘मन की आवाज प्रतिज्ञा 2‘  एक्ट्रेस पूजा गौर को आखिर क्यों लेनी पड़ी अपनी मां से मदद

जब सात दिसंबर 2009 से 27 अक्टूबर 2012 तक ‘‘स्टार प्लस’’पर सीरियल ‘‘मन की आवाज प्रतिज्ञा’’के पहले सीजन का प्रसारण हुआ था, तब इसे काफी पसंद किया गया था. कोरोना महामारी के चलते लगे लॉक डाउन के दिनों में इसका पुनः प्रसारण हुआ, तब भी दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया और दर्शकों की मांग हुई कि इसका दूसरा सीजन लाया जाना चाहिए. दर्शकों की मांग के मद्दे नजर अब 15 मार्च से सोमवार से शुक्रवार रात साढ़े आठ बजे सीरियल‘‘मन की आवाज प्रतिज्ञा’’ के दूसरे सीजन का प्रसारण ‘‘स्टार भारत ’’ पर शुरू होने जा रहा है. इसमें अरहान बहल के साथ पूजा गौर की अहम भूमिकाएं हैं. मगर इस सीजन में पूजा गौर के किरदार में काफी बदलाव आ गया है. आठ साल के अंतराल के चलते इस बार पूजा गौर मॉं के किरदार में इस सीरियल में नजर आएंगी.

 

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इस सीरियल से वापसी को लेकर अति उत्साहित पूजा गौर ने अपने किरदार के साथ न्याय करने के लिए अपनी तरफ से काफी तैयारियां की. जिसके बारे में वह बताती हैं-‘‘ इतने वर्षों के बाद एक बार फिर प्रतिज्ञा के किरदार और सभी के बीच इस दूसरे सीजन की वापसी को लेकर उत्साहित होने के साथ ही शुरू में मैं थोड़ी नर्वस हुई थी.  पर्दे पर मां का किरदार निभाना मेरे लिए मुश्किल भरा और एक अतिरिक्त चुनौती थी. हम वास्तव में कभी भी मां की भावनाओं की गहराई तक नहीं समझते हैं,  लेकिन मैंने इस किरदार के लिए अपनी मां की मदद ली. जिससे बिना किसी झिझक के मैं आसानी से इसे निभा सकूं. मेरी मां को मेरे आस-पास होने को लेकर आश्चर्य होता था, क्योंकि मैं उनके बारे में हर उन चीजों को लेकर सवाल पूछती थी, जो उनके अंदर स्वाभाविक रूप से आती थीं. इस किरदार को निभाने के लिए मां की भावनाओं को समझना सबसे ज्यादा जरुरी था और  मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी मां ने इस पूरी तैयारी में मेरा मार्गदर्शन किया. इसके अलावा मैंने उन बच्चों की भावनात्मक स्थिति को समझने के लिए वास्तविक मांओं के साथ भी बातचीत की, जो औन-स्क्रीन मेरे बच्चों की भूमिका निभाने वाले हैं. इतना ही नही मैं अपने औन-स्क्रीन बच्चों के साथ सेट पर खूब हंसती खेलती हूं और बहुत सारी बातें करती हूं ताकि मैं उनके साथ गहरा संबंध और मजबूत रिश्ता बना सकूं. मेरे आसपास के सभी लोगों से व्यावहारिक मदद लेकर मैंने इस किरदार की तैयारी की है. मुझे उम्मीद है कि मैंने एक मां की सभी खूबियों को अपने अंदर पिरोया है, जिससे मैं अपने प्रशंसकों और दर्शकों का दिल जीत पाउंगी. ”

 

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‘मन की आवाज प्रतिज्ञा 2‘ में पूजा गौर सच का साथ देने वाली पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की भूमिका में नजर आएंगी, जो अपनी पेशेवर और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बीच जूझती हुई दिखाई देंगी.

 

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पूजा गौर के अलावा इस ‘‘मन की आवाज प्रतिज्ञा’’ के इस नए सीजन में अरहान बहल, अनुपम श्याम, अस्मिता शर्मा, चेतन हंसराज जैसे कलाकारों की भी अहम भूमिकाएं हैं.

वनराज के खिलाफ जाकर नंदिनी से शादी करेगा समर! क्या करेगी अनुपमा

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल Anupamaa में जल्द ही नए ट्विस्ट आने वाले हैं. जहां शाह हाउस में काव्या की एंट्री हो गई है तो वहीं वनराज और समर के बीच झगड़ा देखने को मिल रहा है. लेकिन अब अपकमिंग एपिसोड में वनराज के खिलाफ जाकर समर अपने प्यार नंदिनी को चुनता नजर आएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

नंदिनी से शादी करेगा वनराज

समर पूरी कोशिश कर रहा है कि पूरे परिवार को नंदिनी के लिए मना सके. लेकिन बा और वनराज इस रिश्ते के खिलाफ खड़े हैं. पर खबरों की मानें तो आने वाले एपिसोड्स में समर सभी के सामने नंदिनी से शादी करने का ऐलान करता नजर आएगा, जिसके कारण वनराज और पूरा परिवार हैरान हो जाएगा.

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नंदिनी का सच छिपा रहा है समर

 

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अब तक आपने देखा कि समर, नंदिनी के प्यार को हारना नही चाहता, जिसके लिए वह अपने परिवार और अनुपमा से नंदिनी के मां ना बन पाने का सच छिपा कर बैठा है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा को ये सच पता लगने वाला है. इसी बीच समर, वनराज को मनाने के लिए शिवरात्रि के मौके पर तांडव करता नजर आएगा, जिसमें उसका साथ नंदिना और अनुपमा देते नजर आएंगे.

सौतन की शादी कराएगी अनुपमा

दूसरी ओर बा को घर में काव्या की मौजूदगी खटकने लगी है. वह काव्या को वनराज के करीब जाता देख परेशान है. हालांकि वह पूरी कोशिश कर रही है कि वनराज और अनुपमा को एक साथ ला सके. लेकिन अनुपमा ऐसा नही चाहती, इसी कारण वह वनराज और काव्या की शादी कराने का फैसला लेगी.  अब देखना ये है कि क्या काव्या और वनराज की शादी हो पाएगी. वहीं क्या समर को उसका प्यार मिल पाएगा.

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Women’s Day Special: जरूरी हैं दूरियां, पास आने के लिए

लेखिका- डा. मंजरी चतुर्वेदी

फ्लाइट बैंगलुरु पहुंचने ही वाली थी, विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले को लेने में उलझा हुआ था, इसी बीच मोबाइल पर आते उस नंबर को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा.

अब नहीं सींच सकता था वो प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझा जाना ही बेहतर है. इसलिए जितना मुमकिन हो सका, उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वो उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘‘सदा के लिए… नहींनहीं… हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,‘‘ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘‘शायद, ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,‘‘ बस यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिन से विहान से कोई कौंटेक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का ना मोबाइल फोन लग रहा है और ना ही कोई मैसेज पहुंच रहा है. औफिस में एक दिक्कत आ गई है. जरूरी बात करनी है,‘‘ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई, और दिक्कत को खुद ही सुलटाना सीखो,‘‘ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का ये रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थीं तो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

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मिशिका (मिशी) मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बैंगलुरु में नई मल्टीनेशनल कंपनी ज्वाइन की है, उस की बहन संजना अभी स्टडी कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. दो परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बड़े हुए.

गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो फोन और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम न था.

2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती, तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती, आंटीअंकल से बात होती, तब भी… जवाब एक ही मिलता…वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, ये कैसे मुमकिन है. अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई, तो सब झूठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी, उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से, ये क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी, क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या?‘‘ ऐसे ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम ना कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं. वापसी का समय आ गया, पर नहीं आया तो वह, जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का अहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. लक्ष्मी पूजन के बाद डिनर की तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बिताती गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब ऐंजौय करते थे.

आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झूम उठी थी. आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

‘‘पर, मैं खुश क्यों नहीं हूं, क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो बस बचपन के साथी हैं. इस से ज््यादा तो कुछ नहीं है, फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं. उस से बात न होने से मुझे ये क्या हो रहा है? क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं…?‘‘

इसी उधेड़बुन में रात आंखों में ही बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह वापस मुंबई लौट गई.

दिन यों ही बीत रहे थे, पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया और न ही मिशी ने पूछा.
एक दिन दोपहर को मिशी को काल आया, ‘‘घर की लोकेशन भेजो, डिनर साथ ही करेंगे.‘‘

मिशी ‘करती हूं’ के अलावा कुछ ना बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी, उस रोज वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर, घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई, ‘‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं, इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा… ‘‘ उस को खुद पर हंसी आ गई, अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था, जैसे वक्त थम गया हो, वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

शाम के लगभग 8 बजे बेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं. शरीर ठंडा सा लगने लगा. होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया.फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने के लिए कहा. मिशी की आवाज सुन विहान अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छुपछुप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

डिनर करने के बाद जल्दी ही फिर मिलने की कह कर विहान वापस चला गया.

उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात…

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विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था… 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी दो ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, 1 दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेंगी… पूछेगी उस की बेरुखी की वजह… मिशी अभी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा… विहान का था…
‘‘हेलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना… बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.‘‘

‘‘किस से मिलवाना है, विहान.‘‘

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.‘‘

‘‘बताओ तो…‘‘

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.‘‘

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी. दिल में हजारों सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी, विहान तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, ये क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

‘‘पूछोगी नहीं, कौन है?’’ विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,‘‘ मिशी ने धीरे से कहा.
थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहंुचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘ तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.‘‘

आसमान झिलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी, फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान,‘‘ सोचतेसोचते उस की उंगलियां खुद बा खुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,‘‘ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां…. है, कब आए तुम… कहां है वह?‘‘

मिशी की आंखें उस लड़की को ढूंढ़ रही थीं, जिसे मिलवाने के लिए विहान उसे यहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई वह,‘‘ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?‘‘ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की अगर देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,‘‘ विहान ने पूरे नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने… मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,‘‘ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.‘‘

यह सुन कर उस ने अपनी नजरें झुका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी, फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.‘‘

‘‘अच्छा बाबा… नहीं लिखा,‘‘ विहान ने मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि ये हो क्या रहा है…

‘‘और… और वह लड़की, जिस से मिलवाने के लिए तुम मुझे यहां ले कर आए थे. सच बताओ ना विहान…‘‘

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा. नजरें मिलते ही मिशी भी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छुपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो.’’

मिशी की जबान खामोश थी, पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था, पर वह ये सब मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही. दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही, ऐसा ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया. कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी.’’
इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी…
‘‘मिशी… आज भी चुप रहोगी… बह जाने दो अपने जज्बातों को… जो भी दिल में है कहो… तुम नहीं जानती कि मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है…

‘‘मिशी बताओ… प्यार करती हो मुझ से…’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के इमोशंस उस की आंखों में साफ नजर आ रहे थे… होंठ कंपकंपा रहे थे…
‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना, सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,‘‘ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया… मैं ने वर्षों किया है… जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरी हो… वह मैं ने आज तक सही है…

‘‘मिशी, तुम मेरे लिए तब से खास हो, जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था, तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते.
‘‘पर मिशी, वह मैं ही होता था… हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए ये सब करता था… तुम कभी जान ही नहीं पाई,‘‘ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

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‘‘जानती हो… जब हम साथ पढ़ाई करते थे, तब भी मैं टौपिक समझ ना आने के बहाने से देर तक बैठा रहता, तुम मुझे बारबार समझाती, पर मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में…

‘‘जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते, तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था, ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान… तुम,’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो… मुझे और मेरे दिल की आवाज को… याद है मिशी, जब हम 12जी में थे, तुम मुझे कहती.. क्यों विहान गर्लफ्रैंड नहीं बनाई.. मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं.. मंर पूछता तो तुम्हारा भी है… तुम हंस देती… हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है… फिर मस्त जौब… पर, विहान तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए…’’ इतना कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें झकझोर कर कहूं कि तुम हो तो… पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता है … वो देने वाला मैं ही था… बचपन में जब तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पंेसिल बौक्स में मिलती, तो तुम बेहद खुश हुई थीं…

‘‘अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘‘विहान, पता नहीं कौन है… मौमडैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा ये सरप्राइज गिफ्ट मिले. तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,‘‘ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं ये करता गया… पहले पेंसिल बौक्स था, फिर बैग… फिर तुम्हारा पर्स… और अब कुरियर.‘‘

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई… वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर, कभी ये नहीं सोचा था कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी, चांद… स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छुपे प्रेम की परतें खोल रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया था, जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है… मैं ने बहुत हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था… मैं ने धड़कते दिल से कहा… दिखाऊं फोटो… तो तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना… और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हार रिएक्शन देख कर मैं ठगा सा रह गया… लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला… पगली से प्यार कर बैठा.’’

इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?‘‘

‘‘हां… हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा, तो मैं ने कहा… कब लिया ये फोटो… बहुत प्यारा है…‘‘ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.
‘‘जी मैडम… जी… मैं तुम्हारी लाइफ में इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाई.’’
‘‘ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थी, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नही…‘‘ विहान कहता जा रहा था.
मिशी जोर से अपनी मुट्ठियाँ भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान ना जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झुकाए सुनती रही..

मिशी का गला रुंध गया… विहान इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है…. और तब तो बिलकुल नहीं… जब उसे कोई समझने वाला ही ना हो… कितना कुछ दबा रखा है तुम ने…. मेरे साथ की छोटी से छोटी बातें कितनी सिद्दत से सहेज कर रखी हैं तुम ने ‘‘

‘‘अरे… पागल.. रोते नहीं… और ये किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थी… मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा… इसलिए प्यार का अहसास कहीं गुम हो गया था.‘‘

‘‘और इस हकीकत को सामने लाने के लिए…. मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया… कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी ‘सदा‘ जरूर पहुंचेगी, नहीं तो मुझे आगे बढ़ना होगा… तुम को छोड़ कर.‘‘
‘‘मैं कितनी मतलबी थी…’’
‘‘ना बाबा… ना, तुम बहुत प्यारी हो, तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई… वह धीरे से विहान के कंधे पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया… वह एकदम उठ खड़ी हुई…

‘‘क्या हुआ… मिशी?’’

‘‘ये सब गलत है…’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…?’’

‘‘मैं और पूजा…’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी….. मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली, तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया…’’ सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता…. मम्मीपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी… फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी… किसी को कोई दिक्कत नहीं है… अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का…

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इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई… अब ना कोई शिकायत बची थी… ना सवाल…

‘‘बोलो मिशी… मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,‘‘ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,‘‘ मिशी ने नजरें झुका कर बड़े ही भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था.. जब मैं तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर… झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती…’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा… मैं इतनी बकबक करती हूं,‘‘मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हां… पर, न तुम झगड़ीं और न ही कुछ बोलीं… बस, देखती रही मुझे… ख्वाब बुनती रहीं… मेरे वजूद को महसूस करती रही… उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, ये वही है… मेरी मिशी… सिर्फ मेरी मिशी,‘‘ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ जोर से थाम लिया, हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए… जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ… कभी जुदा ना होने के लिए… आसमां, चांदतारे और चांदनी के प्रेम में सराबोर लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे…

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,
‘‘हमसफर… मेरे हमसफर,
हमें साथ चलना है उम्रभर…’’

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