मोबाइल गेमिंग का बढ़ता नशा

लेखक- शाहनवाज

21वीं शताब्दी की शुरुआत को टैक्नोलौजी की आमजन तक पहुंच का समय माना जाता है. यह वही समय है जिस के बाद से मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटौप जैसी चीजें आमजन भी अफोर्ड कर पाया और अपने जीवन को मुख्यधारा से जोड़ पाया. शुरुआती समय में लोग मोबाइल का उपयोग सिर्फ एकदूसरे से कम्यूनिकेट करने के लिए किया करते थे लेकिन समय बीतने के साथसाथ मोबाइल की उपयोगिता बढ़ती ही चली गई. पहले साधारण फोन हुआ करते थे, लेकिन एक समय बाद ‘स्मार्टफोन’ की ईजाद हुई जिस ने लोगों के स्टेटस को बदल कर रख दिया.

स्मार्टफोन, नौर्मल फोन की तुलना में कहीं ज्यादा काम करने में सक्षम हैं. आजकल के समय में लोग मोबाइल सिर्फ एकदूसरे से संपर्क साधने के लिए नहीं खरीदते बल्कि कई तरह के काम करने के लिए खरीदते हैं, जैसे वीडियो देखने के लिए, गाने सुनने के लिए गेम्स खेलने के लिए आदि. वास्तव में आजकल तो स्मार्टफोन का निर्माण ही मोबाइल गेमिंग को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है.

गेम्स खेलना किसे पसंद नहीं होता. हर कोई हलकेफुलके मनोरंजन के लिए थोड़ाबहुत गेम खेल कर दिमाग में चल रही भागदौड़ से खुद को शांत महसूस करता है. जब तक व्यक्ति अपने स्मार्टफोन में गेम्स खेल रहा होता है उस समय तक वह अपनेआप को शेष दुनिया से काट लेता है. कुछ पल के लिए ही सही, लोग अपनी नजरें अपने स्मार्टफोन में गढ़ा कर गेम्स खेल कर मानो सारी चिंताओं से खुद को मुक्त कर लेते हैं. लेकिन गेमिंग तब समस्या बन कर उभरती है जब लोग इस के एडिक्ट हो जाते हैं. गेमिंग का एडिक्शन इतना खतरनाक और इस के परिणाम इतने भयानक हो सकते हैं कि ये इंसान को पागलपन की ओर ले जा सकता है.

ऐसे लगती है लत

दिल्ली के जनकपुरी में रहने वाला 15 वर्षीय हर्षित 10वीं क्लास में पढ़ाई करता है. लौकडाउन के चलते स्कूल बंद हो जाने के कारण वह पिछले साल मार्च से ही अपने घर में कैद हो गया. स्कूल की तरफ से औनलाइन क्लास का प्रबंध किया गया और हर्षित के पेरैंट्स ने उसे औनलाइन क्लास अटैंड करने के लिए एक हलकी रेंज का ठीकठाक स्मार्टफोन खरीद कर दिया. जब तक औनलाइन क्लास होती तब तक तो ठीक, लेकिन उस के बाद हर्षित अपने नए स्मार्टफोन में पबजी गेम खेलने लगता. हर्षित अपनी क्लास में एवरेज मार्क्स लाने वाले स्टूडैंट्स में था. हर्षित के पेरैंट्स भी उसे फोन में गेम्स खेलने से टोकते नहीं थे, सोचते थे कि बच्चा घर बैठे खुद को इसी तरह से ही एंटरटेन कर सकता है.

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शुरुआती दिनों में तो हर्षित गेम में अपना हाथ सैट करने के लिए एकाध घंटा ही गेम खेलता था. लेकिन जैसेजैसे वह गेम सीखता जा रहा था और अच्छा परफौर्म करता जा रहा था वैसेवैसे उस की पबजी गेम खेलने की ललक बढ़ती गई. गेम खेलने के दौरान उस के आसपास क्या घट रहा है, उसे किसी बात की सुध न होती. वह बस, अपने फोन में गेमिंग में व्यस्त रहता और मस्त रहता. समय बीता, तो हर्षित के पेरैंट्स उसे ले कर चिंता करने लगे. क्योंकि अब वह गेमिंग के लिए स्कूल की तरफ से चलने वाली अपनी औनलाइन क्लासेज भी मिस करने लगा था. जब कभी उस के मम्मीपापा इस बात पर उसे डांटफटकार लगाते तो वह उसे एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देता. उसे किसी बात का मानो फर्क पड़ना बंद हो गया था.

समय बीतने के साथसाथ हर्षित का पबजी खेलने का समय भी बढ़ता जा रहा था. एक घंटे से शुरुआत करने वाला हर्षित अब एक जगह बैठ कर बिना कुछ खाएपिए 5-6 घंटे गेम में बिता देता था. जब यह सबकुछ ज्यादा होने लगा तो सजा के तौर पर उस के पापा ने उस से एक दिन के लिए उस का फोन छीन लिया. हर्षित की गेमिंग एडिक्शन इतनी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी थी कि अपने पास फोन न होने पर उस का मन बेचैन होने लगा. वह छोटीछोटी बातों पर चिढ़ने लगा. फोन छीने जाने की वजह से उस का मन इतना विचलित हो गया था कि गुस्से में उस ने खाना ही छोड़ दिया. मजबूरन उस के पिता को उसे फोन लौटाना पड़ा.

यह स्थिति आगे और भी भयावह होने लगी जब हर्षित रात को डिनर करने के बाद सोते वक्त नींद में भी ‘इस को मार’, ‘उस को मार’ बड़बड़ाने लगा. सुबह आंख खुलती तो ब्रश करने से पहले गेम खेलता. जहां कहीं भी जाता, अपना फोन हमेशा अपने साथ रखता. घर में अपने पेरैंट्स से छिपछिपा कर गेम खेलने का समय निकालता. टीनएज की इस उम्र में उस की आंखों के नीचे गहरे काले गड्ढे बन गए थे जोकि पूरी नींद न ले पाने की निशानी थी. समय से न खानेपीने से वजन में लगातार गिरावट आने लगी थी. हर्षित का सोशल इंटरैक्शन तो जैसे खत्म ही हो गया था.

हर्षित जैसे कई ऐसे बच्चे और कई ऐसे युवा हैं जो हमारे आसपास दिखाई दे जाएंगे. हो सकता है आप भी किसी ऐसे ही व्यक्ति को जानते हों जो बिलकुल हर्षित जैसा तो नहीं लेकिन गेम्स खेलने को ले कर पागल रहता हो.

मोबाइल मार्केटिंग एसोसिएशन्स पावर की ‘मोबाइल गेमिंग इन इंडिया रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में हर 4 में से 3 गेमर्स हर दिन कम से कम 2 बार गेम खेलते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘भारत 250 मिलियन (25 करोड़) मोबाइल गेमर्स के साथ दुनिया में शीर्ष 5 गेमिंग देशों में से एक है.’’ इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में नैटफ्लिक्स या अन्य स्ट्रीमिंग प्लेटफौर्म्स से बिंज वौचिंग (वैब सीरीज देखने की आदत) से भी ज्यादा लोग अपने स्मार्टफोन में गेमिंग करना पसंद करते हैं.

2014 की फ्लरी की मोबाइल एनालिटिक रिसर्च के अनुसार, 2014 तक भारत में एक एंड्रोयड गेमर रोजाना औसतन 33.4 मिनट अपने स्मार्टफोन या टेबलैट पर गेम खेलते हुए खर्च करता था. लेकिन 2020 की साइबर मीडिया रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, यह आंकड़ा बढ़ कर 7 घंटे प्रतिसप्ताह हो चुका है.

भले ही भारत में गेमर्स के आंकड़े आसमान छू रहे हों लेकिन यह चिंता का विषय है. इस में खुद को प्राउड फील करने की जरूरत नहीं है. बच्चों और युवाओं में बढ़ते हुए गेमिंग के इस आंकड़े से यह सम झने की जरूरत है कि लोग जानेअनजाने गेमिंग एडिक्शन के जाल में फंसते जा रहे हैं. आखिर क्या कारण है कि लोग गेमिंग एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं? क्या सरकार या प्रशासन इस डिजिटल एडिक्शन को एडिक्शन मानता भी है? क्या इस से बचने के लिए सरकार ने कोई उपाय किया है?

क्या होता है एडिक्शन

गेमिंग एडिक्शन को सम झने से पहले यह बहुत जरूरी है कि हम पहले एडिक्शन क्या होता है, यह सम झें. एडिक्शन मस्तिष्क प्रणाली का एक पुराना रोग है जिस में इनाम, प्रेरणा और मैमोरीज शामिल होती हैं. सीधे शब्दों में इस को बयान करें तो एडिक्शन एक तरह से मस्तिष्क का डिसऔर्डर है जो किसी भी व्यक्ति को हो सकता है.

कनाडा के साइकोलौजिस्ट ब्रूस एलेग्जैंडर के अनुसार, ‘‘मनुष्य को सहज सामाजिक जुड़ाव की आवश्यकता होती है. जब हम खुश और स्वस्थ होते हैं तो हम अपने आसपास के लोगों के साथ सोशल कनैक्ट होते हैं. लेकिन जब हम खुश नहीं होते, हम अलगथलग हो जाते हैं और जीवन से हार जाते हैं तो हम उस चीज के साथ बंध जाते हैं जिस से हमें कुछ राहत मिलती है.’’

एडिक्शन इसी का ही प्रोडक्ट है. ब्रूस एलेग्जेंडर की परिभाषा के अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी भी पदार्थ या किसी खास व्यवहार का एडिक्ट तब तक नहीं होता जब तक वह खुश है. जब वह दुखी होता है और समाज के लोग उसे उपेक्षित कर देते हैं तो उस से उबरने के लिए वह कुछ पलों की राहत के लिए उन चीजों के साथ जुड़ जाता है जिन से उसे राहत मिलती है. राहत के इन्हीं पलों को एडिक्शन कहते हैं.

यह एडिक्शन सिर्फ नशे के साथ जुड़ने पर ही नहीं होता बल्कि यह किसी भी प्रकार का हो सकता है. उदाहरण के लिए अपने फोन को अनगिनत बार चैक करते रहना, पोर्नोग्राफी देखना, इंटरनैट पर यों ही घंटों बिता देना, शौपिंग का एडिक्शन, बिंज ईटिंग अर्थात फास्ट फूड ईटिंग का एडिक्शन, गैम्बलिंग करना, मास्टरबेशन करना, यहां तक कि रिस्क उठाने का एडिक्शन भी होता है.

दिमाग पर कैसे करता है असर?

जब हम कोई सुखद क्रिया करते हैं तो हमारा दिमाग खुद को पुरस्कृत करता है जिस से हमारे दिमाग को राहत का एहसास होता है. मानव मस्तिष्क में कोई सुखद क्रिया करने पर एक तरह का न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज होता है जिसे डोपामिन कहते हैं. इस से न केवल हमें अच्छा महसूस होता है बल्कि यह हमें प्रोत्साहित करता है कि हम जो कर रहे हैं उसे करते रहें.

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दरअसल, डोपामिन मस्तिष्क का रिवौर्ड सिस्टम होता है. यह हमारे दिमाग को वही चीज बारबार दोहराना सिखाता है. कुछ समय बाद दिमाग में डोपामिन का इन्टेक बढ़ता जाता है. डोपामिन जितना ज्यादा बढ़ता है व्यक्ति उतना ही अधिक एडिक्शन के जाल में फंसता चला जाता है. एक बार जब कोई व्यक्ति किसी चीज का एडिक्ट हो जाता है तो वह अच्छा महसूस करने के लिए अपना एडिक्शन नहीं दोहराता बल्कि सामान्य महसूस करने के लिए एडिक्शन दोहराता है.

उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति दिनभर की भागदौड़ के बाद कुछ पलों के लिए खुद को तसल्ली पहुंचाने या राहत देने के लिए सिगरेट पीता है तो उस के इन्टेक से दिमाग में डोपामिन रिलीज होता है. जिस से व्यक्ति को राहत का एहसास होता है. दिमाग इन राहत के पलों को दोबारा से उपभोग करने के लिए इस व्यवहार को सीख जाता है और फिर दोबारा से सिगरेट पीने के लिए के्रविंग (लालसा) पैदा करता है. ज्यादा से ज्यादा रिवौर्ड (डोपामिन) प्राप्त करने की लालसा में मानव मस्तिष्क व्यक्ति को और अधिक सिगरेट पीने के लिए प्रोत्साहित करता है. जिसे मानव मस्तिष्क का रिवौर्ड सर्किट कहते हैं. जो अंत में एडिक्शन में बदल जाता है. जिस से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है.

गंभीर बीमारियों को न्योता

गेमिंग एडिक्शन भी अन्य किसी दूसरे एडिक्शन जितना ही खतरनाक होता है और इस के भयानक परिणाम निकल सकते हैं. अपने स्मार्टफोन में तरहतरह के मल्टीप्लेयर गेम्स खेल कर लोग बेशक एकदूसरे के साथ कनैक्ट तो होते हैं लेकिन उन की यह रुचि कब एडिक्शन में बदल जाती है, उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं होता. कोई यह जरूर कह सकता है कि कम से कम गेमिंग करने वाले नशेडि़यों और गंजेडि़यों की तरह नशाखोर तो नहीं होते. लेकिन सचाई यह है कि गेम एडिक्ट उन से कम भी नहीं होते हैं. किसी गेम एडिक्ट को कई तरह के कौम्प्लिकेशंस का सामना करना पड़ सकता है.

वीडियो गेमिंग में शामिल फिजिकल ऐक्सरसाइज के न होने की वजह से वजन बढ़ने या घटने और अमेरिका के बच्चों और युवाओं में टाइप-2 मधुमेह के जोखिम के बारे में सार्वजनिक स्वास्थ्य ने चिंताओं को जन्म दिया है. भारत में भी यह हो सकता है यदि स्टडी की जाए तो. चिड़चिड़ापन और शौर्टटैम्पर (तेजी से गुस्सा आना) भी इस में शामिल हैं. गेम्स खेलने में बहुत समय बिताने वाले किताबें पढ़ने में कम दिलचस्पी लेते हैं. सिर्फ किताबें नहीं, जिन कामों के लिए अधिक ध्यान केंद्रित करने या लंबे समय तक ध्यान देने की आवश्यकता होती है, उन कामों को वे नहीं कर पाते हैं. नींद की खासा कमी होने लगती है क्योंकि वे अच्छी नींद से ज्यादा प्राथमिकता गेम में अपने लैवल पार करने को देते हैं. एक जगह पर लंबे समय तक बैठे रहने की वजह से कार्डियक अरैस्ट, जिसे आमभाषा में हार्टअटैक के नाम से जाना जाता है, के खतरे बढ़ जाते हैं.

मई 2019 में मध्य प्रदेश में 16 वर्षीय फुरकान कुरैशी के 6 घंटे लगातार गेम खेलने के कारण हार्टअटैक आने से मृत्यु हो गई. इस लिस्ट में और भी कई कौम्प्लिकेशंस हैं जिन्हें किसी गेम एडिक्ट को  झेलना पड़ सकता है.

मल्टीप्लेयर गेम्स और भी खतरनाक

भारत में यदि आज के समय में सब से अधिक कोई गेम बच्चों और युवाओं द्वारा खेला जाता है तो वह पबजी है. यह गेम सभी तरह के स्मार्टफोन में नहीं खेला जा सकता बल्कि इसे खेले जाने के लिए खास स्पेसिफिकेशन का फोन लेना जरूरी है. भारत में सब से ज्यादा पौपुलर गेम पबजी ही है. इसी से मिलताजुलता दूसरा गेम ‘फ्री फायर’ और ‘कौल औफ ड्यूटी’ है.

भारत में पबजी गेम की लोकप्रियता को देखते हुए ‘कुआर्ट्स’ और ‘जाना’ नाम की कंपनी ने 2018 में एक सर्वे किया था, जिस की रिपोर्ट के अनुसार, 73.4 फीसदी लोग पबजी को अपने स्मार्टफोन में खेलते हैं. 24.3 फीसदी लोग सप्ताह में 8 घंटे से अधिक समय पबजी गेम खेलने में व्यर्थ कर देते हैं. 80 फीसदी से अधिक लोग पबजी गेम में चीजें खरीदने के लिए 350 रुपए तक पैसे खर्चते हैं और 10 फीसदी लोग 1,400 रुपए तक पैसे खर्च कर देते हैं. यह तो बात हुई पबजी गेम्स से जुड़े कुछ आंकड़ों की, लेकिन पबजी गेम जितना भारत में लोकप्रिय है, यह उतना ही लोगों के लिए खतरनाक भी है. सिर्फ एडिक्शन को मद्देनजर रखते हुए नहीं, बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से भी पबजी जैसे गेम्स लोगों की मानसिकता पर बड़ा गहरा प्रभाव डालते हैं.

पबजी गेम में एक बार में 100 लोग औनलाइन गेम को खेलते हैं. यह मरजी प्लेयर की होती है कि वह इसे अकेला खेलना चाहता है या 4 लोगों की टीम के साथ. गेम में प्रवेश करने के बाद एकएक कर हर प्लेयर को मारना होता है. जब सब मर जाते हैं तो आखिरी प्लेयर को ‘चिकन डिनर’ के खिताब से नवाजा जाता है. यह एक गेम कम से कम 30-40 मिनट तक चलता है और प्लेयर को बिना अपनी पलकें  झपकाए व ध्यान भटकाए उसे पार करना होता है. हर किसी का एक ही टारगेट होता है चिकन डिनर हासिल करना. बस, इसी की जद्दोजेहद में लोग लगे रहते हैं.

लेकिन यह सिर्फ एक गेम नहीं है बल्कि इस को खेलने से खेलने वाले के दिमाग में एक तरह की मानसिकता का जन्म हो जाता है. गेम में हथियारों का इस्तेमाल बेहद आम है. बिना हथियारों के इस्तेमाल से इसे खेलना मुमकिन ही नहीं. खेलने वाला जब 30-40 मिनट तक एक गेम में हथियारों का इस्तेमाल करता है तो उस के लिए रियल लाइफ में भी हथियारों का इस्तेमाल आम लगने लगता है.

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पबजी जैसे गेम्स न केवल हमारे दिमाग के साथ खेल रहे हैं बल्कि हमारे लिए एक नया ऐसा माहौल भी स्थापित कर रहे हैं जहां हिंसक गतिविधियां या कृत्य सामान्य व प्रभावशाली हैं. यह हमारे माइंडसैट को बदल रहा है जो पूरी तरह से सोशल नौर्म्स (सामाजिक मानदंडों) के खिलाफ है. पबजी जैसे गेम्स आक्रामक व्यवहार, विचारों और भावनाओं को ट्रिगर करते हैं जो अंत में हिंसा और आत्महत्या जैसी घटनाओं को प्रोत्साहित करते हैं.

लगातार इस तरह की गेमिंग हमारे जीवन की परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमताओं को भी प्रभावित करता है और हमारी एकाग्रशक्ति को प्रभावित करता है जिस के कारण लोग उन के काम और स्टडीज में दिलचस्पी नहीं ले पाते और नुकसान या विफलता को  झेलना पड़ता है. बल्कि, पबजी गेम में रीस्टार्ट करने का बटन लोगों के दिमाग में इतना प्रभाव डालता है कि लोग अपनी असली जिंदगी को भी किसी गेम की तरह ही सम झने लगते हैं. जब वे लाइफ में किसी विफलता का सामना करते हैं तो उन से उन की विफलता का बो झ सहन नहीं हो पाता जिस कारण बच्चों और युवाओं को डिप्रैशन का सामना करना पड़ता है.

पबजी जैसे गेम्स खेलने वाले गेम में इतना अधिक ध्यान केंद्रित कर देते हैं कि वे अपने दोस्तों व परिवारों की ओर ध्यान ही नहीं देते. लोग अपने करीबी लोगों से गेम खेलने के बहाने ढूंढ़ने लगते हैं, उन से  झूठ बोलने लगते हैं. गेम खेलने से टोकने वाले लोगों से वे खुद को आइसोलेट (अलगथलग) कर लेते हैं. न तो कहना मानते हैं और न ही किसी बात पर गौर करते हैं. इन सभी के साथसाथ फिजिकल प्रौब्लम्स होती हैं, वह अलग है.

कैरियर के लिए गेमिंग

लौकडाउन की वजह से जब लोग अपने घरों में कैद हो गए तो बहुसंख्य बच्चे और युवा अपने घरों में स्मार्टफोन्स के साथ चिपक गए. ऐसे में वे गेम खेलने के साथसाथ इस स्पोर्ट यानी गेम को अपने कैरियर के रूप में भी अपनाने के बारे में विचार कर रहे थे. कइयों ने तो गेम्स खेलने की अपनी वीडियोज को यूट्यूब पर डालना शुरू कर दिया था. कई अपनी गेम की लाइव स्ट्रीमिंग करने लगे. इन सब में कुछ मुट्ठीभर युवाओं को लोकप्रियता हासिल भी हो गई. कुछ गेमर्स कंप्यूटर कंपनियों के ब्रैंड एम्बेसडर बन गए. कुछ को यूट्यूब पर अपनी वीडियोज पर प्रचार आने शुरू हो गए. ऐसे में भारत में एक बड़ी संख्या में युवाओं को यह लगने लगा कि वे भी अपने पैशन को अपना कैरियर बना लेंगे.

लेकिन आखिर किस कीमत पर? अपने पैशन को अपना कैरियर बना लेने का सपना गलत नहीं है. यह भी सम झने की जरूरत है कि इस भेड़चाल में केवल कुछ गिनेचुने लोग ही सफल हो पाते हैं. इस के साथसाथ गेमिंग मनोरंजन का साधन जरूर हो सकता है पर समाज में यह अनप्रोडक्टिव कामों में से एक है. गेमिंग से किसी वस्तु का निर्माण नहीं किया जा सकता है.

गुम है किसी के प्यार में बना टीवी का नंबर वन शो, टीम ने ऐसे मनाया जश्न

स्टार प्लस के सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों कई ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. इसी कारण दर्शकों को भी शो की कहानी काफी पसंद आ रही हैं, जिसके कारण सीरियल टीआरपी लिस्ट में नंबर वन पर पहुंच चुका है, जिसके चलते सई से लेकर पाखी समेत सभी सितारे पार्टी करते हुए नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सेलिब्रेशन की खास फोटोज…

अनुपमा को पीछे छोड़ नंबर वन बना सीरियल

बीते कई हफ्तों से टीआरपी लिस्ट में नंबर वन पर बना हुआ सीरियल अनुपमा दूसरे नंबर पर पहुंच गया है. वहीं सीरियल गुम है किसी के प्यार में पहले नंबर पर दर्शकों की बदौलत पहुंच चुका है. इसी कारण शो के सितारों का एक्साइटेमेंट सातवें आसमान पर है, जिसका अंदाजा सोशलमीडिया पर वायरल फोटोज से लगाया जा सकता है, जिसमें  सितारे जश्न मनाते हुए नजर आ रहे हैं.

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विराट संग मस्ती करती दिखीं सई-पाखी

 

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जहां विराट यानी नील भट्ट ने सीरियल की पूरी टीम की सोशलमीडिया पर पोस्ट शेयर करते हुए जमकर तारीफ की है. तो वहीं सई यानी आयशा सिंह और पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा और दोनों विराट संग मस्ती करते हुए अपनी खुशी को जाहिर करते हुए नजर आए.

पाखी-सई की दिखी औफस्क्रीन कैमेस्ट्री

 

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शो के नंबर वन पर पहुंचने पर सौतन पाखी संग सई की औफस्क्रीन कैमेस्ट्री देखने को मिली है. हाल ही में ऐश्वर्या शर्मी ने अपनी और आयशा सिंह की फोटोज शेयर की है, जिसमें दोनों मस्ती करते नजर आ रहे हैं.

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कहानी में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट

 

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सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई, विराट से अपने दिल की बात शेयर करते हुए बताएगी कि वह अपने रिश्ते को एक और मौका देना चाहती है. साथ ही वह विराट को बताएगी कि अपने रिश्ते के साथ वह पुलकित और देवयानी के रिश्ते को भी पूरा होते हुए देखना चाहती है, जिसके बाद विराट और सई का रोमांस भी दर्शकों को देखने को मिलेगा.

‘ये रिश्ते हैं प्यार के’ एक्टर शाहीर शेख के घर जल्द गूंजेगी किलकारी! नवंबर में हुई थी शादी

कोरोना के कहर के बीच जहां कई सितारे शादी के बंधन में बंध चुके हैं तो वहीं कई सेलेब्स ने अपने पेरेंट्स बनने की खुशी से फैंस को चौंका दिया है. इसी बीच खबर है कि टीवी के हैंडसम हंक एक्टर शाहीर शेख (Shaheer Sheikh) पिता बनने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

पिता बनने वाले हैं शाहीर

खबरों की मानें तो पॉप्युलर टीवी ऐक्टर शाहीर शेख (Shaheer Sheikh) ने रुचिका कपूर (Ruchikaa Kapoor) जल्द ही पेरेंट्स बनने वाले हैं. कोरोना महामारी के हालातों को देखते हुए शाहीर शेख और रुचिका कपूर इस खबर को किसी को भी बताना नहीं चाह रहे हैं. दोनों ने अभी तक किसी प्लेटफॉर्म पर प्रेग्नेंसी खबर को सार्वजनिक नहीं किया है. हालांकि मीडिया में ये खबर आने के बाद से फैंस काफी एक्साइटेड हैं और दोनों को बधाई दे रहे हैं.

 

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नवंबर में हुई थी शादी

 

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एक्टर शाहीर शेख और रुचिका कपूर की मुलाकात फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ की मेकिंग के दौरान एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुई थी, जिसके बाद दोनों ने एक दूसरे को दो साल डेट करने के बाद साल 2020 नवंबर में शादी के बंधन में बंधने का फैसला कियाथे. शाहीर शेख और रुचिका कपूर ने कोर्ट में शादी करने के बाद पहली फोटो फैंस के साथ सोशलमीडिया पर शेयर की थी.

 

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बता दें, टीवी एक्टर शाहीर शेख कई टीवी सीरियल में काम कर चुके हैं. वहीं ‘महाभारत’ में ‘अर्जुन’ के रोल के कारण वह फैंस के बीच पोपुलर हो गए थे. वहीं शाहीर शेख ‘कुछ रंग प्यार के ऐसे भी’ और ‘ये रिश्ते हैं प्यार के’ सीरियल के जरिए फैंस के बीच काफी सुर्खियां बटोर चुकी हैं.

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हिजाब: भाग 1- क्या चिलमन आपा की चालों से बच पाई

‘‘आपा,दरवाजा बंद कर लो, मैं निकल रही हूं. और हां, आज आने में थोड़ी देर हो सकती है. स्कूटी सर्विसिंग के लिए दूंगी.’’

‘‘अब्बा ने निगम का टैक्स भरने को भी तो दिया था. उस का क्या करेगी?’’

‘‘भर दूंगी… और भी कई काम हैं. रियाद और शिगुफ्ता की शादी की सालगिरह का गिफ्ट भी ले लूंगी.’’

‘‘ठीक है, जो भी हो, जल्दी आना. 2 घंटे में आ जाना. ज्यादा देर न हो,’’ कह आपा ने दरवाजा बंद कर लिया.

मैं अब गिने हुए चंद घंटों के लिए पूरी तरह आजाद थी. जब भी घर से निकलती हूं मेरी हाथों में घड़ी की सूईयां पकड़ा दी जाती हैं. ये सूईयां मेरे जेहन को वक्तवक्त पर वक्त का आगाह कराती बेधती हैं- अपराधबोध से, औरत हो कर खतरों के बीच घूमने के डर से, खानदान की नाक की ऊंचाई कम हो जाने के खतरे से और मैं दौड़ती होती हूं काम निबटा कर जल्दी दरवाजे के अंदर हो जाने को.

किन दिमागी खुराफातों में उलझा दिया मैं ने… इतने बगावती तेवर तो हिजाब की तौहीन हैं. खैर, क्यों न इन चंद घंटों में लगे हाथ अपने घर वालों से भी रूबरू करा दूं.

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तो हम कानपुर के बाशिंदे हैं. मेरे अब्बा होम्योपैथी के डाक्टर हैं. 70 की उम्र में भी उन की प्रैक्टिस अच्छी चल रही है. मेरे वालिदान अपनी बिरादरी के हिसाब से बड़े खुले दिलोदिमाग वाले हैं, ऐसा कहा जाता है.

6 बहनों में मैं सब से छोटी. मैं ने माइक्रोबायोलौजी में एमएससी की है. मेरी सारी बहनों को भी अच्छी तालीम की छूट दी गई थी और वे भी बड़ी डिगरियां हासिल करने में कामयाब हुईं. हमें याद है हम सारी बहनें बढि़या रिजल्ट लाने के लिए कितनी जीतोड़ मेहनत करती थीं और पढ़ने से आगे कैरियर भी मेरे लिए माने रखता ही था. मुझे एक प्राइवेट संस्थान में अच्छी सैलरी पर लैक्चरर की जौब मिल रही थी. लेकिन यह बात मेरे अब्बा की खींची गई आजादी की लकीर से उस पार की हो जाती थी.

साहिबा आपा को छोड़ वैसे तो मेरी सारी बहनों ने ऊंची डिगरियां हासिल की थीं, लेकिन दीगर बात यह भी थी कि अब वे सारी अपनीअपनी ससुराल की मोटीतगड़ी चौखट के अंदर बुरके में कैद थीं. हां, मेरे हिसाब से कैद ही. उन्होंने अपने सर्टिफिकेट को दिमाग के जंग लगे कबूलनामे के बक्से में बंद कर राजीखुशी ताउम्र इस तरह बसर करने का अलिखित हुक्म मान लिया था.

वे उन गलतियों के लिए शौक से शौहर की डांट खातीं, जिन्हें उन के शौहर भी अकसर सरेआम किया करते. वे सारी खायतों को आंख मूंद कर मानतीं और लगे हाथों मुझे मेरे तेवर पर कोसती रहतीं.

वालिदान के घर मैं और सब से बड़ी आपा रहती थीं. बाकी मेरी 4 बहनों की कानपुर के आसपास ही शादी हुई थी. ये सभी बहनें पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बाहरी कामकाज में भी स्मार्ट थीं. वैसे अब ये बातें बेजा थीं, ससुराली कायदों के खिलाफ थीं. सब से बड़ी आपा साहिबा की शादी कम उम्र में ही हो गई थी. उन का पढ़ाई में मन नहीं था और शादी के लिए वे तैयार थीं.

बाद के कुछ सालों में उन का तलाक हो गया और वे अपने बेटे रियाद के साथ हमारे पास रहने आ गईं. मेरी दूसरी आपा जीनत की शादी पड़ोस के गांव में हुई थी. उन की बेटी शिगुफ्ता की अच्छी तालीम के लिए अब्बा ने अपने पास रखा. उम्र बढ़ने के साथ रियाद और शिगुफ्ता के बीच ‘गुल गुलशन गुलफाम’ होने लगे तो इन लोगों की शादी पक्की कर दी गई.

अब्बा के बनाए घर में हम सब बड़े प्रेम से रहते थे. हां, प्रेम के बाड़े के अंदर उठापटक तब होती जब अब्बा की दी गई आजादी के निशान से हमारे कदम कुछ कमज्यादा हो जाते.

घर में पूरी तरह इसलामी कानून लागू था. बावजूद इस के अब्बा कुछ हद तक अपने खुले विचारों के लिए जाने जाते थे. मगर यह ‘हद’ जिस से अब मेरा ही हर वक्त वास्ता पड़ता मेरे लिए कोफ्त का सबब बन गया था. मैं चिढ़ी सी रहती कि मैं क्यों न अपनी तालीम को अपनी कामयाबी का जरीया बनाऊं? क्यों वालिदान का घर संभालते ही मैं जाया हो जाऊं?

सारे काम निबटा कर रियाद और शिगुफ्ता के तोहफे ले कर मैं जब अपनी स्कूटी सर्विसिंग में देने पहुंची तो 4 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे. मन में बुरे खयालात आने लगे… घर में फिर वही बेबात की बातें… दिमाग गरम…

मैं स्कूटी दे कर जल्दी सड़क पर आई और औटो का इंतजार करने लगी. अभी औटो के इंतजार में बेचैन ही हो रही थी कि पास खड़ी एक दुबलीपतली सांवली सामान्य से कुछ ऊंची हाइट की लड़की विचित्र स्थिति से जूझती मिली. उस की तुलना में उस की भारीभरकम ड्युऐट ने उसे खासा परेशान किया हुए था.

सर्विस सैंटर के सामने उस की गाड़ी सड़क से उतर गई थी और वह उसे खींच कर सड़क पर उठाने की कोशिश में अपनी ताकत जाया कर रही थी. हाइट वैसे मेरी उस से भले ही कुछ कम थी, लेकिन अपनी बाजुओं की ताकत का जायजा लिया मैं ने तो वे उस से 20 ही लगीं मुझे. मैं ने पीछे से उस की गाड़ी को एक झटके में यों धक्का दिया कि गाड़ी आसानी से सड़क पर आ गई. पीछे से अचानक मिल गई इस आसान राहत पर उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने पीछे मुड़ कर मुझे देख मुझ पर अपनी सवालिया नजर रख दी.

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मैं ने मुसकरा कर उस का अभिवादन किया. बदले में उस सलोनी सी लड़की ने मुझ पर प्यारी सी मुसकान डाली. मैं पढ़ाई पूरी कर के 3 सालों से घर में बैठी हूं, मेरी उम्र 26 की हो रही. उस की भी कोई यही होगी. उस की शुक्रियाअदायगी से अचानक ऐसा लगा मुझे जैसे कभी हम मिली थीं.

मेरी उम्मीद से आगे उस ने मुझ से पूछ लिया कि मैं कहां जा रही हूं. वह मुझे मेरी मंजिल तक छोड़ सकती है. तब तक औटो को मैं ने रोक लिया था, इसलिए उसे मना करना पड़ा. हां, वह मुझे बड़ी प्यारी लगी थी, इसीलिए मैं ने उस से उस का फोन नंबर मांग लिया.

औटो में बैठ कर मैं उस सलोनी लड़की के बारे में ही सोचती रही…

वह नयनिका थी. छोटीछोटी आंखें, छोटी सी नाक पर मासूम सी सूरत. सांवली त्वचा निखरी ऐसी जैसे चमक शांति और बुद्धि की हो. बारबार मेरे जेहन में एहसास जगता रहा कि इसे मैं कहीं मिली हूं, लेकिन वे पल मुझे याद नहीं आए.

शाम को 4 बजे तक घर लौट आने का हुक्मनामा साथ ले गई थी, लेकिन अब 6 बजने में कुछ ही मिनटों का फासला था.

सूर्य का दरवाजा बंद होते ही एक लड़की बाहर महफूज नहीं रह सकती या तो बेवफाई की कालिख या फिर बिरादरी वालों की तोहमत अथवा औरत पर मंडराता जनूनी काला साया.

कहते हैं हिजाब हट रहा है. हिजाब तो समाज के दिमाग पर पड़ा है. समाज की सोच हिजाब के पीछे चेहरा छिपाए खड़ी है… वह रोशनी से खौफ खाती है. जब तक उस हिजाब को नहीं हटाओगे औरतों के हिजाब हट भी गए तो क्या?

अब्बा अम्मी पर बरस रहे थे, ‘‘लड़की जात को ज्यादा पढ़ालिखा देने से

यही होता है. मैं ही कमअक्ल था जो अपनी बिरादरी के उसूलों के खिलाफ जा कर लड़कियों को इतना पढ़ा डाला.. पैर मैं चटके बांध दिए… उस की सभी बहनें खानदान के रिवाजों की कद्र करते चल रही हैं… उन की कौन सी बेइज्जती हो रही है? वे तो किसी बात का मलाल नहीं करतीं… और इस छोटी चिलमन का यह हाल क्यों? मैं कहे देता हूं, वह कितना भी रोक ले, वाकर अली से उसे निकाह पढ़ना ही है. उस के आपा के बेटेबेटियों की शादी हो गई और यह अभी तक…

‘‘कैरियर बनाएगी… और क्या बनाएगी? इतना पढ़ा दिया… बिन बुरके यूनिवर्सिटी जाती रही… अब भी बुरका नहीं पहनती. मैं भी कुछ कहता नहीं… चलो जमाने के हिसाब से हम भी उसे छूट दें, लेकिन यह तो किसी को कुछ मानना ही नहीं चाहती?’’

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अब्बा की पीठ दरवाजे की तरफ थी.

उन्होंने देखा नहीं मुझे. वैसे मुझे और उन्हें इस से फर्क भी नहीं पड़ने वाला था. मुझे जितनी आजादी थमाई गई थी, उस का सारा रस बारबार निचोड़ लिया जाता था और मैं सूखे हुए चारे की जुगाली करती जाती थी. वैसे मेरा मानना तो यह था कि जो दी गई हो वह आजादी कहां? मेरी शादी मेरे खाला के बेटे से तय करने की पहल चल रही थी.

वाकर अली नाम था उस का. वह मैट्रिक पास था. अपनी बैग्स की दुकान थी.

आगे पढ़ें- दिनरात एक कर के ईमानदारी से…

हिजाब: भाग 2- क्या चिलमन आपा की चालों से बच पाई

दिनरात एक कर के ईमानदारी से कमाई गई मेरी माइक्रोबायोलौजी की एमएससी की डिगरी चुल्लू भर पानी मांग रही थी डूब मरने को… और घर वाले मेरी बहनों का नाम गिना रहे थे. कैसे

वे ऊंची डिगरियां ले कर भी कम पढ़ेलिखे बिजनैस और खेती करने वाले पतियों से बाखुशी निभा रही हैं… वाकई मैं घर वालों की नजरों में उन बहनों जैसी अक्लमंद, गैरतमंद और धीरज वाली नहीं थी.

वाकर अली आज मुझे देखने आया. वैसे देखा मैं ने उसे ज्यादा… मुझ जैसी हाइट 5 फुट

5 इंच से ज्यादा नहीं होगी. सामान्य शक्लसूरत वैसे इस की कोई बात नहीं थी, लेकिन जो बात हुई वह तो जरूर कोई बात थी.

वकौल वाकर अली, ‘‘घर पर रह लेंगी न? हमारे यहां शादी के बाद औरत को घर से बाहर अकेले घूमते रहने की इजाजत नहीं होती… और आप को बुरके की आदत डाल लेनी होगी. आप को बिरादरी का खयाल रखना चाहिए था.’’

मैं अब्बा की इज्जत का खयाल कर चुप रही. मगर मैं चुप नहीं थी. सोच रही थी कि ये इजाजत देने वाले क्याक्या सोच कर इजाजत देते हैं.

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जेहन में सवाल थे कि क्याक्या फायदा होता है अगर आप के घर लड़कियां शादी बाद घर से अकेले नहीं निकलें या क्या नुकसान हो जाता है अगर निकलें तो? क्या बीवी पर भरोसे की कमी है या मर्दजात पर…

खानदानी आबरू के नाम पर काले सायों से ढकी रहने वाली औरतों की इज्जत घर में कितनी महफूज है?

वाकर अली मेरे अब्बा की तरह ही कई सारे कानून मुझ पर थोप कर चला गया कि अगर राजी रहूं तो अब्बा उस से बात आगे बढ़ाएं.

अब्बा तो जैसे इस बंदे के गले में मुझे बांधने को बेताब हुए जा रहे थे. घर में 2 दिन से इस बात पर बहस छिड़ी थी कि आखिर मुझे उस आदमी से दिक्कत क्या है? एक जोरू को चाहिए क्या- अपना घरबार, दुकान इतना कमाऊ पति, गाड़ी, काम लेने को घर में 2-3 मददगार हमेशा हाजिर… क्या बताऊं, क्या नहीं चाहिए मुझे? मुझे तो ये सब चाहिए ही नहीं.

मैं ने सोचा एक बार साहिबा आपा से बात की जाए. दीदी हैं कुछ तो समझेंगी मुझे. अभी मैं सोच कर अपने बिस्तर से उठी ही थी कि साहिबा आपा मेरे कमरे का दरवाजा ठेल अंदर आ गईं. बिना किसी लागलपेट के मैं ने कहा, ‘‘आपा, मैं परेशान हूं आप से बात करने को…’’

बीच में टोक दिया आपा ने, ‘‘हम सब भी परेशान हैं… आखिर तू निकाह क्यों नहीं करना चाहती? वाकर अली किस लिहाज से बुरा है?’’

‘‘पर वही क्यों?’’

‘‘हां, वही क्योंकि वह हमारी जिन जरूरतों का खयाल रख रहा है उन का और कोई नहीं रखेगा.’’

मैं उत्सुक हो उठी थी, ‘‘क्या? कैसी मदद?’’

‘‘वह तुझे बुटीक खुलवा देगा, तू घर पर ही रह कर कारीगरों से काम करवा कर पैसा कमाएगी.’’

‘‘पर सिर्फ पैसा कमाना मेरा मकसद नहीं… मैं ने जो पढ़ा वह शौक से पढ़ा… उस डिगरी को बक्से में बंद ही रख दूं?’’

‘‘बड़ी जिद्दी है तू!’’

‘‘हां, हूं… अगर मैं कुछ काम करूंगी तो अपनी पसंद का वरना कुछ नहीं.’’

‘‘निकाह भी नहीं?’’

‘‘जब मुझे खुद कोई पसंद आएगा तब.’’

साहिबा आपा गुस्से में पैर पटकती चली गईं. मैं सोच में पड़ गई कि वाकर अली से ब्याह कराने का बस इतना ही मकसद है कि वह मुझे बुटीक खुलवा देगा. वह बुटीक न भी खुलवाए तो इन लोगों को क्या? बात कुछ हजम नहीं हो रही थी. मन बहुत उलझन में था.

बिस्तर पर करवटें बदलते मेरा ध्यान पुरानी बातों और पुराने दिनों पर चला गया.

अचानक नयनिका याद आ गई. फिर मैं उसे पुराने किसी दिन से मिलान करने की कोशिश करने लगी. अचानक जैसे घुप्प अंधेरे में रोशनी जल उठी…

अरे, यह तो 5वीं कक्षा तक साथ पढ़ी नयना लग रही है… हो न हो वही है… अलग सैक्शन में थी, लेकिन कई बार हम ने साथ खेल भी खेले. उस की दूसरी पक्की सहेलियां उसे नयना बुलाती थीं और इसीलिए हमें भी इसी नाम का पता था. वह मुझे बिलकुल भी नहीं समझ पाई थी. ठीक ही है…

16-17 साल पुरानी सूरत आसान नहीं था समझना. रात के 12 बजने को थे. सोचा उसे एक मैसेज भेज रखूं. अगर कहीं वह देख ले तो उस से बात करूं. संदेश उस ने कुछ ही देर में देख लिया और मुझे फोन किया.

बातों का सिलसिला शुरू हो कर हम ज्यों 5वीं क्लास तक पहुंचे हमारी घनिष्ठता गहरी

होती गई. जल्दी मिलने का तय कर हम ने फोन रखा तो बहुत हद तक मैं शांत महसूस कर

रही थी.

कुछ ही मुलाकातों में विचारों और भावनाओं के स्तर पर मैं खुद को नयनिका के करीब पा रही थी. वह सरल, सभ्य शालीन और कम बोलने वाली लड़की थी. बिना किसी ऊपरी पौलिश के एकदम सहज. उस के घर में पिता सरकारी अफसर थे और बड़ा भाई सिविल इंजीनियर. मां भी काफी पढ़ीलिखी महिला थीं, लेकिन घर की साजसंभाल में ही व्यस्त रहतीं.

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नयनिका कानपुर आईआईटी से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिगरी हासिल कर के अब पायलट बनने की नई इबारत लिख रही थी.

इतनी दूर तक उस की जिंदगी भले ही समतल जमीन पर चलती दिख रही हो, लेकिन उस की जिंदगी की उठापटक से मैं भी दूर नहीं रह पा

रही थी.

इधर मेरे घर पर अचानक अब्बा अब वाकर अली से निकाह के लिए जोर देने के साथसाथ बुटीक खोल लेने की बात मान लेने को ले कर मुझ से लड़ने लगे थे. साथ कभीकभार अम्मी भी बोल पड़तीं. हां, आपा सीधे तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उन का मुझ से खफा रहना मैं साफ समझती थी. अब तो रियाद और शिगुफ्ता भी बुटीक की बात को ले कर मुझ से खफा रहने लगे थे. अलबत्ता निकाह की बात पर वे कुछ न कहते. मैं बड़ी हैरत में थी. दिनोदिन घर का माहौल कसैला होता जा रहा था. आखिर बात थी क्या? मुझे भी जानने की जिद ठन गई.

साहिबा आपा से पूछने की मैं सोच ही रही थी कि रात को किचन समेटते वक्त बगल के कमरे से अब्बा की किसी से बातचीत सुनाई पड़ी. अब्बा के शब्द धीरेधीरे हथौड़ा बन मेरे कानों में पड़ने लगे.

अच्छा, तो यह वाकर अली था फोन पर.

रियाद की प्राइवेट कंपनी में घाटा होने की वजह से उस के सिर पर छंटनी की

तलवार लटक रही थी. इधर शिगुफ्ता को बुटीक का काम अच्छा आता था. रियाद और शिगुफ्ता के लिए एक विकल्प की तलाश थी. मुझ से बुटीक खुलवाना. लगे हाथ मेरे हाथ पीले हो जाएं… रियाद और शिगुफ्ता को मेरे नाम से बुटीक मिल जाए… मालिकाना हक रियाद और शिगुफ्ता का रहे, लेकिन मेरा नाम आगे कर के कामगारों से काम लेने का जिम्मा मेरा रहे. शिगुफ्ता को जब फुरसत मिले वह बुटीक जाए.

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फैमिली डॉक्टर है अहम

85 वर्षीय वर्मा जी को अचानक बुखार और थकान सी महसूस हुई तो उन्होंने पेरासिटामोल ले ली परन्तु दो तीन दिन तक जब बुखार बार बार आने लगा साथ ही खांसी भी प्रारम्भ हो गयी तो परिवार के सदस्यों को चिंता हुई पर किसे दिखाएं, कौन अच्छा डॉक्टर है, किसका इलाज अच्छा है जैसे प्रश्नों में ही पूरा दिन निकल गया तब तक वर्मा जी की स्थिति और बिगड़ गयी. आनन फानन में अस्पताल ले जाया गया जहां बड़ी मुश्किल से उनकी जान बचाई जा सकी. डॉक्टरों के अनुसार 60% फेफड़े संक्रमित हो चुके थे वहीं जैन साहेब को जैसे ही हल्की खांसी और मामूली सा बुखार हुआ उन्होंने तुरंत फोन पर अपने फैमिली डॉक्टर को बताया तो उन्होंने ट्रीटमेंट प्रारम्भ करने के साथसाथ टेस्ट करवाने की सलाह दी. इस तरह रिपोर्ट आने से पूर्व शुरुआती दौर में ही इलाज मिल जाने से जैन साहेब एक सप्ताह में ही ठीक हो गए. कोरोना की इस दूसरी लहर में ऐसे अनेकों केस सामने आए जहां प्रारंभिक डॉक्टरी सलाह के अभाव में रोग ने गम्भीर रूप ले लिया. यद्यपि फैमिली डॉक्टर की भूमिका तो सदा से ही महत्वपूर्ण रही है परन्तु कोरोना से पूर्व सम्बंधित डॉक्टर या हॉस्पिटल जाने का विकल्प मरीज के पास होता था परन्तु आज समय समय पर होने वाले लॉक डाउन और कोरोना के अनपेक्षित संक्रमण के डर के कारण वह विकल्प नदारद है.

क्यों जरूरी है फैमिली डॉक्टर

कोरोना काल से पूर्व फेमिली डॉक्टर शब्द पैसे वालों के चोचले जैसा लगता था वहीं आज फैमली डॉक्टर का होना वक़्त की जरूरत बन गया है. क्योंकि कोरोना ऐसी महामारी है जिसमें डॉक्टर आपको प्रत्यक्ष न देखकर फोन पर ही सलाह देना उचित समझता है. ऐसे में एक ऐसे डॉक्टर की आवश्यकता होती है जिससे आप सहज स्वाभाविक होकर किसी भी वक्त बात करके अपनी समस्याएं खुलकर बता सकें.

फैमिली डॉक्टर होने से घर से बाहर जाए बिना ही काफी हद तक समस्या हल हो जाती है.

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किसे बनाएं फैमिली डॉक्टर

फेमिली डॉक्टर अर्थात एक ऐसा डॉक्टर जिसके पास आप अक्सर बीमार पड़ने पर जाते हों, जिसके इलाज पर आपको भरोसा हो. आपका फैमिली डॉक्टर किसी भी विधा  अथवा कोई भी रोग विशेषज्ञ हो सकता है. आवश्यक है कि आपके बीमार होने पर वह आपको समुचित मार्गदर्शन प्राप्त दे सके. जे. पी. हॉस्पिटल भोपाल की सीनियर चिकित्सक डॉ सुधा अस्थाना कहतीं हैं, “,वर्तमान दौर में फैमिली डॉक्टर होना बहुत जरूरी है क्योंकि कोरोना से पूर्व बीमार होने पर हॉस्पिटल जाना बहुत सुगम था वहीं आज हॉस्पिटल जाने पर एक तो संक्रमण का खतरा दूसरे डॉक्टर भी संक्रमण के डर से मरीज को प्रत्यक्ष नहीं देखना चाहते.” उज्जैन के सीनियर डॉक्टर एम. पी. चतुर्वेदी कहते हैं, “फैमिली डॉक्टर चुनते समय दो बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है कि एक तो वह आपके घर के पास में हो दूसरे कम से कम एम. बी. बी. एस. अवश्य हो. झोलाछाप डॉक्टरों से बचना अत्यंत आवश्यक है.”

फैमिली डॉक्टर होने के फायदे

-आपके फैमिली डॉक्टर के पास चूंकि आप अक्सर जाते हैं ऐसे में उसे आपकी बॉडी की टेंडेंसी और परिवार के सदस्यों की हिस्ट्री की पूरी जानकारी होती है और उसके अनुसार वह एक कॉल पर ही आपको ट्रीटमेंट बता देता है. फैमिली डॉक्टर के बारे में अपना अनुभव शेयर करते हुए शर्मा जी बताते हैं कि “मैं कहीं भी होता हूं बस अपने डॉक्टर को एक काल या मेसेज करता हूं वे फोन पर ही मुझे ट्रीटमेंट बता देते हैं क्योंकि उन्हें मेरे और फैमिली के हर सदस्य के बारे में सब कुछ पता है.”

-फैमिली डॉक्टर होने से बीमार होने पर आपको डॉक्टर की तलाश में इधर उधर भटकना नहीं पड़ता और इलाज शुरू होने में भी देर नहीं होती. साथ ही आप अनावश्यक टेस्ट आदि से भी बच जाते हैं हाल ही मैं कोरोना से रिकवर हुईं वीणा जी बताती हैं, “जब हम कोरोना ग्रस्त हुए तो हमारे फैमिली डॉक्टर ने सी टी स्कैन जैसे अन्य गैरजरूरी टेस्ट करवाने से साफ मना कर दिया जिससे पैसों की बचत तो हुई ही साथ ही अनावश्यक तनाव से भी हम बच पाए.”

-किसी भी बीमारी विशेषकर कोरोना जैसी महामारी में एक डॉक्टर से सम्पर्क अत्यंत आवश्यक होता है ताकि किसी भी इमरजेंसी भी उससे सम्पर्क किया जा सके.”होम आइसोलेशन में रहकर अपना इलाज करा रहे मुकुंद का एक रात अचानक ऑक्सीजन लेवल कम होने लगा तो, अपने फैमिली डॉक्टर की सलाह पर वे तुरन्त हॉस्पिटल में भर्ती हो गए और इस प्रकार समय पर डॉक्टरी सलाह मिल जाने पर वे ठीक हो गए.

-रीता जी के एक पैर में कई दिनों से बहुत दर्द था, कोई उन्हें न्यूरोसर्जन के पास जाने की सलाह देता तो कोई फिजियोथेरेपिस्ट के पास, पर जब उन्होंने अपने फैमिली डॉक्टर को बताया तो उन्होंने ऑर्थोपेडिक के पास जाने की सलाह दी. जिसने उन्हें केवल विटामिन और कैल्शियम की दवाइयां दीं तीन माह बाद वे पूरी तरह से ठीक हो चुकीं थीं. कई बार बीमार होने पर समझ नहीं आता कि किसे दिखाएं ऐसे में आपके फैमिली डॉक्टर को चूंकि रोग विशेषज्ञों की भी भली भांति जानकारी होती है तो उसकी मदद से आप सही डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं. जिससे शरीर और पैसा दोनों ही बच जाते हैं.

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-सीमा जी फैमिली डॉक्टर को बीमारी के समय मानसिक अवस्था को संतुलित बनाएं रखने और रोग से लड़ने के लिए अत्यंत आवश्यक मानतीं हैं वे कहतीं हैं,”आधी बीमारी तो डॉक्टर से बात करके ही दूर हो जाती है. जब मुझे प्रारम्भिक चरण में कैंसर हुआ तो इलाज भले जी दिल्ली से चल रहा था परन्तु आगरा में मेरे फैमिली डॉक्टर ने हर दिन बात करके मुझे हिम्मत दी और मैंने जंग जीत ली.”

आज जो विश्वभर में कोरोना का परिदृश्य है उसमें कोरोना काफी लंबे समय तक हमारे साथ ही रहने वाला है इसलिए समय की नजाकत को पहचानकर अपने फैमिली डॉक्टर को सुनिश्चित करें. आश्चर्य की बात यह है कि भारत में लोग अपने धार्मिक गुरु और पंडित जी तो सुनिश्चित करते हैं परन्तु जीवन और सेहत के लिए अत्यंत आवश्यक डॉक्टर तय करने के बारे में विचार तक नहीं करते.

#Coronavirus: सही डाइट और लाइफस्टाइल से बढ़ाएं इम्यूनिटी

इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता हर किसी के लिए जरूरी है. जबसे कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा है इसकी जरूरत भी बढ़ गई है. जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है वह ऐसे रोगों से लड़ लेते हैं. जिनके बौडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी कमजोर होती है उनका शरीर जल्द ही रोगों के प्रभाव में आ जाता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अपनी लाइफस्टाइल, एक्सरसाइज और डाइट पर ध्यान देने की जरूरत होती है. इससे बौडी की इम्यूनिटी पावर बढ़ती है, जिससे बौडी रोगों से लड़ने में सक्षम होती है.

पूरी नींद बेहद जरूरी

इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पूरी नींद लेना सबसे जरूरी होता है. 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें. रात में समय पर सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें. जल्दी उठने का मतलब यह नहीं है कि आप आधीअधूरी नींद लें. रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने से आपकी दिनचर्या भी सही रहती है. कम नींद लेने से शरीर में कार्टिसोल नामक हारमोन का लेवल बढ़ जाता है. इसके बढ़ने से तनाव भी बढ़ता है और इम्यूनिटी सिस्टम भी कमजोर होने लगता है.

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अच्छी नींद के लिए एक्सरसाइज

लोगों को यह शिकायत होती है कि उनको रात में नींद नहीं आती है. इसकी वजह यह है कि शरीर में थकावट नहीं होती आलस्य सा रहता है. जब सुबह समय पर उठेंगे और एक्सरसाइज करेंगे तो बौडी जल्दी सोने की मांग करने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि जल्दी उठने के साथ ही नियमित तौर पर वाकिंग और एक्सरसाइज जरूर करें. हलके हाथों से शरीर की मालिश भी करेंगे तो और भी बेहतर रहेगा. मार्निंग वाक, मालिश और एक्सरसाइज से शरीर में ऐसे एंजाइम्स और हारमोंस बौडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों से बचावकर सकेंगे. मार्निंग वाक और कसरत का समय ऐसा हो कि शरीर को सुबह की 20 से 30 मिनट तक धूप भी मिल सके. सुबह की धूप रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार होती है.

अच्छी डाइट बेहद जरूरी

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मेटाबॉलिज्म का महत्त्व होता है. हमारा मेटाबॉलिज्म जितना अच्छा होगा, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उतनी ही बेहतर होगी. मेटाबॉलिज्म बढ़ाने के लिए न केवल सुबह का नाश्ता जरूरी है, बल्कि 4-4 घंटे के अंतराल पर कुछ हैल्दी खाना भी आवश्यक है. अपनी डाइट में रोजाना दही या छाछ (मठा) अथवा दूध, पनीर जैसी चीजों को भी अवश्य शामिल करें जिन के गुड बैक्टीरिया आपको बीमार होने से बचाएंगे.

लहसुन, अश्वगंधा और अदरक जैसे मसालों का प्रयोग करने से इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद मिलती है. जिससे शरीर को संक्रमणों से लड़ने में मदद मिलती है. इसके साथ ही साथ रोज की डाइट में कुछ खट्टे फल भी जरूर शामिल करें. यह नीबू से लेकर संतरे, मौसंबी तक कोई भी हो सकते हैं. रोजाना कम से कम एक आंवला खाना भी बेहतर होता है. खट्टे फल विटामिन सी के अच्छे स्रोत होते हैं जो फ्री रेडिकल्स के असर को कम कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.

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कालमेघ उपयोगिता

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कालमेघ की भी उपयोगिता है. इसके सेवन से शरीर का इम्यूनिटी पावर बढ़ता है. इसके साथ ही साथ पीने में साफ पानी का प्रयोग भी बहुत जरूरी होता है. यह सबसे आसान तरीका है कि खूब पानी पीजिए. जितना पानी पीएंगे, शरीर के टाक्सिंस उतने ही बाहर निकलेंगे और शरीर संक्रमण से मुक्त रहेगा. अगर आप रोजाना दिन में एक या दो बार शहद या तुलसी का पानी पीने की आदत डाल लेते हैं तो और भी बेहतर रहेगा. ग्रीन टी भी पी सकते हैं. इस तरह के प्रयोगों से इम्यूनिटी पावर को बढ़ाया जा सकता है. कोरोना संक्रमण के दौरान बौडी इम्यूनिटी पावर को बढ़ाने की बेहद जरूरत है.

Summer Special: इन 5 टिप्स से रखें बालों को हेल्दी

लेडिज हो या जेंट्स सभी को अपने बालों से प्यार होता हैं, पर आजकल के पौल्यूशन और टाइम की वजह से बालों की ढ़ग से केयर नही कर पाते. इससे हमारे बाल सूखे और बेजान हो जाते हैं और कम उम्र में ही झड़ने लगते हैं. और इन्ही रूखे और बेजान बालों को दोबारा खूबसूरत बनाने के लिए महंगे हेयर प्रोडक्ट्स और ट्रीटमेंट कराते हैं, लेकिन अब बिना पैसे खर्च किए आप बालों की समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. जिसमें आयुर्वेद आपका साथ देगा. बालों को स्वस्थ रखने के आयुर्वेद में कई नुस्खे बताए गए हैं, जिन्हें फौलो करके आप डैमेज बालों की प्रौब्लम से छुटकारा पा सकते हैं.

1. मेथी दाना

यह फोलिक एसिड, विटामिन ए, विटामिन के और विटामिन सी से भरपूर होता है. साथ ही प्रोटीन और निकोटीन एसिड भी पाया जाता है, जिससे झड़ते बालों की समस्या दूर हो जाती है. स्कैल्प हेल्दी रहती है और बाल डैमेज नहीं होते हैं. इसे आप अपनी डाइट में भी शामिल कर सकते हैं.

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रात में 2 चम्मच मेथी दाने को पानी में भिगो दें. अगली सुबह वो पानी पी लें. बचे हुए मेथी दाने को पीसकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को बालों की जड़ों में लगाकर 20 मिनट बाद धो लें. इससे आपके बाल जल्दी घने, लंबे और मजबूत बनेंगे.

2. भृंगराज तेल

भृंगराज को हर्ब्स का राजा भी कहा जाता है, जो बालों को मोटा और सेहतमंद बनाने के लिए सबसे पुराना और फायदेमंद नुस्खा है. भृंगराज में कई एंटीऔक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जिससे बाल जल्दी घने और लंबे होते हैं. इसे बालों की जड़ों में लगाकर 20 मिनट बाद धो लें.

3. आंवला

डाइट में विटामिन सी की कमी के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं और बालों में डैंड्रफ की समस्या होने लगती है, लेकिन आवंले रखाने और बालों में आवंला औयल की मालिश करने से बालों की सभी प्रौब्लम दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही बाल लंबे समय तक काले रहते हैं.

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4. दही

दही में कूलिंग प्रौपर्टीज होने के साथ प्रोटीन भी होता है. प्रोटीन स्कैल्प की हेल्थ और नए फोलिसल्स की ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी होता है. दही से बालों पर मसाज करके और 15 मिनट तक ऐसे ही छोड़ दें. इसके बाद शैंपू से सिर धो लें. बालों पर दही लगाने से बाल मजबूत होने के साथ कोमल और मुलायम भी बनते हैं.

5. छाछ, दालचीनी, तरबूज, अंगूर खाएं

झड़ते बालों की समस्या को दूर करने के लिए छाछ, दालचीनी, तरबूज, अंगूर आदि चीजों को खाना चाहिए. इसे खाने से बौडी को न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं, जो बालों को हेल्दी बनाने के लिए जरूरी होते हैं.

Techniques अपनाएं और लाइफ को आसान बनाएं

लेखक- सोनिया राणा 

शिशु की देखभाल करना वाकई उस के मातापिता के लिए एक चुनौतीभरा काम होता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि हम ऐसे युग में हैं जहां पेरैंटिंग के मुश्किल काम को आसान बनाने के लिए काफी तकनीकी उपकरण या कहें गैजेट्स मौजूद हैं, जो आप के काम आ सकते हैं. ये डिवाइस न सिर्फ आप के पेरैंटिंग के अनुभव को आसान और सुखद बना सकते हैं, बल्कि इस से आप के लिटिल वन के चुनौतीभरे काम भी आसान लगने लगेंगे.

इलैक्ट्रिक नेल ट्रिमर

छोटे बच्चों के नाखून बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं. उन के नाजुक नाखूनों को काटना वाकई पेरैंट्स के लिए एक टास्क जैसा होता है. चूंकि शिशु शुरुआती 6 महीने केवल मां के दूध पर ही निर्भर रहते हैं ऐसे में उन्हें मिलने वाले कैल्सियम के चलते उन के नाखून जल्दी बढ़ते हैं और खतरा यह होता है कि कहीं वे अपने नाखून से खुद न घायल हो जाएं.

ऐसे में मार्केट में उपलब्ध नेल ट्रिमर आप के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. इस से आप के बेबी को बिना किसी चोट के डर के आसानी से उस के नाखून घिसाए जा सकते हैं.

रैस्ट नाइट साउंड ऐंड लाइट मशीन

छोटे बच्चों को रात के वक्त सुलाना एक चुनौती भरा काम होता है. पेरैंट्स के लिए यह मुश्किल काम आसान बनाने के लिए लाइट ऐंड साउंड मशीन अब मार्केट में आसानी से उपलब्ध है, जिस में आप अपने और अपने बच्चे के हिसाब से लाइट ऐंड साउंड सलैक्ट कर सकती हैं, जिस से आप का बच्चा आराम से रात को सो सकता है.

इस में जंगल थीम से ले कर कई सारी साउंड और लाइम थीम होती हैं, जिस से आप घर की चारदीवारी के अंदर भी प्रकृति से जुड़ने का एहसास कर पाते हैं.

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फ्रैश फ्रूट फीडर

जब आप के शिशु की दांत निकलने की प्रक्रिया शुरू हो रही हो तो यह वक्त वाकई आप के और आप के बच्चे दोनों के लिए परेशानीभरा होता है. कई बार बच्चे टीथिंग के वक्त दस्त और उलटियों से भी परेशान हो जाते हैं.

दांत निकलने की प्रक्रिया आरामदायक हो इस के लिए कई प्रकार के सिलिकौन टीथर यों तो मार्केट में मौजूद हैं, लेकिन उन से बच्चे को इन्फैक्शन का डर हमेशा परिजनों को लगा रहता है. ऐसे में फ्रूट फीडर एक ऐसा आविष्कार है, जिस से न सिर्फ आप के बच्चे का टीथिंग अनुभव आरामदायक होगा, बल्कि इस के जरीए मां फल आसानी से बिना बच्चे के गले में अटकने के डर से खिला पाएगी. तो है न यह एक पंथ दो काज वाला उपकरण.

हिप सीट बेबी कैरियर

आप नई मां हों या आप का बच्चा शिशु अवस्था से बढ़ कर बाल्यकाल में आ गया हो तो ऐसे में हिप सीट बेबी कैरियर इन दोनों ही स्थितियों में आप के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. हम जब भी बच्चे को गोद में लेते हैं तो यह भूल जाते हैं कि बच्चे को गोद में लेते वक्त हमें अपना पोस्चर भी सही रखना है. कई बार पेरैंट्स को घंटों बच्चा गोद में लेना पड़ सकता है.

ऐसे में आप को कमर और कंधों में दर्द की परेशानी से गुजरना पड़ सकता है. ऐसे में आप घंटों अपने बच्चे को गोद में लिए रहें वे भी आसानी से बिना किसी दर्द के इस में हिप सीट बेबी कैरियर आप के लिए मददगार होगा. इस में आप शिशु अवस्था से ले कर बाल्यकाल तक के बच्चे को आसानी से गोद में रख सकती हैं वे भी बिना कमर या कंधों के दर्द के.

वाइब्रेटिंग मैटरस पैड

वाइब्रेटिंग मैटरस पैड आप के बच्चे के लिए काफी हैल्पफुल हो सकता है. इस में सिर्फ आप को मैटरस पैड को अपने बच्चे के गद्दे के नीचे रखना है. इस से निकलने वाली हलकी वाइब्रेशन आप के बच्चे की रातभर आरामदायक नींद में मदद करेगी.

फ्लोटिंग बेबी बाथ टैंपरेचर थर्मामीटर

नहाने का वक्त आप के बच्चे के लिए सब से बेहतरीन वक्त हो सकता है और आप अपने बच्चे का उस की उम्र के हिसाब से पानी को गरम या ठंडा कैसा रखना है वे फ्लोटिंग टैंपरेचर थर्मामीटर से देख सकती हैं.

यह देखने में पानी में तैरने वाले खिलौने की तरह होता है, जिस से आप के बच्चे का नहाने में मन लगा रहे वहीं आप को भी पानी के सही तापमान की जानकारी देता है.

स्मार्ट बेबी मौनिटर विद सौक्स

कामकाजी परिजनों के लिए यह उपकरण कमाल का है. इस में आप को हाई क्वालिटी कैमरा के साथ सौक्स का सेट मिलता है. आप को करना यह है कि बस अपने बच्चे के कमरे में कैमरा सैट करें और उसे उस के साथ आने वाली जुराब पहना दें, जिस से आप के बच्चे को सोने  में जरा भी परेशानी हो, उस का औक्सीजन लैवल या हार्ट रेट जरा भी खतरे के निशान पर जाता है तो आप के मोबाइल पर इस का नोटिफिकेशन मिल जाएगा.

साथ ही आप कहीं से भी कैमरे के जरीए अपने मोबाइल से बेबी की ऐक्टिविटीज पर  नजर रख सकती हैं. आप इस के साथ आने  वाली सौक्स को आसानी से धो सकते हैं और इस से आप के बच्चे को करंट का कोई खतरा भी नहीं होता.

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सिलिकौन ट्रेनिंग स्पून

बढ़ती उम्र के बच्चों को जब आप खुद उन्हें सौलिड खाने की आदत डाल रही हों या वे खुद खाना सीख रहे हों तो ऐसे में सिलिकौन का बना चम्मच आप के बेहद काम आ सकता है. इस से आप के बच्चों को चोट लगने का खतरा भी नहीं होगा और वे आसानी से खाना खाना भी सीख जाएंगे.

बेबी शावर कैप

नहाते हुए बच्चों की आंखों में साबुन या शैंपू जाना उन के लिए भी और परिजनों के लिए भी परेशानी भरा होता है. इस से बचने के लिए मार्केट में मिलने वाली शावर कैप का आप इस्तेमाल कर सकती हैं.

ये कई साइजों में आती हैं ताकि आप के बच्चे के सिर पर आसानी से फिट हो सकें और ये सिलिकौन की बनी होती हैं ताकि बच्चे को कोई परेशानी न हो. ये बच्चे की आंखों और कानों को साबुन के पानी से बचाती हैं.

औटोमैटिक बेबी स्विंग

औटोमैटिक बेबी स्विंग यानी खुद से हिलने वाला बच्चों का झूला. इस का नाम ही आप को बता देगा यह आप के कितने काम आने वाला है. इस में आप बच्चे को लिटा कर उसे बैल्ट से कवर कर सकती हैं, जिस से उस के गिरने का खतरा न हो. उस के बाद यह झूला खुद धीरेधीरे आप के बच्चे को झुलाता रहेगा. इस से बच्चे को गोद में सोने की आदत भी नहीं होगी और उसे अकेले होने का एहसास भी नहीं होगा.

बदलती दिशा: भाग 2- क्या गृहस्थी के लिए जया आधुनिक दुनिया में ढल पाई

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चौंकी जया. यह रंजीत कह रहा है, जो उन का सब से बड़ा शुभचिंतक और मित्र है. ऐसा मित्र, जो आज तक हर दुखसुख को साथ मिल कर बांटता आया है.

‘‘जया, तुम्हारे मन की दशा मैं समझ रहा हूं. पहले मैं ने सोचा था कि तुम को नहीं बताऊंगा पर वीना ने कहा कि तुम को पता होना चाहिए, जिस से कि तुम सावधान हो जाओ.’’

‘‘पर रंजीत भैया, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘सुनो, कल मैं और वीना एक बीमार दोस्त को देखने गांधीनगर गए थे. वीना ने ही पहले देखा कि रमन आटो से उतरा तो उस के हाथ में मून रेस्तरां के 2 बड़ेबड़े पोलीबैग थे. उन को ले वह सामने वाली गली के अंदर चला गया. मैं बुलाने जा रहा था पर वीना ने  रोक दिया.’’

जया की सांस रुक गई. एक पल को लगा कि चारों ओर अंधेरा छा गया है फिर भी अपने को संभाल कर बोली, ‘‘कोई गलती तो…मतलब डीलडौल में रमन जैसा कोई दूसरा आदमी…’’

‘‘रमन मेरे बचपन का साथी है. उस को पहचानने में मैं कोई भूल कर ही नहीं सकता.’’

‘‘पर भैया, उन्होंने आज सुबह ही बंगलौर से फोन किया था. रोज ही करते हैं.’’

‘‘उस का मोबाइल और तुम्हारा लैंडलाइन, तुम को क्या पता कहां से बोल रहा है?’’

जया स्तब्ध रह गईर्. रमन निर्मोही है यह तो वह समझ गई थी पर धोखा भी दे सकता है ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था.

रंजीत गंभीर और चिंतित था. बोला, ‘‘तुम्हारे पारिवारिक मामलों में मेरा दखल ठीक नहीं है फिर भी पूछ रहा हूं. रमन तुम को अपनी तनख्वाह ला कर देता है या नहीं?’’

‘‘तनख्वाह तो कभी नहीं दी…हां, घरखर्च देते थे पर 4 महीने से एक पैसा नहीं दिया है. कह रहे थे कि गलती से ओवर पेमेंट हो गई, सो वह रिफंड हो रही है. उस में आधी तनख्वाह कट जाती है.’’

‘‘जया, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो, अच्छे पद पर नौकरी कर रही हो, घर के बाहर का संसार देख रही हो फिर भी रमन ने तुम्हें मूर्ख बनाया और तुम बन गईं. यह कैसा अंधा विश्वास है तुम्हारा पति पर. सुनो, अपना भला और बच्चे का भविष्य ठीक रखना चाहती हो तो रमन पर लगाम कसो. अपने पैसे संभालो.’’

जया की नींद उड़ गई. चिंता से सिर बोझिल हो गया. वह खिड़की के सहारे बिछी आरामकुरसी पर चुपचाप बैठी रमन के बारे में मां की नसीहतों को याद करने लगी.

संपन्न मातापिता की बड़ी लाड़ली बेटी जया, रमन के लिए उन को भी त्याग आई थी.

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रमन का हावभाव और उस के बात करने का ढंग कुछ इस तरह का रूखा था जो किसी संस्कारी व्यक्ति को पसंद नहीं आता था. इस के लिए जया, रमन को दोषी नहीं मानती थी क्योंकि उसे संस्कारवान बनाने वाला कोई था ही नहीं. जिस  समय रमन का उस के परिवार में आनाजाना था तब वह मामूली नौकरी करता था और जया ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर के अधिकारी के पद पर काम शुरू किया था. लेकिन तब जया, रमन के प्रेम में एकदम पागल हो गई थी.

मां ने समझाया भी था कि इतने अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं और तू ने किसे पसंद किया. यह अच्छा लड़का नहीं है, इस के चेहरे से चालाकी और दिखावा टपकता है. तू क्यों नहीं समझ पा रही है कि यह तुझ से प्यार नहीं करता बल्कि तेरे पैसे से प्यार करता है.

जया तो रमन के कामदेव जैसे रूप पर मर मिटी थी, सो एक दिन घर में बिना बताए उस ने चुपचाप रमन के साथ कोर्ट मैरिज कर ली और दोनों पतिपत्नी बन गए. तब से मांबाप से उस का कोई संबंध ही नहीं रहा. अब इस शहर में उस का ऐसा कोई नहीं है जिस के सामने वह रो कर जी हलका कर सके. कोई विपदा आई तो कौन सहारा देगा उसे?

मां के कहे शब्द और रमन  के आचरण की तुलना करने लगी तो पाया कि जब से विवाह हुआ है तब से ले कर अब तक कभी रमन ने उस की इच्छाओं को मान्यता नहीं दी. कभी उसे खुश करने का प्रयास नहीं किया और वह इन सब बातों को नजरअंदाज करती रही, सोचती रही कि रमन का पारिवारिक जीवन कुछ नहीं था इसलिए यह सब सीख नहीं पाया.

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शादी के बाद 2 बार घूमने गई थी पर दोनों बार रमन ने अपनी ही इच्छा पूरी की. पहली बार जया ‘गोआ’ जाना चाहती थी और रमन उसे ले कर ‘जयपुर’ चला गया. दूसरी बार वह ‘शिमला’ जाना चाहती थी तो जिद कर रमन उसे ‘केरल’ के कोच्चि शहर ले गया था.

प्रिंस के होने के बाद तो उस ने घूमने जाने का नाम ही नहीं लिया. मजे की बात यह कि दोनों यात्रा का पूरा पैसा रमन ने उस से कैश ले लिया. आश्चर्य यह कि रमन के ऐसे व्यवहार से भी जया के मन में उस के प्रति कोई विरूप भाव नहीं जागा.

अभी तक रमन पर जया को इतना विश्वास था कि पति पास रहे या दूर उस का सुरक्षा कवच था, ढाल था पर अब विश्वास टुकड़ेटुकड़े हो कर बिखर गया…कहीं भी कुछ नहीं बचा. अब अपनी और बच्चे की रक्षा उस को ही करनी होगी.

रमन लौटा, एकदम टे्रन के निश्चित समय पर. जया ने उसे गौर से देखा तो उस के चेहरे पर कहीं भी सफर की थकान के चिह्न नहीं थे.

‘‘जया, जल्दी से नाश्ता लगवा दो. आफिस के लिए निकलना है.’’

अम्मां ने परांठासब्जी प्लेट में रख खाना लगा दिया. खाना खातेखाते रमन बोला, ‘‘200 रुपए मेरे पर्स में रख दो, स्कूटर में तेल डलवाना है. मेरा पर्स खाली है.’’

पहले कहते ही निहाल हो कर जया पैसे रख देती थी पर इस बार अभी से समेटना शुरू हो गया.

‘‘मेरे पास पैसे नहीं हैं. मेरी तनख्वाह एक हफ्ते बाद मिलेगी.’’

‘‘तो क्या मैं बस में जाऊं या पैदल?’’

‘‘वह समस्या तुम्हारी है मेरी नहीं.’’

रमन अवाक् सा उस का मुंह देखने लगा. जया  नहाने चली गई. नहा कर बाहर आई तो रमन तैयार हो रहा था.

‘‘सुनो, मुझे कुछ कहना है.’’

‘‘हां, कहो…सुन रहा हूं.’’

‘‘घर का पूरा खर्च मैं चला रही हूं… तुम देना तो दूर उलटे लेते हो. अगले महीने से ऐसा नहीं होगा. तुम को घरखर्च देना पड़ेगा.’’

‘‘पर मेरा रिफंड…’’

‘‘वह तो जीवन भर चलता रहेगा. ओवर पेमेंट का इतना सारा पैसा गया कहां? देखो, जैसे भी हो, घर का खर्च तुम को देना पड़ेगा.’’

‘‘कहां से दूंगा? मेरे भी 10 खर्चे हैं.’’

‘‘घर चलाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है मेरी नहीं.’’

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रमन खीसें निकाल कर बोला, ‘‘डार्लिंग, नौकरी वाली लड़की से शादी घर चलाने के लिए ही की थी, समझीं.’’

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