बड़ी हिम्मत कर एक रोज उस ने अपने मांबाप को फोन लगाया, पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. जब विकास को फोन लगाया तो पहले तो उस ने फोन काटना चाहा, लेकिन फिर कहने लगा, ‘‘क्या यही सफाई देना चाहती हो कि तुम सही हो और लोग जो बोल रहे हैं वह गलत? तो साबित करो न, करो न साबित कि तुम सही हो और वह इंसान गलत. साबित करो कि छल से उस ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाला.
‘‘माफ कर दूंगा मैं तुम्हें, लेकिन तुम ऐसा नहीं करोगी नंदिनी, पता है मुझे. इसलिए आज के बाद तुम मुझे कभी फोन मत करना,’’ कह कर विकास ने फोन पटक दिया. नंदिनी कुछ देर तक अवाक सी खड़ी रह गईर्.
‘सही तो कह रहे हैं विकास और मैं कौन सा रिश्ता निशा रही हूं और किस के साथ? जब उस ने ही रिश्ते की लाज नहीं रखी तो फिर मैं क्यों दुनिया के सामने जलील हुई जा रही हूं?’ परिवार से रुसवाई, समाज में जगहंसाई और
पति से विरह के अलावा मिला ही क्या मुझे? आज भी अपने पति के प्रति मेरी पूरी निष्ठा है. लेकिन छलपूर्वक मेरी निष्ठा को भ्रष्ट कर दिया उस दरिंदे ने. मेरा तनमन छलनी कर दिया उस ने, तो फिर क्यों मैं उस हैवान को बचाने की सोच रही हूं?
सही कहा था दीदी ने मैं कोई अहिल्या नहीं जो बिना दोष के ही शिला बन कर सदियों तक दुख भोगूं और इंतजार करूं किसी राम के आने का. मैं नंदिनी हूं नंदिनी जो गलत के खिलाफ हमेशा आवाज उठाती आई है, तो फिर आज जब मुझ पर आन पड़ी तो कैसे चुप रह गई मैं? नहीं, मैं चुप नहीं रहूंगी. बताऊंगी सब को कि उस दरिंदे ने कैसे मेरे तनमन को छलनी किया. कोमल हूं कमजोर नहीं, मन ही मन सोच कर नंदिनी ने अपनी दीदी को फोन लगाया.
ये भी पढ़ें- बाढ़: क्या मीरा और रघु के संबंध लगे सुधरने
नंदिनी के जीजाजी के एक दोस्त का भाई वकील था, पहले दोनों बहनें उन के पास गईं और फिर सारी बात बताई. सारी बात जानने के बाद वकील साहब कहने लगे, अगर यह फैसला रेप के तुरंत बाद लिया गया होता, तो नंदिनी का केस मजबूत होता, लेकिन सुबूतों के अभाव की वजह से अब यह केस बहुत वीक हो गया है, मुश्किल है केस जीत पाना. शायद पुलिस भी अब एफआईआर न लिखे.’’
‘‘पर वकील साहब, कोई तो रास्ता होगा न? ऐसे कैसे कुछ नहीं हो सकता? नंदिनी की दीदी बोली.
‘‘हो सकता है, अगर गुनहगार खुद ही अपना गुनाह कबूल कर ले तो,’’ वकील ने कहा.
‘‘पर वह ऐसा क्यों करेगा?’’ वकील की बातों से नंदिनी सकते में आ गई, क्योंकि उस के सामने एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी. लेकिन उसे उस इंसान को सजा दिलवानी ही है, पर कैसे यह सोचसोच कर वह परेशान हो उठी. घर आ कर भी नंदिनी चिंता में डूबी रही. बारबार वकील की कही यह बात कि सुबूत न होने की वजह से उस का केस बहुत वीक है उस का दिमाग झझकोर देती. वह न चैन से सो पा रही थी और न ही बैठ. परेशान थी कि कैसे वह रूपेश के खिलाफ सुबूत जुटाए और कैसे उसे जल्द से जल्द सजा दिलवाए. पर कैसे? यही बात उसे समझ में नहीं आ रही थी. तभी अचानक उस के दिमाग में एक बात कौंधी और तुरंत उस ने अपनी दीदी को फोन लगा कर सारा मामला समझा दिया.
‘‘पर नंदिनी, यह काम इतना आसान नहीं
है बहन,’’ चिंतातुर उस की दीदी ने कहा. उसे लगा कि कहीं नंदिनी किसी मुसीबत में न फंस जाए.
‘‘जानती हूं दीदी, पर मुश्किल भी नहीं, मुझे हर हाल में उसे सजा दिलवानी है, तो यह रिस्क उठाना ही पड़ेगा अब. कैसे छोड़ दूं उस इंसान
को मैं दीदी, जिस ने मेरी इज्जत और आत्मसम्मान को क्षतविक्षत कर दिया. उस के कारण ही मेरा पति, बच्चा मुझ से दूर हो गए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई.
‘‘आप यहां?’’ अचानक नंदिनी को अपने सामने देख रूपेश चौंका.
‘‘घबराइए नहीं भा… सौरी, अब तो मैं आप को भैया नहीं बुला सकती न. वैसे हम कहीं बैठ कर बातें करें?’’ कह कर नंदिनी उसे पास की ही एक कौफी शौप में ले गई. वहां उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, ‘‘रूपेश, आप उस बात को ले किर गिल्टी फील मत कीजिए और सच तो यह है कि मैं भी आप को चाहने लगी थी. सच कहती हूं, जलन होती थी मुझे उस मोटी रमा से जब वह आप के करीब होती.
‘‘भैया तो मैं आप को इसलिए बुलाती थी ताकि विकास और रमा बेफिक्र रहें, उन्हें शंका न हो हमारे रिश्ते पर. जानते हैं जानबूझ कर मैं ने उस रोज अपनी बाई को छुट्टी दे दी थी. लगा विकास भी बाहर गए हुए हैं तो इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता है.’’
ये भी पढ़ें- गुरुजी का मटका: गुरुजी के प्रवचन से अशोक को मिला कौन सा मूल मंत्र
‘‘जैसा प्लान बना रखा था मैं ने ठीक वैसा ही किया. पारदर्शी साड़ी पहनी.
दरवाजा पहले से खुला रखना भी मेरे प्लान में शामिल था रूपेश. अगर आप न हरकत करते उस दिन तो मैं ही आप के आगोश में आ जाती. खैर, बातें तो बहुत हो गईर्ं, पर अब क्या सोचा है?’’ उस की आंखों में झांकते हुए नंदिनी बोली, ‘‘कभी विकास और रमा को हमारे रिश्ते के बारे में पता न चले यह ध्यान मैं ने हमेशा रखा,’’ कह कर रूपेश को चूम लिया और जता दिया कि वह उस से क्या चाहती है.
पहले तो रूपेश को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर नंदिनी की साफसाफ बातों से उसे पता चल गया कि वह भी उसी राह की राही है जिस का वह.
फिर तय हुआ कल दोनों एक होटल में मिलेंगे, जो शहर से दूर है.
‘‘क्या बहाना बनाया आप ने रमा से?’’ रूपेश की बांहों में समाते हुए नंदिनी ने पूछा. ‘‘यही कि औफिस के काम से दूसरे शहर जा रहा हूं और तुम ने क्या बहाना बनाया?’’
‘‘मैं क्या बहाना बनाऊंगी, विकास मेरे साथ रहते ही नहीं अब,’’ अदा से नंदिनी ने कहा, ‘‘कब का छोड़ कर चला गया वह मुझे. अच्छा ही हुआ. वैसे भी वह मुझे जरा भी पसंद नहीं था,’’ कह कर नंदिनी ने रुपेश को चूम लिया.
पक्षी को जाल में फंसाने के लिए दाना तो डालना ही पड़ता है न, सो नंदिनी वही कर रही थी. पैग नंदिनी ने ही बनाया और अब तक 3-4 पैग हो चुके थे. नशा भी चढ़ने लगा था धीरे-धीरे.
‘‘अच्छा रूपेश, सचसच बताना, क्या तुम भी मुझे पसंद करते थे?’’ बात पहले उस ने ही छेड़ी.
‘‘सच कहूं नंदिनी,’’ नशे में वह सब सहीसही बकने लगा, ‘‘जब तुम्हें
पहली बार देखा था न तभी मुझे कुछकुछ होने लगा था. लगा था कि विकास कितना खुशहाल है जो तुम जैसी सुंदर पत्नी मिली और मुझे मोटी थुलथुल… जलन होती थी मुझे विकास से. जब भी मैं तुम्हें देखता था मेरी लार टपकने लगती थी. लगता कैसे मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और फिर गोद में उठा कर कमरे में ले जाऊं और फिर… लेकिन जब तुम मुझे भैया कह कर बुलाती थी न, तो मेरा सारा जोश ठंडा पड़ जाता. ‘‘मौका ढूंढ़ता था तुम्हारे करीब आने का और उस दिन मुझे वह मौका मिल ही गया.
‘‘तुम्हारे गोरेगोरे बदन को देख उस दिन मैं पागल हो गया. लगा अगर तभी तुम्हें न पा लूं तो फिर कभी ऐसा मौका नहीं मिलेगा. सच में मजा आ गया था उस दिन तो,’’ एक बड़ा घूंट भरते हुए वह बोला, ‘‘जो मजा तुम में है न नंदिनी वैसा कभी रमा के साथ महसूस नहीं किया मैं ने. वैसे तुम चुप क्यों हो गई नंदिनी, बोलो कुछ…’’
जैसे ही उस ने ये शब्द कहे, कमरे की लाइट औन हो गई. सामने पुलिस को देख
रूपेश की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. फिर जब नंदिनी के व्यंग्य से मुसकराते चेहरे को देखा,
तो समझ गया कि ये सब उसे फंसाने की साजिश थी अब वह पूरी तरह इन के चंगुल में फंस
चुका है.
ये भी पढ़ें- उस रात अचानक: क्या चल रहा था गुंजन के लिए प्रशांत के मन में
फिर भी सफाई देने से बाज नहीं आया, कहने लगा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, म… म… मेरा कोई दोष नहीं है… इस ने मुझे यहां बुलाया था तो मैं आ गया.’’
‘‘हां, मैं ने ही तुम्हें यहां बुलाया था पर क्यों वह भी सुन लो’’, कह कर नंदिनी ने अपना सारा प्लान उसे बता दिया.
एक न चली रूपेश की, क्योंकि सारी सचाई अब पुलिस के सामने थी, सुबूत के साथ, जो नंदिनी ने अपने फोन में रिकौर्ड कर लिया था. पुलिस के डर से रूपेश ने अपना सारा गुनाह कबूल कर लिया. नंदिनी से जबरन बलात्कार और उसे बदनाम करने के जुर्म में कोर्ट ने रूपेश को 10 साल की सजा सुनाई.
गलत न होने के बाद भी नंदिनी को दुनिया के सामने जलील होना पड़ा, अपने पति बच्चों से दूर रहना पड़ा. सोच भी नहीं सकती थी वह कि जिस इंसान को उस ने दिल से भाई माना, वह उस के लिए इतनी गंदी सोच रखता था. रूपेश की सजा पर जहां नंदिनी ने सुकून की सांस ली वहीं विकास और उस के मायके वाले बहुत खुश थे.
अगर नंदिनी ने यह कदम न उठाया होता आज तो वह दरिंदा फिर किसी और नंदिनी को अपनी हवस का शिकार बना देता और फिर उसे ही दुनिया के सामने बदनाम कर खुद बच निकलता. रूपेश को उस के कर्मों की सजा मिल चुकी थी और नंदिनी को सुकून.