हर मौके पर घर की खूबसूरती बढ़ाती हैं ये डिजाइनर कैंडल्स

दीवाली, क्रिसमस, बर्थडे या अन्य कोई भी खुशी का अवसर हो मोमबत्तियां उस सेलिब्रेशन का प्रमुख हिस्सा होती हैं. आजकल तो बाजार में भांति भांति की सजावटी, रंग बिरंगी, खुशबूदार और खूबसूरत मोमबत्तियां उपलब्ध हैं जो किसी भी अवसर के सौंदर्य में चार चांद लगा देतीं हैं.

सामान्य सजावटी कैंडल्स के अलावा आजकल फ्लोटिंग कैंडल्स भी बहुत सुंदर लगतीं हैं ये भी डिफरेंट रंग और आकार में बाजार में बड़ी ही आसानी से उपलब्ध हैं. इसके अतिरिक्त आज बाजार में ऑटोमेटिक इलेक्ट्रॉनिक बैटरी से चलने वाली कैंडल्स भी मौजूद हैं जो कीमत में सस्ती और प्रयोग में आसान और सुरक्षित तो होतीं हैं परन्तु स्वाभाविक मोमबत्ती के सौंदर्य के समक्ष नहीं टिक पातीं. किसी भी पर्व या अवसर पर हम बड़े ही शौक से सुंदर और महंगी कैंडल्स को खरीदकर तो ले आते हैं परन्तु समुचित देखभाल के अभाव में वे बेरंग, फीकी और अनुपयोगी सी हो जाती हैं तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिन्हें अपनाकर आप अपनी कैंडल्स की लाइफ को बढ़ा सकतीं हैं-

-थोड़ा जलने के बाद कैंडल के अंदरूनी भाग में जमा हुई धूल और कचरे को साफ सूती कपड़े या इयर बड्स से साफ कर दें.

-जल चुकी या काली पड़ी कैंडल की बत्ती को भी कैंची से ट्रिम कर दें ताकि आपको साफ सुथरी और सुंदर फ्लेम मिल सके.

-आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि कैंडल्स एक्सपायर नहीं होती जब कि वास्तव में इनकी लाइफ केवल 12 से 16 महीने ही होती है उसके बाद इनका रंग और खुशबू परिवर्तित होने लगता है और इनकी खूबसूरती समाप्त हो जाती है यही नहीं कई बार ये रखे रखे ही मेल्ट हो कर अपना वास्तविक आकार भी खो देतीं हैं.

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-इन्हें बहुत अधिक गर्म स्थान की अपेक्षा ठंडे और डार्क स्पेस में स्टोर करना चाहिए इससे ये अधिक समय तक सुरक्षित रहतीं हैं.

-कैंडल्स को कभी भी फ्रिज में न रखें क्योंकि ऐसा करने से कैंडल का वैक्स जमकर क्रेक हो जाता है और फिर कैंडल जलाने के लायक नहीं रह जाती.

-कांच के ढक्कनदार जार वाली मोमबत्तियां एक बार में तो पूरी प्रयोग हो नहीं पातीं इसलिए प्रयोग करने के बाद इन्हें अंदर बाहर से साफ करके ढक्कन लगाकर किसी सुरक्षित जगह पर रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग कीं जा सकें.

ऐसे बनाएं साधारण सी कैंडल को स्पेशल

महंगी कैंडल्स खरीदना हर एक के लिए सम्भव नहीं हो पाता. साधारण सी कैंडल्स को भी आप कैसे थोड़े से प्रयास से एकदम बाजार जैसा सजावटी और सुंदर कैसे बना सकतीं हैं प्रस्तुत हैं ऐसे ही कुछ उपयोगी टिप्स-

-प्लेन सफेद कैंडल के नीचे वाले आधे हिस्से पर जूट की रस्सी या साटन के रिबन को फेविकोल की मदद से चिपकाकर सुंदर और यूनिक कैंडल बनाई जा सकती है.

-घर में उपलब्ध फेब्रिक रंग और ब्रश के माध्यम से कोई भी रंग बिरंगी डिजाइन बनाएं.

-कोई भी इमोजी, फूल पत्तियां चिपकाएं.

-कुकी कटर के माध्यम से डिजाइन बनाकर उसमें रंग भरें.

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-थम्ब पिन्स को किसी भी डिजाइन में मोमबत्ती में लगाकर सुंदर मोमबत्तियां बनाई जा सकतीं हैं.

-सफेद प्लेन मोमबत्ती पर बच्चों के रंग बिरंगे क्रेयॉन्स को पिघलाकर किनारों पर डालें बहुत ही खूबसूरत मोमबत्ती तैयार हो जाएगी.

-आपके घर में बेकार पड़े किसी भी कप के आकार के अनुसार चार पांच मोमबत्तियां एक साथ रखकर जलायें.

प्रिंस फ़िलिप: अपने दिल की सुनने वाला दिलचस्प इंसान

प्रिंस फिलिप का 100 वें जन्मदिन से दो महीने पहले 9 अप्रैल 2021 को निधन हो गया. वह एक बहुत दिलचस्प और बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान होने के साथ नायाब पति थे जिन्होंने शादी के बाद सारी उम्र अपनी पत्नी का एक परछाई की तरह साथ दिया.

ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के साथ अपनी विवाहित ज़िंदगी के 70 साल गुजारने वाले फिलिप भले ही कभी किंग नहीं कहलाए, वे हमेशा प्रिंस फ़िलिप ही रहे, मगर सही मायनों में सारा साम्राज्य उन्होंने ही संभाला.

कैसा था फिलिप का बचपन

प्रिंस फिलिप का जन्म 10 जून 1921 को यूनान के कोर्फू द्वीप में हुआ था. वे यूनान के प्रिंस एंड्रयू और बैटनबर्ग की प्रिंसेस एलिस के सब से छोटे और इकलौते बेटे थे. इस तरह जन्म से फिलिप का संबंध ग्रीक और डेनिश शाही परिवारों से था. लेकिन एक साल बाद ही वहां तख्तापलट हुआ और पूरे परिवार को यूनान छोड़ कर इटली जाना पड़ा.

फ़िलिप का बचपन कुछ खास अच्छा नहीं बीता. बचपन में उन्होंने काफी कुछ खोया और दुख और निराशा का सामना किया. साल 1930 में नर्वस ब्रेकडाउन के कारण उन की माँ को एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र भेजना पड़ा. उन के पिता भी दूर हो गए क्योंकि उन्होंने फ्रांस की एक महिला के साथ बसने का फ़ैसला किया. ब्रिटेन में उन की मां के रिश्तेदारों ने उन की देखभाल की.

पढ़ाई के लिए उन का दाखिला गोर्डनस्टाउन के एक स्कॉटिश बोर्डिंग स्कूल में कराया गया. स्कूल के संस्थापक और हेडमास्टर का नाम कर्ट हैन था.
स्कूल में फ़िलिप ने मजबूत इंसान के तौर पर जीवन जीना सीखा. वे आत्मनिर्भर बने. सुबहसुबह उन्हें ठंड में उठना पड़ता और काफ़ी दूर तक दौड़ लगानी पड़ती. साल 1937 में फ़िलिप की चार बहनों में से एक, सेसिली की उन के जर्मन पति, सास और दो युवा बेटों के साथ एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई. वह उस समय गर्भवती थीं.

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जब प्यार के रंग में रंगने लगे फिलिप

जब फ़िलिप ने स्कूल छोड़ा तब ब्रिटेन और जर्मनी युद्ध की कगार पर थे. वह डार्टमाउथ में ब्रिटेन के रॉयल नेवल कॉलेज में शामिल हुए और एक शानदार कैडेट साबित हुए. जुलाई 1939 में जब किंग जॉर्ज VI अपनी आधिकारिक यात्रा पर वहां पहुंचे तब फिलिप को राजा की 2 बेटियों राजकुमारी एलिजाबेथ और मार्गरेट के मनोरंजन की जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने 13 साल की एलिजाबेथ को बहुत प्रभावित किया. एलिज़ाबेथ उन्हें काफी पसंद करने लगीं.

अक्टूबर 1942 में 21 साल की उम्र में वे रॉयल नेवी के सब से युवा लेफ्टिनेंट में से एक बन चुके थे. द्वितीय विश्व युद्ध में प्रिंस फिलिप ने रॉयल नौसेना में रहते हुए शानदार प्रदर्शन किया. लेकिन इस दौरान एलिजाबेथ और फिलिप पत्र के द्वारा एक दूसरे के संपर्क में रहते थे. उन के बीच दुनिया जहाँ की बातें होतीं. फिलिप के पत्रों में चाहतों के रंग शामिल थे. इसी बीच फिलिप और राजकुमारी की साथ में एक तस्वीर सामने आई. कुछ सहायकों को इस बाबत संदेह हुआ.

इस के बाद फिलिप ने अपनी होने वाली सास को अपना हाले दिल लिखा, ‘ मुझे यकीन है कि मैं उन सभी अच्छी चीजों के लायक नहीं हूं जो मेरे साथ हुई हैं. मैं युद्ध से बच कर निकला, मैं जीत का साक्षी बना. मुझे रुक कर ख़ुद को फिर से समझने का मौका मिला. मुझे पूरी तरह से प्यार में पड़ने का मौक़ा मिला, मुझे सब को अपना बनाने का भी मौक़ा मिला. यहां तक कि दुनिया की परेशानियां छोटी लगने लगी हैं.”

धीरे-धीरे यह खबर लोगों के बीच में फैलने लगी और किंग जॉर्ज ने अंत में फिलिप को उनकी बेटी से शादी करने की इजाजत दी. लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था, इसके लिए फिलिप को कुछ कदम उठाने थे. प्रिंस फिलिप जो कि अब तक ग्रीस और डेनमार्क के राजकुमार थे, अब ब्रिटेन के नागरिक बन गए. उन्हें आधिकारिक रूप से ‘चर्च ऑफ़ इंग्लैंड’ को ज्वाइन करना पड़ा. उन्हें अपनी सारी विदेशी उपाधियों को छोड़ना पड़ा. 20 नवंबर 1947 को 26 साल के प्रिंस फिलिप और 21 साल की एलिजाबेथ शादी के बंधन में बंध गए. शादी के बाद एलिजाबेथ द्वितीय के पति फिलिप को ‘ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग’ बना दिया गया.

साल 1952 में किंग जॉर्ज IV की मौत हो गई. इसी के साथ उन की पत्नी यानी एलिजाबेथ रानी बन गई थी. नई महारानी एलिज़ाबेथ को अपने साथ अपने पति की जरूरत थी. ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा यानी फिलिप को ‘क्वीन्स कंसर्ट’ कहा गया. अब उन की प्राथमिक जिम्मेदारी अपनी पत्नी की मदद करना था ताकि वह बेहतर तरीके से अपना काम कर सकें.

पत्नी रानी थी, लेकिन वे खुद राजा नहीं थे

राजारानी, प्रिंसप्रिंसेस जैसे शब्दों के जोड़े कहानियों या दूसरी जगहों पर हम अक्सर सुनते रहे हैं. लेकिन प्रिंस फिलिप के केस में ऐसा नहीं था. इन की पत्नी एलिजाबेथ द्वितीय तो ब्रिटेन की रानी थीं लेकिन फिलिप राजा नहीं थे बल्कि प्रिंस या राजकुमार थे. उन्हें राजा की उपाधि इसलिए नहीं दी गई क्योंकि ब्रिटेन में एक नियम के अनुसार अगर एक महिला किसी राजा से शादी करती है तो उसे क्वीन की उपाधि मिलती है लेकिन अगर एक पुरुष किसी रानी से शादी करता है तो उसे राजा की उपाधि नहीं मिलती. एक रानी के पति को ‘प्रिंस कंसर्ट (Consort) कहा जाता है.

यही वजह है कि 99 साल की उम्र तक भी वे प्रिंस ही बने रहे. वैसे प्रिंस कंसर्ट एक बहुत ही सम्मानित पद होता है लेकिन इस का कोई संवैधानिक रोल नहीं होता है. उन के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में कई विरोधाभास थे. वैसे तो सार्वजनिक जीवन में वे अपनी पत्नी से पीछे ही रहते थे लेकिन व्यक्तिगत जीवन में वह राजपरिवार के प्रमुख थे. इस के बावजूद कई ऐसे दस्तावेज थे जिन को देखने की अनुमति उन के बेटे प्रिंस चार्ल्स को तो थी लेकिन उन को नहीं थी. इसी वजह से उन्होंने एक बार कहा था- ‘संवैधानिक रूप से मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है.’

इस सब के बावजूद रानी और प्रिंस के बीच आपसी अंडरस्टैंडिंग और समझ इतनी ज्यादा थी कि 1960 के दशक में महारानी अपने भाषणों की शुरुआत , ‘मेरे पति और मैं …’, वाक्य से करती थीं. व्यंग्यकारों ने इस का मजाक उड़ाया तो उन्होंने इस का इस्तेमाल बंद कर दिया लेकिन वह भावना हमेशा कायम रही.

फ़िलिप ले कर आए बदलाव की बयार

समय के साथ फ़िलिप अपनी निर्धारित सीमित भूमिका में उद्देश्य खोजने के लिए संघर्ष करते रहे. जल्दी ही उन्होंने बकिंघम पैलेस के गलियारों में एक नई बयार लाने की कोशिश की.

प्रिंस फिलिप की सोच काफी अलग थी. जिंदगी को जीने का उन का अपना तरीका था. जिंदगी को सहज बनाने और सब को समान अधिकार देने की चाहत में वे राजघराने के तौरतरीकों में बदलाव लाने से भी नहीं चूके. बदलाव की शुरुआत करते हुए उन्होंने सब से पहले अनौपचारिक दावतों की शुरुआत की जहां रानी अलगअलग पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों से मिल सकें.

उन्होंने महल के नौकरों के बालों पर पाउडर लगाने को बंद करवाया. जब उन्हें पता चला कि राजमहल में राजघराने के लोगों के लिए अलग से रसोईघर की व्यवस्था है तो उन्होंने एक रसोईघर को बंद करवा दिया.

बकिंघम पैलेस में फ़िलिप ने इंटरकॉम लगवाया था ताकि नौकरों को अपनी पत्नियों को लिखित संदेश न भेजना पड़े. फिलिप अपना सामान खुद उठाते थे और अपने कमरे में एक इलेक्ट्रिक फ्राइंग पैन पर नाश्ता बनाते थे.

कुछ बदलाव उन्होंने अपनी निजी जिंदगी में भी लाए. उन्हें गैजेट का बहुत शौक था. क्लैरेंस हाउस में उन्होंने कई नई डिवाइसें लगवाई. इन में एक अलमारी भी शामिल थी जिस का बटन दबाने पर सूट निकलता था.

ड्यूक ने रॉयल फ़ैमिली नामक एक 90 मिनट की बीबीसी डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई जिसे 1969 में प्रसारित किया गया. इसे टीवी इतिहास में एक बड़ा पल माना जाता है. इस में रानी घोड़े को गाजर खिलाते हुए और टीवी देखते हुए दिखीं जबकि राजकुमारी ऐनी सॉसेज पकाती दिखीं.

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उन्होंने साहसी युवाओं के लिए ड्यूक आफ एडिनबरा पुरस्कार की शुरुआत की. इस के तहत 14-25 वर्ष की आयु के लोगों को समाजसेवा के लिए वालंटियर करने, शारीरिक गतिविधियां और कौशल सीखने, पर्वतारोहण या नौकायन जैसे अभियान का संचालन करने लिए पुरस्कार दिया जाता है.
यह पुरस्कार युवाओं में एक जोश भरता था.

गाड़ी चलाने और खेलकूद से उन्हें प्यार था. 1960 के दशक के मध्य में ब्रिटेन के शीर्ष चार पोलो खिलाड़ियों में वह भी एक थे. वह पर्यावरण बचाने की मुहिम से भी जुड़े रहे.

समझदार और प्यारे पिता की भूमिका

क्वीन और प्रिंस फ़िलिप के चार बच्चे हैं. प्रिंस चार्ल्स, जो 72 साल के हैं, 71 साल के प्रिंस एंड्रयू, 70 साल की प्रिंसेस ऐन और प्रिंस एडवर्ड जो 57 साल के हैं. प्रिंस फ़िलिप ने हमेशा अपने बच्चों को कर्तव्य और अनुशासन का पाठ पढ़ाया. लेकिन बच्चों से प्यार जाताना और उन का दिल रखना भी वे बखूबी जानते थे. सोने से पहले वे अपने बच्चों को बेड टाइम स्टोरी सुनाते थे या फिर अपने उन्हें रुडयार्ड किपलिंग की कहानियां पढ़ कर सुनाते थे. प्रिंस फ़िलिप ने अपनी नजरों के सामने अपने आठ पोतेपोतियों को बड़े होते देखा और दस परपोतेपरपोतियों को जन्म लेते देखा.

उन्होंने कई दफा दूसरों पर ऐसी टिप्पणियां कीं जिस से उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा मगर उन के समर्थक इसे हंसीमजाक का नाम देते थे.

साल 1986 में उन्होंने चीन में ब्रिटिश छात्रों के एक समूह से कहा था, ‘अगर आप यहां अधिक समय तक रहेंगे हैं तो आप सभी की आंखें छोटी हो जाएंगी ‘. इस बात पर काफी बवाल मचा था.
1961 में एक बार उन्होंने कहा था, ‘ ब्रिटिश औरतों को खाना बनाना नहीं आता. ‘
1965 में इथियोपिआ की आर्ट देखते हुए उन्होंने कहा था, ‘मेरी बेटी स्कूल में इस से बढ़िया पेंटिंग कर लेती है. ‘
1967 में गायक टॉम जोंस से कही गई यह बात भी विवादित रही थी जब उन्होंने कहा था, ‘तुम क्या पत्थरों से कुल्ला करते हो ? और इतना इतना बकवास गा कर भी इतने कामयाब कैसे हो गए?’
1986 में उन्होंने चीनियों पर कटाक्ष करते हुए एक गंभीर मगर काफी हद तक सही बात कही थी, ‘अगर किसी भी चीज़ की चार टांगें होंगी, पख होंगे , तैर सकता हो , तो ये चीनी उसे खा जाएंगे.’

प्रिंस फिलिप की जिंदगी चुनौतियों से भरपूर थी. महारानी ने एक बार कहा था कि प्रिंस फिलिप ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी तारीफ सुनना बहुत पसंद नहीं है लेकिन आसान शब्दों में कहूं तो इतने सालों से वे मेरी और मेरे परिवार की ताकत बने हुए हैं.

ब्रिटिश इतिहास में सब से लंबे समय तक काम करने वाले कंसर्ट के रूप में प्रिंस ने 22,191 कार्यक्रमों में भाग लिया था. जब वे 2017 में शाही कर्तव्यों से सेवानिवृत्त हुए तब 780 से अधिक संगठनों के संरक्षक, अध्यक्ष या सदस्य थे.

राष्ट्रमंडल देशों और राज्य के दौरे पर क्वीन के साथ उन्होंने 143 देशों का दौरा किया था जहां वह अपने धाराप्रवाह फ्रेंच और जर्मन भाषा का इस्तेमाल करते थे.

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59 की उम्र में भी इतनी फिट और स्टाइलिश हैं जया प्रदा, यंग एक्ट्रेसेस को देती हैं मात

सोनी टीवी के पौपुलर सिंगिंग रिएलिटी शो ‘इंडियन आइडल 12’ (Indian Idol 12) इन दिनों सुर्खियों में है. शो के कंटेस्टेंट और जजेस के अलावा दूसरे सेलेब्स गेस्ट बनकर शो में चार चांद लगाने आते हैं. वहीं जल्द ही शो के अपकमिंग स्पेशल एपिसोड में एक्ट्रेस जयाप्रदा नजर आने वाली हैं. हालांकि उनकी एंट्री से ज्यादा इन दिनों सोशलमीडिया पर उनका लुक छाया हुआ है. 59 साल की उम्र में भी जयाप्रदा इतनी फिट और स्टाइलिश हैं कि फैंस उनकी तारीफें करते नहीं थक रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनके स्टाइल की झलक…

 ‘इंडियन आइडल 12’ के सेट पर पर धमाकेदार एंट्री

‘इंडियन आइडल 12’ के सेट पर इस हफ्ते बॉलीवुड की वेटरेन एक्ट्रेस जयाप्रदा आने वाली हैं, जिनकी एंट्री शो में धमाकेदार होती हुई नजर आएगी. जयाप्रदा ने जैसे ही ‘इंडियन आइडल 12’ के सेट पर एंट्री मारी, होस्ट जय भानुशाली ने उनका हाथ लिया और उन्हें मेन स्टेज पर लाते हुए दिखेंगे.

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जयाप्रदा का स्टाइल होगा कमाल

1970 से लेकर 1990 तक अपनी एक्टिंग से बौलीवुड में जगह बनाने वाली एक्ट्रेस जयाप्रदा ‘इंडियन आइडल 12’ (Indian Idol 12) के सेट पर स्टाइलिश अंदाज में नजर आईं. पर्पल कलर  के हैवी एम्ब्रायडरी वाले सूट में जयाप्रदा यंग एक्ट्रेसेस को फैशन के मामले में पछाड़ते हुए नजर आ रही थीं.

ब्लैक लौंग ड्रेस में भी था कमाल लुक

 

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इससे पहले भी सुपर डांसर के सेट पर आ चुकी एक्ट्रेस जया प्रदा ब्लैक ड्रैस में नजर आईं थीं, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत और स्टाइलिश लग रहा था.

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हर अंदाज है अलग

 

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अक्सर इंडियन लुक में नजर आने वाली जयाप्रदा का हर लुक बेहद खूबसूरत होता है. साड़ी हो या सूट और या हो ड्रेस हर लुक में जयाप्रदा बेहद खूबसूरत लगती है.

लहंगे में लगती हैं कमाल

 

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त्योहारों में ट्रैडिशनल लुक में नजर आने वाली जया प्रदा लहंगे में भी बेहद खूबसूरत लगती हैं. ऐसे लुक आप भी ट्राय कर सकती हैं.

जानें कोरोनावायरस का म्यूटेशन और उसके तेजी से फैलने की क्या है वजह 

कोरोना के लगातार बढ़ते ग्राफ को देखकर अभी किसी भी देश या राज्य के लिए यह कितने दिनों तक चलेगा, अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वायरस म्यूटेट कर रहा है और पिछले साल से इस साल बहुत जल्दी एक दूसरे को अपनी चपेट में ले रहा है. ऐसे में हॉस्पिटल से लेकर शमशान गृह हर जगह लोग परेशानी का सामना कर रहे है, लेकिन म्युटेशन की वजह क्या है, कितने दिन तक ये लहर चलेगी आदि न जाने कितने ही प्रश्नों के उत्तर की खोज में साइंटिस्ट दिन-रात लगे है. जल्दी-जल्दी में निकाले गए वैक्सीन अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों के साथ भारत ने भी 16 जनवरी से लगाना शुरू कर दिया है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि सभी देशवासियों को वैक्सीन लग जाने के बाद कोरोना वायरस से कुछ हद तक खतरा टल जाएगा और जिंदगी फिर से पटरी पर लौट पाएगी, लेकिन कुछ लोग हमारे देश में पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी वैक्सीन लगाना नहीं चाहते. साथ ही कोरोना गाइडलाइन्स को सही पालन न करने की वजह से आज पूरा देश कोविड 19 की चपेट में आ चुका है. 

  • इस बारें में पूणे के बी जे मेडिकल कॉलेज क्लिनिकल ट्रायल यूनिट के वायरोलोजिस्ट प्रसाद देशपांडे कहते है कि इस समय कोरोना संक्रमण का अचानक बढ़ जाने की वजह कई है,  अभी स्ट्रेन थोडा अलग है, जिसे म्युटेशन कहा जाता है. साथ ही ये बहुत जल्दी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है. कुछ दिनों पहले सिवियरिटी कम हो गई थी, लेकिन ये फिर से बढ़ने लगी है. पिछले साल एक व्यक्ति के होम क्वारेंटिन होने पर बाकी लोगों को संक्रमण नहीं होता था, लेकिन अब एक व्यक्ति संक्रमित होने से पूरे परिवार को संक्रमण हो रहा है.
  • रिलेक्सेशन होने की वजह से महाराष्ट्र में ग्राम पंचायत का चुनाव के दौरान लोगों का मुवेमेंट बहुत अधिक रहा. इसका असर अब दिख रहा है. इसके अलावा पहले जहाँ ये संक्रमण था, अब वहां कम है, जैसे पहले बिल्डिंग्स में कम थे, अब बिल्डिंग्स में अधिक है और चाल, झुग्गीवासियों में संक्रमण कम हो रहा है. खासकर महाराष्ट्र के गांव में जहाँ चुनाव हुए है, लोग वहां से शहरों में आये है, वहां भी कोरोना पॉजिटिव की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. 
  • इसके अलावा दिसम्बर और जनवरी के महीने में कोरोना सक्रमण में कमी और वैक्सीन आ जाने की वजह से लोग बेपरवाह अधिक हुए, उन्होंने वैक्सीन लिया और आज़ाद घूमने लगे, मास्क पहनना छोड़ दिया, शहर से बाहर घूमने जाने लगे, इससे कोरोना संक्रमण में अचानक बहुत तेजी आ गयी है.  

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है जरुरी गाइडलाइन्स का पालन  

लोगों को ये समझना पड़ेगा कि वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद भी कोरोना संक्रमण हो सकता है, लेकिन उसकी तीव्रता कम होगी और वह व्यक्ति अपने आस-पास के लोगों को संक्रमित कर सकता है. हालाँकि अभी वैक्सीन 45+ साल से अधिक व्यक्ति को लगाया जा रहा है, जबकि कम उम्र के यूथ और बच्चों में भी कोरोना संक्रमण इस बार अधिक हो रहा है, जो पहले नहीं था. वायरोलोजिस्ट प्रसाद का आगे कहना है कि अधिकतर यूथ बाहर जाते है. इससे वे संक्रमित होकर पूरे परिवार और आस-पास के लोगों में संक्रमण फैला देते है. बच्चों में फैलने की वजह यह है कि लोग बच्चों को आसानी से गोद में उठाकर प्यार करते है ,बच्चे समूह में बिना मास्क के खेलते है, कई बार माता-पिता वायरस से संक्रमित होने पर बच्चे को दादा-दादी या नाना-नानी के पास छोड़ देते है. बच्चों में इन्फेक्शन जल्दी पता नहीं चलता, क्योंकि वायरस के लक्षण उनमे पहले बहुत कम होते है और यही बच्चे संक्रमित होकर बुजुर्गों में इन्फेक्शन फैला देते है. बच्चे भी इस बार वायरस फैला रहे है. 

वैक्सीन है जरुरी 

लगातार बढ़ते हुए केसेज और मृत्यु को देखते हुए वैक्सीन अभी लगाना बहुत जरुरी है, इससे इन्फेक्शन का घातक होना कम हो जायेगा और अस्पतालो में जो बेड या ओक्सिजन की कमी दिख रही है, वह ठीक हो सकेगा. लोग घर पर रहकर ही संक्रमण मुक्त हो जायेंगे. संक्रमण के चैन को तोडना बहुत जरुरी है. आंशिक रूप से लॉकडाउन भी ठीक नहीं, क्योंकि इसकी वजह से पूणे में लोग पैनिक होकर मार्केट में अधिक से अधिक खरीदारी कर रहे है, जिससे भीड़ बढ़ रही है, जिसका असर 10 दिन बाद दिखेगा. ऑटो रिक्शा पर पहले 3 लोग जाते थे अब 5 लोग जाने लगे है. लोगों के पास कोई आप्शन नहीं है, क्योंकि बसें बंद है और काम पर जाना है. इससे पूणे में संक्रमितों की संख्या घटने के वजाय अधिक बढ़ गयी.   

 म्युटेशन है स्वाभाविक 

वायरस का म्युटेशन होना स्वाभाविक है, पर इस वायरस का म्युटेंट रेट अधिक है और लोगों में जल्दी-जल्दी फ़ैल रहा है, जिससे मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से चरमराती हुई दिख रही है. असल में वायरस खुद में बदलाव करता रहता है, ऐसे में जो बदलाव उसके लिए अच्छा होता है, उसे वह आगे बढ़ाता है, मसलन कुछ म्युटेशन के वायरस को फ़ैलाने में आसान होता है. म्युटेशन रेट सालों तक चलता है, लेकिन लोगों की इम्युनिटी बढ़ने से वायरस काबू में आ जाता है और रेगुलर वायरस की तरह सेटल हो जायेगा और इस तरह से पेंड़ेमिक, एंडेमिक हो जायेगा. स्वाइन फ्लू को भी सेट होने में 4 से 5 साल लगे थे. अनुमान है इसका भी हो जायेगा. नया वायरस है, इसलिए कब ख़त्म होगा बताना संभव नहीं. वैक्सीनेशन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और बार-बार हाथ धोना यही इससे बचने का उपाय है.

रिसर्च लैब की है कमी  

भारत में म्यूटेंट के पता लगाने के रिसर्च बाकी देशों की तुलना में कम होता है, जबकि विदेशों में इसका पता जल्दी लगा लिया जाता है, इस बारें में प्रसाद कहते है कि हमारे यहाँ बहुत कम लैब इसका अध्ययन करती है. अभी कुछ और इसमें शामिल हुई है, पर जितने है उसमें से अधिकतर कोविड पॉजिटिव और निगेटिव का लोड है. अधिक लोड से सिस्टम कोलेप्स हो गया. सैम्पल्स लेकर यहाँ भी म्युटेशन पर काम हो रहा है और हर रोज नए-नए सैम्पल्स आ रहे है और बहुत हद तक पता चला है कि महाराष्ट्र में स्ट्रेन थोडा अलग है, लेकिन कन्फर्म करने में समय लगता है. लन्दन की तरह यहाँ फ़ास्ट नहीं हो पा रहा है, क्योंकि यहाँ फैसिलिटी की कमी है. सबसे अधिक पूरे देश में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को सम्हालने, नए डॉक्टर्स को ट्रेनिंग देने, ऑक्सीजन की व्यवस्था करवाने, बड़े-बड़े कोविड हॉस्पिटल बनाने, छोटे-छोटे गांव में लैब्स बनाने और जल्दी वायरस को डिटेक्ट करने के लैब  इन सभी विषयों पर सरकार को ध्यान देने की जरुरत है.

करें सही वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन

वैक्सीन की कमी होने के बारें में प्रसाद का कहना है कि लोगों की लाइन से कम वैक्सीन मिल रही है, जबकि सभी को वैक्सीनेशन की जरुरत है. इसे तीव्र करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन चैन को सही करना जरुरी है, ताकि सभी को वायरस की वैक्सीन मिले. पालिसी एक तरह की रहने की जरुरत है. लोग दंड देने के बाद भी मास्क नहीं पहनते. पिछले साल जिन लोगों को सरकार ने इमरजेंसी में लोगों को ट्रेनिंग दिया और वे अच्छा काम करने लगे थे, कोविड 19 के कम होने के पश्चात् उन्होंने उन्हें निकाल दिया है. अब कई बड़ी कंपनियां और एनजीओ इसमें सहायता कर रही है.

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जल्दी फैलने की वजह 

भारत में संक्रमितो की अधिक संख्या बढ़ने की वजह के बारें में  मीरा रोड वोकहार्ड हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर मेडिसिन एंड आई सी यू डायरेक्टर डॉ. बिपिन जीभकाटे कहते है कि भारत में वायरोलोजिस्ट के अध्ययन के अनुसार वायरस के कई म्यूटेंट मिले है, पर वे अधिक खतरनाक नहीं है. म्यूटेंट संक्रमण को अधिक बढ़ाता है. फैलता जल्दी है, लेकिन सिवेरिटी अधीन नहीं दिखाई पड़ रही है, लेकिन फ़ैल बहुत जल्दी रहा है. असल में वायरस खुद से रिप्रोडयूस नहीं हो पाते, होस्ट के कोशिका के डी एनए पर डिपेंड होते है. सेल में जाकर उनके डीएनए या आरएनए में एटैच होकर उसके प्रोटीन को लेकर रेप्लिकेट करते है और उनका ग्रोथ होता है. अपने आप वायरस नहीं बन सकता. रेप्लिकेट भी होस्ट के सेल में होता है, उसके आसपास जो प्रोटीन होते है, वह भी होस्ट के सेल में ही बनते है. ये बहुत जल्दी करते रहते है, उसकी वजह से कुछ डीएनए की शक्ति बदलती रहती है, इसे ही म्यूटेशन कहा जाता है. ये बार-बार बदलता रहता है. कुछ घातक तो कुछ सामान्य होते है. वैक्सीनेशन से वायरस कम होता है, लेकिन बार-बार म्युटेशन की वजह से स्ट्रक्चर बदल जाने पर वैक्सीन काम नहीं करती, लेकिन वह बहुत कम होता है. ये वैक्सीन काम करनी चाहिए.

सही करना है मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर  

यहाँ लैब्स कम है, लेकिन वायरस की स्टडी होती है, कोविड पॉजिटिव में से कुछ सैमपल्स  लैब्स में भेजा जाता है और वहां पर स्टडी कर म्यूटेशन के बारें में पता लगाती है. यह स्टडी  डॉक्टर्स के लिए काम की नहीं होती. डॉक्टर्स रोगी की परेशानी और लक्षण के आधार पर इलाज करते है. संक्रमण बढ़ने की वजह, सबकुछ खोल देना है, जिससे लोग बहुत दिनों बाद घूमने निकले, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया, इससे वायरस को फैलने का मौका मिल गया. पहली बार कम लोग इस वायरस के शिकार हुए थे, लेकिन इस बार जिन्हें पहले नहीं हुआ था, उन्हें भी होने लगा है. वैक्सीन लेने से को-मोर्बिटी वाले रोगी को अधिक फायदा होगा, क्योंकि वे कोविड होने के बाद भी घातक नहीं होगी. इसलिए सभी को वैक्सीन की दोनों डोज लेने की जरुरत है. मेरा सबसे कहना है कि सरकार की गाइडलाइन्स को फोलो करते हुए जरुरत के अनुसार बाहर निकले और कोरोना संक्रमण से खुद को बचाने की हर संभव कोशिश करें. 

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Anupamaa के सेट पर ‘काव्या’ संग मस्ती करते नजर आए ‘वनराज’, Photos Viral

बीते दिनों सीरियल अनुपमा के सेट पर कोरोना का कहर देखने को मिला था. वहीं इसके शिकार अनुपमा और वनराज यानी रुपाली गांगुली और सुधांशु पांडे हो गए थे. हालांकि अब दोनों कोरोना को मात देकर सीरियल के सेट पर वापस आ गए हैं. वहीं सेट पर एंट्री होते ही दोनों सितारे अलग-अलग तरह से धमाल मचाते नजर आए. आइए आपको दिखाते हैं कैसे मस्ती करते नजर आए अनुपमा और वनराज…

वनराज संग मस्ती करती दिखीं काव्या

सेट पर आते ही वनराज यानी सुधांशू पांडे, काव्या यानी मदालसा शर्मा के साथ खूब धमाल मचाते नजर आए, जिसकी फोटोज खुद मदालसा शर्मा ने अपने फैंस के लिए सोशलमीडिया पर शेयर की हैं. फोटोज की बात करें तो ‘अनुपमा’ के सेट पर सुधांशु पांडे की एंट्री से मदालसा शर्मा की खुशी का कोई भी ठिकाना नहीं था. इस बीच वह सुधांशु के साथ फोटोज क्लिक करवाती नजर आईं.

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 ‘अनुपमा’ ने कुछ यूं की सेट पर एंट्री

 

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एक तरफ जहां सुधांशू पांडे मदालसा शर्मा संग फोटोज क्लिक करवाते नजर आए तो वहीं अनुपमा यानी रुपाली गांगुली सेट पर कुत्ते का मेकअप करती नजर आईं. दरअसल, सेट पर एक वीडियो देखने को मिला, जिसमें रूपाली गांगुली डॉगी का मेकअप करती नजर आ रही हैं. रुपाली गांगुली की ये वीडियो फैंस के बीच वायरल होने के बाद फैंस को उनका ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

 

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सीरियल में आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल के करेंट ट्रेक की बात करें तो वनराज और अनुपमा की शाह हाउस में एंट्री हो चुकी है. हालांकि घरवालों को काव्या के कारण दोनों के तीन दिन में होने वाले तलाक के बारे में भी पता चल चुका है. इस बीच काव्या अपनी शादी की तैयारियां करती नजर आ रही हैं. वहीं आने वाले एपिसोड में काव्या, पाखी पर हाथ उठाती हुई भी नजर आएगी. हालांकि अनुपमा उसे रोक लेगी. इस बीच सभी को पता चलेगा की वनराज तलाक से पहले घर छोड़ कर जा चुका है, जिसके बाद सभी उसे ढूंढने की कोशिश करते नजर आएंगे.

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नायरा-कार्तिक की क्यूट Akshu बेबी को देख कन्फ्यूज हुए फैंस, पूछ रहे हैं ये सवाल

स्टार प्लस का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में इन दिनों नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं. वहीं शो के सितारे भी फैंस के दिल में अपनी जगह बनाते जा रहे हैं. इसी बीच सीरियल की सबसे छोटी कलाकार इन दिनों सोशलमीडिया पर छाया हुआ है. दरअसल, सीरियल में नायरा और कार्तिक की बेटी अक्षरा का रोल निभाने वाले चाइल्ड आर्टिस्ट कायरव वघेला (Kairav Waghela) फैंस के बीच चर्चा में हैं. वहीं उनकी फोटोज फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं अक्षरा उर्फ कायरव वाघेला की वायरल फोटोज…

नायरा कार्तिक की जान हैं अक्षरा

 

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सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अक्षरा के रोल में कायरव वघेला की एंट्री से जहां फैंस काफी खुश हैं तो वहीं नायरा-कार्तिक यानी शिवांगी जोशी और मोहसिन खान भी कायरव पर अपनी जान छिड़कते हैं. वह कायरव के साथ शूटिंग से वक्त मिलने पर अक्सर वक्त बिताते नजर आते हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो जाती हैं.

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सेट से वायरल होती हैं कायरव की फोटोज

 

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अक्षरा यानी कायरव वघेला की फोटोज इन दिनों सोशल मीडिया पर धमाल मचा रही हैं. सोशलमीडिया सेंसेशन बन चुके कायरव की हर फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. हालांकि हर कोई उन्हें लड़की ही समझता है. लेकिन असल में वो बेबी गर्ल नहीं बल्कि बेबी बॉय हैं.

 

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सीरियल की बढ़ी TRP

सीरियल में आने वाले नए-नए ट्विस्ट के साथ-साथ अक्षरा यानी कायरव वघेला की एंट्री के कारण शो की टीआरपी इन दिनों बहुत बढ़ रही हैं, जिसका एक कारण कायरव वाघेला को भी माना जा सकता है.

बता दें, शो में बीते दिनों करण कुद्रा की एंट्री भी हुई है, जिसके बाद कार्तिक और सीरत की जिंदगी में उथल-पुथल देखने को मिल रही है. वहीं खबरें  हैं कि जल्द ही सीरियल में नायरा की एंट्री भी होगी. हालांकि कहा जा रहा है कि नायरा की याद्दाश्त जा चुकी होगी.

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शादी: दो दिलों का खेल या दो दिलों का बंधन?

शादी के पहले हम हज़ारों सपने देखते हैं कि हम अपनी शादी में यह करेंगे वह करेंगे, सारी रस्मे निभाएंगे. हम बहुत खुश होते हैं. लेकिन क्या होता है शादी के बाद? हमारे अंदर ईगो आ जाता है क्यों?

क्या ईगो हमारे प्यार से ज्यादा जरूरी है हमारे आत्म सम्मान से ज्यादा जरूरी है?

अहंवाद में आकर शादी के जोड़े अपनी शादी को बर्बाद कर देते हैं. आत्म सम्मान और अहंकार के बीच एक ऐसी रेखा है जिसकी दूर दूर तक कोई समानता नहीं है.

कुछ लोग तो आत्म सम्मान और अहंकार में फर्क ही नहीं समझते . दोनों के बीच कोई समानता नहीं है यह दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. आत्मसम्मान का मतलब खुद का सम्मान करना और ईगो का मतलब दूसरों का अनादर करना .

अहंवाद एक ऐसी समस्या है जिससे ना जाने कितने रिश्ते टूटते और बिखरते हैं.

इस अहंकार की वजह से ही रिश्तों की खनक नहीं गूंजती. अपने हो पार्टनर के सामने किसी और की तारीफ करना ये डिवोर्स का बड़ा कारण हैं.

अपनी सीमा को मत लांघे , क्यूंकि एक सीमा से कोई भी चीज उपयुक्त नहीं है.

कैसे इगो को खत्म करें :

अगर आपको अपने पार्टनर की कोई चीज अच्छी लगती है तो उसकी तारीफ करने से कभी नहीं हिचकिचाएं. ऐसा करने से आपके बीच में प्यार बढ़ेगा और दूरियां कम होंगी.

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हम सब जानते हैं कि दो पार्टनर एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं लेकिन कहने से हिचकिचाते हैं. ये हिचक आपके लिए अनावश्यक समस्याओं को जन्म दे सकती है.

बोलना बहुत जरूरी है.

अपने पार्टनर को कभी भी किसी के लिए ignore मत करें और किसी बाहर वाले के सामने सिर्फ अपनी तारीफ मत करो अपने पार्टनर की तारीफ भी करें. अगर ऐसा नहीं है तो यही तलाक का बहुत बड़ा कारण बन सकता है.

तारीफ करें

अपने आपको अपने पार्टनर के सामने सबसे अच्छा बताना तो यह करने की वजह है अगर आप उससे यह कहे कि तुम मेरी जिंदगी के सबसे लकी पर्सन हो तो यह आपके रिश्ते के लिए अच्छा होगा.

क्योंकि अहम इंसान का ना सिर्फ ईगो बनाता है बल्कि उसे दलदल में धकेल देता है जिससे हमारा रिश्ता टूटने में मिनट भी नहीं लगता.

एक दूसरे  को समझें

एक दूसरे की भावनाओं को समझें एक दूसरे की गलतियां एनालाइज करें और आपस में सुलझा लें. अगर किसी एक को कोई समस्या है तो वह अपने पार्टनर से शेयर करें खुद में मत उलझे रहे वरना वह समस्या और बढ़ जाएगी और आपके अलगाव की दूरियां और कम हो जाएंगी.

अगर आपके पास कोई फाइनेंशियल प्रॉब्लम आ भी जा जाए तो एक दूसरे पर चिल्लाने की बजाए एक दूसरे का साथ दें, उसका हल निकाले. क्योंकि अक्सर इंसान जब परेशान होता है तो वह अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और चिल्लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है. लेकिन यह हमारे रिश्ते पर भारी पड़ सकता है और हमारा रिश्ता टूट कर बिखर जाता है.

थोड़ा सा टाइम निकालें

कभी-कभी क्या होता है कि हमारे पार्टनर के पास टाइम नहीं होता है तो वही हमें बहुत तकलीफ देता है तो इस समस्या का भी हल निकले अगर अपने रिश्ते को बचाना चाहते हैं तो.

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अगर आप अपने काम में बिजी हैं तो थोड़ा सा टाइम निकालें ताकि अपने पार्टनर के साथ बैठकर कुछ बातें कर सके कुछ प्यार के पल बिता सकें इससे आपके पार्टनर को अच्छा फील होगा. अपने पार्टनर के साथ बैठे कुछ प्यार भरी बातें करें एक दूसरे को समझे. इससे आपके अंदर ही हो कब होगा और आपके बीच की दूरियां भी कम होंगी.

अगर आपका पार्टनर कोई नया काम करने जा रहा है तो उसे सराहें. उस को प्रोत्साहित करें. कभी भी हतोत्साहित मत करें . इससे आपका प्यार और बढ़ेगा आपके रिश्ते में चार चांद लगेंगे और उसका काम करने में ही मन लगेगा. क्योंकि क्या होता है ना कि जब हम को नया काम करने जाते हैं तो हमें अंदर से डर रहता है तो कुछ देर अपने पार्टनर के पास बैठे और इस बारे में सलाह करें.

कार डिटेलिंग सर्विस से करें कार की बेहतरीन सफाई

अभी तक जब भी हमारी कार बहुत अधिक गन्दी हो जाती है अथवा किसी लम्बी ट्रिप के बाद कार की साफ सफाई कराने के लिए हम उसे वाशिंग के लिए सर्विस सेंटर भेजते है ताकि कार की अच्छे से सफाई और धुलाई की जा सके. परन्तु अब कार की सामान्य धुलाई के स्थान कार डिटेलिंग सर्विस का प्रयोग किया जा रहा है जिसके अंतर्गत अनेकों टूल्स और नवीन तकनीक से कार के प्रत्येक हिस्से की  गहरी सफाई करके उसे खूब चमकाया जाता है जिससे वह एकदम नई सी प्रतीत होने लगती है.

क्या है कार डिटेलिंग सर्विस

सामान्य धुलाई में जहां कार के टायरों और बॉडी की ऊपरी तौर पर धुलाई करके अंदर से ड्राय सफाई की जाती है वहीं कार डिटेलिंग सर्विस में कार की वेक्यूमिंग, वैक्स, पॉलिशिंग, ब्रशिंग, डीप क्लीनिंग और परफ्यूमिंग की जाती है जिससे गाड़ी बहुत लंबे समय तक साफ सुथरी और वैक्टीरिया मुक्त रहती है.

क्या होती है कीमत

कार डिटेलिंग सर्विस में इंटीरियर, एक्सटीरियर, बॉडी पॉलिशिंग आदि की कुल कीमत लगभग 8 से 10 हजार के आसपास आती है जो सामान्य धुलाई की कीमत से कई गुना अधिक है. भोपाल में कार डिटेलिंग और सामान्य धुलाई उपलब्ध कराने वाले एक कार सर्विसिंग के मालिक चिंटू प्रसाद कहते हैं,”साल में एक बार कार डिटेलिंग सर्विस अवश्य करानी चाहिए इससे कार के सभी अंग दुरुस्त रहते हैं और कार की लाइफ काफी बढ़ जाती है.”

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क्या हैं फायदे

सामान्य धुलाई की अपेक्षा कार डिटेलिंग सर्विस थोड़ी महंगी तो अवश्य होती है परन्तु इसके फायदों के समक्ष इसकी कीमत कोई मायने नहीं रखती-

-सामान्य कार वाश के मुकाबले काफी लंबे समय तक आपको सुगन्धित, और साफ चमकती कार चलाने को मिलती है.

-चूंकि इस सर्विस में कार के अंदरूनी हिस्सों की भी धूल मिट्टी साफ की जाती है जो कई हफ्तों तक प्रभावशाली रहती है जिससे कार बहुत स्मूथ और हल्की चलती है.

-अक्सर रोज जिम जाने पर अथवा लम्बी ट्रिप के बाद कार पसीने और खाने पीने की वस्तुओं की गंध से भर उठती है. नियमित रूप से कार डिटेलिंग सर्विस करवाते रहने से कार में इस प्रकार की कोई भी दुर्गंध नहीं बस पाती.

-यदि आप कार का नियमित रूप से प्रयोग करते हैं तो आपके लिए कार का स्वस्थ वातावरण होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ठीक ढंग से कार की सफाई न होने की स्थिति में कार के कोनों में तमाम वैक्टीरिया, धूल और वायरस जमा हो जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है परन्तु कार डिटेलिंग से कार की डीप क्लीनिंग करके इन्हें बाहर कर दिया जाता है.

-कार डिटेलिंग सर्विस से आपकी कार एकदम नई सी चमकने लगती है जिससे उसकी उम्र बढ़ जाती है.

-नियमित रूप से कार डिटेलिंग सर्विस करवाते रहने से चूंकि कार अंदर बाहर से मेन्टेन रहती है जिससे उसकी रिसेल वेल्यू भी अच्छी हो जाती है और आपको बेचने में कोई परेशानी नहीं होती.

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-कोरोना के इस काल में तो कार डिटेलिंग सर्विस बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कार की डीप क्लीनिंग से ही अंदर निहित जीवाणु और गंदगी को बाहर किया जा सकता है.

यौन उत्पीड़न के खिलाफ उठाएं आवाज

हाल ही में दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं संपादक एम. जे. अकबर के आपराधिक मानहानि मुकदमे को खारिज करते हुए कहा कि जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार का संरक्षण नहीं किया जा सकता.फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रिया रमानी के द्वारा किया गया खुलासा दफ्तरों में औरतों के साथ होने वाले यौन शोषण को बाहर लाने में मददगार था.

कोर्ट ने अपने आदेश में साफ़ कहा कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी पंसद के किसी भी मंच पर अपनी शिकायत रखने का अधिकार है. इस तरह के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने को ले कर किसी महिला को दंडित नहीं किया जा सकता है. रमानी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया जा सका.

दरअसल रमानी ने 2018 में सोशल मीडिया पर चली ‘मी टू’ मुहिम के तहत अकबर के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे. अकबर ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था साथ ही उन आरोपों को ले कर रमानी के खिलाफ 15 अक्टूबर 2018 को शिकायत भी दायर की थी.

एक तरह से यह फैसला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कभी न कभी आवाज उठाने वाली सभी महिलाओं की जीत है. इस से महिलाओं का यह विश्वास बढ़ेगा कि भले ही कितना भी बड़ा रसूखदार क्यों न हो, उन्हें डरने की जरुरत नहीं क्योंकि कानून उन के साथ है.

कौन हैं प्रिया रमानी और अकबर

प्रिया रमानी मीडिया इंडस्ट्री में लंबे समय से हैं. उन्होंने इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस आदि समूहों के साथ काम किया है. वह अंतरराष्ट्रीय फैशन मैगजीन कॉस्मोपॉलिटन की संपादक और मिंट अखबार में फीचर एडिटर रही हैं.

एमजे अकबर दैनिक अखबार ‘द टेलीग्राफ’ और पत्रिका ‘संडे’ के संस्थापक संपादक रहे हैं. मीडिया इंडस्ट्री में उन्हें एक बड़ी हस्ती के रूप में जाना जाता था. अकबर 1989 में राजनीति में आए. उन्होंने पहले कांग्रेसपार्टी ज्वाइन की और सांसद बने थे. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वे बीजेपी में शामिल हो गए. मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य अकबर मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे.

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क्या है मामला

कहानी 2017 में शुरू होती है जब हॉलीवुड के फेमस प्रोड्यूसर हार्वी वाइनस्टीन के ऊपर कई लड़कियों और औरतों ने यौन शोषण के आरोप लगाए. इन में कई नामी एक्ट्रेस भी शामिल थीं. यहीं से मीटू मूवमेंट की शुरुआत हुई. अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों की औरतें सामने आईं और अपने साथ हुए यौन शोषण पर खुल कर अपनी बात रखी.

इसी दौरान इंडियन जर्नलिस्ट प्रिया रमानी ने भी इस मसले पर वोग मैगज़ीन के लिए एक आर्टिकल लिखा. टाइटल था- ‘दुनिया के सभी हार्वी वाइनस्टीन के लिए’. इस में रमानी ने अपने करियर के पहले पुरुष बॉस के साथ हुई फर्स्ट मीटिंग का ज़िक्र किया. यहां प्रिया ने अपने बॉस का नाम लिए बिना लिखा-

‘ डियर मेल बॉस, आप ने मुझे वर्कप्लेस का पहला सबक सिखाया. मैं तब 23 साल की थी और आप 43 साल के. आप मेरे प्रोफेशनल हीरोज में से एक थे. मैं आप को पढ़ते हुए बड़ी हुई थी. सभी कहते थे कि आप ने देश की पत्रकारिता को बदल दिया है इसलिए मैं आप की टीम का हिस्सा बनना चाहती थी. इसलिए हम ने एक समय सेट किया ताकि आप साउथ मुंबई के एक होटल में मेरा इंटरव्यू कर सकें. मुझे शाम सात बजे बुलाया गया, लेकिन इस बात से मैं परेशान नहीं हुई. मैं जानती थी कि आप बिज़ी एडिटर हैं. जब मैं होटल की लॉबी में पहुंची तब मैं ने आप को कॉल किया. आप ने ऊपर आने को कहा. रूम में डेटिंग जैसा माहौल ज्यादा था, इंटरव्यू का कम. आप ने अपने मिनी बार से मुझे एक ड्रिंक ऑफर की. मैं ने मना किया तो आप ने वोडका पी. मैं और आप इंटरव्यू के लिए आमने-सामने थे. बीच में एक छोटा टेबल था. वहां से मुंबई का मरीन ड्राइव दिख रहा था. आप ने कहा कितना रोमांटिक लग रहा है. आप ने हिंदी फिल्म का पुराना गाना सुनाया और मेरी रुचि पूछने लगे. रात बढ़ती जा रही थी. मुझे घबराहट हो रही थी. कमरे में बिस्तर भी था. आप ने कहा यहां आ जाओ. मैं ने कहा नहीं मैं कुर्सी पर ही ठीक हूं. उस रात मैं किसी तरह बच गई. आप ने

मुझे काम दे दिया. सालों बाद भी आप नहीं बदले. आप के यहां जो भी नई लड़की काम करने आती थी आप उस पर अपना अधिकार समझते थे. आप भद्दे फोन कॉल और मैसेज करने में एक्सपर्ट हैं. ‘

इस आर्टिकल को ले कर 2017 में भारत में कोई हंगामा नहीं हुआ क्योंकि इस में किसी का नाम नहीं था. फिर 2018 के आखिरी महीनों में जब हमारे देश में भी मीटू मूवमेंट शुरू हुआ तो लड़कियों ने अपने साथ हुए यौन शोषण के अनुभवों को सामने रखना शुरू किया. जानेमाने लोगों पर भी संगीन आरोप लगे.
तब प्रिया रमानी सामने आईं और बताया कि 2017 में जिस बॉस की बात वह कर रही थीं, वे MJ अकबर थे. 1994 में जब वह एशियन एज अखबार में काम कर रही थीं तब अकबर उस अखबार के एडिटर थे.
देखते ही देखते अकबर के खिलाफ बोलती हुई और महिलाएं दिखने लगीं. धीरेधीरे यह संख्या एक दर्जन से भी ज्यादा हो गई. ज्यादातर ने यौन शोषण की बात की.

जब ये आरोप लग रहे थे तब अकबर राज्यसभा सांसद और विदेश राज्य मंत्री भी थे. इतने आरोपों के बाद एमजे अकबर ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. 15 अक्टूबर 2018 के दिन उन्होंने प्रिया रमानी के खिलाफ क्रिमिनल डिफेमेशन केस यानी मानहानि का केस भी फाइल कर दिया. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में प्रिया रमानी के खिलाफ IPC की धारा 499 और 500 यानी डेफेमेशन और पनिशमेंट फॉर डिफेमेशन के तहत केस फाइल हुआ. 41-पृष्ठ के मानहानि के मुकदमे में अकबर ने आरोप लगाया कि प्रिया रमानी के ट्वीट और समाचार पत्र के लेख ने उन की 40 साल से अधिक की प्रतिष्ठा और सद्भावना को खराब किया है जिस की वजह से उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. अकबर की तरफ से यह दबाव भी बनाया गया था कि मामले को रफादफा कर लिया जाए पर प्रिया ने यह नहीं स्वीकारा.

आखिर में प्रिया के ऊपर लगे आरोप गलत साबित हुए. प्रिया ने बिना डरे, बिना थके एक ऐसे आदमी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जो उस के मुकाबले बहुत ज्यादा ताकतवर था.

यौन उत्पीड़न या यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं अक्सर बंद कमरे में अंजाम दी जाती हैं. कई बार पीड़िता यह समझ भी नहीं पाती कि उस के साथ गलत हो रहा है. खासकर जब सामने वाला शख्स समाज का एक सम्मानित व्यक्ति हो. बाद में जब लड़की को अहसास होता है कि कैसे उस की गरिमा पर आघात हुआ है तो भी कभी शर्म की वजह से और कभी सामने वाले की प्रतिष्ठा के आगे वह खुद को कमजोर महसूस करती है और कुछ बोल नहीं पाती. ऐसे में उस का आत्मविश्वास टूटने लगता है. वह खुद से ही नजरें मिलाने से कतराने लगती है.

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जिंदगी में औरतों को अक्सर ऐसे लोगों का सामना करना पड़ता है जो समाज में भले ही कितने भी सम्मानित व्यक्ति क्यों न हों मगर औरतों के प्रति उन की सोच बहुत ही छोटी और संकुचित होती है. वे

औरतों को महज एक शरीर के रूप में देखते हैं जिस के जरिये अपनी अपूर्ण इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति कर सकें. हमें यह समझना होगा कि समाज में अच्छी पहचान रखने वाला पुरुष भी सेक्शुअल अब्यूजर हो सकता है और एक पुरुष की प्रतिष्ठा बचाने के लिए एक महिला के आत्मसम्मान की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती.

हमेशा होता है भेदभाव

ग्लास सीलिंग वाले हमारे समाज में औरतों के साथ हमेशा ही भेदभाव किया जाता है और उस के रास्ते में मुश्किलें खड़ी की जाती हैं. औरतें कितनी भी योग्यता दिखा लें मगर पुरुष उन्हें अपने हाथ की कठपुतली ही बना कर रखना
चाहते हैं. महिलाएं अपने साथ हो रहे अत्याचारों के मसले पर सिर्फ एक सामान्य वजह से नहीं बोलती हैं और वह है शर्म. वह जानती हैं कि यदि उन्होंने मुंह खोला तो समाज उसे ही कसूरवार समझेगा. खासकर जब सामने वाला बंदा बड़ा रसूखदार हो तो फिर उस की क्या हैसियत. यही वजह है कि कई बार पीड़िता यौन उत्पीड़न के बारे में वर्षों तक एक भी शब्द नहीं बोलती और उस शर्म के साथ जीती रहती है.

बचपन से दी जाती है शिक्षा

हमारे पुरुष प्रधान समाज में बचपन से बच्चों को यही सिखाया जाता है कि लड़कियों को पापा, भाई या पति की हर बात सर झुका कर मान लेनी चाहिए. यानी घर के पुरुष सदस्य ही मालिक हैं और औरतों का काम उन का ख्याल रखना और हुक्म मानना है. यदि लड़कियां किसी बात पर अपने भाई से लड़ने लगती हैं तो मां उसे अलग ले जा कर यह जरूर समझाती है कि बेटा तुझे तो पराए घर जाना है. नए घर में एडजस्ट होना है. इसलिए तुझे दब कर, झुक कर और अपने सम्मान को ताक पर रख कर ही जीना सीखना होगा ताकि कल को दूसरे घर जा कर तू हमारी नाक न कटा आना. जो भाई कहता है वैसा ही कर.

इसी तरह ससुराल जाने के बाद भी घर की महिलाएं नई बहू को पति से दबना और सहनशील बनना ही सिखाती हैं. जबकि लड़के चाहे जितना भी गलत कर लें उन की गलतियां इग्नोर कर दी जाती हैं. उन्हें शह दिया जाता है कि वह घर कीस्त्री के साथ नौकरों जैसा व्यवहार कर सकते हैं. नतीजा यह होता है कि समय के साथ पुरुषों की सोच तानाशाह वाली होने लगती है. वे स्त्रियों को अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी समझने लगते हैं. घर में विकसित हुई यह सोच और नजरिया
धीरेधीरे उन के सामाजिक व्यवहार में परिलक्षित होने लगता है. उन के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है. पुरुषों की नजरों में स्त्रियां वह खिलौना बन जाती है जिन्हें जब जैसे चाहो अपने इशारों पर नचाया जा सके. उन की सोच और इच्छा को नजरअंदाज कर अपनी अहम की तुष्टि की जा सके.

आजकल औरतें बड़ी संख्या में ऑफिस में पुरुषों के साथ काम करती हैं. ऐसे में कई बार उन्हें कार्यस्थल पर पुरुषों की ज्यादती या यौन दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है;

क्या है कार्यस्थल पर सैक्सुअल हैरेसमेंट

कई बार ऑफिस में पुरुष बॉस या सहकर्मी द्वारा महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जो महिलाओं को बहुत असहज कर सकता है. ऐसे में उन्हें नौकरी छोड़ने पर भी मजबूर होना पड़ता है. ये हरकतें जानबूझ कर भी की जाती हैं और कई बार गैर-इरादतन भी होती हैं. पुरुषों को लगता है कि औरत को बोलने या टोकने का हक़ नहीं. जबकि वे उन के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

मान लीजिए ऑफिस में कोई पुरुष कर्मचारी फाइल लेने या देने के दौरान अपनी महिला कुलीग का हाथ छू लेता है. महिला असहज महसूस करती है और आइंदा ऐसा न करने की ताकीद करती है. इस के बावजूद वह पुरुष इस तरह की हरकत करता रहता है तो यह व्यवहार यौन शोषण में शामिल होगा.

इस सन्दर्भ में क्रिमिनल लॉयर अनुजा कपूर कहती हैं कि यदि कोई पुरुष आप को गलत इंटेंशन के साथ हुए छुए. आप के ब्रेस्ट, हिप्स जैसी जगहों पर हाथ लगाए, कंधे पर हाथ रख कर आप को पकड़ना या जकड़ना चाहे, आप की इच्छा के विरुद्ध आप के हाथों को पकड़े, बहुत करीब आ कर खड़ा हो जाए, आप के स्पेस का आदर न करे, अपनी जुबान से कुछ ऐसा गलत कहे जिसे सुन कर आप कंफर्टेबल महसूस न करें, वह आप को यह कहे कि प्रमोशन चाहिए तो साथ सोना पड़ेगा या तुम मेरे लिए क्या कर सकती हो. ऐसी डिमांड रखे जिसे कोई भी भली लड़की पूरा करना नहीं चाहती, भले ही वह बॉस हो, कुलीग हो या फिर कोई जूनियर ही क्यों न हो. यौन शोषण जुबानी , शारीरिक या हाव भाव के द्वारा किया जा सकता है. यदि पुरुष आप की सहमति के बिना आप को पोर्न मूवी दिखाता है, शराब पिला कर कुछ गलत करता है या हाथ लगाता है, आप को ऐसे मैसेज या मेल करता है या फोटो भेजता है जिन्हें देख कर आप कंफर्टेबल नहीं, ऐसे द्विअर्थी जोक्स भेजता है जो उस की डिग्निटी पर चोट करे तो यह सब यौन शोषण के अंतर्गत आएगा. इसी तरह अगर कोई पुरुष किसी महिला सहकर्मी की शारीरिक बनावट पर कमेंट करता है, उस के साथ सेक्शुअल बातें करने की कोशिश करता है ,गंदे इशारे करता है या फिर सीटी बजाता और घूरना जैसी हरकतें करता है तो यह सब यौन शोषण का हिस्सा हैं. इसी तरह बारबार टकराते हुए जाना या किसी महिला का रास्ता रोकना इस में शामिल होता है.

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हम महिलाओं के एंपावरमेंट और सुरक्षा की बात करते हैं लेकिन जब वे अपने काम वाली जगह ही सुरक्षित नहीं तो उन का विकास कैसे होगा? किसी रसूखदार के नीचे काम करने का मतलब यह नहीं कि वह दब जाए. मगर सच यह भी है कि जबआप रसूखदार लोगों से लड़ते हैं और आप के पास सिर्फ आप की सच्चाई होती है. तब आगे का सफर आप के लिए बहुत ही कठिन हो जाता है.

इस तरह के मामले जहां मानहानि के मामलों में पुरुष महिलाओं की आवाज़ बंद करने की कोशिश करते हैं, महिलाओं में उन के खिलाफ आवाज़ उठाने पर डर पैदा करते हैं. रमानी अकबर केस में कोर्ट का यह फैसला उन औरतों के लिए जो अपनी आवाज़ सामने रखने में हिचकिचाती हैं, एक साहस पूर्ण उदाहरण बनेगा. यह सिर्फ़ एक औरत की एक आदमी के खिलाफ जीत के बारे में नहीं बल्कि हर औरत की दबी हुई आवाज़ की सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ जीत है. कोर्ट का यह फैसला औरतों के लिए एक उम्मीद है कि उनकी आवाज़ व्यर्थ नहीं जा रही बल्कि बदलता समाज उन की आवाज़ सुन सकता है.

मेरे बेटे की उम्र 2 साल है, उसे 2-3 बार कानों का संक्रमण हो गया है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 2 साल है, उसे 2-3 बार कानों का संक्रमण हो गया है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

शिशुओं और छोटे बच्चों में मध्य कान का संक्रमण अधिक होता है. इसे चिकित्सकीय भाषा में ओटिटिस मीडिया कहते हैं. आप को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एक अनुमान के अनुसार लगभग 75% बच्चे अपने जीवन के पहले 3 सालों में कम से कम

50% बच्चे 1 से अधिक बार इस संक्रमण के शिकार होते है.

बच्चों में यह समस्या इसलिए अधिक होती है क्योंकि उन की यूस्टेशियन ट्यूब्स व्यस्कों की तुलना में छोटी और सीधी होती हैं इसलिए बैक्टीरिया और वायरस के लिए उन में घुसना आसान होता है.

बच्चों को नहलाते समय कानों में पानी घुसने से भी संक्रमण हो जाता है, इसलिए उन्हें नहलाते समय इयर प्लग का इस्तेमाल करें. धूल, मिट्टी और दूसरे कणों से होने वाले संक्रमण से बचाने के लिए जब भी बच्चे को बाहर ले जाएं उस के कानों को कपड़े या टोपी से अच्छी तरह ढक लें. समस्या गंभीर होने पर डाक्टर को दिखाएं.

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नए बच्चे के आगमन के साथ पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाती है. मातापिता के लिए अपने बच्चे की मुसकान से अधिक कुछ नहीं होता. यह मुसकान कायम रहे, इस के लिए जरूरी है बच्चे का स्वस्थ रहना. शिशु जब 9 माह तक मां के गर्भ में सुरक्षित रह कर बाहर आता है तो एक नई दुनिया से उस का सामना होता है, जहां पर हर पल कीटाणुओं के संक्रमण के खतरों से उस के नाजुक शरीर को जू झना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है, उस के खानपान और रखरखाव में पूरी तरह हाईजीन का खयाल रखना.

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