8 टिप्स: ऐसे करें मिक्सर की देखभाल

मिक्सर को रसोई की शान माना जाता है, क्योंकि अधिकतर कार्य मिक्सर के द्वारा ही किए जाते हैं और यह करीब- करीब हर घर में होता है. मिक्सर का यूज तभी है जब आप सही तरीके से इसकी  देखभाल करें  वरना जल्द ही ये खराब हो जाता है. तो आइए जानते हैं, किस तरह मिक्सर की देखभाल करें.

मिक्सर को चलाने से पहले जार को ठीक तरह से लौक करें अन्यथा ब्लेड के टूट जाने का खतरा रहता है. मिक्सर में कभी कोई गरम चीज न पीसें. मिक्सर की शुरुआत फुलस्पीड में न करें और न ही फुलस्पीड में बंद करें, क्योंकि ऐसा करने से उस की मशीन पर अधिक जोर पड़ता है और उस के खराब होने का खतरा रहता है. आइए आपको मिक्सर की देखभाल करने के नए टिप्स-

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1. अगर आप चाहती हैं कि आप का मिक्सर लंबे समय तक आप का साथ निभाए तो हमेशा उसे इस तरह से चलाएं- धीमा, मध्यम, तेज. फिर तेज से मध्यम, मध्यम से धीमा और धीमे से बंद करें.

2. मिक्सर को चलाते समय जार के ढक्कन के ऊपर हलका दबाव देते हुए हाथ रखे रहें.

3. मिक्सर के जार को आधे से ज्यादा कभी न भरें. आधे से ज्यादा भरा जार चलाने पर मिक्सर की मशीन पर अधिक दबाव पड़ता है और चीजें भी ठीक तरह से पिसती नहीं हैं यानी मोटी मोटी रह जाती हैं.

4. इस्तेमाल के बाद मिक्सर का प्लग निकाल दें. प्लग लगा रहने पर लगातार करंट प्रवाहित होता रहेगा जिस से मिक्सर की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

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5. इस्तेमाल के बाद मिक्सर को फौरन ही धो पोंछ कर रखने की आदत डालें.

6. कोई भी गीली चीज पीसने के बाद आखिर में मिक्सर में पानी डाल कर एक बार अवश्य चलाएं ताकि उस के ब्लेड में फंसी चीजें आसानी से साफ हो जाएं.

7. मिक्सर को एक बार में केवल 10 से 15 मिनट तक ही चलाएं. यदि ज्यादा चीजें पीसनी हैं तो अगले दिन फिर पीस लें.

8. मिक्सर का काम हो जाने पर उसे उस की पैक में पैक कर बच्चों की पहुंच से दूर सुरक्षित स्थान पर रखें.

Serial Story: अनमोल पल– भाग 1

‘‘मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से पाना चाहता हूं. इस तरह कि मुझे लगे कि मैं ने तुम्हें पा लिया है. अब चाहे तुम इसे कुछ भी समझो. पुरुषों का प्रेम ऐसा ही होता है, जिसे वे प्यार करते हैं उस के मन के साथसाथ तन को भी पाना चाहते हैं. तुम इसे वासना समझती हो तो यह तुम्हारी सोच है. पाना तो स्त्री भी चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती. पुरुष कह देता है. तुम इसे पुरुषों की बेशर्मी समझो तो यह तुम्हारी अपनी समझ है, लेकिन जिस्मानी प्रेम प्राकृतिक है. इसे नकारा नहीं जा सकता. यदि तुम मुझ से प्रेम करती हो और तुम ने अपना मन मुझे दिया है तो तन के समर्पण में हिचक कैसी?

‘‘मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम एकांत में मिलें, जैसे कि मिलते आए हैं और एकदूसरे को चूमतेसहलाते हद से गुजर जाएं फिर बाद में एहसास हो कि हम ने यह ठीक नहीं किया. हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अच्छा है कि इस बार हम मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. वैसे भी कितनी बार हम एकांत के क्षणों में हद से गुजर जाने को बेचैन से रहे हैं, लेकिन मिलने के वे स्थान सार्वजनिक थे, व्यक्तिगत नहीं.

‘‘भले ही उन सार्वजनिक स्थानों पर दुरम्य पहाडि़यों पर उस समय कोई न रहा हो. क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं? क्या मुझे पाने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती, जैसे मेरी होती है. शायद होती हो, लेकिन तुम कह नहीं पा रही हो, तो चलो, मैं ने कह दिया.

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‘‘इस बार हम मिलने से पहले मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. दो जवां जिस्म बने ही एकदूसरे में समा जाने के लिए होते हैं. मैं ने अपने मन की बात तुम से कह दी. तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा है.’’

टुकड़ोंटुकड़ों में विदित ने अपनी बात एसएमएस के जरिए सुहानी तक पहुंचा दी. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. विदित ने सुहानी को एसएमएस करने से पहले कई बार सोचा कि ऐसा कहना ठीक होगा या नहीं. कहीं सुहानी इस का गलत अर्थ तो नहीं निकालेगी. लेकिन वह क्या करता? कब तक इच्छाओं को मन में दबा कर रखता. कितनी बार दोनों एकांत में मिले. कितनी बार दोनों तरफ से प्रगाढ़ आलिंगन हुए. कितनी बार दोनों बहुत दूर तक निकले और वापस आ गए. वापस आने की पहल भी विदित ने की. सुहानी तो तैयार थी उस रोमांचक यात्रा के लिए. खैर, जो भी हो, अब लिख दिया तो लिख दिया. वही लिखा जो उस के मन में था, दिमाग में था. दोनों की मुलाकात फेसबुक के माध्यम से हुई. विदित ने उस की पोस्ट को हर बार लाइक किया. कमैंट्स बौक्स में जा कर जम कर तारीफ की.

सुहानी भी चौंकी. इतनी रुचि मुझ में कौन ले रहा है, जबकि मैं दिखने में भी साधारण हूं. फेसबुक पर मेरा ओरिजनल फोटो है. मेरा पूरा विवरण भी दर्ज है. कमैंट्स और लाइक तो उसे और भी मिले थे, लेकिन ये कौन जनाब हैं, जो इतना इंट्रस्ट ले रहे हैं. जवाब में उस ने मैसेज भेजा, ‘‘मेरे बारे में सबकुछ जान लीजिए. यदि आप कुछ उम्मीद कर रहे हैं तो.’’ दूसरी तरफ से भी उत्तर आया, ‘‘मैं सबकुछ जान चुका हूं. यदि आप का स्टेटस सही है तो. हां, आप मेरे बारे में जरूर जान लें. मैं ने कुछ छिपाया नहीं. पारिवारिक विवरण, फोटो सभी के बारे में जानकारी है.’’

‘‘मैं ने भी कुछ नहीं छिपाया,’’ मैं ने भी जवाब दिया.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना और यह भी जाना कि विदित शादीशुदा था. उस की उम्र 40 साल थी. वह स्वास्थ्य विभाग में अकाउंटैंट था. उस के 2 बच्चे थे, जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे. विदित की पत्नी कुशल गृहिणी थी. फिर भी विदित जीवन में कुछ खालीपन महसूस कर रहा था. सुहानी 35 वर्ष की अविवाहित महिला थी, जो एक बड़ी कंपनी में अकाउंटैंट थी. उस के घर पर बुजुर्ग मातापिता थे. 2 बहनों की शादी उस ने अपनी नौकरी के बल पर की थी. पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभातेनिभाते न उस ने किसी की तरफ ध्यान दिया, न उस की तरफ किसी ने. उसे लगा मुझ साधारण दिखने वाली युवती पर कौन ध्यान देगा. फिर अब तो विवाह की उम्र भी निकल चुकी है. मातापिता भी नहीं चाहते थे कि कमाऊ लड़की उन्हें छोड़ कर जाए. यह किसी ने नहीं सोचा कि उस की भी कुछ इच्छाएं हो सकती हैं.

‘‘क्या हम कहीं मिल सकते हैं?’’ विदित ने फेसबुक मैसेंजर पर मैसेज भेजा.

‘‘क्यों मिलना चाहते हैं आप मुझ से?’’ सुहानी ने रिप्लाई किया.

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं.’’

‘‘आप परिवार वाले हैं.’’

‘‘परिवार वाले का दिल नहीं होता क्या?’’

‘‘वह दिल तो आप की पत्नी का है.’’

विदित ने मैसेज नहीं किया. सुहानी को लगा, ‘शायद यह नहीं लिखना चाहिए था, हो सकता है मात्र मिलने की चाह हो. शादी का मतलब यह तो नहीं कि वह किसी से बात ही न करे. मिल न सके. किसी ने तो उसे पसंद किया. उस के सोशल साइड के स्टेटस को, जिस में निराशा भरे चित्रों की भरमार थी. उदास गजलें और गीत थे. किसी ने भी आज तक उसे व्यक्तिगत जीवन और न ही सोशल साइट्स पर इतना पसंद किया था. फिर मिलने में, बात करने में क्या हर्ज है? वह भी तो पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिल रही है जो उस से मिलना चाह रहा था.’ सुहानी ने मैसेज किया, ‘‘व्यक्तिगत बात के लिए व्हाट्सऐप ठीक है,’’ अपने व्हाट्सऐप से सुहानी ने विदित के व्हाट्सऐप पर मैसेज किया. अब बातचीत व्हाट्सऐप पर होने लगी.

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‘‘मैं आप को क्यों अच्छी लगी?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लेकिन आप को देख कर लगा कि मैं आप को तलाश रहा था,’’ विदित ने जवाब दिया.

‘‘माफ कीजिए और आप का परिवार?’’

‘‘परिवार अपनी जगह है. उस का स्थान कोई नहीं ले सकता. वैसे ही जैसे आप की जगह कोई नहीं ले सकता.’’

‘‘मैं कल दोपहर औफिस लंच के समय आप को रीगल चौराहे के पास वाले कौफी हाउस में मिल सकती हूं,’’ सुहानी ने बताया.

‘‘मैं वहां पहुंच जाऊंगा.’’

सुहानी सोचती रही, ‘मिलना चाहिए या नहीं. एक शादीशुदा, बालबच्चेदार व्यक्ति से मिल कर भविष्य के कौन से सपने साकार हो सकते हैं? वैसे भी क्या हो रहा है अभी? फिर मिलना ही तो है. कितनी अकेली रह गई हूं मैं. साथ की सहेलियां शादी कर के अपने ससुराल व परिवार में मस्त हैं. मैं ही रह गई हूं अकेली. घर पर कब किस ने मेरे बारे में, मेरी इच्छाओं के बारे में सोचा है. क्या मैं अपनी मरजी से किसी से मिल भी नहीं सकती? चलो, आगे कुछ न सही लेकिन किसी को कुछ तो पसंद आया मुझ में.’

दोनों तरफ एक उमंग थी. वह नियत समय पर कौफी हाउस में मिले. दोनों को एकदूसरे की यह बात पसंद आई कि जैसा सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस व फोटो डाला है, वैसे ही थे दोनों, अन्यथा लोग होते कुछ और हैं और दिखाते कुछ और हैं. कौफी की चुसकियां लेते दोनों एकदूसरे को देखते रहे. आंखों से तोलते रहे. सुहानी सोच रही थी कि क्या बात करूं? कैसे बात करूं? तभी विदित ने कहा, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘इस उम्र में शादी,’’ सुहानी ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया.

‘‘अभी कौन सी आप की उम्र निकल गई. ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो 40 के आसपास विवाह करते हैं.’’

‘‘मैं ने सब की तरफ ध्यान दिया लेकिन मेरी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘तो अब ध्यान दिए देता हूं,’’ विदित ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप दिखने में अच्छी हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं. कौन आप से शादी करने से इनकार कर सकता है. अच्छा बताइए, आप को कैसा लड़का पसंद है?’’

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Serial Story: अनमोल पल– भाग 2

सुहानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस उम्र में शादी के लिए लड़का नहीं पुरुष ढूंढ़ना पड़ेगा, वह भी अधेड़.’’

‘‘मेरी तरह,’’ विदित बोला.

‘‘हां, खैर ये सब छोडि़ए. आप अपनी सुनाइए. मिल कर कैसा लगा? क्या चाहते हैं आप मुझ से,’’ एक ही सांस में सुहानी कह गई.

‘‘देखिए, मैं ने अपने बारे में कुछ नहीं छिपाया आप से. सुनते हुए अजीब तो लगेगा आप को लेकिन क्या करूं, दिल के हाथों मजबूर हूं. आप मुझे अच्छी लगीं.’’

‘‘आमनेसामने भी,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘जी, आमनेसामने भी?’’ विदित बोला.

‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी अच्छी लगी. आप ने भी कुछ नहीं छिपाया.’’

‘‘मेरे मन में कोई चोर नहीं है, तो छिपाऊं क्यों? हां, मैं शादीशुदा हूं, 2 बच्चे हैं मेरे, लेकिन यह कोई गुनाह तो नहीं. फिर यह किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा व्यक्ति को कोई अच्छा लगे तो वह उसे अच्छा भी न कह सके. कोई उसे पसंद आए तो वह उस पर जाहिर भी न कर सके,’’ विदित ने अपनी बात रखते हुए कहा.

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‘‘हां, हम अच्छे दोस्त भी तो हो सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा तो विदित चुप रहा. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए, जो पहले से ही सोशल साइट्स से उन को मालूम थे.

‘‘हमें मोबाइल पर ही बात करनी चाहिए. चाहे तो एसएमएस के जरिए भी बात कर सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत बातें सोशल साइट्स पर बिलकुल नहीं,’’ सुहानी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘आप ठीक कह रही हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आप मुझ से आगे बात करेंगी.’’

‘‘हां, बात करने में क्या बुराई है?’’

‘‘और मिलने में?’’

‘‘मिल भी सकते हैं, लेकिन मैं देर रात तक घर से बाहर नहीं रह सकती. कमाती हूं तो क्या? हूं तो महिला ही न. घर पर जवाब देना पड़ता है. शादी नहीं हुई तो क्या? पूछने को मातापिता, नजर रखने को अड़ोसपड़ोस तो है ही,’’ सुहानी बोली.

‘‘हां, मैं भी आप से ऐसे समय मिलने को नहीं कहूंगा जिस में आप को समस्या हो,’’ विदित ने कहा.

सुहानी का लंच टाइम खत्म हो चुका था. वह दफ्तर जाने के लिए खड़ी हो गई.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ सुहानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे भी,’’ विदित खुशी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘आज मेरी एक इच्छा पूरी हो गई. आगे न जाने कब दोबारा मिलना होगा.’’

‘‘कल ही,’’ सुहानी मुसकराते हुए बोली.

‘‘क्या, सच में?’’ विदित ने खुशी से कहा.

‘‘हां, यहीं मिलते हैं,’’ सुहानी ने वादा किया.

‘‘थैंक्स,’’ विदित ने धन्यवाद भरे भाव से कहा.

‘‘और बात करनी हो तो मोबाइल पर?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘कभी भी.’’

‘‘मैं रात 10 बजे के बाद अपने कमरे में आ जाती हूं. आप के साथ तो पत्नी व बच्चे होते होंगे,’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, बच्चे तो अपनी मां के साथ अलग कमरे में सोते हैं. मांबेटों के बीच मुझे कौन पूछता है?’’ निराशा भरे स्वर में विदित बोला.

‘‘मैं अकेला सोता हूं कमरे में. आप बात कर सकती हैं,’’ और वे विदा हो गए. दूसरे दिन वे फिर मिले. दोनों मिलने के लिए इतने बेकरार थे कि बड़ी मुश्किल से दिन व रात कटी. ऐसा लगा जैसे दूसरा दिन आने में वर्षों लग गए हों. बात कैसे शुरू करें? क्या कहें एकदूसरे से. सो राजनीति, साहित्य, सिनेमा, संगीत की बातें होती रहीं.

‘‘तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर मुकेश के दर्द भरे गीतों का बड़ा संकलन है,’’ विदित ने सुहानी से कहा.

‘‘हां, मुझे दर्द भरे गीत बहुत पसंद हैं,  खासकर मुकेश के और तुम्हें?’’

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‘‘मेरी तो समझ में आता है मेरा एकांत, मेरा अकेलापन, इसलिए ये गीत मुझे खुद से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं. लेकिन आप को क्यों पसंद हैं?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘शायद दर्द मेरा पसंदीदा विषय है,’’ विदित ने कहा.

‘‘लेकिन तुम से मिलने के बाद मुझे प्रेम भरे गीत भी अच्छे लगने लगे हैं,’’ सुहानी ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं. आप घर पर दर्द भरे गीत सुनते हैं?’’

‘‘नहीं, अब नहीं सुनता. पत्नी को लगता है कि मुझे अपना कोई पुराना प्रेमप्रसंग याद आता है. तभी मैं ऐसे गाने सुनता हूं और फिर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में कुछ सुननेपढ़ने का समय ही कहां मिलता है?’’ विदित ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘आप की पत्नी से बनती नहीं है क्या?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. पहले सब ठीक था, लेकिन अब वह मां पहले है, पत्नी बाद में. मैं ने पिछली बार जिक्र किया था अकेले सोने के विषय में. बच्चे मां के बिना नहीं सोते. दोनों बच्चे मां के अगलबगल लिपट कर सोते हैं. पत्नी दिन भर घर के कामकाज और दोनों बच्चों की जिम्मेदारियां संभालते हुए इतनी थक जाती है कि सोते ही गहरी निद्रा में चली जाती है.

‘‘एकदो बार मैं ने उस से प्रणय निवेदन भी किया, तो पत्नी का जवाब था कि अब मैं 2 बच्चों की मां हूं, बच्चों को छोड़ कर आप के पास आना ठीक नहीं लगता. बच्चे जाग गए तो क्या असर पड़ेगा उन पर? आप दूसरे कमरे में सोइए. आप कहेंगे तो मैं बच्चों को सुला कर थोड़ी देर के लिए आ जाऊंगी. वह आई भी थकीहारी तो बस मुरदे की तरह पड़ी रही. उस ने कहा जो करना है, जल्दीजल्दी करो. शारीरिक संबंध पूर्ण होते ही वह तुरंत बच्चों के पास चली गई. कभीकभी ऐसा भी हुआ कि हम संभोग की मुद्रा में थे, तभी बच्चे जाग गए और वह मुझे धकियाती हुई कपड़े संभालती बच्चों के पास तेजी से चली गई. बस, फिर धीरेधीरे इच्छाएं मरती रहीं. तुम्हें देखा तो इच्छाएं फिर जाग उठीं. एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं, कहो,’’ सुहानी बोली.

‘‘फेसबुक पर जब तुम से बात होने लगी तो मेरे दिलोदिमाग में तुम समा चुकी थीं. एक बार पत्नी को कुछ जबरन सा कमरे में ले कर आया. संबंध बनाए, लेकिन दिलदिमाग में तुम्हारी ही तसवीर थी. अचानक मुंह से तुम्हारा नाम निकल गया.

‘‘पत्नी ने दूसरे दिन समझाते हुए कहा, ‘यह सुहानी कौन है? रात को उसी को याद कर के मेरे साथ संभोग कर रहे थे आप. जमाना अब पहले जैसा नहीं रहा. किसी ऐसीवैसी लड़की के चक्कर में मत फंस जाना, जो संबंध बना कर ब्लेकमैल करे. न मानो तो जेल भिजवा दे. फिर इस परिवार का, इस घर का, बच्चों का क्या होगा? समाज में बदनामी होगी सो अलग. सोचसमझ कर कदम उठाना. मैं पत्नी हूं आप की, मेरा अधिकार तो कोई नहीं छीन सकता, लेकिन अपनी हवस के कारण किसी जंजाल में मत उलझ जाना.’’

‘‘मैं ऐसी नहीं हूं,’’ सुहानी ने कहा. उसे लगा कि विदित उसे सुना कर ये सब कह रहा है.

‘‘अरे… मैं तो तुम्हें सिर्फ पत्नी की बात बता रहा हूं. मुझे तुम पर भरोसा है. हम ने ईमानदारी से अपना सच एकदूसरे को बताया है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है.’’

‘‘आजमा कर देख लो,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा. लंच टाइम खत्म हो चुका था. उन्हें मजबूरन अपनी बात समाप्त कर के उठना पड़ा. इस वादे के साथ कि वे फिर मिलेंगे. वे फिर मिले. उन की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. मुलाकातों के स्थान भी बदलने लगे. कभी वे पार्क में टहलते तो कभी किसी रेस्तरां में साथ बैठ कर भोजन करते. कभी साथ मूवी देखते.

‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अकेले में जहां हम दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो,’’ विदित ने कहा.

‘‘मेरी एक सहेली कंपनी के काम से बाहर गई है. उस के फ्लैट की चाबी मेरे पास है. हम थोड़े समय के लिए वहां जा सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘किसी ने हमें देख लिया तो,’’ विदित ने शंका व्यक्त की.

‘‘मैं किसी की परवा नहीं करती,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘कब चलना है?’’ विदित ने पूछा.

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‘‘आज, अभी. 1 घंटे का लंच है. बात करेंगे, चाय पीएंगे और जो कहना है कह लेना.’’ कौफी हाउस से टैक्सी ले कर वे सीधे फ्लैट पर पहुंचे.  सुहानी ने चाय बनाई और विदित को दी. विदित ने सुहानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ विदित ने सुहानी को अपने शरीर से सटा लिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे. सांसों में तेजी आ गई थी, विदित ने सुहानी के माथे पर अपने होंठ रख दिए. सुहानी ने स्वयं को विदित को सौंप दिया. दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.

 – क्रमश:

Serial Story: अनमोल पल– भाग 3

अभी तक आप ने पढ़ा…

फेसबुक के माध्यम से मिले विदित और सुहानी को एकदूसरे की सचाई जान अच्छा लगा. विदित शादीशुदा, 2 बच्चों का पिता था जबकि सुहानी 35 वर्षीय अविवाहिता. शादी न कर पाने के कारण मन में इच्छाएं दबी थीं, जिस कारण वह विदित की ओर आकर्षित हुई. दोनों एकदूसरे से इतना बंध गए कि कई बार एकांत मिलने पर हद से गुजर जाने को बेचैन हो उठते, लेकिन विदित खुद को रोक लेता. एक मुलाकात के दौरान वे सुहानी की सहेली के फ्लैट पर मिले तो विदित ने सुहानी को अपने आगोश में ले लिया और दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.

अब आगे…

अचानक पता नहीं क्यों, विदित ने खुद को रोक लिया. सुहानी ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किया. वह जाना चाहती थी सारे तटबंधों को तोड़ कर, लेकिन विदित ने हांफते हुए कहा, ‘‘नहीं, इस तरह नहीं. तुम्हें यह न लगे कि मैं ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है विदित,’’ सुहानी निश्चिंत हो कर बोली.

‘‘सुहानी,’’ विदित ने सुहानी के हाथों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार दे सकता हूं, अधिकार नहीं.’’

सुहानी ने विदित से लिपटते हुए कहा, ‘‘मुझे प्यार के अलावा कुछ और चाहिए भी नहीं.’’ विदित ने सुहानी के होंठों पर अपने होंठ रखे. सुहानी ने फिर खुद को समर्पित किया, लेकिन विदित ने फिर स्वयं को रोक लिया.

‘‘एक बात पूछूं विदित? ’’सुहानी ने पूछा.

‘‘पूछो.’’

‘‘अपनी पत्नी से अंतरंग क्षणों में तुम मेरी कल्पना करते हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो?’’

‘‘हां, लेकिन मन के साथ. केवल तन नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ गहराई तक उतरने को तैयार हूं. फिर तुम पीछे क्यों हट रहे हो?’’

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‘‘यही सोच कर कि मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगा. न कोई सुनहरा भविष्य, न कोई अधिकार. अपनों के सामने तुम्हारा क्या परिचय दूंगा. इन तथाकथित अपनों के सामने शायद तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दूं. कहीं यह तुम्हारा शोषण तो नहीं होगा,’’ सकुचाते हुए विदित बोला. ‘‘मेरे पास भविष्य के लिए नौकरी है. रही अधिकार की बात, तो मैं जानती हूं कि तुम विवाहित हो. मैं तुम से ऐसी कोई मांग नहीं करूंगी, जिस से तुम स्वयं को धर्मसंकट में फंसा महसूस करो. मैं तो तुम्हारे साथ खुशी के कुछ पल बिताना चाहती हूं. ऐसे पल जिन पर हर स्त्री का अधिकार होता है, लेकिन मेरी नौकरी के कारण मेरे परिवार के लोग ही मुझे अपने स्त्रीत्व से वंचित रखना चाहते हैं और मैं ये पल अब चुराना चाहती हूं, छीनना चाहती हूं.’’

विदित खामोश रहा. विदित को सोच में डूबा देख कर सुहानी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ विदित ने कहा, ‘‘मैं यह सोच रहा था और इसलिए सोच कर तुम से कह रहा हूं कि अपने सुख की तलाश में कहीं हम वासना के दलदल में तो नहीं भटकना चाह रहे. तुम्हारी खुशियां मेरे साथ हमेशा नहीं रहेंगी. मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूं, लेकिन मैं तुम से प्यार भी करता हूं. स्त्रीपुरुष जब तनमन के साथ एक होते हैं तो बंध जाते हैं एकदूसरे से. मैं तो फिर भी पुरुष हूं. शादीशुदा हूं. तुम मुझ से बंध कर कहीं अकेली न रह जाओ,’’ विदित कहते हुए चुप हो गया. सुहानी चुपचाप सुनती रही, कुछ नहीं बोली.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारे योग्य कहीं एक अच्छा लड़का, चाहे वह अधेड़ हो या फिर विदुर, तलाशा जाए, जिस के साथ तुम जीवन भर खुश रह सको. तुम्हारा अधूरापन हमेशा के लिए दूर हो जाए.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है, विदित? मैं ने ये सब सोचा नहीं होगा. इस काम में मेरी एक प्रिय सहेली ने मेरी मदद भी की. मैरिज ब्यूरो से संपर्क भी किया, कुछ रिश्ते आए भी, लेकिन वे सब रिश्ते ऐसे आए जो मु झे पसंद नहीं थे. वही कुंडली मिलान, दहेज, घरपरिवार, जातिधर्म, गोत्र. मेरा मन नहीं मिला किसी से. एकदो मेरे मातापिता से मिले भी तो मातापिता ने उन्हें टाल दिया और मु झे सम झाया कि इस उम्र में क्यों शादीब्याह के चक्कर में पड़ रही हो. अपने मातापिता का ध्यान रखो. 70-75 की उम्र में मातापिता से घर नहीं छोड़ा जा रहा और बेटी को तपस्या करने की सलाह दे रहे हैं…’’ कहते हुए सुहानी की आंखों में आंसू आ गए.

विदित ने आंसू पोंछते हुए सुहानी से कहा, ‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था. मैं तो तुम्हारे भले के लिए यह कह रहा था.’’

‘‘तुम डर रहे हो मु झ से,’’ सुहानी बोली.

‘‘नहीं, तुम्हें सम झा रहा हूं,’’ विदित  आश्वस्त करते हुए बोला.

‘‘इतना आगे आने के बाद,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘अभी इतने भी आगे नहीं आए कि वापस न लौट सकें.’’

‘‘तुम लौटना चाहते हो तो लौट जाओ.’’

‘‘मैं नहीं लौटना चाहता.’’

‘‘मैं भी नहीं लौटना चाहती,’’ फिर दोनों गले मिले और मुसकराते हुए अपनेअपने गंतव्य की तरफ चले गए. रात को विदित को सुहानी का खयाल आया. उसे वे पल याद आए जब एकांत पहाड़ी पर उस ने सुहानी को सिर से ले कर पैर तक चूमा था. उस के शरीर के ऊपरी वस्त्र हटा कर उस के गोपनीय अंगों से छेड़छाड़ करने लगा था और सुहानी मादक सिसकारियां लेते हुए उस का साथ दे रही थी. ‘उफ्फ, मैं क्यों पीछे हट गया. मिलन पूर्ण हो जाता तो यह तड़प, यह बेकरारी तो न सताती. शरीर इस तरह भारी तो न महसूस होता.’ स्वयं को इस भारीपन से मुक्त करने के लिए विदित अपनी पत्नी के पास पहुंचा. पत्नी ने  झिड़कते हुए कहा, ‘‘सो जाइए. आज मेरा मूड नहीं है.’’ विदित अपमानित सा अपने कमरे में आ गया. उस ने मोबाइल उठा कर सुहानी को कई टुकड़ों में एसएमएस किया. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. सुहानी का उत्तर आ गया. विदित ने मोबाइल के एसएमएस बौक्स पर उंगली रखी.

‘‘जब मैं तुम्हारे साथ बहने को तैयार थी तो तुम पीछे हट गए और मु झे दुनियादारी समझाते रहे. क्या तुम मुझ से इसलिए शारीरिक सुख चाहते हो, क्योंकि यह सुख तुम्हें अपनी पत्नी से नहीं मिल रहा है. मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं. यह सुख तो चंद रुपए दे कर कोई वेश्या भी तुम्हें दे सकती है. तुम्हारा बारबार पीछे हटना यह साबित करता है कि तुम डरते हो मु झ से, अपनी पत्नी से, अपने परिवार से, जबकि मैं ने पहले ही तुम से कह दिया था कि मु झे सिर्फ प्यार चाहिए, अधिकार नहीं.

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‘‘तुम ने उन अनमोल पलों को न जाने किस डर से गंवा दिया. वह भी ऐसे समय में जब मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ रही थी. उन क्षणों में मैं ने खुद को कितना अपमानित महसूस किया था और अब तुम मुझ से शरीर के ताप से पीडि़त हो कर मिलन की मांग कर रहे हो. क्या इसे तुम प्यार कहते हो या सिर्फ जरूरत? मैं तुम्हारी ही भाषा में बात कर रही हूं. औरत जब किसी के प्रेम में डूबती है तो फिर आगेपीछे नहीं सोचती. जिसे प्रेम करती है उस पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ती है. तुम इतना सोचते हो मेरे साथ होते हुए भी, सब के बारे में, मेरे बारे में भी सब सोचने को रहता है बस, मैं ही नहीं रहती.’’

विदित ने एसएमएस को 4-5 टुकड़ों में पढ़ा. उसे उस पर गुस्सा आ गया. उस ने सीधा नंबर लगाया और कहा, ‘‘तुम्हारी हां है या ना.’’ उधर से सुहानी ने उत्तर दिया, ‘‘इतनी मानसिक तैयारी से शादी की जाती है, सुहागरात मनाई जाती है, प्यार नहीं किया जाता.’’ विदित को गुस्सा आ गया. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शराफत के कारण पीछे रह गया. नहीं तो बहुत पहले ही सबकुछ कर चुका होता. अब पूछ रहा हूं तो भाव खा रही हो.’’

दूसरी तरफ से मोबाइल बंद हो गया. विदित को खुद पर गुस्सा आया. ‘उफ्फ, यह क्या कह दिया मैं ने. किस बदतमीजी से बात की मैं ने. मेरे बारे में क्या सोच रही होगी सुहानी,’ विदित ने सोचा और फिर नंबर घुमाने लगा, लेकिन सुहानी ने फोन काट दिया. फिर विदित ने एसएमएस किया.

‘‘क्यों तड़पा रही हो? गुस्से में निकल गया मुंह से. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं,’’ सुहानी ने एसएमएस पढ़ कर रिप्लाई किया.

‘‘क्या चाहते हो?’’ सुहानी  झुं झला कर बोली.

‘‘तुम्हें चाहता हूं,’’ विदित बोला.

‘‘क्यों चाहते हो?’’

‘‘प्यार करता हूं तुम से.’’

‘‘मु झ से या मेरे शरीर से?’’

‘‘तुम्हारा शरीर भी तो तुम ही हो.’’

‘‘तो ऐसा कहो, शरीर चाहिए मेरा.’’

‘‘तुम गलत सम झ रही हो.’’

‘‘मैं ठीक सम झ रही हूं.’’

‘‘तुम्हारी हां है या ना?’’

‘‘जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताए पलों के लिए मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूं.’’

‘‘चलो, कीमत ही सम झ कर दे दो.’’

‘‘ठीक है, बताओ कब, कहां आना है?’’ सुहानी ने कहा.

आगे पढ़ें- विदित को सम झ नहीं आ रहा था कि…

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आखिर पिछले बुरे अनुभव से सरकार कुछ सीख क्यों नहीं रहीं?

भले अभी साल 2020 जैसी स्थितियां न पैदा हुई हों, सड़कों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों में भले अभी पिछले साल जैसी अफरा तफरी न दिख रही हो. लेकिन प्रवासी मजदूरों को न सिर्फ लाॅकडाउन की दोबारा से लगने की शंका ने परेशान कर रखा है बल्कि मुंबई और दिल्ली से देश के दूसरे हिस्सों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में देखें तो तमाम कोविड प्रोटोकाॅल को तोड़ते हुए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. पिछले एक हफ्ते के अंदर गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद से ही करीब 20 हजार से ज्यादा मजदूर फिर से लाॅकडाउन लग जाने की आशंका के चलते अपने गांवों की तरफ कूच कर गये हैं. मुंबई, पुणे, लुधियाना और भोपाल से भी बड़े पैमाने पर मजदूरों का फिर से पलायन शुरु हो गया है. माना जा रहा है कि अभी तक यानी 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच मंुबई से बाहर करीब 3200 लोग गये हैं, जो कोरोना के पहले से सामान्य दिनों से कम, लेकिन कोरोना के बाद के दिनों से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ पता चल रहा है कि मुंबई से पलायन शुरु हो गया है. सूरत, बड़ौदा और अहमदाबाद में आशंकाएं इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं.

सवाल है जब पिछले साल का बेहद हृदयविदारक अनुभव सरकार के पास है तो फिर उस रोशनी में कोई सबक क्यों सीख रही? इस बार भी वैसी ही स्थितियां क्यों बनायी जा रही हैं? क्यों आगे आकर प्रधानमंत्री स्पष्टता के साथ यह नहीं कह रहे कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, चाहे प्रतिबंध और कितने ही कड़े क्यों न करने पड़ंे? लोगों को लगता है कि अब लाॅकडाउन लगना मुश्किल है, लेकिन जब महाराष्ट्र और दिल्ली के खुद मुख्यमंत्री कह रहे हों कि स्थितियां बिगड़ी तो इसके अलावा और कोई चारा नहीं हैं, तो फिर लोगों में दहशत क्यों न पैदा हो? जिस तरह पिछले साल लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हुई थी, उसको देखते हुए क्यों न प्रवासी मजदूर डरें ?

पिछले साल इन दिनों लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर तपती धूप व गर्मी में भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांवों की तरफ भागे जा रहे थे, इनके हृदयविदारक पलायन की ये तस्वीरें अभी भी जहन से निकली नहीं हैं. पिछले साल मजदूरों ने लाॅकडाउन में क्या क्या नहीं झेला. ट्रेन की पटरियों में ही थककर सो जाने की निराशा से लेकर गाजर मूली की तरह कट जाने की हृदयविदारक हादसों का वह हिस्सा बनीं. हालांकि लग रहा था जिस तरह उन्होंने यह सब भुगता है, शायद कई सालों तक वापस शहर न आएं, लेकिन मजदूरों के पास इस तरह की सुविधा नहीं होती. यही वजह है कि दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में एक बार फिर से प्रवासी मजदूर लौटने लगे या इसके लिए विवश हो गये. लेकिन इतना जल्दी उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगा है. एक बार फिर से वे पलायन के लिए विवश हो रहे हैं.

प्रवासी मजदूरों के इस पलायन को हर हाल में रोकना होगा. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये किसी भी वजह से तो चकनाचूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सालों के लिए मुश्किल हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्धि हो रही है, पिछले 11 दिनों में पहले के मुकाबले 11 से 12 फीसदी मौतों में इजाफा हुआ है. नये कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो इसकी चपेट में न आ गया हो. पहली लहर में जो कई देश इससे आंशिक रूप से बचे हुए थे, अब वहां भी इसका प्रकोप जबरदस्त रूप से बढ़ गया है, मसलन थाईलैंड और न्यूजीलैंड. भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग 13 लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं.

जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है. कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है. साथ ही हिंदुस्तान में कई प्रांतों दुर्भाग्य से जो कि गैर भाजपा शासित हैं, वैक्सीन किल्लत झेल रहे हैं. हालांकि सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे तक सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके यहां महज दो दिन के लिए वैक्सीन बची है और नया कोटा 15 के बाद जारी होगा.

हालांकि सरकार ने इस बीच न सिर्फ कोरोना वैक्सीनों के फिलहाल निर्यात पर रोक लगा दी है बल्कि कई ऐसी दूसरी सहायक दवाईयों पर भी निर्यात पर प्रतिबंध लग रहा है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे कोरोना से इलाज में सहायक हैं. हालांकि भारत में टीकाकरण शुरुआत के पहले 85 दिनों में 10 करोड़ लोगों को कोविड-19 के टीके लगाये गये हैं. लेकिन अभी भी 80 फीसदी भारतीयों को टीके की जद में लाने के लिए अगले साल जुलाई, अगस्त तक यह कवायद बिना रोक टोक के जारी रखनी पड़ेगी. हालांकि हमारे यहां कोरोना वैक्सीनों को लेकर चिंता की बात यह भी है कि टीकाकरण के बाद भी लोग न केवल संक्रमित हुए हैं बल्कि मर भी रहे हैं.

31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चैथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं. बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कफर््यू, सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कॉलेजों को बंद करना आदि शामिल हैं. लेकिन खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कफर््यू’ का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है).

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लॉकडाउन’ बहुत आवश्यक है. जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लॉकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्धि हो रही है. दरअसल, नाईट कफर््यू व लॉकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है. नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है.

लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है. अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मध्यवर्ग के लिए. लॉकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं. कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं.

हिंदी फिल्म से मेरी एक बड़ी पहचान बनेगी-सयानी दत्ता

16 नवंबर, 2012 को रिंगो बनर्जी की मांबेटी की कहानी वाली बंगला फिल्म ‘ना हन्नीयते’ कोलकाता में प्रदर्शित हुई, तो दर्शकों ने रूपा गांगुली के साथसाथ इस फिल्म में अभिनेत्री रूपा गांगुली की बेटी का किरदार निभा कर इस फिल्म से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाली नवोदित अदाकारा सयानी दत्ता को भी काफी पसंद किया था. इसी वजह से रिंगो बनर्जी ने सयानी दत्ता को अपनी अगली फिल्म ‘शदा कलो अचा’ में भी ग्लैमरस किरदार में ले कर उन्हें गांव की लड़की के किरदार को निभाने की चुनौती दी, जो बाद में बार डांसर बनती है.

सयानी दत्ता इस चुनौती पर खरी उतरीं. फिल्म को न सिर्फ कोलकाता में सफलता मिली, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी इस फिल्म ने धूम मचाई थी. इस के बाद रिंगो बनर्जी ने सयानी दत्ता को अपने निर्देशन में तीसरी फिल्म ‘ए जे अच्छे सोहोर’ में भी अभिनय करने का अवसर दिया. यानी फिल्म दर फिल्म सयानी दत्ता की शोहरत बढ़ती ही गई.

अब तक सयानी 11 बंगला फिल्में कर चुकी हैं. हर फिल्म में वे खुद को बेहतरीन अदाकारा साबित करती रहीं. मगर अब जबकि उन्होंने बौलीवुड में कदम रखा है, तो कहीं न कहीं वे चूक गई हैं. 19 मार्च, 2021 से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही निर्देशक सरमद खान की हिंदी हौरर फिल्म ‘द वाइफ’ में वे गुरमीत चौधरी के साथ नजर आ रही हैं.

पेश हैं, सयानी दत्ता से हुई हमारी ऐक्सक्लूसिव बातचीत के कुछ अंश:

आप को अभिनेत्री बनना था, तो फिर सहायक निर्देशक के तौर पर कैरियर शुरू करने की कोई खास वजह थी?

देखिए, मुझे बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करना था. मैं ने स्कूल व कालेज में काफी नाटकों में अभिनय किया. मैं ने ममता शंकर से कत्थक नृत्य भी सीखा. मगर अभिनय के क्षेत्र में कैसे आगे बढ़ा जाए, पता नहीं था. फिर मेरी मुलाकात कोलकाता की मशहूर रंगकर्मी व अभिनय प्रशिक्षक सोहाग सेन से हुई. उन से मैं ने काफी कुछ सीखा. सोहाग सेन ने ही सलाह दी थी कि बतौर सहायक निर्देशक काम करने से फिल्म मेकिंग व कैमरे के बारे में बहुत कुछ सीख सकोगी, जिस से बतौर अभिनेत्री काम करना आसान होगा.

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उन्होंने ही मुझे एक निर्देशक के पास भेजा, जिन के साथ बतौर सहायक निर्देशक मैं ने काम किया. अफसोस की बात यह है कि यह फिल्म आज तक प्रदर्शित नहीं हुई. उस निर्देशक ने उस के बाद कोई दूसरी फिल्म भी नहीं बनाई. लेकिन उन के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम कर मैं ने बहुत कुछ सीखा.

अपने 7-8 साल के अभिनय कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

मैं ने पिछले 7-8 सालों में बहुत कुछ सीखा और जो कुछ सीखा उसी के भरोसे मैं बौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाने आई हूं. यदि मेरा 7 साल का कैरियर अच्छा न गुजरा होता, तो मेरे लिए हिंदी फिल्म करना संभव न होता. 7 साल के दौरान मैं ने विविधतापूर्ण व चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए, जिस से मेरे अंदर अभिनेत्री के तौर पर परिपक्वता आई और परिपक्वता का फायदा मुझे पहली हिंदी फिल्म ‘द वाइफ’ करने में मिला. मेरे कैरियर में टर्निग पौइंट तो मेरे कैरियर की पहली फिल्म ‘ना हनीयते’ ही थी.

उस वक्त रूपा गांगुली बहुत मशहूर थीं, उन के साथ पहली फिल्म करने का अवसर पा कर मुझे रूपाजी से काफी कुछ सीखने को मिला था और उन की शोहरत के चलते इस फिल्म को दर्शक मिले और बंगला फिल्म इंडस्ट्री में मेरी पहचान बनी थी.

हिंदी हौरर फिल्म ‘द वाइफ’ करने के पीछे कोई खास वजह रही या महज हिंदी फिल्म करने के लिए कर ली?

सच कहूं तो मुझे हिंदी फिल्म करनी थी. अगर आज मुझे कोई अंगरेजी या फ्रैंच भाषा की फिल्म मिलेगी, तो मैं दौड़ कर करना चाहूंगी. बंगला फिल्मों के मुकाबले हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तो काफी बड़ी है, हिंदी फिल्मों के दर्शक काफी हैं. इसलिए हिंदी फिल्म तो करनी ही थी. पर इस फिल्म के किरदार ने भी मुझे इस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. हिंदी फिल्म करने से मेरी एक बड़ी पहचान बनेगी, जोकि केवल बंगला फिल्में करने से संभव नहीं है.

लेकिन कहा जा रहा है कि ‘‘द वाइफ’ में आप का अभिनय निखर नहीं पाया?

देखिए, मैं ने इस में आर्या नामक पत्नी का किरदार निभाया है. यह बहुत ही अलग तरह का किरदार है. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, वे काफी उत्साहवर्धक हैं. मैं यह मान सकती हूं कि फिल्म की गति धीमी है, पर हर निर्देशक की अपनी शैली होती है. मैं ने इस फिल्म को करते हुए काफी ऐंजौय किया और इस फिल्म में मेरे काम को देख कर इस फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही मुझे दूसरी हिंदी फिल्म भी मिली.

आप की पहली हिंदी फिल्म ‘द वाइफ’ थिएटर के बजाय ओटीटी प्लेटफौर्म पर आई है. इस से आप कितना संतुष्ट हैं?

अगर हम इतना ज्यादा सोचेंगे, तो जो हमारे हाथ में है, वह भी हमारे हाथ से निकल जाएगा. फिल्म दर्शकों तक पहुंची, यही सब से बड़ी उपलब्धि है. मैं बहुत लोगों को जानती हूं, जिन की फिल्में पिछले लंबे समय से बनी बड़ी हैं, मगर रिलीज नहीं हो पा रही हैं. अभी भी कोविड-19 है. यह गया नहीं है. मगर जब फिल्म थिएटर/सिनेमाघरों में प्रदर्शित होती है, तो उस का अपना अलग अनुभव होता है.

बंगला भाषी होते हुए भी आप बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं. हिंदी कहां से सीखी?

कोलकाता में मेरे सभी दोस्त बंगाली ही हैं. बड़ी मुश्किल से आप को मेरी कोई बंगला भाषी दोस्त मिलेगी. उन के साथ बचपन से मैं हिंदी में ही बात करती आई हूं, जहां बंगाली कम पढ़ते हैं, वहां पर मारवाड़ी बच्चे ही ज्यादा पढ़ते हैं. कोलकाता में मेरे सारे दोस्त मारवाड़ी हैं, जिन से मेरी बातचीत हिंदी में ही होती है. मेरी मम्मी तो इंगिलश लिटरेचर की शिक्षक हैं, उन्हें तो हिंदी बिलकुल नहीं आती. घर के अंदर हम बंगाली या अंगरेजी भाषा में ही बात करते हैं.

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बंगला फिल्म इंडस्ट्री की ऐसी हालत क्यों है कि लोगों को काम नहीं मिल रहा है?

इस की मूल वजह यह है कि बौलीवुड की तरह बंगला फिल्म इंडस्ट्री बड़ी व मजबूत नहीं है. बौलीवुड या दक्षिण भारत की इंडस्ट्री से भी हमारी बंगला फिल्म इंडस्ट्री कमजोर है. यहां गिनेचुने फिल्म निर्माता हैं, जबकि बंगाली फिल्में काफी पसंद की जाती रही हैं. यहां रितुपर्णा घोष जैसे अति बेहतरीन फिल्म निर्देशक हैं, तो फिल्में तो अच्छी बननी ही हैं. मैं ने एक बार भी नहीं कहा कि फिल्में खराब बनती हैं. यदि आप बंगला फिल्में देखेंगे, तो हैरान रह जाएंगे. पर वही बात है कि बंगाली फिल्में देखने में और व्यापार करने में फर्क है.

कोई ऐसा किरदार, जिसे आप निभाना चाहती हैं?

पुलिस अफसर का किरदार निभाना पसंद करूंगी. इस के अलावा मेरी एक पसंदीदा फिल्म है ‘हम दिल दे चुके सनम’ इस में जिस किरदार को ऐश्वर्या राय बच्चन ने निभाया है, वह बहुत सशक्त किरदार है. मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं.

बंगला में सशक्त नारी किरदार वाली काफी फिल्में बनी हैं. उन में से कोई फिल्म है, जिसे आप हिंदी में करना चाहेंगी?

आप ने सही फरमाया. बंगला में तमाम पुरस्कार विजेता अति बेहतरीन फिल्में हैं. मगर मैं नहीं चाहती कि उन फिल्मों का रीमेक बने. बंगला में तमाम ऐसी फिल्में हैं, जिन का मैं ही कोई भी बंगाली नहीं चाहेगा कि उन का रीमेक किया जाए, क्योंकि वे हमारे लिए ताज हैं. तो हम अपना ताज किसी को नहीं देना चाहते.

लिटरेचर के साथसाथ बंगाली लोग नृत्य और गायन में भी आगे रहते हैं?

डांस और संगीत में तो बहुत ज्यादा आगे हैं. मैं संगीत का ‘सा’ भी नहीं जानती हूं. लेकिन आप सुष्मिता सेन या रानी मुखर्जी को देखिए. आप उन लोगों से बात करेंगे, तो आप को पता चल जाएगा. खुद बंगाली होने के चलते मैं इस बात को बेहतर समझती हूं. बंगालियों का एकदम अलग कल्चर है. सब के अपने अलगअलग कल्चर होते हैं. बंगालियों का एजुकेशन कल्चर है.

आप के शौक क्या हैं?

पेंटिंग करना. मैं हर तरह की पेंटिंग बनाती हूं.

क्या मन में किसी विचार के आने पर पेंटिंग बनाती हैं?

जब मैं कुछ अच्छा देखती हूं, तो मुझे ऐसा लगता है कि उसे पेंटिंग कर कागज पर उतारना चाहिए. मगर पेंटिंग्स बनाने में कल्पनाशक्ति ज्यादा होती है. वैसे अभिनय करते समय भी हमें अपनी कल्पनाशक्ति का ही सहारा लेना पड़ता है.

आप ने कोई खास पेंटिंग बनाई हो, जिसे देख कर कोई अच्छी प्रतिक्रिया मिली हो?

दरअसल, मैं ने अपनी पेंटिंग्स को अभी तक बाहर की दुनिया में किसी को ज्यादा नहीं दिखाया है, इसलिए किसी खास प्रतिक्रिया के मिलने की बात भी नहीं हुई. हां, मैं ने कई साल पहले बुद्धा की पेंटिंग बनाई थी, शायद उस वक्त मैं कालेज के फर्स्ट ईयर में थी. वह मेरी अब तक की सब से बेहतरीन पेंटिंग है, क्योंकि उस में कलर कौंबिनेशन से ले कर हर काम काफी परफैक्ट हुआ था.

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Imlie के माथे पर सिंदूर देखकर उड़ेंगे मालिनी के होश, मेकओवर देख हैरान रह जाएगा आदित्य

सीरियल ‘इमली’ (Imlie) की कहानी दर्शकों को काफी पसंद आ रही है, जिसके चलते मेकर्स भी शो की कहानी में नए-नए ट्विस्ट लाने के लिए तैयार बैठे हैं. जहां मालिनी को इमली और आदित्य के रिश्ते पर धीरे-धीरे शक हो रहा है तो वहीं इमली अपने करियर की तरफ कदम बढाती जा रही है. इसी ओर कदम बढ़ाते हुए इमली कुछ ऐसा करेगी की पूरा परिवार और आदित्य हैरान रह जाएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा कहानी में आगे…

प्रैस कौंफ्रेंस में आएगी इमली

दरअसल, बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि इमली को स्टेट लेवल के कॉम्पटिशन में दूसरी पोजीशन मिली है, जिसके चलते जल्द ही वह एक प्रेस क्रॉन्फ्रेंस का हिस्सा बनते हुए नजर आएगी. हालांकि इमली इस प्रैस कौंफ्रेंस को लेकर टेंशन में नजर आती है.

 

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मालिनी करेगी इमली का मेकओवर

सीरियल में ‘इमली’ (Imlie) यानी सुंबुल तौकीर खान का लुक बदलते हुए नजर आने वाला है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में औडियंस को इमली का नया मेकओवर देखने को मिलेगा. दरअसल, प्रैस के सामने जाने के लिए मालिनी, इमली और आदित्य (Gashmeer Mahajani) पर अपना शक भूलकर उसे अपनी साड़ी देगी. साथ ही उसे तैयार भी करती नजर आएगी, जिसे देखने के बाद आदित्य काफी हैरान नजर आएगा.

सिंदूर देख उड़ेंगे मालिनी के होश

 

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नर्वस इमली को आदित्य का साथ मिलने के बाद वह मीडिया के सामने आकर अपनी जीत का श्रेय आदित्य को भी देती हुई नजर आएगी. वहीं मीडिया के कई सवालों का जवाब देती नजर आएगी. इस दौरान हवा में इमली के बाल उड़ेगें, जिसके चलते मीडिया और मालिनी समेत सभी घरवालों को इमली के माथे का सिंदूर नजर आ जाएगा, जिसे देखकर सभी चौंक जाएंगे.

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सुहागन होने की बात कबूलेगी इमली

 

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इमली के माथे पर सिंदूर देखते ही मीडिया के सवालों की बौछार शुरु हो जाएगी, जिससे परेशान होकर इमली सभी के सामने ये कह अपने सुहागन होने की बात कबूल करती हुई नजर आएगी. वहीं इसके बाद सभी इमली से उसके पति के बारे में पूछेंगे, जिसके कारण आदित्य परेशान नजर आएगा. हालांकि इमली इस बात को बताने से मना कर देगी.

 

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Anupamaa: काव्या पर भड़का वनराज, दी ये Warning

मुंबई में जनता कर्फ्यू के चलते कई टीवी सीरियल्स की शूटिंग को गोवा और हैदराबाद जैसी जगह पर शूट करना पड़ रहा है. वहीं सीरियल अनुपमा भी इस लिस्ट में शामिल है. हालांकि शो की कास्ट पूरी कोशिश कर रही है कि इस अचानक बदलाव का असर कहानी पर ना पड़े. वहीं मेकर्स भी रुपाली गांगुली और सुधांशू पांडे के अनुपमा में लौटने के बाद शो की कहानी को और भी दिलचस्प बनाने की तैयारी कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

घर लौटे अनुपमा-वनराज

अब तक आपने देखा कि अनुपमा और वनराज लौकडाउन के कारण घर नही जा पाते, जिसके कारण काव्या जहां परेशान होती है तो वहीं पाखी और बा दोनों के साथ होने पर खुश नजर आते हैं. हालांकि अब अनुपमा और वनराज वापस शाह हाउस पहुंच जाते हैं, जिसके साथ ही पूरी फैमिली को अनुपमा और वनराज के तीन दिन में होने वाले तलाक के बारे में काव्या बता देती है.

 

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काव्या पर भड़केगा वनराज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या के तलाक का सच फैमिली के सामने लाने पर जहां पाखी टूट जाएगी तो वहीं पूरा परिवार अनुपमा और वनराज से नाराज नजर आएगा. इसी दौरान वनराज, काव्या पर अपना गुस्सा भी जाहिर करेगा. दरअसल, वनराज, काव्या से अगले दो दिन उससे और उसके परिवार से दूर रहने की बात कहेगा. ताकि वह अपनी फैमिली के साथ हंसी खुशी के पल बिता सके. वहीं वह अनुपमा के साथ भी कुछ बिताता हुआ नजर आएगा.

 

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पाखी के लिए फिर एक होंगे वनराज-अनुपमा

 

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आपने देखा कि घर पर बिना बताए पाखी अपने दोस्त कबीर की पार्टी में जाती है. जहां कबीर के दोस्त उससे पाखी के करीब आने की शर्त लगाते हैं. हालांकि पाखी, कबीर को उसकी इस हरकत पर थप्पड़ मारती नजर आती है. लेकिन खबरों की मानें तो पार्टी के दौरान कबीर और उसके दोस्त पाखी की कुछ फोटोज खींच लेंगे, जिसके चलते वह पाखी को ब्लैकमेल करते नजर आएगे. वहीं पाखी के बारे में जब अनुपमा और वनराज को पता चलेगा तो वह नाराज तो होंगे. लेकिन बेटी को बचाने के लिए वह फिर साथ नजर आएंगे.

किस काम की ऐसी राजनीति

भारत में नेता पति के मरने के बाद उस की जगह पत्नी लेती है तो मोदीशाह की पार्टी डायनैस्टी डायनैस्टी चीखने लगती है कि गांधी परिवार की तरह उन्होंने राजनीति को विरासत का खेल बना डाला है. पर यह तो दुनियाभर में हो रहा है.

अमेरिका में गत नवंबर में हुए चुनाव में रिपब्लिक पार्टी के जीते ल्यूक लैटलो की जीतने के बाद कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई. डोनाल्ड ट्रंप की मेहरबानी से उस की पूर्व पत्नी जूलिया लैटलो को टिकट मिल गया और वह लुईसियाना की एक सीट से लड़ी. उसे 65% वोट मिले और विरोधी डैमोक्रेटिक पार्टी की सांड्रा क्रिसटोफे को सिर्फ 27%.

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राजनीति असल में पतिपत्नी दोनों मिल कर करते हैं. जहां औरतें ज्यादा मुखर होती हैं वहां पति बैकग्रांउड में रहते हुए भी बहुत कुछ करते हैं. घर का माहौल ही राजनीतिमय हो जाता है और नेता पति की पत्नी न चाहे तो भी राजनीतिक भंवर में फंस ही जाती है.

भारत में जो हल्ला मोदीशाह की पार्टी मचाती है वह असल में डर के कारण मचाती है. उन की पार्टी को मालूम है कि उन के यहां मोतीलाल के पुत्र जवाहर, जवाहरलाल की पुत्री इंदिरा, इंदिरा के पुत्र राजीव, राजीव की पत्नी सोनिया, सोनिया के पुत्र राहुल हैं ही नहीं.

मोदी ने शादी करी पर पत्नी छोड़ दी और बच्चे नहीं हुए. शाह

ने बेटे का कामधाम तो करा दिया पर वारिस नहीं बनाया क्योंकि असल में दोनों आरएसएस की देन हैं और उस के लीडर बहुत से गैरशादीशुदा ही रहे हैं. वे परिवारवाद को सहते हैं पर बढ़ावा नहीं देते.

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गर्मियों के मौसम में हमारे डेली यूज़ कपड़े कैसे होने चाहिए इसका विशेषतौर पर ध्यान देना चाहिए. आप जिस तरह के कपड़े पहने हुए हैं क्या आपको उतना आराम मिल रहा है, यह जानना बहुत जरूरी है.

अनकंफर्टेबल कपड़े आप पर बोझ बन जाते हैं जब आप गर्मी के दिनों में कुछ इस तरह के कपड़े पहते हैं. जिन्हें समर-डे में कभी नहीं पहनना चाहिए. आज हम ऐसे ही कपड़ों के बारे में जानेंगे और आपको बताएंगे कि आपको गर्मी के मौसम में किस तरह के कपड़ों से दूरी बनाकर रखना चाहिए. तो चलिए जानते नहीं उन कपड़ों के बारे में-

  • पॉलिएस्टर के कपड़े
  • डेनिम के कपड़े
  • मखमली कपड़े
  • फीता और जाल वाले कपड़े
  • रेशम या शैटन के कपड़े

पॉलिएस्टर के कपड़े

लोकप्रिय आउटफिट्स को पहनना आज के युवाओं की पहली पसंद बन गया है. लेकिन कपड़े कैसे पहने जाएं यह भी ध्यान में रखना चाहिए. बात अगर पॉलिएस्टर के कपड़ों की करें तो ऐसे कपड़े न तो पसीना ही सोख पाते हैं और इनसे उमस अलग से लगने लगती है. पॉलिएस्टर के कपड़े शादी, पार्टी के लिए रखें. अगर आप नॉर्मल दिनों में डेली यूज के लिए इस तरह की ड्रेस गर्मियों के दिनों में पहनते हैं तो यह पसीने नहीं सोखता साथ ही इसे पहनने से दाग पड़ जाते हैं.  क्योंकि यह पानी प्रतिरोधी कपड़े होते हैं और यह पसीने को अवशोषित नहीं कर पाता.

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डेनिम के कपड़े

युवाओं की पहली पसंद डेनिम के कपड़े माने जाते हैं. डेनिम की शर्ट t-shirt जीन्स युवाओं को लुभाती है. हालांकि गर्मियों में डेनिम के कपड़े को अवॉइड करना चाहिए, क्योंकि यह बहुत ही भारी-भरकम कपड़े लगते हैं और गर्मी में जितने आप  हल्के कपड़े पहन सकें उतना ही आपके लिए अच्छा होता है. डेनिम के कपड़े पहनने से ना तो आप सांस ले पाते हैं और ना ही ठीक से काम ही कर पाते हो. ऐसे खिंचाव वाले कपड़े आराम नहीं दे पाते हैं. यह कपड़ा आपको पसीने से नहीं रोक सकता. साथ ही आपको और भी ज्यादा गर्म फील कराएगा. आप बेचैनी महसूस करेंगे.

मखमली कपड़े

गर्मी में कपड़ों का चयन बहुत जरूरी होता है. बात अगर मखमली कपड़ों की करें तो वेलवेट के कपड़े गर्मियों में बहुत उबाऊ लगते हैं. यह मोटे और भारी होते हैं. यह भी कपड़े गर्म होते हैं. अगर आप गर्मियों में मखमली कपड़ों की ड्रेस पहनने की सोच रहे हैं तो यह गलती आप ना करें.

फीता और जाल वाले कपड़े

आज कल डिजाइनिंग कपड़े पहनने का शौक सभी को है. बात अगर फीता या जालीदार कपड़ों की करें तो यह देखने में हवादार जरूर लगते हैं लेकिन इससे भी बहुत ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि इसके साइड इफेक्ट होते हैं. गर्मियों में अगर आप फीता या जालीदार कपड़े पहनते हैं तो इससे आपके शरीर में खुजली और लालिमा आ सकती है. जाहिर सी बात है यह कपड़े सिंथेटिक होते हैं जिसकी वजह से रैशेज पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे कपड़े पहनने से बचना चाहिए.

रेशम या साटन के कपड़े

चूंकि गर्मी में पसीना बहुत ज्यादा आता है इसलिए हल्के और लाइट कपड़े पहने चाहिए. लेकिन अगर आप रेशम या साटन के कपड़ों का गर्मी के दिनों चमन कर रहे हैं तो ऐसे कपड़ों का सिलेक्शन आप बिल्कुल भी ना करें. क्योंकि अगर इस तरह के कपड़े पहनते हैं तो यह आपको इससे आराम नहीं मिलेगी. साथ ही धूप और पसीने से आप चिलचिलाते रहेंगे. हालांकि इस तरह के कपड़ों को आप शादी पार्टी के लिए रख सकते हैं. सिल्क के कपड़े पहनने से पसीना बहुत आता है और आप बेचैनी फील करते हैं.

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गर्मियों में जो आपको कंफर्ट लगे ऐसे ही कपड़े पहने चाहिए जैसे कि कॉटन के कपड़े आपके लिए फिट रहेंगे. कॉटन के कपड़े पहनने से पसीना भी नहीं आता है और ठंडक का अहसास भी होता है. इससे आप अपने आपको बेचैनी फील नहीं कर पाएंगे और आपका काम में भी मन लगेगा.

दूसरों की तुलना में अपनी तुलना ना करें

ज्यादातर मामलों में तो देखा गया है कि सामने वाले ने जिस तरह के कपड़े पहने हैं व्यक्ति उसी तरह का कपड़ा पहनना चाहता है. जिससे उसे असहज फील होता है. मौसम के अनुसार ही आप कपड़ों का चयन करें. न्यू ट्रेन्ड में आप गर्मियों के मौसम में किस तरह के परिधान धारण करने चाहिए, मार्केट में जाकर आप देख सकते हो. स्टाइलिश और बेस्ट लुक देने वाले गर्मियों के कपड़े मार्केट में उपलब्ध हैं.

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