झूठा सच- कंचन के पति और सास आखिर क्या छिपा रहे थे?

कंचन का शक यकीन में बदलता जा रहा था कि कोई न कोई बात है जो पंकज और उस की मां उस से छिपा रहे हैं. और वह दिन भी आया जब सच उस के सामने था. लेकिन अब सच और झूठ का फैसला उसे ही करना था.

जीवनलालने अपने दोस्त गिरीश और उस की पत्नी दीपा को उन की बेटी कंचन के लिए उपयुक्त वर तलाशने में मदद करने हेतु अपने सहायक पंकज से मिलवाया. दोनों को सुदर्शन और विनम्र पंकज अच्छा लगा. वह रेलवे वर्कशौप में सहायक इंजीनियर था. परिवार में सिवा मां के और कोई न था जो एक जानेमाने ट्यूटोरियल कालेज में पढ़ाती थीं. राजनीतिशास्त्र की प्रवक्ता कंचन की शादी के लिए पहली शर्त यही थी कि उसे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं

कहा जाएगा. स्वयं नौकरी करती सास को बहू

की नौकरी से एतराज नहीं हो सकता था. यह

सब सोच कर गिरीश ने जीवनलाल से पंकज

और उस की मां को रिश्ते के लिए अपने घर लाने को कहा.

अगले रविवार को जीवनलाल अपनी पत्नी तृप्ता, दोनों बच्चों-कपिल, मोना और पंकज व उस की मां गीता के साथ गिरीश के घर पहुंच गए.

‘‘मामा, चाचा, मौसा और फूफा वगैरा सब हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में. हैदराबाद आने के बाद उन से संपर्क नहीं रहा या सच कहूं तो पापा के रहते जिन रिश्तेदारों से हमारी सरकारी कोठी भरी रहती थी, पापा के जाते ही वही रिश्तेदार हम बेसहारा मांबेटों से कन्नी काटने लगे थे,’’ पंकज ने अन्य रिश्तेदारों के बारे में पूछने पर बताया, ‘‘इसलिए मैं मां को ले कर हैदराबाद चला आया और यहां के परिवेश में हम एकदूसरे के साथ पूर्णतया संतुष्ट हैं.’’

‘‘पंकज की शादी हो जाए तो मेरा परिवार भरापूरा हो जाएगा,’’ गीता ने जोड़ा.

‘‘आप कंचन को पसंद कर लें तो वह भी जल्दी हो जाएगा,’’ जीवनलाल ने कहा.

‘‘हम तो आप के बताए विवरण से ही कंचन को पसंद कर के यहां आए हैं लेकिन

हम भी तो कंचन को पसंद आने चाहिए,’’

ये भी पढ़ें- Short Story: पीली दीवारें- क्या पति की गलतियों की सजा खुद को देगी आभा?

गीता हंसी.

‘‘कंचन की पसंद पूछ कर ही आप को यहां आने की तकलीफ दी है,’’ दीपा ने भी उसी अंदाज में कहा, ‘‘हमारी बेटी की एक ही शर्त है कि आप उसे नौकरी छोड़ने को न कहें.’’

‘‘नहीं कहूंगी लेकिन एक शर्त पर कि यह भी कभी मुझे नौकरी छोड़ने को नहीं कहेगी.’’

‘‘तो फिर तो बात पक्की, मुंह मीठा करवाओ दीपा बहन.’’

तृप्ता के कहने पर दीपा मिठाई ले आई. चायनाश्ते के बाद जीवनलाल ने कहा कि अब सगाईशादी की तारीखें भी तय कर लो.

‘‘वह तो आप कब छुट्टी देंगे, उस पर निर्भर करता है, सर,’’ पंकज बोला, ‘‘इस पर भी कि वे स्वयं कब छुट्टी लेते हैं, क्योंकि सबकुछ उन्हें ही तो करना है.’’

गीता गिरीश और दीपा की ओर मुड़ी, ‘‘जिस तरह से उन्होंने यह

शादी की बात चलाई है उसी तरह से तृप्ता भाभी और जीवन भैया, पंकज के अभिभावक बन कर बहू के गृहप्रवेश तक की सभी रस्में निबाहेंगे. आप अब क्या करना है या कैसे करना है, उन से ही पूछिएगा. रहा लेनदेन का सवाल तो मुझे बस आप की बेटी चाहिए और अब इस विषय में मुझ से कोई कुछ नहीं पूछेगा.’’

गीता आराम से सोफे से पीठ लगा कर

बैठ गई.

‘‘पूछेंगे कैसे नहीं गीताजी, शादी में आने वाले रिश्तेदारों के बारे में तो बताना ही होगा,’’ दीपा ने प्रतिवाद किया, ‘‘शादी में रौनक तो उन लोगों के आने से ही आएगी.’’

‘‘रौनक की फिक्र मत करिए,’’ पंकज बोला, ‘‘मेरे बहुत दोस्त और सहकर्मी हैं, ज्यादा हंगामा चाहिए तो मम्मी के छात्रछात्राएं हैं.’’

‘‘मेरे छात्रछात्राओं की क्या जरूरत है?’’ गीता हंसी, ‘‘कंचन के ननददेवर हैं न मोना

और कपिल, अपने दोस्त सहेलियों के साथ धूम मचाने को.’’

शादी बहुत धूमधाम और हंसीखुशी से हो गई. कंचन पंकज के साथ बेहद खुश थी. गीता से भी उसे कोई शिकायत नहीं थी. कोचिंग कक्षाएं तो सुबहशाम ही लगती हैं. सो, गीता सुबह से ही जाती थी और कंचन के कालेज जाने के बाद लौटती थी. दिनभर घर में रहती थी. सो, नौकरानी से सब काम भी करवा लेती थी.

कंचन को घर लौटने पर गरम चायनाश्ता मिल जाता था. कुछ देर गपशप के बाद गीता फिर कालेज चली जाती थी और कंचन पूरी शाम पंकज के साथ जैसे चाहे बिता सकती थी. संक्षेप में, सास के संरक्षण का सुख बगैर किसी हस्तक्षेप या जिम्मेदारी के.

1 साल पलक झपकते गुजर गया. मांबेटे में रात को ही बात होती थी लेकिन कुछ रोज से कंचन को लग रहा था कि गीता कुछ असहज है. वह पंकज से अकेले में बात करने की कोशिश में रहती थी. कंचन के आते ही, बड़ी सफाई से बात बदल देती थी. कंचन ने यह बात अपनी मां दीपा को बताई.

‘‘पंकज के उस बेचारी का अपना सगा कोई और तो है नहीं जिस से कोई निजी दुखसुख या पुरानी यादें बांटे. तू खुद ही उन्हें अकेले छोड़ा कर, और पंकज से भी कभी मत पूछना कि मां उस से क्या कह रही थीं,’’ दीपा ने समझाया.

एक रात सब ने खाना खत्म ही किया था कि बिजली चली गई. पंकज और गीता बाहर बरामदे में बैठ गए और कंचन मोमबत्ती की रोशनी में मेज साफ कर के रसोई समेटने लगी. काम खत्म कर के उस ने बेखयाली में मोमबत्ती बुझा दी. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में बरामदे का रास्ता नजर आ रहा था. वह धीरे से उसी के सहारे आगे बढ़ गई. तभी उसे बरामदे से मांबेटे की वार्तालाप सुनाई दी. पंकज कह रहा था, ‘‘कितनी भी सिफारिश लगवा लूं रेलवे से तो भी 3 बैडरूम वाला घर नहीं मिल सकता, मां. कई हजार रुपया किराया दे कर बाहर ही घर लेना पड़ेगा. सोच रहा हूं इतना किराया देने से बेहतर है अपना फ्लैट ही खरीद लें. गाड़ी

के बजाय मकान के लिए ऋण ले लेता हूं.’’

‘‘उस सब में समय लगेगा पंकज, हमें तो 3 कमरों का घर जल्दी से जल्दी चाहिए,’’ गीता के स्वर में चिंता थी, ‘‘किराए की फिक्र मत कर, जितना भी होगा मैं देने को तैयार हूं. तू बस इतना देख कि गैस्टरूम तुम्हारे व मेरे कमरे से अलग हो.’’

कंचन चौंक पड़ी. रेलवे की ओर से उन्हें 2

बैडरूम का कौटेजनुमा घर मिला हुआ था. सामने छोटा सा लौन था, पीछे किचन गार्डन और ऊपर खुली छत भी थी. नौकरानी भी पास के बंगले के आउट हाउस में रहती

थी. सो, देरसवेर जब बुलाओ, वह आ जाती थी. ये सब छोड़ कर किराए के आधुनिक दड़बेनुमा

फ्लैट में जाने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? अपने 3 सदस्यों के परिवार के लिए तो यह घर काफी है. तो फिर क्या कोई मेहमान आ रहा है? मगर कौन?

‘‘हड़बड़ाओ मत, मां. बराबर वाले घर में विधुर चौधरीजी बेटे के साथ रहते हैं और बेटा अगले महीने विदेश जा रहा है. वे खुशी से हमें एक कमरा दे देंगे. आप अब इस बारे में न तो फिक्र करो और न ही बात,’’ पंकज ने कहा और पुकारा, ‘‘तुम अंधेरे और गरमी में अंदर क्या कर रही हो, कंचन?’’

‘‘हां, बेटी, यहां आ कर बैठ. बड़ी अच्छी हवा चल रही है,’’ गीता भी बोली.

इस का मतलब था कि मां ने भी बात खत्म कर दी है. अब पूछने पर भी कोई कुछ नहीं बताएगा और वैसे भी पंकज ने फिलहाल तो मकान बदलना टाल ही दिया था.

ये  भी पढ़ें- Short Story: लॉकडाउन- बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

जयपुर में होने वाली अंतर्राज्यीय बैडमिंटन प्रतियोगिता

में कंचन के कालेज की टीम चुनी गई थी. अपने समय में कंचन भी राज्य स्तर की खिलाड़ी रह चुकी थी और अभी भी छात्राओं के साथ अकसर बैडमिंटन खेलती थी. प्रिंसिपल और छात्राएं चाहती थीं कि कंचन भी टीम के साथ

जयपुर जाए. कंचन ने पंकज और गीता से पूछा. दोनों ने सहर्ष अनुमति दे दी.

लौटने वाले रोज उन सब की ट्रेन रात की थी. लड़कियां जयपुर घूमना और खरीदारी करना चाहती थीं. आयोजकों ने उन के लिए एक प्राइवेट टैक्सी की व्यवस्था करवा दी. ड्राइवर रामसेवक अधेड़ उम्र का संभ्रांत व्यक्ति था, उस ने बड़ी अच्छी तरह से लड़कियों को दर्शनीय स्थल दिखाए. दिनभर

घूमने के बाद कंचन थक गई

थी. सो, मिर्जा इस्माइल रोड

पहुंचने पर उस ने कहा कि वह शौपिंग के बजाय गाड़ी में आराम करना चाहेगी.

‘‘इतनी गरमी में? हम आप को अकेले नहीं छोड़ेंगे, मैडम,’’ लड़कियों ने कहा.

‘‘मैं हूं न मैडम के पास,

गाड़ी में एसी भी चलता रहेगा,’’ रामसेवक ने कहा. ‘‘आप लोग इतमीनान से जा कर खरीदारी

कर लो.’’

‘‘धन्यवाद, भैयाजी. नाम और बोलचाल से तो आप उत्तर भारत के लगते हैं, यहां कैसे आ गए?’’ कंचन ने पूछा.

रामसेवक ने आह भरी, ‘‘अब क्या बताएं मैडम. हालात ही कुछ ऐसे हो गए कि रोटीरोजी के लिए घर से दूर आना पड़ गया.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘अपने घर में सभी पढ़ेलिखे और सरकारी नौकरी में हैं. हमें न पढ़ना पसंद था न नौकरी करना, गाड़ी चलाने का बहुत शौक था. सो, बाबूजी ने हमें टैक्सी दिलवा दी. हम भी सब के मुकाबले में कमा खा रहे थे कि हमारे बड़के भैया ने गड़बड़ कर दी. वे थे तो सरकारी अफसर मगर शबाब और शराब के शौकीन.

‘‘एक रोज नशे की हालत में एक मातहत की बीवी पर हाथ

डाल दिया और पकड़े गए. जीजाजी के रसूख से किसी तरह छूट गए. भाभी के चिरौरी करने और बेटे के भविष्य का हवाला देने से कुछ साल तो संभल कर रहे लेकिन

बेटे को रेलवे में नौकरी मिलते ही फिर पुराने रंगढंग चालू कर दिए और एक नेता की चहेती के साथ मुंह काला करते हुए पकड़े गए. नेता की चहेती थी, सो मामला

तूल पकड़ गया और 7 साल की जेल हो गई.

‘‘परिवार की इतनी बदनामी हुई कि लोग मेरी टैक्सी में बैठने से भी डरने लगे. टैक्सी का धंधा तो शहर के होटल और अन्य संस्थानों से जुड़ने पर ही चलता है. सो उन के नकारे जाने पर यहां आ गया. मुझे ही नहीं, भाभी और उन के बेटे को भी अपना शहर छोड़ कर दूर जाना पड़ा.’’

कंचन की दिलचस्पी थोड़ी बढ़ी, ‘‘दूर कहां?’’

‘‘हैदराबाद. वहां रेलवे में इंजीनियर है हमारा भतीजा लेकिन हमारे ताल्लुकात नहीं हैं अब उन से,’’ उस ने मायूसी से कहा.

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘परिवार वाले उन से कन्नी काटने लगे थे. मांबेटे खुद्दार थे. सो, सब से दूर चले गए. अब तो भैया की सजा की अवधि भी खत्म होने वाली है, तब शायद वे लोग झांसी आएं.’’

तभी लड़कियां शौपिंग कर के आ गईं और ड्राइवर चुप

हो गया. कंचन ने जितना भी सुना था उस से साफ जाहिर था कि वह किस की बात कर रहा था और क्यों गीता बड़ा मकान लेने के लिए व्याकुल थी. व्यभिचारी पति को

न नकारना चाहती थी और न ही उस के साथ रहना. पंकज सदा की तरह मां की भावनाओं का ध्यान रख रहा था लेकिन कंचन की भावनाओं का क्या? परिवार का यह कलुषित सत्य तो उन्हें शादी से पहले ही बताना चाहिए था. शादी के बाद भी यह कहने वाला

पंकज कि पतिपत्नी तो एकदूसरे

के लिए खुली किताब होते हैं, कितना बड़ा झूठा था. झूठ की

नींव पर टिकी शादी कितने रोज टिक सकेगी?

मांबेटे के व्यवहार से तो लग रहा था कि वे उस

बदचलन, सजायाफ्ता व्यक्ति को स्वीकार करने वाले थे. भले ही दूर रखें, देरसवेर तो उस से भी वास्ता पड़ेगा ही. फिर उस की अस्मत का क्या होगा? कंचन सोच कर ही सिहर उठी. सिरदर्द के बहाने वह पूरे रास्ते चुप रही और फिर अपने कमरे में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी. उसे समझ नहीं आ रहा

था कि वह क्या करे? खैर,

किसी तरह लंबा सफर तय कर के घर पहुंची.

‘‘शुक्र है तुम आ गईं, जिया ही नहीं जा रहा था तुम्हारे बगैर,’’ पंकज ने विह्वल स्वर में कहा.

‘‘अब तो मेरे बगैर ही जीना पड़ेगा क्योंकि मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं,’’ कंचन ने अलमारी में से अपने कपड़े निकालते हुए कहा.

‘‘मगर क्यों? जयपुर में पुराना प्रेमी मिल गया क्या?’’ पंकज ने चुहल की.

‘‘प्रेमी तो नहीं, हां चचिया ससुर रामसेवक जरूर मिले थे. मैं ने तो तुम्हें अपने जीवन के

मूक प्रेम के बारे में भी बता दिया था जिस का ताना तुम ने मुझे अभी दिया है लेकिन तुम ने और मां ने अपने परिवार के उस घिनौने सच को छिपाया हुआ है जिस के लिए अपनों से मुंह छिपा कर तुम यहां रह रहे हो. झूठ की बुनियाद पर टिकी शादी का कोई भविष्य नहीं होता पंकज और इस से पहले

कि वह भरभरा कर गिरे, मैं स्वयं ही यह रिश्ता खत्म कर देती हूं. तुरंत तलाक लेने के लिए सचाई छिपाने का आरोप काफी है. वैसे तो तुम्हें सजा भी दिलवा सकती हूं लेकिन अगर चुपचाप तलाक दे

दोगे तो ऐसा कुछ नहीं करूंगी,’’ कंचन ने सूटकेस में सामान भरते हुए कहा.

पंकज हतप्रभ हो गया था, फिर भी संयत स्वर में बोला, ‘‘तुम ने जो सुना वह सच है लेकिन जो झूठ की बुनियाद वाली बात कही है वह सही नहीं है. इस शहर में किसी ने कभी भी हम से पापा के बारे में नहीं पूछा तो हम स्वयं आगे बढ़ कर क्यों बताते? तुम ने देखा होगा शादी के मंडप में दिवंगत मातापिता की तसवीर रखी जाती है. मगर हम ने तो नहीं रखी, न किसी ने रखने को कहा. तुम ने भी तो कभी नहीं पूछा कि घर में पापा की कोई तसवीर क्यों नहीं है या कभी उन के बारे में कोई और बात पूछी हो? मैं ने और मां ने यह फैसला किया था कि हम स्वयं पापा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे मगर पूछने पर कुछ छिपाएंगे भी नहीं. अब किसी ने कुछ नहीं पूछा तो इस में हमारा क्या कसूर है? एक बात और, मां विधवा की तरह नहीं रहतीं. सादे मगर रंगीन कपड़े पहनती हैं और थोड़ेबहुत जेवर भी.’’

‘‘लेकिन सिंदूर या बिंदी तो नहीं लगातीं?’’ कंचन को पूछने के लिए यही मिला.

‘‘तुम लगाती हो, तुम्हारी मम्मी या तृप्ता आंटी?’’ पंकज ने पूछा, ‘‘कितनी

सुहागिनें मांग भरती हैं या पांव में बिछिया पहनती हैं आजकल? हम ने सच को छिपाने का कोई

प्रयास नहीं किया है कंचन?’’

‘‘अच्छा? और यह जो मुझे बगैर बताए लोन ले कर बड़ा मकान बनाने की योजना बना रहे हो, उसे क्या कहोगे?’’ कंचन ने व्यंग्य से पूछा.

ये भी पढ़ें- Short Story: साथी- कौन था प्रिया का साथी?

‘‘योजना ही है, लिया तो नहीं? पापा के यहां आने का पक्का होने पर तुम्हें सब बताने की सोची थी क्योंकि पापा यहां आएंगे, यह अभी पक्का नहीं है. वे बहुत बदल चुके हैं और उन्हें संसार से विरक्ति हो गई है. केरल से कोई सज्जन जेल में सद्वचन देने आते हैं और पापा अपना शेष जीवन उन के त्रिचूर आश्रम में बिताना चाहते हैं…’’

‘‘तुम्हें कैसे मालूम?’’ कंचन ने उस की बात काटी.

‘‘क्योंकि मैं बगैर मां को बताए सरकारी काम का बहाना बना कर पापा से मिलने झांसी जेल में जाता रहता हूं. अदालत की पेशी के

दौरान मैं ने पापा की आंखों में पश्चात्ताप देखा

था, सो मैं ने उन्हें माफ कर दिया लेकिन मां पर मैं ने अपनी मंशा नहीं थोपी और न ही अभी से उन्हें यह बताना चाहता हूं कि पापा यहां नहीं रहेंगे. रिहाई के रोज मां मेरे साथ उन्हें जेल से लेने जाएंगी, तब कह नहीं सकता दोनों की क्या प्रतिक्रिया होगी. पापा को घर लाना चाहेंगी या स्वयं उन के साथ त्रिचूर जाना

या पापा को अपने रास्ते जाने देना और स्वयं जिस रास्ते पर चल रही हैं उसी

पर चलते रहना. मेरा यह मानना है कंचन, कि जिस को जो उचित

लगता है वही करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और उस

में टांग अड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है.’’

‘‘यानी तुम्हें छोड़ने का फैसला मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है?’’ कंचन ने शरारत से पूछा.

‘‘बशर्ते कि तुम यह सिद्ध कर सको कि तुम से झूठ बोल कर तुम्हें धोखा दिया गया या नुकसान पहुंचाया गया.’’

‘‘वह तो सिद्ध नहीं कर सकती,’’ कंचन ने कपड़े अलमारी में वापस रखते हुए कहा, ‘‘क्योंकि झूठ तो तुम ने कभी बोला नहीं. बगैर कभी कुछ पूछे मैं ही अपने सोचे झूठ को सच समझती रही.’’

डस्की स्किन के लिए ट्राय करें ये फैशन टिप्स

व्यक्तित्त्व को आकर्षक बनाने में पहनावे का बड़ा योगदान होता है. ड्रैस का रंग, पैटर्न, फैब्रिक और स्टाइल ऐसा हो जो आप पर फबे और स्मार्ट लुक दे.

डस्की स्किन के लिए जितना जरूरी मेकअप होता है उतना ही ड्रेसिंग भी होता है, इससे आपकी पर्सनेलिटी के बारे में पता चलता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ नए टिप्स के बारे में बताएंगे, जिसे डस्की स्किन वाली लड़कियां अपनी पर्सैनिलिटी में निखार लाने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

– चमकदार रंगों का प्रयोग न करें. यलो, औरेंज, नियोन जैसे कलर्स अवौइड करें. ये चटकदार रंग हैं जो सांवली सूरत पर अच्छे नहीं लगते. हलके और स्किन टोन से मैच करते रंग आप के ऊपर ज्यादा खूबसूरत लगेंगे. आप प्लम, ब्राउन, लाइट पिंक, रैड जैसे कलर्स ट्राई कर सकती हैं.

– जब बात फौर्मल लुक की हो तो बेज कलर की सिंपल शौर्ट ड्रैस पहन सकती हैं जिस में प्रिंट का काम किया गया हो. ऐसी शौर्ट ड्रैस के साथ हाई हील्स, स्मार्ट वाच और कोट पहन कर औफिस लुक कैरी किया जा सकता है. सैल्मन पिंक कलर का प्रौपर फौर्मल आउटफिट बहुत शानदार लगेगा.

डस्की ब्यूटी ड्रैसिंग स्टाइल्स

फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा कहती हैं कि यदि आप का स्किन टोन डस्की है तो आप कुछ बातों का खास ध्यान रखें:

– डैनिम कलर के कपड़े पहनें, जैसे डैनिम जींस, प्लाजो, डैनिम शर्ट आदि.

– आप अपने कपड़ों फैब्रिक के साथ खेल कर भी फैबुलस लुक पा सकती हैं. अगर आप ब्लैक कलर की शौर्ट ड्रैस पहन रही हैं और उस में नैट, शिफौन जैसे फैब्रिक मौजूद हों, तो ये आप के लुक को निखारने में सहायता करेंगे.

– ब्लिंगी गोल्ड आप के  लिए बेहद शानदार साबित हो सकता है. यदि आप को गाउन पहनना पसंद है तो आप रैड कलर का फ्लोरलैंथ गाउन पहन सकती हैं. औफशोल्डर्ड, शोल्डरलैस, सिंगलशोल्डर्ड गाउन आप पर अच्छे लगेंगे. इन के साथ अपने बालों को स्ट्रेट रखें.

– अगर बात फौर्मल्स की हो तो आप के लिए काफी कुछ है. हाईवैस्ट जींस को आप सौलिड ट्विस्ट टौप के साथ पहन सकती हैं. इस तरह के लुक के लिए आप अपने बाल बांध कर रख सकती हैं.

– पैंसिल स्कर्ट के साथ लाइट मिंट कलर में रूफल स्ट्रिपड टौप पहनें, बालों को खोल कर रखें. सिंपल ईयरिंग के साथ लुक कैरी करें.

बालों को मजबूत व शाइनी बनाने के लिए लगाएं जैतून का तेल

आलिव आयल यानी की जैतून का तेल हमारे दिल, दिमाग और त्‍वचा के साथ ही हमारे बालों के लिए भी अति उत्‍तम है. यह बालों की जड़ से देखभाल करके उन्‍हें पूरा पोषण पहुंचाता है. इसके अलावा इसमें विटामिन ई पाया जाता है, जो बालों को चमकदार बनाने में मदद करता है. यहां पर आलिव आयल की कुछ ब्‍यूटी रेसिपी दी जा रही हैं, जिनका इस्‍तमाल करके आप अपने बालों को और भी अच्‍छा बना सकती हैं.

1. फूलों का रस और आलिव आयल

अगर आप रातभर आलिव आयल और फूलों की कुछ पंखुडियों को एक साथ मिला कर जार में रख दें, और उससे रोज अपने सिर की मालिश करें तो भी अच्‍छा रहेगा. फूलों के रूप में आप गुलाब और जैस्‍मिन की टूटी पंखुडियों का प्रयोग करें. पर इस मिश्रण को पूरे 24 घंटों के लिए एक साथ मिला कर रखना होगा.

ये भी पढ़ें- विंटर स्किन प्रौब्लम्स को दूर करने के लिए ट्राय करें ये टिप्स

2. शहद और आलिव आयल

एक कटोरे में सामान्‍य मात्रा में आलिव आयल और शहद मिलाएं. अब इसको अपने बालों के भीतर तक जड़ों में लगा लें. उसके बाद अपने बालों को एक साथ समेट कर पूरी तरह से ढ़क लें. बालों को ढंकने के लिए किसी कपड़े या पन्‍नी का प्रयोग कर सकतीं हैं. इस पेस्‍ट को सिर में लगाने के बाद 10 मिनट में बालों को शैंपू कर लें.

3. नींबू के बीज, काली मिर्च और आलिव आयल

अगर आपको अपने बाल बढ़ाने हैं, तो नींबू के बीज, काली मिर्च के दाने और आलिव आयल को मिला कर पेस्‍ट बनाएं. इस सारी सामग्रियों को एक साथ पीस लें और फिर सिर में 20 मिनट तक के लिए लगाएं और फिर शैंपू कर लें.

ये भी पढ़ें- सर्दियों में ऐसे करें स्किन की देखभाल

4. आलिव आयल और अंडा

अगर आपके बाल बेजान दिखते हैं, तो अंडा लगा कर उसे थोड़ा घना बना सकते हैं. एक कप में दो अंडे तोडे और उसमें आलिव आयल मिलाएं और इस मिश्रण को अच्‍छे से दो मिनट तक मिलाएं. इस मिश्रण को सिर पर बालों की जड़ों तक लगाएं. 10 मिनट तक छोड़े और फिर शैंपू कर लें. इससे बालों में शाइन आएगी और वह घने लगेगें.

इन 7 कारणों से शादी नहीं करना चाहती लड़कियां

हर लड़की के अपनी शादी से जुड़े कई सपने होते हैं और शादी से जुड़ी उनकी एक अनोखी सोच होती है. लेकिन आज के समय में लड़कियों की सोच में भी कई बदलाव आने लगे हैं. कई लडकियां है जो अनमैरिड रहना ही पसंद करती हैं. इसके पीछे उनकी कई वजह होती हैं. आज हम आपको लड़कियों के अनमैरिड रहने की इच्छा के पीछे के कारण बताने जा रहे हैं. तो आइये जानते हैं इनके बारे में.

अपने करियर के लिए

लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़ी हो लेकिन शादी के बाद उनकी स्टडी धरी की धरी रह जाती है. बेशक वह घर और औफिस दोनों एक साथ मैनेज कर लें लेकिन दोनों संभालने के बाद भी हसबैंड और परिवार वाले कभी खुश नहीं होते.

हर बात पर रोक-टोक

आज के समय में हर लड़की अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना पसंद करती है. उन्हें यह बिल्कुल पंसद नहीं होता कि कोई भी किसी भी बात को लेकर उन्हें बार-बार टोके. इस बिहेवियर से ज्यादा बढ़िया लड़कियां को अनमैरिड रहना लगता है.

ये भी पढ़ें- थोड़ी सी बेवफ़ाई में क्या है बुराई

सैक्रिफाइस करना

शादी के बाद लड़की को अपने सरनेम से लेकर कपड़ों तक, हर चीज सैक्रिफाइस करनी पड़ती है. धीरे-धीरे उनकी पसंद नापसंद और पार्टनर की पसंद ही उनकी खुशी बन जाती है. ऐसी सिचुएशन में लड़कियों का दोबारा से अनमैरिड हो जाने का दिल करता है.

पसंदीदा कपड़े पहनने पर रोक

हर लड़की चाहती है कि वह अपनी पसंद के कपड़े पहने लेकिन जब उसे कोई ऐसा करने से रोकता है तो उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता. वह सोचती है कि यहीं अगर वह अनमैरिड होती तो वह अपने पसंद के कपड़े पहन सकती.

दोस्तों को तो भूल ही जाओ

बचपन से आप जिन दोस्तों के साथ खेलते हुए बड़े होते हैं शादी के बाद आपको उन्हें भी भूलना पड़ता है. आप अपने दोस्तों से न ही कोई बात शेयर कर पाती हैं और न ही उनके साथ बाहर जा पाती है, जिसका नतीजा होता है स्ट्रेस.

प्राइवेसी तो भूल ही जाओ

सिर्फ लड़का ही नहीं बल्कि लड़कियों को भी शादी के बाद प्राइवेसी का पूरा हक होता है. फिर चाहे वह अपने पति के साथ अकेले बाहर जाना चाहती हो या फिर अपने पति के कोई बात शेयर न करना चाहती हो.

शादीशुदा का टैग

शादी के बाद लड़के तो फ्री माइंड होकर घूम सकते हैं लेकिन लड़कियों के साथ तो शादी का टैग लग जाता है. शादीशुदा का टैग लग जाने के कारण आपके दोस्त भी बात करने से कतराते हैं.

ये भी पढ़ें- वेलेंटाइन डे पर बांटे प्यार अनोखे अंदाज के साथ

आई सपोर्ट की शुरूआत करना मेरे लिए चैलेंजिंग था: बौबी रमानी

बौबी रमानी

फाउंडर, आई सपोर्ट फाउंडेशन

अपने भाई को औटिज्म (मानसिक रूप से कमजोर) से पीडि़त देख आज बौबी रमानी औटिज्म के शिकार बच्चों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कार्य कर रही हैं. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में जन्मीं बौबी ने अपनी बहन के साथ मिल कर औटिज्म बीमारी से जूझते बच्चों को मदद देने के लिए ‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ नाम की स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत की. यह संस्था औटिज्म के शिकार बच्चों को शिक्षा प्रदान करना, उन की प्रतिभा को निखारना और उन्हें उन की उच्चतम क्षमता तक पहुंचाने में मदद करती है. बौबी बैंगलुरु में अपनी संस्था के माध्यम से अब तक 8,000 वंचित और विशेष बीमारी से ग्रस्त बच्चों के जीवन में मुसकान बिखेर चुकी हैं. आइए, जानते हैं बौबी रमानी से उन के इस सफर के बारे में:

सवाल- आप ने ‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ की शुरुआत की. कैसा रहा यह सफर?

‘आई सपोर्ट फाउंडेशन’ की शुरुआत करना मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि फाउंडेशन की शुरुआत से पहले मैं कौरपोरेट में काम करती थी. अपनी सेविंग्स से इस संस्थान की शुरुआत करना, औटिज्म से ग्रस्त बच्चों से जुड़ना, उन की काउंसलिंग करना, साथ ही उन के पेरैंट्स की भी काउंसलिंग करना, संस्थान का सैटअप करना सभी कुछ काफी चैलेंजिंग था. मैं ने अपनी बाकी की पढ़ाई भी संस्थान खोलने के बाद पूरी की. इस संस्थान को खोलने के लिए मुझे एक विशेष डिगरी की जरूरत थी. अत: मैं ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ‘मास कम्यूनिकेशन’ की डिगरी ली.

ये भी पढ़ें- लोग कहते थे मैं बड़ा काम नहीं कर सकती- अनीता डोंगरे

 सवाल- इस में परिवार का कितना सहयोग रहा?

उस समय रायबरेली में कोई स्पैशल स्कूल नहीं था. मेरे पापा नहीं हैं, इसलिए रिश्तेदार और पासपड़ोस के लोग मेरा बहुत खयाल रखते थे. जब इन्हें पता चला कि मैं कुछ ऐसा कर रही हूं तो वे मेरी मां से मेरी सराहना करने लगे. इस वजह से मेरी मां ने मुझे पूरा सपोर्ट किया. हालांकि शुरुआत में दिक्कत आई थी, क्योंकि नौकरी छोड़ कर एनजीओ की तरफ बढ़ना काफी चैलेंजिंग हो गया था. एनजीओ का नाम सुनते ही लोग सोचने लग जाते हैं कि यह एक चैरिटेबल यूनिट है. ऐसे में नौकरी छोड़ना और परिवार को समझाना थोड़ा मुश्किल था. लेकिन वक्त के साथ मेरे परिवार ने मुझे समझा और मेरा पूरा साथ दिया. संस्थान खोलने के 1 साल बाद ही मेरी बहन ने भी बैंगलुरु में इस संस्थान की शुरुआत की. मेरे परिवार में हम 3 महिलाएं हैं और 1 भाई है, जिसे औटिज्म है. मेरे परिवार में फीमेल स्ट्रैंथ ज्यादा है.

 सवाल- ऐसी बीमारियों और स्थितियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए क्या करना चाहिए?

आज औटिज्म को ले कर जागरूकता तो बढ़ी है, लोग इस के बारे में अच्छी तरह से समझते हैं, लेकिन इस का समाधान अभी भी किसी को नहीं पता. इस में 2 लोगों का बहुत अहम रोल है. पहला डाक्टर का है. जब डाक्टर बच्चे का चैकअप करते हैं और उन्हें पता चलता है कि बच्चे को औटिज्म हो गया है यानी वह मैंटली फिट नहीं है तो साथ में उन को आगे का सुझाव भी देना चाहिए ताकि मातापिता को आगे की प्रक्रिया के बारे में पता चल सके और वे अपने बच्चे का खास ध्यान रख सकें.

दूसरा अहम रोल है टैलीविजन और रेडियो का. टीवी और रेडियो पर औटिज्म को ले कर खुल कर बात करनी चाहिए. औडियोविजुअल ज्यादा से से ज्यादा दिखाने चाहिए ताकि लोग इस के प्रति जागरूक हों.

 सवाल- उन लड़कियों और महिलाओं को जो आप की तरह कुछ विशेष करना चाहती हैं उन्हें आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

मेरे खयाल से जब हम कुछ करने की सोचते हैं तो हमें कनफ्यूज बिलकुल नहीं रहना चाहिए. अपने लक्ष्य को हमेशा क्लियर रखना चाहिए तभी हम मंजिल तक पहुंच पाएंगे. यह बात बिलकुल सही है कि लड़कियों के बीच में से यदि कोई एक लड़की भी अपना मुकाम हासिल कर लेती है तो वह बाकी लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाती है. इसलिए जरूरी है कि किसी पर निर्भर हो कर आगे न बढ़ें. भरोसा खुद पर करें.

ये भी पढ़ें- परिवर्तन की अलख जगाती रूमा देवी

 सवाल- मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए फ्रैंडली माहौल देने का आइडिया कैसे आया?

जो बच्चे औटिज्म का शिकार होते हैं वे थोड़ा हाइपर होते हैं. जब हम अपने भाई को ले कर किसी रैस्टोरैंट में जाते थे तो मेरी मां पहले ही खाने का और्डर देने चली जाती थीं. तब तक मैं भाई के साथ गाड़ी में बैठ कर म्यूजिक सुना करती थी. जब और्डर आ जाता था तब हम अंदर जाते थे, क्योंकि ऐसे बच्चे ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर पाते और कुछ देर बाद अजीब व्यवहार करने लगते हैं.

 सवाल- औटिज्म के अलावा और किनकिन बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के लिए भी आप काम कर रही हैं?

औटिज्म के अलावा हमारी संस्था हर बौद्धिक अक्षमता जैसे डाउन सिंड्रोम, मानसिक अशांति आदि से परेशान बच्चों के लिए भी काम करती है.

थेरेपी जो वजन कम करने में करेगी मदद

जितने जरूरी हमारे शरीर के लिए प्रोटीन, मिनरल व विटामिन होते हैं उतना ही आवश्यक हमारे शरीर के लिए पानी भी होता है. इसलिए ही डॉक्टर हमें रोजाना के 8-10 गिलास पानी पीना सुझाते हैं. ताकि हमारे शरीर से टॉक्सीन निकल सकें और हमारा शरीर सुचारू रूप से काम कर सके.

बहुत से लोग सुबह सुबह गर्म पानी में नींबू मिला कर पीते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि इस पानी से हमारा मेटाबॉलिज्म बढ़ता है. लेकिन वहीं जापानी लोग इस पानी को बहुत डरावना मानते हैं. यहीं जापानी पानी की थेरेपी प्रयोग में आती है. इस थेरेपी से आपके पेट की सेहत भी अच्छी रहती है और आपका वजन भी घटता है.

क्या है जापानी पानी थेरेपी?

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है यह थेरेपी आपके पेट के स्वास्थ्य के लिए अधिक काम करेगी. ज्यादातर बीमारियां हमारे खराब पेट से ही शुरू होती है. इसलिए जापानी पानी थेरेपी हमारे पेट को साफ करने का काम करती है. यह आपके पाचन तंत्र को भी स्वस्थ बनाती है.

ये भी पढ़ें- कैंसर के क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है, नई तकनीक हाइपैक और पेरिटोनेक्‍टोमी, जानें यहां

इस थेरेपी के मुताबिक आपको सुबह उठते ही पानी पीना होगा क्योंकि यही वह समय होता है जब पानी सबसे ज्यादा प्रभावकारी होता है. यह न केवल आपका वजन कम करने के काम आता है बल्कि आपको बहुत सी बीमारियों से बचाने के भी काम आता है.

पर आपको इसमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि आपको रूम टेंपरेचर वाला पानी ही पीना होगा. यदि आप ज्यादा ठंडा पानी लेते हैं तो यह आपके शरीर के लिए हानिकारक होगा. यह आपके पाचन को भी डिस्टर्ब करता है और आपको बहुत सी बीमारियां भी देता है.

ऐसे पालन करें जापानी वॉटर थेरपी को

यदि आप भी जापानी वॉटर थेरेपी को एक बार ट्राई करना चाहते हैं तो निम्न स्टेप्स का पालन करें.

शुरू में आपको सुबह उठते ही 4-5 गिलास सामान्य तापमान वाला पानी पीना है. ध्यान रखें यह पानी आपको उठने के तुरन्त बाद व ब्रश करने से भी पहले पीना होगा.

अब ब्रेकफास्ट करने के 45 मिनट तक रुकें.

जब आप कोई भी मील खाते है तो उसे 15 मिनट से ज्यादा न चलने दें. इसके बाद कुछ भी पीने से पहले 2 घंटे का ब्रेक लें.

बूढ़े लोग या जिन लोगों ने यह थेरेपी लेने की अभी शुरुआत ही की है वह एक गिलास पानी से शुरू कर सकते हैं.

इसके बाद वह पानी के गिलास का नंबर बढ़ा सकते है.

यदि आप एक बार में ही 4-5 गिलास पानी नहीं पी पाते हैं तो आप हर गिलास पीने के बाद एक घंटे का ब्रेक भी ले सकते हैं.

इस थेरेपी में पानी पीने के साथ साथ लगभग 30 मिनट की रोजाना वॉकिंग भी सुझाई गई है.

इसके साथ ही आपको सोने से पहले हर रोज गुनगुने पानी में नमक मिला कर गरारे करने चाहिए.

आपको कुछ भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे पाचन तंत्र में समस्या होती हैं.

क्या यह वजन कम करने में लाभदायक है?

दिन में बहुत गिलास पानी पीने से आपको संतुष्टि महसूस होती है. जिस कारण आप ज्यादा खाने से बच जाते हैं. एक स्टडी के मुताबिक जो कुछ ज्यादा वजन वाले लोगों पर की गई थी, उसमें जिन लोगों ने अपनी मील खाने के आधे घंटे पहले 500 ml पानी पिया था वह बाकी लोगों के मुकाबले 13% कम खाना खाते थे.

ये भी पढ़ें- पीरियड्स पर मौसम का असर

एक अन्य स्टडी के मुताबिक जब आप ज्यादा पानी पीते हैं तो आप रेस्ट करने की स्थिति में भी ज्यादा कैलोरीज़ बर्न करना शुरू कर देते हैं जो आपके वजन कम करने में लाभदायक होता है.

जब आप अपनी शुगर ड्रिंक्स के स्थान पर पानी पीते हैं तो इससे आप अपने अंदर कम कैलोरीज़ ले पाते है जिससे आपको वजन कम करने में मदद मिलती है.

थोड़ी सी बेवफ़ाई में क्या है बुराई

हाल ही में सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी का एक पुराना वीडियो काफ़ी वायरल हो गया. इस वीडियो में ममता महिलाओं के प्रति अपने खुले विचारों का प्रदर्शन करती हुई नज़र आईं. वायरल वीडियो में ममता कहती हुई दिख रही हैं कि अगर कोई भी महिला अपने पसंद के पुरुष के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखना चाहती है तो वह बिलकुल रख सकती है.

उन के शब्दों में ,’ मैं सभी गृहिणियों को यह बताना चाहती हूँ कि यदि आप कभी भी एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध में रहना चाहती हैं तो आप यह कर सकती हैं. इस के लिए मैं आप को अनुमति दूँगी.’

ममता बनर्जी द्वारा दिए गए इस टेंपटेशन का बहुत से लोगों ने विरोध किया, नाकभौं सिकोड़े. बहुतों ने इसे नैतिकता विरोधी बताया तो कुछ लोग महिलाओं के जीवन में सच्चरित्रता की आवश्यकता पर उपदेश देने बैठ गए. लोगों को यह बात हजम ही नहीं हुई कि औरतों को ऐसे संबंधों की छूट भी मिल सकती है.

पर जरा सोचिये क्या हमारे समाज में इस मामले में पूरी तरह से दोहरे मानदंड नहीं हैं? पुरुष वैश्याओं के पास जाएं, अपनी यौन क्षुधा की पूर्ति के लिए रेप करें, वासना की आग में जल कर छोटीछोटी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद कर डालें तो भी ज्यादातर लोग मुंह पर टेप लगा कर बैठे रहते हैं. उस वक्त महिलाओं पर हो रहे शोषण को देख कर उन का खून नहीं खौलता. उस वक्त पुरुषों की सच्चरित्रता की आवश्यकता भी महसूस नहीं होती. पर जब बात स्त्रियों की आती है तो लोगों का नजरिया ही बदल जाता है. स्त्रियों पर नैतिकता के झूठे मानदंड स्थापित किये जाते हैं. सच्चरित्रता के नाम पर स्त्रियों पर बंधन डालना एक तरह से धार्मिक षड्यंत्र ही है. धर्मग्रंथों ने हमेशा हमें यही सिखाया है कि स्त्रियां पुरुषों की दासी हैं. पुरुष हर जगह अपनी मनमरजी से चल सकते हैं मगर स्त्रियों को एकएक कदम भी पूछ कर ही आगे बढ़ाना चाहिए.

यह वही समाज है जहां नीयत पुरुषों की खराब होती है और घूँघट औरतों को लगा दिया जाता है. बदचलनी पुरुष करते हैं और बदनाम औरतों को कर दिया जाता है. ऐसे में अगर कोई बराबरी की बात करे, महिलाओं को खुल कर जीने का मौका देने की वकालत करे तो धर्म के तथाकथित रक्षकों के सीने पर सांप लोटने लगते हैं. जब पुरुष बेवफाई करे तो मसला बड़ा नहीं होता मगर स्त्री बात भी कर ले तो हायतौबा मच जाती है.

ये भी पढ़ें- वेलेंटाइन डे पर बांटे प्यार अनोखे अंदाज के साथ

आज के समय में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. बड़े शहर हों या छोटे जब स्त्री पुरुष मिल कर काम करते हैं, एकदूसरे के साथ वक्त बिताते हैं तो ऐसे रिश्ते बनने बहुत स्वाभाविक हैं. अस्वाभाविक बस इतना है कि स्त्रियां ऐसा करें या करने की बात भी कर दें तो नैतिकता का पालन कराने वाले तथाकथित धर्म रक्षकों के सीने में आग लग जाती है.

शादी में समर्पण का बोझ सिर्फ महिलाओं पर

अगर एक पुरुष एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स में इन्वॉल्व होता है और इस की जानकारी घरवालों को होती है तो भी कोई कुछ नहीं कहता. मगर यही काम एक औरत करे तो हल्ला मच जाता है. समाज के तथाकथित संचालक और धर्म व संस्कारों के रक्षक हंगामे खड़े कर देते हैं. उस महिला का समाज में निकलना दूभर कर दिया जाता है. घरवाले उस पर तोहमतें लगाने लगते हैं. आज अगर औरतें कह रही हैं कि हमें अपने पति के अलावा भी बाहर कहीं रिश्ता बनाने का हक़ है तो यह बात लोगों को हजम नहीं होती. लेकिन आदमी को सारी छूटें मिली हुई हैं. इस तरह के भेदभाव पूर्ण रवैये ने हमेशा ही औरतों को शिकंजे में रखा है. शादी होती है तो यह वचन लिया जाता है कि दोनों अपने साथी के लिए ही समर्पित रहेंगे. लेकिन इस वचन का पालन सिर्फ औरतों से ही कराया जाता है.

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से कुछ लोगों को मिलती है खुशी

अमेरिका की एक रिसर्च बताती है कि विवाहेतर संबंध रखने वाले कुछ लोग ज्‍यादा खुश रहते हैं. अमेरिका की मिसौरी स्‍टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. एलीसिया वॉकर ने एश्‍ले मेडिसीन नामक एक डेटिंग साइट के एक हजार से ज्यादा यूजर्स के बीच एक सर्वे किया. यह डेटिंग साइट भी अनोखी है जो केवल विवाहित जोड़ों या रिलेशनशिप में रह रहे कपल्स के लिए डेटिंग सुविधा उपलब्ध कराती है. सर्वे में शामिल लोगों से पूछा गया कि अपनी गृहस्‍थी से बाहर किसी से संबंध बनाने के बाद उन के जीवन की संतुष्टि’ पर क्या असर पड़ा.

10 में से 7 लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध करने के बाद वे अपनी शादीशुदा जिंदगी से ज्‍यादा संतुष्ट हैं. आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों से ज्‍यादा महिलाएं अपने विवाहेतर संबंधों की वजह से ‍ज्यादा खुश थीं. इस संतुष्टि को प्रभावित करने वाले बहुत से कारकों में सर्वप्रमुख था, अपनी गृहस्थी में पार्टनर से यौन संतुष्टि न मिल पाना लेकिन बाहर वाले पार्टनर से इस खुशी का मिलना.

अफेयर खत्म होने के बाद और खुशी

जब यह विवाहेतर संबंध खत्म हो जाते हैं तब क्‍या अपने पार्टनर को धोखा देने वाले को पछतावा होता है? इस सवाल का जवाब भी हैरान करने वाला था. शोध में शामिल लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध खत‍म होने पर तो जीवन में पहले से भी ज्यादा संतुष्टि का अनुभव होता है.

PubMed नामक एक जर्नल में भी इसी तरह की एक रिसर्च छपी थी जिस में कहा गया था कि जो लोग अपनी शादी के बाहर किसी से अफेयर करते हैं, लेकिन इस की जानकारी अपने पार्टनर को नहीं देते, वे ज्यादा खुश रहते हैं.

थोड़ी सी बेवफ़ाई

इस का मतलब यह नहीं कि शादीशुदा जिंदगी की समस्‍याओं से निपटने का यह सही समाधान है. अपने पार्टनर को धोखा दे कर मिलने वाली खुशी अस्‍थायी होती है. पहले बातचीत कर के आप को अपनी शादीशुदा जिंदगी को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए. मगर परिणाम बेहतर न निकलें तो खुद परेशान होते रहने से बेहतर है कि जीवन में कुछ रोमांच लाएं भले ही इस के लिए थोड़ी सी बेवफ़ाई ही क्यों न करनी पड़े.

पुरुषों से ज्‍यादा महिलाओं के एक्‍स्‍ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप

आप को एक सच और बता दें और वो यह कि इस मामले में स्त्रियां आगे हैं. एक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडन ने एक रिसर्च किया जिस में 53 फीसदी भारतीय महिलाओं ने माना है कि वे अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ इंटिमेट रिलेशनशिप में हैं. जबकि शादी के बाहर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने वाले पुरुषों की संख्या 43 फीसदी थी.

ये भी पढ़ें- वर्कप्लेस को ऐसे बनाएं खास

ग्लीडन का यह रिसर्च ऑनलाइन कराया गया था जिस में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों के 1500 लोगों ने भाग लिया. रिसर्च में खुलासा हुआ कि पुरुषों के मुकाबले उन महिलाओं की संख्या ज्यादा थी जो नियमित रूप से अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों से रिश्ता रखती हैं.

सर्वे के मुताबिक़ 77 प्रतिशत भारतीय महिलाओं का कहना था कि उन के द्वारा पति को धोखा देने की वजह उन की शादी का नीरस हो जाना था. जब कि कुछ ने इसलिए धोखा दिया क्योंकि पति घरेलू कामों में हिस्सा नहीं लेते हैं. वहीं कुछ को शादी से बाहर एक साथी को खोजने से जीवन में उत्साह का अहसास हुआ. 10 में से 4 महिलाओं का मानना है कि अजनबियों के साथ मौजमस्ती के बाद जीवनसाथी के साथ उन का रिश्ता और अधिक मजबूत हुआ है.

प्रश्न यह उठता है कि क्या शादी जैसी संस्था महिलाओं के लिए बोझ बन रही है और क्या इस के लिए पुरुष ज्यादा जिम्मेदार हैं या फिर यह समाज की दकियानूसी सोच के खिलाफ महिलाओं की बगावत है.

बराबरी के नहीं पतिपत्नी के रिश्ते

भारत में पतिपत्नी के रिश्तों में बहुत भेदभाव है. ये रिश्ते बराबरी के नहीं हैं. ज्यादातर घरों में पति को मुखिया और पत्नी को दासी बना दिया जाता है. पति दूसरी औरत के साथ हंसीमजाक करे तो यह स्वाभाविक है और औरत करे तो वह वैश्या हो जाती है. पति रूपए कमाए तो वह सर्वेसर्वा बन जाता है मगर पत्नी कमाई करे फिर भी नौकरानी की तरह घर को भी संभाले. पति के लिए ऑफिस चले जाना ही उन की ड्यूटी है जो वह कर रहा है. वहीं पत्नी अगर वर्किंग है तो भी पूरे घर के काम कर के ही ऑफिस जा सकती है. वह बीमार है तो भी कोई मदद करने नहीं आता. यही वजह है कि अब महिलाऐं अपने बारे में भी सोचना चाहती हैं ताकि उन के जीवन में कुछ एक्साइटमेंट आए.

प्यार और तारीफ की जरूरत सब को होती है

शादीशुदा जिंदगी एक वक्त के बाद नीरस हो जाती है. देखा जाए तो महिला की जिंदगी काफी कठिन है. पुरुष ऑफिस जा कर फ्री हो जाते हैं. लेकिन महिलाओं को घर की हर छोटीछोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना पड़ता है और बदले में तारीफ के दो शब्द भी नहीं मिलते. ऐसे में महिलाएं ऐसा शख्स ढूंढने लगती हैं उन्हें कहे कि वे सब से ज्यादा सुंदर हैं. शादी के कुछ दिन बाद या फिर बच्चे होने के बाद से ही पति उन्हें भाव नहीं देते. दो शब्द तारीफ़ के भी नहीं कहते. पहले की तरह रोमांस में समय भी नहीं बिताते. ऐसे में अपने अंदर पहले सी ताजगी और उत्साह लाने के लिए दूसरे पुरुष की तरफ उन का झुकाव हो सकता है.

महिलाएं क्‍यों करती हैं एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स

पति/पत्नी यानी जीवनसाथी से इंसान अपने मन की हर बात शेयर करता है. हर राज खोल देता है. खासकर महिलाएं जब तक किसी से अपना सुखदुख शेयर न कर लें उन्हें चैन नहीं पड़ता. मगर कई बार जब पत्नी को अपने पति का पूरा साथ नहीं मिल पाता और पति उसे इग्नोर करता है तो पत्नियां अपने दिल की बातें शेयर करने के लिए किसी और को तलाशती हैं और इस में ऐसा कुछ बुरा भी नहीं है. इस से उन की जिंदगी में वह उत्साह, उमंग और तरंग फिर से जागने लगती हैं जो अन्यथा उन की रोजाना की वैवाहिक जिंदगी से गायब हो चुकी थी.

जब विवाहित जिंदगी में सेक्स रोजाना का एक बोझिल रूटीन बन जाता है तो समझिये वह समय आ गया है जब महिलाएं अपने जीवन में खुशियां और उत्साह वापस लाने के लिए किसी अफेयर से जुड़ने की ख्वाहिश रखने लगती हैं. यह लव अफेयर उन्हें किसी सौगात से कम नहीं लगता.

अक्सर अपने बिजी शेड्यूल के कारण पति और पत्नी समानांतर जिंदगी जीने लगते हैं. उन्हें आपस में बातचीत करने का भी समय नहीं मिल पाता. यहां तक कि वीकेंड और छुट्टी के दिन भी वे एकदूसरे से कटेकटे ही रहते हैं. बच्चों के जन्म के बाद भी कई पति अपनी पत्नी से पहले सा प्यार नहीं कर पाते. वे उन्हें एक बच्चे की मां के रूप में देखने लगते हैं. अपनी पत्नी या प्रेमिका के रूप में नहीं देख पाते. ऐसे में महिलाओं के मन में अवसाद और निराशा पनपने लगती है. इस से निकलने के लिए ही वे ऐसे रिश्ते की तलाश करती हैं.

ये भी पढ़ें- रिश्ते पर भारी न पड़ जाएं राजनीतिक मतभेद

वस्तुतः महिलाएं अपने पति से प्यार और आत्मीयता चाहती है और जब यह आत्मीयता महिलाओं को अपनी जिंदगी में नहीं मिलती तो उन के पास शादी से बाहर प्यार की तलाश करने के अलावा और कोई विकल्प बाकी नहीं रहता.

सच तो यह है कि महिलाओं के लिए असफल शादी की स्थिति को झेलने से ज्यादा बुरा कुछ नहीं होता. जिस शादी में अपनापन, इज़्ज़त और पति के प्यार की कमी होती है वहां महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं. ऐसे में शादी से बाहर प्रेम संबंध बना कर वे अपनी उबाऊ और असफल शादी के दर्द को भुलाने का प्रयास करती हैं. महिलाएं किसी अपने जैसे पार्टनर की तलाश करने का प्रयास करती हैं जिन की रुचियां और आदतें उन से मिलतीजुलती हों. इस में गलत क्या है?

Fashion Tips: बुनाई को ऐसे बनाएं स्टाइलिश

हाथ से बुनाई का सीजन अभी अपने चरम पर है. जिन्हें शौक है वे तो किसी न किसी तरह से समय निकाल कर अपने प्रियजनों को सर्दी का खूबसूरत तोहफा यानी हाथ से बुना स्वैटर जरूर तैयार करते देते  हैं. आजकल टैक्नोलौजी पर हमारी निर्भरता ने शारीरिक फिटनैस को बुरी तरह प्रभावित किया है. साथ ही पुरानी कलाओं जैसे निटिंग आदि को भी विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया है. आप को बुनाई का शौक है तो यह शौक आप की मानसिक सेहत के लिए वरदान साबित हो सकता है. इस की निरंतरता बनाए रखें और इसे बढ़ावा देते रहें.

जब आप कुछ बुनने के मूड में हैं तो आज के फैशन ट्रैंड की जानकारी बेहद जरूरी हो जाती है. आप जो भी बनाएं वह फैशन ट्रैंड में हो तभी सब की निगाहें उस पर टिकेंगी और आप की मेहनत भी सफल रहेगी, क्योंकि सभी चाहे बच्चेबूढ़े हों या आप के किशोर बच्चे सभी स्टाइलिश और स्मार्ट दिखना चाहेंगे. आइए जानते हैं कि बुनाई में आजकल किस तरह का ट्रैंड चल रहा है:

महिलाओं के लिए

सैल्फ पैटर्न में हुड वाले स्वैटर काफी ट्रैंड में हैं. वर्किंग वुमन के साथ कालेज जाने वाले युवा भी ऐसे डिजाइन वाले स्वैटर काफी पसंद करते देखे जा रहे हैं.

डिटैचेबल डिजाइंस के साथ फुल स्लीव वाले स्वैटर आजकल ट्रैंड में हैं. इन्हें गर्ल्स के साथ बौयज भी काफी पसंद कर रहे हैं. इन का आगे का भाग डार्क शेड्स जैसे रौयल ब्लू, मैरून, डार्क ग्रे या पर्पल आदि कलर्स में बुना हुआ होता है और स्लीव व हुडी मल्टीकलर कौंबिनेशन के साथ कनैक्ट होते हैं. गर्ल्स और बौयज के हिसाब से कलर का चुनाव किया जा सकता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Su Yan Tay (@thedragonknitter)

ये भी पढ़ें- Wild & Sexy लुक में एरिका फर्नांडिस ने कराया फोटोशूट, देखें फोटोज

राउंड नैक औल पर्पज पुलोवर

आज बौयज और गर्ल्स दोनों की पहली पसंद हैं राउंड शेप नैक वाले स्वैटर. ये बाहर की सर्दी में बहुत कंफर्टेबल रहते हैं. बुनने में बहुत समय भी नहीं लगता. प्रिंटेड ऊन या मनपसंद डिजाइन, रंग में आप आगे से बंद कर के भी बना सकते हैं और ओपन भी. इन के ऊपर जैकेट एकदम परफैक्ट रहती है.

बौयज के लिए

कौलरलैस स्वैटर कोट जिन में शेप में गला छांट कर फंदे उठा कर डबल बौर्डर बुना जाता है, किशोर बच्चों पर बहुत सुंदर लुक देता है. इन्हें जैंट्स कलर में मिक्स कलर के साथ बनाया जा सकता है.

ऐवरग्रीन हैं स्वैटर कोट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Marta Łubińska (@lubinska_marta)

स्वैटर कोट का प्रचलन हमेशा रहता है बस इस के शेप में बदलाव होते रहते हैं. बुनने वाले इसे क्रिएटिव माइंड का इस्तेमाल कर के बहुत से सुंदर डिजाइन में तैयार कर सकते हैं.

कौलरलैस राउंड शेप: बो नैक या हलका गले में छांट दे कर गले की शेप बनाएं. बौयज के लिए पार्टी आदि में कोट ब्लैजर के साथ पहनने से बहुत सुंदर लगता है. जैंट्स कलर के लिए आप ब्लू, लाइट आसमानी, ब्लैक वूल आदि कलर्स का चुनाव कर सकते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Hanna🇫🇮 (@hanna_neuloo)

गर्ल्स के लिए: रैड, पिंक, मैरून डार्क यलो, मजेंटा, लाइट औरेंज आदि कलर की ऊन में आगे से खुले, गोल गले में स्वैटर कोट बनाएं. हलकी सर्दी में बिना बांहों के स्वैटर कोट भी सुंदर लगते हैं. आगे से बंद कर के और दो या एक मैचिंग पौकेट बुन कर टांक दें.

नी लैंथ स्कर्ट और मैचिंग बूट्स के साथ यह बहुत ऐलिगैंट लुक देता है.

कौलरलैस राउंड शेप स्वैटर के साथ लौंग श्रग और मैचिंग स्कार्फ गर्ल्स के लिए काफी ट्रैंड में हैं.

बुजुर्ग या प्रौढ़ महिलाओं के लिए स्वैटर कोट काफी बेहतर रहते हैं. उन का सर्दी से बचाव तो करते ही हैं साथ ही उन पर सूट भी करते हैं. लौंग कोट कार्डिगन कमर से नी तक गरमाहट देते हैं. इन्हें साड़ी, सलवार सूट, लैगिंग पर भी महिलाएं पहन सकती हैं.

ये भी पढ़ें- फिर छाया कुलोट्स का फैशन, आप भी कर सकती हैं ट्राय

सदा बहार टोपियां और स्कार्फ

ये सब से जल्दी बुने जाने वाले परिधान हैं जिन्हें तरहतरह की रंगबिरंगी वूल से मिला कर तैयार किया जा सकता है और सर्दियों में इन का ट्रैंड बहुत ज्यादा होता है. तरहतरह के बहुत सुंदर कलरफुल स्कार्फ और कैप से लड़कियों के वार्डरोब भरे रहते हैं. इन्हें केवल डिजाइनर में, दो रंग या एक ही कलर में बुन सकती हैं. मोटी ऊन में भी काफी टोपियां पसंद की जा रही हैं. जो मोटी सलाइयों या क्रोशिया से बहुत जल्दी बुनी जा सकती हैं.

इस तरह आप सर्दियों में भी स्मार्ट ड्रैस  में बहुत सुंदर दिख सकती हैं बस थोड़ा फैशन ट्रैंड और अपनी बौडी शेप को ध्यान में रखते  हुए कपड़ों का चुनाव करें. इस तरह सर्दी से  राहत लेते हुए भी आप ट्रैंडी व खूबसूरत दिख सकती हैं.

बच्चों के खिलौने नहीं स्मार्ट गैजेट्स

हाईटैक होते जमाने में जहां हर चीज मोबाइल ऐप्स पर उपलब्ध होती जा रही है तो वहीं कोविड-19 में बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है. उन की ऐक्टीविटीज और पढ़ाई अब औनलाइन हो रही है. ऐसे में बच्चों को मोबाइल या दूसरे गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं.

आज 2 साल के बच्चे भी टच स्क्रीन फोन चलाना, स्वाइप करना, लौक खोलना और कैमरे से फोटो खींचना जानते हैं. एक नई रिसर्च

(82 सवालों के आधार पर) के अनुसार 87% अभिभावक प्रतिदिन औसतन 15 मिनट अपने बच्चों को स्मार्टफोन खेलने के लिए देते हैं.

62% अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बच्चों के लिए ऐप्स डाउनलोड करते हैं. हर 10 में से 9 अभिभावकों के मुताबिक उन के छोटी उम्र के बच्चे भी फोन स्वाइप करना जानते हैं.

10 में से 5 ने बताया कि उन के बच्चे फोन को अनलौक कर सकते हैं, जबकि कुछ अभिभावकों ने माना कि उन के बच्चे फोन के अन्य फीचर भी ढूंढ़ते हैं.

सेहत पर असर

माइकल कोहन गु्रप द्वारा की गई रिसर्च से पता चलता है कि टीनऐजर्स गैजेट्स से खेलना ज्यादा पसंद करते हैं. गैजेट्स ले कर दिनभर बैठे रहने के कारण उन में मोटापे की समस्या बढ़ रही है. साथ ही आईपैड, लैपटौप, मोबाइल आदि पर बिजी रहने के कारण वे समय पर सो भी नहीं पाते, जिस से उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है.

मानसिक रूप से भी गैजेट्स उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. मोबाइल हो या कंप्यूटर, इन में जिस तरह के कंटैंट वे देखते हैं उस का सीधा असर उन के दिमाग और सोच पर पड़ता है.

ये भी पढ़ें- पैंटी की शॉपिंग करते समय न भूलें यह जरूरी बातें

सिर्फ शारीरिकमानसिक परेशानियां ही नहीं, बल्कि गैजेट्स के अधिक इस्तेमाल की आदत उन्हें किसी संभावित खतरे की तरफ भी धकेल सकती है.

साइबर बुलिंग

ऐसा ही एक खतरा साइबर बुलिंग, चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (सीआरवाई) द्वारा दिल्ली, एनसीआर के 630 किशोरों पर किए गए सर्वे में पाया गया कि करीब 9.2% ने साइबर बुलिंग का अनुभव किया और उन में आधे से ज्यादा ने यह बात अपने पेरैंट्स या टीचर से भी शेयर नहीं की.

फरवरी, 2020 में औनलाइन स्टडी और इंटरनैट एडिक्शन नाम से किए गए अध्ययन में पाया गया कि बच्चा जितना ज्यादा इंटरनैट और गैजेट्स का प्रयोग करता है इस तरह की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती हैं.

गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल करने वाले किशोर कई बार साइबर अपराधों में खुद भी लिप्त हो जाते हैं. उन्हें दूसरों से बदला लेने का यह सहज और आसान जरीया नजर आता है जहां उन की पहचान भी छिपी रह सकती है.

मुंबई में रहने वाले दिव्य को अपनी क्लास की एक लड़की सुधि ने कभी झागड़े में उलटासीधा कह दिया था. इस का बदला लेने के लिए दिव्य ने साइबर वर्ल्ड का सहारा लिया. उस ने सुधि के नाम पर एक फर्जी फेसबुक पेज बनाया और उस पर सुधि की तसवीरें लगाते हुए कुछ ऐसे खतरनाक और वल्गर पोस्ट डालने शुरू किए कि कमैंट बौक्स में गंदेगंदे मैसेज आने लगे.

सुधि को इस बारे में कुछ पता नहीं था. स्कूल के बच्चे सुधि को ले कर कानाफूसी करने लगे और उस से कतराने लगे.

सुधि समझा ही नहीं पाई कि क्या हुआ है. यहां तक कि उस की पक्की सहेली ने भी उस से बातें करनी बंद कर दीं. सुधि द्वारा बारबार पूछे जाने पर सहेली ने एक दिन उसे सारे पोस्ट दिखाए. सुधि दंग रह गई. उसे समझा नहीं आया कि उसे इस तरह कौन बदनाम कर सकता है.

दरअसल, वह साइबर बुलिंग का शिकार हो गई थी. उस का फ्रैंड सर्कल खत्म हो गया. अब वह गुमसुम रहने लगी. उस ने बाहर जाना छोड़ दिया और तनाव का शिकार हो गई. हालत इतनी खराब हो गई कि उस के पेरैंट्स ने उसे नए स्कूल में डाला और महीनों काउंसलिंग भी कराई. तब जा कर वह नौर्मल हो सकी. इस तरह दिव्य ने अपनी नासमझा और बदले की भावना से सुधि का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया था.

इप्सोस के साल 2014 के एक सर्वे के मुताबिक भारत साइबर बुलिंग के मामले में सब देशों से ऊपर था. सर्वे में शामिल देशों के 32 फीसदी पेरैंट्स ने कहा कि उन के बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हुए हैं. समय के साथ अब हालात और खराब हो चुके हैं.

साइबर बुलिंग के तहत किसी के बारे में अफवाह उड़ाना, धमकी देना, सैक्सुअल कमैंट, व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक करना या हेट स्पीच आदि आते हैं. जो लोग इस के शिकार होते हैं उन में आत्मविश्वास कम हो जाता है और  कई बार वे आत्महत्या भी कर लेते हैं.

जाहिर है बच्चों के लिए चुनौतियां सिर्फ  ब्लू व्हेल जैसे खेल ही नहीं है. चैट रूम के जरीए कई बार बच्चों के लिए ज्यादा खतरे आते हैं. टीनऐजर दोस्त बनाने के लिए चैट रूम में आते हैं और अनजान लोगों से दोस्ती करते हैं.

इस तरीके में सब से बड़ा खतरा यह है कि सामने वाला अगर बुलिंग पर उतर आए तो वैबसाइट पर पहचान जाहिर न करने जैसे क्लौज का सहारा ले कर बच्चे को परेशान करना शुरू कर देता है.

बच्चे दूसरों की देखादेखी अपनी स्टाइलिश तसवीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू कर देते हैं. इस से कई बार उन के मन में कंपीटिशन या इन्फीरियरिटी कौंप्लैक्स की भावना भी घर कर जाती है.

औनलाइन स्कैम

बच्चे के सामने औनलाइन स्कैम भी एक बड़ा खतरा है. मेल और पोस्ट द्वारा करोड़ों के इनाम जीतने का लालच बच्चों को आकर्षित कर सकता है. इस में वे बैंक अकाउंट या व्यक्तिगत जानकारी शेयर कर देते हैं जो बाद में मुसीबत का कारण बन सकता है.

आजकल 18 साल से कम के किशोर खुद की पहचान बनाने के लिए सोशल मीडिया को चुनते हैं. वे अपन अंदर का घमंड, अहम का भाव सोशल मीडिया के जरीए दूसरे पर निकालते हैं. वहां कोई रोकटोक नहीं होती. ऐसे में वे स्वतंत्र हो कर जो करना है वह करते हैं. इस वजह से कई बार उन की जिंदगी बरबाद भी हो जाती है.

ऐसे में बेहतर है कि जितना हो सके बच्चे की औनलाइन गतिविधियों पर हर वक्त नजर रखें. साथ ही पहले से ही बच्चे से इस बारे में चर्चा करें और उसे समझाएं कि किस तरह के खतरे हो सकते हैं. आज के समय में बच्चों  को गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं, मगर इन  के इस्तेमाल की समय सीमा जरूर तय कर  सकते हैं.

ये भी पढ़ें- रैंट एग्रीमैंट: इन 7 बातों को न करें नजरअंदाज

 क्या हो समय सीमा

‘अमेरिकन ऐकैडमी औफ पीडिएट्रिक्स’ की स्टडी के मुताबिक 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी तरह के स्क्रीन से दूर रखना चाहिए. 3 से 5 वर्ष के बच्चे एक घंटा और टीनऐजर बच्चों को पढ़ाई के अलावा केवल 30 मिनट प्रतिदिन तक गैजेट इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए.

अभिभावकों की जिम्मेदारी

बच्चों को खुश करने के बजाय उन की भलाई के बारे में सोचें. जब बात इनाम देने की हो तो हमेशा कोशिश करें कि उन्हें गैजेट के बजाय कोई और उपयोगी वस्तु दें.

बच्चों को किताबें पढ़ने को प्रेरित करें. थोड़ा समय लाइब्रेरी में बिताने को कहें. नईनई ज्ञानवर्धक, रोचक और  शिक्षाप्रद कहानियों की पुस्तकें ला कर दें.

कोशिश करें कि बच्चा जब टीवी, कंप्यूटर पर व्यस्त हो तो आप उस के साथ रहें ताकि यह देख सकें कि वह स्क्रीन पर क्या देख रहा है. बच्चों को शांत रखने के लिए उन्हें मोबाइल गेम खेलने को प्रोत्साहित करने के बजाय बाहर जा कर दोस्तों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें. बाहर खुले मैदान में दौड़नेभागने वाले खेल खेलने से वे शारीरिक रूप से भी फिट रहेंगे.

– टच पैड के बजाय बच्चे को कोई पालतू जानवर ला कर दें.

– उन्हें समाज और प्रकृति से जोड़ें.

– हफ्ते में 5 दिन क्लास के बाद शनिवार और रविवार को बच्चों को आर्ट्स ऐंड क्राफ्ट में इन्वौल्व कर सकते हैं.

– बच्चों को अन्य खेलों के प्रति प्रेरित कर सकते हैं. जैसे साइकिल चलना, कैरम बोर्ड खेलना, चेस खेलना आदि.

– बच्चों को कभी उन का पर्सनल फोन  न दें.

– उन्हें समझाएं कि 1 घंटा मोबाइल या लैपटौप इस्तेमाल करने के बाद ब्रेक लें.

– बच्चों को अंधेरे में फोन नहीं चलाना चाहिए. इस से उन की आंखों पर सीधा असर पड़ता है. खासतौर पर बच्चे लेट कर फोन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा करने से मना करें.

ये भी पढ़ें- फाइनेंशियल प्लानिंग: क्या और क्यों

मैं ससुराल के माहौल से नाखुश हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

  मैं 23 वर्षीय नवविवाहिता हूं. शादी के बाद ढेरों सपने संजोए मायके से ससुराल आई, मगर ससुराल का माहौल मुझे जरा भी पसंद नहीं आ रहा. मेरी सास बातबेबात टोकाटाकी करती रहती हैं और कब खुश और कब नाराज हो जाएं, मैं समझ ही नहीं पाती. वे अकसर मुझ से कहती रहती हैं कि अब तुम शादीशुदा हो और तुम्हें उसी के अनुरूप रहना चाहिए. मन बहुत दुखी है. मैं क्या करूं, कृपया सलाह दें?

जवाब-

अगर आप की सास का मूड पलपल में बनताबिगड़ता रहता है, तो सब से पहले आप को उन्हें समझने की कोशिश करनी होगी. खुद को कोसते रहना और सास को गलत समझने की भूल आप को नहीं करनी चाहिए. घरगृहस्थी के दबाव में हो सकता है कि वे कभीकभी आप पर अपना गुस्सा उतार देती हों, मगर इस का मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि उन का प्यार और स्नेह आप के लिए कम है.

दूसरा, अपनी हर समस्या के समाधान और अपनी हर मांग पूरी कराने के लिए आप ने शादी की है, यह सोचना व्यर्थ होगा. किसी बात के लिए मना कर देने से यह जरूरी तो नहीं कि वे आप की बेइज्जती करती हैं.

आज की सास आधुनिक खयालात वाली और घरगृहस्थी को स्मार्ट तरीके से चलाने की कूवत रखती हैं. एक बहू को बेटी बना कर तराशने का काम सास ही करती हैं. जाहिर है, घरपरिवार को कुशलता से चलाने और उन्हें समझने के लिए आप की सास आप को अभी से तैयार कर रही हों.

बेहतर यही होगा कि आप एक बहू नहीं बेटी बन कर रहें. सास के साथ अधिक से अधिक समय रहें, साथ घूमने जाएं, शौपिंग करने जाएं. जब आप की सास को यकीन हो जाएगा कि अब आप घरगृहस्थी संभाल सकती हैं तो वे घर की चाबी आप को सौंप निश्चिंत हो जाएंगी.

ये भी पढ़ें- मै अपनी दोस्त को पसंद करता हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें