बच्चों को बिगाड़ते हैं बड़े

मेरी सहेली कंचन के घर में अकसर पंचायत होती है जिस में उस के घर का छोटे से बड़ा हर सदस्य भाग लेता है. मुद्दा चाहे पड़ोसी का हो या किसी रिश्तेदार का, किसी परिचित के बेटे के किसी लड़की के साथ भाग जाने का हो या घर की आर्थिक स्थिति का.

विनोद ने औफिस से आ कर जैसे ही अपने घर की घंटी बजाई, पास में खेल रहा पड़ोसी मिश्राजी का 8 वर्षीय सोनू आ कर बोला, ‘‘अंकल, आप आंटी के साथ झगड़ा क्यों करते हो? आप को पता है, बेचारी आंटी ने आज सुबह से खाना भी नहीं खाया है.’’ इतने छोटे बच्चे के मुंह से यह सब सुन कर विनोद सन्न रह गया. आज सुबह पत्नी रीना से हुए उस के झगड़े के बारे में सोनू को कैसे पता? वह समझ गया कि पत्नी रीना ने झगड़े की बात पड़ोसिन अनुभा को बताई होगी जिसे सुन कर उन का बेटा सोनू उन से प्रश्न कर रहा था.

‘‘पता है, रैना आंटी की यह तीसरी शादी है और सामने वाली स्नेहा दी का किसी से अफेयर चल रहा है. वे रोज उस से मिलने भी जाती हैं,’’ 10 वर्षीय मनु अपनी पड़ोस की आंटी को दूसरे पड़ोसी के घर के बारे में यह सब बड़ी सहजता से बता रही थी.

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‘‘मेरी दादी ने मेरी मम्मी को कल बहुत डांटा, बाद में मम्मी नाराज हो कर फोन पर मौसी से कह रही थीं कि बुढि़या पता नहीं कब तक मेरी छाती पर मूंग दलेगी,’’ 9 वर्षीय मोनू अपने दोस्त से कह रहा था.

उपरोक्त उदाहरण यों तो बहुत सामान्य से लगते हैं परंतु इन सभी में एक बात समान है कि सभी में बातचीत करते समय बच्चों की उपस्थिति को नजरअंदाज किया गया. वास्तव में बच्चे बहुत भोले होते हैं. वे घर में जो भी सुनते हैं उसे उसी रूप में ग्रहण कर के अपनी धारणा बना लेते हैं और अवसर आने पर दूसरों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं. इसलिए मातापिता बच्चों से सदैव उन के मानसिक स्तर की ही बातचीत करें और उन्हें ईर्ष्या, द्वेष, आलोचना या दूसरों की टोह ?लेने जैसी भावनाओं से दूर रखें क्योंकि उन की यह उम्र खेलनेकूदने और पढ़ाई करने की होती है, न कि इस प्रकार की व्यर्थ की दुनियादारी की बातों में पड़ने की.

बचपन में बच्चों को जब इस प्रकार की बातों में भाग लेने और अपना मत व्यक्त करने की आदत पड़ जाती है तो यह आदत उन के चरित्र का एक निगेटिव पौइंट बन जाती है. इसलिए ध्यान रखें. दरअसल, मातापिता, अभिभावक व घरपरिवार के बड़ेबूढ़े बच्चों को बेहतरीन इंसान बनाना चाहते हैं लेकिन उन में से कुछ की गलतियों के चलते उन के बच्चे बिगड़ जाते हैं. वे समझदारी से बच्चों को प्यार व उन की देखभाल करें तो वे बिगड़ नहीं सकते. इस प्रकार, बच्चों को बिगड़ने, न बिगड़ने का सारा दारोमदार बड़ों पर ही निर्भर है.

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Sasural Simar Ka 2 में सिमर को टक्कर देती नजर आएंगी Radhika, देखें फोटोज

फैंस के दिल में सिमर के रोल से फैंस के दिल में जगह बनाने वाली एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ जल्द कलर्स के सुपरहिट सीरियल ससुराल सिमर का के दूसरे सीजन से फैंस का दिल जीतने को तैयार हैं. वहीं उनके साथ इस बार एक्ट्रेस राधिका मुथुकुमार नजर आने वाली हैं, जो फैंस का दिल जीतने के लिए बेताब हैं. हालांकि उससे पहले ही एक्ट्रेस की कुछ फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसमें वह संस्कारी बहू के रुप में दीपिका कक्कड़ को टक्कर देती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं राधिका मुथुकुमार के कुछ इंडियन लुक, जो आपको कर देंगे दीवाना…

संस्कारी बहू के रुप में देंगी दीपिका को टक्कर

इस बार ससुराल सिमर का 2 में दीपिका कक्कड़ की जगह राधिका मुथुकुमार लीड रोल में नजर आने वाली हैं, जिसका मेकर्स ने खुलासा कर दिया है. राधिका मुथुकुमार और दीपिका कक्कड़ एकदूसरे को कड़ी टक्कर देती नजर आएंगीं. वहीं इन दिनों सोशलमीडिया पर फैंस को राधिका मुथुकुमार का ये देसी अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

 

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इंडियन लुक्स की शौकीन हैं राधिका

 

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रियल लाइफ की बात करें तो राधिका मुथुकुमार इंडियन लुक्स कैरी करना पसंद करती हैं, जिसका अंदाजा उनके सोशलमीडिया अकाउंट से लगाया जा सकता है. साड़ी से लेकर लहंगे तक हर लुक में राधिका मुथुकुमार स्टाइलिश संस्कारी बहू के रुप में नजर आती हैं.

इंडियन ड्रेसेज में राधिका मुथुकुमार लगती हैं खूबसूरत

 

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सोशल मीडिया पर शेयर की गई फोटोज की बात करें तो ब्लैक कलर की साड़ी में राधिका मुथुकुमार बेहद खूबसूरत लग रही हैं. वहीं ब्लू कलर की साड़ी में राधिका श्रग के साथ साड़ी को मौडर्न टच देकर अपने लुक पर चार चांद लगा रही हैं.

 

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 साउथ इंडियन लुक में धमाल मचाती हैं राधिका

 

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साउथ की रहने वाली राधिका मुथुकुमार साउथ आउटफिट्स में बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं ट्रैडिशनल ब्राइड लुक की बात करें तो राधिका का ये लुक हर दुल्हन के लिए परफेक्ट औप्शन है.

 

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बता दें, राधिका मुथुकुमार सीरियल ससुराल सिमर का 2 से पहले क्या हाल मिस्टर पांचाल में बहू का किरदार निभाती नजर आ चुकी हैं, जिसके चलते उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरी थीं.

Summer Special: बच्चों के लिए बनाएं रोजी डिलाइट

अगर आप गरमियों में अपने बच्चों के लिए कुछ टेस्टी और हेल्दी डिश बनाना चाहती हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट है.

हमें चाहिए- 

–  4-5 ब्रैड

–  5 बड़े चम्मच रोज सिरप

–  1/4 कप नारियल का बुरादा

–  2 बड़े चम्मच ठंडाई पाउडर

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–  जरूरतानुसार टूटीफ्रूटी, मेवा, चोको चिप्स भरने के लिए

–  250 ग्राम मावा.

बनाने का तरीका-

कुकी कटर से ब्रैड को गोल काट लें. एक प्लेट में मावा और ठंडाई पाउडर मिक्स कर गूंध लें. तैयार स्टफिंग को ब्रैड की स्लाइसेस पर रख कर ऊपर से टूटीफ्रूटी, मेवा और चोको चिप्स लगाएं और दूसरी ब्रैड स्लाइस से दबा दें. अब ब्रैड पीसेज को रोज सिरप में डिप कर के नारियल पाउडर से कोट करें और फ्रिज में ठंडा कर सर्व करें.

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जूठन: क्या प्रेमी राकेश के साथ गृहस्थी बसा पाई सीमा?

Serial Story: जूठन– भाग 3

वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे अलावा और किस ने खाना नहीं खाया है, वंदना?’’

‘‘यह दूसरी प्लेट का खाना सामने रहने वाली मेरी सहेली निशा के लिए है,’’ वंदना ने खिड़की की तरफ उंगली उठा कर सीमा को अपनी सहेली का घर दिखाया.

‘‘वह यहीं आएगी क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा बड़ा बेटा सोनू प्लेट उस के घर दे आएगा.’’

‘‘तुम्हारे दोनों बेटों से तो मैं मिली ही नहीं हूं. कहां हैं दोनों?’’

‘‘छोटे भानू को खांसीबुखार है. वह अंदर कमरे में सो रहा है. सोनू को मैं बुलाती हूं. वह सुबह से निशा के यहां गया हुआ है.’’

वंदना ने पीछे का दरवाजा खोल कर सोनू को आवाज दी. कुछ मिनट बाद सोनू निशा के घर से भागता हुआ बाहर आया.

अपनी मां के कहने पर उस ने सीमा आंटी को नमस्ते करी. बड़ी सावधानी से निशा के लिए लगाई गई खाने की प्लेट दोनों हाथों में पकड़ कर वह फौरन निशा के घर लौट गया.

‘‘बहुत प्यारा बच्चा है,’’ सीमा ने सोनू की तारीफ करी.

‘‘निशा भी उसे अपनी जान से ज्यादा चाहती है… बिलकुल एक मां की तरह. सोनू को 2 मांओं का प्यार मिल रहा है,’’ वंदना ने सीमा की आंखों में झांकते हुए गंभीर लहजे में कहा.

पीछे के बरामदे में एक गोल मेज के इर्दगिर्द 4 कुरसियां रखी थीं. वे दोनों वहीं बैठ गईं. वंदना ने धीरेधीरे खाना खाना शुरू कर दिया.

‘‘क्या निशा के पास अपना बेटा नहीं है?’’ सीमा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया.

‘‘उस ने तो शादी ही नहीं करी है… तुम्हारी तरह अविवाहित रहने का फैसला कर रखा है

उस ने. हर औरत के सीने में मां का दिल मौजूद होता है. निशा उस दिल में भरी ममता खुले हाथों मेरे सोनू पर लुटाती है, ’’ वंदना ने मुसकराते हुए कहा.

कुछ देर खामोश रह कर सीमा बोली, ‘‘यह सच है कि कभी मैं ने शादी न करने का

फैसला किया था, लेकिन अब मैं किसी के साथ मैं अपनी बाकी जिंदगी गुजारना चाहती हूं. इसी सिलसिले में तुम से कुछ बातें करने आई हूं.’’

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‘‘मैं निशा को भी हमेशा कहती हूं कि शादी कर ले, पर वह सुनती ही नहीं. कहती है कि शादी किए बिना ही मुझे सोनू जैसा प्यारा बेटा मिल गया है, तो मैं बेकार किसी अनजान आदमी से जुड़ कर अपनी स्वतंत्रता क्यों खोऊं. मेरा सोनू उस के बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यह विश्वास उस के मन में बहुत मजबूती से बैठ गया है,’’ सीमा के कहे को अनसुना कर वंदना ने निशा और सोनू के संबंध में बोलना जारी रखा.

‘‘राकेश और मैं एकदूसरे को साल भर से ज्यादा समय से जानते हैं. उन से मिलने के बाद ही मेरे जीवन में खुशियां लौटीं, नहीं तो बड़ी नीरस हुआ करती थी मेरी जिंदगी,’’ वंदना के कहे में दिलचस्पी न दिखा कर सीमा ने भी

अपने मन की बातें उसे बताने का सिलसिला

जारी रखा.

‘‘इस निशा की जिंदगी में खुशियों का उजाला मेरे सोनू के कारण है. आए दिन कुछ न कुछ उपहार सोनू को उस से मिल जाता है.’’

‘‘राकेश और मेरे संबंध अच्छी दोस्ती की सीमा को लांघ कर और ज्यादा गहरे हो चुके हैं. वे मुझे बहुत प्रेम करते हैं,’’ सीमा ने वंदना से एक झटके में अपने दिल की बात कह ही दी.

वंदना उदास सी मुसकान अपने होंठों पर ला कर बोली, ‘‘मेरे सोनू का दिल

जीतने को इस निशा ने उसे बहुत बड़ा लालच दे रखा है. खूब पैसे खर्च कर के उस ने सोनू को बाजार की चटपटी चीजें खाने का चसका लगवा दिया है. अब मेरे बेटे को घर का खाना फीका लगता है.’’

‘‘सोनू की बात छोड़ कर तुम राकेश के बारे में मुझ से बातें क्यों नहीं कर रही हो?’’ सीमा चिढ़ उठी.

बड़े अपनेपन से सीमा का कंधा दबाने के बाद वंदना ने उसी सुर में बोलना जारी रखा, ‘‘निशा को अच्छा खाना बनाना नहीं आता है. उस के घर की रसोई सूनी पड़ी रहती है. सोनू अगर उस का अपना बेटा होता, तो क्या वह अपनी घरगृहस्थी को सजानेसंवारने की जिम्मेदारियों से यों बचती? अपने बेटे को अपने हाथों से बढि़या खाना बना कर खिलाना क्या उसे तब बोझ लगता?’’

‘‘एक मां को अपने बेटे की इच्छाएं पूरा करना बोझ नहीं लगता है.’’

‘‘जिस से प्रेम हो, उस की खुशी के लिए कुछ भी करना बोझ नहीं हो सकता. यह निशा तो मेरे सोनू को कानूनन गोद लेने को भी मुझ पर आएदिन दबाव डालती रहती है.’’

‘‘और इस विषय में तुम्हारा जवाब क्या है, वंदना?’’

वंदना धीमे से हंसने के बाद बोली, ‘‘बिना प्रसव पीड़ा भोगे क्या कोई स्त्री सच्चे अर्थों में मां बन सकती है? घरगृहस्थी के झंझटों व चुनौतियों का सामना करने की शक्ति, खुद कष्ट उठा कर अपने बच्चों की हर सुखसुविधा का ध्यान रखने का जज्बा एक मां के ही पास होता है… किसी मौसी, चाची, आंटी या आया के बस का नहीं है दिल से उतनी मेहनत करना.’’

‘‘यह तो तुम ठीक ही कह रही हो. मैं भी अब अपनी घरगृहस्थी बसाने…’’

वंदना ने उसे टोक कर चुप किया और गंभीर लहजे में आगे बोली, ‘‘मेरे सोनू को निशा कितना भी प्यार करे, पर वह हमेशा मेरा बेटा ही रहेगा… सारा समाज उसे मेरे बेटे के नाम से ही जानता है. निशा के गिफ्ट, उस का सोनू के लिए खूब खर्चा करना, सोनू की उस के घर पर जाने की चाह जैसी बातें इस तथ्य को कभी बदल नहीं सकतीं कि वह मेरा बेटा है. मैं तुम से एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो,’’ सीमा अचानक गंभीर हो गई, क्योंकि उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि वंदना सोनू और निशा की बातें कर के उस से कुछ खास कहना चाह रही है.

‘‘मैं अपने कलेजे के टुकड़े को निशा को गोद देने के लिए मजबूरन राजी भी हो जाऊं, तो क्या वह सचमुच मेरे बेटे की मां बन जाएगी? सोनू को जन्म देने का आनंद उसे कैसे मिलेगा? उस के साथ अब तक बिताए 8 सालों की पीड़ा व खुशियां देने वाली जो यादें मेरे पास हैं, उन्हें निशा कहां से लाएगी? क्या मुझे रुला कर वह हंस पाएगी?’’ वंदना की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.

सीमा एक गहरी सांस खींच कर बोली, ‘‘तुम्हारा दिल दुखाए बिना निशा सोनू को नहीं पा सकती है और तुम्हारी सहेली होने के नाते उसे सोनू को बेटा बनाने की चाह छोड़ देनी चाहिए. मुझे भी तुम से मिलने नहीं आना चाहिए था. तुम्हारे व्यक्तित्व को जानने के बाद मेरे मन की बेचैनी व असंतोष और ज्यादा बढ़ा है.’’

वंदना ने उस के हाथ पर हाथ रखा और भरे गले से बोली, ‘‘सीमा, तुम्हें अपनी छोटी बहन मान कर कुछ अपने दिल की बातें कहती हूं. मुझे अपने बच्चों, पति व घरगृहस्थी से ज्यादा प्यारा और कुछ नहीं है. राकेश को छोड़ने की कल्पना करना भी मेरे लिए असहनीय है.

‘‘राकेश मुझ से ज्यादा तुम्हें चाहते हैं, जो मेरे लिए ठीक नहीं है, उन की हर सुखसुविधा का खयाल मैं खुशीखुशी रखती हूं. अपने बेटों को वे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं. उन के कारण वे सदा इस घर से जुड़े रहेंगे, यह बात मेरे मन को गहरा संतोष और सुरक्षा देती है.’’

‘‘तुम उतनी सीधीसादी हो नहीं, जितना दिखती हो. मैं तुम्हारे पास और ज्यादा देर नहीं बैठना चाहती,’’ सीमा अचानक उठ खड़ी हुई.

वंदना ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम मेरे दिल में झांकने की क्षमता पैदा

कर सको, तो तुम्हें मुझ से सहानुभूति होगी.

मुझ पर दया आएगी. प्रेम के बदले प्रेम न पाने

की पीड़ा में लाख कोशिश कर के भी नहीं भुल पाती हूं.’’

‘‘राकेश और सोनू के व्यवहार में बड़ी समानता है. मेरे पति तुम से और बेटा निशा से अपनी खुशियों की खातिर जुड़े हुए हैं, लेकिन इस घर से संबंध तोड़ने में दोनों की कतई दिलचस्पी नहीं है.

बाजार का खाना मेरे बेटे की सेहत के लिए बुरा है, यह जानते हुए भी मैं

सोनू की खुशी की खातिर चुप रहती हूं. राकेश तुम से जुड़े हैं, इस की शिकायत भी मैं कभी उन से नहीं करूंगी.

‘‘मेरे बेटे व मेरे पति से मेरा संबंध मेरी मौत ही तोड़ सकती है. मैं तो हर हाल में इन के साथ संतुष्ट रह लूंगी, पर निशा को या तुम्हें इन के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर क्या मिल रहा है? उसे बेटा या तुम्हें जीवनसाथी चाहिए, तो दोनों बिलकुल नई शुरुआत क्यों नहीं करती हो? दूसरे की कितनी भी स्वादिष्ठ जूठन खाने की तुम दोनों को जरूरत ही क्या है?’’

कई पलों तक खामोश खड़ी रह कर सीमा वंदना को आंसू बहाते देखती रही. फिर आगे बढ़ कर उस ने वंदना का माथा चूम कर एक शब्द मुंह से निकाला, ‘‘थैंक यू.’’

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आगे और कुछ बोले बिना सीमा झटके से मुड़ी और ड्राइंगरूम की दिशा में बढ़ गई.

ड्राइंगरूम में राकेश अभी भी दीवान पर सो रहा था. सीमा ने अपना पर्स मेज पर से उठाया और राकेश से अलविदा कहे बिना उस के घर से बाहर चली आई.

राकेश से हमेशा के लिए अपना अवैध प्रेम संबंध समाप्त करने का फैसला पलपल उस के मन में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा था.

Serial Story: जूठन– भाग 2

‘‘मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी प्रेमिका व दोस्त बन कर रहने को तैयार हूं, पर शादी कर के साथसाथ जिंदगी गुजारने का मजा ही कुछ और होगा. इस बारे में क्या कहते हो राकेश?’’ करीब महीना भर पहले सीमा ने राकेश के फ्लैट में उसे बैड टी पेश करते हुए यह सवाल पूछ ही लिया था.

‘‘तुम तैयार हो तो मैं तुम से आज ही दूसरी शादी करने को तैयार हूं,’’ राकेश ने उस के सवाल का जवाब मजाकिया अंदाज में दिया.

‘‘वैसा करना तो खुद को धोखा देना होगा, राकेश,’’ सीमा गंभीर बनी रही.

‘‘अगर तुम ऐसा समझती हो, तो शादी करने की बात क्यों उठा रही हो?’’

‘‘अपने मन की इच्छा तुम्हें नहीं, तो किसे बताऊंगी.’’

‘‘वह ठीक है, पर हमारी शादी होने का कोई रास्ता है भी तो नहीं.’’

‘‘तुम मुझे दिल की गहराइयों से प्रेम करते हो न?’’

‘‘बिलकुल,’’ राकेश ने उस के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम ने हमेशा मुझ से कहा है कि तुम्हारी पत्नी वंदना नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे दिल पर राज करती हूं. यह सच है न?’’

‘‘हां, वंदना मेरे दोनों बेटों की मां है. वह सीधीसादी औरत वैसे आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन नहीं जैसी मैं चाहता था. अपने मातापिता की पसंद से मुझे शादी नहीं करनी चाहिए थी, पर अब मैं अपना कर्तव्य समझ कर वंदना के साथ जुड़ा हुआ हूं,’’ राकेश ने गंभीर लहजे में उस से अपने मन की बात कही.

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‘‘क्या हमारी खुशियों की खातिर तुम वंदना को तलाक नहीं दे सकते हो?’’ सीमा ने तनावग्रस्त लहजे में अपनी इच्छा बयान कर ही दी.

‘‘नहीं, और इस बारे में तुम मुझ पर कभी दबाव भी मत बनाना, सीमा. वंदना मुझे छोड़ने का फैसला कर ले, तो बात जुदा है. उस से तलाक लेने की बात करते हुए मैं अपनी नजरों में बुरी तरह गिर जाऊंगा, क्योंकि वह तो मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पित है. बिना कुसूर उसे तलाक की पीड़ा से गुजारना बिलकुल अन्यायपूर्ण होगा,’’ राकेश के बोलने का लहजा ऐसा कठोर था कि सीमा ने इस विषय पर आगे एक शब्द नहीं कहा.

उसी दिन सीमा ने वंदना से मिलने का फैसला मन ही मन कर लिया था. ऐसा करने का कोई साफ मकसद उसे समझ नहीं आया, पर वह वंदना के व्यक्तित्व को समझने की इच्छुक जरूर थी. मन के किसी कोने में शायद यह उम्मीद छिपी थी कि वंदना खुद राकेश से अलग हो जाए और इस लक्ष्य को पूरा करने का कोई रास्ता इस मुलाकात के जरीए सीमा के हाथ लग जाए.

वंदना उसे बहुत सीधीसादी साधारण सी महिला लगी. उस ने सीमा का खुले दिल से स्वागत किया, तो सीमा के लिए उस के प्रति अपने मन में चिड़, नाराजगी व दुश्मनी के भाव पैदा करना मुश्किल हो गया.

वंदना के प्रति उसे राकेश का व्यवहार जरूर अजीब लगा. अगर वह राकेश से प्रेम न करती होती, तो उसे अपने प्रेमी का उस की पत्नी से व्यवहार सरासर गलत, घटिया और अन्यायपूर्ण लगता.

अपने घर में राकेश उस के साथ खूब खुल कर हंसबोल रहा था. उसे न सीमा का हाथ पकड़ने से परहेज था, न रोमांटिक वाक्य मुंह से निकालने से. कहीं वंदना यह सब देख न ले, इस बात का भय सिर्फ सीमा को था, राकेश को नहीं. जब एक मौके पर राकेश ने उसे अचानक बांहों में भर कर उस के होंठों को चूमा, तो सीमा बहुत घबरा उठी.

‘‘यह क्या कर रहे हो राकेश? अगर वंदना ने हमें ऐसी गलत हरकत करते देख लिया, तो कम से कम मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होगी,’’ वह सचमुच परेशान और नाराज हो उठी.

‘‘रिलैक्स, सीमा,’’ राकेश लापरवाह अंदाज में मुसकराया, ‘‘मेरे दिल में तुम्हारे लिए सच्चा प्यार है. तुम मेरे लिए सिर्फ वासनापूर्ति का साधन नहीं हो. जो वंदना से कभी नहीं मिली, वह खुशी तुम से जुड़ कर पाई है मैं ने.’’

‘‘लेकिन यहां… वंदना की मौजूदगी में… उस के घर में तुम मुझे प्यार करो, यह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘अब कुछ गड़बड़ नहीं करूंगा, पर तुम एक बात का ध्यान रखो.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘वंदना से डरो मत. अगर कभी उस ने मुझे मजबूर किया, तो मैं तुम्हारा साथ चुनूंगा और उसे छोड़ दूंगा,’’ राकेश की अत्यधिक भावुकता सीमा को अच्छी तो लगी, पर उस के दिल का एक कोना बेचैन भी हो उठा.

सीमा के मन में वंदना के साथ वार्त्तालाप करने की इच्छा अचानक बहुत बलवती हो गई. उस के व्यक्तित्व, उस की खूबियों व कमियों को जाननासमझना सीमा के लिए अहम था. ऐसा किए बिना वह राकेश को उस से अलग करने का कोई रास्ता नहीं ढूंढ़ सकती थी.

उसे अपने मन की इच्छा पूरी होती नजर आ रही थी. राकेश एक पल के लिए उस के पास से उठने के मूड में नहीं था. उस की दिलचस्पी वंदना को बुला कर उसे वार्त्तालाप में शामिल करने में रत्ती भर न थी. वंदना भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. सीमा का मन कह रहा था कि वह जानबूझ कर उन दोनों से दूर रहने को अति व्यस्तता का बहाना बना रही थी.

वंदना ने उन के साथ खाना भी नहीं खाया. सीमा ने काफी जोर लगाया, पर वह साथ खाने नहीं बैठी.

‘‘वंदना हमेशा मुझे खिला कर खाना खाती है. तुम शुरू करो, यह बाद में खा लेगी,’’ राकेश लापरवाही से बोला और फिर बड़े उत्साह के साथ सीमा की प्लेट भरने में लग गया.

सीमा ने नोट किया कि सारी चीजें राकेश की पसंद की और स्वादिष्ठ बनी थीं.

‘‘खाना कैसा बना है?’’ राकेश ने यह सवाल वंदना की उपस्थिति में सीमा से पूछा.

‘‘बहुत बढि़या,’’ सीमा ने उत्साहित लहजे में सचाई बयान करी.

‘‘वंदना वाकई बहुत अच्छा खाना बनाती है. इसी कारण मैं वजन नहीं कम कर पाता हूं.’’

सीमा ने देखा कि राकेश के मुंह से अपनी जरा सी तारीफ सुन कर वंदना का चेहरा फूल सा खिल उठा. राकेश उस की तरफ देख भी नहीं रहा था, पर वंदना की प्यार भरी नजरों का केंद्र वही था.

‘वंदना राकेश को बहुत चाहती है. शायद यह उसे तलाक देने को कभी राजी नहीं होगी,’ सीमा के मन में यह विचार अचानक उभरा और वह बेचैनी से भर गई.

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खाना खाने के बाद राकेश ड्राइंगरूम में पड़े दीवान पर लेट गया. कुछ देर सीमा से बातें करने के बाद उस की आंख लग गई. सीमा उस के पास से उठ कर वंदना से मिलने रसोई में पहुंच गई.

आगे पढ़ें- वंदना को 2 प्लेटों में खाना लगाते देख सीमा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे…

Serial Story: जूठन– भाग 1

मेरठ पहुंचने के बाद सीमा को राकेश का घर ढूंढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. कार से उतर कर वह मुख्य दरवाजे की तरफ चल पड़ी. इस वक्त ऊपर से शांत व सहज नजर आने के बावजूद अंदर से उस का मन काफी बेचैन था.

दरवाजा खोलने वाली स्त्री से नमस्ते कर के उस ने पूछा, ‘‘क्या राकेश घर पर हैं?’’

‘‘तुम सीमा हो न?’’ उस स्त्री की आंखों में एकदम से पहचानने के भाव उभरे और फिर मुसकरा दी.

‘‘हां, पर आप ने कैसे पहचाना?’’

‘‘एक बार इन्होंने औफिस के किसी फंक्शन की तसवीरें दिखाई थीं. अत: याद रह गई. आओ, अंदर चलो,’’ सीमा का हाथ अपनेपन से पकड़ वह उसे घर के भीतर ले गई.

‘‘मैं कौन हूं यह तो तुम समझ ही गई होगी. मेरा नाम…’’

‘‘वंदना है,’’ सीमा ने उसे टोका, ‘‘मैं भी आप को पहचानती हूं. राकेश के फ्लैट में जो फैमिली फोटो लगा है, उसे मैं ने कई बार देखा है.’’

सीमा के कहे पर कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त न कर के वंदना ने सहज भाव से पूछा, ‘‘इन की बीमारी के बारे में कैसे पता चला?’’

‘‘राकेश मेरे सीनियर हैं. उन से रोज मुझे फोन पर बात करनी पड़ती है. अब कैसी तबीयत है उन की?’’ जवाब देते हुए सीमा की आवाज में झिझक या घबराहट के भाव नहीं थे.

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब वे खुद देंगे. मैं उन्हें भेजती हूं. बस यह बता दो कि तुम चायकौफी पीओगी या ठंडा?’’

‘‘कौफी मिल जाए तो बढि़या रहेगा.’’

‘‘तुम हमारी खास मेहमान हो, सीमा. आज तक इन के औफिस के किसी अन्य सहयोगी से

मैं नहीं मिली हूं. तुम्हारी खातिरदारी में मैं कोई कसर नहीं छोड़ूंगी. मैं उन्हें भेजती हूं,’’ बड़े दोस्ताना अंदाज में अपनी बात कह कर वंदना अंदर चली गई.

अकेली बैठी सीमा ने ड्राइंगरूम में चारों तरफ नजर दौड़ाई. हर चीज

साफसुथरी व करीने से सजी थी. वंदना एक कुशल गृहिणी है, यह बात ड्राइंगरूम की हालत साफ दर्शा रही थी.

फिर उस का मन वंदना के व्यक्तित्व के बारे में सोचने लगा. उस के नैननक्श सुंदर होने के कारण सांवला चेहरा भी आकर्षित करता था.

2 बेटों की मां बनने के कारण शरीर कुछ ज्यादा भरा था, पर वह पूरी तरह चुस्त व स्वस्थ नजर आती थी.

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सीमा को पता था कि वह सिर्फ 10वीं कक्षा तक पढ़ी है. उस का यह अनुमान गलत निकला कि वंदना घरगृहस्थी के झंझटों में उलझी परेशान व थकीहारी सी स्त्री निकलेगी. सुबह के 10 बजे उस ने उसे उचित ढंग से तैयार व आत्मविश्वास से भरा पाया था.

कुछ देर बाद राकेश ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. सीमा के बिलकुल पास आ कर उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यहां देख कर बड़ी सुखद हैरानी हो रही है. कल फोन पर तुम ने बताया क्यों नहीं कि यहां आओगी?’’

‘‘मैं बताती, तो क्या तुम मुझे आने देते?’’ सीमा उस के हाथ पर हाथ रख कर शरारती अंदाज में मुसकराई.

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘तभी मैं ने बताया नहीं और चली आई. आज तबीयत कैसी है?’’

‘‘पिछले 2 दिनों से बुखार नहीं आया, पर कमजोरी बहुत है.’’

‘‘दिख भी बहुत कमजोर रहे हो. अभी कुछ दिन आराम करो.’’

‘‘नहीं, परसों सोमवार से ड्यूटी पर आऊंगा. तुम से ज्यादा दिन दूर रहना अच्छा भी नहीं लग रहा है.’’

‘‘जरा धीमे बोलो वरना तुम्हारी श्रीमतीजी सुन लेंगी. वैसे एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो.’’

‘‘क्या वंदना को हमारे प्यार के बारे में अंदाजा है?’’

‘‘होगा ही, पर उस ने अपने मुंह से कभी कुछ कहा नहीं है,’’ राकेश ने लापरवाही से कंधे उचका कर जवाब दिया.

‘‘उन के अच्छे व्यवहार से तो मुझे ऐसा लगा कि उन के मन में मेरे प्रति कोई शिकायत या नाराजगी नहीं है.’’

‘‘तुम मेरी परिचित और सहयोगी हो, और इसी कारण वह तुम से गलत व्यवहार करने की हिम्मत नहीं कर सकती. तुम मेरे घर में बिलकुल सहज हो कर हंसोबोलो, सीमा. वंदना को ले कर मन में किसी तरह की टैंशन मत पैदा करो,’’ उस का गाल प्यार से थपथपाने के बाद राकेश सामने वाले सोफे पर बैठ गया.

राकेश उस से औफिस की गतिविधियों के बारे में पूछने लगा. कुछ देर बाद वंदना कौफी व नाश्ते का सामान मेज पर रख कर चली गई. सीमा ने उसे साथ में कौफी पीने को कहा, पर रसोई के काम का बहाना बना वंदना उन के पास नहीं बैठी.

अपने प्रेमी राकेश से कई दिनों बाद आमनेसामने बैठ कर बातें करते हुए सीमा वंदना को भूल सी गई. वंदना मेज से कपप्लेट उठा कर ले जाने के बाद ड्राइंगरूम में साथ बैठने आई भी नहीं.

सीमा को राकेश के प्रेम में पड़े 1 साल से ज्यादा समय हो चुका था. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली मुलाकात से ही उस के दिलोदिमाग पर जादू सा कर दिया था. दुनिया के कहने की परवाह न करते हुए उस ने कुछ सप्ताह बाद ही अपना तनमन राकेश को समर्पित कर दिया था.

उन के प्रेम संबंध की जानकारी जब सीमा के मातापिता को मिली, तब उन्होंने खूब शोर मचाया.

‘‘मैं अब 30 साल की हो रही हूं. मुझे छोटी लड़की समझ कर रातदिन समझाने की आदत छोड़ दीजिए आप दोनों,’’ सीमा ने एक शाम उन दोनों को सख्त लहजे में समझा दिया, ‘‘मेरी शादी की फिक्र न करें, क्योंकि उचित समय पर इस काम को अंजाम देने में आप दोनों असफल रहे हैं. अपने भविष्य के सुखदुख की चिंता मैं खुद कर लूंगी. अगर मुझे राकेश से मेरे संबंध को ले कर आप दोनों ने परेशान करना जारी रखा, तो मैं अपने रहने का अलग इंतजाम कर लूंगी.’’

सीमा की ऐसी धमकी के बाद उस के मातापिता ने नाराजगी भरी खामोशी इख्तियार कर ली. अपनी कमाऊ व जिद्दी बेटी से जबरदस्ती कुछ करवा या मनवा लेना उन के लिए अतीत में भी कभी संभव नहीं रहा था.

उम्र बढ़ती गई और जब कोई मनपसंद जीवनसाथी सामने नहीं आया तो सीमा ने मन ही मन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन अकेले जिंदगी काटना आसान नहीं होता. अपने परिवार से दूर अकेले रह रहे सुंदर व स्मार्ट राकेश ने प्रयास कर के उस के दिल में प्रेम की जगह बना ही ली थी.

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इस प्रेम संबंध ने सीमा की नीरस जिंदगी में खुशी, संतोष और मौजमस्ती का रस भर दिया. राकेश उस के दिलोदिमाग पर ऐसा छा गया कि उस के साथ जिंदगी गुजारने की इच्छा सीमा के मन में धीरेधीरे मजबूत जड़ें पकड़ने लगी.

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पाखी के भड़काने पर सई को घर से बाहर निकालेगा विराट! पढ़ें खबर

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ में इन दिनों विराट और सई का रोमांस देखने को मिला, जिसके कारण पाखी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. हालांकि आने वाले एपिसोड में सीरियल में नए ट्विस्ट और टर्न्स देखने को मिलने वाले हैं. आइए आपके बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

सई बनाती है प्लान

अब तक आपने देखा कि होली के मौके पर सई, देवयानी और पुलकित की शादी करने का प्लान बनाती है. वहीं सई के कहने पर देवयानी उसके साथ घर से बाहर चली जाती. हालांकि विराट दोनों को जाते हुए देखता तो है लेकिन भांग के नशे में होने के कारण कुछ कर नही पाता.

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विराट को पता चलेगा भागने का सच

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि नशा उतरने के बाद विराट, सई को पूरे घर में ढूंढेगा लेकिन वह उसे नही मिलेगी तो वहीं बाकी घरवाले उसे सई के देवयानी के साथ जाने के बारे में बताएंगे, जिसके बाद वह गुस्से में नजर आएगी. दूसरी तरफ विराट के गुस्से का फायदा उठाते हुए पाखी उसे भड़काने की कोशिश करती नजर आएगी. इसी कारण विराट कहता नजर आएगा कि अगर सई, देवयानी को पुलकित के पास ले गई होगी तो वह नही जानता की उसके खिलाफ क्या कर बैठेगा.

सई को घर से बाहर निकालेगा विराट

 

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देवयानी और पुलकित की शादी के कारण चौहान हाउस में जमकर हंगामा होता नजर आने वाला है. खबरों की मानें तो सई के इस कदम के बाद उसके औऱ विराट के रिश्ते में दरार आ जाएगी. वहीं सई के फैसले पर पाखी दावा करेगी कि सई की वजह से चौहान हाउस की इज्जत मिट्टी में मिल गई है, जिसके कारण विराट जमकर सई को खरी खोटी सुनाता नजर आएगा. साथ ही विराट सई को चौहान हाउस छोड़ने की बात भी कहता नजर आएगा. अब देखना है कि विराट और सई की जिंदगी कौनसा नया मोड़ लेगी.

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इन 4 तरीकों से ब्रेस्ट फीडिंग को बनाइए और आसान

नवजात पैदा होने के तुरंत बाद स्तनपान के लिए तैयार होता है. वह अपने व्यवहार से दर्शाता है कि वह स्तनपान करना चाहता है जैसे चूसने की कोशिश करना, अपने मुंह के पास उंगलियां लाना. पैदा होने के बाद पहले 45 मिनट से ले कर 2 घंटों के भीतर बच्चे का ऐसा व्यवहार देखा जा सकता है.

बच्चे के जन्म के बाद 6 सप्ताह स्तनपान के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं. बच्चे को जन्म के बाद पहले 1 घंटे के अंदर स्तनों के पास रखें. हर 3-4 घंटे में बच्चे की जरूरत के अनुसार उसे स्तनपान कराएं. ऐसा करने से फीडिंग की समस्याएं कम होंगी, साथ ही आप इस से स्तनों में अकड़न की समस्या से भी बचेंगी.

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कैसे करें शुरुआत

– एक आरामदायक नर्सिंग स्टेशन बनाएं और खुद को रिलैक्स रखें.

– स्तनपान कराते समय आरामदायक स्थिति में बैठें, जैसे आप कुरसी पर बैठ सकती हैं या बिस्तर पर बैठ कर तकिए का सहारा ले कर स्तनपान करा सकती हैं. बच्चे को अपने हाथों से सपोर्ट दें. इस दौरान ध्यान रखें कि आप के पैर सही स्थिति में हों. अगर आप बिस्तर पर हैं तो अपने पैरों के नीचे तकिया रखें. इसी तरह अगर कुरसी पर बैठ कर स्तनपान कराना चाहती हैं, तो फुटस्टूल का इस्तेमाल करें.

स्तनपान की कुछ तकनीकें

  1. क्रैडल होल्ड:

स्तनपान की इस तकनीक में आप बच्चे के सिर को अपनी बाजू से सहारा देती हैं. बिस्तर या कुरसी पर आराम से बैठ जाएं. अगर बिस्तर पर बैठी हैं तो तकिए का सहारा लें. अपने पैरों को आराम से किसी स्टूल या कौफी टेबल पर रख लें ताकि आप बच्चे पर झुकें नहीं.

बच्चे को अपनी गोद में इस तरह लें कि उस का चेहरा, पेट और घुटने आप की तरफ हों. अब अपनी बाजू को बच्चे के सिर के नीचे रखते हुए उसे सहारा दें. अपनी बाजू को आगे की ओर निकालते हुए उस की गरदन, पीठ को सहारा दें. इस दौरान बच्चा सीधा या हलके कोण पर लेटा हो.

यह तरीका उन बच्चों के लिए सही है, जो फुल टर्म में और नौर्मल डिलीवरी प्रक्रिया से पैदा हुए हैं. लेकिन जिन महिलाओं में सी सैक्शन हुआ हो, उन्हें इस तकनीक को नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि इस से पेट पर दबाव पड़ता है.

2. क्रौस ओवर होल्ड:

इस तकनीक को क्रौस क्रैडल होल्ड भी कहा जाता है. यह क्रैडल होल्ड से अलग है. इस में आप अपनी बाजू से बच्चे के सिर को सपोर्ट नहीं करतीं.

अगर आप अपने दाएं स्तन से बच्चे को स्तनपान करा रही हैं, तो बच्चे को बाएं हाथ से पकड़ें. बच्चे के शरीर को इस तरह घुमाएं कि उस की छाती और पेट आप की तरफ हो. बच्चे के मुंह को अपने स्तन तक ले जाएं. यह तकनीक बहुत छोटे बच्चों के लिए सही है जो ठीक से लेट नहीं पाते.

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3. क्लच या फुटबौल होल्ड:

जैसाकि नाम से पता चलता है इस तकनीक में आप बच्चे को हाथों से ठीक वैसे पकड़ती हैं जैसे फुटबौल या हैंडबैग (उसी तरफ जिस तरफ से स्तनपान करा रही हैं).

बच्चे को अपनी बाजू के नीचे साइड में इस तरह रखें कि उस की नाक का स्तर आप के निपल पर हो. गोद में तकिया रख कर अपनी बाजू उस पर टिका लें और बच्चे के कंधे, गरदन और सिर को हाथ से सपोर्ट करें. सी होल्ड से बच्चे को निपल तक ले जाएं.

यह तकनीक उन महिलाओं के लिए अच्छी है जिन के बच्चे सिजेरियन से पैदा हुए हों.

4. रिक्लाइनिंग पोजिशन:

बच्चे को इस तरह अपने पास लाएं कि उस का चेहरा आप की तरफ हो. उस के सिर को नीचे वाली बाजू से सपोर्ट करें और नीचे वाला हाथ उस के सिर के नीचे रखें.

अगर बच्चे को स्तन तक लाने के लिए थोड़ा ऊंचा करने की जरूरत हो तो छोटा सा तकिया या फोल्ड की हुई चादर उस के सिर के नीचे रखें. ध्यान रखें कि बच्चे को आप के निपल तक पहुंचने के लिए अपनी गरदन पर खिंचाव न लाना पड़े और न ही आप को झुकना पड़े.

अगर आप के लिए बैठना मुश्किल है, तो आप इस तरह से लेट कर बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं. इस के अलावा जब आप रात या दिन में आराम कर रही हों, तो भी इस तरह बच्चे को लेटेलेटे स्तनपान करा सकती हैं.

स्तनपान कराने के बाद बच्चे को डकार दिलवाना बहुत जरूरी होता है. इस के लिए उस के पेट पर हलके से दबाव डालें. अगर 5 मिनट बाद भी बच्चे को डकार न आए और वह सहज लगे तो डकार दिलवाने की जरूरत नहीं है.

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कोविड के दौरान आई समस्या के बारें में बता रही है सोशल वर्कर डॉ. गीतांजलि चोपड़ा

अगर आपमें कुछ करने की इच्छा हो, तो परिस्थियाँ सही न होने पर भी आप उसे कर गुजरते है, कुछ ऐसा ही काम करती है दिल्ली की डॉ. गीतांजलि चोपड़ा, जो अकादमी सदस्य, रिसर्चर, कोलोमनिस्ट और फिलान्थ्रोपिस्ट है. उनकी संस्था ‘विशेज एंड ब्लेसिंग्स’ के द्वारा जरुरत मंदों के लिए खाना, सुलभ शिक्षा, निरोगी जीवन और बुजुर्गों का केयर आदि किया जाता है. उनके इस काम के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है. उनकी संस्था भारत सरकार की नीति आयोग दर्पण में रजिस्टर्ड है. पंजाबी परिवार  में जन्मी गीतांजलि ने बचपन से अपने माता-पिता और दादा-दादी को जरुरतमंदों की सेवा करते हुए देखा है. संस्था की 7वीं वर्षगाँठ की उपलक्ष्य पर डॉ. गीतांजलि से बात हुई, आइये जाने, उनका क्या कहना है. 

मिली प्रेरणा 

इस काम में प्रेरणा के बारें में डॉ. गीतांजलि कहती है कि जरुरत मंदो की सेवा करने की प्रेरणा परिवार से मिला है, इसके अलावा जब मैं कैरियर की ऊंचाई पर थी, होली के अवसर पर आंशिक रूप से नेत्रहीन बच्चों के साथ होली खेली थी. उसके बाद मुझे बहुत अधिक ख़ुशी और संतुष्टि मिली, जो किसी काम में मुझे अबतक नहीं मिली थी. तब मैंने समझा कि मुझे इसी क्षेत्र में काम करना है और मैंने काम शुरू कर दिया. मेरी संस्था में जिस व्यक्ति की इच्छा किसी कारण वश पूरी नहीं हो पायी हो, उसे पूरा करने में मदद करना है.

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काम संस्था की  

डॉ. गीतांजलि कहती है कि इस संस्था का काम दिल्ली और आसपास के 700 लोगों को भोजन वितरण करना है, इसके अलावा अनाथ, स्ट्रीट और एच आई वी पीड़ित बच्चों के लिए शिक्षा, उनके स्वास्थ्य की देखभाल और एडहाक बेसिस पर किसी की किडनी ट्रांसप्लांट में मदद करना, आदि है. इसके अलावा स्ट्रीट चिल्ड्रेन को पकड़ने के बाद उन्हें बातचीत करने का तरीका, साफ-सफाई, खाना खाने की आदते, लिखने-पढने का तरीका आदि सिखाकर स्कूल के लिए तैयार किया जाता है और सरकारी स्कूल में एडमिशन करा दिया जाता है. इन बच्चों के माता-पिता सब्जी बेचना, कचरा बिनना, रिक्शा चलाना आदि काम करते है. इनके पास ठीक-ठाक घर भी नहीं है, इसलिए सुबह 9 बजे से 5 बजे तक ये बच्चे मेरी देख-रेख में होते है. इस दौरान उन्हें खाना भी खिलाया जाता है. इनमे कई बच्चे खेल-कूद में होशियार होते है. उन्हें स्पोर्ट्स में भाग लेने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा एच आई वी पॉजिटिव वाले बच्चे जो स्कूल नहीं जा पाते, उनकी देखभाल मैं करती हूँ. कोविड 19 से पहले मेरी 20 संस्था दिल्ली में काम कर रही थी, अभी 7 राज्यों में मेरी संस्था काम कर रही है.

इसके आगे डॉ. गीतांजलि कहती है कि कोविड के समय कमर्शियल सेक्स वर्कर्स और ट्रांसजेंडर्स की हालत सबसे ख़राब थी. कोविड और लॉकडाउन के बीच कोई काम उनके लिए नहीं था. इसलिए मैंने सभी से बात कर उन्हें हर महीने राशन करीब 100 परिवारों को दिया है. ट्रांसजेंडर्स को भी मदद करना पड़ा, क्योंकि उन्हें कोविड और लॉकडाउन के दौरान किसी घर में खास अवसर पर घर में घुसकर नाच गाना करने नहीं देते थे. मैंने ऐसे 150 परिवार को राशन किट दिया, लेकिन अब उनका काम शुरू हो चुका है. उन्हें अब देने की जरुरत नहीं पड़ती.

कमी विश्वास की 

फंडिंग के लिए डॉ. गीतांजलि के कई डोनर्स है, जो उन्हें समय-समय पर पैसे देते है, जिसका पूरा हिसाब पारदर्शिता के साथ डोनर्स तक पहुँचाया जाता है. वह कहती है कि वित्तीय समस्या अधिक नहीं आती, कभी आ जाने से फण्ड रेजर इवेंट्स किया जाता है. इस काम में समस्या अधिकतर डोनर्स के विश्वास का कम होना है. इसके अलावा जिन लोगों की मैं मदद करती  हूँ उन्हें विश्वास नहीं होता कि मैं ये काम उन बच्चों के लिए क्यों कर रही हूँ. आज सोशल सेक्टर में कोई आना नहीं चाहते, इसलिए वर्कफ़ोर्स की कमी होती है. संस्था दिखने में कोर्पोरेट की तरह होती है. कोर्पोरेट प्रॉफिट के लिए काम करता है, जबकि एनजीओ नॉन प्रॉफिट के लिए काम करती है. जो लोग आते भी है, वे कम पैसे होने की वजह से छोड़ देते है. मेरी टीम में 20 से 25 लोग है. इसके अलावा काफी वोलेंटियर्स है, जो फील्ड पर काम करते है, ऐसे 100 से 150 लोग होते है. इस समय झाड़खंड में ओल्ड केयर होम और असाम में काम चल रहा है. कोविड के समय जब मैंने ट्रेवल किया तो देखा कि लोगों के पास काम और खाना खाने के पैसे तक नहीं है. इसलिए मैं अब दिल्ली से बाहर जाकर भी काम करने  लगी हूँ. सरकार की सहायता नहीं मिलती और मैं लेना भी नहीं चाहती.

 सहयोग परिवार का 

डॉ.गीतांजलि का कहना है कि परिवार का सहयोग  पहले नहीं था, क्योंकि मैं एक स्टाब्लिश जॉब को छोड़ रही थी और बहुत एजुकेशन भी ले चुकी थी, लेकिन जब ससुराल वालों ने इस काम से मेरी ख़ुशी को देखा, तो खुद ही वे मुझे सहयोग देने लगे. कई बार संस्था के काम को लेकर समस्या हुई है, लेकिन परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा. बच्चे नहीं है, लेकिन मेरे पास 600 बच्चे है, जिन्हें मेरी जरुरत है. 

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समस्या अनगिनत 

डॉ.गीतांजलि की समस्या ओल्ड ऐज होम में आने वाले नए इंसान को समझाना मुश्किल होता है, जबकि वे यहाँ सुरक्षित और अपने घर में रह रहे है, क्योंकि यहाँ आने वाले अधिकतर बुजुर्गों को मारपीट कर घर से निकाल दिया जाता है. ये मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है. उन्हें मुझपर विश्वास नहीं होता. इसके अलावा एच आई वी संक्रमित बच्चों को स्कूल में भर्ती करवाना, जवान लड़कों और लड़कियों को स्कूल भेजना, ये सभी काम तनावपूर्ण और समस्या युक्त होते है. इन बच्चों के माता-पिता को भी लगता है कि पढ़ लिखकर बच्चे क्या करेंगे, इससे अच्छा है कि ये भीख मांगकर कुछ कमा सकते है. हर स्तर पर समस्या है.

जरुरत जहां, पहचूं वहां 

कोविड के समय ओल्ड एज होम में बुजुर्गों को रखना भी एक समस्या हो चुकी है, क्योंकि उन्हें बाहर निकलने नहीं दिया जाता, इस पर वे क्रोधित हो जाते है. कोविड में वित्तीय संकट भी आई है, पर मैंने इसे कुछ हद तक सुलझा लिया है. अभी मैं बंगाल में अधिक काम करने की इच्छा रखती हूँ, क्योंकि वहां गाँव-गाँव में बहुत गरीबी है. जहाँ मेरी जरुरत है, वहां मैं पहुँच सकूँ, यही मेरी इच्छा है.

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