#ssrbirthday: भाई सुशांत को याद कर इमोशनल हुईं श्वेता, शेयर किया खास पोस्ट

बीते साल 2020 में कई सेलेब्स ने इस दुनिया को अलविदा कहा. लेकिन कुछ सितारों की मौत ने दुनिया को चौंका दिया. वहीं इन नामों में बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का नाम भी शादी है. पिछले साल 14 जून अपने बांद्रा स्थित फ्लैट में मृत पाए गए सुशांत को आज हर कोई याद कर रहा है. दरअसल, आज यानी 21 जून को सुशांत सिंह राजपूत का 35वां बर्थडे हैं. लेकिन वह आज हमारे साथ नही हैं, जिसका दुख उनके फैंस और फैमिली को बेहद महसूस हो रहा है. वहीं इस खास दिन पर उनके फैंस के साथ-साथ उनकी बहन श्वेता सिंह कीर्ति उन्हें याद करते हुए एक पोस्ट शेयर किया है. आइए आपको दिखाते हैं भाई के लिए एक बहन का खास पोस्ट….

भाई की फोटो की शेयर

दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत के जन्मदिन के मौके पर श्वेता सिंह कीर्ति ने एक थ्रोबैक फोटोज का कोलाज शेयर किया है, जिसमें सुशांत सिंह राजपूत, उनकी बहन श्वेता सिंह कीर्ति, उनकी भतीजी और पूरा परिवार नजर आ रहा है. वहीं इन फोटोज में सुशांत के बचपन की भी एक फोटो मौजूद है.

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सुशांत को पल पल याद कर रहीं हैं उनकी बहन

इकलौते भाई के अचानक चले जाने के बाद से श्वेता सिंह कीर्ति अक्सर सुशांत को याद करती रहती हैं. वहीं बर्थडे के खास मौके पर भी कोलाज के साथ श्वेता ने एक खास मैसेज शेयर करते हुए लिखा “लव यू भाई. आप मेरा हिस्सा हो और हमेशा ही रहोगे..” इसी के साथ जहां श्वेता के इस पोस्ट पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं तो वहीं ट्विटर पर #ssrbirthday, #ssrday के नाम से ट्रैंड कर रहे हैं.

सुशांत के बर्थडे पर किया ये काम

श्वेता सिंह कीर्ति ने सुशांत के बर्थडे पर एक नई खास चीज भी शुरु की है, जिसके चलते उन्होंने एक पोस्ट शेयर किया है और लिखा है कि “मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि भाई के 35वें जन्मदिन पर, उनके एक सपने को पूरा करने की ओर कदम बढ़ाया है. यूसी बर्कले में सुशांत सिंह राजपूत मेमोरियल फंड 3500 डॉलर देगा. यूसी बर्कले में एस्ट्रोफिजिक्स में रूचि रखने वाला कोई भी छात्र इसके फंड के लिए अप्लाई कर सकता है.” उन्होंने आगे लिखा,”हैप्पी बर्थडे मेरे छोटे भाई. उम्मीद करती हूं, तुम जहां भी हो खुशी से रह रहे होगे.”

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बता दें, सुशांत सिंह राजपूत के बर्थडे पर फैंस और फैमिली के साथ-साथ सेलेब्स भी अपनी बातें शेयर कर रहे हैं. वहीं एक्ट्रेस कंगना रनौत ने इस मौके पर एक बार फिर रिया चक्रवर्ती पर ताना कसा है, जिसके चलते कुछ लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं.

 इम्यूनिटी बढ़ाने के 7 टिप्स

2020 हम सब के लिए काफी अलग रहा. घूमनेफिरने पर रोक, लोगों से मिलनेजुलने की मनाही यानी लाइफस्टाइल पूरी तरह से बदल गई थी. लेकिन अब जब हम 2021 में नई उम्मीदों के साथ कदम रख चुके हैं तो हमें अपने अंदर पौजिटिविटी लाने के साथसाथ न सिर्फ अपनी मैंटल, बल्कि फिजिकल हैल्थ पर भी काफी ध्यान देना होगा ताकि खुद को फिट रख कर हर बीमारी से लड़ सकें.

तो आइए जानते हैं उन 7 चीजों के बारे में, जिन्हें आप अपने लाइफस्टाइल में ला कर अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकते हैं.

खानपान का रखें खास खयाल

जब भी हमारा ब्रेन थक जाता है तो वह सिगनल जरूर देता है जैसे आप काम में मन नहीं लगा पाते, अच्छी तरह नहीं सोच पाते. ऐसा अकसर तब होता है जब आप भरपूर नींद नहीं लेते हैं या फिर सोने के समय को टीवी या फिर मोबाइल देखने में लगा देते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप का ऐसा करना आप की इम्यूनिटी को भी कमजोर बनाने का कारण बन सकता है? एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि नींद और हमारी इम्यूनिटी सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं, क्योंकि जब हम सोते हैं तो हमारा इम्यून सिस्टम कुछ खास तरह के कीटौकिंस रिलीज करता है, जो इन्फैक्शन, जलन, सूजन और तनाव को कम करने में सहायक होता है.

लेकिन जब हम पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं तो ये सुरक्षा प्रदान करने वाले टौक्सिंस और संक्रमण से लड़ने वाली ऐंटीबौडीज बननी कम हो जाती हैं, जो हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाने का काम करती हैं. इसलिए जरूरी है कि रोज 6-7 घंटे की नींद जरूर लें खासकर रात की नींद से बिलकुल सम?ौता न करें.

दिमाग को दें आराम

कोरोना महामारी के कारण पिछले कुछ महीनों से घर में रहने के कारण हमारा लाइफस्टाइल काफी खराब हो गया है. ज्यादा खाने की हैबिट व ऐसे स्नैक्स को पसंद करने लगे हैं, जिन में न्यूट्रिऐंट्स बहुत कम होते हैं और फैट्स, शुगर व साल्ट की मात्रा काफी होती है, जो शरीर को अंदर से खोखला बनाने के साथसाथ आप को बीमारियों की गिरफ्त में भी ला देती है.

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रिसर्च में यह साबित हुआ है कि प्लांट बेस्ड फूड्स, सब्जियां, फल ऐंटीऔक्सीडैंट्स में रिच होने के साथसाथ बीटा कैरोटिन, विटामिन सी, डी और ई जैसे न्यूट्रिऐंट्स प्रदान करते हैं, जो इम्यूनिटी को बूस्ट करने के साथसाथ औक्सिडेटिव स्ट्रैस को भी कम करने में मदद करते हैं.

बीटा कैरोटिन में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होने के कारण ये शरीर में बीमारियों से लड़ने वाले सैल्स को बढ़ा कर जलन व सूजन को कम करने तथा इम्यूनिटी को मजबूत बनाने का काम करते हैं. इस के लिए आप अपनी डाइट में गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियों को जरूर शामिल करें.

विटामिन ए और सी शरीर में फ्री रैडिकल्स को खत्म कर के इम्यून सिस्टम को सुचारु रूप से काम करने में मदद करते हैं. इस के लिए आप अपनी डाइट में संतरा, ब्रोकली, नट्स, पालक, नीबू, स्ट्राबेरी तथा फलों व सब्जियों को शामिल करें. आप विटामिन डी के लिए सुबह की धूप लेने के साथसाथ सप्लिमैंट्स भी लें, जो इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं.

इस से आप की बौडी इन्फैक्शन से लड़ने में सक्षम बन जाती है. अत: आप बीमारियों से बचना है तो अपने खानपान में हैल्दी चीजों को जरूर शामिल करें.

से नो टु अलकोहल

शराब का एक जाम आप की रात को सुहावना बना देता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप की रोजाना शराब पीने की आदत आप की इम्यूनिटी को भी प्रभावित करने का काम करती है? एक अध्ययन के अनुसार, अलकोहल के ज्यादा सेवन करने से फेफड़ों व ऊपरी स्वशन तंत्र में इम्यून सैल्स को काफी नुकसान पहुंचता है. इसलिए नए साल से अलकोहल को अपनी जिंदगी से करें आउट.

हो सकता है शुरुआत में आप को इसे छोड़ने में दिक्कत हो, लेकिन आप की विल पावर इसे छोड़ने में आप की मदद करेगी. जब भी आप का मन शराब पीने का करे तो नीबू पानी, सूप, जूस लें, क्योंकि ये शरीर को डीटौक्स करने के साथसाथ आप को अलकोहल से दूर करने में भी आप की मदद करेंगे.

बूस्ट योर इम्यूनिटी

कुछ शोधों में साबित हुआ है कि ऐक्सरसाइज से इम्यूनिटी बूस्ट होती है. लेकिन आजकल लोगों का रूटीन इतना बिजी हो गया है कि वे खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पाते हैं. ऐसे में अगर आप के पास मौडरेट ऐक्सरसाइज करने के लिए समय नहीं है तो आप रोज 15 मिनट ऐक्सरसाइज जरूर करें. इस में आप ब्रिस्क वाक, जौगिंग, साइक्लिंग को शामिल कर सकते हैं.

अगर आप को स्विमिंग का शौक है तो यह आप के लिए काफी अच्छी ऐक्सरसाइज साबित होगी. रिसर्च में यह भी साबित हुआ है कि अगर आप हफ्ते में 150 मिनट मौडरेट ऐक्सरसाइज करते हैं तो यह आप के इम्यून सैल्स के पुनर्निर्माण में मदद करती है.

पानी से रखें खुद का खयाल

क्या आप जानते हैं कि 60% तक वयस्क शरीर पानी से बना होता है, जिस में फेफड़ों में 83% पानी और हार्ट और ब्रेन में 73% पानी होता है? आप के शरीर के हर सिस्टम को ठीक से काम करने के लिए पानी की जरूरत होती है. लेकिन जब हम खाना खाते हैं, सांस लेते हैं या फिर जब शरीर से पसीना निकलता है तो हमारे शरीर से पानी कम होता है, जिस की पूर्ति हम जो पानी या फिर फ्लूड लेते हैं उस से पूरी होती है.

इसलिए जरूरी है कि दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं. पानी के जरीए औक्सीजन और न्यूट्रिऐंट्स पूरी बौडी में पहुंच कर विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल कर आप को बीमारियों से बचाते हैं. इसलिए खूब पानी, नीबू पानी, कुनकुना पानी पीएं. क्योंकि ये ब्लड सर्कुलेशन को इंप्रूव करने, बौडी को डीटौक्स कर के आप की इम्यूनिटी को मजबूत बनाने का काम करते हैं.

मैंटेन करें हैल्दी वेट

इम्यून सिस्टम विभिन्न तरह के सैल्स से बनता है, जो शरीर को बैक्टीरिया, वायरस से बचाने का काम करता है. इन सब को शरीर में एकसाथ संतुलन के साथ रहना होता है ताकि शरीर फिट रहे. लेकिन शरीर में जब फैट की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह इम्यून सैल्स को कमजोर बनाने का काम करता है, जिस से शरीर बीमारियों से अच्छी तरह लड़ नहीं पाता और कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है.

इसलिए इम्यून सिस्टम को ठीक से कार्य करने के लिए अपने वेट को मैंटेन रखें.

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स्ट्रैस को कहें बायबाय

हमारी लाइफ में कब कैसी स्थिति आ जाए, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में न चाहते हुए भी हम स्ट्रैस की गिरफ्त में आ जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस के कारण शरीर में जलन व सूजन होने से हमारी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है, क्योंकि जब हम तनाव में रहते हैं तो हमारे इम्यून सिस्टम की एंटीजन्स से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है, जिस से हमें इन्फैक्शन होने का डर काफी बढ़ जाता है.

इसलिए स्ट्रैस में न रहें. स्ट्रैस को कम करने के लिए चाहे जैसी भी परिस्थिति हो पौजिटिव सोचें, ब्रेन को आराम दें, नियमित ऐक्सरसाइज करें, हैल्दी ईटिंग हैबिट्स फौलो करें. इस तरह अपने लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकते हैं.

सैनिटाइज करने से मेरी स्किन ड्राय और बेजान हो रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

इस सदी में कोरोना महामारी के साथ हाथों को नियमित धोना और उन्हें लगातार सैनिटाइज करना बेहद जरूरी है, लेकिन हर घंटे हाथ धोने या सैनिटाइज करने से मेरी त्वचा ड्राई और बेजान हो रही है. मैं अपने हाथों की देखभाल कैसे करूं?

जवाब-

हाथों की केयर के लिए आप मौइस्चराइजिंग वाले साबुन से हाथ धोएं या जैल युक्त सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें. हर बार हाथ धोने के बाद सामान्य मौइस्चराइजर या वैसलीन का हाथों पर इस्तेमाल करें. अगर हाथों की त्वचा रूखी और दरारों वाली है तो उस को ठीक करने के लिए हाथों पर बारबार नारियल तेल का इस्तेमाल करें.

झाड़ूपोंछा, बरतन, कपड़े की सफाई करते समय जब आप डिटर्जेंट या डिस्इनफेक्टैंट का इस्तेमाल करते हैं तो ग्लव्स पहन कर रखें. अगर आप की त्वचा

पर कट या हाथों पर ड्राई पैच बन गए हैं, जो मौइस्चराइजर के उपयोग से भी ठीक नहीं हो रहे हैं तो किसी डर्मेटोलौजिस्ट से इस का ट्रीटमैंट करवाएं.

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लौकडाउन के दौरान घर का काम करते हुए हाथों और पैरों का इस्तेमाल सब से ज्यादा होता है. आजकल हमें ऐसे कई तरह के काम करने पड़ रहे हैं जो हाथों की त्वचा को सीधा नुकसान पहुंचाते हैं. जैसे कपड़े धोते समय तरहतरह के डिटर्जेंट का उपयोग करना पड़ता है. उन में केमिकल्स कंपोनेंट काफी हाई होता है. यही नहीं कपड़े धोते समय कभी गर्म तो कभी ठंडे पानी का इस्तेमाल होता है. यह सब हमारे हाथों के लिए काफी परेशानी पैदा करते हैं. त्वचा पर रैशेज या फिर इरिटेशन हो जाती है.

इसी तरह बर्तन धोते समय भी हम कई बार जूना, हार्ड स्पंज वाले स्क्रबर या ब्रश का प्रयोग करते हैं. बर्तन की सफाई के लिए लिक्विड सोप या गर्म पानी का इस्तेमाल करते हैं. इस से नाखूनों के साथसाथ हथेलियों की आगे और पीछे की त्वचा पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- कोरोना काल में कैसे करें हाथों की देखभाल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Beauty Blog: मेरा सफ़र बालों के संग

जब से  मैंने होशा संभाला था, अपने बालों को एक सुनामी जैसे पाया था.12 या 13 वर्ष की उम्र उस समय( 90 के दशक में) इतनी ज्यादा नही होती थी कि मुझे कुछ समझ आता .तेल से तो उस समय मेरा दूर दूर तक नाता नही था.शायद ही कभी तेल को बालों में लगाया हो.मेरे बाल बहुत घने थे जिसके लिए अधिकतर लोग तरसते हैं.मेरी अपनी सहेलियां और दूर पास की रिश्ते की बहने मेरे जैसे बाल चाहती थी.मेरे बाल वेवी थे इसलिए बिना ड्रायर के ही हमेशा फूले हुए लगते थे.

बाल क्योंकि वेवी थे,इसलिये मेरी मम्मी हमेशा बोयकट ही करवाती थी .बॉय कट के कारण मुझे अपना साधरण चेहरा और अधिक साधरण लगता था.कंडीशनर, स्पा इत्यादि का तब प्रचलन नही था.बाल धोने के लिए हमे हफ़्ते में एक बार ही शैम्पू मिलता था .हफ्ते में बाकी दिन मुझे नहाने के साबुन से ही बाल धोने पड़ते थे.साबुन से धोने के कारण और तेल या अन्य कोई घरेलू नुस्खा  ना अपनाने के कारण मेरे कड़े बाल और अधिक रूखे और कड़े हो गए थे.

पर फिर भी बिना किसी प्रकार की देखभाल के भी मेरे बाल ना झड़ते थे, ना टूटते थे.

फिर जब मैं कॉलेज में आई तो स्टेपकट करा लिया जो मेरे बालो के टेक्सचर कारण अच्छा लगता था.फिर शुरू हुआ इक्का दुक्का सफ़ेद बालो का दिखना.अब सोचती हूँ कि उन सफ़ेद बालो को ऐसे ही छोड़ सकती थी. पर मैंने अपने बालों में मेहंदी लगानी शुरू कर दी थी.हर 15 दिन बाद में मेहंदी लगा लेती थी, बाल चमकने के साथ साथ बहुत सख्त भी हो गए थे.ये सारे प्रयोग मैं  चाची, नानी इत्यादि के घरेलू नुस्खों की मदद से कर रही थी.

जब भी बाल कटाने जाती तो हमेशा कहा जाता कि मेहंदी की एक परत मेरे बालो पर जम गई हैं.अधिक मेहंदी बालो के लिए नुकसानदेह हैं.पर मैने अधिक ध्यान नही दिया.विवाह के पश्चात मेरे ब्यूटी रूटीन में कंडीशनर भी जुड़ गया था.अब मैं हफ़्ते में तीन दिन बाल धोती थी और बाद में कंडीशनर लगाती थी.

पर यहाँ भी मैंने एक गलती करी थी कि मैंने शैम्पू और कंडीशनर का चुनाव अपने बालों के हिसाब से नही बल्कि मूल्य के हिसाब से किया था.

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फिर विवाह के डेढ़ वर्ष बाद मैंने बेटी को जन्म दिया .बाल बेहिसाब झड़ रहे थे, सब ये ही कह रहे थे कि माँ बनने के बाद ये बदलाव नार्मल हैं.बेटी के जन्म के पश्चात मुझे हाइपोथायरायडिज्म की समस्या भी हो गई थी. पर फिर भी मैंने अपने बालों की देखभाल में कोई परिवर्तन नही किया था. फिर धीरे धीरे जब मेहंदी की परत के कारण जब मेरे बाल एकदम लाल हो गए तो परिवार के कहने पर मैंने हेयर कलर करना आरंभ कर दिया था.ये बात झूठ नही होगी अगर मैं ये कहूं कि कलर के बाद बाल थोड़े ज्यादा अच्छे लगते हैं और उनमें रूखापन भी थोड़ा कम हो जाता हैं.कभी घर पर कलर करती थी और कभी पार्लर में.जब भी पार्लर में कलर करवाने जाती ,एक ही बात बताई जाती”स्पा लेना जरूरी हैं”

पर जैसे की आमतौर पर सबको लगता हैं, मुझे भी ये ही लगा कि ये पार्लर वाले ,पैसा उघाहने के कारण ऐसा बोलते हैं.32 वर्ष से 40 वर्ष तक लगातार कलर करने के कारण बाल इतने अधिक रूखे हो गए थे जैसे कोई झाड़ू हो.फिर भी मैंने कुछ नही सीखा और घुस गई हेयर केराटिन की दुनिया में. पार्लर में बोला गया ये मेरे बालो को एकदम ठीक कर देगा पर मुझे स्पा कराना जरूरी हैं.

अब मैं एक बात बताना चाहूंगी कि केराटिन, स्मूथीनिंग या स्ट्राइटेनिंग सब मे केमिकल्स का ही प्रयोग होता हैं.इस भुलावे में मत रहे कि केराटिन में केमिकल्स नही होता हैं. हेयर कलर हो या किसी भी प्रकार का हेयर ट्रीटमेंट सब मे केमिकल्स होते हैं.जरूरत हैं कि अपने बालों को समझ कर उस हिसाब से ही देखभाल करें.

अब इतने वर्षो बाद मुझे समझ आया हैं कि आपके बालों को आपसे बेहतर कोई नही समझ सकता हैं.अपने पति, बच्चो, बहन, दोस्तो या फिर पार्लर के कहने पर बालो पर कदापि भी प्रयोग मत करे.ये बात याद रखिये ये आपके बाल हैं ,कोई प्रयोगशाला नही हैं.उल्टे सीधे प्रयोग बंद कीजिए.

अब 44 वर्ष की उम्र में ये तो नही कहूंगी कि मेरी जुल्फें काली, रेशमी और घनी हो गयी है.पर मैंने अब अपने बालों को समझ कर उनकी देखभाल आरंभ कर दी हैं.आईये मैं कुछ छोटे छोटे टिप्स शेयर करती हूँ शायद ये आपके लिए भी फायदेमंद साबित हो.ये सारे ही टिप्स या सुझाव मेरे अपने अनुभव पर आधरित हैं.

1.आयल मसाज हैं ज़रूरी-ऑयल मसाज  का कोई भी विकल्प नही हैं.बाजार में उपलब्ध खुश्बूदार तेल के बजाय घर मे उपलब्ध सरसों का तेल या प्राकृतिक नारियल के तेल का इस्तेमाल करे.बाल धोने से पहले मसाज आवश्यक हैं.अगर रात भर तेल लगा कर नही रख सकती हैं तो कम से कम दो  घँटे पहले अवश्य रखे.

2.घरेलू हेयर मास्क चुने बालो के हिसाब से-दो चम्मच प्याज का रस बालो पर अगर आप धोने से पहले लगाती हैं तो ये आपके बालों को मुलायम बनाने के साथ साथ मजबूत भी बनाता हैं.मेथी दाना और दही का मास्क भी रूखे बालो के लिए लाभकारी हैं.मुल्तानी मिट्टी का पैक तैलीय बालो के लिए उत्तम हैं. आपकी रसोई में ही सब कुछ हैं पर जरूरत हैं अपने बालों को समझे और फिर उनकी देखभाल करे.अकसर हम दूसरों की देखादेखी कोई भी हेयर मास्क लगा लेते हैं जो सही नही हैं.

3.हेयर कलर और हेयर स्पा साथ साथ हैं-अगर आप हेयर कलर करती हैं तो माह में कम से कम एक बार हेयर स्पा जरूरी हैं.तीन माह में एक बार हेयर कलर पार्लर पर करवा सकती हैं .टच उप हर 15 दिन में घर पर कर सकती हैं.हेयर स्पा भी आप एक माह घर पर और एक माह पार्लर पर करवाए. बालो की सेहत बनी रहेगी.

4.नेचुरल बालों से ही होती हैं शान-जहाँ  तक हो सके बालो पर रिबॉन्डिंग, केराटिन या कर्लिंग मत करवाए. ये सब केमिकल ट्रीटमेंट हैं जो आपके बालो की क्वांटिटी और क़्वालिटी दोनो को खराब कर देते हैं.आपके बाल चाहे सीधे हो, घुंघराले हो या फिर वेवी हो उन्हें वैसे ही रहने दे.ये केमिकॉली ट्रीटेड बालो से अधिक मजबूत और घने होते हैं.

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5.ट्रिमइंग हैं जरूरी- हर दो या तीन माह में ट्रिमिंग अवश्य कराए.ट्रिमिंग कराते रहने से बाल संभले हुए और बेहतर लगते हैं.

6.विटामिन और मिनरल्स को भी बनाये साथी- विटामिन्स और मिनरल्स को फल, सब्ज़ी या कैप्सूल के रूप में अपनी थाली में शामिल कर ले.जिंक, विटामिन ई इत्यादि बालो के लिए बहुत अच्छे रहते हैं

7.हार्मोनल इम्बलनस का कराया उपचार- हाइपोथायरायडिज्म बालो को रूखा करता हैं.बालो के झड़ने के पीछे भी इसका भी हाथ होता हैं.अगर कोई हार्मोनल असंतुलन हैं तो उसका उपचार अवश्य करवाए.

8.उम्र के हिसाब से करे देखभाल में परिवर्तन- जो हेयर मास्क 20 की उम्र के लिए कारगर हैं वो 40 में नही होगा.अपनी उम्र, जीवनशैली के हिसाब से ही अपने बालों की देखभाल करे.

आपके बालों का टेक्सचर आपकी जीन, आपकी जीवनशैली पर बहुत हद तक निर्भर करता हैं.पर अपने अनुभव के आधार पर ये अवश्य कह सकती हूँ कि थोड़ी सी मेहनत से, कुछ सजगता से हम बालो को संभाल जरूर सकते हैं.

घर को दें प्रकृति का साथ

पौधों से सजा धजा घर किसे अच्छा नहीं लगता. देखने में सुंदर लगने के साथ साथ पेड़ पौधे मन को भी बड़ा सुकून देते हैं. कोरोना के बाद से तो इंसानों का प्रकृति के प्रति झुकाव और अधिक हो गया है तथा सेहतमंद रहने के लिए घरों की आबोहवा को स्वस्थ और ताजे रखने के लिए स्मार्ट उपाय खोजे जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त कोरोना ने हमें यह भी सिखा दिया कि जिंदगी में ऐसा वक्त भी आ सकता है जब कि महीनों घरों में बंद रहने को हम मजबूर हो जाएं ऐसे में घर के पेड़ पौधे दिल दिमाग पर नकारात्मकता को हावी नहीं होने देते.

बढ़ते वायु प्रदूषण के असर को कम करने में भी पेड़ पौधे कारगर हैं परन्तु आजकल महानगरों में फ्लैट कल्चर के चलते पेड़ पौधों को लगाने के लिए जगह का अभाव होता है. हाल ही में की गई एक रिसर्च के अनुसार आज 10 में से 8 घरों में प्राइवेट गार्डन के लिए जगह नहीं होती ऐसे में प्रकृति को कैसे घरों में प्रवेश कराया जाए इसके लिए निरन्तर विकल्प तलाशे जा रहे हैं. तो आइए हम आपको बताते हैं गार्डनिंग की कुछ तकनीकें जिनको अपनाकर आप अपने छोटे घरों में भी पेड़ पौधों को समुचित स्थान दे सकते हैं-

-बालकनी गार्डनिंग

रिसर्च के अनुसार 2021 में बालकनी गार्डनिंग सबसे बड़ा ट्रेन्ड साबित होगा. बालकनी में जैस्मीन, लेवेंडर, यूकेलिप्टस, स्नैक प्लांट, क्रोटन, जेड प्लांट और पीस लिली के पौधों को आसानी से जगह दी जा सकती है. इन्हें लगाने के लिए आप हैंगिग गमलों का प्रयोग करें इससे आपका उद्देश्य भी पूरा हो जाएगा और आप उपलब्ध जगह का समुचित उपयोग भी कर पाएंगे. बालकनी की रेलिंग के अतिरिक्त आप दीवारों पर भी हुक की सहायता से गमले टांग सकतीं हैं. ध्यान रखें कि टाँगे जाने वाले गमले बहुत अधिक भारी न हों.

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-विंडोसिल गार्डनिंग

बागवानी की इस विधा के अंतर्गत कुकिंग में प्रयोग की जाने वाली सामग्री को किचन की खिड़कियों पर छोटे छोटे गमलों में उगाया जाता है. इस पद्धति का प्रयोग करके किचन की खिड़कियों पर मिर्च, धनिया, बेबी चुकंदर, पालक, मैथी, पोदीना आदि को बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है. पेंडेमिक के बाद से लोंगो में घर में सब्जियां उगाने का प्रचलन बहुत बढ़ा है. इससे ताजी और केमिकल रहित सब्जियां आसानी से उगाई जा सकतीं हैं.

-इंडोर गार्डनिंग

रिसर्च के अनुसार पेंडेमिक के बाद आम लोंगों में हाउस होल्ड प्लांट्स लगाने का प्रचलन बढ़ा है. वर्क फ्रॉम होम के कारण भी लोंगो ने प्रकृति को घरों में जगह देना प्रारम्भ किया है. इंडोर गार्डनिंग में घरों के अंदर ड्राइंग रूम, लिविंग रूम, हॉल आदि में ऐसे पौधों को स्थान दिया जाता है जिन्हें धूप की आवश्यता नहीं होती. आमतौर पर इन्हें सजावटी गमलों में लगाया जाता है. एरिका पाम, विविध प्रकार के स्नैक प्लांट, रबर प्लांट, मनी प्लांट आदि को घरों के अंदर बड़ी आसानी से लगाया सकता है ये हवा को शुद्ध करने का कार्य करते हैं.

-हाइड्रोपोनिक गार्डनिंग

गार्डनिंग की इस नई विधा में पौधों को बिना मिट्टी के पानी में उगाया जाता है. घरों के अंदर इन्हें लगाने के लिए आप कांच के जार या बोतल का प्रयोग कर सकतीं हैं. मनी प्लांट, बेम्बू प्लांट, स्नैक प्लांट, सिंगोनियम आदि की विभिन्न वैराइटीज के पौधों को इस तकनीक के जरिये उगाया जा सकता है. मिट्टी में उगाए पौधों की अपेक्षा इनके बढ़ने की गति कुछ धीमी होती है परन्तु इन्हें कम जगह में बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है. ये दिखने में तो बहुत अच्छे लगते ही हैं साथ ही बहुत कम मेंटेनेन्स भी मांगते हैं.

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रखें इन बातों का ध्यान

-बालकनी में रखे जाने वाले पौधों के नीचे गार्डन प्लेट अवश्य रखें ताकि इनका पानी बहकर आपकी बालकनी को खराब न करे.
-यहां के पौधों में बहुत अधिक पानी न डालें केवल उतना ही पानी डालें जिससे मिट्टी गीली हो जाये.
-किचन की ग्रिल या खिड़की पर छोटे छोटे गमलों में सब्जियां लगाएं क्योंकि इन्हें रखना आसान होता है.
-इंडोर प्लांट्स के पत्तों को साफ अवश्य करें जिससे ये देखने में सुंदर लगते हैं.
-पानी में उगाए पौधों का प्रति सप्ताह पानी बदलना अत्यंत आवश्यक होता है अन्यथा इनकी जड़ें सड़ने लगतीं हैं.
-फिल्टर या आर ओ के पानी के स्थान पर सादे नल के पानी का ही प्रयोग करें.
-बेम्बू प्लांट का पानी बदलते समय पानी में 3-4 शकर के दाने डाल देने से इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है.
-अन्य पौधों के पानी में माह में एक बार डी ए पी के 2-3 दाने डालने से उनकी ग्रोथ अच्छी रहती है.
-समय समय पर इनकी पीली पत्तियों को हटाते रहें और चारों ओर से कटाई छटाई करना अत्यंत आवश्यक है.
-बाजार से गमले लाने की अपेक्षा घर में उपलब्ध खाली तेल की केन, बेकार प्लास्टिक की डलियों, हरे नारियल के खोल और बेकार कांच के जार और मग का प्रयोग करें.

शादी में कितनी हो दखलंदाजी

शादी के लिए लड़का या लड़की पसंद करते समय उस के भाई और बहन की सलाह लेना भी जरूरी होने लगा है. शादी के बाद आपस में तालमेल बैठाना आसान हो जाए. हमउम्र होने के कारण इन के बीच दोस्ती जल्दी हो जाती है, यह सुखद जीवन के लिए बेहद जरूरी होने लगा है.

हरदोई जिले के रहने वाले प्रतीक ने एमबीए की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद वह गुरुग्राम में नौकरी करने लगा. यहां उस के कई दोस्त बने, जिन में लड़के और लड़कियां दोनों ही थे. कई दोस्तों की लड़कियों के साथ दोस्ती प्यार और शादी में बदल गई. प्रतीक की अपने फ्रैंड सर्किल में ही  झारखंड की रहने वाले स्वाति से मुलाकात हुई. स्वाति ने खुद को मेकअप आर्टिस्ट के रूप में बताया था. देखने में वह साधारण रूपरंग की थी पर उस का स्टाइल और अंदाज ऐसा था कि उस की तारीफ करने लगता.

प्रतीक और स्वाति का परिचय दोस्तों की पार्टी में हुआ. इस के बाद मिलनेजुलने लगे. दोस्ती गहरी हो गई. कुछ माह की दोस्ती के बाद दोनों ने तय किया कि अब शादी कर लेनी चाहिए.

स्वाति और प्रतीक दोनों को ही एकदूसरे के परिवार के  लोगों का कुछ पता नहीं था. प्रतीक ने अपने परिवार के बारे में स्वाति को सारी जानकारी दी. स्वाति ने कुछकुछ बताया पर कभी किसी से परिचय कराने जैसा कोई काम नहीं किया. प्रतीक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता है, यह बात स्वाति को पता थी. प्रतीक के दोस्तों से स्वाति ने उस की जौब की जानकारी भी कर रखी थी. प्रतीक केवल यह जानता था कि स्वाति किसी बड़े मेकअप ब्रैंड के साथ जुड़ कर अपना बिजनैस कर रही है.

दोनों ने जब शादी करने का फैसला किया तो दोनों के परिवार के कुछ करीबी लोग शादी में मिले. तब पता चला कि स्वाति साधारण से ब्यूटीपार्लर में काम करती है. उन का परिवार  झारखंड से मजदूरी करने दिल्ली आया था. स्वाति के 2 भाई और 1 बहन और भी हैं. परिवार का स्वाति के जीवन में कोई बड़ा दखल नहीं रहता है.

बदल गया है व्यवहार

दूसरी तरफ प्रतीक  गांव का रहने वाला जरूर था पर उस ने जो भी स्वाति को बताया था वह सब सही था. गांव में उस का परिवार खेती करता था. इस के बाद भी गांव में उस के परिवार का अपना अलग सामाजिक स्तर था. बेटे की बात को मानते हुए प्रतीक के घर वाले बेटे और बहू को ले कर अपने गांव गए ताकि वह गांव के लोगों को दिखा सकें कि उन के बेटे ने शादी कर ली है. गांव में स्वाति और प्रतीक को ज्यादा दिन नहीं रुकना था. प्रतीक यह तो सम झ गया था कि उस के परिवार की सोच और स्वाति की सोच में बहुत अंतर है. बावजूद इस के वह सोच रहा था कि 1 सप्ताह किसी तरह से अच्छी तरह गुजर जाए और वे वापस दिल्ली आ जाएं.

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शादी के बाद की दावत और दूसरे आयोजनों में ही स्वाति ने अपने व्यवहार से घरपरिवार और प्रतीक को काफी परेशान कर लिया. प्रतीक की बहनों के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं था. स्वाति यह सम झने को तैयार ही नहीं थी कि उस की शादी हो चुकी है. उसे पति और पति के परिवार के साथ अच्छी तरह व्यवहार कर के तालमेल बैठाना है.

पति ‘परिवार कल्याण’ नाम से संस्था चला रहीं इंदू सुभाष कहती है, ‘‘अब लड़कियों का व्यवहार पहले से अधिकबदल गया है. शादी की जिम्मेदारी को वे सम झने को तैयार ही नहीं होतीं. ऐसे में लड़की का पति के साथसाथ उस के परिवार खासकर पति की बहन और उन की मां या दूसरे करीबी संबंधियों से अच्छा व्यवहार नहीं रहता है.’’

दामाद से मुश्किल काम है बहू तलाश करना

बात केवल स्वाति और प्रतीक की ही नहीं है. ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि लड़कियों के व्यवहार में सहनशीलता पहले से कम होती जा रही है. अब वे पति के परिवार के साथ तालमेल बैठाने से बचती हैं. ऐसे में लड़कों के लिए लड़की की तलाश करना मुश्किल काम होने लगा है.

इंदू सुभाष बताती हैं, ‘‘आजकल प्रेम विवाह भी ऐसे होते हैं, जिन में मातापिता की सहमति होने लगी है. अब मातापिता भी प्रेम विवाह में अनावश्यक अड़ंगा नहीं लगाते हैं. इस बदलती सोच के बाद भी बहू घर के लोगों से तालमेल नहीं बैठाना चाहती. उसे पता होता है कि उस को पति के परिवार के साथ रहना है, तीजत्योहार मनाने हैं, बावजूद इस के तालमेल में कमी दिखती है. ऐसे मसलों से सब से खराब हालत लड़के की होती है. वह परिवार को भी नहीं  छोड़ पाता है और पत्नी को भी कुछ नहीं  कह पाता.’’

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट आकांक्षा जैन कहती है, ‘‘मेरे पास ऐसे कई लड़के अपनी होने वाली पत्नी को ले कर भी आते हैं कि हम शादी के बाद परिवार के साथ तालमेल कैसे बैठाएंगे? हम कई बार ऐसे लोगों को सलाह देते हैं कि शादी के पहले अपनी होने वाली पत्नी को अपने घरपरिवार खासकर अपने भाईबहन से जरूर मिलवा देना चाहिए ताकि उन के बीच एक स्वाभाविक तालमेल बन सके.

भाईबहन आपस में हमउम्र होते हैं. ऐसे में उन के बीच तालमेल बनना आसान होता है. इस से फिर लड़की को भी अनजान घर में अकेलापन नहीं लगता. वह बेहतर तरीके से तालमेल बैठाने में सफल हो जाती है. शादी से पहले केवल पति को ही नहीं उस के भाईबहनों को भी आपस में व्यवहार बना लेना चाहिए. यह सही कदम होता है.’’

प्यारदुलार में पली लड़कियां

पिछले कुछ सालों में लड़कियों को ले कर घर, परिवार और समाज दोनों काफी उदार हो गए हैं. लड़कियों के साथ घरों में प्यारदुलार बढ़ गया है. लड़कियों को मिली आजादी ने उन के स्वभाव में काफी बदलाव भी किया है, जिस की वजह से वे बेटियां बन कर तो आसानी से रह लेती हैं पर जब उन्हें बहू बन कर ससुराल जाना पड़ता है और वहां कायदेकानून और दबाव में रहना पड़ता है तो उन के सामने परेशानियां पैदा होने लगती है. ऐसे में स्वाभाविक तरह से आपस में पहले दूरियां बढ़ती हैं बाद में  झगड़े बढ़ जाते हैं.

ससुराल में होने वाले पतिपत्नी के  झगड़ों का प्रभाव पतिपत्नी के साथसाथ पति के भाईबहनों और पेरैंट्स पर भी पड़ता है.

बाराबंकी जिले के रहने वाले विकास की शादी नेहा के साथ हुई थी. शादी के कुछ दिनों के बाद विकास कानपुर में नौकरी करने चला गया. नेहा उस के साथ जाना चाहती थी पर वह जा नहीं पाई. नेहा का ससुराल में  झगड़ा होने लगा. पहले कुछ दिनों तक मामला घर के अंदर ही रहा. फिर  झगड़े की जानकारी बाहरी लोगों को भी होने लगी. एक दिन नाराज हो कर नेहा अपनी मां के घर चली गई. वहां जा कर उस ने अपने ससुराल के लोगों को जेल भिजवाने की कोशिश शुरू की. नेहा सब से अधिक नाराज अपने देवर रमेश से थी. उस ने रमेश पर बलात्कार की कोशिश करने का मुकदमा कर दिया.

‘पति परिवार कल्याण’ नाम से संस्था चला रहीं इंदू सुभाष कहती है, ‘‘शादी से पहले लड़कियों की काउंसलिंग बहुत जरूरी होती है. पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बहुत कुछ जानकारी और शिक्षा घर के बड़ेबूढ़े लोग दे देते. अब केवल मां होती है. नातेरिश्तेदार अब शादी के ही दिन आते हैं. ऐसे में वे बहुत कुछ सम झाने की हालत में नहीं होते हैं. कई जागरूक परिवार प्रीमैरिज काउंसलिंग कराते भी हैं, जिस का कई बार असर पड़ता है.’’

मैरिज काउंसलर सिद्धार्थ दुबे कहते हैं, ‘‘हर शादी को टूटने से भले ही न बचाया जा सकता हो पर 60 से 70% टूटने वाली शादियों में दोनों को अगर सही समय पर सम झाया जाए तो इन शादियों को कोर्ट और थाने जाने से पहले ही बचाया जा सकता है.’’

शादी करने से पहले यदि लड़का और लड़की दोनों के ही पेरैंट्स और भाईबहन एकदूसरे को सही जानसम झ लें तो शादी के बाद होने वाले  झगड़ों को रोका जा सकता है.

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महत्त्वपूर्ण होता है भाईबहनों का रोल

कई ऐसे उदाहरण हैं जहां भाईबहनों ने अपनी होने वाली भाभी या जीजा के साथ दोस्ताना संबंध पहले से ही बना लिए तो किसी को भी एकदूसरे से अजनबीपन महसूस नहीं होता है.

ज्योति की शादी राजकुमार के साथ तय हुई. उस ने अपने सभी सगेसंबंधियों से अच्छा व्यवहार बना लिया. शादी होने के बाद घर में ऐसा दोस्ताना माहौल बन गया कि उसे कभी इस बात का अनुभव ही नहीं हुआ कि वह अपना घर छोड़ कर पति के घर आई है. ज्योति की अपने देवर और ननद से दोस्तों की हंसीमजाक होता है. ज्योति बताती है कि हम ने कभी अपने भाईबहनों की कमी महसूस नहीं की.

ज्योति की ही तरह का अनुभव रीता का है. रीता सरकारी नौकरी करती है. ऐसे में उस की परेशानी यह होती थी कि उस के लिए घर के काम और वहां तालमेल बैठाना मुश्किल होता था. रीता ने अपने देवर और ननद से अच्छी दोस्ती कर ली. रीता दोनों की ही पढ़ाई, कैरियर और शौपिंग में सहयोग करने लगी. ऐसे में उन की आपस में अच्छी दोस्ती हो गई.

रीता कहती है कि पति के भाईबहन जब हमउम्र होते हैं तो उन के साथ आपस में तालमेल बैठाना आसान होता है. हमउम्र लोगों की मानसिक सोच एकजैसी होती है. एकदूसरे को सम झना अच्छा रहता है. मेरा मानना है कि भाई या बहन के जीवनसाथी का चुनाव करते समय घरपरिवार के लोगों के साथ दूल्हा और दुलहन के भाई और बहन का दखल होना भी जरूरी होता है. जब लड़का या लड़की की पसंद या नापसंद में इन का दखल होता है तो आपस में तालमेल बैठाना आसान हो जाता है.

कोमल है कमजोर नहीं

21वीं सदी के साल 2021 में दुनिया कदम रख चुकी है. बीती सदियों में कई बदलाव हुए, मगर एक चीज जो जस की तस है वह है समाज में महिलाओं की स्थिति. हजारों वर्षों से दुनिया में एक रूढि़वादी अवधारणा अपनी जड़ें जमाए हुए है, जो कहती है कि पौराणिक समय से ही भगवान व प्रकृति ने महिलापुरुष के बीच भेद किया है, जिस कारण पुरुष का काम अलग और महिलाओं का काम अलग है. यह धारणा हमेशा कहती रही है कि आदिम समाज को जब भी खाना जुटाने जैसा कठोर काम करना पड़ा, चाहे वह पुराने समय में शिकार करना हो या आज के समय में बाहर निकल कर परिवार के लिए पैसा जुटाना हो, पुरुष ही इस का जुगाड़ करने के काबिल रहे हैं और महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता के कारण उन के हिस्से घर के हलके काम आए हैं.

इस लैंगिक भेद में महिलाओं का बाहर निकल कर काम न करने का एक बड़ा तर्क उन की शारीरिक दुर्बलता को बताया गया. उन की शारीरिक बनावट को पुरुष के मुकाबले कमजोर और अशुद्ध बताया गया. उन पर रोकटोक लगाई गई. इस बात का एहसास उन्हें खुद ही महसूस करवाया गया कि वे पुरुषों के मुकाबले शारीरिक तौर पर दुर्बल हैं, बाहर का काम करने योग्य नहीं हैं और परिवार का भरणपोषण नहीं कर सकती हैं.

यही कारण रहा कि आज लिंग आधारित असमानता पर दुनियाभर में एक बहस खड़ी हुई, इस बहस में एक बड़ा हिस्सा महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता का भी रहा. हालिया इसी बहस के बीच वैज्ञानिकों ने दक्षिण अमेरिका के ऐंडीज पर्वतमाला में 9000 साल पुराने एक ऐसे स्थान का पता लगाया है, जहां महिला शिकारियों को दफनाया जाता था. इस खोज से लंबे समय से चली आ रही इस पुरुष प्रधान अवधारणा को चुनौती मिली है.

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जुड़े और इस शोध के प्रमुख वैज्ञानिक रैंडी हास का कहना है कि पुरातन काल में दफनाने की प्रक्रिया की इस पुरातात्विक खोज और विश्लेषण से सिर्फ  पुरुषों के ही शिकारी होने की अवधारणा खारिज होती है.

क्या नौकर के बिना घर नहीं चल सकता

कुशल शिकारी

इस खोज में यह बात पुख्ता हुई कि प्राचीन समय में पुरुषों की ही तरह महिलाएं भी बाहर निकल कर शिकार किया करती थीं. उस समय बाहर निकल कर शिकार करना पूरी तरह से श्रम आधारित था न कि लिंग आधारित.

2018 में पेरू के पहाड़ों की ऊंचाइयों पर पुरातात्विक उत्खनन के दौरान शोधकर्ताओं ने पुराने शिकारियों को दफनाने के एक पुराने स्थान की खोज की थी. वहां से शिकार करने और जानवरों को काटने के नुकीले औजार मिले थे. उसी जगह पर 9000 वर्षो से दफन मानव कंकाल भी बरामद हुए, जिन की हड्डियों और दांतों के विश्लेषण से पता चल सका कि वे महिलाओं के कंकाल थे.

उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में मिले ऐसे 107 प्राचीन स्थानों के परीक्षण से शोधकर्ताओं ने 429 कंकालों की पहचान की. वैज्ञानिकों ने बताया कि इन में कुल 27 शिकारी कंकाल थे, जिन में  11 महिलाएं और 16 पुरुष थे. कंकालों और वैज्ञानिकों द्वारा किए इस शोध से साफ है कि प्राचीन समय में महिलाएं भी शिकार करती थीं. इस के मुताबिक इन मिले कंकालों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात लगभग बराबर का रहा है.

वैज्ञानिकों का इस आधार पर कहना रहा है कि उस समय के दौरान बराबर अनुपात में महिलापुरुष शिकार करते रहे. महिलाओं की शिकार में शामिल होने की यह हिस्सेदारी लगभग 30-50% तक थी. उत्खनन में मिले कंकालों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी कोई रोकटोक (प्राकृतिक या दैवीय) महिलाओं पर उस समय नहीं थी, जिस से कहा जाए कि उन के बीच वर्क डिविजन रहा हो.

इस शोध के माने

यह शोध लैंगिक समानता की दिशा में बहुत महत्त्व रखता है. इस की बड़ी वजह पुराने समय से लगातार छिड़ी महिला और पुरुष के बीच काम के बंटवारे को ले कर बहस का होना है. इस शोध में जो महत्त्वपूर्ण बात सामने आई है वह यह कि उस दौरान महिलाएं खुद पर पूरी तरह निर्भर थीं. वे अपने निर्णय अपने अनुसार लेती थीं. किसी महिला का शिकारी होना अपनेआप में यह निर्धारित करता है कि वह अपने कुनबे अथवा परिवार के लिए कामगारू थी. अपने बच्चों का खुद पेट पाल सकती थी, उसे किसी पुरुष के कंधों की निर्भरता की आवश्यकता नहीं थी. इस तौर पर शिकार में एकत्र किए गए मांस का वितरण किस तरीके से करना है, कितना करना है और किसे करना है ये सारे निर्णय महिलाओं के ही होते थे. जाहिर सी बात है जो कुनबे का पेट पाल रहा है वह कुनबे पर अपना आधिपत्य भी जमाने का अधिकार रखता है. ऐसे में वह समाज जहां महिला और पुरुष समान तौर पर परिवार का भरणपोषण कर रहे हों वहां संभवतया दोनों के अधिकार समान होंगे.

शिकारी होने का एक अर्थ यह भी है कि उन महिलाओं के पास अपनी खुद की सुरक्षा के हथियार मौजूद थे. ये हथियार न सिर्फ उन्हें सुरक्षा प्रदान करते थे, बल्कि उन के बहुमूल्य संसाधनों में से भी थे. महिलाओं के पास संसाधन का होना कई बातें बयां करता है, जिस पुरुष समाज में महिला को संपत्ति रखने का अधिकार न रहा हो, बल्कि उस समाज में महिलाओं को ही मात्र संपत्ति माना गया, ऐसे में एक ऐसा समाज जहां महिलाओं के पास संप॔ि के तौर पर हथियार का होना बहुत बड़ी बात है.

तर्क को जो पुरुष समाज हमेशा महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल करते आए कि महिलाएं शारीरिक तौर पर दुर्बल अथवा कमजोर होती हैं, इस कारण वे बाहर के काम करने योग्य नहीं हैं, को इस शोध ने गहरी चोट पहुंचाई है. शिकार जैसे काम में शारीरिक चपलता, ताकत और हिम्मत न सिर्फ महिलाओं में थी, बल्कि वे पुरुषों से इस मामले में कहीं भी कम नहीं थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुराने समय में महिलाएं शारीरिक तौर पर पुरुषों के बराबर थीं तो उन की आज यही विपरीत कमजोर वाली छवि समाज में कैसे कायम हुई?

धर्म की पाबंदियां

दुनिया में कई भौतिकवादी इतिहासकारों ने महिलाओं पर पुरुषों की अधीनता को ले कर कई शोध पहले भी किए, जिन में उन्होंने बताया कि आदियुग में ऐसे कबीलाई समाज का वजूद रहा जहां महिलाएं हर चीज को ले कर उन्मुक्त थीं. लेकिन इन शोधों के खिलाफ सब से ज्यादा तीखा और प्रत्यक्ष हमला जिन लोगों द्वारा किया गया वे धर्मकर्म से जुड़े वे रूढि़वादी लोग रहे, जिन के अनुसार दुनिया भगवान ने बनाई और इस दुनिया को तमाम मौजूद महिलाओं की प्रकृति को कमजोर और पुरुषों की प्रकृति को मजबूत के तौर पर संतुलित किया गया. इसीलिए पुरुष को प्रोटैक्टर और महिला को अबला का दर्जा दिया गया.

इसे पूरी तरह से महिलाओं के दिमाग में भरने के लिए हर धर्म की उन कथाओं, ग्रंथों को आधार बनाया जाने लगा जो महिलाओं को आदर्श नारी या पतिव्रता बनने के लिए लगातार उकसाते रहे. महिलाओं का पतिव्रता बने रहना मात्र अपने वंश की शुद्धी के लिए ही नहीं, बल्कि दूसरी जाति के लोगों के साथ संबंध न बन पाए उस के लिए भी जरूरी माना जाने लगा.

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धर्म भी है जिम्मेदार

हिंदू समाज के शास्त्रों, पुराणों, रामायण, महाभारत, गीता, वेदों और इन से संबंधित कथाओं में सामूहिक तौर पर कहा गया कि महिला को स्वतंत्र नहीं होना चाहिए.

मनुस्मृति, जिसे सामंती संविधान माना गया उस में महिलाओं को पुरुष से कमजोर और गौण होने की कई बातें लिखी गईं. लगभग सभी सुसंगठित धर्मों में पृथ्वी के संतुलन के लिए लिंग भेदभाव को आधार बनाया गया. जिन पौराणिक ग्रंथों में महिलाओं के उन्मुक्त और बलवान होने की बात सामने आई वहां वे या तो राक्षसनी, बदसूरत मानी गईं. इन की जगह डरी, सहमी, कमजोर, घरेलू महिलाओं को ही आदर्श  बताया गया.

इन सब क्रियाकलापों में न सिर्फ उन्हें बाहर जाने से रोका, बल्कि रहनसहन, हंसनाबोलना, यौन शुचिता हर तरीके से नियंत्रण किया गया.  इस का दूरगामी असर यह रहा कि महिलाओं  से जोरजबरन या लूप में ले कर इस बात की सहमती उगलवाई गई कि उन का व्यक्ति॔व प्राकृतिक रूप से ही पुरुषों से कमजोर है. इसलिए उन्हें खुद की रक्षा के लिए पुरुष के अधीन आ जाना चाहिए.

खैर, इस शोध से 2 बातें सामने आती हैं, एक यह कि महिलाओं का व्यक्तित्व प्राकृतिक तौर से कमजोर नहीं है, दूसरा धर्म में महिलाओं के लिए लिखी सारी कुरीतियां किसी भगवान के मुख से कहीं बातें नहीं, बल्कि धर्म के पुरुष ठेकेदारों द्वारा आधी आबादी से मुफ्त में श्रम लिए जाने और भोगविलास करने से रहा है.

पहले भी नहीं थीं कमजोर और अब भी नहीं हैं

उत्तराखंड के पौड़ी जिले के जलेथा गांव में रहने वाली 44 वर्षीय बसंती भंडारी का गांव कोटद्वार शहर से काफी दूर, दुर्गम इलाके में है. इस गांव का जनजीवन इलाके के नजदीक बाकी गांवों की तरह काफी कठिन है. पहाड़ी इलाका होने के कारण आज भी लोगों को अपने जीवन को चलाने के लिए दूरदूर खेती करने जाना पड़ता है, जिस के लिए बसंती देवी को पालतू मवेशियों का भारीभरकम मल, जिस की खाद बना कर, अपने सर पर रख कर 2-3 किलोमीटर तक जाना होता था. ऐसे काम करने के लिए बहुत हिम्मत और ताकत की जरूरत पड़ती है.

बसंती भंडारी कहती हैं, ‘‘मेरी आधी जिंदगी ऐसे ही कट गई है, सैलानियों को ये पहाड़ अच्छे लगते हैं, लेकिन मैं ने हमेशा यहां कष्ट उठाएं हैं.

‘‘इतने भारी वजन को सिर पर ढोने को ले कर उन का कहना था कि पुरुष का काम तो बस खेत में बैलों को हंका कर हल चलाना भर है, लेकिन महिला को ही रुपाई, खाद डालना, कटाई, घास लाना, दूर से पानी लाना, लकड़ी लाना जैसे भारीभरकम काम करने पड़ते हैं और ये गिनती में भी नहीं आते. ऐसे में ज्यादा जोर वाला काम तो हमारा ही रहता है.

नहीं हैं कमजोर

यह सिर्फ दूरदराज के गांवों की बात नहीं है, दिल्ली शहर में मजदूरी करने वाली 26 वर्षीय मुनमुन देवी का गांव उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में पड़ता है. मुनमुन 4 साल पहले शादी के 1 साल बाद दिल्ली शहर अपने पति के साथ आ गई थी. मुनमुन के 2 बच्चे हैं, जिन में एक बेटी जो मुश्किल से डेढ़ साल की होगी और एक बड़ा बेटा 3 के आसपास होगा. दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में सीवर और रोड कंस्ट्रक्शन में सरकारी ठेके पर काम करते हुए, मुनमुन एक हाथ में अपने 3 साल के रोते बच्चे को कमर से टिका कर सिर पर सीमेंट मसाले से भरा तसला रखे हुई थी.

मुनमुन का कहना है, ‘‘मैं सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक अपने पति के साथ मजदूरी करती हूं. हम ज्यादातर महिलाओं का काम सिर पर ईंटें उठा कर लाना, सीमेंट का बना मसाला लाना, खड्डा खोदना रहता है. इस काम में भी उतनी ही ताकत लगती है जितनी किसी मरद की लगती है. फिर हम कमजोर कैसे? बहुत बार तो हमें बच्चों को बीचबीच में अपना दूध भी पिलाना होता है.’’

यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की महिलाओं के कुल काम का 51 फीसदी काम अनपेड होता है. वहीं दुनियाभर में 75 फीसदी ‘केयर सर्विस’ महिलाएं बिना किसी दाम के करती हैं. किंतु उस के बावजूद भी विश्व की 60% महिलाएं या लड़कियां भूख से पीडि़त रहती हैं, जबकि उन में भुखमरी की दर अधिक होती है.

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एक स्टडी कहती है कि अफ्रीका और एशिया में लगभग 60% लेबर फोर्स महिलाओं की होती है, उस के बावजूद पुरुषप्रधान समाज में उन्हें किसान का दर्जा प्राप्त नहीं होता.

ऐसे में यह जाहिर है कि महिलाएं पहले भी कमजोर नहीं थीं और आज भी नहीं हैं. वे शारीरिक तौर पर सक्षम हैं, वे पुरुषों की तरह हर कार्यक्षेत्र में अपनी मजबूत भागीदारी निभाने के लिए पूरी तरह काबिल हैं. बस समाज के दिमाग से महिलाओं को कमजोर सम झने के कुतर्क को निकालने की सख्त जरूरत है.

#ssrbirthday: बेहद प्यारी थी सुशांत और अंकिता की लव स्टोरी, लिव इन में रहने के बाद हुए अलग

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का आज बर्थडे हैं. हालांकि वह आज हमारे साथ नही हैं , लेकिन फैंस आज उनके बर्थडे के मौके पर सुशांत सिंह राजपूत को याद करते हुए सोशलमीडिया पर #ssrbirthday ट्रैंड कर रहे हैं. वहीं अगर आज सुशांत हमारे साथ होते, तो वह अपना 35वां जन्मदिन सेलिब्रेट कर रहे होते. लेकिन आज हम बात उनके बर्थडे की नई बल्कि सुशात के लव लाइफ की करेंगे.

टीवी सीरियल पवित्र रिश्ता से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले एक्टर सुशांत सिंह राजपूत कई बार सुर्खियों में रहे. वहीं सबसे बड़ी वजह सुर्खियों में रहना उनकी एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे से ब्रेकअप था.

फैंस के बीच पौपुलर पवित्र रिश्ता की अर्चना-मानव की यह जोड़ी रियल लाइफ में भी एक दूसरे के साथ रहे. शादी तक पहुंचने वाला सुशांत और अंकिता का ये 6 सालों का रिश्ता अचानक से एक दिन टूट गया. वहीं खबरों कि मानें तो अंकिता से ब्रेकअप के बाद सुशांत टूट गए थे. साथ ही सुशांत ने ब्रेकअप पर यह भी कहा था कि लोग बस एक दूसरे से दूर हो जाते हैं और ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं.

पवित्र रिश्ता से हुई थी प्यार की शुरूआत

सुशांत सिंह राजपूत और अंकिता लोखंडे की पहली मुलाकात पवित्र रिश्ता के सेट पर हुई थी. दोस्ती और फिर दोनों के बीच प्यार हुआ. 6 साल तक दोनों का रिश्ता चला. लेकिन फिर एक दिन दोनों के ब्रेकअप की खबरों ने फैंस का दिल तोड़ दिया. हालांकि सुशांत सिंह राजपूत और अंकिता लोखंडे का ब्रेकअप इस ब्रेकअप की सही वजह सामने आयी, लेकिन कभी भी दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं कहा.

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नेशनल टीवी पर किया था प्रपोज

ankita

सुशांत सिंह राजपूत ने रिएलिटी शो झलक दिखला जा में दोनों ने साथ में हिस्सा लिया था, जिसमें सुशांत ने अंकिता को प्रपोज किया था. वहीं ब्रेकअप से पहले दोनों का रिश्ता कई लोगों के लिए मिसाल था. कहा जाता है कि दोनों के ब्रेकअप की एक वजह ये भी है कि अंकिता शादी करना चाहती थीं. जबकि सुशांत अपने करियर पर फोकस कर इसे फिल्मों की तरफ ले जाना चाहते थे. हालांकि सुशांत ने इससे इंकार करते हुए कहा था कि ऐसा कुछ नहीं था.

 

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Walaupun ga ngerti dlm omonganxa , tp faham sma sikap mereka br2 hihihi IL♡VEYOU Gugu 😍😍😙😙 #ManavArchana #sushantankita

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लिवइन में रह चुका है था कपल

सुशांत और अंकिता ने लिव इन और फिर किया था शादी का फैसला दोनों ब्रेकअप से पहले एक दूसरे के साथ लिव इन में भी रह चुके थे, जिसे लेकर अंकिता और सुशांत काफी खुश भी थे. वहीं दिसंबर 2016 में दोनों ने शादी का फैसला भी किया था.

ब्रेकअप की कई वजहें थीं

अंकिता के शराबी होने और सुशांत के दिलफेंक होने की खबरें मीडिया में सामने आयीं. लेकिन सुशांत ने इन सभी खबर को फेक बताया और अपने ब्रेकअप को सच.

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बता दें, सुशांत सिंह राजपूत का अंकिता लोखंडे के साथ ब्रेकअप के बाद कईं बौलीवुड एक्ट्रेसेस के साथ उनका नाम जुड़ा. वहीं अंकिता भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गई है और अपनी लव स्टोरी को सोशलमीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

 

फैशन के मामले में किसी से कम नही है ‘तितलियां’ की सरगुन मेहता, देखें फोटोज

हिंदी टीवी इंडस्ट्री से दूर चल रहीं एक्ट्रेस सरगुन मेहता इन दिनों अपनी पंजाबी फिल्मों में धूम मचा रही हैं. दरअसल, पंजाबी सिंगर हार्डी संधू संग तितलियां गाने का विडियो यूट्यूब पर रिलीज हुआ था, जिसमें सरगुन मेहता नजर आई थीं. वहीं उनते डांस को फैंस ने काफी पसंद भी किया था. वहीं अब गाने का दूसरा वर्जन भी आ गया है, जिसके चलते सरगुन मेहता एक बार फिर सुर्खियों में आ गई हैं. हालांकि आज हम सरगुन के किसी फिल्म या गाने की नही बल्कि बात उनके लुक्स की करेंगे. इंडियन हो या वेस्टर्न, हर लुक में सरगुन मेहता बेहद खूबसूरत लगती हैं. इसीलिए आज हम सरगुन मेहता के कुछ फैशन औप्शन के बारे में आपको बताएंगे, जिसे आप किसी पार्टी से लेकर फेस्टिवल में ट्राय सकते हैं.

1. वेडिंग के लिए परफेक्ट है सरगुन का ये सूट

अगर आप वेडिंग के लिए कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं, तो सरगुन का ये यैलो कलर का सिंपल सूट आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. वहीं ज्वैलरी के बारे में बात करें तो सिंपल ज्वैलरी जरूर ट्राय करें. ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

 

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#surkhibindi #30thaugust #3DAYSTOGO ? – @gandhisawan ?- @akshayjarewal_ ?‍♀️- @p.rajshri

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2. पार्टी के लिए परफेक्ट है ड्रैस

 

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अगर आप पार्टी के लिए कोई कलेक्शन की तलाश कर रही हैं तो सरगुन मेहता का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. इन दिनों ये लुक काफी ट्रैंडी है. बौलीवु़ड हो या टीवी एक्ट्रेसेस, हर कई इस लुक को ट्राय करने में लगा है.

3. विंटर कलेक्शन करें ट्राय

 

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अगर आप विटंर में अपन लुक को फ्लौंट करना चाहती हैं तो ओवर साइज स्वेटर के साथ डेनिम शौट्स या जींस के साथ ट्राय कर सकती हैं.

4. शरारा लुक करें ट्राय

 

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इन दिनों शरारा लुक काफी पौपुलर है. टीवी हो या बौलीवुड हसीनाए, हर कोई यह लुक ट्राय कर रहा है. आप भी सरगुन मेहता का ये हैवी शरारा लुक वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकती हैं.

 

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Serial Story: तुम नारंगी हो जाओ न ओस

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