ब्लड प्रैशर कम करने के लिए क्या मुझे नमक खाना चाहिए?

सवाल-

मैं 45 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले कुछ महीनों से उच्च रक्तचाप की शिकायत हो गई है. क्या मुझे नमक खाना पूरी तरह बंद कर देना चाहिए?

जवाब-

शरीर के सुचारु रूप से काम करने के लिए उचित मात्रा में नमक का सेवन जरूरी है. मगर आप का रक्तचाप सामान्य से अधिक रहने लगा है, इसलिए नमक का सेवन थोड़ा कम जरूर कर दीजिए पर पूरी तरह बंद मत कीजिए. अधिक नमक का सेवन उन लोगों के रक्तचाप को खतरनाक स्तर तक बढ़ा सकता है, जिन्हें हाइपरटैंशन है, क्योंकि नमक में सोडियम होता है. यह रक्त नलिकाओं को कड़ा और संकरा कर देता है. इस से हृदय को शरीर में रक्त पंप करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है. लेकिन अगर आप नमक का सेवन पूरी तरह से बंद कर देंगी तो आप का रक्तचाप खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा और इस से शरीर के दूसरे अंगों की कार्यप्रणाली भी प्रभावित होगी.

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ब्लडप्रैशर या हाइपरटैंशन की समस्या आज आम समस्या बन गई है, जो जीवन शैली से जुड़ी हुई है, लेकिन कहते हैं न कि भले ही समस्या कितनी ही बड़ी हो लेकिन समय पर जानकारी से ही बचाव संभव होता है. ऐसे में जब पूरी दुनिया पर कोविड-19 का खतरा है, तब आप अपने लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर हृदय रोग और हाई ब्लडप्रैशर के खतरे को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं. इस संबंध में जानते हैं डा. के के अग्रवाल से:

हाइपरटैंशन क्या है

खून की धमनियों में जब रक्त का बल ज्यादा होता है तब हमारी धमनियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है, जिसे हम ब्लडप्रैशर की स्थिति कहते हैं. ये 2 तरह के होते हैं एक सिटोलिक ब्लडप्रैशर और दूसरा डायास्टोलिक ब्लडप्रैशर. 2017 की नई गाइडलाइंस के अनुसार अगर ब्लडप्रैशर 120/80 से कम हो तो उसे उचित ब्लडप्रैशर की श्रेणी में माना जाता है. इस की रीडिंग मिलीमीटर औफ मरकरी में नापी जाती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- ब्लडप्रैशर पर रखें नजर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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पतझड़ का मौसम और ड्राय स्किन की परेशानी

बदलता मौसम सर्दी और गर्मी के बीच की कड़ी है. इस मौसम में तमाम पेड़ नयी कोंपलों की आस में अपने पुराने पत्ते गिरा देते हैं. इस मौसम को पतझड़ का मौसम भी कहते हैं. पतझड़ के महीने में चलने वाली तेज़ हवा जहाँ सुबह-शाम को खुशनुमा बनाती है, वहीँ ये स्किन में रूखापन भी पैदा करती है. हवाओं के कारण होंठ बार-बार ड्राय होते हैं और कभी-कभी तो उनमे गहरी दरारें भी पड़ जाती हैं जो ज़्यादा तकलीफदेय होती हैं.

पतझड़ के मौसम में ड्राय स्किन को स्निग्ध रखने के लिए यदि तेल या क्रीम का इस्तेमाल करें तो हवा में उपस्थित धूलकणों और गर्मी के कारण ये स्किन को और खराब करती है. इन दिनों में सूरज भी अपनी पूरी प्रचंडता दिखाने लगता है, इसकी अल्ट्रावायलेट किरणें स्किन पर मौजूद तेल के साथ मिल कर आपके पूरे कॉम्प्लेक्शन को बर्बाद कर देती हैं.

स्किन में अपनी नमी और कोमलता ही किसी स्त्री के सौंदर्य का आधार है. इस नमी और कोमलता को ड्राय मौसम में भी बनाये रखने के लिए विशेष देखभाल और घरेलू उपचार की आवश्यकता होती है. हर व्यक्ति की स्किन में ड्रायता का पैमाना अलग-अलग होता है. कुछ लोगों की स्किन कम रूखी होती है और कुछ की अधिक. मौसमों के बदलाव के साथ भी ड्रायता कम या ज़्यादा होती रहती है. जब रूखापन बहुत ज़्यादा होने लगे तो उपचार आवश्यक हो जाता है मगर इन उपचारों को जानने से पहले ये जानना बहुत ज़रूरी है कि अत्यधिक रूखेपन के क्या कारण हो सकते हैं.

स्किन के रूखेपन का कारण

स्किन का रूखापन शरीर में न सिर्फ पौष्टिकता की कमी के कारण होती है, बल्कि और भी कई कारण है जिसके कारण ये समस्या होती है. कई बार स्किन प्राकृतिक रूप से ड्राय नहीं होती है बल्कि अन्य कारणों से रूखी हो जाती है. जैसे – स्किन पर साफ करने के लिए जिस साबुन या क्लींजर का प्रयोग किया जाता है उसका स्किन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, अगर कठोर साबुन का प्रयोग किया जाए तो इसमें मौजूद हानिकारक तत्व स्किन की नमी को खत्म कर उसको और ड्राय बना देंगे.

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ज्यादा समय तक सूर्य के सम्पर्क में रहना

सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणें स्किन को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ स्किन को ड्राय बनाती है. ये किरणें स्किन की आंतरिक सतह में जाकर कोलेजन के निर्माण में अवरोध पैदा करती है और परिणाम स्वरूप स्किन सूखने लगती है.

बीमारी

अगर आप लम्बे समय तक किसी बीमारी से ग्रस्त है विभिन्न प्रकार की एलोपैथिक दवाओं का सेवन कर रहे है तो इसके हानिकारक प्रभाव आप की स्किन पर भी दिखेंगे.
हाइपोथायरायडिज्म नामक बीमारी से ग्रस्त होने के कारण भी स्किन ड्राय रहती है. इस समस्या में थायराइड या अवटुग्रंथि कम मात्रा में थायराइड का निर्माण करती है जिस कारण स्किन में स्थित पसीने की ग्रंथियाँ प्रभावित होती है और स्किन में नमी का अभाव हो जाता है.
यदि आप सोरायसिस या एक्जिमा जैसी किसी बीमारी से ग्रस्त है तो भी स्किन ड्रायता की समस्या हो सकती है क्योंकि यह रोग कोलेजन के निर्माण को प्रभावित करते है.

गर्म पानी से स्नान

हमेशा गरम पानी से स्नान करने से भी स्किन ड्राय रहती है. गरम पानी के स्किन के सम्पर्क में आने से एपिडरमीस यानि स्किन की पहली परत प्रभावित होती है, इसमें मौजूद आयल और नमी को गर्म पानी ख़त्म कर देता है जिसके कारण स्किन ड्राय हो जाती है.
स्वीमिंग पूल में अधिक देर तक तैरने से भी स्किन की नमी खो जाती है. यह पानी क्लोरीन युक्त होता है तथा स्किन के सम्पर्क में आने से स्किन की नमी सोख लेता है.

उम्र का प्रभाव

स्किन रूखी होने का एक कारण उम्र बढ़ना भी हो सकता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्किन में कोलेजन का निर्माण कम होने लगता है और परिणामस्वरूप स्किन ड्राय होती चली जाती है.

रूखी स्किन से कैसे मिले राहत

ये तो थे वो कारण जिनकी वजह से स्किन रूखी होती है और पतझड़ की तेज़ हवाएं इस रूखेपन को और ज़्यादा बढ़ा देती हैं. आइये अब जानते हैं वह उपचार जो आपकी स्किन को वही स्निग्धता और चमक लौटा देंगे जो आप अपनी किशोरावस्था में महसूस करती थीं. ये उपचार आपको आपकी किचन में मौजूद सामग्री से ही प्राप्त हो जाएंगे और आप किचन का काम करते करते भी अपनी स्किन को ज़रूरी पोषण और उपचार दे सकती हैं.

रूखी स्किन में फायदेमंद शहद

रूखी स्किन के लिए शहद बहुत फायदेमंद है. अगर मौसम के बदलने के कारण स्किन रूखी हो जाती है तो शहर लगाने से स्किन को नमी मिलती है. आप किचन का काम करते करते बस दो तीन बूँद शहद की लेकर इसे बस दस मिनट तक चेहरे पर लगाकर रखें और फिर चेहरा धो लें. हर दिन बस दस मिनट का यह उपचार आपकी स्किन को बच्चों की स्किन की तरह मुलायम बना देगा.

जैतून का तेल स्किन को करें नरम

रूखी स्किन को अच्छा बनाने के लिए दो चम्मच ठंडे दूध में जैतून के तेल की कुछ बूंदें डालिए और मिला लीजिए. अब इसे रूई के माध्यम से चेहरे पर लगा लें. सूखने पर हलके हाथों से मसाज करते हुए उतारें और फिर ठंडे पानी से मुँह धो लें.

दूध की मलाई रूखी स्किन में लाये रौनक

एक चम्मच तिल के तेल में थोड़ी सी दूध की मलाई मिलाकर अच्छी तरह फेंट लीजिये फिर इसे चेहरे और गर्दन पर लगाएं. इससे चेहरे का रूखापन तुरंत दूर हो जाता है.

बादाम तेल की मालिश

बादाम तेल और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर चेहरे पर हल्के हाथों से मालिश करें. दस मिनट बाद गीले तौलिए से पोंछ लीजिए, इससे रूखी स्किन में निखार आ जाएगा.

नारियल तेल रूखी स्किन के लिए फायदेमंद

रूखी स्किन के लिए नारियल तेल बेहद असरदार है. इससे मालिश करके कुछ घण्टे तक इसे स्किन पर लगा रहने दें फिर नहा लें. इससे रूखापन दूर होकर स्किन पर निखार आता है.

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दही स्किन का रूखापन करता है कम

दही तो आपके किचन में हमेशा ही होता है, यह स्किन को नमी प्रदान करने का एक बेहतरीन माध्यम है. इसके अलावा इसमें एंटीऑक्सीडेंट एवं जलन रोधी गुण रूखी स्किन को सुकून प्रदान करते है. इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड रूखापन या जलन पैदा करने वाले जीवाणुओं को दूर करते है. ताजा दही से धीरे-धीरे अपने चेहरे पर मालिश करें और दस मिनट के लिए छोड़ दें इसके बाद स्किन को धो लें.

ये चंद घरेलू उपचार जिनमे कुछ खर्च भी नहीं होना है, पतझड़ के मौसम में भी आपकी स्किन को सावन की सी सुकोमलता का अहसास कराएंगे. वैसे भी कोरोना संक्रमण एक बार फिर रफ़्तार पकड़ रहा है ऐसे में स्किन ट्रीटमेंट के लिए ब्यूटीपार्लर्स में जाकर ख़तरा मोल लेना ठीक नहीं है. बेहतर होगा कि आप अपनी किचेन में मौजूद चीज़ों से घरेलू उपचार करें. इन उपचारों का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं है और रिजल्ट तुरंत आपके सामने होता है.

Summer Special: ऐडवेंचर और नेचर का संगम कुंभलगढ़

आप अगर कभी राजस्थान घूमने कुंभलगढ़, कैसे जाएं कुंभलगढ़, कुंभलगढ़ में कहां रूके का मन बनाते हैं, तो वहां के रेतीले टीले और सूखे व कटीले जंगल ही जेहन में आते हैं, जबकि राजस्थान पहाड़ों, झीलों का भी शहर है. राजस्थान का कुंभलगढ़ एक ऐसा ही खास स्थान है, जो देश में ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है. यहां पूरे साल पर्यटकों का तांता लगा रहता है. उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर व समुद्रतल से 1087 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर अरावली पहाडि़यों में स्थित है. यह शहर दुर्ग, प्राकृतिक अभयारण्य, झीलों, कला और

संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. वैसे तो यहां हर मौसम में पर्यटक आते हैं पर मौनसून में इस की हरियाली देखने के लिए पर्यटकों का तांता लग जाता है. यहां उदयपुर से बस या प्राइवेट टैक्सी ले कर पहुंचा जा सकता है. इस के बाद स्थानीय जगहों पर घूमने के लिए साधन उपलब्ध हैं.

यहां की आकर्षक जगहें

ट्रैवल डैस्क पर काम करने वाले प्रशांत कुमार झा बताते हैं कि कुंभलगढ़ में कुंभलगढ़ का फोर्ट, हमीर की पाल, कुंभलगढ़ वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी, अरावली की ऊंचीऊंची पहाडि़यां, हल्दीघाटी म्यूजियम आदि सभी देखने योग्य हैं. लेकिन इन में कुंभलगढ़ के फोर्ट की अपनी एक अलग खासीयत है. राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित यह किला चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सब से बड़ी दीवार है. यह 150 किलोमीटर एरिया में फैला है. यहां की जलवायु मौडरेट होने की वजह से साल भर सैलानी यहां घूमने आते हैं. अमेरिका, फ्रांस, जरमनी और इटली के टूरिस्ट यहां पूरा साल देखे जा सकते हैं.

कुंभलगढ़ किले के बारे में कहा जाता है कि यह दुर्ग मेवाड़ के यशस्वी राजा रण कुंभा ने अपनी सूझबूझ और प्रतिभा से बनाया था. यह किला मेवाड़ों की संकटकालीन राजधानी होने के साथसाथ महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी है. इस किले को अजेयगढ़ भी कहा जाता है, क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना असंभव था. इस का निर्माणकार्य पूरा होने में 15 वर्ष लगे थे. इस किले में प्रवेशद्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन रास्ता, महल, स्तंभ, छत्रियां आदि हैं.

फैशन शौप चलाने वाले दिनेश मालवीय कहते हैं कि कुंभलगढ़ का किला देखने सालों से पर्यटक आते रहे हैं, क्योंकि यह विश्वप्रसिद्ध है. इस की दीवार 36 किलोमीटर की लंबाई में किले को घेरे हुए है. इसे ‘ग्रेट वाल औफ इंडिया’ भी कहा जाता है. यहां की ऐंट्री फीस भारतीयों के लिए क्व15 और विदेशियों के लिए क्व100 है. कैमरे के लिए कोई फीस नहीं है. यह किला सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है. इसे 2013 में ‘यूनैस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट’ घोषित किया गया था.

कुंभलगढ़ फोर्ट का अधिक आनंद लेने के लिए शाम को लाइट ऐंड साउंड कार्यक्रम देखना आवश्यक है, जो 7 से 8 बजे तक होता है. इस से किले का पूरा इतिहास पता चलता है. कुंभलगढ़ फोर्ट से 48 किलोमीटर की दूरी पर हल्दीघाटी और 68 किलोमीटर की दूरी पर रनकपुर का जैन टैंपल देखा जा सकता है. जैन मंदिर संगमरमर पर खास कलाकृतियों के लिए मशहूर है.

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वाइल्ड लाइफ सफारी

फौरेस्ट गाइड रतन सिंह 15 सालों से कुंभलगढ़ में वाइल्ड लाइफ सफारी करवाते हैं. उन का कहना है कि पहले केवल 1-2 खुली जीपें सफारी के लिए जाती थीं, पर अब हर दिन 15 से 20 गाडि़यां जाती हैं. 3 घंटे के समय में पूरे जंगल की सैर हो जाती है. कुंभलगढ़ अभयारण्य में लोग आसपास के क्षेत्रों से वीकैंड में भी आते हैं और जंगल सफारी का आनंद उठाते हैं. यह 578 किलोमीटर एरिया में फैला हुआ बहुत ही आकर्षक जंगल है. यहां तेंदुए, बारहसिंगे, हिरण, सांभर, जंगली बिल्लियां, भालू, नीलगाय, लंगूर, बंदर, पोर्की पाइन आदि जानवर और भिन्नभिन्न प्रकार के पक्षी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. यहां पहले राजारजवाड़े शिकार के लिए आते थे, लेकिन अब इस के सरकारके पास आ जाने की वजह से शिकार करना बंद हो चुका है.

हैंडीक्राफ्ट का सामान बेचने वाले जगदीश कुम्हार कहते हैं कि यहां के जंगलों की वनस्पति भी अति सुंदर है. जंगलों में महुआ, आम, खाखरा, गेमकी, घोस्ट के पेड़ों के अलावा शीशम की दुर्लभ प्रजाति डलवजिया शैलेशिया के पेड़ उपलब्ध हैं.

प्रशांत कुमार झा कहते हैं कि सफारी में ऐंट्री का समय दिन में सुबह 6 से ले कर 9 बजे रात तक होता है. दोपहर में 3 से 5 बजे तक और रात में 9 से 11 बजे तक नाइट सफारी होती है. नाइट सफारी में लोग अधिक जाते हैं, क्योंकि रात में जानवर घूमते हुए अधिक दिखाई देते हैं और मौसम भी ठंडा रहता है.

मौनसून में जंगल सफारी बंद रहती है. इस की ऐंट्री फीस 2,300 से ले कर 2,500 तक है. नाइट सफारी के लिए फौरेस्ट गाइड जीप ड्राइवर के पास बैठ कर लेड टौर्च लाइट का प्रयोग करते हैं ताकि जानवरों को नोटिस किया जा सके. जंगल सफारी में हमेशा थोड़ी सावधानी रखनी पड़ती है. मसलन, जानवरों को न छेड़ना, मोबाइल फोन की घंटी न बजाना आदि ताकि जानवर असहज महसूस न करें.

इतिहास जानिए करीब से

प्रेम सिंह कहते हैं कि हमीर की पाल तालाब सैलानियों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है. इस तालाब में हजारों की संख्या में कैटफिश हैं, जिन का कोई शिकार नहीं कर सकता. गांव के लोग इस की पहरेदारी करते हैं. कहा जाता है कि हमीर नामक राजा ने इस पौंड को क्व1 लाख खर्च कर बनवाया था. इसीलिए इस का नाम लाखेला तालाब भी है.

इस के अलावा हल्दीघाटी म्यूजियम जो कुंभलगढ़ से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है, वहां कार या बाइक से जाया जा सकता है. इस संग्रहालय में महाराणा प्रताप के पुतले के अलावा उन के समय के प्रयोग किए गए अस्त्रशस्त्र, किताबें, तसवीरें आदि करीने से सजा कर रखी गई हैं. हर 15 मिनट बाद यहां लाइट ऐंड साउंड प्रोग्राम भी होता है, जिस में महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े विषयों पर लघु फिल्म दिखाई जाती है. यहां हर साल सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं.

इन्हें जरूर खाएं

क्लब महिंद्रा के रिजोर्ट मैनेजर सुप्रियो ढाली बताते हैं कि राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में शाकाहारी व्यंजन दाल बाटी, केर सांगड़ी, गट्टे की खिचड़ी, बूंदी रायता, बाजरे की रोटी, मक्के की रोटी आदि मुख्य भोजन हैं. नौनवैज में लाल मांस अधिक पौपुलर है. यहां की राजस्थानी थाली में कई तरह के स्वादिष्ठ व्यंजनों को छोटीछोटी कटोरियों में परोसा जाता है. दाल बाटी में बाटी को बालू में रख कर कंडों को जला कर पकाया जाता है. इस से इस का स्वाद मीठा होता है. ये व्यंजन अधिक महंगे नहीं होते.

जगदीश कुम्हार बताते हैं कि कुंभलगढ़ के हर रेस्तरां में यहां का भोजन मिल जाता है, जो खासकर देशी घी के साथ खाया जाता है. यहां आने पर यहां के भोजन का स्वाद चखना न भूलें. दालें यहां कई प्रकार की बनती हैं. मूंग की दाल, चने की दाल, अरहर की दाल. ये सभी दालें बाटी और देसी घी के साथ खाई जाती हैं. यहां का भोजन भी मौसम के अनुसार होता है. अधिक ठंड होने पर मूंगफली के कच्चे तेल के साथ दाल ढोकली, केर सांगरी आदि बनाई जाती है.

कहां से क्या करें खरीदारी

ज्वैलरी विक्रेता दिनेश मालवीय कहते हैं कि कुंभलगढ़ में अधिकतर सामान उदयपुर और नाथद्वार से मंगवाया जाता है. इस के अलावा लोकल और आसपास की भी कुछ महिलाएं घर पर हैंडीक्राफ्ट का काम करती हैं. इस में खासकर लहंगे पर कढ़ाई, ओढ़नी, दुपट्टा, वाल हैंगिंग्स, पौटरी बैंबू साड़ी, महारानी साड़ी आदि हैं. कठपुतली अधिकतर मारवाड़ के लोग बनाते हैं. ये सभी वस्तुएं आसपास के बाजारों या छोटीछोटी दुकानों में किफायती दाम पर मिल जाती हैं.

सोविनियर शौप चलाने वाले जगदीश कुम्हार का कहना है कि यहां आने पर अधिकतर लोग ट्रैडिशनल सोने, चांदी, लाख की ज्वैलरी, ब्लौक प्रिंट की कुरतियां, मौजरी, लकड़ी के खिलौने आदि की खरीदारी करते हैं. गहनों पर मीनाकारी का काम बहुत ही बारीकी से किया जाता है. इन के अलावा तरहतरह के मिट्टी के बरतन और खिलौने भी यहां बिकते हैं.

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ठहरने की सुविधा

कुंभलगढ़ में ठहरने की अच्छी व्यवस्था है. यहां करीब छोटेबड़े 30-35 होटल हैं. प्रशांत झा बताते हैं कि यहां होटलों का किराया पीक सीजन अर्थात अक्तूबर से मार्च तक अधिक रहता है, लेकिन बाकी समय में कई होटलों में क्व500 में भी कमरा मिल जाता है. रामादा रिजोर्ट, क्लब महिंद्रा रिजौर्ट, न्यू रतनदीप, रंग भवन इन, लेक अल्पी, राजगढ़, महुआ बाढ़ रिजोर्ट आदि कई छोटेबड़े होटल हैं. पैसे के अनुसार सुविधाएं भी इन होटलों में मिलती हैं. मसलन, घूमने के लिए गाड़ी, सफारी के लिए खुली जीप की व्यवस्था आदि.

घूमने का सही समय

वैसे तो कुंभलगढ़ में पूरा साल सैलानी आते हैं, लेकिन अक्तूबर से मार्च के समय में पर्यटकों की भीड़ अधिक रहती है. बाकी समय में अधिकतर कपल्स ही आते हैं. विदेशी सैलानियों में यूरोप के लोग अधिक आते हैं. मौनसून में घाटियों की हरियाली तो बढ़ जाती है, पर पर्यटक कम आते हैं, क्योंकि उस समय जंगल सफारी बंद रहती है.

शादी हो या नौकरी, महिलाओं की पीठ पर लदी है पुरुषों की पसंद

इतिहास में चाहे जो स्थितियां रही हों, लेकिन आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. वैसे ऐसा कोई अध्ययन तो उपलब्ध नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था में आखिर महिलाओं का योगदान कितने फीसदी है. लेकिन हाल के सालों में जो नये क्षेत्र उभरकर आये हैं, मसलन- आईटी सेक्टर, वहां तो महिलाओं की संख्या 50 फीसदी तक पहुंच गई है. बीपीओ यानी काॅल सेंटर कारोबार में तो एक तरह से महिलाओं का ही वर्चस्व है.

लेकिन महिलाओं की इन तमाम कामयाबियों ने एक विरोधाभास मौजूद है. आज भी उनकी दुनिया के तमाम निर्णय पुरुष ही ले रहे हैं. हद तो यह है कि कई बार महिलाओं को पता ही नहीं चलता कि ऐसा हो रहा है. मसलन लड़कियां क्या कॅरिअर चयन करें, किस क्षेत्र में वह अपने सपने देखें, मंसूबे पालें, यह सब किसी हद तक घर के पुरुष सदस्य ही तय करते हैं. फिर चाहे वो पिता हों, भाई हों या बाद में पति. इसमें कोई दो राय नहीं है कि महिलाएं बेहतर शिक्षक होती हैं, कम से कम छोटी कक्षाओं की तो वह माॅडल शिक्षक होती ही हैं. लेकिन यह भी सच है कि इसका मतलब यह नहीं है कि हर महिला नौकरी के नाम पर सिर्फ टीचर ही बने. लेकिन हिंदुस्तान में पुरुषों का जो अप्रत्यक्ष दबाव है, उसके चलते ज्यादातर महिलाएं जब भी नौकरी की सोचती हैं तो उनका सबसे पहले ध्यान टीचर की नौकरी पर ही जाता है. देश में अध्यापन की डिग्री लेकर नौकरी का इंतजार कर रहे 20 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों में से 52 फीसदी के आसपास महिलाएं हैं.

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दूसरे किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से इस कदर इक्कीस नहीं हैं. लेकिन टीचिंग के लाइन में लड़कियां कोई नेचुरली आगे नहीं हैं बल्कि इसमें पुरुषों की इच्छाएं और घरों के दबाव ज्यादा हैं. मतलब यह कि लड़कियां टीचर बने इसका दबाव उन पर किसी और से ज्यादा घर के पुरुष सदस्यों का ही होती है. हालांकि सभी महिलाएं घर के दबाव के चलते टीचर बनने की सोचे ऐसा नहीं है. लेकिन बड़े पैमाने पर घर के पुरुष चाहते हैं कि महिलाएं जब भी नौकरी करें, वो टीचर बनें. क्योंकि टीचर बनने से सुविधा यह होती है कि महिलाएं प्रोफेशनल भी बनी रहती हैं और घर का सारा कामकाज भी संभाल लेती हैं.

यही वजह है कि ज्यादातर घरों में महिलाओं पर टीचर बनने का दबाव डाला जाता है. लेकिन यह दबाव सीधे पुरुष नहीं डालते. इसे समझदारी के रूप में पहले लड़की की मां उस पर डालती है और शादी के बाद यही काम सासू मां करती है. ये दोनो वरिष्ठ महिलाएं चाहती हैं कि उनकी बेटी या बहू टीचिंग लाइन में नौकरी करते हुए घर को भी अच्छी तरह से संभाले. ऐसा संभव भी हो रहा है. कई देशव्यापी सर्वेक्षणों की छोड़िये आप सिर्फ अखबारों में छपने वाले मैट्रीमोनियल या शादी से संबंधित वेबसाइटों को देखिये, हर दूसरे विज्ञापन में लड़के की चाह के रूप में टीचर लड़की का सपना दर्ज मिलेगा. शहरी भारत के ज्यादातर लड़के यानी पुरुष चाहते हैं कि उनकी पत्नी स्कूल में पढ़ाने का जाॅब करती हंै तो बहुत अच्छा है और अगर यह जाॅब सरकारी हो तब तो कहने ही क्या? लड़के ऐसा इसीलिए चाहते हैं कि उन्हें अध्यापक पत्नी मिले क्योंकि उनकी ड्यूटी सुबह जल्दी शुरु होती है और दोपहर तक खत्म हो जाती है. इससे वह नौकरी भी कर लेती हैं, बच्चों की देखभाल भी कर लेती हैं और घर के तमाम कामकाज भी निपटा लेती हैं.

कुछ इसी तरह का दबाव आईटी सेक्टर में भी बनता जा रहा है, विशेषकर काॅल सेंटर की नौकरियों के मामले में. भले बंग्लुरु से लेकर नोएडा तक बीपीओ क्षेत्र में काम करने वाली कई लड़कियों के साथ तमाम आपराधिक घटनाएं घट चुकी हों, फिर भी इस जाॅब का आकर्षण खत्म नहीं हुआ. वजह यह है कि मां-बाप और बाद में ससुराल के लोग यह सोचते हैं कि 8 घंटे की इस नौकरी में गाड़ी घर से ले जाएगी और घर तक छोड़ जाएगी. परिवार के ही लोग यह भी मान लेते हैं कि लड़कियों रात में ड्यूटी में नहीं रखा जायेगा. लेकिन अंततः जब रात में भी ड्यूटी करनी पड़ती है तो फिर ये लोग इसे भी मन मारकर स्वीकार कर लेते हैं. सिर्फ नौकरियों के मामले में ही नहीं अभी भी देश में तमाम खुलेपन के बावजूद यह धारणा मजबूत नहीं हुई कि लड़कों की तरह लड़कियां देश की किसी भी कोने में पढ़ने और अपने कॅरिअर को मजबूत बनाने के लिए जा सकती हैं.

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लड़कियों के लिए सिर्फ कॅरिअर ही नहीं आज भी अरेंज मैरिज में करीब 95 फीसदी शादियांे का निर्णय पिता या भाई ही लेते हैं. यह स्थिति तब है जबकि आज देश में महिलाओं की आबादी करीब 60 करोड़ के आसपास है. वह तकरीबन 1 लाख करोड़ सालाना के मानव संसाधन में बड़ी हिस्सेदारी कर रही हैं. फिर भी उन्हें अपने बारे में अभी बड़े और निर्णायक निर्णय लेने की छूट नहीं है. उनकी पूरी आजादी आज भी फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप्प तक ही सीमित है.

बर्थडे पार्टी में दिखा Bigg Boss 13 फेम Arti Singh का नया ट्रांसफॉर्मेशन, देखें फोटोज

कलर्स के रियलिटी शो बिग बॉस 13 में सुर्खियां बटोर चुकीं एक्ट्रेस आरती सिंह इन दिनों अपने वेट ट्रांसफौर्मेशन के चलते सुर्खियां बटोर रही हैं. लगीं अब उनके बर्थडे की फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं, जिसमें उनका लुक फैंस को हैरान कर रहा है. आइए आपको दिखाते हैं आरती सिंह के ग्लैमरस अंदाज की झलक….

बर्थडे बैश में छाईं आरती सिंह

हाल ही में आरती सिंह ने अपने बर्थडे बैश की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें उनके ट्रांसफौर्मेशन की झलक देखने को मिल रही हैं. दरअसल, अपनी बर्थडे पार्टी में आरती सिंह ग्रीन कलर के शिमरी आउटफिट में नजर आईं, जिसमें वह बेहद हौट और खूबसूरत लग रही थीं.

 

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बर्थडे से पहले दिखाया ट्रांसफौर्मेशन लुक

 

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बर्थडे बैश की झलक दिखाने से पहले आरती सिंह ने अपनी एक फोटो फैंस के साथ शेयर की थी, जिसमें वह वाइट कलर के आउटफिट में फैंस को अपने ट्रांसफौर्मेंशन की झलक दिखा रही थीं.

बिग बॉस 13 के बाद बदला लुक

 

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बिग बॉस 13 के दौरान आरती सिंह का वजन काफी बढ़ गया था. शो से बाहर आने के बाद से ही आरती सिंह अपने वर्कआउट पर पूरा ध्यान दे रही हैं, जिसके चलते उनका ये ट्रांस फौर्मेशन देखने को मिला है.

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सूट में भी लगती हैं कमाल

 

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आरती सिंह को अनारकली सूट पहनना काफी पसंद है. इसी के चलते वह अक्सर सोशलमीडिया पर अपनी अनारकली सूट पहने फोटोज शेयर करती रहती है.

फोटोशूट में मचा चुकी हैं धमाल

 

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हाल ही में एक फोटोशूट में आरती सिंह का अंदाज फैंस को बेहद हौट लगा था, जिसकी फोटोज ने सोशलमीडिया पर धमाल मचा दिया था.

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 2

चायवाय पी कर पंकज वापस चला गया. सबकुछ तो ठीक था पर एक बात थी जो अजीब लग रही थी उसे. आखिर उन लोगों को रिनी में ऐसी कौन सी खासियत नजर आ गई थी जो वे शादी के लिए एकदम तैयार हो गए. बहरहाल, शादीब्याह तो जहां होना है वहीं होगा, फिर भी चलतेचलते उस ने इतना कह ही दिया कि आप एक बार मुंबई जा कर परिवार, फैक्टरियां वगैरह देख आइए. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी. उन्होंने जाने का वादा किया.

अगले शनिवार रामचंदर बाबू ने पंकज को फोन किया.

‘‘अरे, कहां हो भाई? क्या हाल है?’’ मुझे उन का स्वर उत्तेजित लगा.

‘‘मैं घर पर ही हूं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है.’’

‘‘हां, सब ठीक है. कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं. पर हुआ क्या, तबीयत वगैरह तो ठीक है न?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है. अरे, वह रिनी वाला संबंध है न. वही लोग कल आ रहे हैं.’’

‘‘आ रहे हैं? पर क्यों?’’

‘‘अरे, लड़की देखने भाई. सब ठीक रहा तो कोई रस्म भी कर देंगे.’’

‘‘जरा विस्तार से बताइए. पर रुकिए, क्या आप मुंबई हो आए, घरपरिवार देख आए क्या?’’

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‘‘अरे, कहां? मैं बताता हूं. तुम्हारे जाने के बाद उन का फोन आ गया था. काफी बातें होती रहीं. पौलिटिक्स पर भी उन की अच्छी पकड़ है. बडे़ बिजनैसमैन हैं. 2-2 फैक्टरियां हैं. पौलिटिक्स पर नजर तो रखनी ही पड़ती है. फिर मैं ने उन से कहा कि अपना पूरा पता बता दीजिए, मैं आ कर मिलना चाहता हूं. कहने लगे आप क्यों परेशान होते हैं. लेकिन आना चाहते हैं तो जरूर आइए. वर्ली में किसी से भी स्टील फैक्टरी वाले जितेंद्रजी पूछ लीजिएगा, घर तक पहुंचा जाएगा. कहने लगे कि फ्लाइट बता दीजिए, ड्राइवर एयरपोर्ट से ले लेगा.’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

मैं ने कहा, हवाईजहाज से नहीं, मैं तो ट्रेन से आऊंगा. तो बोले टाइम बता दीजिएगा, स्टेशन से ही ले लेगा. बल्कि वे तो जिद करने लगे कि हवाईजहाज का टिकट भेज देता हूं. 2 घंटे में पहुंच जाइएगा. मैं ने किसी तरह से मना किया.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या. मैं रिजर्वेशन ही देखता रह गया और कल सुबहसुबह ही उन का फोन आ गया.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां. उन्होंने बताया कि वे 15 दिनों के लिए स्वीडन जा रहे हैं. वहां उन का माल एक्सपोर्ट होता है न. पत्नी भी साथ में जा रही हैं. पत्नी की राय से ही उन्होंने फोन किया था. उन की पत्नी का कहना था कि जाने से पहले लड़की देख लें. और ठीक हो तो कोई रस्म भी कर देंगे. सो, बोले हम इतवार को आ रहे हैं.’’

‘‘बड़ा जल्दीजल्दी का प्रोग्राम बन रहा है. क्या लड़का भी साथ में आ रहा है?’’

‘‘ये लो. लड़का नहीं आएगा भला. बड़ा व्यस्त था. पर जितेंद्रजी ने कहा कि आप ने भी तो नहीं देखा है. लड़कालड़की दोनों एकदूसरे को देख लें, बात कर लें, तभी तो हमारा काम शुरू होगा न.’’

‘‘यह तो ठीक बात है. कहां ठहराएंगे उन्हें.’’ पंकज जानता था कि रामचंदर बाबू का मकान बस साधारण सा ही है. एसी भी नहीं है. सिर्फ कूलर है.

‘‘ठहरेंगे नहीं. उसी दिन लौट जाएंगे.’’

‘‘पर आएंगे तो एयरपोर्ट पर ही न.’’

‘‘नहीं भाई, बड़े लोग हैं. उन की पत्नी ने कहा कि जब जा ही रहे हैं तो लुधियाना में अपने भाई के यहां भी हो लें. अब उन का प्रोग्राम है कि वे आज ही फ्लाइट से लुधियाना आ जाएंगे. ड्राइवर गाड़ी ले कर लुधियाना आ जाएगा. कल सुबह 8 बजे घर से निकल कर 11 बजे तक दिल्ली पहुंच जाएंगे व लड़की देख कर लुधियाना वापस लौट जाएंगे. वहीं से मुंबई का हवाईजहाज पकडेंगे. ड्राइवर गाड़ी वापस मुंबई ले जाएगा.’’

‘‘बड़ा अजीब प्रोग्राम है. उन के साले के पास गाड़ी नहीं है क्या, जो मुंबई से ड्राइवर गाड़ी ले कर आएगा. उस की भी तो लुधियाना में फैक्टरी है.’’

‘‘बड़े लोग हैं. क्या मालूम अपनी गाड़ी में ही चलते हों.’’

‘‘क्या मालूम. लेकिन आप जरा घर ठीक से डैकोरेट कर लीजिएगा.’’

‘‘अरे, मैं बेवकूफ नहीं हूं भाई, मेरा घर उन के स्तर का नहीं है. होटल रैडिसन में 6 लोगों का लंच बुक कर लिया है. पहला इंप्रैशन ठीक होना चाहिए.’’

‘‘चलिए, यह आप ने अच्छा किया. नीरज तो है ही न.’’

‘‘वह तो है, पर भाई तुम आ जाना. बड़े लोग हैं. तुम ठीक से बातचीत संभाल लोगे. मैं क्या बात कर पाऊंगा. तुम रहोगे तो मुझे सहारा रहेगा. तुम साढ़े 10 बजे तक रैडिसन होटल आ जाना. हम वहीं मिल जाएंगे.’’

‘‘मैं समय से पहुंच जाऊंगा. आप निश्चित रहें.’’

सारी बातें उसे कुछ अजीब सी लग रही थीं. पंकज ने मन ही मन तय किया कि रामचंदर बाबू से कहेगा कि कल कोई रस्म न करें. जरा रुक कर करें और हो सके तो मुंबई से लौट कर करें.

पंकज घर से 10 बजे ही होटल रैडिसन के लिए निकल गया. आधा घंटा तो लग ही जाना था. आधे रास्ते में ही था कि मोबाइल की घंटी बजी. नंबर रामचंदर बाबू का ही था.

‘‘क्या हो गया रामचंदर बाबू. मैं रास्ते में हूं, पहुंच रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी आओ भैया, गजब हो गया.’’

‘‘गजब हो गया? क्या हो गया.’’

‘‘तुम आओ तो. लेकिन जल्दी आओ.’’

‘‘मैं बस 10 मिनट में रैडिसन पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘रैडिसन नहीं, रैडिसन नहीं. घर आओ, जल्दी आओ.’’

‘‘मैं घर ही पहुंचता हूं, पर आप घबराइए नहीं.’’

अगले स्टेशन से ही उस ने मैट्रो बदल ली. क्या हुआ होगा. फोन उन्होंने खुद किया था. घबराए जरूर थे पर बीमार नहीं थे. कहीं रिनी ने तो कोई ड्रामा नहीं कर दिया.

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दरवाजा नीरज ने खोला. सामने ही सोफे पर रामचंदर बाबू बदहवास लेटे थे. उन की पत्नी पंखा झल रही थीं व रिनी पानी का गिलास लिए खड़ी थी. पंकज को देखते ही झटके से उठ कर बैठ गए.

‘‘गजब हो गया भैया, अब क्या होगा.’’

‘‘पहले शांत हो जाइए. घबराने से क्या होगा. हुआ क्या है?’’

‘‘ऐक्सिडैंट…ऐक्सिडैंट हो गया.’’

‘‘किस का ऐक्सिडैंट हो गया?’’

‘‘जितेंद्रजी का ऐक्सिडैंट हो गया भैया. अभी थोड़ी देर पहले फोन आया था. अरे नीरज, जल्दी जाओ बेटा. देरी न करो.’’

नीरज ने जाने की कोई जल्दी नहीं दिखाई.

‘‘एक मिनट,’’ पंकज ने रामचंदर बाबू को रोका. ‘‘पहले बताइए तो क्या ऐक्सिडैंट हुआ, कहां हुआ. कोई सीरियस तो नहीं है?’’

‘‘अरे, मैं क्या बताऊं,’’ रामचंदर बाबू जैसे बिलख पड़े, ‘‘कहीं वे मेरी रिनी को मनहूस न समझ लें. अब क्या होगा भैया.’’

‘‘मैं बताता हूं अंकल,’’ नीरज बोला जो कुछ व्यवस्थित लग रहा था, ‘‘अभी साढ़े 9-10 बजे के बीच में जितेंद्र अंकल का फोन आया था. उन्होंने बताया कि ठीक 8 बजे वे लुधियाना से दिल्ली अपनी कार से निकल लिए थे. उन की पत्नी व बेटा भी उन के साथ थे. दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर शामली गांव के पहले उन की विदेशी गाड़ी की किसी कार से साइड से टक्कर हो गई. कोई बड़ा एक्सिडैंट नहीं है. सभी लोग स्वस्थ हैं. किसी को कोई चोट नहीं आई है.’’

‘‘तब समस्या क्या है, वे आते क्यों नहीं?’’

‘‘कार वाले ने समस्या खड़ी कर दी. वह पैसे मांग रहा है. कोई दारोगा भी आ गया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘कार वाले से 50 हजार रुपए में समझौता हुआ है.’’

‘‘तो उन्होंने दे दिया कि नहीं.’’

‘‘उन के पास नकद 25 हजार रुपए ही हैं. उन्होंने बताया कि पास में ही एक एटीएम है. पर अंकल का कार्ड चल ही नहीं रहा है.’’

‘‘अरे, तुम जा कर उन के खाते में 25 हजार डाल क्यों नहीं देते बेटा.’’ रामचंदर बाबू कलपे, ‘‘अब तक तो डाल कर आ भी जाते.’’

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 3

पंकज ने प्रश्नसूचक दृष्टि से नीरज की तरफ देखा.

‘‘अंकल के ड्राइवर का एटीएम कार्ड चल रहा है. पर उस के खाते में रुपए नहीं हैं. अंकल ने पापा से कहा है कि वे ड्राइवर के खाते में 25 हजार रुपए जमा कर दें, वे दिल्ली आ कर मैनेज कर देंगे. ड्राइवर का एटीएम कार्ड भारतीय स्टेट बैंक का है. मैं वहीं जमा कराने जा रहा हूं.’’

‘‘एक मिनट रुको नीरज. मुझे मामला कुछ उलझा सा लग रहा है. रामचंदर बाबू आप को कुछ अटपटा नहीं लग रहा है?’’

‘‘कैसा अटपटा?’’

‘‘उन्होंने अपने साले से लुधियाना, जहां रात में रुके भी थे, रुपया जमा कराने के लिए क्यों नहीं कहा?’’

‘‘शायद रिश्तेदारी में न कहना चाहते हों.’’

‘‘तो आप से क्यों कहा? आप से तो नाजुक रिश्तेदारी होने वाली है.’’

‘‘शायद मुझ पर ज्यादा भरोसा हो.’’

‘‘कैसा भरोसा? अभी तो आप लोगों ने एकदूसरे का चेहरा भी नहीं देखा है. फिर 2-2 फैक्टरियों के किसी मैनेजर को फोन कर के रुपया जमा करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘अरे, दिल्ली से 45 किलोमीटर दूर ही तो हैं वे. मुंबई दूर है.’’

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‘‘क्या बात करते हैं? कंप्यूटर के लिए क्या दिल्ली क्या मुंबई. लड़का भी तो साथ है. उस का भी कोई कार्ड नहीं चल रहा है. आजकल तो कईकई क्रैडिटडैबिट कार्ड रखने का फैशन है.’’

‘‘क्या मालूम?’’ रामचंदर बाबू भी सोच में पड़ गए.

‘‘किसी का कार्ड नहीं चल रहा है. सिर्फ ड्राइवर का कार्ड चल रहा है. बात जरा समझ में नहीं आ रही है.’’

‘‘तो क्या किया जाए भैया. बड़ी नाजुक बात है. अगर सच हुआ तो बात बिगड़ी ही समझो.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कुछ बोल नहीं पा रहा हूं?’’

‘‘नहीं. तुम साफ बोलो. अब बात फंस गई है.’’

‘‘यह फ्रौड हो सकता है. आप रुपया जमा करा दें और फिर वे फोन ही न उठाएं तो आप उन्हें कहां ढूंढ़ेंगे?’’

‘‘25 हजार रुपए का रिस्क है,’’ नीरज धीरे से बोला.

‘‘मेरा तो दिमाग ही नहीं चल रहा है. इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है. बताओ, अब क्या किया जाए?’’

‘‘नीरज, तुम्हें अकाउंट नंबर तो बताया है न.’’

‘‘हां, ड्राइवर का अकाउंट नंबर बताया है. स्टेट बैंक का है. इसी में जमा करने को कहा है.’’

‘‘चलो, सामने वाले पीसीओ पर चलते हैं. तुम उन को वहीं से फोन करो और कहो कि बैंक वाले बिना खाता होल्डर की आईडी प्रूफ के रुपया जमा नहीं कर रहे हैं. कह देना मैं मैनेजर साहब के केबिन से बोल रहा हूं. आप इन्हीं के फैक्स पर ड्राइवर की आईडी व अकाउंट नंबर फैक्स कर दें. वैसे, ऐसा कोई नियम नहीं है. 25 हजार रुपए तक जमा किया जा सकता है. हो सकता है वे ऐसा कुछ कहें. तो कहना, लीजिए, मैनेजर साहब से बात कर लीजिए. तब फोन मुझे दे देना. मैं कह दूंगा कि अब यह नियम आ गया है.’’

‘‘इस से क्या होगा?’’

‘‘आईडी और अकाउंट नंबर का फैक्स पर आ गया तो रुपया जमा कर देंगे, वरना तो समझना फ्रौड है.’’

‘‘अगर वहां फैक्स सुविधा न हुई तो?’’ रामचंदर बाबू बोले.

‘‘जब एटीएम है तो फैक्स भी होगा. फिर उन्हें तो कहने दीजिए न.’’

‘‘ठीक है. ऐसा किया जाए. इस में कोई बुराई नहीं है.’’ रामचंदर बाबू के दिमाग में भी शक की सूई घूमी. पंकज व नीरज पीसीओ पर आए. उस का फैक्स नंबर नोट किया व फिर नीरज ने फोन मिलाया.

‘‘अंकल नमस्ते,’’ नीरज बोला, ‘‘मैं रामचंदरजी का बेटा नीरज बोल रहा हूं.’’

उधर से कुछ कहा गया.

‘‘नहीं अंकल, बैंक वाले रुपए जमा नहीं कर रहे हैं. कह रहे हैं अकाउंट होल्डर का आईडी प्रूफ चाहिए. मैं बैंक से ही बोल रहा हूं,’’ नीरज उधर की बात सुनता रहा.

‘‘लीजिए, आप मैनेजर साहब से बात कर लीजिए,’’ नीरज ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ,’’ मैं ने दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने फोन काट दिया,’’ नीरज बोला.

‘‘काट दिया? पर कहा क्या?’’

‘‘मैं ने अपना परिचय दिया तो अंकल ने पूछा कि रुपया जमा किया कि नहीं. मैं ने बताया कि बैंक वाले जमा नहीं कर रहे हैं, तो अंकल बिगड़ गए, बोले कि इतना सा काम नहीं हो पा रहा है. मैं ने जब कहा कि लीजिए बात कर लीजिए तो फोन ही काट दिया.’’

‘‘फिर मिलाओ.’’

नीरज ने फिर से फोन मिलाया लेकिन लगातार स्विच औफ आता रहा.

पंकज ने राहत की सांस ली. ‘‘अब चलो.’’

वे दोनों वापस घर आ गए व रामचंदर बाबू को विस्तार से बताया.

‘‘हो सकता है गुस्सा हो गए हों, परेशान होंगे,’’ वे सशंकित थे.

‘‘आप मिलाइए.’’ रामचंदर बाबू ने भी फोन मिलाया पर स्विच औफ आया.

‘‘15 मिनट रुक कर मिलाइए.’’

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15-15 मिनट रुक कर 4 बार मिलाया गया. हर बार स्विच औफ ही आया.

‘‘ये साले वाकई फ्रौड थे,’’ आखिरकार रामचंदर बाबू खुद बोले, ‘‘नहीं तो हमारी रिनी कौन सी ऐसी हूर की परी है कि वे लोग शादी के लिए मरे जा रहे थे. उन का मतलब सिर्फ 25 हजार रुपए लूटना था.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘अभी और डिटेल निकालता हूं.’’

उस ने अपने दोस्त अखिल को फोन किया जो एसबीआई की एक ब्रांच में था. उस ने उस अकाउंट नंबर बता कर खाते की पूरी डिटेल्स बताने को कहा. उस ने देख कर बताया कि उक्त खाता बिहार के किसी सुदूर गांव की शाखा का था.

‘‘जरा एक महीने का स्टेटमैंट तो निकालो,’’ पंकज ने कहा.

‘‘नहीं यार, यह नियम के खिलाफ होगा.’’

पंकज ने जब उसे पूरा विवरण बताया तो वह तैयार हो गया. ‘‘बहुत बड़ा स्टेटमैंट है भाई. कई पेज में आएगा.’’

‘‘एक हफ्ते का निकाल दो. मैं नीरज नाम के लड़के को भेज रहा हूं. प्लीज उसे दे देना.’’

‘‘ठीक है.’’

नीरज मोटरसाइकिल से जा कर स्टेटमैंट ले आया. एक सप्ताह का स्टेटमैंट 2 पेज का था. 6 दिनों में खाते में 7 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए गए थे व सभी निकाल भी लिए गए थे. सारी जमा राशियां 5 हजार से 35 हजार रुपए की थीं. उस समय खाते में सिर्फ 1,300 रुपए थे. स्टेटमैंट से साफ पता चल रहा था कि सारे जमा रुपए अलगअलग शहरों में किए गए थे. रुपए जमा होते ही रुपए एटीएम से निकाल लिए गए थे. अब तसवीर साफ थी. रामचंदर बाबू सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘देख लिया आप ने. एक ड्राइवर के खाते में एक हफ्ते में 7 लाख से ज्यादा जमा हुए हैं. फैक्टरियां तो उसी की होनी चाहिए.’’

‘‘मेरे साथ फ्रौड हुआ है.’’

‘‘बच गए आप. कहीं कोई लड़का नहीं है. कोई बाप नहीं है. कोई फैक्टरी नहीं है. यहीं कहीं दिल्ली, मुंबई या कानपुर, जौनपुर जगह पर कोई मास्टरमाइंड थोड़े से जाली सिमकार्ड वाले मोबाइल लिए बैठा है और सिर्फ फोन कर रहा है. सब झूठ है.’’

‘‘मैं महामूर्ख हूं. उस ने मुझे सम्मोहित कर लिया था.’’

‘‘यही उन का आर्ट है. सिर्फ बातें कर के हर हफ्ते लाखों रुपए पैदा

कर रहे हैं. इस की तो एफआईआर होनी चाहिए.’’

रामचंदर बाबू सोच में पड़ गए और बोले, ‘‘जाने दो भैया. लड़की का मामला है. बदनामी तो होगी ही, थाना, कोर्टकचहरी अलग से करनी पड़ेगी. फिर हम तो बच गए.’’

‘‘आप 25 हजार रुपए लुटाने पर भी कुछ नहीं करते. कोई नहीं करता. किसी ने नहीं किया. लड़की का मामला है सभी के लिए. कोई कुछ नहीं करेगा. यह वे लोग जानते हैं और इसी का वे फायदा उठा रहे हैं.’’

‘‘हम लोग तुम्हारी वजह से बच गए.’’

‘‘एक बार फोन तो मिलाइए रामचंदर बाबू. हो सकता है वे लोग रैडिसन में इंतजार कर रहे हों.’’

रामचंदर बाबू ने फोन उठा कर मिलाया व मुसकराते हुए बताया, ‘‘स्विच औफ.’’

बाद में पंकज ने अखिल को पूरी बात बता कर बैंक में रिपोर्ट कराई व खाते को सीज करा दिया. पर एक खाते को सीज कराने से क्या होता है.

और बाद में, करीब 6 महीने बाद रिनी की शादी एक सुयोग्य लड़के से हो गई. मजे की बात विवाह इंटरनैट के मैट्रिमोनियल अकाउंट से ही हुआ. रिनी अपनी ससुराल में खुश है.

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Serial Story: मैट्रिमोनियल– भाग 1

पंकज कई दिनों से सोच रहा था कि रामचंदर बाबू के यहां हो आया जाए, पर कुछ संयोग ही नहीं बना. दरअसल, महानगरों की यही सब से बड़ी कमी है कि सब के पास समय की कमी है. दिल्ली शहर फैलता जा रहा है.

15-20 किलोमीटर की दूरी को ज्यादा नहीं माना जाता. फिर मैट्रो ने दूरियों को कम कर दिया है. लोगों को आनाजाना आसान लगने लगा है. पंकज ने तय किया कि  कल रविवार है, हर हाल में रामचंदर बाबू से मुलाकात करनी ही है.

किसी के यहां जाने से पहले एक फोन कर लेना तहजीब मानी जाती है और सहूलियत भी. क्या मालूम आप 20 किलोमीटर की दूरी तय कर के पहुंचें और पता चला कि साहब सपरिवार कहीं गए हैं. तब आप फोन करते हैं. मालूम होता है कि वे तो इंडिया गेट पर हैं. मन मार कर वापस आना पड़ता है. मूड तो खराब होता ही है, दिन भी खराब हो जाता है. पंकज ने देर करना मुनासिब नहीं समझा, उस ने मोबाइल निकाल कर रामंचदर बाबू को फोन मिलाया.

रामचंदर बाबू घर पर ही थे. दरअसल, वे उम्र में पंकज से बड़े थे. वे रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने 45 साल की उम्र में वीआरएस ले लिया था. आज 50 के हो चुके हैं.

‘‘हैलो, मैं हूं,’’ पंकज ने कहा.

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‘‘अरे वाह,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘काफी दिनों बाद तुम्हारी आवाज सुनाई दी. कैसे हो भाई.’’

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’

‘‘मुझे क्या होना है. बढि़या हूं. कहां हो?’’

‘‘अभी तो औफिस में ही हूं, कल क्या कर रहे हैं, कहीं जाना तो नहीं है?’’

‘‘जाना तो है. पर सुबह जाऊंगा. 10-11 बजे तक वापस आ जाऊंगा. क्यों, तुम आ रहे हो क्या?’’

‘‘हां, बहुत दिन हो गए.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं बाद में चला जाऊंगा या नहीं जाऊंगा. जरूरी नहीं है.’’

‘‘नहीं, नहीं. मैं तो लंच के बाद ही आऊंगा. आप आराम से जाइए. वैसे जाना कहां है?’’

‘‘वही, रिनी के लिए लड़का देखने. नारायणा में बात चल रही थी न. तुम्हें बताया तो था. फोन पर साफ बात नहीं कर रहे हैं, टाल रहे हैं. इसलिए सोचता हूं एक बार हो आऊं.’’

‘‘ठीक है, हो आइए. पर मुझे नहीं लगता कि वहां बात बनेगी. वे लोग मुझे जरा घमंडी लग रहे हैं.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. मुझे भी यही लगता है. कल फाइनल कर ही लेता हूं. फिर तुम अपनी भाभी को तो जानते ही हो.’’

‘‘ठीक है, बल्कि यही ठीक होगा. भाभीजी कैसी हैं, उन का घुटना अब कैसा है?’’

‘‘ठीक ही है. डाक्टर ने जो ऐक्सरसाइज बताई है वह करें तब न.’’

‘‘और नीरज आया था क्या?’’

‘‘अरे हां, आजकल आया हुआ है. एकदम ठीक है. तुम्हारे बारे में आज ही पूछ भी रहा था. खैर, तुम कितने बजे तक आ जाओगे?’’

‘‘मैं 4 बजे के करीब आऊंगा.’’

‘‘ठीक है. चाय साथ पिएंगे. फिर खाना खा कर जाना.’’

‘‘रिनी की कहीं और भी बात चल रही है क्या? देखते रहना चाहिए. एक के भरोसे तो नहीं बैठे रहा जा सकता न.’’

‘‘चल रही है न. अब आओ तो बैठ कर इत्मीनान से बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है. तो कल पहुंचता हूं. फोन रखता हूं, बाय.’’

मोबाइल फोन का यही चलन है. शुरुआत में न तो नमस्कार, प्रणाम होता है और न ही अंत में होता है. बस, बाय कहा और बात खत्म.

रामचंदर बाबू के एक लड़का नीरज व लड़की रिनी है. रिनी बड़ी है. वह एमबीए कर के नौकरी कर रही है. साढे़ 6 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. नीरज बीटैक कर के 3 महीने से एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. रामचंदर बाबू रिनी की शादी को ले कर बेहद परेशान थे. दरअसल, उन के बच्चे शादी के बाद देर से पैदा हुए थे. पढ़ाई, नौकरी व कैरियर के कारण पहले तो रिनी ही शादी के लिए तैयार नहीं थी, जब राजी हुई तब उस की उम्र 28 साल थी. देखतेदेखते समय बीतता गया और रिनी अब 30 वर्ष की हो गई, लेकिन शादी तय नहीं हो पाई. नातेरिश्तेदारों व दोस्तों को भी कह रखा था. अखबारों में भी विज्ञापन दिया था. मैट्रिमोनियल साइट्स पर भी प्रोफाइल डाल रखा था. अब जब अखबार ने उन का विज्ञापन 30 प्लस वाली श्रेणी में रखा तब उन्हें लगा कि वाकई देर हो गई है. वे काफी परेशान हो गए.

पंकज जब उन के यहां पहुंचा तो 4 ही बजे थे. रामचंदर बाबू घर पर ही थे. पंकज का उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के चेहरे पर चमक थी. पंकज को लगा रिनी की बात कहीं बन गई है.

‘‘क्या हाल है रामचंदर बाबू,’’ पंकज ने सोफे पर बैठते हुए पूछा.

‘‘हाल बढि़या है. सब ठीक चल रहा है.’’

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‘‘रिनी की शादी की बात कुछ आगे बढ़ी क्या?’’

‘‘हां, चल तो रही है. देखो, सबकुछ ठीक रहा तो शायद जल्द ही फाइनल हो जाएगा.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छा हुआ. नारायणा वाले तो अच्छे लोग निकले.’’

‘‘नारायणा वाले नहीं, वे लोग तो अभी भी टाल रहे हैं. मैं गया था तो बोले कि 2-3 हफ्ते में बताएंगे.’’

‘‘फिर कहां की बात कर रहे हैं?’’

रामचंदर बाबू खिसक कर उस के नजदीक आ गए.

‘‘बड़ा बढि़या प्रपोजल है. इंटरनैट से संपर्क हुआ है.’’

‘‘इंटरनैट से? वह कैसे?’’

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूं. इंटरनैट पर मैट्रिमोनियल की बहुत सी साइट्स हैं. वे लड़के और लड़कियां की डिटेल रखते हैं. उन पर अकाउंट बनाना होता है, मैं ने रिनी का अकाउंट बनाया था. मुंबई के बड़े लोग हैं. बहुत बड़े आदमी हैं. अभी पिछले हफ्ते ही तो मैं ने उन का औफर एक्सैप्ट किया था.’’

‘‘लड़का क्या करता है?’’

‘‘लड़का एमटैक है आईआईटी मुंबई से. जेट एयरवेज में चीफ इंजीनियर मैंटिनैंस है. 22 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. तुम तो उस का फोटो देखते ही पसंद कर लोगे. एकदम फिल्मी हीरो या मौडल लगता है. अकेला लड़का है. कोई बहन भी नहीं है.’’

‘‘चलिए, यह तो अच्छी बात है. उस का बाप क्या करता है?’’

‘‘बिजनैसमैन हैं. मुंबई में 2 फैक्टरियां हैं.’’

‘‘2 फैक्टरियां? फिर तो बहुत बड़े आदमी हैं.’’

‘‘बहुत बड़े. कहने लगे इतना कुछ है उन के पास कि संभालना मुश्किल हो रहा है. लड़के का मन बिजनैस में नहीं है, नहीं तो नौकरी करने की कोई जरूरत ही नहीं है. कह रहे थे बिजनैस तो रिनी ही संभालेगी, एमबीए जो है. घर में 3-3 गाडि़यां हैं,’’ रामचंदर बाबू खुशी में कहे जा रहे थे.

‘‘इस का मतलब है कि आप की बात हो चुकी है.’’

‘‘बात तो लगभग रोज ही होती है. एक्सैप्ट करने के बाद साइट वाले कौंटैक्ट नंबर दे देते हैं. जितेंद्रजी कहने लगे कि जब से आप से बात हुई है, दिन में एक बार बात किए बिना चैन ही नहीं मिलता. कई बार तो रात के 12 बजे भी उन का फोन आ जाता है. व्यस्त आदमी हैं न.’’

‘‘कुछ लेनदेन की बात हुई है क्या?’’

‘‘मैं ने इशारे में पूछा था. कहने लगे, कुछ नहीं चाहिए. न सोना, न रुपया, न कपड़ा. बस, सादी शादी. बाकी वे लोग बाद में किसी होटल में पार्टी करेंगे. होटल का नाम याद नहीं आ रहा है. कोई बड़ा होटल है.’’

‘‘घर में और कौनकौन है?’’

‘‘बस, मां हैं और कोई नहीं है. नौकरचाकरों की तो समझो फौज है.’’

‘‘आप ने रिश्तेदारी तो पता की ही होगी. कोई कौमन रिश्तेदारी पता चली क्या?’’

‘‘मैं ने पूछा था. दिल्ली में कोई नहीं है. मुंबई में भी सभी दोस्तपरिचित ही हैं. वैसे बात तो वे सही ही कह रहे हैं. अब हमारी ही कौन सी रिश्तेदारियां बची हैं. एकाध को छोड़ दो तो सब से संबंध खत्म ही हैं. मेरे बाद नीरज और रिनी क्या रिश्तेदारियां निबाहेंगे भला. खत्म ही समझो.’’

‘‘चलिए, ठीक ही है. बात आगे तो बढ़े.’’ वैसे मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ‘‘शादीब्याह का मामला है, कुछ सावधानियां तो बरतनी ही पड़ती हैं.’’

‘‘हां, सो तो है ही. मैं सावधान तो हूं ही. पर सावधानी के चक्कर में इतना अच्छा रिश्ता कैसे छोड़ दूं. रिनी की उम्र तो तुम देख ही रहे हो.’’

‘‘नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था. फिर भी जितना हो सके बैकग्राउंड तो पता कर ही लेना चाहिए.’’

‘‘वो तो करूंगा ही भाई.’’

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गुड मोर्निंग मैसेजों की बरसात, फालतू की शिष्टता का नाटक

सुबह उठकर फोन खोलिये तो मैसेज बाॅक्स भरा मिलेगा. न जाने अचानक दोस्त और जान पहचान के लोग कितने शिष्ट हो गये हैं कि सूरज निकलने के पहले ही गुड मोर्निंग मैसेज की झड़ी लगा देते हैं. इन मैसेज को देखकर कोई सोचे तो यही समझेगा कि ढेरों ऐसे मैसेज पाने वाला शख्स आखिर कितना लोकप्रिय और प्रभावी होगा या लोग उसकी कितनी इज्जत करते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. गुड मोर्निंग का मैसेज भेजने वाले लोग न तो आपका बहुत सम्मान करते हैं और न ही आपको बहुत प्रभावी मानते हैं. दरअसल वे भी बदले में ऐसे ही मैसेजों की बरसात चाहते हैं, बस इतना सा मामला है. यह एक फालूत की शिष्टता है जिसका इन दिनों फैशन बन गया है.

इसलिए मैंने अपने व्हाट्सएप के स्टेटस में लिख रखा है, गुड मोर्निंग, गुड इवनिंग के फालतू के मैसेज मुझे मत भेजिये. कुछ लोग तो स्टेटस पढ़कर संयम बरतते हैं, लेकिन कुछ फिर भी नहीं मानते. यही वजह है कि सुबह व्हाट्सएप्प खोलते ही मेरा मूड अकसर दिनभर के लिए ऑफ हो जाता है. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत चिड़चिड़ा व्यक्ति हूं और बिना मतलब ऐसे मैसेजों से परेशान रहता हूं. इसके कुछ खास कारण हैं. एक तो इनसे अकारण ही मेरे फोन का सारा स्पेस भर जाता है. इन्हें डिलीट करने में भी अच्छा खासा समय जाया होता है और सबसे बड़ी बात जिस कारण मैं इनसे चिढ़ता हूं, वह यह है कि शायद ही इस दिखावटी शिष्टता से बड़ा कोई दूसरा झूठ होता है.

अभी कल की बात है सुबह सुबह मेरे पास जो गुड मोर्निंग मैसेज आया, उसमें लिखा था, “शुभचिंतक सड़कों पर लगे सुंदर लैंप की तरह होते हैं, वे हमारी यात्रा की दूरी को तो कम नहीं कर सकते लेकिन हमारे पथ को रोशन और यात्रा को आसान करते हैं … सुप्रभात.” इसे देखते ही मेरे तन-मन में आग लग गई क्योंकि जिसने यह संदेश भेजा था, उसे मैं बहुत अच्छे तरीके से जानता हूं. कई साल वह मेरा सहकर्मी था और दफ्तर में ज्यादातर का वह काम करना मुश्किल कर देता था. वही इस किस्म के मैसेज भेज रहा है. यह पाखंड नहीं है तो और क्या है? सबसे बड़ी बात तो यह है कि गुड मोर्निंग मैसेज भेजने वाले इन मैसेजों में लिखी अच्छी अच्छी बातों का कभी अपने जीवन में उतारने का प्रयास नहीं करते. अगर ये लोग अपने ही कथन पर अमल कर लें तो दुनिया सबके लिए रहने की बेहतर जगह हो जाये.

शायद ऐसे ही लोगों की वजह से अमरीकी चिंतक व दार्शनिक रिचर्ड बाश ने अपनी एक किताब ‘इल्यूजन’ में लिखा है, “आप उस बात की अच्छी शिक्षा देते हैं, जिसे आपको स्वयं सीखना चाहिए.” गुड मोर्निंग मैसेजों के मामले में तो यह बात पूरी तरह से खरी उतरती है. इस फैशन में एक बड़ा नुकसान हो रहा है. लोग गालिब या गुलजार का नाम लेकर ऐसे अधकचरे व घटिया शेर आपको भेज देंगे कि सुबह सुबह पढ़कर आपका मूड खराब हो जाए, अगर आपने आॅरिजनल पढ़ रखे हैं. गुड मोर्निंग मैसेजों में अक्सर ही न सिर्फ कोट्स को मिसकोट्स कर दिया जाता है बल्कि किसी का कथन किसी के मत्थे मड़ दिया जाता है.

वैसे मिसकोट्स की बीमारी गुड मोर्निंग मैसेजों तक ही सीमित नहीं है. बोगस कोट्स इन दिनों हर जगह हवा में घुले हुए हैं. इसके लिए हम सार्वजनिक मंचों पर भाषण देने वाले वक्ताओं, आलसी भाषण लेखकों और पक्षपाती राजनीतिज्ञों को इस संस्कृति के पुरोधाओं में गिन सकते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर एक बार कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद या विधायक किसी कोट को मिसकोट कर दे तो फिर उसे सही करना या उसे उसके मूल स्वामी से जोड़ना बहुत कठिन हो जाता है. एम हिदायतउल्लाह जब देश के (छठे) उप-राष्ट्रपति थे तो उस समय खुशवंत सिंह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे . हिदायतउल्लाह की पहचान एक ज्ञानी के रूप में थी और चूंकि वह देश के (ग्यारहवें) मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके थे इसलिए उनकी बात को पत्थर की लकीर की तरह स्वीकार किया जाता था. ध्यान रहे कि उपराष्ट्रपति राज्य सभा के चेयरपर्सन भी होते हैं. बहरहाल, उच्च सदन में हिदायतउल्लाह अपने संबोधन में संदर्भ सहित कोट्स का बहुत अधिक प्रयोग करते थे, जिससे न सिर्फ उनकी बात में वजन पैदा होता था बल्कि सांसद प्रभावित होते थे कि वह कितने लर्नेड हैं और कोई भी उनके कथन को चुनौती नहीं देता था. एक दिन खुशवंत सिंह ने गौर किया तो पाया कि हिदायतउल्लाह विलियम हैजलिट या जॉन डॉन के कोट को भी शेक्सपियर के साथ जोड़ देते हैं और सब सदस्य मान लेते हैं कि प्रमाणित है आपका फरमाया हुआ’.

हिदायतउल्लाह तो खैर एक का कोट दूसरे के नाम से बोल देते थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो गालिब का नाम लेकर जून 2019 में राज्यसभा में एक ऐसा शेर पढ़ा जो गालिब ने कभी कहा ही नहीं था और उसके मिसरे (पंक्तियां) भी बहर (वजन) में नहीं थीं. उन्होंने जैसे ही यह पढ़ा- ‘ताउम्र गालिब ये भूल करता रहा/धूल चेहरे पर थी और मैं आईना साफ करता रहा’- तो और लोग भी इसे गालिब के नाम से कोट करने लगे, जिनमें बीजेपी के नेताओं के साथ फिल्म निर्देशक महेश भट्ट भी शामिल हैं. गालिब के 220वें जन्म दिवस पर कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने तो मिसकोटेशन तमाम सीमाएं पार कर दीं. किसी की बेकार सी कविता को गालिब की ‘महान पंक्तियां’ बताते हुए उन्होंने ट्वीट किया- ‘खुदा की मुहब्बत को फना कौन करेगा? सभी बंदे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा? ए खुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना/वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा? और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज/वरना मेरे तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा?’

इस ट्वीट पर जावेद अख्तर ने व्यंग किया, “शशी जी, जिसने भी आपको यह पंक्तियां दी हैं उस पर फिर कभी विश्वास मत करना. यह स्पष्ट है कि आपकी साहित्यक विश्वसनीयता को ध्वस्त करने के लिए किसी ने इन पंक्तियों को आपके प्रदर्शनों की सूची में प्लांट कर दिया है.” मिसकोट सिर्फ अपने देश के नेता ही नहीं करते हैं. यह ‘आम गुनाह’ दुनियाभर में होता है. बराक ओबामा जब सीनेटर थे तो उन्होंने सीनेट में अपने एक आलोचक से अब्राहम लिंकन का हवाला देते हुए कहा था, “अगर आप मेरे बारे में झूठ बोलना बंद नहीं करेंगे, तो मैं आपके बारे में सच बताने लगूंगा.” यह कोट लिंकन का नहीं है बल्कि 19वीं शताब्दी में सीनेटर चैन्सय डेपेव ने अपने प्रतिद्वंदियों के लिए सबसे पहले इसका इस्तेमाल किया था.

खैर मुझे इस सब पर थीसिस नहीं लिखना, मैं तो सिर्फ यह बता रहा था कि ये जो गुड मोर्निंग के मैसेज है वो किस तरीके से आपका समय भी बर्बाद करते है और आपकी समझ पर भी पलीता लगाते हैं.

बौलीवुड में बढ़ते कोरोना के बीच ‘FWICE’ उठाएगा बड़ा कदम, पढ़ें खबर

इस वक्त पूरा बौलीवुड ‘कोविड 19’ के शिकंजे में हैं. ‘कोविड-19’संक्रमण के चलते अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म‘राम सेतु’, धर्मा प्रोडक्शंस की ‘मिस्टर लेले’ से लेकर संजय लीला भंसाली की  फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ सहित कई फिल्मों तथा टीवी सीरियलों की शूटिंग रूक गयी हैं.

जबकि महाराष्ट् में सिनेमाघर बंद किए जाने के बाद ‘‘सूर्यवंशी’’ जैसी फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा चुका है.  कैटरीना कैफ ,अक्षय कुमार, विक्की कौशल,भूमि पेडनेकर,सीमा पहवा, गोविंदा, ऋत्विक भौमिक, रूपाली गांगुली, आदित्य नारायण और अभिजीत सावंत सहित करीबन 50 फिल्मी व टीवी सितारें और करीबन 60 वर्कर ‘कोविड-19’से से संक्रमित होने के चलते कई फिल्मों व सीरियलों की शूटिंग भी बंद होने की स्थिति आ गयी है. इतना ही नही 30 मार्च को रियालिटी टीवी सीरियल ‘‘डांस दीवाने’’ के युनिट के 18 सदस्य कोरोना से संक्रमित पाये गए थे,जिसके बाद निर्माताओं को एक हफ्ते के लिए इसकी शूटिंग रोकनी पड़ी.

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परिणामतः फिल्मों व टीवी सीरियलों शो से जुड़े तकनीशियनों की ३२ यूनियनों की मदर बॉडी फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई)  इस बात पर विचार कर रही है कि क्यों ना फिल्मों और टीवी सीरियल से जुड़े वर्करों को दो दिन अवकाश दिया जाए. इसके लिए सभी प्रकार की शुटिंग शनिवार और रविवार को बंद  रखा जाए तथा बाकी दिन सात बजे शाम से पहले शुटिग समाप्त कर दिया जाए,ताकि सभी वर्कर और तकनीशियन समय पर अपने घर पहुंच जाएं. एफडब्लूआईसीई के अध्यक्ष बीएन तिवारी, जनरल सेक्रेटरी – अशोक दूबे, चीफ एडवाईजर- शरद शेलार, अशोक पंडित तथा ट्रेजरार गंगेश्वरलाल श्रीवास्तव (संजू भाई) के मुताबिक एसोसिएशन इस बाबत निर्माताओं और चैनल से बात कर रही हैं. बी एन तिवारी कहते हैं-‘‘हमारी प्रार्थमिकता है कि हमारे तकनीशियनों और मजदूरों को सुरक्षा मिले और उन्हे आर्थिक नुकसान भी ना हो. हम चाहते हैं कि निर्माता कोविड -१९ के लिए बनी सरकारी गाईड लाईन का पालन करें और हर सेट पर शुटिंग के लिए मौजूद तकनीशयनों और मजदूरों तथा सभी कलाकारों का कोविड टेस्ट कराया जाए तथा उनकी रिपोर्ट आने के बाद ही सेट पर जाने की अनुमति दी जाए. इतना ही नहीं कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण भी निर्माता द्वारा तकनीशियनों और मजदूरों का कराया जाए.  साथ ही बड़े स्टार शूटिंग के दौरान लाने वाले अपने स्टाफ में कटौती करें. ’’

फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे ने कहा-‘‘हम तो शुरू से मांग कर रहे हैं कि निर्माता तकनीशियनों को कोरोना से सुरक्षा दें,लेकिन कई निर्माता अब भी लापरवाही कर रहे हैं.  आज  वर्ष 2021 में वर्ष 2020 की पुनरावृत्ति प्रतीत हो रही है. ’’

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जबकि एफडब्लूआईसीई के कोषाध्यक्ष गंगेश्वरलाल श्रीवास्तव ने कहते हैं-‘‘एफडब्लूआईसीई फिल्मांकन गतिविधियों को निलंबित करने का जोखिम नहीं उठा सकता.  मगर यह भी सही है कि सेट पर कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की जरूरत है. इसमें नियमित रूप से आरटीपीसीआर जांच करना शामिल हैं. फिल्म ‘‘राम सेतु’’ की शूटिंग कर सिर्फ अक्षय कुमार ही नहीं बल्कि फिल्म निर्माण दल के 45 सदस्य भी कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं.  एहतियात के तौर पर अक्षय कुमार  को सोमवार को शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. दूसरी ओर विक्की कौशल और भूमि पेडनेकर, फिल्म निर्माता शशांक खैतान की धर्मा प्रोडक्शंस की फिल्म ‘‘मिस्टर लेले’’ की कथित तौर पर शूटिंग कर रहे थे. ’’

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