पर्यावरण प्रदूषण को कम और ग्रामीण शिक्षा को प्रोत्साहित करती है रियूजेबल पैड्स- अंजू विष्ट

अंजू विष्ट (सोशल वर्कर)

मासिक चक्र के दौर से हर लड़की और महिला को गुजरना पड़ता है. इसके लिए उसे बाज़ार से महंगे पैड्स खरीदने की जरुरत होती है, लेकिन गाँवों में महिलाओं का पैड्स खरीदना और डिस्पोज करना मुश्किल होता है. इसलिए अधिकतर लड़कियां और महिलाएं डिस्पोज करने के लिए मिट्टी के नीचे दबा देती है, जिसमें प्लास्टिक होता है और उसे गलने में सालों लगते है. इसलिए स्वास्थ्य औरपर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए साल 2017 को सुंदर, प्राकृतिक और आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केरल के माता अमृतानंदमयी मठ के संस्थापक अमृतानंदमयी ने सौख्यम रियूजेबल पैड्सको लौंच किया.

हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई संस्थाएं है, जो केले के रेशों से डिस्पोजेबल पैड्स बनाती है, लेकिन सौख्यम विश्व भर में पहली संस्था है, जो केले के रेशों से रियूजेबल पैड्स बनाती है.इसके लिए सौख्यम पैड्स को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके है. इसे राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थानकी तरफ से मोस्ट इनोवेटिव प्रोडक्ट का अवार्ड,साल 2018 में पोलैंड के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में सराहा जाना, मार्च 2020 में इसे सोशल इंटरप्राइज ऑफ़ द इयर अवार्ड दिया जाना आदि कई पुरस्कार प्राप्त है. आज 50 हजार से अधिक महिलाएं इस पैड्स का प्रयोग कर रही है, जिससे करीब 875 टन से भी अधिक नॉन-बायोडिग्रेडेबल मेंसुरल वेस्ट को कम किया गया है.

मिली प्रेरणा

इस बारें में सौख्यम के को डायरेक्टर और रिसर्चर अंजू विष्ट कहती है कि मैं 18 सालों से इस संस्था से जुडी हुई हूँ. काम के दौरान महसूस हुआ कि सालों से महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म की में पैड्स की समस्या है जिसके बारें में अधिक चर्चा नहीं की जाती, क्योंकि ये सोशल स्टिग्मा है. ‘पैडमैन’ फिल्म भी तब आई नहीं थी. ऐसे में इस मुद्दे का अगर समाधान मिल जाए, तो स्वास्थ्य शिक्षा के साथ-साथग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा की समस्या भी सोल्व हो सकती है, क्योंकि अधिकतर लड़कियां मासिक धर्म के बाद गांव में सही विकल्प न होने की वजह से पढाई छोड़ देती है. आज सरकार की तरफ से एक रूपये में सुविधा पैड्स मिलते है,लेकिन उनदिनों कुछ भी नहीं था. पैड्स कैसे बनाई जाय, इस बारें में पूरी टीम सोचने लगी, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में पैड्स का कचरा फैलाना ठीक नहीं, साथ ही पैड्स में प्रयोग किये गए कागज के लिए पेड़ काटनी पड़ती है, ऐसे में सेल्यूलोसफाइबर, जो पैड में रक्त सोखने का काम करती है,वह केले के रेशों में आसानी से मिल जाती है. ये किसी को पता नहीं था.

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हालाँकि वर्ल्ड में भी पेड़ न काटने की दिशा में केले के फाइबर से पैड बनने लगे थे. ऐसे में भारत, जहाँ केले का उत्पादन विश्व में सबसे अधिक होता है औरकेले के पेड़ को एक बार फल लगने के बाद काट दिया जाता है, क्योंकि इस पर दूबारा फल नहीं लगता.कटे हुए पेड़ों से जो फाइबर निकलता है, वह भी सेल्यूलोस फाइबर ही है, जिसका प्रयोग पैड्स में किया जा सकता है. फिर पैड्स बनाने की बारी आई, तो राय यह थी कि भले ही केले के वेस्ट से इसे बनाया जाता हो, पर एक बार प्रयोग कर उसे फेंक देना ठीक नहीं. मैंने भी करीब 20 साल से रियूजेबल पैड्स का प्रयोग किया है, जो मैंने अमेरिका से ख़रीदा था. एक पैड करीब 8 साल तक चलता है. भारत में तब केवल एक संस्था इस तरह के रियूजेबल पैड बनाती थी, लेकिन आज करीब 30 संस्थाएं रियूजेबल पैड्स बनाती है. अंतर सिर्फ इतना है कि बाकी पैड्स में रक्त को सोखने के लिए कपडा होता है, जबकि सौख्यम में रक्त सोखने के लिए केले का फाइबर होता है.

पैड्स बनाने के तरीके

मंजू का आगे कहना है कि ‘बनाना फाइबर’ एक्सट्रेक्टर एक मशीन के द्वारा फाइबर निकाली जाती है. उसे क्लीन करना एक चुनौती होती है, क्योंकि रेशों को साफ़ कर उसे सॉफ्ट बनाना पड़ता है. ब्रश से साफ़ कर उसे मशीन के द्वारा वजन कर 6 ग्राम केले का रेशा डे पैड के लिए और 9 ग्राम नाईट पैड के लिए अलग-अलग किया जाता है. इसके बाद इसकी शीट्स बनाकर पूरी रात दबाकर रखते है, फिर कपडे की परत में डालकर उसे सिलाई की जाती है. केले के पेड़ की साइज़ अलग-अलग होती है, लेकिन एक केले के पेड़ से 200 से 400 ग्राम तक केले के रेशे मिल जाते है. थोडा वेस्ट भी हो जाता है तक़रीबन 20 पैड एक केले के रेशों से बनाये जाते है. एक दिन में एक महिला 24 या 25 पैड 6 घंटे में बना लेती है. ये हल्के और मुलायम होते है. रक्त के फ्लो के हिसाब से पैड का प्रयोग महिलाये करती है. ये रियूजेबल पैड्स है और महंगे नहीं होते, इसलिए इसे महिलाएं अधिक खरीदती है. इस काम में कुछ वोलेंटियर्स अपने समय के हिसाब से आते-जाते रहते है और 9 वर्कशॉप के लिए काम करते है, जो देश कई राज्यों जैसे चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद आदि जगहों पर जाते है, क्योंकि महिलाओं को इस पैड के बारें में पता नहीं है. इसमें ग्रामीण महिलाएं अधिक काम करती है.

रियूज का तरीका

रियूजेबल पैड्स कपडे के बने होते है. उनमें और कपडे के प्रयोग में बहुत अंतर है, पहले महिलाएं कपडे ही प्रयोग करती थी. लेकिन उसमें दाग-धब्बे हो जाते है, जिसे निकालना मुश्किल होता है. दाग की वजह से उसे खुले में नहीं सुखा सकते. रियूजेबल पैड्स को धोना सुखाना बहुत आसान होता है. पानी में धोकर हल्के हाथ से साबुन लगाने पर वह साफ़ हो जाता है और कही भी इसे 5 दिन लौन्जरी की तरह सुखाया जा सकता है. ठीक से देखभाल करने पर रियूजेबल एक पैड 4 से 5 साल तक चलता है, क्योंकि अच्छी क्वालिटी का कपडा इसमें प्रयोग किया जाता है और केले के रेशें टिकाऊ होते है. कपड़ाफट जाने पर नए कपडे के साथ पैड को फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है. इस पैड के निचले भाग में छतरी के  कपड़े की तरह बहुत पतली शीट होती है,ताकि रक्त का प्रवाह लीक न हो,जिसे धोकर रियूज किया जाता है और ये ख़राब भी नहीं होती. डिस्पोज करते समय इसे अलग कर दिया जाता है और केले के रेशे बायोडिग्रेडेबल है. इसलिए पर्यावरण को किसी प्रकार का खतरा नहीं होता.

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आगे अंजू हर राज्य में इन पैड्स को पहुचाये जाने की कोशिश कर रही है. अभी जम्मू, राजस्थान, उत्तराखंड आदि जगहों और ऑनलाइन पर भी उपलब्ध है. इसके लिए वह छोटे-छोटे व्यवसाय करने वालों की नेटवर्क बनाकर पैड्स देने वाली है, ताकि ऐसे व्यवसायी अपने क्षेत्र में इसे कम दाम में उपलब्ध करवा सकें.

एब्यूज केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है: कीर्ति कुल्हारी

मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली कीर्ति कुल्हारी ने फिल्म ‘खिचड़ी: द मूवी’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. मुंबई की रहने वाली कीर्ति ने कई सफल फिल्में और वैब सीरीज कर अपनी अलग पहचान बनाई. कीर्ति हमेशा अर्थपूर्ण फिल्मों में काम करना पसंद करती हैं और उन में 100% मेहनत करती हैं. एक मौडलिंग के दौरान कीर्ति का परिचय ऐक्टर साहिल सहगल से हुआ और फिर उन्होंने 2016 में शादी कर ली.

कीर्ति की वैब सीरीज ‘क्रिमिनल जस्टिस बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स’ हॉटस्टार स्पैशल्स पर रिलीज होने वाली है, जिसे ले कर वे बहुत उत्साहित हैं, पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:

सवाल- इस फिल्म को करने की खास वजह क्या थी?

3 चीजों ने मु झे इस प्रोजैक्ट को करने के लिए प्रेरित किया. पहली सीजन क्रिमिनल जस्टिस का काफी सफल प्रोजैक्ट था. उस शो को मैं ने बहुत पसंद किया था. सीजन 2 में कहानी क्या होगी, क्या कहना चाहेगी, इस की उत्सुकता मेरे अंदर थी, लेकिन मैं ने पाया कि यह कहानी ऐसी है, जिसे सभी को देखने की आवश्यकता है, क्योंकि मैं ने अपने किरदार में उस दुनिया का दर्द, डार्कनैस आदि सब महसूस कर बताने की कोशिश की है, जो रियल में होता है.

असल में कोई भी किरदार निभाने से पहले मैं यह देखती हूं कि कहानी कहना क्या चाहती है और वही चीज मु झे उस प्रोजैक्ट से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है. इस में अनुराधा चंद्रा की भूमिका अपनेआप में जटिल चरित्र है. उसे सब के बीच में लाना मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है. इस के अलावा कई बेहतरीन कलाकारों के साथ काम करने का भी मौका इस में मिला.

सवाल- इस में आप की भूमिका क्या है?

मेरी भूमिका अनुराधा चंद्रा की है,जो एक सफल और नामचीन परिवार से है, जिस की एक बेटी और पति है, लेकिन बाहर से परफैक्ट दिखने वाली इस दुनिया में एक राज छिपा है, जिस की वजह से एक दिन अनुराधा अपने पति को चाकू मार देती है. सीरीज देखते वक्त धीरेधीरे इस का पता लगता है.

अनुराधा को देखने से ऐसा लगता है कि वह जिंदगी से टूट चुकी है और जीना नहीं चाहती, क्योंकि उस के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है. उस ने जो सहन किया है, उसे सम झने वाला कोई नहीं है.

उस से बारबार सवाल पूछे जाते हैं कि वह अपनी बात खुल कर कहे, लेकिन वह कहना नहीं चाहती, क्योंकि वह शायद अंदर से सहतेसहते मर चुकी है. इन सब इमोशंस को कहानी में लाना आसान नहीं था.

सवाल- इस भूमिका को करने में क्याक्या समस्याएं आईं और क्याक्या तैयारियां  करनी पड़ीं?

कहानी के भाव घूमफिर कर एकजैसे ही होते हैं, इसलिए किसी भी भूमिका को करते समय यह नहीं लगता कि यह मु झ से अलग है. जो इमोशन अनुराधा चंद्रा की सीरीज में है, उस से हम सब किसी न किसी रूप में गुजरते हैं. कलाकार इन इमोशंस को सम झ कर, उन्हीं के अनुरूप अभिनय करता है.

इस के अलावा मैं ने कोई खास तैयारी नहीं की है. जटिल चरित्र होने की वजह से मैं एक मनोचिकित्सक से मिली और 2 घंटे बातचीत की. पतिपत्नी के बीच बंद दरवाजे के पीछे क्या चल रहा होता है, उसे कोई तीसरा नहीं सम झ सकता. पतिपत्नी के रिश्ते और प्यार के नाम पर एकदूसरे को कंट्रोल करना आदि सम झने की कोशिश की है.

सवाल- पूरे विश्व में डोमैस्टिक ऐब्यूज होता है, लेकिन महिलाएं इस से बाहर निकल कर कहने से डरती क्यों हैं? किस तरह कदम उठाने की जरूरत है? आप की सोच इस बारे में क्या है?

ऐब्यूज केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है. कई बार ऐब्यूज होने का पता तक नहीं चलता, क्योंकि व्यक्ति उस के आदी हो कर अपना बैलेंस खो देते हैं. लगातार ऐब्यूज से व्यक्ति पागल भी हो सकता है. मनोचिकित्सक और काउंसलर के पास आज भी लोग जाने से घबराते हैं, क्योंकि यह एक बड़ा टैबू है.

बड़े शहरों में फिर भी महिलाएं अपनी बात आगे आ कर कह सकती हैं, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में कोई महिला शर्म और अपराधबोध की वजह से कुछ भी नहीं कह सकती. कानून में मैरिटल रेप को जायज ठहराया गया है, जो गलत है. अगर 2 लोग रिश्ते में हैं, तो दोनों की मरजी कुछ भी होने से पहले जरूरी है.

पुरुषों को यह बात सम झ में क्यों नहीं आती? समाज और परिवार में भी किसी लड़की के लिए अपने पति को खुश रखना और उस रिश्ते को निभाना उस का काम माना जाता है. मैं ने कई ऐसी घटनाएं मनोचिकित्सक से पतिपत्नी के रिश्ते के बारे में सुनीं तो दंग रह गई. हमारे देश में इसे तवज्जो ही नहीं दी जाती. इन चीजों पर कानून को गौर करने, बदलने और सख्ती से पालन होने की दिशा में काम करने की जरूरत है, क्योंकि यह ऐब्यूज अमीर से ले कर गरीब और पढ़ेलिखे और अनपढ़ सभी घरों में होता है.

मैं ने अभिनय करते हुए एक महिला के हर पहलू को नजदीक से महसूस किया है. इस के अलावा ऐसे ऐब्यूज को कम करने की दिशा में परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, जो शादी के बाद बेटी पर ध्यान देना छोड़ देता है. पेरैंट्स का सहयोग ही बेटी को आगे बढ़ कर कुछ कहने की हिम्मत देता है.

सवाल- यह वैब सीरीज क्या मैसेज देती है?

यह कहानी इंसानों के लिए है. ऐब्यूज केवल महिलाओं के साथ ही नहीं पुरुषों के साथ भी होता है, लेकिन महिलाओं के साथ यह हमेशा से अधिक होता आया है. इस के अलावा यह वैब सीरीज पुरुषों को अपने बारे में क्या सही, क्या गलत है, सोचने पर मजबूर करेगी. शादी के नाम पर पत्नी को सम्मान देना, सीमा का तय होना, स्पेस देना आदि कितना जरूरी है, इसे बताने की कोशिश की गई है.

सवाल- आप शादीशुदा हैं और एक अच्छी जिंदगी बिता रही हैं, आप काम के साथ और परिवार के साथ कैसे तालमेल बैठाती हैं तथा पति का कितना सहयोग रहता है?

फिल्म ‘पिंक’ रिलीज होने के 3-4 महीने पहले मेरी शादी हुई थी. शादी के बाद मेरा कैरियर ऊपर ही गया है. मैं ने कई अलगअलग काम किए और बोल्ड निर्णय लिए, लेकिन उन में मेरे पति और अन्य परिवार के सदस्यों सभी ने दिल से सहयोग दिया. परिवार प्रोग्रैसिव विचार वाला है. सभी मेरे काम को सम झते हैं और हमेशा प्रोत्साहित करते हैं.

सवाल- नए साल में महिलाओं को क्या मैसेज देना चाहती हैं?

मैं महिलाओं से कहना चाहूंगी कि यदि आप के साथ कुछ गलत हो रहा है, तो अपने लिए आवाज उठाना बहुत जरूरी है. इस में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए. अगर आप अपने लिए खड़ी नहीं होती हैं, तो कोई भी आप के लिए आगे नहीं आएगा. अपने अंदर से हिचकिचाहट निकालें. अपने रिश्ते को सम झें और समस्या को किसी से शेयर करें. अपनी सीमाएं खुद तय करें.

रेंट एग्रीमेंट बनवाने से पहले जान लें ये 10 बातें

किराया पर रहना आज के समय में इनकम का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर देकर अपनी इनकम बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमेंट.

रैंट एग्रीमेंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमेंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

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रैंट एग्रीमेंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

1. रैंट एग्रीमेंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनायाजाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

2. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

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3. रैंट एग्रीमेंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

4. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

5. तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

6. मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

7. किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

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8. मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

9. रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

10. मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

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राजनीति में सबको पॉवर की भूख होती है – अक्षय ओबेरॉय

फिल्म ‘इसी लाइफ में’ से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता अक्षय ओबेरॉय को शुरू से अभिनय करने की इच्छा थी, जिसमें साथ दिया उनके पेरेंट्स ने. विदेश से पढाई कर वे मुंबई आये और पृथ्वी थिएटर ज्वाइन कर अभिनय की बारीकियां सीखी. इसके बाद उन्हें कई फिल्में और वेब सीरीज में काम मिला. उनकी पत्नी ज्योति, जो उनके बचपन की प्रेमिका रही है. दोनों का बेटा अव्यान है. अक्षयने हमेशा अलग और रुचिपूर्ण कहानियों को महत्व दिया और कामयाब रहे. वे सेल्फ मेड इंसान है और खुद की मेहनत को प्रमुखता देते है. फिल्म मैडम चीफ मिनिस्टर में उन्होंने विलेन की भूमिका निभाई है. पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस फिल्म में आपकी भूमिका क्या है और कितना चुनौतीपूर्ण है?

मैं इसमें विलेन की भूमिका निभा रहा हूं और मुझे इसे करने में मुझे बहुत अच्छा लगा. मुझे राजनीति से कभी कुछ लेना देना नहीं रहा. असल में राजनीति में सबको पॉवर की भूख होती है, जो भी राजनीति में जाते है, उन्हें और अधिक पॉवर प्राप्त करने की इच्छा होती रहती है. देश के भविष्य के बारें में कितना सोचते है, ये कहना मुश्किल है, लेकिन सबके पीछे पॉवर की ही इच्छा मुख्य रूप से रहती है. मैं असल जिंदगी में बिलकुल भी पॉवर की भूख नहीं है, मुझे एक्टिंग की भूख है, इसलिए ये चरित्र मेरे विपरीत है. जब निर्देशक सुभाष कपूर ने मेरी भूमिका मुझे सुनाई तो मैं इसे करने के लिए बहुत उत्साहित हो गया.

सवाल-क्या विलेन की भूमिका करना आपको पसंद है, क्योंकि इससे आपका इमेज आम लोगों के बीच ख़राब हो जाता है, आपको वैसी ही फिल्में मिलने लगती है, क्या कहना चाहते है?

मैंने इसके पहले एक फिल्म ‘गुड़गांव’ और एक वेब सीरीज ‘फ्लैश’ में विलेन की भूमिका निभाई थी. मुझे इमेज के बारें में अधिक नहीं सोचता. अगर मैंने कोई इमेज बनायीं है, तो उसे तोड़ने वाला भी मैं ही हूं. मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहता हूं. मैं अपने किरदार को अधिक से अधिक स्ट्रेच करना चाहता हूं, जो चीज मुझे उत्साहित करती है, मैं उसके पीछे भागता हूं.

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सवाल-एक कलाकार के लिए नकारात्मक भूमिका करना कितना जरुरी होता है?

मैं अंदर से एक अच्छा इंसान हूं. विलेन की कोई भी शेड्स मुझमे नहीं है.मेरे लिए ऐसी भूमिका मेरी ग्रोथ का परिचायाक है, क्योंकि मैं जो नहीं हूं, वही भूमिका मैं कर रहा हूं. मैं अपनी इंसानियत को जितनी बहतर करूँगा, मेरी एक्टिंग उतनी ही अच्छी होगी.

सवाल-इस भूमिका के लिए कितनी तैयारियां की है?

मैंने बहुत तैयारी की है. मैं राजनीति से अधिक परिचित नहीं था, इसलिए मुझे उसके बारें में जाननी पड़ी. कॉलेज की राजनीति कैसी होती है, कोई राजनीति में कैसे आता है, उनके कैरियर की जर्नी कैसी होती है आदि कई विषयों के बारें में जानकारी हासिल की. इसके अलावा मैंने असल जिंदगी से भी कुछ लेकर फिल्म में डाली है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकारों को भी फोलो किया. साथ ही लखनवी भाषा पर काम करना पड़ा.

सवाल-कई बार पर्दे पर विलेन के किरदार निभाने वाले कलाकार को लड़कियां रियल लाइफ में देखकर डर जाती है, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ?

फिल्म गुड़गांव रिलीज के समय मैं मकाऊ गया था. मकाऊ फिल्म फेस्टिवल में फिल्म ख़त्म होते ही मैं बाहर निकला और लड़कियों की एक झुण्ड मुझे देखकर भागने लगी. मुझे पता चला और मैंने उन्हें बड़ी मुश्किल से समझाया. फिर उन लड़कियों ने मेरे साथ ग्रुप पिक्चर्स लिए.

सवाल-रियल लाइफ में आप कैसे है?

10 साल इंडस्ट्री में बिताने के बाद भी मैं बहुत ही इंनोसेंटइंसान हूं.मुझे जो काम मिलता है, उसे कर लेता हूं.

सवाल-अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मैं जब 12-13 साल का था, तो लगा कि एक्टिंग ही मेरी दुनिया है, क्योंकि मेरे पिता को फिल्में देखने और मुझे फिल्में दिखाना पसंद था.मैंने गुरुदत्त, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की कई फिल्में देखने के बाद मैं उनसे ही प्रेरित हुआ और अभिनय के क्षेत्र में मुंबई आ गया.

सवाल-पहला ब्रेक मिलने में कितना संघर्ष रहा?

पहला ब्रेक मिलना बहुत मुश्किल था. विदेश से आने पर ये समस्याऔर अधिक बढ़ गयी थी,लेकिन मुझे एक मौका राजश्री प्रोडक्शन वालों ने दिया. फिल्म सफल नहीं रही, पर मैं सबकी नज़रों में आ चुका था और कमोवेश काम मिलना शुरू हो गया था. मेरी जर्नी आसान हुई. वैसे मैं वर्तमान में जीता हूं. मुझे अच्छा काम अलग-अलग फिल्मों और वेब सीरीज में करना है. यही मेरा उद्देश्य है.

सवाल-क्या कोई ड्रीम है?

मुझे पीरियोडिकल फिल्में करना है, जिसमे मेरी भाषा, रहन-सहन, चाल-ढाल आदि सब मुझसे अलग हो. वह मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी. ड्रीम डायरेक्टर श्रीराम राघवन, दिवाकर बैनर्जी, अनुराग कश्यप आदि कई है.

सवाल-वेब सीरीज कलाकारों के लिए क्या माइने रखती है?

ये एक अच्छा प्लेटफार्म है और आज के दर्शक भी बहुत स्मार्ट है. अच्छी-अच्छी कहानियां वेब पर दिखाने कीकोशिश लगातार चल रही है. फिल्मों को अगर वेब से टक्कर देने की बात हो, तो फिल्मों की अच्छी कहानियां लिखनी पड़ेगी.वेब सीरीज के विषय बहुत अच्छे होते है और किसी चरित्र को दिखाने के लिए बहुत समय मिलता है. क्रिएटिवली इसमें संतुष्टि अधिकमिलती है.

सवाल-खाली समय में क्या करते है?

मैं अपनी पत्नी और 3 साल के बेटे के साथ समय बिताता हूं. इसके अलावा दोस्तों के साथ मिलना, किताबे पढ़ना, बास्केटबाल खेलना, दौड़ना आदि कई चीजें कर लेता हूं.

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सवाल-किसी किरदार को निभाने के बाद उससे निकलना कितना मुश्किल होता है?

किसी किरदार में घुसना जितना समय लगता है, उससे कही अधिक समय निकलने में लगता है. मुझे बहुत समय लगता है. मेरी पत्नी मुझे मेरे व्यक्तित्व का एहसास दिलाती है. नकारात्मक भूमिका करने पर वह मुझसे बात नहीं करती, इससे मुझे समझ में आता है कि मेरे अंदर विलेन के लक्षण घूम रहे है. सेट पर अगर कुछ ऐसा हुआ तो निर्देशक मुझे याद दिलाते है.

सवाल-आपके चरित्र से अलग किसी भी फिल्म या वेब में काम करते वक्त किस बात पर अधिक फोकस्ड रहते है?

मैं सबसे पहले स्क्रिप्ट को तक़रीबन हजार बार पढता और सोचता रहता हूं. इससे चरित्र को अच्छी तरह से समझना आसान होता है. इसके बाद चरित्र का विश्लेषण कर उसके व्यक्तित्व को निखारने की कोशिश करता हूं. इसमें निर्देशक का काफी सहयोग रहता है,पर करने में समय लगता है.इसके अलावा किसी-किसी में स्पेशल स्किल्स की जरुरत होती है, जैसे घुड़सवारी, बाइक चलाना, किसी भाषा को सीखना आदि करना पड़ता है.

सवाल-फिल्मों और वेब में किस तरह की अंतर पाते है?

दोनों की शूट में कोई अंतर नहीं है, लेकिन वेब में कंटेंट अधिक होता है और अभिनय का समय अधिक मिलता है, जिससे चरित्र को विकसित करना आसान होता है, जबकि फिल्मों में समय कम मिलता है और उसी टाइम फ्रेम में कलाकार को सबकुछ बताना पड़ता है.

सवाल-फिल्में समाज का आइना होती है और राजनीति पर फिल्में सालों से दिखाई जाती है, पर राजनीति में कोई सुधार नहीं होता, इसकी वजह क्या मानते है?

मैं राजनीति से जुड़ा हुआ इंसान नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि एक बार राजनीति में घुसने के बाद व्यक्ति पॉवर पाने की होड़ में लग जाता है, ऐसे में वह जनता की भलाई हो या खुद के वादे सब भूल जाता है.

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सवाल-सभी जानते है कि आपके पिता और सुरेश ओबेरॉय दोनों भाई है और आप विवेक ओबेरॉय के फर्स्ट कजिन है, क्या आपको उनका सहयोग कभी मिला?

मैं सेल्फ मेड इंसान हूं और खुद की मेहनत से आगे बढ़ना चाहता हूं. मैंने कभी किसी परिवारजन से सहयोग नहीं लिया है और उनसे कोई कनेक्शन भी नहीं है.

सवाल-अगर आपको कोई सुपर पॉवर मिले तो क्या बदलना चाहते है?

अगर मुझे सुपर पॉवर मिले, तो जो लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलते हुए सड़क पर कचरा फेंकते है, उन्हें समझाना चाहता हूं कि वे इस देश के नागरिक है और उन्हें आसपास हमेशा साफ़ रखने की जरुरत है.

बैस्ट फ्रैंड भी दे सकती है धोखा

आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां और महिलाएं अपनी क्लोज फ्रैंड के समक्ष खुली किताब की भांति पेश आती हैं. यानी अपनी निजी, गोपनीय बातें तक उन के साथ शेयर करती हैं. फ्रैंड चाहे कितनी ही करीब हो, कुछ बातें ऐसी हैं जो उन्हें भी नहीं बतानी चाहिए.

अपनी फ्रैंड के साथ आप खूब हंसीठिठोली करें, बतियाएं, लेकिन यह बात सदैव ध्यान रखें कि अपनी निजी जिंदगी के पन्ने खासकर सैक्सलाइफ उस के सामने उजागर न करें. माना कि आज वह आप की खास सहेली है लेकिन हो सकता है कल किसी कारण से आप की दोस्ती में दरार आ जाए, सहेली सहेली ही न रहे. ऐसे में वह आप की निजी और गोपनीय बातों का गलत फायदा उठा सकती है.

लड़कियां अपनी सहेली को अपने बौयफ्रैंड से जुड़ी हर बात बताती हैं, उन के और अपने संबंधों के बारे में पलपल की जानकारी उसे देती हैं. यहां तक तो ठीक है लेकिन शादी से पहले बौयफ्रैंड के साथ यौनसंबंध रखने की बात बताना क्या जरूरी है? किसी कारण से यदि उस लड़के से शादी नहीं हुई तो इस बात को ले कर वह आप की बदनामी भी कर सकती है. कुछ लड़कियां तो अपने और अपने बौयफ्रैंड के अति निजी और इंटीमेट क्षणों के फोटोग्राफ्स या वीडियो भी अपनी खास सहेली को भेजती हैं. ऐसा कर के वे अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारती हैं.

खुल कर चर्चा न करें

विवाहित महिलाओं की भी कोई न कोई ऐसी सहेली अवश्य होती है, जिस के साथ वे सबकुछ सा झा करती हैं. कई बार यही सहेली पीठ पीछे आप को हंसी का पात्र या आप का मजाक बनाती है. अपनी घरगृहस्थी की सामान्य बातें बताने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन निहायत व्यक्तिगत, गोपनीय खासकर पतिपत्नी के यौनसंबंधों की खुल कर चर्चा करना ठीक नहीं है. यह आप के और आप के पति के बीच निजता का उल्लंघन है.

कुछ करीबी सहेलियां बड़ी चतुर होती हैं, जो आप से तो आप के राज उगलवा लेती हैं लेकिन स्वयं अपनी जिंदगी के पन्ने कभी नहीं खोलतीं. आप उन्हें अपना सम झ कर सबकुछ उगल देती हैं, लेकिन वे अपने बारे में उतनी ही जानकारी देती हैं जितना जरूरी सम झती हैं. यानी अपना राज छिपा कर सामने वाली का राज जान लेने में उन की दिलचस्पी होती है.

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कामकाजी लड़कियां या महिलाएं अपने बौस, कलीग्स आदि से जुड़ी बातें भी अपनी करीबी सहेली को बताती हैं कि कौन किस के साथ फ्लर्ट कर रहा है या बौस के साथ उस के कितने घनिष्ठ या करीबी संबंध हैं. जो बात एक युवती अपनी मां को या महिला अपने पति को नहीं बताती, वह करीबी सहेली को बताने की क्या तुक है? क्या वह मां या पति से अति विश्वसनीय या हितैषी है?

करीबी सहेली से किसी मुद्दे पर विचारविमर्श करना या उस की राय जानना एक बात है और उस की राय पर चलना दूसरी बात. आप उस से राय अवश्य लें, पर करें वही जो आप को उचित लगता हो. क्योंकि कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो यदि गलत हो गए तो जिंदगी भर पछताना पड़ता है.

पर्सनल बातें शेयर न करें

कई लड़कियां न केवल अपने बौयफ्रैंड  के साथ किए जाने वाले सैक्स की चर्चा करती हैं बल्कि अबौर्शन या गर्भपात कराने के बारे में भी बताती हैं. कुछ लड़कियां खुले विचारों की होती हैं और यौन स्वच्छंदता में विश्वास रखती हैं. ऐसे में उन के सैक्स संबंध कइयों से हो सकते हैं. अब यदि वे इन संबंधों के बारे में अपनी सहेली को बताती हैं, तो अपना ही अहित करती हैं.

कुछ महिलाएं अपनी करीबी सहेली को अपने या अपने पति के विवाहेतर संबंधों के बारे में भी बताती हैं. इस तरह वे उसे राजदार बनाती हैं. वह कब, कहां इस राज को खोल दे, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में आप भविष्य में कभी भी परेशानी में पड़ सकती हैं.

वैशाली का अफेयर जिस लड़के के साथ था, वह उसे धोखा दे कर भाग गया. उस के अपने प्रेमी के साथ सैक्स संबंध भी थे. इस बीच उसे लगा कि वह गर्भवती हो गई है. तो बजाय यह बात अपने परिजनों को बताने के, उस ने अपनी एक सहेली को बताई. उस ने सलाह दी कि वह जितनी जल्दी हो, किसी अन्य लड़के से शादी कर ले. वैशाली ने वैसा ही किया. महीनेभर में उस की शादी हो गई. शादी के पहले ही वह गर्भवती थी, यह बात केवल उस की करीबी सहेली को ही मालूम थी.

समय पूरा होने पर उस ने बच्चे को जन्म दिया. पति और ससुराल वालों ने सोचा शायद बच्चे का जन्म प्रीमैच्योर हुआ है.

इस घटना के कोई 2 वर्ष बाद किसी बात पर वैशाली और उस की करीबी सहेली के बीच दरार आ गई. यह दरार चौड़ी होती गई, और एक दिन उसी करीबी सहेली ने एक गुमनाम पत्र उस के पति के नाम लिखा, जिस में बताया गया कि जिस बच्चे को वे अपना सम झ रहे हैं, वह किसी और का है.

वैशाली के पति ने पत्र की सचाई का पता लगाने के लिए चुपचाप डीएनए टैस्ट कराया. पता चला कि वाकई बच्चा उस का नहीं है. इस बात को ले कर घर में घमासान हुआ और बात तलाक तक पहुंच गई. तब वैशाली को एहसास हुआ कि जिसे वह अपनी बैस्ट फ्रैंड मान रही थी, उसी ने उस का विश्वास तोड़ा और उस की वैवाहिक जिंदगी में आग लगा दी. सच भी है, यदि धोखा करीबी सहेली से मिला है तो उस का दर्द कहीं अधिक होता है.

नाटक व दिखावा भांपें

जब करीबी सहेली से संबंध टूट जाते हैं तो वह आप की पिछली जिंदगी को ले कर ब्लैकमेल कर सकती है. क्योंकि आप के सारे राज उस के पास होते हैं, प्रूफ के साथ. इन्हें आप चाह कर भी नकार नहीं सकतीं.

कुछ लड़कियां बैस्ट फ्रैंड होने का नाटक या दिखावा करती हैं. उन के मन में शुरू से ही छलकपट होता है. वे अपनी चाल में कामयाब हो जाती हैं और आप को उस का पता तक नहीं चलता. जब चलता है तब तक बड़ी देर हो चुकी होती है.

सहेलियां बन कर पीठ में छुरा भोंकने वाली लड़कियां या महिलाएं कम नहीं हैं. पहले तो वे आप का विश्वास हासिल करती हैं और एक बार जब आप को उन पर भरोसा हो जाता है, तो फिर वे आप की जिंदगी की किताब के सारे पन्ने पढ़ लेती हैं. इन में से कब किस पन्ने का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होगा, आप कल्पना भी नहीं कर सकतीं.

आप सहेलियां अवश्य बनाएं.

उन से कुछ को खास या विशेष दर्जा भी दें, लेकिन आंख मींच कर उन पर भरोसा कर लेना बुद्धिमानी नहीं है. हम यह नहीं कह रहे कि किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए या हर सहेली को शक की नजर से देखें. हम तो केवल यही कहना चाहते हैं कि उस से भी कुछ राज छिपा कर रखना चाहिए ताकि कभी वह आप की दोस्ती का नाजायज फायदा न उठा सके.

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कुछ बातें ऐसी हैं जो आप के और आप के बौयफ्रैंड अथवा पति व पत्नी के बीच तक सीमित रहनी चाहिए. यदि आप अपनी करीबी सहेली को सबकुछ बताती हैं तो अपने बौयफ्रैंड या पति का भरोसा तोड़ती हैं. यह अच्छी बात नहीं है.

कुछ राज ऐसे हैं जो जिंदगीभर राज ही बने रहें तो अच्छा है. अन्यथा जिंदगी में बड़ी उथलपुथल मच जाती है. इसलिए अपने कुछ राज अपनी करीबी सहेली को भी न बताएं.

Serial Story: अब अपने लिए – भाग 1

“मां… मां, प… पापा को हार्ट अटैक आया है. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे हैं. आ… आप भी वहीं पहुंचो जल्दी से,” घबराई सी बोल कर कृति ने फोन रख दिया.

शीतल स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी, मगर अर्णब के अटैक की बात सुन कर वह भी घबरा गई. उस ने अपना पर्स उठाया, पड़ोस में चाबी थमाई और गाड़ी सीधे अस्पताल की तरफ मोड़ दी. अभी जाने में और टाइम लगेगा, क्योंकि शीतल के घर से अस्पताल का रास्ता तकरीबन दोढाई घंटे का था.

शीतल को देखते ही कृति सिसक पड़ी और कहने लगी कि वह तो अच्छा था कि सब घर पर ही थे, वरना अनर्थ हो जाता.

“चुप हो जाओ कृति, सब ठीक हो जाएगा. कुछ नहीं होगा तुम्हारे पापा को,” बेटी कृति को सीने से लगा कर पुचकारते हुए शीतल बोली, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि यों अचानक कैसे अर्णब को अटैक आ गया? अभी परसों ही तो कृति बता रही थी कि अर्णब का शुगर, बीपी सब नौर्मल है. देखने में भी वह नौर्मल ही लग रहा था, फिर… ऐसे कैसे?“

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इसी हफ्ते उन दोनों के तलाक को ले कर कोर्ट का अंतिम फैसला होने वाला है. अगर अर्णब की तबीयत ठीक नहीं हुई, तो फिर… फिर तो कोर्ट की डेट आगे बढ़ जाएगी.’

ऐसी बात मन में सोच कर शीतल परेशान हो उठी. रातभर वह बेटी के साथ अस्पताल में अर्णब के होश में आने का इंतजार करती रही. एक डर भी लग रहा था कि सब ठीक तो हो जाएगा न…? अगर कहीं अर्णब को कुछ हो गया तो… बच्चे भी उसे ही दोष देंगे कि उस की वजह से अर्णब…

‘ओह, मैं भी क्या सोचने लगी,’ शीतल मन ही मन बुदबुदाई. फिर वे बेटी की ओर मुखातिब होते हुए बोलीं, “कृति, एक बात बताओ, तुम्हारे पापा समय पर दवाई तो लेते थे न…? खानपान में कोई गड़बड़ी? कहीं शराब बहुत ज्यादा तो नहीं पीने लगे हैं?”

“नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है. वैसे, अब तो पापा ने शराब पीना बहुत ही कम कर दिया है. लेकिन वही टेंशन जिस के कारण पापा को लगातार 2 बार अटैक आ चुका है.

“आप समझ रही हैं न मां कि मैं क्या कहना चाह रही हूं? मैं भी क्या करूं मां, औफिस और घर में ऐसे पिसती रहती हूं कि पापा के पास आने का समय ही नहीं मिलता. एक ही शहर में रहने के बाद भी हफ्तों हो जाते हैं उन से मिले.

‘‘हां, लेकिन हम रोज वीडियो काल पर जरूर कुछ देर बात कर लेते हैं. परसों पापा जिद करने लगे कि मैं 2-3 दिन रहूं उन के पास आ कर. लेकिन, अच्छा ही किया, नहीं तो पापा आज…’’ कहतेकहते कृति की आवाज भर्रा गई.

“जानती हो मां, पापा बहुत टेंशन में रहने लगे हैं. कहते हैं कि अब जीने का मन नहीं करता. हमेशा उदासी घेरे रहती है उन्हें. मां, एक आप ही हो, जो पापा को इस टेंशन से बचा सकती हो, नहीं तो पापा नहीं बच पाएंगे,” शीतल का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कृति बोल ही रही थी कि डाक्टर आ कर कहने लगे कि अर्णब को होश आ गया है और अब वह खतरे से बाहर है.

“ओह, थैंक यू डाक्टर साहब,” कृति ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर एक गहरी सांस ली.

“लेकिन, डाक्टर साहब, क्या हम पापा से मिल सकते हैं?” कृति ने पूछा, तो डाक्टर ने ‘हां’ कहा, लेकिन एकएक कर के.

कृति अपनी मां का हाथ पकड़ कर अर्णब के कमरे की तरफ बढ़ ही रही थी, तभी अचानक शीतल ने अपना हाथ छुड़ा लिया. वे बोलीं, “कृति, तुम जाओ, मुझे घर जाना होगा. स्कूल भी जाना जरूरी है आज.

“देखो, प्रिंसपल सर के कितने मिस्ड काल हैं, क्योंकि कल इन सब कारणों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए आज जाना ही होगा. बच्चों के एग्जाम्स आने वाले हैं?” कह कर शीतल झटके से अस्पताल से बाहर निकल गई.

गाड़ी चलाते हुए भी वह बहुत बेचैन दिख रही थी. मन में हजारों सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. कभी लग रहा था, वह जो करने जा रही है गलत है, तो कभी लग रहा था, सही है.

क्या करे, कुछ समझ नहीं आ रहा था. बेटे जिगर का फोन आया, तो वह विचारों से बाहर निकली. आवाज में उस की भी उदासी झलक रही थी. आखिर बाप है चिंता तो होगी ही न.

“अब ठीक हैं तुम्हारे पापा, चिंता मत करो. डाक्टर ने कहा है कि अब वे खतरे से बाहर हैं. मैं गाड़ी चला रही हूं. स्कूल से लौट कर शाम को बात करती हूं, ठीक है… और बच्चे, दिव्या वगैरह सब ठीक हैं न? ओके, बाय बेटा, यू टेक केयर योर सेल्फ.

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‘‘हां… हां, मैं ठीक हूं, तुम चिंता मत करो,” कह कर शीतल ने फोन रख दिया और सोचने लगी कि एक जिगर ही है, जो उसे समझता है. उस की बातों से ही झलक रहा था कि अपने पापा से ज्यादा उसे अपनी मां की फिक्र हो रही है. हो भी क्यों न, आखिर उस के अनगिनत दर्दों को उस ने भी तो देखा और महसूस किया है.

‘नहीं, ऐसी बात नहीं है कि कृति उसे नहीं समझती या उस से प्यार नहीं करती. मगर वह चाहती है कि उस के मांपापा फिर से साथ रहने लगें पहले की तरह. लेकिन, अब यह नामुमकिन है.’

यही सब सोचतेसोचते शीतल कब स्कूल पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. मीनाक्षी ने ‘हाय, गुड मौर्निंग’ बोला, तो उसे एहसास हुआ कि वह स्कूल में आ चुकी है.

“हाय, गुड मौर्निंग,“ शीतल ने कहा, तो वह पूछने लगी कि अब अर्णब की तबीयत कैसी है?

“ठीक हैं. डाक्टर ने कहा कि अब वे खतरे से बाहर हैं. थैंक यू मीनू, तुम ने मेरा इतना साथ दिया,” मीनाक्षी का आभार जताते हुए शीतल बोली.

“अरे, इस में थैंक यू की क्या बात है. तुम भी तो कभीकभार मेरे लिए ऐसा करती हो न? कई बार मैं स्कूल नहीं आ पाती किसी वजह से, तब तुम मेरी जगह मेरी क्लास ले लेती हो. तो आज अगर मैं ने ऐसा कर दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई. आखिर ऐसे ही तो दुनिया चलती है न. और हम एकदूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा,” मुसकराते हुए मीनाक्षी बोली. लेकिन आगे अभी वह कुछ और बोलती ही, तब तक शीतल आगे बढ़ गई, क्योंकि वह जानती थी कि इस के बाद मीनाक्षी का क्या सवाल होगा? वह भी वही सब बातें करने लगेगी, जो मिलने पर रिश्तेदार और जानपहचान वाले करने लगते हैं. लेकिन अभी वह इन सवालजवाब में उलझना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह तनमन दोनों से काफी थक चुकी थी. स्कूल आना जरूरी नहीं होता, तो न आती आज भी.

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शीतल स्कूल में मैथ की टीचर है और मीनाक्षी, साइंस की. दोनों स्कूल में टीचर होने के साथसाथ आपस में बहुत अच्छी सहेलियां भी हैं. दोनों के घर आसपास ही हैं, तो अकसर दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता रहता है. छुट्टी के दिन दोनों साथ ही खरीदारी करने या कहीं घूमने निकल पड़ती हैं.

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Serial Story: अब अपने लिए – भाग 2

शीतल की तरह मीनाक्षी भी अकेली रहती है. एक बेटा है, जो अमेरिका में जा बसा. पति रहे नहीं अब. पढ़ाई पूरी होने के बाद वहीं अमेरिका में बेटे की एक कंपनी में जौब लग गई. फिर शादी भी उस ने एक अमेरिकन लड़की से कर ली और हमेशा के लिए वहीं का हो कर रह गया.

5 साल पहले अपने पिता के मरने पर वह आया था, फिर आया ही नहीं. लेकिन फोन पर बेटे से बात होती रहती है मीनाक्षी की. मीनाक्षी अपने पति से कितना प्यार करती है, यह उस की बातों से ही झलक जाता है. बताती है कि उस के पति बहुत ही अच्छे इनसान थे. शादी के इतने सालों में कभी उन्होंने मीनाक्षी को एक कड़वी बात तक नहीं बोली. बहुत प्यार करते थे मीनाक्षी से वह.

मीनाक्षी अपने पति की तुलना अर्णब से करती है. इसलिए शीतल को समझाती रहती है कि वह जो करने जा रही है, सही नहीं है. पतिपत्नी में तो लड़ाईझगड़े होते ही हैं. इस का यह मतलब तो नहीं कि दोनों अलग हो जाएं. लेकिन कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई,’ मीनाक्षी को क्या पता कि शीतल ने अपनी जिंदगी में क्याक्या नहीं झेला. कितना सहा उस इनसान को. लेकिन सहने की भी एक हद होती है? तभी तो शादी के इतने सालों बाद शीतल अपने पति अर्णब से तलाक लेने की ठान चुकी है.जानती है, ऐसा कर के वह सब की नजरों में बुरी बन रही है. यहां तक कि उस की अपनी बेटी भी उसे सही नहीं ठहरा रही है. लेकिन, कोई बात नहीं, उस ने जो ठान लिया है अब उस से पीछे नहीं हटेगी.

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खैर, अर्णब जब तक अस्पताल में रहा, शीतल एक बार रोज उसे देख आती थी, ताकि बेटी को बुरा न लगे, वरना वह तो उस इनसान का चेहरा भी देखना पसंद नहीं करती थी.

कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद अर्णब को वहां से छुट्टी दे दी गई. शीतल का जरा भी मन नहीं था, पर कृति की जिद के कारण उसे भी अर्णब को घर तक छोड़ने जाना पड़ा. लेकिन उस घर में पांव रखते ही शीतल को वह सारी पुरानी बातें याद आने लगीं. वह मारपीट, गालीगलौज सबकुछ उस की आंखों के सामने नाचने लगा, इसलिए वह जल्दी से जल्दी इस घर से निकल जाना चाहती थी, मगर कृति ने यह कह कर उसे रोक लिया कि पापा को खिलापिला कर दवाएं दे कर चली जाए.

दवा खाते ही अर्णब को नींद ने आ घेरा. उस के खर्राटे देख कर तो लग ही नहीं रहा था कि वह एक बीमार इनसान है, काफी स्वस्थ दिख रहा था.

अर्णब को ठीक से सोया देख कर शीतल जब वहां से जाने को हुई, तो कृति जिद करने लगी कि आज रात वह यहीं रुक जाए. कृति चाह रही थी कि अर्णब और शीतल के बीच किसी तरह बातचीत हो जाए, तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन शीतल हरगिज अर्णब से किसी भी विषय पर बात करने को तैयार नहीं थी. वह तो बेटी की जिद पर यहां आई थी, वरना तो वह इस घर में पांव भी नहीं रखती कभी.

“प्लीज मां, रुक जाओ न, आज रात यहीं पर. वैसे भी पापा की तबीयत अभी उतनी अच्छी नहीं है,” कृति ने फिर वही बात दोहराई.

“नहीं बेटी, ऐसा तो नहीं हो पाएगा. म… मेरा मतलब है, वहां घर ऐसे ही नहीं छोड़ सकती. चोरियां बहुत होने लगी है अब. और तुम तो हो न यहां पर…?” शीतल ने कहा. लेकिन कृति सब समझ रही थी कि ये सब बहाने हैं शीतल के, ताकि यहां न रुकना पड़े.

“ठीक है मां, नहीं रुकना तो मत रुकिए, पर कुछ देर और बैठ तो सकती हैं न मेरे साथ?“ शीतल का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कृति कहने लगी, “मां, आप मेरी बात समझने की कोशिश करो. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अगर आप चाहो तो सब पहले की तरह हो सकता है. एक अंतिम बार, पापा को माफ कर दो मां, प्लीज.

“मैं… मैं समझाऊंगी पापा को, वह वही करेंगे, जो आप चाहती हो. पापा समझौता करने को तैयार हैं, बस, अपनी जिद छोड़ दो मां.“

“देखो कृति, इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है, इसलिए रहने दो तुम,” बोलते हुए शीतल उठ खड़ी हुई.

“नहीं मां, ऐसे मत बोलो. पापा को आप की जरूरत है. मैं मानती हूं कि पापा ने आप के साथ बहुत ज्यादती की है. लेकिन, अब वे काफी बदल चुके हैं. सच कहती हूं मैं. देख नहीं रही हो कैसे गुमसुम, चुपचाप बैठे रहते हैं?”

कृति की बात पर शीतल हंसी और बोली, “नहीं बेटी, ये सब सिर्फ दिखावा है तुम्हारे पापा का मुझे हराने के लिए. और एक बात, इनसान का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता. और मैं कब से उस की जरूरत बन गई? जब पैसा और पावर खत्म हो गया, वह औरत उन्हें छोड़ कर चली गई. अपने मतलब से कोई किसी को अपनी जरूरत बनाए तो उसे प्यार नहीं कहते, उसे मतलबी इनसान कहते हैं. और ऐसा भी नहीं है कि तुम्हारे पापा बदल गए हैं, बल्कि अच्छाई का दिखावा कर रहे हैं. खैर, छोड़ो.”

मन तो किया शीतल का कि कह दे, ये हार्ट अटैक भी एक नाटक ही है. क्योंकि वह डाक्टर, जो अर्णब का इलाज कर रहा था, वह उस का जिगरी दोस्त है, तो फिर क्या दिक्कत है नाटक करने में? लगातार 2 बार अटैक आना और फिर जल्द ही नौर्मल होना, यह नाटक नहीं तो और क्या है? किसी तरह चाह रहे हैं कि केस की डेट आगे बढ़ती रहे और वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए.

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“अब अर्णब ठीक हैं. तुम चिंता मत करो. अगर कोई जरूरत हुई, तो मैं ज्यादा दूर थोड़ी हूं? आ जाऊंगी.“

“ठीक है मां, दिखावा ही सही, पर जब आप ने अपनी जिंदगी के 30 साल पापा के साथ गुजार दिए तो अब क्यों उन से तलाक लेना चाहती हो? सोचा है, लोग क्या कहेंगे? हंसेंगे सब. लोगों की छोड़ो, कम से कम मेरे और भैया के बारे में तो सोचो. हमारी फैमिली के बारे में तो सोचो. क्या बताएंगे हम सब को कि 52 साल की मेरी मां और 61 साल के मेरे पापा अब साथ नहीं रहना चाहते हैं, इसलिए दोनों तलाक ले रहे हैं?

“बोलो न मां? और कल को जब पापा ही नहीं रहेंगे, फिर किस से ये लड़ाई और किस से झगड़ा करोगी आप? मां इतनी निर्दयी मत बनो प्लीज… छोड़ दो अपनी जिद और लौट आओ अपने घर.”

मन तो किया शीतल का कि एकएक जुल्म जो अर्णब ने बंद कमरे में उस के साथ किए थे, वह भी आज कृति के सामने खोल कर रख दे, क्योंकि वह अब बच्ची नहीं एक औरत बन चुकी है, समझेगी उस का दर्द. लेकिन, उस ने चुप्पी साध ली. क्योंकि पुराने घाव कुरेद कर उसे हरा नहीं करना चाहती थी वह. हां, ठीक है बुरी और स्वार्थी ही सही, लेकिन अब वह अर्णब के साथ नहीं रह सकती. जिंदगीभर वह उस के इशारों पर नाचती रही. अपने लिए तो जीया ही नहीं कभी.

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Serial Story: अब अपने लिए – भाग 3

“कृति, प्लीज, इस बारे में मैं तुम से कोई बात नहीं करना चाहती. वैसे भी मुझे बहुत देर हो गई है. अब मुझे निकलना होगा,” अपनी घड़ी पर एक नजर डालते हुए शीतल ने अपना कदम आगे बढ़ाया ही था कि कृति ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोली, “क्यों मां… क्यों नहीं समझतीं आप मेरी बात? क्यों जिद पर अड़ी हैं? क्या चाहती हैं आप कि पापा को फिर से अटैक आ जाए? देखना, नहीं बचेंगे इस बार. तुली रहो आप अपनी जिद पर,” इस बार कृति की आवाज जरा तेज हो गई. वह फिर से थोड़ा रुक कर बोली, “क्या अंतिम बार माफ नहीं कर सकतीं आप उन्हें? ऐसा कौन सा इतना बड़ा गुनाह कर दिया पापा ने, जो वे माफी के भी काबिल नहीं रहे.“

“हां, गुनहगार हैं वे. मेरी खुशियों का कत्ल किया है उन्होंने. कभी चैन से जीने नहीं दिया मुझे, इसलिए माफ नहीं कर सकती उन्हें. आज नहीं, कल नहीं, कभी नहीं…

“और मैं ने तुम्हें पहले भी कहा था कि हम इस विषय पर कभी बात नहीं करेंगे, फिर भी तुम वही सब बातें क्यों दोहराती रहती हो? अब जो होना है हो कर रहेगा,” कह कर शीतल झटके से वहां से निकल गई.

ऐसा सब नाटक अर्णब तब से करने लगा है, जब से दोनों ने तलाक का केस फाइल किया है. उस रोज बड़े घमंड से अर्णब ने कहा था, ‘देखते हैं कि तुम मुझ से कैसे तलाक लेती हो? देखना, तुम खुद यह तलाक का केस वापस भी लोगी और इस घर में लौट कर भी आओगी, क्योंकि तुम्हारे पास कोई चारा ही नहीं बचेगा इस के सिवा,’ इस पर शीतल ने कहा था, “ठीक है, तो फिर तुम भी देख लो कि कैसे मैं तुम से तलाक ले कर रहती हूं. और अगर तलाक न भी हो हमारा, फिर भी मैं इस घर में और न ही तुम्हारी जिंदगी में कभी लौट कर आऊंगी.”

अर्णब जितना तलाक के केस में अड़ंगा लगाने की कोशिश कर रहा था, शीतल का मनोबल उतना ही मजबूत होता जा रहा है.

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‘माफ कर दूं? उस इनसान को, जिस ने मेरी जिंदगी को नरक बना कर रख दिया. उम्र की इस दहलीज पर अगर मैं उस इनसान से छुटकारा चाहती हूं तो सोचो न, मैं ने कितना कुछ सहा होगा? लोग क्या कहेंगे? यही सब लोग तब कहां थे, जब मेरा पति शराब पी कर मुझे मारतापीटता था, गंदीगंदी गालियां देता था. आधी रात को मुझे घर से बाहर निकाल देता था और मैं दरवाजा खुलने का इंतजार करती थी. उस समय मुझे अपनेआप पर दया आती थी, जब आसपड़ोस के लोग मुझे अजीब नजरों से देखते थे. तो अब क्या हक है इन का मुझे कुछ बोलने का.

‘नहीं, मुझे किसी की परवाह नहीं’ पुराने घाव से टीस उठी, तो शीतल की आंखें गीली हो गईं. राह चलते लोग देख न लें, इसलिए उस ने अपने आंसू आंखों में ही जब्त कर लिए. ‘शादी के बाद एक दिन भी ऐसा नहीं गुजारा होगा, जब अर्णब ने मुझ पर हाथ न उठाया हो. शराब पी कर गालीगलौज, मारपीट तो रोज की बात थी. आखिर कितना सहा मैं ने यह तो मैं ही जानती हूं. मेरा दिल इतना डरपोक बन चुका था कि आज भी छोटीछोटी बातों पर डर जाता है. लेकिन, मैं उसे समझाती हूं कि ‘औल इज वेल, सब ठीक होगा.मत डरो, मैं तुम्हारे साथ हूं.‘

लड़की की किस्मत भी अजीब है. पहले तो उसे दिमागी रूप से कमजोर बनाया जाता है, फिर उस की ही रक्षा करने की बात की जाती है. और फिर रक्षा करने वाला भी कौन? वही पुरुष, जो मौका मिलते ही लड़कियों की, महिलाओं की इज्जत को तारतार कर देते हैं. बचपन से ही मैं मांदादी के मुंह से सुनती आई थी कि ‘अरे, तुम तो किसी की अमानत हो हमारे पास. एक दिन पराई हो जाओगी.’ बेटियों की शादी कर देने पर क्यों मांबाप को लगता है कि उन्होंने गंगा नहा ली? क्या इतनी बोझ बन जाती हैं बेटियां अपने मांबाप के लिए? अपने भाइयों की तरह मुझे भी आगे पढ़ने का शौक था. मैं भी डाक्टर बनना चाहती थी. मां से कहती, “मेरी सहेलियों की तरह मेरी भी शादी जल्दी तो नहीं कर दोगी न मां? मां, देखना, बड़ी हो कर मैं डाक्टर बनूंगी. सफेद कोट पहन कर मरीजों को देखा करूंगी.

“बोलो न मां, सुन रही हो आप मेरी बात?” किचन में मां के कामों में हाथ बंटाते हुए जब मैं कहती, तो मां कहतीं कि ‘हां, हां, सुन रही हूं भई, चलो अब जल्दीजल्दी हाथ चलाओ. घर में कितने काम पड़े हैं अभी.’

मैं घर के हर काम बड़े सलीके से करती. सब के बताए काम भागभाग कर देती थी. पढ़ने में भी मैं अपने सभी भाइयों से होशियार थी. फिर भी मुझे वह लाड़दुलार नहीं मिलता, जो मेरे भाइयों को मिलता था.

जैसेजैसे मैं बड़ी होती गई, मेरे डाक्टर बनने का सपना भी आकार लेने लगा. हम सब सहेलियां अकसर डाक्टर और मरीज का खेल खेला करती थीं. लेकिन डाक्टर तो हमेशा मैं ही बनती थी और बाकी सब मरीज बन कर मेरे पास इलाज कराने आती थीं. बड़ा मजा आता था मुझे डाक्टर का खेल खेलने में. लेकिन मेरा डाक्टर बनने का सपना बस खेल तक ही सिमट कर रह गया.

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जाने किस समारोह में एक रोज अर्णब ने मुझे देख लिया और वह मुझ पर लट्टू हो गया. अच्छा घर, वर, ऊपर से लड़के वाले खुद मेरा हाथ मांगने आए थे. तो और क्या चाहिए था मेरे परिवार वालों को. झट से उन्होंने इस रिश्ते के लिए हां कर दिया था. लेकिन, एक बार भी मुझ से पूछने की जरूरत नहीं समझी कि मैं यह शादी करना चाहती भी हूं या नहीं.

मैं भी कैसी बातें कर रही हूं. हमारे समाज में लड़कियों से भी उस की पसंद और नापसंद पूछी जाती है कहीं? हम तो उन गायबकरियों की तरह होती हैं, जिसे जिस खूंटे से बांध दिया जाए, बंध जाती हैं. मैं भी अपने टूटे सपने के साथ अर्णब नाम के खूंटे से बंध गई और उसे ही अपनी किस्मत समझ लिया.

भरेपूरे परिवार में मैं ऐसे रम गई जैसे दूध में चीनी. भूल गई कि मेरा कुछ सपना भी था. शादी के सालभर बाद ही बेटा जिगर मेरी गोद में आ गया. उस के पालनपोषण में अपनेआप को मैं ने और व्यस्त कर लिया था. लेकिन, इधर अर्णब का चालचलन कुछ बिगड़ने लगा था. वह रोज शराब पी कर घर आते और मेरे साथ जबरदस्ती करते.

जब मैं कहती कि बच्चा छोटा है अभी और डाक्टर ने अभी इन सब के लिए मना किया है, तो वह मुझ पर गुस्सा दिखाते, थप्पड़ तक चला देते मुझ पर. बुराई तो सारी बहुओं में ही होती है, बेटे तो अच्छे ही होते हैं अपनी मां के लिए.

मैं भी सास की नजर में बुरी बहू बन गई और बेटा एकदम सुपुत्र. सबकुछ जानते हुए भी वह अपने बेटे को शह देती और मुझे उलटासीधा, खरीखोटी सुनाती रहतीं कि मैं उन के बेटे अर्णब के लायक ही नहीं हूं.

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Serial Story: अब अपने लिए – भाग 4

यह सोच कर मैं सब बरदाश्त कर रही थी कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. लेकिन, नहीं, जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, हालात और बद से बदतर होते जा रहे थे. उन के ज्यादा शराब पी कर घर आने पर जब मैं टोकती, तो वह उलटासीधा बकने लगते थे, गंदीगंदी गलियां देने लगते थे मुझे. कहते, ‘क्या तुम्हारे बाप के पैसे से पीता हूं, जो बकबक करती है?” अर्णब को देख कर जरा भी नहीं लगता था कि वह एक ऊंचे अधिकारी हैं.

बेटा जिगर 4 साल का हो चुका था. उसे भी अब अपने पापा की गंदी आदतें समझ में आने लगी थीं. अर्णब को औफिस से आए देखते ही वह मेरे पीछे आ कर छुप जाता, झांक कर देखता अपने पापा को, शराब की बोतलें खोलते हुए. नशे में उन्हें यह भी समझ नहीं आता कि घर में एक छोटा बच्चा है. उस के सामने ही वह गालियां देने लगते तो मैं बेटे जिगर को ले कर वहां से चली जाती. पर कहां तक भागती? सुनाई तो दे ही जाती थी न. कभीकभी तो डर लगता कि कहीं इन सब का असर जिगर पर न पड़ने लगे. बच्चे का मन कोरा कागज की तरह होता है. वह अपने मातापिता और बड़ों को जैसा करते देखते हैं वही तो सीखते हैं. लेकिन, मैं अपने बेटे को वैसा हरगिज नहीं बनने देना चाहती थी, इसलिए जहां तक होता, मैं उसे अर्णब से दूर रखने की कोशिश करती. उसे खुद ही पढ़ातीलिखाती और अच्छे संस्कार डालने की कोशिश करती थी.

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एक रोज मुझे एहसास हुआ कि एक और जीव मेरे अंदर सांस ले रहा है. जब मैं ने यह बात अपनी सास को बताई, तो वे खुश तो हुईं, पर यह कह कर उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए कि बच्चे होने के समय मैं अपने मायके चली जाऊं. क्योंकि उन से न हो पाएगा. दूसरी बार पिता बनने की बात पर अर्णब ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. ऐसे जताया जैसे यह कौन सी बड़ी बात है, औरतों का यही तो काम है, बच्चे पैदा करना और घर संभालना.

जैसे ही मेरा 7वां महीना चढ़ा, मैं अपने मायके चली आई. मेरे वहां न रहने पर सास अपने बड़े बेटेबहू के पास इंदौर चली गईं, क्योंकि यहां उन्हें कर के खिलानेपिलाने वाला कौन था. कृति के 2 महीने के होते ही मैं वापस अपने घर आ गई, यह सोच कर कि वहां अर्णब को खानेपीने की दिक्कत हो रही होगी. सास भी नहीं हैं वहां तो कौन उन्हें बना कर खिलापिला रहा होगा. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता. सोचा था, हमें घर में देख अर्णब खुश हो जाएंगे. लेकिन, मैं गलत थी. हमें देख कर उन्हें जरा भी खुशी नहीं हुई.

अर्णब तंज कसते हुए बोले, ‘इतनी क्या जल्दी थी आने की? वहीं रहती अभी.’

आसपड़ोस की 1-2 औरतों ने दबे मुंह से ही कहा कि मेरे यहां न रहने पर अर्णब एक औरत को घर ले कर आता था. लेकिन उन की बातों पर मुझे जरा भी भरोसा इसलिए नहीं हुआ कि अर्णब भले ही पीनेखाने वाले इनसान हैं, पर वह इतनी नीच हरकत नहीं कर सकते कभी. इसलिए मैं ने उन की बातों को सिरे से खारिज कर दिया और उन से बोलनाचालना भी कम कर दिया कि बेकार में ये औरतें बात बनाती हैं. कुछ नहीं सूझता तो बैठेबैठे लोगों की बुराई करती रहती हैं.

कृति के आने से हमारे खर्चे और भी बढ़ गए. बच्चे का दूध, साबुन, तेल, क्रीम, कपड़ा, खाना, खर्चा तो होगा ही न. जब मैं अर्णब से पैसे मांगती, तो कुछ पैसे मेरे मुंह पर मार कर कहते कि पैसे का कोई पेड़ नहीं लगा रखा है. जब मांगा तोड़ कर दे दिया. जरा अपने खर्चे पर लगाम कसो. कैसे और कहां लगाम कसती मैं? अब 2-2 बच्चे हैं तो खर्चे तो होंगे ही न? लेकिन, यह बात भी मैं अर्णब से नहीं बोल पाती थी, क्योंकि उलटे वह मुझे ही गालियां देने लगते और कहते, ‘तेरे बाप का कोई खजाना नहीं गड़ा हुआ है यहां, जो निकालनिकाल कर देता रहूं तुझे.’

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ऐसी जलीकटी और कड़वी बातें बोलते थे कि क्या बताएं. मन ही नहीं करता था फिर उस से बात करने का. ऐसे ही जिंदगी के 2 साल और निकल गए. कृति अब पूरे 2 साल की हो चुकी थी और बेटा जिगर 7 साल का. अकसर रात में कृति अचानक से जग जाती और रोने लगती तो चुप ही नहीं होती जल्दी. उस के रोने से अर्णब चिढ़ उठते थे. इसलिए मैं दोनों बच्चों को ले कर दूसरे कमरे में सोने लगी थी, ताकि अर्णब की नींद न खराब हो. दिनभर की थकीहारी मैं ऐसे सो जाती कि नींद ही नहीं खुलती मेरी. जब कृति के रोने की आवाज आती, तब जा कर मेरी आंखें खुलती थी.

उस रात मुझे अर्णब के कमरे से कुछ खुसरफुसर की आवाज आई और जा कर जो मैं ने देखा, स्तब्ध रह गई. मैं जोर से चीखी, अर्णब की बांहों में किसी गैर औरत को देख कर मेरे तो तनबदन में आग लग गई. मेरे कमरे में मेरे ही बिस्तर पर वह किसी और औरत को लाने की हिम्मत भी कैसे कर सकते हैं…

जब मैं ने पूछा, तो उलटे वह मुझ पर ही चिल्लाने लगे और उस औरत के सामने मुझ पर हाथ उठा दिया. मुझे मार खाते देख वह औरत इतरा कर मेरी तरफ देख कर हंसी. जैसे कह रही हो, सही किया अर्णब ने.

“यह मेरा घर है. मैं जिसे चाहूं यहां ला सकता हूं, निकाल भी सकता हूं, समझी? तुम होती कौन हो बोलने वाली?” अर्णब ने उंगली दिखाते हुए कहा और मुझे बाहर ठेल कर कमरे का दरवाजा अंदर से लगा लिया.

मैं पूरी रात सिसकती रही और वह उस औरत के साथ ऐश करते रहे. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. पर यह समझ में आ गया कि आसपड़ोस की औरतें गलत नहीं बोल रही थीं. पता चला कि वह औरत कोई और नहीं, बल्कि अर्णब के एक दिवंगत दोस्त की पत्नी है.

अर्णब ने ही दौड़धूप कर उस के पति के स्थान पर उस की नौकरी लगवाने में मदद की थी. अर्णब घर देर से जो आने लगे हैं उस की वजह भी यह औरत ही है.

अब तो अर्णब और भी बेशर्म बन गया था. खुल्लमखुल्ला वह उस औरत से संबंध रखने लगा और जब मैं कुछ कहती तो मुझे मारतापीटता और कमरे में बंद कर देता. कहता, अगर ज्यादा दिक्कत है, तो इस घर को छोड़ कर चली जाऊं. लेकिन, कहां जाती अपने 2 छोटेछोटे बच्चों को ले कर? इस घर के सिवा और कोई सहारा था क्या?

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कृति के जन्म के समय कैसे मैं ने अपने मायके में वह 5 महीने काटे, मैं ही जानती हूं. तो फिर तो वहां जाने का सवाल ही नहीं उठता है. वैसे भी शादी के बाद बेटियों का अपने मायके में कोई हक नहीं रह जाता. बेटियां 2-4 दिन से ज्यादा मायके में रह जाएं, तो मांबाप को ही बोझ लगने लगती हैं. यह बात ससुराल वाले भी जानते हैं, तभी तो लड़कियों पर आएदिन जुल्म होते रहते हैं. यही नहीं, उन्हें जला कर मार दिया जाता है.
जैसेजैसे बच्चे बड़े होने लगे, उन के और भी खर्चे बढ़ने लगे थे. इस के अलावा दोनों के स्कूल की फीस, ड्रेस आदि में भी पैसे लगने लगे, तो अर्णब झुंझला पड़ा. अर्णब अपनी कमाई का आधे से ज्यादा पैसा तो शराब पीने में और उस औरत पर ही खर्च कर देते थे, तो घरखर्च के लिए कहां से पैसे देते मुझे.

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Serial Story: अब अपने लिए – भाग 5

मेरी बुरी हालत देख मेरे ननद व ननदोई को बहुत दुख होता था. एक वे ही तो थे, जो मेरा दुख समझते थे. लेकिन उन्हें भी अर्णब ऐसे कड़वे बोल बोलते थे कि उन्होंने फिर यहां आना ही छोड़ दिया. हर इनसान को अपनी इज्जत प्यारी होती है.

पढ़ाई की डिगरी तो थी ही मेरे पास, अपनी पैरवी से मेरे ननदोई ने एक स्कूल में मेरी नौकरी लगवा दी. दोनों बच्चों का भी उन्होंने उसी स्कूल में एडमिशन करवा दिया, ताकि मुझे ज्यादा परेशानी न हो.

मैं जल्दीजल्दी घर के काम खत्म कर दोनों बच्चों को ले कर स्कूल चली जाती और 5 बजतेबजते घर आ जाती थी, फिर घर के बाकी काम संभालती, बच्चों को होमवर्क करवाती. रोज की मेरी यही दिनचर्या बन गई थी. कोई मतलब नहीं रखती मैं अर्णब से कि वह जो करे. लेकिन उसे कहां बरदाश्त हो पा रहा था मेरा खुश रहना, इसलिए वह कोई न कोई खुन्नस निकाल कर मुझ से लड़ता और जब मैं भी सामने से लड़ने लगती, क्योंकि मैं भी कितना बरदाश्त करती अब… तो जो भी हाथ में मिलता, उसे ही उठा कर मारने लगता मुझे. और मेरी सास तो थीं ही आग में घी का काम करने के लिए.

कृति तो अभी बच्ची थी, लेकिन बेटा जिगर हम दोनों को लड़तेझगड़ते देख टेंशन में रहने लगा था. पढ़ाई से भी उस का मन उचटने लगा था. वह गुमसुम सा चुपचाप अपने कमरे में बैठा रहता. ज्यादा कुछ पूछती तो रोने लगता या झुंझला पड़ता. वह अपने दोस्तों से भी दूर होने लगा था. हमारी लड़ाई का असर उस के दिमाग पर पड़ने लगा था अब. उस की मानसिक स्थिति बिगड़ते देख मैं तो कांप उठी अंदर से… और तभी मैं ने फैसला कर लिया कि अर्णब मुझे मार ही क्यों न डाले, पर मैं चुप रहूंगी सिर्फ अपने बेटे के लिए.

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लेकिन, रोज मुझे अर्णब के हाथों जलील होते देख एक रोज बेटा जिगर कहने लगा कि हम यह घर छोड़ कर कहीं और रहने चले जाएंगे.

“कहां जाएगा बेटा, कोई और ठिकाना है क्या इस घर के सिवा?” मैं ने उसे पुचकारते हुए कहा, “तुम जल्दी से पढ़लिख कर बड़ा डाक्टर बन जाओ, फिर अपने साथ मुझे भी वहां ले चलना.”

‘मेरा डाक्टर बनने का सपना भले ही सपना रह गया, लेकिन, मैं चाहती थी कि मेरा बेटा एक दिन जरूर डाक्टर बने. मेरी तरफ से कोई जबरदस्ती नहीं थी, बल्कि बेटा जिगर खुद इस फील्ड में जाना चाहता था. मैडिकल की पढ़ाई पूरी होते ही वहीं बैंगलुरु के एक बड़े अस्पताल में उस की जौब भी लग गई.

‘अपने वादे के मुताबिक वह मुझे लेने आया था, लेकिन मैं ने ही यह कह कर जाने से मना कर दिया कि रिटायर्ड होने के बाद तो उस के पास ही आ कर रहना है मुझे.

‘दिव्या की फोटो भेजी थी उस ने मुझे, जो उस के साथ ही उसी अस्पताल में डाक्टर थी. उस ने मुझ से वीडियो कालिंग पर बात भी करवाई थी 1-2 बार. दिव्या बड़ी ही प्यारी बच्ची लगी मुझे. दोनों की जोड़ी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि लग रहा था कि कहीं मेरी ही नजर न लग जाए इन्हें.

‘मैं ने तुरंत ही दोनों की शादी के लिए हां बोल दिया. शादी के बाद वे दोनों हमारा आशीर्वाद लेने आए, पर अर्णब ने उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की.उलटे, उन के जाने के बाद मुझे ही प्रताड़ित करने लगे यह बोल कर कि मैं ने बेटे जिगर के मन में उस के खिलाफ जहर भर दिया है, इसलिए वह उस से नफरत करता है. लेकिन, जिगर अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं रह गया था, जो उसे कोई भी भड़का दे. बचपन से ही सब देखता आ रहा है वह. वह तो अब आना ही नहीं चाहता है इस नर्क में. तो मैं भी ज्यादा जोर नहीं डालती. जब मिलने का मन होता है खुद चली जाती हूं उस के पास.

‘कुछ साल बाद कृति ने भी अपने पसंद के लड़के से शादी कर ली. दोनों बच्चे अपनीअपनी लाइफ में सैटल हो गए. लेकिन, मेरे साथ होने वाला जुल्म खत्म नहीं हुआ. अभी भी अर्णब मेरे साथ वैसे ही व्यवहार कर रहा था. लेकिन अब मैं उस के हाथों जुल्म सहतेसहते थक चुकी थी. मेरा शरीर अब जवाब देने लगा था. मन करता था कि कहीं भाग जाऊं, जहां मुझे कोई ढूंढ़ न सके. बच्चों तक ठहरी थी मैं इस इनसान के साथ, पर अब नहीं. अब मैं इस के साथ नहीं रह सकती,’ तभी पीछे से हौर्न की आवाज से शीतल अतीत से बाहर आई. देखा तो आगेपीछे गाड़ियों की लाइन लगी है और सब हौर्न पर हौर्न बजाए जा रहे हैं.

पूछने पर पता चला कि ट्रक के नीचे आ कर एक गाय मर गई है, इसलिए गाड़ियों का जाम लगा हुआ है.

“ओह, वैसे, कब तक जाम हट सकेगा भाई साहब?” उस आदमी से शीतल ने पूछा, तो उस ने बोला, ‘नहीं पता.‘

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‘शहर हो या गांव, हर जगह यही दुर्दशा है. इन जानवरों की वजह से सड़क पर कितनी दुर्घटनाएं होने लगी हैं आजकल… और बेचारे जानवर भी तो बेमौत तड़पतड़प कर मर जाते हैं. आखिर सरकार कुछ करती क्यों नहीं?’ शीतल मन ही मन बुदबुदाई.

आज वैसे भी स्कूल से निकलतेनिकलते उसे देर हो गई और अब यह सब सोच कर दर्द से शीतल का सिर फटा जा रहा था. लग रहा था, जल्दी से घर जा कर दवाई खा कर सो जाए. तकरीबन घंटाभर लग गया सड़क से गाय उठाने में. घर पहुंचतेपहुंचते शीतल को 8 बज गए.

घर पहुंच कर शीतल ने अपने लिए चाय बनाई और दवाई खा कर लेटी ही थी कि मीनाक्षी का फोन आ गया. वह कहने लगी कि कल उस के पति की पुण्यतिथि है, तो वह अनाथ आश्रम जाएगी. इसलिए कल वह स्कूल नहीं जा पाएगी, तो वह संभाल ले.

“हां… हां, तुम इतमीनान से जाओ, मैं संभाल लूंगी,” कह कर शीतल ने फोन रख दिया.

मीनाक्षी हर साल अपने पति की पुण्यतिथि पर अनाथ आश्रम में जा कर बच्चों को कपड़े और खाना वगैरह बांटती है. ‘सही तो करती है, पंडितों को दानदक्षिणा देने से अच्छा है इन अनाथ बच्चों को उन की जरूरतों का सामान, खाना आदि देना चाहिए,’ शीतल ने अपने मन में ही बोला.

आज उसे ज्यादा भूख नहीं थी, इसलिए हलका सा कुछ बना कर खा लिया और सो गई. सुबह फोन पर ‘गुड मौर्निंग’ के साथ कृति के कई मैसेज थे. लिखा था, पापा अब ठीक हैं, लेकिन कमजोरी बहुत है. उसे आने के लिए कह रही थी.

शीतल ने भी एक मैसेज भेज दिया कि उसे आज जल्दी स्कूल जाना होगा, इसलिए वह नहीं आ सकती.

कृति ने मैसेज में लिखा था कि अर्णब अब बहुत बदल चुके हैं. शराब पीना भी छोड़ दिया है. सुबहशाम राम भजन में लगे रहते हैं.

“हुम्म…,“ अपने होंठों को सिकोड़ते हुए शीतल बोली, “सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. क्या इस इनसान को मैं नहीं जानती? जो मेरी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है? सब दिखावा है और कुछ नहीं.

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“अरे, जिस आदमी ने घर की नौकरानी तक को नहीं छोड़ा, उस के मुंह से राम भजन, शब्द सुन कर अजीब लगता है. और वही राम ने अपनी पत्नी के साथ क्या किया? एक धोबी के कहने पर वनवास भेज दिया, वह भी उस समय जब वह उन के बच्चे की मां बनने वाली थी. ज्यादातर पुरुषों ने औरतों को छला ही है. हम इधर अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं और उधर पति अपनी मनोकामना किसी गैर औरत की बांहों में पूरी करते रहें.

‘आज सब ठीक हो जाएगा, कल सब ठीक हो जाएगा,’ सोचसोच कर मैं ने इस घटिया इनसान के साथ अपनी जिंदगी के 30 साल बरबाद कर दिए. पर, अब नहीं. बाकी बची जिंदगी अब मैं अपने हिसाब से अपनी मरजी और सिर्फ अपने लिए जीना चाहती हूं. 2 दिन बाद कोर्ट में तलाक का अंतिम फैसला है. फिर मैं अपने रास्ते और वह अपने रास्ते… कोई मतलब नहीं मुझे उस से.”

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