मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 1

‘‘सुनो वह पौलिसी वाली अटैची तो लाना, जरा… रीमा सुन रही हो?’’ विवेक ने बैठक से पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘क्या कह रहे हो… मुझे किचन में कुकर की सीटी के बीच कुछ सुनाई नहीं दिया. फिर से कहो,’’ रीमा अपने गीले हाथों को तौलिए से पोंछतेपोंछते ही बैठक में आ गई.

‘‘वह अटैची देना, जिस में बीमे की फाइलें रखी हैं… वैसे तुम कहीं भी रहो, कोई न कोई तुम्हें देख कर सीटी जरूर बजा देता है,’’ विवेक पत्नी को देख मुसकराते हुए बोला.

‘‘फालतू की बातें न करो. वैसे ही कितना काम पड़ा है… तुम्हें यह काम भी अभी करना था,’’ रीमा झुंझला पड़ी.

‘‘यह काम भी तो जरूरी है, जो पौलिसी मैच्योर हो रही है उस का क्लेम ले लूंगा.’’

‘‘तो सुनो कोई हौलिडे पैक लें? कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘और रिनी की शादी का क्या प्लान है तुम्हारा?’’ रीमा की बात सुन विवेक ने पूछा.

‘‘अभी 22 साल की ही तो हुई है. अभी 2-3 साल और हैं हमारे पास.’’

‘‘उस के बाद कौन सी खजाने की चाबी हाथ लगने वाली है? जो भी पैसा है वह सब पौलिसी, शेयर, एफडी के रूप में बस यही है,’’ विवेक के अटैची खोलते हुए कहा, ‘‘अब चाहे खुद सैकंड हनीमून मना लो या बच्चों का घर बसा दो… 1-2 साल बाद तो रोहन बेटा भी शादी लायक हो जाएगा,’’ विवेक कागजों को उलटतेपलटते बोला, ‘‘अरे हां, कल छोटू भी मिला था जब मैं औफिस से निकल रहा था. बड़ा चुपचुप सा था पहले कितना हंसीमजाक करता था. चलो अच्छा है, उम्र के बढ़ने के साथ थोड़ी समझदारी भी बढ़ गई उस की.’’

रीमा कुछ न बोल कर चुपचाप रसोई में आ गई. फिर काम करते हुए सोच में पड़ गई कि समय कितनी तेजी से बीतता है, इस का आभास सिर्फ बीते पलों को याद करने पर ही होता है. उस की शादी को भी तो 27 साल हो गए. जब शादी तय हुई थी, तो मात्र 19 वर्ष की थी. सगाई से विवाह के बीच के 6 माह उसे कितने लंबे लगे थे. विवाह करूं या न करूं, सोचसोच कर पगलाने लगी थी. जहां एक ओर विवेक का व्यक्तित्व अपनी ओर आकर्षित करता, वहीं अपने लखनऊ शहर से मीलों दूर कानपुर के एक छोटे कसबे की कसबाई जिंदगी और उस का संयुक्त परिवार उस के सुनहरे सपनों में दाग की तरह छा जाता.

अपने सपनों के साथ अपनी अधूरी पढ़ाई के बीच विदा हो वह ससुराल आ गई. यहां के घुटन भरे माहौल से निकलने का एक यही रास्ता बचा था उस के पास कि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. बस इसी बहाने मायके का रूख करने लगी. स्नातक की पढ़ाई खत्म कर कंप्यूटर डिप्लोमा में दाखिला ले लिया. विवेक ने उसे भरपूर आजादी दे रखी थी. जहां विवाह के 4 वर्ष पूरे हुए उस की झोली में स्नातक डिग्री के साथ डिप्लोमा इन कंप्यूटर और 2 नन्हेमुन्ने रोहन और रिनी भी आ गए. ससुराल में 2 जेठजेठानियां उन के 4 बच्चे, सासससुर, 1 घरेलू नौकर समेत कुल 14 सदस्य एक बड़े से घर में एक छत के नीचे जरूर थे, मगर एकसाथ नहीं. सांझा चूल्हा भी इसीलिए जल रहा था, क्योंकि अनाज, दूध, घी, दही, सब्जियां सभी तो अपने घर की ही थीं, कमीपेशी के लिए ससुरजी की पेंशन व घर खर्च के नाम पर चंद रुपए सास को पकड़ा कर उन के बेटे निश्चिंत हो जाते. बहुओं में सारा झगड़ा काम को ले कर रहता. वह फटाफट रसोई का काम निबटा कर घर आए मेहमानों का भी स्वागतसत्कार बहुत सम्मान के साथ करती. महल्ले में उस की बड़ी तारीफ होने लगी तो दोनों जेठानियां एक तरफ हो उस के काम में तरहतरह के नुक्स निकलने लगीं. इसी बीच विवेक का ट्रांसफर हैड औफिस दिल्ली हो गया. तब वह बहुत खुश हुई थी कि चलो अब तो कहीं अपने हिसाब से जिंदगी बिताएगी. किंतु विवेक ने यह कह कर साफ मना कर दिया कि दिल्ली में मकान, बच्चों के स्कूल सभी कुछ इतना आसान नहीं है. तुम्हें बाद में ले जाऊंगा.

विवेक दवा कंपनी में एरिया मैनेजर था. रीमा फिर से एक बार मन मार कर रुक गई. फिर जब ससुराल के पास ही एक नया स्कूल खुला तब स्कूल में बच्चों के एडमिशन के साथ ही उसे भी कंप्यूटर टीचर की जौब मिल गई. विवेक ने हमेशा की तरह उसे प्रोत्साहित ही किया. अब तो दोनों जेठानियों ने सास के कान भरने शुरू कर दिए कि घर के काम से बचने के लिए स्कूल चल दी महारानी. सास को सुबहशाम की रोटी से मतलब रहता जिसे रीना समय पर दे देती. दोनों बच्चे अभी छोटे ही तो थे. रोहन 4 साल का और रिनी 3 साल की. दोनों को स्कूल में दाखिल करा दिया. अब वह निश्चिंत थी. मगर घर का माहौल जमे पानी सा सड़न पैदा करता. ऐसे में छोटू की हंसीमजाक, भरपूर बातें उसे ठंडीताजी हवा के झोंके सी लगतीं.

छोटू मतलब बलवीर सिंह. इस नाम से उसे कोई नहीं पुकारता था. पूरे महल्ले का प्रिय समाजसेवक, बस पढ़ाईलिखाई में मन न लगता, न ही शांति से घर में बैठ पाता. किसी को बाइक से सब्जी मंडी पहुंचा देता तो किसी की बहू को कार से हौस्पिटल. उस की डिलिवरी के समय भी दोनों वक्त छोटू की कार काम आई थी. छोटू तो अपने पिताजी के रिटायरमैंट के बाद का अघोषित ड्राइवर हो गया था. घर में उस से बड़े

2 भाई और भी थे. मगर वे भी कार नहीं चला पाते थे. फिर जब दिन भर छोटू घर भर के कामों के लिए गाड़ी दौड़ा ही रहा था तो उन्होंने भी ड्राइविंग सीखने की जहमत न उठाई.

6 फुट लंबातगड़ा जींस और टीशर्ट पहने, आंखों में धूप के चश्मे के साथ हाथ जोड़ विनम्रता से जिस के भी आगे खड़ा हो जाता वही गद्गद हो जाता. उस की ससुराल तो दिन भर में एक चक्कर जरूर लगा जाता.

अकसर रीमा को छेड़ता, ‘‘भाभी, आप की उम्र और मेरी उम्र बराबर ही होगी. लेकिन आप को देखो कभी खाली बैठे नहीं देखा और मैं हर वक्त खाली रहता हूं.’’

‘‘तो कोई काम क्यों नहीं करते? स्कूल ही जौइन कर लो.’’

‘‘वाह भाभी, खुद तो 2 बार में इंटर पास कर पाया हूं दूसरों को क्या पढ़ाऊंगा?’’

‘‘प्राइवेट स्नातक कर लो. आजकल तरहतरह के कंप्यूटर कोर्स भी हैं. तुम्हारे लिए एक अच्छा ओप्शन मिल ही जाएगा.’’

‘‘ठीक हैं, आप भी कंप्यूटर पढ़ने में मदद करेंगी तो मैं जौइन करने की सोचूंगा.’’

‘‘अरे वहां बहुत अच्छी तरह बताते हैं. प्रैक्टिकल भी कराते हैं. फिर भी कुछ समझ न आया करे तो आ कर पूछ लिया करना.’’

‘‘मैं जानता हूं कि आप कभी मना नहीं करेंगी… आप हैं ही बहुत स्वीट.’’

वह हंस पड़ी.

‘‘आप को पता भी है कि आप की हंसी कितनी कातिलाना है? मैं ने तो आप को शादी के बाद जब हंसते हुए देखा था तो देखता ही रह गया था. विवेक भैयाजी से बड़ी जलन हो गई थी मुझे.’’

‘‘तुम कुछ भी कैसे बोल देते हो?’’ रीमा नाराजगी से बोली.

‘‘सच कह रहा हूं भाभी. आप की हंसी और आप की इन आंखों को जो कोई एक बार देख लेता होगा वह जिंदगी भर नहीं भूल सकता होगा.’’

‘‘बसबस, ज्यादा मक्खन न लगाओ… अब अपना कंप्यूटर कोर्र्स जौइन करने के बाद ही मेरा सिर खाने आना,’’ रीमा ने उसे टालना चाहा.

आगे पढ़ें- अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा…

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 2

‘‘अरे आप मजाक समझ रही हैं क्या? मैं एकदम सच कह रहा हूं. आप ने क्या फिगर मैंटेन किया है… आप को तो कोई भी 2 बच्चों की मां तो दूर मैरिड भी नहीं समझ सकता. बिलकुल कालेजगोइंग स्टूडैंट लगती हैं.’’

‘‘हो गया पूरा पुराण? चलो, अब घर जाओ अपने,’’ वह रुखाई से बोली. फिर भी छोटू मुसकराते हुए एक गहरी नजर से उसे निहार गया.’’

अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा अपने बैडरूम में लगे आदमकद आईने के आगे खड़ी हो गई. बदन में जो चरबी बच्चों के पैदा होने पर चढ़ गई थी वह दिन भर की भागदौड़ में कब पिघल गई पता ही न चला उस की शादी न हुई होती तो वह भी अपनी सहेली सुमन की तरह पीएचडी करने कालेज जा रही होती. क्या गलत कहा छोटू ने, पर वह तो घरगृहस्थी की बेडि़यों में जकड़ी है. कालेज लाइफ की उन्मुक्त जिंदगी उस के हिस्से में नहीं थी. मन मसोस कर रह गई. सुमन ने ही उसे बताया था कि तुझे होली में बड़ा बढि़या टाइटिल मिला था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं… तेरी अचानक शादी का तो बेचारे क्लासमेट्स को पता ही न था. कितने दिल तोड़े तू ने कुछ पता भी है? जब दोबारा कालेज जौइन किया था तब उसे ऐसी कितनी बातों से दोचार होना पड़ा था. शशि उसे देख उछल पड़ी थी कि अरे मेरी लाड्डो जीजाजी के साथ कैसी छन रही है? कुछ पढ़ाई भी की तुम ने?

उसे अपने विवेक के साथ बिताए अंतरंग पल याद आ गए और उस का मुखड़ा शर्म से गुलाबी हो गया. मानो उस के बैडरूम में वे सभी अचानक प्रविष्ट हो गई हों.

‘‘अरे इसे देखो… क्या रूप निखर आया है,’’ सुमन ने छेड़ा.

यह सुन अनीता चहक कर बोली, ‘‘मेरी शादी होगी न तब देखना मेरा रूप.’’

सभी उस के बड़बोलेपन पर हंस पड़े.

कभी कोई परीक्षा कक्ष में कोई छेड़ देता, ‘‘क्यों तेरी ससुराल में साससुर सब साथ रहते हैं क्या?’’

वह झुंझला कर बोल पड़ती, ‘‘कुछ नहीं पढ़ा है यार. जो थोड़ाबहुत याद है उसे भी तुम लोगों की बकवास सुन कर भूल जाऊंगी.’’

फिर एक गहरी सांस ली उस ने कि बीती बातें क्या याद करनी, पर मन था कि भटक कर उन्हीं लमहों में जा पहुंचा…

उन्हीं दिनों मायके में उस की चचेरी बहन का विवाह तय हो गया. तब अपनी शादी के 5 वर्षों के बाद पहली बार उस ने ब्यूटीपार्लर का रुख किया था. विवेक के लाख मना करने पर भी बालों को एक नया आकार दिया. इतनी तैयारी तो अपने विवाह के पूर्व भी न की थी. शायद वह अपनी दबी हसरतों को इस मौके पर पूरा कर लेना चाहती थी. हुआ भी वैसा ही. विवाह के दिन जब वह अपने शादी के लहंगे में सजधज कर विवेक के सम्मुख खड़ी हुई तो वह बौखला सा गया, ‘‘इतना सजनेधजने की क्या जरूरत थी… कोई तुम्हारी शादी है क्या?’’

‘‘न हो, मेरी बहन की तो है और वह भी मुझ से बस 1 साल छोटी है… कितने सारे कौमन फ्रैंड हैं हमारे… आज सब मिलेंगे वहां पर… और ये मम्मीपापा, बच्चे सब कहां हैं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम्हें अपने बनाव शृंगार से फुरसत नहीं थी. वे सभी टैक्सी कर चले गए. कह गए तुम दोनों बाइक से घर को लौक कर आ जाना.’’

‘‘तो चलो फटाफट,’’ उस ने उतावलेपन से कहा.

‘‘पहले बाइक की चाबी तो ले कर आओ… वहीं ऊपर तुम्हारे बैडरूम में है,’’ उस का बैडरूम अब भी उसी के नाम से था मायके के… कितनी यादें जुड़ी हैं इस कमरे से रीमा की. अभी भाई की शादी नहीं हुई है तो पूरे घर में उसे अपना ही राजपाठ दिखाई देता है.

‘‘तुम ले आओ न प्लीज, यह लहंगे में सीढि़या चढ़नेउतरने में दिक्कत होती है,’’ उस ने लहंगे को सोफे पर फैला कर बैठते हुए कहा.

‘‘तो यहीं बैठी रहो… मुझे नहीं पता कि तुम ने बाइक की चाभी कहां रखी है,’’ विवेक भी वहीं सोफे पर बैठते हुए बोला.

रीमा एक झटके से उठी और लहंगे को संभालती बड़बड़ाते हुए सीढि़यां चढ़ने लगी कि अपनी बहन की शादी होती तो साहब सब से पहले पहुंच जाते तोरण बांधने… मेरे मायके की शादी है, तो जितना नाटक करें उतना ही कम है.

चाबी बैड पर ही रखी थी. जैसे ही उठा कर पलटी एक झटके में विवेक ने उसे बांहों में भर बैड पर गिरा दिया. इस से पहले कि वह कुछ बोल पाती उस के होंठ पर विवेक ने अपने प्यार का ताला जड़ दिया.

किसी तरह खुद को अलग कर बोली, ‘‘मेरा सारा मेकअप खराब कर दिया तुम ने… यह सब बंद करो. वहां सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘करने दो इंतजार सब को… पर मुझ से इंतजार नहीं होगा,’’ विवेक उस के कान में फुसफुसाया.

रीमा अपनी बेकाबू धड़कनों को संभालते हुए बोली, ‘‘अभी चलो प्लीज… हम जयमाला होते ही लौट आएंगे.’’

‘‘नहीं पहले प्रौमिस करो… तुम मायके में इतनी रम जाती हो कि फिर कुछ याद नहीं रहता,’’ विवेक अपनी बांहों के घेरे को और तंग करते हुए बोला.

‘‘पक्का प्रौमिस, कह कर रीमा खिलखिलाई, तो विवेक ने एक बार फिर से उस की लिपस्टिक बिगाड़ दी.’’

‘‘चलो हटो… वहां शादी हो रही है और यहां…’’ उस ने विवेक को अपने से दूर करते हुए कहा.

शादी में भी जयमाला के बाद विवेक की घर चलो की जिद ने रीमा का कितना मजाक बनाया था. वह सब को सफाई देतेदेते थक गई थी कि ये आज सुबह ही दिल्ली से आए हैं… सफर में नींद पूरी नहीं हुई है, मगर सभी मुंह दबा कर हंसते रहे. उसे अच्छी तरह समझ आ गया कि विवेक को उस के शृंगार को ले कर इतनी आफत क्यों आई थी. दरअसल, वह चाहता ही नहीं था कि उस के अलावा किसी की नजर उस पर पड़े, लेकिन उस के मुंह से कभी तारीफ के शब्द नहीं निकलते.

कितना सूनापन लगने लगा था. विवेक के दिल्ली जाने के बाद… दिन तो स्कूल, बच्चों रसोई में बीत जाता. मगर रात बहुत लंबी लगतीं. फोन तो रोज ही आता, मगर तब लैंड लाइन फोन होने के कारण कभी मां, कभी पिताजी ही बात कर फोन रख देते. अगर रीमा ने उठाया तब तो ठीक वरना वे उसे बता कर मुक्ति पा जाते कि विवेक का फोन आया था.

उस दिन फोन पर विवेक ने बताया कि वह मंगलवार को 12 से 1 के बीच घर पहुंच जाएगा. अत: तुम स्कूल से आधे दिन की छुट्टी ले कर आ जाना. बच्चे स्कूल बस से बाद में अपनेआप आ जाएंगे.

उस का उतावलापन सुन कर वह बोल पड़ी, ‘‘दिन के बाद रात तो आ ही जाएगी.’’

तब विवेक गुस्से से बोला था, ‘‘रहने दो तुम, अब मैं बाद में छुट्टी लूंगा.’’

‘‘अच्छा, नाराज न हो. मैं हाफ डे ले लूंगी,’’ उस ने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ा कर कहा, ‘‘कमरे में कोई मौजूद नहीं था. उसे झुंझलाहट हो आई कि फोन तो घर के चौराहे पर रखा है और लाट साहब को रोमांस सूझता है.’’

उस दिन उस ने सुबह ही घर में बता दिया था कि लंच टाइम तक ये आ जाएंगे. स्कूल में मासिक परीक्षा चल रही है. अत: स्कूल जाना जरूरी है. स्कूल में प्रिंसिपल से कहा कि घर में फंक्शन है. आज फिर जल्दी जाना है. कंप्यूटर प्रैक्टिकल परीक्षा पहले 4 पीरियडों में ही निबटा दी.

आगे पढ़ें- छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक…

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 3

छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक पहुंच गई. तभी न जाने कहां से भटकता आ गया. बोला, ‘‘घर जाना है क्या? आइए, मैं छोड़ देता हूं,’’ और फिर अपनी बाइक उस के आगे ला कर खड़ी कर दी.

उसे खुद घर जाने की जल्दी थी. कहीं देर हो गई सवारी ढूंढ़ने के चक्कर में तो विवेक फिर से गुस्से से लालपीला हो जाएगा.

‘‘क्या सोच रही हैं?

आज जल्दी कैसे आ गईं, स्कूल से बाहर?’’

तबीयत ठीक नहीं है.

‘‘अरे भाभी, अपना खयाल रखा करो,’’ बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘आप एकदम भोली हो… वहां तो भाई गुलछर्रे उड़ा रहा होगा और आप यहां अपने को कितना व्यस्त रखती हो.’’

‘‘क्या गुलछर्रे उड़ाते होंगे बेचारे… न ढंग का खाना, न देखभाल. घर से दूर हमारे लिए ही तो जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं… चार पैसे बचेंगे तो हमारे बच्चों के भविष्य के ही काम आएंगे.’’

‘‘कर दी न वही घिसीपिटी बात… वहां नाइट क्लब होते हैं… खूब शराब और शबाब का दौर चलता है… वहां किसे अपनी बीवी याद आएगी.’’

फिर उस का मन हुआ कि वह छोटू को बता दे कि उस का पति घर में कितनी बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा है… इन सब चक्करों से वह कोसों दूर है वरना आज उसे यों झूठ का सहारा ले कर आधे दिन की छुट्टी ले कर घर नहीं भागना पड़ता… पत्नी पति के हर परिवर्तन को झट भांप लेती है. मगर उस ने छोटू की बातों को कोई तवज्जो नहीं दी.

‘‘आओ चाय पी कर जाना,’’ उस ने अपने घर के गेट के आगे उतर कर छोटू से औपचारिकता निभाने को पूछा.

‘‘नहीं, फिर कभी… आज आप की तबीयत ठीक नहीं है, फिर आऊंगा. मुझे आप से कंप्यूटर की कुछ कमांड समझनी हैं.’’

‘‘ठीक है अगले हफ्ते आना… अभी बच्चों के टैस्ट चल रहे हैं.’’

‘‘जो हुकम स्वीट भाभी,’’ अपनी खीसें निपोरता हुआ बाइक को एक झटके से मोड़ कर वापस चला गया.

टीना ने चैन की सांस ली कि अगर अंदर आ जाता तो विवेक के प्रोग्राम का क्या होता?

सासससुर बरामदे में ही बैठे मिल गए, ‘‘आज जल्दी आ गई… विवेक आया है इसीलिए… अरे, हमारे साथ भोजनपानी कर लिया उस ने. तुझे इतनी चिंता क्यों हो गई,’’ ससुर ने कटाक्ष किया.

वह कुछ न बोल कर सिर झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ गई.

‘‘अरे बहू, वह तो सो भी गया होगा अब तक… तू हमारे लिए चाय बना.’’

कमरे में विवेक करवटें बदल रहा था. उसे देखते ही  खींच कर अपने सीने से लगा लिया मानो वह उसे सदियों के बाद मिल रहा हो.

‘‘कितने दिन बीत गए हैं पता है?’’ अपनी गरम सांसें उस के चेहरे पर टिकाते हुए विवेक ने कहा.

‘‘हां पूरा 1 महीना,’’ वह मुसकराई. विवेक ने उस पर अपने प्यार की बारिस कर दी.

‘‘अब तुम सोओगी क्या?’’ विवेक ने अपनी तृप्त आंखों से एक नजर उस पर डालते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहाने जा रही हूं. बच्चे भी आते होंगे… देखना अभी तुम्हारी दोनों भाभियां मेरा कितना मजाक बनाने वाली हैं,’’ टीमा हंस कर बोली.

‘‘उन्हें क्या पता कि तुम ने क्या गुल खिलाएं हैं?’’ विवेक उस के हाथों को सहलाते हुए बोला.

‘‘हां, एक तुम्हीं तो हो कामदेव बाकी तो सब अज्ञानी हैं… छोड़ो मुझे तुम, अब चुपचाप सो जाओ. मैं नहा कर चाय बनाती हूं… 1 घंटा पहले ही ससुर फरमाइश कर रहे थे.’’

उस दिन सुबह से ले कर शाम तक कितने झूठ बोलने पड़े थे उसे… बच्चों को भी उसे जल्दी आने की अलग से सफाई देनी पड़ी.

ठीक 1 हफ्ते के बाद छोटू आ धमका. अपनी किताबे उठाए उस के बैडरूम में ही प्रवेश कर गया.

विवेक वापस जा चुका था. दोनों बच्चे बाहर खेल रहे थे… वह अपनी कपड़ों की अलमारी ठीक कर रही थी. उसे देख कर चौंक पड़ी. बोली, ‘‘चलो, बाहर बरामदे में बैठ कर पढ़ाई करते हैं.’’

‘‘हांहां, बाहर ही बैठ जाएंगे… वैसे आप का बैड भी बड़ा शानदार है,’’ उस ने बैड पर बैठते हुए कहा, ‘‘अकेले तो ऐसे गद्दों पर भी नींद नहीं आती होगी न?’’

रीमा कोई जवाब न दे कर कमरे से बाहर आ गई तो छोटू को भी पीछेपीछे आना पड़ा.

‘‘अरे भाभी, मैं तो मजाक कर रहा था… आप नाराज ही हो गईं.’’

जब से विवेक गए हैं तब से छोटू का मजाक कुछ ज्यादा ही सीमा लांघने लगा है… जितना उस से बचने की जुगत बैठाती, उतना ही कोई न कोई काम पड़ ही जाता. एक दिन रिनी सीढि़यों से लुढ़क गई. उस दिन भी उसी की कार से हौस्पिटल भागी. सिर्फ 3 टांके उस के माथे पर आए थे. मगर वह खून देख कर कितना घबरा गई थी, ऐसे में छोटू ने ही अपनी पहचान के डाक्टर से तुरतफुरत सब काम करवा दिए थे.

एक दिन आ कर बोला, ‘‘मैं बीमा पौलिसी का एजेंट बन गया हूं. एक पौलिसी तो आप को लेनी ही पड़ेगी.’’

रीमा ने रिनी के नाम से ले ली. जानती थी जब तक ले नहीं लूंगी तब तक पीछा नहीं छोड़ेगा. तब वह बहुत खुश हो गया.

‘‘यह हुई न बात स्वीट भाभी. भैया कब आ रहे हैं?’’ उस ने पूछा. इस पर रीमा तुनक पड़ी, ‘‘तुझे क्या काम याद आ गया उन से?’’

‘‘मुझे आप की तनहाईयां देख कर बहुत दुख होता है… यह भी कोई उम्र है तनहा रहने की?’’

‘‘तो क्या करूं… सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं.’’

‘‘अरे आप चाहो तो ऐश कर सकती हैं.’’

‘‘वह कैसे?’’ उस ने जानबूझ कर छोटू के मन की थाह लेने को पूछा.

‘‘अरे भाभी, आप के पास तो डबल लाइसैंस हैं?’’

‘‘मजे लेने के लिए कौन से लाइसैंस?’’ आज वह सब कुछ साफ कर लेने के मूड में थी.

‘‘एक तो आप मैरिड हो दूसरा फैमिली प्लानिंग भी कर चुकी हो… अब तो आप आजाद हो आकाश में उड़ते पंछी की तरह.’’

‘‘इस का क्या मतलब है? मैं कुछ

समझी नहीं?’’

‘‘तुम्हारी यही मासूमियत तो पागल कर जाती है भाभी… अरे जैसे भाई दिल्ली में दूसरी लड़कियों के साथ मौज करते हैं. वैसे ही आप भी मेरे साथ मजे ले सकती हो.’’

‘‘यह मेरा अपने पति को धोखा देना नहीं कहलाएगा क्या?’’ उस ने अपने क्रोध को दबाते हुए पूछा.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. यह तो बस थोड़ा सा टाइमपास होता है जैसे तुम ने एक फिल्म देखी हो बस… फिल्म खत्म तुम अपने घर, मैं अपने घर.’’

‘‘अभी तुम्हारी शादी तो नहीं हुई है न, इसलिए तुम इस रिश्ते का महत्त्व नहीं जानते… जब तुम्हारी शादी होगी तब मैं तुम से कहूं कि एक फिल्म अपनी बीवी की विवेक को दिखा दो तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘अरे, मैं इतना दकियानूसी नहीं हूं… मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मेरी बीवी क्या करती है,’’ छोटू खिसिया कर बोला.

‘‘तो ठीक है जब तुम अपनी बीवी को इतनी आजादी दोगे. तब मैं तुम्हें मान जाऊंगी,’’ रीमा ने उसे चुनौती देते हुए कहा.

साल भर बाद ही वह विवेक के साथ कानपुर चली गई. विवेक को भी

दिल्ली के मुकाबले कानपुर रास आ गया. एक दिन अचानक छोटू का फोन आ गया.

‘‘क्या बात है बड़े दिनों के बाद याद आई हम लोगों की?’’ रीमा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या भाभी, आप लोग मेरी बरात में भी शामिल नहीं हुए,’’ उस ने नाराजगी दिखाई.

‘‘तुम ने हमें कार्ड ही नहीं भेजा… खैर कोई बात नहीं, तुम्हें और तुम्हारी दुलहन को बहुत सारी शुभकामनाएं.’’

‘‘भाभी, आप से एक काम था. इसीलिए फोन किया था… वह मेरी वाइफ का बीएड का रिजल्ट आ गया है, उसे कानपुर कालेज में दाखिला लेना है. आप की नजर में कोई अच्छा सा घर हो तो देखना…’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत खुशी की बात है… घर की तुम बिलकुल चिंता न करो. यहां हमारे पास थ्री बैडरूम सैट है. तुम लोगों को कोई असुविधा नहीं होगी. अब फटाफट आ जाओ. तुम निश्चिंत रहो. यहां तुम्हारे भाई तो हैं ही उस की देखभाल को.’’

‘‘खटाक,’’ की आवाज के साथ फोन कट गया. छोटी की बीवी शायद उन के घर नहीं रहने आएगी.

रीमा हंस पड़ी कि वह तो सिर्फ मजाक कर रही थी और छोटू डर गया.

‘‘क्या बात है? अकेलेअकेले क्यों हंस रही हो,’’ विवेक रसोई में रखे फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए बोला.

‘‘सुनो, छोटू से जो जीवन बीमा की पौलिसी ली थी. वह कब पूरी होगी?’’

‘‘अगले साल… 2 लाख मिलेंगे… वे सब बिटिया की शादी के बजट में काम आएंगे, पर तुम क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘चलो कोई तो काम अच्छा किया छोटू ने.’’

‘‘कौन सा काम गलत किया उस ने? मुझे भी बताओ,’’ विवेक ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं ने यह तो नहीं कहा कि उस ने कोई गलत काम किया.’’

‘‘तुम औरतों से बात करना मतलब मुसीबत मोल लेना होता है.’’

‘‘हां, अब तुम ने एकदम सही बात की,’’ कह रीमा खिलखिला उठी.

जीत की जिदः लेखन, निर्देशन के साथ अमित साधा का कमजोर अभिनय

रेटिंग: 2 स्टार

निर्माताः बोनी कपूर, आकाश चावला व अरुणवा जॉय सेनगुप्ता

निर्देशकः विशाल मंगलोरकर

कलाकारः अमित साध,एली गोनी, सुशांत सिंह, मृणाल कुलकर्णी, अमृता पुरी व अन्य

अवधिः सात एपीसोड, कुल अवधि लगभग पौने 5 घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

सेना और सैनिकों से जुड़ी कहानियां सदैव रोमांचक व रोचक होती हैं. मगर कई सैन्य व राष्ट्रपति द्वारा उच्च सम्मान से सम्मानित कारगिल योद्धा व सेना में स्पेशल फोर्स के मेजर दीप सिंह सेंगर की जिंदगी की सत्य कथा को वेब सीरीज ‘‘जीत की जिद’’ में प्रभावी तरीके से पेश करने में निर्देशक विषाल मंगलोरकर मात खा गए हैं.

कहानीः

बचपन में अपने भाई को कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा मारे जाने के बाद दीप तय करता है कि वह सेना में भर्ती होगा और कश्मीर जाकर आतंकवादियों का सफाया करेगा. अपने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध दीप सिंह सेंगर (अमित साध) सेना और वह भी स्पेशल फोर्स का हिस्सा बनते हैं. इसके लिए वह कई कठिन ट्रेनिंग भी हासिल करते हैं. सेना की कठिन परीक्षा पासकर वह कश्मीर पहुंचकर आतंकवादियों के सफाए में जुट जाते हैं. इसी बीच घायल होकर अस्पताल पहुंचते हैं.

अस्पताल से भागकर अपने सहकर्मी सैन्य अफसर सूर्या सेठी (एली गोनी) की शादी में पहुंचते हैं, जहां दीप की मुलाकात गणित की शिक्षक जया (अमृता पुरी) से होती है और वह जया को अपना दिल दे बैठते हैं. दोनों की मुलाकातें अस्पताल में होती हैं. फिर दोनो सगाई करने का निर्णय लेते हैं. पर तभी अस्पताल में ही दीप सिंह सेंगर को खबर मिलती है कि पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल में युद्ध शुरू हो गया है.

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पूरी तरह से स्वस्थ न होते हुए भी अपनी जिद के चलते पाकिस्तानी सैनिको को सबक सिखाने के लिए अपनी सैन्य टीम के साथ दीप सिंह कारगिल पहुंचते हैं. जहां वह अपने मिशन में कामयाब होते है. मगर उनके पेट में पांच गोलियां लगती हैं. कुछ गोलियां आर पार हो जाती है. चार बड़े आपरेशन के बाद डाक्टर कह देते हैं कि अब मेजर दीप सिंह सेंगर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते.

मेजर दीप सिंह सेंगर अब जिंदगी भर व्हील चेअर पर ही चलेंगे, यह जानते हुए भी जया उनसे विवाह करती हैं. उसके बाद जया के उकसाने पर दीप सिंह सेंगर एमबीए करते हैं, कारपोरेट में अच्छी नौकरी मिल जाती है, पर फिर वह निराशा के गर्त में समाने लगते हैं. अंततः एक बार फिर कर्नल रंजीत चौधरी (सुशांत सिंह) दीप सिंह सेंगर को एक चैलेंज देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

जिंदगी भर के लिए व्हील चेअर पर आने के बाद भी एक सैनिक हार नही मानता. यह एक अति प्रेरणादायक कहानी है, मगर अफसोस लचर लेखन व लचर निर्देशन के चलते यह कहानी प्रभावहीन हो गयी है. सात लंबे एपीसोड की इस वेब सीरीज का प्रस्तुतिकरण बहुत ही सतही है. वेब सीरीज में कहानी बार बार वर्तमान से अतीत में जाती है और ऐसा होते समय अतीत की कथा बहुत गलत तरीके से आती है, जिससे दर्शक बार बार दिग्भ्रमित होता रहता है. यह पटकथा लेखक के साथ साथ एडिटर की भी कमजोरी है.

फिल्म में गन फाइट के सीन वगैरह बहुत ही नकली लगते हैं. कम से कम इस वेब सीरीज के सर्जको को फिल्म ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ से ही कुछ सबक ले लेना चाहिए था. फिल्म ‘उरी’ में सब कुछ बहुत बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. मगर वेब सीरीज ‘जीत की जिद’ में सैन्य चॉपर, गन फाइट बैटल सहित सब कुछ डिजिटली रचा गया है. कैमरामैन ने भी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं निभाया है. सैनिकों की ट्रेनिंग के दृष्य बार बार दोहराए गए हैं, जिससे दर्शकों को भी उब होने लगती है. पूरी वेब सीरीज देखते हुए कहीं भी रोमांच के क्षण पैदा ही नही होते.

सूर्या सेठी (एली गोनी) और दीप सिंह सेंगर (अमित साध) के बीच बाक्सिंग प्रतियोगिता दृष्य भी काफी शिथिल है. स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग के दृष्यों में जो सह कलाकार लिए गए हैं, उनका हाव भाव कहीं से भी सैनिकों जैसा नहीं लगता. ऐसा लगता है कि निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ इस बात पर रहा कि कितनी जल्दी इसकी शूटिंग खत्म की जाए.

फिल्म के एक दो संवादों को छोड़ दें, तो संवाद भी काफी सतही है. एक संवाद अच्छा है- ‘‘लीडर्स सिर्फ फ्रंट पर ही नहीं, हर फील्ड में होते हैं.’’

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो दीप सिंह सेंगर के किरदार में अमित साध निराश करते हैं. वह इस वेब सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुए हैं. आर्मी आफिसर और वह भी स्पेशल फोर्स का मेजर इतना मोटा व भरे गालों वाला नही हो सकता, जितने मोटे अमित साध हैं. उनका अभिनय प्रभावशाली नहीं है.

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एक दृष्य है, जिसमें उन्हे ट्रेनिंग के ही दौरान इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है. इस सीन में अमित साध का अभिनय व उनकी प्रतिक्रिया देखकर हंसी आती है. इतना ही नही व्हील चेअर बैठे हुए एक भी दृष्य प्रभाव पैदा नही करते. बतौर अभिनेता अमित साध की यह असफलता ही है और इसके लिए निर्देशक भी पूरी तरह से दोषी हैं.

जया के किरदार में अमृता पुरी ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. सुशांत सिंह भी अपने अभिनय से प्रभावित नहीं करते.

विनीत कुमार सिंह ने गाया भारतीय सेना के जवानों के लिए गाना, हुआ वायरल

मूलतः आयुर्वेदिक डाक्टर विनीत कुमार सिंह ने बतौर डाक्टर प्रैक्टिस करने की बजाय 2002 में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था. ‘पिता’,‘हथियार’,‘बांबे टाॅकीज’, ‘गैंग आफ वासेपुर’ सहित कई फिल्मों में अभिनय करने के बाद वह फिल्म ‘‘मुक्काबाज’’ में हीरो बनकर आए थे, जिसकी कहानी व पटकथा विनीत कुमार सिंह ने अपनी बहन के साथ मिलकर लिखा था. अब वह नौ फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्म ‘आधार’ में हीरो बनकर आ रहे हैं.

इन दिनों विनीत कुमार सिंह अपने गीत ‘‘उनके काज को न भूलो’ को लेकर चर्चा में हैं. विनीत कुमार सिंह ने यह भावुक गीत गणतंत्र दिवस के उत्सव पर भारतीय सेना के जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए बनाया है.

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इस गीत को विनीत कुमार सिंह ने स्वयं अपनी आवाज में गाते हुए वीडियो बनाकर ऐन गणतंत्र दिवस से पहले वायरल किया, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है. अभिनेता ने कहा कि उनका प्रयास 26 जनवरी को आने वाले देश के 71 वें गणतंत्र दिवस को मनाने के उद्देश्य से है.

इंस्टाग्राम पर विनीत ने अपने इस गीत का वीडियो साझा करते हुए लिखा है, ‘सेना के जवानों को एक छोटी श्रद्धांजली..यह गाना मैंने लिखा और गाया है…मुझे आशा है कि आपको पसंद आएगा.‘

विनीत कुमार सिंह कहते हैं- ‘‘गीत ‘उनके काज ना भूलो…‘ अपने आप लिख गया. इस गीत को लिखने के लिए मुझे गलवान घाटी की घटना से प्रेरणा मिली. गलवान घाटी की इस घटना के बारे में सुनकर मैं चौंक गया था. उस वक्त मैं लद्दाख में शूटिंग कर रहा था और मैं कई जवानों से मिल चुका हूं. हम उनसे मिलने जाते थे. उनकी चेक पोस्ट पर वह हमारा स्वागत करते थे.  बहुत प्यार और सम्मान देते थे. उनके साथ खड़ा होना बहुत गर्व की बात होती है. वह बहुत विपरीत परिस्थितियों से लड़ रहे होते हैं. इनमें सर्दी, खून, पसीना, आंसू और अपने कर्तव्य के लिए घर से दूर रहना शामिल है.‘

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विनीत आगे कहते है-‘‘सैनिक ऐसा इसलिए करते है ताकि भारत माता की रक्षा हो सके. ऐसी विपरीत परिस्थितियों में रहकर देश सेवा करना बहुत बड़ी बात है.यह बात मेरे ध्यान में हमेशा रहेगी. इसी के चलते यह गीत बनाया है. हमें हमारे जवानों और उनके परिवार की कर्तव्य परायणता को कभी नहीं भूलना चाहिए. यह कविता मेरी ओर से हमारे देश के सैनिकों के लिए एक ट्रिब्यूट है.‘’

अनुपमा: किंजल को मिलेगी वनराज की नौकरी, क्या होगा सबका रिएक्शन

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां बीते दिनों वनराज की नौकरी चली गई है तो वहीं अनुपमा ने तलाक का फैसला ले लिया है. हालांकि अभी शो में कई नए मोड आनो बाकी हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज को मिलते हैं तलाक के कागज

 

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अब तक आपने देखा कि अनुपमा की माफी का इंतजार कर रहे वनराज को तलाक के कागज मिलने के बाद गहरा झटका लगता है. वहीं शाह परिवार अनुपमा के तलाक के फैसले से काफी नाराज नजर आया. इसी बीच परितोष और समर के बीच झगड़ा भी देखने को मिला.

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अनुपमा लेती है घर छोड़ने का फैसला

समर जहां अपनी मां का सपोर्ट करता हुआ नजर आता है तो वहीं परितोष और पूरा परिवार अनुपमा के तलाक के फैसले को गलत ठहराता है, जिसके चलते परितोष घर छोड़ने का फैसला लेता है. इसी बीच परिवार की नाराजगी को देखते हुए अनुपमा कहती है कि अगर कोई घर छोड़कर जाएगा तो वह खुद होगी. वहीं पाखी तलाक के फैसले से नाखुश होकर घर छोड़ने का मन बनाती है. इसी बीच वनराज फैसला करता है कि वह अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ेगा और काव्या के साथ शादी करके जिंदगी बिताएगा.

किंजल को मिलेगी वनराज की नौकरी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज अपनी नौकरी जाने की बात से नाराज होकर अपने मालिक को खरी खोटी सुनाएगा और साथ ही कहेगी कि किसी भी नौसिखिया को नौकरी देने का अंजाम उन्हें भुगतना पड़ेगा. वहीं दूसरी तरफ किंजल अपनी नौकरी लगने की बात अनुपमा को बताएगी और कहेगी कि उसे नौकरी मिल गई है. हालांकि सभी इस बात से बेखबर होंगे कि वनराज की जगह किंजल को नौकरी मिली है. लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि ये बात जानने के बाद अनुपमा और शाह परिवार का क्या रिएक्शन होगा.

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किचन को रखें हमेशा क्लीन और स्टाइलिश

हर किसी को अपना घर सजा कर रखना पसंद आता है और उसी सजावट का एक हिस्सा किचन होता है. किचन घर का वह हिस्सा है जहां से हमारे दिन की शुरूआत होती है, जिसके लिए हम मार्केट से कईं प्रौडक्ट खरीदता है, लेकिन आप बिना सामान खरीदें भी अगर किचन को क्लीन और सिंपल रखें तो ये उसे स्टाइलिश बना सकती हैं. जैसे-जैसे हम कुकिंग करने लगते हैं किचन को गंदा करने लगते हैं, पर किचन को व्यवस्थित रखना भी बेहद जरूरी है. अव्यवस्थित किचन न सिर्फ खाने का स्वाद खराब करती है, बल्कि खाना बनाने वाले और खाने वाले की सेहत को भी खराब कर सकती है. ऐसा आप के साथ न हो, इस के लिए पेश हैं कुछ टिप्स.

1. शैफ के चौपर का करें इस्तेमाल

चाकू के बिना किचन में काम करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है, इसलिए 7 चाकुओं वाले किसी सस्ते पैक को खरीदने के बजाय एक अच्छे स्टोर से 300 से 700 की कीमत वाले  अच्छे शैफ नाइफ खरीदें. साल में 1 बार किसी प्रोफैशनल से उसमें धार जरूर लगवाएं. भूल से भी उसे डिशवौशर या एल्यूमीनियम के स्क्रब से साफ न करें. हमेशा स्पंज से हलके से साफ करें.

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2. मीट को करें सही ढंग से साफ

जैसे हम सब्जियों और फलों को साफ करते हैं उसी तरह शैफ मीट को भी साफ करने की सलाह देते हैं. मीट में किसी तरह के कीटनाशक या फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, पर उसे काटने के तरीके से कई बार वह गंदा हो जाता है. अत: उसे धो कर पकाएं. धोने के बाद भी उस का वही स्वाद बरकरार रहता है.

3. सिंगल यूज वाले बरतन न लें

किचन का व्यवस्थित होना बहुत जरूरी है. ज्यादा भरी किचन अच्छी नहीं लगती है. इस परेशानी से बचने के लिए ऐसे बरतन खरीदें, जिन का कई चीजें बनाने के लिए प्रयोग किया जा सके. अपने अनुभव और रचनात्मकता के साथ कुछ समय बाद बड़े और बेहतर बरतन  खरीद सकती हैं. कोशिश करें कि हर बरतन का इस्तेमाल कम से कम 3 चीजों के लिए हो रहा हो.

4. मैनेज करके रखें सामान

किचन संभाल रही हैं तो इस बात को समझें कि पत्तागोभी, टमाटर, ब्रोकली हर सब्जी को स्टोर करने का तरीका अलग होता है. यह पता कर लें कि किन चीजों को फ्रिज में रखा जा सकता है और किन्हें नहीं. मसालों को स्टोर करने का तरीका भी अलग-अलग होता है. इन सब बातों को जानने समझने के लिए 1 घंटे का समय इंटरनैट रिसर्च के लिए तय करें ताकि आप का सामान खराब होने से बच सके और लंबे समय तक चले.

5. ताजा हर्ब्स का करें इस्तेमाल

किसी भी डिश का स्वाद ताजा हर्ब्स के बिना अधूरा सा लगता है. उन के इस्तेमाल से खाना ताजा और स्वादिष्ठ बनता है. हर्ब्स के साथ सब से बड़ी परेशानी होती है कि खाने में उन की मात्रा जरा सी डलती है पर उन्हें खरीदना ज्यादा मात्रा में पड़ता है. रोजमैरी, बे लीव्स और थाइम जैसे हर्ब्स को अगर ड्राई पेपर टौवेल में लपेट कर फ्रीजर में रखेंगी तो ये 7 दिनों तक ताजा रहेंगे. फ्रीजर में ताजा नीबू भी रख सकती हैं. खाने के स्वाद को थोड़ा बदलने के लिए डिश में नीबू का रस मिला सकती हैं.

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6. मौसम के अनुसार चुनें चीजें

अपने खाने को अधिक स्वादिष्ठ बनाने का सब से अच्छा तरीका यह है कि उस में मौसमी सामग्री का इस्तेमाल किया जाए. उदाहरण के तौर पर ऐस्पैरेगस एक सीमित समय तक के लिए ही उपलब्ध होता है. अत: उस के पीक सीजन में उस का भरपूर इस्तेमाल कर लें.

7. कुकिंग प्लानिंग है जरूरी

घर में खाना बना रही हों या किसी प्रोफैशनल जगह पर, एक कुकिंग प्लान होना आवश्यक है. सभी मसालों, हर्ब्स और सब्जियों की निश्चित मात्रा को बाउल्स में निकाल लें. डिशेज का जिस और्डर में इस्तेमाल करना हो, उसी हिसाब से उन्हें किचन की सीट पर व्यवस्थित कर लें. यहां तक कि अपने सौसपैन को भी पहले ही स्टोव पर रख दें. सारा सामान और सामग्री व्यवस्थित होगी तो खाना बनाना आसान हो जाएगा.

 रूठे सास-ससुर को मनाएं ऐसे

अमिता के सासससुर साथ रहते हुए भी उस से अजनबियों सा व्यवहार करते और अमिता की लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मानते. दरअसल, होता यही है कि जब बात सासससुर के साथ बहू के रिश्ते की आती है, तो इस रिश्ते में थोड़ी मिठास तो थोड़ी खटास हो ही जाती है और परिवार की सब से मजबूत कड़ी सासससुर छोटीछोटी बात पर ही बहू से मुंह मोड़ लेते हैं.

ऐसे में अगर आप को यह समझ नहीं आता है कि किस तरह अपने रिश्तों के बीच जमी बर्फ को पिघलाया जाए ताकि घर का माहौल खुशनुमा बन जाए, तो यकीन मानिए सासससुर को मनाने के लिए त्योहारों का समय सब से बेहतरीन होता है. आप को कुछ ऐसे ही ट्रिक्स बता रहे हैं जो रूठे सासससुर के गुस्से को कम करने और उन्हें मनाने के काम आएंगे और उन के साथ आप की ट्यूनिंग एकदम परफैक्ट हो जाएगी:

1. पूरा वक्त दें

इस बात का एहसास करें कि रिश्तों को बनने में समय लगता है और सासससुर के साथ समय बिताएंगी, तो रिश्तों के बीच की दूरी कुछ समय में पट जाएगी. उन के साथ समय बिताने के लिए आप उन्हें टैक्नोलौजी से रूबरू करा सकती हैं. आप उन्हें कार चलाना सिखा सकती हैं, लेटैस्ट मोबाइल चलाना सिखा सकती हैं, ताकि वे भी समय के साथ स्मार्ट बन जाएं और उन का जब मन करे वे आप से बात कर पाएं.

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अगर आप उन के साथ समय बिताएंगी, तो अपने बौंड को और स्ट्रौंग कर पाएंगी. आप उन के साथ समय बिताने के लिए साथ में टीवी देख सकती हैं, औनलाइन गेम्स खेल सकती हैं, बागवानी कर सकती हैं, उन की क्रिएटिविटी को उजागर कर सकती हैं, पार्क जा सकती हैं या अगर आप जिम जाती हैं, तो उन्हें भी जिम जौइन करा सकती हैं ताकि आप के साथ वे भी फिट रहें.

2. क्या है पसंदनापसंद

शादी के बाद हर लड़की को पति के साथसाथ सासससुर की पसंद भी जाननी चाहिए. अगर उन्हें घूमना पसंद है, तो उन्हें फैमिली ट्रिप पर ले कर जाएं. वैसे भी फैमिली डे आउट रिश्तों को करीब लाते हैं और हम अपने प्रियजनों के शौक जान पाते हैं. साथ ही मन में पड़ चुकी गांठें, नाराजगी दूर कर एकदूसरे को सुनने का बेहतर मौका देती है आउटिंग. उन की मनपंसद डिश बना सकती हैं. कुछ बना नहीं सकतीं तो बाहर लंच या डिनर पर ले जा सकती हैं. या फिर औफिस से आते हुए ही उन के लिए उन का कुछ मनपसंद खाना ला सकती हैं. आप की इन कोशिशों को देख कर वे खुश हो जाएंगे.

3. खास दिन बनाएं यादगार

जन्मदिन, शादी की सालगिरह, मदर्सडे व फादर्सडे जैसे खास मौकों पर सरप्राइज गिफ्ट या पार्टी दे कर उन्हें स्पैशल फील करवा सकती हैं. सासससुर को शौपिंग पर ले जा सकती हैं और ससुर को शर्ट की जगह टीशर्ट दिलाएं, तो वहीं सास को सूट नहीं बल्कि जींस दिलाएं, उन्हें मौर्डन बनाएं, उन के मन की अनकही ख्वाहिशों को पूरा करें. आप चाहे तो सासससुर को यूनीसैक्स सैलून भी ले कर जा सकती हैं. वहां आप उन का अच्छा सा हेयरकट या हेयर स्पा या फिर मसाज करा सकती हैं.

इस के अलावा आप उन्हें मूवी दिखाएं या फिर गेम्स सैक्शन में ले जाएं, जहां जा कर वे खूब मजे करें. आप ये सब करेंगी तो आप के सासससुर को महसूस होगा कि आप उन्हें मांबाप का दर्जा देती हैं और उतना ही प्यार भी करती हैं.

4. सलाह लें

सब से पहले उन्हें अपना दोस्त बनाएं. उन से दोस्ती करें और घर में कोई भी फैसला लेने से पहले एक दोस्त की तरह उन से राय मांगें और उन की अनुमति अवश्य लें. ऐसा करने से उन्हें अच्छा फील होगा.

5. शेयरिंग में छिपी केयरिंग

शाम की चाय सासससुर के साथ पीएं और उन्हें दिखाएं कि आप उन की कितनी परवाह करती हैं. साथ ही उन से अपने दोस्तों या औफिस के कुछ फनी किस्से शेयर करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप उन की गैरमौजूदगी वाले पल भी उन से साझा करती हैं.

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6. शादी से पहले

शादी से पहले हर लड़की के मन में यह डर होता है कि उस की होने वाली सास कैसी होंगी? कहीं ससुरजी गुस्से वाले तो नहीं होंगे? भारतीय समाज में तो इन दोनों का दिल जीतना एक बहू के लिए किसी टास्क से कम नहीं है. ऐसे में कहा जाता है कि अगर शुरुआत अच्छी हो गई तो आधी जीत हो गई.

इसलिए जब भी शादी से पहले होने वाले सासससुर से मिलें तो उन्हें सम्मान दें और प्यार जताएं, उन की हौबी पूछें. इस तरह की बातें आप के सासससुर के सामने आप की अच्छी छवि बनाती हैं और यह दर्शाती हैं कि आप उन्हें बेहद पसंद करती हैं. अगर आप की सगाई हो गई है, तो आप उन से लंच पर मिलें. इतना ही नहीं अपने मंगेतर या बौयफ्रैंड से पूछें कि ऐसी कौन सी बातें हैं, जो उन के मातापिता को पसंद है या किन बातों से उन्हें खुशी मिलती है.

अगर आप शादी से पहले इन सब बातों पर ध्यान देंगी तो आप के सासससुर आप से कभी नहीं रूठेंगे, बल्कि वे आप के दोस्त बन जाएंगे.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट डा. शिवानी से बातचीत पर आधारित

खुशियों का समंदर: भाग 3- क्रूर समाज ने विधवा बहू अहल्या को क्यों दी सजा

घर पहुंच कर अहल्या ने गिरीश की मदद की बातें सरला और लालचंद को भी बताईं. उन दोनों ने निर्णय लेने में समय नहीं गंवाया. तत्काल ही गिरीश को ऊंची तनख्वाह और सारी सुविधाएं दे कर अपनी फैक्टरी में नियुक्त कर लिया. शहर से बाहर जाने का सारा काम गिरीश ने बड़ी खूबी से संभाल लिया था. लालचंद हर तरह से संतुष्ट थे. समय पंख लगा कर उड़ान भरता रहा. गिरीश भी सेठ लालचंद परिवार के निकट आता गया. उस का भी तो कोई नहीं था. प्यार मिला तो उधर ही बह गया. अहल्या ने गिरीश के बारे में सभीकुछ बता दिया था सिवा उस की जाति के. गिरीश को भी मना कर दिया था कि भूल कर भी वह अपनी जाति को किसी के समक्ष प्रकट न करे. पहले तो उस ने आनाकानी की पर अहल्या के समझाने पर उस ने इसे भविष्य पर छोड़ दिया था.

अहल्या जानती थी कि जिस दिन उस के साससुर गिरीश की जाति से अवगत होंगे, उस के प्रवेश पर रोक लग जाएगी. बड़ी मुश्किल से तो घर का वातावरण थोड़ा संभाला था. आरंभ में गिरीश संकुचित रहा पर अपनी कुशलता, ईमानदारी और निष्ठा से उस ने दोनों फैक्टरियां ही नहीं संभालीं, बल्कि अपने मृदुल व्यवहार से लालचंद और सरला का हृदय भी जीत लिया था. गिरीश अब उन के कंपाउंड में बने गैस्टहाउस में ही रहने लगा था. सारी समस्याओं का हल गिरीश ही बन गया था.

लालचंद और सरला की आंखों में अहल्या और गिरीश को ले कर कुछ दूसरे ही सपने सजने लगे थे, लेकिन अहल्या की उदासीनता को देख कर वे आगे नहीं बढ़ पाते थे. उस ने एक सहकर्मी से ज्यादा गिरीश को कभी कुछ समझा ही नहीं था. उस के साथ एक दूरी तक ही नजदीकियां रखे थी वह. कई बार वह उन दोनों को समझा चुकी थी पर लालचंद और सरला दिनोंदिन गिरीश के साथ सारी दूरियां को मिटाते जा रहे थे. कभी लाड़दुलार से खाने के लिए रोक भी लिया तो अहल्या उस का खाना बाहर ही भिजवा देती थी.

गिरीश का मेलजोल भी यह क्रूर समाज स्वीकार नहीं कर सका. कोई न कोई आक्षेप उन की ओर उड़ाता ही रहा. आजिज आ कर एक दिन सरला बड़े मानमनुहार के साथ अहल्या से पूछ ही बैठी, ‘‘गिरीश तुम्हें कैसा लगता है? हम दोनों को तो उस ने मोह ही लिया है. हम चाहते हैं कि तुम उसे अपने जीवन में स्थान दे कर हर तरह से व्यवस्थित हो जाओ. है तो तुम्हारा बचपन का साथी ही. क्या पता इसी संयोग से हम सब उस से इतने जुड़ गए हों. हम भी कितने दिनों तक तुम्हारा साथ देंगे. यह समाज बड़ा ही जालिम है, तुम्हें यों अकेले जीने नहीं देगा. नील की यादों के सहारे जीवन बिताना बड़ा कठिन है. फिर वह तुम्हें कोई बंधन में भी तो नहीं बांध गया है जिस के सहारे तुम जी लोगी. सब समय की बात है वरना एक साल कम नहीं था.’’ प्रत्युत्तर में अहल्या कुछ देर उन्हें देखती रही, फिर बड़े ही सधे स्वर में बोली, ‘‘आप गिरीश को जानती हैं पर उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि को नहीं. मुझे भी कुछ याद नहीं है. क्या पता अगर हमारी आशाओं की कसौटी पर उस का परिवेश ठीक नहीं उतरा तो कुछ और पाने की चाह में उस के इस सहारे को भी खो बैठेंगे. मुझ पर अब किसी अफवाह का असर नहीं होता, अहल्या नाम की शिला जो हूं जिसे दूसरों ने छला और लूटा. वे जिन्होंने लूटा, देवता बने रहे, पर मैं अहल्या जैसी पत्थर पड़ी किसी की ठोकर का इंतजार क्यों करूं. किसी राम के मैले पैरों की अपेक्षा भी नहीं है मुझे. जैसे जीवन गुजर रहा है, गुजरने दीजिए.’’

पर आज तो सरला अपने मन की बात किसी न किसी तरह से अहल्या से मनवा ही लेना चाहती थी. उन की जिद को टालने के ध्येय से अहल्या ने गिरीश से ही पूछ लेने को कहा. और एक दिन लालचंद व सरला ने गिरीश से उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे जानना चाहा तो उस ने भी छिपाना ठीक नहीं समझा और बेझिझक हो, सभीकुछ उन के समक्ष उड़ेल कर उन की जिज्ञासा को हर तरह शांत कर दिया. लालचंद तो तत्काल वहां से उठ कर अंदर चले गए. अपनी सारी आशाओं पर तुषारापात हुए देख, सरला ने घबरा कर आंखें मूंद लीं. गिरीश अपनी इस अवमानना को समझते हुए झटके से उठ कर चला गया. पहाड़ के सब से ऊंचे ब्राह्मण की मानसिकता निम्नजाति से आने वाले गिरीश को किसी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही थी. दोनों फिर अवसाद में डूब गए, कहीं दूर तक कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था.

हफ्ता गुजर गया पर न गिरीश उन दोनों से मिलने आया और ही इन्होंने पहले की तरह मनुहार कर के उसे बुलाया. इस संदर्भ में अहल्या ने जब सरला से पूछा तो उन की पलकें भीग गईं. आहत ुहो कर उन्होंने अहल्या से कहा, ‘‘गिरीश की जाति के बारे में क्या तुम्हें सच मालूम नहीं था? अगर था तो बताया क्यों नहीं? इतने दिनों तक क्यों अंधेरे में रखा. हमारे सारे मनसूबे पर पानी फिर गया. पलभर में एक बार फिर प्रकृति ने हमारी आंखों से सारे सपने नोच लिए.’’ कुछ देर अहल्या सोचती रही, फिर उन की आंखों में निर्भयता से देखते हुए बोली, ‘‘मैं उस की जाति से अनजान नहीं थी, लेकिन वह तो हमारी फैक्टरी के अफसर होने के सिवा कुछ नहीं था, और इस से जाति का क्या लेनादेना. भरोसे का आदमी था, इसलिए सारे कामों को उसे सौंप दिया.’’ लालचंद भी वहां पर आ गए थे.

अहल्या ने निसंकोच लालचंद से कहा, ‘‘पापा, अगर अफवाहों के चक्रव्यूह में फंस कर आप ने उसे फैक्टरी के कामों से निकाल दिया तो उस जैसे भरोसे का आदमी फिर शायद ही मिले. आप दोनों के दुखों का कारण मैं ही हूं. मैं ने सोच लिया है यहां से हमेशा के लिए चले जाने का. गिरीश आप दोनों की देखरेख कर लेगा. अगर उसे निकाला तो मैं भी उस के साथ निकल जाऊंगी. आप के साथ अपने नाम को फिर से जुड़ते देख मैं मर जाना चाहूंगी. यह जालिम दुनिया हमें जीवित ही निगल जाएगी,’’ यह कह कर अहल्या रो पड़ी.

अपने सिर पर किसी स्पर्श का अनुभव कर के अहल्या ने सिर उठाया तो लालचंद को अपने इतने निकट पा कर चौंक गई. लालचंद बोल पड़े, ‘‘गिरीश के परिवेश को भूल कर अगर हम हमेशा के लिए उसे अपना बेटा बना लें तो इस की अनुमति तुम दोगी?’’ अहल्या ने सिर झुका लिया. आज वर्षों बाद लालचंद की विशाल हवेली फिर एक बार दुलहन की तरह सजी हुई थी. मंच पर वरवधू बने गिरीश और अहल्या के साथ सेठ दंपती अपार खुशियों से छलकते सागर को समेट रहे थे. सारी कटुताओं को विस्मृत करते हुए इस खुशी के अवसर पर लालचंद ने दोस्तदुश्मन सभी को आमंत्रित किया था. कहीं भीड़ के समूह में उन की उदारता की प्रशंसा हो रही थी तो कहीं आलोचना. पर जो भी हो, अपने हृदय की विशालता से उन के जैसे कट्टर ब्राह्मण ने गिरीश की जाति को भूल उसे अपने बेटे नील का स्थान दे कर बड़ा ही क्रांतिकारी व अनोखा काम किया था.

खुशियों का समंदर: भाग 2- क्रूर समाज ने विधवा बहू अहल्या को क्यों दी सजा

अपने भाई की बात सुन कर सरला बहुत नाराज हुई तो भाई ने भी अपना गरल उगल कर उन के जले हुए तनमन पर खूब नमक रगड़ा. ‘‘हां, तो सरला, तुम्हारी बहू कितनी भी सुंदर और काबिल क्यों न हो, उस पर विधवा होने का ठप्पा तो लग ही चुका है. वह तो मैं ही था कि इस का उद्धार करने चला था वरना इस की औकात क्या है. सालभर के अंदर ही अपने खसम को खा गई. वह तो यहां है, इसलिए बच गई वरना हमारे यहां तो ऐसी डायन को पहाड़ से ढकेल देते हैं. मैं ने तो इस का भला चाहा, पर तुम्हें समझ में आए तब न. जवानी की गरमी जब जागेगी तो बाहर मुंह मारेगी, इस से तो अच्छा है कि घर की ही भोग्या रहे.’’

सरला के भाई की असभ्यता पर लालचंद चीख उठे, ‘‘अरे, कोई है जो इस जानवर को मेरे घर से निकाले. इस की इतनी हिम्मत कि मेरी बहू के बारे में ऐसी ऊलजलूल बातें करे. सरला, आप ने मुझ से पूछे बिना इसे कैसे बुला लिया. आप के चचेरे भाइयों के परिवार की काली करतूतों से पहाड़ का चप्पाचप्पा वाकिफ है.’’ लालचंद क्रोध के मारे कांप रहे थे. ‘‘न, न, बहनोई साहब, मुझे निकलवाने की जरूरत नहीं है. मैं खुद चला जाऊंगा, पर एक बात याद रखिएगा कि आज आप ने मेरी जो बेइज्जती की है उसे सूद समेत वसूल करूंगा. तुम जिस बहू के रूपगुण पर रिझे हुए हो, सरेआम उसे पहाड़ की भोग्या न बना दिया तो मैं भी ब्राह्मण नहीं.’’ यह कहता हुआ सरला का बदमिजाज भाई निकल गया पर अपनी गर्जना से उन दोनों को दहलाते हुए भयभीत कर गया. उस के जाने के बाद कई दिनों तक घर का वातावरण अशांत रहा.

सरला के भाई की धमकियां पहाड़ के समाज के साथसाथ व्यापार में लालचंद से स्पर्धा रखने वाले व्यवसायियों के समाज में भी प्रतिध्वनित होने लगी थीं. बहू के साथ उन के नाजायज रिश्ते की बात कितनों की जबान पर चढ़ गई थी. यह समाज की नीचता की पराकाष्ठा थी. पर समाज तो समाज ही है जो कुछ भी उलटासीधा कहने और करने का अधिकार रखता है. उस ने बड़ी निर्दयता से ससुरबहू के बीच नाजायज रिश्ता कायम कर दिया. सरेआम उन

पर फब्तियां कसी जाने लगी थीं. आहिस्ताआहिस्ता ये अफवाहें पंख फैलाए लालचंद के घर में भी आ गईं. अपने अति चरित्रवान, सच्चे पति और कुलललना बहू के संबंध में ऐसी लांछनाएं सुन कर सरला मृतवत हो गई. नील की मृत्यु के आघात से उबर भी नहीं पाई थी कि पितापुत्री जैसे पावन रिश्ते पर ऐसा कलुष लांछन बिजली बन कर उन के आशियाने को ध्वंस कर गया. वह उस मनहूस दिन को कोस रही थी जब अपने उस भाई से अहल्या की दूसरी शादी की मंशा जता बैठी थी. लालचंद के कुम्हलाए चेहरे को देखते ही वह बिलख उठती थी.

अहल्या लालचंद के साथ बाहर जाने से कतराने लगी थी. उस ने इस बुरे वक्त से भी समझौता कर लिया था पर लालचंद और सरला को क्या कह कर समझाती. जीवन के एकएक पल उस के लिए पहाड़ बन कर रह गए थे, लेकिन वह करती भी क्या. समाज का मुखौटा इतना घिनौना भी हो सकता है, इस की कल्पना उस ने स्वप्न में भी नहीं की थी. इस के पीछे भी तो सत्यता ही थी. ऐसे नाजायज रिश्तों ने कहीं न कहीं पैर फैला ही रखे थे. एक तो ऐसे ही नील की मृत्यु ने उसे शिला बना दिया था. उस में न तो कोई धड़कन थी और न ही सांसें. बस, पाषाण बनी जी रही थी. उस के जेहन में आत्महत्या कर लेने के खयाल उमड़ रहे थे. कल्पना में उस ने कितनी बार खुद को मृतवत देखा पर सासससुर की दीनहीन अवस्था को स्मरण करते ही ये सारी कल्पनाएं उड़नछू हो जाती थीं.

वह नील की प्रेयसी ही बनी रही, उस के इतने छोटे सान्निध्य में उस के हृदय की साम्राज्ञी बनी रही. प्रकृति ने कितनी निर्दयता से उस के प्रिय को छीन लिया. अभी तो नील की जुदाई ही सर्पदंश बनी हुई थी, ऊपर से बिना सिरपैर की ये अफवाहें. कैसे निबटे, अहल्या को कुछ नहीं सूझ रहा था. अपने ससुर लालचंद का सामना करने से भी वह कतरा रही थी. पर लालचंद ने हिम्मत नहीं खोई. उन्होंने अहल्या को धैर्य बनाए रखने को कहा. अब बाहर भी अहल्या अकेले ही जाने लगी थी तो लालचंद ने भी जाने की जिद नहीं की. फैक्टरी के माल के निर्यात के लिए बड़े ही उखड़े मन से इस बार वह अकेली ही मुंबई गई. जिस शोरूम के लिए माल निर्यात करना था वहां एक बहुत ही परिचित चेहरे को देख कर वह चौंक उठी. वह व्यक्ति भी विगत के परिचय का सूत्र थामे उसे उत्सुकता से निहार रहा था?.

अहल्या अपने को रोक नहीं सकी और झटके से उस की ओर बढ़ गई. ‘‘तुम गिरीश ही हो न, यहां पर कैसे? ऐसे क्या देख रहे हो, मैं अहल्या हूं. क्या तुम्हें मैं याद नहीं हूं. रसोईघर से चुरा कर न जाने कितने व्यंजन तुम्हें खिलाए होंगे. पकड़े जाने पर बड़ी ताई मेरी कितनी धुनाई कर दिया करती थीं. मुझे मार खाए दो दिन भी नहीं होते थे कि मुंहउठाए तुम पहुंच जाया करते थे. दीनू काका कैसे हैं? पहाड़ी के ऊंचेनीचे रास्ते पर जब भी मेरे या मेरी सहेलियों की चप्पल टूट जाती थी, तो उन की सधी उंगलियां उस टूटी चप्पल को नया बना देती थीं. तुम्हें भी तो याद होगा?’’

अहल्या के इतने सारे प्रश्नों के उत्तर में गिरीश मुसकराता रहा, जिस से अहल्या झुंझला उठी, ‘‘अब कुछ बताओगे भी कि नहीं. काकी की असामयिक मृत्यु से संतप्त हो कर, सभी के मना करने के बावजूद वे तुम्हें ले कर कहीं चले गए थे. सभी कितने दुखी हुए थे? मुझे आज भी सबकुछ याद है.’’

‘‘बाबा मुझे ले कर मेरे मामा के पास कानपुर आ गए थे. वहीं पर जूते की दुकान में नौकरी कर ली और अंत तक करते रहे. पिछले साल ही वे गुजर गए हैं, पर उन की इच्छानुसार मैं ने मन लगा कर पढ़ाई की. एमए करने के बाद मैं ने एमबीए कर लिया और इस शोरूम का फायनांस देखने लगा. पर आप यहां पर क्या कर रही हैं?’’ एक निम्न जाति का बेटा हमउम्र और पहाड़ की एक ही बस्ती में रहने वाली अहल्या को तुम कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका. यही क्या कम है कि कम से कम अहल्या ने उसे पहचान तो लिया. उस से बात भी कर ली, यह क्या कम खुशी की बात है उस के लिए वरना उस की औकात क्या है? ‘‘अरे, यह क्या आपआप की रट लगा रखी है. चलो, कहीं चल कर मैं भी अपनी आपबीती से तुम्हें अवगत करा दूं,’’ कहती हुई अहल्या उसे साथ लिए कुछ देर तक सड़क पर ही चहलकदमी करती रही. फिर वे दोनों एक कैफे में जा कर बैठ गए.

अश्रुपूरित आंखों और रुंधे स्वर में अहल्या ने अपनी आपबीती गिरीश से कह सुनाई, सुन कर उस की पलकें गीली हो गईर् थीं, लेकिन घरबाहर फैली हुई अफवाहों को कह कर अहल्या बिलख उठी. जब तक वह मुंबई में रही, दोनों मिलते रहे. गिरीश के कारण इस बार अहल्या के सारे काम बड़ी आसानी से हो गए. सूरत लौटने के रास्ते तक अहल्या पहाड़ पर बिताए अपने बचपन और गिरीश से जुड़े किस्से याद करती रही. बाद में पढ़ाई के लिए उसे भी तो दिल्ली आना पड़ा था.

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