Rupali Ganguly के बाद Anupamaa की इस एक्ट्रेस को भी हुआ कोरोना, पढ़ें खबर

बौलीवुड से लेकर टीवी के कई सितारे कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. वहीं ये सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. जहां बीते दिनों टीवी के सुपरहिट सीरियल अनुपमा के कई सितारे कोरोना पौजिटीव पाए गए हैं. तो वहीं खबर है कि सीरियल की एक और एक्ट्रेस कोरोना का शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं कौन है ये एक्ट्रेस

किंजल की मां राखी को हुआ कोरोना

दरअसल, सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में किंजल की मां के किरदार में नजर आने वाली एक्ट्रेस तसनीम नेरुरकर (Tassnim Nerurkar) को कोरोना हो गया है. वहीं इसकी जानकारी उन्होंने सोशलमीडिया के जरिए अपने फैंस को दी है.  तसनीम नेरुरकर ने इंस्टाग्राम पर एक लम्बे पोस्ट के साथ एक फोटो शेयर करके फैंस को जानकारी दी है.

 

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पोस्ट के जरिए दी जानकारी

 

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तसनीम नेरुरकर ने फैंस को जानकारी देते हुए पोस्ट में लिखा है, ‘मैं इस पोस्ट के जरिए बताना चाहती हूं कि मुझे कोरोना वायरस हो गया है. मैं इस महामारी से लड़ रही हूं और मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगी. मैं उन सब लोगों से चेकअप कराने की प्रार्थना करती हूं, जो पिछले कुछ दिनों में मुझसे मिले हैं. मैं आप सबसे जल्द ही मिलूंगी लेकिन तब तक मैं आप सबके साथ अपनी रिपोर्ट और कोविड जर्नी के एक्सपीरियंस शेयर करती रहूंगी. इससे लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और वो कोविड से बचकर रह पाएंगे.’

शाह पहुंची है राखी

 

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सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो अनुपमा और वनराज की गैरमौजूदगी में राखी यानी तसनीम नेरुरकर शाह हाउस में नजर आ रही हैं. जहां वह काव्या को शाह परिवार को नुकसान पहुंचाने से बचाने के लिए बा और किंजल की हेल्प करती नजर आ रही हैं. हालांकि तस्नीम के कोरोना पौजिटीव होने के बाद शो की कहानी में एक बार  फिर बदलाव किया जाएगा.

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हर एपिसोड के लिए कितना कमाते हैं ‘अनुपमा’ के ये स्टार्स, जानें यहां

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों सुर्खियों में है. जहां शो की टीआरपी पहले नंबर पर बनी हुई है तो वहीं सीरियल के सेट पर कोरोना का कहर जारी है. दरअसल, हाल ही में रुपाली गांगुली के कोरोना पौजीटिव होने के बाद अब एक और एक्ट्रेस को कोरोना हो गया है. हालांकि आज हम आपको सीरियल की कहानी की नहीं बल्कि शो में जान डालते सितारों की डेली एपिसोड से जुड़ी सैलरी के बारे में बताएंगे, जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.

इतनी रकम लेती हैं अनुपमा

 

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सीरियल अनुपमा से दोबारा टीवी की दुनिया में वापसी करने वाली एक्ट्रेस रुपाली गांगुली अपने हर एपिसोड के लिए 60,000 रुपए लेती हैं, जो शो के सभी कलाकारों में सबसे ज्यादा है.

वनराज की ये है सैलरी

 

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अनुपमा के पति के रोल में नजर आने वाले वनराज यानी सुधांशू पांडे अपने हर एक एपिसोड के लिए 50,000 रुपाए की सैलरी वसूलते हैं.

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इतना कमाती हैं काव्या

बौलीवुड एक्टर मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती से शादी करने वाली एक्ट्रेस मदालसा शर्मा अनुपमा सीरियल में काव्या के रोल में नजर आती हैं. अनुपमा की सौतन के रोल में नजर आने के लिए मदालसा 30,000 रुपए हर एपिसोड के लिए लेती हैं.

तोषू की सैलरी है इतनी

 

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बीते दिनों अनुपमा के सेट पर कोरोना के शिकार होने वाले एक्टर आशिष मेहरोत्रा सीरियल में अनुपमा के बेटे परितोष का किरदार निभाते हैं, जिसके लिए वह हर एपिसोड के 33,000 रुपए की रकम लेते हैं.

समर की इतनी है सैलरी

अनुपमा में वनराज के छोटे बेटे समर शाह के रोल में नजर आने वाले एक्टर पारस कलनावत हर एपिसोड के लिए 35,000 की सैलरी वसूलते हैं.

इतना कमाती हैं पाखी

अनुपमा और वनराज की बेटी पाखी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस मुस्कान बामने कई सीरियल्स में नजर आ चुकी हैं. वहीं इस सीरियल में मुस्कान की सैलरी की बात करें तो वह हर एपिसोड के लिए 27000 रुपए लेती हैं.

 

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बता दें, शो में इन दिनों काव्या पूरी कोशिश कर रही है कि अनुपमा और वनराज का तलाक हो जाए. हालांकि पाखी और पूरा शाह परिवार नही चाहता की तलाक हो, जिसके लिए वह पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वनराज औऱ अनुपमा को काव्या से दूर साथ में रखा जा सके.

गुलामी चाहिए तो धार्मिक बने रहें

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में, जो जिला मुख्यालय धमतरी से 12 किलों मीटर की दूरी पर है वहाँ  माँ अंगोरीमाता का प्रसिद्ध मंदिर है. यहां हर साल दिवाली के बाद पड़ने वाले प्रथम शुक्रवार को मेला लगता है और मडई का आयोजन होता है, यहां मां अंगारमोती के मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए एक लंबी प्रथा चली आ रही है. जिसमें महिलाएं पेट के बल लेटती है और बैगा जनजाति के लोग उनके ऊपर से होकर गुजरते  हैं. इसे परण कहा जाता है. मान्यता है की ऐसा करने से महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है. 2020 में भी 200 से अधिक महिलाएं नींबू, नारियल और अन्य पुजा की सामाग्रीलेकर खुले बाल और पेट के बल लेटी रही और बैगा जनजाति के लोग उन्हें रौंद कर गुजरते रहे.

बता दें कि यहाँ के मडई को देखने के लिए हजारों लोग दूर-दराज के इलाकों से आते हैं. मडई के दिन नि:संतान महिलाएं बड़ी संख्या में यहाँ पहुँचती है. मान्यता है कि इस तरह महिलाओं के लेटने और उनके ऊपर से बैगाओ के गुजरने से माता की कृपा मिलती है और नि:संतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.

2020 में कोरोना ने ऐसी तबाही मचाई कि लोग अपने घरों में कैद हो कर रह गए. इंसान, इंसान से भागने लगें. सड़कें गलियाँ सब सुनी-सुनी हो गई. लोगों को इस बीमारी से बचने का कोई उपाय नहीं मिल रहा था. छुआ-छूत की तरह कोरोना बीमारी लगातार फैलती ही जा रही थी. तब बिहार के एक गाँव, कुशीनगर, में कुछ औरतें कोरोना माई की पुजा-अर्चना करने लगी. उनका कहना था कि करुणा देवी के प्रकोप से यह सब हो रहा है  और वही करुणा देवी, कोरोना बनकर हम सब पर कहर ढाह रही हैं. कोरोना माई की पुजा का दिन भी तय था. उनकी पुजा शुक्रवार और सोमवार को ही की जा सकती थी. महिलाएं लड्डू, फूल,लॉन्ग, दीपक, अगरबती से कोरोना माता की पुजा कर रही थीं.

9 नंबर का कनैक्शन 

पुजा पूरे विधिविधान के साथ किया जा रहा था. कोविड-19 से 9 अंक लेकर महिलाएं, कोरोना माता को हर चीज नौ-नौ चढ़ा रही थी.कई घरों मेंमहिलाएं चकले पर बेलन को खड़ा कर कोरोना माता की पुजा कर रही थी. इसी तरह बिहार के कई इलाकों में कोरोना माई की पुजा अर्चना के नाम पर खूब अंधविश्वास फैलाया गया था. महिलाओं का कहना था कि कोरोना माई कहती हैं कि मेरी पुजा करो तब मैं रक्षा करूंगी. एक महिला से पूछने पर कि कैसे वह कोरोना माई की पुजा करती है?उस पर उसने बताया कि बंजर जमीन पर गद्दा खोदकर फिर उसमें नौ लॉन्ग, नौ लड्डू, नौ फूल चढ़ा कर कोरोना माता की पुजा करती हैं. कोरोना की पुजा में नौ का बड़ा महत्व था.

कुछ और महिलाओं से जब पूछा गया कि उन्हें इसकी जानकारी कहाँ से मिली ? तो उन्होंने बताया कि दो महिलाएं घास काट रही थीं तभी उनके पास एक गाय आई और कहने लगी कि मैं कोरोना माई हूँ. सब मेरी पुजा करो तब मैं रक्षा करूंगी. बस इसलिए सब पुजा करने लगी. जब पूछा गया कि क्या उनके पुजा करनेसे कोरोना भाग जाएगा ? तो उनका जवाब था कि विश्वास पर पुजा कर रहे हैं.

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रामायण में बाल मिलने का अंधविश्वास 

खैर, अभी तो कोरोना वैक्सीन आ चुकी है और कोरोना के मामले भी कम हो रहे हैं. लेकिन जब कोरोना महामारी के कारण त्राहिमाम मचा हुआ था. इस लाइलाज बीमारी की कोई दवा नहीं थी. तब एक और अंधविश्वास ने ज़ोर पकड़ा था और वह था रामायण में बाल मिलना. लोगों के मन में यह अंधविश्वास फैलाया गया था कि रामायण से बाल खोजकर उसको पानी में डालकर पीने से कोरोना वायरस का असर नहीं होगा. इस अंधविश्वास ने इतना ज्यादा ज़ोर पकड़ा था कि लोग रामायण या अन्य धर्मग्रंथ में बाल खोजने लगे और किताब में जहां भी कुछ तिनका जैसा दिखता, लोग उसे बाल समझकर पानी में डालकर पीने लगे थे.

विश्वास या अंधविश्वास 

विश्वास और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कब हम आस्था से अंधविश्वास की ओर चले गए.  अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है, जिसका कोई उचित कारण नहीं होता है. एक छोटा बच्चा अपने घर-परिवार और समाज में जिन परम्पराओं, मान्यताओं को बचपन से देखता एंव सुनता आ रहा होता है, वह भी उन्हीं का अक्षरश: पालन करने लगता है. यह विश्वास का अंधविश्वास बच्चे के मन-मस्तिष्क पर इतना गहरा असर छोड़ देता है कि जीवन भर वह इन अंधविश्वासों से बाहर नहीं निकल पाता है.

बचपन में हम सब ने लगभग अपनी माँ दादी-नानी के मुंह से सती, सावित्री और सीता की कथा जरूर सुनी होगी. यह भी कि कैसे एक स्त्री के पति को कोढ़ हो गया था और वह सती अपने पति को टोकरी में बैठा कर नदी के किनारे नहलाने ले जाया करती थी. एक दिन नदी के किनारे एक वेश्या को नहाते देख कोढ़ी पति को उससे प्यार हो गया. लेकिन वेश्या के फिर न मिलने से वह उदास रहने लगा और जब पत्नी ने उदासी का कारण जाना तो वह खुद उसे उस वेश्या के पास ले जाने का धैर्य बँधाया. एक दिन जब वह अपने पति को उस वेश्या के पास ले जाने लगी तब टोकरी में बैठे पति को नीचे उतार कर कुछ देर सुस्ताने लगी. तभी वहाँ से कुछ साधूसंत गुजर रहे थे. साधुओं को बड़ी ज़ोर की दुर्गंध आई और तब उन्होंने शाप दिया की जिस भी प्राणी से यह दुर्गंध आ रही है, सूर्यास्त होते ही उसकी मृत्यु हो जाए. तब उस सती ने सूरज को भी आँख दिखाया कि कैसे उसकी मर्ज़ी के बिना वह उसके पति को ले जा सकते हैं. कथा के अनुसार उस स्त्री का सतीत्व परम बलशाली था जिस के आगे सूर्य देवता को भी झुकना पड़ा था. कहानी के माध्यम से महिलाओं को यह सिखलाया जाता है की पति कैसा भी हो, वह तुम्हारा परमेश्वर है. उसकी खुशी के लिए जो भी करना पड़े, जितना भी कष्ट उठाना पड़े, उस में तुम्हारा सौभाग्य है और धर्म भी.

धार्मिक कहानियों के माध्यम से महिलाओं को बचपन से ही पिलाई जाने वाली जन्म घुट्टी है. अधिकांश धार्मिक कथा-कहानियों  में नैतिक शिक्षाओं और प्राचीनकाल से चली आ रही व्यवस्थाओं की घुट्टी स्त्री को ही पिलाई जाती है. ज़्यादातर महिलाएं अपने परिवार की सलामती के लिए महीने में दो-चार व्रत-उपवास तो करती ही है. अपने पति-बेटे और परिवार की सलामती के लिए ही महिलाएं बाबाओं के चरणों में लोट जाती है. वो जो कहते है करती जाती है. कोई भी कसर नहीं छोड़ती पुजा-व्रत करने में. और बाबा इसी का फायदा उठाकर धर्म के नाम पर महिलाओं का शोषण करते हैं.

आसाराम से लेकर वीरेंद्र दीक्षित, राम रहीम तक….. इन सभी बाबाओं ने धर्म के नाम पर महिलाओं की आबरू के साथ खिलवाड़ किया.   चाहे साउथ के नित्यानन्द हो या इच्छाधारी बाबा सब ने धर्म के नाम पर महिलाओं को ठगा ही. हरियाणा के फ़रीदाबाद में खुद को कथावाचक बताने वाले ढोंगी बाबा ललितानन्द ने पहले एक महिला के घर भागवत कथा की और इसके बाद उसने महिला को सम्मोहित करके कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया. बल्कि, उस महिला के पति बेटे को जान से मारने की धमकी देते हुए नगदी और जेवरात भी हड़प लिए. महिलाएं न चाहते हुए भी धर्म के जंजाल में इसलिए फँसती जाती है ताकि उसका पति बेटा और परिवार सलामत रहे और इसी का फायदा उठकर बाबा अपने मन का उससे करवाते जाते हैं.

पुर्णिमा की शादी जब 27  साल पर भी नहीं हो पा रही थी तब बाबा ने उसे ‘जड़’ पुजा का उपाय बताया, जो 21 दिन तक चलने वाली पुजा थी. उस पंडित जी का कहना था कि इस गुप्त पुजा के करने से जल्द ही उसकी शादी हो जाएगी. लेकिन इसपुजा में सुबह अंधेरे, जब कोई देख न पाए, उस जड़ को खोदकर निकालना होगा. मगर ध्यान रहे,जड़ बीच से टूटने न पाए.  उस गुप्त पुजा में प्याज, लहसुन या तामसी भोजन नहीं खाना था.  सुबह शाम दोनों समय भगवान का मंत्र जाप, आरती,हवन करना जरूरी था, और सबसे बड़ी बात की लड़की मासिक धर्म न होने पाए, वरना पुजा खंडित हो जाएगा. मन न होने के बाद भी, अपनी माँ के डर से  पुर्णिमा को सुबह-शाम मंत्र जाप, और भगवान की आरती करनी पड़ती थी जिससे वह काफी थक जाती थी.  समय की बर्बादी और पढ़ाई का नुकसान हो रहा था सो अलग. उस उबाऊ पुजा से वह बोर होने लगी थी. यह सब अब उसे ढकोसला लगने लगा था. लेकिन कहे किससे ? क्योंकि उसकी माँ तो खुद उस बाबा की परम भक्त थी. जैसे फैमिली डॉक्टर होते हैं न. ठीक वैसे ही वह बाबा, पुर्णिमा के फैमिली बाबा थे. घर में कोई भी समस्या हो बाबा के पास चले जाओ, सब सुलझा देते थे.

लेकिन पुजा के बीच में ही पुर्णिमा का मासिक धर्म आ गया. माँ यह बोलकर रोने लगी कि बेटी का भाग्य ही खराब है तभी पुजा  खंडित हो गया.  लेकिन फिर बाबा जी ने उसी पुजा को 21 की जगह चालीस दिन करने को कह दिया तो पुर्णिमा को रोना आ गया कि आखिर क्यों लड़कियों को ही यह सब करना पड़ता है, वह भी तब जब उसका मन नहीं है ? आखिर क्यों अच्छा पति पाने के लिए लड़कियों से ही व्रत उपवास करवाया जाता है ?

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आज भी अच्छे पति की चाह में लड़कियां सोलह सोमवार, गुरुवार और मंगलवार का व्रत रखती है. ऐसी मान्यता है कि कोई लड़की यदि पूरी श्रधा के साथ ये व्रत-उपवास रखती है तो उसे मनचाहा पति प्राप्त होता है. गुजरात में एक व्रत होता है जिसे जयापार्वती व्रत कहते हैं. यह व्रत युवा लड़कियों से लेकर चार-पाँच साल की बच्चियाँ भी रखती हैं. माना जाता है कि पाँच दिन के इस कठिन व्रत को जो भी श्रद्धा-भक्ति के साथ करता है उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और लड़की को मनचाहा पति प्राप्त होता है. यह पाँच दिन चलने वाला व्रत, फलाहार या बिना नमक वाले भोजन पर ही रखना पड़ता है. पति बच्चों की लंबी उम्र के लिए या मनचाहा वर पाने के लिए, व्रत-उपवास, पुजा-पाठ कोई आज की बात नहीं है. यह तो बचपन से पिलाई गई जन्म घुट्टी है जो लड़की बड़े होने पर भी करती है.

अंजलि, बदला हुआ नाम, एक बड़े सरकारी ऑर्गनाइज़ेशन में अच्छे पोस्ट पर कार्यरत है. उसके पापा भी जॉब में हैं और उसकी माँ एक अस्पताल में नर्स है. अंजली खुद महीने के लाख-सवा लाख तनख्वा उठाती है, इसलिए उसे पैसों की कोई समस्या नहीं है, ज़िंदगी बहुत सही चल रही है उसकी. लेकिन फिर भी वह हर मंगलवार और गुरुवार का व्रत रखती है. कारण, उसे मनचाहा पति मिल सके.गरीब और अशिक्षित परिवारों में तो यह बात समझ में आती कि शिक्षा के अभाव में इन्हें नहीं पता कि व्रत-उपवास करने से अच्छा पति नहीं पाया जा सकता. लेकिन अंजली जैसी पढ़ी लिखी शिक्षित लड़की, जो खुद सक्षम है वह क्यों धर्म की गुलाम बनी हुई है ?यह बात कुछ समझ नहीं आया. पूछने पर हँसते हुए बोली कि उसकी माँ ऐसा चाहती है तो करना पड़ता है. और सभी लड़कियां अच्छे पति की कामना से ऐसा व्रत करती हैं. यानि मन न होने पर भी लड़कियों की ऐसे सब व्रत करने पड़ते हैं ताकि अच्छा घर-वर मिल सके.

व्रत को अगर आस्था से जोड़ा जाता है तो स्वाभाविक है की वहाँ विश्वास भी होगा और अंधविश्वास भी. अपने विश्वास की वजह से लोगों ने ऐसे-ऐसे नियम बना रखें हैं कि अगर उसमें जरा भी कमी हो जाए तो उसे अपशगुन से जोड़ दिया जाता है. व्रत में अगर किसी को उल्टी हो जाए तो उस व्रत को खंडित मान लिया जाता है. व्रत के समय अगर किसी महिला को पीरियड आ जाए तो कहा जाता है कि व्रत फलता नहीं है. सबसे बड़ा अंधविश्वास तो करवाचौथ के व्रत को लेकर है. ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है इसलिए इसको लेकर महिला किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेती. भले ही उसकी तबीयत कितनी भी खराब क्यों न हो व्रत नहीं छोड़ सकतीं. नवरात्र में बहुत से लोग सिर्फ लॉन्ग खा कर बिता देते हैं. ऐसा  वो करते आ रहे हैं इसलिए डर की वजह से छोड़ नहीं पाते. चाहे स्वास्थ्य खराब हो जाए. लेकिन आज भी व्रत को लेकर ऐसे नियम कायदे बने हुए हैं जहां व्रत आस्था नहीं, बल्कि डर की वजह से किया जाता है कि कहीं कोई अपशगुन न हो जाए.

समाज औरतों के लिए हमेशा से पक्षपाती रहा है. औरतों की आजादी से डरा-घबराया पितृसत्तात्मक समाज औरतों को अपने नियंत्रण से बाहर जाने नहीं देना चाहता है, इसलिए उस पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए वह धर्म का बखूबी इस्तेमाल करता है. औरतों को गुलाम बनाए रखने के लिए धर्म ही सबसे मजबूत और आसान जरिया है उनके लिए. सवाल औरतों की नैतिकता, उसकी शारीरिक इच्छा का हो, तो नियंत्रण और अधिक बढ़ जाता है. पितृसत्तात्मक समाज में इसकी शुरुआत कब से हुई इसके बारे में ठीक तरह से तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन महिलाओं के व्रत रखने के पीछे उसके हमेशा आश्रय में रहने की स्थिति को ब्याँ जरूर करता है. वशिष्ठ धर्मसूत्र में लिखा है कि ‘पिता रक्षति कौमारे, भ्राता रक्षति यौवने, रक्षति स्थविरे पुत्रा, न स्त्री स्वातंत्रमहर्ति’ इसका अर्थ है कि कुंवारी अवस्था में नारी की रक्षा पिता करेंगे, यौवन में पति और बुढ़ापे में पुत्र. नारी स्वतंत्रता के योग्य नहीं है. पिता, पति, बेटा आश्रय के रूप में बदलते रहते हैं.

औरतों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उसे अपने जीवन में किसी न किसी सहारे की जरूरत तो पड़ेगी ही. इसलिए एक औरत पति-पुत्र की सलामती के लिए व्रत-पुजा-उपवास करती है. पितृसत्तात्मक सोच ने यहाँ महिलाओं को यह समझाया है कि वह भले ही व्रत अपने पति-पुत्र की लंबी उम्र के लिए कर रही है, पर असल में स्वार्थ उनका ही है क्योंकि वह खुद बेसहारा नहीं होना चाहती है. तीज, करवाचौथ, जीतिया, छठ, सप्तमी यह सारे व्रत महिलाएं अपने पति और बेटे की लंबी उम्र के लिए करती हैं. महिलाओं के लिए व्रत के काफी विधिविधान हैं. लेकिन पुरुष हमेशा आराध्य के आसन पर आसीन रहे हैं.

जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, तब एक धोबी के कहने पर उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था और यह परीक्षा खुद उनके पति श्रीराम  ने लिए लिए थे ताकि प्रजा का मान रख सके. यहाँ तक कि समाज द्वारा उठाए जानेवाले सवालों के चलते और अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने के चलते श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग कर दिया था.

आज भी होती है सतीत्व की परीक्षा 

कुछ सालों पहले राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पिछड़ी बगारिया बिरादरी की चौदह महिलाओं को एक मंदिर में अपने सतीत्व की परीक्षा से गुजरना पड़ा था. पंचो ने महिलाओं को गर्म तेल से भरे कड़ाही में हाथ डालकर पक रहे पकवान को निकालने पर विवश किया था ताकि वह अपने पवित्र होने का प्रमाण दे सके. गर्म तेल में हाथ डालने से महिलाओं का हाथ बुरी तरह से जल गया था. घायल महिलाओं को इलाज के लिए गुजरात लाया गया था. अपनी गलती मानने के बजाय बगारिया बिरादरी के लोगों का कहना था कि उनके यहाँ यह प्रथा सदियों से चली आ रही है.

हर बार औरत को ही अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है. चाहे त्रेता युग में सीता बनकर या द्वापरयुग में द्रोपदी बनकर और आज  कलयुग में भी हर कदम पर औरत को अग्नि परीक्षा देनी ही पड़ती है. हालांकि आज परीक्षा देने के मायने बदल गए हैं. बेटी के घर देर से आने पर आज भी उससे सौ सवाल पूछे जाते हैं. पर बेटा घर से दो दिन भी गायब रहे, कोई कुछ नहीं पूछता, क्योंकि वह पुरुष है.

धर्म, औरतों को कंट्रोल करने का एक बहुत बड़ा हथियार पौराणिक जमाने से है. महिलाओं को पुजा, धर्म-कर्म में धकेल  कर पुरुष बाहर रंगरेलियाँ मनाता रहा है. वह कई औरतों से संबंध रखे, कोई बात नहीं है. लेकिन एक स्त्री के लिए पति के अलावा पराए पुरुष को देखना तक पाप माना गया है.

विकास के इस युग में भी स्त्री पर लाख पाबन्दियाँ 

आज हर तरफ महिला सशक्तिकरण की आवाजें गूंज रही है. हर क्षेत्र में स्त्री अग्रणी होती जा रही है. वह आज पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं है. लेकिन यह सशक्तिकारण सिर्फ मुट्ठी भर महिलाओं की है. बाकी की अधिकतर महिलाएं  आज भी शोषित और घर की चारदीवारी में कैद है. महिलाएं आज न सिर्फ आर्थिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी पिछड़ी हुई हैं. सक्षम होते हुए भी कई महिलाएं पुरुषों के इशारे पर चलती हैं. महिलाओं के दिमाग में शुरू से ही एक बात गठरी की तरह बांध दी गई है कि उन्हें बच्चे संभालना है, सास-ससुर की सेवा करना है, घर-परिवार देखना है.

लेकिन महिलाओं की इस गुलामी की वजह भी महिलाएं ही हैं. घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं, एक लड़की के मासिक धर्म होने पर उसे सब से अलग-थलग कर देती हैं.  वह मंदिर, किचन यहाँ तक की पुरुषों के सामने नहीं जा सकती, आचार पापड़ नहीं छु सकती, पेड़ में पानी नहीं डाल सकतीं, क्योंकि इस समय वह अछूत होती है. पंडितों का भी कहना है कि मासिक धर्म के दौरान किचन में जाकर खाना पकाने से औरत कुतिया बन जाती है. मासिक धर्म के दौरान अगर औरतें पेड़ में पानी डाल दे तो पेड़ सूख जाता है. उनका साया भी अगर पुरुषों पर पड़ जाए तो वह बीमार हो सकता है. इसलिए मासिक धर्म के दौरान कहीं-कहीं महिलाओं को आज भी एक अछूत की तरह घर का कोना पकड़ा दिया जाता है.

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स्त्री आज भी उपेक्षित क्यों 

‘सिमोन द बोउआर लिखती हैं कि यूरोप के कुछ देश व समाज में लड़कियों के विवाह से पहले कोमार्य भंग करने की कुप्रथा है. क्योंकि एक मिथक कि कौमार्य के समय का खून जहर के समान खतरनाक होता है पति के लिए. इसलिए लड़कियों के कौमार्य को नुखिले पत्थर से भंग किया जाता है. औरतों के लिए बहुत से दर्द कुदरत ने नहीं, बल्कि इन्सानों ने भी पैदा किए हैं.

धर्म चाहे कोई भी हो, सब में कुछ न कुछ कुरीतियाँ हैं जिनके साथ तर्क-वितर्क करना धर्म के ठेकेदारों को कतई पसंद नहीं है. लोगों की आँखों में धर्म, रीतिरिवाज का ऐसा पर्दा पड़ा है कि कुछ तार्किक ढंग से सोच ही नहीं सकते. धर्म और रीतिरिवाज के नाम पर औरतों के मन में ऐसा बीज बो दिया जाता है कि औरत ही औरत की शोषक बन जाती है. उदाहरण के तौर पर,आज भी गाँवों में बूढ़ी लाचार औरतों को डायन का नाम देकर उस पर पत्थर बरसाए जाते हैं और लोग तमाशा देखते हैं.

जारी है महिलाओं के साथ भेदभाव 

आज पुरुष और महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. महिलाएं आसमान की ऊंचाइयों को छु रही है,लेकिन लिंग आधारित भेदभाव अब भी मौजूद है. हाल ही में एक दवा कंपनी में एक 26 वर्षीय महिला को पदोन्नति सिर्फ इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि उसकी जल्द ही शादी होने वाली थी.  समाज ने औरतों को उड़ने के लिए पंख तो दिया. मगर धर्म, पति परिवार की बेड़ियों के साथ, ताकि वह उड़ तो सके लेकिन सीमाओं के बंधन में रहकर.

कहीं पढ़ा था. एक पति इसलिए अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता था क्योंकि उसने अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखने से इंकार कर दिया. पति का कहना था उसकी पत्नी अपने कर्तव्य का ठीक ढंग से पालन नहीं करती, उसकी पत्नी उसके लिए करवा चौथ का व्रत भी नहीं रखती है और उसके परिवार के साथ दिवाली जैसे त्योहार भी नहीं मनाती है. और भी काफी शिकायतें थी उसे अपनी पत्नी से लेकिन मेन मुद्दा करवा चौथ का था.

हमारे समाज में धर्म के नाम पर ही स्त्री को ज्यादा प्रताड़ित होना पड़ता है, क्योंकि सारे पवित्र ग्रन्थों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है, जिसमें स्त्री के समानता और अधिकार कहीं नहीं है. चाहे सीता हो या द्रोपदी, सब धर्म के गुलाम बनी रही लेकिन इसका अंजाम क्या हुआ यह भी सब को पता है.

1920 के दशक में सनातन धर्म की मुख्य सोच थी कि हिन्दू धर्म खतरे में हैं और ये खतरा इस्लाम और अंग्रेजों के आने से शुरू हुआ, नहीं तो हिन्दू धर्म हर क्षेत्र में अव्वल था. सोच है कि इस्लाम और अंग्रेज के भारत आने के बाद हिन्दू सभ्यता भ्रष्ट हो गया और जरूरत थी उसी पुराने जमाने में जाने की जब की हिन्दू समाज चरम पर था. यानि पुरुष का काम था बाहर जाकर कमाना, शिक्षा ग्रहण करना और औरतों का काम था घर में रह कर बच्चे पैदा करना, पति सास-ससुर की सेवा करना, अपने पति-बच्चे परिवार की सलामती के लिए पुजा, आरती, भजन कृतन करना. और जब पति काम से लौटे तो एक पत्नी के कर्तव्य के अनुसार,पति के चित को शांत करना. स्त्री को भीतरी दुनिया का रानी बतलाया गया था जो बेहद ही कठिन और निराशाजनक और चुनौतियों से भरा हुआ था.

विशेषांकों को पढ़ें, तो साफ पता चलता है कि महिला से जुड़े हर मुद्दे पर पुरुषों की सोच हावी दिखती है. वह क्या खाएगी, कहाँ जाएगी,क्या पहनेगी,किससे कितना बात करेगी, किससे नहीं, सब कुछ पुरुष ही तय करते हैं. नहीं करने पर वह बाचाल, चरित्रहीन कहलाने लगती हैं.

स्त्रियॉं से यह उम्मीद की जाती है कि वह पति पारायण बनी रहे. ना चाहते हुए भी पति-बेटे और परिवार की सलामती के लिए व्रत-उपवास, भजन आरती करती रहे. पति के हर अच्छे बुरे व्यवहार को सहन करे, साथ ही परपुरुष के आकर्षण से भी दूर रहे. लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा कोई उपदेश नहीं है. सदियों से औरतों को कोमलांगी मानकर उसपर कभी धर्म के नाम पर तो कभी परिवार के नाम पर जुल्म किए जाते रहे हैं. आज 21वीं सदी में भी महिलाओं और बच्चियों पर अत्याचार हो रहे हैं. महिलाओं के आत्मा को कुचलकर उसे धर्म की अंधेरी कोठरी में धकेल दिया गया है जिससे वह चाह कर भी निकल नहीं पा रहीं हैं. वह इसलिए, ताकि स्त्री पुरुष की आजादी में हस्तक्षेप न कर सके. आज महिलाएं धर्म की गुलाम बनकर रह गईं है. इस गुलामी से वह आजाद होना चाहती भी है, तो समाज-परिवार की सोच ने उनकी आँखों पर धर्म की ऐसी पट्टी बांध दी है जिससे वह निकल नहीं पा रही है. कम पढ़ी लिखी या अशिक्षित ही नहीं, बल्कि पढ़ी लिखी महिलाएं भी धर्म के जंजाल में उलझ गई है. धर्म ने महिलाओं के विचारक्षमता को गुलाम बना दिया है.

धर्म के नाम पर मासूम बच्चियों को नर्क में धकेलने की प्रथा आज भी कायम है 

देवदासी प्रथा की शुरुआत छठी और सातवीं शताब्दी के आसपास हुई थी. इस प्रथा का प्रचलन मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, महाराष्ट्र में बढ़ा. दक्षिण भारत में खासतौर पर चोल,चेला और पांडयाओं के शासन काल में ये प्रथा खूब फला-फुला. लेकिन आज भी कई प्रदेशों में देवदासी की प्रथा का चलन जारी है. हमारे आधुनिक समाज में छोटी-छोटी बच्चियों को धर्म के नाम पर देवदासी बनने पर मजबूर किया जाता है. इसके पीछे भी अंधविश्वास तो हैं ही, गरीबी भी एक बड़ी वजह है. कम उम्र में लड़कियों को उनके मातापिता ही उन्हें देवदासी बनने पर मजबूर करते हैं.

बता दें कि आजादी से पहले और बाद भी सरकार ने देवदासी प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए कानून बनाए थे, पिछले 20 से भी ज्यादा सालों से पूरे देश में इस प्रथा का प्रचलन बंद हो चुका था. कर्नाटक सरकार ने 1982 में और आंध्रप्रदेश सरकार ने 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया था. लेकिन राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग ने 2013 में बताया था कि अभी भी देश में लगभग 4,50,000 देवदासियाँ हैं. एक आंकड़ें के मुताबिक, सिर्फ तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में लगभग 80,000 देवदासियाँ हैं.

जो औरत धर्म का दामन छोड़ देतीं हैं वो गुलामी की सबसे बड़ी जंजीर तोड़ देती हैं और आर्थिक रूप से पुरुष के बराबर हो जाती हैं. क्योंकि कहीं न कहीं धर्म की गुलाम महिलाएं मानसिक रूप से पुरुषों से कभी बराबरी की नहीं सोच पाती और पुरुष सत्ता को बरकरार रखने में उसका साथ देती हैं. कई औरतें खुद पुरुषों के बराबरी का नहीं सोच पाती, क्योंकि उन्हें लगता है ऐसा करने से सामाजिक ढांचा टूट जाएगा और उनकी आर्थिक जरूरतें पूरी करने वाला कोई नहीं रहेगा. वो पुरुषों से बराबरी की चाह नहीं रखती क्योंकि हर धर्म में औरत को पुरुष की दासी बनने की सीख दी जाती है. पति कैसा भी हो पर एक स्त्री के लिए वह उसका परमेश्वरहोता हैं. स्त्री का परमेश्वर उसे मारे-पिटे या फिर जला कर मार ही क्यों न डाले, पर वह उसका पालनहार है.

कहने को तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. हम पूरी तरह से आधुनिक हैं, शिक्षित हैं. हम अन्तरिक्ष और चाँद पर घर बसाने का सोच रहे हैं. लेकिन पुजा-धर्म, बाबा, पंडित, अंधविश्वसों से हम आज भी आजाद नहीं हो पाए हैं. उनके बिना हम एक कदम भी नहीं चल सकते हैं. हमारा हर काम मुहूर्त के हिसाब से होता है.

आज भी अंधविश्वास के कारण ही बच्चों की बली दी जाती है, औरतों को जला कर मारा जाता है, पैदा होने से पहले आज भी बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है. काला जादू, भूत-प्रेत, पशु बाली, डायन प्रथा, बाल विवाह से लेकर काँच के टूटने, बिल्ली के रास्ता काटने, पीछे से टोकने व नंबरों को अंधविश्वास के नजरिए से देखा जाता है.

इस पितृसत्तात्मक समाज में शुरू से ही जान-बूझकर महिलाओं को धर्म में धकेला गया, उन्हें धर्म का गुलाम बना कर रखा गया ताकि पुरुष उस पर अपना आधिपत्य जमा सके. बात अगर बराबरी का ही है तो फिर पुरुष भी क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए निर्जला व्रत रख सकते हैं ? शरीर को कष्ट देना हो या भोजन का त्याग करना हो, यह सिर्फ महिलाओं के हिस्से क्यों ?

लेकिन अब महिलाओं को ही यह बात समझनी होगी किहमेंधर्म, अंधविश्वास, और पाखंड का गुलाम नहीं बनना है, बल्कि मिलकर इसका बहिष्कार करना है. जो स्त्रियोंकी गरिमा को दीमक की तरह चाट रहा है.

जानें कैसे होंगे भविष्य के स्मार्टफोन्स

लेखिका- शाहनवाज

एक समय था जब लोग बटन वाला कीपैड फोन चलाया करते थे. फिर कुछ समय बाद मार्केट में टचस्क्रीन फोन लौंच हुए तो लोगों ने उसे स्मार्टफोन की दुनिया में ऐसी अनोखी चीज मान लिया जिस की किसी ने कल्पना भी न की थी. स्मार्टफोन में समय के साथसाथ एक के बाद एक इतने फीचर जुड़ने शुरू हो गए कि अब फोन मात्र स्मार्टफोन नहीं, बल्कि स्मार्टफोन का महत्त्व पहले की तुलना में इस से कई गुना ज्यादा बढ़ चुका है. स्मार्टफोन का महत्त्व आज इतना है कि हमारे जीवन में कोई सब से नजदीक है तो वह स्मार्टफोन है.

स्मार्टफोन की दुनिया में आएदिन हर पल कुछ न कुछ नए बदलाव होते रहते हैं. महीनेभर पहले जो स्मार्टफोन हमें नया लगता है, कुछ दिनों बाद मार्केट में उस से भी एडवांस और अच्छा स्मार्टफोन लौंच हो जाता है. देश की अर्थव्यवस्था का विकास हो या न हो लेकिन स्मार्टफोन के क्षेत्र में हर दिन विकास देखा जा सकता है. ऐसे में सवाल यह है कि हम आने वाले समय में किस तरह के स्मार्टफोन लौंच होते हुए देख सकते हैं?

1.  फोल्डेबल, फ्लैक्सिबल, स्ट्रैचेबल, ग्लास डिस्प्ले स्मार्टफोन्स

सैमसंग गैलेक्सी फोल्ड और मोटोरोला रेजर 2019 जैसे कई डिवाइसों के साथ 2019 में फोल्डेबल स्मार्टफोन्स लोगों की नजर में आ गए थे. फोल्डेबल फोन्स का कौंसैप्ट बेशक पुराना हो लेकिन यकीनन आने वाले समय में फोल्डेबल फोन्स स्मार्टफोन की दुनिया में सब से अनोखे होंगे और अधिक लोकप्रिय भी.
आने वाले समय में स्मार्टफोन के डिस्प्ले में कई तरह के बदलावों में फ्लैक्सिबल डिस्प्ले, स्ट्रैचेबल डिस्प्ले, ग्लास डिस्प्ले वाले स्मार्टफोन भी देखने को मिल सकते हैं. यह ठीक वैसा ही एक्सपीरियंस होगा जैसे हौलीवुड की साईफाई फिल्मों में ऐक्टर्स गैजेट्स का इस्तेमाल करते दिखाई देते हैं. जिसे देख सब के दिलों में यह ख्वाहिश जागती है कि काश, उन्हें भी यह सब इस्तेमाल करने को मिलता.

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2. पोर्ट्स को बायबाय करना पड़ सकता है

मोबाइल में पोर्ट्स का अर्थ उन सभी चीजों से है जिस से हम अपने फोन के साथ कोई दूसरा अटैचमैंट करते हैं. उदाहरण के लिए गाने सुनने के लिए हम हैडफोन का जैक अपने फोन में सैट करते हैं या फिर फोन की बैटरी चार्ज करने के लिए चार्जर पोर्ट का इस्तेमाल करते हैं. भविष्य में इस बात की पूरी गुंजाइश है कि फोन के साथ हर एक चीज वायरलैस हो जाएगी.

वायरलैस चार्जिंग का आविष्कार तो हो ही चुका है. इस के साथसाथ आजकल कई फोन ऐसे लौंच हो रहे हैं जिन में 3.5 एमएम का हैडफोन जैकपोर्ट को हटा दिया गया है. भविष्य में यह संभव है कि सभी स्मार्टफोन्स से पोर्ट हटा दिए जाएंगे और डिवाइस को पूरी तरह से वायरलैस बना दिया जाएगा.

3. ज्यादा रियर कैमरे देखने को मिल सकते हैं

यदि हम वर्तमान समय की ही बात करें तो यह सभी को पता है कि आजकल सभी स्मार्टफोन कंपनियों के फ्लैगशिप फोन्स में ज्यादा से ज्यादा 4 या 5 कैमरे देखने को मिल ही जाएंगे. एक मेन लैंस, एक वाइडएंगल लैंस, एक मैक्रो लैंस, एक एआई लैंस इत्यादि पहले से ही आजकल के स्मार्टफोन्स में उपलब्ध हैं. लेकिन भविष्य में स्मार्टफोन में कैमरों की संख्या इस से भी ज्यादा हो सकती है. यही नहीं, वर्तमान में सब से ज्यादा मेगापिक्सल की संख्या 108 (शाओमी एमआई नोट 10) है, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भविष्य में इस की संख्या कितनी और बढ़ सकती है.

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4. इंटीग्रेटेड सिम

वर्तमान में स्मार्टफोन में सिमकार्ड डाल कर ही किसी से संपर्क किया जा सकता है. लेकिन भविष्य के स्मार्टफोन डिवाइस में सिमकार्ड की ट्रे मौजूद ही नहीं होगी. भविष्य में हर नए स्मार्टफोन में ईसिम को डिफौल्ट रूप से शामिल किए जाने की उम्मीद है. बता दें कि ईसिम के इस नए फीचर को पहले भी आईफोन 11, सैमसंग गैलेक्सी फोल्ड, गूगल पिक्सल 4 और मोटोरोला रेजर में इस्तेमाल किया जा चुका है जिसे हो सकता है कि आने वाले समय में इस टैक्नोलौजी को हर फोन में इनपुट किया जाएगा.

9 टिप्स: जौइंट फैमिली में कैसे जोड़ें रिश्तों के तार

तापसी की शादी संयुक्त परिवार में हुई थी. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक रहा पर बाद में तापसी को घुटन महसूस होने लगी. हर बार कहीं जाने से पहले पुनीत का अपने मातापिता से पूछना, कोई भी कार्य उन से पूछे बिना न करना, इन सब बातों से तापसी के अंदर एक मौन आक्रामकता सी आ गई. पुनीत के यह कहने पर कि वह ये सब मम्मीपापा के सम्मान के लिए कर रहा है, तापसी के गले नहीं उतरता. वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी पर अपने सासससुर के कारण कभी किसी लेट नाइट पार्टी में शामिल नहीं होती थी.

कपड़े भी बस सूट या ज्यादा से ज्यादा जींसकुरती पहन लेती थी. अपने सहकर्मियों

को हर तरह की ड्रैस पहने और लेट नाइट पार्टी ऐंजौय करते देख कर उसे बहुत गुस्सा आता था. तापसी ने पुनीत से शादी की पहली वर्षगांठ में तोहफे के रूप में अपने लिए एक अलग घर मांग लिया.

उधर तापसी के पति के साथसाथ उस के सासससुर को भी सम झ नहीं आ रहा था कि आखिर तापसी ऐसा क्यों चाहती है. बहुत सम झाने के बाद भी जब कोई हल न निकला तो पुनीत ने अलग फ्लैट ले लिया. तापसी कुछ दिन बेहद खुश रही. उस ने फ्लैट को अपने तरीके से सजाया. ढेर सारी अपनी पसंद के कपड़ों की शौपिंग करी पर एक माह के भीतर ही घरदफ्तर संभालते हुए थक कर चूर हो गई. काम पहले भी नौकर ही करते थे पर सासससुर के घर पर रहने से सारे काम समय से और सही ढंग से होते थे. अब पूरा घर बेतरतीब रहता था.

तापसी ने गहराई से सोचा तो उसे यह भी सम झ आया कि उस ने कभी अपने सासससुर से लेट नाइट पार्टी, दोस्तों को घर बुलाने के लिए या अपनी पसंद के कपड़े पहनने के लिए पूछा ही नहीं था. उस के मन में सासससुर को ले कर एक धारणा थी जिस वजह से तापसी कभी उन के करीब नहीं जा पाईर् थी. अब चाह कर भी वह किस मुंह से उन के पास जाए.

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अगर आप इस उदाहरण पर गौर करें तो एक बात सम झ आएगी कि तापसी ने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि उसे अपने सासससुर के मुताबिक जिंदगी जीनी पड़ेगी पर उस ने इस बाबत कभी किसी से बात नहीं करी. उधर पुनीत ने भी कभी तापसी के भीतर बसे डर को सम झने की कोशिश नहीं

करी. बस यह सोच कर आजकल की पत्नियां ऐसी ही होती हैं, वह अलग फ्लैट में शिफ्ट हो गया था.

उधर नितिन की जब से शादी हुई थी उस के मम्मीपापा की बस यही शिकायत रहती थी कि वह अपना सारा समय और ध्यान अपनी पत्नी चेतना को ही देता है, जबकि असलियत में ऐसा कुछ नहीं था. नितिन की कंपनी में

बहुत वर्क प्रैशर था. इस वजह से वह घर में कम समय दे पाता था, इसलिए जो समय वह पहले अपने मातापिता को देता था अब चेतना को देता था. उस के मम्मीपापा उसे सम झ नहीं पाएंगे, ऐसी उसे उम्मीद नहीं थी. उन के व्यवहार से आहत हो कर 2 माह के भीतर ही वह अलग हो गया.

अब नितिन के मम्मीपापा को एहसास हो रहा था कि नितिन और चेतना के साथ रहने से कितने ही छोटेछोटे काम जो चुटकियों में हो जाते थे अब पहाड़ जैसे लगने लगे हैं.

संयुक्त परिवार के फायदे भी हैं तो थोड़ेबहुत नुकसान भी हैं और यह बहुत नैचुरल भी है, क्योंकि जब चार बरतन एकसाथ रहेंगे तो खटकेंगे भी. मगर जहां बच्चे लड़ते झगड़ते भी अपने मातापिता के साथ मजे से जिंदगी गुजार लेते हैं वहीं उन्हीं बच्चों के विवाह के बाद रिश्तों का समीकरण बदल जाता है. जो बच्चे कभी जान से भी अधिक प्यारे थे वे अब अजनबी लगने लगते हैं.

साथ रहना क्यों नहीं मंजूर

आइए, पहले बात करते हैं उन कारणों की, जिन की वजह से शादी के बाद कोई भी युवती संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती है फिर भले ही शादी से पहले वह खुद भी संयुक्त परिवार में रह रही थी.

1. पर्सनल स्पेस

यह आजकल के युवाओं के शब्दकोश में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है. शादी के तुरंत बाद पतिपत्नी को अधिक से अधिक समय एकसाथ बिताना पसंद होता है, क्योंकि उस समय वे एकदूसरे को सम झ रहे होते हैं पर इस नाजुक और रोमानी वक्त पर बड़ों की अनावश्यक टोकाटाकी चाहे उन के फायदे के लिए ही क्यों न हो एक बंधन जैसी प्रतीत होती है.

2. रस्मों रिवाज का जाल

जब नईनवेली दुलहन को सास के साथ रहना होता है, तो उसे न चाहते हुए भी बहुत सारी रस्में जैसे नहा कर ही रसोई में जाना, पूर्णमासी का व्रत रखना, गुरुवार को बाल न धोना, ससुराल पक्ष में किसी के आने पर सिर को ढक कर रखना इत्यादि मानना पड़ता है, जिस के कारण उसे घुटन महसूस होने लगती है.

3. आर्थिक आजादी

संयुक्त परिवार में कभीकभी यह भी देखने को मिलता है कि बेटेबहू को पूरी तनख्वाह सासससुर के हाथ में देनी होती है और अगर तनख्वाह नहीं देनी होती है, तो घर की पूरी आर्थिक जिम्मेदारी बेटेबहू के कंधों पर डाल दी जाती है. ऐेसे में उन्हें अपने हिसाब से खर्च करने की बिलकुल मोहलत नहीं मिलती है.

4. घरेलू राजनीति

सासबहू की राजनीति केवल एकता कपूर के सीरियल तक ही सीमित नहीं होती है. यह वास्तव में भी संयुक्त परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है. एकदूसरे के रिवाजों या रहनसहन के तरीकों पर छींटाकशी, खुद को दूसरे से बेहतर साबित करने की खींचतान के चक्कर में कभीकभी सास और बहू दोनों ही बहुत निचले स्तर तक चली जाती हैं.

5. कैसे बनेगी बात

बस जरूरत है बड़ों को थोड़ा और दिल बड़ा करने की और छोटों को अपने

स्वभाव में थोड़ी सहनशीलता लाने की. अगर दोनों ही पीढि़यां इन छोटेछोटे पर काम के सु झावों पर ध्यान दें तो आप का घर संवर सकता है:

6. खुल कर बातचीत करें

बेटे की शादी के बाद उस के वैवाहिक जीवन को ठीक से पनपने के लिए उन्हें प्राइवेसी अवश्य दें. अगर आप को अपनी परवरिश पर भरोसा है तो आप का बेटा आप का ही रहेगा. अगर आप लोग नए जोड़े को पर्सनल स्पेस या प्राइवेसी देंगे तो  वे भी अवश्य आप का सम्मान करेंगे. कोई  बात अच्छी न लगी हो तो मन में रखने के  बजाय बेटे और बहू को एकसाथ बैठा कर  सम झा दें पर उन की बात सम झने की भी  कोशिश करें और फिर एक सा झा रास्ता भी निकाल लें ताकि आप लोग बिना किसी शिकायत के उस रास्ते पर चल सकें.

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7. क्योंकि सास भी कभी बहू थी

अपने वैवाहिक जीवन की तुलना भूल कर भी अपने बेटेबहू के जीवन से न करें. आप के बेटे के जीवन में हर तरह का तनाव है. बारबार यह ताना न मारें कि वह ससुराल के रस्मोंरिवाजों को नहीं निबाह रही है. जमाना बदल गया है और जीवनशैली भी. आप के बच्चे तनावयुक्त जीवन जी रहे हैं. अगर बच्चे खुद आप के पास नहीं आते तो आप खुद उन के पास जा कर एक बार प्यार से उन के नए रिश्ते और काम के बारे में पूछ कर तो देखें, उन्हें आप की आप से ज्यादा जरूरत है.

8. साथी हाथ बढ़ाना

घर एक संगठित इकाई की तरह ही होता है. आप सिर्फ नौकरी से रिटायर हुए हैं, जीवन से नहीं. अगर आप के बच्चे घर की लोन की किस्त भरते हैं तो आप फलदूध या राशन का सामान ला सकते हैं. घर के कार्यों में यथासंभव योगदान करें. अपने पोतेपोती की देखभाल करने से आप नौकर नहीं बन जाएंगे. मगर उतनी ही जिम्मदारी लें जितनी लेने की आप की सेहत इजाजत दे.

9. खुले दिल से तारीफ करें

अगर आप को अपने बेटे या बहू की कोई बात बुरी लगती है तो उसे पास बैठा कर खुल कर बात करें. इसी तरह उन की अच्छी बातों की भी तारीफ कर अकसर यह देखने में आता है कि कमी निकालने में हम एक क्षण की भी देरी नहीं करते पर तारीफ हम दिल में ही रख लेते हैं. अत: खुले दिल से हर अच्छे कार्य की तारीफ करेंगे तो उन के साथसाथ आप का मन भी खिल उठेगा.

Yeh Rishta… में एक बार फिर दुल्हन बनेंगी Shivangi Joshi, ब्राइडल लुक हुआ वायरल

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के मेकर्स शो की कहानी में नया मोड़ लाने की तैयारी कर रहे हैं. जहां बीते दिन मेकर्स ने करण कुंद्रा की शो में एंट्री को लकर नया प्रोमो रिलीज कर दिया है तो वहीं जल्द होने वाली कार्तिक और सीरत की शादी का लुक भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है. दरअसल, सीरत यानी शिवांगी जोशी एक बार फिर ब्राइडल लुक में नजर आने वाली हैं, जिसकी वीडियो ने सोशलमीडिया पर धमाल मचा दिया है. आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी जोशी के ब्राइडल लुक की खास फोटोज…

ब्राइडल लुक में नजर आईं शिवांगी.

दरअसल, सीरियल में जल्द ही सीरत और कार्तिक की शादी होने वाली है, जिसके चलते हाल ही में शिवांगी जोशी ने अपने ब्राइडल लुक में एक वीडियो शेयर की है. वीडियो में शिवांगी जोशी नई-नवेली दुल्हन बनी दिखाई दे रही हैं. हैवी ज्वैलरी के साथ शिवांगी का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है. हालांकि वीडियो में उनका पूरा ब्राइडल लुक नहीं दिख रहा है. लेकिन फैंस इस लुक को लेकर काफी खुश हैं औऱ जल्द ही एपिसोड के रिलीज होने का इंतजार कर रहे हैं.

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सगाई में था कुछ यूं लुक

 

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हाल ही में रिलीज हुए प्रोमो की बात करें तो सगाई के फंक्शन में सीरत का क्या फैसला होगी इसकी झलक दिखाई जाएगी. हालांकि शिवांगी के इस प्रोमो में दिखाए गए लुक की बात करें तो क्रीम कलर के लहंगे में शिवांगी जोशी बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

पहले भी सीरियल में बनी हैं दुल्हन

 

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शिवांगी जोशी सीरियल में कई बार ब्राइडल लुक में नजर आ चुकी हैं, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया है. वहीं कई बार शिवांगी जोशी के ब्राइडल लुक रो फैंस ने कौपी भी किया है.

वेस्टर्न ब्राइडल लुक में आईं नजर

सीरियल में शिवांगी जोशी ने वेस्टर्न ब्राइडल लुक यानी वाइट गाउन में भी अपना फैशन दिखाया है, जो फैंस को पसंद भी आया है.

फोटोशूट के लिए भी किया है ब्राइडल लुक कैरी

सीरियल के अलावा शिवांगी ने एक फोटोशूट के लिए भी ब्राइडल लुक कैरी किया है, जो सोशलमीडिया पर काफी वायरल भी हुआ था.

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5 टिप्स: रिबौन्डिंग करते समय बरतें ये सावधानियां

आज हर महिला मौडर्न दिखना चाहती है, जिस के लिए चाहे फिर बात हो आउटफिट्स की, मेकअप की या फिर हेयरस्टाइल की. वह हरदम नए-नए एक्सपेरिमेंट करना पसंद करती है ताकि देखने वाले बस उन्हें देखते रह जाएं. ऐसे में अगर आप अपने बालों की रिबौंडिंग से  नया टच देने के बारे में सोच रही हैं तो इन बातों का भी ध्यान रखें ताकि आपका लुक आपको स्टाइलिश दिखाए न कि आपके बालों को ही खराब कर दे. आइए इसके बारे में जानते हैं दिल्ली के गेट सेट यूनिसेक्स सैलून के मैनेजर एंड हेयर एक्सपर्ट समीर से.

1. बदलते मौसम में रिबौंडिंग करवाएं तो

बदलते मौसम या उमस के मौसम में रिबौंडिंग बिल्कुल न करवाएं, क्योंकि यह मौसम इसके लिए अनुकूल नहीं होता है और अगर करवाएं भी तो ज्यादा देर गीला ना रखें. वरना बालों के टैक्सचर पर इसका असर पड़ सकता है.

2. जरूर करवाए एलर्जी टेस्ट

रीबॉन्डिंग की तकनीक का असर आपकी त्वचा पर भी पड़ता है, क्योंकि सिर का यह भाग भी त्वचा ही होती है. इस प्रक्रिया के अंर्तगत प्रयोग किये गए रसायन सबके ऊपर एक तरह काम नहीं करते हैं. कई लोगों को इससे परेशानी भी हो सकती है. यही कारन है कि रिबॉन्डिंग से पहले एलर्जी टेस्ट भी किया जाता है, जिससे यह पता चल जाता है कि इस केमिकल से आपकी त्वचा पर कोई नकारात्मक असर तो नहीं पड़ता है.

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3. सही हो उत्पाद

रिबॉन्डिंग करवाने के बाद आप नियमित रूप से इस्तेमाल करने वाले शैम्पू और कंडीशनर का उपयोग नहीं कर सकती हैं. बालों पर केमिकल के इस्तेमाल के बाद खास तरह के प्रोडक्ट्स का उपयोग जरुरी हो जाता है. अपने हेयर स्टाइलिश से पूछकर शैम्पू व कंडीशनर का इस्तेमाल करें.साथ ही बालों को अधिक न धोए, क्योकि ऐसा करने से बाल अधिक रूखे और घुंघराले हो जाते हैं.

4. बालों की सुरक्षा

रिबॉन्डिंग करवाने के बाद बाल कमजोर होने लगते हैं. इसलिए बालों को धूप से बचाएं. जब भी बाहर निकले तो बालों में सीरम लगाना न भूलें.

5. बारबार न करवाएं रिबॉन्डिंग

रिबॉन्डिंग करवाने के बाद बाल कमजोर होने लगते हैं , इसलिए इनकी सेहत दुरूस्त होने तक इन्हे प्राप्त समय दें. कम से कम 6 महीने तक कोई हेयर ट्रीटमेंट न लें. बार बार केमिकल्स के इस्तेमाल से बाल हमेशा के लिए ख़राब हो सकते हैं. रिबॉन्डिंग करवाने के बाद अगर आपके बाल दोमुंहे हो रहे हैं तो उन्हें तुरंत कटवा लें.

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प्रतिदिन: क्यों मिसेज शर्मा को देखकर चौंक गई प्रीति

Serial Story: प्रतिदिन– भाग 3

‘‘सुमित्रा आगे बताने लगी कि भाभी यह जान कर कि हम अब यहीं आ कर रहेंगे, खुश नहीं हुईं बल्कि कहने लगीं, ‘जानती हो कितनी महंगाई हो गई है. एक मेहमान के चायपानी पर ही 100 रुपए खर्च हो जाते हैं.’ फिर वह उठीं और अंदर से कुछ कागज ले आईं. सुमित्रा के हाथ में पकड़ाते हुए कहने लगीं कि यह तुम्हारे मकान की रिपेयरिंग का बिल है जो किराएदार दे गया है. मैं ने उस से कहा था कि जब मकानमालिक आएंगे तो सारा हिसाब करवा दूंगी. 14-15 हजार का खर्चा था जो मैं ने भर दिया.

‘‘‘रात खानेपीने के बाद देवरानी व जेठानी एकसाथ बैठीं तो यहांवहां की बातें छिड़ गईं. सुमित्रा कहने लगी कि दीदी, यहां भी तो लोग अच्छा कमातेखाते हैं, नौकरचाकर रखते हैं और बडे़ मजे से जिंदगी जीते हैं. वहां तो सब काम हमें अपने हाथ से करना पड़ता है. दुख- तकलीफ में भी कोई मदद करने वाला नहीं मिलता. किसी के पास इतना समय ही नहीं होता कि किसी बीमार की जा कर खबर ले आए.’

‘‘भाभी का जला दिल और जल उठा. वह बोलीं कि सुमित्रा, हमें भरमाने की बातें तो मत करो. एक तुम्हीं तो विलायत हो कर नहीं आई हो…और भी बहुत लोग आते हैं. और वहां का जो यशोगान करते हैं उसे सुन कर दिल में टीस सी उठती है कि आप ने विलायत रह कर भी अपने भाई के लिए कुछ नहीं किया.

‘‘सुमित्रा ने बात बदलते हुए पूछा कि दीदी, उस सुनंदा का क्या हाल है जो यहां स्कूल में प्रिंसिपल थी. इस पर बड़ी भाभी बोलीं, ‘अरे, मजे में है. बच्चों की शादी बडे़ अमीर घरों में कर दी है. खुद रिटायर हो चुकी है. धन कमाने का उस का नशा अभी भी नहीं गया है. घर में बच्चों को पढ़ा कर दौलत कमा रही है. पूछती तो रहती है तेरे बारे में. कल मिल आना.’

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‘‘अगले दिन सुमित्रा से सुनंदा बड़ी खुश हो कर मिली. उलाहना भी दिया कि इतने दिनों बाद गांव आई हो पर आज मिलने का मौका मिला है. आज भी मत आतीं.

‘‘सुनंदा के उलाहने के जवाब में सुमित्रा ने कहा, ‘लो चली जाती हूं. यह तो समझती नहीं कि बाहर वालों के पास समय की कितनी कमी होती है. रिश्तेदारों से मिलने जाना, उन के संदेश पहुंचाना. घर में कोई मिलने आ जाए तो उस के पास बैठना. वह उठ कर जाए तो व्यक्ति कोई दूसरा काम सोचे.’

‘‘‘बसबस, रहने दे अपनी सफाई,’ सुनंदा बोली, ‘इतने दिनों बाद आई है, कुछ मेरी सुन कुछ अपनी कह.’

‘‘आवभगत के बाद सुनंदा ने सुमित्रा को बताया तुम्हारी जेठानी ने तुम्हारा घर अपना कह कर किराए पर चढ़ाया है. 1,200 रुपए महीना किराया लेती है और गांवमहल्ले में सब से कहती फिरती है कि सुमित्रा और देवरजी तो इधर आने से रहे. अब मुझे ही उन के घर की देखभाल करनी पड़ रही है. सुमित्रा पिछली बार खुद ही मुझे चाबी दे गई थी,’ फिर आगे बोली, ‘मुझे लगता है कि उस की निगाह तुम्हारे घर पर है.’

‘‘‘तभी भाभी मुझ से कह रही थीं कि जिस विलायत में जाने को हम यहां गलतसही तरीके अपनाते हैं, उसी को तुम ठुकरा कर आना चाहती हो. तेरे भले की कहती हूं ऐसी गलती मत करना, सुमित्रा.’

‘‘सुनंदा बोली, ‘मैं ने अपनी बहन समझ कर जो हकीकत है, बता दी. जो भी निर्णय लेना, ठंडे दिमाग से सोच कर लेना. मुझे तो खुशी होगी अगर तुम लोग यहां आ कर रहो. बीते दिनों को याद कर के खूब आनंद लेंगे.’

‘‘सुनंदा से मिल कर सुमित्रा आई तो घर में उस का दम घुटने लगा. वह 2 महीने की जगह 1 महीने में ही वापस लंदन चली आई.

‘‘‘विनोद भाई, तुम्हीं कोई रास्ता सुझाओ कि क्या करूं. इधर से सब बेच कर इंडिया रहने की सोचूं तो पहले तो घर से किराएदार नहीं उठेंगे. दूसरे, कोई जगह ले कर घर बनाना चाहूं तो वहां कितने दिन रह पाएंगे. बच्चों ने तो उधर जाना नहीं. यहां अपने घर में तो बैठे हैं. किसी से कुछ लेनादेना नहीं. वहां तो किसी काम से भी बाहर निकलो तो जासूस पीछे लग लेंगे. तुम जान ही नहीं पाओगे कि कब मौका मिलते ही तुम पर कोई अटैक कर दे. यहां का कानून तो सुनता है. कमी तो बस, इतनी ही है कि अपनों का प्यार, उन के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते.’’

‘‘‘बात तो तुम्हारी सही है. थोडे़ सुख के लिए ज्यादा दुख उठाना तो समझदारी नहीं. यहीं अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करो,’’ विनोद ने उन्हें सुझाया था.

‘‘अब जब सारी उम्र खूनपसीना बहा कर यहीं गुजार दी, टैक्स दे कर रानी का घर भर दिया. अब पेंशन का सुख भी इधर ही रह कर भोगेंगे. जिस देश की मिट्टीपानी ने आधी सदी तक हमारे शरीर का पोषण किया उसी मिट्टी को हक है हमारे मरने के बाद इस शरीर की मिट्टी को अपने में समेटने का. और फिर अब तो यहां की सरकार ने भारतीयों के लिए अस्थिविसर्जन की सुविधा भी शुरू कर दी है.

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‘‘विनोद, मैं तो सुमित्रा को समझासमझा कर हार गया पर उस के दिमाग में कुछ घुसता ही नहीं. एक बार बडे़ बेटे ने फोन क्या कर दिया कि मम्मी, आप दादी बन गई हैं और एक बार अपने पोते को देखने आओ न. बस, कनाडा जाने की रट लगा बैठी है. वह नहीं समझती कि बेटा ऐसा कर के अपने किए का प्रायश्चित करना चाहता है. मैं कहता हूं कि उसे पोते को तुम से मिलाने को इतना ही शौक है तो खुद क्यों नहीं यहां आ जाता.

‘‘तुम्हीं बताओ दोस्त, जिस ने हमारी इज्जत की तनिक परवा नहीं की, अच्छेभले रिश्ते को ठुकरा कर गोरी चमड़ी वाली से शादी कर ली, वह क्या जीवन के अनोखे सुख दे देगी इसे जो अपनी बिरादरी वाली लड़की न दे पाती. देखना, एक दिन ऐसा धत्ता बता कर जाएगी कि दिन में तारे नजर आएंगे.’’

‘‘यार मैं ने सुना है कि तुम भाभी को बुराभला भी कहते रहते हो. क्या इस उम्र में यह सब तुम्हें शोभा देता है?’’ एक दिन विनोद ने शर्माजी से पूछा था.

‘‘क्या करूं, जब वह सुनती ही नहीं, घर में सब सामान होते हुए भी फिर वही उठा लाती है. शाम होते ही खाना खा ऊपर जा कर जो एक बार बैठ गई तो फिर कुछ नहीं सुनेगी. कितना पुकारूं, सिर खपाऊं पर जवाब नहीं देती, जैसे बहरी हो गई हो. फिर एक पैग पीने के बाद मुझे भी होश नहीं रहता कि मैं क्या बोल रहा हूं.’’

पूरी कहानी सुनातेसुनाते दीप्ति को लंच की छुट्टी का भी ध्यान न रहा. घड़ी देखी तो 5 मिनट ऊपर हो गए थे. दोनों ने भागते हुए जा कर बस पकड़ी.

घर पहुंचतेपहुंचते मेरे मन में पड़ोसिन आंटी के प्रति जो क्रोध और घृणा के भाव थे सब गायब हो चुके थे. धीरेधीरे हम भी उन के नित्य का ‘शबद कीर्तन’ सुनने के आदी होने लगे.

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Serial Story: प्रतिदिन– भाग 1

प्रीति अपने पड़ोस में रहने वाले वृद्ध दंपती मिस्टर एंड मिसेज शर्मा के आएदिन के आपसी झगड़ों से काफी हैरान परेशान थी. लेकिन एक दिन सहेली दीप्ति के घर मिसेज शर्मा को देख कर चौंक गई. और वह दीप्ति से मिसेज शर्मा के बारे में जानने की जिज्ञासा को दबा न सकी.

कहते हैं परिवर्तन ही जिंदगी है. सबकुछ वैसा ही नहीं रहता जैसा. आज है या कल था. मौसम के हिसाब से दिन भी कभी लंबे और कभी छोटे होते हैं पर उन के जीवन में यह परिवर्तन क्यों नहीं आता? क्या उन की जीवन रूपी घड़ी को कोई चाबी देना भूल गया या बैटरी डालना जो उन की जीवनरूपी घड़ी की सूई एक ही जगह अटक गई है. कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर घटा होगा उन के जीवन में जो उन्हें असामान्य किए रहता है और उन के अंदर की पीड़ा की गालियों के रूप में बौछार करता रहता है.

मैं विचारों की इन्हीं भुलभुलैयों में खोई हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने रिसीवर उठाया.

‘‘हाय प्रीत,’’ उधर से चहक भरी आवाज आई, ‘‘क्या कर रही हो…वैसे मैं जानती हूं कि तू क्या कर रही होगी. तू जरूर अपनी स्टडी मेज पर बैठी किसी कथा का अंश या कोई शब्दचित्र बना रही होगी. क्यों, ठीक  कहा न?’’

‘‘जब तू इतना जानती है तो फिर मुझे खिझाने के लिए पूछा क्यों?’’ मैं ने गुस्से में उत्तर दिया.

‘‘तुझे चिढ़ाने के लिए,’’ यह कह कर हंसती हुई वह फिर बोली, ‘‘मेरे पास बहुत ही मजेदार किस्सा है, सुनेगी?’’

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मेरी कमजोरी वह जान गई थी कि मुझे किस्सेकहानियां सुनने का बहुत शौक है.

‘‘फिर सुना न,’’ मैं सुनने को ललच गई.

‘‘नहीं, पहले एक शर्त है कि तू मेरे साथ पिक्चर चलेगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं. मुझे तेरी शर्त मंजूर नहीं. रहने दे किस्साविस्सा. मुझे नहीं सुनना कुछ और न ही कोई बकवास फिल्म देखने जाना.’’

‘‘अच्छा सुन, अब अगर कुछ देखने को मन करे तो वही देखने जाना पड़ेगा न जो बन रहा है.’’

‘‘मेरा तो कुछ भी देखने का मन नहीं है.’’

‘‘पर मेरा मन तो है न. नई फिल्म आई है ‘बेंड इट लाइक बैखम.’ सुना है स्पोर्ट वाली फिल्म है. तू भी पसंद करेगी, थोड़ा खेल, थोड़ा फन, थोड़ी बेटियों को मां की डांट. मजा आएगा यार. मैं ने टिकटें भी ले ली हैं.’’

‘‘आ कर मम्मी से पूछ ले फिर,’’ मैं ने डोर ढीली छोड़ दी.

मैं ने मन में सोचा. सहेली भी तो ऐसीवैसी नहीं कि उसे टाल दूं. फोन करने के थोड़ी देर बाद वह दनदनाती हुई पहुंच जाएगी. आते ही सीधे मेरे पास नहीं आएगी बल्कि मम्मी के पास जाएगी. उन्हें बटर लगाएगी. रसोई से आ रही खुशबू से अंदाजा लगाएगी कि आंटी ने क्या पकाया होगा. फिर मांग कर खाने बैठ जाएगी. तब आएगी असली मुद्दे पर.

‘आंटी, आज हम पिक्चर जाएंगे. मैं प्रीति को लेने आई हूं.’

‘सप्ताह में एक दिन तो घर बैठ कर आराम कर लिया करो. रोजरोज थकती नहीं बसट्रेनों के धक्के खाते,’ मम्मी टालने के लिए यही कहती हैं.

‘थकती क्यों नहीं पर एक दिन भी आउटिंग न करें तो हमारी जिंदगी बस, एक मशीन बन कर रह जाए. आज तो बस, पिक्चर जाना है और कहीं नहीं. शाम को सीधे घर. रविवार तो है ही हमारे लिए पूरा दिन रेस्ट करने का.’

‘अच्छा, बाबा जाओ. बिना गए थोड़े मानोगी,’ मम्मी भी हथियार डाल देती हैं.

फिर पिक्चर हाल में दीप्ति एकएक सीन को बड़ा आनंद लेले कर देखती और मैं बैठी बोर होती रहती. पिक्चर खत्म होने पर उसे उम्मीद होती कि मैं पिक्चर के बारे में अपनी कुछ राय दूं. पर अच्छी लगे तब तो कुछ कहूं. मुझे तो लगता कि मैं अपना टाइम वेस्ट कर रही हूं.

जब से हम इस कसबे में आए हैं पड़ोसियों के नाम पर अजीब से लोगों का साथ मिला है. हर रोज उन की आपसी लड़ाई को हमें बरदाश्त करना पड़ता है. कब्र में पैर लटकाए बैठे ये वृद्ध दंपती पता नहीं किस बात की खींचातानी में जुटे रहते हैं. बैक गार्डेन से देखें तो अकसर ये बड़े प्यार से बातें करते हुए एकदूसरे की मदद करते नजर आते हैं. यही नहीं ये एकदूसरे को बड़े प्यार से बुलाते भी हैं और पूछ कर नाश्ता तैयार करते हैं. तब इन के चेहरे पर रात की लड़ाई का कोई नामोनिशान देखने को नहीं मिलता है.

हर रोज दिन की शुरुआत के साथ वृद्धा बाहर जाने के लिए तैयार होने लगतीं. माथे पर बड़ी गोल सी बिंदी, बालों में लाल रिबन, चमचमाता सूट, जैकट और एक हाथ में कबूतरों को डालने के लिए दाने वाला बैग तथा दूसरे हाथ में छड़़ी. धीरेधीरे कदम रखते हुए बाहर निकलती हैं.

2-3 घंटे बाद जब वृद्धा की वापसी होती तो एक बैग की जगह उन के हाथों में 3-4 बैग होते. बस स्टाप से उन का घर ज्यादा दूर नहीं है. अत: वह किसी न किसी को सामान घर तक छोड़ने के लिए मना लेतीं. शायद उन का यही काम उन के पति के क्रोध में घी का काम करता और शाम ढलतेढलते उन पर शुरू होती पति की गालियों की बौछार. गालियां भी इतनी अश्लील कि आजकल अनपढ़ भी उस तरह की गाली देने से परहेज करते हैं. यह नित्य का नियम था उन का, हमारी आंखों देखा, कानों सुना.

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हम जब भी शाम को खाना खाने बैठते तो उधर से भी शुरू हो जाता उन का कार्यक्रम. दीवार की दूसरी ओर से पुरुष वजनदार अश्लील गालियों का विशेषण जोड़ कर पत्नी को कुछ कहता, जिस का दूसरी ओर से कोई उत्तर न आता.

मम्मी बहुत दुखी स्वर में कहतीं, ‘‘छीछी, ये कितने असभ्य लोग हैं. इतना भी नहीं जानते कि दीवारों के भी कान होते हैं. दूसरी तरफ कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा.’’

मम्मी चाहती थीं कि हम भाईबहनों के कानों में उन के अश्लील शब्द न पड़ें. इसलिए वह टेलीविजन की आवाज ऊंची कर देतीं.

खाने के बाद जब मम्मी रसोई साफ करतीं और मैं कपड़ा ले कर बरतन सुखा कर अलमारी में सजाने लगती तो मेरे लिए यही समय होता था उन से बात करने का. मैं पूछती, ‘‘मम्मी, आप तो दिन भर घर में ही रहती हैं. कभी पड़ोस वाली आंटी से मुलाकात नहीं हुई?’’

‘‘तुम्हें तो पता ही है, इस देश में हम भारतीय भी गोरों की तरह कितने रिजर्व हो गए हैं,’’ मम्मी उत्तर देतीं, ‘‘मुझे तो ऐसा लगता है कि दोनों डिप्रेशन के शिकार हैं. बोलते समय वे अपना होश गंवा बैठते हैं.’’

‘‘कहते हैं न मम्मी, कहनेसुनने से मन का बोझ हलका होता है,’’ मैं अपना ज्ञान बघारती.

कुछ दिन बाद दीप्ति के यहां प्रीति- भोज का आयोजन था और वह मुझे व मम्मी को बुलाने आई पर मम्मी को कहीं जाना था इसीलिए वह नहीं जा सकीं.

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