खोखली होती जड़ें: भाग 4

‘‘ठीक हो जाएगा सबकुछ, परेशान मत हो, सत्यम…मंदी कोई हमेशा थोड़े ही रहने वाली है…एक न एक दिन तुम दोबारा अमेरिका चले जाओगे…उसी तरह बड़ी कंपनी में नौकरी करोगे.’’

मेरी बात में सांत्वना तो थी ही पर उन की स्वार्थपरता पर करारी चोट भी थी. मैं ने जता दिया था, जिस दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा तुम पहले की ही तरह हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चले जाओगे. सत्यम कुछ नहीं बोला, निरीह नजरों से मुझे देखने लगा. मानो कह रहा हो, कब तक नाराज रहोगी. बच्चों का दाखिला भी उस ने दौड़भाग कर अच्छे स्कूल में करा दिया.

‘‘इस स्कूल की फीस तो काफी ज्यादा है सत्यम…इस नौकरी में तू कैसे कर पाएगा?’’

‘‘बच्चों की पढ़ाई तो सब से ज्यादा जरूरी है मम्मी…उन की पढ़ाई में विघ्न नहीं आना चाहिए. बच्चे पढ़ जाएंगे… अच्छे निकल जाएंगे तो बाकी सबकुछ तो हो ही जाएगा.’’

वह आश्वस्त था…लगा सौरभ ही जैसे बोल रहे हैं. हर पिता बच्चों का पालनपोषण करते हुए शायद यही भाषा बोलता है…पर हर संतान यह भाषा नहीं बोलती, जो इतने कठिन समय में सत्यम ने हम से बोली थी. मेरा मन एकाएक कसैला हो गया. मैं उठ कर बालकनी में जा कर कुरसी पर बैठ गई. भीषण गरमी के बाद बरसात होने को थी. कई दिनों से बादल आसमान में चहलकदमी कर रहे थे, लेकिन बरस नहीं रहे थे. लेकिन आज तो जैसे कमर कस कर बरसने को तैयार थे. मेरा मन भी पिछले कुछ दिनों से उमड़घुमड़ रहा था, पर बदरी थी कि बरसती नहीं थी.

मन की कड़वाहट एकाएक बढ़ गई थी. 5 साल पुराना बहुत कुछ याद आ रहा था. सत्यम के आने से पहले सोचा था कि उस को यह ताना दूंगी…वह ताना दूंगी… सौरभ ने भी बहुत कुछ कहने को सोच रखा था पर क्या कर सकते हैं मातापिता ऐसा…वह भी जब बेटा अपनी जिंदगी के सब से कठिन दौर से गुजर रहा हो.

एकाएक बाहर बूंदाबांदी शुरू हो गई. मैं ने अपनी आंखों को छुआ तो वहां भी गीलापन था. बारिश हलकीहलकी हो कर तेज होने लगी और मेरे आंसू भी बेबाक हो कर बहने लगे. मैं चुपचाप बरसते पानी पर निगाहें टिकाए अपने आंसुओं को बहते हुए महसूस करती रही.

तभी अपने कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो सत्यम खड़ा था… चेहरे पर कई भाव लिए हुए… जिन को शब्द दें तो शायद कई पन्ने भर जाएं. मैं ने चुपचाप वहां से नजरें हटा दीं. वह पास पड़े छोटे से मूढ़े को खिसका कर मेरे पैरों के पास बैठ गया. कुछ देर तक हम दोनों ही चुप बैठे रहे. मैं ने अपने आंसुओं को रोकने का प्रयास नहीं किया.

‘‘मम्मी, क्या मुझे इस समय बच्चों को इतने बड़े स्कूल में नहीं डालना चाहिए था…मैं ने सोचा जो भी थोड़ीबहुत बचत है, उन की पढ़ाई का तब तक का खर्चा निकल जाएगा…हम तो जैसेतैसे गुजरबसर कर ही लेंगे, जब तक मंदी का समय निकलता है…क्या मैं ने ठीक नहीं किया, मम्मी?’’

सत्यम ने शायद बातचीत का सूत्र यहीं से थामना चाहा, ‘‘आखिर, पापा ने भी तो हमेशा मेरी पढ़ाईलिखाई पर अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च किया.’’

सत्यम के इन शब्दों में बहुत कुछ था. लज्जा, अफसोस…पिता के साथ किए व्यवहार से…व पिता के अथक प्रयासों व त्याग को महसूस करना आदि.

‘‘तुम ने ठीक किया सत्यम, आखिर सभी पिता यही तो करते हैं, लेकिन अपने बच्चों को पालते हुए अपने बुढ़ापे को नहीं भूलना चाहिए. वह तो सभी पर आएगा. संतान बुढ़ापे में तुम्हारा साथ दे न दे पर तुम्हारा बचाया पैसा ही तुम्हारे काम आएगा. संतान जब दगा दे जाएगी… मंझधार में छोड़ कर नया आसमान तलाशने के लिए उड़ जाएगी…तब कैसे लड़ोगे बुढ़ापे के अकेलेपन से. बीमारियों से, कदम दर कदम, नजदीक आती मृत्यु की आहट से…कैसे? सत्यम…आखिर कैसे…’’ बोलतेबोलते मेरा स्वर व मेरी आंखें दोनों ही आद्र हो गए थे.

मेरे इतना बोलने में कई सालों का मानसिक संघर्ष था. पति की बीमारी के समय जीवन से लड़ने की उन की बेचारगी की कशमकश थी. अपनी दोनों की बिलकुल अकेली सी बीती जा रही जिंदगी का अवसाद था और शायद वह सबकुछ भी जो मैं सत्यम को जताना चाहती थी…कि जो कुछ उस ने हमारे साथ किया अगर इन क्षणों में हम उस के साथ करें…हर मातापिता अपनी संतान से कहना चाहते हैं कि जो हमारा आज है वही उन का कल है…लेकिन आज को देख कर कोई कल के बारे में कहां सोचता है, बल्कि कल के आने पर आज को याद करता है.

सत्यम थोड़ी देर तक विचारशून्य सा बैठा रहा, फिर एकाएक प्रायश्चित करते हुए स्वर में बोला, ‘‘मम्मी, मुझे माफ नहीं करोगी क्या?’’

मैं ने सत्यम की तरफ देखा, वह हक से माफी भी नहीं मांग पा रहा था क्योंकि वह समझ रहा था कि वह माफी का भी हकदार नहीं है.

सत्यम ने मेरे घुटनों पर सिर रख दिया, ‘‘मम्मी, मेरे किए की सजा मुझे मिल रही है. मैं जानता हूं कि मुझे माफ करना आप के व पापा के लिए इतना सरल नहीं है फिर भी धीरेधीरे कोशिश करो मम्मी…अपने बेटे को माफ कर दो. अब कभी आप दोनों को छोड़ कर नहीं जाऊंगा…मुझे यहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी…आप दोनों का बुढ़ापा अब अकेले नहीं बीतेगा…मैं हूं आप का सहारा…अपनी जड़ों को अब और खोखला नहीं होने दूंगा. जो बीत गया मैं उसे वापस तो नहीं लौटा सकता पर अब अपनी गलतियों को सुधारूंगा,’’ कह कर सत्यम ने अपनी बांहें मेरे इर्दगिर्द लपेट लीं जैसे वह बचपन में करता था.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, मम्मी,’’ नीमा भी सत्यम की बगल में बैठती हुई बोली, ‘‘हमें अपने किए पर बहुत पछतावा है…पापा से भी कहिए कि वह हम दोनों को माफ कर दें. हमारा कृत्य माफी के लायक तो नहीं पर फिर भी हमें अपनी गलतियां सुधारने का मौका दीजिए,’’ कह कर नीमा ने मेरे पैर पकड़ लिए.

दोनों बच्चे इस तरह से मेरे पैरों के पास बैठे थे. सोचा था अब तो जीवन यों ही अकेला व बेगाना सा निकल जाएगा… बच्चे हमें कभी नहीं समझ पाएंगे पर हमारा प्यार जो उन्हें नहीं समझा पाया वह कठिन परिस्थितियां समझा गईं.

‘‘बस करो सत्यम, जो हो गया उसे हम तो भूल भी चुके थे. जब तुम सामने आए तो सबकुछ याद आ गया. पर माफी मुझ से नहीं अपने पापा से मांगो, बेटा… मां का हृदय तो बच्चों के गलती करने से पहले ही उन्हें क्षमा कर देता है,’’ कह कर मैं स्नेह से दोनों का सिर सहलाने लगी.

सत्यम अपनी भूल सुधारने के लिए मेरे पैरों से लिपटा हुआ था.

‘‘जाओ सत्यम, पापा अपने कमरे में हैं. दोनों उन के दोबारा खुरचे घावों पर मरहम लगा आओ…मुझे विश्वास है कि उन की नाराजगी भी अधिक नहीं टिक पाएगी.’’

सत्यम व नीमा हमारे कमरे की तरफ चले गए. अकस्मात मेरा मन जैसे परम संतोष से भर गया था. बाहर बारिश पूरी तरह रुक गई थी, हलकी शीतल लालिमा चारों तरफ फैल गई थी जिस में सबकुछ प्रकाशमय हो रहा था.

खोखली होती जड़ें: भाग 1

अमेरिका से हमारे बेटे सत्यम का फोन था. फोन सुन कर सौरभ बालकनी की तरफ चले गए. क्या कहा होगा सत्यम ने फोन पर…मैं दुविधा में थी…फिर थोड़ी देर तक सौरभ के वापस आने का इंतजार कर मैं भी बालकनी में चली गई. सौरभ खोएखोए से बालकनी में खड़े बाहर बारिश को देख रहे थे. मैं भी चुपचाप जा कर सौरभ की बगल में खड़ी हो गई. जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि सत्यम के फोन अब कम ही आते थे. वह पिछले 5 साल से अमेरिका में था. इस से पहले वह मुंबई में नियुक्त था. अमेरिका से वह इन 5 सालों में एक बार भी भारत नहीं आया था.

सत्यम उन संतानों में था जो मातापिता के कंधों पर पैर रख कर सफलता की छलांग तो लगा लेते हैं लेकिन छलांग लगाते समय मातापिता के कंधों को कितना झटका लगा, यह देखने की जहमत नहीं उठाते. थोड़ी देर मैं सौरभ के कुछ बोलने की प्रतीक्षा करती रही फिर धीरे से बोली, ‘‘क्या कहा सत्यम ने?’’

‘‘सत्यम की नौकरी छूट गई है,’’ सौरभ निर्विकार भाव से बोले.

नौकरी छूट जाने की खबर सुन कर मैं सिहर गई. यह खयाल हमें काफी समय से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के हालात के चलते आ रहा था. आज हमारा वही डर सच हो गया था. हमारे लिए हमारा बेटा जैसा भी था लेकिन अपने परिवार के साथ खुश है, सोच कर हम शांत थे.

‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या…वह वापस आ रहा है,’’ सौरभ की नजरें अभी भी बारिश पर टिकी हुई थीं. शायद वह बाहर की बरसात के पीछे अपने अंदर की बरसात को छिपाने का असफल प्रयत्न कर रहे थे.

‘‘और कहां जाएगा…’’ सौरभ के दिल के भावों को समझते हुए भी मैं ने अनजान ही बने रहना चाहा.

‘‘क्यों…अगर हम मर गए होते तो किस के पास आता वह…उस की बीवी के भाईबहन हैं, मायके वाले हैं, रिश्तेदार हैं, उन से सहायता मांगे…यहां हमारे पास क्या करने आ रहा है…’’ बोलतेबोलते सौरभ का स्वर कटु हो गया था. हालांकि सत्यम के प्रति मेरा दिल भी फिलहाल भावनाओं से उतना ही रिक्त था लेकिन मां होने के नाते मेरे दिल की मुसीबत के समय में सौरभ का उस के प्रति इतना कटु होना थोड़ा खल गया.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो. आखिर मुसीबत के वक्त वह अपने घर नहीं आएगा तो कहां जाएगा.’’

‘‘घर…कौन सा घर…उस ने इस घर को कभी घर समझा भी है…तुम फिर उस के लिए सोचने लगीं…तुम्हारी ममता ने बारबार मजबूर किया है मुझे…इस बार मैं मजबूर नहीं होऊंगा…जिस दिन वह आएगा…घर से भगा दूंगा…कह दूंगा कि इस घर में उस के लिए अब कोई जगह नहीं है.’’

सौरभ मेरी तरफ मुंह कर के बोले. उन की आंखों के बादल भी बरसने को थे. चेहरे पर बेचैनी, उद्विग्नता, बेटे के द्वारा अनदेखा किया जाना, लेकिन उस के दुख से दुखी भी…गुस्सा आदि सबकुछ… एकसाथ परिलक्षित हो रहा था.

‘‘सौरभ…’’ रेलिंग पर रखे उन के हाथ को धीरे से मैं ने अपने हाथ में लिया तो सुहाने मौसम में भी उन की हथेली पसीने से तर थी. सौरभ की हिम्मत के कारण मैं इस उम्र में भी निश्ंिचत रहती थी लेकिन उन को कातर, बेचैन या कमजोर देख कर मुझे असुरक्षा का एहसास होता था.

‘‘सौरभ, शांत हो जाओ…सब ठीक हो जाएगा. चलो, चल कर सो जाओ, कल सोचेंगे कि क्या करना है.’’

मैं उन को सांत्वना देती हुई अंदर ले आई. मुझे सौरभ के स्वास्थ्य की चिंता हो जाती थी, क्योंकि उन को एक बार दिल का दौरा पड़ चुका था. सौरभ चुपचाप बिस्तर पर लेट गए. मैं भी जीरो पावर का बल्ब जला कर उन की बगल में लेट गई. दोनों चुपचाप अपनेअपने विचारों में खोए हुए न जाने कब तक छत को घूरते रहे. थोड़ी देर बाद सौरभ के खर्राटों की आवाज आने लगी. सौरभ के सो जाने से मुझे चैन मिला, लेकिन मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी.

आज सत्यम को हमारी जरूरत पड़ी तो उस ने बेधड़क फोन कर दिया कि वह हमारे पास आ रहा है और क्यों न आए…बेटा होने के नाते उस का पूरा अधिकार है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसी तरह बेधड़क बेटे के पास जाने का हमारा अधिकार क्यों नहीं है. क्यों संकोच व झिझक हमारे कदम रोक लेती है कि कहीं बेटे की गृहस्थी में हम अनचाहे से न हो जाएं. कहीं बहू हमारा यों लंबे समय के लिए आना पसंद न करे.

सत्यम व नीमा ने अपने व्यवहार से जानेअनजाने हमेशा ही हमें चोट पहुंचाई है. मातापिता की बढ़ती उम्र से उन्हें कोई सरोकार नहीं रहा. हमें कभी लगा ही नहीं कि हमारा बेटा अब बड़ा हो गया है और अब हम अपनी शारीरिक व मानसिक जरूरतों के लिए उस पर निर्भर हो सकते हैं.

जबजब सहारे के लिए बेटेबहू की तरफ हाथ बढ़ाया तबतब उन्हें अपने से दूर ही पाया. कई बार मैं ने सौरभ व अपना दोनों का विश्लेषण किया कि क्या हम में ही कुछ कमी है, क्यों नहीं सामंजस्य बन पाता है हमारे बीच में…लगा कि एक पीढ़ी का अंतर तो पहले होता था, इस नई पीढ़ी के साथ तो जैसे पीढि़यों का अंतराल हो गया. इसी तरह के खयालों में डूबी मैं अतीत में विचरण करने लगी.

सत्यम अपने पापा की तरह पढ़ने में होशियार था. पापा के समय में ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए जो कुछ भी हासिल हुआ, धीरेधीरे व लंबे समय के बाद हुआ लेकिन सत्यम को उन्होंने अपनी क्षमता से बढ़ कर सुविधाएं दीं, उस की पढ़ाई पर क्षमता से बढ़ कर खर्च किया. सत्यम मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर था, शादी भी उसी हिसाब से बड़े घर में हुई. नीमा भी नौकरी करती थी. अपने छोटे से साधारण फ्लैट, जिस में सत्यम को पहले सभी कुछ दिखता था, नौकरी व शादी के बाद कमियां ही कमियां दिखाई देने लगीं. जबजब छुट्टी पर आता कुछ न कुछ कह देता :

‘कैसे रहते हो आप लोग इस छोटे से फ्लैट में. ढंग का ड्राइंगरूम भी नहीं है. मम्मी, मुझे तो शर्म आती है यहां किसी अपने जानने वाले को बुलाते हुए. यह किचन भी कोई किचन है…नीमा तो इस में चाय भी नहीं बना सकती.’

पहले साफसुथरा लगने वाला फ्लैट अब गंदगी का ढेर लगता.

आगे पढ़ें- सत्यम कभी नहीं सोचता था कि वह…

खोखली होती जड़ें: भाग 2

फिर सप्लाई का पानी पीने से उन का पेट खराब होने लगा तो जब भी सत्यम या उस का परिवार आता तो मैं बाजार से पानी की बोतल मंगा कर रखने लगी, लेकिन लाइट चली जाती तो उन्हें इनवर्टर की कमी खलती…गरमी में ए.सी. व कूलर की कमी अखरती, तो सर्दी में एक अच्छे ब्लोवर की कमी…मतलब कि कमी ही कमी…नाश्ते में सबकुछ चाहिए. पर सत्यम व नीमा कभी यह नहीं सोचते कि जिन सुविधाओं के बिना उन्हें दोचार दिन भी बिताने भारी पड़ जाते हैं उन्हीं सुविधाओं के बिना मातापिता ने पूरी जिंदगी कैसे गुजारी होगी और अब बुढ़ापा कैसे गुजार रहे होंगे. सत्यम पर क्षमता से अधिक खर्च न कर क्या वे अपने लिए छोटीछोटी मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटा सकते थे? पर उस समय तो लगता था कि हमारा बेटा लायक बन जाएगा तो हमें क्या कमी है. सौ सुविधाएं जुटा देगा वह हमारे लिए.

सत्यम कभी नहीं सोचता था कि वह जूस पी रहा है तो मातापिता को बुढ़ापे में एक कप दूध भी है या नहीं…जरूरी दवाओं के लिए पैसे हैं या नहीं. उन का तो यही एहसान बड़ा था कि वे दोनों इतने व्यस्त रहते हैं…इस के बावजूद जब छुट्टी मिलती है, तो वे उन के पास चले आते हैं, नहीं तो किसी अच्छी जगह घूमने भी जा सकते थे.

सत्यम का परिवार जब भी आता, उन को सुविधाएं देने के चक्कर में मैं अपना महीनों का बजट बिगाड़ देती. उन के जाते ही फिर उन के अगले दौरे के लिए संचय करना शुरू कर देती.

सौरभ की जानकारी में जब यदाकदा ये बातें आतीं तो उन का पारा चढ़ जाता पर मां होने के नाते मैं उन को शांत कर देती. लगभग 5 साल पहले सत्यम मुंबई में नियुक्त था. उसी दौरान सौरभ को हार्ट अटैक पड़ा. डाक्टर ने एंजियोग्राफी कराने के लिए कहा. पूरी प्रक्रिया व इलाज पर आने वाले खर्चे को सुन कर मैं सन्न रह गई. ऐसे समय तो सत्यम जरूर आगे बढ़ कर अपने पिता का इलाज कराएगा. यह सोच कर मैं ने सत्यम को फोन किया. मेरे साथ तो कोई था भी नहीं, जो भागदौड़ कर पाता. खर्चे की तो बात ही अलग थी, लेकिन सत्यम की बात सुन कर मैं हक्कीबक्की रह गई थी :

‘मम्मी, एक दूसरी कंपनी में मुझे बाहर जाने का मौका मिल रहा है, इस समय तो मैं बिलकुल भी नहीं आ सकता. मुझे जल्दी ही अमेरिका जाना पड़ेगा. रही खर्चे की बात, तो थोड़ाबहुत तो भेज सकता हूं पर इतना रुपया मेरे पास कहां.’

बेटे की आधी बात सुन कर ही मैं ने फोन रख दिया. अस्पताल में जीवनमृत्यु के बीच झूल रहे उस इनसान के जीवन के प्रति सत्यम के हृदय में जरा भी मोह नहीं जो उस का जन्मदाता है, जो जीवन भर नौकरी कर के अपने लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं जुटा पाया, इसलिए कि बेटे के सफलता की तरफ बढ़ते कदमों पर रंचमात्र भी रुकावट न आए. आज उसी पिता के जीवन के लिए कोई चिंता नहीं. जिए तो जिए और मरे तो मरे…न आवाज में कंपन और न यह चिंता कि कहीं पिता दुनिया से न चले जाएं.

जिस बेटे को उन के जीवन का मोह नहीं, उस से रुपएपैसे की सहायता भी क्यों लेनी है…लेकिन इलाज के लिए रुपए तो चाहिए ही थे. सौरभ ने एक छोटा सा प्लाट सस्ते दामों में शहर के बाहर खरीदा हुआ था. अब वह अच्छी कीमत में बिक सकता था, लेकिन सौरभ यह सोच कर कि सत्यम उस पर अच्छा सा सुख- सुविधापूर्ण घर बनाएगा, नहीं बेचना चाह रहे थे. फिर उस समय उन्होंने अपने एक परिचित से कहा कि वह उस जमीन को खरीद ले और उसे इस समय रुपए दे दे. उस परिचित ने भी जमीन सस्ती मिलती देख उन्हें रुपए दे दिए. उस समय उन्हें लगा, बेटे के बजाय जमीन खरीदना शायद ज्यादा हितकर रहा, जो इस मुसीबत में उन के काम आई.

इधर सौरभ के आपरेशन का दिन फिक्स हुआ, उधर सत्यम अमेरिका के लिए उड़ गया. वहां से पिता का हालचाल जानने के लिए फोन आया तो उस की आवाज में इस बात का कोई मलाल नहीं था कि वह अपने पिता के लिए कुछ नहीं कर पाया. तब से 5 साल हो गए. सत्यम और उन का संपर्क लगभग खत्म सा हो गया था. उस के फोन यदाकदा ही आते जो नितांत औपचारिक होते.

और अब जब मंदी की चपेट में आ कर सत्यम की नौकरी छूट गई तो वह उन के पास आ रहा है. मुसीबत में इस असुविधापूर्ण, गंदे, छोटे से फ्लैट की याद उसे अमेरिका जैसे शानोशौकत वाले देश में भी आखिर आ ही गई, जहां वह लौट कर जा सकता है. अब कैसे रहेंगे सत्यम, नीमा व उन के बच्चे यहां…कैसे बनाएगी नीमा इस किचन में चाय…जहां पानी जब आए तब काम करना पड़ता है.

मैं यही सोच रही थी. न जाने कब तक छत पर नजरें गड़ाए मैं अपने विचारों के आरोहअवरोह में चढ़तीउतरती रही और सोचतेसोचते कब नींद के आगोश में चली गई, पता ही नहीं चला.

सुबह नींद खुली तो सूरज छत पर चढ़ आया था. सौरभ बेखबर सो रहे थे. मैं ने उन का माथा छू कर देखा और इत्मीनान से मुसकरा दी. जब से सौरभ को दिल का दौरा पड़ा है तब से उन की तरफ से मन में अनजाना सा डर समाया रहता है कि कहीं सौरभ मुझे छोड़ कर चुपचाप चले न जाएं. क्या होगा मेरा? मैं सौरभ के बिना नहीं जी सकती और जीऊंगी भी तो किस के सहारे.

मैं हाथमुंह धो कर चाय बना कर ले आई. सौरभ को जगाया और दोनों मिल कर चाय पीने लगे. जिंदगी की सांझ में कैसे पतिपत्नी दोनों अकेले रह जाते हैं, यही तो समय का चक्कर है. इसी जगह पर कभी हमारे मातापिता थे, अब हम हैं और कल हमारी संतान होगी. सीमित होते परिवार, कम होते बच्चे…पीढ़ी दर पीढ़ी अकेलेपन को बढ़ाए दे रही है. हर नई पीढ़ी, पिछली पीढ़ी से ज्यादा और जल्दी अकेली हो रही है, क्योंकि बच्चे पढ़ाई- लिखाई के कारण घर से जल्दी दूर चले जाते हैं. पर इस का एहसास युवावस्था में नहीं होता.

मन में बेटे के परिवार के आने का कोई उत्साह नहीं था. फिर भी न चाहते हुए भी, उन का कमरा ठीक करने लगी. बच्चे भी आ रहे हैं…कैसे रहेंगे, कितने दिन रहेंगे.. मैं आगे का कुछ भी सोचना नहीं चाहती थी. हां, इतना पक्का था कि 6 लोगों का खर्च सौरभ की छोटी सी पेंशन से नहीं चल सकता था…तब क्या होगा.

आगे पढ़ें- रात को सत्यम का फोन आया कि वह…

REVIEW: गुदगुदाती है वेब सीरीज मेट्रो पार्क 2

रेटिंगः ढाई स्टार

 निर्देशकः अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन

लेखनः अजय वेणुगोपालन

कलाकारः रणवीर शोरी, पूर्बी जोशी, पितोबाश, ओमी वैद्य, वेगा तमोटिया,  सरिता जोशी, मिलिंद सोमन और गोपाल दत्त

अवधिः 12 एपीसोड, हर एपसोड बीस से बाइस मिनट की अवधि का, कुल समय लगभग चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः ईरोज नाउ पर 29 जनवरी से

अमरीका के न्यू जर्सी में बसे एक गुजराती भारतीय परिवार से जुड़े हास्यप्रद घटनाक्रमों और हास्यमय परिस्थितियों से लोगों को हॅंसा चुकी वेब सीरीज‘‘मेट्रो पार्क’’का दूसरा सीजन ‘‘मेट्रो पार्क 2 ’’लेकर आ रहे हैं अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन.

कहानीः

यह कहानी अमेरिका के न्यू जर्सी में बसे एक देसी भारतीय गुजराती परिवार की विलक्षणताओं और विचित्रताओं के इर्द गिर्द घूमती है. जो अमरीका जैसे देश में आधुनिक परिवेश में रहते हुए भारतीयता से जुडे हुए हैं. इस परिवार के मुखिया कल्पेश(रणवीर शोरी) हैं, उनके परिवार में उनकी पत्नी पायल(पूर्वी जोशी ), बेटा पंकज(आरव जोशी) व बेटी मुन्नी है. कल्पेश की स्थानीय नगर पालिका व पुलिस विभाग में अच्छी पहचान है. पायल की बहन किंजल(वेगा तमोटिया)भी न्यू जर्सी में ही रहती है. किंजल के दक्षिण भारतीय पति कानन(ओमी वैद्य) हैं, जो एक कारपोरेट कंपनी में कार्यरत हैं. कल्पेश का एक ‘पे एंड रन’नामक रिटेल दुकान है,  जिसमें बिट्टू (पितोबाश)काम करता है. पायल का अपना ब्यूटी पार्लर है, जहां पर शीला(माया जोशी) भी काम करती हैं. पहले एपीसोड की शुरूआत होती है किंजल की नवजात बेटी के नामकरण समारोह से. पायल व किंजल को तकलीफ है कि ऐसे मौके पर उनकी मॉं (सरिता जोशी) वहां मौजूद नहीं है, वैसे कल्पेश ने पायल की मां को भारत से अमरीका बुलाने के लिए वीजा के लिए आवेदन दिया है. मगर रात में जब कल्पेश और पायल अपने घर पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वीजा का आवेदन खारिज हो गया है. पता चलता है कि फार्म भरने में कल्पेश ने कुछ गलती कर दी थी. इसके चलते कल्पेश व पायल में मीठी नोंकझोक होती है.

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तीसरे एपीसोड में रिटेल शॉप में बढ़ती चोरी के चलते कल्पेश, लाल भाई(गोपाल दत्त) को सिक्यूरिटी के रूप में दरवाजे पर तैनात कर देते हैं. पायल व किंजल की मां (सरिता जोशी)अमरीका नही आ पाती,  मगर किंजल के पति घर में रोबोट लेकर आ जाते हैं. परिणामतः पायल और किंजल की माँ (सरिता जोशी) हर जगह एक रोबोट के रूप में मौजूद हैं, जहाँ कोई भी स्क्रीन पर या उसके माध्यम से उसे देख और सुन सकता है. फिर पायल का खुद को यूट्यूब सनसनी दिखाने का जुनून सवार होता है, जिसके चलते कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. इसी तरह हर एपीसोड में कुछ परिस्थिति जन्य घटनाक्रम के साथ पारिवारिक नोकझोक भी चलती रहती है. दो एपीसोड में पायल के पूर्व सहपाठी और दॉतों के डाक्टर अर्पित(मिलिंद सोमण) की वजह से कुछ नए घटनाक्रम समने आते हैं. और कल्पेश के अंदर एक भारतीय पुरूष जागृत होता है.

लेखन व निर्देशनः

‘मेट्रो पार्क’सीजन वन की आपेक्षा सीजन दो ज्यादा बेहतर बना है. यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीय समाजों का प्रतिबिंब है. पारिवारिक ड्रामा के साथ हास्य के ऐसे क्षण पिरोए गए हैं, जो कि दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. सीजन एक के मुकाबले सीजन दो में निर्देशन बेहतर है. फिर भी ‘मेट्रो पार्क सीजन 2’एक साधारण वेब सीरीज ही है. भारतीय राजनीति व बौलीवुड को लेकर गढ़े गए जोक्स बहुत ही सतही हैं. शुरूआत में रोबोट(सरिता जोशी) के चलते पैदा हुए हास्य क्षण गुदगुदाते हैं, मगर फिर वह दोहराव नजर आने लगते हैं. यह लेखक व निदेशक दोनों की कमजोरी है.

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अभिनयः

पटेल परिवार के रूप में रणवीर शोरी और पूर्वी जोशी के बीच की केमिस्ट्री कमाल की है. तो वहीं रणवीर शोरी और पितोबाश के बीच की ट्यूनिंग भी इस वेब सीरीज को दर्शनीय बनाती है. ‘थ्री इडिएट्स’के बाद इसमें ओमी वैद्य ने कमाल का अभिनय किया है. उनकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है. वेगा तमोटिया ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर ओमी वैद्य के साथ वेगा तमोटिया की जोड़ी जमती नही है. वेगा तमोटिया इस वेब सीरीज की कमजोर कड़ी हैं. पितोबाश का अभिनय फनी है और वह लोगों को हंसाते हैं. सरिता जोशी व मिलिंद सोमण की छोटी मौजूदगी हास्य के क्षण पैदा करने में कामयाब रही है.

कपिल शर्मा ने दोबारा पिता बनने की खबर पर लगाई मुहर, कही ये बात

इन दिनों कौमेडी किंग कपिल शर्मा अपने शो के बंद होने को लेकर सुर्खियों में हैं. दरअसल, खबरें हैं कि सोनी टीवी के कॉमेडी शो ‘द कपिल शर्मा शो’ (The Kapil Sharma Show) जल्द ही फैंस को अलविदा कहने वाला है. हालांकि थोड़े वक्त बाद शो का दूसरी सीजन फैंस का दिल जीतने वापस आएगा. पर इन्हीं खबरों के बीच कपिल शर्मा ने अपनी दूसरे बच्चे की खबरों पर मोहर लगा दी है. आइए आपको बताते हैं क्या है कपिल का पापा बनने के सवाल का जवाब…

फैंस के सवालों के दिए जवाब

हाल ही में कपिल शर्मा ने #AskKapil में अपने फैंस के सवालों के जवाब दिए, जिसमें फैंस ने उनसे ‘द कपिल शर्मा शो’ के बंद होने के बारे में सवाल किया, जिसका जवाब देते हुए कपिल शर्मा ने लिखा, ‘ये शो इसलिए बंद हो रहा है क्योंकि अब मुझे कुछ समय अपने परिवार को भी देना है. मुझे अपने दूसरे बच्चे का स्वागत करना है.

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दूसरे बच्चे की खबर पर लगाई मोहर

बीते दिनों सोशलमीडिया पर छाई खबरों में बताया गया था कि कपिल शर्मा जल्द ही दोबारा पापा बनने वाले हैं. हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई औफिशयल ऐलान नही किया गया था. लेकिन अब कपिल ने #AskKapil में इस सवाल का जवाब दे दिया है. दरअसल, फैन्स ने एक सवाल पूछते हुए कहा कि आप अनाया को क्या तोहफा देना चाहते हैं. बहन या फिर भाई…? जिसका जवाब देते हुए कपिल शर्मा ने कहा कि लड़का हो या लड़की… जो भी हो तंदरुस्त होना चाहिए.

 

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बता दें, बीते दिनों कपिल शर्मा ने अपनी बेटी अनायरा का पहला बर्थडे सेलिब्रेट किया था, जिसके बाद से कपिल शर्मा और गिन्नी चथरथ के दोबारा पेरेंट्स बनने की खबर सोशलमीडिया पर छा गई थी.

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वनराज को भड़काएगी काव्या तो राखी का प्लान होगा कामयाब, अब क्या करेगी अनुपमा

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ अनुपमा ने तलाक का फैसला किया है तो वहीं वनराज की नौकरी काव्या को मिल गई है. इसी बीच सीरियल में कई और नए ट्विस्ट आने बाकी हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज की पोस्ट पर किंजल को मिलती है नौकरी

अब तक आपने देखा कि जहां किंजल की नौकरी लगने से पूरा घर बेहद खुश होता है तो वहीं नौकरी जाने से वनराज काफी परेशान होता है. इसी बीच सभी घरवालों को पता चलता है कि वनराज की पोस्ट पर किंजल को नौकरी दी गई है, जिसके बाद सभी घरवाले किंजल को जौब छोड़ने के लिए कहते नजर आते हैं.

 

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वनराज को भड़काएगी काव्या

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को भड़काने के लिए काव्या नई चाल चलती नजर आएगी. दरअसल, काव्या, वनराज से कहेगी कि उसके पोस्ट पर वेकेंसी होने की बात केवल अनुपमा को पता थी, जिसका फायदा उसने किंजल को नौकरी देकर उठाया है. वहीं काव्या अनुपमा से कहेगी कि वनराज की पोस्ट पर किंजल का आना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि उसकी एक सोची समझी चाल थी.

राखी के कोचिंग को जौइन करेगा परितोष

वनराज की पोस्ट पर नौकरी छोड़ने के लिए परितोष, किंजल को कहेगा. हालांकि इस बात से वह इंकार कर देगी. इसी के चलते परितोष किंजल से कहेगा कि वह दवे कोचिंग सेंटर जो की राखी का है, उसे जौइन कर रहा है. वहीं परितोष की इस बात से पूरा परिवार हैरान हो जाता है. इसी बीच परितोष दवे कोचिंग सेंटर से जुड़ तो जाता है. लेकिन आगे जाकर इस राखी के इस फैसले से उसके बिजनेस को भारी नुकसान होगा.

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आज़ादी है अपने साथ, अगर सुरक्षा हो अपने हाथ

सालों से महिलाओं को हमेशा किसी पुरुष के साथ बाहर निकलने की सलाह दी जाती रही है, ताकि वे किसी भी अनहोनी घटना से महिला को बचा सकें. इसमें पहले पिता, भाई फिर पति के संरक्षण में एक महिला को पूरा जीवन बिताना पड़ता था, उन्हें जीने की आजादी कभी मिली ही नहीं, क्योंकि शारीरिक रूप से महिला पुरुषों से हमेशा कमजोर रही है, लेकिन समय के साथ-साथ महिलाओं की सोच में भले ही परिवर्तन हुआ हो और वे हर फील्ड में काम कर अपनी मुकाम हासिल कर रही हो, लेकिन पुरुषों की सोच में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, वे आज भी महिला को कमजोर समझते है, यही वजह है कि आये दिन महिलाओं के साथ छेड़-छाड़, रेप आदि की घटनाएं सुर्ख़ियों में देखने को मिलती है. इतना ही नहीं कुछ पुरुषों ने महिलाओं के पोशाक और रहन-सहन को भी गलत ठहराने में पीछे नहीं हटे, ऐसे में महिलाओं और लड़कियों की आज़ादी कुछ भी करने की नहीं रह जाती. अगर उन्हें आजादी की इच्छा हो तो उन्हें खुद को मजबूत बनने के साथ-साथ, अपनी रक्षा के बारें में भी कदम उठाने की जरुरत है, ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी से वे खुद को बचा सकें. 

इस बारें में पिंक बेल्ट मिशन की सेल्फ डिफेन्स एक्सपर्ट और मार्शल आर्ट चैम्पियन अपर्णा राजावत कहती है कि हर महिला को सेल्फ डिफेन्स के बारें में थोड़ी जानकारी होनी चाहिए, ताकि राह चलते किसी के भी छेड़-छाड़ करने पर वे उसका सामना कर सही जवाब दे सकें. कुछ महिलाओं को लगता है कि ये क्षेत्र पुरुषों का है और वे इसपर अधिक ध्यान नहीं देती. इसलिए सबसे पहले इसके बारें में जान लेना आवश्यक है. कुछ गाइडलाइन्स निम्न है.

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जाने सेल्फ डिफेन्स को 

सेल्फ डिफेंस का अर्थ हमलावरों से मारपीट करना नहीं, बल्कि किसी हमले से खुद को बचाना होता है, जिसमें पहले हमलावर को हिट करना, दौड़ना और उस परिस्थिति से भाग जाना होता है.सेल्फ डिफेन्स का ज्ञान आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ शारीरिक और मेंटल हेल्थ को भी मजबूत बनाने से है, जिससे खुद को सुरक्षित रखना आसान हो जाता है. यहाँ कुछ सेल्फ डिफेन्स के मूव्स है, जिसे हर महिला को जान लेना आवश्यक है,

वन हैण्ड कैच टाइप 1 

अगर कोई हमलावर आपका हाथ पकड़ता हो तो उसके कमजोर सेक्शन को नोटिस करें, जिसमें उसका अंगूठा और तर्जनी मिलती है, उस भाग की तरफ अपनी हाथ या कलाई को मोड़ते हुए प्रेशर दें. ये सेक्शन अधिकतर हाथ के उपरी भाग में होता है, इसलिए हाथ का प्रेशर उपर की तरफ दें, ताकि हाथ आसानी से छूट जाएँ.

वन हैण्ड कैच टाइप 2 

अगर आपका टाइप वन काम नहीं कर रहा है, तो तुरंत दूसरे विकल्प पर जाएँ. अगर हमलावर ने एक हाथ पकड़ा हो, तो सबसे पहले एक ओर घूम जाएँ और पैरों को अपने हिसाब से फैला लें, नीचे जाते समय दोनों घुटने को मोड़कर  उकडूं बैठ जाएँ और अपनी कुहनी से हमलावर की कुहनी में प्रेशर देते रहे, ऐसे में हमलावर का हाथ बंद होने की वजह से वह अपने हाथ को झटका नहीं दे पायेगा और पूरा प्रेशर हमलावर के अंतिम ऊँगली पर पड़ेगा, जिससे उसकी पकड़ कमजोर हो जाएगी और वह अधिक समय तक आपके हाथ को पकड़कर नहीं रख सकता, इससे आपको हाथ छुड़ाना आसान हो जायेगा. 

जब पकड़े गर्दन 

अगर किसी ने सामने से आपके गर्दन को पकड़ा है, तो अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर अपने पैरों को फैला लें, अपने शरीर को ट्विस्ट कर और पैरों को एक साइड में मोड़ ले. इससे उसकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी. साथ ही आपके एक ओर ट्विस्ट होने और दोनों हाथों को ऊपर उठाने की वजह से आपकी कुहनी, हमलावर के कुहनी के ऊपरी भाग पर चोट करेगी, इससे हमलावर आपको अधिक समय तक पकड़ कर नहीं रख सकता. इसके अलावा अगर आपने हमलावर को हिट किया है, तो वह खुद को बचाने के लिए नीचे झुक जायेगा, जिससे आसानी से आप कुहनी से हमलावर के गर्दन या चेहरे पर वार कर सकती है और भागकर खुद को सुरक्षित कर सकती है. 

सिखाएं सबक सामान छीनने वालों को 

कई लड़कियों और महिलाओं को बैग या पर्स छीनने वालों का सामना करना पड़ता है. इस मूव्स की सहायता से आप हमलावर से अपने सामान को सुरक्षित रख सकते है. असल में ऐसे चोर या हमलावर सामान लेकर जल्दी भागने की कोशिश करते है, जिसके लिए अधिकतर वे किसी चलती हुई वाहन का प्रयोग करते है, ताकि वे आसानी से भाग सकें. जब कोई व्यक्ति आपके सामने से बैग छीनने की कोशिश करें, तो बैग को सख्ती से पकड लें और अपने बॉडी वेट का दबाव बनाते हुए नीचे बैठ जाएँ. ये किसी भी हमलावर के मूवमेंट को कम कर देगी और आपके बॉडी वेट की वजह से बैग कंट्रोल में आ जायेगा. 

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शस्त्र के रूप में करें डेली आइटम्स का प्रयोग 

इसके आगे अपर्णा कहती है कि हर महिला के पास हमेशा कुछ ऐसी चीजें पर्स में होती है, जिनका प्रयोग सेल्फ डिफेन्स के रूप में किया जा सकता है, जो निम्न है, 

पेन 

कलम अति उत्कृष्ट शस्त्र है, जिसके द्वारा हिट या स्टैब चेहरे के किसी भी भाग पर किया जा सकता है, इससे आपको भागने का पर्याप्त समय मिल जाता है.

मेटल बैंगल 

स्टील के कड़े या मेटल बैंगल काफी स्ट्रोंग होता है, जिसके द्वारा निकल पंच, जिसमे कड़े को हथेली पर पहनकर हाथ को बंद कर हमलावर को स्ट्रोंग हिट किया जा सकता है. 

चाभी के गुच्छे 

चाभी के गुच्छे सेल्फ डिफेन्स में बहुत काम आते है. चाभी के गुच्छे को दो उँगलियों के बीच में रखकर हमलावर को पंच मारे, जोर से पंच मारने पर ये चाभियाँ स्पाइक की तरह काम करती है. 

लाइटर 

अगर आप धूम्रपान न भी करते हो, फिर भी एक लाइटर आपके पर्स के किसी कोने में होनी चाहिए, इसे जलाकर हमलावर के स्किन को थोडा जलाया जा सकता है, इससे वह पीछे हटेगा और आपको भागने का समय मिल जायेगा. 

नेल फाइलर 

नेल फाइलर से हमलावर के चेहरे और गर्दन पर हिट किया जा सकता है, ये एक अच्छा विकल्प सेल्फ डिफेन्स का है.

पीपर स्प्रे

काली मिर्च या मिर्च पाउडर हर स्त्री के पास होनी चाहिए. ये एक प्रकार का केमिकल स्प्रे है, जिसे हमलावर के चेहरे पर छिड़का जा सकता है, जिससे उसको दर्द होगा और आंसू बहेंगे, इससे कभी-कभी कुछ देर के लिए उसे ब्लाइंडनेस भी हो सकता है, जिससे आपको भागने में समय मिल जाता है. 

रहे हमेशा एलर्ट और सुरक्षित  

  • मार्शल आर्ट चैम्पियन अपर्णा का आगे कहना है कि जब भी किसी महिला को लगातार किसी व्यक्ति का उसकी मर्जी के बिना छूना, मारना, गन्दी बातें कहना आदि पसंद न हो, तो हमेशा आवाज उठायें, चिल्लाएं और उसे ऐसा करने से उन्हें रोकें. इसके लिए अगर भीड़ जमा करनी पड़े, तो भी वैसा ही करें, ताकि उस व्यक्ति को सबक मिल सकें. अगर सभी महिलाओं ने ऐसा करना शुरू कर दिया है, तो हर व्यक्ति गलत व्यवहार करने से डरेंगे. 
  • अगर आप अकेले किसी odd समय पर कही ट्रेवल कर रही है, तो सेफ्टी एप्स को फ़ोन में डाउनलोड अवश्य कर लें, मसलन रक्षा, 112 इंडिया, हिम्मत प्लस (दिल्ली के लिए ) आदि कई एप है. किसी भी विषम परिस्थिति में ये एप आपके परिवार जन और दोस्तों तक आपका लोकेशन शेयर करती है. 
  • किसी भी विषम परिस्थिति में आत्म-रक्षा के मूव्स को अपनाएं और वहां से भागने की कोशिश करें, ऐसा आप तभी कर सकती है, जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हो, जिसमें बॉडी स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए नियमित व्यायाम, दौड़ने की प्रैक्टिस करना, संतुलित भोजन लेना आदि की खास जरुरत है.
  • अधिकतर महिलाएं हमलावर के पास आने पर भाग जाती है या लडाई करती है, लेकिन कुछ महिलाएं डर के मारे फ्रीज़ होकर कुछ भी नहीं कर पाने में असमर्थ हो जाती है, जो गलत है. कभी भी हमलावर के सामने फ्रीज़ न हो, आत्मविश्वास और मानसिक रूप से खुद को हमेशा मजबूत बनाए रखें, ताकि हमलावर आपसे 2 कदम की दूरी पर रहे. 

हालाँकि इन सब बातों को करना आसान नहीं होता, लेकिन आपकी लगातार प्रशिक्षण और तकनीक के ज्ञान से इसे मजबूत और प्रभावी बनाया जा सकता है.  

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घर की कैलोरी डस्टबिन न बनें

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार 51 फीसदी भारतीय औरतें प्रजनन उम्र में ऐनीमिया की शिकार होती हैं. ‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं. ‘सोशल ऐटिट्यूट्स रिसर्च फौर इंडिया’ ने टैलीफोनिक इंटरव्यू द्वारा 2016 में की गई रिसर्च में पाया कि आंकड़े आईएचडीएस  की 2011 की रिपोर्ट से ज्यादा भिन्न नहीं हैं.

जिन औरतों से यह बातचीत की गई थी उन के परिवार में पति के बाद खाने का अर्थ है सब से आखिर में खाना खाना. परिवार के लिए जितना खाना बनता है उस में से जो बचता है उसे ये औरतें खा लेती हैं. इस स्थिति में कई बार औरतें अपनी पोषण आवश्यकता से कम खाती हैं.

भारतीय परिवारों में रोटियों को ले कर अकसर एक बात कही जाती है कि आखिर में बनी रोटी जोकि बचे आटे की होती है और बाकी रोटियों से पतली होती है, घर के मर्द को नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इस से उस की सेहत खराब हो सकती है. यह कैसी मानसिकता है, यह तो पता नहीं, लेकिन पूर्णरूप से निरर्थक है, यह साफ है.

जाहिर है कि किस तरह बचे कहे जाने वाले खाने को भी औरतों के सिर कितनी आसानी से मढ़ दिया जाता है. वैसे यह आज की बात नहीं है, सदियों से भारतीय परिवारों में यह परंपरा है कि घर के मर्द जब तक न खा लें उस से पहले औरत का खाना खा लेना उस के लिए पाप समान है.

औरतों पर मढ़ा गया बचा खाना

खुद हिंदू धर्मग्रंथों में ‘उच्छिष्ट’ का वर्णन मिलता है, जिस का अर्थ है बचा खाना या इंग्लिश में लैफ्टओवर. इस उच्छिष्ट खाने का अर्थ है किसी का बचा हुआ या जूठा खाना जिसे हिंदू धर्म में अवांछित माना गया है परंतु कुछ स्थितियों में इसे खाना अच्छा काम है जैसे, शूद्र का ऊंची जाति या ब्राह्मण के उच्छिष्ट या पत्नी का अपने पति के उच्छिष्ट का सेवन करना. कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं है कि पति अपनी पत्नी का उच्छिष्ट खा सकता है.

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औरतों के आखिर में खाना खाने पर 2 स्थितियां सामने आती हैं. पहली, जिस में वह अंडरवेट हो जाती हैं और दूसरी जिस में उन का वेट अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाने पर ओवरवेट हो जाता है. ये दोनों ही स्थितियां एकदूसरे से काफी अलग हैं और दोनों के ही अपने नुकसान हैं.

औरतों का अंडरवेट होना व कम खाना खाना केवल उन के खुद के लिए ही हानिकारक नहीं है, बल्कि यह गर्भधारण के समय उन के होने वाले बच्चे को भी अत्यधिक प्रभावित करता है. भारत में कुपोषण के शिकार बच्चों की गिनती प्रति वर्ष बढ़ रही है.

ऐनीमिया से ग्रस्त औरतों का आंकड़ा 60 फीसदी के पार है. बच्चे की सेहत उस की मां पर निर्भर करती है. बच्चे के जीवन के 2 साल पूर्णरूप से उस की मां की सेहत से जुड़े होते हैं. गर्भावस्था में मां के शरीर से भ्रूण को अपना पोषण मिलता है, उस का विकास होता है. पैदा होने के 6 महीने तक पूर्णरूप से नवजात अपनी मां के दूध पर आश्रित होता है. ऐसे में जब मां की खुद की सेहत सही नहीं होगी तो उस के बच्चे का सही विकास कैसे होगा?

बचा खाना खाने के गंभीर परिणाम

रिसर्च से सामने आया है कि अधिकतर भारतीय औरतें गर्भावस्था से पहले अंडरवेट होती हैं और गर्भावस्था के दौरान उन का वजन कुछ हद तक बढ़ता है. इस से पैदा होने वाले बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है, नजवात की मृत्यु हो सकती है, वह बौना भी पैदा हो सकता है.

औरतें अकसर अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाना उस समय भी उठा कर खाती हैं जब वे गर्भावस्था में होती हैं. गर्भावस्था के दौरान किसी का जूठा, बचा खाने से महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा मानसिक रूप से अपंग भी हो सकता है. यूके में हर वर्ष 1 हजार बच्चे सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस के शिकार होते हैं, जिन में से करीब 200 सेरेब्रल पाल्सी, ऐपिलैप्सी, सिर का छोटा आकार व अन्य विकास संबंधित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं.

सीएमवी से महिला को गर्भपात भी हो सकता है तथा जो बच्चा इस इन्फैक्शन के साथ पैदा होता है उसे जन्म के तुरंत बाद चाहे कोई बीमारी न हो, लेकिन कुछ सालों के भीतर लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. इस बीमारी का सब से बड़ा कारण है किसी का सलाइवा जूठे खाने के माध्यम से गर्भवती महिला के संपर्क में आना. इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए अपने पति या बच्चों की प्लेट से बचा खाना खाने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है.

बचा और जूठा खाने की मजबूरी

परिवार के साथ बैठ कर खाना खाने वाली महिलाएं एपीआई आवश्यकतानुसार भोजन करती हैं, बावजूद इस के जब उन के पति या बच्चे खाने की प्लेट में कुछ बचा देते हैं तो भूख न होते हुए भी वे उसे खा लेती हैं. पति और बच्चे तो अपनीअपनी प्लेट सरका कर उठ जाते हैं, लेकिन औरत का यह मानना कि चाहे कुछ भी हो जाए खाना व्यर्थ न जाए, उस की इस आदत की सब से बड़ी वजह है. वह खाना व्यर्थ न करने के लिए अपनी भूख से ज्यादा खा लेती है. इस से उस के शरीर में 400 कैलोरी तक बढ़ सकती है.

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यदि अपने बच्चे को खाना परोस रही हैं तो उस की जरूरत के हिसाब से दें. प्रोटीनयुक्त खाद्यपदार्थ जैसे चिकन या मछली उस की हथेली के साइज का दें. फल और सब्जियां 2 हथेलियों के बराबर और फैट्स जैसेकि चीज और मक्खन एक अंगूठे जितना दें. चावल आप उसे मुट्ठीभर दें व दाल और रोटी भी उस की भूख के हिसाब से दें. इस से न खाना बचेगा न आप को खाना पड़ेगा. यदि बच्चों ने रोटीसब्जी बचा दी है या कोई और स्नैक तो उसे बाद केलिए बचा लें. जब बच्चे को फिर भूख लगे तब दें.

अधिकतर बच्चों की आदत होती है कि पैक्ड फूड के बड़ेबड़े पैकेट्स तो वे शौक से खोल लेते हैं और एकाधा बाइट खा कर ही अपनी मां को पकड़ा देते हैं. कभी चौकलेट तो कभी बिस्कुट, कभी नमकीन तो कभी बची पेप्सी, सब मां के हिस्से में ही आता है. घर में तो फिर भी औरतें बच्चों का बचा खाने से पहले सोचती हैं, लेकिन बच्चों की यही आदत जब किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर दिखने लगे तो मां के पास बच्चों के छोड़े खाने को खाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. आखिर जिन के घर गए हैं उन के खाने को बरबाद करना भी तो ठीक नहीं.

बासी खाने की परंपरा

स्थिति केवल बचे खाने को मां द्वारा खाने की ही नहीं है, बल्कि बचे खाने को बासी कर खाने की भी है. भारतीय परिवारों में पति को बासी खाना देना औरत के लिए एक अपमान की बात सम झी जाती है, जिस का एक कारण लोगों का यह मानना है कि पति काम कर के, खूनपसीना बहा कर आता है और इस बाबत उसे ताजा पका खाना ही देना चाहिए. दूसरा, यह पितृसत्तात्मक समाज की देन है. वहीं बच्चे तो अकसर सभी के नखरीले ही होते हैं और उन्हें पिछली रात का या सुबह का खाना नहीं खाना तो मतलब नहीं खाना. तो इस में भी इस बासी भोजन को खाने का जिम्मा औरत के सिर ही आता है.

बासी खाना खाने से व्यक्ति को गंभीर पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. खाना बनने के 2 घंटे के भीतर ही उसे फ्रिज में न रखा जाए तो उस में बैक्टीरिया लगने शुरू हो जाते हैं, जिस से फूड पौइजनिंग तक हो सकती है. ऐसिडिटी भी हो सकती है.

इस बात का ध्यान रखें कि आप कोई डस्टबिन नहीं हैं जो कुछ भी उठाया और खा लिया. साथ ही परिवार के साथ बैठ कर खाना जरूरी है बजाय सभी के बाद खाने के. बदलाव ही जीवन का आधार है और यदि आप अपनी आदतें या कहें पुरानी परंपराएं नहीं बदलेंगी तो आप का शरीर बदलने लगेगा. आप की सेहत

में बदलाव होगा. बुरे बदलावों की गुंजाइश ऐसे में ज्यादा होती है. इसलिए अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए अच्छी आदतें अपनाइए और अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करना छोड़ दीजिए.

‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं.

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सैंट जौर्जेस यूनिवर्सिटी, लंदन के वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बचा, जूठा खाना खाती हैं सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस की चपेट में आ सकती हैं. इस रोग के चलते उन के बच्चे का विकास बाधित हो सकता है, मानसिक बीमारियां हो सकती हैं. वह बेहरा भी पैदा हो सकता है.

वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4 वर्ष से कम आयु के करीब आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं वहीं 30 फीसदी नवजात कुपोषित पैदा होते हैं.

40 की उम्र में भी बेटी पलक को फैशन के मामले में कड़ी टक्कर देती हैं श्वेता तिवारी, देखें फोटोज

टीवी एक्ट्रेस श्वेता तिवारी इन दिनों बेटी पलक तिवारी के चलते सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. दरअसल, पलक जल्द ही बड़े पर्दे पर नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह लाइमलाइट में हैं. हालांकि श्वेता तिवारी भी आए दिन फैशन के मामले में अपनी बेटी को कड़ी टक्कर देती हैं. हाल ही में श्वेता तिवारी ने अपने लुक की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह 40 की उम्र में भी अपनी बेटी पलक तिवारी को टक्कर दे रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं श्वेता तिवारी के लुक्स की खास फोटोज…

साड़ी में जलवे बिखेरती दिखीं श्वेता

हाल ही में किए गए एक फोटोशूट में श्वेता तिवारी साड़ी में नजर आईं. हालांकि साड़ी को मौर्डन टच दिया गया था. दरअसल, श्वेता ने धोती साड़ी पहनी थी, जिसके साथ कौलर टाइप का शर्ट ब्लाउज कैरी किया था. श्वेता का ये लुक महिलाओं के लिए वेडिंग या पार्टी के लिए बेस्ट औप्शन है.

 

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औफशोल्डर ड्रैस में लगती हैं हौट

 

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ड्रैसेस के कलेक्शन की बात करें तो श्वेता त्रिपाठी अक्सर शौर्ट ड्रैसेस से फैंस का दिल जीतती हैं. वहीं श्वेता की ये औफ शोल्डर ड्रैस आपके लिए भी परफेक्ट औप्शन है.

 बनारसी साड़ी करें ट्राय

 

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इन दिनों जहां देखो वहां बनारसी साड़ी पहने महिलाएं नजर आती हैं, जिसे इन दिनों ट्रैंड कहा जा रहा है. वहीं श्वेता भी इस ट्रैंड को ट्राय करते हुए हाल ही में बनारसी साड़ी में नजर आईं.

चिकन कुर्ता सूट करें ट्राय

 

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अगर आप श्वेता की तरह खूबसूरत फैशन ट्राय करना चाहती हैं तो श्वेता तिवारी का ये ग्रे कलर का चिकन कुर्ता आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

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हौट लुक के लिए ट्राय करें ये साड़ी

 

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अगर आप साड़ी में हौट दिखना चाहती हैं तो श्वेता की तरह डीप नेक वाला V शेप वाला ब्लाउज और उसके साथ साड़ी आपके लुक को हौट बना देगा.

5 टिप्स: बर्तन धोते समय रखें इन चीजों का ख्याल

आजकल बर्तन धोने के लिए मार्केट में कईं प्रौडक्ट आ गए हैं, जिनमें बर्तन धोने के लिए गल्व्स या दस्ताने भी हैं, लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बिना गल्व्स या दस्ताने के बर्तन धोना पसंद करते हैं. पर जरुरी है कि हमें बिना दस्ताने के बर्तन धोते समय कुछ चीजों का ख्याल रखना चाहिए. कईं बार बर्तनों को साफ करने के बावजूद बर्तनों गंदे रह जाते हैं, जिसके कारण कईं बीमारियां और इंफेक्शन होने का खतरा बन जाता है. इसीलिए आज हम आपको बर्तन धोते समय किन चीजों का ध्यान रखें इसके बारे में बताएंगे.

1. बर्तन कर लें एक जगह इक्ट्ठा

बर्तनों को धोने से पहले एक जगह इक्‍टट्ठा कर लें. बार-बार भाग-दौड़ न करें. बाकी सारी चीजें जैसे- साबुन, स्‍क्रबर और तौलिया को भी रख लें.

2. नाजुक बर्तन पहले धुलें

भारी या बड़े बर्तनों को धोने से पहले हल्‍के या क्रौकरी वाले बर्तन पहले धोयें. वरना उनके टूटने का डर बना रहता है. चम्‍मचें, कांटे और छुरियां भी पहले धो लें.

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3. चिकनाई वाले बर्तनों को भिगोएं

बर्तनों को धोने से पहले चिपकने वाले बर्तनों को एक जगह रख कर उनमें गर्म पानी और साबुन डाल दें, ताकि उनकी चिकनाई छूट जाए और उन्‍हें धोने में ज्‍यादा मशक्‍कत न करनी पड़े.

4. बर्तनों को धोएं बारी-बारी

बर्तनों को मांजने के बाद उन्‍हें छोटे से लेकर बड़े के क्रम में धोना शुरू करें. इससे पानी की खपत कम होगी और वो अच्‍छे से साफ भी हो जाएंगे.

5. बर्तनों को सुखाना है जरूरी

बर्तनों को धोने के बाद एक साथ घुसाकर न रखें बल्कि डलिया आदि में अलग-अलग रखें. बाद में उन्‍हें तौलिया से पोंछकर सूखने रख दें. अगर बर्तन अच्‍छी तरह नहीं सूखते हैं तो पेट में इंफेक्शन होने का खतरा होता है.

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