Bigg Boss 14: क्या Rubina Dilaik के एटीट्यूड पर चैनल के सीइओ ने दिया है ये रिएक्शन?

टीवी एक्ट्रेस रुबीना दिलाइक (Rubina Dilaik) इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. जहां शो में उनके जीतने को लेकर फैंस कयास लगा रहे हैं तो वहीं कई लोग उनकी बुराई करते नही थक रहे हैं. दरअसल, शो में रुबीना पर कई बार घमंडी होने का आरोप लगाया गया है, जिसके चलते वह शो के कंटेस्टेंट्स के निशाने पर आ जाती हैं. हालांकि शो के बाहर उनके फैंस और फैमिली पूरा सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. लेकिन इसी बीच कलर्स के सीईओ राज नायक ने एक ट्वीट किया है, जिसे देखकर फैंस को लग रहा है कि वह रुबीना पर निशाना साध रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

रुबीना के एटीट्यूड पर आई बात

बीते एपिसोड में भी रुबीना दिलाइक ने अभिनव शुक्ला (Abhinav Shukla) को ‘ठरकी’ कहने पर राखी सावंत पर बाल्टी भरकर पानी फेंक दिया. हालांकि इस बर्ताव के लिए उन्हें पूरे सीजन के लिए नौमिनेट भी किया जा चुका है. लेकिन हाल ही में बिग बॉस से जुड़े हर खबर देने वाले एक पोर्ट्ल ने ट्वीट में कहा है ‘राज नायक अप्रत्यक्ष रूप से रुबीना दिलाइक को एक्सपोज कर रहे है. क्योंकि उनके अंदर आई, मी और माईसेल्फ जैसा एटीट्यूड है. और कुछ लोग इस एटीट्यूड के कारण उन्हें स्ट्रोंग बता रहे हैं. एटीट्यूड होने का मतलब यह नहीं है कि वो स्ट्रोंग है. किसी को भी मजबूत कहने के लिए स्टैण्डर्ड होना चाहिए.’ हालांकि इस ट्वीट को थोड़ी ही देर में हटा दिया गया है.

 

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ट्वीट में लिखी थी ये बात

वहीं पोर्टल के इस बात से पहले चैनल के सीईओ राज नायक ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘स्ट्रोंग वुमन के अंदर एटीट्यूड नहीं होता. उनके अंदर स्टैण्डर्ड होता है.’

 

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बता दें, इस हफ्ते वीकेंड के वार में सलमान खान घरवालों की जमकर क्लास लगाते नजर आएंगे. जहां वह राखी को उनकी हरकतों के लिए डाटेंगे तो वहीं देवोलीना को उनकी गलतियों का एहसास कराते नजर आएंगे.

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क्या बेटे समर को बचाने के लिए वनराज-काव्या को जेल भेजेगी अनुपमा?

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां आपने देखा कि वनराज के इल्जामों से अनुपमा पूरी तरह टूट चुकी हैं तो वहीं समर अपनी मां पर लगे इन इल्जामों से गुस्से में नजर आ रहा हैं. हालांकि इस बार वनराज को अनुपमा का नया रुप देखने को मिलने वाला है, जिसे देखकर सभी हैरान रह जाएंगे. आइए आपको दिखाते हैं शो के नए प्रोमो की झलक…

काव्या हुई खुश

अब तक आपने देखा कि अनुपमा (Rupali Ganguly) फैसला कर चुकी है कि वो वनराज से अलग हो जाएगी, जिसे सुनकर काव्या की खुशी का ठिकाना नही हैं. वहीं अनुपमा को वनराज से अलग करने के लिए वह नामी वकील को भी हायर करती नजर आ रही है. लेकिन वहीं अनुपमा के बेटे समर का गुस्सा भी देखने को मिला है, जिसके चलते वह मुसीबत में फंस जाएगा. हालांकि अब काव्या की इन खुशियों को ग्रहण लगने वाला है.

 

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अनुपमा उठाएगी ये कदम

 

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हाल ही में सीरियल ‘अनुपमा’ के मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो को देखकर दर्शक हैरान हो जाएंगे. दरअसल, आने वाले एपिसोड में काव्या, समर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवा देगी, जिससे अनुपमा घबरा जाएगी. अपने बेटे समर को मुसीबत में देखकर अनुपमा का खून खौल जाएगा. ऐसे में बिना देर किए अनुपमा भी पुलिस स्टेशन जा पहुंचेगी और वनराज और काव्या के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दर्ज करवा देगी.

अनुपमा की जान पड़ेगी खतरे में

 

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नए-नए ट्विस्ट के बीच आप देखेंगे कि स्कूल में आग लग जाएगी, जिसमें बच्चों की जान पर बन आएगी. वहीं बच्चों की जान को बचाने के लिए अपनी परवाह नही करेगी. इसी बीच आग में अनुपमा फंस जाएगी.

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5 टिप्स: अपनी स्किन के लिए चुनें बेस्ट फेस मास्क

इस भागदौड़ भरे दौर में हम अक्सर अपनी स्किन की ओर ध्यान नही दे पाती, यही वजह है कि अधिकतर महिलाओं को चेहरे पर दाग-मुंहासे, रुखापन, झुर्रियां और बढ़ती उम्र के निशान इत्यादि कमियां देखने को मिलती हैं. यदि आप भी उन चंद महिलाओं में से एक हैं तो जरुरी है कि आप अपनी स्किन का ख्याल रखें. इसके लिए आप माह में एक बार फेस मास्क का उपयोग कर सकती हैं. लेकिन इसके लिए यह जानना बेहद आवश्यक है कि आपकी स्किन के मुताबिक आपके लिए कौन सा फेस मास्क उत्तम रहेगा. अपने लिए बेहतर फेस मास्क के चयन के लिए इस लेख को आखिर तक पढ़ें.

फेस मास्क का चयन कैसे करेः-

इस सूची में शामिल फेस मास्क में सक्रिय रूप से स्किन की स्थितियों के मुताबिक उनका इलाज करने हेतु आवश्यक अवयव मौजूद हैं. इस सूची को बनाने के लिए, हमने इन फेस मास्क के पीछे के विज्ञान को हमारे मुख्य मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया है.

1. फार्मेसी हनी एंटीऑक्सिडेंट हाइड्रेशन मास्क

मुख्य विशेषताएं: यह मास्क शहद की मदद से तैयार किया गया है जो आपकी स्किन पर किसी भी तरह की कोई जलन इत्यादि नही होती. चिकित्सा साहित्य में भी शहद के बहुत से प्रभावी लाभ हैं. इनमे से एक विटामीन बी है, जो आपकी स्किन की स्किन में विश्वसनीय रुप से चमक लाता है और उसे नरम बनाता है.
ध्यान रखें: यह मास्क थोड़ा मोटा और चिपचिपा होता है, यानि सभी महिलाएं इसका उपयोग करने में सहज महसूस नही करेंगी. लेकिन आपको बता दें कि जिन महिलाओं ने प्रति सप्ताह तीन बार इस मास्क का उपयोग किया है, उन्होंने अपनी स्किन में ताज़ागी और निखार देखा है. हालांकि इस उत्पाद कीमत कुछ महिलाओं बजट में फीट नही होंगी, इसलिए वह चाहें तो इसे एक बार खरीदने पर कम मात्रा में ही इसका उपयोग करें.

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किस स्किन के लिए उपयोगीः-

रुखी स्किन

2. स्किन सैलेड हाइड्रोजेल फेस मास्क

मुख्य विशेषताएं: यह एक बजट-अनुकूल, मुंहासे और बढ़ती उम्र के निशान खत्म करने वाला प्रभावी मास्क है. इसमे मौजूद अंगूर के बीज का अर्क आपकी स्किन को विटामिन सी प्रदान करता है जिससे आपके चेहरे पर चमक आती है और साथ ही साथ ये आपकी स्किन को जीवाणुरोधी गुण भी देता है. इसे उपयोग करने वाली महिलाओं का कहना है कि इस मास्क के एक से उनकी स्किन को साफ और चिकनी हो गई.

ध्यान रखें: कुछ स्किन पर अंगूर के बीज के अर्क से जलन जैसी परेशान हो सकती हैं, इससे चेहरे पर लाल धब्बे भी आ सकते हैं. यदि आपकी स्किन विटामिन सी से निहित उत्पादों के प्रति सहज नही है तो कृप्या इस उत्पाद का प्रयोग न करें

किस स्किन के लिए उपयोगीः-

दाग मुंहासों वाली स्किन के लिए उत्तम

3. अर्बनगुरु चारकोल मास्क

मुख्य विशेषताएं: चारकोल मास्क में कई उपयोगी खनिज सम्मिलित होते हैं जो आपकी स्किन की गहराई में मौजूद गंदगी को साफ करते हैं. यह चीन की मिट्टी सफेद के साथ तैयार किया जाता है, इस मास्क को खासतौर पर स्किन को गहराई से साफ करने के मकसद से ही तैयार किया जाता है. यदि आपको भी माथे और नाक पर ब्लैकहेड्स की दिक्कत है आपके लिए यह मास्क सबसे उत्तम रहेगा.
ध्यान रखें: चारकोल मास्क आपकी स्किन को कुछ हद तक सीमित करने में मदद करता है. किन्तु ध्यान रखें कि यदि आपकी स्किन अधिक संवेदनशीन है तो इसका अधिक उपयोग आपके लिए परेशानी का सबब बन सकता है.

किस स्किन के लिए उपयोगीः-

स्किन पर ब्लैकहेड्स की परेशानी

4. ऐज़टेक सिक्रेट प्यूरिफाइंग क्ले मास्कः-

मुख्य विशेषताएं: यदि आप भी आयली स्किन से परेशान है और चेहरे को बार बार धोनी की दिक्कत झेल रही हैं तो ये मास्क आपके लिए बेहतर विकल्प है. शोध बताते हैं कि मिट्टी स्किन के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है. इन मास्क में सेब के बीज और ककड़ी का उपयोग किया जाता है जोकि आपकी स्किन को ना अधिक शुष्क होने देते हैं और ना अधिक आयली.

ध्यान रखें: इस मास्क में मौजूद सामग्री कई बार आपकी स्किन को अधिक शुष्क भी कर सकती है. इसलिए यदि इसके अधिक उपयोग से आपको किसी भी तरह की परेशानी हो रही है तो इसका उपयोग कम या बंद कर दें.

किस स्किन के लिए उपयोगीः-

आयली स्किन के लिए लाभदायक

5. अल्ट्रा रिपेयर इंस्टेंट ओटमील मास्कः-

मुख्य विशेषताएं: यह मास्क महज 10 मिनट में आपकी स्किन को बेहतर परिणाम देने की क्षमता रखता है और इसे लगाने पर आपको वेनिला अर्क की सुगंध आएगी, जो आपको बेहतर महसूस कराएगी. यह ओटमील मास्क आपकी स्किन को रोगाणरोधी गुण प्रदान करता है और साथ ही साथ मुलायम बनाता है. आप इसका उपयोग धूप में घूमने से हुई टेंनिंग को दूर करने के लिए कर सकते हैं.

ध्यान रखें: कुछ समीक्षकों का कहना है कि यदि कोई महिला जो मुंहासे और आयली स्किन की परेशानी से जूझ रही हैं तो उनके लिए इस मास्क का उपयोग बेहतर अनुभव नही रहेगा. यह उनकी दिक्कतों को बढ़ा सकता है.

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किस स्किन के लिए उपयोगीः-

अधिक संवेदनशीन स्किन

बहरहाल अपनी स्किन के अनुसार अपने लिए उत्तम मास्क का चयन करें. बिना जानकारी के किसी मास्क को अपने लिए ना चुनें. इसके अलावा यदि आप स्किन से संबंधित किसी गंभीर समस्या से जूझ रही हैं तो कृप्या किसी भी उत्पाद के प्रयोग से पहले विशेषज्ञ से परार्मश जरुर लें.

सोमाली अधिकारी, न्यूट्रीशनिस्ट एंड ब्यूटी एक्सपर्ट से बातचीत पर आधारित.

जब भी मैं अपने लिप्स पर लिपस्टिक अप्लाई करती हूं तो वो क्रैक लुक देने लगते हैं?

सवाल-

मेरी स्किन के साथसाथ मेरे लिप्स भी काफी ड्राई हो गए हैं,  जिससे जब भी मैं अपने लिप्स पर लिपस्टिक अप्लाई करती हूं तो वो क्रैक लुक देने लगते हैं ? इसका सोलूशन बताएं और साथ ही हम  लिपस्टिक में कैसे इंग्रीडिएंट्स का इस्तेमाल करें,  जिससे ये समस्या न हो?

जवाब-

कहते हैं न कि लिपस्टिक के बिना मेकअप अधूरा माना जाता है.  लेकिन अगर लिप्स पर लिपस्टिक अप्लाई करने के बाद भी  लिप्स की ड्राईनेस व उनके  क्रैक होने के कारण वो बात न आए तो सारे मेकअप पर पानी फिर जाता है. ऐसे में अगर आपके लिप्स पर ड्राईनेस व उन पर क्रैक की प्रोब्लम है तो आपके लिए बेस्ट है कि आप बीटरूट के रस में थोड़ी सी मलाई मिलाकर उससे लिप्स पर 10 मिनट तक मसाज करें,  इससे आपके लिप्स पिंकिश कलर में नजर आने के साथसाथ उनकी ड्राईनेस भी धीरेधीरे खत्म होने लगेगी. क्योंकि जहां बीटरूट न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है,  वहीँ मलाई में मॉइचरीज़िंग प्रोपर्टीज होने के कारण ये लिप्स के लिए काफी लाभकारी है.

वहीं आप ग्रीन टी बैग भी अप्लाई कर सकती हैं.   इसे हलका गरम होने पर ही अपने लिप्स पर इस्तेमाल करें. इससे आपके लिप्स के क्रैक होने की समस्या का निदान होगा. क्योंकि  इसमें बहुत सारे एन्टिओक्सीडैंट्स होने के साथ टैनिन्स होते हैं,  जो स्किन को हील करने के साथ उन्हें स्मूद और हाइड्रेट करने का काम करते हैं.

ये नुस्खा भी आपके बड़े काम का साबित होगा. इसके लिए आप आधा चम्मच मलाई में 4 – 5 बूंदे शहद में 3 पत्ती गुलाब को डालकर उन्हें अच्छे से मैश कर लें,  फिर इससे अपने होठों पर लगाकर 15 मिनट के लिए छोड़ दें,  फिर अच्छे से मसाज करें. इससे लिप्स की ड्राईनेस दूर होने के साथसाथ लिप्स खूबसूरत भी बनते हैं. असल में शहद में लिप्स को एक्सपोलियते करने वाली प्रोपर्टीज होती हैं,  वहीं गुलाब की पत्तियों से लिप्स के डार्क स्पोट्स दूर होने के साथसाथ लिप्स सोफ्ट व स्मूद बनते हैं.

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बता दें कि जब भी हम कोई भी लिपस्टिक का इस्तेमाल करते हैं तो उसमें आमतौर पर तीन चीजें रहती हैं,  बीज  वैक्स,  कोईकोई न कोईकोई आयल और तीसरा होता है कलर. इन्हीं सब को मिलाकर एक लिपस्टिक तैयार की जाती है. बहुत ही महंगी लिपस्टिक में  बीज  वैक्स और आयल के साथसाथ रेड वाइन भी डाली जाती है. बीज वैक्स बेस्ट होती है,  जो हनी बी से मिलती है. लेकिन जो लोग एनिमल की चीज़े इस्तेमाल करना नहीं चाहते,  उनके लिए लिपस्टिक में कोनोवा वैक्स डाली जाती है,  वो प्लांट बेस्ड यानि पाम ट्री से निकलती है. वो भी लिप्स के लिए अच्छी मानी जाती है. कोई भी अच्छा आयल आप इस्तेमाल कर सकते हैं. लिपस्टिक की कीमत उसमें इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोडक्ट्स पर निर्भर करती है. जैसे कोई उसमें मिनरल आयल इस्तेमाल करता है,  कोई कोको बटर यूज़ करता है,  कोई कैस्टर आयल,  कोई जोजोबा आयल,  कोई ओलिव आयल. इनमें कौन सा आयल इस्तेमाल किया गया है और वो कितना महंगा है ,  इस पर किसी लिपस्टिक की कीमत निर्भर करती है. दोनों ही वैक्स बेस्ट है,  ये आपके लिप्स को शेप देने का काम करता है. वहीं आयल आपके लिप्स की हैल्थ व उसे मोइस्चर प्रदान करता है. बता दें कि जिस लिपस्टिक में आयल ज्यादा होता है,  वो ज्यादा ग्लोसी नजर आती है,  वहीं जिस लिपस्टिक में  वैक्स ज्यादा होगी,  तो उसमें ग्लोस कम और कलर यानि थिकनेस ज्यादा दिखेगी. खास बात ये है कि लिपस्टिक में पिगमेंट्स कौन से डाले गए हैं.  क्योंकि अच्छे पिगमेंट्स से लिपस्टिक अपने वास्तविक कलर में नजर आती है.

लिपस्टिक में प्रीसेर्वटिवे का भी खास ध्यान रखना चाहिए. जैसे कुछ लोग हनी,  क्ले को प्रेसेर्वटिवेस के रूप में इस्तेमाल करते हैं,  लेकिन ये थोड़ी देर तक ही चलती है. उनकी शैल्फ लाइफ कम होती है.  लेकिन जब ज्यादा प्रीसेर्वटिवे व खुसबू डाली जाती है,  तो वो हमारे लिए नुकसानदायक होते हैं. इनमें पेराबीन,  मिथाइल पेराबीन , पोलिपेरा बिन डलता है. ये बहुत ही थोड़ी क्वांटिटी में डलता है,  तो नुकसान नहीं करता. बस आप इसे लिप्स के जरिए खाए नहीं. लिपस्टिक में लेड का इस्तेमाल हानिकारक होता है,   ये लिपस्टिक में ज्यादा देर तक स्टे करने के लिए डाला जाता है. इसलिए कोशिश करें कि लिपस्टिक में   पेराबीन,  मिथाइल पेराबीन , पोलिपेरा बिन,  लिड न हो. इसकी बजाय सोडियम बेंज़ोएट,  रेटिनोल,  साल्ट,  क्ले,  हनी हो,  क्योंकि ये अच्छे प्रीसरवाटिव्स माने जाते हैं. इस तरह आप अपने लिप्स को डॉयनेस से बचाने के साथसाथ उनकी हैल्थ का ध्यान रख सकते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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गमोत्सव: क्या मीना को हुआ बाहरी दुनियादारी का एहसास

शोकाकुल मीना, आंसुओं में डूबी, सिर घुटनों में लगाए बैठी थी. उस के आसपास रिश्तेदारों व पड़ोसियों की भीड़ थी. पर मीना की ओर किसी का ध्यान नहीं था. सब पंडितजी की कथा में मग्न थे. पंडितजी पूरे उत्साह से अपनी वाणी प्रसारित कर रहे थे- ‘‘आजकल इतनी महंगाई बढ़ गई है कि लोगों ने दानपुण्य करना बहुत ही कम कर दिया है. बिना दान के भला इंसान की मुक्ति कैसे होगी, यह सोचने की बात है. शास्त्रोंपुराणों में वर्णित है कि स्वयं खाओ न खाओ पर दान में कंजूसी कभी न करो. कलियुग की यही तो महिमा है कि केवल दानदक्षिणा द्वारा मुक्ति का मार्ग खुद ही खुल जाता है. 4 दिनों का जीवन है, सब यहीं रह जाता है तो…’’ पंडितजी का प्रवचन जारी था.

गैस्ट हाउस के दूसरे कक्ष में भोज का प्रबंध किया गया था. लड्डू, कचौड़ी, पूड़ी, सब्जी, रायता आदि से भरे डोंगे टेबल पर रखे थे. कथा चलतेचलते दोपहर को 3 बज रहे थे. अब लोगों की अकुलाहट स्पष्ट देखी जा सकती थी. वे बारबार अपनी घड़ी देखते तो कभी उचक कर भोज वाले कक्ष की ओर दृष्टि उठाते.

पंडितजी तो अपनी पेटपूजा, घर के हवन के समाप्त होते ही वहीं कर आए थे. मनोहर की आत्मा की शांति के लिए सुबह घर में हवन और 13 पंडितों का भोजन हो चुका था. लोगों यानी रिश्तेदारों आदि ने चाय व प्रसाद का सेवन कर लिया था पर मीना के हलक के नीचे तो चाय का घूंट भी नहीं उतरा था. माना कि दुख संताप से लिपटी मीना सुन्न सी हो रही थी पर उस के चेहरे पर थकान, व्याकुलता पसरी हुई थी. ऐसे में कोई तो उसे चाय पीने को बाध्य कर सकता था, उसे सांत्वना दे कर उस की पीड़ा को कुछ कम कर सकता था. पर, ये रीतिपरंपराएं सोच व विवेक को छूमंतर कर देती हैं, शायद.

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इधर, पंडितजी ने मृतक की तसवीर पर, श्रद्धांजलिस्वरूप पुष्प अर्पित करने के लिए उपस्थित लोगों को इशारा किया. पुष्पांजलि के बाद लोग जल्दीजल्दी भोजकक्ष की ओर बढ़ चले थे. देखते ही देखते हलचल, शोर, हंसी आदि का शोर बढ़ता गया. लग रहा था कि कोई उत्सव मनाया जा रहा है. ‘‘अरे भई, लड्डू तो लाना, यह कद्दू की सब्जी तो कमाल की बनी है. तुम भी खा कर देखो,’’ एक पति अपनी पत्नी से कह रहा था, ‘‘कचौड़ी तो एकदम मथुरा शहर में मिलने वाली कचौडि़यों जैसी बनी है वरना यहां ऐसा स्वाद कहां मिलता है.’’

ये सब रिश्तेदार और परिचितजन थे जो कुछ ही समयपूर्व मृतक की पत्नी से अपनी संवेदना प्रकट कर, अपना कर्तव्य पूरा कर चुके थे.

मैं विचारों के भंवर में फंसी, उस रविवार को याद करने लगी जब मीना अपने पति मनोहर व बच्चों के साथ मौल में शौपिंग करती मिली थी. हर समय चहकती मीना का चेहरा मुसकान से भरा रहता. एक हंसताखेलता परिवार जिस में पतिपत्नी के प्रेमविश्वास की छाया में बच्चों की जिंदगी पल्लवित हो रही थी. अचानक वह घातक सुबह आई जो दफ्तर जाते मनोहर को ऐक्सिडैंट का जामा पहना कर इस परिवार से बहुत दूर हमेशा के लिए ले गई.

मीना अपने घर पति व बच्चों की सुखी व्यवस्था तक ही सीमित थी. कहीं भी जाना होता, पति के साथ ही जाती. बाहरी दुनिया से उसे कुछ लेनादेना नहीं था. पर अब बैंक आदि का कार्य…और भी बहुतकुछ…

मेरी विचारशृंखला टूटी और वर्तमान पर आ गई. अब कैसे, क्या करेगी मीना? खैर, यह तो उसे करना ही होगा. सब सीखेगी धीरेधीरे. समय की धारा सब सिखा देगी.

तभी दाहिनी ओर से शब्द आए, ‘‘यह प्रबंध अच्छा किया है. किस ने किया है?’’

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‘‘यह सब मीना के भाई ने किया है. उस की आर्थिक स्थिति सामान्य सी है. पर देखो, उस ने पूरी परंपरा निभाई है. यही तो है भाई का कर्तव्य,’’ प्रत्युत्तर था.

3 दिनों पूर्व की बातें मुझे फिर याद हो आई थीं. भोजन प्रबंध का जिम्मा मैं ने व मेरे पति ने लेना चाहा था. तब घर के बड़ों ने टेढ़ी दृष्टि डालते हुए एक प्रश्न उछाला था, ‘तुम क्या लगती हो मीना की? 2 वर्षों पुरानी पहचान वाली ही न. यह रीतिपरंपरा का मामला है, कोई मजाक नहीं. क्या हम नहीं कर सकते भोज का प्रबंध? पर यह कार्य मीना के मायके वाले ही करेंगे. अभी तो शय्यादान, तेरहवीं का भोज, पंडितों को दानदक्षिणा, पगड़ी रस्म आदि कार्य होंगे. कृपया आप इन सब में अपनी सलाह दे कर टांग न अड़ाएं.’

‘और क्या, ये आजकल की पढ़ीलिखी महिलाओं की सोच है जो पुराणों की मान्यताओं पर भी उंगली उठाती हैं,’ उपस्थित एक बुजुर्ग महिला का तीखा स्वर उभरा. इस स्वर के साथ और कई स्वर सम्मिलित हो गए थे.

मेरे कारण मीना को कोई मानसिक क्लेश न पहुंचे, इसीलिए मैं निशब्द हो, चुप्पी साध गई थी. पर आज एक ही शब्द मेरे मन में गूंज रहा था, यहां इस तरह गम नहीं, गमोत्सव मनाया जा रहा है. मीना व उस के बच्चों के लिए किस के मन में दर्द है, कौन सोच रहा है उस के लिए? चारों तरफ की बातें, हंसीभरे वाक्य- एक उत्सव ही तो लग रहे थे.

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वेलेंटाइन डे पर बांटे प्यार अनोखे अंदाज के साथ

वेलेंटाइन वीक शुरू होने ही वाला है, कपल्स इस दिन को मनाने के लिए नये नये तरीके भी खोज रहे हैं, हालांकि आप वेलेंटाइन-डे को हमेशा प्यार और रोमांस से ही जोड़ते हैं, क्योंकि बात जब प्यार की होती है तो हमारा मन रोमांस की ओर खिंचा चला जाता है, ये खिंचाव और ये एहसास वेलेंटाइन-डे के साथ और भी बढ़ता चला जाता है, हमें ये समझने की जरूरत है कि हमारे लिए जितना जरूरी प्यार होता है, उसका दायरा भी उतना ही बड़ा होता है, आप जितना बांटते हैं प्यार उतना ही ज्यादा बढ़ता है, प्यार का मतलब सिर्फ प्रेमी प्रेमिका के बीचे के प्यार को नहीं समझा जा सकता, प्यार के कई पहलू हैं, आप इस दिन को अपने प्रेमी या प्रेमिका के अलावा उन लोगों के साथ सेलिब्रेट कर सकते हैं जो आपकी जिंदगी में सबसे ज्यादा मायने रखते हैं, अब समय हो चुका है अपना नजरिया बदलने का, आप इस दिन को अपने खास लोगों के साथ मनाइए, जिससे आपका दिन यादगार बन जाए,

1. मनाएं दोस्ती का जश्न- अगर आप किसी के साथ रिलेशनशिप में हैं भी तो आप वेलेंटाइन-डे के दिन अपने दोस्तों के साथ अपनी दोस्ती का जश्न मना सकते हैं, आप इस दिन उनके साथ क्या कर सकते हैं, इसकी योजना बनाएं, ये तरीका ना सिर्फ आपको आपके दोस्तों के साथ समय बिताने का मजेदार तरीका है बल्कि आप एक अच्छी और पुराानी यादें भी ताज़ा कर पाएंगे, ऐसा करने से आपको एक फायदा ये भी होगा कि आप तनाव से बाहर आ पाएंगे साथ ही आपको बातचीत करने का मौका भी मिलेगा.

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2. पहला प्यार है परिवार- वेलेंटाइन-डे के दिन परिवार के साथ समय बिताना उतना ही मजेदार हो सकता है, जितना मजेदार दोस्तों के साथ समय बिताने का होगा, हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि परिवार ही हम सब की जिंदगी का पहला प्यार होता है, परिवार साथ है तो कोई भी परेशानी बड़ी नहीं हो सकती, परिवार का हर वो मेम्बर हमारी जिंदगी में जरूरी होता है जिससे हमारा सबसे ज्यादा जुड़ाव होता है, हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, हमारा रिश्ता हमारे परिवार से और भी गहरा होता चला जाता है, इस लिए परिवार के साथ सेलिब्रेशन का इससे अच्छा कोई और दिन हो ही नहीं सकता.

3. अनाथ बच्चों को दें प्यार की सौगात- ये सबसे खूबसूरत एहसास होता है जब आप उन बच्चों के बीच में जाते हैं, जिनका पासे कोई रिश्ता तो नहीं होता लेकिन उनकी आँखों प्यार और लगाव की तरस और चाह जरुर होती है, आप उनके लिए इस दिन कुछ खास कीजिये, बच्चों के बीच उन्हें अपनेपन का एहसास दिलाएं, उन्हें गिफ्ट और चोकलेट दें, जिससे उनके चेहरे पर आपकी वजह से मुस्कुराहट आ सके,

4. अपने रिश्ते को भी दें समय- हम ऐसा नहीं कह रहे कि आप इस खास दिन में उस इंसान को शामिल ही ना करें, जिससे आपका दिल का रिश्ता हो, एक प्यार और एहसास जुड़ा हो जिसके साथ आप हमेशा खुस रहना चाहते हों, इस दिन आप दुनिया के किसी भी कोने में हों, अपने पार्टनर को उनके पास होने का एहसास दिलाएं, आप उन्हें एहसास दिलाएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं और वेलेंटाइन-डे को उनके लिए हमेशा के लिए यादगार बना सकें.

5. घर के बुजुर्गों को दें प्यार की झप्पी-आपके जीवन में प्यारे बुजुर्गों के लिए कुछ करने या जादू की झप्पी देने का इससे बेहतर और कोई समय नहीं है, उन्हें पता है कि आपके जीवन में उनकी कितनी अहमियत है, उनको उनकी पसंद का कोई गिफ्ट करें या उनकी पसंद की कुछ डिश बनाएं, उनके चेहरे की मुस्कुराहट आपको हमेशा एनर्जेटिक रखेगी.

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शायद ही कोई ऐसा हो जो प्यार के खूबसूरत एहसास से गुजरा ना हो, काफी लोग ऐसे हैं जिनकी लाइफ में कोई स्पेशल शख्स तो नहीं होता, लेकिन वो इस इस दिन मायूस भी नहीं होते, क्योंकि उनसके पास प्यार का ये दिन मनाने के कई कारण होते हैं, वो कारण हैं दोस्त और फैमली, जिससे ये दिन भी यादगार बन जाता है, क्यंकि प्यार का नाम छोटा है लेकिन इसकी परिभाषा के मायने कई हैं,

किसान आंदोलन खूब लड़ रहीं मर्दानी

लेखक- रोहित और शाहनवाज

‘जाग रे किसान तू जाग के दिखा,

अपने और पराए को पहचान के दिखा,

अपने अधिकार तूने खुद लेने हैं,

मांगे से मिलते नहीं छीन लेने हैं.’

(गरनैल कौर, उम 70 साल).

भारत में जब भी कृषि सैक्टर की बात होती है, तो हमेशा पुरुष किसान ही खेत और खेती से जुड़ी चीजों के केंद्र में देखे जाते हैं. तमाम सरकारी और निजी विज्ञापनों में हंसतेमुसकराते पुरुष किसान कभी यूरिया खाद या बीज के साथ तो कभी लहलहाते खेतों में खड़े ट्रैक्टरों के साथ दिखाई देते हैं. किसान महिलाएं इस पूरी कृषि बहस से नदारद रहती हैं, जो कृषि क्षेत्र में ज्यादातर योगदान देती हैं. किंतु न्यूनतम जमीन पर मालिकाना हक रखती हैं.

ये सब इसलिए कि आज भी कृषि क्षेत्र में पुरुष प्रभुत्व को हम सब ने बड़ी सहजता से स्वीकार किया हुआ है और करना भी चाहते हैं.

ऐसे में किसान आंदोलन और उस की रूपरेखा में वे असंख्य किसान महिलाएं नदारद हो जाती हैं, जिन्होंने सदियों से कृषि क्षेत्र में बिना क्रैडिट के लगातार अपना योगदान दिया है. उन के मुफ्त श्रम का अगर हिसाब लगाया जाए तो मानव समाज शर्मशार हो जाए. ऐसे ही पुरुष किसानों से कंधे से कंधा मिलाते हुए हजारों महिला किसान हाड़ कंपाती ठंड में अपने किसान होने के वजूद के साथ हिम्मत की मिशाल पेश कर रही हैं.

ऐतिहासिक आंदोलन

पिछले 42 दिनों से दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर लगातार चल रहे किसान आंदोलन में शामिल इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि ये इस आंदोलन की रीढ़ बन कर उभरी हैं. इन के जज्बे और हिम्मत ने 21वीं सदी के इस आंदोलन को ऐतिहासिक बना दिया है.

किसान महिलाएं न सिर्फ इस आंदोलन का स्तंभ बनी हुई हैं, बल्कि वे अपने वजूद के होने का एहसास भी करा रही हैं और सरकार को चैलेंज भी दे रही हैं.

जाहिर है शहर में रहने वाले पढ़ेलिखे डिजिटल लोगों के लिए कृषि की समझ महज थाली में परोसे जाने वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों तक ही सीमित है, यही कारण है कि व्यंजन की थाली में पहुंचने से पहले खेत मेें लगी समयखाऊ और थकाऊ मेहनत की परतों को समझ पाने में मात खा जाते हैं. इसी के चलते हम कृषि में लगने वाले एक बड़े हिस्से की मेहनत में महिलाओं को कभी ढंग से देख ही नहीं पाए हैं.

लेकिन दिल्ली की विभिन्न सरहदों पर जमी इन हजारों महिलाओं ने आज इसी मानसिकता पर चोट करने की कोशिश की है. वे किसान महिलाएं वहां आंदोलन के भावुक पक्ष को उकेरने के लिए नहीं आ रहीं, बल्कि सरकार से अपने हिस्से की नाराजगियां बताने आ रही हैं.

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वे दूरदराज के गांवों से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर खुद ट्रैक्टर चला अपने हाथों में स्टेयरिंग रख, पीछे ट्रौली में पुरुष किसानों को बैठा, नेतृत्व देते हुए नारों के साथ धरनास्थलों पर पहुंच रही हैं. वे मंच का संचालन भी कर रही हैं, कृषि कानूनों पर बहस कर रही हैं, भूख हड़ताल कर रही हैं, अपने हिस्से की बात भी कह रही हैं और यदि किसी कारणवश धरनास्थल पर नहीं हैं तो अपने गांवकस्बे में इस दौरान पुरुष किसान की गैरमौजूदगी में अधिकतर खेती से जुड़े कामों को संभाल रही हैं.

किसान आंदोलन में दादियां

6 जनवरी, दिल्ली की सुबह की शुरुआत तेज बारिश और ओलों के साथ हुई, जिस दौरान राजधानी दिल्ली में बैठे अधिकतर कृषि कानून पर हामी भरने वाले सांसद अपने मखमल के बिस्तर पर औंधे मुंह गहरी नींद में लेटे थे, उस दौरान किसान अपना भीगा बिस्तरा और बिखरा सामान समेट रहे थे. हम ने भी एक पक्के शहरी होने का फर्ज निभाया और बारिश व ओलों के बंद होने तक का इंतजार किया.

किसान आंदोलन के बड़े स्पौट में से एक पौइंट टीकरी बौर्डर की तरफ बढ़े तो देखा नजारा थोड़ा बदला सा था, लेकिन हौसले से बढ़े हुए थे. मंच संचालित हो रहा था, लेकिन मंच के आगे बारिश के चलते बैठने की सतह गीली थी. कुछकुछ दूरी में रास्तों में बने गड्ढों में बारिश का पानी जमा था. रास्ते कीचड़ से सने थे. हर किसी के पैर टखने तक गंदे नजर आ रहे थे. लेकिन उस के बावजूद किसान खड़े हो कर भाषण सुनने में व्यस्त थे.

वहीं मंच के इर्दगिर्द महिला किसान आंदोलनकारियों का होना ही इस बात का संकेत था कि इस विपरीत परिस्थिति में भी वे पुरुषों से कहीं भी पीछे नहीं हैं. लगातार मंच की तरफ आ रहा उन का हुजूम उन के बुलंद हौसलों को दर्शा रहा था.

इसी दौरान हमारी नजर एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला गरनैल कौर पर पड़ी. जो टकटकी लगाए मंच पर भाषण दे रही 16 साल की लड़की लखप्रीत कौर को बड़े ध्यान से सुन रही थीं. माथे पर खूब सारी त्योरियां, गालों पर ?ार्रियां, आंखों में चमक और होंठों पर मुसकान लिए मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे अपनी किशोरावस्था को भाषण देता देखने का सुख ले रही हों.

गांव किशनगढ़, जिला मनसा, पंजाब से आने वाली गरनैल कौर आंदोलन के शुरुआती दिनों से ही टिकरी बौर्डर पर हैं. वे बताती हैं कि उन का सारा परिवार, जिस में बेटे, बहुएं, पोते, पोतियां हैं, सब इस आंदोलन में मौजूद हैं.

वे कहती हैं, ‘‘मैं ने अपना पूरा जीवन खेतों में गुजार दिया. आज भी 70 साल की होने के बावजूद खेतों में नरमा चुगना, गेहूं काटने में पीछे नहीं हटती हूं. इस आंदोलन की वजह से हमारा भाईचारा और भी बढ़ा है.’’

उन की आवाज बेशक लड़खड़ा रही थी, लेकिन हौसला कम नहीं था. उन्होंने बताया, ‘‘हमें अगर इस सड़क पर 2 साल तक बैठना पड़े तो भी हम बैठने के लिए तैयार हैं. यह अपना भविष्य बचाने की लड़ाई है. अपने घर बचाने की लड़ाई है. हम यहां से तब तक नहीं जाएंगे जब तक ये तीनों कानून वापस नहीं हो जाते.’’

गरनैल कौर यहां बाकी सह उम्र दादियों के साथ आई हैं. उन के लिए टिकरी बौर्डर फिलहाल अस्थाई घर बना हुआ है. वे सब यहां शाम को हंसीठिठोली, मजाकमस्ती करते हैं, एकदूसरे को चिढ़ाती हैं.

यह सारी बिंदास दादियां बारिश को किसानों का गहना बताती हैं. वे कहती हैं कि किसान कभी बारिश न हो, ऐसी मनोकामना नहीं रखता. बारिश हो रही है, वह हमारी फसलों के लिए वरदान है.

किसान आंदोलन में महिला नेतृत्व

महिलाओं की किसान आंदोलन में भूमिका और इसी जज्बे को ले कर टिकरी बौर्डर की मुख्य कन्वेनर व संयुक्त  किसान मोरचा की अहम सदस्य जसबीर कौर नत, जो पंजाब किसान यूनियन का नेतृत्व भी कर रही हैं, का कहना है,  ‘‘महिलाएं शुरूआत से ही इस आंदोलन की नींव हैं. किसानों में भी आधी आबादी महिलाओं की है तो जायज है कि आधी जंग उन्हीं के हिस्से है. पहली बात औरतें भी किसान हैं.

हम महिलाओं के साथ सब से बड़ी समस्या यह है कि हमें कोई किसान मानने को तैयार ही नहीं होता. अगर परिवार में खेती होती है तो औरतें भी उस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.’’

जसबीर कौर का इस आंदोलन में अभी तक अहम योगदान रहा है. टिकरी बौर्डर का मंच संभालते हुए जसबीर कौर महिलाओं के साथ पुरुषों का भी नेतृत्व करती हैं. उन के जिम्मे सिर्फ मंच ही नहीं, बल्कि आंदोलन का बहीखाता भी है. किसी महिला के हाथ बहीखाते की जिम्मेदारी होना अपनेआप में आंदोलन की लैंगिक समानता को दर्शाता है.

जसबीर कौर के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में 75% काम महिलाओं के द्वारा किया जाता है, जिस में महिलाओं के अधीन मात्र 12% ही जमीन पर मालिकाना हक है. जमीन पर मालिकाना हक की कमी के कारण महिलाओं को किसान माना ही नहीं जाता है. उन के कृषि क्षेत्र में बड़े योगदान के बावजूद उन्हें किसान समझ ही नहीं जाता. ये महिलाएं पहले ही गैरबराबरी का शिकार हैं और नए कानूनों के आने के बाद यह और भी अधिक हो जाएगा.

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मगर साथ ही इस किसान आंदोलन को ले कर जसबीर कौर कहती हैं, ‘‘उन्हें प्राउड फील हो रहा है कि महिलाएं इस आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. उन की भूमिका आंदोलन को मजबूती दे रही है. वे अगर किसी कारण यहां नहीं हैं तो खेतों का सारा काम संभाल रहीं हैं. ट्रैक्टर चला रही हैं, फसल तैयार कर रही हैं. यह भी आंदोलन का ही पार्ट.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘औरतों का घर छोड़ना आसान नहीं होता. उन के घर में छोटे बच्चे होते हैं, पशु होते हैं, सासससुर होते हैं, जिन की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी होती है. फिर यहां भी कई दिक्कतें हैं जैसे उन के लिए टौयलेट की व्यवस्था खराब है, नहाने की समस्या है, सोने की समस्या है. ऐसे में महिलाएं आती हैं और यहां रुकती हैं तो बिना जज्बे के तो यह हो नहीं सकता.’’

परिवार की ही चिंता है इसीलिए…

आंदोलन में आई 50 वर्षीय दीना, बौक्सर विजेंद्र सिंह के गांव सीसर खरबला, हिसार, हरियाणा से संबंध रखती हैं. वे एक महीने से आंदोलन में हैं. उन का मानना है कि एक महिला के लिए आंदोलन में आना आसान नहीं होता. उस के कंधों पर किसानी के अलावा घरपरिवार की जिम्मेदारी भी होती है.

वे बताती हैं, ‘‘घर में बूढ़े सासससुर हैं, जो बीमार चल रहे हैं और अकेले हैं. मेरे पति भी इसी आंदोलन में हैं. मैं कभीकभी घर जाती हूं, लेकिन घर में रहती हूं तो मन नहीं मानता, आंदोलन के बारे में सोचती हूं और फिर दोबारा आ जाती हूं. यह सिर्फ मेरे अकेले का मामला नहीं, बल्कि ज्यादातर घरों का है. यहां महिलाएं और भी आना चाहती हैं लेकिन घर की जिम्मेदारी के चलते नहीं आ पा रहीं.’’

दीना आंदोलनकारी महिलाओं को शेरनियां कह कर पुकारती हैं. वे कहती हैं, ‘‘यहां से हम तब तक वापस नहीं जाएंगी जब तक इन तीनों कानूनों को रद्द नहीं कर दिया जाता. जिन खेतों का सौदा मोदी करना चाहते हैं, वे हमारे खेत हैं, हमारी फसलें हैं, जिन पर हम ने मेहनत की है, हम ने उन्हें उगाया है और सरकार हमारी फसलों को अडानीअंबानी के हाथों में बेच देना चाहती है.’’

बराबर की जिम्मेदारी

ऐसे ही उत्तराखंड के काशीपुर इलाके से पिछले 8 दिनों से आंदोलन में शामिल राजदीप, पति राजिंदर सिंह, रिटायर मेजर सूबेदार कहती हैं, ‘‘मैं ने अपने हसबैंड को कहा कि आप किसान आंदोलन में जाओ, मैं घर संभाल लूंगी. जब उन को यहां आ कर प्राउड फील हुआ तो उन्होंने हमें भी आने को कहा, फिर हम पूरी फैमिली के साथ यहां आ गए.’’

वे कहती हैं, ‘‘एक महिला का मतलब खाना बनाना, ?ाड़ूपोंछा लगाना ही नहीं है. ये सब होता ही रहेगा. हम महिलाओं को भी पूरे जोरशोर से आंदोलन में उतरना चाहिए और यह हमारे लिए जरूरी भी है. जब तक हम घरों से नहीं निकलेंगे तब तक अवेयर नहीं होंगे. दोनों पतिपत्नी को यह सोचना चाहिए कि कुछ दिन पति आंदोलन में रहे, तो कुछ दिन पत्नी. आखिर घरपरिवार दोनों का है और इन कानूनों से हमारे खेतों पर आंच आई है तो दोनों की इस से लड़ने की बराबर जिम्मेदारी है.’’

आंदोलन की खेती में उभरती युवतियां

किसान आंदोलन की खूबसूरती यह कि वहां भविष्य की संभावित महिला नेता भी पैदा हो रही हैं, जो हमारे देश के लिए सब से महत्त्वपूर्ण बात है.

ऐसे ही 16 वर्षीय लखप्रीत कौर से टिकरी बौर्डर पर मुलाकात हुई. रंग गोरा, आंखों पर चश्मा और मंच से उन का तीखा भाषण ही काफी था उन के व्यक्तित्त्व के परिचय बताने के लिए, टिकरी बौर्डर से 250 किलोमीटर दूर गांव धर्मगढ़, संगरूर जिला से आने वाली लखप्रीत कौर अभी 11वीं क्लास में सरकारी सीनियर सैकंडरी स्कूल में पढ़ रही हैं. यहां वह अपने गांव के बाकी लोगों के साथ पिछले 7 दिनों से रुकी हैं. यह दिखाता है कि आंदोलन में इस समय किसानों का आपसी विश्वास कितना गहरा है.

लखप्रीत कहती हैं, ‘‘परिवार से फिलहाल में अकेले ही आई हूं इस बार, लेकिन मेरी उम्र की हम सब लड़कियां गांव में चलने वाले आंदोलन का सारा आयोजन कर लेती हैं. गांव में हमारी उम्र के हर किसी लड़केलड़की को पता है कि इन काले कानूनों से हमें क्या दिक्कत हो सकती है, लेकिन सरकार को यह पता नहीं चल रहा या वह नाटक कर रही है.’’

लखप्रीत के अलावा इस समय आंदोलन में युवकयुवतियों की अच्छीखासी संख्या है. कहते हैं किसी भी बड़े आंदोलन की नींव तब तक मजबूत नहीं होती जब तक युवावर्ग उस से न जुड़ा हो. ऐसे में पंजाब के अलगअलग विश्वविद्यालयों से छात्रछात्राओं का वहां लगातार आनाजाना लगा रहता है.

हालांकि युवतियों की जगह युवकों का धरनास्थल पर आना ज्यादा आसान होता है, किंतु उस के बावजूद कई युवतियां वहां लाइब्रेरी चला रही हैं तो कई हैल्थ कैंप लगा कर बीमार प्रदर्शनकारियों को देख रही हैं तो कई लंगर बांटने का काम कर रही हैं. यह दिखाता है कि वे आंदोलन में प्रत्यक्ष भाग ले रही हैं.

किसान आंदोलन में महिलाओं की भूमिका और हिम्मत तो पहले दिन से प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने लगी थी जब धरनास्थल पर 80 साल की बुजुर्ग किसान मोहिंदर कौर अपने बाकी साथियों के साथ भटिंडा से सिंघु बौर्डर आई थीं, जिन्हें आधार बना कर भाजपाइयों और भाजपा समर्थकों ने आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की, जो पूरी तरह नाकाम रही.

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लेकिन महिलाओं की यह भूमिका सिर्फ दिल्ली बौर्डर पर पहुंच जाने भर से नहीं दिखेगी, बल्कि इस के लिए उन किसान परिवारों के जीवन में भी जाने की जरूरत है, जिन के पति/पिता इस समय दिल्ली की सरहदों पर दिनरात जमे हुए हैं.

Winter Special: अब घर पर ही बड़ी आसानी से बनाएं टोर्टिला रैप

आजकल सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा टोर्टिला मेक्सिकन शब्द है जिसे मक्के के आटे से रोटी जैसा पतला और गोल बनाये जाने वाले बेस के लिए प्रयोग किया जाता है. इस बेस में स्वादानुसार फिलिंग भरकर रैप बनाया जाता है. आजकल इसे मैदा और गेहूं के आटे से भी बनाया जाने लगा है क्योंकि मक्के के आटे की अपेक्षा यह अधिक स्वादिष्ट और बनाने में आसान होता है.

मैदा या गेहूं के आटे से पतली सी रोटी को तवे पर ही हल्का सा सेककर उसमें मनचाही सब्जी, चीज और चटनी की फिलिंग करके इसे बनाया जाता है. आजकल यह बच्चे बड़े सभी का पसंदीदा खाद्य पदार्थ है. यह बाजार में तो मिलता ही है परन्तु इसे घर पर भी बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है. इन्हें आप बनाकर फ्रिज में भी स्टोर कर सकतीं हैं. इनमें सब्जियों, खीरा, टमाटर, प्याज आदि की फिलिंग भरकर फ्रेंकी, रैप आदि बड़ी ही आसानी से बना सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

टोर्टिला रैप

कितने लोंगों के लिए 5
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

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सामग्री

मैदा 1 कप
पानी 1 कप
तेल 1/2 टीस्पून
शकर 1/2 टीस्पून
नमक 1/2 टीस्पून

विधि

मैदा और पानी को मिलाकर अच्छी तरह मिलाएं ताकि गुठली न पड़ें. अब इसमें नमक, शकर और तेल मिलाएं. एक नॉनस्टिक पैन पर एक चम्मच तैयार मिश्रण डालें और डोसा या चीले की भांति एकदम पतला पतला फैलाएं. बिना घी और तेल लगाए दोनों तरफ से सेंक लें. जैसे ही रोटी जैसे हल्के हल्के बादामी चकत्ते आ जाएं तो तवे से हटाकर एयरटाइट डिब्बे में रख लें. इसी प्रकार सारे टोर्टिला तैयार करें और आवश्यक्तानुसार फिलिंग भरकर प्रयोग करें.

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Wild & Sexy लुक में एरिका फर्नांडिस ने कराया फोटोशूट, देखें फोटोज

कसौटी जिंदगी के 2 एक्ट्रेस एरिका फर्नांडिस इन दिनों छुट्टियों का मजा ले रही हैं. हालांकि वह बीच-बीच में फोटोशूट के जरिए काम का भी मजा ले रही हैं. एरिका का फैशन बौलीवुड की हौट एक्ट्रेसेस को टक्कर देता है. इसी बीच एक फोटोशूट में अपने हौट लुक से एरिका लाइमलाइट में छा गई हैं. दरअसल, हाल ही में एक फोटोशूट में एरिका वाइल्ड एंड सेक्सी अंदाज में नजर आ रही हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं एरिका के लुक्स की झलक…

लेदर ड्रेस में छाई एरिका फर्नांडिस

फोटोशूट में एरिका फर्नांडिस ब्लैक रंग की लेदर ड्रेस में नजर आईं. वहीं इस लुक के साथ एरिना ने वाइल्ड मेकअप किया था, जिसमें वह बेहद अलग लग रही थीं. इसी के साथ पोज की बात करें तो एक्शन करते हुए दिखीं, जिसे देखकर फैंस ये लुक उनके प्रोजेक्ट के होने को लेकर अंदाजा लगा रहे हैं.

 

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स्किन कलर की ड्रैस पहने दिखीं एरिका

 

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दूसरे लुक की बात करें तो एरिका स्किन कलर की ड्रैस में नजर आईं, जिसपर पत्तो का पैटर्न बना हुआ था. इस लुक के साथ एरिका ने मेकअप सिंपल रखा था, जो कि उनके लुक को स्टाइलिश बना रहा था.

ब्लैक क्रौपटौप में छाया जादू

 

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सिंपल ड्रैस की बात करें तो एरिका ने औफ शोल्डर वाला क्रौप टौप पहना था, जिसके साथ स्लिट पैटर्न वाली स्कर्ट पहनी थीं. इसके साथ औरेंज कलर की हील्स और बालों के स्टाइल के लिए सिंपल पोनी टेल  एरिका के लुक को कम्पलीट कर रही थी.

ड्रैस के साथ दिखा खूबसूरत लुक

 

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बाकी वाइल्ड और सेक्सी लुक से हटकर एरिका आसमानी कलर की स्टाइलिश औफ शोल्डर ड्रैस में नजर आईं, जिसके साथ शौर्ट हेयर उनके लुक को खूबूसरत बना रहा था. वहीं इसके साथ हाई हील्स एरिका के लुक को कम्पलीट कर रहा था.

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सेक्सी अवतार में आती हैं नजर

 

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एरिका के फैशन की बात करें तो वह अक्सर हौट अवतार से फैंस को चौंका देती हैं. वहीं फैंस भी उनके इन लुक्स और फोटोज का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं.

कैंसर के क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है, नई तकनीक हाइपैक और पेरिटोनेक्‍टोमी, जानें यहां

32 वर्षीय रश्मि को पेरिटोनियल बीमारी के साथ ओवेरियन कैंसर था, कीमोथेरेपी देने के बाद भी उसकी बीमारी बनी रही. वह युवा थी और पहले से ही वह माँ बन चुकी थी, ऐसे में रश्मि का इलाज हाइपैक तरीके से किया गया. चार साल बाद भी वह स्टेज 4 कैंसर से जंग जीतकर  बेहतर जिंदगी जी रही है, जो इस इलाज की पद्यति से संभव हो पाया.

65 वर्षीय महिला अनीता एपेंडिसाइटिस ट्यूमर से परेशान थी, जो उसके लीवर, पेट और कई अन्य अंगों में फैल गया था, हाइपैक के बाद, स्टेज चार कैंसर के बावजूद, वह पिछले दो वर्षों से ठीक है.

असल में कैंसर का सही इलाज आज तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तो इसे लाइफ स्टाइल डिसीज की संज्ञा भी दी जाने लगी है. हाल ही में एक शोध से पता चला है कि आज सबसे अधिक ब्रैस्ट कैंसर, फिर लंग्स कैंसर और इसके बाद प्रोस्टेट कैंसर का आता है और इसकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. इस बारें में नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल के ओंको सर्जन डॉ. डोनाल्ड जॉन बाबू का कहना है कि कैंसर का सबसे बड़ा खतरा यह है कि ये कई बार पूरे शरीर में फैल जाता है, जिसके चलते इसका इलाज और मुश्किल हो जाता है. खासकर एब्डोमिनल कैविटी  (पेरिटोनियम या पेरिटोनियल गुहा) की लाइनिंग जैसी मुश्किल जगहों में होने वाले कैंसर का इलाज अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. पेरिटोनियम, एब्डोमिन से लगे झिल्लीनुमान उत्‍तक का आवरण होता है. पेरिटोनियम, पेट के अंगों को सहारा देता है, साथ ही तंत्रिकाओं, रक्त वाहिकाओं और लिम्फ के गुजरने के लिए एक सुरंग के रूप में कार्य करता है. पेरिटोनियल गुहा (कैविटी) में डायफ्राम, पेट और पेल्विक कैविटीस की वॉल्‍स के साथ पेट के अंग भी होते है.

जाने कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट 

कीमोथेरेपी के क्षेत्र में हाल में हुई कई प्रगतियों के बावजूद, कीमोथेरेपी के संपूर्ण रूप से आरोग्यकारी होने की संभावना निश्चित नहीं होती और कई बार इसके दुष्प्रभावों को सहन कर पाना रोगियों के लिए मुश्किल होता है. हालांकि, जब ये कैंसर पेरिटोनियल कैविटी तक सीमित होते हैं, तो हाइपैक अर्थात हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी का प्रयोग ऐसे रोगियों के लिए एक अच्छा विकल्प बन जाता है.

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विधि  

डॉ. पॉल हेड्रिक सुगरबेकर द्वारा खोजी गयी, यह एक अमेरिकी कांसेप्ट है और इसे सुगरबेकर प्रोसेस के रूप में भी जाना जाता है. हाइपैक से पहले, सर्जन द्वारा पेरिटोनियल कैविटी से सभी दिखायी देने वाले ट्यूमर को सर्जिकल रूप से हटा दिया जाता है. इसे पेरिटोनोक्‍टॉमी सर्जरी कहा जाता है. इस सर्जरी के बाद, सर्जन द्वारा ऑपरेटिंग सेटिंग में हाइपैक उपचार किया जाता है.

हाइपैक है क्या 

हाइपैक का अर्थ हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी है. हाइपैक एक बड़ी सर्जरी है. ‘इंट्रापेरिटोनियल’ शब्द का अर्थ यह है कि इसके द्वारा एब्डोमिनल कैविटी का इलाज किया जाता है. यह कैंसर का एक ऐसा इलाज है, जो पेट में कीमोथेरेपी दवाओं के हीट को पंप कर बाहर निकाल देता है. इसलिए कीमोथेरेपी की एक बड़ी खुराक जब दी जाती है, तो यह उतना टॉक्सिक नहीं होता. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ड्रग्स को खून की धमनियों में इंजेक्ट नहीं किया जाता, इसलिए ये आईवी (इंट्रावेनस) के जरिए दिये जाने वाले कीमोथेरेपी को शरीर के अंदर फ़ैलाने में असमर्थ होता है.

इसके अलावा हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी में दवाओं को लगभग 106-109 डिग्री फॉरेनहाइट तक गर्म किया जाता है. कैंसर कोशिकाएं इतनी गर्मी सहन नहीं कर सकती और गर्मी की वजह से दवाओं को अधिक आसानी से एब्सोर्ब करने और कैंसर सेल्स पर बेहतर काम करने में मदद करती है.

हाइपैक से इलाज  

हाइपैक प्रक्रिया के दौरान, सर्जन द्वारा कीमोथिरेप्‍यूटिक एजेंट वाले हीटेड स्‍टराइल सॉल्‍यूशन को पूरी पेरिटोनियल कैविटी में अधिक से अधिक दो घंटे तक लगातार सर्कुलेट किया जाता है. हाइपैक प्रक्रिया का प्रयोग इसलिए किया जाता है, ताकि कैंसर की बाकी बची कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकें. यह प्रक्रिया शरीर के बाकी हिस्सों में न्यूनतम जोखिम के साथ दवा अवशोषण और प्रभाव में भी सुधार करती है. इस तरह से कीमोथेरेपी के सामान्य दुष्प्रभावों से बचा जाता है. इस विधि से इलाज करने में 6 से 10 लाख तक का खर्चा होता है, लेकिन मरीज़ इसके लिए ओंकोलोजिस्ट से बात कर निर्णय ले सकते है.

किन-किन कैन्सर्स के लिए है उपयोगी 

हाइपैक का उपयोग कठिन कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे एपेंडिक्‍स, कोलोरेक्टल कैंसर और पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा (पेट के अस्तर का एक कैंसर, जो अक्सर एस्बेस्टस में सांस लेने के कारण होता है) इस प्रक्रिया ने डिम्बग्रंथि और गैस्ट्रिक कैंसर की उपचार के लिए भी एक अच्छा विकल्प है.

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पेरिटोनेक्टोमी के साथ हाइपैक के उपयोग के फायदे 

इसके आगे डॉ.डोनाल्ड का कहना है कि जब कैंसर केवल अंगों की सतह पर हो और रक्त प्रवाह में नहीं फैले, तो कुछ रोगियों के लिए हाइपैक के साथ साइटोरिडक्टिव सर्जरी को अच्छा माना जा सकता है. इसके अलावा इसके कई फायदे निम्न है,

  • यह ट्यूमर के वॉल्‍यूम को काफी कम करता है, शेष बचे कोशिकाओं को कीमोथेरेपी दवाओं के द्वारा इफेक्टिव तरीके से कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकती है,
  • हाइपैक सभी आयु वर्गों के लिए प्रभावी है,
  • हाइपैक का परिणाम 60-70 प्रतिशत रोगियों के लिए अच्छा पाया गया है और इसके बाद लास्‍ट स्‍टेज कैंसर में भी 5 वर्षों से अधिक समय तक जीवन प्रदान करने की क्षमता देखी गयी है,
  • इस प्रक्रिया को करने के लिए किसी विशेष एहतियात या देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन कैंसर रोगी को नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है.
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