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Anupmaa: एक्सीडेंट के बाद वनराज लेगा ये बड़ा फैसला तो सभी को लगेगा झटका

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां वनराज का एक्सीडेंट हो चुका है तो वहीं अनुपमा की जिंदगी में नया तूफान आ खड़ा हुआ है. वहीं इसी बीच वनराज की जान बचाने की दुआ करती अनुपमा के सामने काव्या दीवार बनकर आ खड़ी हुई है. वहीं परिवार और वनराज की जिम्मेदारी से अनुपमा की परेशानियां और भी बढ़ गई है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

वनराज को अस्पताल ले जाती है अनुपमा

अब तक आपने देखा कि वनराज, काव्या को छोड़कर गाड़ी से निकलते हुए सोचता है कि वह अपनी शादी और प्यार दोनों में असफल हो गया है. वहीं वह यह फैक्ट सहन नही कर पाता कि उसने अपनी एक बड़ी गलती से सब कुछ खो दिया. इसी बीच वनराज की गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है. वहीं वनराज की एक्सीडेंट की खबर समर, अनुपमा को देगा, जिससे वह और पूरा परिवार टूट जाता है. हालांकि अनुपमा खुद को संभालते हुए वनराज को अस्पताल ले जाती है, जिसके बाद वनराज का इलाज शुरु हो जाता है.

 

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वनराज के लिए लड़ती है काव्या

 

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वनराज के साथ लड़ाई के बाद जब काव्या को उसके एक्सीडेंट की खबर मिलती है तो वह परेशान हो जाती है और रोने लगती है. वहीं अस्पताल पहुंच कर वह वनराज पर हक जताने की कोशिश करती है. लेकिन बा, काव्या को भला बुरा सुनाकर अस्पताल से बाहर निकालने की कोशिश करती है.

 

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वनराज लेगा ये फैसला

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज की तबीयत बिगड़ जाएगी, जिसके बाद डौक्टर अनुपमा से कहेंगे कि वनराज के हाथ पैर काम नही कर रहे हैं. वहीं यह सब सुनकर सभी परेशान हो जाएंगे. हालांकि अनुपमा वनराज की देखभाल करती नजर आएगी. लेकिन अनुपमा का वनराज की केयर करना काव्या को पसंद नही आएगा और वह वनराज को अपने साथ घर ले जाने की बात कहेगी. हालांकि बा उसे मना करती नजर आएगी. इसी बीच वनराज फैसला लेगा कि वह अपने परिवार के साथ ही रहेगा.

ऐसे नहीं होगी देश की प्रगति

अगर घर का दिवाला पिट रहा हो, सदस्यों में आपसी झगड़े चल रहे हों, 1-2 को कोविड जैसी बीमारी भी हो, हर जगह सवाल उठाए जा रहे हों तो क्या करें? घर में नया निर्माण शुरू करा दें. ट्रकों से ढेरों ईंटें, रेत, सीमेंट, लोहे मंगवा लें, 10-20 मजदूर लगा लें, सब दूसरे सवाल पूछने बंद हो जाएंगे और सब को उत्सुकता रहेगी कि क्या बन रहा है और कर्ज में डूबे हुए परिवार के पास पैसा कहां से आ रहा है.

यह मौका ऐसा भी है जब हर रोज संतोंमहंतों की सेवा करने का मौका मिलेगा, उन्हें दानदक्षिणा दी जाएगी.

वैसे हमारे यहां संकट चतुर्थी जैसे सैंकड़ो पूजापाठों का विधिविधान है. उस की कथा में ही है कि विष्णु भगवान के लक्ष्मी के साथ विवाह के समय संकट दूर करने के लिए गणेश पूजा करनी पड़ी थी, क्योंकि तभी उन की बरात महादेव के घर पहुंची थी. पहले विष्णु ने गणेश को नहीं बुलाया तो बरात ही रास्ते में मार्ग खराब होने के कारण और रथ का पहिया टूट जाने के कारण रुक गई. हमारी सरकार भी आर्थिक रथ के रुकने पर गणेश वंदना के साथ दूसरे देवीदेवताओं को खुश कर के सरकारी काम कराती रही है ताकि आम जनता का उद्धार इस तरह हो जाए जैसे पौराणिक मान्यता है.

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राम मंदिर और नया संसद भवन ऐसे ही हैं. आर्थिक निर्माण के नाम पर तो जो कारखाने लग रहे हैं, अगर लग रहे हैं तो निजी हाथों में हैं. सरकार का दखल उन में नहीं है चाहे वे अडानी के हों या टाटा के.

नए संसद भवन से नया देश बनेगा, यह ऐसा ही है जैसे नए मकान या पुराने मकान के पुनर्निर्माण से घर के विवाद और संकट दूर हो जाते हैं. बहाना तो गाढ़ी कमाई का फुजूल में खर्च करने का है, चाहे आरतियों में हो या नए देश के प्रतीक नए संसद भवन में.

यह न भूलें कि 1925-30 में बन कर तैयार हुए पुराने संसद भवन के कौंप्लैक्स में 16-17 साल बाद ही देश से ब्रिटिश शासन छूमंतर हो गया था. रायसीना हिल पर बने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सेक्रेटरिएट आदि ब्रिटिश ऐंपायर को नहीं बचा पाए. विशाल भवन न देश की प्रगति की गारंटी हैं न किसी पार्टी की सरकार के स्थायित्व की.

1940-45 के बंगाल सूखे को भी याद रखना चाहिए. जब ब्रिटिश सरकार सूखे की ओर ध्यान न दे कर हवाईजहाजों, टैंकों, बम, राइफलों की ओर ध्यान दे रही थी.

यह ठीक है कि सिर्फ पुराने होने के कारण किसी पुराने भवन से चिपके रहना गलत होगा पर सिर्फ नएपन की खातिर पुरानी विरासत को नष्ट हो जाने देना वह भी तब जब देश संकट में हो, आर्थिक व पारिवारिक समस्याएं सिर पर हों बेवकूफी और जनता के साथ नाइंसाफी है. नए मकान का निर्माण ध्यान तो बंटा देगा पर घर को और गहरी मुसीबत में डाल सकता है.

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बेहतरीन बुनाई के लिए अपनाएं ये 4 टिप्स

लेखिका- पुनीता सिंह 

ठं ड की दस्तक शुरू होते ही बाजार में ऊनी कपड़ों से दुकानें भर जाती हैं. ग्राहकों की भीड़ भी देखी जा सकती है, परंतु इस के बावजूद हाथ से बुने स्वैटरों/परिधानों के आकर्षण में कतई कमी देखने को नहीं मिलती.

बुनाई की कला में माहिर स्त्रियों को अपने हाथों से बुने परिधान ही लुभाते हैं.

आखिर कुछ तो होगा इन में जो इतने महंगे और वैराइटी वाले ऊनी कपड़ों के साथ हमेंघर की छतों, बालकनियों में बैठ कर बुने स्वैटर ज्यादा गरमाहट देते प्रतीत होते हैं. जाहिर है हाथ से अपनों के लिए एकएक फंदा कर के प्यार और मेहनत से बुना परिधान अलग ही गरमाहट  देता है.

सही निटिंग यार्न का चुनाव

बुनाई की बात पर विचार करते ही सब से पहले उत्तम क्वालिटी वूलन का प्रसंग उठता है, जो बेहद जरूरी है. निटिंग यार्न के बढि़या न होने पर परिधान तैयार होने पर हमें काफी खराब रिजल्ट मिल सकते हैं, जो हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है. जैसे ऊन में रंग फेड होना, बुने स्वैटर परिधान पर रोएं निकल आना, आकार बिगड़ जाना आदि.

अत: हमें निटिंग यार्न का चुनाव बहुत सावधानी से करना चाहिए. ऊन हमेशा ब्रैंडेड और भरोसेमंद दुकान से ही खरीदें. नकली लेबल लगे लोकल ऊन भी ब्रैंडेड ऊन की तरह बाजार में उपलब्ध हैं.

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आजकल वर्धमान, ओसवाल और गंगा  की निटिंग यार्न बहुत सुंदर रंगों और वैरायटी  में मिल जाती हैं. जब आप इतने परिश्रम से एकएक फंदा कर के अपनी मनपसंद डिजाइन  का स्वैटर बुनती हैं, तो ऊन की क्वालिटी से सम झौता न करें.

बाद में सही परिणाम न मिलने से बहुत अफसोस होता है और सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है.

उत्तम रंग संयोजन

सही निटिंग यार्न के चुनाव के साथ उचित रंग संयोजन की नौलेज भी जरूरी है. अच्छी क्वालिटी के ब्रैंडेड निटिंग यार्न के कलर बहुत ही उम्दा और यूनीक होते हैं. लोकल में वह कलर मिलना संभव नहीं.

शिशु के लिए बेबी पिंक, पिस्ता, क्रीम और लाइट शेड अच्छे लगते हैं. कुछ बड़े बच्चों और किशोरों के लिए रौयल ब्लू, यलो, रैड, हरा, फिरोजी, ब्लैक आदि. बुजुर्गों के लिए बादामी ग्रे, लाइट आसमानी, मैरून, लाइट डल शेड अच्छे लगते हैं.

निटिंग टूल्स का सही चुनाव बेहद जरूरी

बाजार में उपलब्ध नकली सामान की  वजह से भ्रम होना स्वाभाविक है. ऐसे में  निटिंग यार्न की तरह सुंदर बुनाई के लिए  उत्तम सही टूल्स की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता.

सलाइयां     

अच्छी क्वाल्टी की स्लाइयों से ही  बुनाई करें. पोनी की सलाइयां ठीक रहतीं  हैं. सलाइयों के चुनाव में स्टील और बांस 2 तरह की सलाइयों का प्रयोग किया जा  सकता है.

नौर्मली स्वैटर में आजकल 9, 10, 11, 12 नंबर की सलाइयां इस्तेमाल की जाती हैं.

स्वैटर का बौर्डर बनाने के लिए 12 या 11 नंबर सलाइयों और पूरा स्वैटर 9 या 10 नंबर से बुनते हैं.

सलाइयों के नंबर ऊन के मोटा या पतला पर होने पर निर्भर करता है.

सलाइयां की नौर्मल लंबाई 10 इंच और लंबी लंबाई 14 इंच है. (फ्रौक  या शाल जैसे ज्यादा फंदों वाले परिधान) तैयार करने में लंबी सलाइयां प्रयोग की जाती हैं.

दोनों तरफ नोक वाली सलाइयां गला बनाने या राउंड शेप में कुछ भी बुनना हो तो बहुत  काम आती हैं. ये बाजार में 4 संख्या में उपलब्ध होती हैं.

वायर वाली सलाइयां, यदि कोई  स्वैटर बुनना हो, तो बहुत सुविधाजनक रहती हैं. इस के अलावा गला,  मौजे, कैप या बेबी स्वैटर बिना  जोड़े बुनना हो तो बहुत सुविधा रहती है.

केवल नीडल या सलाई

केवल डिजाइन में फंदे पलटने में  काफी परेशानी होती है. इस नीडल से केवल डिजाइन बड़ी आसानी से तैयार किया जा  सकता है.

नीडल कैप

इसे सलाइयों की नोक पर लगाने के  लिए इस्तेमाल करते हैं ताकि आप जब बीच में बुनाई छोड़ कर काम के लिए उठें तो फंदे निकलेंगे नहीं.

स्टिच होल्डर

ये कंधों आदि के फंदे भरने के काम  आते हैं. इन्हें अन्य जगह भी फंदे स्टोर करने  के लिए यूज कर सकती हैं. स्वैटर के फंदे डूबेंगे नहीं. यू पिन यह यू के आकार की सलाई होती है, जिस से निटिंग यार्न प्रयोग कर क्रोशिए की मदद से तरहतरह की बहुत सी सुंदर डिजाइनों में फैंसी शाल, स्टोल, स्वैटर कोट, हाफ स्वैटर, जैकेट आदि बनाए जा सकते हैं.

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पौम

पौम मेकर इस टूल की मदद से पौमपौम बहुत सुंदर और आकर्षक बनता है. दोनों  तरफ निटिंग धागा लपेट कर कटिंग की जाती  है. बच्चों की कैप, मोजे या स्वैटर के लिए  भी मनपसंद डिजाइन व रंगबिरंगे पौमपौम  बहुत आसानी से तैयार कर सकती हैं.

आशा है आप इन सर्दियों में एक प्यारा सा स्वैटर बतौर तोहफा दे कर अपनों को जरूर खुश करेंगी और साथ ही अपनी अमूल्य धरोहर से अपनों की मधुर यादों में बसी रहेंगी.

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं उत्तपम मिक्स पेरी पेरी मिनी इडली

अगर आप वीकेंड पर कुछ हल्का लेकिन टेस्टी बनाना चाहते हैं तो आज हम आपको टेस्टी इडली की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

–  1/2 कप उत्तपम मिक्स आटा

–  1/2 कप दही

–  जरूरतानुसार कुनकुना पानी

– थोड़ा सा लालमिर्च पाउडर

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 तड़के के लिए हमें चाहिए

–  1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

– 1 सैशे ईनो

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

बनाने का तरीका

– उत्तपम मिक्स आटे में दही, थोड़ा पानी और नमक डाल कर पकौड़े लायक गाढ़ा घोल तैयार करें.

– 10 मिनट ढक कर रखें.

– 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर हींग, जीरा, राई और करीपत्ता का तड़का तैयार कर मिश्रण में मिला दें.

– धनियापत्ती भी डाल दें.

– मिनी इडली मोल्ड्स को चिकना करें.

– मिश्रण में ईनों मिलाएं और बीस सैकंड के लिए हलके हाथों से चलाएं.

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– प्रत्येक मोल्ड में मिश्रण रखें. ऊपर से लालमिर्च पाउडर बुरकें और 7-8 मिनट भाप में पकाएं.

– चटनी के साथ सर्व करें.

गलतफहमी : शिखा अपने भाई के लिए रितु को दोषी क्यों मानती थी

लेखिका- बरखा सिन्हा अग्रवाल 

औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा.

आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई.

उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं ’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू ’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे ले कर तुम्हारी नीयत खराब है क्या ’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है ’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम  की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी ’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

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चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’’

शिखा बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाईझगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे ’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों ’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो ’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा ’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया.

‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने कहा.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए.’’

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’

‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो ’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो ’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को  यह तीसरा कौन होगा ’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है.

2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं ’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी ’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में

तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी.

‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी ’’ वंदना ने उत्सुकता जताई.

‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी ’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब 8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना

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चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी ’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मुझ से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम ’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मुझ से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों ’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझाया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझी में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में  मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे.

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बदलें अपना आई मेकअप लुक 2021 में

मेरी तरह आप भी वही पुराने आइ मेकअप लुक से बोर हो गयी होंगी. तो क्यों ना कुछ बदलाव किया जाए और नये साल में नये जोश और उत्साह के साथ इस नये लुक को अपनायें. क्योंकि आपके लिए इन दिनों आंखों का मेकअप लुक ही सबसे ज्यादा मायने रखता है.

दरअसल उन्हें खूबसूरत दिखना होता है. वो किसी से भी कम नहीं दिखना चाहती हैं. देखा जाए तो आज कल का ट्रेंड आई मेकअप का ही है. क्योंकि एक ट्रेंडी आई मेकअप ही आपको सबसे जुदा दिखा सकता है. आप अपने लुक के साथ कुछ हटकर करना चाहती हैं जिससे आप किसी से कम ना लगे. तो आज का हमारा ये लेख ख़ास आपके लिए है. आज हम आपको बताएंगे कि आप कैसे शानदार सेलेब्स की तरह इस साल ट्रेंडी पार्टी मेकअप कर सकती हैं. और खुद को परफेक्ट दिखा सकती हैं.

1. सनशाइन येल्लो आई मेकअप-

येल्लो आई मेकअप का आपको फंकी सा लुक देता है. इसे आप विंटर के साथ-साथ समर्स में भी अपना सकती हैं. आपको बता दें ये लुक मार्गोट रोबी ने अपनाया है. आप इस मेकअप के साथ परफेक्ट लुक के साथ साल की शुरुआत कर सकती हैं. आप इस साल पैनटोन रंग के साथ पार्टी सीजन में मेकअप लिए शामिल किया जा सकता है.

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2. पर्पल और ग्रीन शिमर आई मेकअप-

आप कुछ अलग सा मेकअप लुक ट्राई करना चाहती हैं तो आप पर्पल और ग्रीन शिमर आई मेकअप का लुक आजमा सकती हैं. इस मेकअप लुक को होलीवुड अदाकारा कारा देवलिग्ने ने भी कैरी किया है. जिसमें वो बेहद खूबसूरत नजर आ रही हैं. ये लुक आप पर भी खूब फबेगा. इसमें पिस्ता ग्रीन और गहरा वायलट कलर का बेहतरीन कॉम्बिनेशन यूज़ कीजिये. क्योंकि पार्टी अक्सर रात की होती है. तो रात के डार्कनेस ने इसका शिमर खूबसूरत दिखेगा. नये साल में आप पार्टी इस कलरफुल लुक के साथ करें. जो वाकई खूबसूरत दिखेगा.

3. नियॉन पिंक लिड्स-

नियॉन पिंक हर किसी को आकर्षित कर सकता है. आई मेकअप में इस लुक को दुआ लिपा ने भी कैरी किया है. जो फंकी व बेहद खूबसूरत है. ये मेकअप उन लोगों पर ज्यादा फबता है जो तेज तर्रार होते हैं और खुलकर जीना पसंद करते हैं. जिन्हें पिंक कलर से प्यार है वो लोग भी इस लुक के साथ कुछ ट्रेंडी सा एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं.

4. गोल्ड ग्लिटर कॉफी टोंड मेकअप-

अगर आपको बहुत ही सिंपल सा लुक चाहिए तो आप डकोटा जॉनसन का गोल्ड ग्लिटर कॉफी टोंड मेकअप वाला लुक कैरी कर सकती हैं. ये लुक हल्के कॉफी कलर के साथ शाइनी भूरे रंग के आईशैडो बेस के साथ हॉट टोंड मेकअप लुक दे सकती हैं. तो पूरी पार्टी में जान डाल देगा.

5. सॉफ्ट शैम्पेन पिंक आई मेकअप-

पिंक के कई शेड होते हैं, और कई शेड के साथ कई लुक भी. उन्हीं में से एक है सॉफ्ट शैम्पेन पिंक. जो खुद अभिनेत्री सारा अली खाना ने भी किया है. इस तरह के आई मेकअप सेलेब्स सबसे ज्यादा पसंद करती हैं. क्योंकि इस लुक के जरिये आप दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं. इस लुक को निखारने के लिए लिक्विड आईशैडो और ब्राउन कोहल पेंसिल का इस्तेमाल ज़रूर करें.

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6. ब्लू ग्लिटर लिड्स-

ब्लू कलर तो निश्चित ही आपको हॉट लुक देगा. इसे अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा भी इस ब्लू ग्लिटर लिड्स आई मेकअप के साथ स्पॉट की गयी हैं. ये लुक नाइट पार्टी को और भी शाइनी बना देगा. ये लुक आपको स्पार्कल फैक्टर को जोड़ता है जो पार्टी स्पेशल होते हैं. आप ब्लू आईलाइनर बेस के साथ प्ले करें और इस लुक के लिए ब्लू ग्लिटर के साथ इसे टैप करें.

7. मेटैलिक आई मेकअप-

जारा ज़ारा लार्सन का मेटैलिक आई मेकअप आपके लिए वाकई ट्रेंडी बन सकता है. जो बोल्ड और हॉट लगता है. आप इसके सरह गोल्डन आईलाइनर लगाएं. आप पार्टी में खुद को सबसे ज्यादा खूबसूरत बना पाएंगी.

ये कुछ ऐसी टिप्स हैं, जिनकी मदद से आप पार्टी मेकअप के लिए खुद को सेलेब्स जैसा ट्रेंडी लुक दे सकती हैं. ये लुक ऐसे हैं जो आपके लिए अलग भी होंगे और कुछ हटकर भी होंगे. तो फिर इन्तजार किस बात को खुद को इन सेलेब्स की तरह तैयार कीजिये और नये साल में पार्टी एंजॉय कीजिये.

ब्रेकअप से उबरने के 5 टिप्स

जब अंशु को पता चला कि उस की भानजी आरवी का 5 साल पुराना रिश्ता टूट गया है तो उस के होश उड़ गए. कितनी प्यारी थी आरवी और कबीर की जोड़ी. दोनों एकसाथ मुंबई के इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे. दोनों ही परिवारों ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था, बस एक सामाजिक स्वीकृति मिलनी बाकी थी. अंशु बहुत दुखी मन से अपनी दीदी के घर गई तो देखा आरवी तो एकदम नौर्मल थी और खिलखिला रही थी.

अंशु को लगा कि आजकल के बच्चों का प्यार भी कोई प्यार है. जब चाहो रिलेशनशिप में आ जाओ और जब मरजी ब्रेकअप कर लो. ये आजकल के रिश्ते भी कोई रिश्ते हैं? बस सारे रिश्ते दैहिक स्तर पर ही आधारित हैं.

अंशु को अपना समय याद आ गया जब उस का रिश्ता प्रवेश के साथ टूट गया था. पूरे 2 वर्ष तक वह अपनी खोल से बाहर नहीं निकल पाई थी. कितनी मुश्किल से उस ने अपने नए रिश्ते को स्वीकार किया था. कभीकभी अंशु को लगता कि वह आज तक भी अपने पति को स्वीकार नहीं कर पाई है. प्रवेश के साथ उस टूटे रिश्ते की टीस अभी भी बाकी है.

रात को आरवी अंशु के गले लग कर बोली, ‘‘मौसी, बहुत अच्छा हुआ आप आईं. मेरा पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा है, इसीलिए तो मैं यह फैसला कर पाई हूं.’’

मगर अंशु को लग रहा था कि आरवी को दरअसल कबीर से कभी प्यार ही नहीं था. पर आरवी के अनुसार घुटघुट कर जीने के बजाय अगर आप की बन नहीं रही है तो क्यों न ब्रेकअप कर के आगे बढ़ा जाए.

आजकल की युवा पीढ़ी पहले से अधिक जागरूक और व्यावहारिक है. एक व्यक्ति के पीछे पूरी जिंदगी खराब करने के बजाय वह ब्रेकअप कर के आगे की राह आसान बना लेती है.

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दूसरी ओर मानसी का जब ऋषि से 2 साल पुराना रिश्ता टूट गया तो वह अवसाद में चली गई. अपने साथसाथ उस ने अपने पूरे परिवार की जिंदगी भी मुश्किल कर दी थी. कोई भी रिश्ता जबरदस्ती का नहीं होता है. अगर आप का साथी आप के साथ वास्ता नहीं रखना चाहता है, तो गिड़गिड़ाने के बजाय अगर आप सम्मानपूर्वक आगे बढ़ें तो न केवल आप के साथी के लिए बल्कि आप के लिए भी अच्छा होगा.

हालांकि ब्रेकअप पर बहुत दलीलें दी जा सकती हैं, फिर भी घुट कर जीने से ब्रेकअप कहीं अधिक बेहतर है.

ब्रेकअप चाहे शादी से पहले हो या शादी के बाद हमेशा मर्यादित होना चाहिए. अगर इन छोटेछोटे व्यावहारिक सु झावों को हम निजी जीवन में अपनाएं तो बहुत जल्दी एक संपूर्ण जीवन की ओर बढ़  सकते हैं:

1. शहीदाना भाव ले कर मत घूमें:

ब्रेकअप होने का मतलब यह नहीं है कि आप 24 घंटे मुंह बिसूर कर घूमते रहें. यह जीवन का अंत नहीं है. जिंदगी आप को फिर से खुशियां बटोरने का मौका दे रही है. आप की पहचान खुद से है. बहुत बार हम रिश्तों में ही अपना वजूद ढूंढ़ने लगते हैं. इसलिए हम किसी भी कीमत पर ब्रेकअप नहीं करना चाहते हैं. 1-2 दिन मूड का खराब होना लाजिम है पर उस खराब रिश्ते की यादों को च्यूइंगम की तरह मत खींचें.

2. दिल के दरवाजे खुले रखें:

एक हादसे का मतलब यह नहीं है कि आप जिंदगी को जीना छोड़ दें. दिल के दरवाजे हमेशा खुलें रखें. हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है. एक अनुभव बुरा हो सकता है पर इस का मतलब यह नहीं है कि आप रोशनी की किरण से मुंह फेर लें.

3. काम में मन लगाएं:

काम हर मर्ज की दवा होती है. अत: खुद को काम में डूबा लें, आधे से ज्यादा दर्द तो यों ही गायब हो जाएगा और जितना अधिक काम में दिल लगेगा उतना ही अधिक आप की प्रतिभा में निखार होगा और तरक्की के रास्ते खुलेंगे.

4. न छोड़ें आशा का साथ :

बहुत बार देखने में आता है कि लोग ब्रेकअप के बाद निराशा गर्त में चले जाते हैं. एक घुटन भरे रिश्ते में सारी उम्र निराशा में बिताने से अच्छा है कि बे्रकअप कर के नई शुरुआत करें. आशा का दामन पकड़े रखें और ब्रेकअप के बाद नई शुरुआत करें.

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5. जिंदगी खूबसूरत है:

जिंदगी खूबसूरत है और एक ब्रेकअप के कारण इस की खूबसूरती को नजरअंदाज न करें. अपने ब्रेकअप से कुछ सीखें और दोबारा उन्हीं गलतियों को न दोहराएं. ब्रेकअप के बाद ही आप को लोगों को सम झने की बेहतर परख आती है.

अगर सरल भाषा में कहें तो ब्रेकअप का मतलब पूर्णविराम नहीं, बल्कि रिश्तों की नई शुरुआत होता है.

तृष्णा

उस का मन एक स्वच्छ और निर्मल आकाश था, एक कोरा कैनवस, जिस पर वह जब चाहे, जो भी रंग भर लेती थी. ‘लेकिन यथार्थ के धरातल पर ऐसे कोई रह सकता है क्या?’ उस का मन कभीकभी उसे यह समझाता, पर ठहर कर इस आवाज को सुनने की न तो उसे फुरसत थी, न ही चाह. फिर उसे अचानक दिखा था, उदय, उस के जीवन के सागर के पास से उगता हुआ. उस ने चाहा था, काश, वह इतनी दूर न होता. काश, इस सागर को वह आंखें मूंद कर पार कर पाती. उस ने आंखें मूंदी थीं और आंखें खुलने पर उस ने देखा, उदय सागर को पार कर उस के पास खड़ा है, बहुत पास. सच तो यह था कि उदय उस का हाथ थामे चल पड़ा था.

दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. संसार का मायाजाल अपने भंवर की भयानक गहराइयों में उन्हें निगलने को धीरेधीरे बढ़ने लगा था. उन के प्यार की खुशबू चंदन बन कर इरा की गोद में आ गिरी तो वह चौंक उठी. बंद आंखों, अधखुली मुट्ठियों, रुई के ढेर से नर्म शरीर के साथ एक खूबसूरत और प्यारी सी हकीकत, लेकिन इरा के लिए एक चुनौती. इरा की सुबह और शाम, दिन और रात चंदन की परवरिश में बीतने लगे. घड़ी के कांटे के साथसाथ उस की हर जरूरत को पूरा करतेकरते वह स्वयं एक घड़ी बन चुकी थी. लेकिन उदय जबतब एक सदाबहार झोंके की तरह उस के पास आ कर उसे सहला जाता. तब उसे एहसास होता कि वह भी एक इंसान है, मशीन नहीं.

चंदन बड़ा होता गया. इरा अब फिर से आजाद थी, लेकिन चंदन का एक तूफान की तरह आ कर जाना उसे उदय की परछाईं से जुदा सा कर गया. अब वह फिर से सालों पहले वाली इरा थी. उसे लगता, ‘क्या उस के जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया? क्या अब वह निरुद्देश्य है?’ एक बार उदय रात में देर से घर आया था, थका सा आंखें बंद कर लेट गया. इरा की आंखों में नींद नहीं थी. थोड़ी देर वह सोचती रही, फिर धीरे से पूछा, ‘‘सो गए क्या?’’

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‘‘नहीं, क्या बात है?’’ आंखें बंद किए ही वह बोला. ‘‘मुझे नींद नहीं आती.’’

उदय परेशान हो गया, ‘‘क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न?’’ अपनी बांह का सिरहाना बना कर वह उस के बालों में उंगलियां फेरने लगा. इरा ने धीरे से अलग होने की कोशिश की, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे अभी नींद आ जाएगी, तुम सो जाओ.’’

थोड़ी देर तब उदय उलझा सा जागा रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख कर गहरी नींद सो गया. कुछ दिनों बाद एक सुबह नाश्ते की मेज पर इरा ने उदय से कहा, ‘‘तुम और चंदन दिनभर बाहर रहते हो, मेरा मन नहीं लगता, अकेले मैं क्या करूं?’’

उदय ने हंस कर कहा, ‘‘सीधेसीधे कहो न कि चंदन तो आ गया, अब चांदनी चाहिए.’’ ‘‘जी नहीं, मेरा यह मतलब हरगिज नहीं था. मैं भी कुछ काम करना चाहती हूं.’’

‘‘अच्छा, मैं तो सोचता था, तुम्हें घर के सुख से अलग कर बाहर की धूप में क्यों झुलसाऊं? मेरे मन में कई बार आया था कि पूछूं, तुम अकेली घर में उदास तो नहीं हो जाती हो?’’ ‘‘तो पूछा क्यों नहीं?’’ इरा के स्वर में मान था.

‘‘तुम क्या करना चाहती हो?’’ ‘‘कुछ भी, जिस में मैं अपना योगदान दे सकूं.’’

‘‘मेरे पास बहुत काम है, मुझ से अकेले नहीं संभलता. तुम वक्त निकाल सकती हो तो इस से अच्छा क्या होगा?’’ इरा खुशी से झूम उठी.

दूसरे दिन जल्दीजल्दी सब काम निबटा कर चंदन को स्कूल भेज कर दोनों जब घर से बाहर निकले तो इरा की आंखों में दुनिया को जीत लेने की उम्मीद चमक रही थी. सारा दिन औफिस में दोनों ने गंभीरता से काम किया. इरा ने जल्दी ही काफी काम समझ लिया. उदय बारबार उस का हौसला बढ़ाता. जीवन अपनी गति से चल पड़ा. सुबह कब शाम हो जाती और शाम कब रात, पता ही न चलता था.

एक दिन औफिस में दोनों चाय पी रहे थे कि एकाएक इरा ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं?’’ ‘‘हांहां, कहो.’’

‘‘यह बताओ, हम जो यह सब कर रहे हैं, इस से क्या होगा?’’ उदय हैरानी से उस का चेहरा देखने लगा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि रोज सुबह यहां आ कर वही काम करकर के हमें क्या मिलेगा?’’ ‘‘क्या पाना चाहती हो?’’ उदय ने हंस कर पूछा.

‘‘देखो, मेरी बात मजाक में न उड़ाना. मैं बहुत दिनों से सोच रही हूं, हमें एक ही जीवन मिला है, जो बहुत कीमती है. इस दुनिया में देखने को, जानने को बहुत कुछ है. क्या घर से औफिस और औफिस से घर के चक्कर काट कर ही हमारी जिंदगी खत्म हो जाएगी?’’ ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम जो कुछ कर रही हो, वह काफी नहीं है?’’ उदय गंभीर था.

इरा को न जाने क्यों गुस्सा आ गया. वह रोष से बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है, जो तुम कर रहे हो, वही सबकुछ है और कुछ नहीं बचा करने को?’’ उदय ने मेज पर रखे उस के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘देखो, अपने छोटे से दिमाग को इतनी बड़ी फिलौसफी से थकाया न करो. शाम को घर चल कर बात करेंगे.’’

शाम को उदय ने कहा, ‘‘हां, अब बोलो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’ इरा ने आंखें बंद किएकिए ही कहना शुरू किया, ‘‘मैं जानना चाहती हूं कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए, आदर्श जीवन किसे कहना चाहिए, इंसान का सही कर्तव्य क्या है?’’

‘‘अरे, इस में क्या है? इतने सारे विद्वान इस दुनिया में हुए हैं. तुम्हारे पास तो किताबों का भंडार है, चाहो तो और मंगवा लो. सबकुछ तो उन में लिखा है, पढ़ लो और जान लो.’’ ‘‘मैं ने पढ़ा है, लेकिन उन में कुछ नहीं मिला. छोटा सा उदाहरण है, बुद्ध ने कहा कि ‘जीवहत्या पाप है’ लेकिन दूसरे धर्मों में लोग जीवों को स्वाद के लिए मार कर भी धार्मिक होने का दावा करते हैं और लोगों को जीने की राह सिखाते हैं. दोनों पक्ष एकसाथ सही तो नहीं हो सकते. बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से देशों में तो लोगों ने कोई भी जानवर नहीं छोड़ा, जिसे वे खाते न हों. तुम्हीं बताओ, इस दुनिया में एक इंसान को कैसे रहना चाहिए?’’

‘‘देखो, तुम ऐसा करो, इन सब को अपनी अलग परिभाषा दे दो,’’ उदय ने हंस कर कहा.

इरा ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं बहुतकुछ जानना चाहती हूं. देखना चाहती हूं कि जब पेड़पौधे, जमीन, नदियां सब बर्फ से ढक जाते हैं तो कैसा लगता है? जब उजाड़ रेगिस्तान में धूल भरी आंधियां चलती हैं तो कैसा महसूस होता है? पहाड़ की ऊंची चोटी पर पहुंच कर कैसा अुनभव होता है? सागर के बीचोंबीच पहुंचने पर चारों ओर कैसा दृश्य दिखाई देता है? ये सब रोमांच मैं स्वयं महसूस करना चाहती हूं.’’ उदय असहाय सा उसे देख रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इरा को कैसे शांत करे. फिर भी उस ने कहा, ‘‘अच्छा उठो, हाथमुंह धो लो, थोड़ा बाहर घूम कर आते हैं,’’ फिर उस ने चंदन को आवाज दी, ‘‘चलो बेटे, हम बाहर जा रहे हैं.’’

उन लोगों ने पहले एक रैस्तरां में कौफी पी. चंदन ने अपनी पसंद की आइसक्रीम खाई. फिर एक थिएटर में पुरानी फिल्म देखी. रात हो चुकी थी तो उदय ने बाहर ही खाना खाने का प्रस्ताव रखा. काफी रात में वे घर लौटे. कुछ दिनों बाद उदय ने इरा से कहा, ‘‘इस बार चंदन की सर्दी की छुट्टियों में हम शिमला जा रहे हैं.’’

इरा चौंक पड़ी, ‘‘लेकिन उस वक्त तो वहां बर्फ गिर रही होगी.’’ ‘‘अरे भई, इसीलिए तो जाएंगे.’’

‘‘लेकिन चंदन को तो ठंड नुकसान पहुंचाएगी.’’ ‘‘वह अपने दादाजी के पास रहेगा.’’

शिमला पहुंच कर इरा बहुत खुश थी. हाथों में हाथ डाल कर वे दूर तक घूमने निकल जाते. एक दिन सर्दी की पहली बर्फ गिरी थी. इरा दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गई. बरामदे में बैठे बर्फ गिरने के दृश्य को बहुत देर तक देखती रही.

फिर मौसम कुछ खराब हो गया था. वे दोनों 2 दिनों तक बाहर न निकल सके. 3-4 दिनों बाद ही इरा ने घर वापस चलने की जिद मचा दी. उदय उसे समझाता रह गया, ‘‘इतनी दूर इतने दिनों बाद आई हो, 2-4 दिन और रुको, फिर चलेंगे.’’

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लेकिन उस ने एक न सुनी और उन्हें वापस आना पड़ा. एक बार चंदन ने कहा, ‘‘मां, जब कभी आप को बाहर जाना हो तो मुझे दादाजी के पास छोड़ जाना, मैं उन के साथ खूब खेलता हूं. वे मुझे बहुत अच्छीअच्छी कहानियां सुनाते हैं और दादी ने मेरी पसंद की बहुत सारी चीजें बना कर मुझे खिलाईं.’’

इरा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और सोचने लगी, ‘शिमला में उसे चंदन का एक बार भी खयाल नहीं आया. क्या वह अच्छी मां नहीं? अब वह चंदन को एक दिन के लिए भी छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी.’ अब हर साल चंदन के स्कूल की छुट्टियों में वे तीनों कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. जीवन में रस सा आ

गया था. सब बेचैनी से छुट्टियों का इंतजार करते. एक शाम चाय पीते हुए इरा ने कहा, ‘‘सुनो, विमलेशजी कह रही थीं कि इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ फिजिकल एजुकेशन से 2-3 लोग आए हैं, वे सुबह 1 घंटे ऐक्सरसाइज करना सिखाएंगे और उन के लैक्चर भी होंगे. मुझे लगता है, शायद मेरे कई प्रश्नों का उत्तर मुझे वहां जा कर मिल जाएगा. अगर कहो तो मैं भी चली जाया करूं, 15-20 दिनों की ही तो बात है.’’

उदय ने चाहा कि कहे, ‘तुम कहां विमलेश के चक्कर में पड़ रही हो. वह तो सारा दिन पूजापाठ, व्रतउपवास में लगी रहती है. यहां तक कि उसे इस का भी होश नहीं रहता कि उस के पति व बच्चों ने खाना खाया कि नहीं?’ लेकिन वह चुप रहा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘ठीक है, सोच लो, तुम्हें ही समय निकालना पड़ेगा. ऐसा करो, 15-20 दिन तुम मेरे साथ औफिस न चलो.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं कर लूंगी,’’ इरा उत्साहित थी. इरा अब ऐक्सरसाइज सीखने जाने लगी. सुबह जल्दी उठ कर वह उदय और चंदन के लिए नाश्ता बना कर चली जाती. उदय चंदन को ले कर टहलने निकल जाता और लौटते समय इरा को साथ ले कर वापस आ जाता. फिर दिनभर औफिस में दोनों काम करते.

शाम को घर लौटने पर कभी उदय कहता, ‘‘आज तुम थक गई होगी, औफिस में भी काम ज्यादा था और तुम सुबह 4 बजे से उठी हुई हो. आज बाहर खाना खा लेते हैं.’’

लेकिन वह न मानती. अब वह ऐक्सरसाइज करना सीख चुकी थी. सुबह जब सब सोते रहते तो वह उठ कर ऐक्सरसाइज करती. फिर दिन का सारा काम करने के बाद रात में चैन से सोती.

एक दिन इरा ने उदय से कहा, ‘‘ऐक्सरसाइज से मुझे बहुत शांति मिलती है. पहले मुझे छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता था, लेकिन अब नहीं आता. कभी तुम भी कर के देखो, बहुत अच्छा लगेगा.’’ उदय ने हंस कर कहा, ‘‘भावनाओं को नियंत्रित नहीं करना चाहिए. सोचने के ढंग में परिवर्तन लाने से सबकुछ सहज हो सकता है.’’

चंदन की गरमी की छुट्टियां हुईं. सब ने नेपाल घूमने का कार्यक्रम बनाया. जैसे ही वे रेलवेस्टेशन पहुंचे, छोटेछोटे भिखारी बच्चों ने उन्हें घेर लिया, ‘माई, भूख लगी है, माई, तुम्हारे बच्चे जीएं. बाबू 10 रुपए दे दो, सुबह से कुछ खाया नहीं है.’ लेकिन यह सब कहते हुए उन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, तोते की तरह रटे हुए वे बोले चले जा रहे थे. इस से पहले कि उदय पर्स निकाल कर उन्हें पैसे दे पाता, इरा ने 20-25 रुपए निकाले और उन्हें दे कर कहा, ‘‘आपस में बराबरबराबर बांट लेना.’’

काठमांडू पहुंच कर वहां की सुंदर छटा देख कर सब मुग्ध रह गए. इरा सवेरे उठ कर खिड़की से पहाड़ों पर पड़ती धूप के बदलते रंग देख कर स्वयं को भी भूल जाती. एक रात उस ने उदय से कहा, ‘‘मुझे आजकल सपने में भूख से बिलखते, सर्दी से ठिठुरते बच्चे दिखाई देते हैं. फिर मुझे अपने इस तरह घूमनेफिरने पर पैसा बरबाद करने के लिए ग्लानि सी होने लगती है. जब हमारे चारों तरफ इतनी गरीबी, भुखमरी फैली हुई है, हमें इस तरह का जीवन जीने का अधिकार नहीं है.’’

उदय ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘तुम सच कहती हो, लेकिन स्वयं को धिक्कारने से समस्या खत्म तो नहीं हो सकती. हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार ऐसे लोगों की सहायता करनी चाहिए, लेकिन भीख दे कर नहीं. हो सके तो इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए. अगर हम ने अपनी जिंदगी में ऐसे 4-6 घरों के कुछ बच्चों को पढ़नेलिखने में आर्थिक या अन्य सहायता दे कर अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया तो वह कम नहीं है. तुम इस में मेरी मदद करोगी तो मुझे अच्छा लगेगा.’’ इरा प्रशंसाभरी नजरों से उदय को देख रही थी. उस ने कहा, ‘‘लेकिन दुनिया तो बहुत बड़ी है. 2-4 घरों को सुधारने से क्या होगा?’’

नेपाल से लौटने के बाद इरा ने शहर की समाजसेवी संस्थाओं के बारे में पता लगाना शुरू किया. कई जगहों पर वह स्वयं जाती और शाम को लौट कर अपनी रिपोर्ट उदय को विस्तार से सुनाती. कभीकभी उदय झुंझला जाता, ‘‘तुम किस चक्कर में उलझ रही हो. ये संस्थाएं काम कम, दिखावा ज्यादा करती हैं. सच्चे मन से तुम जो कुछ कर सको, वही ठीक है.’’

लेकिन इरा उस से सहमत नहीं थी. आखिर एक संस्था उसे पसंद आ गई. अनीता कुमारी उस संस्था की अध्यक्ष थीं. वे एक बहुत बड़े उद्योगपति की पत्नी थीं. इरा उन के भाषण से बहुत प्रभावित हुई थी. उन की संस्था एक छोटा सा स्कूल चलाती थी, जिस में बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता था. गांव की ही कुछ औरतों व लड़कियों को इस कार्य में लगाया गया था. इन शिक्षिकाओं को संस्था की ओर से वेतन दिया जाता था. समाज द्वारा सताई गई औरतों, विधवाओं, एकाकी वृद्धवृद्धाओं के लिए भी संस्था काफी कार्य कर रही थी.

इरा सोचती थी कि ये लोग कितने महान हैं, जो वर्षों निस्वार्थ भाव से समाजसेवा कर रहे हैं. धीरेधीरे अपनी मेहनत और लगन की वजह से वह अनीता का दाहिना हाथ बन गई. वे गांवों में जातीं, वहां के लोगों के साथ घुलमिल कर उन की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करतीं. इरा को कभीकभी महसूस होता कि वह उदय और चंदन के साथ अन्याय कर रही है. एक दिन यही बात उस ने अनीता से कह दी. वे थोड़ी देर उस की तरफ देखती रहीं, फिर धीरे से बोलीं, ‘‘तुम सच कह रही हो…तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे पति का तुम पर पहला अधिकार है. तुम्हें घर और समाज दोनों में सामंजस्य रखना चाहिए.’’

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इरा चौंक गई, ‘‘लेकिन आप तो सुबह आंख खुलने से ले कर रात देर तक समाजसेवा में लगी रहती हैं और मुझे ऐसी सलाह दे रही हैं?’’ ‘‘मेरी कहानी तुम से अलग है, इरा. मेरी शादी एक बहुत धनी खानदान में हुई. शादी के बाद कुछ सालों तक मैं समझ न सकी कि मेरा जीवन किस ओर जा रहा है? मेरे पति बहुत बड़े उद्योगपति हैं. आएदिन या तो मेरे या दूसरों के यहां पार्टियां होती हैं. मेरा काम सिर्फ सजसंवर कर उन पार्टियों में जाना था. ऐसा नहीं था कि मेरे पति मुझे या मेरी भावनाओं को समझते नहीं थे, लेकिन वे मुझे अपने कीमती समय के अलावा सबकुछ दे सकते थे.

‘‘फिर मेरे जीवन में हंसताखेलता एक राजकुमार आया. मुझे लगा, मेरा जीवन खुशियों से भर गया. लेकिन अभी उस का तुतलाना खत्म भी नहीं हुआ था कि मेरे खानदान की परंपरा के अनुसार उसे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया. अब मेरे पास कुछ नहीं था. पति को अकसर काम के सिलसिले में देशविदेश घूमना पड़ता और मैं बिलकुल अकेली रह जाती. जब कभी उन से इस बात की शिकायत करती तो वे मुझे सहेलियों से मिलनेजुलने की सलाह देते. ‘‘धीरेधीरे मैं ने घर में काम करने वाले नौकरों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरू में तो मेरे पति थोड़ा परेशान हुए, फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा. वहां से यहां तक मैं उन के सहयोग के बिना नहीं पहुंच सकती थी. उन्हें मालूम हो गया था कि अगर मैं व्यस्त नहीं रहूंगी तो बीमार हो जाऊंगी.’’

इरा जैसे सोते से जागी, उस ने कुछ न कहा और चुपचाप घर चली आई. उसे जल्दी लौटा देख कर उदय चौंक पड़ा. चंदन दौड़ कर उस से लिपट गया. उदय और चंदन खाना खाने जा रहे थे. उदय ने अपने ही हाथों से कुछ बना लिया था. चंदन को होटल का खाना अच्छा नहीं लगता था. मेज पर रखी प्लेट में टेढ़ीमेढ़ी रोटियां और आलू की सूखी सब्जी देख कर इरा का दिल भर आया.

चंदन बोला, ‘‘मां, आज मैं आप के साथ खाना खाऊंगा. पिताजी भी ठीक से खाना नहीं खाते हैं.’’

इरा ने उदय की ओर देखा और उस की गोद में सिर रख कर फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं तुम दोनों को बहुत दुख देती हूं. तुम मुझे रोकते क्यों नहीं?’’ उदय ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है और पति होने का अधिकार मैं जबरदस्ती तुम से नहीं लूंगा, यह तुम जानती हो. जीवन के अनुभव प्राप्त करने में कोई बुराई तो नहीं, लेकिन बात क्या है तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

इरा उसे अनीताजी के बारे में बताने लगी, ‘‘जिन को आदर्श मान कर मैं अपनी गृहस्थी को अनदेखा कर चली थी, उन के लिए तो समाजसेवा सूने जीवन को भरने का साधन मात्र थी. लेकिन मेरा जीवन तो सूना नहीं. अनीता के पास करने के लिए कुछ नहीं था, न पति पास था, न संतान और न ही उन्हें अपनी जीविका के लिए संघर्ष करना था. लेकिन मेरे पास तो पति भी है, संतान भी, जिन की देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है, जिन के साथ इस समाज में अपनी जगह बनाने के लिए मुझे संघर्ष करना है. यह सब ईमानदारी से करते हुए समाज के लिए अगर कुछ कर सकूं, वही मेरे जीवन का उद्देश्य होगा और यही जीवन का सत्य भी…’’

उपलब्धि: नई नवेली दुलहन कैसे समझ गई ससुरजी के मनोभाव

Serial Story: उपलब्धि (भाग-2)

बाबूजी के प्रति एक नई स्नेहधारा प्रवाहित होने लगी उस के हृदय में. उस की थीसिस जमा हो गई थी. अब बाकी रहा था साक्षात्कार. सुबहसुबह बस से इंटरव्यू के लिए जाना था. घर के सभी सदस्य अभी सो रहे थे. उस के एक परीक्षक आज ही वापस भी चले जाने वाले थे शाम की गाड़ी से, इसलिए इतनी सुबह जाना था. किसी तरह तैयार हो कर वह निकली. सामने कांपते हाथों में चाय का प्याला पकड़े बाबूजी खड़े थे. लज्जित हो वह बोली, ‘‘आप ने क्यों तकलीफ की?’’

सस्नेह वे बोले, ‘‘मेरी कामना है कि तुम्हारा उद्देश्य सफल हो.’’ झुक कर उन के पांव छू कर वह चल दी.

एकांत के सुनहरे क्षणों में स्नेहमयी बांहों की घेराबंदी से अपने को मुक्त करती हुई वह बोली, ‘‘आज मुझे सुबहसुबह बड़ी अजीब सी स्थिति का सामना करना पड़ा. बाबूजी ने स्वयं अपने हाथों से मुझे चाय बना कर ला कर दी है.’’

‘‘तो इस में इतना परेशान होने की क्या बात है, रानी? बाबूजी तो काफी समय से यही करते आए हैं. मां इतनी सुबह उठ नहीं पाती थीं. रात में घर के ढेरों काम रहते थे. बाबूजी रोज 5 बजे सुबह हम लोगों को चाय बना कर देते थे. तब कहीं जा कर हम लोग पढ़ने के लिए बैठते थे.’’ ‘‘ओह डार्लिंग, जिस बात को तुम लोग इतना सामान्य मानते हो, वह मेरे लिए एक निहायत ही मूल्यवान अनुभव है,’’ वह बोली, और उत्तर में मिली एक मुसकान.

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इस घर के चारों ओर जो हरियाली थी उसी के कारण पड़ोसी उसे ग्रीन हाउस कहते और इस परिवार के सदस्यों का आपसी स्नेह सब की ईर्ष्या की वस्तु थी. नई बहू का शोषण करने के इरादे से कोई बातूनी आ कर कहती, ‘‘चलो न, छोटी, आज मेरे पति फ्री हैं. हम दोनों नाइट शो देख आएं. मेरे पति, तुम्हारे पति के सहकर्मी ही नहीं, जिगरी दोस्त भी हैं.’’ तनिक झिझक से वह कहती, ‘‘बाबूजी को ज्यादा रात गए घर लौटना पसंद नहीं है.’’

‘‘ओह, अपने बूढ़े ससुर से कहो ये दकियानूसी बातें भूल जाएं. आखिर एक मैट्रिकुलेट का देखनेसोचने का क्षेत्र तो सीमित होगा ही.’’

छोटी का दिल छलनी होने लगा. बाबूजी ज्यादा पढ़ नहीं पाए, क्या इसलिए वे व्यापक रूप से देखसमझ नहीं पाते? काश, ये छींटे कसने वाली यह गु्रेजुएट महिला जानती कि कितनी तमन्ना थी उन में पढ़ने की. पर कौन पढ़ाता उन्हें? दूर के रिश्ते के एक मामा ने मैट्रिक पास करते ही असम के जंगलों में भेज दिया उन्हें नौकरी करने. किसी तरह अपने को संभाल कर बोली, ‘‘छोटी ननदें हैं न घर में, उन पर क्या असर पड़ेगा?’’ ‘‘अरे, छोड़ो भी. वे क्या तुझे आदर्श बना कर जी रही हैं. ये स्कूलकालेजों में पढ़ने वाली छोकरियां तो अब तक अपना आदर्श ढूंढ़ चुकी होंगी.’’

अब वह क्या कहती? शिक्षा के दीवाने बाबूजी क्या उन लोगों को छोड़ने वाले हैं? हाथ धो कर पीछे लगे रहते हैं ताकि उन लोगों की पढ़ाई पूरी हो जाए. शांत, समझदार सास कभीकभी तुनक भी उठतीं, ‘पढ़ाई के पीछे होशोहवास खो बैठते हैं. यही एक नशा है इन को. लड़कियां घर का कामधाम भले ही न सीखें, बस दिनरात किताबें लिए रटती रहेंगी. लड़कों को तो पढ़ालिखा कर बड़ा लाट बना दिया.’ ‘लाट नहीं तो क्या? उन के ठाठ क्या किसी से कम हैं?’ बाबूजी एक संतोषपूर्ण मुखमुद्रा में चिल्लाचिल्ला कर कहते, ‘पड़ोसी पूछते हैं कि तुम्हारा कितना बैंक बैलेंस है? मैं कहता हूं कि मैं ने अपना पैसा बैंकों में जमा कर दिया है. पांचों बेटे मेरे हीरे हैं.’ उन्हें बैंक बैलेंस शून्य होने का कोई भी दुख नहीं था.

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बेटे कभीकभी चिढ़ जाते, ‘हां, हां, लिखायापढ़ाया ही तो है. और क्या दिया है? हम लोग अपनी मेहनत से आगे बढ़े. तुम ने खापी कर सब खर्च कर दिया.’ ‘जरूर किया. कमाया है, खाऊंगा नहीं?’ बाबूजी अपना धीरज खो बैठते. भिन्नभिन्न प्रकार के पकवानों के प्रति वे अपना लोभ न रोक पाते. खाने का शौक बराबर रहा है उन्हें. यह तो उन के बाजार से अपनी मनपसंद चीजें लाने का शौक देख कर ही वह समझ जाती. दूसरी बहुएं और सास मुंह में कपड़ा ठूंस कर ठिठोली करतीं, ‘‘दांत नहीं रहे, फिर भी खाते किस शौक से हैं. शायद उम्र के साथ लालच और भी बढ़ गया है.’’

मनोविज्ञान की छात्रा छोटी सोचती कि इन लोगों को कौन समझाए. स्नेह और प्यार की वह भूख जो मिट न पाई, उसे जीभ की संतुष्टि द्वारा पेटभर कर मिटाना चाहता है स्नेह का प्यासा वह व्यक्ति. उस के अतृप्त मन ने अपना समाधान खोज निकाला है, पर यदि वह बोलने लगे तो वे हंस कर बोलेंगी, ‘‘चल री, यह कोई तेरी विश्वविद्यालय की कक्षा है, जो लैक्चर झाड़ रही है. अपनी छात्राओं को सिखाना जा कर.’’ प्यार मिला नहीं, पर प्यार लुटाना आता है बाबूजी को. पतंग पकड़ने के लिए जाने पर किस तरह मामा के हाथों पिटाई हुई थी, वही किस्सा सुनातेसुनाते वे मंडू को पतंग बनाना सिखाते. ‘‘स्कूल खुल रहे हैं, मीतू की बरसाती लानी है,’’ सुबह से ही वे हल्ला मचाने लगते मानो मीतू की बरसाती लाने से बड़ा कोई काम इस दुनिया में बचा ही न हो. जब मीतू शैतानी करती तब संझली कहती, ‘‘अब मैं इसे होस्टल में डाल दूंगी.’’

‘‘मजाक में भी होस्टल का नाम मत लेना. बेटी, मांबाप के रहते बच्ची को भला होस्टल में क्यों रहना पड़े इस कच्ची उम्र में? मुझे भी मामा ने 9वीं कक्षा में होस्टल में रख दिया था…’’ वे खो जाते उन दिनों की याद में जब उन्हें पोखर से कमल चुरा कर लाने में बड़ा आनंद आता था. लालाजी के कुम्हड़े की बेल काट कर फेंक देने में हर्ष होता था. और कितना मजा आता था चाचाजी की गाय के बछड़े को छोड़ देने में, जिस से पूरा दूध बछड़ा पी जाए और लल्लन चाचा उसे गालियां सुनाने घर आ धमकें. इस खेल में उपलब्धि शायद भौतिक लाभ की दृष्टि से कुछ भी न होती, पर एक किशोर बालक का अहं तृप्त हो जाता. पर किस को परवा थी उस के अहं की. वह तो पराश्रित अनाथ बालक था, इसीलिए मामा ने उसे होस्टल में भरती कर दिया था.

आगे पढ़ें- वह प्रथम आई है, इस की खुशी….

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