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Serial Story: उपलब्धि (भाग-3)

‘‘जाड़े के दिन थे. बहू और मामा नई रजाई दे गए थे मुझे. लड़कों ने मेरी नईनई रजाई देखी तो ईर्ष्यावश दौड़े आए और हंसने लगे, ‘अरे, मुंडी रजाई है, मुंडी.’ मेरी रजाई के किनारों पर पाइपिंग नहीं थी. बस, छोकरों को बहाना मिल गया. सब के सब टूट पड़े मुंडी रजाई पर और सारी रुई नोचनोच कर हवा में उछालने लगे. एक असहाय किशोर पर उस रात क्या बीती, यह उस का दिल ही जानता है.

‘‘कमरे में रुई के गुब्बारे नहीं, उस के मथे हुए अरमानों की धूल उड़ रही थी. मेरे देखते ही देखते उन्होंने रजाई के चीथड़े कर दिए. ठंड से ठिठुर कर वह जाड़ा गुजारा मैं ने, पर मामा से दूसरी रजाई मांगने का साहस न जुटा पाया. जीवनभर कभी भी किसी से जिद कर के कुछ मांगने का दिन नहीं आया. ‘‘आज किसी बच्चे की कोई भी जिद पूरी कर के मुझे बड़ी आत्मतृप्ति होती है.

‘‘इस कच्ची उम्र में होस्टल में मत भेजो, जबकि तुम लोग जिंदा हो, मैं जिंदा हूं. कल से मैं पढ़ाया करूंगा मीतू को. वह सुधर जाएगी. मांबाप के प्यार में वह ताकत है जो शायद होस्टल के कठोर अनुशासन में नहीं है.’’ छोटी बहू की आंखें सजल हो उठतीं. क्या किसी के पास थोड़ा सा भी अतिरिक्त प्यार नहीं बचता है एक अनाथ बच्चे के लिए? थोड़ा सा स्नेह जहां जादू कर सकता है, सारे विष को अमृत में बदल सकता है, वहां ये समर्थ दुनिया वाले अपनी क्षमता का दुरुपयोग क्यों करते हैं?

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कुछ देर के लिए बाबूजी की उन धुंधली आंखों की सजल गहराई में डूबतीउतराती वह वर्षों पीछे घिसटती चली जाती. प्यार का लबालब भरा प्याला किसी के होंठों से लगा है, पर वह उस स्वाद की अहमियत नहीं जानता और जिस के आगे से अचानक प्यार की भरी लुटिया खींच ली गई हो वह प्यासे मृग की भांति भाग रहा है. और वह खो जाती है अपने वार्षिक परीक्षाफल की घोषणा के दिनों की याद में. वह कक्षा में प्रथम आती है और उस से उम्र में बड़ी चचेरी बहन किसी तरह पास हो जाती है. चाची हाथ मटकामटका कर कहती है, ‘‘देखो, आजकल की बहुरूपिया लड़कियों को, कैसे दीदे फाड़ कर चीखती थी कि हाय, मेरा परचा बिगड़ गया. इधर देखो तो पहला नंबर ले कर आ रही है. हाय, कितने नाटक रचे.’

वह प्रथम आई है, इस की खुशी मनाना तो दूर रहा, पर कभी परचा बिगड़ जाने पर रो पड़ने की बात पर चाची उलाहना देना न भूलीं. स्वाभाविक था कि कितना भी अच्छा विद्यार्थी हो, वह परीक्षा के दिनों में ऊटपटांग सोचता है, डरता है. पर उस के लिए तो स्वाभाविक बात या व्यवहार करना भी संभव न था. वह सब की नजरों में एक वयस्क, समझदार और सख्त लड़की थी, जिस के लिए नाबालिग की तरह व्यवहार करना अशोभन था. और जब आर्थिक झंझटों के बावजूद बाबूजी ने उसे अपनी छोटी बहू मनोनीत किया था, तब तो मानो कहर बरपा था.

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‘क्या देख कर ले जा रहे हैं?’ एक ने कटाक्ष करते हुए कहा था. ताईजी का स्नेह जरूर था इस पर. हौलेहौले वे बोली थीं, ‘अजी, ऐसा मत कहो. हमारी बिटिया का चेहरामोहरा तो अच्छा है. हरदम हंसती आंखें, तीखी नाक और पढ़ाई में अव्वल.’

हां, उस के साधारण से चेहरे पर एक ही असाधारण बात थी. उस की हंसती हुई आंखें-जैसे प्रतिज्ञा कर ली थी उन आंखों ने कि हर उदासी को हरा कर रहेंगे और यही उस का गुण बन गया था-हंसमुख बने रहना. वह अपने आसपास देखती कि इस अभावग्रस्त दुनिया में सुखसुविधा के बीच भी आदमी अभाव का अनुभव कर रहा है. जो भौतिक सुखों से वंचित है वह भी और जो सुविधाप्राप्त है वह भी. शायद भौतिक सुख दुनिया के हर कोने तक पहुंचाने में हम असमर्थ हैं, पर स्नेह के अगाध सागर से लबालब भरा है यह मानव मन. यदि थोड़ा सा भी सिंचन करना शुरू कर दे हर कोई तो सारी धरती, सारी जगती सिंच जाए. इतना थोड़ा सा त्याग वह भी करेगी और करवाएगी. आखिर इस में तो कोई खर्च नहीं है? आजकल की दुनिया में हिसाब से चलना पड़ता है, पर मन का कोई बजट नहीं बन सका है आज तक और न ही प्यार का कोई माप. इसलिए जहां तक स्नेहप्रेम खर्च करने का सवाल है, बेझिझक आगे बढ़ा जा सकता है. वहां न कोई औडिट होगा न कोई चार्ज.

पर हिसाबी है न मानव मन. हो सकता है कभी कोई माप निकल आए और स्नेह का भी हिसाब देना पड़े. शायद यही सोच कर स्नेह के भंडार भरे पड़े हैं और रोते दिलों को लुटाने को कोई तैयार नहीं दूरदर्शी, समझदार आदमी की जात. खिलखिला कर हंस उठी वह. ‘‘कैसी पगली हो तुम? मन ही मन हंसती हो और रोती हो,’’ पति की मीठी झिड़की सुन कर चुप हो गई वह. फिर तुनक कर बोली, ‘‘क्यों, हंसने पर कोई टैक्स तो है नहीं और जहां तक रोने का सवाल है, तुम्हें पा कर, तुम लोगों के बीच इस ग्रीन हाउस की ठंडी छांव में रो कर भी शांति मिलती है. मानो, बीती कड़वी यादों को धो कर बहाए दे रही हूं.’’

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कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. परिवार के सभी सदस्य रजाई में दुबके पड़े थे, पर इतना शोरगुल होने लगा कि एकएक कर सब उठने को मजबूर हो गए. बैठक से शोरगुल की आवाज आ रही थी. एकएक कर सब भीतर झांकने लगे.

‘‘आइए, आइए,’’ छोटी का सदा सहास स्वर. मेज पर एक बड़ा सा केक रखा था. और चाय की प्यालियां सजी थीं. सारे बच्चे बाबूजी को खींच कर मेज तक ला रहे थे. छोटी ने प्यालियां भरनी शुरू कीं. चाय की सुगंध से कमरा महक उठा. बच्चों ने दादाजी को ताजे गुलाब के फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. छोटी ने उन की कांपती उंगलियों में छुरी पकड़ा दी. बच्चे एकसाथ गाने लगे, ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू यू… दादाजी, जन्मदिन मुबारक हो…’’

परिवार के सदस्यों ने भुने हुए काजुओं के साथ चाय की चुस्की ली. केक का बड़ा सा टुकड़ा छोटी ने बाबूजी को पकड़ा दिया. कनखियों से सास की ओर देखा बाबूजी ने. फिर उन की आंखों में जो स्नेह का सागर उमड़ रहा था वह सब के कल्याण के लिए, सारी दुनिया के वंचित लोगों के लिए, सारी जगती के अतृप्त बच्चों के मंगल के लिए बहने लगा… ‘‘मेरा जन्मदिन आज तक किसी ने नहीं मनाया था, बेटी…’’ और छोटी को लगा, स्नेह के इन कीमती मोतियों को वह पिरो कर रख ले.

Serial Story: उपलब्धि (भाग-1)

पहले आने वालों का तांता लगा रहा और अब जाने वालों का सामान बंध रहा था. घर एक चौराहा बन गया था, न वहां किसी को पहचानने का काम था न जानने की फुरसत. सपने की तरह दिन बीत गए और अब एकदूसरे के करीब आने का वक्त मिला था. बैंडबाजे, शहनाई की इतराती धुन और बच्चों के कोलाहल के बाद यह मधुर शांति अच्छी ही लग रही थी उसे. केवल बहुत ही नजदीकी संबंधियों और इस बड़े परिवार के सदस्यों के सिवा लगभग सभी मेहमान विदा हो चुके थे.

जब भी खाली समय मिलता, अवकाशप्राप्त वृद्ध ससुर नई छोटी बहू के पास आ कर बैठ जाते. नयानया घूंघट बारबार खिसक जाता और मंद मुसकान से भरी 2 आंखें वृद्ध की ओर सस्नेह ताकती रहतीं. यह सब बिलकुल नयानया लग रहा था उसे. वास्तविकता की क्रूर धरती पर पली, आदर्श की सूखी ऋतुओं को झेलती, हर परिस्थिति से जूझने की क्षमता रखने वाली वह इस अनोखे स्नेहसिक्त ‘ग्रीन हाउस’ की छत तले अपनेआप को नए सांचे में ढाल रही थी. ‘‘बेटी, अधूरी मत छोड़ना अपनी पढ़ाई, तुझे कोई सहयोग दे न दे, मैं पूरा सहयोग दूंगा. मैं तो दीवाना हूं लिखाईपढ़ाई का.’’ वृद्ध बारबार उस से यह आशा कर रहे थे कि वह उन की बात का उत्साह से जवाब देगी जबकि वह लाज से सिमटी कनखियों से जेठानी व ननदों की भेदभरी मुसकान का सामना कर रही थी.

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क्या बाबूजी भूल गए कि उस का ब्याह हुए केवल 3 ही दिन हुए हैं और अभी वह जिस दुनिया में विचर रही है, वह पढ़ाईलिखाई से कोसों दूर है? पर बाबूजी की निरंतर कथनी न जाने किस अंतरिक्षयान की सी तेज रफ्तार से उसे चांदसितारों की स्वप्निल दुनिया से वास्तविकता की धरती पर ला पटके दे रही थी. पिछले कुछ दिनों में वह लगभग भूल गई थी कि उसे अपने शोधकार्य की थीसिस इसी माह के अंत में जमा करनी है. नातेरिश्तेदारों के मानसम्मान, आवभगत और बच्चों के कोलाहल के बीच भी बाबूजी बराबर उसे आआ कर कुरेदते रहते थे, ‘‘देख बेटी, राजा अपने देश में ही पूज्य होता है, पर विद्वान

का हर जगह सम्मान होता है. तुम विदुषी हो, अपना ध्यान बंटने न देना. तुम्हारे हमजोली लाख भड़काएं, तुम अडिग रहना.’’ और यह कुछ हद तक सच भी था. बड़ी ननद 2-3 बार मजाक में कह चुकी थी, ‘‘अब मेरा भैया ही इस की थीसिस बन गया है. क्या होगी अब लिखाईपढ़ाई इस से. और पीएचडी कर के भी क्या करना है? आखिर में तो वही चूल्हाचौका करना है.’’

‘‘सिर्फ यही दीदी?’’ मझली जेठानी ने आंख मारते हुए कहा था और लाज से उस के कान लाल हो उठे थे. परिवार की हमउम्र सदस्याएं कहती थीं, ‘‘यह दिन रोजरोज नहीं आएगा. जाओ, क्वालिटी में तुम दोनों आज नाइट शो में फिल्म देख आओ.’’ भरेपूरे परिवार में 2 सहमतेधड़कते दिलों को मिलाने वाले मासूम एकांत क्षण, भविष्य के सुनहरे स्वप्नजाल और एकदूसरे में खो जाने के अरमान, पर घड़ी की टिकटिक की तरह बूढ़े बाबूजी की वही रट हरदम मानो कानों पर चोट करती रहती और वह अपनेआप को अपराधी महसूस करने लगती. ओह, ज्यादा पढ़लिख लेना भी अच्छा नहीं, जीना दूभर हो जाता है.

मधुर मिलन की मीठी घडि़यों में भी एक अपराधी सी हो उठती वह. क्या यही चीज कभी उस की कम पढ़ीलिखी जेठानी या बड़ी ननद को कचोटती न रही होगी? कभी नहीं. वे तो जीवन की स्थूल उपलब्धि से ही बेहद संतुष्ट दिखलाई देती हैं. वह केवल सूक्ष्मतम उपलब्धि की बात क्यों सोचती है? इतने बड़े मकान की बंद हवा में वह घुटन सी महसूस करती और इसीलिए वह छत पर जा कर आसमान के नीचे खुले में खड़ी हो जाती. एक बार वह बादल के एक सफेद टुकड़े की सूर्यकिरणों के साथ होती अठखेलियां देखने में मग्न थी कि उस के कानों में कुछ खुसुरफुसुर सुनाई दी.

‘‘बाबूजी का सारा स्नेह मानो बरसात की तरह उमड़ा आ रहा है. छोटी बहू ने आज क्या खाना खाया? वह कमजोर होती जा रही है? और देखा, ढेर सारे फल उस के लिए बाजार से खरीद लाए. खाए चाहे न खाए. हम लोगों से भी तो पूछना था?’’ तभी उसे याद आया. नई जगह में आ कर उसे भूख ही नहीं लग रही थी. यह बात जान कर कि उसे रोज रात को गरम दूध पीने की आदत थी, ससुर अपने सामने बैठा कर दूध का गिलास देने लगे थे. फिर जब भूख नहीं सुधरी तो बारबार पूछते, ‘‘तुम्हें क्या तकलीफ है, बेटी, शरमाना मत. जरूर बतलाना.’’ और फिर एक दिन ढेरों फल ले आए थे. वह क्या बोलती? स्मितभरी आंखों से उन की ओर ताकती रही. उसे यह सब अजीब सा लगता.

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बचपन में ही वह मातापिता को खो बैठी थी. ताऊचाचा, ताईचाची और फुफेरेचचेरे भाईबहनों के कठोर अनुशासन के बीच वह जान ही न पाई थी कि ममता का स्रोत उस के जीवन में सूख गया है. स्नेहममता का यह नया झरना उस के लिए अनोखा था. समय पर उसे खानेपहनने को मिल जाता है. पर कभी किसी ने उस के दिल में क्या है, जानने का न तो प्रयत्न किया था और न ही कभी यह सोचा था कि उस की भी कोई इच्छा हो सकती है. ये छोटीछोटी बातें, ये जराजरा से आग्रह उस के लिए तो हिमालय जैसे थे.

सीढि़यों पर पदचाप ऊपर की ओर ही आ रहा था. मझली के उलाहने का उत्तर देती हुई मझली बोली, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, दीदी, पर बाबूजी ने छोटी को देखने के बाद यही कहा था, ‘लड़की देखनेसुनने में साधारण है, पर प्रतिभाशाली लगती है. खैर, प्रतिभाशाली लड़कियां तो मेरे छोटे बेटे के लिए कई मिली हैं, लेकिन मैं यहीं उस की शादी करूंगा.’ मालूम है क्यों? छोटी के मांबाप नहीं हैं न. बाबूजी उस की पीड़ा शायद हम लोगों से ज्यादा समझते हैं.’’ ‘‘हां, यह तो सच है. उस लिहाज से देखो तो बाबूजी का स्नेह भले ही पक्षपातपूर्ण हो, पर है सही.’’

उस ने हौलेहौले चूडि़यां खनका दीं. दोनों तब तक ऊपर आ चुकी थीं. ‘‘अरे छोटी, तेरी चूडि़यों की खनक से पता चला, तू यहां है. तेरी ही बात हो रही थी. बाबूजी तुम से बेहद स्नेह करते हैं. मालूम है क्यों? उन्हें भी न मां का प्यार मिला, न पिता का लाड़.’’ फिर उसे प्यार से अपनी छाती से सटा कर मझली बोली, ‘‘मेरे प्यारे देवर को पाने के बाद तुझ सा प्रसन्न भला और कौन हो सकता है?’’ प्यार के इस छोटे से प्रदर्शन से ही उस का दिल कुलांचें भरने लगा. कभी भी किसी ने उसे इस तरह प्यार नहीं किया था. बचपन से ही वह वयस्कों में मानी जाने लगी थी. उस की बालसुलभ आकांक्षाओं को भी तो असमय ही कुचल दिया गया था अनुशासन की कुल्हाड़ी से.

आगे पढ़ें- बाबूजी के प्रति एक नई….

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BIRTHDAY SPECIAL: हर ओकेजन के लिए परफेक्ट है दीपिका पादुकोण के ये लुक्स

बीते साल ड्रग्स केस में बौलीवुड के कई सेलेब्स के नाम सामने आए, जिनमें एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण का नाम भी शामिल रहा. वहीं उन्हें एनसीबी के औफिस के चक्कर काटने पड़े. हालांकि इससे दीपिका की फैन फौलोइंग पर असर नही पड़ा. वहीं इन दिनों दीपिका अपनी सारी प्रौब्लम्स को पीछे छोड़ पति रनवीर सिंह संग वेकेशन पर हैं, जिस मौके पर वह 5 जनवरी को अपना बर्थडे भी सेलिब्रेट करेंगी. इसीलिए आज हम आपको उनके बर्थडे के ओकेजन पर उनके साड़ी कलेक्शन की झलक दिखाएंगे, जिसे आप कभी भी फंक्शन हो या शादी ट्राय कर सकते हैं.

1. बनारसी साड़ी में खूबसूरत लगती हैं दीपिका

बनारसी साड़ी की शौकीन दीपिका अक्सर इस लुक को ट्राय करती हुई नजर आती हैं, जिसके लिए वह ट्रैंडी ब्लाउज कैरी करती नजर आती हैं. अपने इंडियन लुक के लिए बनारसी साड़ी के साथ दीपिका अक्सर गोल्ड की ज्वैलरी कैरी करना पसंद करती हैं, जो उनके लुक पर चार चांद लगा देता है.

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2. फ्लावर प्रिंट साड़ी करें ट्राय 

अगर आप किसी पार्टी में सिंपल लुक ट्राय करना चाहती हैं तो दीपिका का ये सिंपल साड़ी लुक ट्राय कर सकती हैं. सेम साड़ी के साथ सेम ब्लाउज आपके लुक को ट्रैंडी बनाने में मदद करेगा. साथ ही आपको स्टाइलिश लुक देने में मदद करेगा.

3. फुल स्लीव ब्लाउज के साथ साड़ी

 

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अगर आप वेडिंग सीजन में फुल स्लीव ब्लाउज ट्राय करना चाहती हैं तो दीपिका का ये बनारसी साड़ी लुक ट्राय करना ना भूलें. लाइट साड़ी के साथ डार्क कौम्बिनेशन वाला ब्लाउज आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा.

4. नेट की साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज

 

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अगर आपके पास कोई नेट की साड़ी है और आप उसे ट्रैंडी बनाना चाहती हैं तो दीपिका की तरह हैवी फ्लोरल कढ़ाई वाला ब्लाउज ट्राय करें. इस लुक को आप किसी भी वेडिंग लुक देने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

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5. चेक पैटर्न करें ट्राय 

अगर आप चेक पैटर्न ट्राय करना चाहती हैं तो दीपिका की ये चेक पैटर्न साड़ी ट्राय करना ना भूलें.

मां-बाप की लड़ाई में पिसते बच्चे

“आज  फिर मम्मी-पापा में लड़ाई शुरू हो गई.  पता नहीं किस बात पर पापा चिल्लाने लगें, तो मम्मी ने बर्तन उठाकर नीचे फेंक दिया और दोनों चिल्लाने लगें. पापा कहने लगें मम्मी की गलती है और मम्मी पापा पर इल्जाम लगाने लगी. मैं बहुत डर गई, क्योंकि पापा मम्मी को मारने लगें। और मम्मी ‘और मारो मुझे और मारो’ बोल कर ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी। मैं डर कर अपने कमरे में जाकर छुप गई. मेरे मम्मी-पापा हरदम छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. तभी समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ इसलिए कमरे में जाकर रोते-रोते सो जाती हूँ” यह कहना है 8 साल की श्रेया का. दरअसल, ज्यादा बिजली बिल को लेकर उसके मम्मी-पापा में बहुत झगड़ा हुआ. उसके पापा ने उसकी मम्मी को मारा और बाहर चले गए.  गुस्से में उसकी मम्मी ने पूरे घर की लाइट और पंखा बंद कर दिया. लेकिन लड़ते वक़्त दोनों यह भूल गए कि उसका बहुत ही प्रतिकूल असर श्रेया पर पड़ रहा है. लड़ते समय उन्हें यह भी ख्याल नहीं रहा कि आस-पास कौन हैं ?  बेचारी श्रेया, माँ-बाप की लड़ाई के बीच पीस रही थी. वह इतनी डरपोक बन चुकी है कि उसके माँ-पापा का बातें करना भी उसे झगड़ा ही लगता है. डर जाती है कि पता नहीं कब दोनों झगड़ने लग जाएँ.   

हर बच्चे के माता-पिता में थोड़ी बहुत लड़ाई झगड़े होते ही हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन जब छोटे-मोटे झगड़े भयंकर लड़ाई में तब्दील होने लगते हैं, बच्चों के सामने ही एक पार्टनर दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं, तो बच्चे आहात हो उठते है. उनमें नकारात्मक सोच गहराने लगती है. पति-पत्नी के लिए लड़ाई-झगड़े भले ही सामान्य बात हो या फिर दोनों को इस बात से कोई खास फर्क न पड़ता हो, लेकिन बच्चे के कोमल मन पर इसका बहुत गहरा और निगेटिव प्रभाव पड़ता है. कई बार देखा गया है कि जिन माता-पिता की अपने बच्चों के सामने अक्सर लड़ाई होती है, पति पत्नी पर हाथ उठता है, उनके बच्चे स्वभाव से दब्बू, उग्र, गुस्सैल या चिड़चिड़ा होता है. 

एक शोध के अनुसार, बच्चे का व्यवहार 91% माता-पिता के व्यवहार से प्रेरित होता है. बच्चे के स्वभाव में इस बात की झलक मिलती है कि उसने कैसा बचपन बिताया है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम बच्चे को लड़ाई-झगड़े वाला माहौल देंगे तो बच्चे का स्वभाव भी लड़ाई-झगड़े वाला ही होता है. इस माहौल के हिसाब से बच्चा गुस्से वाला या चिड़चिड़ा ईर्ष्यालु बनता है. उसको अपनी बात मनवाने के लिए झगड़ा करना आएगा, शेयर करना नहीं आएगा.   

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वर्ष 2012 में अमेरिकन जर्नल चाइल्ड डवलपमेंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बच्चे चार से पाँच साल की उम्र से ही पेरेंट्स के बीच झगड़ा होते देखते हैं, उनमें शॉर्ट टर्म प्रभाव तो पड़ते ही हैं, लेकिन लॉन्ग टर्म प्रभाव उससे भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. बड़े और थोड़े समझदार होने पर ऐसे बच्चों में एंजाइटी, डिप्रेशन और बिहेवरियल इश्यू सामने आने लगते हैं.  बच्चों के सामने पति-पत्नी के लड़ाई-झगड़े, मारपीट का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है, आइए जानते हैं.  

असुरक्षा का भाव 

घर किसी भी बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित जगह होता है, जहां पर उसे प्यार व केयरिंग मिलती है. लेकिन जब उसी घर में वह अपने माता-पिता को रोज झगड़ते देखते हैं, पिता को बार-बार माँ पर हाथ उठाते देखते हैं, गाली-गलौज करते देखते हैं, तो बच्चे के मन में डर, चिंता व असहाय होने का भाव समा जाता है, जो उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है. ऐसे बच्चे जीवन भर असुरक्षा के भाव में जीते हैं. 

मानसिक रूप से परेशान 

माता-पिता की गलतियों की सजा अक्सर बच्चों को भुगतनी पड़ती है. बचपन से ही ऐसे माहौल में रहने से बच्चों का मानसिक विकास अच्छे से नहीं हो पाता है. वह हरदम डरा-सहमा रहता है कि पता नहीं कब माँ-बाप फिर लड़ने लगें. कभी-कभी तो बच्चा खुद को ही उन झगड़ों की वजह मनाने लगता है. 

कम उम्र के बच्चे और शिशुओं पर भी पड़ता है प्रभाव 

छोटे बच्चे भले ही माता पिता के लड़ाई-झगड़ों को नहीं समझ पाते, लेकिन उनके हाव-भाव से उसकी भावनाओं को जरूर समझ लेते हैं. कितनी बार देखा गया है, जब माता-पिता में लड़ाइयाँ होती है तो बच्चे रोरो उन्हें शांत रहने को बोलते है, लेकिन जब ऐसा नहीं होता तब वह खुद ही शांत हो जाते हैं,  क्योंकि उन्हें लगने लगता है कि अब उसके माँ-पापा अलग हो जाएंगे. अपनी माँ को मार खाते देख बच्चा सहम उठता है. वह असुरक्षा से घिरने लगता है, क्योंकि जो माँ उसे प्यार करती है, वह खुद को ही नहीं बचा पा रही है, तो उसका क्या होगा? यह सोचकर बच्चा भयभीत होने लगता है. ऐसे बच्चे खेल-कूद पढ़ाई-लिखाई में भी पीछे रहते हैं. ऐसे बच्चे स्कूल या अन्य जगहों पर भी जाने से कतराने लगते हैं. 

अल्पकालिक प्रभाव

पिता के हाथों माँ को हर हमेशा मार खाते देख, बच्चे पर बुरा असर पड़ने लगता है. वह क्रोधित होता है पिता पर तो कभी डर कर शांत बैठ जाता है. समझ नहीं आता उसे की क्या करें. वह असुरक्षा की भावना से घिरने लगता है. माता-पिता की लड़ाई के बाद जो तनाव और चिंता की स्थिति बनती है वह बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास पर तो असर करती ही है, इससे उसके रोज़मर्रा के कामों में भी बाधा डालती है. 

अपराधबोध के शिकार होते बच्चे 

कई बार बच्चों के कारण भी पति-पत्नी के बीच झगड़े होने लगते हैं. जब बच्चे को यह बात पता चलती है कि माता-पिता उनकी वजह से लड़ रहे हैं, तो बच्चे को बहुत बुरा लगता है. उस बच्चे के मन में एक अपराधबोध और दोषी होने का भाव पनपने लगता है. मन ही मन उसे लगता है माता-पिता के झगड़े की वजह वही है, उसकी वजह से ही पिता माँ को मार रहा है. इसके चलते कई बार बच्चा खुद को ही नुकसान पहुंचा लेता है. पिछले साल ही, हैदराबाद के तेलंगाना में माता पिता के झगड़े से तंग आकर एक बच्चे ने कीटनाशक पी लिया था. वहीं एक और जगह, माता पिता के रोज-रोज की लड़ाई से नौ और दस साल के दो भाइयों ने घर छोड़ दिया और कई सप्ताह तक फुटपाथ पर भीख मांगकर दिन गुजारें. एक 16 साल की बच्ची का कहना है कि उसके पापा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करते हैं. घर का समान फेंकने लगते हैं. उसकी माँ को प्रताड़ित करते हैं. पिता के गुस्से और माँ को मार खाते देख वह तनाव का शिकार हो रही है. 

बच्चों पर पड़ती गलत आदतें

यह बात हम सभी जानते हैं कि बच्चे के लिए उनके माता-पिता ही दुनिया के सबसे अच्छे इंसान होते हैं. वे ही उनके पहले शिक्षक होते हैं. लेकिन जब वही अच्छे इंसान और शिक्षक आपस में बच्चों के सामने ही लड़ने-झगड़ने और हाथापाई पर उतर आते हैं तो बच्चा समझ नहीं पाता कि यह क्या हो रहा है और क्यों ? बाद में वह भी धीरे-धीरे वही सब सीखने लगता है. वह भी अपने पिता की तरह चीखता-चिल्लता और गुस्सा करता है. वह अपने छोटे भाई बहनों के साथ ही नहीं, बल्कि स्कूल के दोस्तों के साथ भी वैसे ही व्यवहार करने लगता है. कुछ बच्चे तो बड़े होने पर विवाह के पश्चात अपने पार्टनर के साथ भी वैसा ही व्यवहार करने लगता है, क्योंकि उसे लगता है उसके पिता भी तो उसकी माँ के साथ ऐसा ही करते थे और यह व्यवहार बिल्कुल ठीक है.

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बच्चे में तनाव 

घर में अक्सर माता-पिता की लड़ाई से बच्चा इमोशनली तनाव में रहने लगता है. बच्चा अपना ध्यान कहीं भी केन्द्रित नहीं कर पता.  न पढ़ाई में और न ही खेल कूद में उसका मन लगता है . वह गुमसुम उदास रहने लगता है जो उसके शरीर पर पड़ने लगता है.  कुछ बच्चे इस चलते इमोशनल ईटिंग करने लग जाते हैं तो कुछ बच्चों को नींद संबंधी समस्याएँ हो जाती है. अत्यधिक अस्थिर वातावरण में बढ़ते हुए बच्चे कई बार डिप्रेशन, एडीएचडी, ओसिडी जैसे मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं. 

एक आंकड़ों के मुताबिक, अपने माता-पिता की लड़ाई-झगड़ों से परेशान होकर करीब 280 बच्चों ने घर छोड़ दिया. उन्हें काउन्सलिन्ग के बाद फिर से घर भेजा गया. काउन्सलिन्ग में बच्चों ने बताया कि वे अपने माता-पिता के झगड़े देख बहुत डर जाते हैं. बच्चों का कहना था कि माता-पिता की लड़ाइयों का डर उनके दिमाग पर हावी हो जाता है, इससे वे बाहरी दुनिया की तरह आकर्षित होकर घर छोड़ देते हैं. कई माता-पिता अपने ईगो के चलते बच्चों पर गुस्सा निकालते हैं जिससे बच्चे अवसाद में चले जाते हैं.   

माता-पिता के लिए टिप्स 

शादी-शुदा ज़िंदगी में, पति-पत्नी के बीच तकरार, असहमति और लड़ाई-झगड़े तो होते ही रहते हैं. कई बार आपसी मतभेदों को सुलझाते हुए ज़िंदगी भी गुजारनी होती है. अगर हर कोई सौ फीसदी अंडरस्टैंडिंग की दलीले लेकर अड़ जाए, तो कोई घर ही न बसे फिर. अंडरस्टैंडिंग एक प्रक्रिया है, जो एक अवस्था के बाद साथ-साथ धूप-छाँव झेलने से ही अपना स्वरूप लेती है. इसमें दोनों ही पक्षों को एडजस्ट करना होता है. और यही जब नहीं हो पाता तो पति-पत्नी के बीच तकरार शुरू हो जाती है. लेकिन कम-से-कम आपको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बच्चों के सामने  न झगड़ें.  बच्चों के पहले शिक्षक और उनके आदर्श उनके पेरेंट्स ही होते हैं. आपको देखकर ही बच्चे दुनियादारी समझते हैं, लोगों से अच्छा-बुरा बिहेव करना सीखते हैं. इसलिए बच्चों के सामने आपको लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए.  अगर आपके बीच किसी बात को लेकर मन-मुटाव है या आप दोनों किसी भी बात पर सहमत नहीं हैं, तो आप अपनी समस्या बंद कमरे में ही सुलझाने की कोशिश करें. बच्चों के सामने ऐसी-वैसी बातें न करें जो उन्हें तनाव दे. बच्चों को अपनी लड़ाई-झगड़ों से दूर रखें. बच्चों के सामने कभी भी अपशब्द या नकारात्मक भाषा का प्रयोग न करें. बच्चों के सामने चीख-चिल्लाकर कर बात करने से बचें. जहां तक हो सके अपने बच्चों को खुशनुमा माहौल देने की कोशिश करें.

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राज कुंद्रा के गाने पर बेटी समिशा को आया गुस्सा, शिल्पा शेट्टी ने Video किया शेयर

नये साल की शुरुआत हो चुकी है. वहीं बौलीवुड सेलेब्स भी न्यू ईयर मनाने के लिए वेकेशन पर जा चुके हैं, जिसकी फोटोज वह फैंस के लिए लगातार शेयर कर रहे हैं. इसी बीच एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने नए साल की शुरुआत करते हुए अपनी बेटी समीशा शेट्टी का चेहरा फैंस को दिखाया है. साथ ही एक वीडियो शेयर की है, जिसमें उनके पति राज कुंद्रा और बेटी समीषा मस्ती करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं शिल्पा शेट्टी की शेयर की गई वीडियो…

वीडियो हुआ वायरल

सोशलमीडिया पर फैंस के साथ शेयर किए गए वीडियो में शिल्पा के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) गाना गाते हुए दिखाई दे रहे हैं तो वहीं बेटी समिशा (Samisha Shetty Kundra) अपने पापा पर गुस्सा होती हुई नजर आ रही हैं. शिल्पा शेट्टी के इस वीडियो को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. साथ ही वीडियो पर समिशा की क्यूटनेस की तारीफ करते हुए खूब कमेंट भी कर रहे हैं.

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फैंस को दी न्यू ईयर की बधाई

शिल्पा शेट्टी ने बेटी समीषा की क्यूट वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “चिंता कम करो और गाओ ज्यादा, समिशा शेट्टी कुंद्रा ने अपने पिता राजकुंद्रा से कहा कि आपको गाना गाना बंद करना चाहिए. इंस्टाफैम, आप सभी को नए साल की बहुत बधाई.” वहीं सोशलमीडिया पर यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

बता दें, फिटनेस को लेकर फैंस के बीच सुर्खियां बटोरने वाली एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) की बेटी समीषा बीते साल सरोगेसी के जरिए पैदा हुई है. दरअसल, सरोगेसी के चलते ट्रोलिंग का शिकार हो चुकी शिल्पा ने मीडिया के सामने सरोगेसी के फैसले की वजह बताते हुए कहा, “ मै हमेशा से दो बच्चे चाहती थीं, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी वियान सिंगल चाइल्ड बड़ा हो. क्योंकि हम भी दो बहनें थीं. मुझे पता है कि दूसरे भाई बहन का होना कितना जरूरी होता है.” शिल्पा शेट्टी ने अपनी प्रेग्नेंसी के कॉम्पलिकेशन के बारे में बताते हुए कहा,” वियान के पैदा होने के बाद मैं लंबे समय से दूसरा बच्चा चाहती थी. लेकिन मुझे कुछ हेल्थ इश्यू थे. मुझे ऑटो इम्यून बीमारी थी जिसे APLA भी कहते हैं. मेरे शरीर में लगातार बनते ऑटो इम्यून APLA के कारण जब भी मै प्रेग्नेंट होतीं, ये बीमारी मुझे अपनी चपेट में ले लेती और हर बार मेरा मिसकैरेज हो जाता “.

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वनराज का होगा एक्सीडेंट, क्या करेगी अनुपमा

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां वनराज, काव्या को छोड़ चुका है तो वहीं अनुपमा की मां उसे शाह निवास में रहने से रोक रही है. हालांकि वह अपने परिवार और बच्चों को छोड़ने के लिए राजी नही है. लेकिन इसी बीच वनराज का एक्सीडेंट अनुपमा की पूरी जिंदगी बदलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

वनराज ने किया काव्या को छोड़ने का फैसला

अब तक आपने देखा कि अनुपमा के काव्या को थप्पड़ मारने के बाद वह वनराज पर अपना गुस्सा निकालती है और उसे भला बुरा कहती नजर आती है, जिसे लेकर वनराज भड़क जाता है. वहीं काव्या के इस बर्ताव को लेकर वनराज काव्या को छोड़ने का फैसला करता है. साथ ही कहता है कि ना उसे अनुपमा और ना ही काव्या की जरुरत है.

 

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वनराज का होगा एक्सीडेंट

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज, काव्या को छोड़कर गाड़ी से निकलेगा और सोचेगा कि वह अपनी शादी और प्यार दोनों में असफल हो गया है. वहीं वह यह फैक्ट सहन नही कर पाएगा कि उसने अपनी एक बड़ी गलती से सब कुछ खो दिया. इसी बीच वनराज की गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाएगा और वह जिंदगी और मौत के बीच फंस जाएगा. वहीं वनराज की एक्सीडेंट की खबर समर, अनुपमा को देगा, जिससे वह और पूरा परिवार टूट जाएगा.

क्या अनुपमा बचाएगी जान

 

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वनराज के एक्सीडेंट की खबर से सदमें में अनुपमा अस्पताल जाएगी जहां वह वनराज के लिए दुआ मांगती नजर आएगी. हालांकि काव्या भी वनराज पर पूरा हक जताने की कोशिश करेगी और अनुपमा को वनराज से दूर करने की कोशिश करती नजर आएगी. अब देखना होगा कि क्या वनराज की जान बच पाएगी और क्या वह अनुपमा का भरोसा दोबारा जीत पाएगा.

साथी साथ निभाना: संजीव ने ऐसा क्या किया कि नेहा की सोच बदल गई

उस शाम नेहा की जेठानी सपना ने अपने पति राजीव के साथ जबरदस्त झगड़ा किया. उन के बीच गालीगलौज भी हुई.

‘‘तुम सविता के साथ अपने संबंध फौरन तोड़ लो, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी या तुम्हारा खून कर दूंगी,’’ सपना की इस धमकी को घर के सभी सदस्यों ने बारबार सुना.

नेहा को इस घर में दुलहन बन कर आए अभी 3 महीने ही हुए थे. ऐसे हंगामों से घबरा कर वह कांपने लगी.

उस के पति संजीव और सासससुर ने राजीव व सपना का झगड़ा खत्म कराने का बहुत प्रयास किया, पर वे असफल रहे.

‘‘मुझे इस गलत इंसान के साथ बांधने के तुम सभी दोषी हो,’’ सपना ने उन तीनों को भी झगड़े में लपेटा, ‘‘जब इन की जिंदगी में वह चुड़ैल मौजूद थी, तो मुझे ब्याह कर क्यों लाए? क्यों अंधेरे में रखा मुझे और मेरे घर वालों को? अपनी मौत के लिए मैं तुम सब को भी जिम्मेदार ठहराऊंगी, यह कान खोल कर सुन लो.’’

सपना के इस आखिरी वाक्य ने नेहा के पैरों तले जमीन खिसका दी. संजीव के कमरे में आते ही वह उस से लिपट कर रोने लगी और फिर बोली, ‘‘मुझे यहां बहुत डर लगने लगा है. प्लीज मुझे कुछ समय के लिए अपने मम्मीपापा के पास जाने दो.’’

‘‘भाभी इस वक्त बहुत नाराज हैं. तुम चली जाओगी तो पूरे घर में अफरातफरी मच जाएगी. अभी तुम्हारा मायके जाना ठीक नहीं रहेगा,’’ संजीव ने उसे प्यार से समझाया.

‘‘मैं यहां रही, तो मेरी तबीयत बहुत बिगड़ जाएगी.’’

‘‘जब तुम से कोई कुछ कह नहीं रहा है, तो तुम क्यों डरती हो?’’ संजीव नाराज हो उठा.

नेहा कोई जवाब न दे कर फिर रोने लगी.

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उस के रोतेबिलखते चेहरे को देख कर संजीव परेशान हो गया. हार कर वह कुछ दिनों के लिए नेहा को मायके छोड़ आने को राजी हो गया.

उसी रात सपना ने अपने ससुर की नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की.

उसे ऐसा करते राजीव ने देख लिया. उस ने फौरन नमकपानी का घोल पिला कर सपना को उलटियां कराईं. उस की जान का खतरा तो टल गया, पर घर के सभी सदस्यों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डरीसहमी नेहा ने तो संजीव के साथ मायके जाने का इंतजार भी नहीं किया. उस ने अपने पिता को फोन पर सारा मामला बताया, तो वे सुबहसुबह खुद ही उसे लेने आ पहुंचे.

नेहा के मायके जाने की बात के लिए अपने मातापिता से इजाजत लेना संजीव के लिए बड़ा मुश्किल काम साबित हुआ.

‘‘इस वक्त उस की जरूरत यहां है. तब तू उसे मायके क्यों भेज रहा है?’’ अपने पिता के इस सवाल का संजीव के पास कोई ठीक जवाब नहीं था.

‘‘मैं उसे 2-3 दिन में वापस ले आऊंगा. अभी उसे जाने दें,’’ संजीव की इस मांग को उस के मातापिता ने बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया.

नेहा को विदा करते वक्त संजीव तनाव में था. लेकिन उस की भावनाओं की फिक्र न नेहा ने की, न ही उस के पिता ने. नेहा के पिता तो  गुस्से में थे. किसी से भी ठीक तरह से बोले बिना वे अपनी बेटी को ले कर चले गए.

उन के मनोभावों का पता संजीव को 3 दिन बाद चला जब वह नेहा को वापस  लाने के लिए अपनी ससुराल पहुंचा.

नेहा की मां नीरजा ने संजीव से कहा, ‘‘हम ने बहुत लाड़प्यार से पाला था अपनी नेहा को. इसलिए तुम्हारे घर के खराब माहौल ने उसे डरा दिया.’’

नेहा के पिता राजेंद्र तो एकदम गुस्से से फट पड़े, ‘‘अरे, मारपीट, गालीगलौज करना सभ्य आदमियों की निशानी नहीं. तुम्हारे घर में न आपसी प्रेम है, न इज्जत. मेरी गुडि़या तो डर के कारण मर जाएगी वहां.’’

‘‘पापा, नेहा को मेरे घर के सभी लोग बहुत प्यार करते हैं. उसे डरनेघबराने की कोई जरूरत नहीं है,’’ संजीव ने दबे स्वर में अपनी बात कही.

‘‘यह कैसा प्यार है तुम्हारी भाभी का, जो कल को तुम्हारे व मेरी बेटी के हाथों में हथकडि़यां पहनवा देगा?’’

‘‘पापा, गुस्से में इंसान बहुत कुछ कह जाता है. सपना भाभी को भी नेहा बहुत पसंद है. वे इस का बुरा कभी नहीं चाहेंगी.’’

‘‘देखो संजीव, जो इंसान आत्महत्या करने की नासमझी कर सकता है, उस से संतुलित व्यवहार की हम कैसे उम्मीद करें?’’

‘‘पापा, हम सब मिल कर भैयाभाभी को प्यार से समझाएंगे. हमारे प्रयासों से समस्या जल्दी हल हो जाएगी.’’

‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता. मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी की खुशियां तुम्हारे भैयाभाभी के कभी समझदार बनने की उम्मीद पर आश्रित रहें.’’

‘‘फिर आप ही बताएं कि आप सब क्या चाहते हैं?’’ संजीव ने पूछा.

‘‘इस समस्या का समाधान यही है कि तुम और नेहा अलग रहने लगो. भावी मुसीबतों से बचने का और कोई रास्ता नहीं है,’’ राजेंद्रजी ने गंभीर लहजे में अपनी राय दी.

‘‘मुझे पता था कि देरसवेर आप यह रास्ता मुझे जरूर सुझाएंगे. लेकिन मेरी एक बात आप सब ध्यान से सुन लें, मैं संयुक्त परिवार में रहना चाहता हूं और रहूंगा. नेहा को उसी घर में  लौटना होगा,’’ संजीव का चेहरा कठोर हो गया.

‘‘मुझे सचमुच वहां बहुत डर लगता है,’’ नेहा ने सहमे हुए अपने मन की बात कही, ‘‘न ठीक से नींद आती है, न कुछ खाया जाता है? मैं वहां लौटना नहीं चाहती हूं.’’

‘‘नेहा, तुम्हें जीवन भर मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलना चाहिए. अपने मातापिता की बातों में आने के बजाय मेरी इच्छाओं और भावनाओं को ध्यान में रख कर काम करो. मुझे ही नहीं, पूरे घर को तुम्हारी इस वक्त बहुत जरूरत है. प्लीज मेरे साथ चलो,’’ संजीव भावुक हो उठा.

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अपनी आदत के अनुरूप नेहा कुछ कहनेसुनने के बजाय रोने लगी. नीरजा उसे चुप कराने लगीं. राजेंद्रजी सिर झुका कर खामोश बैठ गए. संजीव को वहां अपना हमदर्द या शुभचिंतक कोई नहीं लगा.

कुछ देर बाद नेहा अपनी मां के साथ अंदर वाले कमरे में चली गई. संजीव के साथ राजेंद्रजी की ज्यादा बातें नहीं हो सकीं.

‘‘तुम मेरे प्रस्ताव पर ठंडे दिमाग से सोचविचार करना, संजीव. अभी नेहा की

बिगड़ी हालत तुम से छिपी नहीं है. उसे यहां कुछ दिन और रहने दो,’’ राजेंद्रजी की इस पेशकश को सुन संजीव अपने घर अकेला ही लौट गया.

नेहा को वापस न लाने के कारण संजीव को अपने मातापिता से भी जलीकटी बातें सुनने को मिलीं.

गुस्से से भरे संजीव के पिता ने अपने समधी से फोन पर बात की. वे उन्हें खरीखोटी सुनाने से नहीं चूके.

‘‘भाईसाहब, हम पर गुस्सा होने के बजाय अपने घर का माहौल सुधारिए,’’ राजेंद्रजी ने तीखे स्वर में प्रतिक्रिया व्यक्त की, ‘‘नेहा को आदत नहीं है गलत माहौल में रहने की. हम ने कभी सोचा भी न था कि वह ससुराल में इतनी ज्यादा डरीसहमी और दुखी रहेगी.’’

‘‘राजेंद्रजी, समस्याएं हर घर में आतीजाती रहती हैं. मेरी समझ से आप नेहा को हमारे इस कठिनाई के समय में अपने घर पर रख कर भारी भूल कर रहे हैं.’’

‘‘इस वक्त उसे यहां रखना हमारी मजबूरी है, भाईसाहब. जब आप के घर की समस्या सुलझ जाएगी, तो मैं खुद उसे छोड़ जाऊंगा.’’

‘‘देखिए, लड़की के मातापिता उस के ससुराल के मसलों में अपनी टांग अड़ाएं, मैं इसे गलत मानता हूं.’’

‘‘भाईसाहब, बेटी के सुखदुख को नजरअंदाज करना भी उस के मातापिता के लिए संभव नहीं होता.’’

इस बात पर संजीव के पिता ने झटके से फोन काट दिया. उन्हें अपने समधी का व्यवहार मूर्खतापूर्ण और गलत लगा. अपना गुस्सा कम करने को वे कुछ देर के लिए बाहर घूमने चले गए.

सपना ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है, यह बात किसी तरह उस के मायके वालों को भी मालूम पड़ गई.

उस के दोनों बड़े भाई राजीव से झगड़ने का मूड बना कर मिलने आए. उन के दबाव के साथसाथ राजीव पर अपने घर वालों का दबाव अलग से पड़ ही रहा था. सभी उस पर सविता से संबंध समाप्त कर लेने के लिए जोर डाल रहे थे.

सविता उस के साथ काम करने वाली शादीशुदा महिला थी. उस का पति सऊदी अरब में नौकरी करता था. अपने पति की अनुपस्थिति में उस ने राजीव को अपने प्रेमजाल में उलझा रखा था.

सब लोगों के दबाव से बचने के लिए राजीव ने झूठ का सहारा लिया. उस ने सविता को अपनी प्रेमिका नहीं, बल्कि सिर्फ अच्छी दोस्त बताया.

‘‘सपना का दिमाग खराब हो गया है. सविता को ले कर इस का शक बेबुनियाद है. मैं किसी भी औरत से हंसबोल लूं तो यह किलस जाती है. इस ने तो आत्महत्या करने का नाटक भर किया है, लेकिन मैं किसी दिन तंग आ कर जरूर रेलगाड़ी के नीचे कट मरूंगा.’’

उन सब के बीच कहासुनी बहुत हुई, मगर समस्या का कोई पुख्ता हल नहीं निकल सका.

संजीव की नाराजगी के चलते नेहा ही उसे रोज फोन करती. बातें करते हुए उसे अपने पति की आवाज में खिंचाव और तनाव साफ महसूस होता.

वह इस कारण वापस ससुराल लौट भी जाती, पर राजेंद्र और नीरजा ने उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी.

‘‘वहां के संयुक्त परिवार में तुम कभी पनप नहीं पाओगी, नेहा,’’ राजेंद्रजी ने उसे समझाया, ‘‘अपने भैयाभाभी के झगड़ों व तुम्हारे यहां रहने से परेशान हो कर संजीव जरूर अलग रहने का फैसला कर लेगा. तेरे पास पैसा अपनी गृहस्थी अलग बसा लेने के बाद ही जुड़ सकेगा, बेटी.’’

नीरजा ने भी अपनी आपबीती सुना कर नेहा को समझाया कि इस वक्त उस का ससुराल में न लौटना ही उस के भावी हित में है.

एक रात फोन पर बातें करते हुए संजीव ने कुछ उत्तेजित लहजे में नेहा से कहा, ‘‘कल सुबह 11 बजे तुम मुझे नेहरू पार्क के पास मिलो. हम दोनों सविता से मिलने चलेंगे.’’

‘‘हम उस औरत से मिलने जाएंगे, पर क्यों?’’ नेहा चौंकी.

‘‘देखो, राजीव भैया पर उस से अलग होने की बात का मुझे कोई खास असर नहीं दिख रहा है. मेरी समझ से कल रविवार को तुम और मैं सविता की खबर ले कर आते हैं. उसे डराधमका कर, समाज में बेइज्जती का डर दिखा कर, उस के पति को उस की चरित्रहीनता की जानकारी देने का भय दिखा कर हम जरूर उसे भैया से दूर करने में सफल रहेंगे,’’ संजीव की बातों से नेहा का दिल जोर से धड़कने लगा.

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‘‘मेरे मुंह से तो वहां एक शब्द भी नहीं निकलेगा. उस स्थिति की कल्पना कर के ही मेरी जान निकली जा रही है,’’ नेहा की आवाज में कंपन था.

‘‘तुम बस मेरे साथ रहना. वहां बोलना कुछ नहीं पड़ेगा तुम्हें.’’

‘‘मुझे सचमुच लड़नाझगड़ना नहीं आता है.’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो. किसी औरत से उलझने के समय पुरुष के साथ एक औरत का होना सही रहता है.’’

‘‘ठीक है, मैं आ जाऊंगी,’’ नेहा का यह जवाब सुन कर संजीव खुश हुआ और पहली बार उस ने अपनी पत्नी से कुछ देर अच्छे मूड में बातें कीं.

बाद में जब नेहा ने अपने मातापिता को सारी बात बताई, तो उन्होंने फौरन उस के इस झंझट में पड़ने का विरोध किया.

‘‘सविता जैसी गिरे चरित्र वाली औरतों से उलझना ठीक नहीं बेटी,’’ नीरजा ने उसे घबराए अंदाज में समझाया, ‘‘उन के संगीसाथी भले लोग नहीं होते. संजीव या तुम पर उस ने कोई झूठा आरोप लगा कर पुलिस बुला ली, तो क्या होगा?’’

‘‘नेहा, तुम्हें संजीव के भैयाभाभी की समस्या में फंसने की जरूरत ही क्या है?

तुम्हारे संस्कार अलग तरह के हैं. देखो, कैसे ठंडे पड़ गए हैं तुम्हारे हाथ… चेहरे का रंग उड़ गया है. तुम कल नहीं जाओगी,’’ राजेंद्रजी ने सख्ती से अपना फैसला नेहा को सुना दिया.

‘‘पापा, संजीव को मेरा न जाना बुरा लगेगा,’’ नेहा रोंआसी हो गई.

‘‘उस से मैं कल सुबह बात कर लूंगा. लेकिन अपनी तबीयत खराब कर के तुम किसी का भला करने की मूर्खता नहीं करोगी.’’

नेहा रात भर तनाव की वजह से सो नहीं पाई. सुबह उसे 2 बार उलटियां भी हो गईं. ब्लडप्रैशर गिर जाने की वजह से चक्कर भी आने लगे. वह इस कदर निढाल हो गई कि 4 कदम चलना उस के लिए मुश्किल हो गया. वह तब चाह कर भी संजीव के साथ सविता से मिलने नहीं जा सकती थी.’’

राजेंद्रजी ने सुबह फोन कर के नेहा की बिगड़ी तबीयत की जानकारी संजीव को दे दी.

संजीव को उन के कहे पर विश्वास नहीं हुआ. उस ने रूखे लहजे में उन से इतना ही कहा, ‘‘जरा सी समस्या का सामना करने पर जिस लड़की के हाथपैर फूल जाएं और जो मुकाबला करने के बजाय भाग खड़ा होना बेहतर समझे, मेरे खयाल से उस की शादी ही उस के मातापिता को नहीं करनी चाहिए.’’

राजेंद्रजी कुछ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना जरूर चाहते थे, पर उन्हें शब्द नहीं मिले. वे कुछ और कह पाते, उस से पहले ही संजीव ने फोन काट दिया.

उस दिन के बाद से संजीव और नेहा के संबंधों में दरार पड़ गई. फोन पर भी दोनों अजनबियों की तरह ही बातें करते.

संजीव ने फिर कई दिनों तक जब नेहा से लौट आने का जिक्र ही नहीं छेड़ा, तो वह और उस के मातापिता बेचैन हो गए. हार कर नेहा ने ही इस विषय पर एक रात फोन पर चर्चा छेड़ी.

‘‘नेहा, अभी भैयाभाभी की समस्या हल नहीं हुई है. तुम्हारे लौटने के अनुरूप माहौल अभी यहां तैयार नहीं है,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर संजीव ने फोन काट दिया.

विवाहित बेटी का घर में बैठना किसी भी मातापिता के लिए चिंता का विषय बन ही जाता है. बीतते वक्त के साथ नीरजा और राजेंद्रजी की परेशानियां बढ़ने लगीं. उन्हें इस बात की जानकारी देने वाला भी कोई नहीं था कि वास्तव में नेहा की ससुराल में माहौल किस तरह का चल रहा है.

समय के साथ परिस्थितियां बदलती ही हैं. सपना और राजीव की समस्या का भी अंत हो ही गया. इस में संजीव ने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

अपने एक दोस्त और उस की पत्नी के साथ जा कर वह सविता से मिला, फिर उस के पति से टैलीफोन पर बात कर के उसे भी सविता के प्रति भड़का दिया.

संजीव की धमकियों व पति के आक्रोश से डर कर सविता ने नौकरी ही छोड़ दी. प्रेम का भूत उस के सिर से ऐसा उतरा कि उसे राजीव की शक्ल देखना भी गवारा न रहा.

कुछ दिनों तक राजीव घर में मुंह फुलाए रहा, पर बाद में उस के स्वभाव में परिवर्तन आ ही गया. अपनी पत्नी के साथ रह कर ही उसे सुखशांति मिलेगी, यह बात उसे समझ में अंतत: आ ही गई.

सपना ने अपने देवर को दिल से धन्यवाद कहा. नेहा से चल रही अनबन की उसे जानकारी थी. उन दोनों को वापस जोड़ने की जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली.

सपना के जोर देने पर राजीव शादी की सालगिरह मनाने के लिए राजी हो गया.

सपना अपने पति के साथ जा कर नेहा व उस के मातापिता को भी पार्टी में आने का निमंत्रण दे आई.

‘‘उस दिन काम बहुत होगा. मुझे तैयार करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी होगी, नेहा. तुम जितनी जल्दी घर आ जाओगी, उतना ही अच्छा रहेगा,’’ भावुक लहजे में अपनी बात कह कर सपना ने नेहा को गले लगा लिया.

नेहा ने अपनी जेठानी को आश्वासन दिया कि वह जल्दी ही ससुराल पहुंच जाएगी. उसी शाम उस ने फोन कर के संजीव को वापस लौटने की अपनी इच्छा जताई.

‘‘मैं नहीं आऊंगा तुम्हें लेने. जो तुम्हें ले कर गए थे, उन्हीं के साथ वापस आ जाओ,’’ संजीव का यह रूखा सा जवाब सुन कर नेहा के आंसू बहने लगे.

राजेंद्रजी, नीरजा व नेहा के साथ पार्टी के दिन संजीव के यहां पहुंचे. उन के बुरे व्यवहार के कारण संजीव व उस के मातापिता ने उन का स्वागत बड़े रूखे से अंदाज में किया.

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ससुराल के जानेपहचाने घर में नेहा ने खुद को दूर के मेहमान जैसा अनुभव किया. मुख्य मेजबानों में से एक होने के बजाय उस ने अपनेआप को सब से कटाकटा सा महसूस किया.

सपना ने नेहा को गले लगा कर जब कुछ समय जल्दी न आने की शिकायत की, तो नेहा की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘मुझे माफ कर दो, भाभी,’’ सपना के गले लग कर नेहा ने रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मेरी मजबूरी को आप के अलावा कोई दूसरा शायद नहीं समझे. मातापिता की शह पर अपने पति के परिवार से मुसीबत के समय दूर भाग जाना मेरी बड़ी भूल थी. मुझ कायर के लिए आज किसी की नजरों में इज्जत और प्यार नहीं है. अपने मातापिता पर मुझे गुस्सा है और अपने डरपोक व बचकाने व्यवहार के लिए बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही है.’’

‘‘तुम रोना बंद करो, नेहा,’’ सपना ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई, ‘‘देखो, पहले के संयुक्त परिवार में पली लड़कियों का जीवन की विभिन्न समस्याओं से अकसर परिचय हो जाता था. आजकल के मातापिता वैसी कठिन समस्याओं से अपने बच्चों को बचा कर रखते हैं. तुम अपनी अनुभवहीनता व डर के लिए न अपने मातापिता को दोष दो, न खुद को. मैं तुम्हें सब का प्यार व इज्जत दिलाऊंगी, यह मेरा वादा है. अब मुसकरा दो, प्लीज.’’

सपना के अपनेपन को महसूस कर रोती हुई नेहा राहत भरे भाव से मुसकरा उठी. तब सपना ने इशारा कर संजीव को अपने पास बुलाया.

उस ने नेहा का हाथ संजीव को पकड़ा कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘देवरजी, मेरी देवरानी नेहा अपने मातापिता से मिले सुरक्षाकवच को तोड़ कर आज सच्चे अर्थों में अपने पति के घरपरिवार से जुड़ने को तैयार है. आज के दिन अपनी भाभी को उपहार के रूप में यह पक्का वादा नहीं दे सकते कि तुम दोनों आजीवन हर हाल में एकदूसरे का साथ निभाओगे?’’

नेहा की आंखों से बह रहे आंसुओं को देख संजीव का सारा गुस्सा छूमंतर हो गया.

‘‘मैं पक्का वादा करता हूं, भाभी,’’ उस ने झुक कर जब नेहा का हाथ चूमा तो वह पहले नई दुलहन की तरह शरमाई और फिर उस का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा.

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इन 4 मेकअप प्रोडक्ट्स का ऐसे करें इस्तेमाल 

सुंदर दिखने का खयाल किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा लड़कियों व महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाता है. उन्हें न सिर्फ सुंदर दिखना पसंद होता है बल्कि अपनी तारीफे सुनना भी काफी अच्छा लगता है. इसलिए वे खुद को और खूबसूरत बनाने के लिए मेकअप का  सहारा लेती हैं , ताकि सब बस उन्हें ही देखते रहें, लेकिन कई बार महिलाएं ब्यूटी प्रोडक्ट्स तो खरीदती हैं, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं होती कि इसे कैसे इस्तेमाल करना है. ऐसे में वे खुद को खूबसूरत बनाने की कोशिश में सही तरीके से मेकअप नहीं कर पातीं  और अपना सारा रूप ही बिगाड़ लेती हैं.  इसलिए जानना जरूरी है कि कौन सा ब्यूटी प्रोडक्ट किस काम आएगा और उससे आप किस तरह अपनी खूबसूरती को बड़ा सकती हैं.  आइए जानते हैं

1. प्राइमर 

जैसा नाम वैसा काम. ये स्किन पर मेकअप के लिए एक स्मूद बेस बनाने का काम करता  है. ये स्किन को सोफ्ट लुक देकर स्किन टोन को भी एक जैसा करने का काम करता है. ऑयली स्किन के कारण चेहरे पर जो चमक होती है, उसे कम करता है, ताकि आयल के कारण आपकी स्किन से मेकअप न हट पाए. यकीं मानिए इसे अप्लाई करने के बाद आपका फाउंडेशन, कंसीलर  और पाउडर पूरे दिन टिका रहता है. यहां तक कि  इससे झुर्रियां  और फाइन लाइन्स भी  छिप जाती हैं , ताकि आप जब भी उस पर मेकअप करें,  तो वो एकजैसा लगने के कारण काफी अच्छा लगे.  अगर आपको अपना मेकअप लौंग लास्टिंग रखना है, इवन दिखाना है तो कभी भी प्राइमर को स्किप न करें.

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कैसे चुनें 

आप अपने पूरे चेहरे, गले व आंखों के नीचे की त्वचा पर उंगली पर थोड़ाथोड़ा प्राइमर लेकर लगाएं. फिर हाथों से मसाज करते हुए उसे स्किन में मिल जाने दें. इससे आपको स्मूद बेस मिलने से आप उस पर आसानी से मेकअप कर पाएंगी. आपको बता दें कि प्राइमर कई तरह के होते हैं , जैसे आयल बेस्ड प्राइमर, ये प्राइमर ड्राई स्किन के लिए बेस्ट होता है और स्किन पर थोड़ा सा शाइनी इफ़ेक्ट देता है. वहीं क्रीमी बेस्ड प्राइमर , नार्मल स्किन और ड्राई स्किन वालों के लिए परफेक्ट होता है. उसके बाद आता है वाटर बेस प्राइमर, ये वैसे तो सभी तरह की स्किन पर सूट करता है लेकिन खासकर उन्हें इसका इस्तेमाल करना चाहिए , जिन्हें ब्लेमिशेस की समस्या होती है. मिनरल बेस्ड प्राइमर सभी स्किन टाइप के साथसाथ सेंसिटिव स्किन पर काफी सूट करता है. साथ ही प्राइमर का टेक्सचर भी 2 तरह का होता है. मैट और शाइनी . मेट प्राइमर मेट फिनिश देता है वहीं शाइनी प्राइमर  चेहरे पर शाइनी लुक देता है. अगर आपकी स्किन ऑयली है तो आप भूलकर भी शाइनी प्राइमर का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये आपके मेकअप को भद्दा बनाने के साथसाथ आपके मेकअप को मेल्ट भी कर सकता है.

2. फाउंडेशन 

फाउंडेशन चेहरे के अन इवन टोन, झुर्रियों व दागधब्बो को हटाने का काम करता है. जिससे स्किन एकजैसी लगने के साथसाथ रंग में निखार आ जाता है. ये लिक्विड, पाउडर, स्टिक ,  क्रीम जैसी फोर्म्स में आता है.  लेकिन हमेशा  फाउंडेशन  खरीदते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपनी स्किन टोन से एक  या दो टोन नीचे वाला फाउंडेशन ही खरीदें . सिर्फ फाउंडेशन खरीदने से काम नहीं चलेगा बल्कि  यह जानना भी बहुत जरूरी होता है कि  अगर आपकी स्किन ऑयली है तो आप हमेशा लाइट या फिर आयल फ्री फाउंडेशन ही खरीदें. और अगर आपकी ड्राई स्किन है तो आपके लिए लिक्विड या मॉइस्चराइजर बेस्ड फाउंडेशन का चयन करना ही  बेस्ट रहेगा. बता दें कि लिक्विड फाउंडेशन सभी स्किन टाइप पर सूट करता है, तो क्रीमी  फाउंडेशन थोड़ा गाढ़ा होने के कारण ये ड्राई व नार्मल स्किन पर सूट करता है. स्टिक और पाउडर फाउंडेशन ऑयली स्किन के लिए परफेक्ट चोइज समझा जाता है.

कैसे चुनें 

आप अपनी फिंगर टिप्स पर फाउंडेशन को लेकर उसे थोड़ा थोड़ा चेहरे से लेकर गर्दन पर अप्लाई करें, फिर उसे अच्छे से मसाज करते हुए स्किन में ब्लेंड करें. इसके लिए आप स्पंज की मदद भी ले सकती हैं.  लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कि अपनी स्किन टोन के हिसाब से फाउंडेशन का चयन करें.  जैसे अगर आपको सूरज की रोशनी में अपनी स्किन पिंक नजर आती है  तो  आपका पिंक अंडरटोन है और अगर आपकी स्किन येलो नजर आती है तो आपका येलो अंडर टोन है, इसी के हिसाब से फाउंडेशन चुनें. इस बात का भी खास ध्यान रखें कि चेहरे पर कभी भी फाउंडेशन की 2 से ज्यादा लेयर नहीं लगानी चाहिए और न ही उसे पूरी रात के लिए स्किन पर लगा रहने देना चाहिए , क्योंकि इससे स्किन के ख़राब होने का डर बना रहता है.

3. कंसीलर 

अधिकांश महिलाओं के चेहरे पर दागधब्बे व  आंखों के नीचे कालेघेरे होते ही हैं. ऐसे में कंसीलर इन्हें छुपाने का काम करता है. आपके चेहरे पर अगर ज्यादा दागधब्बे हैं तो आप फाउंडेशन लगाने से पहले कंसीलर को अप्लाई करेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा , वैसे आप इसका इस्तेमाल फाउंडेशन के बाद भी कर सकती हैं.

कैसे चुनें  

इसके लिए आप ब्रश या फिर अपनी फिंगर टिप की मदद लेकर इसे आंखों  के नीचे वाले कोने से लगाना शुरू करके लैशलाइन के कोने तक लगाएं. फिर अच्छे से मिलाएं, ताकि स्किन टोन एकजैसा नज़र आएं. चाहे तो इस पर दोबारा से भी फाउंडेशन की हलकी लेयर लगाई जा सकती है. लेकिन आपके लिए जरूरी है कि अपनी स्किन टोन के हिसाब से कंसीलर को चयन करने की. इस बात का ध्यान रखें कि आंखों के नीचे काले घेरे को छिपाने के लिए हमेशा अपनी स्किन टोन से 2 शेड नीचे का ही कंसीलर ख़रीदे, क्योंकि ये मर्ज़ होकर आपके स्किन टोन में ही मिल जाता है. बता दें कि अगर आपके चेहरे पर बहुत अधिक दाग धब्बे हैं तो आप पेंसिल कंसीलर का ही इस्तेमाल करें और अगर ऑयली स्किन है तो लिक्विड कंसीलर बेस्ट रहेगा.

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4. ब्लश 

अब बारी आती है, अपनी चीकबोन्स को हाईलाइट करने की. क्योंकि ये जरूरी नहीं कि हर महिला की चीकबोनस नैचुरली रूप से उभरी हुई हो. ऐसे में ब्लश की मदद से आप अपनी चीकबोनस की ब्यूटी को उभार कर यंग व ग्लो लुक पा सकती हैं. इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप डे मेकअप कर रही हैं तो पिंक शेड अच्छा रहेगा , ये हर स्किन टाइप पर सूट करता है. वहीं अगर आप नाईट मेकअप कर रही हैं तो पिंक विद शिमरी शेड भी काफी अच्छा लगेगा. बस शेड के चयन में सावधानी बरतें. वैसे  डस्की स्किन टोन पर बर्गेंडी, प्लम , गोल्ड, रसबेर पिंक शेड्स अच्छे लगते हैं. वहीं फेयर स्किन पर पिंक, लाइट  कोरल और पीच शेड्स अच्छे लगते हैं. अब ये आपकी चोइज पर निर्भर करता है कि आप कौन सा शेड चुनती हैं.

कैसे चुनें 

आप स्किन पर स्मूद एप्लीकेशन के लिए  ब्रश  की मदद लें. फिर कंट्रोलिंग लाइन से चीक बोनस पर अच्छे से ब्लश को अप्लाई करके पाएं यंग व फ्रेश लुक. यकीं मानिए ये लुक आपके पूरे मेकअप की जान बन जाएगा. इस तरह अगर आप मेकअप टिप्स को फॉलो करेंगी तो आप खुद से घर पर अपना मेकअप मिनटों में कर पाएंगी.

नवजात शिशुओं को कचरे का ढेर क्यों?

कतर, दोहा के हमाद अंतरराष्ट्रिय हवाई अड्डे पर अक्टूबर की शुरुआत में महिला यात्रियों के प्राइवेट पार्ट की आक्रमक तरीके से जांच से ऑस्ट्रेलिया और कतर के बीच तनाव पैदा हो गया है. दरअसल, 2 अक्टूबर को कतर एयरवेज की सिडनी जाने वाली उड़ान को तब रोकना पड़ा जब एक नवजात शिशु एयरपोर्ट पर लावारिस पाया गया. बच्चे की माँ का पता लगाने के लिए एयरपोर्ट अधिकारियों ने कई महिलाओं की जांच की जिनमें 13 ऑस्ट्रेलियाई महिलाएं भी थीं.

ऑस्ट्रेलिया की सेवन नेटवर्क न्यूज एजेंसी के अनुसार, महिलाओं के रनवे पर मौजूद एक एंबुलेंस में जांच की गई. प्लेन पर सवार एक शख्स ने बताया कि हर उम्र की महिलाओं की जांच की गई. जब महिलाएं वापस आईं, तब वे सब परेशान दिखीं. उनमें से एक युवा महिला रो रही थी और लोगों को यकीन ही नहीं आ रहा था कि उनके साथ ये सब हो रहा है. पूछने पर एक महिला ने बताया कि उन्हें अपने अंडरवियर उतारने को कहा गया या फिर बोला गया कि कमर के नीचे सब कपड़े उतारें ताकि जांच की जा सके कि उन्होंने हाल ही में बच्चा जना है या नहीं.

इस पर ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मरिसे पायने ने कड़ी आपत्ति जताई है.उन्होंने कतर अधिकारियों के इस रवैये को अनुचित बताते हुए कहा कि ‘यह बहुत, बहुत ही परेशान करने वाली आपत्तीजनक और चिंता पैदा करने वाली घटना है. मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा कुछ नहीं सुना है. उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला संघीय पुलिस को सौंप दिया गया है. लेकिन इस बारे में जानकारी नहीं दी गई है कि ऑस्ट्रेलिया पुलिस इस मामले में किस तरह कार्यवाई कर सकती है. पुलिस विभाग ने भी फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है.नवजात बच्चे की माँ का अब तक पता नहीं चल पाया है.

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गुजरात के भुज तहसील में ऐसे ही एक शर्मशार कर देने वाली घटना पिछले साल सुनने को मिली थी, जहां कॉलेज के प्रिंसपल ने 68 लड़कियों के कपड़े उतरवा कर इस बात की जांच कराई थी कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं या नहीं. साथ ही यह आदेश भी जारी किया गया कि पास स्थित मंदिर और रसोई में पीरियड्स से गुजर रही लड़कियां नहीं जा सकतीं हैं और न ही वह अपने साथी छात्रा को छु सकती हैं.पीरियड्स को लेकर हॉस्टल ने नियम बना रखा है. इस नियम के मुताबिक, जिस लड़की को पीरियड्स आते हैं वे हॉस्टल में नहीं रह सकती. उस लड़की के लिए हॉस्टल के बेसमेंट में रहने की जगह बनाई गई है. उनके खाने का बर्तन भी अलग होता है.

इसी तरह की एक और घटना 2017 के अप्रेल महीने में उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी हुआ था जहां हॉस्टल की वार्डन ने 70 स्कूल की छात्राओं को क्लास रूम में उनके कपड़े उतरवाए थे, यह देखने के लिए कि किस लड़की की माहवारी आई हुई है. ये सभी छात्राएँ 12 से 14 साल की थीं .

कहीं महिलाओं को उनके पीरियड्स को लेकर उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाया जाता है, तो कहीं डायन साबित कर उनका सिर मुंडवाकर पूरे गाँव में निवस्त्र घुमाया जाता है. देश में महिलाओं के साथ किस तरह से अत्याचार किया जाता है,देख-सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

संविधान से बराबरी का हक पाने के बावजूद आज भी महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई है. आज भी उनके साथ एसिड अटैक से लेकर बलात्कार और बर्बर हत्या तक की घटनाएँ यही साबित करती हैं कि यह स्थिति देहरी से लेकर दफ्तर तक, हर जगह मौजूद है. कतर की यह घटना सच में चिंताजनक है.

महिलाओं के साथ इस तरह की शर्मनाक हरकत अशोभनीय है. लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर एयरपोर्ट पर लावारिस बच्चा आया कहाँ से ? कौन छोड़ गया उसे और क्यों ?कौन ऐसी माँ है जो अपने ही जिगर के टुकड़े को एयरपोर्ट पर छोड़ कर भाग गई.

आज कितने ऐसे लोग हैं दुनिया में जो माँ-बाप बनने के लिए तरस रहे हैं, पर उन्हें वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पा रहा है. लोग बच्चा पाने के लिए जाने क्या-क्या जतन नहीं करते हैं. मगर फिर भी उन्हें औलाद का सुख नसीब नहीं होता. कई लोग अनाथ आश्रम से बच्चा गोद लेकर माँ-बाप बन जाते हैं. लेकिन कई लोगों को जब माँ-बाप बनने का सुख मिलता है तो उन्हें उनकी कद्र ही नहीं होती.

मध्य प्रदेश के एक मंदिर में लावारिस बैग मिलने से हड़कंप मच गया. जब बैग से बच्चे की रोने की आवाज आने लगी तो लोग चौंक गए . बैग खोला तो उसमें एक महीने की बच्ची थी. कोई बच्ची को बैग में डालकर मंदिर परिसर में लावारिस छोड़ गया था. वहाँ खड़े लोगों के मन में एक ही सवाल था कि ये किसकी बच्ची है और इसे मंदिर में क्यों छोड़ दिया ?एक माँ अपने बच्चे को नौ महीनेपेट में रखने के बाद, आखिर क्यों उसे ऐसे मंदिर में छोड़ गई ?

सिर्फ यही दो केस नहीं,बल्कि ऐसे कितने की बच्चों के बारे में देखने सुनने को हमें मिल जाता है जहांमाँ-बाप अपनी अनचाही संतान को कहीं भी मरने के लिए फेंक देते हैं. अवैध रूप से जन्म लिए नवजातों के साथ ऐसी घटनाएँ अक्सर होती है. अवैध संबंध से जन्मे नवजातों के साथ ऐसी घटनाएँ आम हो चली है. युवावस्था में की गई गलतियों की वजह से कई बार युवतियाँ बिनब्याही माँ बन जाती है. फिर लोक-लाज के भय से जन्म लेते ही नवजात को झड़ियों या कूड़े-कचरे में फेंक देते हैं. ऐसे में पुलिस के लिए पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि नवजात किस माता-पिता का है.

पिछले साल ही जब पुलिस रात के समय राउंड पर थी, उन्हें रास्ते में एक प्लास्टिक का बैग दिखा. जब उन्होंने उस बैग से हलचल होते देखा और जब बैग खोल कर देखा तो दंग रह गए ! उस बैग में एक नवजात बच्ची थी जिसकी नाल भी अभी नहीं काटी गई थी. जीवन मृत्यु से जूझ रही वह नवजात बच्ची बिलख रही थी. तुरंत उस बच्ची को अस्पताल पहुंचाया गया.
ऐसी अमानवीय घटना सिर्फ हमारे भारत देश में ही नहीं होती, बल्कि विदेशों में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है.

अमेरिका के जॉर्जिया, अटलांटा से करीब 64 किलोमीटर दूर जंगल में एक नवजात, जिसका जन्म एक घंटे पहले हुआ था, उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया. जन्म लेते ही उस बच्ची को थैली में भरकर जंगल में फेंक दिया गया था. लोगों ने तुरंत उस बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया. उस बच्ची को किसने फेंका इस बात की पुलिस तो खोजबीन कर ही रही थी. मगर क्यों फेंका यह समझ नहीं आया?

किबेरा—- मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि केन्या में माएं अपने बच्चों को कोको कोला पिलाकर मार रही हैं.अपने अनचाहे बच्चे से छुटकारा पाने के लिए अफ्रीकी देश की माएं ऐसा कदम उठा रही है. केन्या में गर्भपात कानूनी रूप से अवैध है. जब तक किसी महिला की जान को खतरा नहीं होता तब तक उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती. नवजात शिशु को जीवित रखने के लिए तमाम पोषक तत्व माँ के दूध से मिलते हैं. लेकिन केन्या में उन्हें मारने के लिए कोका कोला, जिंजर बियर और अन्य नुकसानदायक पेय पदार्थ पिलाने के बाद कूड़े के ढेर में मरने के लिए फेंक दिया जाता है. डेलीमेल की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ नवजात बच्चे को मरने के लिए झोपड़ी में छोड़ दिया जाता है.तो कोई अवैध तरीके से गर्भपात का रास्ता चुनतीं हैं, लेकिन इस तरह से उनमें जान का भी खतरा बना रहता है. आंकड़ें यह बताते हैं कि अवैध तरीके से गर्भपात मातृ स्वास्थय की खराब हालत और शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण है.

कोरिया में एक नाबालिग लड़की ने बच्चे को जन्म दिया लेकिन लड़की के प्रेमी ने उस बच्चे और अपनी प्रेमिका को अपनाने से इंकार कर दिया. करीब तीन साल से दोनों के बीच प्रेम संबंध था. गर्भवती होते ही लड़के ने लड़की से किनारा कर लिया.

बिहार के चंपारण में एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को जिंदा जला दिया, क्योंकि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी और शादी के लिए दबाव बना रही थी. कहीं लोगों के सामने उस लड़के का भेद न खुल जाए इसलिए उसने अपनी प्रेमिका को जला कर मार डाला.

भोपाल में एक महिला बच्चे को जन्म देते ही उसे मरने के लिए कचरे में फेंक गई. वहाँ से गुजर रहे एक आदमी ने जब रोने की आवाज सुनी और जाकर देखा तो एक नवजात शिशु बिलख रहा था और उसके पूरे शरीर पर चीटियां रेंग रही थी. उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. जल्दी एंबुलेंस बुलाकर उस बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां उसका इलाज शुरू हुआ. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सतीश मरावी का कहना था कि बच्चे की स्थिति गंभीर है. खुले में पड़ा होने से गंदे पानी से संक्रमन हो गया. जिन लोगों ने इस नवजात बच्चे की सूचना पुलिस को दी थी उनका कहना है कि कोई अविवाहित माँ लोक-लाज के डर से शायद नवजात को कचरे में फेंक कर भाग गई होगी.

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ज़्यादातर मामलों में ऐसा ही होता है. प्रेम संबंध में जब प्रेमिका गर्भवती हो जाती है, तब प्रेमी उससे और होने वाले बच्चे को अपनाने के इंकार कर देता है.फिर लोक-लाज के डर सेया परिवार के दबाव में आकरलड़की अपने नवजात बच्चे को कहीं कूड़े, कचरे में फेंक देती है.

विदेशों में इस तरह की घटनाएँ भले ही कम घटित होती हो,पर हमारे देश में ये आम बात है. इस तरह की घटनाएँ आए दिन घटती रहती है, और जिसे रोकने की कोशिशें नाकामयाब है.

देश में हर साल न जाने कितने ही बच्चे इस दुनिया में अनचाहे जन्म ले लेते हैं. बिन ब्याही माँ अक्सर अपने ऐसे बच्चों को लोक-लाज के डर से जन्म देते ही सड़क के किनारे,कूड़े के डब्बे में, झड़ियों या फिर अस्पतालों में छोड़कर चली जाती हैं कई बार तो ऐसे बच्चे मौत के कगार तक पहुँच जाते हैं तो कुछ सही समय पर बचा लिए जाते हैं.एक माँ ने अपने नवजात बच्चे को नाली में बहा दिया. एक लावारिस नवजात बच्चे को कौवे नोच कर खा रहा था. एक नवजात लावारिस बच्ची मंदिर के चौखट पर पाई गई. एक नवजात बच्चा अधजले अवस्था में पाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. ऐसे कितने ही किस्से हम रोज सुनते है और फिर भूल जाते हैं.

नवजात शिशुओं को जन्म के बाद सड़क पर छोड़ने की घटनाएँ पिछले कुछ सालों से बढ़ गई हैं. इस बात का खुलासा चाइल्ड लाइन ने की है. आंकड़ों के मुताबिक,लखनऊ शहर में ही 120 नवजात शिशुओं को सड़क पर फेंक दिया गया.

बहुत सी ऐसी लड़कियां हैं जो बलात्कार या परिवार में ही व्यभिचार की शिकार होती हैं. उनके पिता या सौतेले पिता या भाई ही लड़की के साथ बलात्कार करते हैं और वह इतनी डरी हुई होती है कि कुछ बोल नहीं पातीं. अक्सर बलात्कारी वही व्यक्ति होता है जो परिवार को पाल रहा होता है.

रिश्तों को तार-तार करती ऐसी ही एक घटना गुजरात के सूरत में सामने आई, जहां एक लड़की ने अपने ही भाई के बच्चे को जन्म दिया और फिर उसे कूड़े में मरने के लिए फेंक दिया. जब जांच के बाद मामला सामने आया तब पुलिस ने उस भाई के खिलाफ मुकदमा दायर किया . बच्ची को जन्म देने वाली लड़की और उसका भाई दोनों नाबालिक थे.

मध्य पूर्व के अन्य देशों की तरह कतर में भी शादी के बाहर शारीरिक संबंध बनाना अपराध माना जाता है. ऐसे में कई बार महिलाएं अपनी गर्भावस्था को छिपाने की कोशिश करती है और विदेश में जा कर बच्चा पैदा करती हैं या गर्भपात कराती हैं. कई मामलों में माएं अपने नवजात शिशु को लावारिस छोड़ देती हैं.
भारत जैसे देश में भी जहां शादी से पहले सेक्स को अपराध की नजरों से देखा जाता हो, वहाँ बिन ब्याही माँ बनना एक लड़की या उसके परिवार के लिए कितनी बड़ी मुश्किल और शर्मिंदगी की बात है, सोच सकते हैं आप.देश में कितनी ऐसी मौतें असुरक्षित गर्भपात के कारण होता है. जन्म के बाद कितने ऐसे नवजात बच्चे लावारिस सड़क के किनारे या कचरे के ढेर पर अंतिम सांस ले रहा होता है, ताकि एक लड़की और उसका परिवार बदनामी से बच सके.

हमारे समाज में वयस्क होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना विवाहित होना. शादी से पहले माँ बनने का कलंक और शर्म कई बार महिलाओं को अपने ही नवजात बच्चे को फेंकने के लिए मजबूर कर देता है. शादी से पहले अगर लड़की पेट से हो जाती है तो किसी तरह परिवार की महिला उस बच्चे को गर्भ में ही मारने की तरकीब आजमाती है या किसी झोला छाप डॉक्टर के पास ले जाकर लड़की का गर्भ गिरवा देती हैं ताकि लड़की और उसका परिवार इस कलंक से बच जाए.और जब ऐसा नहीं हो पाता, जब जन्म के बाद नवजात को कहीं मरने के लिए फेंक दिया जाता है.मतलब किसी न किसी तरह से उस बच्चे से छुटकारा पा लिया जाता है.

•शादी से पहले गर्भवती होने का कलंक, महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेलती है——–
जब एक महिला को कानूनी रूप से गर्भपात करने की अनुमति नहीं मिलती है या उसकी पहुँच प्रशिक्षित डॉक्टर/ नर्स तक नहीं होती है, तो उसे अवैध रूप से गर्भपात को अंजाम देने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उसके जीवन पर खतरा बढ़ जाता है.आपको यह जानकार हैरानी होगी कि भारत वो देश है जहां असुरक्षित गर्भपात महिलाओं की मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है. और 80 प्रतिशत भारतीय महिलाओं को यह पता ही नहीं है कि 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात करवाना असल में लीगल है यानि कानूनी रूप से मान्य है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हर साल 5.6 करोड़ महिलाएं गर्भपात करती हैं, जिनमें से 45 फीसदी गर्भपात असुरक्षित होते हैं.

एक शोध में यह पाया गया है कि कानूनी तौर पर मान्य होने के बावजूद भी अविवाहित भारतीय महिलाएं शर्म की वजह से गर्भपात नहीं करवा पाती हैं. हाल ही में गर्भपात को अपराध के दायरे से पूरी तरह से मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई.जिसमें कहा गया कि प्रजनन महिलाओं की पसंद का मामला है इसलिए महिलाओं को प्रजनन और गर्भपात के बारे में फैसला करने का अधिकार होना चाहिए. याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत वर्तमान गर्भपात कानून में अविवाहित महिलाओं का उललेख कहीं नहीं किया गया है.

भारत में अविवाहित महिला के अबोर्शन के मायने 

एक अविवाहित महिला जिसने 20 साल की उम्र में गर्भपात करवाया, वो इस बात से पर्दा उठा रही हैं कि भारत में शादी से पहले ऑबोर्शन के क्या मायने हैं. इस महिला की बात से तमाम उन महिलाओं की परेशानी समझ सकते हैं जिन्हें गर्भपात की कोई जानकारी नहीं है. निधि नाम की इस लड़की का कहना है कि एक अविवाहित लड़की के गर्भवती होने पर वह यह बात अपने दोस्तों और सहकर्मियों से तो बता सकती है पर अपने परिवार वालों से नहीं. निधि का कहना है कि वह एक रिलेशनशिप में थी. ऑबोर्शन के बारे में सिर्फ इतना ही जानती थी कि ये पाप है और ये नहीं करना चाहिए.’आपको स्कूलों में सो कॉल्ड सेक्स एजुकेशन की क्लास में यही बताया जाता है. यहाँ खासतौर पर लड़कियों को यही यकीन दिलाया जाता है कि किसी भी तरह की सेक्शुअल एक्टिविटी से उन्हें सिर्फ लानतें ही मिलेगी. गर्भपात को हमेशा हत्या के समकक्ष माना गया. असल में आपके शरीर पर आपका अधिकार है, गर्भपात करवाना आपकी अपनी इच्छा है, गर्भपात एक वैध विकल्प है, इस बारे में कभी बात की ही नहीं जाती है.शादी से पहले सेक्स को लेकर लोगों की सोच से हम सभी वाकिफ हैं. लेकिन हकीकत से हम मुंह मोड़ेंगे तो खुद ही धोखा खाएँगे और हकीकत ये है कि आज शादी से पहले सेक्स टैबू नहीं, एक आम बात है. लेकिन हाँ, इस पर बात करना आज भी टैबू है. और समाज के इसी रवैये की वजह से अविवाहित महिलाओं का गर्भवती हो जाना एक शर्म की बात मानी जाती है.

इसी शर्म और लोक-लाज की डर की वजह से ही असुरक्षित गर्भपात के कारण महिलाओं की जान दांव पर लग जाती है. भारत में एक अविवाहित महिला के ऑबोर्शन के मायने सिर्फ मौत को टक्कर देना है.

• यूट्यूब पर देखकर खुद की डिलिवरी करने से गई लड़की की जान

उत्तर प्रदेश के बिलंदपुर इलाके में एक लड़की की मौत की खबर सुनकर जब पुलिस वहाँ पहुंची तो खून से लथपथ उस लड़की की लाश पड़ी थी और उसका बच्चा भी मर गया था. पास में एक मोबाइल फोन पड़ा था जिस पर एक वीडियो चल रहा था. वीडियो बच्चा पैदा करने का था यानि डिलिवरी का था. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि लड़की यूट्यूब पर वीडियो देखकर खुद डिलिवरी करने की कोशिश कर रही थी.
लड़की ने ऐसा क्यों किया——

दरअसल, लड़की अविवाहित थी.और हमारे यहाँ तो अविवाहित लड़की का प्रेग्नेंट होना बदनामी माना जाता है. पूरा घर बर्बाद तबाह हो जाता है. क्योंकि लड़की से ही माँ-बाप की इज्जत, मान-सम्मान सब जुड़ी होती है. लड़का कुछ भी करे,कहीं भी जाए माँ-बाप की इज्जत नहीं जाती है. दुख तो इस बात की भी है कि लड़की समाज से कम अपने परिवार से ज्यादा डर कर रहती है. इज्जत के नाम पर कब माँ-बाप दरिंदा बनकर उसे सूली पर लटका दें, नहीं पता. खैर,अफसोस तो इस बात की है कि लड़की के प्रेमी ने भी उसका साथ नहीं दिया और इस हालत में उसे छोड़कर भाग गया. प्रेम की निशानी वह बच्चा क्या प्रेमी की ज़िम्मेदारी नहीं थी ? और संरक्षण देने वाला परिवार और समाज की भी क्या कुछ ज़िम्मेदारी नहीं बनती थीउनके प्रति ? पर किसी ने भी उस वक़्त उस लड़की का साथ नहीं दिया.अगर दिया होता, तो शायद आज माँ और बच्चा दोनों जीवित होते.

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कॉन्डम के नाम पर लोग नाक-मुंह सिकोड़ते हैं.नाम लेते भी उन्हें शर्म आती है. महिलाओं को कॉन्डम खरीदने से शर्म महसूस होती है, तो वहीं मर्द की मर्दानगी घट जाती है. लेकिन कभी सोचा है इसका खमयजा सिर्फ और सिर्फ लड़की को ही भुगतना पड़ता है. ना माँ-बाप और न ही स्कूल टीचर बच्चों को सेफ सेक्स के बारे में जानकारी देते हैं. उन्हें लगता है ये गंदी बात है और इससे बच्चे और बिगड़ जाएंगे. लेकिन सेक्स तो फिर भी हो रहा है और आए दिन उसका नतीजा कभी कूड़ों के ढेर पर तो कभी किसी नाले में बहती दिख जाती है. सोचिए न, उस मासूम की इसमें क्या गलती है जिसकी उन्हें इतनी बड़ी सजा मिलती है कि दुनिया में कदम रखते ही उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, वह भी सिर्फ लोक-लाज और बदनामी के डर से.

सिंगल मदर—– लोगों के लिए एक बड़ा सवाल बन जाता है.’इस बच्चे का बाप कौन है ? अकेले क्यों पाल रही हो ? कहीं यह किसी का पाप तो नहीं? डॉक्टरों की कमी थी ? बच्चा गिरवा देती’ जैसे सवाल लड़की का जीना दूभर कर देते हैं. लेकिन उस लड़के को कोई कुछ नहीं कहता जिसका आधा जिम्मेदार वो भी है.उसे कोई दोष नहीं देता जो लड़की को मुसीबत के वक़्त छोड़कर भाग जाता है. क्या इस प्रेग्नेनेसी की जिम्मेदार सिर्फ लड़की है? प्रेग्नेनेसी के लिए दो लोगों की जरूरत होती है, तो मुसीबत एक के ही सिर पर क्यों डाल कर दूसरा भाग खड़ा होता है ? यह कहना गलत नहीं होगा कि हर अनचाही प्रेगेनेंसी इस वजह से होती है क्योंकि पुरुष गैरजिम्मेदार तरीके से ‘इजैक्यूलेट’ करते हैं. अगर कोई महिला अनचाहे गर्भ से बचना चाहती है तो गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ उसकी ही क्यों हो ? आधुनिक गर्भ निरोधक सबसे अच्छा आविष्कार है. पर कई औरतों को इसके साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन इसके बावजूद औरतें गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के लिए तैयार रहती हैं.

हालांकि, ये इतना आसान नहीं है. गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के लिए आपको डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ती है. आम तौर पर यह न तो मुफ्त मिलती है और न सस्ती होती है. इसके अलावा गर्भा निरोधक गोलियों का इस्तेमाल रोजाना करना पड़ता है. बिना भूले और बिना गलती किए.संक्षेप में कहें तो औरतों के लिए गर्भ निरोधक का इस्तेमाल मुश्किल है और पुरुषों के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल आसान. कॉन्डम किसी भी दुकान में आसानी से मिल जाता है और इसके लिए डॉक्टर की सलाह की भी जरूरत नहीं होती. कॉन्डम के इस्तेमाल से यौन संक्रमन से होने वाली बीमारियों से भी बचा जा सकता है. इसके बावजूद पुरुष कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते और औरतों पर भी बिना कॉन्डम के सेक्स का दबाव बनाते हैं. पुरुष महज कुछ सेकेंड के थोड़े से आनंद के लिए औरतों की सेहत, रिश्ते और उनके करियर तक को खतरे में डाल देते हैं.

बच्चे मन के सच्चे…………. सारे जग के आँख के तारे……….लेकिन अफसोस की इन्हीं नन्हें फूलों का दुशमन कोई गैर नहीं, अपने ही होते हैं.एक नवजात बच्चा इसलिए किसी कूड़े-कचरे में फेंक दिया जाता है क्योंकि वह एक लड़की है या फिर किसी के ऐयाशी का नतीजा. लेकिन इस सब में इस बच्चे का क्या कसूर था? उसे भी तो इस दुनिया में आने और जीने का हक था न ? कैसे निर्मम हैं वो कलेजा जो नवजात को कूड़े के ढेर में मरने के लिए छोड़ देते हैं.आज समाज में खुलापन तो बढ़ा है हम अपने आप को आधुनिक कहलाने में भी गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं. लेकिन लोक-लाज के डर से या बच्चे की क्या जरूरत है ज़िंदगी में, इस सोच के साथ बच्चे को माँ के गर्भ में या फिर जन्म लेते ही मार दिया जाता है.जरा भी दर्द नहीं होता ऐसा करने में. यह भी नहीं सोचते कि जिस नवजात को अपनी माँ की गोद चाहिए उसे कुत्ते और कौवे नोच-नोच कर खा रहे होंगे.

दिशा चाल्डलाइन के सेक्रेटरी अबुल कलाम आजाद अपने यहाँ यतीम बच्चों को आश्रय देते हैं.कई माता-पिता जब अपने नवजात बच्चों को लावारिस छोड़ जाते हैं, तब ये उनका सहारा बनते हैं. कोरोना काल में कई नवजात लावारिस पाए गए, जिन्हें जनता कर्फ़्यू यानि 22 मार्च को शेल्टर होम पहुंचाया गया. इन बच्चोंके माता-पिता कौन है, कोई नहीं जानता.इनमें से कोई सड़क पर मिला तो कोई चुपचाप इन्हें पालना घर के बाहर छोड़ गया था.शहरों में कई ऐसे आश्रम और पालना घर है जहां इन लावारिस बच्चों की ज़िम्मेदारी ली जाती है. कहने का मतलब यह है कि अगर बच्चा नहीं पाला जाता, तो उसे मरने के लिए कूड़े के ढेर में न फेंके. उसे ऐसे जगह छोड़ आए जहां उसकी जान बच सके. जीवन किसी का भी अमूल्य है.
साल 2015 की Pew रिसर्च सेंटर एनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ज़्यादातर देश, आंकड़ों के हिसाब से कहें तो 96% किसी महिला की ज़िंदगी को बचाने के लिए एबोर्शन की अनुमति देता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक चिली, बता दें कि इस फैसले से पहले पोलेंड में भ्रूण में किसी भी तरह की समस्या आने पर कानूनी तौर पर महिलाएं गर्भपात करा सकती थीं. लेकिन नए कानून के अनुसार, गर्भपात पर अब पूरी तरह से बैन लगा दिया गया है. देश में गभपात से जुड़े कानून पहले से ही पूरे यूरोप में सबसे सख्त थे. लेकिन इस फैसले के बाद अब सिर्फ बलात्कार, अनाचार या माँ की सेहत से जुड़े खतरे को देखकर ही गर्भपात की अनुमति दी जाएगी.

हर साल 80,000 से 1,20,000 पोलिश महिलाएं दूसरे देशों में जाकर गर्भपात करवाती है. इस फैसले के बाद गर्भपात करवाने के लिए दूसरे देशों में जाने वाली महिलाओं के संख्या बढ़ेगी. हालांकि, दुनिया भर में गर्भपात की दरों पर नजर रखना मुश्किल है क्योंकि कई राष्ट्र गर्भपात की दरों को रिकॉड या रिपोर्ट नहीं करते हैं. यह बात उन देशों के लिए भी विशेष रूप से सच है जहां गर्भपात गैरकानूनी है और इसके किसी भी प्रकार के रिकॉड नहीं रखे जाते. फिर भी जो आंकड़ें मौजूद हैं उनके मुताबिक, भारत सहित कुछ देशों में गर्भपात की दर सबसे कम है.

पूरे एशिया में कतर के अलावा सिर्फ भारत ही है, जहां एबोर्शन रेट बहुत कम है. हालांकि, इसके पीछे कई वजहें हैं, इसमें रूढ़िवादी, जानकारी की कमी और धार्मिकता जैसी वजहें भी शामिल है. भारत में 15 से 44 साल के बीच की गर्भवती महिलाओं के बीच एबोर्शन रेट प्रति 1000 पर सिर्फ 3.1 है. वहीं कतर में एबोर्शन रेट प्रति 1000 गर्भवती महिलाओं पर सिर्फ 1.2 है.

एबोर्शन न करा सकने के कारण ही एक माँ अपने बच्चे को या तो किसी अनाथ आश्रम के बाहर या सड़क पर मरने के लिए छोड़ देती है. क्योंकि उस प्रेम की निशानी को छोड़कर प्रेमी भी भाग जाता है और संरक्षण देने वाला समाज भी.

•कोरोना के कारण इस साल दुनिया में पाँच करोड़ अनचाहा गर्भ 

कोरोना महामारी के कारण इस साल के अंत तक दुनियाभर में पाँच करोड़ से ज्यादा अनचाहे गर्भधारण की संभवना है. वहीं 3.3 करोड़ असुरक्षित गर्भपात की भी आशंका है. अमरीकी थिंकटैंक गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार, कोरोना प्रतिबंधों के चलते यौन स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गई है. अनुमान है कि इस साल के अंत तक 5 करोड़ से अधिक महिलाओं तक गर्भनिरोधक नहीं पहुँच पाएंगे. इसके परिणाम स्वरूप उन्हें अनचाहा गर्भधारण करना होगा. गुट्ठमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनिया के 132 निम्न और माध्यम आय वाले देशों में यौन स्वास्थ्य सेवाओं में 10% की गिरावट हो सकती है, जिनसे 1.5 करोड़ अनचाहे बच्चे पैदा हो सकते हैं. 28 हजार माओं और 1 लाख 70 हजार नवजात शिशुओं की मृत्यु हो सकती है, वहीं 3.3 करोड़ का असुरक्षित गर्भपात होगा.

• अमीर देश भी प्रभावित

अमीर देशों में कोरोना के कारण प्रजनन दर में बढ़ोत्तरी का अनुमान है. इस तरह सिंगापुर में कोरोना से पहले प्रजनन दर 1.14 था जो अब 2.1 हो गई है. इटली के मिलन स्थित कैटोलिका डेल सैक्रो क्यूओर यूनिवर्सिटी की शोधार्थी फ़्रोन्सेस्का लुप्पी ने साल की शुरुआत में एक सर्वे किया था, जिसके अनुसार, स्पेन में 18-34 वर्ष की आयु वर्ग के 29 प्रतिशत कपल और इटली में इसी आयुवर्ग के 37 प्रतिशत कपल जनवरी 2020 में बच्चा पैदा करने की योजना बना रहे थे.

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• गर्भनिरोधक गोलियों में 15, कॉन्डम वितरण में 23 फीसदी कमी

भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर से मार्च तक गर्भनिरोधक गोलियों में 15% व कॉन्डम के वितरण में 23% की कमी आई है. यहाँ गाँव-कस्बों, छोटे-छोटे शहरों से लोग परिवार से दूर रहकर नौकरी करते हैं. मार्च में लॉकडाउन के बाद घरों को लौट गए. पार्टनर के साथ अधिक समय बिताने का समय मिला जिससे अनचाहे गर्भ का गर्भपात हो सकते हैं.

• गर्भनिरोधक पर छूट दें

जानकार मानते हैं कि सरकारें गर्भनिरोधक पर सब्सिडी व उनकी पहुँच महिलाओं तक आसान बना दें तो परिवार नियोजन को बल तो मिलेगा ही,नवजात बच्चे कूड़े-कचरे में भी जाने से बचेंगे. और नागरिकों में बेहतर जीवन की नीतियाँ बनाने में सजह होंगी.

जानें क्या हैं माफ करने के पौजीटिव इफेक्ट

जिस तरह से एक फूल को खिलने के लिए उसे सही मात्रा में हवा, पानी और धूप की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह से एक इंसान को आगे बढ़ने या खिलने के लिए गर्मजोशी और सकारात्मकता से भरे हुए दिल की जरूरत होती है. साथ ही जरूरत है एक आशा से भरे मन और दृढ़ निश्चय की. हालांकि, अक्सर कई लोग अपनी जीवन में ये सभी बातें लागू करने में विफल हो जाते हैं. और नकारात्मकता से भर जाते हैं. जो हमें अपनी वास्तविक क्षमताओं को महसूस करने से रोकते हैं. और हम अपने नकारात्मक स्वाभाव के चलते लोगों से दूर होते चले जाते हैं और उन्हें उनकी गलतियों के लिए क्षमा नहीं कर पाते.

1. गलत है नकारात्मकता-

अगर हमारे दिल में नकारात्मकताएं हैं तो ये हमारे साथ-साथ दूसरों के लिए भी गलत हो सकता है. क्योंकि इससे हमारे व्यवहार में भी काफी बदलाव आ जाते हैं. जिससे बात-बात गुस्सा आना और नफरत भरने लगती है. जो हमारे स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालती है. वहीं बात अगर किसी को क्षमा करने की करें तो अगर आपके अंदर सकारात्मकता रहेगी तो, आपके लिए ये काम बेहद आसान हो जाएगा. इससे आप किसी के चहरे में हंसी और प्यार भी ला पाएंगे.

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2. क्षमा करना क्यों जरूरी-

दूसों को क्षमा करना ना सिर्फ हमारे की सकारात्मकता को दर्शाती है, बल्कि दूसरों के प्रति प्रेम की भावना को भी बढ़ाता है. क्षमा करना कई मायनों में जरूरी भी है आइये जानते हैं क्यों?

• क्षमा करने से आप खुद को अच्छा महसूस कर पाएंगे. आपके अंदर से क्रोध या अतीत की बातें भुलाने में मदद मिलती है और आप आगे बढ़ पाते हैं.
• अगर आप किसी को क्षमा करते हैं तो इससे मानसिक स्थिति में सुधार आता है. आप बार-बार एक बारे में नहीं सोचते. अगर आप सोचना बंद कर देंगे तो आपको ब्लडप्रेशर और अवसाद की समस्या कम हो जाएगी.
• अगर आपके अंदर सकारात्मकता होगी तो आपके अंदर दूसरों क्व प्रति आदर, करुना और आत्मविश्वास बढेगा. जिससे आप एक बेहतर इंसान बनेंगे.
• क्षमा करने से आप मानसिक तौर पर खुद कलो स्वस्थ्य बना पाएंगे. क्षमा करने से आप खुद के विचारों और भावनाओं में हेरफेर को रोक पाएंगे.
• क्षमा करने से आपको दिमागी रूप से शांति मिलेगी. आपके लिए ये दुनिया भले ही कितनी निराशजनक क्यों ना हो लेकिन, जहां आपने किसी के प्रति सकारात्मकता दिखाई और क्षमा किया, उसी बीच आप साड़ी अराजकताओं से भी दूर हो जाएंगे.

3. रिश्ते बनाए बेहतर-

आप अगर किसी को क्षमा करते हैं तो इससे आपके रिश्ते काफी बेहतर बनेंगे. आप अगर अपने माता-पिता, दोस्त, करीबी रिश्तेदारों या सहकर्मियों के साथ अगर आपकी कभी बहस भी होती है तो सिर्फ एक सॉरी आपके रिश्ते जो और भी मजबूर बना देगा.

4. दिखाए समझदारी-

दूसरों को क्षमा करना या क्षमा मांगना आपकी समझदारी को दर्शाता है. अगर आप किसी से दो शब्द प्यार के साथ क्षमा याचना करते हैं तो आप किसी भी इंसान का दिल जीत सकते हैं. सामने झट से आपकी साड़ी नकारात्मकता भुला कर आपको अच्छे नजरिये से देखने लगता है. इसी समझदारी से आप आप बड़ी से बड़ी कठनाइयों का भी सामना कर सकते हैं.

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5. खत्म करें नफरत-

आप अंदर अगर एक बाद क्षमा करने की भावना आ गयी तो समझिये आपके अंदर की नफरत ही खत्म हो जाएगी. और आपको नये सिरे से जीवन को जीने की इच्छुक बनाती है.

किसी के लिए अपने दिल से नफरत खत्म कर सकारात्मक होना बड़ी बात है. इससे आपका व्यक्तित्व दूसरों के लिए प्रेरणा बनेगा. इसलिए ये समझिये की जिन्दगी छोटी है, इस छोटी सी जिन्दगी में दूसरों को क्षमा करने या क्षमा मांगने से आगे कई रिश्ते बचते हैं तो आपको पीछे नहीं हटना चाहिए.

अरूबा कबीर, मेंटल हेल्थ थैरेपिस्ट काउंसलर एंड फाउंडर ऑफ एनसो वैलनेस से बातचीत पर आधारित

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