Serial Story: सबक (भाग-1)

किचन से आती हंसीमजाक की आवाजों को सुन कर ड्राइंगरूम में सोफे के कुशन ठीक करती अंजलि की भौंहें तन गईं. एकबारगी मन किया कि किचन में चली जाए, पर पता था उन दोनों को तो उस के होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. रोज यही होता है. सुबह से अंजलि चाय, नाश्ता और खाने की पूरी तैयारी करती है, दालसब्जी बनाती है और जैसे ही रोटियां बनाने की बारी आती है उस की जेठानी लता चली आती है, ‘‘चलो अंजलि, तुम सुबह से काम रही हो. रोटियां मैं बना देती हूं.’’

मना करने पर भी अंजलि को जबरदस्ती बाहर भेज देती. लता की मदद करने अंजलि का पति विनीत तुरंत किचन में घुस जाता. अब अंजलि बिना काम के किचन में खड़ी हो कर क्या करे. अत: चुपचाप बाहर आ कर दूसरे काम निबटाती या फिर नहाने चली जाती और अगर किचन में खड़ी हो भी जाए तो लता और विनीत के भद्दे व अश्लील हंसीमजाक को देखसुन कर उस का सिर भन्ना जाता. उसे लता से कोफ्त होती. माना कि विनीत उस का देवर है, लेकिन अब तो अंजलि का पति है न, तो दूसरे के पति के साथ इस तरह का हंसीमजाक करना क्या किसी औरत को शोभा देता है?

लेकिन विनीत से जब भी बात करो इस मामले में वह उलटा अंजलि पर ही गुस्सा हो जाता कि अंजलि की सोच इतनी गंदी है. वह अपने ही पति के बारे में ऐसी गलत बातें सोचती है, शक करती है. 3 साल हो गए अंजलि और विनीत की शादी को हुए. इस 3 सालों में दसियों बार लता को ले कर उन दोनों के बीच झगड़ा हो चुका है. लेकिन हर बार नाराज हो कर उलटासीधा बोल कर विनीत अंजलि की सोच को ही बुरा और संकुचित साबित कर देता.

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पास ही के शहर में रहने के कारण लता जबतब अंजलि के घर चली आती. लता का पति यानी विनीत के बड़े भाई बैंगलुरु में नौकरी करते हैं. लता अपने दोनों बेटों के साथ अपने मातापिता के घर में रहती है, इसीलिए उसे बच्चों की भी चिंता नहीं रहती. हफ्ते या 10-15 दिनों में 2-4 दिन के लिए आ ही जाती है अंजलि के घर. और ये 2-4 दिन अंजलि के लिए बहुत बुरे बीतते. लता के जाने के बाद अंजलि अपनेआप को थोड़ा संयत करती, मन को संभालती, विनीत और अपने रिश्ते को ले कर सामान्य होती तब तक लता फिर आ धमकती और अंजलि का जैसेतैसे सुचारु हुआ जीवन और मन दोबारा अस्तव्यस्त हो जाता.

एक बार तो हद ही हो गई. लता नहाने गई हुई थी. अंजलि भी अपने कमरे में थी. थोड़ी देर बाद किसी काम से अंजलि कमरे से बाहर निकली, तो देखा विनीत लता के कमरे से बाहर आ रहा था.

‘‘क्या हुआ विनीत, भाभी नहा कर आ गईं क्या?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी नहीं आईं.’’

‘‘तो तुम उन के कमरे में क्या कर रहे थे?’’ अंजलि ने सीधे विनीत के चेहरे पर नजरें गढ़ा कर पूछा.

‘‘व…वह तौलिया ले जाना भूल गई थीं. वही देने गया था,’’ विनीत ने जवाब दिया.

‘‘अगर उन्हें तौलिया चाहिए था, तो मुझे बता देते तुम क्यों देने गए?’’ अंजलि को गुस्सा आया.

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं? मैं उन्हें तौलिया देने गया था, उन के साथ नहा नहीं रहा था, जो तुम इतना भड़क रही हो. उफ, शक का कभी कोई इलाज नहीं होता. क्या संकुचित विचारों वाली बीवी गले पड़ी है. अपनी सोच को थोड़ा मौडर्न बनाओ, थोड़ा खुले दिमाग और विचारों वाली बनने की कोशिश करो,’’ विनीत ने कहा और फिर दूसरे कमरे में चला गया.

अंजलि की आंखों में आंसू छलक आए. दूसरे दिन सुबह विनीत ने बताया कि लता भाभी वापस जा रही हैं. वह औफिस जाते हुए उन्हें बस में बैठा देगा. अंजलि ने चैन की सांस ली. 4 दिन से तो विनीत लता के चक्कर में औफिस ही नहीं गया था. लता जा रही है तो अब 10-12 दिन तो कम से कम चैन से कटेंगे. यों तो विनीत अधिकतर समय फोन पर ही लता से बातें करता रहता है, लेकिन गनीमत है लता प्रत्यक्ष रूप से तो दोनों के बीच नहीं रहती.

लता और विनीत चले गए तो अंजलि ने चैन की सांस ली. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गई. जब भी लता आती है पूरे समय अंजलि का सिर भारी रहता है. वह लाख कोशिश करती है नजरअंदाज करने की, मगर क्याक्या छोड़े वह? लता और विनीत की नजदीकियां आंखों को खटकती हैं. सोफे पर एकदूसरे से सट कर बैठना, अंजलि अगर एक सोफे पर बैठी हो और लता दूसरे पर तो विनीत अंजलि के पास न बैठ कर लता के पास बैठता है. खाना खाते समय भी लता विनीत के पास वाली कुरसी पर ही बैठती है. जब तक लता रहती है अंजलि को न अपना पति अपना लगता है न घर. लता बुरी तरह विनीत के दिल पर कब्जा कर के बैठी है. रात में भी अंजलि थक कर सो जाती पर विनीत लता के पास बैठा रहता. अपने कमरे में पता नहीं कितनी रात बीतने के बाद आता.

विनीत की इन हरकतों से अंजलि बहुत परेशान हो गई थी. फिल्म देखने जाते हैं, तो विनीत अंजलि और लता के बीच बैठता और सारे समय लता से ही बातें और फिल्म पर कमैंट करता. ऐसे में अंजलि अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती.

अंजलि के दिमाग में यही सब बातें उमड़घुमड़ रही थीं कि तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी.

‘‘हैलो,’’ अंजलि ने फोन रिसीव करते हुए कहा.

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‘‘हैलो भाभी नमस्ते. मैं आनंद बोल रहा हूं. क्या बात है विनीत आज औफिस नहीं आया? आज बहुत जरूरी मीटिंग थी. उस के फोन पर बैल तो जा रही है, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहा. सब ठीक तो है?’’ आनंद के स्वर में चिंता झलक रही थी. आनंद विनीत के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

‘‘क्या विनीत औफिस में नहीं हैं?’’ अंजलि बुरी तरह चौंक कर बोली,  ‘‘लेकिन वे तो सुबह 9 बजे ही औफिस निकल गए थे.’’

‘‘नहीं भाभी विनीत आज औफिस नहीं आया है और फोन भी नहीं उठा रहा है,’’ और आनंद ने फोन काट दिया.

अंजलि को चिंता होने लगी कि आखिर विनीत कहां जा सकते हैं. दोपहर के 2 बज रहे थे. अंजलि ने भी विनीत को फोन लगाया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अंजलि परेशान हो गई कि कहीं कोई दुर्घटना तो…

आगे पढ़ें- 4 बजे जा कर विनीत का फोन आया. अंजलि ने…

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शादी के बाद पति के साथ पहली लोहड़ी मनाते दिखीं Neha Kakkar, PHOTOS VIRAL

बौलीवुड की पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ आए दिन अपने सौंग्स और पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. वहीं फैंस भी उनके हर एक अपडेट के लिए इंतजार करते हैं. इसी बीच नेहा कक्कड़ ने अपने लोहड़ी सेलिब्रेशन की कुछ फोटोज फैंस के साथ शेयर की हैं, जिसमें वह पति रोहनप्रीत और दोस्तों संग जमकर मस्ती करती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनके लोहड़ी सेलिब्रेशन की खास फोटोज…

फैंस के लिए नेहा शेयर की फोटो

नेहा कक्कड़ और रोहनप्रीत सिंह इन दिनों अपनी शादीशुदा जिंदगी के हर पल को इंजॉय कर रही हैं. इस बार नेहा पति संग शादी के बाद अपनी पहली लोहड़ी सेलिब्रेट कर रही हैं, जिसकी खुशी नेहा कक्कड़ ने अपने फैंस के साथ शेयर करते हुए लिखा, #nehupreet की पहली लोहड़ी. आप सभी को लोहड़ी की शुभकामनाएं.

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फैंस ने दिया ये रिएक्शन

 

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जहां लोहड़ी सेलीब्रेशन के दौरान नेहा कक्कड़ और रोहनप्रीत सिंह रोमांटिक पोज देते नजर आए.तो वहीं फैंस को इतनी पसंद आई कि उन्होंने फोटो पर जमकर कमेंट करना शुरु कर दिया साथ ही फोटोज को सोशलमीडिया पर वायरल भी कर दिया.

ऐसा था नेहा का लुक

 

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शादी के बाद पहले लोहड़ी सेलिब्रेशन पर नेहा कक्कड़ पूरे इंडियन लुक में नजर आईं. मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ा पहने नेहा कक्कड़ पति रोहनप्रीत सिंह की जोड़ी बेहद खूबसूरत लग रही थी.

दोस्तों संग मस्ती करती नजर आई नेहा

लोहड़ी सेलिब्रेशन के दौरान नेहा कक्कड़ अपने दोस्तों के साथ भांगड़ा करती नजर आईं. डांस करती हुई नेहा कक्कड़ इस तस्वीर में बहुत क्यूट लग रही थीं तो वहीं  रोहनप्रीत को छोड़ अपनी गर्लगैंग के साथ मस्ती करती नजर आईं.

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बता दें, पिछले दिनों नेहा कक्कड़ अपने नए गाने ख्याल रख्या कर को लेकर काफी ट्रोल हुई थीं. हालांकि बावजूद इसके फैंस ने इस गाने को काफी पसंद किया था.

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बीते दिनों बिग बौस 14 के वीकेंड के वार में सलमान खान के रुबीना दिलाइक को सुनाने को लेकर फैंस ने नाराजगी जाहिर की थी. इसी बीच एक बार फिर रुबीना दिलाइक के फैंस का गुस्सा देखने को मिला है. दरअसल, इस हफ्ते घर से बेघर होने के लिए नौमिनेट हुईं सोनाली फोगाट इन दिनों सारी हदें पार करती हुई नजर आ रही हैं. जहां वह अली गोनी से अपने प्यार का इजहार करती नजर आ रही हैं तो वहीं किसी न किसी बात पर उनकी लड़ाई देखने को मिल रही है. इसी बीच सोनाली फोगाट और रुबीना दिलाइक की लड़ाई हो गई. जिसका कारण सोनाली का अभिनव को गाली देना बन गया. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

इस बात पर हुई लड़ाई

दरअसल, सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) का कहना था कि इस हफ्ते अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलाइक, राखी सावंत के पीछे-पीछे दुम हिलाकर घुमते हुए नजर आ रहे हैं क्योंकि वो इस समय घर की कैप्टन है. वहीं सोनाली की ये बात सुनने के बाद रुबीना और अभिनव को गुस्सा आ गया, जिसके कारण लड़ाई बढ़ती चली गई.

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सोनाली ने दी गाली

रुबीना-अभिनव से लड़ाई से भड़कीं सोनाली फोगाट ने रुबीना दिलाइक गाली देते हुए चिल्लाकर ‘हरामजादी’ कहा. वहीं सोनाली फोगाट के मुंह से रुबीना के लिए गाली सुनकर घरवाले जहां हैरान थे तो वहीं रुबीना भी गुस्से में कहा, ‘तुम्हारी एक बेटी है…क्या तुम उसको हरामी कहती हो?’ इसके बाद सभी घरवाले रुबीना के खिलाफ हो गए.

फैंस को आया गुस्सा

‘बिग बॉस 14’ के घर में रुबीना और सोनाली की इस लड़ाई और गाली देने की बात पर फैंस का गुस्सा देखने को मिला है. दरअसल, फैंस का कहना है कि हर कोई रुबीना को टारगेट कर रहा है. वहीं यूजर का कहना है कि सोनाली फोगाट लाइमलाइट में आने के लिए अपनी असली औकात दिखा रही हैं. वहीं सोशमीडिया पर फैंस का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है.

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तनाव मुक्ति के लिए क्यों रामबाण है डॉग थैरेपी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुडगांव उर्फ गुरुग्राम में 4 साल पहले तीन युवतियों ने मिलकर अपने एक साझे स्टार्टअप के तहत एक ‘बार’ खोला नाम रखा ‘फर बॉल’ इस स्ट्रार्टप पर विस्तार से टिप्पणी लिखते हुए लाइफस्टाइल राइटर ईरा टेंगर ने लिखा, ‘क्या आप जानते हैं कि सबसे अच्छा एहसास क्या होता है? जी,हां प्यारे प्यारे मासूम कुत्तों से घिरा होने का एहसास. तनाव से मुक्ति के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं होता.’

मनोवैज्ञानिक कहते हैं तनावग्रस्त लोगों के लिए कुत्तों का साथ,तनाव दूर करने वाली किसी बढ़िया प्रभावशाली दवा के माफिक होता है. शांतनु की कहानी सुनिए. सात साल का शांतनु स्पेशल स्कूल में पढने वाला एक लड़का है. वैसे शांतनु अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के मुकाबले किसी भी मामले में उन्नीस नहीं है बल्कि ज्यादा ही स्मार्ट और सक्रिय है. लेकिन उसमें एक कमी है,वह सही से बोल नहीं पाता. इसीलिये उसके मां बाप को मन मारकर उसे स्पेशल एजूकेशन वाले स्कूल में भर्ती कराना पड़ा,जिसका अक्सर उन्हें अफसोस रहता है ; क्योंकि शांतनु बोल न सकने के अलावा बाकी हर मामले में परफेक्ट ही नहीं अपनी उम्र के बाकी बच्चों के मुकाबले जादा स्मार्ट व इंटेलीजेंट है.

शांतनु के पिता की इस दुखभरी कहानी को उनके दफ्तर का हर शख्स जानता था. एक दिन उनके एक सहकर्मी ने उनका संजीव नाम के नौजवान से परिचय करवाया . शांतनु के पापा को उनके सहकर्मी ने बताया कि संजीव एक डॉग थैरेपिस्ट और सब कुछ सही रहा तो संजीव के ट्रीटमेंट से शांतनु अगले 6 महीने में बोलने लगेगा . शांतनु की थैरेपी शुरु हुई और उनके मम्मी-पापा के खुशी के आंसू निकल आये जब 2 हफ्तों की थैरेपी से ही शांतनु और संजीव द्वारा थैरेपी के लिए लाये गए . कुत्ते के बीच पहले जबर्दस्त बोन्डिंग पैदा हुई फिर संवाद की कोशिश होने लगी और अब शांतनु के गले से गों गों करके आवाज निकलने लगी.

यह कोशिश तब चमत्कारिक साबित हुई जब वास्तव में 6 महीने के पहले ही शांतनु बोलने लगा. आज शांतनु रेग्युलर स्कूल में शिक्षा हासिल कर रहा है. बेन विलियम ने एक बार कहा था कि आपके चेहरे को चूमने और चाटने वाला दुनिया में कोई ऐसा मनोवैज्ञानिक नहीं है, जो आपको इस तरह से सहलाए, प्यार करे. यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में कुत्तों का इस्तेमाल विभिन्न संस्थानों में थैरेपिस्ट की तरह किया जा रहा है. इनके द्वारा रिटायरमेंट होम्स और अस्पतालों में मरीजों को थैरेपी दी जाती है. जो बच्चे बेहद कठिन स्थितियों में जीवन जीते हैं उन्हें मुश्किल स्थितियों से बाहर लाने के लिए,उनमें एक नयी आशा, उत्साह और जीवन का संचार करने के लिए पूरी दुनिया में आज डॉग थैरेपी का इस्तेमाल बखूबी किया जा रहा है.

करीब एक दशक पहले अमरीका के बोस्टन में बमबारी होने के कारण घटनास्थल पर मौजूद लोगों को जबर्दस्त आघात लगा, लोगों के दिल में दहशत का माहौल घर कर गया था. लोग तनाव से बोलना भूल गए थे . तब यहाँ के अस्पतालों द्वारा लोगों की डॉग थैरेपी करवायी गई और इसने अस्पतालों को निराश नहीं किया. जल्द ही लोग मानसिक तनाव से उबरने लगे. सवाल है आखिर डॉग थैरेपी इस कदर चमत्कारिक क्यों साबित होती है ? मनोवैज्ञानिकों ने इसकी कुछ वजहें खोजी हैं-

डॉग या पेट हमें बिना शर्त प्यार करते हैं – इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कुत्तों को पसंद करते हैं या नहीं. विभिन्न अध्ययन इस बात को पुख्ता तौरपर साबित करते हैं कि कुत्तों को गोद में बिठाने और उन्हें सहलाने से किसी को भी अच्छा लगता है. क्योंकि इससे शरीर में ऑक्सोटोक्सिन हार्मोन रिलीज होता है जिसका सीधा संबंध प्यार और बोंडिंग से होता है. यह हार्मोन मनुष्य और कुत्तों दोनो में ही पाए जाते हैं. कुत्ते हमेशा से ही आदमी के सबसे प्रिय और पालतू जानवर इसीलिए रहे हैं.  कुत्ते और मनुष्य के बीच एक अनोखी बोंडिंग देखी जाती है. वह अपनी आंखों के जरिए हमारे दिल में अपनी जगह बनाते हैं. उनके प्यार करने की कोई शर्त नहीं होती. न ही वे हमारी गलतियों को अपने दिल पर लेते हैं और नाराज होकर हम पर पलटवार करते हैं.

बच्चों के कुत्ते सबसे प्यारे दोस्त होते हैं. बच्चे बड़ों की दुनिया से जल्दी घुलते मिलते नहीं हैं. उनका हर काम करने का अपना एक अलग अंदाज होता है और वे उसे वैसे ही करना पसंद करते हैं. ऐसे बच्चों के लिए डॉग  थैरेपी सबसे महत्वपूर्ण साबित होती है. बच्चे कुत्तों में अपना पूरा ध्यान लगा देते हैं. कुत्ते उन्हें इस बात के लिए मजबूर कर देते हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही चाहें . वे उन्हें प्रकृति से जोड़ते हैं और उनके मन में जरूरत की भावना पैदा करते हैं. ऑटिज्म और विकलांग बच्चों के लिए चलाए गए डॉ. डॉग  नामक प्रोग्राम के दौरान देखा गया कि कुत्ते बच्चों के आत्मविश्वास को पुख्ता करते हैं. यहां तक कि वे उसे अपने बहुत कुछ होने का एहसास कराते हैं. जो बच्चे कुछ सीखने में अक्षम होते हैं और जो बड़ों की बातों को रिस्पोंड नहीं कर पाते ऐसे बच्चे प्यार और ध्यानाकर्षण के लिए कुत्तों पर आश्रित होते हैं और कुत्ते इस काम को बखूबी अंजाम देते हैं.

थैरेपी देने वाले कुत्तों को इस ढंग से प्रशिक्षित किया जाता है कि वे बच्चों पर न तो उछलें और न ही उनके साथ भोंकें और न ही उन्हें कोई नुकसान पहुंचाए. यही वजह है कि बच्चे निडर होकर उनके साथ खेलना पसंद करते हैं. जो बच्चे हाइपर एक्टिव और एग्रेसिव होते हैं ऐसे बच्चे थैरेपी के बाद खुश रहना सीख जाते हैं और दूसरों से धीरे धीरे अपना संवाद बनाने लगते हैं. यह उन्हें शांत रखने में सहायक होते हैं. मानसिक और भावनात्मक रूप से चोट खाए लोगों के लिए इस तरह की थैरेपी सकारात्मक नतीजे देने वाली साबित होती है. व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि डॉग थैरेपी से हमेशा अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए मेडिकली प्रोफेशनल की देखरेख में किया जाना चाहिए. कुत्ते नर्वस बच्चों को भी शांत कर सकते हैं. बच्चा जिन एक्टिविटीज को करने से कतराता है इस थैरेपी से वह उसे खुशी खुशी करने के लिए राजी हो जाता है.

सांस लेने की फ्रीक्वेंसी भी कोरोना संक्रमण को बढाती है, जानें कैसे

क्या आप जानते है कि सांस लेने की फ्रीक्वेंसी भी कोरोना को बढ़ाने में मदद करती है? इस बारें में मद्रास आईआईटी के रिसर्चर्स ने पाया कि जो लोग जल्दी-जल्दी सांस लेते है उनके वायरस युक्त ड्रापलेट्स तेजी से इस संक्रमण को फैलाने में समर्थ होते है, जबकि धीरे-धीरे सांस लेने वाले व्यक्ति इसे जल्दी नहीं फैला पाते. इस शोध को नवम्बर 2020 में प्रसिद्ध इंटरनेशनल जर्नल peer- reviewed Physics of Fluids में भी पब्लिश किया गया है.

इस बारें में एप्लाइड मेकानिक्स के प्रोफेसर महेश पंचाग्नुला का कहना है कि सांस लेने की फ्रीक्वेंसी में अंतर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है, ऐसे में कोविड 19 के ड्रापलेट्ससांस के द्वारा अंदर जाने पर फेफड़े की मेकेनिक्स पर असर डालती है. स्लो ब्रीदिंग और फ़ास्ट ब्रीदिंग में अंतर होता है. धीरे-धीरे सांस लेने को सबसे अधिक अच्छा माना जाता है. रिसर्च में ये बात सामने आई है कि मास्क पहनने से ट्रांसमिशन रिस्क बहुत कम होता है. जल्दी-जल्दी सांस वे लेते है, जो घबराहट में होते है या उनकी शारीरिक बनावट ऐसी होती है कि वे तेजी से हमेशा ही सांस लेते है. इसके अलावा रिसर्च में ये भी पता चला है कि हर इंसान के फेफड़ोंकी आकृति में भी फर्क होता है. व्यक्ति के फेफड़े कीसूक्ष्म सांस नलिकाएं छोटी है या बड़ी, उस आधार पर कोरोना संक्रमण के आने और न आने की संभावना बढ़ती और घटती है. इसमें जिनके ब्रोंकियल थोड़ी फैली हुई होती है,उन्हें संक्रमण अधिक होने की संभावना होती है. लेकिन यहाँ ये मुश्किल है कि आप ब्रोंकियल का टेस्ट नहीं करा सकते, ताकि आप इसके आकार को जान पाए,क्योंकि इसकी सुविधा मेडिकल में नहीं है. अगर ब्रोंकियल थोडा फैला हुआ या बड़े डायमीटर का है, तो सांस लेने पर ड्रापलेट्स अंदर तक जाने के साथ-साथ ब्लड तक भी पहुँचने की सम्भावना अधिक रहती है.

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सांस लेने की फ्रीक्वेंसी को धीमा करने के उपाय के बारें पूछे जाने पर प्रोफेसर महेश कहते है कि ये करना मुश्किल है, पर इतना सही है कि धीमे सांस लेने वालों को संक्रमित ड्रापलेट्स अंदर तक जाने की संभावना कम होती है. हालांकि प्राकृतिक रूप से मिली शारीरिक संरचना को बदलना मुश्किल है, पर योगा से इसमें कुछ सुधार किया जा सकता है, जो लम्बे समय तक करने के बाद ही कुछ परिणाम मिल सकता है. अभी मास्क ही सबसे अधिक उपयुक्त है. मास्क पहनने से आप खुद को और आसपास के लोगों को भी सुरक्षा प्रदान करते है, क्योंकि जब हम बात करते है, तो करोड़ों की संख्या में ड्रापलेट्स मुंह से निकलते है. मास्क पहनने से उसकी प्रोडक्शन रेट सौ या हज़ार तक कम होती है.

इस कांसेप्ट के बारें में सोचने की वजह के बारें में प्रोफेसर का कहना है कि किसी ने एक प्रयोग किया था, जिसमें 3 गिनी पिग को ट्यूबरक्लोसिस वार्ड से हवा लेकर उनमे सप्लाई किया गया,जिसमे उन्होंने देखा कि केवल 30 प्रतिशत यानि एक गिनी पिग को ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी आई और बाकी दोनों की खुद की इम्युनिटी की वजह से नहीं आई. तभी से मेरे मन में था कि क्यों किसी को संक्रमण की बीमारी अधिक होती है, तो किसी को कम या होती ही नहीं. सालों पहले इस शोध को फोलो कर मैंने इसे अंजाम दिया है.

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आगे की योजनाओं के बारें में प्रोफेसर महेश का कहना है कि कुछ लोग पल्मनरी बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील होते है,जबकि कुछ को जुकाम होता ही नहीं है. लैब में ये पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि ये अंतर दोनों ग्रुप में क्यों है? उन्हें किसी भी प्रकार का संक्रमण अधिक होने और कुछ में कम होने की वजह क्या है? ये सही है किहर व्यक्ति की इम्युनिटी अलग होती है, जो स्वाभाविक रूप से किसी व्यक्ति में अधिक, तो किसी में कम होती है,इसका पताकेवल शोध से ही लगाया जा सकेगा.

पिछले कुछ दिनों से मेरे कंधों में अचानक दर्द होने लगता है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 35 साल है. पिछले कुछ दिनों से मेरे कंधों में अचानक दर्द होने लगता है. मुझे दवाइयां खाना बिलकुल पसंद नहीं है. कृपया इस से छुटकारा पाने का कोई और उपाय बताएं?

जवाब-

समय बदल चुका है और साथ ही लोगों की जीवनशैली भी, जिस के कारण युवा और कम उम्र के व्यस्क भी शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द से परेशान होने लगे हैं. वहीं अधिकतर लोग इस दर्द को अनदेखा करते रहते हैं, जो वक्त के साथ समस्या को गंभीर करता रहता है. यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि इलाज से बेहतर बीमारी की रोकथाम है. जी हां, यदि आप रोकथाम के तरीके अपनाएं तो बीमारी आप को छू भी नहीं पाएगी. बढ़ती उम्र के साथ बढ़ते दर्द से बचने के लिए एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली का पालन करें. स्वस्थ आहार का सेवन करें, शराब और धूम्रपान से दूर रहें, रोजाना ऐक्सरसाइज के लिए समय निकालें, तनाव से दूर रहें, वजन को नियंत्रण में रखें. ऐसा करने से आप एक लंबी उम्र तक स्वस्थ शरीर पा सकते हैं.

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लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करना, गलत पोस्चर में बैठना, कंधों को अधिक चलाना या फिर बिलकुल भी न चलाना जैसी आदतें आप को फ्रोजन शोल्डर का शिकार बना सकती हैं. लेकिन जीवनशैली में बदलाव ला कर और कुछ एहतियात बरत कर इस समस्या से बचा जा सकता है.अगर घर या औफिस में काम करतेकरते आप को अचानक कंधे में असहनीय दर्द होता है और यह भी महसूस होता है कि आप का कंधा मूव नहीं कर रहा है तो फौरन सम झ जाएं कि आप को फ्रोजन शोल्डर की समस्या ने अपनी चपेट में ले लिया है.दरअसल, हमारे शरीर में मौजूद हर जौइंट के बाहर एक कैप्सूल होता है. फ्रोजन शोल्डर की समस्या में यही कैप्सूल स्टिफ या सख्त हो जाता है, जिस वजह से कंधे की हड्डी को हिलाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जाता है. इस में दर्द धीरेधीरे या फिर अचानक शुरू हो जाता है और पूरा कंधा जाम हो जाता है. यह समस्या 40 से अधिक आयु वाले लोगों में देखने को मिलती है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस के होने की संभावना अधिक होती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- फ्रोजन शोल्डर से निबटें ऐसे

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बिन फेरे हम तेरे

भारतीय सामाजिक परिवेश में विवाह एक बहुत पुरानी और मजबूत सामाजिक व्यवस्था है परंतु आधुनिक जीवनशैली और नए परिवेश ने भारतीय जनमानस में भी गहरी पैठ बनाई है जिसके कारण एक नई व्यवस्था ने अपनी जगह बनाई है जिसे हम लिव इन रिलेशनशिप के तौर पर जानते हैं. लिव-इन रिलेशनशिप कपल्स के बीच एक नया प्रयोग है. इसमें वयस्क लड़का और लड़की बिना विवाह किए परस्पर सहमति से पति-पत्नी की तरह रहते हैं. कई बड़े शहरों में यह खूब चलन में हैं. रिश्तों को समझने-परखने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप एक अच्छा प्रयोग साबित हो रहा है.लिव इन रिलेशनशिप आज के समय में तेजी से बढ़ रहा है. एक समय था जब ऐसे संबंधों पर लोग खुलकर चर्चा करना पसंद नहीं करते थे लेकिन आज लोग खुलकर लिव इन रिलेशन शिप में रह रहे हैं और इस बात को छुपाते नहीं हैं. जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इस रिश्तें में भी कुछ ऐसा ही है.

लिव इन रिलेशनशिप की सकारात्मकता

इस तरह रहने वाले जोड़ों में धोखा, बेवफाई और व्यभिचार की शंका कम होती है. इस रिश्ते में रहते-रहते आप विवाह के बंधन में भी बंध सकते हैं.दोनों ही अपनी जिम्मेदारियां बिना किसी दबाव के निभाते हैं.यह रिश्ता अधिक बोझिल नहीं होता क्योंकि इसमें दोनों पार्टनर निजी रूप से पूर्णतः आजाद होते हैं.

लिव इन रिलेशनशिप की नकारात्मकता

बंधन में न बंधने की स्वतंत्रता तो होती है, पर लाइफ को पूरी तरह से एन्जॉय नहीं कर पाते, क्योंकि अविश्वास की भावना पनपने के अवसर ज़्यादा होते है.दोनों में से किसी एक के बहकने का भय बना रहता है साथ ही कमिट्मेंट तोड़ने का भी भय रहता है.परिवार का दबाव न होने से रिश्ते में असुरक्षा की भावना बनी रहती है, जिससे तनाव की स्थितियां भी खड़ी हो जाती है.लिव इन रिलेशनशिप में आप परिवार की खुशी का आनंद नहीं ले सकते जिस से शुरूआत में उपजा प्यार और भावनात्मक संबंध स्थायी नहीं रह पाते जिससे बोरियत होने लगती है.

लिव-इन में रहने से पहले आपको कुछ बातें जरूर ध्यान में रखनी चाहिए. विश्वसनीय और मजबूत रिश्ते के लिए यह जरूरी होता है.

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लिव इन रिलेशनशिप के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

1. आप जिसके साथ लिव-इन में जा रहे हैं उसके बारे में उचित जांच-पड़ताल कर लें. प्रयास करें कि आपका लिव इन पार्टनर पहले से आपका अच्छा दोस्त हो. ऐसे रिश्ते में रहने से पहले लड़कियों को विशेष तौर पर सावधानी बरतनी चाहिए. उन्हें अपने पार्टनर के बारे में अच्छी तरह से पता कर लेना चाहिए. अगर किसी भी तरह का संदेह हो तो उसे दूर किए बिना रिश्ता शुरू करने से बचना चाहिए.

2. रिश्तों में नोंक-झोंक होना सामान्य बात है. इससे रिश्ते को मजबूती भी मिलती है. लिव-इन में रहते हुए भी ऐसा सम्भव है लेकिन इस दौरान गुस्से में कुछ भी कहने से पहले एक बार अवश्य विचार लें अन्यथा ये अलगाव की वजह बन सकती है. कोई भी ऐसी बात कहने से बचें जिससे आपके साथी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे.

3. आर्थिक व्यवस्था की किसी भी रिश्ते की सफलता में अहम भूमिका है. महंगाई के इस दौर में एक अकेले व्यक्ति का दो लोगों का खर्चा उठाना कठिन है. ऐसे में अपने पार्टनर से खर्चों की साझेदारी पर बात अवश्य कर लें. कई बार पैसों को लेकर हुई कहासुनी के कारण रिश्ते टूटने की कगार पर आ जाते हैं.

4. लिव-इन में रहने के लिए आपका भावनात्मक रूप से काफी मजबूत होना जरूरी है. कई बार ऐसा होता है कि आपको एक दूसरे की कुछ आदतें पसंद नही आती ऐसे में आपसी बातचीत से इसका हल निकालने का प्रयास करना चाहिए. इस दौरान आपको काफी समझदारी दिखाने की जरूरत होती है. एक दूसरे की वो आदतें जो आपको पसंद नहीं उनकी अनदेखी करना सीखें, इसके लिए आपको दिमागी और भावनात्मक रूप से दृढ़ होने की जरूरत है.

5. लिव-इन के दौरान अगर आपका रिश्ता ठीक से नहीं चल पा रहा है तो आपको अपना दूसरा प्लान तैयार रखना चाहिए. अगर आपको लगता है कि आपका पार्टनर आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है तो अपनी बात कहने की हिम्मत रखिए. अगर जरूरत पड़े तो रिश्ते को खत्म करने का विकल्प भी खुला हुआ है.

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लिव इन रिलेशनशिप और कानून

अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसको कानूनी मान्यता दे दी है एक ऐसे ही मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप न अपराध है और न ही पाप.शादी करने या न करने और सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाने का फैसला पूरी तरह से निजी है.लिहाजा 18 की उम्र पूरी कर चुकी लड़की और 21 की उम्र पूरी कर चुका लड़का लिव-इन में रह सकते हैं.शीर्ष कोर्ट ने लिव-इन को कानूनी मान्यता जरूर दे दी है, लेकिन लिव-इन में रह रही महिला को आज भी वो पूरे कानूनी अधिकार नहीं मिलते हैं, जो एक शादीशुदा महिला को अपने पति की संपत्ति में मिलते हैं. इसके कारण कई बार महिला लिव-इन पार्टनर को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.भारत में लिव-इन को बेहद लूज रिलेशनशिप भी माना जाता है. पहली बात तो यह है कि लिव-इन में रहने वाले लोगों के लिए अपने पार्टनर के साथ रिलेशनशिप होने की बात साबित करना बेहद मुश्किल होता है और किसी तरह ये हो भी जाये तो महिला बस गुजारे भत्ते की माँग कर सकती है.अगर लिव-इन में रहने वाली महिला अपने पार्टनर की संपत्ति पर कानूनी अधिकार चाहती है, तो उसको अपने नाम विल करा लेनी चाहिए अन्यथा लिव-इन में रहने वाली महिला को अपने लिव-इन पार्टनर की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा इसके अलावा महिला को इंश्योरेंस पॉलिसी में लिव-इन पार्टनर के नॉमिनी के रूप में खुद को दर्ज करवाना चाहिए.लिव-इन में रहने वाले एग्रीमेंट के जरिए भी लिव-इन पार्टनर की संपत्ति में हक हासिल कर सकते है. इसके लिए लिव-इन में रहने वालों को रजिस्ट्रार ऑफिस में एग्रीमेंट का पंजीकरण करवा लेना चाहिए इस एग्रीमेंट में संपत्ति के हक को लेकर स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए.

लिव-इन में जन्मे बच्चों को मिलते हैं पूरे कानूनी अधिकार

लिव-इन में रहने वाली महिला को लिव-इन पार्टनर की संपत्ति पर भले ही कोई कानूनी हक़ न मिले, लेकिन उनकी जैविक संतान को पूरे हक़ मिलते हैं.हिंदू मैरिज एक्ट के तहत लिव-इन से जन्मे बच्चे को वो सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं जो शादीशुदा दंपति से जन्मे बच्चे को मिलते हैं उनका कहना है कि लिव-इन से जन्मा बच्चा अपने बायोलॉजिकल पिता की संपत्ति में हिंदू सक्सेशन एक्ट के तहत हक़दार होता है.

लिव इन रिलेशनशिप की सफलता के सूत्र

आपको अपने पार्टनर के साथ एग्रीमेंट करना चाहिए.आपको साथ निभाने के लिए ट्रेनिंग लेनी चाहिए. आपको अपने सभी हक़ों के बारे में जानकारी होना चाहिए. आपका पार्टनर यदि आपकी मज़बूरी या आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे रोकने का आपमें साहस होना चाहिए. अपने पार्टनर पर पूरी तरह से विश्वास होना चाहिए व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि कोई भी निर्णय आपने लिया है तो उस निर्णय को जीवन भर निभाना पड़ेगा. इस रिलेशनशिप के चलते यदि आपको बीच में ही अकेला रहना पड़े तो उसके लिए अपने-आपको पहले से ही मजबूत बना कर रखना होगा तभी आप सफल लिव इन रिलेशनशिप में रह पायेंगे.

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औरतों को कम सैलरी वाली नौकरी भी करने को रहना चाहिए तैयार

प्रिया ने हिंदी में एम ए के साथ कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. शादी से पहले वह पास के एक एक्सपोर्ट कंपनी में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करती थी. बाद में जब उस की शादी हुई तो काम छूट गया. दोनों बेबी के बाद वह 7- 8 साल बच्चों में बिजी रही. इस बीच उस ने जौब करने की बात सोची भी नहीं थी. पर इधर कुछ दिनों से वह बच्चों के स्कूल जाने के बाद पूरे दिन घर में रहरह कर बोर होने लगी थी. उस ने घर में चर्चा की कि वह दोबारा जौब जौइन करना चाहती है. उस ने एकदो जगह इंटरव्यू भी दिए मगर 10 -15 हजार से ज्यादा सैलरी की बात नहीं हो पाई.

सास ने जब इतनी कम सैलरी की बात सुनी तो साफ इंकार करते हुए कहा,” तेरे 10 -15 हजार से हमारा कुछ नहीं होने वाला. घर में बहुत काम होते हैं उन्हें करो.”

एक दो साल ऐसे ही बीत गए. इस बीच उस के पति का एक्सीडेंट हो गया और वह बेड पर आ गया. दोतीन महीने में ही घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी. ऐसे में प्रिया ने हिम्मत दिखाई और फिर से 2 -3 जगह जौब इंटरव्यू देने चली गई. इस बार भी उसे 20- 22 हजार से ज्यादा ऑफर नहीं हुए मगर इस बार इतने रुपए भी उसे और घरवालों को काफी ज्यादा लग रहे थे. वैसे भी डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है. सास ने भी प्रिया को यह जौब कर लेने की अनुमति देने में वक्त नहीं लगाया.

प्रिया की जौब के सहारे कठिन समय गुजर गया. कुछ महीनों में प्रिया का पति भी वापस काम पर लौट गया मगर प्रिया ने जौब नहीं छोड़ी. उस के साथसाथ घर में भी सब को यह बात समझ में आ गई थी कि सैलरी कम हो या ज्यादा, घर में एडिशनल इनकम आ रही है तो उसे कभी रोकना नहीं चाहिए.

महिलाओं को कम वेतन वाली नौकरी भी करने को तैयार रहना चाहिए. इस से महिलाएं न सिर्फ घरपरिवार को आर्थिक सहयोग दे सकती हैं बल्कि यह उन के व्यक्तित्व के विकास और मानसिक सेहत के लिए भी फायदे का सौदा है,

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1. आत्मनिर्भर जीवन

स्वाबलंबी जीवन जीने के लिए हाथ में पैसे होने जरूरी होते हैं. आप के अंदर इतनी कूबत होनी चाहिए कि जरूरत पड़ने पर दूसरों से मदद लिए बगैर भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें. पैसा आप को आत्मनिर्भर बनाता है. आप दूसरों पर निर्भर नहीं रहतीं. कम सैलरी वाली नौकरी होने से भले ही आप के पास बहुत ज्यादा बैंकबैलेंस नहीं होगा पर इतने रुपए जरूर होंगे कि अपने खर्चे बहुत आराम से निकाल सकें. आत्मनिर्भर होने के लिए इतना ही काफी है.

2. जो मिल रहा है उसे लेने में ही समझदारी

कई बार हम बहुत ज्यादा की आस में जो मिल रहा है वह भी गँवा बैठते हैं. समझदारी इसी में है कि अवसर को आगे से पकड़ें. संभव है कि जो मिल रहा था आप वह भी खो दें और बाद में इस बात को ले कर पछताएं. याद रखें एक स्त्री होने के नाते आप के ऑप्शंस काफी कम हो जाते हैं. आप को कई दफा परिस्थितियों से समझौते करने पड़ते हैं. बहुत सी नौकरियां ऐसी हैं जिन के लिए एक लड़की को घरवाले स्वीकृति नहीं देते तो कई बार घरेलू कारणों से वह जौब इंटरव्यूज अटैंड नहीं कर पाती. कई बार महिलाएं अधिक ऊंची पढ़ाई नहीं कर पातीं. ऐसे में यह सोच कर साधारण या कम सैलरी वाली नौकरियां छोड़ देना कि यह मेरी योग्यता के अनुरूप नहीं, गलत है.

यदि आप को किसी ऐसे ऑर्गेनाइजेशन में कम सैलरी की जौब ऑफर होती है जो आप को सूट करता है तो सैलरी की चिंता कतई न करें. क्योंकि बाद में आप की योग्यता और परफॉर्मेंस देख कर वैसे भी सैलरी बढ़ा दी जाती है और फिर मन का काम और जीवन में सुकून का होना ज्यादा जरूरी है भले ही सैलरी कुछ कम ही क्यों न हो.

3. किसी का धौंस नहीं सहना पड़ता

शादीशुदा महिलाओं को अक्सर पैसों के लिए अपने इनलॉज़ या पति की धौंस सहनी पड़ती है. वे यह शो करते हैं जैसे उन का खर्चा चला कर वे बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं. जबकि ऐसा है नहीं. औरतें पूरे दिन घर का काम करती हैं फिर भी उन के काम को कोई मानदेय नहीं मिलता. ऐसे में जरूरी है कि आप जौब कर रुपए कमाए ताकि अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए आप को किसी का मुंह न देखना पड़े.

4. रास्ता खुला रहता है

सैलरी कम हो या ज्यादा मगर एक बार जब आप जौब करना शुरू कर देती हैं तो आप के लिए आगे का रास्ता खुल जाता है. घरवालों को भी आदत हो जाती है कि आप जौब पर जाएंगी तो पीछे से घर में सब एडजस्ट कैसे करना है यह सीख जाते हैं. जौब के दौरान आप को दूसरे अवसरों की सूचनाएं मिलती रहती हैं. आप विवेकपूर्ण निर्णय ले पाती हैं. उस संस्था में भी यदि अच्छा काम कर के दिखाती हैं तो आप को जल्दी तरक्की मिल जाती है.

5. लोगों से मिलना भी जरूरी

आप जब जौब करती हैं तो 10 लोगों से मिलनाजुलना होता है. आप का एक सर्कल बन जाता है. सामाजिक दायरा बढ़ता है. नईनई बातें जानने को मिलती हैं, दिमाग खुलता है वरना घर में बैठेबैठे आप की सोच केवल एक ही दिशा तक सीमित रह जाती है. इसलिए जब भी मौका मिले बाहर निकलें, जौब करें. सैलरी से संतुष्ट नहीं हैं तो काम के साथ ही नई जौब भी तलाश कर सकती हैं.

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6. आत्मविश्वास बढ़ता है

आप की सैलरी कम हो या ज्यादा मगर जब आप जौब करती हैं तो आप के अंदर एक अलग सा आत्मविश्वास पैदा होता है. आप के पहननेओढ़ने, चलनेफिरने, संवरने, बोलने आदि का ढंग बदल जाता है. आप हर मामले में अपटूडेट रहने लगती हैं. आप को दूसरों के आगे खुद को साबित करने का मौका मिलता है. इस से पर्सनैलिटी में काफी सकारात्मक बदलाव आते हैं.

7. पति को सहयोग

कई बार घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होती. पति सीमित सैलरी में मुश्किल से घर चला रहे होते हैं तो ऐसे में उन का हाथ बंधा होता है. घर के खर्चे निपटाने की बात ले कर अक्सर मियांबीवी में झगड़े होने लगते हैं. घर में तनाव बढ़ता है. इस स्थिति से बचने के लिए आप का नौकरी करना जरूरी हो जाता है. भले ही आप ज्यादा नहीं कमा रही हों मगर पति को आप की तरफ से थोड़ा सा भी आर्थिक सहयोग मिल जाए तो परिस्थितियां बदल जाती हैं. रिश्ते में प्यार बढ़ता है.

8. कम जिम्मेदारियां

जब आप की सैलरी कम होगी तो जाहिर है आप की जिम्मेदारियां भी कम होंगी. किसी भी संस्थान में जिम्मेदारियों के हिसाब से ही सैलरी तय की जाती है. ज्यादा जिम्मेदारी वाला पद लेकर भी यदि अपने घरेलू दायित्वों के कारण आप संस्थान से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों के साथ न्याय नहीं कर पा रही तो आप को बहुत टेंशन रहेगा. आप न ठीक से घर और बच्चों को संभाल पाएंगी और न ऑफिस के काम. ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं कि आप हल्कीफुल्की जौब करते हुए घर भी देखती रहें और ऑफिस भी.

यही नहीं जब आप पूरे दिन घर में होती हैं तो आप को ज्यादा से ज्यादा घरेलू जिम्मेदारियां सौंप दी जाती हैं. पर जब आप ऑफिस जाएंगी तो आप का मन भी बदलेगा, हाथ में पैसे भी आएंगे और दिन भर घर की जिम्मेदारियों से भी आजादी भी मिलेगी. घर में सास ननद बगैरह आप के काफी काम निपटा कर रखेंगी. सास नहीं हैं तो आप अपने पैसों से मेड भी रख सकती हैं.

9. जौब छोड़ना पड़े तो भी अफसोस नहीं होगा

औरतों की जिंदगी में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब उन्हें काम से लंबा ब्रेक लेना पड़ता है. मसलन बच्चे की पैदाइश के समय या जब बच्चे छोटे हों, घर में कोई बीमार हो या फिर किसी और तरह की परेशानी में उन्हें मजबूरन जौब छोड़नी पड़ती है. जरा सोचिए यदि आप अच्छीखासी सैलरी उठा रही हों तो क्या आप का अचानक जौब छोड़ना इतना आसान हो सकेगा? तब तो आप इसी कन्फ्यूजन में रही आएंगी कि ऑफिस देखूं या घर. मगर यदि आप की सैलरी बहुत साधारण है तो आप बिना ज्यादा सोचे भी ऑफिस की जिम्मेदारियों को गुड़बाय कह सकेंगी.

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Serial Story: मन की खुशी (भाग-4)

उस रात पलंग पर लेटेलेटे उन्होंने पत्नी से सवाल किया, ‘‘क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो कि एक व्यक्ति किसी को उम्रभर एक ही जैसा प्यार कर सकता है?’’

‘‘यह कैसा सवाल है? हम सभी एकदूसरे को प्यार करते हैं. इस में कौन सी नई बात है?’’ वह दूसरी तरफ करवट बदल कर बोली.

मणिकांत तड़प कर रह गए. उस से बात करना व्यर्थ था. हर बात को वह उलटे तरीके से लेती है. कभी प्यार से उन की बात को समझने की कोशिश नहीं करती. उन्होंने सिर टेढ़ा कर के पत्नी की अधखुली पीठ देखी, सुंदर और चिकनी पीठ. काश, इतनी ही सुंदर और मीठी उस की बोली होती.

इस के बाद मणिकांत 2 भागों में बंट गए. एक भाग में वे स्वयं के साथ होते. उन्होंने कागज, कलम और पैंसिल हाथों में पकड़ ली. अपनी भावनाओं को अक्षरों और चित्रों के माध्यम से व्यक्त करने लगे. वे लेखन और चित्रकारी में इस कदर डूब  जाते कि उन्हें घरपरिवार की उलझनें कहीं दिखाई ही नहीं देतीं. अब सब से हंस कर बोलते, पत्नी को आश्चर्य होता. जो आदमी हमेशा दुखीपरेशान रहता था, वह खुश कैसे  रहने लगा है. इस बात से पत्नी की चिंता में बढ़ोतरी हो गई.

दूसरे भाग में उन का परिवार था, जहां बाढ़ के पानी की तरह हलचल थी, तीव्र वेग था, जो सबकुछ अपने साथ बहा ले जाने के लिए बेताब था. बाढ़ के बाद की तबाही का मंजर उन की आंखों के सामने अकसर गुजर जाता, परंतु अब वे असमर्थ हैं. बच्चे इतने निरंकुश हो चुके थे कि बड़े बेटे ने सड़क दुर्घटना में अपनी नई बाइक का कबाड़ा कर दिया था. खुद जख्मी हो गया था और हजारों रुपए इलाज में खर्च हो गए थे. इंश्योरैंस का पैसा अभी तक मिला नहीं था. लेकिन जैसे ही ठीक हो कर घर आया, तुरंत दूसरी बाइक की मांग करने लगा.

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मणिकांत को अपनी खुशियों का पता चल गया था, अतएव उन्होंने बिना नानुकुर के पत्नी के हाथ में पैसा रख दिया. स्वाति बड़ी हैरान थी. पहले तो वे पैसा इतनी आसानी से नहीं देते थे. आजकल उन को क्या हो गया है, वह कुछ समझ न पाती.

पत्नी से एक दिन पूछा उन्होंने, ‘‘अगर तुम्हारे पास पैसा हो, परंतु मैं न रहूं, तो क्या तुम खुश रह लोगी?’’

पत्नी ने पहले तो उन्हें घूर कर देखा और फिर मुंह टेढ़ा कर के पूछा, ‘‘इस का क्या मतलब हुआ? क्या आप कहीं जा रहे हैं?’’

‘‘कहीं जा तो नहीं रहा, परंतु मान लो ऐसा हो जाए या मैं इस दुनिया में न रहूं, तो क्या तुम मेरे बिना खुश रह लोगी?’’

‘‘जब देखो तब आप टेढ़ीमेढ़ी बातें करते हो. कभी कोई सीधी बात नहीं की. दुनिया का प्रत्येक प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है, इस में नया क्या है? घर के लोग कुछ दिन शोक मनाते हैं, फिर जीवन अपने ढर्रे पर चलने लगता है.’’

पत्नी व्यावहारिक बात कर रही थी परंतु उस की बातों में रिश्तों की कोई मिठास नहीं थी. उस में भावुकता और संवेदनशीलता नाम की भी कोई चीज नहीं थी. वह एक जड़ वस्तु की तरह व्यवहार कर रही थी.

धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच एक संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती जा रही थी. घर के लोगों से माथापच्ची करने के बजाय वे अब अधिकतर समय लेखन में व्यतीत करते. चित्रकारी में उन का हाथ सध गया था और कागजकलम छोड़ कर अब वे कैनवास पर रंग बिखेरने लगे थे. उन के रंगों में अधिकतर खुशियों के रंग होते थे. यह सत्य है कि जो व्यक्ति अंदर से दुखी होता है, वह दूसरों को खुशी बांटने में कंजूसी नहीं करता.

कुछ दिन बाद अमित ने पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘बहुत अच्छा. तुम्हारी सलाह ने मुझ पर जादू सा असर किया है. मैं मन लगा कर अपनी रुचि के मुताबिक लेखन और चित्रकारी में व्यस्त रहता हूं. परिवार के लोग अपनेअपने जोड़तोड़ में लगे रहते हैं. मैं ने उन सब को उन के हाल पर छोड़ दिया है. जवान व्यक्ति अगर गलत राह पर चलता है तो वह ठोकर खाने के बाद ही सुधरता है. पत्नी के बारे में मैं अब नाउम्मीद हो चुका हूं. हां, लड़के अगर सुधर जाएं तो गनीमत है. वैसे मुझे लगता नहीं है क्योंकि पत्नी उन के हर गलत काम में खुशी से सहयोग देती है. बिना रुकावट के तो सीधा आदमी भी टेढ़ा चलने लगता है.’’

‘‘तुम एक धैर्यवान व्यक्ति हो और मुझे आशा है कि तुम अपने परिवार को सही रास्ते पर ला सकोगे. कोई भी व्यक्ति जड़ नहीं होता. अगर वह जीवन में गलती करता है तो एक न एक दिन सही रास्ते पर आ ही जाता है. अगर वह किसी के समझाने से सही राह पकड़ लेता है तो बहुत अच्छा है, वरना परिस्थितियां उसे सही मार्ग अवश्य दिखा देती हैं.’’

‘‘मेरी पत्नी समझाने से तो सही राह पर नहीं आने वाली, परंतु मेरा विश्वास है कि परिस्थितियां उसे एक दिन अवश्य बता देंगी कि अपनी मूर्खता से किस प्रकार उस ने बेटों का जीवन बरबाद कर दिया है.’’

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‘‘तुम्हारी पत्नी अपनी गलतियों से कुछ सीखती है या नहीं, अब यह बहुत गौण बात है. इस का समय अब निकल गया है. आज की तारीख में तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी है कि मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे खुश रह सकता है. यह मंत्र अगर तुम्हें आ गया, तो समझिए, जीवन अनमोल है, वरना मूर्ख लोग जीवन को जहर समझ कर पीते ही रहते हैं और हर छोटी बात का रोना रोते रहते हैं. तुम्हारे घर वाले अपनीअपनी जगह खुश हैं. बस, तुम्हें अपनी खुशियां तलाश करनी हैं और ये खुशियां तुम्हें अपने मन को स्वस्थ और प्रसन्न रखने से ही प्राप्त होंगी.’’

‘‘मैं समझता हूं, मैं ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कोताही नहीं बरती. इस बात की मुझे खुशी है. बस, बेटे सही मार्ग पर नहीं चल पाए, इस बात का मुझे दुख है.’’

‘‘इस दुख को अपने मन में रख कर तुम सुखी नहीं रह सकते. यों तो बच्चों के बिगड़ने की जिम्मेदारी लोग अकसर बाप पर ही थोपते हैं, जबकि बच्चों को बनानेबिगाड़ने में मां का हाथ अधिक होता है, परंतु मां की तरफ लोगों का ध्यान कम जाता है. तुम ने अपना कर्तव्य ईमानदारी से पूरा कर दिया, यह बात प्रमुख है. उस का फल नहीं मिला, तो इस में अफसोस नहीं करना चाहिए. भौतिक खुशियां हर किसी को एकसमान नहीं मिलतीं.

‘‘सच्चा मनुष्य वही है जो मन की खुशियों के सहारे दूसरों को खुशियां प्रदान करता रहे. मैं तुम्हारी समझदारी की दाद देता हूं कि घर के विपरीत माहौल में भी तुम ने कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होने दी, जिस से बात मारपीट तक पहुंचती या तलाक की नौबत आती. तुमने पत्नी और बच्चों को उन के हिसाब से जीने दिया और अपनी खुशियों को बलिदान करते रहे. अब तुम अपने अनुसार अंतिम जीवन व्यतीत करो. मेरा विश्वास है, हर कदम पर तुम्हें मानसिक सुख प्राप्त होता रहेगा.’’

‘‘हां अमित, उस का रास्ता तुम ने मुझे दिखा ही दिया है. अब मैं बहुत खुश हूं.’’

‘‘तो फिर तुम्हारा लेखन कैसा चल रहा है और चित्रों में कितने रंग भरने सीख लिए हैं तुम ने? ये रंग खुशियों के हैं, या…’’ अमित ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ ?दिया.

‘‘दोनों कार्य कर रहा हूं. लेखन कार्य द्वारा मैं तल्खियों को कम कर के अपनी भावनाओं को संतुष्ट कर लेता हूं, तो चित्र बना कर मुझे नैसर्गिक सुख का आभास होता है. उन के रंग कैसे हैं, यह तुम देख कर बताना.’’

‘‘अच्छा तो जब तुम्हारी कोई रचना छपे तो मुझे अवश्य दिखाना और चित्रों के रंग देखने के लिए किसी दिन तुम्हारे घर आऊंगा.’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. शिष्य की पहली उपलब्धि पर गुरु का ही अधिकार होता है.’’

दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. बहुत दिनों बाद मणिकांत इतना खुल कर हंसे थे. उन्हें लगा, जीवन इतना कष्टमय और दुखदायी नहीं है जितना वे पिछले दिनों समझने लगे थे.

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मोटापे के साथ हंस कर जियो

‘जिस की बीवी मोटी उस को मुंह बंद रखने का काम है…’ यह अमिताभ बच्चन पर फिल्माए गए बेहद लोकप्रिय गाने का नया वर्जन है. अब कोई भूल कर भी न कहे कि उस को गद्दे का क्या काम, क्योंकि वह गाजियाबाद के 27 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर की तरह अदालत में तलाक के लिए तलब किया जा सकता है. पत्नी ने आरोप लगाया है कि पति उसे अपने साथ कहीं नहीं ले जाता था और अकसर मजाक उड़ाता था.

वैसे विवाह के बाद एकदूसरे की आदत डालना ही अच्छा है. तलाक किसी समस्या का हल नहीं. मोटापे पर तो बिलकुल आपत्ति नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह अगर बस में हो तो कोई औरत मोटी न हो. यह मानसिक व शारीरिक कारणों से होता है, ऐच्छिक नहीं. मोटापे को तो हंस कर टालना चाहिए.

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संसद में एक बार मजेदार घटना हुई. किसी वक्ता ने अंगरेजी का एक शब्द ‘ह्यूमंगस’ बोला. इस का अर्थ होता है बहुत बड़ा.

मोटी, थुलथुल पर बेहद हंसोड़ कांग्रेसी सांसद रेणुका चौधरी ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया. वे उठीं और स्पीकर के सामने के वैल में जा कर खड़ी हो कर बोलीं कि जिन्हें अंगरेजी नहीं आती वे समझ लें कि ‘ह्यूमंगस’ का मतलब होता है जैसी मैं और फिर उन्होंने अपनी लहराती चटक रंगों वाली साड़ी में रैंप कर एक ऐक्शन दिखा दिया.

संसद तो हंसहंस कर लोटपोट हो गई पर रेणुका ने एक संदेश दे दिया कि मोटापे को न आने दो और अगर आ ही जाए तो उस के साथ हंस कर जीओ.

पतिपत्नी का रिश्ता न ईंटपत्थर पर टिकता है न एकदूसरे के शरीर के सौंदर्य पर. यह एकदूसरे के लिए चिंता, एकदूसरे का हाथ बंटाने, एकदूसरे के दुखदर्द को बांटने, एकदूसरे के साथ सुखी की पेटियों को खोलने से टिकता है.

जिसे चाह कर विवाह किया है या जिस से मातापिता ने विवाह करा दिया उस से जहां तक हो सके हंस कर निभाओ. उस के बाहर की जगह मृगतृष्णा साबित हो सकती है. एकदूसरे के शरीर, शिक्षा या पैसे पर मजाक से लाभ नहीं होता. यह अपनी खुद की कमजोरी साबित करता है.

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तलाक भारत में आसान नहीं. तलाक के बाद जीवन और मुश्किल है. विवाहेतर संबंध भी यहां नहीं बन पाते, क्योंकि हमारा समाज जातियों, धर्मों, वर्गों, कुंडलियों, रीतिरिवाजों में फंसा है. तलाक के बाद वर्षों खटना पड़ता है. अभी हमारा समाज न तलाक दिला रहा है न तलाक के बाद जीवन सुधारने दे रहा है.

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