आखिर क्यों विराट की इस बात को मानने से सई ने किया इनकार

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein) इन दिनों फैंस के बीच जगह बनाने में कामयाब हो गया है. जहां एक तरफ सीरियल टीआरपी की लिस्ट में टौप 5 में पहुंच गया है तो वहीं सीरियल में हाई-वोल्टेज ड्रामा फैंस को एंटरटेन कर रहा है. इसी बीच शो में जल्द ही नया ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

दोबारा होंगी शादी की रस्में

सीरियल में सई और विराट की शादी हो चुकी है और दोनों अपने घर भी आ चुका है. वहीं विराट के इस फैसले से घरवाले नाराज है. लेकिन पाखी भी काफी हैरान हो गई है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शादी की रस्मों की तैयारी करने के लिए विराट की मां सभी को मना लेती है.

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पाखी करती है सवाल

 

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जहां विराट, पाखी को सई का ख्याल रखने और गाइड करने के लिए कहता है. वहीं सई ये सारी बातें सुन लेती है. हालांकि पाखी विराट से पूछती है कि अब उसकी जिंदगी में उसके लिए क्या जगह है, जिस सवाल पर विराट बात बदलने की कोशिश करता नजर आता है.

सई कहती है ये बात

आप देखेंगे कि विराट सई से पीएमटी के रिजल्ट आने औऱ उसका एडमिशन नागपुर के अच्छे कॉलेज में कराने की बात कहेगा. साथ ही पाखी को उसकी पढ़ाई में मदद करने लिए कहेगा. वहीं पाखी कहती है कि आपको और कोई नहीं मिला मुझे गाइड करने के लिए. ये सुनकर सभी चौंक जाते हैं.

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मैं ओटीटी प्लेटफार्म पर कुछ हद तक सेसरशिप की पक्षधर हूं- रिनी दास

इंसान सोचता कुछ है, मगर उसकी तकदीर उसे कहीं और ले जाती है. ऐसा ही कुछ गैर फिल्मी परिवार में पली बढ़ी रिनी दास के साथ हुआ. बचपन से डाक्टर बनने का सपना देखती रही रिनी दास पढ़ने में तेज हाने के बावजूद जब मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास न कर पायी, तब परविार वालों के दबाव के चलते स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर ली. उसके बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एमबीए कर ले, मगर उन्होने अपने पिता से एक वर्ष का समय लेकर अभिनय के क्षेत्र में अपनी तकदीर आजमाने मुंबई पहुंच गयी. तब से पांच वर्ष हो गए. पिछले पांच वर्ष से वह मुंबई में टीवी सीरियल व लघु फिल्मों में लगातार अभिनय करती आ रही हैं. इन दिनों वह लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’को लेकर चर्चा में है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्यारह अवार्ड मिल चुके हैं.

प्रस्तुत है रिनी दास से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. . .

आप कलकत्ता से मुंबई कब आयीं और क्या आपने अभिनय की कोई ट्रेनिंग हासिल की है?

-मैं कलकत्ता से मुंबई 2015 में आयी थी. अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली. काम करते हुए सीखती जा रही हूं. मगर मुंबई पहुंचने के बाद मैंने अपना हिंदी का उच्चारण दोष खत्म करने के लिए दो माह तक एक शिक्षक से हिंदी भाषा जरुर सीखी. मुझे लगता है कि मेरे अंदर अभिनय ईश्वर प्रदत्त है.

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मुंबई में किस तरह का संघर्ष रहा और पहला सीरियल कैसे मिला था?

-मुंबई पहुंचने के बाद छह माह तक काफी संघर्ष रहा. इसकी मूल वजह यह रही कि मैं मुबई और बॉलीवुड या टीवी इंडस्ट्री में किसी को जानती नहीं थी. मुझे यहां की कार्यशैली की जानकारी नहीं थी. मुझे पता नहीं था कि कहां और कैसे आॅडीशन दिए जाते हैं. मगर मुझे पर ईश्वर की कृपा रही कि चार माह बाद ही मुझे ‘गोल्ड जिम’का विज्ञापन करने का मौका मिला. मैंने इसके लिए कैलेंडर भी शूट किए थे. इसके बाद मुझे एकता कपूर के प्रोडक्शन हाउस ‘बालाजी टेलीफिल्मस’के एपीसोडिक सीरियल ‘गुमराह’ के कुछ एपीसोड करने का अवसर मिला. इसमें मेरे अभिनय से प्रभावित होकर एकता कपूर ने मुझे अपने नए सीरियल‘‘परदेस मे है मेरा दिल’’में अभिनय करने के लिए चुन लिया. फिर लगातार काम मिलता रहा.

पिछले पांच वर्ष के आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

-सच कहूं तो मुझे इन पॉंच वर्ष में काफी कुछ सीखने को मिला. सीरियल ‘परदेस में है मेरा दिल’से मुझे कलाकार के तौर पर पहचान मिली. मैने एक सीरियल किया था, जिसे काफी शोहरत मिली, पर इससे मुझे फायदा नहीं हुआ. तो उतार चढ़ाव भरा कैरियर रहा. मैने हमेशा फल या फायदे की उम्मीद न करते हुए अपने काम को पूरी इमानदारी, लगन व मेहनत से करती आ रही हूं. मैंने कभी भी किसी भी सीरियल या किरदार को छोटा नहीं समझा. जब मुझे यूट्यूब चैनल ‘कंटेंट का कीड़ा’ की लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’मिली, तो मैने नहीं सोचा था कि इसका असर इतना अधिक होगा. मगर अब तक इसे कई लाख लोग देख चुके हैं और करीबन ग्यारह अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत भी किया जा चुका है. इसके बावजूद मैने इसमें दिल लगाकर अभिनय किया था. मेरे पास जब किसी भी सीरियल या फिल्म या लघु फिल्म का आफर आता है, तो मैं यह नहीं देखती कि मुझे इससे क्या फायदा होगा. मैं यह देखती हूं कि इसमें काम करते हुए मैं इंज्वॉय कर पाउंगी और क्या यह विषय व किरदार मुझे पसंद है. मैं अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती हूं, बाकी तो दर्शकों पर निर्भर करता है कि उन्हे क्या पसंद आता है और क्या नहीं.

माना कि जब मैं मुंबई आयी, उस वक्त मेरे सपने कुछ ज्यादा बडे़ थे. मैने जिंदगी में  कुछ बन जाने का सपना देखा था. पॉच वर्ष हो गए, पर वहां तक नहीं पहुंच पायी है. पर ही जिंदगी का संघर्ष है. हमें हमेशा अपना काम इमानदारी से करते रहना चाहिए. पर मुझे उम्मीद है कि मेरे सपने एक न एक दिन अवश्य पूरे होंगे. सच कहूं तो मेरा सपना बौलीवुड में एक अच्छी फिल्म में हीरोईन बनना है और पूरी उम्मीद है कि एक दिन मेरा यह सपना जरुर पूरा होगा.

लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’आपको कैसे मिली?जब आपके पास आफर आया, तो आपके दिमाग में सबसे पहला विचार क्या आया था?

-मैं ‘कंटेंट का कीड़ा’के शिवांकर अरोरा और शिप्रा अरोरा के संग पहले भी एक कार्यक्रम‘डेटिंग सियापा’किया था. इसमें मैंने एक एपीसोड किया था. इस तरह हमारा पुराना संबंध रहा है. उसके बाद शिप्रा ने लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’के अंकिता के किरदार को मुझे ही ध्यान में रखकर लिखा था. उन्होने इसे लिखते समय ही सोच लिया था कि वह मुझे ही इस किरदार में अभिनय करने के लिए याद करेंगें. जब उन्होने मुझे पहली बार कहानी सुनायी, तो इमानदारी की बात यही है कि मुझे यह कहानी बहुत पसंद आयी थी. मेरे दिमाग में आया कि सुप्रीम कोर्ट व सरकार से समलैंगिक प्यार की इजाजत मिल चुकी है, अब यह अपराध नही रहा. फिर भी लोग अभी भी समलैंगी लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं. बाहर की दुनिया में हो तो ठीक है, मगर यदि अपने ही घर में ऐसा कोई हो, तब क्या हो?हम उससे यही कहते हैं कि अपना दिमाग सही करो. यह कोई बीमारी है, ऐसा नहीं होता. वगैरह वगैरह. . इस पर यह फिल्म बात करती है. जब मैने यह कहानी सुनी, तो मुझे बहुत अच्छी लगी. इसमें मां की कहानी है, जो अपनी बेटी से कहती है कि, ‘कुछ भी हो जाए दुनिया में, मैं तुम्हारे साथ हूं ’ इस तरह परिवार का सहयोग मिलना बहुत जरुरी है. मैने सोचा कि अगर यह कहानी अच्छी ढंग से बन गयी, तो लोगों के पास पहुंचेगी, जिससे कुछ बदलाव आ सकता है. खुशी की बात यह है कि यह अच्छी बन गयी. लोग इसे देख रहे हैं और अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही हैं. मैं तो चाहती हूं कि हमारी इस फिल्म से धीरे धीरे लोगों की सोच व उनका नजरिया बदल जाए.

कहने का अर्थ यह कि यह लघु फिल्म‘एलजीबीटी क्यू’ समुदाय और उनके रिश्तों की बात करती है. यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर बात की जानी चाहिए. हमारी फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’’में इस बात का चित्रण है कि जब आपके परिवार का कोई सदस्य ‘गे’हो तो ऐसे में क्या करना चाहिए. वह इसे कैसे स्वीकार करें और ‘लोग क्या कहेंगे’की परवाह न करें. क्योंकि अंततः प्यार सिर्फ प्यार है. मैने इसमें अंकिता का किरदार निभाया है.

आप अंकिता के किरदार को कैसे परिभाषित करना चाहेंगी?

-अंकिता बहुत ही ताकतवर व स्वतंत्र लड़की है. उसे पता है कि उसे क्या चाहिए. वह समाज की सुनकर चुप नहीं रह सकती. उसे जो चाहिए, वह उसे चाहिए. अंकिता और उसकी सहेली पल्लवी में रात व दिन का फर्क है. अंकिता को पता है कि उसे अपनी जिंदगी में क्या चाहिए. अंकिता को किसी बात के लिए कोई शर्म नहीं है. अगर वह समलैंगिक है, उसे एक लड़की पल्लवी से प्यार है, तो उसे इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी नहीं है. वह समाज में सभी के सामने खुलकर कहने को तैयार है कि उसकी सच्चाई यह है और वह एक लड़की से प्यार करती है. अंकिता यह सच अपने परिवार और समाज से कह चुका है. लोग उसे स्वीकार करें या न करें, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपनी जिंदगी में खुश रहना चाहती हैं.

क्या आपने अपने अंकिता के किरदार को निभाने से पहले एलजीबीटी कम्यूनिटी को लेकर शोधकार्य भी किया था?

-मैने काफी शोध किया. मुंबई में मेरे दोस्तों में से कई एलजीबीटी समुदाय से ही हैं. वैसे लंबे समय से इस विषय में मेरी रूचि रही है, तो मैंने पहले भी काफी कुछ पढ़ा था. मैने बहुत नजदीक से देखा है कि इस समुदाय के लोगों का किस तरह का संघर्ष रहता है. यह किस तरह के लोग होते हैं. मैंने तो यही पाया कि यह हमारी ही तरह के लोग हैं, अलग नहीं है. मैने देखा है कि वह कैसे सब कुछ स्वीकार करते हैं, उनकी चाल ढाल कैसी है. लोगो का उनके प्रति नजरिया कैसा रहता है.

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आप खुद क्या संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं?

-मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि प्यार तो प्यार ही होता है. उसमें जाति, धर्म, जेंडर लिंग आदि नहीं देखा जाता. आज के वक्त में सच्चा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है. जब प्यार मिलता है, तो उस पर आप शर्तें न लगाएं कि उसे इस लिंग का होना चाहिए या इस धर्म या इस जाति का होना चाहिए. किसी को किसी से प्यार हो रहा है,  तो उसे प्यार करने दीजिए, उसे उसकी जिंदगी में खुश रहने दीजिए. प्यार अपने आप में एक सुंदर व अच्छा अनुभव है. लोगों को प्यार को उसके पवित्र रूप में ही अनुभव करने दीजिए.

इसके अलावा कुछ कर रही हैं?

-फिलहाल तो ‘अमेजन’की वेब सीरीज के लिए बात चल रही है. कोरोना के चलते बहुत कुछ रूक गया था. अब धीरे धीरे शुरू होने वाला है.

लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए. मगर लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या रही ?

-मेरी आपेक्षा से कहीं ज्यादा अच्छी  प्रतिक्रियाएं मिली हैं. जबकि इस फिल्म की विषयवस्तु ऐसी है कि मुझे डर था कि नगेटिब प्रतिकियाएं ही ज्यादा मिलेंगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. 96 प्रतिशत सकारात्मक प्रतिकियाएं मिल रही हैं. इसके मायने यह हुए कि लोगों की सोच बदल रही है. मेरे अभिनय की काफी तारीफ की जा रही है.  अभिनेत्री मानिनी मिश्रा के साथ मैंने पहला सीरियल किया था, उन्होने मेरी इस लघु फिल्म को देखकर बहुत अच्छी बात कही है. उन्होने संदेश भेजा कि एक कलाकार के तौर पर जिस तरह से मेरे अंदर बदलाव आया है, उसका उन्हे गर्व है. यह सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए. क्योंकि मैने तो उनके सामने ही अभिनय सीखा है.

आपको नहीं लगता कि यही लघु फिल्म ‘यूट्यूब’की बजाय किसी बडे़ ओटीटी प्लेटफार्म पर आती, तो आपको ज्यादा फायदा मिलता?

-बिलकुल. . हर प्लेटफार्म की अपनी अच्छाइयां और बुराइयां है. अगर यही लघु फिल्म ‘नेटफ्लिक्स’या ‘अमेजन’ पर आती, तो इसका सौ प्रतिशत ज्यादा फायदा मिलता. क्योंकि दर्शक बढ़ जाते. फिर भी यह फिल्म यूट्यूब कम्यूनिटी में सबसे अच्छा कर रही है.

बौलीवुड में किन लोगों के साथ काम करना चाहती हैं?

-राज कुमार राव सर का काम मुझे बहुत अच्छा लगता है. मैं चाहती हूं कि उनके साथ एक फिल्म करुं. शाहरुख खान पर तो मेरा बचपन से क्रश रहा है. जब भी मैने सिनेमा देखा, तो मुझे उनका काम बहुत पसंद आया. मेरा सपना है कि कम से कम एक बार मुझे शाहरुख खान सर के साथ किसी फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर मिले. निर्देशकों में राज कुमार हिरानी, अनुराग कश्यप, अनुराग बसु सहित कई निर्देशकों के साथ काम करने की इच्छा है.

लॉक डाउन के दौरान आपने किस तरह से समय बिताया?

-लॉक डाउन से पहले मैने काफी काम किया था, तो पहले तीन माह घर पर रहकर आराम करने का मौका पाकर सकून मिला. इस बीच मैने अपने घर के इंटीरियर पर कुछ काम किया. घर मे रहकर एक्सरसाइज किया. मगर तीन माह के बाद मुझे लॉक डाउन का लॉक डाउन समझ में आने लगा. तब लगा कि मैने इतने समय से काम नहीं किया है. पता नही कब काम शुरू होगा, फिर काम मिलेगा या मुझे नए सिरे से संघर्ष करना पड़ेगा. तो एक कठिन स्थिति रही.  ऐसा लगा कि उम्मीदें चली गयी. मोटीवेशन चला गया. तो कुछ चिंताएं परेशान करने लगी थी. पर मैने अपने आपको समझाते हुए अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दिया. मैने यूट्यूब पर कई मोटीवेशनल वीडियो देखे. मैने काफी कुछ सीखा. मैने खुद को मानसिक रूप से तैयार किया. पहले रिजेक्शन होने पर तकलीफ होती थी, पर पांच वर्ष के अनुभव से मैने सीखा कि आडीशन में रिजेक्शन का मतलब मेरी अभिनय की खराबी नहीं, बल्कि उस किरदार के योग्य न होना रहा. मैंने कुछ फिल्में देखी. मैने सीखा कि अपने पैशन में लगे रहिए.

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अब आप किस तरह के किरदार करना चाहती हैं?

-मुझे स्ट्रांग किस्म की लड़कियों के किरदार निभाना है. मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं, जिसमें मैं कुछ मिसाल दे सकूं. लड़कियों को अहसास हो कि उन्हे भी इस तरह की लड़की बनना है, जो जानती है कि उन्हें जीवन में क्या करना है. दबकर रहने वाली लड़की का किरदार नहीं निभाना है. मैं अक्सर सुनती हूं कि वह फेमिनिस्ट है, मगर हकीकत में कितनी लड़कियां या औरतें फेमिनिस्ट हैं. इसलिए मुझे स्ट्रांग ओमन के किरदार निभाने हैं. मुझे ऐसे किरदार निभाने हैं, जिसे देखकर दूसरों को प्रेरणा मिले. मैं परदे पर बेचारी नही बनना चाहती.

फिटनेस मंत्रा क्या है?

-मैं एक्सरसाइज करती हूं. योगा करती हूं. मैने योगा सीखा भी है.

शौक क्या हैं?

-खाना बनाने का शौक है. दो बिल्लियां हैं, उनके साथ समय बिताती हूं.

सोशल मीडिया पर कितना व्यस्त रहती हैं?

-मैं सिर्फ इंस्टाग्राम पर तस्वीरें पोस्ट करती रहती हूं. मैने देखा है कि लोग सोशल मीडिया पर झूठ ज्यादा परोसते हैं. अपनी जिंदगी को इतनी बेहतरीन दिखाते हैं कि देखने वाले को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगती है. मुझे यह पसंद नही. लोग दिखाते हैं कि देखो उनकी जिंदगी कितनी परफैक्ट है, जबकि होती नहीं है. लोग हकीकत कम बयां करते है. वैसे वर्तमान समय में हमारे क्षेत्र में सोशल मीडिया बहुत महत्वपूर्ण हो गया है.

बौलीवुड और वेब सीरीज में एक्सपोजर काफी है. आप किस हद तक एक्सपोजर के लिए तैयार हैं?

-मेरी कुछ तो समस्याएं हैं. कुछ दायरे हैं, जिन्हे मैं पार नहीं करना चाहूंगी. वैसे अब तक मैने एक्सपोजर बिलकुल नहीं किया है. में ऐसा काम करना चाहूंगी, जिसे मेरे परिवार के सदस्य भी देख सकें. इन दिनों फिल्मों की बनिस्बत वेब सीरीज में एक्सपोजर बढ़ गया है. मेरी राय में कहानी या दृश्य की मांग है, तो ठीक, मगर महज दर्शक को आकर्षित करने के लिए सेक्स, नग्नता परोसा जाना गलत है. ओटीटी प्लेटफार्म पर कई वेब सीरीज में जबरन इस तरह के दृश्य परोसे जा रहे हैं, यह मुझे पसंद नहीं. यदि दृश्य व कहानी की मांग होगी, तो मै उस पर विचार करुंगी.

अब ओटीटी प्लेटफार्म को सेंसरशिप के दायरे में लाने की चर्चाएं गर्म हैं. आपकी राय?

-मेरी राय में कुछ हद तक ओटीटी प्लेटफार्म की वेब सीरीज व फिल्मों पर सेंसरशिप होनी चाहिए. यह ऐसा प्लेटफार्म था, जहंा लोग बिना सेंसरशिप के अपनी कहानियां परोस सकते थे, मगर कई लोगों ने इस स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाया. कई वेबसीरीज ऐसी हैं, जिनके ट्रेलर भी परिवार के सामने देखते हुए आपको शर्म आएगी. यदि सेंसरशिप आएगी, तो लोग बेवजह ऐसे दृश्य जबरन ठूंसने से बाज आएंगे और बेहतरीन कथानक वाली वेब सीरीज बन सकेंगी. मैं तो सेंसरशिप के पक्ष में हूं.

आप अभिनय के क्षेत्र से जुड़ने की इच्छा रखने वाली लड़कियों से क्या कहना चाहेंगी?

-यह सपनों का शहर है.  यहां लोगों के सपने पूरे होते है. यह शहर देखने में जितना सुंदर है, उतना ही सख्त भी है. छोटे शहरों से आने वाले लोग यहां के ग्लैमर में खो जाते हैं. छोटे शहर के लोग दूसरों पर बहुत जल्दी विश्वास करते हैं, उन्हे ऐसा करने से बचना चाहिए. अपने आप से पूछिए, दस लोगों से विचार विमर्श कीजिए, उसके बाद निर्णय लीजिए. बौलीवुड में फ्राड बहुत होते हैं. यहॉं आंख मूंदकर  लोगो पर यकीन मत कीजिए. आप गूगल कर जानकार हासिल कीजिए. सोशल मीडिया पर जानकारी हासिल कीजिए.

पुराने प्रेम का न बजायें ढोल

भारतीय साहित्य से लेकर धार्मिक कथाओं में सेक्स न ही हीन माना गया है और न ही इसमें किसी तरह की पाबंदी का जिक्र है. लेकिन जहां तक बात समाज की आती है, इसका रूप बिलकुल विपरीत दिखता है. यहां सेक्स को लेकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन मजाक और गालियां आम बात हैं. किशोरों को इसकी जानकारी देने में शर्म आती है लेकिन पवित्र बंधन के नाम पर विवाह में बांधना और किसी अनजान के साथ सेक्स करने को मजबूर करना रिवाज है. ऐसा ही एक बड़ा अंतर मर्द और औरत के प्रति कामइच्छाओं को लेकर रहा. यहां कौमार्य सिर्फ लड़की के लिए मायने रखता है, पुरुष का इससे कोई लेना देना नहीं है.

यानि लड़की का विवाह पूर्व सेक्स करना पाप की श्रेणी में आता रहा, हालांकि पुरुष इससे अछूता ही रहा. लेकिन बदलाव श्रृष्टी का नियम है. और कुछ ऐसा ही बदलाव समाज मेें दस्तक दे रहा है, जहां कुछ प्रतिशत ही सही पर विवाह पूर्व सेक्स एक समझदार जोड़े की शादी को प्रभावित नहीं कर रहा. इसलिए पुराने प्रेम का ढोल बजाते रहने से कोई सुख नहीं, कोई समझदारी नहीं.

शहरीकरण का प्रभा

भारत में शहर तीन श्रेणी में हैं. एक सर्वेक्षण में श्रेणी के शहरों में हुई पूछताछ में सामने आया कि अब दोनो ही साथी एक दूसरे के अतीत को वर्तमान में नहीं लाते. साथ ही तलाक और अफेयर के बढ़ते चलन में ऐसा संभव नहीं है कि कोई विवाह पूर्व सेक्स से अछूता रहा हो. ये अब एक सामान्य बात रह गई है. मायने ये रखता है कि विवाह के बाद साथी एक दूसरे के साथ कितने ईमानदार हैं. वहीं बी और सी श्रेणी के शहरों में करीब 40 से 48 प्रतिशत लोग विवाह पूर्व सेक्स का समर्थन करते हैं लेकिन सिर्फ अपने मंगेतर के साथ. उनका मानना है कि मंगनी के बाद शादी उसी व्यक्ति से होनी है तो सेक्स शादी के पहले हो या बाद में, मायने नहीं रखता.

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सवाल वर्जिनिटी का

अब एक सवाल आता है, वर्जिनिटी का. हर समय यही क्यों उम्मीद की जाए कि लड़की वर्जिन हो? मेरे पास इस प्रश्न का सीधा उत्तर तो नहीं है लेकिन मुझे अभी हाल में ही आयी एक मूवी ‘विक्की डोनर’ के  वो डायलॉग याद आ रहे हैं जब रिश्ते की बात के समय आयुष्मान को पता चलता है कि लड़की (यामी गौतम) का कोई अतीत भी है. तब आयुष्मान सीधा सवाल करता है कि, “सेक्स हुआ था क्या”? वह ‘नहीं’ में उत्तर देती है.  इस पर अपनी बात को जस्टिफाई करते हुए आयुष्मान कहता है कि “सेक्स नहीं हुआ तो उसे शादी थोड़ी न बोल सकते है”!!

कितना अजीब है यह विचार आज के ज़माने में. पर यह हमारे भारतीय समाज की हकीकत बयां करता है. इशारा करता है उस भारतीय मानसिकता की तरफ! मैं इसे अच्छा या बुरा नहीं कहूंगी. किसी के लिए फीलिंग होना, प्यार होना तो स्वाभाविक है . १० में से ९ लोगों के पास कुछ न कुछ कहानी भी होगी. लेकिन वह रिलेशनशिप कितना आगे बढ़ा यह जानने की  इच्छा  सिर्फ पुरुषों में ही नहीं महिलाओं में भी रहती हैं. लेकिन जब पुरुष को पता चलता है कि उसकी पत्नी शादी से पहले किसी के साथ रिलेशनशिप में थी तो वह यह बात आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता . कब शुरू होता है तानों और उल्हानों का सफर.

एक घटना –  सुनील अपनी पत्नी -संगीता से शादी के कुछ महीने बाद से ही  नाराज चल रहा था. सुनील को शक था कि उसकी पत्नी अब भी अपने पूर्व प्रेमी से मिलती है. लड़की के मायके वालों के हस्तक्षेप के बाद भी परिस्थितियां नहीं बदली और सुनील का दिन प्रतिदिन शक बढ़ता चला गया. जबकि विवाह से पहले सुनील खुद एक लड़की के साथ कुछ सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. बे बुनियाद शक की वजह से वह अक्सर अपनी पत्नी के ऊपर हाथ भी उठाने लगा. 1 दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि सुनील क्रोध में आपे से बाहर हो गया और उसने गुस्से में संगीता का गला दबा कर उस की हत्या कर दी .

पत्नी सती सावित्री क्यों

ऐसे आदमी जिनका खुद का एक पास्ट होता है, लेकिन उनको पत्नी सती सावित्री चाहिए होती है क्यों? उनके हिसाब से हर औरत का भी पास्ट होता है. यही सोच के साथ वो अपनी पत्नी पर कभी विश्वास नहीं करते. जबकि ऐसे व्यक्तियों को तो और ज्यादा अंडरस्टैंडिंग होना चाहिए.

उदाहरण -१

रीना जो कि एक कंपनी की एच आर है, इसलिए परेशान है क्योंकि उसके पति को रीना के शादी से पहले के सम्बन्धो के बारे में पता है और अब वो उस पर शक करता है! रीना ने बहुत सी बार अपने पति को समझाना चाहा कि सेक्स नहीं हुआ था और मैं विवाह से पहले वर्जिन थी. लेकिन फिर भी उसका पति शक करता है! अब यह कितनी ही दुःख की बात है और सिर्फ इतनी सी बात के लिए एक अच्छे रिश्ते के बाकि सारे पहलू दब जाते है और मजा चला जाता है.

पहलू और मुद्दे और भी हैं

एक रिश्ते के बहुत सारे पहलू होते हैं और यह उस समय की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. जबकि लम्बी अवधि में पुराने संबंध ज्यादा मैटर नहीं करते.  फिर भी राइ का पहाड़ बनाने की आदत से सब कुछ नष्ट हो जाता है. इसी कारण  हमारे देश में विर्जिनिटी रिकंस्ट्रक्शन की सर्जरी शुरू हो चुकी है! ये वो महिलायें/ लड़की करवातीं हैं जिनके शादी के पहले सेक्स संबंध थे और अब नहीं चाहतीं कि उनके पति को ये बात पता चले!

उदाहरण 2-

मैं यह सोचती हूं कि इस प्रकार के पुरुष माइनॉरिटी में है यानी ऐसी सोच वाले पुरुष आज के समय में कम होंगे. लेकिन हाल में हुआ किस्सा मुझे ऐसा न सोचने पर मजबूर कर रहा है! हुआ यूं कि मेरा एक मित्र (30साल)  जोकि आज की पीढ़ी का बहुत ही पढ़ा लिखा युवा है, वो इस बात पर अड़ा हुआ है की उसे ऐसी पत्नी चाहिए जो कि वर्जिन हो! हालांकि उसका तर्क ये है कि वो खुद वर्जिन है और चाहता है की उसका जीवन साथी भी वर्जिन हो! उसके नजरिए से देखें तो बात सही लगेगी लेकिन मेरा सवाल यह है कि  क्या पत्नी सिर्फ वर्जिन होने से रिश्ता अच्छा हो जायेगा?

योनी की झिल्ली सफल वैवाहिक जीवन की निशानी क्यों

आज भी हमारे समाज में लड़की के कुंवारेपन पर ज्यादा जोर दिया जाता है. शादी की पहली रात योनि की झिल्ली का फटना सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती है. कैसी है यह मानसिकता और यह समाज का दोहरा पन. सुहागरात के दौरान योनी की झिल्ली  के फटने को ही सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मान लिया जाता है.  यह मानसिकता अधिकांश पुरुष वर्ग की है चाहे वह किसी भी धर्म या समाज का हिस्सा हो. तभी तो आज भी बलात्कार के बाद मानसिक प्रताड़ना एक महिला वर्ग के हिस्से ही रहती है और बलात्कारी या शोषण करने वाला आजाद घूमता है.

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ना बदलने वाला समाज और पुराना दृष्टिकोण

लड़कियों या महिलाओं के प्रति यह सोच यह मानसिकता कोई नई बात नहीं इसकी जड़े बहुत पुरानी और गहरी हैं आज भी उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों या राज्यों में लड़की की पैदाइश के बाद खुशियां नहीं मनाते, बोझा ही मानते हैं. भले ही सरकार ने भ्रूण टेस्ट पर रोक लगा दी हो या उसे गिराने पर सजा या जुर्माना लगा दिया हो लेकिन आज भी बहुत से गांवों में , लड़की का पता चलने पर भ्रूण गिरा दिया जाता है या पैदा होते ही उसे किसी गटर में यह नाले में फेंक दिया जाता है वरना मार दिया जाता है. यानी समाज का दृष्टिकोण लही घिसा पिटा और पुराना.

शारीरिक संबंध के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं

मैं यहां कदापि नहीं कहूंगी कि शादी से पहले लड़के या लड़की को आपसी शारीरिक संबंध बनाने की छूट हो. पर यदि महिला के कुंवारेपन को पुरुष आंकता है तो पुरुष के कुंवारेपन को महिला को आंकने का अधिकार क्यों नहीं? यदि सेक्स की चाह पुरुष कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? कितने ही ऐसे  पुरुष होंगे जिन्होंने शादी से पहले किसी न  से शारीरिक संबंध बनाये होंगे या हस्तमैथुन किया होगा. फिर एक औरत के लिए पाबंदी क्यों?

आंकड़ों के अनुसार

आज के समय में पश्चिमी देशों में वर्जिनिटी नाम की कोई चिड़िया नहीं. वहां बालिग पुरुष व महिला आपसी रजामंदी से संबंध बना सकते हैं. जबकि हमारे देश में आज भी 71-79.9 प्रतिशत महिलाएं/ लड़कियां मिल जाएंगी जिन्होंने शादी से पहले किसी से संबंध न बनाया हो पर यही प्रतिशत पुरुषों मामले में सिर्फ 31-35 प्रतिशत ही होगा. इन देशों में अधिकतर लड़की लड़कियां 13 -16 साल की उम्र में ही सेक्सुअल रिलेशन बना लेते हैं और इन रिलेशंस के लिए वहां कोई तूल नहीं. इन देशों की संस्कृति में इसे मान्यता प्राप्त है.

तोड़नी होंगी वर्जनाएं

आज सोशल मीडिया का समय है. हम सबको अपनी सोच को बदल इन वर्जनाओं को तोड़ना होगा. समझना होगा कि शादी की शर्तों में वर्जिनिटी  है. एक औरत का चरित्र योनि की झिल्ली नहीं. वह भी पूरे सम्मान की अधिकारी है. वैसे तो आज  वर्जिनिटी अपने आप में कोई बड़ा सवाल नहीं माना जा सकता. इस सोच को बदलने के लिए मां बाप को भी अपनी मानसिकता को बदलना होगा. अगर लड़कों के लिए अपनी वर्जिनिटी खोना कोई बड़ा मुद्दा नहीं , तो लड़कियों के लिए भी नहीं होना चाहिए.

उम्र को क्यों करें नजरअंदाज

तीन पीढ़ी में देखा जाए तो विवाह की उम्र तेजी से बढ़ती हुई नजर आएगी. महिला सशक्तिकरण और जागरुक्ता की लहर तेज होने वाली ये पहली पीढ़ी है. जाहिर है आगे की पीढ़ियों के लिए संघर्ष थोड़ा कम होगा. दादी का बाल विवाह हुआ था, मां का विवाह 20 वर्ष तक हो चुका था पर आज विवाह 25-27 वर्ष से ऊपर होना आम बात है, लेकिन हार्मोनल बदलाव अपनी गति से ही चलते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो दादी ने आज की उम्र में होने वाले सेक्स से पहले ही सेक्स कर लिया था. लेकिन उन्हें समाज की इजाजत थी. लड़कियां आज इस इजाजत का इंतजार नहीं करतीं , लेकिन उनके साथी के लिए ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि वो भी इसी दौड़ में शामिल हैं. लेकिन फिलहाल ये समानता एक छोटे वर्ग तक ही सीमित है.

रिश्ते की नींव हो मजबूत

उसने तम्हें छुआ तो नहीं था, तुम उसके साथ कितनी बार सोर्इं? लड़की के शादी से पूर्व अफेयर की जानकारी अगर उसके पति को है तो ये सवाल लड़की के लिए आम बात रहे, भले वो उसे और उसके चरित्र को छलनी कर रहे हैं. हद्द तो यहां तक रही कि कुछ महिलओं को अपनी दूसरी शादी में भी ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा. पर क्या ये वाकई मायने रखता है? आज कुछ पुरुषों के पास इसका जवाब है. जिन्हें लगता है कि ये मायने नहीं रखता, वो अपनी शादी को सफल बना रहे हैं. कुछ प्रतिशत ही सही, लेकिन साथी के इस खुले बर्ताव और अपनी पत्नी पर भरोसे के कारण ही आज महिलाएं अपने अतीत में हुए अत्याचार के बारे में खुलकर बोल पा रही हैं. कहते हैं कि सफल विवाह की नींव भरोसा और ईमानदारी होती है. इसलिए अगर लड़की अपने अतीत की कहानी साथी को सुनाती है तो इससे साफ जाहिर है कि वो अपने रिश्ते में ईमानदार रहना चाहती है. वहीं अगर वो छुपाती है और रिश्ते पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देती तो ये बात मायने नहीं रखती कि विवाह पूर्व उसका किससे कैसा रिश्ता था.

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क्या कहता है धर्म

बहुत कम लोग होते हैं जो धर्म को बहुत नजदीक से समझते और जानते हैं. ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों को भरोसे के साथ मानते चले आते हैं क्योंकि ये बात किसी पूजनीय ने बताई होती है. ऐसे में वो अपनी बुद्धी नहीं लगाना चाहते. ऐसे में ज्यादातर पुरुष प्रधान का प्रभाव रहा जो महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा बनाता रहा. जरूरी नहीं उनकी बताई बात किसी वेद, धार्मिक कथा या पुराण में लिखी हो. अगर नजदीक से समझा जाए तो सेक्स के विषय में धार्मिक कथाओं में खासा खुलापन भी देखने को मिलेगा. हालांकि एक प्रकार का दोगलापन यहां भी है. कुंती को विवाहपूर्व जन्मा पुत्र त्यागना पड़ा था लेकिन उसी कुंती की वधु को पांच पतियों का साथ मिला. यहां अतंर सिर्फ विवाह का था. फिर भी कुछ कथाएं हैं जो इस खुलेपन की ओर इशारा करती हैं. कुरुवंश को आगे बढ़ाने में ऋषि पराशर और सत्यवति के विवाहपूर्व संतान व्यास का सहारा लिया गया था. महाभारत में इस बात का भी वर्णन है कि अगर कोई बिना ब्याही स्त्री अपने मन का सेक्स पार्टनर चुनती है और उससे सेक्स की इच्छा जताती है तो उस पुरुष को उसकी इच्छा का मान रखना होता है. ऐसा न करने पर वो दण्ड का अधिकारी होता है. अर्जुन का श्राप इसका एक उदाहरण है. इसके अलावा साहित्य के कुछ पन्नों में भी इस विषय में खासा खुलापन दिखाया गया है जहां खुले में संबन्ध बनाने, और नजदीकी रिश्तों में कामइच्छा प्रकट करने का जिक्र है.

6 मेकअप हैक्स: जो हर महिला के लिए जानना जरूरी 

आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में किसी के पास भी अपने लिए समय नहीं है, खासकर के महिलाओं के पास . कभी बच्चों को तैयार करने की जल्दी , तो कभी आफिस पहुंचने में देरी , तो तभी घर आफिस का स्ट्रैस , इसी कारण महिलाएं खुद के लुक पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. और जब खुद के लिए थोड़ा समय होता है तब खुद की तुलना अन्य महिलाओं से करती हैं तो बस यही सोचती है कि काश मेरा भी लुक इनकी तरह होता और पता नहीं इनके पास इतना टाइम कैसे होता है कि ये खुद पर फोकस कर पाती हैं. तो हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे मेकअप हैक्स के बारे में , जिन्हें करके हर बिजी महिला खुद को कभी भी कहीं भी सवार सकती हैं

हैक 1 –  झट से पाएं लैशेस पर मस्कारा जैसा टच 

पूरे दिन सिस्टम या फिर घर पर काम करते करते आंखें थक जाती हैं. खासकर पलके जो हमारी आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने में अहम रोल निभाती हैं,  वो थकान की वजह से केयर के अभाव में अपनी सुंदरता खो देती हैंऐसे में अगर आपके पास मस्कारा से अपनी पलकों को टचअप देने का टाइम नहीं है तो आपके पास वैसलीन तो जरूर होगी ही, जो सिर्फ लिप्स को मोइस्चर प्रदान करती है बल्कि आपकी लैशेस को भी सेकंडों में फ्रैश लुक देने का काम करती है. बस आप अपनी फिंगर पर थोड़ा सा वैसलीन लेकर उसे अपनी पलकों पर अप्लाई करके पाएं फ्रैश  खूबसूरत लुक

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हैक 2 – पाएं लौंग लास्टिंग लिपस्टिक का इफेक्ट 

क्या आप चाहती हैं कि आफिस में आपके लिप्स पर हमेशा लिपस्टिक टिकी रहे. लेकिन आपके पास हर समय लिप्स को रंगने का समय नहीं होता है तो हम आपको आसान सा हैक बताते हैं , जिससे आपकी लिपस्टिक आपके लिप्स पर लंबे समय तक चलने के साथसाथ आपका  फेस भी  हर समय फ्रैश फ्रैश नजर आएगा. क्योंकि कहते हैं कि लिपस्टिक मेकअप की जान होती है. ऐसे में आपको थोड़ा अपना लिपस्टिक लगाने का तरीका बदलना होगा. इसके लिए आप सबसे पहले लिपस्टिक का एक कोट लगाएं, फिर उस पर ब्रश की मदद से  थोड़ा सा पाउडर लगाकर उस पर लिपस्टिक का दूसरा कोट भी अप्लाई करें. इससे आपकी लिपस्टिक लंबे समय तक टिकेगी भी और आपको गौर्जियस लुक भी देने का काम करेगी

हैक 3 – लिप पिगमेंटेशन से पाएं छुटकारा 

क्या आपको लिप्स पर पिगमेंटेशन की शिकायत है. जब भी आप लिप्स पर लिपस्टिक अप्लाई करती हैं तो लिप्स पर वो ग्रेस नहीं पाता , जो आना चाहिए. ऐसे में कंसीलर आपके बड़े काम  का साबित होगा. बता दें कि कंसीलर कलर को ठीक करने, डार्क सर्कल्स  दागधब्बो को छुपाने का काम करता है. बस जरूरत होती है इसे अच्छे से स्किन पर ब्रश से ब्लेंड करने की. ऐसे में आप अपने लिप्स की पिगमेंटेशन को छुपाने के लिए सबसे पहले लिप्स पर अच्छे से कंसीलर अप्लाई करें , फिर उस पर लिपस्टिक अप्लाई करें. आपको तुरंत ही रिजल्ट नजर जाएगाइसे अप्लाई करने में समय भी कम लगता है और समस्या भी सेकंडों में दूर हो जाती है

हैक 4 –  पिंक ब्यूटी इन योर हैंड्स 

हर कोई चाहता है कि उसका फेस पिंकीपिंकी  नजर आए. लेकिन कहते हैं कि ये तो नैचुरली ही स्किन पर होता  है. लेकिन हम आपको बताते कि अगर आप अपनी स्किन पर पिंकिश सा टच चाहती हैं तो आप मेकअप जैसे फाउंडेशन या फिर प्राइमर लगाने से पहले कुछ सैकंड चेहरे पर बर्फ से मसाज करें , फिर अप्लाई करें मेकअप. यकीन मानिए आपके चेहरे पर पिंक ब्यूटी नजर आने लगेगी, जिसे देखकर लोग आपसे पूछे बिना नहीं रह पाएंगे

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हैक 5 –  आईब्रो को बनाएं परफेक्ट 

हर महिला चाहती है कि उसकी आईब्रो परफेक्ट हो, लेकिन चाहते हुए भी कई बार उन्हें काफी पतली आईब्रो को फेस करना पड़ता है, जो उन्हें बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. ऐसे में जब भी उनकी नजर अपनी ब्रो पर पड़ती है तो वे बस यही सोचती हैं कि कांश मेरी  आईब्रो भी परफेक्ट होती, मोती होती . ऐसे में आप मिनटों में काजल पेंसिल जो आंखों की रौनक को बढ़ाने का काम करती  है, उससे अपनी ब्रोस को परफेक्ट शेप दे सकती हैं. इस हैक से आपको मनचाहा लुक भी मिल जाएगा और देखने वाले भी देखकर पहचान नहीं पाएंगे कि ये काजल पेंसिल का कमाल है

हैक 6 –  सीसी क्रीम जो दे फ्रेश लुक 

फ्रैंड की पार्टी में जाना है , लेकिन आफिस से निकलते निकलते देर हो गई , जिस कारण खुद को खूबसूरत बनाने के लिए टाइम ही नहीं है. लेकिन आप यह भी नहीं चाहतीं कि आप अपना मुरझाया थकाथका चेहरा लेकर पार्टी में जाएं , तो आप अपने बैग से या फिर अपनी किसी फ्रैंड से  सीसी क्रीम मांगें  और फिर उसे चेहरे पर अप्लाई कर लें. आपको तुरंत ही चेहरे पर मोइस्चर , स्किन टोन इम्प्रूव होने के साथसाथ चेहरे पर फ्रैशनेस नजर आने लगेगी. आप भी अपने चेहरे पर इस रौनक को देखकर हैरान रह जाएंगी

भाई की शादी में शानदार लुक में पहुंची मारी ‘दीया और बाती हम’ एक्ट्रेस दीपिका सिंह, Photos Viral

स्टार प्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ से संध्या के नाम से घर घर में पहचान बनाने वाली दीपिका सिंह इन दिनों टीवी की दुनिया से दूर हैं. लेकिन वह अपने फैंस के लिए सोशलमीडिया पर अक्सर फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. इसी बीच भाई की शादी में दिल्ली पहुंची ने शादी की कई फोटोज शेयर की हैं, जिसमें उनके लुक बेहद खूबसूरत लग रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं दीपिका सिंह के भाई की शादी की खास फोटोज…

भाई की शादी में बन-ठनकर पहुंची दीपिका सिंह

भाई की शादी में अपने लुक को खूबसूरत बनाने के लिए दीपिका पर्पल कलर की साड़ी में नजर आई वहीं. इस साडी के साथ कुंदन ज्वैलरी कैरी ने उनके ओवरऔल लुक पर चार चांद लगा दिया.

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भाई की शादी में सेल्फी लेती दिखीं दीपिका

भाई की शादी हो और सेल्फी ना हो ऐसा हो सकता है. दीपिका भी भाई की शादी में खूब फोटोज क्लिक करवाती नजर आईं वहीं इसके साथ वह सेल्फी लेती भी दिखीं, जिसकी फैंस काफी तारीफ कर रहे हैं.

पिंक लहंगे में गिराई बिजलियां

भाई के शादी के फंक्शन के लिए दीपिका ने पिंक कलर का लहंगा कैरी किया था, जिस पर मिरर वर्क किया गया था. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो इसके साथ दीपिका ने सिंपल ज्वैलरी कैरी की थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

डांस करती नजर आईं दीपिका

शादी में दीपिका जितनी खूबसूरत लग रही थीं वहीं उनकी डांस भी लोगों को बेहद पसंद आ रहा था, जिसका सबूत उनकी यह फोटोज हैं. अपनी इन फोटोज में अपनी बहन के साथ डांस करते हुए ठुमके लगा रही हैं.

बता दें, दीपिका सिंह ने बीते दिनों मुंबई से सोशलमीडिया के जरिए अपनी मां, जो कि कोरोना से पीड़ित थीं. उनके इलाज के लिए सीएम केजरीवाल से मदद की गुहार लगाई थी, जिसके कारण वह सुर्खियों में आ गई थीं. हालांकि उनकी मां अब कोरोना मुक्त हो चुकी हैं, जिसका शुक्रिया उन्होंने सोशलमीडिया के जरिए ही किया था.

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हाथों के ऊपरी हिस्से पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने से मैं स्लीवलैस ड्रैस नहीं पहन पाती, मैं क्या करुं?

सवाल- 

मेरे हाथों के ऊपरी हिस्से पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. हालांकि इन से मुझे खुजली या दर्द नहीं होता, लेकिन इन की वजह से मैं स्लीवलैस ड्रैस नहीं पहन पाती हूं. इन को दूर करने का कोई उपाय बताएं?

जवाब- 

स्किन पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने यानी बंप्स हो जाने की समस्या को केराटोटिस पाइलेरिस कहा जाता है. लगभग 50% लोग इस समस्या से पीडि़त हैं. बंप्स आमतौर पर लाल और सफेद रंग के छोटे पिंपल्स की तरह दिखते हैं. वास्तव में ये कुछ और नहीं, बल्कि डैड स्किन होती है, जिस से बालों के रोम में रुकावट पैदा हो सकती है. ये केवल आप के हाथों की भुजाओं पर ही नहीं, बल्कि कूल्हों और जांघों के पीछे भी हो सकते हैं. इन से छुटकारा पाने के लिए आप दिन में 2 बार अच्छे मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. आप सेलीसिलिक ऐसिड और अल्फा हाइड्रौक्सी चुन सकती हैं. विटामिन ए युक्त क्रीम से स्किन सैल्स की हालत बेहतर होती है. ऐक्सफोलीएशन से डैड स्किन सैल्स अच्छी तरह से उतर जाती हैं. आप ऐक्सफोलिएटिंग स्क्रब का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. ध्यान रहे कि कोई भी क्रीम लगाने से पहले डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह जरूर लें. बेहतर रिजल्ट पाने के लिए इन का नियमित रूप से इस्तेमाल करें.

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एक चमकती व निखरी हुई त्वचा पाना हर किसी का सपना होता है. परन्तु ऐसी त्वचा पाने के लिए हमें प्रयास भी उतने ही करने होते हैं. यदि आप हफ्ते में एक या दो बार अपनी स्किन को एक्सफोलिएट करते हैं तो आप के स्किन से सारी गन्दगी व डैड स्किन निकल जाती है जिससे आप को एक चमकती व दमकती त्वचा मिलती है. परन्तु स्क्रब भी कई प्रकार के होते हैं. यदि आप बेस्ट स्क्रब की बात करें तो ड्राई फ्रूट से बने कुछ स्क्रब आप की त्वचा के लिए सच में बहुत अच्छे होते हैं. ऐसे में हमारे सामने अप्रिकॉट स्क्रब भी आता है जो आप की स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है. इसे आप घर पर भी बना सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- करना चाहते हैं स्किन को एक्सफोलिएट तो इस होममेट अप्रिकोट स्क्रब से पाएं ग्लोइंग फेस

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Winter Special: नौनवेज को टक्कर देती सोया चाप करी

नाम से ही आकर्षित करने वाला सोया चाप करी खाने में और भी ज्यादा स्वादिष्ट है. जानिए सोया चाप करी की रेसिपी.

बनाने में समयः 30 मिनट

लोग: 4 के लिए

सामग्री:

250 ग्राम सोया चाप,

3 टमाटर,

1 अदरक,

1 हरी मिर्च,

100 ग्राम क्रीम,

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3-4 टेबल स्पून तेल,

1 चुटकी हींग,

1/4 छोटी चम्मच जीरा,

बारीक कटा हुआ हरा धनिया,

1/4 छोटी चम्मच हल्दी पाउडर,

1/4 छोटी चम्मच लाल मिर्च,

गर्म मसाला,

छोटी चम्मच कसूरी मेथी और नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि:

सोया चाप को 1 से 1.5 इंच के टुकड़ों में काट लीजिए. पैन में तेल गर्म करके उसमें चाप डालें और हल्का भूरा होने पर प्लेट में निकाल कर रख लीजिए.

अब टमाटर, अदरक व हरी मिर्च का पेस्ट बना लीजिए. पैन के बचे तेल में जीरा डाल दीजिए और भुनने के बाद हींग, हल्दी पाउडर, धनियां पाउडर, कसूरी मेथी और साबुत गर्म मसाले, काली मिर्च, दाल चीनी, लौंग और इलायची को छील कर डाल दीजिए. अब मसाले को हल्का-सा भूनिए, उसमें टमाटर, अदरक व हरी मिर्च का पेस्ट डालिए.

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मसाले में से तेल अलग होने पर इसमें गर्म मसाला डालिए और क्रीम डालकर लगातार चलाते हुए मसाले में उबाल आने तक पकाएं. मसाले में उबाल आने पर इसमें 1/2 कप पानी डालिए और इसे लगातार चलाते हुए एक बार फिर से उबाल दिलवाएं. अब थोड़ा-सा हरा धनियां डालकर ग्रेवी में मिला दीजिए.

ग्रेवी में उबाल आने पर इसमें नमक डाल दीजिए और सोया चाप डाल कर मिक्स कर लीजिए. अब धीमी आंच पर सब्जी को ढककर 4-5 मिनट पकने दीजिए.

फ्लू से बचने के लिए महिलाएं कंट्रोल रखें एस्ट्रोजन लेवल

सर्दियों की शुरुआत होने से कई सारे सांस से सम्बंधित वायरस, खांसी और कफ होता है. लेकिन इस की सर्दी पिछली सर्दियों से अलग है क्योंकि इस समय हम कोरोनावायरस महामारी का सामना कर रहे हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स ने सुझाव दिया है कि सर्दियों में कोविड 19 के केसेस और ज्यादा बढ़ेंगे. हम फ्लू जैसे लक्षण को बिल्कुल भी नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं. अगर इन लक्षणों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया तो इससे गंभीर समस्या हो सकती है.

फ्लू  इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होने वाली बहुत ज्यादा संक्रामक सांस से सम्बंधित बीमारी है. इससे गंभीर स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती है और ज्यादा गंभीर होने पर हॉस्पिटल में भी भर्ती होना पड़ सकता है. इन समस्याओं में निमोनिया और कभी-कभी मौत तक भी हो जाती है. भारत में फ्लू की एक्टिविटी प्रायः नवम्बर से शुरू होती है और दिसंबर से फ़रवरी तक यह चरम पर होती है और मौसम के अनुसार मार्च के अंत तक भी रह सकती है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी)  के अनुसार 2018-2019 फ्लू के मौसम के दौरान अनुमानित 35.5 मिलियन लोग फ्लू से इन्फेक्ट हुए. जिसके परिणामस्वरूप लगभग 34,000 मौतें हुईं.

फ्लू वायरस इन्फेक्ट करता है और सेल में प्रवेश करके और होस्ट सेल अंदर खुद की कॉपीज बनाकर बीमारी का कारण बनता है. संक्रमित सेल्स से निकलने पर वायरस शरीर में फैल सकता है और फिर यह इसी तरह से लोगों के बीच में भी फ़ैल जाता है. एक वायरस कितनी बार इन्फेक्ट कर सकता है, यह उसकी गंभीरता को दर्शाता है. कम बार इन्फेक्ट करने वाले  वायरस का अर्थ है कि इन्फ्केकटेड व्यक्ति में बीमारी कम हो सकती है या बीमारी के किसी और व्यक्ति में फैलने की संभावना भी कम हो सकती है.

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महिलाओं को फ्लू से बचाने में एस्ट्रोजन की भूमिका

एक नई स्टडी में पता चला है कि महिला सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन महिलाओं को फ्लू से बचाता है.

एस्ट्रोजेन में एचआईवी, इबोला और हेपेटाइटिस वायरस के खिलाफ लड़ने में एंटीवायरल गुण होते हैं. इस स्टडी में प्राइमरी सेल्स (प्राथमिक कोशिकाएं) सीधे मरीजों से अलग हो जाती हैं, जिससे रिसर्चर यह पता लगाने में सक्षम हो जाते हैं कि एस्ट्रोजेन का सेक्स स्पेसिफिक प्रभाव क्या होता है.

यह पहली स्टडी थी जिसमे एस्ट्रोजन रिसेप्टर की पहचान की गयी. एस्ट्रोजन रिसेप्टर एस्ट्रोजेन के एंटीवायरल प्रभावों के लिए जिम्मेदार होती है. रिसर्चर को  एस्ट्रोजेन के इस संरक्षित एंटीवायरल प्रभाव की मध्यस्थता करने वाले तंत्र को समझने मदद मिली. यह  देखा गया है कि कुछ प्रकार के

बर्थ कंट्रोल (जन्म नियंत्रण) या  मेनोपाज के बाद की महिलाओं को प्रीमेनोपॉज़ल हार्मोन रिप्लेसमेंट  पर मौसमी इन्फ्लूएंजा महामारी के दौरान बेहतर रूप से संरक्षित किया जाता है. चिकित्सीय एस्ट्रोजेन जो इनफर्टिलिटी और मेनोपाज के इलाज के लिए उपयोग किए जाते हैं, वे भी फ्लू के खिलाफ रक्षा कर सकते हैं.

प्राकृतिक तरीके से एस्ट्रोजन के लेवल को कैसे बढ़ाएं

एस्ट्रोजन लेवल को प्राकृतिक रूप से बढ़ाना संभव है, इसके लिए डाईट में बस कुछ बदलाव करने की जरुरत है. कई ऐसी जड़ी बूटियां और सप्लीमेंट है जिसे आप ट्राई कर सकते हैं लेकिन यह ध्यान रखें कि अभी भी जड़ी बूटियों से पड़ने वाले प्रभाव के बारें में रिसर्च बहुत कम हुई है. इसलिए यह बढ़िया रहेगा कि उनका सेवन करने से पहले अपने डाक्टर से सलाह ले लें.

सबसे पहले अगर आपका कम एस्ट्रोजेन लेवल आपको परेशानी पहुंचा रहा है या मेनोपाज के लक्षण, हॉट फ्लैशेस, इंसोमेनिया, मूड चेंजेज या योनि में रूखापन दिखा रहा है तो अपन डाक्टर से बात करें. एक फंकशनल मेडिसिन या नेचुरोपेथिक डाक्टर भी कंडीशन को चेक करके मदद कर सकता है .

एक गिलास रेड वाइन या लाल अंगूर का जूस डिनर में खाने से एस्ट्रोजेन का ब्लड लेवल बढ़ता है, इसलिए रोज एक गिलास रेड वाइन पीने से आप अपने एस्ट्रोजेन लेवल को बढ़ा सकते हैं. हालांकि वाइन में एक्टिव कम्पाउंड, रेस्वेराट्रोल अंगूर के जूस, अंगूर, किशमिश, और यहां तक कि मूंगफली  में भी मौजूद होता है. इसलिए अगर आप शराब नहीं पीना चाहते हैं तो तब भी आप इन चीजों से अपने एस्ट्रोजन लेवल को बढ़ा सकते है.

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हल्दी से अपना भोजन को स्वादिष्ट बनायें.

हल्दी में फाइटोएस्ट्रोजेन होता है, इसलिए जब भी खाना बनायें इसे उसमे डाले या अतिरिक्त फाइटोएस्ट्रोजन बूस्ट के लिए तैयार हुए खाद्य पदार्थों पर छिड़कें. यहां तक कि एक रेसिपी में 1/2 चम्मच (2.5 ग्राम) डालने से भी फाइटोएस्ट्रोजेन में बढ़ोत्तरी हो सकती है.

 डॉ मनीषा रंजन, कंसल्टेंट आब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी, मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा से बातचीत पर आधारित

बच्चों को गैजेट्स दें, मगर कंट्रोल भी जरूरी

हाईटेक होते ज़माने में जहां हर चीज़ मोबाइल एप्स पर उपलब्ध होती जा रही है तो वहीँ कोविड 19 में बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है. बच्चों की एक्टीविटीज और पढ़ाई भी अब ऑनलाइन हो रही है. ऐसे में बच्चों को मोबाइल या दूसरे गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं.

आज के समय में देखा जाए तो 2 साल के बच्चे भी टच स्क्रीन फोन चलाना, स्वाइप करना, लॉक खोलना और कैमरे पर फोटो खींचना जानते हैं. एक नए रिसर्च (82 सवालों के आधार पर) के अनुसार, 87% अभिभावक प्रतिदिन औसतन 15 मिनट अपने बच्चों को स्मार्टफोन खेलने के लिए देते हैं.
62% अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बच्चों के लिए ऐप्स डाउनलोड करते हैं. हर 10 में से 9 अभिभावकों के मुताबिक़ उन के छोटी उम्र के बच्चे भी फोन स्वाइप करना जानते हैं. 10 में से 5 ने बताया कि उन के बच्चे फोन को अनलॉक कर सकते हैं जबकि कुछ अभिभावकों ने माना कि उन के बच्चे फोन के अन्य फीचर भी ढूंढ़ते हैं.

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गैजेट के अधिक इस्तेमाल से सेहत पर असर

माइकल कोहेन ग्रुप द्वारा किए गए रिसर्च से पता चलता है कि टीनएजर्स गैजेट्स से खेलना ज़्यादा पसंद करते हैं. गैजेट्स ले कर दिन भर बैठे रहने के कारण उन में मोटापे की समस्या बढ़ रही है. साथ ही आईपैड, लैपटॉप, मोबाइल आदि पर बिज़ी रहने के कारण वे समय पर सो भी नहीं पाते जिस से उन्हें शारीरिक यानी स्वास्थ्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी गैजेट्स उन्हें नुक्सान पहुंचा सकते हैं. मोबाइल हो या कंप्यूटर, इन में जिस तरह के कंटेंट वे देखते हैं उस का सीधा असर उन के दिमाग और सोच पर पड़ता है.

सिर्फ शारीरिक मानसिक परेशानियां ही नहीं बल्कि गैजेट्स के अधिक इस्तेमाल की आदत उन्हें किसी संभावित खतरे की तरफ भी धकेल सकती है. ऐसा ही एक खतरा है साइबर बुलिंग. चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY ) द्वारा दिल्ली एनसीआर के 630 किशोरों पर किये गए सर्वे में पाया गया कि करीब 9. 2 % ने साइबर बुलिंग का अनुभव किया और उन में आधे से ज्यादा ने यह बात अपने पेरेंट्स या टीचर से भी शेयर नहीं की.

फरवरी 2020 में ऑनलाइन स्टडी और इंटरनेट एडिक्शन नाम से किये गए अध्ययन में पाया गया कि बच्चा जितना ज्यादा इंटरनेट और गैजेट्स का प्रयोग करता है इस तरह की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती हैं. 2. 2 % किशोर (13 -18 साल) जिन्होंने 3 घंटे से ज्यादा समय तक इंटरनेट का प्रयोग किया वे ऑनलाइन बुलिंग के शिकार बने तो वहीँ 28 % किशोर जिन्होंने 4 घंटे से अधिक का समय इंटरनेट पर बिताया उन्हें साइबर बुलिंग सहना पड़ा.

गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल करने वाले किशोर कई बार साइबर अपराधों में खुद भी लिप्त हो जाते हैं. उन्हें दूसरों से बदला लेने का यह सहज और आसान जरिया नजर आता है जहाँ उन की पहचान भी छिपी रह सकती है.

मुंबई में रहने वाले दिव्य को अपने क्लास की एक लड़की सुधि ने कभी झगड़े में उल्टासीधा कह दिया था. इस का बदला लेने के लिए दिव्य ने साइबर वर्ल्ड का सहारा लिया. उस ने सुधि के नाम पर एक फर्जी फेसबुक पेज बनाया और उस पर सुधि की तसवीरें लगाते हुए कुछ ऐसे खतरनाक और वल्गर पोस्ट डालने शुरू किए कि कमेंट बॉक्स में गंदेगंदे मैसेज आने लगे. सुधि को इस बारे में कुछ पता नहीं था. स्कूल के बच्चे सुधि को ले कर कानाफूसी करने लगे और उस से कतराने लगे. सुधि समझ ही नहीं पाई कि क्या हुआ है. यहाँ तक कि उस की पक्की सहेली ने भी उस से बातें करनी बंद कर दीं. सुधि द्वारा बारबार पूछे जाने पर सहेली ने एक दिन उसे सारे पोस्ट दिखाए. सुधि दंग रह गई. उसे समझ नहीं आया कि उसे इस तरह कौन बदनाम कर सकता है. दरअसल वह साइबर बुलिंग का शिकार हो गई थी. उस का फ्रेंड सर्कल ख़त्म हो गया. अब वह गुमसुम रहने लगी. उस ने बाहर जाना छोड़ दिया और तनाव का शिकार हो गयी. हालत इतनी खराब हो गई कि उस के पेरेंट्स ने उसे नए स्कूल में डाला और महीनों काउंसिलिंग भी कराई. तब जा कर वह नार्मल हो सकी. इस तरह दिव्य ने अपनी नासमझी और बदले की भावना में सुधि का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया था.

इप्सोस के साल 2014 के एक सर्वे के मुताबिक़ भारत साइबर बुलिंग के मामले में 254 देशों की सूची में सब से ऊपर था. सर्वे में शामिल देश के 32 फीसदी पैरेंट्स ने कहा कि उन के बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हुए हैं. समय के साथ अब हालात और खराब हो चुके हैं.

साइबर बुलिंग के तहत किसी के बारे में अफवाह उड़ाना, धमकी देना, सेक्सुअल कमेंट, व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक करना या हेट स्पीच आदि आते हैं. जो लोग इस के शिकार होते हैं उन में आत्मविश्वास कम हो जाता है और कई बार वे आत्महत्या भी कर लेते हैं.

जाहिर है बच्चों के लिए चुनौतियां सिर्फ ब्लू ह्वेल जैसे खेल ही नहीं है. चैट रूम के जरिये कई बार बच्चों के लिए ज्यादा खतरे आते हैं. टीनएजर दोस्त बनाने के लिए चैट रूम में आते हैं और अनजान लोगों से दोस्ती करते हैं. इस तरीके में सब से बड़ा खतरा यह है कि सामने वाला अगर बुलिंग पर उतर आये तो वेबसाइट पर पहचान जाहिर न करने जैसे क्लॉज का सहारा ले कर बच्चे को परेशान करना शुरू कर देता है.

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बच्चे दूसरों की देखादेखी अपनी स्टाइलिश तसवीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू कर देते हैं. इस से कई बार उन के मन में कम्पटीशन या इन्फीरियरिटी कॉम्प्लेक्स की भावना भी घर कर जाती है.

बच्चे के सामने ऑनलाइन स्कैम भी एक बड़ा खतरा है. मेल और पोस्ट द्वारा करोड़ों के ईनाम जीतने का लालच बच्चों को आकर्षित कर सकता है. इस में वे बैंक एकाउंट या व्यक्तिगत जानकारी शेयर कर देते हैं जो बाद में मुसीबत का कारण बन सकता है.

आज कल 18 साल से कम के किशोर खुद की पहचान बनाने के लिए सोशल मीडिया को चुनते हैं. उन के मन के अंदर का घमंड, अहम का भाव सोशल मीडिया के जरिए दूसरे पर निकालते हैं. वहां कोई रोकटोक नहीं होता. ऐसे में वह स्वतंत्र हो कर जो करना है वह करते हैं. इस वजह से कई बार उन की जिंदगी बर्बाद भी हो जाती है.

इसलिए बेहतर है कि जितना हो सके बच्चे की ऑनलाइन गतिविधियों पर हर वक्त नजर रखें. साथ ही पहले से ही बच्चे से इस बारे में चर्चा करें और उसे समझाएं कि किस तरह के खतरे हो सकते हैं. आज के समय में बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं, मगर इन के इस्तेमाल की समय सीमा ज़रूर तय कर सकते हैं.

क्या हो समय सीमा

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की स्टडी के मुताबिक़ 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी तरह के स्क्रीन से दूर रखना चाहिए. 3 से 5 वर्ष के बच्चे एक घंटा और टीनएजर बच्चों को पढ़ाई के अलावा केवल 30 मिनट प्रतिदिन तक गैजेट इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए.

अभिभावक की जिम्मेदारी

बच्चों को ख़ुश करने की बजाय उन की भलाई के बारे में सोचें. उन्हें अनुशासन में रख कर ही गैजेट की लत से बचाया जा सकता है.

अपने बच्चों को टीवी, कंप्यूटर या फोन का उपयोग ऑनलाइन स्टडी के अलावा 30 मिनट से अधिक न करने दें. दूसरी बातों में उन का ध्यान उलझाएं.

जब बात इनाम देने की हो तो हमेशा कोशिश करें कि उन्हें गैजेट की बजाय कुछ और उपयोगी वस्तु दें.
बच्चों को किताबें पढ़ने को प्रेरित करें. थोड़ा समय लाइब्रेरी में बिताने को कहें. नईनई ज्ञानवर्धक, रोचक और शिक्षप्रद कहानियों की पुस्तकें ला कर दें.

कोशिश करें कि बच्चा जब टीवी, कंप्यूटर पर व्यस्त हो तो आप उस के साथ रहें ताकि यह देख सकें कि वह स्क्रीन पर क्या देख रहा है.

बच्चों को शांत रखने के लिए उन्हें मोबाइल गेम खेलने को प्रोत्साहित करने के बजाय उसे बाहर जा कर दोस्तों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें. बाहर खुले मैदान में दौड़नेभागने वाले खेल खेलने से वे शारीरिक रूप से भी फिट रहेंगे.

टच-पैड की बजाय बच्चे को कोई पेट (पालतू जानवर) ला कर दें.

उन्हें समाज और प्रकृति से जोड़े.

हफ्ते में 5 दिन क्लास के बाद शनिवार और रविवार को बच्चों को आर्ट्स एंड क्राफ्ट में इन्वॉल्व कर सकते हैं.

बच्चों को अन्य खेलों के प्रति प्रेरित कर सकते हैं, जैसे साइकिल चलाना, कैरम बोर्ड खेलना, चेस खेलना आदि.

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बच्चों को कभी भी उन का पर्सनल फोन न दें.

उन्हें समझाएं कि एक घंटे मोबाइल या लैपटॉप इस्तेमाल करने के बाद ब्रेक ले.

बच्चों को अंधेरे में फोन नहीं चलाना चाहिए. इस से उन की आंखों पर सीधा असर पड़ता है. खास तौर पर बच्चे लेट कर फोन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा करने से मना करें.

‘शिक्षा ही सबसे बड़ी जरूरत है’- पूजा प्रसाद, शिक्षाविद

शैलेंद्र सिंह

‘किसी भी देश, समाज और संस्कृति के विकास में वहां की शिक्षा व्यवस्था का बडा हाथ होता है. लोगों में शिक्षा के प्रति लगाव से पता चलता है कि वह कितना समृद्वशाली है. मेरा हमेशा से यह प्रयास रहा है कि जहां भी रहो जिस रूप में रहो लोगों को जितना शिक्षित कर सकते हो जरूर करें. समाजसेवा का इससे बडा कोई जरिया नहीं होता है. शिक्षा ऐसा दान है जो कभी खत्म नहीं होता शिक्षा हासिल करने वाले को भी इससे अधिक लाभ किसी और वस्तु से नहीं हो सकता है. पुस्तकों से बड़ा कोई दोस्त नहीं होता है.‘ यह कहना है भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजय प्रसाद की पत्नी पूजा प्रसाद का.

बिहार के रहने वाले संजय प्रसाद की शादी लखनऊ में रहने वाली पूजा से हो गई. 22 साल की पूजा शादी के बाद सबसे पहले रानीखेत गई. वहां रहने के दौरान पहाड़ के जीवन और शिक्षा के स्तर को देखा और महसूस किया कि ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों में शिक्षा का प्रसार करना चाहिये. वहां के स्कूल के साथ जुड़कर इस काम को शुरू किया. वह कहती है ‘पहाड़ों पर उस समय जाना और भी कठिन था. हम अपना समय लोगों को शिक्षा देने में व्यतीत करने लगे. इसके बाद जहां भी पति की पोस्टिंग होती थी. मैं वहां किसी ना किसी स्कूल के साथ जुड कर बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगती थी.‘

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आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट है

आपने बच्चों के मनोविज्ञान को लंबे समय से देखा और समझा है. तब और अब के बच्चों में क्या फर्क महसुस करती है ? पूजा प्रसाद कहती है ‘मेरी अपनी एक बेटी है. इसके साथ ही साथ स्कूलों में शिक्षा देने के समय बहुत सारे बच्चों से बात करने और समझने का मौका मिला. इस दौरान मैने देखा है कि आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट है. आज के बच्चों को ज्यादा एक्सपोजर मिलता है. पैरेंट्स उनकी बात को अच्छी तरह से सुनते है. कैरियर का चुनाव करने में अब औप्शन पहले से अधिक है. आज के बच्चे पैरेंटस पर बहुत निर्भर नहीं है. इसमें सोशल मीडिया जैसी जानकारी के बदलते दौर का भी बड़ा योगदान है.

बच्चों को अपनी मां का सहयोग तो पहले भी अधिक मिलता था. आज के समय में पिता भी बहुत जिम्मेदार और सहयोगी हो गये है. स्कूलों में पैरेंटस मीटिंग में आने वाले पैरेंटस में पिता की संख्या अधिक होने लगी है. बच्चों की बात को पहले से अधिक सुना और उनको महत्व दिया जाने लगा है. इससे बच्चों के विकास में अधिक सुधार हुआ है. आज कम उम्र में ही बच्चे परिपक्व नजर आने लगे है. ऐसे बच्चों के फैसले भी अब बच्चों वाले फैसले नहीं रहते. अब वह समझदारी भरे फैसले करने लगे हैं.

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लड़कियों के साथ भेदभाव कम हुआ है

पूजा प्रसाद कहती है ‘आज के समय में लड़कियों को अपना कैरियर चुनने की आजादी मिलने लगी है. लड़का लड़की का भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है. जहां शिक्षित लोग है वह इस तरह का भेदभाव नहीं करते है. तमाम पैरेंटस ऐसे भी है जो एक लड़की के साथ बेहद खुश है. वह अपनी बेटी को उसी तरह से पालते है जैसे लड़के का पालन पोषण करते. बेटियों को शिक्षा ही नहीं मनचाहा कैरियर और आगे का रास्ता चुनने में उसको मदद करते है. पहले जहां लोग यह चाहते थे कि बेटी डाक्टर या शिक्षक ही बने अब उसकी पंसद के दूसरे कैरियर चुनने की भी आजादी दी जाने लगी है. शिक्षा का प्रभाव लडकियों के जीवन पर दिख रहा है. वह घर बाहर दोनो ही संभाल रही है. उनको पुरूषो का साथ भी बराबर मिल रहा है. इसमें शिक्षा का ही सबसे बडा योगदान है. पढ़े लिखे लोगों ने पुराने विचारों को छोडते हुये आगे बढ़ने का काम किया है.

फिटनेस जरूरी:

महिलाएं जिस तरह से समाज में सक्रिय भूमिका अदा कर रही है उसमें सबसे जरूरी है कि वह अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखे. इसके साथ ही साथ जो भी क्रियेटिव करना चाहती हो वह भी करे. मैं खुद रोज 6 किलोमीटर का वॉक करती हॅू. इसके साथ में नियमित एक्सरसाइज और योगा भी करती हॅू. मुझे इंटीरियर का शौक है. घर में समय देने की कोशिश करती हॅू. मुझे किताबे पढ़ने का शौक मां से मिला है. मेरी मां ‘सरिता’ पत्रिका की नियमित पाठक थी. बच्चों को वह ‘चंपक‘ पढ़ने के लिये देती थी. ऐसे में बचपन से ही मेरी आदत किताबे पढने के लग गई. इसी तरह मेरी बेटी भी पढ़ने की शौकीन है. वह अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर रही है. पढ़ाई का महत्व हर किसी के जीवन में है. मैं आज भी बच्चों को पढाने का काम कर रही हॅू. आगे भी मैं इसको जारी रखने का प्रयास करूंगी.

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