Serial Story: त्रिशंकु (भाग-3)

शादी के बाद भी सबकुछ ठीक था. उन के बीच न तो तनाव था, न ही सामंजस्य का अभाव. दोनों को ही ऐसा नहीं लगा था कि विपरीत आदतें उन के प्यार को कम कर रही हैं. नवीन भूल से कभी कोई कागज फाड़ कर कचरे के डब्बे में फेंकने के बजाय जमीन पर डाल देता तो रुचि झुंझलाती जरूर थी पर बिना कुछ कहे स्वयं उसे डब्बे में डाल देती थी. तब उस ने भी इन हरकतों को सामान्य समझ कर गंभीरता से नहीं लिया था.

अपने सीमित दायरे में वे दोनों खुश थे. स्नेहा के होने से पहले तक सब ठीक था. रुचि आम अमीर लड़कियों से बिलकुल भिन्न थी, इसलिए स्वयं घर का काम करने से उसे कभी दिक्कत नहीं हुई.

हां, स्नेहा के होने के बाद काम अवश्य बढ़ गया था पर झगड़े नहीं होते थे. लेकिन इतना अवश्य हुआ था कि स्नेहा के जन्म के बाद से उन के घर में रुचि की मां, बहनों का आना बढ़ गया था. उन लोगों की मीनमेख निकालने की आदत जरूरत से ज्यादा ही थी. तभी से रुचि में परिवर्तन आने लगा था और पति की हर बात उसे बुरी लगने लगी थी. यहां तक कि वह उस के कपड़ों के चयन में भी खामियां निकालने लगी थी.

उन का विवाह रुचि की जिद से हुआ था, घर वालों की रजामंदी से नहीं. यही कारण था कि वे हर पल जहर घोलने में लगे रहते थे और उन्हें दूर करने, उन के रिश्ते में कड़वाहट घोलने में सफल हो भी गए थे.

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काम करने वाली महरी दरवाजे पर आ खड़ी हुई तो वह उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि उस से ही कितनी बार कहा है कि जरा रोटी, सब्जी बना दिया करे. लेकिन उस के अपने नखरे हैं. ‘बाबूजी, अकेले आदमी के यहां तो मैं काम ही नहीं करती, वह तो बीबीजी के वक्त से हूं, इसलिए आ जाती हूं.’

नौकर को एक बार रुचि की मां ले गई थी, फिर वापस भेजा नहीं. तभी रुचि ने यह महरी रखी थी.

नवीन के बाबूजी को गुजरे 7 साल हो गए थे. मां वहीं ग्वालियर में बड़े भाई के पास रहती थीं. भाभी एक सामान्य घर से आई थीं, इसलिए कभी तकरार का प्रश्न ही न उठा. उस के पास भी मां मिलने कई बार आईं, पर रुचि का सलीका उन के सरल जीवन के आड़े आने लगा. वे हर बार महीने की सोच कर हफ्ते में ही लौट जातीं. वह तो यह अच्छा था कि भाभी ने उन्हें कभी बोझ न समझा, वरना ऐसी स्थिति में कोई भी अपमान करने से नहीं चूकता.

वैसे, रुचि का मकसद उन का अपमान करना कतई नहीं होता था, लेकिन सभ्य व्यवहार की तख्ती अनजाने में ही उन पर यह न करो, वह न करो के आदेश थोपती तो मां हड़बड़ा जातीं. इतनी उम्र कटने के बाद उन का बदलना सहज न था. वैसे भी उन्होंने एक मस्त जिंदगी गुजारी थी, जिस में बच्चों को प्यार से पालापोसा था, हाथ में हर समय आदेश का डंडा ले कर नहीं.

रुचि के जाने के बाद उस ने मां से कहा था कि वे अब उसी के पास आ कर रहें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया था, ‘बेटा, तेरे घर में कदम रखते डर लगता है, कोई कुरसी भी खिसक जाए तो…न बाबा. वैसे भी यहां बच्चों के बीच अस्तव्यस्त रहते ज्यादा आनंद आता है. मैं वहां आ कर क्या करूंगी, इन बूढ़ी हड्डियों से काम तो होता नहीं, नाहक ही तुझ पर बोझ बन जाऊंगी.’

रुचि के जाने के बाद नवीन ने उस के मायके फोन किया था कि वह अपनी आदतें बदलने की कोशिश करेगा, बस एक बार मौका दे और लौट आए. पर तभी उस के पिता की गर्जना सुनाई दी थी और फोन कट गया था. उस के बाद कभी रुचि ने फोन नहीं उठाया था, शायद उसे ऐसी ही ताकीद थी. वह तो बच्चों की खातिर नए सिरे से शुरुआत करने को तैयार था पर रुचि से मिलने का मौका ही नहीं मिला था.

शाम को दफ्तर से लौटते वक्त बाजार की ओर चला गया. अचानक साडि़यों की दुकान पर रुचि नजर आई. लपक कर एक उम्मीद लिए अंदर घुसा, ‘हैलो रुचि, देखो, मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं. मेरी बात सुनो.’

पर रुचि ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती. तुम अपनी मनमानी करते रहे हो, अब भी करो. मैं वापस नहीं आऊंगी. और कभी मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’

‘ठीक है,’ नवीन को भी गुस्सा आ गया था, ‘मैं बच्चों से मिलना चाहता हूं, उन पर मेरा भी अधिकार है.’

‘कोई अधिकार नहीं है,’ तभी न जाने किस कोने से उस की मां निकल कर आ गई थी, ‘वे कानूनी रूप से हमारे हैं. अब रुचि का पीछा छोड़ दो. अपनी इच्छा से एक जाहिल, गंवार से शादी कर वह पहले ही बहुत पछता रही है.’

‘मैं रुचि से अकेले में बात करना चाहता हूं,’ उस ने हिम्मत जुटा कर कहा.

‘पर मैं बात नहीं करना चाहती. अब सबकुछ खत्म हो चुका है.’

उस ने आखिरी कोशिश की थी, पर वह भी नाकामयाब रही. उस के बाद कभी उस के घर, बाहर, कभी बाजार में भी खूब चक्कर काटे पर रुचि हर बार कतरा कर निकल गई.

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नवीन अकसर सोचता, ‘छोटीछोटी अर्थहीन बातें कैसे घर बरबाद कर देती हैं. रुचि इतनी कठोर क्यों हो गई है कि सुलह तक नहीं करना चाहती. क्यों भूल गई है कि बच्चों को तो बाप का प्यार भी चाहिए. गलती किसी की भी नहीं है, केवल बेसिरपैर के मुद्दे खड़े हो गए हैं.

‘तलाक नहीं हुआ, इसलिए मैं दोबारा शादी भी नहीं कर सकता. बच्चों की तड़प मुझे सताती रहेगी. रुचि को भी अकेले ही जीवन काटना होगा. लेकिन उसे एक संतोष तो है कि बच्चे उस के पास हैं. दोनों की ही स्थिति त्रिशंकु की है, न वापस बीते वर्षों को लौटा सकते हैं न ही दोबारा कोशिश करना चाहते हैं. हाथ में आया पछतावा और अकेलेपन की त्रासदी. आखिर दोषी कौन है, कौन तय करे कि गलती किस की है, इस का भी कोई तराजू नहीं है, जो पलड़ों पर बाट रख कर पलपल का हिसाब कर रेशेरेशे को तौले.

वैसे भी एकदूसरे पर लांछन लगा कर अलग होने से तो अच्छा है हालात के आगे झुक जाएं. रुचि सही कहती थी, ‘जब लगे कि अब साथसाथ नहीं रह सकते तो असभ्य लोगों की तरह गालीगलौज करने के बजाय एकदूसरे से दूर हो जाएं तो अशिक्षित तो नहीं कहलाएंगे.’

रुचि को एक बरस हो गया था और वह पछतावे को लिए त्रिशंकु की भांति अपना एकएक दिन काट रहा था. शायद अभी भी उस निपट गंवार, फूहड़ और बेतरतीब इंसान के मन में रुचि के वापस आने की उम्मीद बनी हुई थी.

वह सोचने लगा कि रुचि भी तो त्रिशंकु ही बन गई है. बच्चे तक उस के खोखले सिद्धांतों व सनक से चिढ़ने लगे हैं. असल में दोषी कोई नहीं है, बस, अलगअलग परिवेशों से जुड़े व्यक्ति अगर मिलते भी हैं तो सिर्फ सामंजस्य के धरातल पर, वरना टकराव अनिवार्य ही है.

क्या एक दिन रुचि जब अपने एकांतवास से ऊब जाएगी, तब लौट आएगी? उम्मीद ही तो वह लौ है जो अंत तक मनुष्य की जीते रहने की आस बंधाती है, वरना सबकुछ बिखर नहीं जाता. प्यार का बंधन इतना कमजोर नहीं जो आवरणों से टूट जाए, जबकि भीतरी परतें इतनी सशक्त हों कि हमेशा जुड़ने को लालायित रहती हों. कभी न कभी तो उन का एकांतवास अवश्य ही खत्म होगा.

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Serial Story: त्रिशंकु (भाग-2)

नवीन ने रुचि की व्यवस्थित ढंग से जीने की आदत के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश की पर हर बार वह हार जाता. बचपन से ही मां, बाबूजी ने उसे अपने ऊपर इतना निर्भर बना कर रखा था कि वह अपनी तरह से जीना सीख ही न पाया. मां तो उसे अपनेआप पानी भी ले कर नहीं पीने देती थीं. 8 वर्षों के वैवाहिक जीवन में वह उन संस्कारों से छुटकारा नहीं पा सका था.

वैसे भी नवीन, रुचि को कभी संजीदगी से नहीं लेता था, यहां तक कि हमेशा उस का मजाक ही उड़ाया करता था, ‘देखो, कुढ़कुढ़ कर बालों में सफेदी झांकने लगी है.’

तब वह बेहद चिढ़ जाती और बेवजह नौकर को डांटने लगती कि सफाई ठीक से क्यों नहीं की. घर तब शीशे की तरह चमकता था, नौकर तो उस की मां ने जबरदस्ती कन्नू के जन्म के समय भेज दिया था.

सुबह की थोड़ी सब्जी पड़ी थी, जिसे नवीन ने अपने अधकचरे ज्ञान से तैयार किया था, उसी को डबलरोटी के साथ खा कर उस ने रात के खाने की रस्म पूरी कर ली. फिर औफिस की फाइल ले कर मेज पर बैठ गया. बहुत मन लगाने के बावजूद वह काम में उलझ न सका. फिर दराज खोल कर बच्चों की तसवीरें निकाल लीं और सोच में डूब गया, ‘कितने प्यारे बच्चे हैं, दोनों मुझ पर जान छिड़कते हैं.’

एक दिन स्नेहा से मिलने वह उस के स्कूल गया था. वह तो रोतेरोते उस से चिपट ही गई थी, ‘पिताजी, हमें भी अपने साथ ले चलिए, नानाजी के घर में तो न खेल सकते हैं, न शोर मचा सकते हैं. मां कहती हैं, अच्छे बच्चे सिर्फ पढ़ते हैं. कन्नू भी आप को बहुत याद करता है.’

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अपनी मजबूरी पर उस की पलकें नम हो आई थीं. इस से पहले कि वह जीभर कर उसे प्यार कर पाता, ड्राइवर बीच में आ गया था, ‘बेबी, आप को मेम साहब ने किसी से मिलने को मना किया है. चलो, देर हो गई तो मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी.’

उस के बाद तलाक के कागज नवीन के घर पहुंच गए थे, लेकिन उस ने हस्ताक्षर करने से साफ इनकार कर दिया था. मुकदमा उन्होंने ही दायर किया था पर तलाक का आधार क्या बनाते? वे लोग तो सौ झूठे इलजाम लगा सकते थे, पर रुचि ने ऐसा करने से मना कर दिया, ‘अगर गलत आरोपों का ही सहारा लेना है तो फिर मैं सिद्धांतों की लड़ाई कैसे लड़ूंगी?’

तब नवीन को एहसास हुआ था कि रुचि उस से नहीं, बल्कि उस की आदतों से चिढ़ती है. जिस दिन सुनवाई होनी थी, वह अदालत गया ही नहीं था, इसलिए एकतरफा फैसले की कोई कीमत नहीं थी. इतना जरूर है कि उन लोगों ने बच्चों को अपने पास रखने की कानूनी रूप से इजाजत जरूर ले ली थी. तलाक न होने पर भी वे दोनों अलगअलग रह रहे थे और जुड़ने की संभावनाएं न के बराबर थीं.

नवीन बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा. युवा पुरुष के लिए अकेले रात काटना बहुत कठिन प्रतीत होता है. शरीर की इच्छाएं उसे कभीकभी उद्वेलित कर देतीं तो वह स्वयं को पागल सा महसूस करता. उसे मानसिक तनाव घेर लेता और मजबूरन उसे नींद की गोली लेनी पड़ती.

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उस ने औफिस का काफी काम भी अपने ऊपर ले लिया था, ताकि रुचि और बच्चे उस के जेहन से निकल जाएं. दफ्तर वाले उस के काम की तारीफ में कहते हैं, ‘नवीन साहब, आप का काम बहुत व्यवस्थित होता है, मजाल है कि एक फाइल या एक कागज, इधरउधर हो जाए.’

वह अकसर सोचता, घर पहुंचते ही उसे क्या हो जाया करता था, क्यों बदल जाता था उस का व्यक्तित्व और वह एक ढीलाढाला, अलमस्त व्यक्ति बन जाता था?

मेजकुरसी के बजाय जब वह फर्श पर चटाई बिछा कर खाने की फरमाइश करता तो रुचि भड़क उठती, ‘लोग सच कहते हैं कि पृष्ठभूमि का सही होना बहुत जरूरी है, वरना कोई चाहे कितना पढ़ ले, गांव में रहने वाला रहेगा गंवार ही. तुम्हारे परिवार वाले शिक्षित होते तो संभ्रांत परिवार की झलक व आदतें खुद ही ही तुम्हारे अंदर प्रकट हो जातीं पर तुम ठहरे गंवार, फूहड़. अपने लिए न सही, बच्चों के लिए तो यह फूहड़पन छोड़ दो. अगर नहीं सुधर सकते तो अपने गांव लौट जाओ.’

उस ने रुचि को बहुत बार समझाने की कोशिश की कि ग्वालियर एक शहर है न कि गांव. फिर कुरसी पर बैठ कर खाने से क्या कोई सभ्य कहलाता है.

‘देखो, बेकार के फलसफे झाड़ कर जीना मुश्किल मत बनाओ.’

‘अरे, एक बार जमीन पर बैठ कर खा कर देखो तो सही, कुरसीमेज सब भूल जाओगी.’ नवीन ने चम्मच छोड़ हाथ से ही चावल खाने शुरू कर दिए थे.

‘बस, बहुत हो गया, नवीन, मैं हार गई हूं. 8 वर्षों में तुम्हें सुधार नहीं पाई और अब उम्मीद भी खत्म हो गई है. बाहर जाओ तो लोग मेरी खिल्ली उड़ाते हैं, मेरे रिश्तेदार मुझ पर हंसते हैं. तुम से तो कहीं अच्छे मेरी बहनों के पति हैं, जो कम पढ़ेलिखे ही सही, पर शिष्टाचार के सारे नियमों को जानते हैं. तुम्हारी तरह बेवकूफों की तरह बच्चों के लिए न तो घोड़े बनते हैं, न ही बर्फ की क्यूब निकाल कर बच्चों के साथ खेलते हैं. लानत है, तुम्हारी पढ़ाई पर.’

नवीन कभी समझ नहीं पाया था कि रुचि हमेशा इन छोटीछोटी खुशियों को फूहड़पन का दरजा क्यों देती है? वैसे, उस की बहनों के पतियों को भी वह बखूबी जानता था, जो अपनी टूटीफूटी, बनावटी अंगरेजी के साथ हंसी के पात्र बनते थे, पर उन की रईसी का आवरण इतना चमकदार था कि लोग सामने उन की तारीफों के पुल बांधते रहते थे.

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शादी से पहले उन दोनों के बीच 1 साल तक रोमांस चला था. उस अंतराल में रुचि को नवीन की किसी भी हरकत से न तो चिढ़ होती थी, न ही फूहड़पन की झलक दिखाई देती थी, बल्कि उस की बातबात में चुटकुले छोड़ने की आदत की वह प्रशंसिका ही थी. यहां तक कि उस के बेतरतीब बालों पर वह रश्क करती थी. उस समय तो रास्ते में खड़े हो कर गोलगप्पे खाने का उस ने कभी विरोध नहीं किया था.

नींद की गोली के प्रभाव से वह तनावमुक्त अवश्य हो गया था, पर सो न सका था. चिडि़यों की चहचहाहट से उसे अनुभव हुआ कि सवेरा हो गया है और उस ने सोचतेसोचते रात बिता दी है.

चाय का प्याला ले कर अखबार पढ़ने बैठा, पर सोच के दायरे उस की तंद्रा को भटकाने लगे. प्लेट में चाय डालने की उसे इच्छा ही नहीं हुई, इसलिए प्याले से ही चाय पीने लगा.

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Serial Story: त्रिशंकु (भाग-1)

नवीन को बाजार में बेकार घूमने का शौक कभी नहीं रहा, वह तो सामान खरीदने के लिए उसे मजबूरी में बाजारों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. घर की छोटीछोटी वस्तुएं कब खत्म होतीं और कब आतीं, उसे न तो कभी इस बात से सरोकार रहा, न ही दिलचस्पी. उसे तो हर चीज व्यवस्थित ढंग से समयानुसार मिलती रही थी.

हर महीने घर में वेतन दे कर वह हर तरह के कर्तव्यों की इतिश्री मान लेता था. शुरूशुरू में वह ज्यादा तटस्थ था लेकिन बाद में उम्र बढ़ने के साथ जब थोड़ी गंभीरता आई तो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझने लगा था.

बाजार से खरीदारी करना उसे कभी पसंद नहीं आया था. लेकिन विडंबना यह थी कि महज वक्त काटने के लिए अब वह रास्तों की धूल फांकता रहता. साइन बोर्ड पढ़ता, दुकानों के भीतर ऐसी दृष्टि से ताकता, मानो सचमुच ही कुछ खरीदना चाहता हो.

दफ्तर से लौट कर घर जाने को उस का मन ही नहीं होता था. खाली घर काटने को दौड़ता. उदास मन और थके कदमों से उस ने दरवाजे का ताला खोला तो अंधेरे ने स्वागत किया. स्वयं बत्ती जलाते हुए उसे झुंझलाहट हुई. कभी अकेलेपन की त्रासदी यों भोगी नहीं थी. पहले मांबाप के साथ रहता था, फिर नौकरी के कारण दिल्ली आना पड़ा और यहीं विवाह हो गया था.

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पिछले 8 वर्षों से रुचि ही घर के हर कोने में फुदकती दिखाई देती थी. फिर अचानक सबकुछ उलटपुलट हो गया. रुचि और उस के संबंधों में तनाव पनपने लगा. अर्थहीन बातों को ले कर झगड़े हो जाते और फिर सहज होने में जितना समय बीतता, उस दौरान रिश्ते में एक गांठ पड़ जाती. फिर होने यह लगा कि गांठें खुलने के बजाय और भी मजबूत सी होती गईं.

सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए नवीन ने फ्रिज खोला और बोतल सीधे मुंह से लगा कर पानी पी लिया. उस ने सोचा, अगर रुचि होती तो फौरन चिल्लाती, ‘क्या कर रहे हो, नवीन, शर्म आनी चाहिए तुम्हें, हमेशा बोतल जूठी कर देते हो.’

तब वह मुसकरा उठता था, ‘मेरा जूठा पीओगी तो धन्य हो जाओगी.’

‘बेकार की बकवास मत किया करो, नाहक ही अपने मुंह की सारी गंदगी बोतलों में भर देते हो.’

यह सुन कर वह चिढ़ जाता और एकएक कर पानी की सारी बोतलें निकाल जूठी कर देता. तब रुचि सारी बोतलें निकाल उन्हें दोबारा साफ कर, फिर भर कर फ्रिज में रखती.

जब बच्चे भी उस की नकल कर ऐसा करने लगे तो रुचि ने अपना अलग घड़ा रख लिया और फ्रिज का पानी पीना ही छोड़ दिया. कुढ़ते हुए वह कहती, ‘बच्चों को भी अपनी गंदी आदतें सिखा दो, ताकि बड़े हो कर वे गंवार कहलाएं. न जाने लोग पढ़लिख कर भी ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?’

बच्चों का खयाल आते ही उस के मन के किसी कोने में हूक उठी, उन के बिना जीना भी कितना व्यर्थ लगता है.

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रुचि जब जाने लगी थी तो उस ने कितनी जिद की थी, अनुनय की थी कि वह बच्चों को साथ न ले जाए. तब उस ने व्यंग्यपूर्वक मुंह बनाते हुए कहा था, ‘ताकि वे भी तुम्हारी तरह लापरवाह और अव्यवस्थित बन जाएं. नहीं नवीन, मैं अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. मैं उन्हें एक सभ्य व व्यवस्थित इंसान बनाना चाहती हूं. फिर तुम्हारे जैसा मस्तमौला आदमी उन की देखभाल करने में तो पूर्ण अक्षम है. बिस्तर की चादर तक तो तुम ढंग से बिछा नहीं सकते, फिर बच्चों को कैसे संभालोगे?’

नवीन सोचने लगा, न सही सलीका, पर वह अपने बच्चों से प्यार तो भरपूर करता है. क्या जीवन जीने के लिए व्यवस्थित होना जरूरी है?

रुचि हर चीज को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने की आदी थी.  विवाह के 2 वर्षों बाद जब स्नेहा पैदा हुई थी तो वह पागल सा हो गया था. हर समय गोदी में लिए उसे झुलाता रहता था. तब रुचि गुस्सा करती, ‘क्यों इस की आदत बिगाड़ रही हो, गोदी में रहने से इस का विकास कैसे होगा?’

रुचि के सामने नवीन की यही कोशिश रहती कि स्नेहा के सारे काम तरतीब से हों पर जैसे ही वह इधरउधर होती, वह खिलंदड़ा बन स्नेहा को गुदगुदाने लगता. कभी घोड़ा बन जाता तो कभी उसे हवा में उछाल देता.

वह सोचने लगता कि स्नेहा तो अब 6 साल की हो गई है और कन्नू 3 साल का. इस साल तो वह कन्नू का जन्मदिन भी नहीं मना सका, रुचि ने ही अपने मायके में मनाया था. अपने दिल के हाथों बेबस हो कर वह उपहार ले कर वहां गया था पर दरवाजे पर खड़े उस के पहलवान से दिखने वाले भाई ने आंखें तरेरते हुए उसे बाहर से ही खदेड़ दिया था. उस का लाया उपहार फेंक कर पान चबाते हुए कहा था, ‘शर्म नहीं आती यहां आते हुए. एक तरफ तो अदालत में तलाक का मुकदमा चल रहा है और दूसरी ओर यहां चले आते हो.’

‘मैं अपने बच्चों से मिलना चाहता हूं,’ हिम्मत जुटा कर उस ने कहा था.

‘खबरदार, बच्चों का नाम भी लिया तो. दे क्या सकता है तू बच्चों को,’ उस के ससुर ने ताना मारा था, ‘वे मेरे नाती हैं, राजसी ढंग से रहने के अधिकारी हैं. मेरी बेटी को तो तू ने नौकरानी की तरह रखा पर बच्चे तेरे गुलाम नहीं बनेंगे. मुझे पता होता कि तेरे जैसा व्यक्ति, जो इंजीनियर कहलाता है, इतना असभ्य होगा, तो कभी भी अपनी पढ़ीलिखी, सुसंस्कृत लड़की को तेरे साथ न ब्याहता, वही पढ़ेलिखे के चक्कर में जिद कर बैठी, नहीं तो क्या रईसों की कमी थी. जा, चला जा यहां से, वरना धक्के दे कर निकलवा दूंगा.’

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वह अपमान का घूंट पी कर बच्चों की तड़प मन में लिए लौट आया था. वैसे भी झगड़ा किस आधार पर करता, जब रुचि ने ही उस का साथ छोड़ दिया था. वैसे उस के साथ रहते हुए रुचि ने कभी यह नहीं जतलाया था कि वह अमीर बाप की बेटी है, न ही वह कभी अपने मायके जा कर हाथ पसारती थी.

रुचि पैसे का अभाव तो सह जाती थी, लेकिन जब जिंदगी को मस्त ढंग से जीने का सवाल आता तो वह एकदम उखड़ जाती और सिद्धांतों का पक्ष लेती. उस वक्त नवीन का हर समीकरण, हर दलील उसे बेमानी व अर्थहीन लगती. रुचि ने जब अपने लिए घड़ा रखा तो नवीन को महसूस हुआ था कि वह चाहती तो अपने पिता से कह कर अलग से फ्रिज मंगा सकती थी पर उस ने पति का मान रखते हुए कभी इस बारे में सोचा भी नहीं.

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REVIEW: घरेलू हिंसा की शिकार तीन औरतो की सशक्त कथा है ‘ब्लैक विडो’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः रिलायंस बिग सिनर्जी

निर्देशकः बिसरा दास गुप्ता

कलाकारः शमिता शेट्टी, मोना सिंह,  स्वास्तिका मुखर्जी,  निखिल भांबरी,  शरद केलकर, राइमा सेन,  मोहन कपूर, आमीर अली,  परमब्रता चक्रवर्ती व अन्य.

अवधिः 12 एपीसोड, 32 से 39 मिनट के , कुल अवधि सात घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

फिनलैंड की 2014 की चर्चित वेबसीरीज ‘मुस्टट लेस्केट’ का कई देशों में रीमेक हो चुका है. अब ‘रिलायंस बिग सिनर्जी’ भी उसी का रीमेक ‘ब्लैक विडो’ लेकर आया है, जो कि 18 दिसंबर को ‘जी 5’पर स्ट्रीम हुई है. इस वेब सीरीज को बोल्ड कहा जा कसता है. क्योंकि इस वेब सीरीज में शुरू से आखिर तक बरकरार तीनों महिला किरदार समाज की हास्य व भावनाओं के साथ उस हकीकत को बयां करती हैं,  जिनके बारे में अक्सर बात ही नहीं जाती.

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कहानीः

यह कहानी तीन सहेलियों जयति सरदेसाई(स्वास्तिका मुखर्जी), वीरा मेहरोत्रा (मोना सिंह )और कविता( शमिता शेट्टी )की, जो कि अपने अपने पतियों से परेशान हैं. जयति सरदेसाई का पति ललित(मोहन कपूर)उसके साथ आए दिन मारपीट करते रहते हैं. कविता का पति नीलेश उसे भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हुए पैसांे की खातिर पर पुरूषों के पास भेजता रहता है. जबकि वीरा का पति जतिन मेहरोत्रा(शरद केलकर)तनाव के चलते उसे पीटने के साथ ही बेटी सिया को मार डालने की धमकी देता है. जतिन व वीरा के पास अपना आलीशान मकान है. जतिन का ‘जेएम ट्रांसपोर्ट’का बड़ा व्यापार है, जिसमें रामी शेख भागीदार है. इन तीनों सहेलियों के सामने अब दो विकल्प हैं. एक खुद आत्महत्या कर लें अथवा अपने पतियों की हत्या कर दें. तीनों योजना बनाकर नाव में बम लगाकर अपने पतियों की हत्या कर डालती हैं. पर उनकी मुसीबत खत्म नही होती. पुलिस इंस्पेक्टर पंकज मिश्रा(परमब्रता चट्टोपाध्याय)अपनी सहायक रिंकू के साथ इस केस की जांच में जुट जाता है. पुलिस के साथ इन तीनों महिलाओं का चूहे बिल्ली का खेल शुरू रहता है, तो वहीं तीनों सेक्स संबंधों में लीन होकर अपनी स्वच्छंद जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास करती हैं.

केस आगे बढ़ता है तो उंगली ‘मेडी फार्मा’की मालकिन इनाया ठाकुर(राइमा सेन)की तरफ भी बढ़ती हैं. इनाया और‘जे एम ट्रांसपोर्ट’ का अपना संबंध है. इनाया एक वैक्सीन का अवैध तरीके से इंसानो पर ट्रायल बिहार के कोडा गांव में करा रही है,  जहां वैक्सीन पहुंचाने की जिम्मेदारी जतिन की है. इनाया लैब में एक वायरस तैयार कर रही है, जिसे फैलाकर लोगों को बीमार करेगी,  फिर उस बीमारी से लोगों को ठीक करने के लिए अपनी वैक्सीन बेचेगी. इनाया ने पुलिस कमिश्नर बैरी सिंह ढिल्लों (सव्यसाची चक्रवर्ती) को फांस रखा है.

इधर इन तीनों औरतों की जिंदगी में उथल पुथल मचती रहती है. जयति के पति ललित का बेटा जहांन सरदेसाई (निखिल भांबरी), जयति से सारी संपत्ति हासिल करने के लिए आ जाता है. तो वहीं तीनों मेंसे एक यानी कि जतिन मेहरोत्रा जीवित बच जाता है. कइ घटनाक्रम बदलते है. रामी शेख सहित कईयों की हत्याएं होती हैं. इनाया भी कर्ई लोगों की हत्या कराती रहती है. जतिन के जीवित वापस आने से पहले रीवा की जिंदगी में एलडी (आमीर अली ) का प्रवेश हो चुका होता है. उधर कविता की जिंदगी में कई प्रेमी आते हैं. कविता और जहान सरदेसाई के बीच सेक्स संबंध बनते हैं. अंततः कहानी एक नए मोड़ पर पहुंचती है.

लेखन व निर्देशनः

फिनलैंड की वेब सीरीज का भारतीय करण करते समय फिल्मकार बिरसा दास गुप्ता यह भूल गए कि फिनलैंड और भारत की संस्कृति में बहुत बड़ा अंतर है. पहले दो एपीसेाड देखते हुए दर्शक इससे तोबा कर लेता है, जबकि उसके बाद कहानी रोचक मोड़ से होकर गुजरती है. मगर पहले दो एपीसोड इस वेब सीरीज का बंटा धार कर देते हैं. पहले दो एपीसोड में मोहन कपूर की हरकते व संवाद भारतीय परिवेश में बहुत गलत हैं. कोई भी भारतीय पुरूष खुले आम अपनी पत्नी से पर पुरूष के साथ चिपकने के लिए नहीं कहेगा. इतना ही नहीं दो एपीसोड तक औरतों के साथ घरेलू हिंसा की बात है, मगर उसके बाद यह गायब हो जाता है. फिर अपराध, रहस्य व पुलिस की जांच व भ्रष्टाचार की कहानी हावी हो जाती है.

इसमें रोमांचक तत्व का घोर अभाव है. पर बकवास हास्यप्रद घटना जरुर हैं. कुछ दृश्य भावनात्मक बन पड़े हैं. मगर कहानी को खींचने के चक्कर में बेवजह के कई किरदार व दृश्य जोड़े गए हैं, जिनकी वजह समझ से परे है. पटकथा लेखन में काफी गड़बड़ियां हैं. यह पूरी सीरीज सही ढंग से बनती तो आठ एपीसोड से ज्यादा लंबी न होती. निर्देशक के तौर पर कई जगह बिरसा दासगुप्ता मात खा गए हैं. फिल्मकार का सारा ध्यान महिला किरदारों द्वारा अपने तरीके से पितृसत्ता को नष्ट करने  पर है, जिससे  वह महिलाएं अपने जीवन को नियंत्रित कर सकें और घरेलू हिंसा से आजादी का जश्न मना सकें.

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अभिनयः

सेक्स फोबिया कविता के किरदार को शमिता शेट्टी अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान करती हैं, पर कई जगह वह ओवर एक्टिंग करते नजर आती हैं. मोना सिंह स्थिरता लाती हैं. और निरंतर मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार रही जयति के किरदार में स्वास्तिका मुखर्जी ने शानदार अभिनय किया है. जतिन मेहरोत्रा के रूप में शरद केलकर,  ललित सरदेसाई के रूप में मोहन कपूर और नीलेश थरूर के रूप में विपुल रॉय अपनी भूमिका में ठीक ठाक हैं. शरद केलकर ने मुख्य कलाकार के रूप में अपने शानदार अभिनय के साथ सस्पेंस बनाए रखा,  जो हर तरफ से छाया हुआ है और कथा पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते है. सही मायनों में यह वेब सीरीज तो शरद केलकर की है. मजबूत,  चालाक,  सेक्सी उद्यमी इनाया के पेचीदा किरदार में राइमा सेन अपना जबरदस्त प्रभाव छोड़ती हैं. उन्होने अपने किरदार केे ग्रे रंगों को जीवंतता के साथ उकेरा है. जहांन के किरदार में निखिल भंाबरी अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं, वैसे उनके किरदार का सही ढंग से चरित्र चित्रण नही किया गया.

आखिर क्यों विराट की इस बात को मानने से सई ने किया इनकार

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein) इन दिनों फैंस के बीच जगह बनाने में कामयाब हो गया है. जहां एक तरफ सीरियल टीआरपी की लिस्ट में टौप 5 में पहुंच गया है तो वहीं सीरियल में हाई-वोल्टेज ड्रामा फैंस को एंटरटेन कर रहा है. इसी बीच शो में जल्द ही नया ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

दोबारा होंगी शादी की रस्में

सीरियल में सई और विराट की शादी हो चुकी है और दोनों अपने घर भी आ चुका है. वहीं विराट के इस फैसले से घरवाले नाराज है. लेकिन पाखी भी काफी हैरान हो गई है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शादी की रस्मों की तैयारी करने के लिए विराट की मां सभी को मना लेती है.

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पाखी करती है सवाल

 

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जहां विराट, पाखी को सई का ख्याल रखने और गाइड करने के लिए कहता है. वहीं सई ये सारी बातें सुन लेती है. हालांकि पाखी विराट से पूछती है कि अब उसकी जिंदगी में उसके लिए क्या जगह है, जिस सवाल पर विराट बात बदलने की कोशिश करता नजर आता है.

सई कहती है ये बात

आप देखेंगे कि विराट सई से पीएमटी के रिजल्ट आने औऱ उसका एडमिशन नागपुर के अच्छे कॉलेज में कराने की बात कहेगा. साथ ही पाखी को उसकी पढ़ाई में मदद करने लिए कहेगा. वहीं पाखी कहती है कि आपको और कोई नहीं मिला मुझे गाइड करने के लिए. ये सुनकर सभी चौंक जाते हैं.

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मैं ओटीटी प्लेटफार्म पर कुछ हद तक सेसरशिप की पक्षधर हूं- रिनी दास

इंसान सोचता कुछ है, मगर उसकी तकदीर उसे कहीं और ले जाती है. ऐसा ही कुछ गैर फिल्मी परिवार में पली बढ़ी रिनी दास के साथ हुआ. बचपन से डाक्टर बनने का सपना देखती रही रिनी दास पढ़ने में तेज हाने के बावजूद जब मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास न कर पायी, तब परविार वालों के दबाव के चलते स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर ली. उसके बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एमबीए कर ले, मगर उन्होने अपने पिता से एक वर्ष का समय लेकर अभिनय के क्षेत्र में अपनी तकदीर आजमाने मुंबई पहुंच गयी. तब से पांच वर्ष हो गए. पिछले पांच वर्ष से वह मुंबई में टीवी सीरियल व लघु फिल्मों में लगातार अभिनय करती आ रही हैं. इन दिनों वह लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’को लेकर चर्चा में है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्यारह अवार्ड मिल चुके हैं.

प्रस्तुत है रिनी दास से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. . .

आप कलकत्ता से मुंबई कब आयीं और क्या आपने अभिनय की कोई ट्रेनिंग हासिल की है?

-मैं कलकत्ता से मुंबई 2015 में आयी थी. अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली. काम करते हुए सीखती जा रही हूं. मगर मुंबई पहुंचने के बाद मैंने अपना हिंदी का उच्चारण दोष खत्म करने के लिए दो माह तक एक शिक्षक से हिंदी भाषा जरुर सीखी. मुझे लगता है कि मेरे अंदर अभिनय ईश्वर प्रदत्त है.

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मुंबई में किस तरह का संघर्ष रहा और पहला सीरियल कैसे मिला था?

-मुंबई पहुंचने के बाद छह माह तक काफी संघर्ष रहा. इसकी मूल वजह यह रही कि मैं मुबई और बॉलीवुड या टीवी इंडस्ट्री में किसी को जानती नहीं थी. मुझे यहां की कार्यशैली की जानकारी नहीं थी. मुझे पता नहीं था कि कहां और कैसे आॅडीशन दिए जाते हैं. मगर मुझे पर ईश्वर की कृपा रही कि चार माह बाद ही मुझे ‘गोल्ड जिम’का विज्ञापन करने का मौका मिला. मैंने इसके लिए कैलेंडर भी शूट किए थे. इसके बाद मुझे एकता कपूर के प्रोडक्शन हाउस ‘बालाजी टेलीफिल्मस’के एपीसोडिक सीरियल ‘गुमराह’ के कुछ एपीसोड करने का अवसर मिला. इसमें मेरे अभिनय से प्रभावित होकर एकता कपूर ने मुझे अपने नए सीरियल‘‘परदेस मे है मेरा दिल’’में अभिनय करने के लिए चुन लिया. फिर लगातार काम मिलता रहा.

पिछले पांच वर्ष के आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

-सच कहूं तो मुझे इन पॉंच वर्ष में काफी कुछ सीखने को मिला. सीरियल ‘परदेस में है मेरा दिल’से मुझे कलाकार के तौर पर पहचान मिली. मैने एक सीरियल किया था, जिसे काफी शोहरत मिली, पर इससे मुझे फायदा नहीं हुआ. तो उतार चढ़ाव भरा कैरियर रहा. मैने हमेशा फल या फायदे की उम्मीद न करते हुए अपने काम को पूरी इमानदारी, लगन व मेहनत से करती आ रही हूं. मैंने कभी भी किसी भी सीरियल या किरदार को छोटा नहीं समझा. जब मुझे यूट्यूब चैनल ‘कंटेंट का कीड़ा’ की लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’मिली, तो मैने नहीं सोचा था कि इसका असर इतना अधिक होगा. मगर अब तक इसे कई लाख लोग देख चुके हैं और करीबन ग्यारह अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत भी किया जा चुका है. इसके बावजूद मैने इसमें दिल लगाकर अभिनय किया था. मेरे पास जब किसी भी सीरियल या फिल्म या लघु फिल्म का आफर आता है, तो मैं यह नहीं देखती कि मुझे इससे क्या फायदा होगा. मैं यह देखती हूं कि इसमें काम करते हुए मैं इंज्वॉय कर पाउंगी और क्या यह विषय व किरदार मुझे पसंद है. मैं अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती हूं, बाकी तो दर्शकों पर निर्भर करता है कि उन्हे क्या पसंद आता है और क्या नहीं.

माना कि जब मैं मुंबई आयी, उस वक्त मेरे सपने कुछ ज्यादा बडे़ थे. मैने जिंदगी में  कुछ बन जाने का सपना देखा था. पॉच वर्ष हो गए, पर वहां तक नहीं पहुंच पायी है. पर ही जिंदगी का संघर्ष है. हमें हमेशा अपना काम इमानदारी से करते रहना चाहिए. पर मुझे उम्मीद है कि मेरे सपने एक न एक दिन अवश्य पूरे होंगे. सच कहूं तो मेरा सपना बौलीवुड में एक अच्छी फिल्म में हीरोईन बनना है और पूरी उम्मीद है कि एक दिन मेरा यह सपना जरुर पूरा होगा.

लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’आपको कैसे मिली?जब आपके पास आफर आया, तो आपके दिमाग में सबसे पहला विचार क्या आया था?

-मैं ‘कंटेंट का कीड़ा’के शिवांकर अरोरा और शिप्रा अरोरा के संग पहले भी एक कार्यक्रम‘डेटिंग सियापा’किया था. इसमें मैंने एक एपीसोड किया था. इस तरह हमारा पुराना संबंध रहा है. उसके बाद शिप्रा ने लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’के अंकिता के किरदार को मुझे ही ध्यान में रखकर लिखा था. उन्होने इसे लिखते समय ही सोच लिया था कि वह मुझे ही इस किरदार में अभिनय करने के लिए याद करेंगें. जब उन्होने मुझे पहली बार कहानी सुनायी, तो इमानदारी की बात यही है कि मुझे यह कहानी बहुत पसंद आयी थी. मेरे दिमाग में आया कि सुप्रीम कोर्ट व सरकार से समलैंगिक प्यार की इजाजत मिल चुकी है, अब यह अपराध नही रहा. फिर भी लोग अभी भी समलैंगी लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं. बाहर की दुनिया में हो तो ठीक है, मगर यदि अपने ही घर में ऐसा कोई हो, तब क्या हो?हम उससे यही कहते हैं कि अपना दिमाग सही करो. यह कोई बीमारी है, ऐसा नहीं होता. वगैरह वगैरह. . इस पर यह फिल्म बात करती है. जब मैने यह कहानी सुनी, तो मुझे बहुत अच्छी लगी. इसमें मां की कहानी है, जो अपनी बेटी से कहती है कि, ‘कुछ भी हो जाए दुनिया में, मैं तुम्हारे साथ हूं ’ इस तरह परिवार का सहयोग मिलना बहुत जरुरी है. मैने सोचा कि अगर यह कहानी अच्छी ढंग से बन गयी, तो लोगों के पास पहुंचेगी, जिससे कुछ बदलाव आ सकता है. खुशी की बात यह है कि यह अच्छी बन गयी. लोग इसे देख रहे हैं और अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही हैं. मैं तो चाहती हूं कि हमारी इस फिल्म से धीरे धीरे लोगों की सोच व उनका नजरिया बदल जाए.

कहने का अर्थ यह कि यह लघु फिल्म‘एलजीबीटी क्यू’ समुदाय और उनके रिश्तों की बात करती है. यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर बात की जानी चाहिए. हमारी फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’’में इस बात का चित्रण है कि जब आपके परिवार का कोई सदस्य ‘गे’हो तो ऐसे में क्या करना चाहिए. वह इसे कैसे स्वीकार करें और ‘लोग क्या कहेंगे’की परवाह न करें. क्योंकि अंततः प्यार सिर्फ प्यार है. मैने इसमें अंकिता का किरदार निभाया है.

आप अंकिता के किरदार को कैसे परिभाषित करना चाहेंगी?

-अंकिता बहुत ही ताकतवर व स्वतंत्र लड़की है. उसे पता है कि उसे क्या चाहिए. वह समाज की सुनकर चुप नहीं रह सकती. उसे जो चाहिए, वह उसे चाहिए. अंकिता और उसकी सहेली पल्लवी में रात व दिन का फर्क है. अंकिता को पता है कि उसे अपनी जिंदगी में क्या चाहिए. अंकिता को किसी बात के लिए कोई शर्म नहीं है. अगर वह समलैंगिक है, उसे एक लड़की पल्लवी से प्यार है, तो उसे इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी नहीं है. वह समाज में सभी के सामने खुलकर कहने को तैयार है कि उसकी सच्चाई यह है और वह एक लड़की से प्यार करती है. अंकिता यह सच अपने परिवार और समाज से कह चुका है. लोग उसे स्वीकार करें या न करें, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपनी जिंदगी में खुश रहना चाहती हैं.

क्या आपने अपने अंकिता के किरदार को निभाने से पहले एलजीबीटी कम्यूनिटी को लेकर शोधकार्य भी किया था?

-मैने काफी शोध किया. मुंबई में मेरे दोस्तों में से कई एलजीबीटी समुदाय से ही हैं. वैसे लंबे समय से इस विषय में मेरी रूचि रही है, तो मैंने पहले भी काफी कुछ पढ़ा था. मैने बहुत नजदीक से देखा है कि इस समुदाय के लोगों का किस तरह का संघर्ष रहता है. यह किस तरह के लोग होते हैं. मैंने तो यही पाया कि यह हमारी ही तरह के लोग हैं, अलग नहीं है. मैने देखा है कि वह कैसे सब कुछ स्वीकार करते हैं, उनकी चाल ढाल कैसी है. लोगो का उनके प्रति नजरिया कैसा रहता है.

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आप खुद क्या संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं?

-मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि प्यार तो प्यार ही होता है. उसमें जाति, धर्म, जेंडर लिंग आदि नहीं देखा जाता. आज के वक्त में सच्चा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है. जब प्यार मिलता है, तो उस पर आप शर्तें न लगाएं कि उसे इस लिंग का होना चाहिए या इस धर्म या इस जाति का होना चाहिए. किसी को किसी से प्यार हो रहा है,  तो उसे प्यार करने दीजिए, उसे उसकी जिंदगी में खुश रहने दीजिए. प्यार अपने आप में एक सुंदर व अच्छा अनुभव है. लोगों को प्यार को उसके पवित्र रूप में ही अनुभव करने दीजिए.

इसके अलावा कुछ कर रही हैं?

-फिलहाल तो ‘अमेजन’की वेब सीरीज के लिए बात चल रही है. कोरोना के चलते बहुत कुछ रूक गया था. अब धीरे धीरे शुरू होने वाला है.

लघु फिल्म‘लव नोज नो जेंडर’को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए. मगर लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या रही ?

-मेरी आपेक्षा से कहीं ज्यादा अच्छी  प्रतिक्रियाएं मिली हैं. जबकि इस फिल्म की विषयवस्तु ऐसी है कि मुझे डर था कि नगेटिब प्रतिकियाएं ही ज्यादा मिलेंगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. 96 प्रतिशत सकारात्मक प्रतिकियाएं मिल रही हैं. इसके मायने यह हुए कि लोगों की सोच बदल रही है. मेरे अभिनय की काफी तारीफ की जा रही है.  अभिनेत्री मानिनी मिश्रा के साथ मैंने पहला सीरियल किया था, उन्होने मेरी इस लघु फिल्म को देखकर बहुत अच्छी बात कही है. उन्होने संदेश भेजा कि एक कलाकार के तौर पर जिस तरह से मेरे अंदर बदलाव आया है, उसका उन्हे गर्व है. यह सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए. क्योंकि मैने तो उनके सामने ही अभिनय सीखा है.

आपको नहीं लगता कि यही लघु फिल्म ‘यूट्यूब’की बजाय किसी बडे़ ओटीटी प्लेटफार्म पर आती, तो आपको ज्यादा फायदा मिलता?

-बिलकुल. . हर प्लेटफार्म की अपनी अच्छाइयां और बुराइयां है. अगर यही लघु फिल्म ‘नेटफ्लिक्स’या ‘अमेजन’ पर आती, तो इसका सौ प्रतिशत ज्यादा फायदा मिलता. क्योंकि दर्शक बढ़ जाते. फिर भी यह फिल्म यूट्यूब कम्यूनिटी में सबसे अच्छा कर रही है.

बौलीवुड में किन लोगों के साथ काम करना चाहती हैं?

-राज कुमार राव सर का काम मुझे बहुत अच्छा लगता है. मैं चाहती हूं कि उनके साथ एक फिल्म करुं. शाहरुख खान पर तो मेरा बचपन से क्रश रहा है. जब भी मैने सिनेमा देखा, तो मुझे उनका काम बहुत पसंद आया. मेरा सपना है कि कम से कम एक बार मुझे शाहरुख खान सर के साथ किसी फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर मिले. निर्देशकों में राज कुमार हिरानी, अनुराग कश्यप, अनुराग बसु सहित कई निर्देशकों के साथ काम करने की इच्छा है.

लॉक डाउन के दौरान आपने किस तरह से समय बिताया?

-लॉक डाउन से पहले मैने काफी काम किया था, तो पहले तीन माह घर पर रहकर आराम करने का मौका पाकर सकून मिला. इस बीच मैने अपने घर के इंटीरियर पर कुछ काम किया. घर मे रहकर एक्सरसाइज किया. मगर तीन माह के बाद मुझे लॉक डाउन का लॉक डाउन समझ में आने लगा. तब लगा कि मैने इतने समय से काम नहीं किया है. पता नही कब काम शुरू होगा, फिर काम मिलेगा या मुझे नए सिरे से संघर्ष करना पड़ेगा. तो एक कठिन स्थिति रही.  ऐसा लगा कि उम्मीदें चली गयी. मोटीवेशन चला गया. तो कुछ चिंताएं परेशान करने लगी थी. पर मैने अपने आपको समझाते हुए अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दिया. मैने यूट्यूब पर कई मोटीवेशनल वीडियो देखे. मैने काफी कुछ सीखा. मैने खुद को मानसिक रूप से तैयार किया. पहले रिजेक्शन होने पर तकलीफ होती थी, पर पांच वर्ष के अनुभव से मैने सीखा कि आडीशन में रिजेक्शन का मतलब मेरी अभिनय की खराबी नहीं, बल्कि उस किरदार के योग्य न होना रहा. मैंने कुछ फिल्में देखी. मैने सीखा कि अपने पैशन में लगे रहिए.

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अब आप किस तरह के किरदार करना चाहती हैं?

-मुझे स्ट्रांग किस्म की लड़कियों के किरदार निभाना है. मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं, जिसमें मैं कुछ मिसाल दे सकूं. लड़कियों को अहसास हो कि उन्हे भी इस तरह की लड़की बनना है, जो जानती है कि उन्हें जीवन में क्या करना है. दबकर रहने वाली लड़की का किरदार नहीं निभाना है. मैं अक्सर सुनती हूं कि वह फेमिनिस्ट है, मगर हकीकत में कितनी लड़कियां या औरतें फेमिनिस्ट हैं. इसलिए मुझे स्ट्रांग ओमन के किरदार निभाने हैं. मुझे ऐसे किरदार निभाने हैं, जिसे देखकर दूसरों को प्रेरणा मिले. मैं परदे पर बेचारी नही बनना चाहती.

फिटनेस मंत्रा क्या है?

-मैं एक्सरसाइज करती हूं. योगा करती हूं. मैने योगा सीखा भी है.

शौक क्या हैं?

-खाना बनाने का शौक है. दो बिल्लियां हैं, उनके साथ समय बिताती हूं.

सोशल मीडिया पर कितना व्यस्त रहती हैं?

-मैं सिर्फ इंस्टाग्राम पर तस्वीरें पोस्ट करती रहती हूं. मैने देखा है कि लोग सोशल मीडिया पर झूठ ज्यादा परोसते हैं. अपनी जिंदगी को इतनी बेहतरीन दिखाते हैं कि देखने वाले को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगती है. मुझे यह पसंद नही. लोग दिखाते हैं कि देखो उनकी जिंदगी कितनी परफैक्ट है, जबकि होती नहीं है. लोग हकीकत कम बयां करते है. वैसे वर्तमान समय में हमारे क्षेत्र में सोशल मीडिया बहुत महत्वपूर्ण हो गया है.

बौलीवुड और वेब सीरीज में एक्सपोजर काफी है. आप किस हद तक एक्सपोजर के लिए तैयार हैं?

-मेरी कुछ तो समस्याएं हैं. कुछ दायरे हैं, जिन्हे मैं पार नहीं करना चाहूंगी. वैसे अब तक मैने एक्सपोजर बिलकुल नहीं किया है. में ऐसा काम करना चाहूंगी, जिसे मेरे परिवार के सदस्य भी देख सकें. इन दिनों फिल्मों की बनिस्बत वेब सीरीज में एक्सपोजर बढ़ गया है. मेरी राय में कहानी या दृश्य की मांग है, तो ठीक, मगर महज दर्शक को आकर्षित करने के लिए सेक्स, नग्नता परोसा जाना गलत है. ओटीटी प्लेटफार्म पर कई वेब सीरीज में जबरन इस तरह के दृश्य परोसे जा रहे हैं, यह मुझे पसंद नहीं. यदि दृश्य व कहानी की मांग होगी, तो मै उस पर विचार करुंगी.

अब ओटीटी प्लेटफार्म को सेंसरशिप के दायरे में लाने की चर्चाएं गर्म हैं. आपकी राय?

-मेरी राय में कुछ हद तक ओटीटी प्लेटफार्म की वेब सीरीज व फिल्मों पर सेंसरशिप होनी चाहिए. यह ऐसा प्लेटफार्म था, जहंा लोग बिना सेंसरशिप के अपनी कहानियां परोस सकते थे, मगर कई लोगों ने इस स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाया. कई वेबसीरीज ऐसी हैं, जिनके ट्रेलर भी परिवार के सामने देखते हुए आपको शर्म आएगी. यदि सेंसरशिप आएगी, तो लोग बेवजह ऐसे दृश्य जबरन ठूंसने से बाज आएंगे और बेहतरीन कथानक वाली वेब सीरीज बन सकेंगी. मैं तो सेंसरशिप के पक्ष में हूं.

आप अभिनय के क्षेत्र से जुड़ने की इच्छा रखने वाली लड़कियों से क्या कहना चाहेंगी?

-यह सपनों का शहर है.  यहां लोगों के सपने पूरे होते है. यह शहर देखने में जितना सुंदर है, उतना ही सख्त भी है. छोटे शहरों से आने वाले लोग यहां के ग्लैमर में खो जाते हैं. छोटे शहर के लोग दूसरों पर बहुत जल्दी विश्वास करते हैं, उन्हे ऐसा करने से बचना चाहिए. अपने आप से पूछिए, दस लोगों से विचार विमर्श कीजिए, उसके बाद निर्णय लीजिए. बौलीवुड में फ्राड बहुत होते हैं. यहॉं आंख मूंदकर  लोगो पर यकीन मत कीजिए. आप गूगल कर जानकार हासिल कीजिए. सोशल मीडिया पर जानकारी हासिल कीजिए.

पुराने प्रेम का न बजायें ढोल

भारतीय साहित्य से लेकर धार्मिक कथाओं में सेक्स न ही हीन माना गया है और न ही इसमें किसी तरह की पाबंदी का जिक्र है. लेकिन जहां तक बात समाज की आती है, इसका रूप बिलकुल विपरीत दिखता है. यहां सेक्स को लेकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन मजाक और गालियां आम बात हैं. किशोरों को इसकी जानकारी देने में शर्म आती है लेकिन पवित्र बंधन के नाम पर विवाह में बांधना और किसी अनजान के साथ सेक्स करने को मजबूर करना रिवाज है. ऐसा ही एक बड़ा अंतर मर्द और औरत के प्रति कामइच्छाओं को लेकर रहा. यहां कौमार्य सिर्फ लड़की के लिए मायने रखता है, पुरुष का इससे कोई लेना देना नहीं है.

यानि लड़की का विवाह पूर्व सेक्स करना पाप की श्रेणी में आता रहा, हालांकि पुरुष इससे अछूता ही रहा. लेकिन बदलाव श्रृष्टी का नियम है. और कुछ ऐसा ही बदलाव समाज मेें दस्तक दे रहा है, जहां कुछ प्रतिशत ही सही पर विवाह पूर्व सेक्स एक समझदार जोड़े की शादी को प्रभावित नहीं कर रहा. इसलिए पुराने प्रेम का ढोल बजाते रहने से कोई सुख नहीं, कोई समझदारी नहीं.

शहरीकरण का प्रभा

भारत में शहर तीन श्रेणी में हैं. एक सर्वेक्षण में श्रेणी के शहरों में हुई पूछताछ में सामने आया कि अब दोनो ही साथी एक दूसरे के अतीत को वर्तमान में नहीं लाते. साथ ही तलाक और अफेयर के बढ़ते चलन में ऐसा संभव नहीं है कि कोई विवाह पूर्व सेक्स से अछूता रहा हो. ये अब एक सामान्य बात रह गई है. मायने ये रखता है कि विवाह के बाद साथी एक दूसरे के साथ कितने ईमानदार हैं. वहीं बी और सी श्रेणी के शहरों में करीब 40 से 48 प्रतिशत लोग विवाह पूर्व सेक्स का समर्थन करते हैं लेकिन सिर्फ अपने मंगेतर के साथ. उनका मानना है कि मंगनी के बाद शादी उसी व्यक्ति से होनी है तो सेक्स शादी के पहले हो या बाद में, मायने नहीं रखता.

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सवाल वर्जिनिटी का

अब एक सवाल आता है, वर्जिनिटी का. हर समय यही क्यों उम्मीद की जाए कि लड़की वर्जिन हो? मेरे पास इस प्रश्न का सीधा उत्तर तो नहीं है लेकिन मुझे अभी हाल में ही आयी एक मूवी ‘विक्की डोनर’ के  वो डायलॉग याद आ रहे हैं जब रिश्ते की बात के समय आयुष्मान को पता चलता है कि लड़की (यामी गौतम) का कोई अतीत भी है. तब आयुष्मान सीधा सवाल करता है कि, “सेक्स हुआ था क्या”? वह ‘नहीं’ में उत्तर देती है.  इस पर अपनी बात को जस्टिफाई करते हुए आयुष्मान कहता है कि “सेक्स नहीं हुआ तो उसे शादी थोड़ी न बोल सकते है”!!

कितना अजीब है यह विचार आज के ज़माने में. पर यह हमारे भारतीय समाज की हकीकत बयां करता है. इशारा करता है उस भारतीय मानसिकता की तरफ! मैं इसे अच्छा या बुरा नहीं कहूंगी. किसी के लिए फीलिंग होना, प्यार होना तो स्वाभाविक है . १० में से ९ लोगों के पास कुछ न कुछ कहानी भी होगी. लेकिन वह रिलेशनशिप कितना आगे बढ़ा यह जानने की  इच्छा  सिर्फ पुरुषों में ही नहीं महिलाओं में भी रहती हैं. लेकिन जब पुरुष को पता चलता है कि उसकी पत्नी शादी से पहले किसी के साथ रिलेशनशिप में थी तो वह यह बात आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता . कब शुरू होता है तानों और उल्हानों का सफर.

एक घटना –  सुनील अपनी पत्नी -संगीता से शादी के कुछ महीने बाद से ही  नाराज चल रहा था. सुनील को शक था कि उसकी पत्नी अब भी अपने पूर्व प्रेमी से मिलती है. लड़की के मायके वालों के हस्तक्षेप के बाद भी परिस्थितियां नहीं बदली और सुनील का दिन प्रतिदिन शक बढ़ता चला गया. जबकि विवाह से पहले सुनील खुद एक लड़की के साथ कुछ सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. बे बुनियाद शक की वजह से वह अक्सर अपनी पत्नी के ऊपर हाथ भी उठाने लगा. 1 दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि सुनील क्रोध में आपे से बाहर हो गया और उसने गुस्से में संगीता का गला दबा कर उस की हत्या कर दी .

पत्नी सती सावित्री क्यों

ऐसे आदमी जिनका खुद का एक पास्ट होता है, लेकिन उनको पत्नी सती सावित्री चाहिए होती है क्यों? उनके हिसाब से हर औरत का भी पास्ट होता है. यही सोच के साथ वो अपनी पत्नी पर कभी विश्वास नहीं करते. जबकि ऐसे व्यक्तियों को तो और ज्यादा अंडरस्टैंडिंग होना चाहिए.

उदाहरण -१

रीना जो कि एक कंपनी की एच आर है, इसलिए परेशान है क्योंकि उसके पति को रीना के शादी से पहले के सम्बन्धो के बारे में पता है और अब वो उस पर शक करता है! रीना ने बहुत सी बार अपने पति को समझाना चाहा कि सेक्स नहीं हुआ था और मैं विवाह से पहले वर्जिन थी. लेकिन फिर भी उसका पति शक करता है! अब यह कितनी ही दुःख की बात है और सिर्फ इतनी सी बात के लिए एक अच्छे रिश्ते के बाकि सारे पहलू दब जाते है और मजा चला जाता है.

पहलू और मुद्दे और भी हैं

एक रिश्ते के बहुत सारे पहलू होते हैं और यह उस समय की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. जबकि लम्बी अवधि में पुराने संबंध ज्यादा मैटर नहीं करते.  फिर भी राइ का पहाड़ बनाने की आदत से सब कुछ नष्ट हो जाता है. इसी कारण  हमारे देश में विर्जिनिटी रिकंस्ट्रक्शन की सर्जरी शुरू हो चुकी है! ये वो महिलायें/ लड़की करवातीं हैं जिनके शादी के पहले सेक्स संबंध थे और अब नहीं चाहतीं कि उनके पति को ये बात पता चले!

उदाहरण 2-

मैं यह सोचती हूं कि इस प्रकार के पुरुष माइनॉरिटी में है यानी ऐसी सोच वाले पुरुष आज के समय में कम होंगे. लेकिन हाल में हुआ किस्सा मुझे ऐसा न सोचने पर मजबूर कर रहा है! हुआ यूं कि मेरा एक मित्र (30साल)  जोकि आज की पीढ़ी का बहुत ही पढ़ा लिखा युवा है, वो इस बात पर अड़ा हुआ है की उसे ऐसी पत्नी चाहिए जो कि वर्जिन हो! हालांकि उसका तर्क ये है कि वो खुद वर्जिन है और चाहता है की उसका जीवन साथी भी वर्जिन हो! उसके नजरिए से देखें तो बात सही लगेगी लेकिन मेरा सवाल यह है कि  क्या पत्नी सिर्फ वर्जिन होने से रिश्ता अच्छा हो जायेगा?

योनी की झिल्ली सफल वैवाहिक जीवन की निशानी क्यों

आज भी हमारे समाज में लड़की के कुंवारेपन पर ज्यादा जोर दिया जाता है. शादी की पहली रात योनि की झिल्ली का फटना सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती है. कैसी है यह मानसिकता और यह समाज का दोहरा पन. सुहागरात के दौरान योनी की झिल्ली  के फटने को ही सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मान लिया जाता है.  यह मानसिकता अधिकांश पुरुष वर्ग की है चाहे वह किसी भी धर्म या समाज का हिस्सा हो. तभी तो आज भी बलात्कार के बाद मानसिक प्रताड़ना एक महिला वर्ग के हिस्से ही रहती है और बलात्कारी या शोषण करने वाला आजाद घूमता है.

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ना बदलने वाला समाज और पुराना दृष्टिकोण

लड़कियों या महिलाओं के प्रति यह सोच यह मानसिकता कोई नई बात नहीं इसकी जड़े बहुत पुरानी और गहरी हैं आज भी उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों या राज्यों में लड़की की पैदाइश के बाद खुशियां नहीं मनाते, बोझा ही मानते हैं. भले ही सरकार ने भ्रूण टेस्ट पर रोक लगा दी हो या उसे गिराने पर सजा या जुर्माना लगा दिया हो लेकिन आज भी बहुत से गांवों में , लड़की का पता चलने पर भ्रूण गिरा दिया जाता है या पैदा होते ही उसे किसी गटर में यह नाले में फेंक दिया जाता है वरना मार दिया जाता है. यानी समाज का दृष्टिकोण लही घिसा पिटा और पुराना.

शारीरिक संबंध के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं

मैं यहां कदापि नहीं कहूंगी कि शादी से पहले लड़के या लड़की को आपसी शारीरिक संबंध बनाने की छूट हो. पर यदि महिला के कुंवारेपन को पुरुष आंकता है तो पुरुष के कुंवारेपन को महिला को आंकने का अधिकार क्यों नहीं? यदि सेक्स की चाह पुरुष कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? कितने ही ऐसे  पुरुष होंगे जिन्होंने शादी से पहले किसी न  से शारीरिक संबंध बनाये होंगे या हस्तमैथुन किया होगा. फिर एक औरत के लिए पाबंदी क्यों?

आंकड़ों के अनुसार

आज के समय में पश्चिमी देशों में वर्जिनिटी नाम की कोई चिड़िया नहीं. वहां बालिग पुरुष व महिला आपसी रजामंदी से संबंध बना सकते हैं. जबकि हमारे देश में आज भी 71-79.9 प्रतिशत महिलाएं/ लड़कियां मिल जाएंगी जिन्होंने शादी से पहले किसी से संबंध न बनाया हो पर यही प्रतिशत पुरुषों मामले में सिर्फ 31-35 प्रतिशत ही होगा. इन देशों में अधिकतर लड़की लड़कियां 13 -16 साल की उम्र में ही सेक्सुअल रिलेशन बना लेते हैं और इन रिलेशंस के लिए वहां कोई तूल नहीं. इन देशों की संस्कृति में इसे मान्यता प्राप्त है.

तोड़नी होंगी वर्जनाएं

आज सोशल मीडिया का समय है. हम सबको अपनी सोच को बदल इन वर्जनाओं को तोड़ना होगा. समझना होगा कि शादी की शर्तों में वर्जिनिटी  है. एक औरत का चरित्र योनि की झिल्ली नहीं. वह भी पूरे सम्मान की अधिकारी है. वैसे तो आज  वर्जिनिटी अपने आप में कोई बड़ा सवाल नहीं माना जा सकता. इस सोच को बदलने के लिए मां बाप को भी अपनी मानसिकता को बदलना होगा. अगर लड़कों के लिए अपनी वर्जिनिटी खोना कोई बड़ा मुद्दा नहीं , तो लड़कियों के लिए भी नहीं होना चाहिए.

उम्र को क्यों करें नजरअंदाज

तीन पीढ़ी में देखा जाए तो विवाह की उम्र तेजी से बढ़ती हुई नजर आएगी. महिला सशक्तिकरण और जागरुक्ता की लहर तेज होने वाली ये पहली पीढ़ी है. जाहिर है आगे की पीढ़ियों के लिए संघर्ष थोड़ा कम होगा. दादी का बाल विवाह हुआ था, मां का विवाह 20 वर्ष तक हो चुका था पर आज विवाह 25-27 वर्ष से ऊपर होना आम बात है, लेकिन हार्मोनल बदलाव अपनी गति से ही चलते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो दादी ने आज की उम्र में होने वाले सेक्स से पहले ही सेक्स कर लिया था. लेकिन उन्हें समाज की इजाजत थी. लड़कियां आज इस इजाजत का इंतजार नहीं करतीं , लेकिन उनके साथी के लिए ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि वो भी इसी दौड़ में शामिल हैं. लेकिन फिलहाल ये समानता एक छोटे वर्ग तक ही सीमित है.

रिश्ते की नींव हो मजबूत

उसने तम्हें छुआ तो नहीं था, तुम उसके साथ कितनी बार सोर्इं? लड़की के शादी से पूर्व अफेयर की जानकारी अगर उसके पति को है तो ये सवाल लड़की के लिए आम बात रहे, भले वो उसे और उसके चरित्र को छलनी कर रहे हैं. हद्द तो यहां तक रही कि कुछ महिलओं को अपनी दूसरी शादी में भी ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा. पर क्या ये वाकई मायने रखता है? आज कुछ पुरुषों के पास इसका जवाब है. जिन्हें लगता है कि ये मायने नहीं रखता, वो अपनी शादी को सफल बना रहे हैं. कुछ प्रतिशत ही सही, लेकिन साथी के इस खुले बर्ताव और अपनी पत्नी पर भरोसे के कारण ही आज महिलाएं अपने अतीत में हुए अत्याचार के बारे में खुलकर बोल पा रही हैं. कहते हैं कि सफल विवाह की नींव भरोसा और ईमानदारी होती है. इसलिए अगर लड़की अपने अतीत की कहानी साथी को सुनाती है तो इससे साफ जाहिर है कि वो अपने रिश्ते में ईमानदार रहना चाहती है. वहीं अगर वो छुपाती है और रिश्ते पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देती तो ये बात मायने नहीं रखती कि विवाह पूर्व उसका किससे कैसा रिश्ता था.

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क्या कहता है धर्म

बहुत कम लोग होते हैं जो धर्म को बहुत नजदीक से समझते और जानते हैं. ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों को भरोसे के साथ मानते चले आते हैं क्योंकि ये बात किसी पूजनीय ने बताई होती है. ऐसे में वो अपनी बुद्धी नहीं लगाना चाहते. ऐसे में ज्यादातर पुरुष प्रधान का प्रभाव रहा जो महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा बनाता रहा. जरूरी नहीं उनकी बताई बात किसी वेद, धार्मिक कथा या पुराण में लिखी हो. अगर नजदीक से समझा जाए तो सेक्स के विषय में धार्मिक कथाओं में खासा खुलापन भी देखने को मिलेगा. हालांकि एक प्रकार का दोगलापन यहां भी है. कुंती को विवाहपूर्व जन्मा पुत्र त्यागना पड़ा था लेकिन उसी कुंती की वधु को पांच पतियों का साथ मिला. यहां अतंर सिर्फ विवाह का था. फिर भी कुछ कथाएं हैं जो इस खुलेपन की ओर इशारा करती हैं. कुरुवंश को आगे बढ़ाने में ऋषि पराशर और सत्यवति के विवाहपूर्व संतान व्यास का सहारा लिया गया था. महाभारत में इस बात का भी वर्णन है कि अगर कोई बिना ब्याही स्त्री अपने मन का सेक्स पार्टनर चुनती है और उससे सेक्स की इच्छा जताती है तो उस पुरुष को उसकी इच्छा का मान रखना होता है. ऐसा न करने पर वो दण्ड का अधिकारी होता है. अर्जुन का श्राप इसका एक उदाहरण है. इसके अलावा साहित्य के कुछ पन्नों में भी इस विषय में खासा खुलापन दिखाया गया है जहां खुले में संबन्ध बनाने, और नजदीकी रिश्तों में कामइच्छा प्रकट करने का जिक्र है.

6 मेकअप हैक्स: जो हर महिला के लिए जानना जरूरी 

आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में किसी के पास भी अपने लिए समय नहीं है, खासकर के महिलाओं के पास . कभी बच्चों को तैयार करने की जल्दी , तो कभी आफिस पहुंचने में देरी , तो तभी घर आफिस का स्ट्रैस , इसी कारण महिलाएं खुद के लुक पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. और जब खुद के लिए थोड़ा समय होता है तब खुद की तुलना अन्य महिलाओं से करती हैं तो बस यही सोचती है कि काश मेरा भी लुक इनकी तरह होता और पता नहीं इनके पास इतना टाइम कैसे होता है कि ये खुद पर फोकस कर पाती हैं. तो हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे मेकअप हैक्स के बारे में , जिन्हें करके हर बिजी महिला खुद को कभी भी कहीं भी सवार सकती हैं

हैक 1 –  झट से पाएं लैशेस पर मस्कारा जैसा टच 

पूरे दिन सिस्टम या फिर घर पर काम करते करते आंखें थक जाती हैं. खासकर पलके जो हमारी आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने में अहम रोल निभाती हैं,  वो थकान की वजह से केयर के अभाव में अपनी सुंदरता खो देती हैंऐसे में अगर आपके पास मस्कारा से अपनी पलकों को टचअप देने का टाइम नहीं है तो आपके पास वैसलीन तो जरूर होगी ही, जो सिर्फ लिप्स को मोइस्चर प्रदान करती है बल्कि आपकी लैशेस को भी सेकंडों में फ्रैश लुक देने का काम करती है. बस आप अपनी फिंगर पर थोड़ा सा वैसलीन लेकर उसे अपनी पलकों पर अप्लाई करके पाएं फ्रैश  खूबसूरत लुक

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हैक 2 – पाएं लौंग लास्टिंग लिपस्टिक का इफेक्ट 

क्या आप चाहती हैं कि आफिस में आपके लिप्स पर हमेशा लिपस्टिक टिकी रहे. लेकिन आपके पास हर समय लिप्स को रंगने का समय नहीं होता है तो हम आपको आसान सा हैक बताते हैं , जिससे आपकी लिपस्टिक आपके लिप्स पर लंबे समय तक चलने के साथसाथ आपका  फेस भी  हर समय फ्रैश फ्रैश नजर आएगा. क्योंकि कहते हैं कि लिपस्टिक मेकअप की जान होती है. ऐसे में आपको थोड़ा अपना लिपस्टिक लगाने का तरीका बदलना होगा. इसके लिए आप सबसे पहले लिपस्टिक का एक कोट लगाएं, फिर उस पर ब्रश की मदद से  थोड़ा सा पाउडर लगाकर उस पर लिपस्टिक का दूसरा कोट भी अप्लाई करें. इससे आपकी लिपस्टिक लंबे समय तक टिकेगी भी और आपको गौर्जियस लुक भी देने का काम करेगी

हैक 3 – लिप पिगमेंटेशन से पाएं छुटकारा 

क्या आपको लिप्स पर पिगमेंटेशन की शिकायत है. जब भी आप लिप्स पर लिपस्टिक अप्लाई करती हैं तो लिप्स पर वो ग्रेस नहीं पाता , जो आना चाहिए. ऐसे में कंसीलर आपके बड़े काम  का साबित होगा. बता दें कि कंसीलर कलर को ठीक करने, डार्क सर्कल्स  दागधब्बो को छुपाने का काम करता है. बस जरूरत होती है इसे अच्छे से स्किन पर ब्रश से ब्लेंड करने की. ऐसे में आप अपने लिप्स की पिगमेंटेशन को छुपाने के लिए सबसे पहले लिप्स पर अच्छे से कंसीलर अप्लाई करें , फिर उस पर लिपस्टिक अप्लाई करें. आपको तुरंत ही रिजल्ट नजर जाएगाइसे अप्लाई करने में समय भी कम लगता है और समस्या भी सेकंडों में दूर हो जाती है

हैक 4 –  पिंक ब्यूटी इन योर हैंड्स 

हर कोई चाहता है कि उसका फेस पिंकीपिंकी  नजर आए. लेकिन कहते हैं कि ये तो नैचुरली ही स्किन पर होता  है. लेकिन हम आपको बताते कि अगर आप अपनी स्किन पर पिंकिश सा टच चाहती हैं तो आप मेकअप जैसे फाउंडेशन या फिर प्राइमर लगाने से पहले कुछ सैकंड चेहरे पर बर्फ से मसाज करें , फिर अप्लाई करें मेकअप. यकीन मानिए आपके चेहरे पर पिंक ब्यूटी नजर आने लगेगी, जिसे देखकर लोग आपसे पूछे बिना नहीं रह पाएंगे

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हैक 5 –  आईब्रो को बनाएं परफेक्ट 

हर महिला चाहती है कि उसकी आईब्रो परफेक्ट हो, लेकिन चाहते हुए भी कई बार उन्हें काफी पतली आईब्रो को फेस करना पड़ता है, जो उन्हें बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. ऐसे में जब भी उनकी नजर अपनी ब्रो पर पड़ती है तो वे बस यही सोचती हैं कि कांश मेरी  आईब्रो भी परफेक्ट होती, मोती होती . ऐसे में आप मिनटों में काजल पेंसिल जो आंखों की रौनक को बढ़ाने का काम करती  है, उससे अपनी ब्रोस को परफेक्ट शेप दे सकती हैं. इस हैक से आपको मनचाहा लुक भी मिल जाएगा और देखने वाले भी देखकर पहचान नहीं पाएंगे कि ये काजल पेंसिल का कमाल है

हैक 6 –  सीसी क्रीम जो दे फ्रेश लुक 

फ्रैंड की पार्टी में जाना है , लेकिन आफिस से निकलते निकलते देर हो गई , जिस कारण खुद को खूबसूरत बनाने के लिए टाइम ही नहीं है. लेकिन आप यह भी नहीं चाहतीं कि आप अपना मुरझाया थकाथका चेहरा लेकर पार्टी में जाएं , तो आप अपने बैग से या फिर अपनी किसी फ्रैंड से  सीसी क्रीम मांगें  और फिर उसे चेहरे पर अप्लाई कर लें. आपको तुरंत ही चेहरे पर मोइस्चर , स्किन टोन इम्प्रूव होने के साथसाथ चेहरे पर फ्रैशनेस नजर आने लगेगी. आप भी अपने चेहरे पर इस रौनक को देखकर हैरान रह जाएंगी

भाई की शादी में शानदार लुक में पहुंची मारी ‘दीया और बाती हम’ एक्ट्रेस दीपिका सिंह, Photos Viral

स्टार प्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ से संध्या के नाम से घर घर में पहचान बनाने वाली दीपिका सिंह इन दिनों टीवी की दुनिया से दूर हैं. लेकिन वह अपने फैंस के लिए सोशलमीडिया पर अक्सर फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. इसी बीच भाई की शादी में दिल्ली पहुंची ने शादी की कई फोटोज शेयर की हैं, जिसमें उनके लुक बेहद खूबसूरत लग रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं दीपिका सिंह के भाई की शादी की खास फोटोज…

भाई की शादी में बन-ठनकर पहुंची दीपिका सिंह

भाई की शादी में अपने लुक को खूबसूरत बनाने के लिए दीपिका पर्पल कलर की साड़ी में नजर आई वहीं. इस साडी के साथ कुंदन ज्वैलरी कैरी ने उनके ओवरऔल लुक पर चार चांद लगा दिया.

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भाई की शादी में सेल्फी लेती दिखीं दीपिका

भाई की शादी हो और सेल्फी ना हो ऐसा हो सकता है. दीपिका भी भाई की शादी में खूब फोटोज क्लिक करवाती नजर आईं वहीं इसके साथ वह सेल्फी लेती भी दिखीं, जिसकी फैंस काफी तारीफ कर रहे हैं.

पिंक लहंगे में गिराई बिजलियां

भाई के शादी के फंक्शन के लिए दीपिका ने पिंक कलर का लहंगा कैरी किया था, जिस पर मिरर वर्क किया गया था. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो इसके साथ दीपिका ने सिंपल ज्वैलरी कैरी की थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

डांस करती नजर आईं दीपिका

शादी में दीपिका जितनी खूबसूरत लग रही थीं वहीं उनकी डांस भी लोगों को बेहद पसंद आ रहा था, जिसका सबूत उनकी यह फोटोज हैं. अपनी इन फोटोज में अपनी बहन के साथ डांस करते हुए ठुमके लगा रही हैं.

बता दें, दीपिका सिंह ने बीते दिनों मुंबई से सोशलमीडिया के जरिए अपनी मां, जो कि कोरोना से पीड़ित थीं. उनके इलाज के लिए सीएम केजरीवाल से मदद की गुहार लगाई थी, जिसके कारण वह सुर्खियों में आ गई थीं. हालांकि उनकी मां अब कोरोना मुक्त हो चुकी हैं, जिसका शुक्रिया उन्होंने सोशलमीडिया के जरिए ही किया था.

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हाथों के ऊपरी हिस्से पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने से मैं स्लीवलैस ड्रैस नहीं पहन पाती, मैं क्या करुं?

सवाल- 

मेरे हाथों के ऊपरी हिस्से पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. हालांकि इन से मुझे खुजली या दर्द नहीं होता, लेकिन इन की वजह से मैं स्लीवलैस ड्रैस नहीं पहन पाती हूं. इन को दूर करने का कोई उपाय बताएं?

जवाब- 

स्किन पर लाल रंग के छोटेछोटे दाने यानी बंप्स हो जाने की समस्या को केराटोटिस पाइलेरिस कहा जाता है. लगभग 50% लोग इस समस्या से पीडि़त हैं. बंप्स आमतौर पर लाल और सफेद रंग के छोटे पिंपल्स की तरह दिखते हैं. वास्तव में ये कुछ और नहीं, बल्कि डैड स्किन होती है, जिस से बालों के रोम में रुकावट पैदा हो सकती है. ये केवल आप के हाथों की भुजाओं पर ही नहीं, बल्कि कूल्हों और जांघों के पीछे भी हो सकते हैं. इन से छुटकारा पाने के लिए आप दिन में 2 बार अच्छे मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. आप सेलीसिलिक ऐसिड और अल्फा हाइड्रौक्सी चुन सकती हैं. विटामिन ए युक्त क्रीम से स्किन सैल्स की हालत बेहतर होती है. ऐक्सफोलीएशन से डैड स्किन सैल्स अच्छी तरह से उतर जाती हैं. आप ऐक्सफोलिएटिंग स्क्रब का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. ध्यान रहे कि कोई भी क्रीम लगाने से पहले डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह जरूर लें. बेहतर रिजल्ट पाने के लिए इन का नियमित रूप से इस्तेमाल करें.

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एक चमकती व निखरी हुई त्वचा पाना हर किसी का सपना होता है. परन्तु ऐसी त्वचा पाने के लिए हमें प्रयास भी उतने ही करने होते हैं. यदि आप हफ्ते में एक या दो बार अपनी स्किन को एक्सफोलिएट करते हैं तो आप के स्किन से सारी गन्दगी व डैड स्किन निकल जाती है जिससे आप को एक चमकती व दमकती त्वचा मिलती है. परन्तु स्क्रब भी कई प्रकार के होते हैं. यदि आप बेस्ट स्क्रब की बात करें तो ड्राई फ्रूट से बने कुछ स्क्रब आप की त्वचा के लिए सच में बहुत अच्छे होते हैं. ऐसे में हमारे सामने अप्रिकॉट स्क्रब भी आता है जो आप की स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है. इसे आप घर पर भी बना सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- करना चाहते हैं स्किन को एक्सफोलिएट तो इस होममेट अप्रिकोट स्क्रब से पाएं ग्लोइंग फेस

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