6 साल की थीं इमली एक्ट्रेस तभी हो गया था माता-पिता का तलाक, पढ़ें खबर

स्टार प्लस के सीरियल्स इन दिनों टीआपी चार्ट्स में धमाल मचाते नजर आ रहे हैं. जहां एक तरफ अनुपमा सीरियल पहले नंबर पर बना हुआ है तो वहीं दूसरा सीरियल इमली, जी टीवी के सीरियल कुंडली भाग्य को पीछे छोड़ दूसरे नंबर पर आ गया है, जिसके चलते सीरियल की कास्ट बेहद खुश है. इसी बीच शो की मेन लीड में नजर आ रही एक्ट्रेस सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan) ने अपनी जिंदगी के कुछ किस्से शेयर किए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या कहती शो की लीड एक्ट्रेस…

माता पिता का हो चुका है तलाक

इमली यानी सुंबुल ने अपनी जिंदगी से जुड़ी कई चीजों का खुलासा करते हुए एक इंटरव्यू में बताया कि उनके माता-पिता का बहुत पहले ही तलाक हो चुका है. वहीं, उनके पिता और उनकी बड़ी बहन ने ही उन्हें पाल पोसकर बड़ा किया है.

 

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पिता ने किया मुंबई आने का फैसला

 

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दरअसल, सुंबुल ने कहा कि “मेरे पिता कई डांस रिएलिटी शो में डांस कोरियोग्राफर रह चुके हैं. और वह हमेशा से चाहते थे कि उनके बच्चे कुछ बड़ा हासिल करें. उन्होंने देखा है कि उनके बच्चे यानी मैं और मेरी बड़ी बहन को डांस काफी पसंद है, जिसे देखते हुए उन्होंने साल 2016 में हमें दिल्ली से मुंबई आकर रहने का फैसला किया, जहां रहते हुए हम मनोरंजन की इस दुनिया में कदम रख सकें. इसलिए यह एक्टिंग का कीड़ा भी मेरे पिता द्वारा ही मुझे और मेरी बहन को दिया गया था.”

 

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शो के मेकर्स लाएंगे कहानी में नया मोड़

 

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शो के करंट ट्रैक की बात करें तो इमली अपने गांव आदित्य के साथ पहुंच चुकी है. हालांकि आदित्य उसे गांव में ही रहने के लिए कहेगा, जिसके लिए वह उसे खर्चा भी देगा. लेकिन इमली उसे यह कह कर मना कर देगी कि यह पैसे वह नही लेगी क्योंकि जब उसका पति ही अपना नही तो वह पैसे कैसे ले सकती है.

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स्किन टैनिंग हटाने के लिए बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं, कोई साइडइफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

सवाल-

शादी से पहले की गई शौपिंग में व्यस्त रहने के कारण मेरी स्किन टैन हो गई है. इसलिए मैं बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं. इस का कोई साइडइफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

जवाब-

जी नहीं, यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है इसलिए शरीर पर इस का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. इस के लिए खास तरह के प्रोडक्ट प्रयोग किए जाते हैं जैसे बौडी क्रीम, बौडी औयल, बौडी सौल्ट, बाम, बौडी पैक, ऐक्सफौलिएशन क्रीम वगैरह.

इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और

10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही साथ टैनिंग भी रिमूव होती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया ये स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है.

इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगाते हैं और सूख जाने के बाद इसे वाश कर के हटाया जाता है. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज की जाती है. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. मसाज से होने वाली दुलहन स्ट्रैसफ्री फील करती है व बौडी रीलैक्स होती है.

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क्या आप की स्किन भी बहुत डल दिखती है और उस पर समय समय पर पिंपल्स या विभिन्न प्रकार की खामियां देखने को मिलती हैं. तो हो सकता है आप का शरीर आप को यह संकेत देना चाहता हो कि उसे अब केयर की आवश्यकता है.

बॉडी पॉलिशिंग में आप के पूरे शरीर पर एक क्रीम व तेल की सहायता से मालिश की जाती है और इसके साथ उसे स्क्रब व एक्सफोलिएट भी किया जाता है ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए और आप को एक क्लीयर व साफ स्किन मिले. तो आइए जानते हैं बॉडी पॉलिशिंग के क्या क्या लाभ होते हैं और बॉडी पॉलिशिंग कैसे की जाती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है बौडी पौलिशिंग के फायदे और इसे करने का सही तरीका

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कोविड से जुड़े गैस्ट्रोइंटेस्टिनल लक्षण जो आपको इग्नोर नहीं करने चाहिए

कोविड-19 हमारे बीच लगभग एक साल से अधिक समय से है और समय के साथ साथ इसके लक्षण और भी गंभीर होते जा रहे हैं. हालांकि आपको डरना नहीं है बल्कि आपको सावधानियां बरतनी हैं. ताकि आप स्वयं को खतरे से बचा सकें. पहले इस वायरस के केवल गला दुखना, बुखार हो जाना, खांसी होना और थकान जैसे लक्षण ही शामिल थे. परन्तु अब इसमें कुछ अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं जिनमें से गैस्ट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं मुख्य हैं. जोकि लंबे समय तक आपको तंग कर सकती है. रिपोर्ट्स के अनुसार 5 में से एक मरीज को यह लक्षण देखने को मिलते हैं जिसमें जी घबराना, उल्टियां आना व डायरिया शामिल है.

कोविड-19 के बहुत मुख्य लक्षण

जैसे जैसे यह वायरस अधिक फैला है वैसे ही लोगों में अलग अलग लक्षण भी देखने को मिले हैं. यह लक्षण सभी में अलग अलग भी थे और कुछ ऐसे लक्षण थे जो सभी में कॉमन थे. हालांकि यह लक्षण अब भी बदलते रहते हैं परंतु कुछ लक्षण ऐसे है जो एक समान ही रहेंगे. तो आइए जानते हैं उन मुख्य लक्षणों के बारे में.

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  • बुखार होना
  • सूखी खांसी होना
  • गले में दर्द होना.
  • नाक बहना.
  • छाती में दर्द होना और सांस लेने में दिक्कत महसूस होना.
  • थकान होना.

गैस्ट्रोइंटेस्टिनल लक्षण जोकि कोविड 19 से जुड़े हुए हैं

एक स्टडी के मुताबिक जो लगभग 36 बार की गई है, 18 प्रतिशत मरीजों को गैस्ट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं होती हैं. जिनमें से केवल 16 प्रतिशत लोगों को ही इसके लक्षण देखने को मिलते हैं. हालांकि यह लक्षण हर इंसान में अलग अलग होते हैं. परन्तु कुछ लक्षण सभी में समान और बहुत गम्भीर होते हैं. निम्नलिखित कुछ ऐसी पाचन समस्याएं हैं जो वायरस से संक्रमित लोगों में बहुत आम है.

भूख लगना : यदि आपको भी कोरोना वायरस हो जाता है तो यह आपकी जिंदगी पर गहरा प्रभाव डाल सकता है जिसमें आपकी खाने की आदते भी शामिल हैं. यदि आप सूंघने व टेस्ट करने की क्षमता को खो देते हैं तो भी आपको भूख बहुत कम लगेगी. चाइना में हुई एक रिसर्च के मुताबिक जो लोग वायरस से संक्रमित हैं उनमें से लगभग 80 प्रतिशत मरीजों को यह समस्या देखने को मिलती है अर्थात उन्हें भूख बिल्कुल नहीं लगती है जिनसे उनके शरीर में कमजोरी आती है और कमजोरी आने की वजह से उन्हें थकान जैसे लक्षण और अधिक समय के लिए देखने को मिलेंगे जिससे उनकी सेहत और ज्यादा प्रभावित होती है.

जी मिचलाना : वुहान में होने वाली एक स्टडी के मुताबिक लगभग 10 प्रतिशत मरीजों में डायरिया व जी मिचलाने जैसी समस्या देखने को मिली हैं. यह दोनों ही लक्षण बुखार आने के लगभग  2 दिन पहले देखने को मिल रहे हैं.

डायरिया या पेट में दर्द होना : कोरोना वायरस में हमारे पेट मे मौजूद माइक्रोब्स को प्रभावित करने की भी क्षमता है जोकि हमारी गैस्ट्रोइंटेस्टिनल सेहत को प्रभावित कर सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग 5 में से एक मरीज को पेट दर्द की समस्या झेलनी पड़ती है चाहे उसके पीछे का कारण  डायरिया हो या एब्डॉमिनल पेन. स्टडीज के मुताबिक जिन लोगों को यह लक्षण देखने को मिलते हैं उन्हें ठीक होने में भी दूसरे मरीजों के मुकाबले अधिक समय लगता है.

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इसलिए आपको स्वयं को वायरस से बचाने के लिए हर प्रकार की सावधानी गाइडलाइन्स का पालन अवश्य करना चाहिए. इससे आप स्वयं को इतने बड़े खतरे से टाल पाएंगे. आपको बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. और यदि आपको कोई लक्षण देखने को मिलता भी है तो डर के मारे केवल घर पर ही न बैठें. तुरन्त डॉक्टर को दिखा कर उसका इलाज भी कराएं.

भारतीय युवा: क्या आज भी मां-बाप पर बोझ हैं?

इस 21वीं शताब्दी में भी 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय युवा अपनी शादी के लिए मां-बाप पर निर्भर हैं. जबकि अमरीका में महज 23 फीसदी, ब्रिटेन में करीब 17 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 38 फीसदी और औस्ट्रेलिया में सिर्फ 27 फीसदी नौजवान ही अपनी शादी के लिए अपने मां-बाप पर निर्भर हैं. अगर हिंदुस्तान में होने वाले 10 से 12 फीसदी प्रेमविवाहों की भी बात करें तो उनमें भी कम से कम 5 फीसदी शादियों में मां-बाप का सीधे रोल है. हिंदुस्तान में इस समय छोटे बड़े कोई 55 मैरिज ब्यूरो जैसी वेबसाइटें अस्तित्व में हैं जो शादी की उम्र के लड़कों और लड़कियों को आपस में मिलाते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि यह काम भी 60 फीसदी से ज्यादा युवा खुद अपने लिए लड़की या लड़का नहीं ढूंढ़ते बल्कि यह काम उनके मां-बाप उनके लिए करते हैं.

सवाल है क्या यह महज हमारी पारिवारिक संस्कृति की वजह से है? क्या भारतीय युवा अपने मां-बाप से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए वो चाहते हैं कि उनकी शादी का निर्णय वही लें और इस तरह उनका अपने बच्चों के साथ लगाव और बच्चों का अपने मां-बाप के साथ निर्भरता जाहिर हो? क्या हिंदुस्तानी युवा अपनी शादी का जिम्मा अपने मां-बाप पर छोड़कर उन्हें गर्व की अनुभूति कराते हैं? या फिर इस सबके पीछे भारतीय युवाओं की एक खास किस्म की बेफिक्री और निर्णय न ले पाने की खामी है? सुनने में बुरा लग सकता है, लेकिन असली बात यही है कि आज भी भारतीय युवा अपने निजी फैसलों को लंबी उम्र तक ले पाने में हिचकिचाते है या वाकई असमर्थ रहते हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? इसकी तह में जाएं तो सबसे बड़ी वजह भारत में बच्चों की परवरिश है.

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ऐसा नहीं है कि भारतीय युवा विदेशी युवाओं के मुकाबले कम कमाते हैं या बहुत देर से कमाते हैं. सच्चाई तो यह है कि भारतीय युवा अमेरिकन युवाओं के मुकाबले करीब 3 साल पहले ही कमाने लगते हैं. ब्रितानी युवाओं के मुकाबले करीब साढ़े तीन साल पहले और पूरी दुनिया के युवाओं को देखें तो भारतीय युवा अपने पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली जैसे समकक्षों के साथ ही दुनिया के दूसरे युवाओं के मुकाबले औसतन एक से डेढ़ साल पहले ही कमाना शुरु कर देते हैं. यही नहीं भारतीय युवा कमाये हुए पैसों को जोड़ने के मामले में दुनिया में सबसे बेजोड़ हैं. मध्यवर्ग के भारतीय युवा जो व्हाइट या ब्लू कालर जौब में अपना भविष्य सुनिश्चित करते हैं, वे अपने मां-बाप के मुकाबले औसतन 11 साल पहले गाड़ी यानी कार ले लेते हैं और करीब 12 से 13 साल पहले अपना फ्लैट ले लेते हैं. ईएमआई के मामले में भी मौजूदा भारतीय नौजवान अपने मां-बापों से 15 से 17 साल आगे हैं यानी आज के नौजवान बहुत कम उम्र से ईएमआई भरना शुरु कर देते हैं.

सवाल है आखिर ये तमाम तथ्य किस बात की तरफ इशारा करते हैं? क्या वाकई भारतीय युवा विदेशी युवाओं के मुकाबले अपने मां-बाप पर ज्यादा निर्भर हैं? इस सवाल का वाकई बड़ा मिश्रित सा जवाब है. अगर व्यवहारिक रूप से देखें तो सचमुच ऐसा है. भारतीय युवा अपने मां-बाप पर कहीं ज्यादा निर्भर दिखते हैं, लेकिन इस निर्भरता के पीछे उनकी कोई कमी नहीं बल्कि खासतौर पर परवरिश का ढांचा जिम्मेदार है. भारत में आज भी परिवार व्यवस्था में जो सामाजिक दबाव हैं, उनके चलते लंबे समय तक मां-बाप बच्चों को इस तरह परवरिश देते हैं कि बहुत दिनों तक वे स्वतंत्र रूप से कुछ करने की सोच ही नहीं पाते.

भारत में करीब 93 फीसदी बच्चे 10$2 तक की पढ़ाई अपने मां-बाप के साथ रहते हुए करते हैं. इस कारण वे अपने तमाम काम खुद कर पाने की आदत से वंचित रहते हैं. भारत में आमतौर पर पढ़ाई करने के लिए घर से दूर 12वीं के बाद ही बच्चे जाते हैं. ऐसा नहीं है कि आज की तारीख में हिंदुस्तानी युवा अपने लिए जीवनसाथी चुनने की कोशिश नहीं करते. बड़े पैमाने पर युवा ऐसा करते हैं. लेकिन सामाजिक संस्कार और संस्कृति में आज भी पारिवारिक वर्चस्व इस तरह का है कि लव मैरिज भी अंततः मां-बाप की इजाजत का हिस्सा बन जाती है. भारत में अभी भी युवाओं में सेंस आॅफ इंडीविजुअल्टी का वैसा एहसास नहीं है, जैसा दुनिया के दूसरे देशों में युवाओं को होता है.

चूंकि हमारे समाज के ज्यादातर बड़े बूढ़े लोग इस बात को एक सांस्कृतिक गर्व की तरह प्रस्तुत करते हैं, इसलिए भी भारतीय युवा अपने को ज्यादा निर्भर और खुद अपने निर्णय लेने वाला नहीं दिखना चाहता. इसके तमाम फायदे भी हैं, लेकिन इसके तमाम नुकसान भी हैं. पारिवारिकता, सामाजिकता और रिश्तों का यह चक्रव्यूह जहां कई लोगों को सामाजिक सहूलियतें देता है, वहीं कई लोगों के विकास में बाधक भी बनता है. जहां तक मां-बाप पर निर्भरता का सवाल है तो इसके पीछे सामाजिक कारणों के साथ-साथ आर्थिक कारण भी हैं. भारत में आज भी बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों की तादाद है, जो अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर परवरिश तक काफी तंग हालत में करते हैं, बच्चे इस हकीकत के गवाह होते हैं. इसलिए उनमें अकेले जीवन जीने का तो हिम्मत या हौसला होता ही नहीं है, जब थोड़े बहुत वह इस लायक हो भी जाते हैं तो भी उन्हें मां-बाप को तुरत फुरत छोड़कर अलग रहना एक अपराधबोध पैदा करता है.

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इसलिए भी भारतीय युवा आज भी दूसरे देशों के युवाओं के मुकाबले अपने मां-बाप पर ज्यादा निर्भर होते हैं. यही वजह है कि आज भी उनकी शादी के निर्णय उनसे ज्यादा उनके मां-बाप ही लेते हैं. लेकिन ये परंपरा अब धीरे धीरे टूट रही है और अगर अगले 10 सालों तक भारत में लगातार आर्थिक विकास की दर 7 फीसदी या इससे ऊपर रहे तो हिंदुस्तान के सांस्कृतिक परिदृश्य में जबरदस्त बदलाव देखा जा सकता है. बड़े पैमाने पर युवा स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी जीने की शुरुआत कर सकते हैं और भारतीय युवा भी विदेशी युवाओं की तरह बहुत कम उम्र में अपने तमाम निर्णय अपने तईं लेना शुरु कर सकते हैं.

रुबीना दिलाइक से भी ज्यादा खूबसूरत हैं उनकी बहन, हर लड़की के लिए परफेक्ट हैं उनके ये लुक्स

कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस 14 में इन दिनों फैमिली वीक चल रहा है, जिसमें शो के कंटेस्टेंटेंस की फैमिली या दोस्त एंट्री करते हुए नजर आएंगे. इसी बीच शो में की दमदार और पौपुलर कंटेस्टेंट रुबीना दिलाइक की बहन ज्योतिका दिलाइक की भी एंट्री हुई, जिसके बाद वह काफी सुर्खियों में हैं. दरअसल, ज्योतिका शो से बाहर रुबीना के सपोर्ट में अक्सर खड़ी रहती हैं, जिसके कारण वह फैंस के बीच छाई रहती हैं. वहीं खूबसूरती की बात करें तो ज्योतिका अपनी बड़ी बहन रुबीना को टक्कर देती हैं. इसीलिए आज हम आपको ज्योतिका के कुछ लुक्स की फोटोज दिखाएंगे.

1. फंक्शन में रहती हैं खास

ज्योतिका सिंपल रहना पसंद करती हैं. इसीलिए वह वेडिंग फंक्शन में सिंपल लुक में नजर आती है. ना ज्यादा मेकअप ना कोई ज्यादा स्टाइलिश कपड़े. वह सिंपल सूट में भी बेहद खूबसूरत लगती हैं.

 

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2. सिंपल सूट पहनना पसंद करती हैं ज्योतिका

 

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ज्योतिका के डेली लुक की बात करें तो वह सिंपल सूट और प्लाजो पहनना पसंद करती हैं. लेकिन उसमें भी वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. उनका लुक बहन रुबीना को टक्कर देता नजर आता है.

3. अनारकली सूट में लगती हैं खास

 

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अगर सूट में वैरायटी की बात की जाए तो ज्योतिका अनारकली सूट में भी बेहद खूबसूरत लगती हैं. चैक पैटर्न वाले सिंपल अनारकली सूट में उनका लुक बेहद स्टाइलिश लगता है.

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4. वैस्टर्न लुक भी होता है खास

 

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सूट के अलावा ज्योतिका वेस्टर्न लुक भी ट्राय करना पसंद करती हैं. इसीलिए वह रेड कलर की सिंपल ड्रैस के साथ खुद को स्टाइलिश दिखाती हुई भी नजर आती हैं.

5. वेडिंग सीजन में कुछ यूं होता है लुक

 

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वेडिंग सीजन की बात करें तो ज्योतिका लहंगा पहनना पसंद करती हैं, जिसमें भी उनका लुक बेहद खास होता है.

5 टिप्स: नेचर थीम से ऐसे सजाएं घर

जमाना शोबाजी का है. हर कोई एक-दूसरे से बेहतर स्टेटस दिखाने को उत्सुक है. सोशल साइट्स और इंटरनैट के दौर ने शहरी रहनसहन के तौरतरीकों में काफी बदलाव ला दिया है. फेसबुक या व्हाट्सऐप पर डाले जा रहे फोटोज में खुद के फोटो से ज्यादा ध्यान इस बात का रखा जा रहा है कि बैकग्राउंड में क्याक्या सुंदर और बहुमूल्य चीजें नजर आ रही हैं. इस से व्यक्ति का स्टेटस शो होता है. इन बातों से सब से ज्यादा प्र्रभावित हैं हमारी गृहिणियां जो अपने स्वीट होम को और ज्यादा स्वीट बनाने की धुन में लगी हैं. कम बजट में घर को कैसे सुंदर बनाएं, ऐसी क्या यूनीक चीजें अपने ड्राइंगरूम में लगाएं कि आने वाले मेहमान तारीफ किए बिना न रह सकें, इस की तलाश जारी है. वैसे सुंदर दिखनेदिखाने में कोई बुराई भी नहीं है.

1. लौंटें प्रकृति की पनाह में

आइए, आप के घर को सुंदर बनाने में हम आप की मदद करते हैं. आजकल धूलमिट्टी और प्रदूषण से भरे वातावरण में भागतीदौड़ती जिंदगी प्रकृति की पनाह में लौटना चाहती है. हिल स्टेशनों पर जिस तरह आबादी बढ़ रही है, उसे देखते हुए इस बात को समझना मुश्किल नहीं है कि प्रकृति की गोद में इंसान को सुकून मिलता है. मगर अगर यही सुकून आप को अपने घर में मिल जाए तो क्या कहने.

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एक रंग से रंगी दीवारें, खिड़कीदरवाजों पर वही एक रंग वाले परदे, बाबा के जमाने के फर्नीचर में बदलाव लाने का वक्त आ गया है. इस इंटीरियर को अब बदल दीजिए. नेचर को अपने जीवन और घर में उतारने के लिए नेचर थीम पर अपने घर का कोनाकोना सजा दीजिए. पशुपक्षी, पहाड़, बर्फ, नदियां, हरीभरी घास, झूमते पेड़ अगर आप की आंखों के आगे होंगे तो मन को बहुत राहत और सुकून पहुंचेगा.

दिनभर औफिस में काम कर के थकाहारा व्यक्ति जब शाम को ऐसे घर में प्रवेश करेगा तो उसे बहुत राहत और खुशी महसूस होगी. एक क्षण में उस की सारी थकान दूर हो जाएगी. आप के बच्चे अपने कमरे की शोभा दिखाने के लिए अपने दोस्तों को ले कर आएंगे.

2. वौल पेंटिंग और डैकोरेशन

सब से पहले बात करते हैं घर की दीवारों की. सफेद, पीले या हलके नीले रंग वाली दीवारों के दिन अब लद गए हैं. अब तो चटक, शोख और चुलबुले रंगों का चलन है. आजकल बाजार में हरी वैल्वेट बैकग्राउंड पर खिलेखिले सुंदर फूलों वाले वौल पेपर्स खूब बिक रहे हैं. घर का ड्राइंगरूम अगर चटक रंगों वाला होगा तो यह पौजिटिव ऊर्जा और आशा का संचार करेगा. नेचर थीम वाले वौल पेपर्स आजकल घरों में घूब इस्तेमाल हो रहे हैं. इन्हें लगाना भी आसान है और साफसफाई करना भी.

ड्राइंगरूम की एक दीवार गहरे रंग के वौल पेपर से और अन्य तीनों दीवारें हलके रंग के प्राकृतिक चित्रों वाले वौल पेपर से सजाएं. इन्हीं कलर्स से मैच करते परदे, सोफा कवर और कुशन कवर हों तो फिर बात ही क्या है. एक कोने में बोनसाई या सुंदर गमले में छोटा पौधा रखें तो खिड़की पर भी सुंदर छोटे फूलों वाले गमले सजाएं.

3. परदे हों नेचर प्रिंट वाले

घर की शोभा में परदे अपनी खास भूमिका निभाते हैं. जरूरी नहीं कि आप अपने घर में भारी, रेशमी और महंगे परदे लगाएं, तभी आप का घर सुंदर दिखेगा. आजकल मार्केट में नेचर प्रिंट वाले परदे सस्ते दाम में भी उपलब्ध हैं, जो देखने में बेहद खूबसूरत और आंखों को सुकून पहुंचाने वाले होते हैं. घर की दीवारों से मैच करते परदे लगाने चाहिए. अगर दीवारों पर डार्क शेड वाला वौल पेपर हो, तो परदे थोड़े हलके शेड और छोटे प्रिंट वाले लेने चाहिए.

4. फूलों वाले गमले सजाएं

गार्डनिंग करना अच्छे शौक में गिना जाता है. इस से न सिर्फ मन प्रफुल्लित रहता है, बल्कि आप की मेहनत से उगाए गए पौधे जब घर के कोनों को सजातेमहकाते हैं तो उस से मिलने वाली खुशी भी असीम होती है. सीढि़यों के किनारे, बरामदे और छत को मौसमी फूलों वाले गमलों से सजाएं, ऐसा करने से आप के घर में ताजगी और खूबसूरती में बढ़ोत्तरी होती है. बैडरूम में पौधे नहीं रखने चाहिए क्योंकि रात के वक्त ये कार्बन डाईऔक्साइड छोड़ते हैं, जो फेंफड़ों के लिए ठीक नहीं है.

पौधे हमेशा खुली जगह या खिड़की के पास ही रखने चाहिए. बालकनी में लटकने वाले गमले लगाएं. अगर पेंटिंग का शौक हो तो आप अपने हाथों से गमलों को पेंट भी कर सकती हैं. इस से इन की शोभा भी बढ़ जाएगी.

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5. यों भी सजाएं एक कोना

ड्राइंगरूम या बरामदे का एक कोना पेड़पौधों और पक्षियों के पिंजरों के साथ ऐसे सजाएं कि उस में बीचबीच में मोमबत्तियों और दीयों को रखा जा सके. शीशे के छोटे सुंदर जारों में मोम बैठा कर ये सुंदर रंगीन मोमबत्तियां बनाई जा सकती हैं. शाम के वक्त इन्हें जला दें. आप देखेंगी कि इस कोने से घर के सदस्यों की नजर ही नहीं हटेगी.

काउंसलिंग: सफल मैरिड लाइफ के लिए है जरूरी

ऋतु जिस की शादी तय हुए अभी 1 महीना ही हुआ था लेकिन फिर भी वह अंदर से खुश नहीं थी, क्योंकि उस के अनियमित पीरियड्स उसे परेशान जो किए हुए थे. वह अपना हाल किसी से बयां नहीं कर पा रही थी. वह अपने पति से भी मन से बात नहीं करती थी. एक दिन जब उस के पति ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने पूरा हाल सुना दिया. इस पर उस ने बिना देरी किए डाक्टर की सलाह ली.

आज दोनों हैप्पी मैरिड लाइफ बिता रहे हैं. ऐसा किसी के साथ भी न हो इसलिए प्रीमैरिटल और मैरिटल काउंसलिंग से संकोच न करें. आइए जानते हैं कोलकाता के पीजी हौस्पिटल के एक्स रेसिडेंट गायनाकोलौजिस्ट प्रोफेसर डा. एमएल चौधरी से कि क्यों जरूरी है प्रीमैरिटल व मैरिटल काउंसलिंग.

प्रीमैरिटल काउंसलिंग

1. भविष्य के लिए तैयार करे

किसी भी रिश्ते की नीव प्यार व विश्वास पर टिकी होती है और यह सब रिश्ते में तभी आ पाता है जब हम एकदूसरे को अच्छे से समझें. इस के लिए जरूरत है पहले से उन सब चीजों पर प्रकाश डालने की जो अकसर वैवाहिक जीवन में आती है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों की समझ विकसित की जाती है, जिस से सोचने का नजरिया बदलने से जिंदगी आसान लगने लगती है.

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2. कम समय में बेहतर पल बिताने का मौका

प्यारे के रिश्ते में जब तक प्यार भरी बातें न हो तब तक रिश्ता स्ट्रौंग नहीं बन पाता. लेकिन पतिपत्नी दोनों के वर्किंग होने के कारण आज उन के पास एकदूसरे के साथ समय बिताने का समय नहीं होता, जिस से दूरियां बढ़ती हैं. ऐसे में काउंसलिंग से हम कम समय में कैसे क्वालिटी टाइम स्पेंड करें सीख पाते हैं.

3. घबराहट से राहत

अकसर शादी तय होने के बाद चाहे लड़का हो या लड़की यही सोचसोच कर घबराते रहते हैं कि हम रिश्ते पर खरे तो उतरेंगे न, हम एकदूसरे को खुश रख पाएंगे यही सोचसोच कर मन की घबराहट चेहरे पर झलकने लगती है. ऐसे में काउंसलिंग मदद करेगी कि आप घबराए नहीं बल्कि उसे फेस करना सीखें, भीतर से स्ट्रौंग बने.

4. प्रौब्लम्स का हल सुझाए

कई प्रौब्लम्स लड़कियां शादी से पहले अपने पार्टनर को बताना सही नहीं समझतीं और वही प्रौब्लम्स बाद में बड़ी बन जाती हैं. जैसे अनियमित पीरियड्स, पीसीओडी, ऐंट्रोपैटरिक सिस्ट आदि. जो न सिर्फ पीरियड्स के दौरान दर्द का कारण बनती हैं, बल्कि आगे चल कर इनफर्टिलिटी के लिए भी जिम्मेदार होती हैं. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों पर खुल कर बात करने से सही टाइम पर सही रास्ता मिल जाता है, जो वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने में सहायक है.

5. कौंफिडैंस को बढ़ाए

कई बार अनियमित पीरियड्स वगैरा के कारण चेहरे पर अनचाहे बाल उगने के साथ मुंहासे हो जाते हैं, जो कौंफिडैंस को कम करते हैं. चेहरे पर अनचाहे बालों के कारण पार्टनर के सामने खुल कर बात करने से डर लगता है और आप का व्यक्तित्व सामने नहीं आ पाता. इस के जरिए यह समझाने की कोशिश की जाती है कि भीतर की खूबसूरती व्यक्तित्व दर्शाने वाली होती है. साथ ही वे विकल्प भी बताए जाते हैं, जिस से इस समस्या से आप को निजात मिल सके.

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मैरिटल काउंसलिंग

6. समझाए रिश्ते का महत्त्व

शादी तय होने के बाद का समय हर कपल के लिए काफी बेहतरीन होता है, जिस में वे एकदूसरे के लिए हर समय तैयार रहते हैं. लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद जीवन पटरी पर आने लगता है. यह बदलाव दोनों को ही अखरता है. जबकि काउंसलिंग के जरिए कपल को हकीकत से वाकिफ करवाया जाता है और यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि भले ही आप पूरे दिन में 1 घंटा साथ बिताएं लेकिन उस में आप अपना पूरा दिन शेयर कर लें. यानी साथ में बिताया यह समय आप को पूरे दिन के बराबर लगे.

7. एबौर्शन के संबंध में जानकारी

कई बार प्रीकोशन लेने के बावजूद भी गर्भ ठहर जाता है और हड़बड़ी में कपल एबौर्शन करवा लेते हैं, जो कौंप्लिकेशन लाने के साथ आगे चल कर उन्हें हमेशा के लिए बच्चे के सुख से भी वंचित रख सकता है. जबकि काउंसलिंग आप को ऐसी गलती करने से बचा सकती है, क्योंकि यह आप में सही व गलत की समझ विकसित करती है.

8. राइट टाइम टु कंसीव

उम्र बढ़ने के साथ मां बनने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आज तो पैसा कमाने के चक्कर में लड़कालड़की शादी भी देरी से करते हैं. एक तो लेट मैरिज और उस के बाद देर से फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचना जीवनभर आप को निसंतान रख सकता है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए समझाया जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ मां बनने के चांसेज भी कम होते जाते हैं. इसलिए अगर आप की शादी 27-28 साल की उम्र में हुई है तो कंसीव करने में देरी न करें.

9. सही समय पर सही निर्णय

सिस्ट, फौलेकल ट्यूब का बंद होना, अंडों का नहीं बनना आज महिलाओं में आम समस्या है. ऐसे में अगर कपल को सफलता नहीं मिलती तो वे निराश हो कर बैठ जाते हैं. जबकि काउंसलिंग के जरिए उन में पौजिटिविटी भर कर उन्हें सही जगह तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है ताकि वे संतान सुख से वंचित न रह सकें.

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Winter Special: तवा पिज्जा ट्राई किया है आपने!

आपने पिज्जा तो बहुत खाया होगा. चाहे कोई भी फंक्शन क्यों ना हो पिज्जा पार्टी अब आम बात हो गई है. पर क्या आपने कभी घर पर पिज्जा बनाया है. अगर बनाया भी होगा तो ओवन में बनाया होगा. क्या आपने कभी तवा पर बना पिज्जा खाया है? नहीं, तो यहां जानें तवा पिज्जा बनाने की विधि.

सामग्री

2 कप मैदा

2 चम्मच ऑलिव ऑइल

नमक स्वादानुसार

एक छोटा चम्मच चीनी

एक छोटी चम्मच यीस्ट

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टॉपिंग के लिए

1 शिमला मिर्च

3 बेबी कॉर्न

½ कप पिज्जा सॉस

½ कप मोजरेला चीज

½छोटा चम्मच इटालियन मिक्स हर्ब्स

विधि

बेस बनाने का विधि

मैदा को छान लें. एक मुट्ठी मैदा अलग रखकर बाकी में यीस्ट, ऑलिव ऑइल, नमक और चीनी डाल लें और उन्हें अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब गुनगुने पानी से चपाती जैसा आटा मलिए. इसे एकदम सॉफ्ट होने तक मलते रहें. तकरीबन 2 घंटे के लिए ढककर रख दें. इतनी देर में आटा फूलकर दोगुना हो जाएगा. पिज्जा बेस तैयार है.

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टॉपिंग बनाने का विधि

शिमला मिर्च से बीज हटाते हुए लंबाई में पतला-पतला काट लें. बेबीकॉर्न को गोल टुकड़ों में काट लें. दोनों सब्जी को तवे पर डालकर तकरीबन 2 मिनट चम्मच से चलाते हुए नरम कर लें. अब पिज्जा के आटे से गोल लोई बनाकर अलग रखे मैदे की हेल्प से आधा सेमी मोटा पिज्जा बेस तैयार कर लें.

अब पैन हल्का गर्म कर लें. पैन अगर नॉनस्टिक है, तो पैन के ऊपर थोड़ा सा तेल लगाकर पिज्जा सेकने के लिए डालिए और तकरीबन 2 मिनट तक पिज्जा को हल्के ब्राउन होने तक सेक लीजिए. अब पिज्जा को पलट लें.

कम आंच पर रखकर पिज्जा के ऊपर टॉपिंग करें. सबसे पहले सॉस की पतली सी लेयर और उसके ऊपर सब्जियां लगाएं. अब चीज डालें. पिज्जा को ढककर पांच से छह मिनट तक गैस पर सिकने दें. चीज के मेल्ट हो जाने पर और पिज्जा बेस के ब्राउन होने तक सेक लीजिए. अब ऊपर से हर्ब्स डाल दीजिए. गर्मागर्म सर्व करें.

Serial Story: ज्योति से ज्योति जले

Serial Story: ज्योति से ज्योति जले (भाग-1)

मैं रश्मि को पिछले 7 सालों से जानती हूं. मेरा बेटा मिहिर जब उस की कक्षा में पढ़ता था तब वह स्कूल में नईनई थी. उस का परिवार मुंबई से उसी वर्ष बोरीवली आया था.

हमारी पहचान भी बड़े नाटकीय एवं दिलचस्प अंदाज में हुई थी. मिहिर का पहली यूनिट परीक्षा का परिणाम कुछ संतोषजनक नहीं था. ‘ओपन हाउस’ के दिन की बात है.

जब सभी विद्यार्थियों के अभिभावक जा चुके और मैं भी जाने लगी तो उस ने इशारे से मुझे रुकने के लिए कहा था. उस के अंदाज में अदृश्य सा आदेश पा कर मेरे बढ़ते कदम रुक गए थे.

‘‘आप, मिहिर की मदर हैं?’’ बेहद नाराजगी के स्वर में उस ने मुझ से पूछा था.

‘‘जी हां.’’

‘‘मैं आप को क्या कह कर पुकारूं?’’ उस ने फिर पूछा, ‘‘नाम ले कर या फिर मिहिर की दुश्मन कह कर… वैसे मैं आप का नाम जानती भी तो नहीं…’’

‘‘जी…वर्षा,’’ मैं ने अपना नाम बताया.

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‘‘तो वर्षाजी, आप ही बताइए, क्या आप अपने बच्चे पर हमेशा इसी तरह, गुस्से से बरसती हैं या फिर कभी स्नेह की बारिश भी उस पर करती हैं?’’

‘‘म…मैं समझी नहीं…’’ मैं स्तब्ध सी उस के सुंदर चेहरे को देखती रह गई, ‘‘दरअसल, बात यह है कि…’’ मेरा वाक्य अधूरा रह गया.

‘‘इतना गुस्सा भी किस काम का कि नन्हे बच्चे को यों बेलन से मारना पड़े?’’ रश्मि ने नसीहत देते हुए कहा, ‘‘वर्षाजी, इनसान को हमेशा, हर हाल में अपने पर काबू पाना सीखना चाहिए. गुस्से में तो खासकर. मेरी बात मानिए, जब कभी भी आप को गुस्सा आए तब आप अपनी सूरत आईने में देख लें. इस सूरत में यदि आप अपने गुस्से पर काबू पाने में सफल न हुईं तो फिर बताइएगा.’’

‘‘मैडम, आप ही बताइए, मैं क्या करूं? मिहिर पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं देता. हर वक्त उस के सिर पर सिर्फ क्रिकेट का ही जनून सवार रहता है. अभी से यह हाल है तो आगे जा कर उस का भविष्य क्या होगा? आज परिणाम आप के सामने ही है.’’

‘‘तो उसे समझाने का आप कोई और तरीका अपनातीं. क्या आप के हाथों बेलन की मार से वह रातोंरात बदल जाएगा? माफ कीजिए, आप तो बेलन का सही उपयोग और मां शब्द का सही अर्थ दोनों बदलने पर तुली हुई हैं.’’

मैं चुपचाप उस की नसीहत सुनती रही.

‘‘वर्षाजी, बच्चों के मन और शरीर दोनों गूंधे हुए आटे की तरह नम होते हैं, उसे जैसा आकार देना चाहें हम दे सकते हैं, पर मैं ने अकसर देखा है, हर मातापिता अपने बच्चों को अपनी अपेक्षाओं के अनुसार ढालना चाहते हैं. वे एक बात भूल जाते हैं कि बच्चों की भी अपनी पसंदनापसंद हो सकती है. खैर, आप ‘मां’ के आगे एक अक्षर ‘क्ष’ और जोड़ दीजिए.’’

‘‘क्ष…मा…’’ मेरे मुंह से निकल पड़ा.

‘‘यही ‘मां’ शब्द का सही अर्थ है, समझीं?

‘‘क्रोध से अकसर बनती बात बिगड़ जाती है. अगर आप अपने मातृत्व को जीवित रखना चाहती हैं तो अपने गुस्से को मारना सीखिए, क्षमा करना सीखिए. इसे टीचर का भाषण नहीं, मित्र की नसीहत समझ कर याद रखिएगा.’’

मैं अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थी. सच ही तो कह रही थी वह, मुझे गुस्से में बेकाबू हो कर अपने बच्चे को यों बेलन से नहीं मारना चाहिए था. मिहिर की पिंडली बेलन की मार से इस कदर सूज गई थी कि वह सही ढंग से चल भी नहीं पा रहा था.

‘मुझे क्षमा करना मेरे बच्चे. आज के बाद फिर कभी नहीं,’ मन ही मन निर्णय कर मैं सचमुच रो पड़ी.

और आज उसी की बदौलत मेरा बेटा न सिर्फ पढ़ाई में ही आगे है बल्कि क्रिकेट में भी खूब आगे निकल गया है. पहले अंकुर 12 फिर 14 और अब अंडर 19 के बैच में खेलता है. कई बार अखबार में उस की टीम के अच्छे प्रदर्शन के समाचार भी छपे हैं. मुझे अपने बेटे पर नाज है.

उस पल से ही हमारे बीच सच्ची मित्रता का सेतु बंध गया था. मैं हैरान थी उसे देख कर. सुंदरता, बुद्धिमत्ता और सहृदयता का संगम किसी एक ही शख्स में मिल पाना वह भी आज के दौर में किसी चमत्कार से कम नहीं लगा.

यह अनुभव सिर्फ मेरा ही नहीं, प्राय: उन सभी का है जो रश्मि को करीब से जानते हैं. पिछले 7 साल में उस ने न जाने कितने बच्चों पर ज्ञान का ‘कलश’ छलकाया होगा. वे सभी बच्चे और उन के मातापिता…सब के मुंह से, उस की सिर्फ प्रशंसा ही सुनी है, वह सब की प्रिय टीचर है.

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वह है भी तो तारीफ के काबिल. वह अपनी कक्षा में पढ़ने वाले तकरीबन हर बच्चे की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानने का प्रयास करती है. जैसे ही उसे पता चलता है कि किसी के परिवार में कोई समस्या है, वह झट से उस का हल ढूंढ़ने को तत्पर हो जाती है, उन की मदद करने के लिए कुछ भी कर गुजरती है.

सभी बच्चों की अकसर एक ही तकलीफ होती, पैसों का अभाव. हर साल वह न जाने कितने विद्यार्थियों की फीस, किताबें, यूनिफार्म आदि का इंतजाम करती है, जिस का कोई हिसाब नहीं. नतीजतन, वह खुद हमेशा पैसों के अभाव में रहती है.

एक दिन उस की आंखों में झांकते हुए मैं ने पूछा, ‘‘रश्मि, सच बताना, तुम्हारा बैंक बैलेंस कितना है?’’

‘‘सिर्फ 876 रुपए,’’ वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘वर्षा दीदी, मेरा बैंक बैलेंस कम है तो क्या हुआ? इतने सारे लोगों के आशीर्वाद का बैलेंस मेरे जीवनखाते में इतना तगड़ा है, ये क्या कम है? मरते वक्त मैं अपना बैंक बैलेंस साथ ले कर जाऊंगी क्या? मैं तो इसी में खुश हूं. आप मेरी चिंता मत कीजिए.’’

‘‘नहीं रश्मि, तुम गलत सोचती हो. इस बात से मुझे इनकार नहीं कि मृत्यु के बाद इनसान सभी सांसारिक वस्तुओं को यहीं छोड़ जाता है, लेकिन यह बात भी इतनी ही सच है कि जब तक जिंदा होता है, मनुष्य को संसार के सारे व्यवहारों को भी निभाना पड़ता है और उन्हें निभाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है…यह बात तुम क्यों नहीं समझतीं?’’

‘‘मैं बखूबी समझती हूं पैसों का महत्त्व लेकिन दीदी, मैं ने हमेशा अनुभव किया है कि जब कभी भी मुझे पैसों की जरूरत होती है, कहीं न कहीं से मेरा काम बन ही जाता है. यकीन कीजिए, पैसों के अभाव में आज तक मेरा कोई भी काम, कभी भी अधूरा नहीं रहा.’’

मैं समझ गई कि इस नादान को समझाना और पत्थर से सिर टकराना एक ही बात थी. मेरे लाख समझाने के बावजूद वह मेरी सलाह को अनसुना कर पुन: अपने उसी स्वभाव में लौट आती है.

वह भोलीभाली नहीं जानती कि कभीकभी कुछ लोग उस की इस उदारता को मूर्खता में शामिल कर उसे धोखा भी देते हैं.

ऐसा ही एक किस्सा 6 साल पहले हुआ था. यश नाम का एक लड़का पहली कक्षा में पढ़ता था. उस की मां को किसी ने बताया होगा कि रश्मि टीचर सब की मदद करती हैं.

स्कूल छूटने का वक्त था. मैं रश्मि के इंतजार में खड़ी थी. मुझे देख कर जब वह मुझ से मिलने आई तब यश की मम्मी शांति भी अपने मुख पर बनावटी चिंता ओढ़ कर हमारे पास आ कर खड़ी हो गईं.

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‘‘टीचर, यश के पापा का पिछले साल वड़ोदरा में अपैंडिक्स का आपरेशन हुआ था. वह किसी काम से वहां गए थे. अचानक दर्द बढ़ जाने पर आपरेशन करना जरूरी था, वरना उन की जान को खतरा था. आपरेशन का कुल खर्च सवा लाख रुपए हुआ था. मेरे मायके वालों ने कहीं से कर्ज ले कर किसी तरह वह बिल भर दिया था, पर उस में से 17 हजार रुपए भरने बाकी रह गए थे जोकि आजकल में ही मुझे भेजने हैं, क्या आप मेरी मदद करेंगी?’’ वे रो पड़ीं.

आगे पढ़ें- रश्मि ने यश की मम्मी की…

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