मिरर से यों सजाएं घर

मिरर का इस्तेमाल केवल चेहरा देखने के लिए ही नहीं होता, बल्कि घर को सजाने के लिए भी होता है. इंटीरियर डैकोरेशन में इस के तेजी से बढ़ते चलन ने इसे एक स्ट्रौंग इंटीरियर डिजाइन टूल बना दिया है. अगर मिरर को सही तरीके से लगाया जाए तो इस से छोटी जगह भी बड़ी दिखाई देती है, बोरिंग जगह में जीवंतता आ जाती है और अंधेरी जगह उजाले से भर जाती है. यानी सजावट में मिरर का इस्तेमाल उस जगह के पूरे लुक को बदल देता है.

मिरर थीम पुराने समय से ही मिरर का इस्तेमाल घरों और महलों को सजाने में होता रहा है. एक बार फिर मिरर थीम का चलन तेजी से बढ़ रहा है. अब मिरर केवल ड्रैसिंगटेबल का हिस्सा नहीं रह गया है, बल्कि होम डैकोरेशन का भी अहम हिस्सा बन गया है. घरों और औफिसों की इंटीरियर डिजाइनिंग मेें इसे आर्ट पीस के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

मिरर का इस्तेमाल घर के अंदर ही नहीं वरन घर के बाहर गार्डन, बरामदे, गलियारे और टैरेस में भी हो रहा है. किस जगह को सजाना है उस के अनुसार अलगअलग साइज और फ्रेम का मिरर चुना जाता है. गे्र इंक स्टूडियो के आर्किटैक्ट, सरवेश चड्ढा ने मिरर इफैक्ट्स के बारे में जानकारी दी:

दीवार पर:

अगर आप मिरर को दीवार पर लगाएं तो न केवल आप का कमरा बड़ा दिखाई देगा, बल्कि उस का आकर्षण भी बढ़ जाएगा. कमरे के लिए हमेशा बड़े मिरर का इस्तेमाल करें, जिस की ऊंचाई दीवार के बराबर हो. मिरर को उस दीवार पर लगाएं जो दरवाजे के ठीक सामने हो ताकि बाहर का पूरा प्रतिबिंब अंदर दिखाई दे. सोफे के ऊपर: सोफे के ऊपर जो खाली जगह होती है, वहां फ्रेम किए मिरर समूह में लगाए जाते हैं. आप इन्हें दृसरी खाली दीवारों पर भी लगा सकती हैं. इन फ्रेमों की साइज और स्टाइल दीवार के साइज, फर्नीचर और परदों के रंग के अनुसार अलगअलग हो सकता है.

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किचन:

रसोई में भी मिरर का इस्तेमाल हो रहा है. इसे आप कबर्ड पर इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर फ्रिज पर डैकोरेटिव पीस के रूप में भी. आमतौर पर किचन में खिड़की के ठीक नीचे सिंक लगाए जाते हैं, मगर यदि ऐसा संभव न हो तो क्यों न सिंक के ठीक ऊपर मिरर लगा कर खिड़की की कमी पूरी की जाए. मिरर के प्रयोग से किचन में अधिक रोशनी और गहराई का एहसास होगा. मिरर टाइल्स भी किचन की खूबसूरती बढ़ा सकती हैं.

लिविंगरूम:

खूबसूरत फ्रेम में जड़ा मिरर लिविंगरूम की शान बढ़ा देता है. मिरर के सामने कोई आर्टवर्क, सीनरी आदि हो तो वह सामने की दीवार पर दिखती है जिस से कमरा अधिक बड़ा और खूबसूरत नजर आता है. खिड़की के सामने लगा मिरर रोशनी प्रतिबिंबित कर कमरे को और अधिक जीवंत बनाता है. विंडो के पास: अगर विंडो के पास मिरर लगाएंगी तो कमरे में प्राकृतिक रोशनी की मात्रा बढ़ेगी. विंडो के पास कितनी जगह उपलब्ध है उस के अनुसार मिरर चुनें. मिरर जितना बड़ा होगा, ब्राइटनैस उतनी अधिक बढ़ेगी.

गार्डन में:

कई घरों में पर्सनल गार्डन या टैरेस गार्डन होते हैं. गार्डन में मिरर का इस्तेमाल आप के घर के इंटीरियर को एक अलग आयाम देगा. इस में आप के गार्डन की हरियाली और रंगबिरंगे फूलों का प्रतिबिंब दिखाई देगा. पतंग के आकार के मिरर लगाएंगी तो रात में नीले आसमान के साथ उस का कौंबिनेशन बहुत आकर्षक नजर आएगा. अगर गार्डन में मिरर के साथ विभिन्न रंगों की लाइट्स का कौंबिनेशन किया जाए तो ल़ुक और उभर कर आएगा.

सीढि़यों पर:

सीढि़यों पर मिरर का इस्तेमाल पेंटिंग या शो पीस की जगह किया जा सकता है. अलगअलग साइजों के मिरर का कोलाज भी लगा सकती हैं. मिरर बोरिंग और डार्क स्टेयरकेस को चिक और ब्राइट बना देंगे. इन में आप सीढि़यां चढ़ते हुए खुद को निहार भी सकती हैं.

कौरिडोर में:

अगर कौरिडोर संकरा है तो उस में भी मिरर लगाएं. इस से वह बड़ा और चमकीला नजर आएगा. बैड साइड टेबल: बैड साइड टेबल के पीछे छोटा वैनिटी मिरर लगाएं. इस के आगे लैंप शेड या वास रखें. इस का रिफ्लैक्शन पूरे बैडरूम का आकर्षण बढ़ा देगा.

वार्डरोब पैनल्स:

वार्डरोब पैनल्स को मिरर पैनल्स में बदल लें. इस से आप का कमरा बड़ा और ब्राइट लगेगा. इस के अलावा आप के वार्डरोब के पैनल्स लकड़ी की तुलना में हलके भी लगेंगे. आप के लिए यह ड्रैसिंग एरिया की तरह भी काम करेगा. बाथरूम: बाथरूम में भी मिरर लगाएं. इस से न केवल वह बड़ा लगेगा, बल्कि अधिक ब्राइट भी लगेगा.

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प्रवेशद्वार:

प्रवेशद्वार पर मिरर लगाने से बहुत सहायता मिलेगी. आप और आप के मेहमान घर में आने से पहले खुद पर एक नजर डाल पाएंगे. कैसे चुनें

मिरर का फ्रेम कमरे के पेंट और फर्नीचर के रंग के अनुसार चुनें. इंटीरियर डिजाइन में मैटल और लकड़ी फ्रेम का इस्तेमाल ही अधिक होता है. अगर आप को अपने घर को क्लासिक लुक देना हो तो गोल्ड प्लेटेड फ्रेम चुनें. मौडर्न लुक के लिए मैटेलिक फ्रेम चुन सकती हैं. मिरर पर बनी पेंटिंग्स को भी वाल आर्ट के रूप में लगा सकती हैं. बाथरूम में हमेशा बड़ा मिरर लगाएं. उस की मोटाई भी अधिक होनी चाहिए यानी 7-8 एमएम. मिरर जितना मोटा होगा उतना ही लुक अच्छा आएगा. अगर ग्लास की बैक साइड पर गहरे रंग का पेंट होगा तो अच्छा रहेगा, क्योंकि इस से लुक अधिक साफ और बेहतर दिखाई देगा.

घर को हमेशा एक सिमिट्री में सजाएं. इस से न केवल आप का घर सुंदर लगेगा, बल्कि आप के मिरर का आकर्षण भी बढ़ेगा. कौन से मिरर हैं अधिक चलन में

आजकल कई तरह के मिरर चलन में हैं जैसे ट्रांसपैरेंट ग्लास, जिस में आरपार दिखाई देता है. लैकर्ड ग्लासेज, ये विभिन्न रंगों में आते हैं. टिंटेड मिरर, इन पर विभिन्न प्रकार के टिंट या स्पौट होते हैं. लुकिंग मिरर, सामान्य शीशा जिसे चेहरा देखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है आदि प्रमुख हैं. ये अलगअलग आकार और शेप में मिलते हैं. गोल, चौकोर, लंबे, चौड़े, छोटे, बड़े आदि. आप अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार इन का चयन कर सकती हैं.

रहने दो इन सवालों को: कितने पड़ावों से गुजरी है मृगांक की जिंदगी

Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-1)

‘भाइयो और बहनो, मैं अदना सा गगन त्रिपाठी, महान बांदा जिले के लोगों का अभिवादन करता हूं. यहां राजापुर गांव में गोस्वामी तुलसीदास ने जन्म ले कर देश के इस हिस्से की धरती को तर दिया था. वहीं, यह जिला मशहूर शायर मिर्जा गालिब का कितनी ही बार पनाहगार रहा है. उसी बांदा जिले के बाश्ंिदों को अच्छेबुरे की मैं क्या तालीम दूं? वे खुद ही जानते हैं कि इस जिले का समुचित विकास कौन कर सकेगा, हिंदूमुसलिम एकता को बरकरार रख दोनों की तहजीबों को कौन सही इज्जत देगा, यमुना को प्रदूषण से कौन बचाएगा, केन नदी की धार को कौन फसलों की उपज के बढ़ाने के काम में लाएगा. कहिए भाइयोबहनो, कौन करेगा ये सब?’ गगन चीरने वाले नारों के बीच गगन त्रिपाठी का चेहरा दर्प से दमकने लगा. सभी ऊंची आवाजों में दोहरा रहे थे, गगन त्रिपाठी जिंदाबाद, लोकहित पार्टी जिंदाबाद.

भीड़ में पहली लाइन की कुरसी पर बैठा 13 साल का मृगांक पिता के ऊंचे आदर्शों और महापुरुषों से संबंधित बातों को अपने जज्बातों में शिद्दत से पिरो रहा था. वह पिता गगन त्रिपाठी के संबोधनों और भाषणों से खूब प्रेरित होता है. अकसर उन के भाषणों में गांधी, ज्योतिबा फूले और मदर टेरेसा का जिक्र होता, वे इन के कामों की प्रशंसा करते, लोगों से उन सब की जीवनधारा को अपनाने की अपील करते. बांदा जिले के प्रसिद्ध राजनीतिक परिवार से है मृगांक. उस के दादाजी पुलिस विभाग में अफसर थे. मृगांक के पिता गगन त्रिपाठी को नौकरी में रुचि नहीं थी.

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गगन त्रिपाठी के होने वाले ससुरजी की राजनीतिक पैठ के चलते मृगांक के दादा के पास उन का आनाजाना लगा रहता, सरकारी अफसरशाही से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश. इधर, पिता के अफसरी अनुशासन की वजह से गगन त्रिपाठी अपने पिता से कुछ खिंचे से रहते. घर आतेजाते भावी ससुरजी को गगन में उन का पसंदीदा राजनीतिज्ञ नजर आया. उन्होंने देर किए बिना, गनन त्रिपाठी के पिता को मना कर अपनी बेटी की घंटी गगन के गले में बांध दी और उस के फुलटाइम ट्रेनर हो गए.

समय के साथ राजनीति में माहिर होते गगन त्रिपाठी विधायक बन गए. साल गुजरे. बेटी हुई, 18 साल की उस के होते ही दौलतमंद व्यवसायी के साथ उस की शादी कर दी. पारिवारिक मर्यादा अक्षुण्ण रखने के लिए उसे 10वीं से ज्यादा नहीं पढ़ाया गया. अभी बड़ा बेटा 27 वर्ष का था, पिता की राजनीति में विश्वस्त मददगार और भविष्य का राजनीतिविद, पिता की नजरों में कुशल और उन के दिशानिर्देशों के मर्म को समझने वाला. बड़े बेटे की पढ़ाई कालेज की यूनियन और राजनीतिक चुनावों के गलियारों में ही संपन्न हो गई.

मृगांक अभी 23 वर्ष का था, पढ़ाई, खेलकूद में अव्वल, विरोधी किस्म के सवाल खड़े करने वाला, कम शब्दों में गहरी बातें कहने वाला, मां का लाड़ला, पिता की दुविधा बढ़ाने वाला. मृगांक के स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद गगन त्रिपाठी की ओर से उस पर कलैक्टर बनने का जोर आ पड़ा. घरभर में इस बात की चर्चा दिनोंदिन जोर पकड़ रही थी. एक दिन पिताजी की ओर से मृगांक के लिए बुलावा आया. बुलावे

का अर्थ मृगांक भलीभांति समझ रहा था. 2 मंजिले पुश्तैनी मकान के बीचोंबीच संगमरमरी चबूतरा, आंगन में कई सारे पौधे लगे थे. गगन त्रिपाठी नाश्ते से निवृत हो आंगन में रखी आरामकुरसी पर बैठे थे. सुबह 9 बजे का वक्त था. 55 वर्ष की उम्र, गोरा रंग धूप में ताम्रवर्ण, कदकाठी ऊंची और बलिष्ठ, खालिस सफेद कुरता, चूड़ीदार पजामे पर भूरे रंग का जैकेट. वे तैयार बैठे थे, कहीं निकलना था, शायद. मृगांक सामने आ खड़ा हुआ. पिता के प्रति सम्मान और अबोला डर था लेकिन हृदय में पिता की सात्विकता और आदर्श को ले कर बड़ा गहरा विश्वास था. इस के पहले पिता से जब भी उस की बातें होतीं, वे अकसर उस की पढ़ाई व सेहत की बेहतरी के साथ बड़ा आदमी बनने की नसीहत देते.

आज उस के भविष्य के स्वप्नों की जिरह थी. पिता की सुननी थी, अपनी कहनी भी थी. उस ने पिता की नजरों में देखा. पिता के आसन से गगन त्रिपाठी बोले, ‘‘तो आप कलैक्टर बनने की तैयारी को ले कर क्या फैसला ले रहे हैं? आप पढ़ने में अच्छे हैं. हम उम्मीद लगाए हैं कि आप कलैक्टर बन कर हमारी पार्टी और परिवार का भला करेंगे. पुरानी पार्टी हम ने छोड़ दी है. अब हमारी अपनी पार्टी को सरकारी बल चाहिए. आप का इस बारे में न कहना हम पसंद नहीं करेंगे.’’

मंच के भाषण और पत्रकारों के जवाबों से अलग यह सुर मृगांक को अवाक कर गया. क्या अलग परिस्थितियों में राजनेता की सोच अलगअलग होती है? वास्तव में कौन है-पिता या गगन त्रिपाठी? या कि पिता का वास्तविक रूप यही है जो अभीअभी वह देख रहा है. सफल होना और सार्थक होना दोनों अलग बातें हैं, क्यों नहीं लोग सार्थक होने की भी पहल करें. मृगांक के दिल में आंदोलन के तूफान उठने शुरू हुए. वह स्थिर और भावहीन खड़ा रहा फिर भी.

पिता ने आगे कहा, ‘‘बेटा ऐसा हो जो पिता का सहारा बने. जैसा कि आप के अंदाज से लग रहा है, आप अपने मन की करना चाहते हैं. ऐसा है, तो आप को मुझ से सचेत रहना चाहिए.’’ बेटे के रूप में जिस गगन त्रिपाठी ने खुद के पिता की इच्छाओं को किनारे कर दिया, अब मृगांक के लिए उन की बातें कुछ और ही थीं. विशुद्ध राजनीतिज्ञ की तरह एक पिता कहता गया, ‘‘मेरे लोग कई बार आप के बारे में खबर दे चुके हैं कि बिना सोचेसमझे आप लोगों के बीच संत बने फिरते हैं. दूसरे वार्डों, तहसीलों में उन लोगों की मदद कर आते हैं जिन्होंने दूसरी पार्टी के लोगों को जिताया. समझ रहे हैं मेरी बात आप?’’

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यह पहला अवसर था जब वह पिता को भलीभांति समझने का प्रयास कर रहा था. इस के पहले वह जो देखतासुनता आया था, गहरे विश्वास की लकीर पर चल कर फकीर बना बैठा था. मृगांक कितना भी कोमल हृदय क्यों न हो, था तो खानदानी पूत ही. वह सख्त हुआ. यह बात और थी कि इस अड़े हुए घोड़े को वह कौन सी दिशा दे. विनम्रता में भी उस ने ठसक नहीं छोड़ी, कहा, ‘‘पिताजी, मैं जो भी सोचता हूं कुछ सोचसमझ कर ही. आप की सलाह मैं ने सुन ली है. अगर मैं कलैक्टर बन भी जाता हूं तो सिवा न्याय और सचाई के, किसी को नाजायज लाभ न दे पाऊंगा. कानों में मेरे न्याय के लिए चीखते लोगों की गूंज होगी तो मैं उन्हें अनसुना कर के न खुद ऐयाशी कर सकता हूं, न दूसरे को ऐयाशी करने में मदद कर सकता हूं.’’

आगे पढ़ें- अचानक क्रोध से फट पड़े गगन त्रिपाठी….

Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-2)

अचानक क्रोध से फट पड़े गगन त्रिपाठी. उन्होंने कहा, ‘‘अरे मूर्ख सम्राट, जो आदर्श का पाठ मैं पढ़ाता रहा हूं, वह राजनीति की बिसात थी. शिकार के लिए फैलाए दानों को तो तू ने भूख का इलाज ही बना लिया. दूर हो जा मेरे सामने से. जिस दिन दिमाग ठिकाने आए, मेरे सामने आना.’’

आराम से सभ्य शब्दों में बातें करने वाले, लोगों को पिघला कर मक्खन बनाने वाले गगन त्रिपाठी बेटे की बातों से इतने उतावले हो चुके थे कि उन की लोकलुभावन बाहरी परत निकल गई थी. वे असली चेहरे के साथ अब बाहर थे. क्यों न हो, यह तो आस्तीन में ही सांप पालने वाली बात हो गई थी न. राजनीति की इतनी सीढि़यां चढ़ने में उन के दिमाग के पुरजेपुरजे ढीले हो गए थे. और फिर सशक्त खेमे वाले विरोधियों को पछाड़ कर ऊंचाई पर बने रहने की कूवत भी कम माने नहीं रखती.

इधर एक भी ईंट भरभरी हुई, तो पूरी मीनार के ढहने का अंदेशा हो जाता है. बेटे तो नींव की ईंटें हैं, चूलें हिल जाएंगी. यह अनाड़ी तो बिना भविष्य बांचे दरदर लोगों की भलाई किए फिरता है. दिमाग ही नहीं लगाता कि जहां भलाई कर रहा है वहां फायदा है भी या नहीं. न जाति देखता, न धर्म, न विरोधी पार्टी, न विरोधी लोग. कोई भेदविचार नहीं. सत्यवादी हरिश्चंद्र सा आएदिन सत्य उगल देता है जो अपनी ही पार्टी के लिए खतरे का सिग्नल बन जाता है. सो, क्यों न इस लड़के को यहां से निकाल कर इलाहाबाद भेज दिया जाए. कम से कम इस से उस का भला हो न हो, पार्टी को नुकसान तो कम होगा. ऐसे भी इस लड़के के आसार सुख देने वाले तो लगते नहीं. काफीकुछ भलेबुरे का सोच गगन त्रिपाठी बेटे मृगांक को आईएएस की तैयारी करने के लिए इलाहाबाद छोड़ आए. जिस के पंख निकले ही थे दूसरों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए, वह क्या दूसरों के पंख कुतरेगा खुद की भलाई के लिए?

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मृगांक इलाहाबाद में भी अपने ही तौरतरीकों में रम गया. इतिहास में पीएचडी करते हुए विश्वविद्यालय में ही प्रोफैसर हो गया. आईएएस की कोचिंग से निसंदेह उस में ज्ञान के प्रति ललक बढ़ी थी और मानव जीवन के प्रति जिज्ञासा भी. लिहाजा, सामाजिक कार्यों की उस की फेहरिस्त बड़ी लंबी थी. 29 वर्ष की अवस्था में वह 700 मुकदमे लड़ रहा था जो उपभोक्ता संरक्षण से ले कर सड़क परिवहन व्यवस्था में सुरक्षा की अनदेखी, शिक्षा के गिरते स्तरों में प्राइवेट स्कूलों की उदासीनता और सरकारी स्कूलों में लापरवाही तथा देहव्यापार में लिप्त लोगों को कानूनी दायरे में ला कर सजा दिलवाने व इस व्यापार में लगी मासूम बच्चियों के संरक्षण वगैरा के मामले थे. प्रोफैसर की नौकरी बजाते हुए अकेले ही कुछ अच्छे लोगों के सहयोग से वह इन कामों को आगे बढ़ा रहा था. हां, उस के दादाजी का कभी पुलिस विभाग में होना उसे पहचान का लाभ जरूर देता था. न जाने पहचान का लाभ लोग किसकिस वजह लेते हैं, मृगांक के लिए तो यह लाभ सिर्फ सर्वजनहिताय था.

5 फुट 10 इंच की लंबाई के साथ बलिष्ठ कदकाठी में सांवला रंग आकर्षण पैदा करता था उस में. रूमानी व्यक्तित्व में निर्विकार भाव. दिनभर क्लास, फिर दोपहर 3 बजे से शाम 8 बजे तक भागादौड़ी और रात अपनी छोटी सी कोठरी में अध्ययन, चिंतन, मनन व निद्रा. घरपरिवार, राजनीति, रिश्तों के मलाल, आदेशनिर्देश, लाभनुकसान सब पीछे छूट गए थे.

शादी के लिए घर वालों ने कितनी ही लड़कियों की तसवीरें भेजीं, मां ने कितने ही खत लिखे. दीदी ने सैकड़ों बार फोन किए. मगर मृगांक की आंखें लक्ष्य पर अर्जुन सी टिकी रहीं. उधर, बांदा में पिता की राजनीतिक ताकत और बड़े भाई का राजपाट मृगांकनुमा बाधा के बिना बेरोकटोक फलफूल रहे थे. भाई की पत्नी ऊंचे घराने की बेटी थी जो बेटा पैदा कर के ससुर की आंखों का तारा बन बैठी थी.

जिंदगी की रफ्तार तेज थी, एकतरफ लावलश्कर के साथ ठसकभरी जिंदगी, दूसरी तरफ मृगांक के कंधों पर जमानेभर का दर्द. मगर सब अपनी धुन में रमे थे. मृगांक भी लक्ष्य की ओर दौड़ रहे थे मगर निजी जिंदगी से बेखबर.

इन दिनों उस ने ‘नवलय’ संस्थान की शुरुआत की. दरअसल, देहव्यापार से मुक्त हुई लड़कियां काफी असुरक्षित थीं. एक तरफ उन लोगों से इन्हें खतरा था जो इन्हें खरीदबेच रहे थे. दूसरे, घर परिवार इन लड़कियों को सहज स्वीकार नहीं करते थे, जिन के लिए अकसर वे अपनी जिंदगियां दांव पर लगाती रही थीं. ऐसे में मृगांक खुद को जिम्मेदार मान इन लड़कियों की सुव्यवस्था के लिए पूरी कोशिश करता. नवलय इन असुरक्षित लड़कियों का सुरक्षित आसरा था. मृगांक ने बांदा जिले के चिल्लाघाट की रिजवाना को कल घर पहुंचाने की जिम्मेदारी ली थी. इस बहाने वह मां से भी मिल लेगा. कई साल हो गए थे घर गए हुए. बड़े भाई का बेटा भी अब 7 साल का हो चुका था.

शाम 5 बजे जब वह नवलय आया, तो नीम के पेड़ के पास खड़े हो कर रिजवाना को घुटघुट कर सुबकते देखा. वह संस्थान के औफिस में जा कर बैठ तो गया लेकिन मन उस का रिजवाना की ओर ही लगा रहा. अपने औफिसरूम से अब भी वह रिजवाना और उस की उदास भंगिमा को देख पा रहा था. चेहरा मृगांक का जितना ही पौरुष से भरा था, भावनाएं उस की उतनी ही मृदुल थीं. रसोइए कमल को बुला कर कहा कि वह रिजवाना को बुला लाए. रिजवाना की रोनी सूरत देख वैसे तो उस का मिजाज उखड़ गया था, सो जरा सी डपट के साथ समझाने के लहजे में उस ने कहा, ‘‘जब घर से बाहर आ ही गई हो, काफी मुसीबतें झेल भी चुकी हो, तो अब रोना क्या? अब तो हम तुम्हारे घर जा ही रहे हैं.’’

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गहरी चुप्पी. ‘‘क्यों, कुछ कहोगी?’’

चुप्पी… ‘‘देखो, मैं थप्पड़ जड़ दूंगा,’’ थकामांदा मृगांक आजकल कुछ चिड़चिड़ा सा हो रहा था. मृगांक के मुख से यह सुनते ही गुस्से से भर रिजवाना ने मृगांक की तरफ देखा. रोने से आंखें कुछ सूजी हुई थीं, मगर दृष्टि स्पष्ट. गोरे से रक्तिम चेहरे पर अनगिनत भाव, जिन में स्वाभिमान सब से मुखर था. तीखे नैननक्श, गोलाई में नुकीला चेहरा, ठुड्डी तक हीरे सी कटिंग. मृगांक के कंधे तक उस की ऊंचाई. दुबली ऐसी, कि वक्त की रेत ने चंचल नदी के किनारों को पाट दिया हो जैसे. नदी आधी जरूर हो गई थी, मगर प्यार और संभाल की बारिश मिले तो वह आबाद हो जाए.

आगे पढें- मृगांक का गुस्सा उस के…

Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-3)

मृगांक का गुस्सा उस के रूमानी नखरों के बीच काफूर हो गया. मन ही मन उस ने कहा, ‘वाह.’ एक मिनट तक दोनों एकदूसरे की ओर देखते रहे. मृगांक ने चुप्पी तोड़ी, कहा, ‘‘क्या बात है, मुझ से कहो. यहां की सारी बच्चियों के लिए मैं ही पिता, मैं ही मां. तुम्हारी भी अगर…’’

‘‘मेरे हिस्से का रिश्ता मुझे तय करने दीजिए. जरूरी नहीं कि तुरंत 2 व्यक्तियों को किसी रिश्ते के नाम में बांध ही दिया जाए.’’ रिजवाना की इन बातों में बड़ी कशिश थी. वह क्या अनछुआ सा था अब तक जिसे छूने की प्यास सताने लगी मृगांक को. कभी ऐसा महसूस तो नहीं हुआ था उसे, आज क्यों…?

मृगांक ने मुसकराते हुए उस की तरफ देखा, फिर कहा, ‘‘क्यों दुखी हो, मुझ से कहो.’’ तड़पती सी वह धीरे से बोली, ‘‘मैं अपने घर चिल्लाघाट नहीं जाऊंगी. बच्ची को ले कर वहां जाऊंगी तो घर वाले तो क्या, पूरे गांव वाले कच्चा चबा जाएंगे.’’

मृगांक को बड़ा तरस आया उस पर. पूछा, ‘‘क्या हुआ था तुम्हारे साथ? मैं ने पुलिस की दबिश डलवा कर तुम 15 लड़कियों को जहां से छुड़ाया, वह तो नरक से कुछ कम नहीं था. इन में से कई लड़कियां असम, बिहार और पश्चिम बंगाल से लाई गई हैं. तुम और 3 दूसरी लड़कियां उत्तर प्रदेश की हो. ये लोग दुबई आदि जगहों पर शेखों के पास तुम जैसी लड़कियों को बेच देते हैं.’’

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‘‘3 महीनों से हमें इलाहाबाद में रखा हुआ था. हमारे साथ यहां बहुत बुरा सुलूक होता था. करंट देने से ले कर कोड़े बरसाने तक. 3-4 दिनों तक खाना नहीं देना, सब के सामने कपड़े फाड़ डालना, मारना, पीटना आदि.’’ रिजवाना की बातें सुन कर मृगांक की आंखों में दर्द भर आया. उस ने तड़प कर पूछा, ‘‘क्यों?’’

रिजवाना जमीन की ओर देखती, कहती गई, ‘‘ग्राहक के साथ सोने की जबरदस्ती, पैसे वे लोग रखेंगे, हम बस उन के गुलाम. जब तक हम कहीं और न बिकें, उन के लाए ग्राहकों को खुश करें. और उन्हें भी.’’ मृगांक ने पूछा, ‘‘तुम घर से निकल कर उन तक पहुंची कैसे?’’

‘‘आप को मालूम होगा, बांदा जिले में शजर पत्थरों के नक्काशीदार गहने बड़े भाव से बिकते हैं. मैं शजर पत्थरों से गहने बनाती थी, रोजीरोटी के लिए. ‘‘घर में मुझे मिला कर 3 बहनें थीं. एक भाई भी. अब्बा कौटन मिल में मजदूरी करतेकरते फेफड़े की बीमारी से चल बसे. भाई काम पर तो जाता लेकिन उम्र कम होने की वजह से मजदूरी नहीं मिलती थी. बहनों को घर पर काम होता था. 4 साल पहले जब मैं 16 साल की थी, सोचा शजर पत्थरों से गहने अच्छी बनाती हूं, क्यों न शहर में बेचा करूं, पैसे आएंगे.

‘‘चिल्लाघाट से बांदा मुख्य बाजार आने के लिए बस पर चढ़ी, तभी अचानक किसी ने नाक पर रूमाल रख दिया. जब होश आया, खुद को होटल के कमरे में 4 लोगों के साथ पाया. कोठे में बेच दी गई. बेटी शीरी वहीं हुई. ‘‘अचानक उस कोठे पर पुलिस और महिला सुरक्षा संस्थान की दबिश पड़ी तो कोठे की मालकिन ने इन लोगों के हाथों हम 15 लड़कियों को बेच दिया था. हम महीनेभर से यहीं इलाहाबाद में थे.’’

‘‘चलो, एकबार कोशिश करते हैं. तुम्हारे घर वालों तक तुम्हें पहुंचाना मेरा काम है. स्वीकार न किए जाने पर नवलय तो है ही.’’ केन नदी के किनारे से मृगांक की जीप दौड़ती जा रही थी.

भुरागढ़ किला और विंध्य पठारों के पास से गुजरती जीप पर बैठे रिजवाना और मृगांक किले को ही एकटक देख रहे थे. मृगांक ने पूछा, ‘‘जानती हो इस भुरागढ़ किले के बारे में?’’ रिजवाना उदासीन थी, कहा, ‘‘ज्यादा नहीं, आप ही बताइए.’’

‘‘महाराजा धनसाल के बेटे जगत राई और उन के बेटे थे किराट सिंह. उन्हीं किराट सिंह ने यह किला बनवाया था. 1857 में नवाब अली बहादुर ने यहीं से ब्रिटिश अधीनता के विरुद्ध बिगुल फूंका था.’’

‘‘हूं,’’ रिजवाना दूर काली मिट्टी और उस पर उपजे सरसों, मटर, गेहूं के खेतों में कहीं खो गई थी. यमुना और केन की मिलनरेखा दूर से दिखने लगी थी. चिल्लाघाट आने को था, शाम की सुरमई शांति में दूर से फाग गीतों के धुन कानों में पड़ रहे थे. धर्म के मोह से ऊपर उठ कर फाग ने यौवन की मादकता को पुकारा था.

रिजवाना बचपन के दिनों की इस मनोरम जगह पर मृगांक की उपस्थिति से प्रफुल्लित सी सिहर गई. गोद में बच्ची और गांवघर के लोगों का अचानक खयाल आना उसे मायूस कर गया. रिजवाना के छोटे से घरआंगन में तब दीपक की रोशनी टिमटिमा रही थी. दोनों बहनें खाना बना रही थीं. भाई चारपाई पर लेटा था. बहन को देख दोनों बहनें दौड़ी आईं. लेकिन रिजवाना की गोद में बच्ची को देख दोनों ठिठक गईं. भाई चारपाई से उठ बैठा. मगर, बस बैठा देखता रहा. दोनों बहनें मां को बुला लाईं जो अंदर कढ़ाई और कशीदे का काम कर रही थीं. मृगांक के साथ उस की अम्मी की बातों का सार यही रहा कि एक बेटी के चलते शबाना और अमीना, जिन का निकाह होना लगभग तय है, की जिंदगियों पर पानी फिर जाएगा. ऊपर से इस की गोद में हराम की औलाद. गांव वाले हुक्कापानी बंद कर देंगे. ऐसे भी, बेटी की गुमशुदगी से कम जिल्लतें नहीं हुई हैं.

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मृगांक समझ गया कि दाल नहीं गलेगी. कम से कम सुबह तक तो ठहरें. इलाहाबाद से बांदा तक 7 घंटे के सफर के बाद अब रात को वापस जाना मुमकिन नहीं. इधर, रिजवाना को ले कर या छोड़ कर अपने घर जाना भी संभव नहीं. अम्मी ने रातभर के लिए खाना भी मुहैया कराया और पनाह भी. सुबह दोनों निकलने वाले ही थे कि चिल्लाघाट पंचायत के 4 लोग दनदनाते सुबह 7 बजे इन के घर पहुंच गए. एक ने चीखा, ‘‘अंदर नापाक औरत के साथ क्या गुल खिला रहे हो, मृगांक बाबू? इतने बड़े नेता के बेटे हो कर भगोड़ी के साथ नापाक रिश्ता?’’

वे लोग रिजवाना को अब तक बाहर खींच लाए थे. रिजवाना की अम्मी दहाड़े मार कर रोने लगीं. बहनों ने उन्हें डपटा, तो चुप हो गईं. मृगांक ने बाहर आ कर उन्हें रोकने के लिए कहा, ‘‘क्यों मासूम परिवार को सता रहे हो आप लोग? मुझे अपने पिताजी के काम से अब कोई मतलब नहीं.’’

पंचायत के एक आदमी ने कहा, ‘‘सात घाट का पानी पीने के लिए घर से भाग खड़ी हुई और अब नापाक हो कर वापस लौटी है. हमारे मजहब में ऐसी औरतों को बागी मान कर सजा के लायक माना गया है.’’ इतना कहते हुए उन लोगों ने उस की चुन्नी नीचे खींच दी और उस के हाथों को मरोड़ कर खुद के करीब ले आए. मृगांक ने झपट कर रिजवाना को अपने पास खींचा और चीखा, ‘‘शर्म नहीं आती लड़की की इज्जत उतार कर गांव की इज्जत बचा रहे हो?’’

‘‘बात आप के पिताजी तक पहुंचेगी. आप लड़की हमें सौंप दें तो हम आप को और आप के इस लड़की के साथ ताल्लुकात को हजम कर जाएंगे.’’ ‘‘नापाक कौन है मैं समझ नहीं पा रहा- लड़की को सौंप दूं- ताकि आप शौक से इस की बोटी नोचें. कह दें गगन त्रिपाठीजी से, मुझे कोई दिक्कत नहीं,’’ मृगांक ने साफ कहा.

आगे पढें- दोनों के रिश्तों के बारे में इतने…

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Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-4)

वे दोनों इलाहाबाद वापस आ गए थे. दोनों के रिश्तों के बारे में इतने कसीदे काढ़े गए थे कि गगन त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे शशांक आपे से बाहर हो गए. रिश्तेदारों में मृगांक के सामाजिक कामों को ले कर बड़ी छीछालेदार हुई. अब लेदे कर वेश्या ही बची थी, सपूत ने वह भी पूरा कर दिया. जातिबिरादरीधर्म सबकुछ उजड़ गया था त्रिपाठीजी का. ब्राह्मण बिरादरी गगन त्रिपाठी पर बड़ा गर्व करती थी. कैसा दिमाग चला कर सत्ता के करीबी हो गया उन की ही बिरादरी का व्यक्ति. गगन त्रिपाठी अपनी जातिबिरादरी के गर्व थे. अब बेटे ने कुजात की लड़की की संगत कर के धर्मभ्रष्ट कर दिया. गगन त्रिपाठी जितना सोचते, उन का पारा उतना सातवें आसमान पर पहुंच जाता. सदलबल बड़े बेटे को साथ ले वे इलाहाबाद पहुंच गए.

नवलय संस्थान पर त्रिपाठीजी और उन के लोगों का जब धावा पड़ा तब मृगांक के वापस आने में एक घंटा बाकी था. उन के इस तरह यहां आने से यहां की दीदियां घबरा गईं. सहयोगी नेकराम ने मृगांक को फोन लगाया. जब तक मृगांक यहां पहुंचे, शशांक रिजवाना के कमरे में घुस आया था.

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रिजवाना के कमरे में 3 और लड़कियां थीं, जिन्हें बाहर कर दिया गया था. शशांक बुरी तरह रिजवाना को जलील कर रहा था और उसे शारीरिक चोट भी पहुंचाई थी. मृगांक तुरंत रिजवाना को अपनी तरफ खींचते हुए अभी कुछ कहता, उस से पहले गगन त्रिपाठी मृगांक पर बुरी तरह चीखे, ‘‘क्या रासलीला चल रही है यहां मुसलिम वेश्या के साथ?’’ साफ शब्दों में मगर ऊंची आवाज में मृगांक ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप लोग मुझे इतना अपना समझते हैं कि यहां तक पहुंच जाएंगे. नीति, ज्ञान और सचाई को सीढ़ी बना कर आप लोगों ने लोगों के सरल विश्वास का जितना बलात्कार किया है उतना ही इन मासूम लड़कियों के साथ हुआ है. छोटी बच्चियों को मांस के भाव खरीदबिक्री करने वाले लोग भी आप जैसे हैं और उन की बोटी नोचने वाले भी आप जैसे. धर्म की आड़, कभी जाति की आड़, कभी संस्कृति की आड़ में बस लोगों के झांसे में आने की देर है, आप उन के विश्वास का शोषण भी करते हैं और उन के उद्धार करने का श्रेय भी स्वयं लेते हैं.’’

गगन त्रिपाठी की पूरी पौलिश उतर चुकी थी. वे क्रोधित हो सभी को ले वहां से निकल गए. उन के जाने के बाद रिजवाना की ओर देखा मृगांक ने. मृगांक की तरफ पीठ कर के वह बगीचे में शांति से खड़े पेड़ों को देख रही थी. फल हो या छाया, हमेशा सबकुछ लुटाने को तैयार थे पेड़, मगर हमेशा हर व्यवहार को सहन कर जाने को विवश भी. उस की पीठ की आधी फटी कुरती की ओर नजर गई मृगांक की. शशांक ने कुरती को फाड़ डाला था. झक गोरी पीठ पर झुलसे हुए इलैक्ट्रिक शौक के दाग. मृगांक करुणा से भर उठा. अब तक छोटी बच्चियों के प्रति उस के मन में हमेशा पिता सा वात्सल्य रहा. लेकिन रिजवाना ने अपनी दृष्टि से मृगांक की अनुभूतियों को विराग से रागिनी के मदमाते निर्झर की ओर मोड़ दिया था.

नेहभरे स्वर में पुकारा उस ने, ‘‘रिजवाना.’’ वह अब तक खिड़की के पास खड़ी बाहर देख रही थी. पुकारते ही आंखों में मूकभाषा लिए अपनी मुखर दृष्टि उस की आंखों में डाल दी.

मृगांक ने पूछा, ‘‘बताओगी तुम्हारी पीठ पर जो झुलसे हुए दाग हैं, क्या ये उन्हीं दरिंदों की वजह से हैं.’’

‘‘हां, भूखे भेडि़यों के आगे शरीर न डालने की बेकार कोशिशों का नतीजा. और भी हैं, पेट के पास,’’ यह कह कर उस ने अपनी कमीज उठा कर दिखाई. फिर धीरे से कहा, ‘‘जाने क्यों मैं आप के सामने खुद को बहुत महफूज समझती हूं. लगता है जैसे…’’ और उस ने सिर झुका लिया. रिजवाना के अनकहे शब्दों की गरमी मृगांक के जज्बातों को पिघलाने लगी. मृगांक स्थिर नेत्रों से उस की ओर देखता रहा. एक नशा सा छाने लगा, कहा, ‘‘और कहो.’’ ‘‘मैं आप के पास रहना चाहती हूं हमेशा के लिए. जानती हूं, यह कहां मुमकिन होगा- आप ब्राह्मण और मैं मुसलमान, वह भी मैं बदनाम.’’

‘‘बस, यह मत कहो. जाति, धर्म और पेशे से इंसान कभी इंसान नहीं होता, न कोई इन्हें मानने से पाक होता है. जो दिल दूसरों के दर्द में पसीजे और दूसरों को हमेशा अपने प्रेम के काबिल समझे, बराबर समझे, वहीं इंसान है. और इस लिहाज से तुम पाक हो, प्यार के काबिल हो. लेकिन, एक दिक्कत है.’’ यह सुन कर आंखों में रिजवाना के खुशियां तैरने लगी थीं. अचानक वह खुशियों में डूबने लगी, पूछा, ‘‘क्या?’’

‘‘मैं तुम से उम्र में 20 साल बड़ा हूं. तुम्हारे साथ जुल्म न हो जाएगा? कैसे चाह सकोगी मुझे?’’ ‘‘सच कहूं तो उम्र का यह फासला आप की शख्सियत में रूमानियत भरता है.’’

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उस ने अपनी आंखें झुका लीं. मृगांक ने अपनी दोनों बांहें उस की ओर पसार दीं. रिजवाना अपने दोनों बाजुओं के घेरे में मृगांक को ले कर खुद उस में समा गई. एक महीने के भीतर ही दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली. दोनों मिल कर नवलय का काम देखने लगे. इन दोनों की शादी की बात गगन त्रिपाठी तक पहुंच चुकी थी. गगन त्रिपाठी अब सांसद बनने की तैयारी में थे, बड़ा बेटा विधायक. ब्राह्मण की ऊंची नाक की इस बेटे ने ऐसीतैसी कर दी तो सीधा असर वोटबैंक पर आ पड़ा. कम से कम मुसलिम वोट और देहव्यापार तथा नाचगाने करने वाली औरतों के वोट गगन त्रिपाठी को मिल जाएं तो ब्राह्मण वोट के खिसकने का दर्द कुछ कम हो. इस बीच, ब्राह्मण वोटर मान जाएं तो वारेन्यारे.

गगन त्रिपाठी सदलबल पहुंच गए चिल्लाघाट. पंचायतसभा बुलाई गई. रिजवाना के भाई को नौकरी, गांव में 2 हैंडपंप, बिजली की व्यवस्था तत्काल करवाई गई.

पंचायत और मुसलिम समाज के साथ चर्चा कर के इस नतीजे पर पहुंचा गया कि रिजवाना गांव की बेटी है, जब इस गांव की बेटी गगन त्रिपाठी के घर की बहू बन गई है तो उसे बदनाम औरत न समझ, पूरी इज्जत बख्शी जाए. अगर त्रिपाठी की पार्टी को जिताने का वादा किया जाए तो गांव के लोगों की मुंहमांगी मुराद पूरी होगी.

उधर, मुसलिम भाई, जो रिजवाना के साथ हाथापाई में उतरे थे, अब उस की बदौलत बांदा की कुछ मुख्य सीटों पर त्रिपाठी की पार्टी से खुद के भाईभतीजों को उतारना चाहते थे, आपस में जबरदस्त गठबंधन.

मृगांक और रिजवाना को हिंदुमुसलिम एकता का प्रतीक बना कर चुनावी रणनीति तैयार होने लगी. बड़ेबड़े होर्डिंग्स में दोनों की तसवीरें लग गईं. उन दोनों को सार्वजनिक चुनावी सभा में उपस्थित होने का निमंत्रण भेजा गया.

मंच पर आज मृगांक, रिजवाना और उस की बेटी शीरी उपस्थित थे. काफी लुभावने भाषणों के बाद मृगांक की बारी आई. उस ने माइक संभाला, कहा, ‘‘आज जो भी मैं कहूंगा, जरूरी नहीं कि उस से सब के मनोरथ पूरे हो पाएं. मैं ने रिजवाना से इसलिए शादी नहीं की कि मुझे हिंदूमुसलिम एकता के झंडे गाड़ने थे. सच कहूं तो जातिधर्म को ले कर मैं कोई भेद महसूस नहीं करता, जो जोड़ने की जुगत करूं. उस का मुसलिम होना, मेरा हिंदू होना सबकुछ सामान्य है मेरे लिए, जैसे इंसान होना. यह भी नहीं कि लाचार औरत पर मैं ने कोई कृपा बरसाई है. उस ने मुझे पसंद किया, मैं ने उसे. उम्र का फासला उसे डिगा नहीं पाया और हम एक हो गए. और हमारी बेटी, जो उस के किसी पाप का नतीजा नहीं है, हमदोनों के

प्रेम में माला सी है. मेरे पिता मुझे हमेशा बड़ा आदमी बनने की नसीहत देते थे. उन्हें अफसोस होगा उन के हिसाब से मैं बड़ा नहीं बन पाया.’’

रिजवाना की गोद से मृगांक ने बच्ची को लिया, रिजवाना का हाथ पकड़ा और स्टेज से उतर कर दोनों ने राह पकड़ी अपने तरीके से अपनी दुनिया बसाने. पीछे भीड़ देखती रही किंकर्तव्यविमूढ़ सी.

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हुंडई i20 की खासियत जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

ये कहना की नई हुंडई i20 सिर्फ फीचर पैक्ड कार है, गलत होगा ! वास्तव में हम ऐसा क्यों कह रहे है यह बताने के लिए हम आगे नई हुंडई i20 की एक्स्ट्रा पॉपुलर फीचर्स की जानकारी देगें.

सबसे पहले आपको बता दें कि इसमें 26.03 सेमी टचस्क्रीन मीडिया और नेविगेशन सिस्टम है. इसकी बड़ी स्क्रिन होने के कारण यह अधिक जानकारी को प्रदर्शित करती है. और यह जानकारी बहुत ही आसान प्रारुप में प्रस्तुत की जाती है. यह आपके लिए और भी ज्यादा सरल हो जाता है जब आप रास्ते में होते हैं.

इसके साथ ही नई i20 में एयर क्वालिटी इंडिकेटर के साथ एयर प्यूरीफायर लगाया गया है, अभी के समय में इनबिल्ड एयर प्यूरीफायर होना लाभदायक ही नहीं है बल्कि जरूरत भी है. और हुंडई i20 आपको ऐसी ही चीजें प्रोवाइड करता है जिसकी आपको जरुरत है.

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हमने आपको पहले ही बता दिया था कि i20 के पास बेस्ट इंटीरियर है. लेकिन आप इसके इलेक्ट्रीक सनरूफ के साथ ज्यादा धूप का आनंद ले सकते हैं. जो आपके कार के इंटीरियर को और हवादार बना देता है.

अगर यात्रा के दौरान आपके फोन की बैटरी खत्म हो रही हो तो ऐसे में i20 में वायरलेस चार्जिंग प्वाइंट कूलिंग वेन्ट के साथ दिया है. जिससे आप बिना किसी परेशानी के अपना फोन चार्ज कर सकते हैं. जब तक आप अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचेंगे आपका फोन चार्ज हो गया होगा.

इन सभी अनगिनत सुविधाओं को देखते हुए हुंडई i20 को #BringsTheRevolution कहा गया है.

REVIEW: जानें कैसी है भूमि पेडनेकर और अरशद वारसी की फिल्म ‘दुर्गामती’

 रेटिंगः एक स्टार

 निर्माताः विक्रम मल्होत्रा, अक्षय कुमार, भूष् ाण कुमार, किशन कुमार

निर्देशकः अशोक

कलाकारः भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, माही गिल,  करण कपाड़िया, जीशू सेन गुप्ता, अमित बहल, अनंत महादेवन, धनराज, सोण्ब अली, चंदन विकी रॉय, प्रभाकर रघुनंदन,  ब्रजभूषण शुक्ला व अन्य.

अवधिः दो घंटे 36 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजन प्राइम वीडियो

दक्षिण भारत के चर्चित फिल्मकार जी. अशोक अपनी 2018 की सफलतम हॉरर व रोमांचक तमिल व तेलगू फिल्म ‘‘भागमती’’का हिंदी रीमेक ‘‘दुर्गामती’’लेकर आए हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द बनी गयी हॉरर रोमांचक फिल्म में किसी राज्य के आईएएस अफसर को किसी केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की चाल में फंसाकर बदनाम करने,  बेइज्जत करने और फिर उसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा बनाने की कोशिश करने की कहानी है फिल्म ‘दुर्गामती’. यह बात मूल फिल्म ‘भागमती’ में क्लायमेक्स में दर्शकों को पता चलती है, जबकि फिल्म ‘दुर्गामती’शुरू में ही सारा खेल दर्शकों के सामने रख देती है. फिल्म पूरी तरह से निराश करती है.

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कहानीः

कहानी एक राज्य से शुरू होती है, जहां पर 12 प्राचीन मंदिरों की मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. जहां राज्य के इमानदार माने जाने वाले जल संसाधन मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) एक सभा में लोगों से वादा करते हैं कि यदि मंदिर की मूर्तियां चुराने वालों को 15 दिनों में नहीं पकड़ा गया, तो वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा राजनीति से सन्यास लेकर अजय को अपना उत्तराधिकारी बना देंगे, जो कि लोगों की सेवा करना ही परमधर्म समझता है. ईश्वर प्रसाद को उनकी ईमानदारी की वजह से जनता भगवान मानती है. पर इससे मुख्यमंत्री व पार्टी के अन्य नेता डरे हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री सीबीआई की संयुक्त आयुक्त सताक्षी गांगुली (माही गिल) और एसीपी अभय सिंह (जीशु सेनगुप्ता) को ईश्वर प्रसाद के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए कहते हैं. योजना के तहत सताक्षी गांगुली और एसीपी अभय सिंह जेल में बंद ईश्वर प्रसाद की पूर्व निजी सचिव व आईएएस अफसर चंचल चैहान (भूमि पेडनेकर) को पूछताछ के लिए जेल से निकालकर जंगल में बनी एक ‘दुर्गामती’नामक भुतिया महल में ले जाती हैं. चंचल अपने मंगेतर व अभय सिंह के छोटे भाई शक्ति (करण कपाड़िया) की हत्या  के जुर्म में जेल में बंद है. लोगों की राय में महल में रानी दुर्गामती की आत्मा वास करती है. लेकिन सीबीआई अफसर शताक्षी, चंचल को वहीं पर हर किसी की नजर से बचकर रखते हुए ईश्वर प्रसाद के कारनामे के बारे में पूछताछ करती है. जहां कई चीजे बलती हैं. चंचल, दुर्गामती बनकर कई नाटक करती है. पुलिस व सीबीआई अफसर को अहसास हो जाता है  कि रात होते ही चंचल पर रानी दुर्गामती की आत्मा आ जाती है औैर वह पूरी तरह से बदल जाती है. वही बताती है कि रानी दुर्गामती कौन थी?अंततः मनोचिकित्सक (अनंत महादेवन)की सलाह पर चंचल को पागलखाना में भर्ती कर दिया जाता है. जहां ईश्वर प्रसाद उससे मिलने आते हैं. तो क्या सच में वहां आत्मा का वास है या चंचल की चाल? यही क्लार्यमैक्स है.

लेखन व निर्देशनः

एक तमिल व तेलगू की सफलतम  फिल्म का हिंदी रीमेक ‘दुर्गामती’’ घोर निराश करती है. नारीवाद व भ्रष्टाचार पर कहानी कही जानी चाहिए, लेकिन फिल्म ‘दुर्गामती’ इस कसौटी पर भी खरी नही उतरती. पटकथा में काफी गड़बड़िया हैं. राज्य का एक महल शापित क्यों हैं? इस महल को लेकर पुरातत्व विभाग ने कभी कुछ क्यों नहीं कहा? यहां कोई जाने से डरता क्यो है? आखिर क्यों एक जांच एजेंसी किसी आईएएस अफसर को जेल से निकालकर किसी सुनसान हवेली में पूछताछ के लिए कैसे ले जा सकती है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब फिल्म ‘दुर्गामती’ देने की कोशिश नहीं करती. फिल्म को हॉरर रोमांचक फिल्म बताया गया है, मगर इसमें न तो हॉरर है और न ही रोमांच है. हकीकत में इन दिनों सिनेमा के नाम पर दर्शकों के सामने कुछ भी परोस देने की जो परंपरा चल पड़ी है, उसी का निर्वाह यह फिल्म करती है. फिल्म में गल ढंग से लिखी गयी पटकथा के चलते कथा कथन की शैली ही दोषपूर्ण है. इतना ही नही इसके संवाद तो पटकथा से भी ज्यादा खराब हैं.

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फिल्म देखकर अहसास करना मुश्किल हो जाता है कि इसी निर्देशक ने मूल सफलतम फिल्म का निर्देशन किया था. निर्देशन अति लचर है. फिल्म हिंदी में है मगर सीबीआई अफसर ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी में करती है. भूमि पेडनेकर के होंठ इतने सूजे क्यों है? इसका जवाब फिल्मकार ने नहीं दिया. रानी दुर्गामती बनी भूमि पेडनेकर के संवादों के पीछे दिया गया पाश्र्वसंगीत और ‘ईको’ उबाउ देने वाला है. इसके लिए पूर्णतः निर्देशक ही दोषी हैं.

निर्देशक ने राजनीति में वंशवाद, हिंदुत्व का मुद्दा, मंदिर का मुद्दा यानी कि जितने भी मसाले हो सकते थे, वह सब घुसा दिए हैं.

अभिनयः

भूमि पेडनेकर एक बेहतरीन अदकारा हैं, मगर यह फिल्म उनके कैरियर की सर्वाधिक खराब फिल्म है. जो दर्शक भूमि पेडनेकर को इस फिल्म में देखेंगे, उनके लिए यह यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि यह वही भूमि पेडनेकर हैं, जो इससे पहले लगातार कई चुनौतीपूर्ण किरदार निभाकर अपनी प्रतिभा साबित करती रही हैं. जीशू सेनगुप्ता बहुत खराब अभिनय है. माही गिल भी प्रभावित नहीं करती. करण कपाड़िया के चेहरे पर तो भाव ही नहीं आते.  हर दृश्य में वही सपाट चेहरा, वैसे भी उनका किरदार काफी छोटा है. अरशद वारसी व अमित बहल की प्रतिभा को जाया किया गया है.

कपिल शर्मा ने मनाया अपनी ‘लाडो’ अनायरा का पहला बर्थडे, Photos Viral

कौमेडी किंग कपिल शर्मा अक्सर अपनी पर्सनल और प्रौफैशनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहते हैं. जहां लोग उनकी हाजिर जवाबी की तारीफ करते हैं तो वहीं कुछ लोग उन्हें ट्रोल करना नही भूलते. बावजूद इसके वह अपनी जिंदगी की हर खुशी को फैंस के साथ शेयर करते नजर आते हैं. हाल ही में कपिल शर्मा ने अपनी बेटी अनायरा के पहले बर्थडे की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं अनायरा के बर्थडे पार्टी की खास झलक…

दादी ने पोती पर लुटाया प्यार

कपिल शर्मा की बेटी अनायरा के बर्थडे के मौके पर दादी भी पोती पर जमकर प्यार लुटाती नजर आईं. वायरल फोटोज में कपिल शर्मा की मां अनायरा को गोद में लेती दिखा रही हैं. वहीं अनायरा भी उनके साथ खेल रही है.

बेटी के साथ मस्ती करते नजर आया कपल

 

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बर्थडे के दौरान कपिल शर्मा अपनी बेटी अनायरा के साथ खूब मस्ती करते नजर आए. फोटो की बात करें तो कपिल शर्मा अपनी बेटी को जहां निहारते दिखे तो वहीं अनायरा केक खाने में बिजी नजर आईं. वहीं एक फोटो में कपिल शर्मा अपनी बेटी और वाइफ गिन्नी संग पोज देते भी नजर आए.

कपिल शर्मा ने फैंस का किया शुक्रिया

 

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अपनी बेटी के बर्थडे फोटोज वायरल होने के बाद हर कोई उन्हें बधाई देता नजर आया. वहीं इन बधाइयों का शुक्रिया करने के लिए कपिल ने लिखा, ‘हमारी लाडो अनायरा के पहले जन्मदिन को इतना खास बनाने के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया. आप सभी का प्यार हमारे लिए मायने रखता है. वहीं केक की वीडियो शेयर करते हुए भी फैंस को शुक्रिया किया.

 

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मस्ती करते नजर आए भारती और कपिल

 

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बेटी अनायरा के बर्थडे पार्टी में शिरकत करने वाले मेहमानों में भारती सिंह भी शामिल हैं, जिसकी एक वीडियो में कपिल भारती और उनके फैमली संग मस्ती करती नजर आ रही हैं.

 

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बता दें, खबरे हैं कि कपिल शर्मा एक बार फिर पापा बनने वाले हैं. हालांकि अभी इसे लेकर कोई अधिकारिक घोषणा नही की गई है.

यह कैसा लोकतंत्र

लव जिहाद, गौपूजा, गौटैक्स, नागरिक संशोधन कानून, मंदिर  निर्माण, जातियों के आधार पर आर्थिक सहायता, जातिगत आरक्षण, एक ही जाति के लोगों का शीर्ष स्थानों पर कब्जा कर लेना साफ कर रहा है कि देश अब छोटेछोटे खानों में तेजी से बंट रहा है और उस विभाजन की लपटें घरों में भी पहुंच रही हैं.

इस विभाजनकारी सोच का नतीजा है कि लोग ऐसा पड़ोस घर के लिए चुनते हैं, जहां उन के जैसे लोग ही रहते हों. निरंकारी कालोनी, अंबेडकर ऐन्क्लेव, परशुराम नगर, जाकिर कालोनी, गुप्ता कोऔपरेटिव सोसायटी जैसे नामों से रिहायसी इलाकों में बुरी तरह जातिगत भेदभाव है. इन कालोनियों में दूसरों को आमतौर पर जगह ही नहीं दी जाती और कोई घुस जाए तो पासपड़ोस के लोग उस से संबंध नहीं रखते.

हिंदूमुसलिम भेदभाव तो पुराना और बहुचर्चित है पर अब कमा सकने वाले पिछड़े और दलित भी यदि ऊंचों की कालोनी में जाना चाहें तो उन्हें घर बंद मिलते हैं.

हाल यह है कि प्रौपर्टी ब्रोकर पहले ही पूछ लेता है या नाम, काम, पृष्ठभूमि से अंदाजा लगा लेता है कि खरीदार कौन से वर्ग, कौन से धर्म और कौन सी जाति से है और उसे वहीं जगह दिखाता है जहां उसी के जैसे लोग रहते हैं. अलग वर्गों के लोग भी उन्हीं इलाकों में रहने को जमा हो जाते हैं जहां उन के जैसे लोग रहते हैं.

देश के विभाजन की यह पहली लकीर होती है. दुनिया में जो भी लकीरें नकशों में बनी हैं उन के पीछे धर्म, जाति, भाषा, रंग आदि के कारण ही रहे हैं. बहुत से युद्ध इसी कारण हुए थे. द्वितीय विश्व युद्ध जो सब से संहारक युद्ध रहा है एडोल्फ हिटलर की जाति श्रेष्ठता के भाव के कारण ही लड़ा गया. हिटलर साबित करना चाहता था कि जरमन आर्य सर्वश्रेष्ठ हैं.

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उधर जापानी यह सोच कर बैठे थे कि सूर्य को सब से पहले देखने के कारण वे ही दुनिया के मालिक हैं और बाकी सब देश, समाज, लोग उन से कमतर हैं. युद्धों में जापानियों की बर्बरता व कू्ररता हमेशा ही अति करती रही है.

इस का फर्क आज घरों में देखने को मिल रहा है. उन्हें बहुत कुछ अपनी जाति के कारण झेलना पड़ता है. कभी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए नाटकीय प्रपंच करने होते हैं, व्रतउपवास करने होते हैं, तो कभी पड़ोसी से कम होने के कारण भरे समाज में एकांतवास झेलने को मजबूर होना पड़ता है. आपात स्थिति में भी कोई एकदूसरे का साथ नहीं देता.

शहरों में जो अजनबीपन आसपास के लोगों के बीच पसरने लगा है, उस के पीछे कारण यही है कि हम अपना कुछ को ही समझते हैं और वह पड़ोस में रहता हो यह जरूरी नहीं. पैसा फेंको, सुरक्षा लेने की आदत के कारण अब पड़ोसी पर निर्भरता न के बराबर है. मकान बड़े हों या छोटे, लोगों से बराबर वाले घरों में औपचारिक दुआसलाम के अलावा कोई संबंध नहीं रखो.

कामकाजी औरतें बढ़ गई हैं तो वे और कम चिंता करती हैं कि पड़ोस में कौन रहता है. सब अपने में मस्त हैं. सब ऐसे रहते हैं मानो होटल में रह रहे हों जहां पड़ोस के कमरे में रहने वाले के बारे में पूछताछ करना भी असभ्यता की निशानी माना जाता है और निजता में दखल समझा जाता है.

भारत, अमेरिका, रूस जैसे देशों में यह समस्या अब बढ़ रही है. भारत 1947 में एक विभाजन देख चुका है. पाकिस्तान 1947 और 1971 में विभाजन देख चुका है. आज देश में घरघर में विभाजन की तैयारी चल रही है.

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विवाह अपने धर्म में, अपनी जाति में, गोत्र के हिसाब से, अपने आर्थिक वर्ग के अनुसार ही और इसी चक्कर में आजकल फिर विवाहों में प्रेम कम समझौते ज्यादा होने लगे हैं. कमजोर होते निकाह संस्कार का एक कारण यह भी है कि एक वर्ग के लोग बिलकुल बदलने को तैयार नहीं होते और उन की सोच में लचीलापन नहीं रहता. अलग तरह के लोग जब साथ मिल बैठते हैं तो अपनी आदतों को दूसरों के अनुसार बदल लेते हैं. वैवाहिक विवाद व हिंसा अपनी जाति, अपने धर्म, अपने गोत्र के अनुसार किए विवाहों में ज्यादा होती है, क्योंकि उन में एक साथी के हिंसा के विरोध का हिसाब नहीं होता. जो है जैसा है, सहने की आदत हो जाती है.

देश लोगों से बनता है, लोग घरों और परिवारों से बनते हैं. जब घरों और परिवारों में हम एक हैं की भावना को जानबूझ कर कुचला जा रहा हो तो महान विशाल देश का बने रहने में भ्रष्ट होने लगता है

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