बंधेज: हर उम्र की महिलाओं के लिए है परफेक्ट

लेखिका- सुचित्रा अग्रहरी

पहनावे से ही तो नख़रा और खूबसूरती झलकता है, अब तो त्योहारों के साथ साथ शादीयों की भी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, लोगों की शादी की शॉपिंग में सारा फोकस दुल्हन के आउटफिट और जूलरी पर होता है, दुल्हन के चाहे आउटफिट्स हो या फिर जूलरी हर एक चीज़ खास नजर आनी चाहिए, उसके बाद लोगों की निगाहें दुल्हन के बहन और मां पर होता है कि उन्होंने क्या पहना है, तो ऐसे में थोड़ा स्टाइलिश और फैशनेबल नजर आना तो लाज़मी होता है, लेकिन यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि आप दोनों ही ऐसा आउटफिट कैरी नही कर सकती जैसा दुल्हन कैरी करने वाली है. इसके लिए थोड़ा शिमर, गोटा-पट्टी और सिक्विन से अलग हटकर सोचना होगा, तो ऐसे में आपके लिए राजस्थानी बंधेज बिल्कुल परफेक्ट ऑप्शन होगा. जिसका ट्रेंड आज भी बना हुआ है, बनारसी,चंदेरी और फुलकारी की तरह बंधेज भी हमेशा सदाबहार बना रहता है. बँधेज की साड़ी हो, सूट हो, शरारा हो या फिर दुपट्टा चाहे जो हो किसी भी ड्रेस के साथ बहुत ही खूबसूरत लगता है. इन्हें कौन सी ड्रेस के साथ किस तरह से एक्सपेरिमेंट करना है, जो आपके लुक में लगा जाए चार चांद.

बंधेज कुर्ता

शादी में कोई आपको कुर्ता पहनने को कहे तो कुर्ते का नाम ही सोच कर आपका दिमाग इसे पहनने की इज़ाजत ना दें, लेकिन जब कोई कहे कि कुर्ता बंधेज फैब्रिक में है, तो आप इसे बेफ्रिक होकर कैरी कर सकती है. लाल पीले या फिर और भी रंगों में उपलब्ध बंधेज फैब्रिक के कुर्ते को आप अपने स्टाइल और कंफर्ट के हिसाब से स्टिच करा सकती है, जिसे आप फेरों के समय पर हेवी इयररिंग्स के साथ कैरी कर सकती है जो आपके लुक में चार चांद लगा देगा.

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बंधेज दुपट्टा

बंधेज दुपट्टे हर किसी का फेवरेट होता है जिसे हम आसानी से अपने हिसाब से कैरी करते है. लेकिन जब शादी में बँधेज का दुपट्टा ट्राय करना हो तो आप हेवी गोटे और शीशे के काम वाली बँधेज कैरी करें. जिसे आप सूट के अलावा लहंगे के साथ टीमअप करें जो आपके लुक को बहुत ही क्लासी बना देगा.  व्हाइट लहंगे पर ग्रीन के साथ येलो, रेड या ऑरेंज जैसे कलर के बँधेज दुपट्टे बहुत फबेंगे. बँधेज की  खास बात यह है कि ये आपके सिंपल से लंहगे की पूरी कमी दूर कर देगा. जिसके साथ आप हेवी इयररिंग्स और माथापट्टी पहनें.

बंधेज साड़ी

साड़ियां किसे पसंद नही होती और ये तो हमेशा से  एवरग्रीन रहती है, चाहे वह शादी हो या फिर त्योहार आप बहन की शादी में किस तरह की साड़ी पहनें इसे लेकर कनफ्यूज़ हो रही हैं तो आप बंधेज को आंख मूंद कर सेलेक्ट कर सकती है. ये लाइट वेट होने के साथ ही बहुत ही खूबसूरत लुक देती हैं.  बंधेज साड़ी के साथ आप किसी भी तरह की ज्वैलरी ट्राय कर सकती है.

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अनुपमा: स्टाइल और फैशन के मामले में किसी से कम नही है काव्या, देखें फोटोज

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों फैंस के बीच छाया हुआ है, जिसके कारण वह टीआरपी चार्ट्स में भी पहले नंबर पर बना हुआ है. वहीं शो की कास्ट भी पहले नंबर पर बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करते नजर आ रहे हैं. अनुपमा यानी रुपाली गांगुली की बात करें तो हाल ही में शो का उनका मेकओवर देखने को मिला, जो उनकी सौतन काव्या को टक्कर दे रहा है. हालांकि रियल लाइफ की बात करें तो काव्या यानी मदालसा शर्मा काफी स्टाइलिश हैं. वह अक्सर अपने लुक की फोटोज फैंस के साथ शेयर करती हैं, जो काफी पसंद की जाती हैं. लेकिन आज हम मदालसा शर्मा के कुछ लुक्स आपको दिखाएंगे, जिसे आप आसानी से किसी पार्टी या शादी में ट्राय कर सकती हैं.

1. गाउन है परफेक्ट

अगर आप वेडिंग या पार्टी में मौर्डन लुक ट्राय करना चाहती हैं तो मदालसा शर्मा का ये  वन औफ शोल्डर गाउन ट्राय करना ना भूलें. ब्लैक कलर के गाउन के साथ मदालसा का लुक एकदम परफेक्ट है, जो आपके लुक को स्टाइलिश और कम्फरटेबल बनाने में मदद करेगा.

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2. नेवी ब्लू गाउन है परफेक्ट

वेडिंग सीजन में अकसर अपने लुक को लेकर महिलाएं कन्फयूज रहती हैं. अगर आप भी कुछ नया ट्राय करना चाहती हैं तो अनुपमा की काव्या का ये नेवी ब्लू गाउन ट्राय करना ना भूलें. ये आपके लुक को कम्पलीट करने में मदद करेगा.

3. रफ्फल साड़ी करें ट्राय

इन दिनों रफ्फल लुक की काफी डिमांड है. रफ्फल पैटर्न आपके सिंपल लुक में भी जान डाल देता है औऱ अगर आप सोच रही हैं कि पार्टी में रफ्फल लुक को कौपी करें तो मदालसा शर्मा का ये लुक आपके लिए बेहद काम आएगा.

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4. बनारसी साड़ी है ट्रैंडी

इन दिनों शादी हो या पार्टी, जवान हो या बूढ़ी महिला. हर कोई बनारसी या खादी साड़ी ट्राय कर रहा है. आर अगर आप भी इस लुक को ट्राय करना चाहती हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

अफवाहों का बाजार गरम रहेगा

कोरोना की वैक्सीन अब तैयार सी है और कई कंपनियां  जल्द ही इन्हें बंटवाना शुरू कर देंगी. सरकारों ने खरीदने के और्डर भी दे दिए हैं और हवाईअड्डे, हवाईर्जहाज, ट्रक, कैमिस्ट इन्हें रखने के इंतजाम में जुट गए हैं.

करोड़ों में बांटी जाने वाली वैक्सीन को बहुत ही ठंडे वातावरण में रखना जरूरी होगा और शायद लैब से आने के थोड़े दिनों में इस्तेमाल भी कर लेना होगा. इसलिए लाखों की गिनती में हर रोज बनने वाली दवाओं की शीशियों को लाना, ले जाना और ढंग से आम लोगों को देना टेढ़ी खीर होगा.

कोरोना ने वैसे मंदिर, मसजिद, चर्च, तीर्थ बंद कर भला काम किया है पर फिर भी धर्म का डर तो हावी रहेगा ही. भारत के अनपढ़ों को तो छोडि़ए अमेरिका के गोरे व पढ़ेलिखे भी कह रहे हैं कि वे कोई वैक्सीनभैक्सीन नहीं लेंगे, क्योंकि उन्हें भगवान पर भरोसा है. वे पूजा करेंगे.

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भारत में या कहीं भी ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो सोचते हैं कि जीनामरना ऊपर वाले के हाथों में है. वे आज भी चिपक कर खड़े होते हैं, भीड़ बनाते हैं, मास्क नहीं पहनते. वे खुद भी बीमार हो सकते हैं और ज्यादा परेशानी की बात यह है कि उन्हें भी बीमार कर सकते हैं, जो पूरी सावधानी बरत रहे हैं.

छठ पर शहरों में घाट बंद हुए थे तो बहुत से लोग पड़ोस के राज्यों में पहुंच गए. वे कहां से कोरोना को कहां ले जाएंगे पता नहीं. जेब में चार पैसे हैं तो कोरोना से अकड़ लिए.

यह वैक्सीन के साथ भी होगा. बहुत से लोग वैक्सीन जिद कर के नहीं लेंगे और वे समाज में बम की तरह घूमेंगे जो कहीं भी फट कर उन की जान तो ले ही सकता है, दूसरों की भी ले सकता है.

यह वैक्सीन बहुत महंगी होगी पर लगता है बंटेगी मुफ्त ही. फिर भी कितनों को ही उस के रखरखाव की फिक्र न होगी. सरकारों के हाथों बंटेगी तो लाखों ऐंप्यूल तो ऐक्सपायर हो कर बेकार हो जाएंगे. बहुतों को खराब हो चुकी वैक्सीन ही लगा दी जाएगी.

ऐसों की भी कमी नहीं होगी, जो धर्म की आड़ ले कर वैक्सीन लगवाने से इनकार कर देंगे. उन्हें यह लगेगा कि उन्हें बधिया बनाया जा रहा है, उन्हें जहर का इंजैक्शन दिया जा रहा है. अफवाहों का बाजार गरम होते आखिर कितनी देर लगती है?

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जिन वैज्ञानिकों ने रातदिन लगा कर वैक्सीन को तैयार किया है और जो दुनियाभर के जोखिम ले कर इसे लोगों को लगाएंगे उन की कुरबानियों को नजरअंदाज करने वाले खप्ती सिरफिरे, अंधविश्वासी कम नहीं हैं. वे जनता का बड़ा हिस्सा नहीं हैं पर इतना जरूर हैं कि इस कोरोना वायरस को पालते रहें.

बौडी बटर, जो दिलाए ड्रायनेस से छुटकारा 

सर्दियों में स्किन के ड्रायनेस की प्रोब्लम सबसे ज्यादा होती है. जिससे स्किन फटी फटी , रूखी व स्किन का मोइस्चर खत्म होने लगता है. जिसके कारण जब भी हम अपनी स्किन को हाथ लगाते हैं तो स्किन रफ़ लगने के कारण उसे छूने को भी दिल नहीं करता. इसका कारण सर्द हवाएं, ज्यादा गरम पानी से नहाना व स्किन की मॉइस्चराइजर से केयर नहीं करना ही माना जाता है . ऐसे में अगर आप अपनी स्किन को हमेशा प्रोब्लम फ्री व अट्रैक्टिव बनाना चाहती हैं , तो सर्दियों में बॉडी बटर से करें स्किन की एक्स्ट्रा केयर.
जानते हैं कैसे कैसे बौडी बटर है डिमांड में –

1. आर्गन बौडी बटर

हम यही चाहते हैं कि हम स्किन पर मॉइस्चराइजर तो अप्लाई करें, लेकिन वो स्किन पर चिपचिपा वाला इफेक्ट न दे. ऐसे में आर्गन बौडी बटर आर्गन आयल और बटर में रिच होने के कारण आपकी स्किन को ड्रायनेस से बचाने का काम करता है. इसमें एन्टिओक्सीडेंट , विटामिन इ और सभी जरूरी फैटी एसिड्स होने के कारण ये स्किन को डीपली हाइड्रेट करने का काम करता है. ये स्किन की इलास्टिसिटी को इम्प्रूव करके एजिंग को भी रोकता है,जिससे स्किन हमेशा यंग नजर आती है. इसकी खास बात यह है कि ये स्किन को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता है, क्योंकि ये नेचुरल इंग्रीडिएंट्स से जो बना होता है.

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2. मैंगो बौडी बटर

मैंगो बटर मैंगो के बीज से बना होने के साथ ये एन्टिओक्सीडैंट्स में रिच होने के काऱण स्किन को ढेरों फायदा पहुंचाता है. ये पोर्स को क्लीन करने के साथ दागधब्बो को रिमूव करके स्किन टोन को भी इम्प्रूव करता है. साथ ही ये सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने के साथसाथ ये स्किन को अच्छे से मोइस्चराइज़ भी करता है. और अगर आप एजिंग और फाइनलाइन्स से बचना चाहती हैं तो ये मॉइस्चराइजर हर स्किन टाइप के लिए बेहतर साबित होगा.

3. ओलिव बौडी बटर

ओलिव आयल की खूबियों से तो सभी परिचित हैं. ये न सिर्फ आपकी हैल्थ का ध्यान रखता है बल्कि स्किन की भी केयर करने का काम करता है. अगर ओलिव बौडी बटर को ड्राय और सैंसिटिव स्किन के लिए वरदान कहा जाए तो गलत नहीं होगा. ये नेचुरल सनस्क्रीन का काम करके स्किन को यूवी किरणों से बचाता है. ये स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस करने और स्किन को लुब्रिकेट करने का भी काम करता है. बता दें कि अगर आप हमेशा यंग दिखना चाहती हैं तो ओलिव बौडी बटर को अपनी स्किन पर जरूर टाई करें, क्योकि ये न्यू सेल्स के निर्माण में सहायक होने और एजिंग को रोककर आपको हमेशा यंग और फ्रेश स्किन जो दे सकता है.

4. एवोकाडो बौडी बटर

एवोकाडो बौडी बटर स्किन को एक्स्ट्रा मॉइस्चराइज करके ड्रायनेस से निजात दिलवाने का काम करता है, जिससे स्किन को ड्राय पैचेज की समस्या से राहत मिलती है. इसमें एवोकाडो आयल, जो विटामिन्स, प्रोटीन और फैटी एसिड्स में रिच होने के काऱण ये स्किन को नौरिश तो करता ही है , साथ ही न्यू सेल्स के निर्माण में मदद करके स्किन में फिर से नई जान डालने का काम करता है, जिससे स्किन फ्रैश लुक देने के साथ खिल उठती है.

5. एलोवीरा बौडी बटर

एलोवीरा हर तरह की स्किन पर सूट करता है. ये स्किन के मोइस्चर को लौक करके स्किन को स्मूद बनाए रखता है. इसमें एंटीइंफ्लेमेटरी और हीलिंग प्रोपर्टीज होने के कारण ये स्किन के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. साथ ही इसमें विटामिन ए , सी , बी , इ व फोलिक एसिड होने के कारण ये स्किन की खोई रंगत को वापिस लौटाने के साथसाथ स्किन पर झुर्रियों को होने से रोकता है, डार्क सर्कल्स व दागधब्बों को कम करता है व स्किन को ग्लोइंग बनाकर आपके अट्रैक्शन को बनाए रखने का काम करता है.

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6. कोको बौडी बटर

कोको बटर फैटी एसिड्स में रिच होने के कारण ये स्किन की इलास्टिसिटी को इम्प्रूव करके स्किन को हाइड्रेट करने का काम करता है. इसमें मौजूद फैट स्किन पर सुरक्षात्मक कवच के रूप में काम करके स्किन के मोइस्चर को बनाए रखने का काम करते हैं. साथ ही इसमें फीटोकेमिकल्स नामक तत्व होने के कारण ये स्किन के ब्लड फ्लो को इम्प्रूव करके एजिंग को रोकता है. कोको बटर स्ट्रेच मार्क्स को भी कम करने के लिए बहुत सी क्रीम्स व लोशन्स में इस्तेमाल किया जाता है. तो फिर इसे इस्तेमाल करने में देर कैसी.

लिप्स के लिए भी मैजिक

क्या आप जानती हैं कि बौडी बटर न सिर्फ आपकी बौडी को हाइड्रेट करके सोफ्ट बनांता है बल्कि इसे आप अपने लिप्स पर भी अप्लाई करके लिप्स को हाइड्रेट रखने के साथसाथ लिप टैनिंग से छुटकारा पा सकती हैं, लिप्स को शाइनी बना सकती हैं. बता दें कि अगर आपको काफी ज्यादा ड्रायनेस की समस्या है तो आप दिन में 2 – 3 बार स्किन पर बौडी बटर जरूर अप्लाई करें, रिजल्ट आपको कुछ ही दिनों में नजर आने लगेगा.

महिलाएं मैनिपुलेटिव हैं या पितृसत्ता का शिकार

‘मैनिपुलेटिव’ एक ऐसा शब्द जो अक्सर महिलाओं से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक की पौराणिक कथाओं से लेकर धार्मिक शास्त्रों तक, भारतीय टेलीविजन पर सीरियल्स से लेकर मुख्यधारा की पॉप संस्कृति तक, एक सामान्य विषय है, और वो सिर्फ और सिर्फ मैनिपुलेटिव का है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या महिलाएं सच में मैनिपुलेटिव होती हैं या वो पितृसत्ता का शिकार होती हैं?

पुराने समय से बातों जोड़-तोड़ करने वाली महिलाओं को खराब माना जाता था. इन महिलाओं को असंस्कारी के रूप में चिह्नित किया जाता है. इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता है कि बेईमानी और असावधानी किसी भी व्यक्ति को शोभा नहीं देता. चाहे जो भी हो हम इन मूल्यों और मापदंडों को एक ऐसे समाज में कैसे निर्धारित करते हैं, जहां महिलाओं को उस तरह से अस्तित्व में रहने की अनुमति नहीं है जिसकी वो हकदार हैं. अच्छे इरादों के साथ झूठ बोलना झूठ के रूप में नहीं गिना जाता है, जो हमें बताया जाता है. लेकिन महिलाओं के समय में इसे किसी गुनाह से कम नहीं माना जाता.

1. क्या महिलाएं होती हैं मैनिपुलेटिव?-

महिलाओं से जुड़ा यह विषय बहस के सिवाय कुछ नहीं है. ज्यादातर लोग इस विषय से या तो सहमत होते हैं या फिर मैनिपुलेट करने वाली त्याग देते हैं. सामाजिक तौर पर देखा जाए तो ऐसे मामलों में महिलाओं की स्थिति उनके जीवन की वास्तविकता से मायने रखती है.

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उदाहरण-

मेरी सहेली इंजिनियर है. वो शादी के बाद भी अपनी जॉब पहले के जैसे ही करना चाहती थी. लेकिन उसके ससुराल वालों ने उसे इस बात की आज्ञा नहीं दी. उनके हिसाब से वह दिन के 8 घंटे एक अलग महौल में कुछ मर्दों के साथ काम करेगी. जो उनके उसूलों के खिलाफ था. दूसरा उन का ना करने का कारण यह भी था कि, ‘घर का काम कौन करेगा… कौन खाना बनाएगा… कौन अपने सास-ससुर की सेवा करेगा.’
कुछ समय बाद उसने एक स्कूल शिक्षिका के रूप में काम करने की पेशकश की. उसे उम्मीद थी कि इस नौकरी के लिए उसे मना नहीं किया जाएगा और इस प्रकार उसे आर्थिक स्वतंत्रता और घर से बाहर निकलने की आजादी भी मिलेगी. इस तरह वह अपने घर का, परिवार का ,सास-ससुर का, सबका ख्याल भी रख पाएगी.

अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज को इस तरह से मैनिपुलेट करना हो सकता है आपके हिसाब से गलत हो. लेकिन मेरे हिसाब से उसने सही किया. क्योंकि वह पहचान पायी कि, कहां सामने वाले व्यक्ति से हार जाएगी या किस बात पर वह लड़ कर जीत पाएगी. वह अच्छी तरह से जानती थी पुरुष के अहंकार से जीतना. इसलिए उसने अपने ऐसे करियर को चुना यहां सिर्फ पति ही नहीं परिवार भी खुश रहें और खुद को उपेक्षित महसूस न करें. आज वह कमा भी रही है और अपने समझौते वाले सपने को जी भी रही है.

2. क्या महिलाएं करती हैं मैनिपुलेट?-

एक पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को उनकी शर्तों, जरूरतों और इच्छाओं के अनुसार अपना जीवन जीने की अनुमति नहीं है. उन्हें बताया जाता है कि बाहर की दुनिया खराब है. यह दुनिया महिलाओं के लिए एक सुरक्षित जगह नहीं है. लेकिन हम खुद से यह सवाल पूछना भूल जाते हैं कि, इस दुनिया को महिलाओं के लिए असुरक्षित कौन बना रहा है? समय बदलने के साथ-साथ महिलाएं अगर अपने बारे में सोचती हैं. या कुछ करना चाहती हैं. तो उन्हें आसन शब्दों में मैनिपुलेट करना कहते हैं जो सरासर गलत है.

उदाहरण-

मुझे आज भी याद है जब मेरा विवाह होने वाला था तो मेरी मां ने मुझे समझाया कि,”शादी के बाद अपने पति के साथ सब बातों सांझा नहीं करना चाहिए. ज्यादातर भारतीय महिलाओं की तरह, मेरी माँ का मानना भी था कि शादी में 100% ईमानदारी ठीक नहीं. एक महिला की कुशल गृहस्थी के लिए कुछ झूठ और थोड़ा हेरफेर अच्छा शस्त्र है.’ मगर मेरी सोच कुछ और थी. “अगर मैं अपनी शादी से दुखी रहूंगी, तो मैं उस लड़के को छोड़ दूंगी, पर मैं धोखेबाजी नहीं करूंगी.”, मेरी प्रतिक्रिया थी. मेरी मां ने मेरे इस दृष्टिकोण को सिरे से नकार दिया था तब.

3. खुलकर जीने का अधिकार-

अगर कोई महिला अभी भी काम करना चाहती है और स्वतंत्र रहने की इच्छा रखती है. तो ये उसका अधिकार है. वह किसी भी तरह ससुराल वालों से चालाकी से उन्हें काम करने के लिए कह सकती है, ताकि वह घर से पार्ट-टाइम नौकरी कर सकें. यह मार्ग बेईमान तो लगता है लेकिन वास्तव में यह महिला के लिए अपने सपनों को आगे बढ़ाने का एकमात्र तरीका है. इसके लिए भले ही उसे भले ही उसे मैनिपुलेटिव क्यों ना कहा जाए.

4. समझौता क्यों करना-

अक्सर महिलाओं को समझौता और प्रबंधन और समायोजन करने के लिए कहा जाता है. उन्हें अपनी सीमाओं, आवश्यकताओं, आकांक्षाओं समेटने के लिए भी कहा जाता है, लेकिन ताकि वे अन्य लोगों की जरूरतों, मांगों, इच्छाओं को समायोजित कर सकें. कभी-कभी, अपने स्वयं के सपने और आकांक्षाओं के साथ समझौता करने के लिए भी कहा जाता है. अगर अपनी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने किये महिलाओं को चालाकी भी करना पड़े तो ऐसा गलत नहीं होगा.

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5. मैनिपुलेटिव होना भी जरूरी-

फिल्म इंग्लिश विंग्लिश में यदि शशि ने अपने परिवार को मैनिपुलेट नहीं किया होता, तो उसने कभी भी अंग्रेजी नहीं सीखी होती और न ही वह अपने पति और बच्चों को अपने नये व्यक्तित्व से गर्व महसूस ना करा पाती. कभी-कभी मैनिपुलेटिव होना महिलाओं को जिन्दगी जीने की राह सिखाता है. कई भारतीय महिलाओं को अपने पतियों को मैनिपुलेट करना पड़ता है ताकि उनके पति उनका शोषण न करें और उनका लाभ न उठाएं.

जिस पितृसत्तात्मक दुनिया में हम रहते हैं वह क्रूर है. दुनिया महिलाओं के विकास में और उनका रास्ता रोकने में कोई मौका नहीं छोड़ती. इसलिए मैनिपुलेट एक ऐसा मात्र विकल्प है जिससे महिलाएं खुद के लिए कुछ कर सकती हैं और सफलता हासिल कर सकती हैं.

क्या मुझे अपनी ननद की लव लाइफ के बारे में पति और सास को बतानी चाहिए?

सवाल-

मेरी ननद किसी लड़के से 8 सालों से रिलेशनशिप में है. हालांकि वह कहती है कि उन्होंने कभी मर्यादा की सीमारेखा नहीं लांघी है, फिर भी मुझ डर लगता है कि वह कभी कोई गलत फैसला न ले ले. उस ने यह बात घर में सभी से छिपा रखी है. मुझे भी इस बात की जानकारी अनजाने में ही हो गई है. अब मुझे लगता है कि यह बात मुझे अपने पति व सास को बता देनी चाहिए. पर कहीं ननद मुझ से हमेशा के लिए खफा न हो जाए. क्या यह ठीक रहेगा?

जवाब-

आप अपनी ननद की नाराजगी की चिंता किए बगैर इस बात से घर वालों को अवगत कराएं, क्योंकि यदि जानेअनजाने कल को उस के जीवन में कुछ गलत होता है तो आप को सारी उम्र इस बात का मलाल रहेगा.

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मुंबई के ठाणे की हाइलैंड सोसाइटी में रजत और रीना ने एक बिल्डिंग में यह सोच कर फ्लैट लिए कि दोनों भाईबहनों का साथ बना रहेगा. दोनों के 2-2 बच्चे थे, सब बहुत खुश थे कि यह साथ बना रहेगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, रजत की पत्नी सीमा की रीना से कुछ खटपट होने लगी जो दिनबदिन बढ़ती गई. कुछ समय बीतने पर रीना के पति की डैथ हो गई दुख के उन पलों में सब भूल रजत और सीमा रीना के साथ खड़े थे.

कुछ दिन सामान्य ही बीते थे कि ननदभाभी का पुराना रवैया शुरू हो गया. रजत बीच में पिसता, सो अलग, बच्चे भी एकदूसरे से दूर होते रहे. दूरियां खूब बढ़ीं, इतनी कि रीना और सीमा की बातचीत ही बंद हो गई. रजत कभीकभी आता, रीना के हालचाल पूछता और चला जाता, पहले जैसी बात ही नहीं रही, फिर जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ, ठाणे में केसेज का बुरा हाल था. ऐसे में एक रात सीमा के पेट में अचानक दर्द शुरू हुआ जो किसी भी दवा से ठीक नहीं हुआ. हौस्पिटल जाना खतरे से खाली नहीं था, वायरस का डर था, बच्चे छोटे, रजत बहुत परेशान हुआ, सीमा का दर्द रुक ही नहीं रहा था, रात के 1 बजे किसे फोन करें, क्या करें, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

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मिरर से यों सजाएं घर

मिरर का इस्तेमाल केवल चेहरा देखने के लिए ही नहीं होता, बल्कि घर को सजाने के लिए भी होता है. इंटीरियर डैकोरेशन में इस के तेजी से बढ़ते चलन ने इसे एक स्ट्रौंग इंटीरियर डिजाइन टूल बना दिया है. अगर मिरर को सही तरीके से लगाया जाए तो इस से छोटी जगह भी बड़ी दिखाई देती है, बोरिंग जगह में जीवंतता आ जाती है और अंधेरी जगह उजाले से भर जाती है. यानी सजावट में मिरर का इस्तेमाल उस जगह के पूरे लुक को बदल देता है.

मिरर थीम पुराने समय से ही मिरर का इस्तेमाल घरों और महलों को सजाने में होता रहा है. एक बार फिर मिरर थीम का चलन तेजी से बढ़ रहा है. अब मिरर केवल ड्रैसिंगटेबल का हिस्सा नहीं रह गया है, बल्कि होम डैकोरेशन का भी अहम हिस्सा बन गया है. घरों और औफिसों की इंटीरियर डिजाइनिंग मेें इसे आर्ट पीस के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

मिरर का इस्तेमाल घर के अंदर ही नहीं वरन घर के बाहर गार्डन, बरामदे, गलियारे और टैरेस में भी हो रहा है. किस जगह को सजाना है उस के अनुसार अलगअलग साइज और फ्रेम का मिरर चुना जाता है. गे्र इंक स्टूडियो के आर्किटैक्ट, सरवेश चड्ढा ने मिरर इफैक्ट्स के बारे में जानकारी दी:

दीवार पर:

अगर आप मिरर को दीवार पर लगाएं तो न केवल आप का कमरा बड़ा दिखाई देगा, बल्कि उस का आकर्षण भी बढ़ जाएगा. कमरे के लिए हमेशा बड़े मिरर का इस्तेमाल करें, जिस की ऊंचाई दीवार के बराबर हो. मिरर को उस दीवार पर लगाएं जो दरवाजे के ठीक सामने हो ताकि बाहर का पूरा प्रतिबिंब अंदर दिखाई दे. सोफे के ऊपर: सोफे के ऊपर जो खाली जगह होती है, वहां फ्रेम किए मिरर समूह में लगाए जाते हैं. आप इन्हें दृसरी खाली दीवारों पर भी लगा सकती हैं. इन फ्रेमों की साइज और स्टाइल दीवार के साइज, फर्नीचर और परदों के रंग के अनुसार अलगअलग हो सकता है.

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किचन:

रसोई में भी मिरर का इस्तेमाल हो रहा है. इसे आप कबर्ड पर इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर फ्रिज पर डैकोरेटिव पीस के रूप में भी. आमतौर पर किचन में खिड़की के ठीक नीचे सिंक लगाए जाते हैं, मगर यदि ऐसा संभव न हो तो क्यों न सिंक के ठीक ऊपर मिरर लगा कर खिड़की की कमी पूरी की जाए. मिरर के प्रयोग से किचन में अधिक रोशनी और गहराई का एहसास होगा. मिरर टाइल्स भी किचन की खूबसूरती बढ़ा सकती हैं.

लिविंगरूम:

खूबसूरत फ्रेम में जड़ा मिरर लिविंगरूम की शान बढ़ा देता है. मिरर के सामने कोई आर्टवर्क, सीनरी आदि हो तो वह सामने की दीवार पर दिखती है जिस से कमरा अधिक बड़ा और खूबसूरत नजर आता है. खिड़की के सामने लगा मिरर रोशनी प्रतिबिंबित कर कमरे को और अधिक जीवंत बनाता है. विंडो के पास: अगर विंडो के पास मिरर लगाएंगी तो कमरे में प्राकृतिक रोशनी की मात्रा बढ़ेगी. विंडो के पास कितनी जगह उपलब्ध है उस के अनुसार मिरर चुनें. मिरर जितना बड़ा होगा, ब्राइटनैस उतनी अधिक बढ़ेगी.

गार्डन में:

कई घरों में पर्सनल गार्डन या टैरेस गार्डन होते हैं. गार्डन में मिरर का इस्तेमाल आप के घर के इंटीरियर को एक अलग आयाम देगा. इस में आप के गार्डन की हरियाली और रंगबिरंगे फूलों का प्रतिबिंब दिखाई देगा. पतंग के आकार के मिरर लगाएंगी तो रात में नीले आसमान के साथ उस का कौंबिनेशन बहुत आकर्षक नजर आएगा. अगर गार्डन में मिरर के साथ विभिन्न रंगों की लाइट्स का कौंबिनेशन किया जाए तो ल़ुक और उभर कर आएगा.

सीढि़यों पर:

सीढि़यों पर मिरर का इस्तेमाल पेंटिंग या शो पीस की जगह किया जा सकता है. अलगअलग साइजों के मिरर का कोलाज भी लगा सकती हैं. मिरर बोरिंग और डार्क स्टेयरकेस को चिक और ब्राइट बना देंगे. इन में आप सीढि़यां चढ़ते हुए खुद को निहार भी सकती हैं.

कौरिडोर में:

अगर कौरिडोर संकरा है तो उस में भी मिरर लगाएं. इस से वह बड़ा और चमकीला नजर आएगा. बैड साइड टेबल: बैड साइड टेबल के पीछे छोटा वैनिटी मिरर लगाएं. इस के आगे लैंप शेड या वास रखें. इस का रिफ्लैक्शन पूरे बैडरूम का आकर्षण बढ़ा देगा.

वार्डरोब पैनल्स:

वार्डरोब पैनल्स को मिरर पैनल्स में बदल लें. इस से आप का कमरा बड़ा और ब्राइट लगेगा. इस के अलावा आप के वार्डरोब के पैनल्स लकड़ी की तुलना में हलके भी लगेंगे. आप के लिए यह ड्रैसिंग एरिया की तरह भी काम करेगा. बाथरूम: बाथरूम में भी मिरर लगाएं. इस से न केवल वह बड़ा लगेगा, बल्कि अधिक ब्राइट भी लगेगा.

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प्रवेशद्वार:

प्रवेशद्वार पर मिरर लगाने से बहुत सहायता मिलेगी. आप और आप के मेहमान घर में आने से पहले खुद पर एक नजर डाल पाएंगे. कैसे चुनें

मिरर का फ्रेम कमरे के पेंट और फर्नीचर के रंग के अनुसार चुनें. इंटीरियर डिजाइन में मैटल और लकड़ी फ्रेम का इस्तेमाल ही अधिक होता है. अगर आप को अपने घर को क्लासिक लुक देना हो तो गोल्ड प्लेटेड फ्रेम चुनें. मौडर्न लुक के लिए मैटेलिक फ्रेम चुन सकती हैं. मिरर पर बनी पेंटिंग्स को भी वाल आर्ट के रूप में लगा सकती हैं. बाथरूम में हमेशा बड़ा मिरर लगाएं. उस की मोटाई भी अधिक होनी चाहिए यानी 7-8 एमएम. मिरर जितना मोटा होगा उतना ही लुक अच्छा आएगा. अगर ग्लास की बैक साइड पर गहरे रंग का पेंट होगा तो अच्छा रहेगा, क्योंकि इस से लुक अधिक साफ और बेहतर दिखाई देगा.

घर को हमेशा एक सिमिट्री में सजाएं. इस से न केवल आप का घर सुंदर लगेगा, बल्कि आप के मिरर का आकर्षण भी बढ़ेगा. कौन से मिरर हैं अधिक चलन में

आजकल कई तरह के मिरर चलन में हैं जैसे ट्रांसपैरेंट ग्लास, जिस में आरपार दिखाई देता है. लैकर्ड ग्लासेज, ये विभिन्न रंगों में आते हैं. टिंटेड मिरर, इन पर विभिन्न प्रकार के टिंट या स्पौट होते हैं. लुकिंग मिरर, सामान्य शीशा जिसे चेहरा देखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है आदि प्रमुख हैं. ये अलगअलग आकार और शेप में मिलते हैं. गोल, चौकोर, लंबे, चौड़े, छोटे, बड़े आदि. आप अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार इन का चयन कर सकती हैं.

रहने दो इन सवालों को: कितने पड़ावों से गुजरी है मृगांक की जिंदगी

Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-1)

‘भाइयो और बहनो, मैं अदना सा गगन त्रिपाठी, महान बांदा जिले के लोगों का अभिवादन करता हूं. यहां राजापुर गांव में गोस्वामी तुलसीदास ने जन्म ले कर देश के इस हिस्से की धरती को तर दिया था. वहीं, यह जिला मशहूर शायर मिर्जा गालिब का कितनी ही बार पनाहगार रहा है. उसी बांदा जिले के बाश्ंिदों को अच्छेबुरे की मैं क्या तालीम दूं? वे खुद ही जानते हैं कि इस जिले का समुचित विकास कौन कर सकेगा, हिंदूमुसलिम एकता को बरकरार रख दोनों की तहजीबों को कौन सही इज्जत देगा, यमुना को प्रदूषण से कौन बचाएगा, केन नदी की धार को कौन फसलों की उपज के बढ़ाने के काम में लाएगा. कहिए भाइयोबहनो, कौन करेगा ये सब?’ गगन चीरने वाले नारों के बीच गगन त्रिपाठी का चेहरा दर्प से दमकने लगा. सभी ऊंची आवाजों में दोहरा रहे थे, गगन त्रिपाठी जिंदाबाद, लोकहित पार्टी जिंदाबाद.

भीड़ में पहली लाइन की कुरसी पर बैठा 13 साल का मृगांक पिता के ऊंचे आदर्शों और महापुरुषों से संबंधित बातों को अपने जज्बातों में शिद्दत से पिरो रहा था. वह पिता गगन त्रिपाठी के संबोधनों और भाषणों से खूब प्रेरित होता है. अकसर उन के भाषणों में गांधी, ज्योतिबा फूले और मदर टेरेसा का जिक्र होता, वे इन के कामों की प्रशंसा करते, लोगों से उन सब की जीवनधारा को अपनाने की अपील करते. बांदा जिले के प्रसिद्ध राजनीतिक परिवार से है मृगांक. उस के दादाजी पुलिस विभाग में अफसर थे. मृगांक के पिता गगन त्रिपाठी को नौकरी में रुचि नहीं थी.

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गगन त्रिपाठी के होने वाले ससुरजी की राजनीतिक पैठ के चलते मृगांक के दादा के पास उन का आनाजाना लगा रहता, सरकारी अफसरशाही से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश. इधर, पिता के अफसरी अनुशासन की वजह से गगन त्रिपाठी अपने पिता से कुछ खिंचे से रहते. घर आतेजाते भावी ससुरजी को गगन में उन का पसंदीदा राजनीतिज्ञ नजर आया. उन्होंने देर किए बिना, गनन त्रिपाठी के पिता को मना कर अपनी बेटी की घंटी गगन के गले में बांध दी और उस के फुलटाइम ट्रेनर हो गए.

समय के साथ राजनीति में माहिर होते गगन त्रिपाठी विधायक बन गए. साल गुजरे. बेटी हुई, 18 साल की उस के होते ही दौलतमंद व्यवसायी के साथ उस की शादी कर दी. पारिवारिक मर्यादा अक्षुण्ण रखने के लिए उसे 10वीं से ज्यादा नहीं पढ़ाया गया. अभी बड़ा बेटा 27 वर्ष का था, पिता की राजनीति में विश्वस्त मददगार और भविष्य का राजनीतिविद, पिता की नजरों में कुशल और उन के दिशानिर्देशों के मर्म को समझने वाला. बड़े बेटे की पढ़ाई कालेज की यूनियन और राजनीतिक चुनावों के गलियारों में ही संपन्न हो गई.

मृगांक अभी 23 वर्ष का था, पढ़ाई, खेलकूद में अव्वल, विरोधी किस्म के सवाल खड़े करने वाला, कम शब्दों में गहरी बातें कहने वाला, मां का लाड़ला, पिता की दुविधा बढ़ाने वाला. मृगांक के स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद गगन त्रिपाठी की ओर से उस पर कलैक्टर बनने का जोर आ पड़ा. घरभर में इस बात की चर्चा दिनोंदिन जोर पकड़ रही थी. एक दिन पिताजी की ओर से मृगांक के लिए बुलावा आया. बुलावे

का अर्थ मृगांक भलीभांति समझ रहा था. 2 मंजिले पुश्तैनी मकान के बीचोंबीच संगमरमरी चबूतरा, आंगन में कई सारे पौधे लगे थे. गगन त्रिपाठी नाश्ते से निवृत हो आंगन में रखी आरामकुरसी पर बैठे थे. सुबह 9 बजे का वक्त था. 55 वर्ष की उम्र, गोरा रंग धूप में ताम्रवर्ण, कदकाठी ऊंची और बलिष्ठ, खालिस सफेद कुरता, चूड़ीदार पजामे पर भूरे रंग का जैकेट. वे तैयार बैठे थे, कहीं निकलना था, शायद. मृगांक सामने आ खड़ा हुआ. पिता के प्रति सम्मान और अबोला डर था लेकिन हृदय में पिता की सात्विकता और आदर्श को ले कर बड़ा गहरा विश्वास था. इस के पहले पिता से जब भी उस की बातें होतीं, वे अकसर उस की पढ़ाई व सेहत की बेहतरी के साथ बड़ा आदमी बनने की नसीहत देते.

आज उस के भविष्य के स्वप्नों की जिरह थी. पिता की सुननी थी, अपनी कहनी भी थी. उस ने पिता की नजरों में देखा. पिता के आसन से गगन त्रिपाठी बोले, ‘‘तो आप कलैक्टर बनने की तैयारी को ले कर क्या फैसला ले रहे हैं? आप पढ़ने में अच्छे हैं. हम उम्मीद लगाए हैं कि आप कलैक्टर बन कर हमारी पार्टी और परिवार का भला करेंगे. पुरानी पार्टी हम ने छोड़ दी है. अब हमारी अपनी पार्टी को सरकारी बल चाहिए. आप का इस बारे में न कहना हम पसंद नहीं करेंगे.’’

मंच के भाषण और पत्रकारों के जवाबों से अलग यह सुर मृगांक को अवाक कर गया. क्या अलग परिस्थितियों में राजनेता की सोच अलगअलग होती है? वास्तव में कौन है-पिता या गगन त्रिपाठी? या कि पिता का वास्तविक रूप यही है जो अभीअभी वह देख रहा है. सफल होना और सार्थक होना दोनों अलग बातें हैं, क्यों नहीं लोग सार्थक होने की भी पहल करें. मृगांक के दिल में आंदोलन के तूफान उठने शुरू हुए. वह स्थिर और भावहीन खड़ा रहा फिर भी.

पिता ने आगे कहा, ‘‘बेटा ऐसा हो जो पिता का सहारा बने. जैसा कि आप के अंदाज से लग रहा है, आप अपने मन की करना चाहते हैं. ऐसा है, तो आप को मुझ से सचेत रहना चाहिए.’’ बेटे के रूप में जिस गगन त्रिपाठी ने खुद के पिता की इच्छाओं को किनारे कर दिया, अब मृगांक के लिए उन की बातें कुछ और ही थीं. विशुद्ध राजनीतिज्ञ की तरह एक पिता कहता गया, ‘‘मेरे लोग कई बार आप के बारे में खबर दे चुके हैं कि बिना सोचेसमझे आप लोगों के बीच संत बने फिरते हैं. दूसरे वार्डों, तहसीलों में उन लोगों की मदद कर आते हैं जिन्होंने दूसरी पार्टी के लोगों को जिताया. समझ रहे हैं मेरी बात आप?’’

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यह पहला अवसर था जब वह पिता को भलीभांति समझने का प्रयास कर रहा था. इस के पहले वह जो देखतासुनता आया था, गहरे विश्वास की लकीर पर चल कर फकीर बना बैठा था. मृगांक कितना भी कोमल हृदय क्यों न हो, था तो खानदानी पूत ही. वह सख्त हुआ. यह बात और थी कि इस अड़े हुए घोड़े को वह कौन सी दिशा दे. विनम्रता में भी उस ने ठसक नहीं छोड़ी, कहा, ‘‘पिताजी, मैं जो भी सोचता हूं कुछ सोचसमझ कर ही. आप की सलाह मैं ने सुन ली है. अगर मैं कलैक्टर बन भी जाता हूं तो सिवा न्याय और सचाई के, किसी को नाजायज लाभ न दे पाऊंगा. कानों में मेरे न्याय के लिए चीखते लोगों की गूंज होगी तो मैं उन्हें अनसुना कर के न खुद ऐयाशी कर सकता हूं, न दूसरे को ऐयाशी करने में मदद कर सकता हूं.’’

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Serial Story: रहने दो इन सवालों को (भाग-2)

अचानक क्रोध से फट पड़े गगन त्रिपाठी. उन्होंने कहा, ‘‘अरे मूर्ख सम्राट, जो आदर्श का पाठ मैं पढ़ाता रहा हूं, वह राजनीति की बिसात थी. शिकार के लिए फैलाए दानों को तो तू ने भूख का इलाज ही बना लिया. दूर हो जा मेरे सामने से. जिस दिन दिमाग ठिकाने आए, मेरे सामने आना.’’

आराम से सभ्य शब्दों में बातें करने वाले, लोगों को पिघला कर मक्खन बनाने वाले गगन त्रिपाठी बेटे की बातों से इतने उतावले हो चुके थे कि उन की लोकलुभावन बाहरी परत निकल गई थी. वे असली चेहरे के साथ अब बाहर थे. क्यों न हो, यह तो आस्तीन में ही सांप पालने वाली बात हो गई थी न. राजनीति की इतनी सीढि़यां चढ़ने में उन के दिमाग के पुरजेपुरजे ढीले हो गए थे. और फिर सशक्त खेमे वाले विरोधियों को पछाड़ कर ऊंचाई पर बने रहने की कूवत भी कम माने नहीं रखती.

इधर एक भी ईंट भरभरी हुई, तो पूरी मीनार के ढहने का अंदेशा हो जाता है. बेटे तो नींव की ईंटें हैं, चूलें हिल जाएंगी. यह अनाड़ी तो बिना भविष्य बांचे दरदर लोगों की भलाई किए फिरता है. दिमाग ही नहीं लगाता कि जहां भलाई कर रहा है वहां फायदा है भी या नहीं. न जाति देखता, न धर्म, न विरोधी पार्टी, न विरोधी लोग. कोई भेदविचार नहीं. सत्यवादी हरिश्चंद्र सा आएदिन सत्य उगल देता है जो अपनी ही पार्टी के लिए खतरे का सिग्नल बन जाता है. सो, क्यों न इस लड़के को यहां से निकाल कर इलाहाबाद भेज दिया जाए. कम से कम इस से उस का भला हो न हो, पार्टी को नुकसान तो कम होगा. ऐसे भी इस लड़के के आसार सुख देने वाले तो लगते नहीं. काफीकुछ भलेबुरे का सोच गगन त्रिपाठी बेटे मृगांक को आईएएस की तैयारी करने के लिए इलाहाबाद छोड़ आए. जिस के पंख निकले ही थे दूसरों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए, वह क्या दूसरों के पंख कुतरेगा खुद की भलाई के लिए?

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मृगांक इलाहाबाद में भी अपने ही तौरतरीकों में रम गया. इतिहास में पीएचडी करते हुए विश्वविद्यालय में ही प्रोफैसर हो गया. आईएएस की कोचिंग से निसंदेह उस में ज्ञान के प्रति ललक बढ़ी थी और मानव जीवन के प्रति जिज्ञासा भी. लिहाजा, सामाजिक कार्यों की उस की फेहरिस्त बड़ी लंबी थी. 29 वर्ष की अवस्था में वह 700 मुकदमे लड़ रहा था जो उपभोक्ता संरक्षण से ले कर सड़क परिवहन व्यवस्था में सुरक्षा की अनदेखी, शिक्षा के गिरते स्तरों में प्राइवेट स्कूलों की उदासीनता और सरकारी स्कूलों में लापरवाही तथा देहव्यापार में लिप्त लोगों को कानूनी दायरे में ला कर सजा दिलवाने व इस व्यापार में लगी मासूम बच्चियों के संरक्षण वगैरा के मामले थे. प्रोफैसर की नौकरी बजाते हुए अकेले ही कुछ अच्छे लोगों के सहयोग से वह इन कामों को आगे बढ़ा रहा था. हां, उस के दादाजी का कभी पुलिस विभाग में होना उसे पहचान का लाभ जरूर देता था. न जाने पहचान का लाभ लोग किसकिस वजह लेते हैं, मृगांक के लिए तो यह लाभ सिर्फ सर्वजनहिताय था.

5 फुट 10 इंच की लंबाई के साथ बलिष्ठ कदकाठी में सांवला रंग आकर्षण पैदा करता था उस में. रूमानी व्यक्तित्व में निर्विकार भाव. दिनभर क्लास, फिर दोपहर 3 बजे से शाम 8 बजे तक भागादौड़ी और रात अपनी छोटी सी कोठरी में अध्ययन, चिंतन, मनन व निद्रा. घरपरिवार, राजनीति, रिश्तों के मलाल, आदेशनिर्देश, लाभनुकसान सब पीछे छूट गए थे.

शादी के लिए घर वालों ने कितनी ही लड़कियों की तसवीरें भेजीं, मां ने कितने ही खत लिखे. दीदी ने सैकड़ों बार फोन किए. मगर मृगांक की आंखें लक्ष्य पर अर्जुन सी टिकी रहीं. उधर, बांदा में पिता की राजनीतिक ताकत और बड़े भाई का राजपाट मृगांकनुमा बाधा के बिना बेरोकटोक फलफूल रहे थे. भाई की पत्नी ऊंचे घराने की बेटी थी जो बेटा पैदा कर के ससुर की आंखों का तारा बन बैठी थी.

जिंदगी की रफ्तार तेज थी, एकतरफ लावलश्कर के साथ ठसकभरी जिंदगी, दूसरी तरफ मृगांक के कंधों पर जमानेभर का दर्द. मगर सब अपनी धुन में रमे थे. मृगांक भी लक्ष्य की ओर दौड़ रहे थे मगर निजी जिंदगी से बेखबर.

इन दिनों उस ने ‘नवलय’ संस्थान की शुरुआत की. दरअसल, देहव्यापार से मुक्त हुई लड़कियां काफी असुरक्षित थीं. एक तरफ उन लोगों से इन्हें खतरा था जो इन्हें खरीदबेच रहे थे. दूसरे, घर परिवार इन लड़कियों को सहज स्वीकार नहीं करते थे, जिन के लिए अकसर वे अपनी जिंदगियां दांव पर लगाती रही थीं. ऐसे में मृगांक खुद को जिम्मेदार मान इन लड़कियों की सुव्यवस्था के लिए पूरी कोशिश करता. नवलय इन असुरक्षित लड़कियों का सुरक्षित आसरा था. मृगांक ने बांदा जिले के चिल्लाघाट की रिजवाना को कल घर पहुंचाने की जिम्मेदारी ली थी. इस बहाने वह मां से भी मिल लेगा. कई साल हो गए थे घर गए हुए. बड़े भाई का बेटा भी अब 7 साल का हो चुका था.

शाम 5 बजे जब वह नवलय आया, तो नीम के पेड़ के पास खड़े हो कर रिजवाना को घुटघुट कर सुबकते देखा. वह संस्थान के औफिस में जा कर बैठ तो गया लेकिन मन उस का रिजवाना की ओर ही लगा रहा. अपने औफिसरूम से अब भी वह रिजवाना और उस की उदास भंगिमा को देख पा रहा था. चेहरा मृगांक का जितना ही पौरुष से भरा था, भावनाएं उस की उतनी ही मृदुल थीं. रसोइए कमल को बुला कर कहा कि वह रिजवाना को बुला लाए. रिजवाना की रोनी सूरत देख वैसे तो उस का मिजाज उखड़ गया था, सो जरा सी डपट के साथ समझाने के लहजे में उस ने कहा, ‘‘जब घर से बाहर आ ही गई हो, काफी मुसीबतें झेल भी चुकी हो, तो अब रोना क्या? अब तो हम तुम्हारे घर जा ही रहे हैं.’’

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गहरी चुप्पी. ‘‘क्यों, कुछ कहोगी?’’

चुप्पी… ‘‘देखो, मैं थप्पड़ जड़ दूंगा,’’ थकामांदा मृगांक आजकल कुछ चिड़चिड़ा सा हो रहा था. मृगांक के मुख से यह सुनते ही गुस्से से भर रिजवाना ने मृगांक की तरफ देखा. रोने से आंखें कुछ सूजी हुई थीं, मगर दृष्टि स्पष्ट. गोरे से रक्तिम चेहरे पर अनगिनत भाव, जिन में स्वाभिमान सब से मुखर था. तीखे नैननक्श, गोलाई में नुकीला चेहरा, ठुड्डी तक हीरे सी कटिंग. मृगांक के कंधे तक उस की ऊंचाई. दुबली ऐसी, कि वक्त की रेत ने चंचल नदी के किनारों को पाट दिया हो जैसे. नदी आधी जरूर हो गई थी, मगर प्यार और संभाल की बारिश मिले तो वह आबाद हो जाए.

आगे पढें- मृगांक का गुस्सा उस के…

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