Serial Story: फैशन (भाग-3)

‘‘आजकल बच्चों की अपनी मरजी है… जहां मन हो करें. मेरी ही बेटी है पर मैं ही इस की गारंटी लेने को तैयार नहीं हूं. कल को ससुराल वालों को ही दहेज के नाम पर सूली पर लटका देगी. पति जरा सा नानुकर करेगा तो उसे भी पत्नी प्रताड़ना के कानून में फंसा देगी. जो अपने मांबाप की सगी नहीं वह पराए खून को दलदल में नहीं फंसाएगी, इस का क्या भरोसा? नफरत हो गई है मुझे मनु से. जरा भी प्यार नहीं रहा मेरे मन में इस लड़की के लिए. तुम भी इस की चालढाल पर परेशान हो न… कल को इस का पति भी होगा.

‘‘क्या यह लड़की घर बसाएगी जो बातबात पर अपने अधिकारों की बात करती है? गृहस्थी को सफल बनाने के लिए कई बार जबान होते हुए भी गूंगा बनना पड़ता है. सहना भी पड़ता है, कभी भी आती है कभीकभी, सदा एकजैसा तो नहीं रहता. ऊंचनीच सहनी पड़ती है और यह लड़की तो बातबात पर कानून का डंडा दिखाती है.’’

‘‘इतना कानून कहां से पढ़ लिया इस ने? कहीं वकीलों से दोस्ती ज्यादा तो नहीं बढ़ा ली? कानून तो हम भी जानते हैं बेटा, लेकिन यही कानून अगर बातबेबात गृहस्थी में घुस जाएगा तब क्या प्यार बना रहेगा पतिपत्नी में? पतिपत्नी के बीच किसी तीसरे का जो दखल होना ही नहीं चाहिए मांबाप तक को भी जरूरत पड़ने पर बोलना चाहिए कानून तो बहुत दूर की बात है. अधिकारों की बात करती है क्या अपने फर्जों के बारे में भी सोचा है इस ने? हमारे तो बेटे ने कभी इस जबान में हम से बात नहीं की जिस सुर में यह बोलती है. क्या चाहते हैं इस से? सिर्फ यही कि सलीके से रहे, मर्यादा में रहे, शालीनता से जीए… हमारे सिखाए सारे संस्कार इस ने पता नहीं किस गंदे पानी में बहा दिए.’’

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‘‘नहीं बूआ ऐसा नहीं हो सकता. कुछ भी हो जाए संस्कारों का प्रभाव कभी नहीं जाता है. फैशन की दौड़ में भी एक सीमा ऐसी जरूरत आती है जब संस्कार जीत जाते हैं. किसी गलत संगत में हो सकता दिमाग घूम गया हो.’’ ‘‘गलत संगत में और भी क्या होता होगा, हमें क्या पता बेटा… क्या करें हम? कहां जाएं? पता होता पढ़लिख कर जमीन की मिट्टी सिर पर उठा लेगी तो मैं अनपढ़ ही रखती इसे,’’ बूआ का आक्रोश उन की आंखों से साफ फूट रहा था.

बूआ ईमानदार हैं जो अपनी संतान पर परदा नहीं डाल रहीं वरना हमारे समाज में मांबाप अकसर अपने बच्चों के ऐबों को छिपा जाते हैं. जहां तक मनु के ऐबों का सवाल है एक लड़की का मुंहफट होना और अपने घर के तौरतरीकों के खिलाफ जाना ही सब से बड़ा ऐब है. कहने को तो हम सब कहते हैं लड़कालड़की एकसमान हैं, लेकिन एकसमान हो कैसे सकते हैं? जो बुनियादी फर्क प्रकृति ने बना दिया है उस से आंखें तो नहीं न फेरी जा सकतीं? बूआ का मन समझ रहा हूं मैं. सत्य तो यही है कि कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन स्वीकार नहीं किया जा सकता.

12 बज गए थे. मनु अभी अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी. तब बूआ ने ही मुझे भेजा, ‘‘जरा देख तो…कहीं कोई नशावशा कर के मर तो नहीं गई.’’ ममत्व किस सीमा तक आहत हो चुका है, यह इन्हीं शब्दों से अंदाजा लगाया जा सकता है. मैं ने ही दूध का गिलास भरा और मनु के कमरे में जा कर उसे डठाने की सोची. ‘‘उठो मनु, 12 बज गए हैं,’’ कहते हुए मैं ने दरवाजा धकेला.

कुरसी पर चुपचाप बैठी थी आंखें मूंदे. मैं ने पास जा कर सिर पर हाथ रखा. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि उस में कुछ बदल गया है. कल जैसे भाव नहीं थे उस के चेहरे पर.

‘‘12 बज गए हैं… क्या नाश्ता नहीं करोगी? भूख नहीं लगी है क्या?’’

चुप रही वह. जब हाथ पकड़ कर उठाने का प्रयास किया तब मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘कुछ है क्या जो कहना चाहती हो? समझदार हो अपने अधिकार जानती हो… मेरे समझाने का कोई अर्थ नहीं है.’’

‘‘नाराज हो तुम भी?’’

‘‘तुम्हारे मातापिता से बढ़ कर मैं कैसे हो सकता हूं. उन की नाराजगी की जब तुम्हें परवाह नहीं तो मेरी तो बिसात ही क्या है? तुम्हारी भूख की चिंता थी मुझे, इसलिए दूध का गिलास ले आया.’’

जब मैं लौटने लगा तो उस ने मेरी बांह कस कर पकड़ ली. बोली, ‘‘मैं ने गलती की है, उस के लिए मां और पापा से माफी मांगना चाहती हूं… अजय मैं ही गलत थी, तुम सही थे. मुझे अपने साथ मां के पास ले चलो… पापा सही कहते थे मनुष्य शालीन न हो तो कोई भी गलत अनुमान लगा लेता है. चरित्र और व्यक्तित्व का पता पहनावे से भी लगता है. सही वेशभूषा न हो तो कोई कुछ भी समझने लगता है.’’

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समझ गया मैं. ज्यादा खोल कर समझाने को था ही क्या. जो घरवाले न सिखा पाए लगता है किसी बाहर वाले ने सिखा दिया है. क्षण भर को चौंकना तो था ही मुझे, क्योंकि मनु को इतनी जल्दी अक्ल आ जाएगी, मुझे भी कहां उम्मीद थी.

‘अच्छा, क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’ चिंता तो जागती ही बहन के लिए. बड़े गौर से उस का चेहरा पढ़ना चाहा. लगता है किसी का अनुचित व्यवहार इसे बहुत कुछ समझा गया है. मर्यादा बहुत बारीक सी रेखा है, जिस का निर्वाह बेहद जरूरी है. चेहरे का भाव बता रहा था मर्यादा सहीसलामत है.

‘‘मुझे माफी मांगनी है मां से.’’

स्वर रुंध गया था मनु का. इतनी ऊंची नाक कहीं खो सी गई लगी.

‘‘किस मुंह से जाऊं?’’

‘‘अपने ही मुंह से जाओ माफ कर देंगे. तरक्की का सही मतलब तुम्हारी समझ में आ जाए इस से ज्यादा उन्होंने भी क्या चाहा है. उन की तो काफी बीत चुकी है. बाकी की भी बीत जाएगी. तुम्हारी सारी उम्र पड़ी है. सही मानदंड नहीं अपनाओगी तो सारी उम्र रास्ता ही ढूंढ़ती रह जाओगी… एक कदम गलत उठा तो समझो जीवन समाप्त… भाई हूं तुम्हारा, इसलिए कुछ बातें खोल कर समझा नहीं सकता… आशा है स्वयं ही समझने का प्रयास करोगी.’’

‘‘कह तो रही हूं मैं समझ गई हूं. मेरे साथ मां के पास चलो,’’ स्वर भारी था मनु का.

ढीलीढाली सलवारकमीज पहने बहुत अपनी सी लगने लगी थी मनु. गरिमामय भी लग रही थी और सुंदर भी. कौन कहता है तरक्की पाने और आधुनिक बनने के लिए नंगा रहना जरूरी है.

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Serial Story: फैशन (भाग-2)

‘‘मन का करने के लिए क्या नंगा रहना जरूरी है? कपड़ों में पूरीपूरी पीठ गायब होती है, टांगें खुली होती हैं. क्याक्या नंगा है, क्या आप नहीं देखतीं बूआ? कैसीकैसी नजरें नहीं पड़तीं…फिर दोष देना लड़कों को कि राह चलते छेड़ दिया.’’

‘‘ढकीछिपी लड़कियों पर क्या कोई बुरी नजर नहीं डालता?’’

‘‘डालता है बूआ बुरे लोग अगर घर में हैं तो लड़कियां वहां भी सुरक्षित नहीं. मैं मानता हूं इस बात को पर नंगे रहना तो खुला निमंत्रण है न. जिस निगाह को न उठनी हो वह भी हैरानी से उठ जाए… टीवी और फिल्मों की बात छोड़ दीजिए. उन्हें नंगा होने की कीमत मिलती है. वे कमा कर चली गईं. रह गई पीछे परछाईं जिस पर कोई हाथ नहीं डाल सकता और हमारी लड़कियां उन्हीं का अनुसरण करती घूमेंगी तो कहां तक बच पाएंगी, बताइए न? पिता और भाई तो कुत्ते बन गए न जो रखवाली करते फिरें.’’

‘‘अरे भाई क्या हो गया? कौन बन गया कुत्ता जो रखवाली करता फिर रहा है?’’ सहसा किसी ने टोका.

हम अपनी बहस में देख ही नहीं पाए कि फूफाजी पास खड़े हैं जो सामान से लदेफंदे हैं. बड़े स्नेही हैं फूफाजी. आज सुबह ही कह रहे थे कि शाम को पहलवान हलवाई की जलेबियां और समोसे खिलाएंगे. हाथ में वही सब था. बूआ के हाथों में सामान दे कर हाथमुंह धोने चले गए. वापस आए तो विषय पुन: छेड़ दिया, ‘‘क्या बात है अजय, किस वजह से परेशान हो? क्या मनु के फैशन की वजह से? देखो बेटा, हमारे समझाने से तो वह समझने वाली है नहीं. मनुष्य अपनी ही गलतियों से सीखता है. जब तक ठोकर न लगे कैसे पता चले आगे खड्ढा था. फैशन पर बहस करना बेमानी है बेटा. आज ऐसा युग आ गया है कि हर इंसान अपने ही मन की करना चाहता है. हर इंसान कहता है यह उस की जिंदगी है उसे उसी के ढंग से जीने दिया जाए. तो ठीक है भई जी लो अपनी जिंदगी.

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‘‘अकसर जो चीज घर के लोग या मांबाप नहीं सिखा पाते उसे दुनिया सिखा देती है. तरस तो मांबाप करेंगे न बाहर वालों को क्या पड़ी है. जब बाहर से धक्के खा कर आएंगे तभी पता चलेगा न घर वाले सही थे. मैं तो कहता हूं मांबाप को औलाद को पूरापूरा मौका देना चाहिए ठोकरें खाने का. तभी सबक पूरा होगा वरना कहते रहो दिनरात अपनी कथा. कौन सुनता है? अब बच्ची तो नहीं है न मनु. पढ़लिख गई है. अपना कमा रही है. हम क्यों टोकाटाकी करते रहें? अपना माथा भी खराब करें. क्या पता हम पिछड़ गए हों जो इसे समझ नहीं पा रहे…अब इस उम्र में हम तो बदल नहीं सकते न?’’

‘‘मैं तो पिछड़ा हुआ नहीं हूं न फूफाजी? मनु की ही पीढ़ी का हूं.’’

‘‘छोड़ो न बेटा क्यों खून जला रहे हो? मनु वही करेगी जो उस का मन कहेगा. तुम समोसा खाओ न. तुम्हारी बूआ चाय लाती होगी.

देखो बेटा, एक सीमा के बाद मांबाप को अपने हाथ खुले छोड़ देने चाहिए. हमारी बीत गई न. इन की भी बीत जाने दो. ऐसे या वैसे. जाने दो न…लो चाय लो.’’ फूफाजी का आचरण देख कर मैं चुप रह गया. बड़ी मस्ती से समोसे और जलेबियां खाने लगा. मनु उन के सामने ही मुझे हाथ हिलाती हुई निकल गई. उस का अजीबोगरीब पहनावा देख मेरा खून पुन: जलने लगा. मगर पिता हो कर जब फूफाजी कुछ नहीं कर पाए तो मैं उस का सिर तो नहीं न फोड़ सकता. मैं सोच रहा हूं अगर मनु मेरी अपनी बहन होती तो क्या कर लेता मैं? तब भी मैं मुंह से ही मना करता न? उसे पिंजरे में तो नहीं डाल पाता. भविष्य में अगर मेरी बेटी ही हो तो ज्यादा से ज्यादा क्या कर लूंगा मैं? शायद यही जो अभी फूफाजी कर रहे हैं. मुंहजोरी का भला क्या उत्तर हो सकता है.

बस भरोसा रखो अपने बच्चों पर कि वे कभी अपनी सीमा का अतिक्रमण न करें… विश्वास करो उन पर. उस के बाद यह बच्चों पर है कि वे अपनी परीक्षा में खरे उतर पाते हैं या नहीं. आप के भरोसे और विश्वास की कद्र कर पाते हैं या नहीं. तभी फूफाजी ने मेरा हाथ हिलाया, ‘‘समोसे ठंडे हो रहे हैं अजय…मनु अपनी सहेली के घर पार्टी में गई है. वहीं से खा कर आएगी…तुम खाओ न…’’ फूफाजी की मनुहार पर तो मेरा मन भीग रहा था पर मनु के प्रति उन का इतना खुला व्यवहार मेरी समझ में नहीं आ रहा था. यह उन का अपनी संतान पर विश्वास था या विश्वास करने की मजबूरी?

9 बजे के करीब मनु आई और सीधी अपने कमरे में चली गई. सुबह देर तक सोई रही.

‘‘क्या आज औफिस नहीं जाना है? बूआ ने नाश्ता लगा दिया है. चलो, उठो…तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ मैं पूछ आया, मगर बूआ और फूफाजी पूछने नहीं गए.

‘‘जब मरजी होगी उठ कर बना भी लेगी और खा भी. जब हमारी रोकटोक का कोई मोल नहीं है, तो हमारी देखभाल का भी क्या मतलब? प्यार को प्यार होता है और इज्जत को इज्जत. जब से इस ने मुंहजोरी पकड़ी है हम कुछ भी नहीं कहते हैं…इस उम्र में क्या हमें आराम नहीं चाहिए?

‘‘सुबह जल्दी उठ कर इस का नाश्ता बनाना मेरे बस का नहीं…नौकरी करनी है तो सुबह 6 बजे उठो, अपना नाश्ता बनाओ… नहीं बनता तो 8 तक सोना भी जरूरी नहीं. हमारी सेवा मत करो कम से कम अपना काम तो खुद करो,’’ बूआ ने बड़बड़ाते हुए अपना आक्रोश निकाला. तब मैं सहज ही समझ गया उन का भी दर्द. मस्त रहने की कोशिश कर रहे हैं दोनों, मगर भीतर से परेशान हैं. फूफाजी नाश्ता कर के औफिस चले गए और बूआ बड़े स्नेह से मुझ से और खाने का अनुरोध करती रहीं. ‘‘बूआ, वह भूखी है और मैं खा रहा हूं.’’

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‘‘तो क्यों भूखी है? क्या मजबूरी है? देर रात तक जागना जरूरी तो नहीं है न?’’

‘‘कल तो आप दोनों बड़े खुश लग रहे थे और…’’

‘‘खुश न रहें तो क्या करें, तुम्हीं बताओ मुझे? तुम्हारे फूफा ने एक दिन सख्ती से बात की तो जानते हो क्या कह रही थी? कह रही थी कि ज्यादा सख्ती की तो घर से हिस्सा मांग कर अलग रहने चली जाएगी… यह घर उस के दादाजी का है… बराबर की हकदार है… आजकल लड़कियां अपने अधिकारों के लिए बड़ी जागरूक हो गई हैं न, तो ले ले अपना अधिकार. मांबाप का प्यार भी जबरदस्ती ले ले मिलता है तो…’’

‘‘क्या?’’ मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. मनु ने ऐसा किया… मेरी तो कल्पना से भी परे था ऐसा सोचना. लड़का हो कर कभी अपने पापा के आगे जबान नहीं चलाई हम दोनों भाइयों ने. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. मांबाप के साथ मर्यादित रिश्ता है हमारा और मनु ने लड़की हो कर अपना हिस्सा मांगा? अरे लड़कियां तो मांबाप के लिए एक भावनात्मक संबल होती हैं. लड़कों पर आरोप होता है कि शादी होते ही मांबाप को अंगूठा दिखा देते हैं और मनु ने लड़की हो कर ऐसा किया. बूआ की पीड़ा पर मैं भी आहत हो गया एकाएक. शायद इसीलिए पिछले दिनों पापा ने एक अच्छा रिश्ता सुझाया था तो बूआ ने साफ इनकार कर दिया था.

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Serial Story: फैशन (भाग-1)

‘‘जरादेखना मेरे बाल ठीक हैं… ठीक लग रही हूं न मैं?’’ मैं ने नजरें उठा कर देखा. मेरी बूआ की लड़की पूछ रही थी.

‘‘किस तरफ से ठीक हैं, पूछ रही हो? मेरी तरफ से कुछ भी ठीक नहीं है. रूखेरूखे, उलझे से हैं… कटे भी इस तरह हैं मानों चुहिया कुतर गई हो…कंघी किए कितने दिन हो गए हैं?’’‘‘क्या बात करते हो?…अभीअभी क्व500 खर्च कर सैट करा कर आ रही हूं.’’

‘‘अच्छा, तो फिर खुद ही देख लो न… मेरी समझ से तो बाहर है तुम्हारा क्व500 खर्चना,’’ मैं हैरान रह गया था.

वह खीज गई, ‘‘तुम कैसे लड़के हो अजय? तुम्हें यह भी पता नहीं?’’

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‘‘तुम मुझ से पूछती ही क्यों हो मनु? कल तुम अपनी फटी ड्रैस दिखा कर पूछ रही थी कैसी है… क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं आप लोगों के कि तन का कपड़ा भी साबूत नहीं रहा? मैं कुछ कहता हूं तो कहती हो मैं कैसा लड़का हूं. कैसा हूं मैं? न तुम्हारे कपड़े मेरी समझ में आते हैं और न ही तुम्हारी बातें. ऊपर से मेरा ही दिमाग घुमाने लगती हो. तुम्हें जो अच्छा लगता है करो… मुझे बिना वजह गंवार, जाहिल क्यों बनाती जा रही हो? चिथड़े पहनती हो और कहती हो फैशन है. बाल बुरी तरह उलझा रखेहैं… ऐसा है देवीजी अगर इंसानों की तरह जीना पुराना फैशन है तो मुझे बख्शो…आईना देखो… जैसा सुहाए वैसा करो,’’ यह कह कर मैं चुपचाप कमरे से बाहर आ गया.

बूआ ने दूर से देखा तो बोलीं, ‘‘फिर से झगड़ा हो गया क्या तुम दोनों में?’’

‘‘झगड़ा नहीं बूआ इसे कहते हैं वैचारिक मतभेद. यह लड़की जो भी करती है करे उस पर मेरी स्वीकृति की मुहर क्यों चाहती है? क्या हो गया है इसे? पहले अच्छीभली होती थी… यह कैसी हवा लगी है इसे?’’

‘‘इसे फैशन कहते हैं बबुआ… इसे कहते हैं जमाने के साथ चलना.’’

‘‘जमाने के साथ जो चलते हैं वे क्या पागलों की तरह बालों की लटें बना कर रहते हैं? जगहजगह से फटी जींस में से शरीर नजर आ रहा था कल… मैं ने अचानक देखा तो घबरा गया. एकदम भिखारिन लग रही थी. एकाएक ऐसा रूप बूआजी? वह दिन न आए इस पर कि इतनी दयनीय लगने लगे.’’

‘‘बूआ हंसते हुए बोलीं, ‘‘बिलकुल अपने पापा की तरह बात कर रहे हो. तुम्हारी ही उम्र का था जब एक बार यहां आया था. तब उसे मेरा ब्लाउज जरा सा फटा नजर आया था.’’

बूआ साग बीन रही थीं. वे आम बूढ़ी औरतों जैसी झक्की नहीं हैं. तभी तो लाडली बेटी को इतनी छूट दे रखी है. बूआ ने मेरे पिता की जो बात शुरू की थी उसे मैं अपने घर पर भी कई बार सुन चुका था. मेरे पिता 4 भाई थे, 1 ही बहन थी बूआ. राखी, भैयादूज पर ही बूआ को 8 सूट या साडि़यां मिल जाती थीं. दादीदादा जो देते थे वह अलग. फिर बूआ का ब्लाउज फटा क्यों? आगबबूला हो गए थे पापा. अपने बहनोई से ही झगड़ पड़े थे कि मेरी बहन का ब्लाउज फटा हुआ क्यों है? तब उन का जवाब था कि गरमी में बबुआ घिसा कपड़ा अच्छा लगता है.

‘‘तब गरमी थी और अब फैशन…

बूआ तुम मांबेटी हमारा ही खून क्यों जलाती रहतीं? तुम ने फटा ब्लाउज पहना ही क्यों था?’’

‘‘फटा नहीं था घिस कर नर्म हो गया था. तेरा पापा उसी पल बाजार गया और चिकन की कढ़ाई वाले 12 ब्लाउज ला कर मेरे आगे रख गया.’’

‘‘और हां घर जा कर खूब रोए भी थे पापा… दादी सुनाया करती थीं यह कहानी. उन्हें शक हो गया था शायद आप लोगों के हालात अच्छे नहीं हैं. आप की भी 3 ननदें थीं. फूफा अकेले थे कमाने वाले. पापा ने सोचा था जो हम देते हैं उसे बूआ अपनी ननदों को दे देती होगी और खुद फटों से ही काम चलती होगी.’’

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यह कहानी बहुत बार सुनी है मैं ने. फूफाजी के अहम को तब बहुत चोट लगी थी. बहन के लिए चिंता तो जायज थी लेकिन पति का मानसम्मान भी आहत हो गया था. कितने ही साल फूफाजी हमारे घर नहीं आए थे. घिसा ब्लाउज लड़ाई और मनमुटाव का कारण बन गया था. अपनीअपनी जगह दोनों ठीक थे. पापा बहन से प्यार करते थे, इसलिए असुरक्षा से घिर गए थे और फूफाजी इसलिए नाराज थे कि पापा ने उन पर शक किया कि वे अपनी पत्नी का खयाल नहीं रखते.

‘‘मायके का सामान कभी अपनी ननदों को नहीं दिया था मैं ने. तुम्हारे फूफा कभी मानते ही नहीं थे देने को. मेरे ट्रंक में हर पल 10-12 नए जोड़े रहते थे. कभी मैं भी कुछ खरीद लिया करती थी. 3 ननदें थीं और 3 ही बूआ. तुम्हारे फूफा की समझ लो 6-6 बेटियां थीं, जिन्हें इस चौखट से कभी खाली हाथ नहीं जाने दिया था मैं ने. देने का समय आता तो तुम्हारे फूफा सदा पहले पूछ लेते थे कि यह साड़ी या सूट तुम्हें कहां से मिला है? खुद खरीदा है या किसी भाईभाभी ने दिया है? कभी मैं कह भी देती कि क्या फर्क पड़ता है अब मेरी चीज है मैं जिसे मरजी दूं तो नहीं मानते थे. जैसे मैं चाहता हूं मेरा उपहार मेरी बहन पहने उसी तरह अपने भाई का उपहार भी सिर्फ तुम ही पहनोगी.’’

‘‘तुम ने वह घिसा कपड़ा पहना क्यों ही था बूआ जिस ने मेरे पापा को रुलारुला कर मारा…फूफाजी बेचारों का अपमान हुआ. मनमुटाव चलता रहा इतने साल. प्रश्न सिर्फ इतना सा था कि कोई भी अपनी बहनबेटी को फटेहाल नहीं देखना चाहता. ऐसा लगता है शायद हम ही नाकारा, नाकाबिल हैं जो उन के लिए कपड़े तक नहीं जुटा सके…तन का कपड़ा ऐसा तो हो जो गरिमा प्रदान करे. कपड़ों से ही तो हम किसी के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाते हैं. मुझे तो बड़ा बुरा लगता है जब कोई शालीन कपड़े न पहने. आजकल जैसे चिथड़े लड़कियां पहन कर निकलती हैं मुझे सोच कर हैरानी होती है. क्या इन के पिता, इन के भाई देखते नहीं हैं? क्या उन के सिर शर्म से झुकते नहीं हैं?’’

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‘‘जिन के भाई रोकते हैं उन की बहनें अपने घर से इस तरह के कपड़े पहन कर निकलती ही नहीं हैं. अपनी सहेली के घर जा कर बदल लेंगी या कालेज के टौयलेट में दिन भर उन में रहेंगी. घर लौटते वही पहन लेंगी जो घर से निकलते पहना था. अपने मन की कर लेंगी न…यही सोच तो मैं मना नहीं करती हूं…ठीक है कर अपने मन की, एक बार हमारी तरह चूल्हेचक्की में पिसने लगेगी तो कहां मन का कर पाएगी.’’

आगे पढ़ें- हम अपनी बहस में देख ही नहीं पाए कि…

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की डॉ रिद्धिमा ने की राजन शाही की तारीफ, कही ये बात

‘‘स्टार प्लस’’पर प्रसारित हो रहा राजन शाही की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘कट प्रोडक्शन’’के तहत प्रसारित हो रहा सीरियल ‘‘ये रिश्ता क्या कहलाता है‘‘इंडस्ट्री में सबसे लंबे समय तक चलने वाले टीवी सीरियल में से एक है. इस सीरियल में मोहसिन खान और शिवांगी जोशी मुख्य भूमिकाओं में हैं. अब इसमें बाल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रिद्धिमा के किरदार में वृषिका मेहता नजर आने वाली हैं, जो कि कैरव का इलाज करेगीं और फिर धीरे धीरे कार्तिक से प्यार करने लगेंगी. इसमें वह एकदम अलग अवतार में नजर आएंगी और उनकी वजह से अब कहानी में कई नए उतार चढ़ाव भी आएंगे.

वृषिका मेहता का यह पहला सीरियल नहीं है. वह इससे पहले ‘दिल दोस्ती डांस’, ‘यह आशिकी’,  फिअर फाइल्स’, ट्विस्ट वाला लव’, ‘पर तूने क्या किया’, ‘इश्कबाज’, ‘यह तेरी गलियां’जैसे कई सीरियलों में अभिनय कर चुकी हैं. इसके बावजूद वह अपना मनेाबल बढ़ाने का श्रेय सीरियल‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’के निर्माता व निर्देशक राजन शाही को देती हैं.

 

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खुद वृषिका मेहता कहती हैं- ‘‘राजन शाही साहब एक प्यारे इंसान हैं. जब से मैं इस भूमिका को निभाना स्वीकार किया है, वह मेरे लिए बहुत उत्साहजनक और सहायक रहे हैं.  मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है. इससे पहले कि मैं इस सीरियल की शूटिंग शुरू करूं, उनसे मेरी जो बातचीत हुई, उसी से मुझे अपना मनोबल बढ़ाने में बहुत मदद मिली. कलाकारों और क्रू मेंबर के प्रति उनका पूरा दृष्टिकोण गर्मजोशी और उत्साह से भरा हुआ है, जो उन्हें सही मायने में हमें काम करने के लिए जोश दिलाता है. ’’

अपने किरदार की चर्चा करते हुए वृषिका मेहता कहती हैं-‘‘मैं इस सीरियल में बाल मनोवैज्ञानिक डॉ.  रिद्धिमा का किरदार निभाने को लेकर काफी उत्साहित हॅूं. डॉ.  रिद्धिमा एक स्वतंत्र और सशक्त नारी है. वह बहुत ही सुनियोजित तरीके से अपनी जिंदगी जीती है. उसके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं, जो कि धीरे धीरे आने आने वाले हैं. मैंने इससे पहले कभी भी परदे पर डॉक्टर और वह भी मनोवैज्ञानिक डाक्टर का किरदार नहीं निभाया है. इसलए में प्रेाग करेन और कुछ सीखने को लेकर अति उत्साहित हूं.

 

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ये भी पढ़ें- परिवार के खिलाफ जाकर की थी दिव्या भटनागर ने शादी, मौत के बाद पति के खुले कई राज

वह आगे कहती हैं- ‘‘हकीकत में ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है‘ जैसे सफलतम सीरियल के साथ जुड़कर बहुत अच्छा लगता है. यह सीरियल पिछले कुछ वर्षों में टेलीविजन पर सबसे स्थिर और मजबूत सीरियल रहा है. इसकी पहुंच और दर्शकों का आधार बहुत बड़ा है.  इस सीरियल को इसके प्रशंसकों से जो प्यार और समर्थन मिल रहा है, वह जबरदस्त है. इसलिए अब इसका हिस्सा बनना काफी आश्चर्यजनक है!‘‘

परिवार के खिलाफ जाकर की थी दिव्या भटनागर ने शादी, मौत के बाद पति के खुले कई राज

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से लेकर कई हिट सीरियल्स में काम कर चुकीं एक्ट्रेस दिव्या भटनागर ने बीचे दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. कोरोना और हार्ट अटैक से दुनिया को अलविदा कहने वाली दिव्या के जाने से जहां टीवी इंडस्ट्री के लोग सदमे में हैं तो वहीं उनकी पर्सनल लाइफ के कुछ राज खुल रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला..

शादी को लेकर हुआ खुलासा

दिव्या भटनागर (Divya Bhatnagar) के निधन की के बाद से हिना खान से लेकर अंकिता लोखंडे समेत कई टीवी स्टार्स ने उनके निधन पर शोक जता चुके हैं. लेकिन हाल ही में देवोलिना भट्टाचार्जी ने कुछ राज खोलते हुए दिव्या भटनागर के पति पर संगीन इल्जाम लगाए हैं. दरअसल, दिव्या भटनागर (Divya Bhatnagar) की पुरानी दोस्त और एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने खुलाया किया है कि गगन गबरू दिव्या भटनागर के साथ मारपीट करता था और उनका एक्सट्रा मैरिटल अफेयर भी चल रहा था, जिसके बाद उनके दिव्या के फैंस काफी गुस्से में हैं.

 

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पिछले साल हुई थी दिव्या भटनागर की शादी

 

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लम्बे समय से डेट कर रहे ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम दिव्या भटनागर और गगन गबरू ने पिछले साल दिसम्बर में शादी रचाई थी. वहीं खबरों की मानें तो गगन को दिव्या ही मुंबई लेकर गई थीं.

गुरुद्वारे में की थी शादी

 

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परिवार के गगन को नापसंद करने के बाद गुरुद्वारे में दिव्या और गगन ने शादी की थी. वहीं सोशलमीडिया में दोनों की फोटोज भी वायरल हुई थी. दरअसल, दिव्या भटनागर गगन को बेहद पसंद करती थीं. लेकिन उनका परिवार गगन को बिल्कुल भी नहीं पसंद करता था. यहीं वजह थी कि दिव्या की शादी में उनके परिवार से जुड़ा कोई भी सदस्य नहीं शामिल हुआ था.

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वनराज ने दी काव्या को चेतावनी, पाखी के बर्थडे में आएगा नया ट्विस्ट

 स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों वनराज और काव्या का ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं काव्या की तकरार अब अनुपमा और उसके परिवार के साथ भी देखने को मिल रही है, जिसके कारण शो इन दिनों टीआरपी चार्ट में कमाल कर रहा है. लेकिन आने वाले दिनों शो में और भी कई नए ट्विस्ट आने वाले हैं, जिसे देखकर दर्शकों को मजा आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा से लड़ती है काव्या

बीते एपिसोड में आपने देखा कि वनराज के अपनी मां लीला और परिवार के लिए बढ़ती नजदीकियां देखकर काव्या बेहद गुस्सा होती है, जिसके चलते वह शाह हाउस जाकर हंगामा शुरू कर देती है और अनुपमा को खूब खरी खोटी सुनाती है. हालांकि बहू के सपोर्ट में लीला भी काव्या को भला बुरा कहती नजर आती है. इसी बीच वनराज काव्या को घर ले जाने के लिए आता है.

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परिवार के बारे में ये बात कहता है वनराज

काव्या के शाह हाउस में हंगामा करने के बाद जब वनराज उसे घर ले जाता है तो काव्या, वनराज को परिवार को छोड़ने की बात कहती है. लेकिन वनराज बोलता है कि वह अपने मां-बाप और बच्चों को किसी के लिए नही छोड़ेगा, जिसे सुनकर काव्या कहती है कि वह उसे परिवार को छोड़ने की बात नही कह रही है बल्कि उससे कोई भी बात न छिपाने की बात कह रही है.

 

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 पाखी को लेकर चाल चलेगी काव्या

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा की खुशियों को देखकर काव्या फैसला करती है कि वह उसे उसके परिवार से अलग करेगी. दूसरी तरफ बेटी पाखी के बर्थडे को लेकर परिवार में सेलिब्रेशन का माहौल भी देखने को मिलेगा, जिसके बीच वनराज और काव्या कोशिश करेंगे कि वह बेटी पाखी को अपनी तरफ कर सके. क्या अनुपमा ऐसा होने से रोक पाएगी ?

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Winter Special: दाल के सूखे कोफ्ते

अगर आप गरबा फेस्टिवल के मौके पर कुछ स्पाइसी और टेस्टी बनाना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. सिंपल और आसानी से बनने वाली ये दाल के सूखे कोफ्ते हेल्दी के साथ टेस्टी रेसिपी है, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली को गरबा फेस्टिवल में परोस सकते हैं.

हमें चाहिए

–  1 कप धुली मसूर दाल

–  1 इंच टुकड़ा अदरक

–  2 हरीमिर्चें

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा

–  चुटकीभर हींग पाउडर

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–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  नमक स्वादानुसार.

मसाले के लिए हमें चाहिए

–  मीडियम आकार के 1 प्याज का पेस्ट

–  1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

–  1/4 कप प्याज लंबाई में कटा

–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

–  1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 छोटा चम्मच देगीमिर्च पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

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–  2 छोटे चम्मच मस्टर्ड औयल

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी.

बनाने का तरीका

दाल को 4 घंटे पानी में भिगोए रखें. फिर पानी निथार कर अदरक व हरीमिर्च के साथ मिक्सी में पेस्ट बना लें. इस मिश्रण में 1 कप पानी मिला कर घोल लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में सूखा जीरा भूनें.

फिर हींग पाउडर, हलदी पाउडर व नमक डाल कर 5 सैकंड चलाएं और उस में दाल वाला मिश्रण डाल कर मीडियम आंच पर चलाते हुए घोटें. जब मिश्रण एक गोले की तरह बन जाए तो आंच बंद करें.

मिश्रण थोड़ा सा ठंडा हो तो छोटीछोटी गोलियां बना लें. पुन: नौनस्टिक कड़ाही में 1 चम्मच तेल गरम करें. कड़ाही के चारों तरफ फैलाएं. इस में सारी गोलियां डाल कर सौते करें. बचा तेल गरम करें. उस में पहले लंबी कटी प्याज भूनें.

फिर प्याज व अदरक लहसुन का पेस्ट और सूखे मसाले डालें, साथ ही एकचौथाई कप पानी.

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आंच धीमी रखें, जब मसाला भुन जाए तो उस में दाल की गोलियां डालें, साथ ही चौथाई कप पानी. ढक कर रखें ताकि मसाला गोलियों में समा जाए. जब मसाला अच्छी तरह गोलियों से लिपट जाए तब धनियापत्ती बुरक कर सर्व करें.

चुटकी बजाते ही बिजली का बिल कम कर देंगे ये 7 तरीके

क्या आप भी हर महीने आने वाले बिजली के बिल से परेशान आ चुकी हैं? अब आप प्रति यूनिट दर तो कम कर नहीं सकती लेकिन इस्तेमाल किए गए यूनिट में कटौती कर इन भारी-भरकम बिल से राहत जरूर पा सकती हैं. अपनी छोटी-छोटी आदतों में सुधार लाकर आप जेब पर पड़ने वाले इस बड़े खर्चे को कुछ कम कर सकती हैं.

1. एलईडी लाइट्स का प्रयोग

अगर आपने बिजली का बिल कम करने का फैसला कर ही लिया है तो सबसे पहले अपने घर के बल्ब बदल डालिए. पुराने सामान्य बल्ब की जगह एलईडी बल्ब का इस्तेमाल कीजिए. हालांकि ये बल्ब कुछ महंगे जरूर होते हैं लेकिन इनके इस्तेमाल से आप काफी बिजली की बचत कर सकती हैं.

2. एयर कंडिशनर की सर्विसिंग

गर्मियों में एसी का इस्तेमाल शुरू करने से पहले उसकी सर्विसिंग जरूर करा लें. तापमान की सेटिंग को भी सही रखें. ऐसा करके आप बिजली के बिल में कुछ कमी ला सकती हैं.

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3. घर में वेंटिलेशन की बेहतर व्यवस्था करें

अगर आपके घर में वेंटिलेशन सही होगा तो न तो आपको बहुत देर तक पंखा चलाने की जरूरत होगी और न ही लाइट जलाकर रखने की. ऐसे में आसानी से कुछ बिजली बचायी जा सकती है.

4. वाशिंग मशीन

क्या आप रोज-रोज वाशिंग मशीन में कपड़े धोती हैं? वाशिंग मशीन में रोज-रोज कपड़े धोना सही नहीं है. मशीन की क्षमता के अनुसार जब कपड़े हो जाएं तो ही मशीन का इस्तेमाल करें.

5. प्लंबिंग

अगर आपके घर की कोई पानी की पाइप लीक कर रही है या फट गई है तो उसे ठीक करा लें. हमें पता नहीं चलता है लेकिन सच्चाई यही है कि लीक हो रही पाइप से बूंद-बूंद करके पानी गिरता रहता है और टंकी खाली हो जाती है. जिसे भरने के लिए हमें समय-समय पर टुल्लू या वाटर मोटर चलाना पड़ता है, जिससे बिल बहुत तेजी से बढ़ जाता है.

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6. सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करना है बेहतर

इन दिनों सोलर ऊर्जा काफी चलन में है. हालांकि शुरुआत में इसमें काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं लेकिन उसके बाद बिजली का बिल लगभग आधा हो जाता है.

7. यूज करने के बाद स्विच बंद कर दें

कभी भी बिना वजह बिजली खर्च न करें. अगर आप एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रही हों और इस कमरे में कोई बैठा न हो तो उठने के साथ ही कमरे की लाइट और पंखा बंद कर दें.

गरीबों की घुसपैठ मंजूर नहीं

आंध्र प्रदेश के एक औटो मेकैनिक की बेटी ऐश्वर्या  रेड्डी को दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज में अपनी मैरिट के बलबूते मैथ्स औनर्स में 2 साल पहले ऐडमिशन तो मिल गया पर होस्टल में रहना, रोजमर्रा का खर्च उठाना उस के लिए भारी पड़ रहा था.

उस ने जैसेतैसे काम चलाया पर अब जब कालेज ने कहा कि वह होस्टल छोड़ दे और न केवल कहीं और रहने का इंतजाम कर ले, अपनी पढ़ाई के लिए लैपटौप का भी इंतजाम कर ले तो उस के लिए यह अति था. घर वालों को आर्थिक संकट से बचाने के लिए उस ने आत्महत्या कर ली.

जो लोग यह सोचते हैं कि देश में पिछड़े, दलित, गरीब धीरेधीरे ऊपर आ रहे हैं वे असल में बहकावे में लाए जा रहे हैं. यह कम्युनिस्ट तरह का प्रचार है. देश आज भी गरीबअमीर ही नहीं, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा के टुकड़ों में बंटा हुआ है और जो भी एक दायरा लांघने की कोशिश करता है, कट्टर समाज उस पर हावी हो कर हमला कर देता है.

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यह हमला किसी भी तरह का हो सकता है. कमैंट करे जा सकते हैं. पहनावे और खानपान को ले कर अपमानित किया जा सकता है. पैसे की कमी को लेकर मजाक उड़ाया जा सकता है. फीस बढ़ाई जा सकती है ताकि कम पैसे वाले खींची लकीर पार न कर सकें.

ऐश्वर्या रेड्डी केवल गरीबी के कारण परेशान थी, जरूरी नहीं है. यह वर्ग अपनी गरीबी के प्रति पूरी तरह सजग रहता है और कम खर्च में काम चलाना जानता है.

यह वर्ग अगर कुछ नहीं जानता तो यह कि कैसे ऊंचे लोगों में घुलेमिले. ऊंचे वर्ग के लोग, इन में औरतें और उन की बेटियां ज्यादा मुखर हैं, पहली मुलाकात में मांबाप, भाषा, धर्म, जाति, पैसे, पृष्ठभूमि की पूरी कुंडली बना लेती हैं. जो उन के जैसा नहीं है उसे कौक्रोच समझा जाता है, जो नाली में रहने लायक है.

देश की राजनीतिक व्यवस्था व सामाजिक नैरेटिव इस बात को हर रोज भाषणों, प्रवचनों, किस्सों से दोहरा रही है. बारबार एहसास दिलाया जा रहा है कि जो नीचे हैं वहीं रहें और वहीं सरकार से दया की भीख मांगें.

आधार, पैनकार्ड जैसे परिचय की आईडी में कहीं न कहीं छिपा संदेश होता है कि कौन कहां से है. यह पते में हो सकता है, नाम में हो सकता है, शक्ल में हो सकता है.

लेडी श्रीराम कालेज शुरू से ही धन्ना सेठों की बेटियों का कालेज रहा है. दिल्ली के जानेमाने उद्योगपति दिल्ली क्लौथ मिल के मालिक श्रीराम द्वारा स्थापित इस कालेज को जमीन ही लाजपत नगर में मिली थी, जो साउथ दिल्ली में है, जहां देश को चलाने वाला वर्ग रहता है. इस वर्ग को दूसरों, निचलों, गरीबों की घुसपैठ बिलकुल मंजूर नहीं. अगर अंगरेजी माध्यम की चीन की दीवार लांघ कर भी कोई घुस आए तो उसे पराया घोषित कर के दुत्कार कर रखा जाता है. ऐसी लड़की जो पूरे समय डरीसहमी रही हो, एक और आर्थिक मार नहीं सह पाई और उस ने घर पहुंच कर आत्महत्या कर ली ताकि उस के मातापिता रोजाना उस का लटका मुंह न देखें और वह उन की हताशा, बेबसी न देख पाए.

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यह समस्या सिर्फ पैसे की नहीं है. मेधावी के लिए कहीं से पैसे का जुगाड़ हो जाता है. यह समस्या जाति, वर्ग, धर्म की है, जिसे आज सैकड़ों चूल्हों पर रोजाना पकाया जा रहा है ताकि सत्ता की मिठाई मिलती रहे पर केवल खुद को, बाकी लंगरों में खाते रहें. हाथ भरभर कर या चौराहों में घरघर भीख मांग कर.

लव या लस्ट: 5 आसान तरीकों से जानें अपने रिश्ते का सच

चलिए आपको पहली नजर का पहला प्यार हो गया है. दिन-रात रोमांस और करवटें बदलने में गुजर रहे हैं. उन्हें हर दिन देखने के लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा है. आपके दिल और दिमाग में घर चुके उस प्यार को अब जीवनसाथी बना ही लिया जाए, ऐसा सोच रही हैं.

लेकिन जरा अपने दिमाग के रोमांटिक घोड़े को लगाम दीजिये और यह तो चेक कर लीजिए कि जिसे आप प्यार करती या करते हैं वो भी आपको love करता है या फिर आप उसके Lust (वासना) का सामान मात्र ही हैं.

यानी जब उसे सेक्स करना हो तभी आपकी याद आती हो ऐसा तो नहीं. हो भी सकता है और नहीं भी. क्योंकि लव और लस्ट में फर्क करना आसान नहीं होता. उलटे कई बार तो लस्ट में डूबा पार्टनर असली लवर से भी ज्यादा सीरियस रिएक्शन देता है.

इसलिए आप का प्यार भी कहीं प्यार और वासना के बीच उलझन में तो नहीं है, यह जानने के 5 आसान तरीके हैं. इन्हें अपने पार्टनर पर आजमा कर देखिये और लस्ट का लस्ट और लव का लव कर डालिए.

1. जब अंखियों में न झांके सैयां

पहली नजर का प्यार आंखों से ही शुरु होता है और लस्टबाज लवर की पकड़ भी आंखों से ही होती है. अगर आपको लगता है कि आपका प्यारा प्यार आपकी आंखों में झांकने में फेल हो जाता हो तो समझ जाइये उसे आपसे नहीं आपके फिगर और सेक्सुअल परफौर्मेंस से प्यार है.

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दरअसल रिलेशनशिप एक्सपर्ट मानते हैं कि आंखें किसी की नीयत समझने के लिए खिड़की जैसी होती हैं. जब कोई आपको प्यार करता है, तो वे आपको आंखों में निसंकोच देखेगा और अपनी दिल की बातें/भावनाएं जाहिर कर देगा, लेकिन अगर आंख में देखने के बजाए उसकी नजर आपके शरीर के अन्य हिस्सों जैसे स्तन, नितम्ब, जांघ पर केंद्रित है तो आप उसके लव नहीं बल्कि यौन रूचि पूरी करने का आसान रास्ता भर है. सो बी अलर्ट.

2. दोस्ती नहीं तो Sex Slave हैं आप….

दोस्ती प्रेम पर आधारित हर रिलेशनशिप की बहुत मजबूत नींव होती है, जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो आप उसके दोस्त जरूर होते हैं. दोस्तों की तरह अपने लव पार्टनर के साथ हैंग आउट करना पसंद करते हैं. उसके साथ जोक्स शेयर करते हैं. जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के लिए हमेशा खड़े होते हैं और आपसी मतभेदों का सम्मान करते हैं. अगर आपके लव रिलेशनशिप से दोस्ती के पहलू को हटा दें तो फिर आपका सबंध उसके साथ मास्टर-स्लेव सरीखा हो जाता है.

जहां मालिक की इच्छा पूर्ति ही आपका इकलौता योगदान होता है रिलेशनशिप के नाम पर. अगर आपका पार्टनर आपसे दोस्त की तरह पेश नहीं आता और लव के नाम पर आपसे सेक्स करता है तो समझ जाइए कि आपका रिश्ता लस्ट की नींव पर टिका है. जो कभी भी भरभरा कर गिर सकता है.

3. सेक्स का 2.0  तो नहीं

जब दो लोग प्यार करते हैं, सेक्स सिर्फ एक फिजिकल एक्ट होता है. असली रिश्ता उसके बाद शुरू होता है और आपको इसका एहसास उसके स्पर्श करने के तरीके, बाहों में भरने और चुंबन के अंदाज से हो जाता है. सेक्स ही हो तो यह एक यांत्रिक यानी रोबोटिक रिलेशन बनकर रह जाता है जहाँ हम मशीनी कमांड की तरह सिर्फ सेक्स को ही तरजीह देते हैं. इसलिए प्यार अगर मशीनी होता जा रहा है तो चिंता की बात है.

साथ ही वह आपकी राय सम्मान करता है या नहीं? आप को भी सेक्सुअल प्लेज़र देने में दिलचस्पी रखता है? सिर्फ अपनी ही भूख मिटाता है? सेक्स के क्षणों में ही उत्साहित या आपके साथ हंसकर पेश आता है? जैसे फैक्टर भी तय करते हैं कि वह आपसे लव करता है लस्ट. सेक्स एक्सपर्ट मानते हैं कि सेक्सुअल एक्ट के बाद अगर आपका पार्टनर आपकी जिदगी से जुड़े असली मुद्दों पर ध्यान नहीं देता है और क्षणिक संतुष्टि पर फोकस रखता है तो ऐसे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता.

4. फ से फ्यूचर…

यदि आपका रिश्ता पूरी तरह से वासना पर आधारित है, तो आपका पार्टनर भविष्य के बारे में कोई भी बात करने से बचेगा. जैसे पेरेंट्स से कब और कैसे मिलना है, उन्हें शादी के लिए कैसे मनाना है, शादी कब, कैसे करेंगे, घर कहां लेंगे, बच्चों के नाम क्या होंगे आदि.

दरअसल जो प्यार करते हैं वे एक एक-दूसरे के साथ भविष्य के सपने बुनते हैं. बिना फ्यूचर टाक के कोई भी रिश्ता टिकाऊ नहीं हो सकता है. यदि आपको भी उस से सेक्स से ही मतलब है तब कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको उसके साथ अपना फ्यूचर नजर आता है जरा फिर से सोचिए. क्योंकि फ से फ्यूचर आपके लिए हो सकता है उसके लिए तो F से कुछ और ही होगा.

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5. तू किसी और से मिलके तो देख…

जो सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और इस रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं वे अक्सर आपको अकेले में ही मिलने के लिए फ़ोर्स करेंगे. यानी जब सेक्स की चाह होगी तो मिलेंगे लेकिन आपको अपने दोस्तों और परिवार से मिलाने से परहेज करेंगे. हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर अपने और आपके घरवालों से मिलने से बचेंगे. सब कुछ रहस्यजनक रहेगा. रिश्ते को निजी रखने की कोशिश का दिखावा कर आपको सब से अलग रखेंगे और सेक्स का आनंद लेंगे. इसलिए, अगर आपका साथी आपके सामने अपने परिवार और दोस्तों की बात नहीं करता तो यह प्यार नहीं है, बल्कि वासना है. दरअसल उनकी भावनाएं वासना की ओर हैं, वे सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और कोई भावनात्मक कनेक्शन फील नहीं करते.

उम्मीद है इशारा समझ रहे होंगे और अगर 5 ट्रिक्स पढ़ ली हैं तो काफी हद तक अनुमान भी लगा लिया होगा कि आपका पार्टनर Lover है या Luster.

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