Winter Special: दाल के सूखे कोफ्ते

अगर आप गरबा फेस्टिवल के मौके पर कुछ स्पाइसी और टेस्टी बनाना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. सिंपल और आसानी से बनने वाली ये दाल के सूखे कोफ्ते हेल्दी के साथ टेस्टी रेसिपी है, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली को गरबा फेस्टिवल में परोस सकते हैं.

हमें चाहिए

–  1 कप धुली मसूर दाल

–  1 इंच टुकड़ा अदरक

–  2 हरीमिर्चें

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा

–  चुटकीभर हींग पाउडर

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–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  नमक स्वादानुसार.

मसाले के लिए हमें चाहिए

–  मीडियम आकार के 1 प्याज का पेस्ट

–  1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

–  1/4 कप प्याज लंबाई में कटा

–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

–  1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 छोटा चम्मच देगीमिर्च पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

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–  2 छोटे चम्मच मस्टर्ड औयल

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी.

बनाने का तरीका

दाल को 4 घंटे पानी में भिगोए रखें. फिर पानी निथार कर अदरक व हरीमिर्च के साथ मिक्सी में पेस्ट बना लें. इस मिश्रण में 1 कप पानी मिला कर घोल लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में सूखा जीरा भूनें.

फिर हींग पाउडर, हलदी पाउडर व नमक डाल कर 5 सैकंड चलाएं और उस में दाल वाला मिश्रण डाल कर मीडियम आंच पर चलाते हुए घोटें. जब मिश्रण एक गोले की तरह बन जाए तो आंच बंद करें.

मिश्रण थोड़ा सा ठंडा हो तो छोटीछोटी गोलियां बना लें. पुन: नौनस्टिक कड़ाही में 1 चम्मच तेल गरम करें. कड़ाही के चारों तरफ फैलाएं. इस में सारी गोलियां डाल कर सौते करें. बचा तेल गरम करें. उस में पहले लंबी कटी प्याज भूनें.

फिर प्याज व अदरक लहसुन का पेस्ट और सूखे मसाले डालें, साथ ही एकचौथाई कप पानी.

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आंच धीमी रखें, जब मसाला भुन जाए तो उस में दाल की गोलियां डालें, साथ ही चौथाई कप पानी. ढक कर रखें ताकि मसाला गोलियों में समा जाए. जब मसाला अच्छी तरह गोलियों से लिपट जाए तब धनियापत्ती बुरक कर सर्व करें.

चुटकी बजाते ही बिजली का बिल कम कर देंगे ये 7 तरीके

क्या आप भी हर महीने आने वाले बिजली के बिल से परेशान आ चुकी हैं? अब आप प्रति यूनिट दर तो कम कर नहीं सकती लेकिन इस्तेमाल किए गए यूनिट में कटौती कर इन भारी-भरकम बिल से राहत जरूर पा सकती हैं. अपनी छोटी-छोटी आदतों में सुधार लाकर आप जेब पर पड़ने वाले इस बड़े खर्चे को कुछ कम कर सकती हैं.

1. एलईडी लाइट्स का प्रयोग

अगर आपने बिजली का बिल कम करने का फैसला कर ही लिया है तो सबसे पहले अपने घर के बल्ब बदल डालिए. पुराने सामान्य बल्ब की जगह एलईडी बल्ब का इस्तेमाल कीजिए. हालांकि ये बल्ब कुछ महंगे जरूर होते हैं लेकिन इनके इस्तेमाल से आप काफी बिजली की बचत कर सकती हैं.

2. एयर कंडिशनर की सर्विसिंग

गर्मियों में एसी का इस्तेमाल शुरू करने से पहले उसकी सर्विसिंग जरूर करा लें. तापमान की सेटिंग को भी सही रखें. ऐसा करके आप बिजली के बिल में कुछ कमी ला सकती हैं.

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3. घर में वेंटिलेशन की बेहतर व्यवस्था करें

अगर आपके घर में वेंटिलेशन सही होगा तो न तो आपको बहुत देर तक पंखा चलाने की जरूरत होगी और न ही लाइट जलाकर रखने की. ऐसे में आसानी से कुछ बिजली बचायी जा सकती है.

4. वाशिंग मशीन

क्या आप रोज-रोज वाशिंग मशीन में कपड़े धोती हैं? वाशिंग मशीन में रोज-रोज कपड़े धोना सही नहीं है. मशीन की क्षमता के अनुसार जब कपड़े हो जाएं तो ही मशीन का इस्तेमाल करें.

5. प्लंबिंग

अगर आपके घर की कोई पानी की पाइप लीक कर रही है या फट गई है तो उसे ठीक करा लें. हमें पता नहीं चलता है लेकिन सच्चाई यही है कि लीक हो रही पाइप से बूंद-बूंद करके पानी गिरता रहता है और टंकी खाली हो जाती है. जिसे भरने के लिए हमें समय-समय पर टुल्लू या वाटर मोटर चलाना पड़ता है, जिससे बिल बहुत तेजी से बढ़ जाता है.

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6. सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करना है बेहतर

इन दिनों सोलर ऊर्जा काफी चलन में है. हालांकि शुरुआत में इसमें काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं लेकिन उसके बाद बिजली का बिल लगभग आधा हो जाता है.

7. यूज करने के बाद स्विच बंद कर दें

कभी भी बिना वजह बिजली खर्च न करें. अगर आप एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रही हों और इस कमरे में कोई बैठा न हो तो उठने के साथ ही कमरे की लाइट और पंखा बंद कर दें.

गरीबों की घुसपैठ मंजूर नहीं

आंध्र प्रदेश के एक औटो मेकैनिक की बेटी ऐश्वर्या  रेड्डी को दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज में अपनी मैरिट के बलबूते मैथ्स औनर्स में 2 साल पहले ऐडमिशन तो मिल गया पर होस्टल में रहना, रोजमर्रा का खर्च उठाना उस के लिए भारी पड़ रहा था.

उस ने जैसेतैसे काम चलाया पर अब जब कालेज ने कहा कि वह होस्टल छोड़ दे और न केवल कहीं और रहने का इंतजाम कर ले, अपनी पढ़ाई के लिए लैपटौप का भी इंतजाम कर ले तो उस के लिए यह अति था. घर वालों को आर्थिक संकट से बचाने के लिए उस ने आत्महत्या कर ली.

जो लोग यह सोचते हैं कि देश में पिछड़े, दलित, गरीब धीरेधीरे ऊपर आ रहे हैं वे असल में बहकावे में लाए जा रहे हैं. यह कम्युनिस्ट तरह का प्रचार है. देश आज भी गरीबअमीर ही नहीं, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा के टुकड़ों में बंटा हुआ है और जो भी एक दायरा लांघने की कोशिश करता है, कट्टर समाज उस पर हावी हो कर हमला कर देता है.

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यह हमला किसी भी तरह का हो सकता है. कमैंट करे जा सकते हैं. पहनावे और खानपान को ले कर अपमानित किया जा सकता है. पैसे की कमी को लेकर मजाक उड़ाया जा सकता है. फीस बढ़ाई जा सकती है ताकि कम पैसे वाले खींची लकीर पार न कर सकें.

ऐश्वर्या रेड्डी केवल गरीबी के कारण परेशान थी, जरूरी नहीं है. यह वर्ग अपनी गरीबी के प्रति पूरी तरह सजग रहता है और कम खर्च में काम चलाना जानता है.

यह वर्ग अगर कुछ नहीं जानता तो यह कि कैसे ऊंचे लोगों में घुलेमिले. ऊंचे वर्ग के लोग, इन में औरतें और उन की बेटियां ज्यादा मुखर हैं, पहली मुलाकात में मांबाप, भाषा, धर्म, जाति, पैसे, पृष्ठभूमि की पूरी कुंडली बना लेती हैं. जो उन के जैसा नहीं है उसे कौक्रोच समझा जाता है, जो नाली में रहने लायक है.

देश की राजनीतिक व्यवस्था व सामाजिक नैरेटिव इस बात को हर रोज भाषणों, प्रवचनों, किस्सों से दोहरा रही है. बारबार एहसास दिलाया जा रहा है कि जो नीचे हैं वहीं रहें और वहीं सरकार से दया की भीख मांगें.

आधार, पैनकार्ड जैसे परिचय की आईडी में कहीं न कहीं छिपा संदेश होता है कि कौन कहां से है. यह पते में हो सकता है, नाम में हो सकता है, शक्ल में हो सकता है.

लेडी श्रीराम कालेज शुरू से ही धन्ना सेठों की बेटियों का कालेज रहा है. दिल्ली के जानेमाने उद्योगपति दिल्ली क्लौथ मिल के मालिक श्रीराम द्वारा स्थापित इस कालेज को जमीन ही लाजपत नगर में मिली थी, जो साउथ दिल्ली में है, जहां देश को चलाने वाला वर्ग रहता है. इस वर्ग को दूसरों, निचलों, गरीबों की घुसपैठ बिलकुल मंजूर नहीं. अगर अंगरेजी माध्यम की चीन की दीवार लांघ कर भी कोई घुस आए तो उसे पराया घोषित कर के दुत्कार कर रखा जाता है. ऐसी लड़की जो पूरे समय डरीसहमी रही हो, एक और आर्थिक मार नहीं सह पाई और उस ने घर पहुंच कर आत्महत्या कर ली ताकि उस के मातापिता रोजाना उस का लटका मुंह न देखें और वह उन की हताशा, बेबसी न देख पाए.

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यह समस्या सिर्फ पैसे की नहीं है. मेधावी के लिए कहीं से पैसे का जुगाड़ हो जाता है. यह समस्या जाति, वर्ग, धर्म की है, जिसे आज सैकड़ों चूल्हों पर रोजाना पकाया जा रहा है ताकि सत्ता की मिठाई मिलती रहे पर केवल खुद को, बाकी लंगरों में खाते रहें. हाथ भरभर कर या चौराहों में घरघर भीख मांग कर.

लव या लस्ट: 5 आसान तरीकों से जानें अपने रिश्ते का सच

चलिए आपको पहली नजर का पहला प्यार हो गया है. दिन-रात रोमांस और करवटें बदलने में गुजर रहे हैं. उन्हें हर दिन देखने के लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा है. आपके दिल और दिमाग में घर चुके उस प्यार को अब जीवनसाथी बना ही लिया जाए, ऐसा सोच रही हैं.

लेकिन जरा अपने दिमाग के रोमांटिक घोड़े को लगाम दीजिये और यह तो चेक कर लीजिए कि जिसे आप प्यार करती या करते हैं वो भी आपको love करता है या फिर आप उसके Lust (वासना) का सामान मात्र ही हैं.

यानी जब उसे सेक्स करना हो तभी आपकी याद आती हो ऐसा तो नहीं. हो भी सकता है और नहीं भी. क्योंकि लव और लस्ट में फर्क करना आसान नहीं होता. उलटे कई बार तो लस्ट में डूबा पार्टनर असली लवर से भी ज्यादा सीरियस रिएक्शन देता है.

इसलिए आप का प्यार भी कहीं प्यार और वासना के बीच उलझन में तो नहीं है, यह जानने के 5 आसान तरीके हैं. इन्हें अपने पार्टनर पर आजमा कर देखिये और लस्ट का लस्ट और लव का लव कर डालिए.

1. जब अंखियों में न झांके सैयां

पहली नजर का प्यार आंखों से ही शुरु होता है और लस्टबाज लवर की पकड़ भी आंखों से ही होती है. अगर आपको लगता है कि आपका प्यारा प्यार आपकी आंखों में झांकने में फेल हो जाता हो तो समझ जाइये उसे आपसे नहीं आपके फिगर और सेक्सुअल परफौर्मेंस से प्यार है.

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दरअसल रिलेशनशिप एक्सपर्ट मानते हैं कि आंखें किसी की नीयत समझने के लिए खिड़की जैसी होती हैं. जब कोई आपको प्यार करता है, तो वे आपको आंखों में निसंकोच देखेगा और अपनी दिल की बातें/भावनाएं जाहिर कर देगा, लेकिन अगर आंख में देखने के बजाए उसकी नजर आपके शरीर के अन्य हिस्सों जैसे स्तन, नितम्ब, जांघ पर केंद्रित है तो आप उसके लव नहीं बल्कि यौन रूचि पूरी करने का आसान रास्ता भर है. सो बी अलर्ट.

2. दोस्ती नहीं तो Sex Slave हैं आप….

दोस्ती प्रेम पर आधारित हर रिलेशनशिप की बहुत मजबूत नींव होती है, जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो आप उसके दोस्त जरूर होते हैं. दोस्तों की तरह अपने लव पार्टनर के साथ हैंग आउट करना पसंद करते हैं. उसके साथ जोक्स शेयर करते हैं. जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के लिए हमेशा खड़े होते हैं और आपसी मतभेदों का सम्मान करते हैं. अगर आपके लव रिलेशनशिप से दोस्ती के पहलू को हटा दें तो फिर आपका सबंध उसके साथ मास्टर-स्लेव सरीखा हो जाता है.

जहां मालिक की इच्छा पूर्ति ही आपका इकलौता योगदान होता है रिलेशनशिप के नाम पर. अगर आपका पार्टनर आपसे दोस्त की तरह पेश नहीं आता और लव के नाम पर आपसे सेक्स करता है तो समझ जाइए कि आपका रिश्ता लस्ट की नींव पर टिका है. जो कभी भी भरभरा कर गिर सकता है.

3. सेक्स का 2.0  तो नहीं

जब दो लोग प्यार करते हैं, सेक्स सिर्फ एक फिजिकल एक्ट होता है. असली रिश्ता उसके बाद शुरू होता है और आपको इसका एहसास उसके स्पर्श करने के तरीके, बाहों में भरने और चुंबन के अंदाज से हो जाता है. सेक्स ही हो तो यह एक यांत्रिक यानी रोबोटिक रिलेशन बनकर रह जाता है जहाँ हम मशीनी कमांड की तरह सिर्फ सेक्स को ही तरजीह देते हैं. इसलिए प्यार अगर मशीनी होता जा रहा है तो चिंता की बात है.

साथ ही वह आपकी राय सम्मान करता है या नहीं? आप को भी सेक्सुअल प्लेज़र देने में दिलचस्पी रखता है? सिर्फ अपनी ही भूख मिटाता है? सेक्स के क्षणों में ही उत्साहित या आपके साथ हंसकर पेश आता है? जैसे फैक्टर भी तय करते हैं कि वह आपसे लव करता है लस्ट. सेक्स एक्सपर्ट मानते हैं कि सेक्सुअल एक्ट के बाद अगर आपका पार्टनर आपकी जिदगी से जुड़े असली मुद्दों पर ध्यान नहीं देता है और क्षणिक संतुष्टि पर फोकस रखता है तो ऐसे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता.

4. फ से फ्यूचर…

यदि आपका रिश्ता पूरी तरह से वासना पर आधारित है, तो आपका पार्टनर भविष्य के बारे में कोई भी बात करने से बचेगा. जैसे पेरेंट्स से कब और कैसे मिलना है, उन्हें शादी के लिए कैसे मनाना है, शादी कब, कैसे करेंगे, घर कहां लेंगे, बच्चों के नाम क्या होंगे आदि.

दरअसल जो प्यार करते हैं वे एक एक-दूसरे के साथ भविष्य के सपने बुनते हैं. बिना फ्यूचर टाक के कोई भी रिश्ता टिकाऊ नहीं हो सकता है. यदि आपको भी उस से सेक्स से ही मतलब है तब कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको उसके साथ अपना फ्यूचर नजर आता है जरा फिर से सोचिए. क्योंकि फ से फ्यूचर आपके लिए हो सकता है उसके लिए तो F से कुछ और ही होगा.

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5. तू किसी और से मिलके तो देख…

जो सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और इस रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं वे अक्सर आपको अकेले में ही मिलने के लिए फ़ोर्स करेंगे. यानी जब सेक्स की चाह होगी तो मिलेंगे लेकिन आपको अपने दोस्तों और परिवार से मिलाने से परहेज करेंगे. हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर अपने और आपके घरवालों से मिलने से बचेंगे. सब कुछ रहस्यजनक रहेगा. रिश्ते को निजी रखने की कोशिश का दिखावा कर आपको सब से अलग रखेंगे और सेक्स का आनंद लेंगे. इसलिए, अगर आपका साथी आपके सामने अपने परिवार और दोस्तों की बात नहीं करता तो यह प्यार नहीं है, बल्कि वासना है. दरअसल उनकी भावनाएं वासना की ओर हैं, वे सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और कोई भावनात्मक कनेक्शन फील नहीं करते.

उम्मीद है इशारा समझ रहे होंगे और अगर 5 ट्रिक्स पढ़ ली हैं तो काफी हद तक अनुमान भी लगा लिया होगा कि आपका पार्टनर Lover है या Luster.

पार्टी में ट्राय करें साड़ी ड्रैपिंग के ये स्टाइल

भारतीय परिधानों और उन्हें पहनने के तरीकों में बहुत बदलाव आया है, मगर साड़ी एक ऐसा पारंपरिक परिधान है जिस के लुक का कोई जोड़ नहीं. पेश हैं, साड़ी पहनने के कुछ नए तरीके:

बटरफ्लाई ड्रैपिंग

बटरफ्लाई साड़ी ड्रैपिंग पतली और सुडौल शरीर वाली महिलाओं के लिए सही विकल्प है. ड्रैपिंग का तितली स्टाइल किसी भी साड़ी के साथ ट्राई किया जा सकता है.

लेकिन यदि आप कोटा या शिफौन जैसी हलकी साड़ी चुनती हैं तो तितली के पंख खड़े हो जाते हैं. साड़ी ऐसी चुनें जिस में थोड़ी कढ़ाई भी हो. यह स्टाइल फ्रंट पल्लू के साथ की जाती है. सोनम कपूर को इस तरह की साड़ी पहनना पसंद है. परफैक्ट लुक पाने के लिए हलकी साड़ी के साथ भारी पेपलम ब्लाउज कैरी करें.

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धोती साड़ी

 

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धोती स्टाइल साड़ी युवतियों में आजकल काफी फेमस है, क्योंकि यह पहनने में आसान और आरामदायक होती हैं. इस तरह की साड़ी में कई बौलीवुड तारिकाओं को देखा गया है जैसे सोनम कपूर, दिया मिर्जा इत्यादि.

यह ट्रैंड आप के फैशन स्टेटमैंट लैवल को बढ़ाता है. इस को कट ब्लाउज या यहां तक कि क्रौप टौप और शर्ट के साथ भी पहना जा सकता है. सर्दियां बस आ ही गई हैं. तो आप इसे जैकेट और ब्लेजर के साथ भी पहन सकती हैं.

लहंगा साड़ी

यह स्टाइल आजकल आम है और शादी के फंक्शन और दीवाली में भी पहन सकती हैं. आजकल तो दुलहन का लहंगा भी इसी पैटर्न में प्रचलन में है और लहंगा साड़ी को रैड कारपेट इवैंट में भी देखा जा चुका है. आधी साड़ी का यह पैटर्न साड़ी पहनने में सब से ज्यादा ट्रैडिंग है. इस स्टाइल के लिए आप को कंट्रास्ट कलर में लहंगाचोली और एक साड़ी की जरूरत होगी जिस से आधी साड़ी का लुक बन सके.

मुमताज साड़ी

 

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अभिनेत्री मुमताज फंकी स्टाइल स्टेटमैंट्स के लिए काफी मशहूर थीं. ‘आजकल तेरेमेरे प्यार के चरचे…’ गाने में उन की पहनी साड़ी आज भी काफी पसंद की जाती है. चमकीला बौर्डर और कूल ड्रैपिंग स्टाइल आज भी युवतियां कैरी करना पसंद करती हैं.

दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा सहित कई तारिकाओं ने इस अनोखे साड़ी लुक को अपनाया है. शिफौन साड़ी में पेवी बौर्डर और चौड़े बौर्डर में शिमर और हैवी वर्क वाली साड़ी सभी तरह के त्योहारों में पहनने के लिए परफैक्ट है.

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गुजराती स्टाइल साड़ी

 

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इन साडि़यों में पल्लू सामने की तरफ होता है और इसे ज्यादातर गरबा खेलते समय पहना जाता है, क्योंकि गुजराती स्टाइल की साड़ी पारंपरिक रूप देती है. इस स्टाइल के लिए शिफौन और जौर्जेट की साड़ी का इस्तेमाल कर सकती हैं.

साड़ी का बिना पल्लू वाला हिस्सा दाईं तरफ से टग करें और कमर से घुसा कर पीछे की तरफ लाएं और ऐसा करते वक्त पूरा टग करें. फिर पूरा घुमा कर वापस आगे की तरफ लाएं. फिर पल्लू पर प्लेट्स बनाएं और लंबाई कम रखते हुए पीछे से घुमा कर दाएं कंधे पर पिनअप कर लें. जरूरत के अनुसार साड़ी में पिन लगा लें ताकि इस का लुक अच्छा आए.

पल्लू साड़ी

यह बहुत ही कम दिखने वाली स्टाइल है जो 90 के दशक में काफी फेमस थी. यह स्टाइल फैशन में वापस आ गई है और बोहो प्रेमी इस स्टाइल को स्कार्फ की तरह आभूषणों के साथ पहनना पसंद कर रहे हैं. यह रैट्रो युग की एक मजेदार यादगार है और थीम पार्टियों आदि में कैरी की जा सकती है. आप को बस इतना करना है कि अपनी गरदन के चारों ओर पल्लू को स्कार्फ की तरह लपेटें.

इस स्टाइल के लिए आप को अपने पल्लू की लंबाई को ज्यादा रखना होगा. आप स्कार्फ स्टाइल के साथ और भी ऐक्सपैरिमैंट कर सकती हैं.

  -आशिमा शर्मा

फैशन डिजाइनर 

Winter Special: सर्दियों में फायदेमंद है संतरे का सेवन

सर्दियों के मौसम में संतरा, कीनू, अमरूद आदि फल बहुतायत में पाए जाते हैं, लेकिन विटामिन ‘सी’ से भरपूर संतरा इस मौसम में आप के लिए लाभप्रद है. यदि आपको ब्लडप्रैशर की शिकायत है तो संतरे को अपने खानपान में अवश्य शामिल करें, क्योंकि संतरा सोडियम की मात्रा को नौर्मल रख ब्लडप्रैशर को सही रखता है. यही नहीं, रोजाना संतरे का सेवन किडनी में होने वाली पथरी के खतरे को भी कम करता है. यदि किडनी में पथरी हो तो संतरे का जूस इस के लिए लाभदायक रहता है. विटामिन ‘सी’ युक्त संतरा शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रैडिक्लस से भी सुरक्षित रखता है. साथ ही इस में मौजूद लाइमोनिन कैंसर सैल्स को बढ़ने से रोकता है.

सर्दियों के मौसम में अधिकतर होने वाले सर्दीजुकाम में भी संतरे का सेवन कारगर साबित होता है. वैसे तो सर्दी में विटामिन ‘सी’ युक्त सभी फल बीमारियों से निजात दिलाते हैं. अधिकतर लोगों का मानना है कि संतरे की तासीर ठंडी होने से इसे इस मौसम में नहीं खाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है.

कई फायदे

सर्दियों में संतरे का सेवन काफी फायदेमंद है. इस के नियमित सेवन से हम कई मौसमी बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं. भले ही यह फल ठंडी तासीर का है लेकिन गर्मियों के बजाय यह सर्दियों के लिए ज्यादा कारगर है. संतरे में विटामिन ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जिस से हमारी स्किन में टाइटनैस आती है, कभी भी ड्राइनैस नहीं आती.

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इसलिए इस मौसम में ज्यादा से ज्यादा संतरे का इस्तेमाल करें और नियमित रूप से जूस पीएं. यदि आप शुगर की बीमारी से जूझ रहे हैं तो संतरा जरूर खाएं. यह ब्लड शुगर को नियंत्रत रखता है, साथ ही इस में मौजूद विटामिन ‘ए’ आंखों के लिए काफी लाभकारी है.

संतरे के जूस के फायदे

संतरे का जूस पीने से स्वास्थ्य और स्किन दोनों को फायदा होता है. यह शरीर में विटामिन ‘सी’ की कमी को पूरा करता है और कई बीमारियों से बचाने में कारगर है. विटामिन ‘सी’ संतरे में सब से ज्यादा होता है लेकिन इस के साथ ही इस में विटामिन ‘ए’ पोटैशियम, फाइबर आदि पोषक तत्त्व भी मौजूद होते हैं. यह बड़ों से ले कर बच्चों के लिए भी काफी फायदेमंद है. इसे पीने से निम्न फायदे हैं :

– वजन कम करना चाहते हैं तो एक संतरा रोज खाएं.

– संतरे के जूस से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है.

– इस को नियमित पीने से सर्दीजुकाम, खांसी जैसी छोटीछोटी बीमारियों से नजात मिलती है.

– संतरे का जूस पीने से शरीर में कैंसर पैदा करने वाले सैल्स नष्ट हो जाते हैं.

– शरीर की पाचनक्रिया संतरे का जूस पीने से सही रहती है साथ ही पेट की अन्य समस्याएं भी इस से दूर हो जाती हैं.

– इस के सेवन से बौडी में ब्लड सर्ककुलेशन भी ठीक रहता है.

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– यह ब्लडप्रैशर और कौलेस्ट्रौल नियंत्रित करने में कारगर है.

– संतरा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी सिस्टम को भी मजबूत करता है.

– इस के सेवन से आप सर्दी, खांसी और वायरल संक्रमण से जल्दी प्रभावित नहीं होते.

– संतरे में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है जो कौलेस्ट्रौल के स्तर को नियंत्रित करने में मददगार होता है.

– यह दिल से जुड़ी समस्याओं को भी दूर करता है.

हमारी आंखों से देखो: गायत्री ने कैसे सब का दिल जीत लिया

Serial Story: हमारी आंखों से देखो (भाग-3)

‘‘अगर यही सच हो जो आप ने  अभीअभी समझाया तो यही सच है. शैली पत्थर है और मैं उस पर अपना प्यार लुटाना नहीं चाहता. मैं उस के लिए नहीं बना, भैया.

मैं यह नहीं कहता वह मुझे पसंद नहीं. वह बहुत सुंदर है, स्मार्ट है. सब है उस में लेकिन मुझ जैसा इंसान उस के लिए उचित नहीं होगा. मैं वैसा नहीं हूं जैसा उसे चाहिए. उस के लिए 2 और 2 सदा 4 ही होंगे और मैं 2 और 2 कभीकभी 5 और कभीकभी 22 भी करना चाहूंगा. शैली में कोई कमी नहीं है. मैं ही उस के योग्य नहीं हूं. मैं शैली से शादी नहीं कर सकता,’’ अनुज ने अपने मन की बात कह दी.

‘‘पिछले कितने समय से आप साथसाथ हैं?’’ हैरान रह गई थी गायत्री.

‘‘साथ नहीं हैं हम, सिर्फ एक जगह काम करते हैं. अब मुझे समझ में आ रहा है, वह लड़की शैली नहीं हो सकती जिस पर मैं आंख मूंद कर भरोसा कर सकूं. इंसान को जीवन में कोई तो पड़ाव चाहिए. शैली तो मात्र एक अंतहीन यात्रा होगी और मैं भागतेभागते अभी से थकने लगा हूं. मैं रुक कर सांस लेना चाहता हूं, भैया,’’ अपना मन खोल दिया था अनुज ने गायत्री के सामने. पूरापूरा न सही, आधाअधूरा ही सही.

‘‘शैली जानती है यह सब?’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘वह पत्थर है. मैं ने अभी बताया न. उसे मेरी पीड़ा पर दर्द नहीं होता, उसे मेरी खुशी पर चैन नहीं आता. हमारा रिश्ता सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि मेरी तनख्वाह 50 हजार है. उस के 50 हजार और मेरे 50 हजार मिल कर लाख बनेंगे और उस के बाद वह लाख कहांकहां खर्च होगा वह इतना ही सोचती है. मैं 2 पल चैन से काटना चाहूंगा, यह सुन उसे बुरा लगता है. मेरे लिए घर का सुखचैन लाखोंकरोड़ों से भी कीमती है और उस के लिए यह कोरी भावुकता. जैसे तुम सोचती हो हमारे बारे में, मेरेपिता के बारे में, भैयाभाभी के बारे में, वह तो कभी नहीं सोचेगी. वह इतनी अपनी कभी लगी ही नहीं जितनी तुम.’’

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मानो सब कुछ थम सा गया. कमरे में, चलती हवा भी और हमारी सांस भी.

‘‘मैं… मैं कहां चली आई आप औैर शैली के बीच,’’ हड़बड़ा गई थी गायत्री. घबरा कर मेरी ओर देखा. जैसे कुछ अनहोनी होने जा रही हो. क्या कहता मैं? जो हो रहा था वह हो ही जाए, अचेतन में मैं भी तो यही चाहता था न. वास्तव में घबरा गई गायत्री, साधारण सी बातचीत किस मोड़ पर चली आई थी, उस का घबरा जाना स्वाभाविक ही था न. सुरक्षा के लिए उस ने मेरी ओर देखा और जब कुछ भी समझ नहीं आया तो चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. नाश्ता वहीं मेज पर पड़ा था. अनुज शायद उस के पीछे जाना चाहता था, मैं ने ही रोक लिया.

‘‘जाने दो. सोचने दो उसे. इतना बड़ा झटका दे दिया अब जरा संभलने का समय

तो दो.’’

‘‘वह भूखी ही चली गई. आप ही चले जाइए,’’ अनुज ने कहा.

‘‘यह तो होना ही था. कुछ समय अकेला रहने दो. देखते हैं क्या होगा.’’

‘‘भैया, उस ने कुछ भी नहीं खाया. उसे भूख लगी होगी. आप चलिए मेरे साथ,’’ अनुज के चेहरे पर विचित्र भाव थे. क्या यही उस का गायत्री के प्रति ममत्व और अनुराग है? सब की भूख की चिंता रहती है गायत्री को तो क्या अनुज उसे भूखा ही छोड़ देगा? भला कैसे छोड़ देगा? उस की प्लेट उठा मैं गायत्री के कमरे में चला आया जहां वह सन्न सी बैठी थी. अपराधी सा मेरे पीछे खड़ा था अनुज.

‘‘गायत्री, बेटा, नाश्ता क्यों छोड़ आईं? गायत्री, मेरा बच्चा, नाराज है मुझ से?’’ अपने परिवार की अति कीमती धरोहर मेरे मित्र ने मेरे घर इसी विश्वास पर छोड़ी थी कि उस का मानसम्मान हमारी जान से भी ज्यादा प्रिय होगा हमें.

मैं ने कंधे पर हाथ रखा तो मेरी बांहों में समा कर वह चीखचीख कर रोने लगी. थपथपाता रहा मैं तनिक संभली तो स्वयं से अलग कर उस के आंसू पोंछे, ‘‘अगर तुम्हें हमारा घर, हमारे घर के लोग पसंद नहीं तो तुम न कर दो. अनुज तुम्हें पसंद नहीं तो किस की मजाल, जो कोई तुम्हारी तरफ नजर भी उठा पाए.’’

चुप रही गायत्री, सुबकती रही. कुछ भी नहीं कहा. अनुज ने नाश्ता सामने रख दिया, ‘‘भूखी मत रहो, गायत्री.’’

अनुज की भीगी आंखों में अपार स्नेह और निष्ठा पा कर मुझे ऐसा लगा, अनुज की भावनाओं के सामने संसार का हर भाव फीका है, झूठा है.

‘‘गायत्री, गायत्री तुम बहुत अच्छी हो और मेरा मन कहता है मुझे तुम से बेहतर इंसान नहीं मिल सकता,’’ अनुज ने कहा.

‘‘शैली के साथ धोखा करेंगे आप?’’

‘‘हम दोनों में कोई नाता, कोई भी संबंध नहीं है, गायत्री. न स्नेह का, न अपनेपन का. पिछले 6 महीनों से मैं उस में वही सब तो ढूंढ़ रहा हूं जो नहीं मिला. गलती मुझ से होती है और उसी गलती के लिए तुम माफी मांगती हो. मेरी आंखों में पानी आ जाए तो तुम अपने बनाए नाश्ते में ही मिर्च तीखी होने को वजह मान कर दुखी होती हो. तुम्हें देखता हूं तो लगता है तुम्हारे बाद सारी इच्छाएं शांत हो गईं और कुछ चाहिए ही नहीं.

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‘‘शैली वह नहीं जिसे देख कर जरा सा भी सुख, जरा सा भी चैन आए. धोखा तो तब होता अगर वह भी मुझे पसंद करती. लगाव होता उसे मुझ से. हमारा नाता कभी भावनाओं का रहा ही नहीं. कोई भी एहसास नहीं हमारे मन में एकदूसरे के लिए. वह आज के युग की ‘प्रोफैशनल’ लड़की है, जिस के पास वह सब है ही नहीं, जो मुझे चाहिए. तुम मेरी गलती पर भी माफी मांगती हो और वह अपनी बड़ी से बड़ी भूल भी मेरे माथे मढ़ मेरे ही कंधे पर पैर रख कर अगली सीढ़ी चढ़ जाएगी. मैं आंखें मूंद कर उस पर भरोसा नहीं कर सकता.’’

‘‘शैली तो बहुत सुंदर है?’’ मासूम सा प्रश्न था गायत्री का.

‘‘सच है, वह बहुत सुंदर है लेकिन तुम्हारी सुंदरता के सामने कहीं नहीं टिकती. तुम्हारी सुंदरता तो हमारे घर के चप्पेचप्पे में नजर आती है. पिताजी से पूछना. वह भी बता देंगे, तुम कितनी सुंदर हो. भैया से पूछा. भैया, आप बताइए न गायत्री को, वह कितनी सुंदर है,’’ अनुज बोलता गया.

बच्चा समझता था मैं अनुज को. सोचता था पूरी उम्र उसे मेरी उंगली पकड़ कर चलना पड़ेगा. डर रहा था, मैं कैसे गायत्री के प्रति पनप गए उस के प्रेम को कोई दिशा, कोई सहारा दे पाऊंगा. नहीं जानता था इतनी सरलता से वह मन का हाल गायत्री के आगे खोल देगा.

‘‘हमारी आंखों से अपनेआप को देखो, गायत्री,’’ पुन: भीग उठी थी अनुज की आंखें. हाथ बढ़ा कर उस ने गायत्री का गाल थपथपा दिया. रो पड़ी थी गायत्री भी. पता नहीं क्या भाव था, मैं दोनों को गले लगा कर रो पड़ा. ऐसा लगा मन मांगी मुराद पूरी हो गई. ये आंसू भी कितने विचित्र हैं न, जबतब आंखें भिगोने को तैयार रहते हैं. स्नेह से गायत्री का माथा चूम लिया मैं ने. सच ही कहा अनुज ने, ‘‘हमारी आंखों से देखो, गायत्री, अपनेआप को हमारी आंखों से देखो.’’

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Serial Story: हमारी आंखों से देखो (भाग-2)

खाने के बाद अपनी प्लेट रसोई में छोड़ने चला गया अनुज और मेरी नजरें उस का पीछा करती रहीं.

गायत्री रसोई में ही थी. वैसे तो अपना काम स्वयं करने की हमारे घर में सब को आदत है लेकिन जब से गायत्री आई थी अनुज रसोई में कम ही जाता था.

‘‘लाइए, फल मैं काट लेता हूं. दीजिए… कृपया,’’ पहली बार हमारे बीच बैठ कर अनुज ने फल काटे, बड़े आदरभाव से गायत्री को, हम सब को खिलाता रहा.

‘‘अब तो आप जा रही हैं न. भाभी, आप कुछ दिन छुट्टी ले लीजिए. कुछ दिन के लिए बच्चों के पास चलते हैं. गायत्रीजी से भी बच्चे मिल लेंगे,’’ अनुज बोला.

‘‘लेकिन मेरा तो अभी बहुत काम है.

मैं छुट्टी कैसे लूंगी. आप लोग चले जाइए,

मैं पिताजी के पास रहूंगी,’’ गायत्री ने असमर्थता जताई.

‘‘शैली को भी साथ ले लें? उस से भी पूछ लो,’’ मैं पुन: पूछने लगा.

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शैली के नाम पर चुप रहा अनुज. क्या हो गया है इसे? कहीं शैली से कोई अनबन तो नहीं हो गई? गायत्री अस्पताल का कोई किस्सा मुझे सुनाने लगी और अनुज एकटक गायत्री को ही निहारता रहा. सीधीसादी साधारण सी दिखने वाली यह बच्ची हमारे घर में रह कर कब हम सब के जीवन का हिस्सा बन गई,

हमें पता ही नहीं चला था. किसी बात पर मेरी पत्नी और गायत्री जोरजोर से हंस पड़ीं और अनुज मंदमंद मुसकराने लगा. लंबे बालों की चोटी को पीछे धकेलते गायत्री के हाथ क्षण भर को चेहरे पर आए और पसीने की चंद बूंदों को पोंछ कर अन्य कामों में व्यस्त हो गए. सुबह की तैयारी में वह हर रात मेरी पत्नी का हाथ बंटाती थी.

कुछ फर्क है मेरे भाई की नजरों में. नजरनजर का अंतर मैं समझ पाऊं, इतनी तो नजर रखनी पड़ेगी न मुझे.

‘‘यह गायत्री चली जाएगी तब क्या होगा, यही सोचसोच कर मेरा तो दम घुटने लगा है.’’

‘‘भैया, क्या गायत्री सदा यहीं नहीं रह सकती?’’ सुबह नाश्ता करते हुए अनुज ने मेरी भी सांस वहीं रोक दी. क्या कह रहा है मेरा समझदार, पढ़ालिखा भाई? मैं ने गौर से देखा, नम आंखों में वह सब कुछ था, जो बिना कुछ कहे ही सब कह जाए. धीरेधीरे चम्मच चला रहा था अनुज प्लेट में.

‘‘आप को याद है न, भैया जब मां थी तब हमारा घर कैसा हराभरा लगता था. जब थक कर घर आते थे तब मां कैसे नाश्ता कराती थी. प्यार से खाना खिलाती थी. मां के बाद सब उजड़ सा गया. भाभी नौकरी करती थीं, जिस वजह से घर बस, होटल बन कर रह गया,’’ अनुज बोलता रहा.

मैं अनुज को अपलक निहारता रहा.

‘‘क्या पिछले 6 महीनों से ऐसा नहीं लगता जैसे मां लौट आई है. घर घर बन गया है, जहां कोई थकेहारे इंसान को पानी का घूंट तो पिलाता है. भैया, यह गायत्री तो हमारे जीवन का हिस्सा बन गई है. क्या आप इसे रोक नहीं सकते?’’

‘‘किस अधिकार से रोकें, मुन्ना? वह पराई बच्ची है,’’ मैं ने कहा.

‘‘पराई है तो पराई लगती क्यों नहीं? ऐसा क्यों लगता है जैसे जन्मजन्म से हमारे साथ है? भैया, ऐसा क्यों लगता है? अगर गायत्री चली गई तो मेरे प्राण पखेरू भी साथ ही…’’

मानो छनाक से कुछ टूट गया मेरे सामने. अनुज क्या कहना चाह रहा है, मैं समझ तो रहा हूं लेकिन उस का अर्थ क्या है? शैली के साथ सगाई लगभग तय है, मात्र अमेरिका से उस के भाई का इंतजार है. हर शाम अनुज शैली के साथ होता है और प्राण पखेरू गायत्री में होने का भी दावा.

‘‘तुम क्या कह रहे हो, जानते हो न?’’ मैं ने कहा. सफेद कपड़ों में लिपटी गायत्री मेज तक चली आई थी. उस पल तनिक रुकना पड़ा मुझे. तब नई नजर से मैं ने भी गायत्री को देखा.

‘‘भैया, उपमा कैसा बना है?’’ हमारी अवस्था से अनभिज्ञ गायत्री बड़ी सरलता से पूछने लगी. पूछना उस का रोज का क्रम था.

‘‘मैं चली जाऊंगी तो बासी डबलरोटी और अटरमशटरम मत खाते रहना. इतनी सारी विधियां मैं ने आप को खिला भी दी हैं और सिखा भी दी हैं. भैया, आप की उम्र 40+ है न, इसलिए अब अपना खयाल रखना शुरू कर दीजिए,’’ प्लेट में अपना नाश्ता लेतेलेते उस ने रुक कर देखा.

‘‘अनुजजी, क्या हुआ? हरीमिर्च ज्यादा तेज लगी क्या? आप की आंखों में तो पानी है,’’ झट से रसोई में गई गायत्री और गाजर का मुरब्बा ले आई, ‘‘जरा इसे खा कर देखिए. भैया, आप भी खाइए. कल और परसों मैं यही तो बना रही थी. आप पूछ रहे थे न,

इतनी गाजरों का क्या करोगी,’’ गायत्री बोली.

गायत्री मस्त भाव से नाश्ता कर रही थी. वास्तव में लग रहा था, यह सीधीसादी प्यारी सी बच्ची संसार की सब से सुंदर लड़की है, जिस में मेरे भाई के प्राण अटक से गए हैं.

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आजकल की तेजतर्रार पीढ़ी की ही है यह गायत्री. फिर भी हमें इतना चैन, इतना संतोष देती रही है कि क्या कहूं. अनुज को गायत्री में क्या नजर आया, समझा चुका है मुझे. मां के समय जो सुख था वही उसे अब भी नजर आया. एक इंसान चाहे आसमान को छू ले, जमीन का मोह, नकारा तो नहीं जा सकता न? थकाहारा इंसान जब घर आता है तो एक ठंडी छाया की इच्छा हर पुरुष को रहती है, वह चाहे मां की हो या पत्नी की, बहन की हो या बेटी की.

‘‘भैया, आज आप की क्लास नहीं है क्या?’’ गायत्री ने पूछा.

पता नहीं कहां खो गया था मैं. कंधे पर बैग लटकाए गायत्री सामने ही खड़ी थी. उठ गया मैं. उचटती नजर अनुज पर डाली, जो अब भी धीरेधीरे नाश्ता कर रहा था.

‘‘अनुजजी, आप को नाश्ता पसंद नहीं आया. आई एम सौरी. हरीमिर्च ज्यादा तीखी निकल गई न?’’ गायत्री ने पूछा.

उत्तर में मुसकरा पड़ा अनुज. इनकार में सिर हिला कर किसी तरह बात को टाल दिया. रास्ते में धीरे से पूछा गायत्री ने, ‘‘भैया, अनुजजी कुछ उदास से हैं न कल शाम से? आप शैली से मिल कर बात करना. कोई झगड़ा हो गया होगा.’’

हां में गरदन हिला दी मैं ने. स्नेह से गायत्री का सिर थपक दिया. क्या बताऊं उसे? कैसे कहूं कल शाम से वही नहीं, हमारा सारा परिवार ही उदास है.

शाम को घर आने पर सभी चुप थे. बस, गायत्री ही किसी मरीज के बारे में बातें कर रही थी. वहां अस्पताल में जो भी नया लगता उसे वह हम से बांटती थी. अनुज अपने कमरे में था और वही गजल एक बार फिर गूंजने लगी.

‘सिर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा,

इतना मत चाहो उसे वह बेवफा हो जाएगा…’

‘‘इस का मतलब क्या हुआ, गायत्री?’’ मैं उदासी से बाहर आना चाहता था, इसलिए बात को टाल देने के लिए पूछ लिया.

‘‘किस का मतलब, भैया? इस गजल का…’’ कुछ पल रुक गई गायत्री. फिर धाराप्रवाह कहने लगी, ‘‘इस का मतलब यह है कि अगर सामने वाला इंसान पत्थर है तो उस पर अपना प्यार मत लुटाओ. जो इंसान तुम्हारे प्यार के लायक ही नहीं उसे अगर जरूरत से ज्यादा प्यार करोगे तो वह तुम्हारे प्यार का नाजायज लाभ उठाएगा. पत्थर अपनेआप को देवता समझने लगेगा, अगर तुम उस के आगे सिर झुकाओगे.’’

हक्काबक्का रह गया मैं गायत्री के शब्दों पर. यह बच्ची इतना सब जानती है. तभी देखा, अनुज भी पास खड़ा था, होंठों पर एक हलकी सी मुसकान ले कर.

‘‘यही मतलब होगा, जो मुझे समझ में आया,’’ हम दोनों को हैरान देख वह तनिक झेंप सी गई. बारीबारी से हमारा चेहरा देखा. कंधे उचका कर रसोई में चली गई. लौटी तो गरमगरम चाय और नाश्ता हाथ में था.

‘‘अनुजजी, आप फिर से उदास हैं. शैली से कोई…’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘गायत्री, क्या आप यह सत्य स्वीकार करती हैं जिसे अभीअभी समझा रही थीं?’’ अनुज ने प्रश्न किया.

‘‘कौन सा सत्य? अच्छा यह जो गजल में समझ आया मुझे?’’

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‘‘हां, जो आप को समझ में आया और जो हमें भी समझाया आप ने.’’

‘‘कवि और शायर क्या कहना चाहते हैं, यह तो वही जानते हैं न, क्योंकि लिखते समय उन की मनोस्थिति क्या थी, हम नहीं जानते. वास्तव में गजल का मतलब वही है, जो आप की समझ में आए.’’

आगे पढ़ें- मानो सब कुछ थम सा गया….

Serial Story: हमारी आंखों से देखो (भाग-1)

अनुज आज फिर से यही गजल सुन रहा है:

‘सिर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा,

इतना मत चाहो उसे वह बेवफा हो जाएगा…’

मैं जानता हूं, अभी वह आएगा और मुझ से इस का अर्थ पूछेगा.

‘‘भैया, इस का मतलब क्या हुआ, जरा समझाओ न. पहली पंक्ति का अर्थ तो समझ में आता है. वह यह कि अगर हम विश्वास से पत्थर के आगे भी सिर झुका देंगे तो वह देवता हो जाएगा. यह दूसरी पंक्ति का मतलब क्या हुआ? ‘इतना मत चाहो उसे वह बेवफा हो जाएगा…’ कौन बेवफा हो जाएगा? क्या देवता बेवफा हो जाएगा? भैया दूसरी पंक्ति का पहली से कुछ मेल नहीं बनता न.’’

अनुज को क्या बताऊंगा मैं, सदा की तरह आज भी मैं यही कहूंगा, ‘‘देखो बेटा, कवि और शायर जब कुछ लिखने बैठते हैं, उस पल वे किस मनोस्थिति में होते हैं उस पर बहुत कुछ निर्भर करता है. उस पल उस की नजर में देवता कौन था, पत्थर कौन था और बेवफा कौन है, वही बता सकता है.’’

वास्तव में मैं भी समझ नहीं पा रहा हूं इस का अर्थ क्या हुआ. सच पूछा जाए तो जीवन में हम कभी किसी पर सही या गलत का ठप्पा नहीं लगा सकते. आपराधिक प्रवृत्ति के इंसान को एक तरफ कर दें तो कई बार वह भी अपने अपराधी होने का एक जायज कारण बता कर हमें निरुत्तर कर देता है. जब एक अपराधी स्वयं को सही होने का एहसास दे जाता है तो सामान्य इंसान और उस पर कवि और शायर क्या समझा जाए, क्या जानें. समाज को कानून ने एक नियम में बांध रखा है वरना हर मनुष्य क्या से क्या हो जाए, इस का अंत कहां है.

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‘‘बड़े भैया, नाश्ता?’’ गायत्री ने मुझे पुकारा.

कपड़े बदल कर मैं बाहर आ गया. गायत्री बिजली की गति से सारे काम कर स्वयं तैयार होने जा चुकी थी. मेज पर नाश्ता सजा था. आज मटर वाला नमकीन दलिया सामने था, जो मुझे पहलेपहल तो पसंद नहीं आया था, लेकिन अब अच्छा लगने लगा था.

‘‘अनुज… आ जाओ मुन्ना. वरना देर हो जाएगी. जल्दी करो और यह गजल भी बंद कर दो.’’

यह गजल भी चुभने लगी है मेरे दिमाग में. मैं भी अकसर सोचने लगता हूं, आखिर क्या मतलब हुआ इस का.

मेरी पत्नी बैंक में नौकरी करती है. हमारे बच्चे बाहर होस्टल में पढ़ते हैं. मेरे एक सहकर्मी का तबादला हो गया था और उन की बहन को 6 महीने के लिए हमारे पास रहना पड़ रहा है. यह गायत्री वही है, जो है तो हमारी मेहमान लेकिन पिछले 6 महीनों से हमारी अन्नपूर्णा बन कर हमारी सभी आदतें बिगाड़ चुकी है.

पत्नी के जाने के बाद अकसर मुझे अपने वृद्ध पिता और छोटे भाई का नाश्ता बनाना पड़ता था, जो पिछले 6 महीनों से मैं नहीं बना रहा. अनुज की सगाई लगभग हो चुकी है. उसी कंपनी में है लड़की, जिस में अनुज है. अनुज की शाम अकसर उसी के साथ बीतती है.

पिताजी का नाश्ता भी उन तक पिछले 6 महीने से यह गायत्री ही पहुंचा रही है. जैसेजैसे गायत्री का समय समाप्त हो रहा है मुझे अपनी अस्तव्यस्त गृहस्थी का आभास और भी शिद्दत से होने लगा है. गायत्री के बाद क्या होगा, मैं अकसर सोचता रहता हूं.

‘‘गायत्री, चलो बच्चे, जल्दी करो. तुम्हारी बस छूट जाएगी,’’ मैं गाड़ी में रोज गायत्री को बस स्टैंड पर छोड़ देता हूं जहां से वह पी.जी.ई. की बस पकड़ लेती है.

गायत्री होम साइंस में एम.ए. कर रही है. आजकल मरीजों की खुराक पर अध्ययन चल रहा है. शाम को भी वह हम से पहले आ जाती है और रात को खाना मेज पर सजा मिलता है.

‘‘गायत्री के बाद क्या होगा?’’

‘‘वही जो पहले होता था. पहले भी तो हम जी ही रहे थे न?’’ अधेड़ होती पत्नी भी बेबसी दर्शाने लगी थी.

‘‘जीना तो पड़ेगा. अनुज की पत्नी भी तो नौकरी वाली है. समझ लो चाय का कप सदा खुद ही बना कर पीना पड़ेगा.’’

पता नहीं क्यों अब तकलीफ सी होने लगी है. सहसा थकावट होने लगी है. अब रुक कर सांस लेने को जी चाहने लगा है. भागभाग कर थक सा गया हूं मैं भी. मेरा कालेज 4 बजे छूट जाता है, जिस के बाद रात तक घर की देखभाल होती है और मैं होता हूं. बिस्तर पर पड़े पिता होते हैं और पिछले 6 महीने से यह मासूम सी गायत्री होती है, जिस ने एक और ही सुख से मेरा साक्षात्कार करा दिया है.

पहली बार जब इसे देखा था, तब बड़ी सामान्य सी लगी थी गायत्री. सीधीसादी, सांवली सी, सलवारकमीज, दुपट्टे में लिपटी घरेलू लड़की, जिस पर उचटती सी नजर डाल कर अनुज चला गया था. चलो, अच्छा ही है, घर में जवान भाई है. दोस्त की अमानत से दूर ही रहे तो अच्छा है. अनुज शरीफ, सच्चरित्र है, फिर भी दूरी रहे तो बुरा भी क्या है. फिर पता चला अपनी एक सहकर्मी से उस की दोस्ती रिश्ते में बदलने वाली है तो मैं और भी निश्चिंत हो गया.

रात सब खाने पर इकट्ठा हुए तो मेज पर सजा स्वादिष्ठ खाना परोसते समय गायत्री ने बताया, ‘‘भाभी, 15 तारीख को मैं चली जाऊंगी.’’

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‘‘क्या?’’ हाथ ही रुक गए मेरे. क्या सचमुच?

अनुज से मेरी नजरें मिलीं. बचपन से जानता हूं भाई को. उसे क्या चाहिए, क्या

नहीं, उस की नजरें ही देख कर भांप जाता हूं. अगर मेरा उम्र भर का तजरबा गलत नहीं तो वह भी गलत नहीं, जो अभीअभी उस की नजरों में मैं ने पढ़ा. ज्यादा बात नहीं करते थे दोनों और इस एक पल में जो पढ़ा वह ऐसा था मानो अनुज का कुछ बहुत प्रिय छिन जाने वाला हो. प्लेट का छोर पकड़तेपकड़ते छूट

गया था उस के हाथों से और सारा खाना प्लेट से निकल कर मेज पर बिखर गया था.

‘‘अरे, क्या हो गया? गरम तो नहीं लगा? क्षमा कीजिएगा, प्लेट छूट गई मेरे हाथ से,’’ क्षमा मांग रही थी गायत्री, जिस पर अनुज चुप था. प्लेट किस के हाथ से छूटी, मैं ने यह भी देखा और क्षमा कौन मांग रहा है यह भी.

‘‘क्या बात है, अनुज?’’

‘‘कुछ भी नहीं भैया, बस, ऐसे ही.’’

‘‘आज शैली नहीं मिली क्या? परेशान हो, क्या बात है?’’

मैं ने पुन: पूछा. शैली उस की मंगेतर का नाम है. उस के नाम पर भी न वह शरमाया और न ही हंसा.

गायत्री ने नई प्लेट सजा दी.

‘‘धन्यवाद,’’ चुपचाप प्लेट थाम ली अनुज ने.

गायत्री वैसी ही थी जैसी सदा थी.

पिताजी का खाना परोस कर उन के कमरे में चली गई. मेरी पत्नी ने भी बड़ी गौर से सब देखा. अनुज यों खा रहा था जैसे कोई जबरदस्ती खिला रहा हो. ऐसा क्या है, जो हमारी समझ में आ भी रहा है और नहीं भी. जरा सा मैं ने भी कुरेदा.

‘‘मैं सोच रहा था शैली के साथ ‘रिंग सैरेमनी’ हो जाती तो अच्छा ही है. अभी गायत्री भी है. उसे भी अच्छा लगेगा. घर की सदस्या ही है न यह भी. तुम शैली से बात करना. उस का भाई कब तक आ रहा है अमेरिका से? सगाई को लटकाना अच्छा नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जी…’’ बस, इतना ही कह कर अनुज ने बात समाप्त कर दी.

आगे पढ़ें- गायत्री रसोई में ही थी….

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