Serial Story: निशान (भाग-3)

मासूमी चिल्लाई, ‘‘देखा प्रकाश, सारा झगड़ा इसी का शुरू किया है. बित्ते भर का है और मांबाप का मुकाबला कर रहा है.’’

‘‘चुप रह वरना एक कस कर पड़ेगा. पापा की चमची कहीं की,’’ राकेश लालपीला हो कर बोला.

प्रकाश भी तमक उठा, ‘‘दिमाग फिर गया है तुम लोगों का…उधर वे लड़ रहे हैं इधर तुम. कोई मानने को तैयार नहीं है.’’

‘‘आप माने थे…’’ राकेश ने पलट- वार किया तो प्रकाश उसे मारने दौड़ा.

उसी समय अंदर से कुछ टूटने की आवाजें आईं. मासूमी दौड़ कर अंदर गई तो देखा पिताजी हाथ में क्रिकेट का बैट लिए शो केस पर तड़ातड़ मार रहे हैं.

राकेश द्वारा पाकेटमनी जोड़ कर खरीदा गया सीडी प्लेयर और सारी सीडी जमीन पर पड़ी धूल चाट रही थीं…शोपीस टुकड़ेटुकड़े हो कर बिखरा पड़ा था.

मासूमी हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘पापा, प्लीज, शांत हो जाएं.’’

लेकिन सुरेशजी की जबान को लगाम कहां थी, गालियों पर गालियां देते चीख रहे थे, ‘‘तू हट जा. एकएक को देख लूंगा. बहुत खिलाड़ी, गवैए बने फिरते हैं पर मैं ये नहीं होने दूंगा. इन को सीधा कर दूंगा या जान से मार डालूंगा.’’

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प्रकाश का जवान खून भी उबाल खा गया, ‘‘हां, हां, मार डालिए. रोजरोज के झगड़ों से तो अच्छा ही है.’’

सरला और मासूमी ने मिल कर प्रकाश को बाहर धकेलना चाहा और राकेश ने बाप को पकड़ा पर कोई बस में नहीं आ रहा था.

मासूमी ने घबरा कर इधरउधर देखा तो बहुत सारी आंखें उन की खिड़कियों से झांक रही थीं और कान दरवाजे से चिपके हुए थे. बस, यही वह समय था जब मासूमी का सिर चकराने लगा. उसे लगा कि वह गहरे पाताल में धंसती जा रही है, जहां न उसे मां की बेबसी का होश था न पिता के गुस्से का और न भाइयों की बगावत का.

मासूमी को होश आया तो सारा माहौल बदला हुआ था. पिता सिर झुकाए सिरहाने बैठे थे, मां पल्लू से आंखें पोंछ रही थीं, भाई हाथपैर सहला रहे थे. पिता का गुस्सा तो साबुन के बुलबुलों की तरह बैठ गया था पर मां सरला आज मौके का फायदा उठा कर फिर बोल उठी थीं, ‘‘जवान बच्चों के लिए आप को अपनी आदतों और कड़वाहटों पर काबू पाना चाहिए. यह नहीं कि घर में घुसते ही हुक्म देना शुरू कर दें.’’

प्रकाश ने उन्हें चुप कराया, ‘‘मां, बस भी करो. देख नहीं रही हैं मासूमी की हालत.’’

सुरेशजी मासूमी की हालत देख खामोश और शर्मिंदा थे तो मांबेटों की तकरार चालू थी. सब एकदूसरे को दोष दे रहे थे. पिता का कहना था कि अगर बच्चों पर लगाम न कसो तो वे बेकाबू हो जाएंगे. बच्चों का कहना था, ‘‘पापा हमें हर बात पर बस डांटते हैं. घर से बाहर रहो तो घर में रहने का आदेश, घर पर रहो तो टोकाटाकी. गाने सुनें तो हमें भांड बनाने लगते हैं. दोस्तों के साथ खेलें तो उसे आवारागर्दी कहते हैं. हम तो यहां बस मां के कारण चुप हैं वरना…’’

सरला बेटों को चुप करा रही थीं, ‘‘चुप रहो, जवान हो गए हो तो इस का मतलब यह नहीं कि पिता के सामने जबान खोलो.’’

सब मिल कर मासूमी को एहसास दिलाना चाह रहे थे कि कोई किसी का दुश्मन नहीं. हां, झगड़े तो होते ही रहते हैं. देखो, तुम्हें तकलीफ हुई तो सब तुम्हारी चिंता में बैठे हैं.

मां ने मासूमी के बाल सहलाए, ‘‘सब लड़झगड़ कर एक हो जाते हैं पर तुम बेकार में उसे दिल में पाल लेती हो…’’

मासूमी बिखर गई, ‘‘मां, आप को अच्छा लगे या बुरा पर सच यह है कि गलती आप की भी है. आप को यही लगता है कि पिताजी ने कभी आप की कद्र नहीं की लेकिन मैं जानती हूं कि पापा के मन में आप के लिए क्या है. आप घर नहीं होतीं तो आप को पूछते हैं. आप की बहुत सी बातों की सराहना निगाहों से करते हैं पर कहना नहीं आता उन्हें. लेकिन उन की तकलीफदेह बातों के कारण आप का ध्यान उन की इन बातों पर नहीं जाता. इसी कारण पापा पर गुस्सा आने पर आप बच्चों के सामने पापा की कमजोरियां गिनवाती हैं और फिर बच्चे उन को आप की पीठ पीछे बुराभला कहते हैं,’’ मासूमी बोल रही थी और सरला चोर सी बनी सब बातें सुन रही थीं.

सुरेशजी भी मासूमी की हालत से घबराए थे. हमेशा ही गुस्सा ठंडा होने पर वह एकदम बदल जाते. उन्हें बीवीबच्चों पर प्यार उमड़ आता था. आज भी यही हुआ. वे उठे और टूटा शोपीस, सीडी प्लेयर उठा कर गाड़ी में रखने लगे. टूटी सीडी के नाम, नंबर नोट करने लगे. मासूमी खामोशी से लेटी देख रही थी कि अब पापा बाजार जा कर सब नया सामान लाएंगे. आइसक्रीम, मिठाई से फ्रिज भर जाएगा. मां के लिए नई साड़ी, भाइयों को पाकेटमनी मिलेगी. प्यार से समझाएंगे कि बेटा, अभी तुम लोगों का ध्यान पढ़ने में लगना चाहिए. मैं तो चाहता हूं कि तुम लोग खाओपियो, हंसोबोलो.

पिताजी खुश होंगे तो सब के साथ बैठे दुनियाजहान की बातें करेंगे. मां भी चहकती फिरेंगी. बस, 2 दिन बाद ही जरा सी कोई बात होगी तो फिर हंगामा शुरू हो जाएगा. मासूमी का तो कालेज जाना भी बंद हो चुका था. यों वहां जाने पर भी हमेशा की तरह मन धड़कता था कि कहीं फिर दोनों भाइयों में, मांबाप में झगड़ा न हो गया हो. कहीं मौसी और बूआ अपनेअपने पतियों से झगड़ कर न आ बैठी हों. बस, यही हालात थे जिन के कारण मासूमी को पुरुषों से नफरत हो गई थी, जिस में उस के पिता, भाई, फूफा, मौसा सभी शामिल थे. सारे पुरुष उसे जल्लाद लगते थे, जो सिर्फ स्त्रियों पर अपना हक जता कर उन्हें नीचा दिखाना चाहते थे. इस से बचने के लिए वह इतना ही कर सकती थी कि मर्दों के साए से दूर रहे.

आज उस के भाई अच्छाखासा कमा कर परिवार वाले हो गए थे. एक मासूमी ही थी जिस के लिए सबकुछ बेकार हो चला था. अब यह रिश्ता फिर से हाथ आया था और मासूमी ने फिर से इनकार कर दिया था. इस बार सुरेशजी को गुस्सा तो बहुत आया फिर भी खुद पर काबू पा कर वे मासूमी को समझा रहे थे, ‘‘यह क्या नादानी है. तुम्हारी इतनी उम्र होने पर भी यह रिश्ता आया है. अब कहीं न कहीं तो समझौता करना ही पड़ेगा. खुशियां दरवाजे पर खड़ी हैं फिर तुम्हें क्या परेशानी है? या तो तुम्हें मुझे यह बात स्पष्ट समझानी होगी वरना मैं अपने हिसाब से जो करना है कर दूंगा.’’

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कुछ समय मासूमी सिर झुकाए खड़ी रही फिर हिम्मत कर के बोली, ‘‘आप मुझ से जवाब मांग रहे हैं तो सुनिए पापा, मैं हार गई हूं खुद से लड़तेलड़ते. बहुत सोचने के बाद मुझे विश्वास हो गया है कि मैं मां जैसी हिम्मत व सब्र नहीं रखती. मैं नहीं चाहती कि मेरे पिता द्वारा जो व्यवहार मेरी मां से किया गया वही व्यवहार कोई और व्यक्ति मेरे साथ करे.

‘‘औरत होने के नाते मैं उस औरत के दुख को महसूस कर सकती हूं जो मेरी मां है. हो सकता है कि विवाह के बाद मैं भी व्यावहारिकता में जा कर सबकुछ सह लूं पर मैं इतिहास दोहराना नहीं चाहती. आप के, मां व परिवार के बीच होने वाले झगड़ों ने मेरे अस्तित्व को ही जैसे खोखला व कमजोर बना दिया है. मुझे नहीं लगता कि मैं अब किसी परिवार का हिस्सा बनने लायक हूं. एक अनजाना सा डर मुझे हर खुशी से दूर ही रखेगा. इसलिए आप मुझे माफ कर दें और रिश्ते के लिए मना कर दें.’’

इतना कह कर वह दोनों हाथों से मुंह छिपा कर फूटफूट कर रो दी और कमरे में भाग गई. मासूमी की बात सुन कर सुरेशजी सन्न रह गए. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि आएदिन घर में होने वाले झगड़े उन की बेटी की जिंदगी में ऐसा गहरा निशान छोड़ जाएंगे कि उस की जिंदगी की खुशियां ही छिन जाएंगी. जिंदगी के कटघरे में आज वे अपराधी बन सिर झुकाए खड़े थे.

Serial Story: निशान (भाग-1)

उस दिन शन्नो ताई के आने के बाद सब के चेहरों पर फिर से उम्मीद की किरण चमकने लगी थी. ऐसा होता भी क्यों नहीं, आखिर ताई 2 साल बाद घर की बेटी मासूमी के लिए इतना अच्छा रिश्ता जो लाई थीं. लड़के ने इंजीनियरिंग और एम.बी.ए. की डिगरी ली हुई थी. 2 साल विदेश में रह कर पैसा भी खूब कमाया हुआ था. उस की 32 साल की उम्र मासूमी की 28 साल की उम्र के हिसाब से अधिक भी नहीं थी. खानदान भी उस का अच्छा था. रिश्ता लड़के वालों की तरफ से आया था, सो मना करने की गुंजाइश ही नहीं थी. सब से बड़ी बात तो यह थी कि जिस कारण से मासूमी का विवाह नहीं हो पा रहा था वह समस्या अब 2 साल से सामने नहीं आई थी.

हर मातापिता की तरह मासूमी के मातापिता भी चाहते थे कि बेटी को वे खूब धूमधाम से विदा कर ससुराल भेज सकें. फिर भी उस का विवाह नहीं हो पा रहा था. 2 भाइयों की इकलौती बहन, खातापीता घर और कम बोलने व सरल स्वभाव वाली मासूमी घर के कामों में निपुण थी. खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तों की भी कमी नहीं थी पर समस्या तब आती थी जब कहीं उस के रिश्ते की बात चलती थी.

पहले दोचार दिन तो मासूमी ठीक रहती थी पर जैसे ही रिश्ता पक्का होने की बात होती उसे दौरा सा पड़ जाता था. उस की हालत अजीब सी हो जाती, हाथपैर ठंडे पड़ जाते, शरीर कांपने लगता और होंठ नीले पड़ जाते थे. वह फटी सी आंखों से बस, देखती रह जाती और जबान पथरा जाती थी. सब पूछने की कोशिश कर के हार जाते थे कि मासूमी, कुछ तो बोल, तेरी ऐसी हालत क्यों हो जाती है. तू कुछ बता तो सही. पर मासूमी की जबान पर जैसे ताला सा पड़ा रहता. बस, कभीकभी चीख उठती थी, ‘नहीं, नहीं, मुझे बचा लो. मैं मर जाऊंगी. नहीं करनी मुझे शादी.’ और फिर रिश्ते वालों को मना कर दिया जाता.

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शुरूशुरू में तो उस की हालत को परिवार वालों ने छिपाए रखा. सो रिश्ते आते रहे और वही समस्या सामने आती रही पर धीरेधीरे यह बात रिश्तेदारों और फिर बाहर वालों को भी पता चल गई. तरहतरह की बातें होने लगीं. कोई हमदर्दी दिखाने के साथ उसे तांत्रिकों के पास ले जाने की सलाह देता तो कोई साधुसंतों का आशीर्वाद दिलाने को कहता और कोई डाक्टरों को दिखाने की बात करता, पर कोई बीमारी होती तो उस का इलाज होता न.

एक दिन मौसी से बूआजी ने कह भी दिया, ‘‘मुझे तो दाल में काला लगता है. चाहे कोई माने न माने, मुझे तो लग रहा है कि लड़की कहीं दिल लगा बैठी है और शर्म के मारे मांबाप के सामने मुंह नहीं खोल पा रही है वरना ऐसा क्या हो गया कि इतने अच्छेअच्छे घरों के रिश्ते ठुकरा रही है. अरे, यह जहां कहेगी हम इस का रिश्ता कर देंगे. कम से कम यह आएदिन की परेशानी तो हटे.’’

‘‘हां, दीदी, लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन उस समय उस की हालत देखी नहीं जाती. रिश्ते का क्या, कहीं न कहीं हो ही जाएगा. इकलौती भांजी है मेरी, कुछ तो रास्ता खोजना ही पड़ेगा,’’ मौसी दुख से कहतीं.

और फिर जब मौसी ने एक दिन बातों ही बातों में बड़े लाड़ के साथ मासूमी के मन की बात जाननी चाही तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं, जैसे दुनिया का सब से बड़ा दोष उस के सिर मढ़ दिया गया हो. काफी देर बाद संभल कर बोली, ‘‘मौसी, आप ने ऐसा सोचा भी कैसे? क्या आप को मैं ऐसी लगती हूं कि इतना बड़ा कदम उठा सकूं?’’

‘‘नहीं बेटा, यह कोई गुनाह या अपराध नहीं है. हम तो बस, तेरे मन की बात जान कर तेरी मदद करना चाहते हैं, तेरा घर बसाना चाहते हैं.’’

‘‘क्या कहूं मौसी, मैं तो खुद हैरान हूं कि रिश्ते की बात चलते ही जाने मुझे क्या हो जाता है. बस, यह समझ लीजिए कि मुझे शादी के नाम से नफरत है. मैं सारी जिंदगी शादी नहीं करूंगी,’’ मासूमी सिर झुकाए कहती रही और फिर सच में वह 18 से 28 साल की हो गई पर उस ने शादी के लिए हां नहीं की.

हालांकि कई बार मासूमी को विवाह की अहमियत का एहसास होता था कि मातापिता नहीं रहेंगे, भाई शादी के बाद अपने घरपरिवार में व्यस्त हो जाएंगे तो उसे कौन सहारा देगा. उसे भी शादी कर के घर बसा लेना चाहिए. उस की सखीसहेलियों के विवाह हो चुके थे और कितनों के तो बच्चे भी हो गए हैं.

अब इतने लंबे समय के बाद इस उम्र में उस के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया था. सब को यही उम्मीद थी कि अब इतना समय गुजरने के बाद वह समझदार हो गई होगी और सोचसमझ कर फैसला लेगी पर मासूमी ने फिर मना कर दिया था. पूरे हफ्ते तो इसी उधेड़बुन में लगी रही और आखिर में उसे यही लगा कि विवाह का रिश्ता संभालने में वह असफल रहेगी.

उस रात वह जी भर कर रोई. इन सब बातों में उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि उसे लगता था कि वह किसी की जिंदगी में शामिल हो कर उसे कोई खुशी देने के लायक नहीं है. रात भर अनेक विचार उस के दिमाग में आतेजाते रहे और सुबह उसे फिर दौरा पड़ गया था.

मां ने मासूमी के सिर में नारियल के तेल की मालिश की थी. उसे बादाम का दूध पिलाया था. दोनों भाई बारबार उसे आ कर देख जाते थे. पिता उस के बराबर में सिर झुकाए बैठे सोच रहे थे कि आखिर क्या दुख है मेरी बेटी को? कोई कमी नहीं है. सब लोग इसे इतना प्यार करते हैं, फिर कौन सा दुख है जो इसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है? पर मासूमी के होंठों पर फैली उस फीकी मुसकान का राज कोई नहीं समझ सका जिस ने उस के अस्तित्व को ही टुकडे़टुकड़े कर दिया था.

मासूमी ने बहुत कोशिश की थी खुद को बहलाने की, अकेली जिंदगी के कड़वे सच का आईना खुद को दिखाने की, लेकिन हर बार मायूसी ही उस के हाथ लगी थी. बिस्तर पर लेटी आंखें छत पर जमाए वह अतीत की गलियों से गुजर रही थी कि भाई राकेश की आवाज पर ध्यान गया, जिस ने गुस्से में पहले गमले को ठोकर मारी फिर अंदर आ कर मां से बोला, ‘‘मां, आप पापा को समझा दीजिए. उन्हें कुछ तो सोचना चाहिए कि वे कहां बोल रहे हैं. हमें कहीं भी डांटना, गाली देना शुरू कर देते हैं. हमारी इज्जत का उन्हें तनिक भी खयाल नहीं है. अब हम बच्चे तो नहीं रहे न.’’

मां ने हड़बड़ाते हुए रसोई से आ कर राकेश की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उस ने मन की भड़ास निकाल दी. 16 साल का राकेश मां से अपने पिता के व्यवहार की शिकायत कर रहा था और मां मौके की नजाकत भांप कर बेटे को समझा रही थीं.

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‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी कि इस बात का ध्यान रखें. वैसे बेटा, तुम यह तो समझते ही हो कि वे तुम से कितना प्यार करते हैं. तुम्हारी हर फरमाइश भी पूरी करते हैं. अब गुस्सा आता है तो वे खुद को रोक नहीं पाते. यही कमी है उन में कि जराजरा सी बात पर गुस्सा करना उन की आदत बन गई है. तुम उसे दिल पर मत लिया करो.’’

‘‘रहने दो मां, पापा को हमारी फिक्र कहां, कभी भी, कहीं भी हमारी बेइज्जती कर देते हैं. दोस्तों के सामने ही कुछ भी कह देते हैं. तब यह कौन देख रहा है कि वे हमें कितना प्यार करते हैं. लोग तो हमारा मजाक बनाते ही हैं.’’

राकेश अभी भी गुस्से से भनभना रहा था और उस की मां सरला माथा पकड़ कर बैठ गई थीं, ‘‘मैं क्या करूं, तुम लोग तो मुझे सुना कर चले जाते हो पर मैं किस से कहूं? तुम क्या जानो, अगर तुम्हारे पिता के पास कड़वे बोल न होते तो दुख किस बात का था. उन की जबान ने मेरे दिल पर जो घाव लगा रखे हैं वे अभी तक भरे नहीं और आज तुम लोग भी उस का निशाना बनने लगे हो. मैं तो पराई बेटी थी, उन का साथ निभाना था, सो सब झेल गई पर तुम तो हमारे बुढ़ापे की लाठी हो, तुम्हारा साथ छूट गया तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाएगा. काश, मैं उन्हें समझा सकती.’’

तभी परदे के पीछे सहमी खड़ी मासूमी धड़कते दिल से मां से पूछने लगी, ‘‘मां, क्या हुआ, भैया को गुस्सा क्यों आ रहा था?’’

‘‘नहीं बेटा, कोई बात नहीं, तुम्हारे पापा ने उसे डांट दिया था न, इसीलिए कुछ नाराज था.’’

‘‘मां, आप पापा से कुछ मत कहना. बेकार में झगड़ा शुरू हो जाएगा,’’ डर से पीली पड़ी मासूमी ने धीरे से कहा.

‘‘तू बैठ एक तरफ,’’ पहले से ही भरी बैठी सरला ने कहा, ‘‘उन से बात नहीं करूंगी तो जवान बेटों को भी गंवा बैठूंगी. क्या कर लेंगे? चीखेंगे, चिल्लाएंगे, ज्यादा से ज्यादा मार डालेंगे न, देखूंगी मैं भी, आज तो फैसला होने ही दे. उन्हें सुधरना ही पड़ेगा.’’

सरला जब से ब्याह कर आई थीं उन्होंने सुख महसूस नहीं किया था. वैसे तो घर में पैसे की कमी नहीं थी, न ही सुरेशजी का चरित्र खराब था. बस, कमी थी तो यही कि उन की जबान पर उन का नियंत्रण नहीं था. जराजरा सी बात पर टोकना और गुस्सा करना उन की सब से बड़ी कमी थी और इसी कमी ने सरला को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था.

वे तो यह सब सहतेसहते थक चुकी थीं, अब बच्चे पिता की तानाशाही के शिकार होने लगे हैं. बच्चों को बाहर खेलने में देर हो जाती तो वहीं से गालियां देते और पीटते घर लाते, उन के पढ़ने के समय कोई मेहमान आ जाता तो सब को एक कमरे में बंद कर यह कहते हुए बाहर से ताला लगा देते, ‘‘हरामजादो, इधर ताकझांक कर के समय बरबाद किया तो टांगें तोड़ दूंगा. 1 घंटे बाद सब से सुनूंगा कि तुम लोगों ने क्या पढ़ा है? चुपचाप पढ़ाई में मन लगाओ.’’

उधर सरला उस डांट का असर कम करने के लिए बच्चों से नरम व्यवहार करतीं और कई बार उन की गलत मांगों को भी चुपचाप पूरा कर देती थीं. पर आज तो उन्होंने सोच रखा था कि वे सुरेशजी को समझा कर ही रहेंगी कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उस से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए. वरना कल औलाद ने पलट कर जवाब दे दिया तो क्या इज्जत रह जाएगी. औलाद भी हाथ से जाएगी और पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा.

अपने विचारों में सरला ऐसी डूबीं कि पता ही नहीं चला कि कब सुरेशजी घर आ गए. घर अंधेरे में डूबा था. उन्होंने खुद बत्ती जलाई और उन की जबान चलने लगी :

‘‘किस के बाप के मरने का मातम मनाया जा रहा है, जो रात तक बत्ती भी नहीं जलाई गई. मासूमी, कहां है, तू ही यह काम कर दिया कर, इन गधों को तो कुछ होश ही नहीं रहता.’’

फिर उन्होंने तिरछी नजरों से सरला को देखा, ‘‘और तुम, तुम्हें किसी काम का होश है या नहीं? चायपानी भी पिलाओगी या नहीं? मासूमी, तू ही पानी ले आ.’’

उधर मासूमी मां की आड़ में छिपी थी. उस का दिल आज होने वाले झगड़े के डर से कांप रहा था. फिर भी उस ने किसी तरह पिता को पानी ला कर दिया. पानी पीते उन्होंने मासूमी से पूछा, ‘‘इन रानी साहिबा को क्या हुआ?’’

मासूमी के मुंह से बोल नहीं फूटे तो हाथ के इशारे से मना किया, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘वे दोनों नवाबजादे कहां हैं?’’

‘‘पापा, बड़े भैया का आज मैच था. वे अभी नहीं आए हैं और छोटे किसी दोस्त के यहां नोट्स लेने गए हैं,’’ किसी अनिष्ट की आशंका मन में पाले मासूमी डरतेडरते कह रही थी.

‘‘हूं, ये सूअर की औलाद सोचते हैं कि बल्ला घुमाघुमा कर सचिन तेंदुलकर बन जाएंगे और दूसरा नोट्स का बहाना कर कहीं आवारागर्दी कर रहा है, सब जानता हूं,’’ सुरेशजी की आंखें शोले बरसाने को तैयार थीं.

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बस, इसी अंदाज पर सरला कुढ़ कर रह जाती थीं. उन की आत्मा तब और छलनी हो जाती जब बच्चे पिता की इस ज्यादती का दोष भी उन के सिर मढ़ देते कि मां, अगर आप ने शुरू से पिताजी को टोका होता या उन का विरोध किया होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती. मगर वे बच्चों को कैसे समझातीं, यहां तो पति के विरोध में बोलने का मतलब होता है कुलटा, कुलक्षिणी कहलाना.

वे तब उस इनसान की पत्नी बन कर आई थीं जब पुरुष अपनी पत्नियों को किसी काबिल नहीं समझते थे घर में उन की कोई अहमियत नहीं होती थी, न ही बच्चों के सामने उन की इज्जत की जाती थी. वरना सरला यह कहां चाहती थीं कि पितापुत्र का सामना लड़ाईझगड़े के सिलसिले में हो और इसीलिए सरला ने खुद बहुत संयम से काम ले कर पितापुत्र के बीच सेतु बनने की कोशिश की थी.

उन्होंने तो जैसेतैसे अपना समय निकाल दिया था पर अब नया खून बगावत का रास्ता अपनाने को मचल रहा था और इसी के चलते घर के हालात कब बिगड़ जाएं, कुछ भरोसा नहीं था और इन सब बातों का सब से बुरा असर मासूमी पर पड़ रहा था.

मासूमी मां की हमदर्द थी तो पिता से भी उसे बहुत स्नेह था, लेकिन जबतब घर में होने वाली चखचख उस को मानसिक रूप से बीमार करने लगी थी. स्कूल जाती तो हर समय यह डर हावी रहता कि कहीं पिताजी अचानक घर न आ गए हों क्योंकि राकेश भाई अकसर स्कूल से गायब रहते थे…और घर में रहते तो तेज आवाज में गाने सुनते थे…इन दोनों बातों से पिता बुरी तरह चिढ़ते थे.

मां राकेश को समझातीं तो वह अनसुनी कर देता. उसे पता था कि पिता ही मां की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं इसलिए उन का क्या है बड़बड़ करती ही रहेंगी. ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका मासूमी के मन को सहमाए रखती और स्कूल से घर आते ही उस का पहला प्रश्न होता, ‘मां, पापा तो नहीं आ गए? भैया स्कूल गए थे या नहीं? पापा ने प्रकाश भाई को क्रिकेट खेलते तो नहीं पकड़ा? दोनों भाइयों में झगड़ा तो नहीं हुआ?’

मां उसे परेशानी में देखतीं तो कह देती थीं, ‘क्यों तू हर समय इन्हीं चिंताओं में जीती है? अरे, घर है तो लड़ाईझगड़े होंगे ही. तुझे तो बहुत शांत होना चाहिए, पता नहीं तुझे आगे कैसा घरवर मिले.’

मगर मासूमी खुद को इन बातों से दूर नहीं रख पाती और हर समय तनावग्रस्त रहतेरहते ही वह स्कूल से कालेज में आ गई थी और आज फिर वह दिन आ गया था जो किसी आने वाले तूफान का संकेत दे रहा था.

-क्रमश:

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Wedding special: मंडप के नीचे

सर्वश्रेष्ठ  संस्मरण

बात मेरे बड़े भाई की शादी की है. मेरे मम्मीपापा ने लड़की वालों को पहले ही कह दिया था कि हमें सिर्फ लड़की चाहिए दहेज नहीं.

शादी की एक रस्म में दूल्हादुलहन को कुशन पर बैठाया गया. फिर उस कुशन को लड़की वाले लड़के वालों से ले जाने को कहने लगे. लड़के वाले इसे मजाक ही समझ रहे थे. पर जब लड़की वाले पीछे ही पड़ गए कि यह कुशन आप को ले जाना ही पड़ेगा, तो यह बात पापा को अच्छी नहीं लगी. उन्होंने कहा, ‘‘हम ने लड़की वालों से पहले ही कह दिया था कि हम सिर्फ लड़की ले कर जाएंगे. अब आप की बेटी हमारी बेटी है. उस के हर सुखदुख की जिम्मेदारी अब हमारी है. इसलिए कृपया हमें यह कुशन ले जाने के लिए मजबूर न करें वरना हम लड़की को भी नहीं ले जाएंगे.’’

पापा की इस बात पर दुलहन के पापा ने कहा, ‘‘जहां आज दहेज न मिलने पर बरातें लौट जाती हैं, वहीं ऐसे लोग भी हैं जिन्हें दहेज में एक चीज भी मंजूर नहीं. मैं बहुत खुश हूं, जो मेरी बेटी को ऐसी ससुराल मिल रही है.’

रजनी मोघा

यह वाकेआ मेरी सहेली की शादी का है. उस ने शादी के पहले कभी साड़ी नहीं पहनी थी. साड़ी पहने वह बहुत असहज महसूस कर रही थी. सभी रस्मों के बाद जब विदाई होने लगी तो उस की मां ने खूब लंबा घूंघट निकाल दिया और फिर रोने लगीं. सहेली ने मुझ से धीरे से कहा, ‘‘मुझे तो रोना आ ही नहीं रहा है. उलटे गुस्सा आ रहा है कि इस साड़ी से कब मुक्ति मिलेगी.’’

तब मैं ने उसे सलाह दी कि घूंघट में किसी को कुछ दिखाई नहीं देगा तू झूठमूठ रोने का नाटक कर.

इसी बीच उस की मां उस से गले मिलते हुए बोलीं, ‘‘अब चाचीमामी सब से गले मिल ले.’’

तब सहेली मामी के गले लगते हुए उन्हें चाची पुकारने लगी तो चाची के गले लगते हुए उन्हें मामी पुकारने लगी.

मैं उस के पास जा कर बोली, ‘‘तू सब गड़बड़ कर रही है… ये मामी नहीं चाची हैं.’’

यह सुनते ही वहां उपस्थित सभी जोरजोर से हंसने लगे तो विदाई का गमगीन माहौल हंसी में बदल गया.

अमिता गुप्ता

बात मेरी सहेली की शादी की है. इस शादी से पहले उस की किसी न किसी बात पर 3 बार सगाई टूट चुकी थी, इसलिए अब वह शादी नहीं करना चाहती थी. किंतु घर वालों के बहुत समझाने पर वह किसी तरह राजी हो गई.

सगाई के दिन चुपचाप उस ने अपने होने वाले पति से अपनी सगाई 3 बार टूटने वाली बात बता दी. तब भी लड़के ने उसे पसंद कर के शादी के लिए हां कह दी.

शादी से 2 दिन पहले लड़की वाले लड़के वालों के यहां तिलक की रस्म के लिए गए. तब पता नहीं लड़के वालों को यह बात कैसे पता चली कि इस लड़की की सगाई पहले 3 बार टूट चुकी है.

अत: उन्होंने लड़की वालों पर आरोप लगाया कि उन्होंने यह बात उन्हें क्यों नहीं बताई. वे पहले इस बात का पता लगाएंगे. उस के बाद ही तिलक की रस्म पूरी करने का निर्णय लेंगे.

इस बात से लड़की वाले बहुत परेशान हो गए. किंतु जैसे ही लड़के को यह बात पता चली उस ने बहुत हिम्मत के साथ अपने घर वालों को बताया कि उसे लड़की ने इस बारे में बता दिया है और वह इसी लड़की से शादी करेगा.

लड़के का फैसला सुन कर उस के घर वालों को उस की बात माननी पड़ी और फिर तय समय पर तिलक की रस्म और फिर शादी हो गई.

ज्योत्सना अग्रवाल

मेरी मौसी की बेटी का विवाह संपन्न घराने में तय हुआ. लड़के वालों की मांग थी कि मौसीजी उन के शहर में आ कर विवाह करें. भोजन आदि की व्यवस्था लड़के वाले कर लेंगे. लड़की वाले केवल खर्च का भुगतान करेंगे.

मौसीजी को थोड़ा संशय हुआ कि कहीं लड़के वाले लालची प्रवृत्ति के तो नहीं हैं. पर हां कहने के अलावा और कोई चारा भी तो नहीं था.

तय दिन लड़की वाले वहां पहुंच गए. एक शानदार होटल में उन का स्वागत हुआ. खाना भी लजीज था. डांसर भी बुलाए गए थे. मौसीजी का शक और पुख्ता हो गया, पर चुप रहने के अलावा करतीं भी क्या?

फेरों के समय जब साली ने दूल्हे से नेग मांगा तो उन्होंने न केवल झट से क्व21 हजार निकाल कर दिए, बल्कि 12 सोने की अंगूठियां भी दीं ताकि रिश्ते में जोजो सालियां लगती हैं उन्हें बांटी जा सकें.

यह देख कर मौसी के मन में उमड़े संशय के बादल छंट गए और उन्होंने खुशीखुशी अपनी बेटी को विदा किया.

शालिनी कालड़ा

BIGG BOSS 14: फिनाले से ठीक पहले शो से बाहर हुई निक्की तम्बोली! फैंस ने उठाया ये कदम

सलमान खान के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस 14 इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में अपनी जगह नही बना पा रहा है, जिसके चलते शो के मेकर्स नई नई एंट्री और ट्विस्ट लाकर फैंस को एंटरटेन करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं शो के मिनी फिनाले में एली गोनी से लेकर कविता कौशिक के घर से निकलने पर फैंस गुस्से में हैं. इसी बीच शो में हुए एक और एलिमनेशन ने फैंस को हैरान कर दिया है, जिसका रिएक्शन सोशलमीडिया पर देखने को मिल रही है.

निक्की तम्बोली हुई घर से आउट

बिग बौस 14 के फिनाले की रेस से एली गोनी और कविता कौशिक के बाद अब  निक्की तम्बोली का भी ‘बिग बॉस 14’ से पत्ता साफ हो चुका है, जिसके बाद इस  इविक्शन से फैंस काफी हैरान हो गए हैं. वहीं फैंस के मुताबिक निक्की तम्बोली ‘बिग बॉस 14’ के टॉप 4 में रहने के काबिल थीं, जबकि कुछ लोग जैस्मिन जैसे कंटेस्टेंट को शो से बाहर आने की बात कह रहे हैं.

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निक्की के सपोर्ट में आए फैंस

निक्की तम्बोली के इविक्शन के बाद उनके फैंस सपोर्ट में आ गए हैं, जिस के चलते वह मेकर्स को लताड़ लगाने के साथ सोशल मीडिया पर निक्की डिजर्व फिनाले और निक्की इज बॉस जैसे हैश टैग ट्विटर पर ट्रैंड कर रहे हैं. वहीं फैंस का कहना है कि निक्की को वापस शो का हिस्सा बनाया जाए.

मेकर्स हुए ट्रोल

‘बिग बॉस 14’ के मेकर्स इन दिनों काफी ट्रोलिंग का शिकार हो रहे हैं. ट्रोलर्स का और निक्की के फैंस का कहना है कि, वह एक इकलौती ऐसी सदस्य है जो कि पहले दिन से ही ‘बिग बॉस 14’ में गेम खेल रही है. निक्की तम्बोली टॉप 4 में रहना डिजर्व करती है. समझ नहीं आ रहा है कि क्या सोचकर मेकर्स ने निक्की तम्बोली को बाहर किया गया है. वहीं कुछ लोग शो को बॉयकौट करने की बात भी कह रहे हैं.

बता दें, इससे पहले भी सारा गुरपाल और निशांत मलकानी के इविक्शन पर शो के मेकर्स ट्रोलिंग का सामना कर चुके हैं, जिसके बाद मेकर्स ने शो में कई बदलाव भी किए थे. अब देखना ये है कि निक्की के बाद मेकर्स किसे शो से बाहर करने वाले हैं.

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काव्या ने सुनाई वनराज को खरी-खोटी, इस वजह से भड़का गुस्सा

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी की रेस में नंबर वन पर बना हुआ है. वहीं मेकर्स भी अपनी जगह को कायम करने के लिए शो में आए दिन नए नए ड्रामा दर्शकों के लिए लेकर आ रहा है. बीते दिनों जहां वनराज अपनी फैमिली को छोड़ काव्या के पास चला गया है तो वहीं अनुपमा के कंधों पर पूरे घर को संभालने की जिम्मेदारी चुनौती बनकर आ खड़ी हुई है. लेकिन आने वाले दिनों में शो में और नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज को याद आई अनुपमा

अहंकार में डूबे वनराज की जिंदगी में काव्या के होने के बावजूद वह अनुपमा की अच्छाइयों को भुला नही पा रहा है, जिसके चलते वह आए दिन अनुपमा को याद करता नजर आ रहा है. हालांकि वह हर कोशिश कर रहा है कि अनुपमा को भूल कर वह काव्या के साथ आगे बढ़ जाए.

 

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वनराज करेगा ये काम

 

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आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या से मीटिंग का बहाना बनाकर वनराज अपने कपड़े लेने शाह हाउस जाएगा, जिसके बाद बा वनराज को देखकर अनुपमा को उसे खाना खिलाने के लिए कहेगी. हालांकि काव्या को इस बारे में पता चल जाएगा और वह गुस्सा होती नजर आएगी. वहीं परिवार को खुद से दूर होता देख वनराज अनुपमा को कहेगा कि वह अपने परिवार को उससे दूर कर देगा, जिसका अनुपमा सख्ती से जवाब देती नजर आएगी.

 

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खरी खोटी सुनाएगी काव्या

 

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वनराज को झूठ बोलता देख काव्या उसे चेतावनी देगी कि वह अपने परिवार और अनुपमा से दूर रहे. साथ ही उसे जमकर खरी खोटी सुनाती नजर आएगी. हालांकि वनराज को काव्या पर गुस्सा आएगा कि वह उस पर नजर रख रही है. लेकिन वह काव्या को गुस्से में देख उसे मनाने की कोशिश करता हुआ नजर आएगा.

 

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बता दें, अनुपमा की जिंदगी की नई शुरुआत हो चुकी है, जिसके साथ उसके सामने कई नई चुनौतिया भी खड़ी हो चुकी हैं. वहीं इन चुनौतियों का सामना वह डटकर करने की कोशिश कर रही है.

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जब रिश्तेदार को देना हो उधार

32 साल का निलय करीब 8 साल से एक कंपनी में सीनियर पोजीशन पर काम कर रहा था. उस ने हमेशा काफी संभल कर पैसे खर्च किए थे और इसलिए इतने कम समय में ही उस ने करीब 10 -12 लाख की रकम जमा कर ली थी. एक दिन उस का एक चचेरा भाई अनुज उस से मिलने आया. वह वैसे भी कभीकभार आता रहता था पर इस बार उस की मंशा उधार मांगने की थी.

अनुज ने बताया कि उस का बिज़नेस डूब रहा है और वह बहुत परेशान है. उसे अपना बिजनेस बचाने के लिए करीब 4-5 लाख रुपयों की जरूरत है. यदि निलय उस की मदद कर देता है तो वह उम्र भर अहसानमंद रहेगा और जल्द से जल्द रुपए वापस भी कर देगा. भाई की परेशानी और दर्द महसूस करते हुए निलय ने अपनी सेविंग्स में से 4 लाख उसे उधार दे दिए.

इस बात को 2 साल बीत गए पर अनुज ने रूपए वापस करने की कोई पहल नहीं की. निलय जब भी अनुज से रुपए मांगता तो वह कुछ न कुछ बहाने बना कर और कुछ महीनों में देने की बात कह कर गायब हो जाता. इस बीच कोरोना के कारण निलय की अपनी नौकरी भी छूट गई. लॉकडाउन और उस के बाद के कुछ महीने वह घर पर ही रहा. इस दौरान उसे पैसे की तंगी का अहसास होने लगा. वह अपने चचेरे भाई से कई दफा अपनी परेशानियां बता चुका था. मगर वह अब भी हर बार बहाने बनाने लगता.

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निलय को अपने ही पैसे बारबार मांगने में कोफ्त होने लगी. एक दिन उस ने कठोरता से रुपए वापस करने को कहा तो अनुज ने शाम तक का समय मांगा. शाम में जब निलय ने फोन किया तो उस ने फोन उठाया नहीं. निलय उस के घर पहुंचा तो पता चला कि वह अपना घर शिफ्ट कर कहीं और जा चुका है. किसी के पास भी अनुज का नया एड्रेस नहीं था. इस तरह निलय ने न सिर्फ अपने रूपए गंवाए बल्कि एक रिश्ता भी हमेशा के लिए खो दिया.

पैसे दे कर भी बिगड़ सकते हैं रिश्ते

अक्सर देखा गया है कि किसी परिचित या रिश्तेदार को जब आप रुपए उधार देते हैं तो उस समय तो वह आप के साथ बहुत विनम्रता से पेश आता है, बहुत दोस्ती और अपनापन दिखाता है. आप को महसूस होता है कि इस बंदे को अभी मेरी जरूरत है तो किसी भी तरह मदद करनी चाहिए. इस से रिश्ता और मजबूत हो जाएगा, पर कई दफा ऐसा होता नहीं है. समय बीतने के बाद जब आप उस से अपने रुपए वापस मांगते हैं तो पहले तो वह विनम्रता से अपनी मजबूरी दिखाता है और बहाने बनाना शुरू करता है. ऐसे में आप उसे और समय देते जाते हैं और वह हर बार कोई न कोई बहाना बना देता है.

फिर एक समय आता है जब आप थोड़ी कठोरता से रुपए देने की बात करते हैं. बस यहीं से रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो जाती है. उधार लेने वाला आप को इग्नोर करना शुरू करता है. उस का व्यवहार बिल्कुल उलट जाता है. उस की जुबान पर जो नरमी रहती थी वह कड़वाहट में बदल जाती है. आप को ऐसा महसूस होने लगता है जैसे अपने नहीं बल्कि उस के रुपए मांग रहे हैं. ऐसे में आप खुद को बहुत ठगा हुआ सा महसूस करते हैं. फिर आप भी कठोरता से रूपए मांगने शुरू कर देते हैं.

यहीं से रिश्ते बिगड़ते चले जाते हैं. कुछ लोग तो बाद में ऐसे शो करते हैं जैसे आप ने अपने रुपए मांग कर कोई गुनाह कर दिया और उन्हें अब आप से कोई बात ही नहीं करनी. यानी मदद भी करो और बुरे भी बनो.

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मीठामीठा बोल कर आप को पैसे वापस करने का दिलासा देते रहेंगे जैसे वे पैसे वापस करने की बात कर के भी बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों और जब आप बारबार उन्हें यह बात याद दिलाते हो कि रूपए वापस चाहिए तो वे नाराज हो जाते हैं. दोस्ती और अपनेपन का स्थान दुश्मनी और नफरत ले लेती है.

उधार देने से पहले देखें कि रिश्ता महत्वपूर्ण है या पैसा.

जिस तरह कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कोई भी बात बुरी लगे तो दो तरह से सोचो…..यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो बात भूल जाओ और यदि बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाओ. ठीक उसी तरह आप को रिश्तेदार या पैसे में से अपनी प्राथमिकता तय करनी पड़ेगी. कई बार हमें पता होता है कि सामने वाला आप के रूपए नहीं लौटाएगा. ऐसे में यदि रूपए उधार मांगने वाला रिश्तेदार आप के जीवन में खास अहमियत रखता है और आप उस के बिना नहीं रह सकते तो उस की मदद जरूर करें. मगर यदि आप खुद ही आर्थिक दृष्टि से तंगी के दौर से गुजर रहे हैं तो ऐसी मदद का क्या फायदा?

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दबाव में न आएं

सामने वाले की आर्थिक मदद आप तभी कर सकते हैं यदि आप स्वयं आर्थिक रूप से सक्षम हों. भले ही आप का उस से कितना ही प्यारा या मजबूत रिश्ता ही क्यों न हो. खासकर जब आप को पता है कि ये रूपए वापस नहीं मिलेंगे. इस लिए खुद को परेशानी में डाल कर कभी भी दूसरों की मदद न करें. मदद तभी करें जब आप के पास उतने रूपए देने को के लिए हो. न तो पैसा किसी से उधार ले कर सामने वाले की मदद करें और न ही खुद को आर्थिक संकट में डालें. यदि इस प्रकार की कोई दुविधा हो तो सामने वाले को गोलमोल जवाब देने की अपेक्षा उसे स्पष्ट बताएं कि आप उस की मदद करने में असमर्थ हैं ताकि वह कहीं और ट्राई कर सके.

आप ने पैसे दे दिए, उस के बाद बारबार उसे उलाहना न दें या बारबार मांग कर उसे लज्जित न करें. क्योंकि इस तरह पैसे देने के बावजूद आप का रिश्ता खराब हो जाएगा. इसलिए पहले ही तय कर लें और अपने मन को समझा दें कि पैसा देने के बाद वापस नहीं आएंगे.

धोखेे में न फंसें

पैसा उधार देते हुए इस पहलू पर अवश्य गौर करें और जांच लें कि कहीं पैसा उधार मांगना उस की आदत तो नहीं. बहुत से लोग सामने वाले की भावनाओं का फायदा उठा कर पैसा उधार मांगना अपनी आदत बना लेते हैं और उधार वापस करने के नाम पर कन्नी काटने लगते हैं. यदि आप का यह रिश्तेदार भी इस तरह के मामलों में फंस चूका है तो उस से हाथ खींच लेना ही उचित होगा. जो इंसान किसी और के साथ धोखा कर सकता है वह आप के साथ भी धोखा कर सकता है इस बात का ध्यान जरूर रखें.

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रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः बिपिन नाडकर्णी और योगेश  बेल्डर

निर्देशकः बिपिन नाडकर्णी

कलाकारः शारिब हाशमी, शरद केलकर,  हर्ष छाया, रसिका दुग्गल, फ्लोरा सैनी, सुनीता सेन गुप्ता व अन्य.

अवधिः एक घंटा 28 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

रवींद्र नाथ टैगोर की एक लघु कहानी पर 1960 में बंगला फिल्म ‘‘खोकाबाबू प्रत्यावर्तन’’बनी थी, उसी पर मराठी भाषी फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके फिल्मकार बिपिन नाडकर्णी हिंदी फिल्म ‘‘दरबान’’लेकर आए हैं, जिसमें कई मनोवैज्ञानिक व समाजशास्त्रीय सवाल अनुत्तरित रह गए हैं. पर रिश्तों के भावनात्मक पक्ष के साथ नौकर आखिर सेवा करने के लिए बना होता है, इस बात को रेखांकित करने वाली कहानी बनकर रह गयी है. यह कहानी उस इंसान की है, जो कि  रिश्तों के लिए अपनी भावनाओं का त्याग करता है.

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कहानीः

कहानी 1971 में शुरू होती हैं और कहानी के केंद्र में रायचरण उर्फ रायचू हैं. जब रायचरण बारह वर्ष के थे, तभी उनकी शादी हो गयी थी और उन्हे शहर में कोयले की खदान के मालिक नरेन त्रिपाठी(हर्ष छाया) ने अपने घर पर नौकर की नौकरी दे दी थी. नरेन त्रिपाठी व सुषमा(सुनीता सेन गुप्ता) के बेटे अनुकूल की चडढी बदलने से लेकर उसके साथ खेलना व उसकी परवरिश करना रायचरण का काम था. नरेन व सुषमा ने रायचरण को कभी भी नौकर नहीं समझा और रायचरण( शारिब हाशमी) ने कभी भी नरेन को मालिक नही समझा. मगर अचानक सरकार ने कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हे अपने अधिकार में ले लिया, तब नरेन ने सभी नौकरों को निकाल दिया. अपनी हवेली बेच दी और कहीं छोटी जगह रहने चले गए. रायचरण अपने गॉंव अपनी पत्नी भूरी(रसिका दुग्गल)के पास आ गए और खेती करने लगा. बीस साल का वक्त बीत जाता है. पर रायचरण पिता नही बन पाते हैं. उधर अनुकूल(शरद केलकर) बड़े होकर पुलिस अफसर बन चुके हैं. उनकी रूचा से शादी हो चुकी है. अनुकूल के पिता की मौत हो चुकी है. पर मां सुषमा है और अनुकूल ने अपने पिता की हवेली को फिर से खरीद लिया है. एक दिन अनुकूल, रायचरण के गॉव पहुंचकर उसे पुनः हवेली बुला लाते हैं और अब रायचरण, अनुकूल के बेटे सिद्धांत उर्फ सिद्धू की देखभाल करने लगते हैं. सिद्धू,  रायचरण को चन्ना बुलाता है. अनुकूल को रायचरण पर पर अटूट विश्वास है, मगर रूचा(फ्लोरा सैनी) को नहीं है. एक दिन जब घर पर मेहमान आते हैं, तो रायचरण, सिद्धू को घुमाने नदी किनारे के गार्डेन मंे ले जाते हैं, जहां सिद्धू गायब हो जाता है. बारिश भी शुरू हो जाती है. रायचरण अपनी तरफ से उसे ढूढ़ते हैं, पर नहीं मिलता. पुलिस प्रशासन भी सिद्धू को तलाशने में नाकाम होता है. रूचा, रायचरण पर सिद्धू को चुराने का आरोप लगाती है. पुलिस रायचरण को पकड़कर ले जाने लगती है, पर अनुकूल कहते हंै कि इसे छोड़ दो. उसके बाद रायचरण पुनः अपने गॉंव आ जाते हैं. पर अब किसी से मोह नहीं रहा. वह खेती करने के अलावा खुद को व्यस्त रखने के लिए नौकरी भी करने लगते हैं. दो वर्ष बीत जाते हैं. उसके बाद रायचरण की पत्नी भूरी एक बेटे को जन्म देकर मर जाती हैं. रायचरण अपने बेटे की तरफ ध्यान नहीं देता. रायचरण की बहन ही उसकी देखभाल करती है. एक दिन रायचरण का बेटा उन्हे चन्ना कहकर बुलाता है, तो रायचरण को लगता है कि सिद्धू वापस आ गया और वह उसे सिद्धू उर्फ छोटे बाबा कहकर परवरिश करते हैं. उसे अंग्रजी माध्यम में पढ़ने भेजते है. दस साल बीत जाते हैं. एक दिन नरेन का पुराना ड्रायवर शिवदयाल मिल जाता है. वह कहता है कि रायचरण का बेटा उसका नही बल्कि अनुकूल का है, जिसे उसने चुरा लिया है. तब अपने खेत बेचकर रातो रात बेटे सिद्धू के साथ रायचरण गंगटोक पहुंच जाते हैं. वहां एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल रायचरण को बुलाकर बताते हैं कि उनका बेटा पढ़ने में बहुत तेज है और अब उसे सोचना चाहिए कि उसे पढ़ने के लिए अमरीका, इंग्लैड या कहां भेजे?  प्रिंसिपल की बात सुनकर घर की तरफ जा रहे रायचरण सोच में पड़ जाते हैं कि इस स्कूल की फीस तो वह बामुश्किल दे पा रहे हैं, ऐसे मंे वह सिद्धू को अमरीका पढ़ने कैसे भेज सकते हैं. तभी फिर से शिवदयाल मिल जाते हैं और वह सड़क पर सिद्धू व अन्य लोगों के सामने रायचरण पर चोरी का आरोप लगाते हैं. भीड़ के सामने रायचरण रोते हुए कहते हैं कि वह चोर नहीं है, सिद्धू उनका अपना बेटा है. पर रात में वह एक निर्णय लेकर अनुकूल व रूचा को सिद्धू सौंप कर खुद को चोर बता देते हैं. अनुकूल उसे रूकने के लिए नहीं कहते. रायचरण वापस बनारस जाकर एक अनाथाश्रम में दरबान की नौकरी करने लगते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार ने इस बात को बड़ी शिद्दत से उकेरा है कि सेवा और सेवाभक्ति कभी नही बदलती. मगर फिल्मकार ने इसमें इस मनोवैज्ञानिक पहलू पर ध्यान नही दिया कि आखिर रायचरण क्यों नौकर बनने दुबारा आते है. जबकि उसके पास गांव में अच्छी खेती है और नौकरी भी कर रहे हैं. इतना ही नही उसे पैसों की खास जरुरत भी नही है. फिल्म के कई दृश्य ऐसे है जो कि दर्शक की आंखें गीली कर देते हैं. फिल्मकार चाहते तो रायचरण का किरदार सामंती व्यवस्था के लिए अपनी वफादारी को लेकर सवाल उठा सकता थे और कहानी ज्यादा रोचक हो सकती थी, पर रायचरण तीन पीढ़ियों तक ऐसे ही चिपके रहते हैं. फिल्मकार ने रवींद्र नाथ टैगोर की अतिशयोक्तिपूर्ण निष्ठा, पहचान, मान मनोविज्ञान का रायचरण के किरदार के साथ चित्रित करने का सफल प्रयास किया है. और इस किरदार में शारिब हाशमी का चयन कर वह आधे से ज्यादा लड़ाई पहले ही जीत लेते हैं. नरेन व उनके परिवार की सेवा के चलते रायचरण जिस तरह अपनी पत्नी की उपेक्षा करते हैं, उस पक्ष को इस फिल्म में जगह नहीं दी गयी है. फिल्मकार ने नरेन व रायचरण के बीच के संबंधो को परदे पर चित्रित करने की बनिस्बत सूत्रधार अन्नू कपूर से शब्दों में कहला दिया है. यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी है. फिर भी बिपिन नाडकर्णी की स्वाभाविक निर्देशकीय शैली अच्छी है.  लेखन की कमजोरी के चलते इसमें वह गहराई नही आ पायी, जो आनी चाहिए थी.

कैमरामैन अमलेंदु चैधरी की तारीफ करनी पड़ेगी. उन्होने झरिया,  झारखंड और गंगटोक,  सिक्किम के कुछ दृश्य कैमरे के माध्यम से काफी बेहतर पकड़े हैं.

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अभिनयः

‘एक घरेलू नौकर के किरदार में शारिब हाशमी का अभिनय दिल को छू लेने वाला है. उन्होने रायचू की भावभंगिमआों को बहुत सटीक अपने अभिनय से उतारा है. अनुकूल के बेटे के खो जाने के बाद अनुकूल और खासकर उनकी पत्नी रूचा का व्यवहार रायचरण की मानसिक स्थिति  को प्रभावित करती है, उसका जीवंत चित्रण शारिब हाशमी ने अपने अभिनय से किया है. ‘किस्सा’, ‘मंटो’ और ‘मिर्जापुर’में अपने अभिनय से लोगों के दिलों मे जगह बना चुकी रसिका दुग्गल ने भूरी के छोटे से किरदार में जान डाल दी है. लोगों को उनका अभिनय याद रह जाता है. शरद केलकर और हर्ष छाया की प्रतिभा कोजाया किया गया है. दोनों बाल कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है, यह दोनों बाल कलाकार बधाई के पात्र हैं.

इंटिमेट सीन्स करना आसान नहीं होता – अंशुल चौहान

बचपन से अभिनय की इच्छा रखने वाली अभिनेत्री अंशुल चौहान ने फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में सपोर्टिंग रोल से हिंदी सिनेमा जगत में कदम रखा. फिल्मों के अलावा उन्होंने मॉडलिंग और वेब सीरीज में भी काम किया है. स्वभाव से विनम्र और हंसमुख अंशुल के परिवार उत्तर प्रदेश के नॉएडा में रहती हैं. उनके पिता विरेंदर चौहान व्यवसायी और मां गृहणी है. अंशुल के यहां तक पहुंचने में उसके माता-पिता का काफी सहयोग रहा है. ऑल्ट बालाजी की वेब शो ‘बिच्छू का खेल’ जी5 पर रिलीज हो चुकी है, जिसमें अंशुल ने मुख्य भूमिका निभाई है. उनके काम को काफी सराहना मिल रही है. आइये जाने क्या कहती हैं, अंशुल अपने बारें में.

सवाल-इस वेब शो को करने की खास वजह क्या रही?

इसे करने की वजह यह है कि अभी तक मैंने सस्पेंस और थ्रिलर वाली फिल्म नहीं की थी. इसमें फुल ड्रामा और मनोरंजन है. साथ ही मेरी भूमिका भी बहुत चैलेंजिंग रही. 

सवाल-किसी भाग को करने में मुश्किलें आई?

इस शो का हर भाग बहुत कठिन था, क्योंकि ये चरित्र बहुत स्ट्रोंग और अपफ्रंट तरीके का है और मुझे जीवन में चुनौतीपूर्ण काम करना पसंद है. तभी आप ग्रो कर सकते है. निर्देशक आशीष राज शुक्ला ने मुझे अभिनय में बहुत हेल्प किया. 

सवाल-इस चरित्र ने आप खुद को कितना जोड़ पाती है?

बिल्कुल भी नहीं जोड़ पाती, क्योंकि रश्मि चौबे इस शो में जिस तरह से जोश में अपना काम कर लेती है, रियल लाइफ में अंशुल ऐसा किसी काम को वायलेंट तरीके से नहीं कर सकती. आराम से और किसी का नुकसान किये बिना मैं अपना काम निकाल लेती हूं. 

सवाल-एक्टिंग में आने की प्रेरणा किससे मिली? पहला ब्रेक कब मिला?

मैंने शुरुआत दिल्ली के एक कॉलेज के थिएटर से किया. पढाई और थिएटर दोनों करते-करते मुझे अहसास हुआ कि मुझे क्रिएटिव चीजे आकर्षित करती है और मैं सहजता से कर सकती हूं. फिर मैंने अभिनय के क्षेत्र में जाने की योजना बनाई और मैं मुंबई पहुंची और पहला ब्रेक मुझे टीवी कमर्शियल से मिला, इसके बाद शुभ मंगल सावधान में काम करने का मौका मिला. साथ ही वेब सीरीज में काम मिलता गया और मैं यहाँ स्टाब्लिश हो गई.

मुंबई आने पर पहला काम मिलने में समय लगा, क्योंकि मैं इस शहर को जानती नहीं थी. इसके अलावा थिएटर के कुछ लोगों से परिचय हुआ और उन्होंने ऑडिशन की बात बताई. फिर ऐड मिले, ऐसे ही काम से काम मिलता गया.

सवाल-आउटसाइडर होने के नाते काम मिलने में परेशानी आई?

कई बार समस्या आई, क्योंकि मैं इस क्षेत्र से अनजान थी. मेरे परिवार में कोई भी इंडस्ट्री से नहीं है, जो मुझे कुछ गाइड कर सकें. अभिनय का मौका मिलता है , अगर आप प्रतिभावान है. काम मिलने में समय लगता है,क्योंकि इंडस्ट्री के बारें में पता करने में भी समय लग जाता है.

सवाल-पहली बार पेरेंट्स को अभिनय की इच्छा के बारें में कहने पर उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?

पहले तो उन्होंने मना किया, क्योंकि मेरा परिवार कंजरवेटिव है. आज तक किसी ने इस क्षेत्र में काम नहीं किया है. मुझे दिल्ली की बेस्ट कॉलेज में दाखिला ऑडिशन के द्वारा एक्स्ट्रा करिकुलर के कोटे में मिला था. इससे पैरेंट्स को अच्छा लगा, क्योंकि एक्टिंग के बल पर मुझे कॉलेज मिली.इससे वे सहज होते गए. धीरे-धीरे उन्होंने मुझे मुंबई के लिए भी एक साल का समय दिया. इस दौरान काम मिलते गए और वे भी खुश होते गए.

सवाल-क्या आपने टीवी पर काम करने की कोशिश नहीं की?

मैंने कभी कोशिश नहीं की, क्योंकि मुझे लगता है कि टीवी पर एक चरित्र को काफी समय तक करना पड़ता है, जबकि फिल्म और वेब शो में अलग-अलग चरित्र को जीते है.

सवाल-रिजेक्शन का सामना कैसे करती है?

एक बार मुझे एक बड़ी फिल्म में लीड मिलने वाली थी. मैं बहुत खुश थी, मेरी नींदे उड़ गई थी, लेकिन कुछ कारणों से वह नहीं मिली. मैं स्ट्रेस ईटर हूं, मैंने बहुत खाना खाया. फिर मैं घर चली गई थी. एक महीने में मैं उस स्ट्रेस से निकली. इससे मुझे सीख भी मिली, क्योंकि यहाँ कुछ भी हो सकता है. इसलिए अधिक आशावादी होना ठीक नहीं. काम करते रहना चाहिए. 

सवाल-फिल्मों और वेब शो में इंटिमेट सीन्स बहुत होते है, उसे करने में आप कितनी सहज होती है?

ये स्क्रिप्ट्स पर निर्भर करता है. सब ओटीटी पर ऐसी सीन्स का होना जरुरी नहीं. इंटिमेट सीन्स करना आसान नहीं होता. अभी तक मैंने किया नहीं है. आगे बता नहीं सकती. 

सवाल-किस तरीके की फिल्मों में आगे काम करने की इच्छा रखती है?

मुझे फेंटासी और बहुत सारी एक्शन वाली फिल्म करना पसंद है. टॉम क्रूज़ सभी एक्शन को खुद करते है, जो बहुत ही अच्छे स्तर का होता है. मैं पिछले फिल्म से अगला बेहतर करने की कोशिश करती हूं. 

सवाल-किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

एक फेस बुक एड मैंने किया था. उससे मेरी जिंदगी काफी बदली है. इसे देखकर इंडस्ट्री के लोगों ने बहुत तारीफे की, जो बहुत अच्छा लगा. 

सवाल-मुंबई की कौन सी बात आपको पसंद है?

मुंबई की हर बात अच्छी है, लेकिन सबसे बड़ी चीज है, मुंबई में रहकर खुद को एमपावर्ड महसूस करना. यहाँ डरने की कोई बात नहीं होती, जबकि नार्थ इण्डिया में ये डर हमेशा बना रहता है. कपडे कुछ भी पहने कोई आपको कुछ नहीं कहता. 

सवाल-आप कितनी फैशनेबल है?कितनी फूडी है?

मुझे फैशन खूब पसंद है, जिसमें मुझे स्ट्रीट साइड फैशन अधिक अच्छा लगता है.

मुझे खाने में मीठा बहुत पसंद है. अभी आलू की कोई भी डिश मुझे पसंद आ रही है. लॉक डाउन में मैंने गुलाब जामुन, केक, बर्गर, गोलगप्पे आदि कई चीजे बनाई है. 

सवाल-आउटसाइडर नए कलाकारों को क्या कहना चाहती है?

सबकी जर्नी अलग होती है. अपनी लाइफ को एन्जॉय करें, लेकिन थोड़ी दूरदर्शिता भी रखें. अनुशाषित और योजनाबद्ध तरीके से रहने पर काम मिलने में आसानी होती है.

सवाल-क्या कोई मेसेज देना चाहती है? 

आज के लोग धीरज खोते जा रहे है, जो ठीक नहीं.  सबको प्यार देने की कोशिश करने की जरुरत है, ताकि गुस्से का प्रभाव कम हो. इसके अलावा घर पर रहकर खुद को कोरोना संक्रमण से बचाए.

 

प्रैग्नेंसी में किन बातों का रखें ध्यान

प्रैग्नेंट होना किसी भी महिला के जीवन में सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है, क्योंकि वह अब अपने अंदर एक और धड़कन को महसूस करती है. आने वाले मेहमान को लेकर सपने संजोती है. अगर आप अपने परिवार की प्लानिंग करने जा रही है तो ये सुनि‍श्चिैत कर लेना बहुत जरूरी है कि मां बनने के लिए आप शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार है या नही.

क्योंकि प्रैग्नेंसी किसी भी महिला के लिए अनमोल पल होता है. इस दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को सभी से तरह-तरह की सलाह भी मिलती रहती हैं, जैसे ये मत खाओ, वो मत खाओ, यहां मत जाओ, ऐसे में मत उठो और पता नहीं क्या-क्या. वैसे राय देना गलत नहीं है, लेकिन कई बार अलग-अलग राय के चक्कर में प्रैग्नेंट महिला उलझन में आ जाती हैं. खासतौर से वो महिलाएं, जो पहली बार मां बनने जा रही हैं.
लेकिन कुछ बातों की जानकारी एक प्रैग्नेंट महिला को भी पता होनी चाहिए ताकि किसी के ना होने पर वह अपना सही से ध्यान रख सके और उसका सही से पालन कर सके नही तो आप सुखद क्षण को आप परेशानी में भी बदल सकती है. इसलिए इस लेख में जानिए कि प्रैग्नेंसी में क्या करना चाहिए क्या नही, साथ ही अपने आहार में किन चीजों को सम्मलित करना चाहिए और किन चीजों को नही.

प्रैग्नेंट होने पर क्या ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कुछ उठते बैठते चलते फिरते वक्त बहुत चीजों का ध्यान रखना पड़ता है.

प्रैग्नेंसी में ज्यादा ना झुकें –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा न झुकें क्योंकि यह गर्भ में पल रहें शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है.
इसके लिए चाहे आपकी पहली, दूसरी या तीसरी तिमाही ही क्यों ना हो आप ध्यान रखें कि आप ज्यादा न झुकें. ऐसा करने से गर्भपात, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में पल रहे शिशु को हानि पहुंच सकती है. अगर आप झुक भी रही हैं, तो झटके से न झुके.

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प्रैग्नेंसी ने ज्यादा देर तक खड़ी ना रहे –

प्रैग्नेंसी के दौरान ज्यादा देर तक या एक ही स्थिति में खड़े न रहें, ऐसा करने से परेशानी हो सकती है. क्योंकि ऐसा करने से आपके पैरों में सूजन आ सकती है.
साथ ही ज्यादा देर तक खड़े रहने से प्रैग्नेंसी में समस्या, वक्त से पहले प्रसव या फिर गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो सकती है.

भारी चीजें न उठाएं – प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजें उठाने से जितना हो सके उतना बचें. क्योंकि प्रैग्नेंसी के दौरान भारी चीजों को उठाने से गर्भपात का खतरा हो सकता है.

प्रैग्नेंसी में अपने आहार में किन चीजों को शामिल करें.

लगभग हर प्रैग्नेंट महिला यही चाहती है कि जन्म के समय उसका बच्चा स्वस्थ और तंदुरुस्त हो. इसलिए प्रैग्नेंट महिलाएं अपने आहार में कई तरह के नई चीजों को शामिल करती हैं. इस लेख में हम प्रैग्नेंसी के दौरान खान-पान के संबंध में जानकारी दे रहे हैं.

डेयरी उत्पादों का सेवन करें-

शिशु के विकास के लिए ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम की जरूरत होगी. एक प्रैग्नेंट महिला के शरीर को रोजाना 1,000mg कैल्शियम की जरूरत होती है इसलिए, आप अपने खान-पान में डेयरी उत्पादों को जरूर शामिल करें. इसके लिए आप डाइट में दही, छाछ व दूध आदि जैसे डेयरी उत्पाद को शामिल करें.
क्योंकि यह प्रैग्नेंट महिला और गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए फायदेमंद होते हैं. साथ ही यह ध्यान रखें कि आप सिर्फ पॉश्चरीकृत डेयरी उत्पादों का ही इस्तेमाल करें.

ब्रोकली और हरी पत्तेदार सब्जियां का सेवन करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को अपने खान-पान में हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर शामिल करनी चाहिए. इसलिए आप अपने डाइट में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली (एक प्रकार की गोभी), आदि सब्जियां जरूर खाएं. पालक में मौजूद आयरन प्रैग्नेंसी के दौरान खून की कमी को दूर करता है.

सूखे मेवों का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में सूखे मेवों को भी अपने खान-पान में जरूर शामिल करें.
क्योंकि मेवों में उपस्थित कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर व ओमेगा 3 फैटी एसिड आदि पाए जाते है जो प्रैग्नेंसी अवस्था के लिए अच्छे होते हैं.
अगर आपको एलर्जी नहीं है, तो अपने खान-पान में काजू, बादाम व अखरोट आदि को शामिल करें.
अखरोट में भरपूर मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. इसके अलावा, बादाम और काजू भी प्रैग्नेंसी में फायदा पहुंचा सकते हैं. अगर आपको एलर्जी हो तो काजू बादाम व अखरोट ना खाएं.

साबूत अनाज का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी के दौरान साबूत अनाज को अपने आहार में जरूर शामिल करें. खासतौर के तब जब आप प्रैग्नेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही में ही क्योंकि की इस दौरान साबूत अनाजों का सेवन फायदेमंद होता है. इससे आपको भरपूर कैलोरी मिलती है, जो गर्भ में शिशु के विकास में मदद करती है. आप साबूत अनाज के तौर पर ओट्स, किनोआ व भूरे चावल आदि को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन अनाजों में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा, इनमें फाइबर, विटामिन-बी और मैग्नीशियम भी मौजूद होता है, जो प्रैग्नेंसी में फायदा पहुँचतें है.

फलों के जूस और फल का सेवन करें-

प्रैग्नेंसी में महिला को तरह-तरह के मौसमी फलखाने चाहिए. हो सके तो उन्हें संतरा, तरबूज व नाशपाती आदि जैसे फलों को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए. इसके अलावा आप इन फलों का जूस भी पी सकती हैं.
दरअसल एक प्रैग्नेंट महिला को अलग-अलग तरह के चार रंगों के फल खाने की सलाह दी जाती है .
वसा और कैलोरी में उच्च खाद्य पदार्थों की जगह रोज फल व सब्जियों के कम से कम पांच हिस्से खाएं. साथ ही पैकेड फ्रूट जूस का सेवन बिल्कुल ना करें.

प्रैग्नेंसी में हमें अपने आहार में क्या शामिल नही करना चाहिए.

कई सारी ऐसी चीजें हैं, जिनका सेवन प्रैग्नेंट महिलाओं को कतई नहीं करना चाहिए. क्योंकि ऐसी चीजों को खाने से प्रैग्नेंट महिलाओं को नुकसान हो सकता इसलिए इन चीजों से परहेज करना चाहिए.

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कच्चे अंडे का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिलाओं को कभी भी अधपके व कच्चे अंडे का सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इससे सालमोनेला संक्रमण का खतरा हो सकता है. इस संक्रमण से प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की समस्या उत्तपन्न हो सकती है.

शराब व धूम्रपान के सेवन से बनाएं दूरी-

स्वास्थ्य के लिए नशीली चीजों का सेवन हानिकारक होता है.
खास कर प्रैग्नेंट महिलाओं को नशीली चीजों से दूरी बना कर रखना चाहिए. प्रैग्नेंट महिलाओं को शराब व धूम्रपान नहीं करना चाहिए दरअसल इसका प्रभाव सीधे गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है.
शराब व धूम्रपान के सेवन से भ्रूण के दिमागी और शारीरिक विकास में बाधा आती है, साथ ही गर्भपात होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कैफीनयुक्त चीजों का सेवन न करें-

प्रैग्नेंसी में चाय, कॉफी और चॉकलेट जैसी चीजों में कैफीन पाया जाता है, इसलिए इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए साथ ही डॉक्टर भी बहुत कम मात्रा में कैफीन लेने की सलाह देते हैं.
क्योंकि ज्यादा मात्रा में कैफीन लेने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है तथा जन्म के समय शिशु का वजन भी कम रह सकता है. हालांकि, प्रैग्नेंसी के दौरान रोजाना 200 मिलिग्राम तक कैफीन के सेवन को सुरक्षित माना जाता है पर इससे ज्यादा मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

उच्च स्तर के पारे वाली मछली व कच्चे मांस का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंसी में मछली खाना फायदेमंद होता है, लेकिन प्रैग्नेंट महिलाओं को ऐसी मछलियों को खाने से बचना चाहिए, जिन मछलियों के शरीर में पारे का स्तर अधिक होता है. जैसे कि स्पेनिश मेकरल, मार्लिन या शार्क, किंग मकरल और टिलेफिश जैसी मछलियों में पारे का स्तर ज्यादा होता है, इसलिए मछलियों को सेवन से भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है. कच्चे मांस के सेवन करने से टॉक्सोपलॉस्मोसिस से संक्रमित कर हो सकती है. जिससे कि गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए कभी भी कच्चे मांस का सेवन ना करें अच्छे से पका कर मांस को खाये.

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता व कच्ची अंकुरित चीजों का सेवन नही करना चाहिए-

प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाना असुरक्षित होता है. कच्चे पपीते में ऐसा केमिकल पाया गया है, जिससे कि भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, प्रैग्नेंसी में कच्चा पपीता खाने से बचें.
साथ ही कच्ची अंकुरित दालों में साल्मोनेला, लिस्टेरिया और ई-कोलाई जैसे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है. इसके कारण प्रैग्नेंट महिला को उल्टी और दस्त की शिकायत हो सकती है.

क्रीम दूध से बनी पनीर का सेवन ना करें-

प्रैग्नेंट महिला को क्रीम दूध से बनी हुई पनीर का सेवन नही करना चाहिए.
दरअसल इस तरह के पनीर को बनाने में पॉश्चरीकृत दूध का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, क्रीम दूध में लिस्टेरिया नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है. इस बैक्टीरिया की वजह से गर्भपात व समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ जाता है.

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बिना धुली हुई सब्जियां और फलों के सेवन से बचना चाहिए-

प्रैग्नेंट महिलाओं की किसी भी फल और सब्जी को खाने से पहले उसे अच्छी तरह धोना चाहिए क्योंकि बिना धुली हुई सब्जी और फल में टॉक्सोप्लाज्मा नाम का बैक्टीरिया मौजूद होता है, जिससे शिशु के विकास में बाधा आ सकती.

सफलता के लिए जरुरी है दृढ़ संकल्पी होना

इस दुनिया में अनेको  ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प के बल पर मनचाही सफलता प्राप्त  की है . बिना विचलित हुए दृढ़ संकल्प और कर्म कर अनगिनत लोगों ने आश्चर्यजनक सुपरिणाम हासिल किये हैं. किसी परेशानी, मुसीबत और बाधा से उनके कदम रुके नहीं. वे अपने संकल्प को ध्यान में रख जुटे रहे और सफल हुए. सफल होने वाले व्यक्ति किसी और ग्रह के वासी या हाड़-मांस के अलावा किसी और चीज के बने नहीं होते.

वे सिर्फ यह जानते थे कि दृढ़ संकल्प के बल पर ही अपना लक्ष्य पाप्त किया जा सकता हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि केवल दृढ़ संकल्प से काम चलने वाला नहीं है. लक्ष्य पाप्ति के लिए निराशा से मुक्ति पाकर हर अनुकूल-पतिकूल स्थिति में अपना उत्साह बनाए रखना, समय का एक पल भी नष्ट न करना, परिश्रम से न घबराना, धैर्य बनाए रखना, समुचित कार्ययोजना बनाकर अमल में लाना आदि पर ध्यान केन्दित करना आवश्यक है.यदि आप किसी व्यक्ति की सफलता का रहस्य पूछें तो वह यही बताएगा कि उसने “ान लिया था कि वह ऐसा कर के या बन के रहेगा, चाहे कुछ भी हो जाए और इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े. दुनिया की कोई शक्ति उसे विचलित नहीं कर सकती. किसी व्यक्ति को हो सकता है सफलता आसानी से या संयोगवश मिल गयी हो. ऐसा अपवाद स्वरूप ही हो सकता है. इस पकार के किसी संयोग का इन्तजार में भाग्य के भरोसे  सफलता पाने की सोचना मूर्खता के सिवा कुछ और नहीं. हां, उपयुक्त अवसर को कभी छोड़ना नहीं चाहिए. इसकी पहचान अपने विवेक और दूरदृष्टि से की जा सकती है.

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इच्छाशक्ति संकल्प जैसे बहुमूल्य सिक्के का दूसरा पहलू है. यह हमारे संकल्प को दृढ़ता पदान करती है. इसलिए अपनी इच्छाशक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए. इससे हमें निराशा जैसी नकारात्मक स्थिति से भी छुटकारा मिलता है. ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि और अनेकानेक संसाधनों के अलावा संकल्प करने की क्षमता भी पदान की है. संकल्प कर लेने के बाद अपने पिछले कार्यों, व्यवहार, अभ्यास, आदतों आदि पर स्वयं अपने आलोचक बनकर दृष्टि डालनी चाहिए. संकल्प कर्म के बिना व्यर्थ है. गलत ढंग से और बिना कार्य योजना के कर्म करते जाना भी व्यर्थ है. स्वयं अपने पति, अपने संकल्प के पति और अपने पयासों के पति ईमानदार रहना बेहद जरूरी है.

शिक्षा और कॅरियर ही नहीं व्यवहार व आदतों के मामले में भी संकल्प महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संकल्प तथा कर्म से मिली सफलता किसी पैमाने से नापना व्यर्थ है. कोई सफलता छोटी या बड़ी नहीं.

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