मासूमी चिल्लाई, ‘‘देखा प्रकाश, सारा झगड़ा इसी का शुरू किया है. बित्ते भर का है और मांबाप का मुकाबला कर रहा है.’’
‘‘चुप रह वरना एक कस कर पड़ेगा. पापा की चमची कहीं की,’’ राकेश लालपीला हो कर बोला.
प्रकाश भी तमक उठा, ‘‘दिमाग फिर गया है तुम लोगों का…उधर वे लड़ रहे हैं इधर तुम. कोई मानने को तैयार नहीं है.’’
‘‘आप माने थे…’’ राकेश ने पलट- वार किया तो प्रकाश उसे मारने दौड़ा.
उसी समय अंदर से कुछ टूटने की आवाजें आईं. मासूमी दौड़ कर अंदर गई तो देखा पिताजी हाथ में क्रिकेट का बैट लिए शो केस पर तड़ातड़ मार रहे हैं.
राकेश द्वारा पाकेटमनी जोड़ कर खरीदा गया सीडी प्लेयर और सारी सीडी जमीन पर पड़ी धूल चाट रही थीं…शोपीस टुकड़ेटुकड़े हो कर बिखरा पड़ा था.
मासूमी हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘पापा, प्लीज, शांत हो जाएं.’’
लेकिन सुरेशजी की जबान को लगाम कहां थी, गालियों पर गालियां देते चीख रहे थे, ‘‘तू हट जा. एकएक को देख लूंगा. बहुत खिलाड़ी, गवैए बने फिरते हैं पर मैं ये नहीं होने दूंगा. इन को सीधा कर दूंगा या जान से मार डालूंगा.’’
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प्रकाश का जवान खून भी उबाल खा गया, ‘‘हां, हां, मार डालिए. रोजरोज के झगड़ों से तो अच्छा ही है.’’
सरला और मासूमी ने मिल कर प्रकाश को बाहर धकेलना चाहा और राकेश ने बाप को पकड़ा पर कोई बस में नहीं आ रहा था.
मासूमी ने घबरा कर इधरउधर देखा तो बहुत सारी आंखें उन की खिड़कियों से झांक रही थीं और कान दरवाजे से चिपके हुए थे. बस, यही वह समय था जब मासूमी का सिर चकराने लगा. उसे लगा कि वह गहरे पाताल में धंसती जा रही है, जहां न उसे मां की बेबसी का होश था न पिता के गुस्से का और न भाइयों की बगावत का.
मासूमी को होश आया तो सारा माहौल बदला हुआ था. पिता सिर झुकाए सिरहाने बैठे थे, मां पल्लू से आंखें पोंछ रही थीं, भाई हाथपैर सहला रहे थे. पिता का गुस्सा तो साबुन के बुलबुलों की तरह बैठ गया था पर मां सरला आज मौके का फायदा उठा कर फिर बोल उठी थीं, ‘‘जवान बच्चों के लिए आप को अपनी आदतों और कड़वाहटों पर काबू पाना चाहिए. यह नहीं कि घर में घुसते ही हुक्म देना शुरू कर दें.’’
प्रकाश ने उन्हें चुप कराया, ‘‘मां, बस भी करो. देख नहीं रही हैं मासूमी की हालत.’’
सुरेशजी मासूमी की हालत देख खामोश और शर्मिंदा थे तो मांबेटों की तकरार चालू थी. सब एकदूसरे को दोष दे रहे थे. पिता का कहना था कि अगर बच्चों पर लगाम न कसो तो वे बेकाबू हो जाएंगे. बच्चों का कहना था, ‘‘पापा हमें हर बात पर बस डांटते हैं. घर से बाहर रहो तो घर में रहने का आदेश, घर पर रहो तो टोकाटाकी. गाने सुनें तो हमें भांड बनाने लगते हैं. दोस्तों के साथ खेलें तो उसे आवारागर्दी कहते हैं. हम तो यहां बस मां के कारण चुप हैं वरना…’’
सरला बेटों को चुप करा रही थीं, ‘‘चुप रहो, जवान हो गए हो तो इस का मतलब यह नहीं कि पिता के सामने जबान खोलो.’’
सब मिल कर मासूमी को एहसास दिलाना चाह रहे थे कि कोई किसी का दुश्मन नहीं. हां, झगड़े तो होते ही रहते हैं. देखो, तुम्हें तकलीफ हुई तो सब तुम्हारी चिंता में बैठे हैं.
मां ने मासूमी के बाल सहलाए, ‘‘सब लड़झगड़ कर एक हो जाते हैं पर तुम बेकार में उसे दिल में पाल लेती हो…’’
मासूमी बिखर गई, ‘‘मां, आप को अच्छा लगे या बुरा पर सच यह है कि गलती आप की भी है. आप को यही लगता है कि पिताजी ने कभी आप की कद्र नहीं की लेकिन मैं जानती हूं कि पापा के मन में आप के लिए क्या है. आप घर नहीं होतीं तो आप को पूछते हैं. आप की बहुत सी बातों की सराहना निगाहों से करते हैं पर कहना नहीं आता उन्हें. लेकिन उन की तकलीफदेह बातों के कारण आप का ध्यान उन की इन बातों पर नहीं जाता. इसी कारण पापा पर गुस्सा आने पर आप बच्चों के सामने पापा की कमजोरियां गिनवाती हैं और फिर बच्चे उन को आप की पीठ पीछे बुराभला कहते हैं,’’ मासूमी बोल रही थी और सरला चोर सी बनी सब बातें सुन रही थीं.
सुरेशजी भी मासूमी की हालत से घबराए थे. हमेशा ही गुस्सा ठंडा होने पर वह एकदम बदल जाते. उन्हें बीवीबच्चों पर प्यार उमड़ आता था. आज भी यही हुआ. वे उठे और टूटा शोपीस, सीडी प्लेयर उठा कर गाड़ी में रखने लगे. टूटी सीडी के नाम, नंबर नोट करने लगे. मासूमी खामोशी से लेटी देख रही थी कि अब पापा बाजार जा कर सब नया सामान लाएंगे. आइसक्रीम, मिठाई से फ्रिज भर जाएगा. मां के लिए नई साड़ी, भाइयों को पाकेटमनी मिलेगी. प्यार से समझाएंगे कि बेटा, अभी तुम लोगों का ध्यान पढ़ने में लगना चाहिए. मैं तो चाहता हूं कि तुम लोग खाओपियो, हंसोबोलो.
पिताजी खुश होंगे तो सब के साथ बैठे दुनियाजहान की बातें करेंगे. मां भी चहकती फिरेंगी. बस, 2 दिन बाद ही जरा सी कोई बात होगी तो फिर हंगामा शुरू हो जाएगा. मासूमी का तो कालेज जाना भी बंद हो चुका था. यों वहां जाने पर भी हमेशा की तरह मन धड़कता था कि कहीं फिर दोनों भाइयों में, मांबाप में झगड़ा न हो गया हो. कहीं मौसी और बूआ अपनेअपने पतियों से झगड़ कर न आ बैठी हों. बस, यही हालात थे जिन के कारण मासूमी को पुरुषों से नफरत हो गई थी, जिस में उस के पिता, भाई, फूफा, मौसा सभी शामिल थे. सारे पुरुष उसे जल्लाद लगते थे, जो सिर्फ स्त्रियों पर अपना हक जता कर उन्हें नीचा दिखाना चाहते थे. इस से बचने के लिए वह इतना ही कर सकती थी कि मर्दों के साए से दूर रहे.
आज उस के भाई अच्छाखासा कमा कर परिवार वाले हो गए थे. एक मासूमी ही थी जिस के लिए सबकुछ बेकार हो चला था. अब यह रिश्ता फिर से हाथ आया था और मासूमी ने फिर से इनकार कर दिया था. इस बार सुरेशजी को गुस्सा तो बहुत आया फिर भी खुद पर काबू पा कर वे मासूमी को समझा रहे थे, ‘‘यह क्या नादानी है. तुम्हारी इतनी उम्र होने पर भी यह रिश्ता आया है. अब कहीं न कहीं तो समझौता करना ही पड़ेगा. खुशियां दरवाजे पर खड़ी हैं फिर तुम्हें क्या परेशानी है? या तो तुम्हें मुझे यह बात स्पष्ट समझानी होगी वरना मैं अपने हिसाब से जो करना है कर दूंगा.’’
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कुछ समय मासूमी सिर झुकाए खड़ी रही फिर हिम्मत कर के बोली, ‘‘आप मुझ से जवाब मांग रहे हैं तो सुनिए पापा, मैं हार गई हूं खुद से लड़तेलड़ते. बहुत सोचने के बाद मुझे विश्वास हो गया है कि मैं मां जैसी हिम्मत व सब्र नहीं रखती. मैं नहीं चाहती कि मेरे पिता द्वारा जो व्यवहार मेरी मां से किया गया वही व्यवहार कोई और व्यक्ति मेरे साथ करे.
‘‘औरत होने के नाते मैं उस औरत के दुख को महसूस कर सकती हूं जो मेरी मां है. हो सकता है कि विवाह के बाद मैं भी व्यावहारिकता में जा कर सबकुछ सह लूं पर मैं इतिहास दोहराना नहीं चाहती. आप के, मां व परिवार के बीच होने वाले झगड़ों ने मेरे अस्तित्व को ही जैसे खोखला व कमजोर बना दिया है. मुझे नहीं लगता कि मैं अब किसी परिवार का हिस्सा बनने लायक हूं. एक अनजाना सा डर मुझे हर खुशी से दूर ही रखेगा. इसलिए आप मुझे माफ कर दें और रिश्ते के लिए मना कर दें.’’
इतना कह कर वह दोनों हाथों से मुंह छिपा कर फूटफूट कर रो दी और कमरे में भाग गई. मासूमी की बात सुन कर सुरेशजी सन्न रह गए. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि आएदिन घर में होने वाले झगड़े उन की बेटी की जिंदगी में ऐसा गहरा निशान छोड़ जाएंगे कि उस की जिंदगी की खुशियां ही छिन जाएंगी. जिंदगी के कटघरे में आज वे अपराधी बन सिर झुकाए खड़े थे.