Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-3)

प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से थरथराती हुई राहुल को मारने के लिए झपटी. वह तेजी से हटा तो सामने रखी टेबल से अल्पना टकराई और जमीन पर गिर गई. असहनीय दर्द से पेट पकड़ कर वह वहीं बैठ गई.

राहुल ने उसे उठाना चाहा तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘मुझे छूना मत…तुम ने मुझे धोखा दिया…तुम मेरी जिंदगी में न कभी थे, न हो और न ही रहोगे…चले जाओ मेरे घर से.’

राहुल अपना सामान समेट कर चला गया…पूरी रात वह रोती रही. पेट दर्द सहा नहीं गया तो उठ कर उस ने पेन किलर खा लिया. अल्पना को बारबार यही लगता रहा कि क्यों उसे किसी का प्यार और विश्वास नहीं मिलता. पहले मातापिता और अब राहुल…खैर सुबह तक पेटदर्द तो ठीक हो गया था पर मन अभी भी ठीक नहीं हुआ था.

क्या करे इस बच्चे का…माना कि यह बच्चा उस की जिंदगी में जबरदस्ती आ गया है पर है तो उस का अपना अंश ही न, वह अकेली कैसे इस बच्चे की परवरिश कर पाएगी…क्या अपने बच्चे को वह प्यारदुलार और अपनत्व दे पाएगी जिस के लिए वह अपने मातापिता को दोष देती रही थी.

मन में अजीब सी कशमकश चल रही थी. अपने कैरियर के लिए जहां वह बच्चे का बलिदान देना चाहती थी वहीं उस के प्रति स्नेह भी जागने लगा था. वह जानती थी कि बिना विवाह के मां बनना समाज सह नहीं पाएगा…उस के मातापिता सुनेंगे तो जीतेजी ही मर जाएंगे. आज न जाने क्यों मां के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे, जो उन्होंने उसे राहुल के साथ रहते देख कहे थे, ‘बेटा, माना कि मैं तुझे उतना प्यार, दुलार नहीं दे पाई जिस की तू आकांक्षी थी. मैं अपराधिनी हूं तेरी…पर मेरे किए की सजा तू खुद को तो न दे. आज भी हमारा समाज विवाहपूर्व संबंधों को मान्यता नहीं देता है, ऐसे संबंध अवैध ही कहलाएंगे.’

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उस समय तो वह सिर्फ वही करना चाहती थी जिस से उस के मातापिता को चोट पहुंचे…राहुल, जिस पर उस ने विश्वास किया उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. बारबार राहुल के शब्द उस के दिलोदिमाग में गूंज कर उस के अस्तित्व को नकारने लगते कि मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो.

कभी मन करता कि आत्महत्या कर ले पर तभी मन उसे धिक्कारने लगता…उसे अपनी वार्डन के शब्द याद आते कि जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद ही कठिन, पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है.

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आफिस में छुट्टी की अर्जी भिजवा दी थी. कशमकश इतनी ज्यादा थी कि उस का न बाहर निकलने का मन कर रहा था और न ही किसी से मिलने का. पेट में दर्द उठता पर वह डाक्टर को दिखाने के बजाय दर्दनाशक दवा खा कर दबाने की कोशिश करती रही.

एक दिन जब वह ऐसे ही दर्द से तड़प रही थी तभी बीना मिलने आ पहुंची, उस की ऐसी दशा देख कर वह अचंभित रह गई तथा उसे जबरन अपनी गाड़ी में बिठा कर डाक्टर के पास ले गई…

डाक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा.

सोनोग्राफी की रिपोर्ट देख कर डाक्टर उस पर बहुत गुस्सा हुई तथा बोली, ‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम गर्भवती हो.’

उस को कोई उत्तर न देते देख वह फिर बोली, ‘तुम लड़कियों की यही तो समस्या है…जरा भी सावधानी नहीं बरततीं…क्या पेट में तुम्हें कोई चोट लगी थी…अपने पति को बुलवा लो, क्योंकि तुम्हारा शीघ्र आपरेशन करना पड़ेगा. लगता है किसी चोट के कारण तुम्हारा बच्चा मर गया है और उसी के इन्फेक्शन से पेट में दर्द हो रहा है.’

डाक्टर की बात सुन कर वह दोनों चौंक गईं. बीना ने बात बनाते हुए कहा, ‘डाक्टर, आपरेशन कब करना पडे़गा. दरअसल इन के पति कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन का इतनी जल्दी आना संभव नहीं है.’

‘आपरेशन कल ही करना पड़ेगा. कोई तो रिश्तेदार होंगे…उन्हें जल्द बुलवा लो…हम इन्हें आज ही एडमिट कर लेते हैं.’

बीना ने अल्पना को देखा फिर डाक्टर की ओर मुखातिब होती हुई बोली, ‘डाक्टर, मैं ही इन की जिम्मेदारी लेती हूं क्योंकि इन का कोई भी रिश्तेदार इतनी जल्दी नहीं आ सकता.’

अल्पना के मना करने पर भी बीना ने उस के मातापिता को फोन कर दिया था. उन्होंने तुरंत आने की बात कही. उन के आने से पहले ही वह आपरेशन थिएटर में जा चुकी थी. बेहोशी की हालत में भी डाक्टर के शब्द उस के कानों में पड़ ही गए, ‘इस के यूट्रस में इन्फेक्शन इतना फैल गया है कि अगर निकाला नहीं तो जान जाने का खतरा है. बाहर जा कर इन के रिश्तेदारों से इजाजत ले लो.’

उस के बाद क्या हुआ पता नहीं. सुबह जब आंख खुली तो मम्मीपापा को अपने पास बैठा पाया. उन को देखते ही उस की नफरत फिर से भड़क उठी थी, अगर उसे उन का प्यार और अपनत्व मिलता तो उस के साथ ऐसे हादसे ही क्यों होते? अगर उस समय नर्स नहीं आती तो वह पता नहीं क्याक्या कह बैठती.

‘‘बेटा, कुछ खा ले वरना ताकत कैसे आएगी?’’ आवाज सुनते ही अल्पना अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. नर्स पता नहीं कब चली गई थी. मां हाथ में फलों की प्लेट लिए खाने का इसरार कर रही थीं तथा उन के पास ही बैठे पापा आशा भरी नजरों से उसे देख रहे थे. उस ने बिना कुछ कहे ही मुंह फेर लिया क्योंकि वह जानती थी कि मां की आंखों से आंसू बह रहे होंगे पर वह अपने दिल के हाथों विवश थी.

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बारबार एक ही विचार उस के मन में आ रहा था कि माना मातापिता उस की उचित परवरिश न कर पाने के लिए दोषी थे पर हर सुविधा मिलने के बावजूद उस ने भी कौन सा अच्छा काम किया. दूसरों को दोष देना तो बहुत आसान है पर जिंदगी बनानाबिगाड़ना तो इनसान के अपने हाथ में है.

अल्पना समझ नहीं पा रही थी कि कुदरत ने औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है कि एक छोटा सा आंधी का झोंका उस के सारे वजूद को हिला कर रख देता है. सब से ज्यादा दुख तो उसे इस बात का था कि हादसे में उस के गर्भाशय को निकाल देना पड़ा…अपूर्ण औरत बन कर वह कैसे जीएगी?

मां ने तो अपने कैरियर के लिए उस की तरफ ध्यान नहीं दिया पर उस ने तो उन्हें दुख देने के लिए ही यह सब किया…उस का तो यही हश्र होना था. पर वह अभी भी नहीं समझ पा रही थी कि सजा किसे मिली?

Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-2)

पूर्व कथा

अस्पताल में पड़ी अल्पना की आंखों में अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा.

अल्पना संपन्न परिवार के कामकाजी मातापिता की इकलौती बेटी थी. मातापिता की व्यस्तता के कारण अल्पना ने बोलनाचलना दादी और आया की गोद में सीखा था.

10 वर्ष की होने पर उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वह छुट्टियों में घर आती थी. लेकिन व्यस्तता के कारण उस के मातापिता के पास उस के लिए समय नहीं था. धीरेधीरे अल्पना के मन में अपने मातापिता के प्रति नफरत पनपने लगी.

एक बार वह छुट्टियों में अपनी सहेली स्नेहा के घर जाती है. वहां जा कर उसे घर और मां के स्नेह का एहसास होता है.

अपने घर आने पर वही सूनापन उस पर हावी होने लगता है और वह वापस होस्टल लौट जाती है.

दोबारा छुट्टियां पड़ने पर वह वार्डन को घर जाने से मना कर देती है. सभी लोग उसे समझाते हैं पर अल्पना साफ इनकार कर देती है. होस्टल में सभी लोग उस के मातापिता के बारे में पूछते हैं लेकिन अल्पना कारण पूछने पर चुप्पी साध लेती है. नतीजा यह होता है कि फर्स्ट टर्म में वह फेल हो जाती है. अब आगे…

गतांक से आगे…

अल्पना की यह दशा देख कर एक दिन मिस सुजाता ने उसे बुला कर कहा था, ‘बेटा, तुम्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आता है…यही अकेलापन, यही सूनापन…मैं ने भी सबकुछ भोगा है…अपने मातापिता के मरने के बाद चाचाचाची के ताने, चचेरे भाईबहनों की नफरत…सब झेली है मैं ने. पर मैं कभी जीवन से निराश नहीं हुई बल्कि जितनी भी मन में चोटें पड़ती गईं, उतनी ही विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का साहस मन में पैदा होता गया.

‘जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है…न जाने तुम ने यह कैसी ग्रंथि पाल ली है कि तुम्हारे मातापिता तुम्हें प्यार नहीं करते हैं…हो सकता है उन की कुछ मजबूरी रही हो जिसे तुम अभी समझ नहीं पा रही हो.

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‘तुम्हारे मातापिता तो हैं पर जरा उन बच्चों के बारे में सोचो जो अनाथ हैं, बेसहारा हैं या दूसरों की दया पर पल रहे हैं…फिर ऐसा कर के तुम किसे कष्ट दे रही हो, अपने मातापिता को या खुद को…जीवन तो तुम्हारा ही बरबाद होगा…जीवन बहुत बहुमूल्य है बेटा, इसे व्यर्थ न होने दो.’

दूसरों की तरह वार्डन का समझाना भी उसे बेहद नागवार गुजरा था…पर उन की एक बात उस के दिमाग में रहरह कर गूंज रही थी…जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, पर कुछ सार्थक करना बेहद कठिन…उस ने सोच लिया था कि अब से वह दूसरों के बारे में न कुछ कहेगी और न ही कुछ सोचेगी…जीएगी तो सिर्फ अपने लिए…आखिर जिंदगी उस की है.

सब तरफ से ध्यान हटा कर उस ने पढ़ने में मन लगा लिया…पहले जहां वह ऐसे ही पास होती रही थी अब मेरिट में आने लगी. सभी उस में परिवर्तन देख कर चकित थे. हायर सेकंडरी में उस ने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया. इस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली आई. कंप्यूटर साइंस में बी.एससी. करने के बाद वहीं से एम.एससी. करने लगी पर तब भी वह अपने घर नहीं गई. इस दौरान उस के मातापिता ही मिलने आते रहे पर वह निर्विकार ही रही.

एक बार उस की मां ने कहा, ‘बेटा, 1-2 अच्छे लड़के मेरी निगाह में हैं, अगर तू देख कर पसंद कर ले तो हमारी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.’

‘किस जिम्मेदारी की बात कर रही हैं आप? अब तक आप ने कौन सी जिम्मेदारी निभाई है? जब बच्चे को मां का आंचल चाहिए तब आप ने मुझे क्रेच में डाल दिया, जब एक बेटी को मां के प्यार और अपनेपन की जरूरत थी तब होस्टल में डाल दिया…यह भी नहीं सोचा कि आप की मासूम बेटी अपने नन्हेनन्हे हाथों से खाना कैसे खाती होगी, कैसे स्कूल के लिए तैयार होती होगी…

‘आप को मुझ से नहीं, अपने कैरियर से ही प्यार था…बारबार आप क्यों आ कर मेरे दंश को और गहरा कर देती हैं…मैं ने तो मान लिया कि मेरा कोई नहीं है…आप भी यही मान लीजिए…जहां तक विवाह का प्रश्न है, मुझे विवाह के नाम से नफरत है…ऐसे बंधन से क्या लाभ जिस में 2 इनसान जकड़े तो रहें पर प्यार का नामोनिशान ही न हो…दैहिक सुख से उत्पन्न संतान के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तक न हो.’

मां चली गई थीं. उन की आंखों से निकलते आंसू उसे सुकून दे रहे थे, मानो उस में दिल नाम की चीज ही नहीं रह गई थी…तभी तो उन्हें देखते ही न जाने उसे क्या हो जाता था कि वह जहर उगलने लगती थी…पर यह भी सच है कि उन के जाने के बाद वह घंटों अपने ही अंतर्कवच में कैद बैठी रह जाती थी.

एक ऐसे ही क्षण जब वह अपने कमरे में अकेली बैठी थी तब राहुल ने अंदर आते हुए उस से कहा, ‘अंधेरे में क्यों बैठी हो, अल्पना…याद नहीं है प्रोजेक्ट के लिए डाटा कलेक्ट करने जाना है.’

‘बस, एक मिनट रुको…ड्रेस चेंज कर लूं,’ अंतर्कवच से बाहर निकल कर उस ने कहा था.

राहुल उस का क्लासमेट था…पढ़ाई में जबतब उस की मदद किया करता था, प्रोजेक्ट भी उन्हें एक ही मिला था अत: साथसाथ आनेजाने के कारण उन में मित्रता हो गई थी.

एक दिन वे प्रोजेक्ट कर के लौट रहे थे. राहुल को परेशान देख कर उस ने परेशानी का कारण पूछा तो राहुल ने कहा, ‘मेरा मकान मालिक घर खाली करने को कह रहा है, समझ में नहीं आता कि क्या करूं, कहां जाऊं. 1-2 जगह पता किया तो किराया बहुत मांगते हैं और उतना दे पाने की मेरी हैसियत नहीं है.’

‘तुम मेरा रूम शेयर कर लो. हम दोनों साथ पढ़ते हैं, साथसाथ जाते हैं…एक जगह रहने से सुविधा हो जाएगी.’

‘पर….’

‘पर क्या? मैं किसी की परवा नहीं करती…जो मुझे अच्छा लगता है वही करती हूं.’

दूसरे दिन ही राहुल शिफ्ट हो गया था. उस की मित्र बीना ने उस के इस फैसले पर विरोध करते हुए उसे चेतावनी भी दी थी पर उस का यही कहना था कि उसे किसी की परवा नहीं है, उस की जिंदगी है, जैसे चाहे जीए. किसी को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है.

बीना ने यह सब कुछ अल्पना की मां को बता दिया तो वह उसे समझाने आईं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो मां ने पैसा न भेजने का निर्णय सुना दिया. इस पर उस ने भी क्रोध में कह दिया था, ‘आज तक आप ने दिया ही क्या है…सिर्फ पैसा ही न, अगर वह भी नहीं देना चाहतीं तो मत दीजिए, मुझे उस की भी कोई परवा नहीं है.’

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मां रोते हुए और पापा क्रोधित हो कर चले गए थे. उस दिन उसे बेहद सुकून मिला था. पता नहीं क्यों जबजब वह मां को रोते हुए देखती, उसे लगता जैसे उस के दुखते घावों में किसी ने मरहम लगा दिया हो.

उसी दिन न जाने उसे क्या हुआ कि उस ने राहुल के सामने समर्पण कर दिया. राहुल ने आनाकानी भी की तो वह बोली, ‘जब मुझे कोई परेशानी नहीं है तो तुम्हें क्यों है? फिर मैं विवाह के लिए तो कह नहीं रही हूं. हम जब चाहेंगे अलग हो जाएंगे.’

पढ़ाई पूरी होते ही उन की नौकरी लग गई. किंतु एक ही शहर में होने के कारण उन का संबंध कायम रहा.

पूरी सावधानी बरतने के बाबजूद एक दिन अल्पना को लगा जैसे उस के शरीर में कुछ ऐसा हो रहा है जो वह पहली बार महसूस कर रही है. वह राहुल को इस बारे में बताना चाहती ही थी कि उस ने कहा, ‘अल्पना, मांपिताजी विवाह के लिए जोर डाल रहे हैं, अब मुझे दूसरा घर ढूंढ़ना होगा.’

राहुल की बात सुन कर अल्पना चौंक गई और बोली, ‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. और मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो?’

‘कैसी हालत?’ राहुल बोला.

‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘यह तुम्हारी प्रोब्लम है, इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

‘सहयोगी तो तुम भी रहे हो.’

‘वह तो तुम्हारी वजह से…तुम्हीं ने कहा था कि जब मुझे एतराज नहीं है तो तुम्हें क्यों है…अब तुम भुगतो?’

‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो…तुम तो मेरे मित्र, हमदर्द रहे हो.’

‘देखो अल्पना, पिताजी मेरा विवाह तय कर चुके हैं और उन्हें मना करना मेरे लिए संभव नहीं है. फिर मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो और विवाह से पहले ही अपना शरीर किसी को दे देने में उसे कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता हो.’

‘परंपराओं की दुहाई मत दो, राहुल. तुम भी विवाह से पहले संबंध बना चुके हो. क्या तुम उस लड़की के साथ अन्याय नहीं करोगे जिस के साथ तुम विवाह कर रहे हो?’

‘मेरी बात और है, मैं पुरुष हूं… फिर तुम्हारे पास प्रमाण क्या है?’

आगे पढ़ें- प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से…

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Serial Story: सजा किसे मिली (भाग-1)

नन्ही अल्पना के मातापिता के पास अपनी मासूम बेटी के लिए समय नहीं था. ऊपर से उन के द्वारा लगाई गई पाबंदियां थीं, सो अलग. अकेलेपन की शिकार अल्पना के बालमन में धीरेधीरे अपने मातापिता के प्रति नफरत के बीज अंकुरित होने लगे.

अल्पना की आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया. मां फौरन उस के पास आ कर बोलीं, ‘‘कैसी है, बेटी. इतनी बड़ी बात तू ने मुझ से छिपाई… मैं मानती हूं कि अच्छी परवरिश न कर पाने के कारण तू अपने मातापिता को दोषी मानती है पर हैं तो हम तेरे मांबाप ही न…तुझे दुखी देख कर भला हम खुश कैसे रह सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, आप इन से ज्यादा बातें मत कीजिए…इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,’’ उसी समय राउंड पर आई डाक्टर ने मरीज से बातें करते देख कर कहा तथा नर्स को कुछ जरूरी हिदायत देती हुई चली गई.

अल्पना कुछ कह पाती उस से पहले ही नर्स आ गई तथा उस ने उस के मम्मीपापा से कहा, ‘‘इन की क्लीनिंग करनी है, कृपया थोड़ी देर के लिए आप लोग बाहर चले जाएं.’’

नर्स साफसफाई कर रही थी पर अल्पना के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह समझ नहीं पा रही कि उस से कब और कहां गलती हुई…उसे लगा कि मातापिता को दुख पहुंचाने के लिए ऐसा करतेकरते उस ने खुद के जीवन को दांव पर लगा दिया…अतीत की घटनाओं के खौफनाक मंजर उस की आंखों के सामने से किताब के एकएक पन्ने की तरह आ- जा रहे थे.

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वह एक संपन्न परिवार से थी. मातापिता दोनों के नौकरी करने के कारण उसे उन का सुख नहीं मिल पाया था. जब उसे मां के हाथों का पालना चाहिए था तब दादी की गोद में उस ने आंखें खोलीं, बोलना और चलना सीखा. वह डेढ़ साल की थी कि दादी का साया उस के ऊपर से उठ गया. अब उसे ले कर मम्मीपापा में खींचतान चलने लगी, तब एक आया का प्रबंध किया गया.

एक दिन ममा ने आया को दूध में पानी मिला कर उसे पिलाते तथा बचा दूध स्वयं पीते देख लिया. उस की गलती पर उसे डांटा तो उस ने दूसरे दिन से आना ही बंद कर दिया…अब उस की समस्या उन के सामने फिर मुंहबाए खड़ी थी. दूसरी आया मिली तो वह पहली से भी ज्यादा तेज और चालाक निकली. उसे अकेला छोड़ कर वह अपने प्रेमी के साथ गप लड़ाती रहती…पता लगने पर ममा ने उसे भी निकाल दिया…

वह 2 साल की थी, फिर भी उस के जेहन में आज भी क्रेच की आया का बरताव अंकित है. उस के स्वयं खाना न खा पाने पर डांटना, झल्लाना, यहां तक कि मारना…पता नहीं और भी क्याक्या… दहशत इतनी थी कि जब भी मां उसे क्रेच में छोड़ने के लिए जातीं तो वह पहले से ही रोने लगती थी पर ममा को समय से आफिस पहुंचना होता था अत: उस के रोने की परवा न कर वह उसे आया को सौंप कर चली जाती थीं.

जब वह पढ़ने लायक हुई तब स्कूल में उस का नाम लिखवा दिया गया. स्कूल की छुट्टी होती तो कभी ममा तो कभी पापा उसे स्कूल से ला कर घर छोड़ देते तथा उस से कहते कि उन के अलावा कोई भी आए तो दरवाजा मत खोलना और न ही बाहर निकलना. देखने के लिए दरवाजे में आई पीस लगवा दिया था.

एक दिन वह पड़ोस में रहने वाले सोनू की आवाज सुन कर बाहर चली गई तथा खेलने लगी तभी ममा आ गईं. खुला घर तथा उसे बाहर खेलते देख वह क्रोधित हो गईं…दूसरे दिन से वह उसे बाहर से बंद कर के जाने लगीं…एक दिन उसे न जाने क्या सूझा कि घर की पूरी चीजें जो उस के दायरे में थीं, उस ने नीचे फेंक दीं…उस दिन उस की खूब पिटाई हुई और मम्मीपापा में भी जम कर झगड़ा हुआ.

ममा की परेशानी देख कर सोनू की मम्मी ने स्कूल के बाद उसे अपने घर छोड़ कर जाने के लिए कहा तो वह बहुत खुश हुई…साथ ही मम्मीपापा की समस्या भी हल हो गई. 4 साल ऐसे ही निकल गए. पर तभी सोनू के पापा का तबादला हो गया. फिर वही समस्या.

बड़ी होने के कारण अब उस के स्कूल का समय बढ़ गया था तथा अब वह पहले से भी ज्यादा समझदार हो गई थी. उस ने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था, ममा के आदेशानुसार वह उन के या पापा के आफिस से आने पर उन की आवाज सुन कर ही दरवाजा खोलती, किसी अन्य की आवाज पर नहीं. एकांत की विभीषिका उसे तब भी परेशान करती पर जैसेजैसे बड़ी होती गई उसे पढ़ाने और होमवर्क कराने को ले कर मम्मीपापा में तकरार होने लगी.

अभी वह 10 वर्ष की ही थी कि उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वहां मम्मीपापा हर महीने उस से मिलने जाते, उस के लिए अच्छीअच्छी गिफ्ट लाते, पूरा दिन उस के साथ गुजारते पर शाम को उसे जब होस्टल छोड़ कर जाने लगते तो वह रो पड़ती थी. तब ममा आंखों में आंसू भर कर कहतीं, ‘बेटा, मजबूरी है. जो मैं कर रही हूं वह तेरे भविष्य के लिए ही तो कर रही हूं.’

वह उस समय समझ नहीं पाती थी कि यह कैसी मजबूरी है. सब के बच्चे अपने मम्मीपापा के पास रहते हैं फिर वह क्यों नहीं…पर धीरेधीरे वह अपनी हमउम्र साथियों के साथ घुलनेमिलने लगी क्योंकि सब की

एक सी ही

कहानी थी…वहां अधिकांशत: बच्चों को इसलिए होस्टल में डाला गया था क्योंकि किसी की मां नहीं थी तो किसी के घर का माहौल अच्छा नहीं था, किसी के मातापिता उस के मातापिता की तरह ही कामकाजी थे तो कोई अपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए उन्हें वहां दाखिल करवा गए थे.

छुट्टी में घर जाती तो मम्मीपापा की व्यस्तता देख उसे लगता था कि इस से तो वह होस्टल में ही अच्छी थी. कम से कम वहां बात करने वाला कोई तो रहता है. धीरेधीरे उस के मन में विद्रोह पैदा होता गया. उसे मम्मीपापा स्वार्थी लगने लगे. जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उसे पैदा तो कर दिया पर उस की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते.

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आखिर एक बच्चे को अच्छे कपड़ों, अच्छे खिलौनों के साथसाथ और भी तो कुछ चाहिए, यह साधारण सी बात वह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या जानतेबूझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं. एक बार उस ने पूछ ही लिया, ‘मैं आप की ही बेटी हूं या आप कहीं से मुझे उठा तो नहीं लाए हैं.’

उस की मनोस्थिति समझे बिना ही ममा भड़क कर बोलीं, ‘कैसी बातें कर रही है…कौन तेरे मन में जहर घोल रहा है?’

मम्मा आशंकित मन से पापा की ओर देखने लगीं. पापा भी चुप कहां रहने वाले थे. बोल उठे, ‘शक क्यों नहीं करेगी. कभी प्यार के दो बोल बोले हैं. कभी उस के पास बैठ कर उस की समस्याएं जानने की कोशिश की है…तुम्हें तो बस, हर समय काम ही काम सूझता रहता है.’

‘तो तुम क्यों नहीं उस से समस्याएं पूछते…तुम भी तो उस के पिता हो. क्या बच्चे को पालने की सारी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है.’

दोनों में तकरार इतनी बढ़ी कि उस दिन घर में खाना ही नहीं बना. ममा गुस्से में चली गईं. लगभग 10 बजे पापा हाथ में दूध तथा ब्रैड ले कर आए और आग्रह से खाने के लिए कहने लगे पर उसे भूख कहां थी. मन की बात जबान पर आ ही गई, ‘पापा, अगर किसी को मेरी आवश्यकता नहीं थी तो मुझे इस दुनिया में ले कर ही क्यों आए? मेरी वजह से आप और ममा में झगड़ा होता है…मुझे कल ही होस्टल छोड़ दीजिए. मेरा यहां मन नहीं लगता.’

पापा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं कहते बेटा, यह तेरा घर है.’

‘घर, कैसा घर, पापा…मैं पूरे दिन अकेली रहती हूं. आप और ममा आते भी हैं तो सिर्फ अपनीअपनी समस्याएं ले कर. मेरे लिए आप दोनों के पास समय ही नहीं है.’

पापा उदास मन से आफिस चले गए थे पर उस दिन उसे अपने मन में बारबार उमड़ती बात कहने पर बहुत संतोष मिला था…

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे…गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

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घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

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बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

 

BBB 3: शहनाज गिल को छोड़ इस एक्ट्रेस के साथ रोमांस करेंगे सिद्धार्थ शुक्ला

बिग बौस 13 के विनर रह चुके एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों वह शहनाज गिल के साथ एक म्यूजिक वीडियो में रोमांस करते नजर आए थे तो वहीं अब एक नई हसीना के साथ कैमेस्ट्री दिखाते नजर आएंगे. दरअसल, एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला जल्द एक्ट्रेस सोनिया राठी जल्द ब्रोकन बट ब्यूटीफुल के तीसरे सीजन में दिखेंगे, जिसका टीजर आउट हो चुका है. आइए आपको बताते हैं क्या है वेब सीरीज में खास…

एकता कपूर के साथ काम करेंगे सिद्धार्थ

वेब सीरीज ब्रोकन बट ब्यूटीफुल सीजन 3 में सिद्धार्थ शुक्ला और सोनिया राठी बतौर लीड एक्टर नजर आएंगे. मेकर्स ने एक नया म्यूजिकल टीजर जारी किया है, जिसमें दोनों की कैमेस्ट्री देखने लायक है. शो में सिद्धार्थ शुक्ला, अगस्तस्य की भूमिका निभाने के लिए काफी एक्साइटेड हैं, जिसे शेयर करते हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा. ‘मैं ब्रोकन बट ब्यूटीफुल के अगले सींजन के साथ अपने जुड़ाव को लेकर एक्साइटेड हूं. यह शो काफी पसंद किया गया था. मैंने इस शो के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनी है. मैं एकता कपूर के साथ इस शो में काम करने को लेकर उत्साहित हूं. मैं उनका सम्मान करता हूं और मैं काम करने के लिए आतुर हूं.’

 

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शूटिंग होगी जल्द शुरू

सिद्धार्थ के साथ स्क्रीन शेयर करने वाली एक्ट्रेस सोनिया एक उभरती हुईं एक्ट्रेस है और वह शो में रूही की भूमिका में नजर आने वाली हैं, जिसे लेकर उनका कहना है कि ‘मुझे रूमी की भूमिका बहुत पसंद आई, वह जिन चीजों के लिए अपना स्टैंड लेती है या अपनी बात रखती है, वह बहुत अच्छी बात है. इस शो में भावनाओं का उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा.’ ब्रोकन बट ब्यूटीफुल सीजन 3 की शूटिंग जल्द शुरू होगी.

 

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बता दें, फैंस के बीच शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला की जोड़ी काफी पसंद की जाती है, जिसके चलते दोनों बीते दिनों टोनी और नेहा कक्कड़ के न्यू सौंग शोना शोना की म्यूजिक वीडियो में काम करते नजर आए थे, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. अब देखना होगा कि इस फिल्म पर शहनाज का क्या रिएक्शन देखने को मिलता है.

 

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Bigg Boss 14: कविता कौशिक से अभिनव शुक्ला की लड़ाई पर बोले पति रौनित, लगाए गंभीर आरोप

बीते दिन कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस 14 में 2 कंटेस्टेंट एजाज खान और अभिनव शुक्ला फाइनलिस्ट बन चुके हैं, जिसके बाद अब घर के अन्य सदस्य रुबीना दिलाइक, राहुल वैद्य, जैस्मीन भसीन और निक्की तम्बोली के सिर पर एलिमनेशन की तलवार लटक रही है. वहीं कविता कौशिक बड़ी लड़ाई के बाद शो से खुद ही बाहर हो चुकी हैं. लेकिन इस लड़ाई का असर शो से बाहर देखने को मिल रहा है…

घर में हुई थी लड़ाई

बिग बौस 14 से बाहर हुईं कविता कौशिक ने शो में रुबीना दिलाइक को धमकी दी थी कि वह उनके पति अभिनव शुक्ला की सच्चाई पूरी दुनिया को बताने वाली हैं. वहीं यह भी कहा थी कि वह घर से बाहर निकलने पर रुबीना को बताएगी. हालांकि रुबीना ने कविता को शो में ही करारा जवाब दिया था.

 

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कविता के पति ने लगाया ये आरोप

कविता कौशिक (Kavita Kaushik) के बाद अब उनके पति रोनित बिश्वास ने अभिनव शुक्ला की पोल सरेआम खोल दी है. इतना ही नहीं रोनित बिश्वास ने अभिनव शुक्ला पर सनसनीखेज आरोप लगाते हुए  लिखा है कि ‘मुझे लगता है कि अब सच्चाई बताने का समय आ चुका है. टीवी पर नजर आ रहा ये इंसान एक जेंटलमैन नहीं है. अभिनव शुक्ला को एल्कोहल लेने की आदत है. उसने नशे की हालत में मेरी पत्नी को कई बार फोन किया है. वो मेरी पत्नी से आधी रात में मिलना चाहता था. इसके अलावा भी बहुत कुछ है, जो अभिनव शुक्ला के बारे में बताया जा सकता है. एक बार तो हालत ऐसी हो गई थी कि मुझे और मेरी पत्नी को उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवानी पड़ गई थी.’

अभिनव के मदद मांगने की कही बात


वहीं एक के बाद एक ट्वीट करते हुए रोनित बिश्वास ने लिखा, ‘ये वही इंसान है जिसने हमसे काम की भीख मांगी है. अभिनव शुक्ला मेरे घर पर मदद मांगने आया था. वह एक फिल्म बनाना चाहता था. केवल अभिनव शुक्ला के लिए हमने उस फिल्म में काम करने के लिए कोई फीस नहीं ली. मैंने उसे अपने घर में शूटिंग करने की जगह दी. वह अपने घर पर कुछ कारणों के चलते शूटिंग नहीं कर पा रहा था. अब अभिनव शुक्ला बोल रहा है कि वो उसी महिला से बदला लेगा. वो अपने आप को मर्द कहता है. क्या ये वाकई सच है.’

 

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बता दे, अभिनव शुक्ला के अलावा रुबीना दिलैक भी इन दिनों स्टार्स के निशाने पर हैं. जहां एक तरफ औकात की बात को लेकर राहुल वैद्य की गर्लफ्रैंड उन्हें सुना रही हैं. तो वहीं शो में अपने को स्टार्स का नाम भूलने पर सुदेश बैरी और काम्या पंजाबी काफी खफा चल रहे हैं.

आखिर किसे एक्सपोज करना चाहती हैं मिर्जापुर 2 की एक्ट्रेस प्रशंसा शर्मा

बहुमुखी प्रतिभा की धनी प्रशंसा शर्मा वास्तव में बधाई की पात्र है. वह लेखक, भारत नाट्यम नृत्यांगना, कराटे में ब्लैक बेल्ट धारी, गायक व अभिनेत्री हैं. झारखंड के झुमरी तलैया निवासी प्रशंसा शर्मा की शिक्षा देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में हुई, फिर उन्होने दिल्ली के हिंदू कॉलेज से दर्शन शास्त्र में स्नातक तक की पढ़ाई की. उसके बाद थिएटर करती रहीं. इसी बीच उन्हें स्कॉलरशिप मिल गयी, तो वह प्राग चली गयी. वहां पर अभिनय की पढ़ाई करने के साथ ही यूरोपीय सिनेमा में न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि वहां पर एक फिल्म लिखी थी, जिसमें उन्होने अभिनय किया था. पर अपनी मातृभाषा और अपने वतन में काम करने की इच्छा के चलते वह वापस भारत आकर बॉलीवुड पहुंच गयी. यहा पर कुछ फिल्मों में छोटे किरदार निभाए. उसके बाद ‘फोर मोर शॉट्स’, ‘मिर्जापुर’, ‘मिर्जापुर 2’मे अभिनय किया. इन दिनों ‘आल्ट बालाजी’और ‘जी 5’की वेब सीरीज‘‘बिच्छू का खेल’’में  पूनम तिवारी के किरदार में नजर आ रही हैं.

प्रशंसा शर्मा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत इस प्रकार रही.

‘‘झुमरी तलैया’’जैसी छोटी जगह से मुंबई आकर कैरियर बनाने का अनुभव क्या रहा?

-बहुत मुश्किल रहा. पर मजा भी आया. बहुत संघर्ष रहा. क्योंकि हमें पता ही नहीं था कहां-कहां कहां औडीशन हाते हैं. मैं बहुत भटकी हूं. अब तो यह याद नही कि हमने कितनी बार औडीशन दिया, कितनी बार रिजेक्ट हुई, कितनी बार फिल्म मिलते मिलते भी नहीं मिली. मेरे लिए यह यात्रा बहुत ही सुंदर रही. मैंने अपने मुकाम को देखना छोड़ दिया है. बस, जिस तरह से चीजें सामने आ रही है, उसे ही इंज्वॉय करती जा रही हूं. मेरे काम की प्रशंसा करने वालों की मैं शुक्रगुजार हूं. हो सकता है कि आगे मुझे प्रशंसा ना भी मिले, तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं.

मैं मूलतः झारखंड के झुमरी तलैया से जरूर हूं, लेकिन 8 साल की उम्र के बाद मैं वहां रही नहीं हूं.  मेरे माता पिता ने मुझे बोर्डिंग स्कूल भेजा. वहां से भी मुझे कई सारे अच्छे अच्छे अनुभव मिले. एक्सपोजर मिला . उसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी काफी अच्छा अनुभव मिला. फिर प्राग में पढ़ाई करने का अवसर मिला. मैं बचपन से ही बहुत स्वतंत्र रही हूं. मेरे माता पिता ने मुझे हमेशा हर काम खुद से करने के लिए सिखाया है. मुझे कुछ भी, कभी भी तैयार नहीं मिला. हर चीज के लिए मेहनत करनी पड़ी. इसीलिए मुंबई मेरे लिए बहुत ज्यादा अच्छा रहा है. बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव रहे हैं. आज मैं इस बात के लिए खुश हूं कि मुझे बहुत अच्छे अनुभव मिले है. मुझे सफलता व असफलता की कद्र पता है.

मुंबई पहुंचने पर आपको किस तरह के संघर्ष से जूझना पड़ा?

-मुझे दूसरों के मुकाबले कुछ कम संघर्ष करना पड़ा. वास्तव में मुंबई पहॅुचने के बाद मैने सीधे अभिनेत्री के तौर पर फिल्में पाने का संघर्ष नहीं किया. मेरे सामने मंुबई में अपने आपको टिकाए रखने की जरुरत थी. इसलिए ऐसा काम करना था,  जिससे कुछ पैसे मिलते रहें. इसके साथ ही मेरा मकसद फिल्म विधा को और कैमरे के पीछे के काम को भी समझना था. इसलिए मुंबई पहुंचने के बाद मैंने निर्देशक आयप्पपा के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करना शुरू किया. मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैने इंटर्नशिप वहां से शुरू की, बाद में मैने दूसरों के साथ भी सहायक निर्देशक के तौर पर काम किया.

वैसे जब मैं मुंबई पहुंची, तो मेरे मन में डर भी था और अभिनेत्री बनने का एक्साइटमेंट उत्साह भी था. बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए काफी कुछ सीखा और बॉलीवुड की कार्यशैली समझ में आयी. तब मैने धीरे धीरे अभिनय करने के मकसद से आॅडीशन देने शुरू किए. काफी रिजेक्शन हुए. कुछ फिल्में मिली, पर फिर हाथ से निकल गयीं. मुझे पता था कि अभिनय कैसे करना है, पर मुंबई पहुंचने के बाद यहां लोगों को बताना पड़ता है कि मैं अभिनय कर सकती हूं. तो उस प्रोसेस का हिस्सा बनी.

पहला ब्रेक कैसे मिला?

-मुझे लगता है कि अभिनेत्री के तौर पर मेरा पहला ब्रेक तो बचपन में ही मिल गया था. मैं पांच वर्ष की उम्र से ही स्टेज पर अभिनय करती आयी हूं. पांच वर्ष की उम्र में स्टेज पर एक नाटक का मंचन हो रहा था. मैने देखा कि एक कलाकार खरगोश की तरह स्टेज पर कूद रहा है. तो मुझे लगा कि मैं भी ऐसा कर सकती हूं. तो मैंने भी खरगोश की तरहजंप कूदी. जिसे देखकर निर्देशक ने मुझे खरगोश के किरदार के लिए चुन लिया. यही मेरा पहला ब्रेक था और तभी मुझे अहसास हो गया था कि मुझे यही करना है.

किन किन नाटकों में आपने अभिनय किया है?

-मैं बचपन से ही नाटक करती आयी हूं. स्कूल व कालेज में भी नाटकों में अभिनय किया करती थी. रत्ना पाठक शाह और आदि पदमशी के निर्देशन में नाटक किए हैं. हिंदू कालेज में मैं ड्रामैटिक सोसायटी की हेड थी. उस वक्त नाटक मंे अभिनय व निर्देशन दोनों करती थी. नाट्य फेस्टिवल का हिस्सा बनती थी. नाट्य प्रतियोगिताओं मंे अपने नाटक लेकर जाया करती थी. मैने कई अवार्ड जीते हैं. बंगलोर, दिल्ली सहित कई शहरों के स्कूलों में नाट्य प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय भी गयी थी. मुंबई के पृथ्वी थिएटर, रंगशारदा, एनसीपीए पर मेरे नाटक के शो हुए. हमने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ‘‘द क्यूरिएस्ट लैंप आफ  काटकी’’में अभिनय किया था. अभी अतुल कुमार के संग पृथ्वी पर दस दिन तक एक नाटक‘‘दिस इज आल वेल, व्हेन देअर इज वेल’’.

भारत नाट्यम नृत्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा कहां से ली?

-मुझे चटर्जी शिक्षक ने मुझे डफली बजाना,  हरमोनियम बजाना और गाना सिखाया. जबकि श्रीमती राजलक्ष्मी से मैंने भारत नाट्यम नृत्य सीखा. मैने उनके साथ आठ वर्ष तक भारत नाट्यम किया. मैने आठवीं कक्षा में भारत नाट्यम विषय के साथ परीक्षा भी दी थी. 12वीं में संगीत और भारत नाट्यम मेरे विषय थे. बचपन से ही मुझे नाटकों में अभिनय करना, गीत गाना और नृत्य करने का शौक रहा है.

आपने यूरोप में कौन सा सिनेमा किया?

-मैने यूरोपीय सिनेमा में लघु फिल्में काफी की हैं. मैंने ‘डर्टी लांड्री’, ‘मारा’, ‘स्वीट’जैसी फिल्में की.  मुझे बूरो कापिला संग काम करने का मौका मिला था. मैने कुछ लोगों के साथ मिलकर पटकथा लिखी थी फिर बूनो कापिला ने उसे निर्देशित किया था. इसके अलावा फ्रांस की कई इंडीपेंडेंट कंपनियों के साथ मैने काम किया था. जब मैं प्राग के स्कूल मंे गयी थी, उस वक्त प्राग के कई इंडीपेंडेंट फिल्मकारों के साथ जुड़ने का सौभाग्य मिला था. मुझे सामने से बुलाकर अभिनय के काम दिए जाते थे और मुझे मजा भी आता था, वहां पर काम करते हुए.

आपने वहीं रहकर यूरोपीय सिनेमा में काम करने की बजाय मुंबई वापस क्यों आ गयी?

-मुझे इस बात का अहसास था कि मेरी मातृभाषा हिंदी है और मुझे अंग्रेजी अच्छी आती है. मुझे वहां पर रूसी या फ्रांसीसी व अन्य भाषाओं में काम करना पड़ रहा था, जो कि काफी कठिन हो रहा था. मैने सोचा कि क्यों न मैं बॉलीवुड जाकर अपनी भाषा में काम करुं. इसी सोचा के साथ मैं मुंबई वापस लौटी. फिर अपना वतन, अपना ही होता है. इसके अलावा इन दिनों भारत में जिस तरह की वेब सीरीज व कुछ फिल्में बन रही हैं,  लिखी जा रही है, जिस तरह की कहानियों पर काम हो रहा है, ऐसा तेज गति से बदलाव दुनिया के किसी भी कोने में नहीं आया है. यहां ढेर सारी वेब सीरी बन रही हैं. तो मुझे लगा कि अभिनय करने के लिए भारत से बेहतर जगह कोई हो हीं नहीं सकती. लेकिन मैं अंतरराष्ट्रीय सिनेमा, क्रास ओवर सिनेमा,  यूरोपियन सिनेमा भी करना चाहूंगी. पर फिलहाल वेब सीरीज व फिल्मों के संदर्भ में भारत से ज्यादा उत्साह जनक जगह कोई और नही है.

आपने यूरोप में फिल्म लिखी थी. भारत पहुॅचने के बाद आपने लेखन मंे रूचि नहीं दिखायी?

-मैं अपना प्रोडक्शन हाउस चलाती हूं, जिसका नाम है-‘‘डाक्यू प्रोडक्शन’’. जिसके तहत अब तक मैंने कई विज्ञापन फिल्में बनायी हैं. कुछ ब्रांड फिल्में लिखी हैं. मैने एक फिल्म की पटकथा लिखी है, जिसे प्रोड्यूर्स गिल्ड ने दस सर्वश्रेष्ठ पटकथाओं में चुना है. इस पर जल्द ही फिल्म बन जाएगी. इसके अलावा एक अन्य पटकथा भी लिखी है. तो वहीं मैं नित्या मेनन की राइटिंग टीम का भी हिस्सा हूं. उनकी वेब सीरीज में एक लेखक मैं भी हूं. यूरोपीय सिनेमा में काम करने के बाद अब मुंबई में बौलीवुड सिनेमा में काम करते हुए क्या फर्क महसूस करती हैं?

-वहां पर अनुशासन ज्यादा है.

जब अपको पहली बार ‘मिर्जापुर’ में राधिया का किरदार निभाने का आफर मिला था, उस वक्त मन में क्या विचार आए थे?

-किरदार सुनने के बाद मेरे दिमाग में आया था कि इसे मैं निभाउं कैसे? मैने स्क्रिप्ट पढ़ी तो उसमे राधिया के दृश्य काफी कम थे. मैं उपर से इस किरदारो निभाना नहीं चाहती थी. मेरा किरदार छोटा हो या बड़ा, मैं अपने हर किरदार को लेकर एक जैसी मेहनत करती हॅू. जब मेरे पास ‘मिर्जापुर’में राधिया के किरदार का आफर आया, तो मंै इसके लेखक पुनीतकृष्णन से मिली. मैं अपने साथ इस किरदार को लेकर काफी नोट्स तैयार कर ले गयी थी. हम लोगों के बीच काफी चर्चा हुई, उन्हे भी मजा आया. हमने मेहनत करके इस किरदार को गढ़ा. वह घर पर है, पर जब वह कुछ करती है या बोलती है, तभी वह नजर आती है या ‘एलाइव’होती है. उसके बोलेन का ढंग, चाल ढाल, सब कुछ मेरे लिए काफी एक्साइटमेंट रहा.

‘‘आल्ट बालाजी’’की वेब सीरीज‘‘बिच्छू का खेल’’को लेकर क्या कहेंगी?

-इस हास्य व अपराध प्रधान वेब सीरीज में मैं  कॉमेडी करते हुए नजर आ रही हॅंू. मैंने कॉमेडी करते हुए काफी इंज्वॉय किया. ‘मिर्जापुर’ में राधिया जैसा एक गंभीर इंटेंस किरदार निभाने के  बाद जब मेरे पास ‘बिच्छू का खेल’का आफर आया कि इसमें कॉमेडी करनी है, तो मैंने तुरंत लपक लिया. इसके निर्देशक आशीश आर शुक्ला बेहतरीन निर्देशक हैं. मुझे उस वेब सीरीज या फिल्म में काम करने में मजा आता है, जहां मैं निर्देशक के साथ कोलाबरेट कर सकूं, अपना कुछ योगदान दे सकूं. मैं उन अभिनेत्रियों में से नहीं हूं कि सेट पर पहुंचे, संवाद बोले और काम खत्म. निर्देशक आशीश आर शुक्ला के साथ बैठकर मैने अपने पूनम के किरदार पर काफी काम किया,  काफी समय बिताया. मैने भी कुछ लिखा, कुछ संवाद बदले और किरदार को एक नया रंग दिया.

पूनम बहुत मजेदार और रोमांटिक महिला है. वह अपने व पुलिस इंस्पेक्टर निकुंज तिवारी(जीशान कादरी) के साथ समय बिताती हैं. बहुत ही बबली है. फुल आफ लाइफ है. मुझे पूनम के किरदार में कलाकार की हैसियत से काफी कुछ करने का अवसर मिला. यह किरदार राधिया के एकदम विपरीत है.

आप भारत नाट्यम डांसर भी हैं. यह आपके अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

-देखिए, हर तरह के नृत्य में भाव तो लाने ही पड़ते हैं. भारत नाट्यम का जो स्ट्क्चर व अनुशासन है, वह मेरी हर जगह मदद करता है. और मुझे बहुत प्रिय भी है. भारत नाट्यम मुझे अनुशासन में रहने की याद दिलाता रहता है. भारत नाट्यम डांस में ढेर सारे एक्सप्रेशन हैं, भाव भंगिमाएं हैं. मैं बचपन से ही स्टेज पर नृत्य व भारत नाट्यम करती आयी हूं.

आपने भारत नाट्यम के स्टेज शो करने की नहीं सोचती?

-मैं आशा करती हूं कि मुझे किसी वेब सीरीज या फिल्म के अंदर ऐसा कोई किरदार मिले, जिसमें मुझे भारत नाट्यम करने का भी अवसर हो.

अब यूट्यूब  का जमाना है. लोग अपने खुद के गाए हुए गाने यूट्यूब पर डाल देते हैं. आप भी ऐसा कर सकती हैं?

-जी हां! बिलकुल. . . थोड़ा रियाज कर लूं. फिर गाना रिकार्ड कर ‘यूट्यूब’पर डालना शुरू करुंगी. इसके अलावा में कराटे में ब्लैक बेल्ट भी हूं.

आपकी प्रतिभा को देखकर आपके माता-पिता क्या सोचते हैं?

-मेरे माता पिता ने कभी भी मेरे उपर कुछ भी जबरन नहीं थोपा. उन्होने मुझे पढ़ाई के लिए भी ही दबाव नहीं डाला. मुझसे कभी नही कहा कि मुझे डाक्टर या इंजीनियर बनना है. इसी वजह से मैं बचपन से ही पढ़ाई छोड़ कर नाटक, संगीत, नृत्य , कराटे आदि करती रही हूं. मेरे अंदर बहुत ज्यादा एनर्जी है. मैं घंटो तक यह सारी चीजें कर सकती हूं. मेरे माता पिता को मेरे बचपन में ही पता चल गया था कि यह लड़की कला के क्षत्रे मेंं ही कुछ करेगी. वह लोग बहुत ज्यादा सपोर्टिव हैं. उन्होंने मुझे मेरी मर्जी के अनुसार काम करने की पूरी छूट दी. मुझे हमेशा से लगता है कि हम कलाकार के बारे में इतना कुछ पढ़ते हैं, तो उसका कलाकार के माता-पिता किस दौर से गुजरते हैं?हर माता-पिता को उनके बच्चे की काबीलियत पता होती है, ऐसे में जब उनके बच्चे को काम नहीं मिलता है, तो उन पर क्या बीतती है. इसकी कहीं चर्चा नहीं होती. बौलीवुड में हर किसी को वर्षों तक संघर्ष करना पड़ता है. और उस संघर्ष को उसके  माता पिता देखते रहते हैं, जो कि उनके लिए बहुत दर्द पूर्ण होती हैं. मेरे माता-पिता के लिए भी यह बहुत कठिन था, लेकिन फिर भी उन्होंने बहुत प्यार से मुझे संभाला,  सपोर्ट किया.

आपने काफी कुछ लिखा है. आपने फिल्म की पटकथा भी लिखी है. तो आपको ऐसा नहीं लगता है कि आप किसी फिल्म को खुद निर्देशित भी करें?

-नहीं. . . मैं निर्देशन नहीं करूंगी. पर मैं अपनी लिखी हुई पटकथा वाली फिल्म में अभिनय जरुर करूंगी. सिद्धांत मेरे सह लेखक है. बहुत सारी चीजें हम लोग साथ में लिखते हैं.  जाहिर सी बात है कि मैं जो लिखूंगी,   उसमें अभिनय करना चाहूंगी. मगर निर्देशन नही करना चाहती.

आपको किस तरह की किताबे पढ़ने का शौक है?

-मैं बहुत पढ़ती हूं. मेरे पसंदीदा लेखक मिलिंद तोमर है. मैं चाहती हूं कि मैं उर्दू सीख लूं, ताकि और अच्छे अच्छे लेखकों को पढ़ सकूं. मिलन कुंडेरा मेरा फेवरेट अॉथर है. मुझेफिलॉसफी के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. मैंने फिलॉसफी विषय के साथ ही स्नातक की डिग्र्री हासिल की है. मुझे भारतीय दर्शन शास्त्र बहुत पसंद है.

दर्शन शास्त्र फिलॉसफी अभिनय में भी बहुत मददगार साबित होती होगी?

-बिलकुल मदद करती है. क्योंकि फिलॉसफी आपको अभिनय करने के लिए फोर्स करती है. यही वजह है कि शायद मैं हर किरदार को को इतना अच्छी तरह से कर पाती हूं और शायद इसी वजह से वह इतना निखर कर आता है. क्योंकि मैं उसके बारे में बहुत ज्यादा सोचती हूं. बहुत अंदर तक पहुंच जाती हूं. क्योंकि फिलॉसफी दर्शन शास्त्र कहीं ना कहीं मुझे मदद करता ही है. मैं एक्टिंग पर आधारित किताबें भी बहुत पढ़ती हूं. मैं हमेशा अपनी कला को निखारती रहती हूं. मैंने जापानी थिएटर से संबंधित कई किताबें पढ़ी हैं. मैं अपने स्किल और अपने अभिनय को बेहतर बनाने का पूरा प्रयास करती रहती हूं.

आपके अब तक के अनुभव क्या कहते हैं?

-जितनी मुझे जानकारी है, उसके आधार पर मुझे लगता है कि मुझे भविष्य में बहुत सारा अच्छा काम करने का अवसर मिलेगा. अभी तो सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है. अभी तो मैंने सिर्फ एक कदम चला है.  अभी तो पूरा रास्ता चलना बाकी है.

किस तरह के किरदार करने में आपकी ज्यादा रुचि है?

-मुझे ऐसे किरदार पसंद है, जिसमें गहराई हो. मुझे वैसा किरदार निभाना है, जो वास्तव में इंसान नजर आए.  मुझे ऐसे किरदार करने में बहुत बहुत ज्यादा  दिलचस्पी है. मैं ऐसा किरदार करना चाहती हूं, जो बहुत कुछ करता हो. मैं कोई ऐसा किरदार निभाना चाहती हूं, जिसे निर्देशक ने पूरी तरह से सोचा है और वह किसी इंसान के बारे में हो. खास तौर पर औरतों के बारे में. पर मुझे ऐसी महिला के किरदार नही निभाने हैं, जिसे महज सेक्स परोसने के नजरिए से फिल्म में रखा जाता है. मुझे ऐसा किरदार निभाना है, जो गलतियां भी करती है.  मुझे उन किरदारों को निभाने में रूचि है, जिसमें इंसान को सही ढंग से दिखाया जाए, औरतों को सही ढंग से दिखाया जाए. औरत भी इंसान है. उसकी भी अपनी इच्छाएं व समझ है. तो मैं मुझे अगर ऐसा कुछ करने को मिला, तो मुझे बहुत खुशी होगी.  मैं जब किसी किरदार को निभाती हूं, तो हमेशा यही कोशिश करती हूं कि मैं उसके अंदर कितना कुछ दे दूं,  ताकि वह एक इंसान की तरह नजर आए, किरदार की तरह नहीं.

बौलीवुड में नारी सशक्तिकरण के नाम पर कुछ रहा है या नहीं?

-शुरुआत तो हो गई है. पर मुझे लगता है कि अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है. अभी इसे बहुत सुधारना है. अभी तो हमने सिर्फ शुरुआत की है, जो कि बहुत अच्छी बात है.  लेकिन फिर भी अभी हमें इसमें बहुत बहुत कुछ करना है.

बौलीवुड फिल्मों में एक्सपोजर बहुत होता है. आपने क्या सीमाएं तय की है?

-इस तरह बता पाना मुश्किल है. पटकथा के आधर पर ही बता सकती हूं. अगर पटकथा पढ़ कर मुझे लगता है कि ऐसा करके ही कहानी आगे बढ़ेगी, तो शायद मैं एक्सपोज कर दूंगी. अगर मुझे ऐसा लगेगा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, यह सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए रखा गया है, तो नहीं करूंगी.

आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?

-ज्यादा खाना खाना खाती हूं. ज्यादा स्पाइसी खाना नहीं खाती. योगा व  वॉकिंग करती हूं. दौड़ती हूं. अगर हम अपनी सही लाइफ स्टाइल को फॉलो करेंगें, तो अपने आप ही फिट रहेंगें.

लॉकडाउन के पांच माह लोग अपने अपने घरों में कैद रहे. उस दौरान आपने कैसे समय बिताया ?

-मैंने लिखा. पहली बार मैंने अपनी खुद की स्क्रिप्ट लिखी, जो कि मेरे लिए बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा. मैंने एक्टिंग के बारे में बहुत कुछ पढ़ा. बहुत सारे आॅन लाइन वर्कशॉप किए. मैंने समय का सही उपयोग किया. मेरे जो शिक्षक थे, उनके साथ वर्कशॉप किया. मैथड वर्क किया. मैंने पिछले साल एक बिल्ली को बचाया था, तो मैंने इस वर्ष एक छोटी बिल्ली को गोद लिया. ताकि पहली वाली को एक दोस्त मिल जाए. इसके अलावा मैंने संगीत का रियाज फिर से शुरू किया. मैं अपने गुरु जी मिस्टर चटर्जी से जूम पर बात करती थी. उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता था.  योगा बहुत किया. मैं पहले एक घंटा योगा करती थी, लेकिन अब मेरे पास समय था. तो ठीक से प्राणायाम करती थी. मेडीटेशन करती थी. मैंने खुद को बहुत संभाला. अच्छा अच्छा खाना बनाया. मुझे महसूस हुआ कि मुझे कितनी कम चीजों की जरूरत है.

आपके पसंदीदा गायक कौन है?

-मेरी पहली पसंदीदा गायक मेरी मां हैं. उन्हें गाने का शौक है. मेरे घर में सभी को गाने का शौक है. मेरी मां भी गाती हैं, वह मेरी पसंदीदा हैं. इसके अलावा रेखा भारद्वाज, ए आर रहमान व लक्की अली मेरे पसंदीदासंगीतकार हैं.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करती हैं?

-मैं सोशल मीडिया पर ज्यादा कुछ नहीं लिखती. मैं ज्यादा से ज्यादा अपनी फोटो लगाती हूं और अपने काम के बारे में लोगों को बताती हूं. अगर कुछ गलत हो रहा है, तो उसको कैसे सही किया जा सकता है, यह जरुर लिखती हूं. नारी सशक्तिकरण को लेकर कुछ लिखनी हूं.

यदि आपको समाज सेवा करने का मौका मिले?

-मैं तो जानवरों के लिए काम कर रही हूं. मैं उन औरतों के साथ काम करना चाहूंगी, जिन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कष्ट सहे हैं, जिन्हें अपनी आवाज उठाने की आजादी नहीं है.  पर हिम्मत नहीं हारी है. अपने आप को स्वतंत्र रूप से रखने की हिम्मत नहीं है, मैं उनकी हमेशा मदद करना चाहूंगी.

कुछ नया कर रही हैं?

-मैं रीमा कागटी संग एक वेब सीरीज ‘‘फालेन’’कर रही हूं, जिसकी शूटिंग इस वर्ष होने वाली थी, लेकिन कोरोनावायरस से की वजह से टल गई.

Interview Tips: ये हैं खुद को प्रैजेंट करने का बेस्ट तरीका

इंटरव्यू फेस करने पर अलग अलग लोगों की, अलग अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं. कुछ लोगों को पसीना छूट जाता है, कुछ लोग सचमुच हंकलाने लगते हैं. कुछ लोग महीनों में याद की गई तमाम बातें उस क्षण भूल जाते हैं, अच्छे अच्छे वाचाल लोगों के मुंह से कई बार एक शब्द भी नहीं निकलता. जबकि कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बड़ी सहजता से इंटरव्यूर को फेस करते हैं और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो आम समय पर भले अपने को स्मार्ट ढंग से पेश न कर पाएं, लेकिन इंटरव्यू देते समय पता नहीं कहां से स्मार्टनेस आ जाती है और वह शानदार इंटरव्यू देते हैं.

सवाल है आखिरकार इंटरव्यू के संबंध में इतनी सारी अलग अलग प्रतिक्रियाएं क्यों होती हैं? न्यूर्याक की पैमेला स्किलिंग्स इंटरव्यू को बेहतर तरीके से देने की कोचिंग देती हैं. उनके मुताबिक इंटरव्यू फेस करना एक किस्म की कला है. यह कला बहुत कम लोगों में होती है. हालांकि पैमेला के मुताबिक इस कला को सीखा जा सकता है. दूसरे शब्दों में इंटरव्यू देते वक्त आत्मविश्वास से भरे होने की कला सीखी जा सकती है. इंटरव्यू देते समय किसी किस्म की दहशत में न आना, कूल बने रहना. ये तमाम कुशलताएं हम अभ्यास के जरिये सीख सकते हैं. ऐसा इंटरव्यू कला की कोचिंग देने वाली पैमेला स्किलिंग्स का मानना है.

क्या इंटरव्यू देने की कला न होने या न सीख पाने की वजह से हमें अपने जिंदगी में इसका नुकसान उठाना पड़ता है? इस सवाल का जवाब है बिल्कुल उठाना पड़ता है. पैमेला के पास ऐसे उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है, जो अच्छा इंटरव्यू न दे पाने की वजह से जिंदगीभर अपनी प्रतिभा और क्षमता से कम आंके गये या उन्हें अपनी क्षमता और प्रतिभा के बराबर सम्मान नहीं मिला. बहरहाल हम यहां ऐसे लोगों के बारे में नहीं जानना चाहते, इनके जिक्र का हमारा मकसद ये है कि हम कैसे इंटरव्यू देने की कला को सीखें, अपनी कमजोरियों से पार पाएं और हम जितने योग्य हैं, कम से कम अपनी योग्यता के बराबर का फल तो पाएं. सवाल है अच्छा इंटरव्यू देने के लिए क्या कला सीखनी होगी?

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जैसा कि हमने शुरु में जिक्र किया कि ऐसे तमाम लोग हैं, जो वैसे तो चीजों के बहुत अच्छे जानकार थे, अपनी जानकारी को बहुत अच्छी तरीके से व्यक्त भी कर लेते थे, लेकिन इंटरव्यू के समय उनमें कंपकंपाहट शुरु हो गई, वो हंकलाने लगे. वे सहज शब्दों का भी अटपटा उच्चारण करने लगे. दरअसल यह सब उनके अंतर्मुखी होने की वजह से था. विशेषज्ञ कहते हैं इन कमियों से छुटकारा पाया जा सकता है. पर सवाल है कैसे? पैमेला ने अपने एक क्लाइंट को सुझाव दिया कि वे सवालों के जवाब पर काम करें. उन्होंने अपने क्लाइंट को बोलने की स्टाइल के बारे में बताया और यह आत्मविश्वास भरा कि अगर अपनी बात शुरु करने के पहले एक दो जुमले में आप हंकला भी जाते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आप फोकस्ड रहें, आप तुरंत ट्रैक पर लौट सकते हैं और अच्छे जवाब देना शुरु कर सकते हैं.

दरअसल इंटरव्यू एक किस्म से अपने आपको बेचने की कला है, अपने आपको बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने का कौशल है. यह तभी संभव है, जब आप अपने आपका सम्मान करें. अपने अंदर यह भावना रखें कि आप भी कुछ हैं. ईमानदारी से चीजों को जानें, पढ़ें, समझें और फिर अपनी समझदारी पर यकीन करें. साथ ही यह भी मानें कि किसी भी सवाल का कोई एक रटारटाया जवाब नहीं हो सकता. अगर आप चीजों को जानते हैं तो आप उन चीजों को कई तरह से प्रस्तुत कर सकते हैं, वह प्रस्तुति आपकी मौलिक होगी. इसलिए इंटरव्यू के समय किसी सवाल का रटारटाया जवाब न याद करें. इंटरव्यू देते समय सवाल पूछने वाले के चेहरे पर नजर मिलाकर आत्मविश्वास से देखें, होंठों से फूट रहे उसके शब्दों की बाॅडी लैंग्वेज समझें और बजाय सवाल के जवाब देने के पहले एक क्षण को यह सोचें कि आखिर यह बंदा जानना क्या चाहता है?

जब आप सवाल को अच्छे ढंग से सुनेंगे तो वह सवाल सिर्फ ध्वनि का एक टुकड़ा नहीं होगा, आपके सामने उसका चित्र बन जायेगा और वह चित्र विस्तार से आपको बता रहा होगा कि ये सवाल आपसे जानना क्या चाहता है? लब्बोलुआब यह कि अगर आप इंटरव्यू देते समय इंटरव्यूर के सवाल को अच्छी तरह से सुनते हैं. उसकी आंखों में आंखें डालकर उसकी बाॅडी लैंग्वेज को समझते हैं तो अगर आप वाकई उस सवाल के बारे में जानते हैं तो तुरंत अपनी जानकारी तक पहुंच जाएंगे और उसके अपने तरीके से व्यक्त कर देंगे. अगर आपको लगता है कि आपने जो सवाल सुना है, उसमें कुछ कंफ्यूजन है, तो बिना इस बात की चिंता किये हुए कि इसका कोई नकारात्मक असर पड़ेगा. आप बड़ी सहजता से कहिये साॅरी, मैं सवाल नहीं समझ सका, कृपया इसे दोहरा दें और इंटरव्यूर के सवाल दोहराते समय अपना अधिकतम फोकस सवाल को समझने में लगाएं. आपको निश्चित रूप से कोई जवाब सूझ जायेगा. यहां तक कि अगर सवाल का जवाब आपने नहीं भी पढ़ा होगा तो सवाल अच्छे से सुनने पर, तो आपको कुछ न कुछ जवाब सूझ ही जायेगा. कहने का मतलब ये है कि आप हंकलाएंगे नहीं और इंटरव्यू अच्छा हो जायेगा.

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प्रैगनैंसी रोकने में क्या कंडोम वास्तव में कारगर उपाय है?

सवाल

मैं 27 वर्षीय अविवाहित युवती हूं और रिलेशनशिप में हूं. फिलहाल शादी की कोई इच्छा नहीं है. सैक्स के दौरान बौयफ्रैंड कंडोम का प्रयोग करता है. मैं जानना चाहती हूं कि प्रैगनैंसी रोकने में क्या कंडोम वास्तव में कारगर उपाय है? क्या 2 कंडोम एकसाथ इस्तेमाल किए जा सकते हैं ताकि सैक्स पूरी तरह सुरक्षित हो?

जवाब-

कंडोम गर्भनिरोध का आसान व बेहतर विकल्प माना जाता है. यह बाजार में सहजता से उपलब्ध भी है. इस का प्रयोग न सिर्फ प्रैगनैंसी बल्कि एसटीडी जैसी समस्याओं से भी शरीर को सुरक्षित रखता है.

सैक्स के दौरान कंडोम का प्रयोग करते हुए गर्भ तभी ठहर सकता है जब कंडोम फट जाए. अमूमन घटिया क्वालिटी के कंडोम के ही फटने का डर रहता है. अत:आप अपने बौयफ्रैंड से इस बारे में खुल कर बात करें. उस से कहें कि वह ब्रैंडेड कंडोम का ही इस्तेमाल करे. ब्रैंडेड कंडोम्स लौंगलास्टिंग होते हैं और जल्द नहीं फटते. अब तो बाजार में कई फ्लेवर्स में कंडोम उपलब्ध हैं, जो सैक्स को और अधिक रोमांचक बनाते हैं.

रही बात 2 कंडोम का एकसाथ प्रयोग करने की, तो इसे उचित नहीं माना जा सकता, क्योंकि सैक्स के दौरान एकदूसरे से रगड़ खाने पर ये फट सकते हैं. यही नहीं कंडोम का फटना एकदूसरे को चरमसुख से भी वंचित कर सकता है.

कंडोम हालांकि गर्भनिरोध का बेहतर साधन है, बावजूद इस के आप चाहें तो सैक्स के दौरान वूमन वैजाइनल कौंट्रासैप्टिव पिल्स का भी प्रयोग कर सकती हैं. इस से आप सैक्स का बिना किसी भय पूरापूरा आनंद ले सकती हैं. मगर बौयफ्रैंड को कंडोम लगाने को जरूर कहें.

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गर्भावस्था में सही खान-पान मां और बच्चे दोनों के लिए बेहद जरूरी होता है. ठीक तरह से खाना लेने से गर्भस्थ्य शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास अच्छी तरह से हो पाता है. कई बार गर्भ के दौरान महिलाओं को इस बात का पता नहीं होता है कि उन्हें किन फलों के सेवन से बचना चाहिए. सही जानकारी का पता होना हर गर्भवती महिला के लिए जरूरी है. इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान किन फलों को और क्यों नहीं खाना चाहिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अगर आपको भी पसंद नहीं पार्टनर की आदतें तो अपनाए ये टिप्स

बंटी और रोशनी कुछ समय पहले ही दोस्त बने थे. हर मुलाकात के दौरान रोशनी को बंटी का व्यक्तित्व और साथ बहुत भला लगता. हर मुलाकात में बंटी वैलडै्रस्ड दिखता, जिस से रोशनी बहुत प्रभावित होती. धीरेधीरे दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बंटी हमेशा रोशनी से स्त्रीपुरुष समानता की बातें करता. अंतत: रोशनी ने बंटी से शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी हुए साल भर भी नहीं बीता था कि रोशनी के सामने बंटी की कई बुरी आदतें उजागर होने लगीं. उसे पता चला कि बंटी तो रोज नहाता भी नहीं है और जब नहाता है, तो नहाने के बाद गीले तौलिए को कभी दीवान पर तो कभी सोफे पर फेंक देता है. रात को सोते समय ब्रश भी नहीं करता है. रोशनी को बंटी से ज्यादा फोन करने की भी शिकायत रहने लगी. अब बंटी की स्त्रीपुरुष समानता की बातें भी हवा हो गईं. शादी के तीसरे ही साल दोनों अलग हो गए.

लव मैरिज की खास बातें

जब भी लव मैरिज की बात होती है तो उस के समर्थन में सब से बड़ा और ठोस तर्क यही दिया जाता है कि इस में दोनों पक्ष यानी लड़का-लड़की एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेते हैं. लेकिन क्या हकीकत में ऐसा हो पाता है? वास्तव में दूर रह कर यानी अलगअलग रह कर किया जाने वाला प्रेम बनावटी, अधूरा और भ्रमित करने वाला हो सकता है. ऐसा प्रेम करना किसी भी युवा के लिए काफी आसान होता है, क्योंकि इस में उसे अपने व्यक्तित्व का हर पक्ष नहीं दिखाना पड़ता. वह बड़ी आसानी से अपनी बुरी आदतें छिपा सकता है. इस प्रकार के प्रेम में ज्यादातर मुलाकातें पहले से तय होती हैं और घर से बाहर होती हैं, इसलिए दोनों ही पक्षों के पास तैयारी करने और दूसरे को प्रभावित करने का काफी समय होता है.

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असली परीक्षा साथ रह कर

घर से बाहर प्रेमीप्रेमिका को एकदूसरे की अच्छी बातें ही नजर आती हैं. विभिन्न समस्याओं के अभाव में कुछ तो नजरिया भी सकारात्मक होता है, तो सामने वाला भी अपना सकारात्मक पक्ष ही पेश करता है. प्रेमी सैंट, पाउडर लगा कर इस तरह घर से निकलता है कि प्रेमिका को पता ही नहीं चल पाता कि वह आज 2 दिन बाद नहाया है. प्रेमिका को यह भी नहीं पता चलता कि उस का प्रेमी अपने अंडरगारमैंट्स रोज बदलता भी है या नहीं. और पिछली मुलाकात में उस के प्रेमी ने जो शानदार ड्रैस पहनी थी वह उसी की थी या किसी दोस्त से मांग कर पहनी थी.

कुल मिला कर लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज, किसी भी जोड़े की असली परीक्षा तो साथ रह कर ही होती है. इस लिहाज से विवाह के स्थायित्व की गारंटी को ले कर लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज में ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही मामलों में साथी का असली रूप तो साथ रह कर ही पता चलता है. दोनों ही तरह की शादियों में यह दावा नहीं किया जा सकता कि जीवनसाथी कैसा निकलेगा?

सामंजस्य भी जरूरी

हम यहां इस बहस में नहीं पड़ रहे कि दोनों तरह की शादियों में कौन सी शादी सही है, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि शादी से पहले किया गया प्रेम शादी के बाद किए जाने वाले प्रेम से आसान होता है. शादी के बाद जोड़े को एकदूसरे के बारे में सब पता चल जाता है. एकदूसरे की असलियत खुल जाती है. अच्छीबुरी सब आदतें पता चल जाती हैं. जिंदगी की छोटीबड़ी समस्याएं भी साथ चलने लगती हैं.

इस के बाद भी यदि उन में प्रेम बना रहता है तो हम उसे असली प्रेम कह सकते हैं. बेशक कुछ लोग इसे समझौता भी कहते हैं, मगर हर रिश्ते का यह अनिवार्य सच है कि कुछ समझौते किए बिना कोई भी, किसी के भी साथ, लंबे समय तक या जिंदगी भर नहीं रह सकता.

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नई नवेली दुल्हन के लिए परफेक्ट हैं दृष्टि धामी की ये साड़ियां

टेलीविजन की पौपुलर एक्ट्रेस में से एक दृष्टि धामी इन दिनों अपनी हौट और बोल्ड फोटोज के लिए सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली दृष्टि ने अपने वर्कआउट की कुछ फोटोज डाली, जो वायरल हो गई. हौट लुक में नजर आने वाली दृष्टि धामी अपने सीरियलों में सिंपल और संस्कारी बहू के रूप में नजर आती हैं. आज हम आपको दृष्टि के कुछ साड़ी लुक्स के बारे में बताएंगे, जिसे नई नवेली दुल्हन या लड़कियां आसानी से किसी पार्टी या गैदरिंग में ट्राय कर सकती हैं.

1. नई दुल्हन के लिए परफेक्ट है ये साड़ी

अगर आप किसी शादी में जाने वाली हैं तो सिंपल रेड कलर की साड़ी के साथ शाइनी रेड ब्लाउज परफेक्ट औप्शन है. आप चाहें तो इस साड़ी के साथ ज्वैलरी के लिए गोल्डन कलर की ज्वैलरी कैरी कर सकती हैं. ये आपके लुक को फ्रेश और ट्रेंडी दिखाने में मदद करेगा.

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2. लाइट कलर भी है दुल्हन के लिए परफेक्ट

 

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अगर आप नई नवेली दुल्हन हैं तो जरूरी नही की आप डार्क और ब्राइट कलर पहने आप कुछ नया ट्राय करते हुए स्काई ब्लू कलर की रफ्फल साड़ी ट्राय कर सकती हैं ये आपके लुक के लिए एकदम परफेक्ट औप्शन है. साथ ही आप ज्वैलरी के लिए हाथ में चूड़े के साथ मैच करती हुई मल्टी कलर ज्वैलरी ट्राय कर सकती हैं.

3. प्रिंटेड रफ्फल साड़ी करें ट्राय

 

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You feel sexy n sleek when u wear @shivanishirali Love the sareee !!! Indonesia event !!! Earrings @lotussutrajewelry

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अगर आप किसी पार्टी के लिए कुछ नया और सिंपल ट्राय करना चाहते हैं तो ये साड़ी आपके लिए अच्छा औप्शन है. रफ्फल साड़ी आजकल ट्रैंड में है. साथ ही इसके साथ प्रिंटेड का कौम्बिनेशन आपके लुक के लिए एकदम परफेक्ट है. ज्वैलरी की बात करें तो आप अपनी साड़ी से मैच करती हुई ज्वैलरी या झुमके ट्राय कर सकती हैं.

4. पिंक कलर के साथ कौम्बिनेशन रहेगा बेस्ट

 

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अगर आप कुछ नया ट्राय करने की शौकीन हैं तो पिंक कलर के कौम्बिनेशन वाली ये साड़ी आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगी. सिंपल क्रीम कलर की साड़ी के साथ पिंक कलर का कौम्बिनेशन देकर आप अपने लुक को ट्रेंडी और फैशनेबल दिखा सकते हैं.

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5. नई दुल्हन करें चैक पैटर्न करें ट्राय

 

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Your wings already exist , all you have to do is Fly !! ?

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आजकल चैक पैटर्न काफी पौपुलर है अगर आप भी चैक पैटर्न की ड्रेसेस ही नही बल्कि साड़ी भी ट्राय कर सकते हैं ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. ये आपके लुक को नया और फ्रेश लुक देगा. आप इस लुक के साथ मैटल की ज्वैलरी भी ट्राय कर सकते हैं.

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