Hindi Kahaniyan : कलंक

Hindi Kahaniyan : अपनी बेटी गंगा की लाश के पास रधिया पत्थर सी बुत बनी बैठी थी. लोग आते, बैठते और चले जाते. कोई दिलासा दे रहा था तो कोई उलाहना दे रहा था कि पहले ही उस के चालचलन पर नजर रखी होती तो यह दिन तो न देखना पड़ता.

लोगों के यहां झाड़ूबरतन करने वाली रधिया चाहती थी कि गंगा पढ़ेलिखे ताकि उसे अपनी मां की तरह नरक सी जिंदगी न जीनी पड़े, इसीलिए पास के सरकारी स्कूल में उस का दाखिला करवाया था, पर एक दिन भी स्कूल न गई गंगा. मजबूरन उसे अपने साथ ही काम पर ले जाती. सारा दिन नशे में चूर रहने वाले शराबी पति गंगू के सहारे कैसे छोड़ देती नन्ही सी जान को?

गंगू सारा दिन नशे में चूर रहता, फिर शाम को रधिया से पैसे छीन कर ठेके पर जाता, वापस आ कर मारपीट करता और नन्ही गंगा के सामने ही रधिया को अपनी वासना का शिकार बनाता.

यही सब देखदेख कर गंगा बड़ी हो रही थी. अब उसे अपनी मां के साथ काम पर जाना अच्छा नहीं लगता था. बस, गलियों में इधरउधर घूमनाफिरना… काजलबिंदी लगा कर मतवाली चाल चलती गंगा को जब लड़के छेड़ते, तो उसे बहुत मजा आता.

रधिया लाख कहती, ‘अब तू बड़ी हो गई है… मेरे साथ काम पर चलेगी तो मुझे भी थोड़ा सहारा हो जाएगा.’

गंगा तुनक कर कहती, ‘मां, मुझे सारी जिंदगी यही सब करना है. थोड़े दिन तो मुझे मजे करने दे.’

‘अरी कलमुंही, मजे के चक्कर में कहीं मुंह काला मत करवा आना.

मुझे तो तेरे रंगढंग ठीक नहीं लगते.

यह क्या… अभी से बनसंवर कर घूमतीफिरती रहती है?

इस पर गंगा बड़े लाड़ से रधिया के गले में बांहें डाल कर कहती, ‘मां, मेरी सब सहेलियां तो ऐसे ही सजधज कर घूमतीफिरती हैं, फिर मैं ने थोड़ी काजलबिंदी लगा ली, तो कौन सा गुनाह कर दिया? तू चिंता न कर मां, मैं ऐसा कुछ न करूंगी.’

पर सच तो यही था कि गंगा भटक रही थी. एक दिन गली के मोड़ पर अचानक पड़ोस में ही रहने वाले

2 बच्चों के बाप नंदू से टकराई, तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई. इस के बाद तो वह जानबूझ कर उसी रास्ते से गुजरती और नंदू से टकराने की पूरी कोशिश करती.

नंदू भी उस की नजरों के तीर से खुद को न बचा सका और यह भूल बैठा कि उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. अब तो दोनों छिपछिप कर मिलते और उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दी थीं.

पर इश्क और मुश्क कब छिपाए छिपते हैं. एक दिन नंदू की पत्नी जमना के कानों तक यह बात पहुंच ही गई, तो उस ने रधिया की खोली के सामने खड़े हो कर गंगा को खूब खरीखोटी सुनाई, ‘अरी गंगा, बाहर निकल. अरी कलमुंही, तू ने मेरी गृहस्थी क्यों उजाड़ी? इतनी ही आग लगी थी, तो चकला खोल कर बैठ जाती. जरा मेरे बच्चों के बारे में तो सोचा होता. नाम गंगा और काम देखो करमजली के…’

3 दिन के बाद गंगा और नंदू बदनामी के डर से कहीं भाग गए. रोतीपीटती जमना रोज गंगा को कोसती और बद्दुआएं देती रहती. तकरीबन

2 महीने तक तो नंदू और गंगा इधरउधर भटकते रहे, फिर एक दिन मंदिर में दोनों ने फेरे ले लिए और नंदू ने जमना से कह दिया कि अब गंगा भी उस की पत्नी है और अगर उसे पति का साथ चाहिए, तो उसे गंगा को अपनी सौतन के रूप में अपनाना ही होगा.

मरती क्या न करती जमना, उसे गंगा को अपनाना ही पड़ा. पर आखिर तो जमना उस के बच्चों की मां थी और उस के साथ उस ने शादी की थी, इसलिए नंदू पर पहला हक तो उसी का था.

शादी के 3 साल बाद भी गंगा मां नहीं बन सकी, क्योंकि नंदू की पहले ही नसबंदी हो चुकी थी. यह बात पता चलते ही गंगा खूब रोई और खूब झगड़ा भी किया, ‘क्यों रे नंदू, जब तू ने पहले ही नसबंदी करवा रखी थी तो मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की?’

नंदू के कुछ कहने से पहले ही जमना बोल पड़ी, ‘आग तो तेरे ही तनबदन में लगी थी. अरी, जिसे खुद ही बरबाद होने का शौक हो उसे कौन बचा सकता है?’

उस दिन के बाद गंगा बौखलाई सी रहती. बारबार नंदू से जमना को छोड़ देने के लिए कहती, ‘नंदू, चल न हम कहीं और चलते हैं. जमना को छोड़ दे. हम दूसरी खोली ले लेंगे.’

इस पर नंदू उसे झिड़क देता, ‘और खोली के पैसे क्या तेरा शराबी बाप देगा? और फिर जमना मेरी पत्नी है. मेरे बच्चों की मां है. मैं उसे नहीं छोड़ सकता.’

इस पर गंगा दांत पीसते हुए कहती, ‘उसे नहीं छोड़ सकता तो मुझे छोड़ दे.’

इस पर गंगू कोई जवाब नहीं देता. आखिर उसे 2-2 औरतों का साथ जो मिल रहा था. यह सुख वह कैसे छोड़ देता. पर गंगा रोज इस बात को ले कर नंदू से झगड़ा करती और मार खाती. जमना के सामने उसे अपना ओहदा बिलकुल अदना सा लगता. आखिर क्या लगती है वह नंदू की… सिर्फ एक रखैल.

जब वह खोली से बाहर निकलती तो लोग ताने मारते और खोली के अंदर जमना की जलती निगाहों का सामना करती. जमना ने बच्चों को भी सिखा रखा था, इसलिए वे भी गंगा की इज्जत नहीं करते थे. बस्ती के सारे मर्द उसे गंदी नजर से देखते थे.

मांबाप ने भी उस से सभी संबंध खत्म कर दिए थे. ऐसे में गंगा का जीना दूभर हो गया और आखिर एक दिन उस ने रेल के आगे छलांग लगा दी और रधिया की बेटी गंगा मैली होने का कलंक लिए दुनिया से चली गई.

Storytelling : तुम नाराज ही रहो प्रिय

Storytelling : सोनिकाने सोने से पहले हाथों पर अच्छी तरह क्रीम लगाई, बीचबीच में कनखियों से फोन पर कुछ करते अपने एवरग्रीन रूठे सजन उमेश को देखा. मन ही मन हंसी सी आई पर जैसे ही लाइट बंद कर उमेश के बराबर सोने लेटी, उमेश की गंभीर आवाज से हंसी गायब हो गई. करंट सा लगा.

उमेश बोला, ‘‘कल सुबह 5 बजे नाश्ता बना देना, थोड़ा पैक भी कर देना, एक डिस्ट्रीब्यूटर से मिलने प्रतापगढ़ जा रहा हूं, रात तक आ जाऊंगा.’’

सोनिका जैसे अभी तक यकीन नहीं कर पा रही थी कि उसे सुबह 5 बजे उठना है. उस ने उमेश को याद दिलाने की कोशिश की, ‘‘पर तुम तो मुझ से नाराज हो न.’’

‘‘गुड नाइट,’’ चिढ़ कर कहते हुए उमेश ने उस की तरफ से करवट बदल ली.

उमेश तो कुछ ही देर में खर्राटे लेने लगा पर  सोनिका की तो नींद ही उड़ गई. हाय, उमेश का गुस्सा फिर खत्म हो गया. हाय, कितना आराम मिलता है जब उमेश गुस्सा होता है, बेचैनी से करवटें बदलते हुए सोनिका पुराने समय में

पहुंच गई…

वह अपनी इस आदत से बहुत परेशान थी कि कोई उसे सोते हुए कह दे कि सुबह जल्दी उठना है तो वह इस प्रैशर में ठीक से सो ही नहीं पाती. अब पुराने समय में पहुंची तो शादी के दिन याद आ गए और याद आ गया वह दिन जब उमेश को गुस्से में देखा था. सोनिका दिल्ली से लखनऊ जब शादी हो कर आई तो घर में सासससुर और इकलौता बेटा उमेश बस यही

थे. उमेश को सोनिका पर किसी बात पर गुस्सा आया था तो उस ने उस के हाथ का खाना खाना छोड़ दिया.

वह बहुत परेशान हुई. रोई तो सास ने बेटे के बारे में लाड़ से बताते हुए कहा, ‘‘बहू, उमेश बचपन से ऐसा ही है, जब भी गुस्सा होता है, खाना नहीं खाता, अपने सारे काम गुस्से में खुद करने लगता है. चिंता मत कर, अपनेआप इस का गुस्सा उतर भी जाता है.’’

सोनिका का तो चैन खत्म हो गया. हाय, नयानवेला पति कुछ खाए न तो उस के सामने बैठ कर वह खुद कैसे खा ले. उस ने सास से पूछा, ‘‘तो बाहर जा कर खाते हैं?’’

‘‘और क्या, कोई कब तक भूखा रह

सकता है.’’

वह हैरान हुई कि अरे, यह कैसा नाटक है. मायके में तो कोई भी गुस्सा हो, खाना सब खाते रहते थे. कई बार उस ने देखा था कि उस के पेरैंट्स बुरी तरह लड़े, फिर मम्मी ने खाना

लगाया और सब ने बैठ कर आराम से खा

लिया. अब उमेश के ड्रामे देख कर तो वह हैरान थी. उसे जल्दी गुस्सा आता था. वह परेशान हो कर उस के आगेपीछे घूमती कि खाना खा लो, खाना खा लो, पर वह तनतनाया सा बाहर

निकल जाता.

फिर अगले 5 सालों में अथर्व और अनन्या भी हो गए तो सोनिका ने सोचा कि शायद अब उमेश का गुस्सा कम हो, पर उमेश वैसा ही रहा. पर पिछले कुछ महीनों से सोनिका ने अपने सोचने की दिशा बिलकुल बदल दी है. सासससुर अब रहे नहीं. बच्चे कालेज में हैं. ये लौकडाउन के दिन थे. सब औनलाइन अपना काम करते रहते. घरों में मेड आ नहीं रही थी. काम ज्यादा था. किसी बात पर उमेश को गुस्सा आ गया और वह चिल्लाया, ‘‘मेरा खाना मत बनाना.’’

सोनिका ने कहा, ‘‘कहां खाओगे?’’

‘‘मैं और्डर कर लूंगा.’’

बच्चे वैसे तो किसी काम से आवाज देने पर इग्नोर कर देते हैं पर बाहर से खाना और्डर करने की बात पर दोनों के कान खड़े हो गए, दोनों अपनेअपने लैपटौप से उठ कर आ गए. पिता के गुस्से पर बिलकुल ध्यान न देते हुए पूछा, ‘‘पापा, क्या मंगवा रहे हो?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हमारे लिए भी मंगवा देना, आजकल बस घर का ही खाए जा रहे. बोर हो गए.’’

सोनिका को बहुत तेज गुस्सा आया. उमेश को और गुस्सा आ चुका था. बोले, ‘‘तुम्हारी मां ने जो बनाया है उसे कौन खाएगा?’’

‘‘अरे पापा, बाद में खा लेंगे. वैसे मम्मी क्या बनाया है आप ने?’’

सोनिका ने जवाब दिया, ‘‘दाल और आलूबैगन.’’

‘‘हां, तो बस पापा, फिर तो हमारे लिए भी मंगवा लेना,’’ कह कर हंसते हुए बच्चे अपने रूम  में चले गए. उमेश ने एक अकड़ वाली नजर सोनिका पर डाली और और्डर देने लगा. उस दिन तीनों ने मजे से बिरयानी खाई और सोनिका मन मार कर अपना बनाया खाना खाती रही. बच्चों ने उसे बहुत कहा कि मम्मी बिरयानी टेस्ट कर के देखो तो सही, कितनी बढि़या है.

मगर ऐसा कभी होता नहीं था कि वह

उमेश के गुस्से में मंगवाया खाना खा ले. सैल्फ रिस्पैक्ट भी तो कोई चीज है. फिर अब अकसर यह होने लगा था कि उमेश गुस्से में खाना छोड़ता तो बच्चे भी उस के पीछे लग लेते. तीनों कभी कुछ मंगवा कर खाते, तो कभी कुछ. सोनिका ने अचानक महसूस किया कि इस में तो बड़ा आराम हो जाता है, जितने दिन उमेश गुस्सा रहता, काम काफी कम हो जाता जैसे ही यह बात दिमाग में आई उस का मन खिल उठा. बरतन भी कम होते, अपने लिए कभी मैगी बना लेती, कभी सैंडविच. बच्चों को जिस तरफ का खाने का मन होता आराम से खाते.

सोनिका ने टाइम देखा, 12 बज रहे थे. वह सोना तो चाहती थी पर बहुत कुछ दिमाग में चलने लगा था. उमेश गुस्से में खाना खाना तो छोड़ देता पर कोई बहुत जरूरी काम होने पर मार्केट साथ चला जाता क्योंकि लखनऊ में

मौल उन की सोसाइटी से कुछ दूरी पर था. इस बीच गुस्से में बात करने से भी बचता. उतना ही बोलता जितने के बिना काम न चलता. ऐसे ही उसे याद आया कुछ जरूरी सामान खत्म होने

पर वह उस के साथ फूड स्टोर गई थी. सोनिका को फू्रट्स खाने का बहुत शौक था. उमेश जंक फूड पसंद करता और फलों को देख कर मुंह बनाता. वह फल उठा कर ट्रौली में रखने लगी

तो उस ने देखा उमेश ने गुस्से में मुंह दूसरी तरफ कर लिया.

मजेदार बात यह थी कि अब सोनिका

को उस के गुस्से का जरा भी

फर्क न पड़ता. उस ने देखा कि उमेश मुंह से

तो कुछ कहेगा नहीं. उस दिन उस ने सब महंगे फल आराम से लिए. वह मन ही मन बहुत खुश हुई. सोचा कि रहो गुस्सा, अपना तो आराम हो जाता है.

अब तो सोनिका को उमेश के नाराज होने  का इंतजार रहने लगा है. गुस्से में उमेश अपनी शान बनाए रखने के लिए उस से बोलता भी नहीं है तो वह वे सब काम आराम से कर लेती है जिन्हें उमेश अच्छे मूड में करने नहीं देता. अब तो सोनिका उमेश के नाराज रहने का पीरियड आराम से वैब सीरीज देख कर बिताती है और बहुत ऐंजौय करती है.

उमेश जब अच्छे मूड में होता है तो कई चीजें खाने की फरमाइश करता है, कोई हैल्प है नहीं, बस अपनी फरमाइश बता कर लैपटौप और फोन पर व्यस्त हो जाता है. वह फिर किचन में बदहाल हो कर मन ही मन यही कहती है कि प्रिय, काफी दिन हो गए तुम्हें नाराज हुए, थोड़ा नाराज हो जाओ तो काम कम हो, प्रिय.

Short Story : ठोकर – सरला ने क्यों तोड़ा गौरिका का विश्वास

Short Story : गौरिका ने आंखें खोलीं तो सिर दर्द से फटा जा रहा था. एक क्षण के लिए तो सबकुछ धुंधला सा लगा, मानो कोई डरावना सपना देख रही हो. उस ने कराहते हुए इधरउधर देखने की कोशिश की थी.

‘सरला, ओ सरला,’ उस ने बेहद कमजोर स्वर में अपनी सेविका को पुकारा. लेकिन उस की पुकार छत और दरवाजों से टकरा कर लौट आई.

‘कहां मर गई?’ कहते हुए गौरिका ने सारी शक्ति जुटा कर उठने का यत्न किया. तभी खून में लथपथ अपने हाथ को देख कर उसे झटका सा लगा और वह सिरदर्द भूल कर ‘खूनखून…’ चिल्लाती हुई दरवाजे की ओर भागी थी.

गौरिका की चीख सुन कर पड़ोस के दरवाजे खुलने लगे और पड़ोसिनें निशा और शिखा दौड़ी आई थीं.

‘क्या हुआ, गौरिका?’ दोनों ने समवेत स्वर में पूछा. खून में लथपथ गौरिका को देखते ही उन के रोंगटे खड़े हो गए थे. गौरिका अधिक देर खड़ी न रह सकी. वह दरवाजे के पास ही बेसुध हो कर गिर पड़ी.

तब तक वहां अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. निशा और शिखा बड़ी कठिनाई से गौरिका को उठा कर अंदर ले गईं. वहां का दृश्य देख कर वे भय से कांप उठीं. दीवान पूरी तरह खून से लथपथ था.

गौरिका के सिर पर गहरा घाव था. किसी भारी वस्तु से उस के सिर पर प्रहार किया गया था. शिखा ने भी सरला को पुकारा था पर कोई जवाब न पा कर वह स्वयं ही रसोईघर से थोड़ा जल ले आई थी और उसे होश में लाने का यत्न करने लगी थी.

निशा ने तुरंत गौरिका के पति कौशल को फोन कर सूचित किया था. अन्य पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी थी. सभी इस घटना पर आश्चर्य जाहिर कर रहे थे. बड़े से पांचमंजिला भवन में 30 से अधिक फ्लैट थे. मुख्यद्वार पर 2 चौकीदार दिनरात उस अपार्टमेंट की रखवाली करते थे. नीचे ही उन के रहने का प्रबंध भी था.

इस साईं रेजिडेंसी के ज्यादातर निवासी वहां लंबे समय से रह रहे थे और भवन को पूरी तरह सुरक्षित समझते थे. अत: इस प्रकार की घटना से सभी का भयभीत होना स्वाभाविक ही था.

आननफानन में कौशल आ गया. उस का आफिस अधिक दूर नहीं था. पर आज आफिस से फ्लैट तक पहुंचने का 15 मिनट का समय उसे एक युग से भी लंबा प्रतीत हुआ था. अपने घर का दृश्य देखते ही कौशल के हाथों के तोते उड़ गए. घर का सामान बुरी तरह बिखरा हुआ था. लोहे की अलमारी का सेफ खुला पड़ा था और सामान गायब था.

‘सरला…सरला,’ कौशल ने भी घर में घुसते ही उसे पुकारा था पर उसे न पा कर एक झटका सा लगा उस भरोसे को जो उन्होंने सरला को ले कर बना रखा था.

सरला को गौरिका और कौशल ने सेविका समझा ही नहीं था. वह घर का काम करने के साथ ही गौरिका की सहेली भी बन बैठी थी. कौशल का पूरा दिन तो दफ्तर में बीतता था. घर लौटने में रात के 9-10 भी बज जाते थे.

कौशल एक साफ्टवेयर कंपनी में ऊंचे पद पर था. वैसे भी काम में जुटे होने पर उसे समय का होश कहां रहता था.

गौरिका से कौशल का विवाह हुए मात्र 10 माह हुए थे. गौरिका एक संपन्न परिवार की 2 बेटियों में सब से छोटी थी. पिता बड़े व्यापारी थे, अत: जीवन सुख- सुविधाओं में बीता था. मातापिता ने भी गौरिका और उस की बहन चारुल पर जी भर कर प्यार लुटाया था. ‘अभाव’ किस चिडि़या का नाम है यह तो उन्होंने जाना ही नहीं था.

कौशल का परिवार अधिक संपन्न नहीं था पर उस के पिता ने बच्चों की शिक्षा में कोई कोरकसर नहीं उठा रखी थी. विवाह में गौरिका के परिवार द्वारा किए गए खर्च को देख कर कौशल हैरान रह गया था. 4-5 दिनों तक विवाह का उत्सव चला था. 3 अलगअलग स्थानों पर रस्में निभाई गई थीं. उस शानो- शौकत को देख कर मित्र व संबंधी दंग रह गए थे. पर सब से अधिक प्रभावित हुआ था कौशल. उस ने अपने परिवार में धन का अपव्यय कभी नहीं देखा था. जहां जितना आवश्यक हो उतना ही व्यय किया जाता था, वह भी मोलतोल के बाद.

सुंदर, चुस्तदुरुस्त गौरिका गजब की मिलनसार थी. 10 माह में ही उस ने इतने मित्र बना लिए थे जितने कौशल पिछले 5 सालों में नहीं बना सका था.

अब दिनरात मित्रों का आनाजाना लगा रहता. मातापिता ने उपहार में गौरिका को घरेलू साजोसामान के साथ एक बड़ी सी कार भी दी थी. कौशल कार्यालय आनेजाने के लिए अपनी पुरानी कार का ही इस्तेमाल करता था. गौरिका अपनी मित्रमंडली के साथ घूमनेफिरने के लिए अपनी नई कार का प्रयोग करती थी.

मायके में कभी तिनका उठा कर इधरउधर न करने वाली गौरिका ने मित्रों के स्वागतसत्कार के लिए इस फ्लैट में आते ही 3 सेविकाओं का प्रबंध किया था. घर की सफाई और बरतन मांजने वाली अधेड़ उम्र की दमयंती साईं रेजिडेंसी से कुछ दूरी पर झोंपड़ी में रहती थी. कपड़े धोने और प्रेस करने वाली सईदा सड़क पार बने नए उपनगर में रहती थी.

सरला को गौरिका ने रहने के लिए निचली मंजिल पर कमरा दे रखा था. वह भोजन बनाने, मित्रों का स्वागतसत्कार करने के साथ ही उस के साथ खरीदारी करने, सिनेमा देखने जाती थी. 4-5 माह में ही सरला कुछ इस तरह गौरिका की विश्वासपात्र बन बैठी थी कि उस के गहने संभालने, दूध, समाचारपत्र आदि का हिसाबकिताब करने जैसे काम भी वह करने लगी थी.

कुछ दिनों के लिए कौशल के मातापिता बेटे की गृहस्थी को करीब से देखने की आकांक्षा लिए आए थे और नौकरों का एकछत्र साम्राज्य देख कर दंग रह गए थे. उस की मां ने दबी जबान में कौशल को समझाया भी था, ‘बेटा, 2 लोगों के लिए 3 सेवक? तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारा सारा वेतन इसी तरह उड़ा देगी. अभी से बचत करने की सोचो, नहीं तो बाद में कुछ भी हाथ नहीं लगेगा.’

‘मां, गौरिका हम जैसे मध्यम परिवार से नहीं है. उस के यहां तो नौकरों की फौज रखना साधारण सी बात है. हम उस से यह आशा तो नहीं कर सकते कि वह बरतन मांजने और घर की सफाई करने जैसे कार्य भी अपने हाथों से करेगी,’ कौशल ने उत्तर दिया था.

‘कपड़े धोने के लिए मशीन है, बेटे,’ मां बोलीं, ‘साफसफाई के लिए आने वाली दमयंती भी ठीक है, पर दिन भर घर में रहने वाली सरला मुझे फूटी आंखों नहीं भाती. कपडे़, गहने, रुपएपैसे आदि की जानकारी उसे भी है. किसी तीसरे को इस तरह अपने घर के भेद देना ठीक नहीं है. उस की आंखें मैं ने देखी हैं… घूर कर देखती है सबकुछ. काम रसोईघर में करती है, पर उस की नजरें पूरे घर पर रहती हैं. मुझे तो तुम्हारी और गौरिका की सुरक्षा को ले कर चिंता होने लगी है.’

‘मां, यह चिंता करनी छोड़ो. चलो, कहीं घूमने चलते हैं. सरला 6 माह से यहां काम कर रही है पर कभी एक पैसे का नुकसान नहीं हुआ. गौरिका को तो उस पर अपनों से भी अधिक विश्वास है,’ कौशल ने बोझिल हो आए वातावरण को हलका करने का प्रयत्न किया था.

‘रहने भी दो, अब बच्चे बड़े हो गए हैं. अपना भलाबुरा समझते हैं. हम 2-4 दिनों के लिए घूमने आए हैं. तुम क्यों व्यर्थ ही अपना मन खराब करती हो,’ कौशल के पिताजी ने बात का रुख मोड़ने का प्रयत्न किया था.

‘क्या हुआ? सब ऐसे गुमसुम क्यों बैठे हैं,’ तभी गौरिका वहां आ गई थी.

‘कुछ नहीं, मां को कुछ पुरानी बातें याद आ गई थीं,’ कौशल हंसा था.

‘बातें बाद में होती रहेंगी, हम लोग तो पिकनिक पर जाने वाले थे, चलिए न, देर हो जाएगी,’ गौरिका ने कुछ ऐसे स्वर में अनुनय की थी कि सब हंस पड़े थे.

सरला ने चटपट भोजन तैयार कर दिया था. थर्मस में चाय भर दी थी. पर जब गौरिका ने सरला से भी साथ चलने को कहा तो कौशल ने मना कर दिया था.

‘मांपापा को अच्छा नहीं लगेगा, उन्हें परिवार के सदस्यों के बीच गैरों की उपस्थिति रास नहीं आती,’ कौशल ने समझाया था.

‘मैं ने सोचा था कि वहां कुछ काम करना होगा तो सरला कर देगी.’

‘ऐसा क्या काम पड़ेगा. फिर मैं हूं ना, सब संभाल लूंगा,’ सच तो यह था कि खुद कौशल को भी परिवार में सरला की उपस्थिति हर समय खटकती थी पर कुछ कह कर गौरिका को आहत नहीं करना चाहता था.

कौशल के मातापिता कुछ दिन रह कर चले गए थे पर कौशल की रेनू बूआ, जो उसी शहर के एक कालिज में व्याख्याता थीं, दशहरे की छुट्टियों में अचानक आ धमकी थीं. चूंकि  कौशल घर में सब से छोटा था इसकारण वह बूआ का विशेष लाड़ला था.

गौरिका से बूआ की खूब पटती थी. पर सरला को कर्ताधर्ता बनी देख वह एक दिन चाय पीते ही बोल पड़ी थीं, ‘गौरिका, नौकरों से इतना घुलनामिलना ठीक नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं है कि तुम अपनी सुरक्षा को किस तरह खतरे में डाल रही हो. आजकल का समय बड़ा ही कठिन है. हम किसी पर विश्वास कर ही नहीं सकते.’

‘मैं जानती हूं बूआजी, इसीलिए तो मैं ने किसी पुरुष को काम पर नहीं रखा. मैं अपनी कार के लिए एक चालक रखना चाहती थी. अधिक भीड़भाड़ में कार चलाने से बड़ी थकान हो जाती है. पर देखिए, हम दोनों स्वयं ही अपनी कार चलाते हैं.’

रेनू बूआ चुप रह गई थीं. वह शायद बताना चाहती थीं कि पुरुष हो या स्त्री कोई भी विश्वास के योग्य नहीं है. फिर भी उन्होंने गौरिका से यह आश्वासन जरूर ले लिया कि भविष्य में वह रुपएपैसे, गहनों से सरला को दूर ही रखेगी.

गौरिका ने रेनू बूआ का मन रखने के लिए उन्हें आश्वस्त कर दिया पर उसे सरला पर अविश्वास करने का कारण समझ में नहीं आता था. उस के अधिकतर पड़ोसी एक झाड़ ूबरतन वाली से काम चलाते थे लेकिन वह सोचती थी कि उस का स्तर उन सब से ऊंचा है.

कौशल ने सब से पहले गौरिका को पास के नर्सिंग होम में भरती कराया था. सिर पर घाव होने के कारण वहां टांके लगाए गए थे. निशा और शिखा ने गौरिका के पास रहने का आश्वासन दिया तो कौशल घर आ गया और आते ही उस ने अपने और गौरिका के मातापिता को सूचित कर दिया. कौशल ने रेनू बूआ को भी सूचित कर दिया. बूआ नजदीक थीं और वह अच्छी तरह से जानता था कि उस पर आई इस आफत को सुनते ही बूआ दौड़ी चली आएंगी.

प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखा कर कौशल दोबारा नर्सिंग होम चला गया था. सिर में टांके लगाने के लिए गौरिका के एक ओर के बाल साफ कर दिए गए थे. हाथ में पट्टी बंधी थी, पर वह पहले से ठीक लग रही थी.

‘कौशल, मेरे कपड़े बदलवा दो. सरला से कहना अलमारी से धुले कपडे़ निकाल देगी,’ गौरिका थके स्वर में बोली थी.

‘नाम मत लेना उस नमकहराम का. कहीं पता नहीं उस का. तुम्हें अब भी यह समझ में नहीं आया कि तुम्हारी यह दशा सरला ने ही की है,’ कौशल क्रोधित हो उठा था.

‘क्या कह रहे हो? सरला ऐसा नहीं कर सकती.’

‘याद करने की कोशिश करो, हुआ क्या था तुम्हारे साथ? पुलिस तुम्हारा बयान लेने आने वाली है.’

गौरिका ने आंखें मूंद ली थीं. देर तक आंसू बहते रहे थे. फिर वह अचानक उठ बैठी थी.

‘मुझे कुछ याद आ रहा है. मैं आज सरला के साथ बैंक गई थी. 50 हजार रुपए निकलवाए थे. घर आ कर सरला खाना बनाने लगी थी. मैं ने उस से एक प्याली चाय बनाने के लिए कहा था. चाय पीने के बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं,’ गौरिका सुबकने लगी थी, ‘2 दिन बाद तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुम्हें उपहार देना चाहती थी.’

तभी रेनू बूआ आ पहुंची थीं. उन के गले लग कर गौरिका फूटफूट कर रोई थी.

‘देखो बूआजी, क्या हो गया? मैं ने सरला पर अपनों से भी अधिक विश्वास किया. सभी सुखसुविधाएं दीं. उस ने मुझे उस का यह प्रतिदान दिया है,’ गौरिका बिलख रही थी.

रेनू बूआ चुप रह गई थीं. वह जानती थीं कि कभीकभी मौन शब्दों से भी अधिक मुखर हो उठता है. वह यह भी जानती थीं कि बहुत कम लोग दूसरों को ठोकर खाते देख कर संभलते हैं, अधिकतर को तो खुद ठोकर खा कर ही अक्ल आती है.

सरला 50 हजार रुपए के साथ ही घर में रखे गौरिका के गहनेकपड़े भी ले गई थी. लगभग 5 माह बाद वह अपने 2 साथियों के साथ पकड़ी गई थी और तभी गौरिका को पता चला कि वह पहले भी ऐसे अपराधों के लिए सजा काट चुकी थी. सुन कर गौरिका की रूह कांप गई थी. कौशल, मांबाप तथा घर के अन्य सभी सदस्यों ने उसे समझाया था कि भाग्यशाली हो जो तुम्हारी जान बच गई. नहीं तो ऐसे अपराधियों का क्या भरोसा.

इस घटना को 5 वर्ष बीत चुके हैं. फैशन डिजाइनर गौरिका का अपना बुटीक है. पर पति, 3 वर्षीय बंटी और बुटीक सबकुछ गौरिका स्वयं संभालती है. दमयंती अब भी उस का हाथ बंटाती है पर सब पर अविश्वास करना और अपना कार्य स्वयं करना सीख लिया है गौरिका ने.

Best Story : बंजर जमीन – क्या हुआ था जगदीश के साथ

Best Story :  शाम को जब मैं कोर्ट से लौटा तो जैसे घर में सब मेरा ही इंतजार कर रहे थे. स्कूटर की आवाज सुन कर बिट्टू और नीरू दौड़ कर बाहर आ गए. मैं स्कूटर खड़ा भी नहीं कर पाया था कि बिट्टू लपक कर मेरे पास आ गया और उत्साहित हो कर बताने लगा, ‘‘पापा, आप को मालूम है?’’ मैं ने स्कूटर की डिग्गी से केस फाइल निकालते हुए पूछा, ‘‘क्या, बेटा?’’ ‘‘वह पिंकी के पापा हैं न…’’ ‘‘हां, उन्हें क्या हुआ?’’ ‘‘उन्होंने नई कार खरीदी है. देखिए न उधर, वह खड़ी है. कितना अच्छा कलर है.’’

मैं ने दाहिनी ओर मुड़ कर देखा. बगल वाले फ्लैट के सामने नई चमचमाती कार खड़ी थी. तब तक नीरू भी पास आ गई थी. वह आगे की जानकारी देते हुए बोली, ‘‘पापा, नए मौडल की कार है. पिंकी बता रही थी. बहुत महंगी है.’’ ‘‘अच्छा,’’ मैं ने भी बच्चों की खुशी में शामिल होते हुए आश्चर्य प्रकट किया. बिट्टू और करीब आ गया और मुझ से लिपटते हुए बोला, ‘‘मैं तो पिंकी के साथ कार में बैठा भी था. अंकल हम दोनों को घुमाने ले गए थे. खूब मजा आया. उन्होंने हमें मिठाई भी खिलाई,’’ फिर मचलते हुए बोला, ‘‘पापा, हम लोग भी कार खरीदेंगे न?’’ मैं ने बिट्टू को गोद में उठा लिया और प्यार करते हुए कहा, ‘‘जरूर खरीदेंगे.’’ फिर मैं भीतर चला गया और थोड़ी देर तक बच्चों को प्यार से तसल्ली देता रहा. मेरे आश्वासन पर दोनों खुश हो गए और उछलतेकूदते बाहर खेलने चले गए.

कोट उतार कर हैंगर पर लटका दिया, फिर सोफे पर पसरते हुए सविता को आवाज लगाई, ‘‘सविता, एक कप चाय लाना.’’ सविता को भी शायद मेरा ही इंतजार था. बच्चों के साथ बात करते हुए उस ने सुन लिया था, इसीलिए चाय का पानी शायद पहले ही चूल्हे पर चढ़ा चुकी थी. चाय की ट्रे सामने टेबल पर रख कर वह मेरे करीब बैठते हुए बोली, ‘‘आप ने तो बच्चों के मुंह से सुन लिया होगा और बगल वाले फ्लैट के बाहर देखा भी होगा. गौतम भाईसाहब ने नई कार खरीदी है. उन की पत्नी दोपहर में कार खरीदने की खुशी में मिठाई दे गई हैं.’’ फिर मिठाई मेरी ओर सरकाते हुए एक लंबी सांस लेती हुई बोली, ‘‘लीजिए, मुंह मीठा कीजिए, आप के दोस्त ने नई गाड़ी खरीदी है,’’ वाक्य का अंतिम छोर जानबूझ कर लंबा खींचा गया था, ताकि मैं समझ जाऊं कि सूचना के साथसाथ मेरे लिए एक उलाहना भी है.

मैंने मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और अनमने से मुंह में डाल लिया. सविता चाय का कप मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली, ‘‘आप को पता है, कालोनी में हमारे अलावा बाकी सब के पास कार है,’’ ‘‘यानी कि हमीं लोग बेकार हैं?’’ मैं ने हंसने की कोशिश की. ‘‘छोडि़ए भी, यह मजाक की बात नहीं है. आप ने कभी भी मेरी बात को गंभीरता से लिया है?’’ ‘‘क्यों नहीं लिया, मैं भी तो कोशिश कर रहा हूं कि कार जल्दी ही खरीद ली जाए, मगर…’’ ‘‘बसबस, रहने दीजिए, आप तो बस, कोशिश ही करते रहेंगे, कालोनी में सब के यहां कार आ चुकी है.’’ ‘‘जरूर आ चुकी है, मगर तुम जानती हो, वे सब व्यापारी या सरकारी अफसर हैं, लेकिन मैं तो एक साधारण सा वकील हूं. फिर भी…’’ ‘‘छोटे देवरजी कौन से व्यापारी हैं?

साधारण से डाक्टर ही तो हैं, फिर भी देवरानी को कार में घूमते हुए 2 साल हो गए और आप हैं कि…’’ ‘‘अरे, क्या बात करती हो…जीतू, मेरा छोटा भाई, एक काबिल सर्जन है. 10 सालों में उस ने कितना नाम कमा लिया है.’’ ‘‘छोड़ो भी, आप को भी तो वकालत करते 15 साल हो गए हैं, मगर अभी तक लेदे कर एक फ्लैट ही तो खरीद पाए हैं.’’ ‘‘ऐसा न कहो. सबकुछ तो है अपने पास. टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, स्कूटर, वाश्ंिग मशीन, गहने, कपड़े…’’ ‘‘ठीक है, ठीक है. ये चीजें तो सब के यहां होती हैं. जरा सोचिए, आप कार में कोर्ट जाएंगे तो लोगों पर रोब पड़ेगा और बच्चे भी काफी खुश होंगे.’’ ‘‘हूं, तुम ठीक कहती हो,’’ मैं ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अलमारी के लौकर से बैंक की पासबुक निकाल लाया, ‘‘सविता, बैंक खाते में 1 लाख रुपए हैं, चाहें तो पुरानी गाड़ी खरीद सकते हैं.’’ ‘‘नहीं प्रेम, पुरानी गाड़ी नहीं लेंगे. गाड़ी तो नई ही होनी चाहिए.’’ ‘‘ठीक है. फिर तो और रुपयों की व्यवस्था करनी होगी.’’

मैं सोच में डूब गया. पत्नी भी कुछ देर तक सोचती रही. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, मेरे करीब आते हुए बोली, ‘‘आप के नाम से तो गांव में कुछ जमीन भी है न?’’ ‘‘हां, 5-6 एकड़ के करीब है तो सही, मगर बाबूजी के नाम से है. अगर कहूं तो वे उसे कल ही मेरे नाम कर देंगे.’’ ‘‘जमीन कितने की होगी?’’ ‘‘पता नहीं, वहां जा कर ही मालूम होगा.’’ सविता खुश हो गई, ‘‘फिर क्या सोचना, बेच दीजिए इस जमीन को.’’ ‘‘सो तो ठीक है, मगर इतने सालों बाद गांव जा कर यह सब करना क्या उचित होगा? जगदीश भैया क्या सोचेंगे?’’ ‘‘सोचेंगे क्या, हम उन की जमीन थोड़े ही ले रहे हैं. अपने हिस्से की जमीन बेचेंगे. वैसे भी बेकार ही तो पड़ी है.’’ समस्या का हल निकल चुका था. बस, थोड़े दिनों के लिए गांव जा कर यह सब निबटा देना था.

अब तो मुझे भी एक अदद कार के लालच ने उत्साहित कर दिया था. रात को खाना खाने के बाद जब मैं अगली पेशी में लगने वाले केसों की फाइल देख रहा था, तब भी मन बारबार गांव और वहां की जमीन में उलझा रहा. पता नहीं दिमाग में कार की बात इस कदर क्यों समा गई थी कि दूसरे विषयों में जी नहीं लग रहा था. मैं ने जब से वकालत शुरू की थी, कभी गांव के बारे में सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं की. कभीकभी बाबूजी खुद ही शहर चले आते थे और दोचार दिन यहां रह कर फिर गांव वापस चले जाते थे. उन्होंने अपनी जरूरतों या गांवघर की खोजखबर लेते रहने के बारे में अपने मुंह से कभी कुछ नहीं कहा था. जगदीश भैया गांव में रहते थे, वहीं प्राइमरी स्कूल में मास्टर थे. वे बीए ही कर पाए थे, इसलिए कोई विशेष नौकरी मिलने की संभावना नहीं थी. जैसेतैसे मास्टरी मिल गई थी.

गांव में पुराना मकान था. जगदीश भैया उस घर में परिवार सहित रहते थे. जमीन 15 एकड़ बची थी और हम 3 भाई थे, इसलिए बाबूजी ने मौखिक रूप से 5-5 एकड़ जमीन हम तीनों भाइयों के बीच बांट दी थी. चूंकि मैं और जीतू यानी डा. जितेंद्र प्रसाद शहर में ही रह रहे थे, इसलिए खेतीबारी जगदीश भैया ही देखते थे. सुबह उठते ही मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘परसों रविवार है, गांव चला जाता हूं और जमीन का सौदा कर आता हूं.’’ वह यह बात सुन कर खिल उठी. रविवार की सुबह मैं जल्दी तैयार हो गया. बैग में दोचार कपड़े डाले और नाश्ता करने के बाद स्कूटर ले कर गांव के लिए निकल पड़ा. रास्ते में बसंतपुर पड़ता था, जहां के सेठ हर्षद भाई मनसुख भाई का बिक्रीकर संबंधी मामला मेरे ही पास था. सो सोचा, चलतेचलते अपनी फीस भी वसूल करता चलूं, यही सोच कर हर्षद भाई की राइस मिल के सामने स्कूटर रोक दिया. हर्षद भाई अपने कर्मचारियों के बीच मशगूल थे. मुझे स्कूटर से उतरते देख नजदीक आते हुए बोले, ‘‘आइएआइए, तशरीफ लाइए,’’ कहते हुए मुझे साथ ले कर अपने औफिस की ओर बढ़ गए. वे चाय मंगवाने के बाद बोले, ‘‘वकील साहब, आज इधर कैसे आना हुआ?’’ ‘‘बस हर्षद भाई, नीमखेड़ा तक जा रहा हूं. 2 दिनों तक कोर्ट बंद है, सोचा, थोड़ा गांव तक हो आऊं.’’ ‘‘अच्छा है.

अब आप यहां तक आए हैं तो अपनी पुरानी फीस भी लेते जाइए,’’ फिर पैसा निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले, ‘‘पूरे 7 हजार रुपए हैं, गिन लीजिए.’’ रुपए कोट की जेब के हवाले करते हुए मैं ने कहा, ‘‘अरे, इस में देखना क्या है, ठीक ही होंगे,’’ हंसते हुए मैं आगे बढ़ गया. लगभग 76 किलोमीटर की पक्की सड़क थी, इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई. शेष 5 किलोमीटर का रास्ता कच्चा था. गांव की गलियों को पार करते हुए जब घर के सामने स्कूटर रोका तो आवाज सुन कर 3-4 बच्चे बाहर निकल आए और उत्सुकताभरी नजरों से मेरी ओर देखने लगे. बच्चों को गली की ओर दौड़ते देख उन की मां भी दरवाजे तक निकल आईं. मुझे देखते ही आश्चर्य से बोल उठीं, ‘‘देवरजी, आप. सविता भी आई है क्या? अच्छाअच्छा, आओ, अंदर आओ,’’ फिर बच्चों से बोलीं, ‘‘बबलू, राजू तुम्हारे प्रेम चाचा आए हैं, रायपुर वाले. देखते क्या हो, इन का सामान अंदर ले आओ.’’

बच्चों का मेरा परिचय मिल गया था. वे लपक कर स्कूटर से मेरा बैग उठा लाए और ‘चाचाजी आ गए, चाचीजी आ गए,’ कहते हुए आंगन की ओर दौड़ने लगे. वर्षों बाद गांव आया था, शायद 10 वर्षों के बाद. इतने वर्षों में बहुत कुछ बदल गया था. पुराना मकान, जहां हम भाईबहनों का बचपन बीता था, अब गिर चुका था. उस के स्थान पर 3 कमरों का एकमंजिला, जिस की दीवारें मिट्टी की और छत खपरैलों की बनी थी. सामने बरामदे से लगा हुआ एक बड़ा सा कमरा था, जहां से किसी के खांसने की आवाज आ रही थी. मैं उसी कमरे की ओर बढ़ गया. बाबूजी तख्त पर लेटे हुए थे. मुझे देख वे उठने की कोशिश करने लगे. सिरहाने रखी बनियान को गले में डाल कर बिस्तर पर रखे अपने चश्मे को ढूंढ़ने लगे. चश्मा चढ़ा लेने पर मुझे पहचानने की कोशिश करते हुए बोले, ‘‘कौन…प्रेम?’’ ‘‘जी, बाबूजी, मैं प्रेम ही हूं.’’ ‘‘आओ बेटे, आओ, इधर पास बैठो.’’ मैं उन के करीब बैठ गया.

बाबूजी मुझे कमजोर लगे रहे थे. खांसते समय सारा शरीर हिल उठता था. उन की कमजोर काया और चेहरे पर उभरी झुर्रियों को देख कर एकबारगी मैं घबरा उठा. अपनेआप को संयत करने की कोशिश में इधरउधर देखने लगा. कमरा खालीखाली सा था. तख्त से लगी हुई लकड़ी की पुरानी 3 कुरसियां रखी हुई थीं, जिन के हत्थे उखड़ चुके थे. कमरे के एक कोने में ईंटों के ऊपर 2 संदूक रखे हुए थे. पास की दीवार में एक खुली अलमारी बनी हुई थी, जिस में एक पुराना ट्रांजिस्टर, दवाइयों की कुछ भरी और कुछ खाली शीशियां, कागजों में लिपटी कुछ पुडि़यां, आईना और एक कंघी रखी हुई थी. दीवार पर लगी खूंटियों पर 2 थैले तथा बाबूजी की कमीज टंगी हुई थी.

अलगनी पर बाबूजी की धोती सूख रही थी, जिसे देख पुरानी बात याद आ गई. एक दिन बाबूजी जब हमारे यहां पौधों को पानी दे रहे थे तो नीरू की नजर उन की कमीज पर पड़ गई थी. कमीज जेब के पास से कुछ फटी हुई थी. नीरू ने पूछ लिया, ‘दादाजी आप की कमीज तो फटी हुई है.’ बच्ची की बात सुन बाबूजी ने अपनी फटी कमीज की ओर देखा और खूबसूरती से बात घुमाते हुए हंस कर बोले, ‘बेटे, यह कमीज फटी नहीं है. गांव में सभी ऐसी ही कमीज पहनते हैं. यह तो गांवों का फैशन है.’ बच्ची तो संतुष्ट हो गई थी, मगर बाबूजी अपनेआप को तसल्ली न दे सके थे और शायद तभी से ही उन्होंने अपने कमजोर हाथों से कपड़ों पर पैबंद लगाने शुरू कर दिए थे. बाबूजी को फिर खांसी आ गई थी. मैं ने पूछा, ‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं लगती?’’ ‘‘नहीं रे, तबीयत तो ठीक है, बस, खांसी कभीकभी परेशान करती है.’’ ‘‘कोई दवाई ली?’’ ‘‘हां, ले रहा हूं. जगदीश बराबर खयाल रखता है.

2 दिन पहले ही तो दवाई ला कर दी है.’’ फिर जैसे उन्हें याद हो आया हो, कहने लगे, ‘‘तुम अकेले ही आए हो या बहू भी आई है?’’ ‘‘मैं अकेला ही आया हूं. एक केस के सिलसिले में बसंतपुर आया था. कल और परसों कोर्ट बंद है, तो सोचा, गांव होता जाऊं.’’ ‘‘बहुत अच्छा किया, बिट्टू और नीरू कैसे हैं?’’ ‘‘ठीक हैं, बाबूजी.’’ हम बातें कर ही रहे थे कि रानू आ गया और कहने लगा, ‘‘चाचाजी, आप नहा लीजिए.’’ तभी बाबूजी बोले, ‘‘जाओ, नहा लो.’’ आंगन के उस पार कुआं था और उस के पास ही ईंटों की दीवारें उठा कर उस पर टीन का शेड और टीन का ही दरवाजा लगा कर स्नानघर बनाया गया था. नहाते समय मुझे अपने फ्लैट के चमचमाते बाथरूम की याद आ गई.

मैं नहाधो कर तैयार हो गया. तब तक रसोईघर में खाना तैयार हो चुका था. रसोईघर भी क्या, बस बरामदे के ही एक छोर को मिट्टी की दीवार से घेर कर कमरे की शक्ल दे दी गई थी. भाभी दरी बिछाती हुई बोलीं, ‘‘प्रेम भैया, आओ बैठो, मैं खाना लगाती हूं.’’ मैं दरी पर बैठ गया. थाली परोसते हुए भाभी बोलीं, ‘‘फर्श पर बैठते हुए अजीब सा लग रहा होगा न? क्या करें, मेज वगैरह तो है नहीं.’’ ‘‘नहीं भाभी, कोईर् परेशानी नहीं है, सब ठीक है.’’ खाना तो साधारण था, मगर जिस स्नेह से परोसा जा रहा था, उस से आनंद आ गया. अब तक मैं घर के सभी कमरे, साजोसामान और जानवर वगैरह देख चुका था. कहीं पर भी मुझे संपन्नता की कोई निशानी नजर नहीं आई थी. अलबत्ता अपनेपन की महक हर ओर मौजूद थी. शाम को 4 बजे जगदीश भैया स्कूल से आ गए.

मुझे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी छा गई. साइकिल बरामदे की दीवार से टिकाते हुए बोले, ‘‘कितने वर्षों बाद आया है, घर में सब कैसे हैं?’’ ‘‘ठीक हैं,’’ मेरा छोटा सा उत्तर था. आंगन में खाट बिछा कर उन्होंने मुझे बैठने का इशारा किया, फिर बबलू को आवाज लगाते हुए बोले, ‘‘बेटे, अपनी मां से कहो कि यहां 2 कप चाय लेती आए.’’ चाय पीने के बाद भैया बोले, ‘‘प्रेम, चलो, आज मैं तुम्हें खेतों पर ले चलता हूं. जमीनजायदाद की लड़ाई तो तुम ने अदालत में बहुत देखी होगी और लड़ी भी होगी, परंतु खेत क्या चाहते हैं, इसे अब स्वयं देखना.’’ खेतों के पास पहुंच कर फसलों के बीच खेत में जगदीश भैया बताने लगे, ‘‘प्रेम, ये हैं हम लोगों के खेत. यह सामने वाला खेत तुम्हारे हिस्से का है. इस की मिट्टी जीतू और मेरे हिस्से के खेत से अच्छी है. वह नाले के पास भी है, इसलिए इस में सिंचाई भी अच्छी होती है. मेरे पास बैलों की एक जोड़ी ही है न, इसलिए पूरी जमीन को जोत नहीं पाता.

15 एकड़ में से 10-12 एकड़ में ही खेती कर पाता हूं, शेष जमीन पड़ी रह जाती है. फसल का अच्छा होना भी पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करता है. समय पर पानी बरस गया और कीड़ेमकोड़ों का प्रकोप न हुआ तो अनाज खलिहान तक पहुंचता है, नहीं तो हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी खाद और बीज तक की रकम वसूल नहीं होती.’’ थोड़ी देर रुक कर वे आगे बताने लगे, ‘‘बाबूजी बताते हैं कि दादाजी के जमाने में बस्ती से ले कर नाले तक की जमीन हमारी थी और यहां से वहां तक फसल लहलहाती थी. अब तो मात्र 15 एकड़ जमीन है, उस में भी पूरी जमीन पर फसल नहीं उगा पाता. बाबूजी की बड़ी इच्छा है कि पूरे 15 एकड़ जमीन में हरीभरी फसल लहलहाए, अगर एक जोड़ी बैल और खरीद सकता तो…’’ मेरे मुंह से अचानक निकल पड़ा, ‘‘बैलों की जोड़ी कितने में आती होगी?’’ ‘‘अच्छी जोड़ी तो 20-25 हजार रुपए से कम में नहीं आएगी.’’ मैं ने खेतों पर दूर तक नजर डाली.

किनारे की 2-3 एकड़ जमीन बंजर पड़ी थी, शेष हिस्से में गेहूं की फसल पकने को थी. थोड़ी देर बाद हम वहां से लौट आए. रात को खाना खाने के बाद मैं आंगन में खाट पर लेटा हुआ था. आसमान साफ था, दूरदूर तक चांदनी छिटकी हुई थी. रहरह कर मन में यही विचार उठता था कि अपने हिस्से की जमीन के बारे में बाबूजी और जगदीश भैया से कैसे कह सकूंगा? क्या मैं इतना स्वार्थी हो गया हूं? नहींनहीं, यह मुझ से नहीं हो सकेगा. दूसरे दिन सुबह घर का नौकर फिरतू कुछ सौदा लेने जामगांव के बाजार जा रहा था. मुझे भी बाजार जाना था, इसलिए उस से कहा, ‘‘फिरतू, चल बैठ स्कूटर के पीछे, जामगांव मैं भी जा रहा हूं.’’ ‘‘नहीं मालिक, मैं पैदल चला जाऊंगा.’’ ‘‘अरे, डरता क्यों है, बैठ पीछे.’’ वह झिझकते हुए पिछली सीट पर बैठ गया. 15-20 मिनट में हम बाजार पहुंच गए.

मैं ने स्कूटर पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया और फिरतू को ले कर मवेशी बाजार की ओर बढ़ गया. थोड़ी देर की छानबीन और जांचपड़ताल के बाद बैलों की एक जोड़ी पसंद आ गई. साढ़े 23 हजार रुपए में सौदा पक्का हो गया. मैं ने कोट की जेब से रुपए निकाल कर बैलों के मालिक को कीमत का भुगतान कर दिया. फिरतू बैलों की जोड़ी देख कर खुशी से झूमने लगा. मैं ने फिरतू को बाकी सौदा खरीद लाने को कहा. जब वह सामान ले कर वापस आया तो मैं बैलों की रस्सी उसे थमाते हुए बोला, ‘‘फिरतू, तुम बैलों को ले कर गांव चले जाओ, मैं थोड़ी देर बाद आता हूं.’’ बाजार से वापस आ कर मैं जगदीश भैया के साथ बैठा चाय पी रहा था. इतने में बैलों की रस्सी थामे फिरतू भी आ गया, बैल देख कर जगदीश भैया चकित हो गए, कुतूहलवश पूछने लगे, ‘‘क्यों रे फिरतू, बैलों की जोड़ी किस की है?’’

‘‘अपनी ही है, वकील साहब ने खरीदी है.’’ जगदीश भैया को विश्वास नहीं हो रहा था, वे मेरी ओर मुड़ कर बोले, ‘‘क्यों प्रेम?’’ ‘‘भैया, बैलों की जोड़ी पसंद आ गई थी और संयोग से जेब में पैसे भी थे, इसलिए खरीद लाया. कहिए, जोड़ी कैसी है?’’ जगदीश भैया की आंखें खुशी से चमकने लगीं. झटपट उठ कर बैलों के एकदम पास चले गए. फिर दोनों बैलों की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘वाह, क्या शानदार जोड़ी है. महंगी भी होगी? लेकिन तुम ने यह सब…’’ ‘‘कुछ नहीं भैया, कल खेतों को देखा तो लगा कि जमीन का कोईर् भी टुकड़ा बंजर नहीं रहना चाहिए.’’

Stories : राज – क्या था रचना की मुस्कुराहट का राज

Stories :  संयुक्त परिवार की छोटी बहू बने हुए रचना को एक महीना ही हुआ था कि उस ने घर के माहौल में अजीब सा तनाव महसूस किया. कुछ दिन तो विवाह की रस्मों व हनीमून में हंसीखुशी बीत गए पर अब नियमित दिनचर्या शुरू हो गई थी. निखिल औफिस जाने लगा था. सासूमां राधिका, ससुर उमेश, जेठ अनिल, जेठानी रेखा और उन की बेटी मानसी का पूरा रुटीन अब रचना को समझ आ गया था. अनिल घर पर ही रहते थे. रचना को बताया गया था कि वे क्रौनिक डिप्रैशन के मरीज हैं. इस के चलते वे कहीं कुछ काम कर ही नहीं पाते थे. उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था. यह बीमारी उन्हें कहां, कब और कैसे लगी, किसी को नहीं पता था.वे घंटों चुपचाप अपने कमरे में अकेले लेटे रहते थे.

जेठानी रेखा के लिए रचना के दिल में बहुत सम्मान व स्नेह था. दोनों का आपसी प्यार बहनों की तरह हो गया था. सासूमां का व्यवहार रेखा के साथ बहुत रुखासूखा था. वे हर वक्त रेखा को कुछ न कुछ बुराभला कहती रहती थीं. रेखा चुपचाप सब सुनती रहती थी. रचना को यह बहुत नागवार गुजरता. बाकी कसर सासूमां की छोटी बहन सीता आ कर पूरा कर देती थी. रचना हैरान रह गई थी जब एक दिन सीता मौसी ने उस के कान में कहा, ‘‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना. इस रेखा ने तो उसे हमेशा अपने जाल में ही फंसा कर रखा है. कोई काम उस का भाभी के बिना पूरा नहीं होता. तुम मुझे सीधी लग रही हो पर अब जरा अपने पति पर लगाम कस कर रखना. हम ने अपने पंडितजी से कई बार कहा कि रेखा के चक्कर से बचाने के लिए कुछ मंतर पढ़ दें पर निखिल माना ही नहीं. पूजा पर बैठने से साफ मना कर देता है.’’ रचना को हंसी आ गई थी, ‘‘मौसी, पति हैं मेरे, कोई घोड़ा नहीं जिस पर लगाम कसनी पड़े और इस मामले में पंडित की क्या जरूरत थी?’’

इस बात पर तो वहां बैठी सासूमां को भी हंसी आ गई थी, पर उन्होंने भी बहन की हां में हां मिलाई थी, ‘‘सीता ठीक कह रही है. बहुत नाच लिया निखिल अपनी भाभी के इशारों पर, अब तुम उस का ध्यान रेखा से हटाना.’’ रचना हैरान सी दोनों बहनों का मुंह देखती रही थी. एक मां ही अपनी बड़ी बहू और छोटे बेटे के रिश्ते के बारे में गलत बातें कर रही है, वह भी घर में आई नईनवेली बहू से. फिर वह अचानक हंस दी तो सासूमां ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात पर हंसी आ रही है?’’

‘‘आप की बातों पर, मां.’’

सीता ने डपटा, ‘‘हम कोई मजाक कर रहे हैं क्या? हम तुम्हारे बड़े हैं. तुम्हारे हित की ही बात कर रहे हैं, रेखा से दूर ही रहना.’’ सीता बहुत देर तक उसे पता नहीं कबकब के किस्से सुनाने लगी. रेखा रसोई से निकल कर वहां आई तो सब की बातों पर बे्रक लगा. रचना ने भी अपना औफिस जौइन कर लिया था. उस की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. निखिल और रचना साथ ही निकलते थे. लौटते कभी साथ थे, कभी अलग. सुबह तो रचना व्यस्त रहती थी. शाम को आ कर रेखा की मदद करने के लिए तैयार होती तो रेखा उसे स्नेह से दुलार देती, ‘‘रहने दो रचना, औफिस से आई हो, आराम कर लो.’’

‘‘नहीं भाभी, सारा काम आप ही करती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कोई बात नहीं रचना, मुझे आदत है. काम में लगी रहती हूं तो मन लगा रहता है वरना तो पता नहीं क्याक्या टैंशन होती रहेगी खाली बैठने पर.’’ रचना उन का दर्द समझती थी. पति की बीमारी के कारण उस का जीवन कितना एकाकी था. मानसी की भी चाची से बहुत बनती थी. रचना उस की पढ़ाई में भी उस की मदद कर देती थी. 6 महीने बीत गए थे. एक शनिवार को सुबहसुबह रेखा की भाभी का फोन आया. रेखा के मामा की तबीयत खराब थी. रेखा सुनते ही परेशान हो गई. इन्हीं मामा ने रेखा को पालपोस कर बड़ा किया था. रचना ने कहा, ‘‘भाभी, आप परेशान मत हों, जा कर देख आइए.’’

‘‘पर मानसी की परीक्षाएं हैं सोमवार से.’’

‘‘मैं देख लूंगी सब, आप आराम से जाइए.’’

सासूमां ने उखड़े स्वर में कहा, ‘‘आज चली जाओ बस से, कल शाम तक वापस आ जाना.’’

रेखा ने ‘जी’ कह कर सिर हिला दिया था. उस का मामामामी के सिवा कोई और था ही नहीं. मामामामी भी निसंतान थे. रचना ने कहा, ‘‘नहीं भाभी, मैं निखिल को जगाती हूं. उन के साथ कार में आराम से जाइए. यहां मेरठ से सहारनपुर तक बस के सफर में समय बहुत ज्यादा लग जाएगा. जबकि इन के साथ जाने से आप लोगों को भी सहारा रहेगा.’’ सासूमां का मुंह खुला रह गया. कुछ बोल ही नहीं पाईं. पैर पटकते हुए इधर से उधर घूमती रहीं, ‘‘क्या जमाना आ गया है, सब अपनी मरजी करने लगे हैं.’’ वहीं बैठे ससुर ने कहा, ‘‘रचना ठीक तो कह रही है. जाने दो उसे निखिल के साथ.’’ राधिका को और गुस्सा आ गया, ‘‘आप चुप ही रहें तो अच्छा होगा. पहले ही आप ने दोनों बहुओं को सिर पर चढ़ा रखा है.’’ निखिल पूरी बात जानने के बाद तुरंत तैयार हो कर आ गया था, ‘‘चलिए भाभी, मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगा, जब तक मामाजी ठीक नहीं होते हम वहीं रहेंगे.’’ रचना ने दोनों को नाश्ता करवाया और फिर प्रेमपूर्वक विदा किया. अनिल बैठे तो वहीं थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. दोनों चले गए तो वे भी अपने बैडरूम में चले गए. शनिवार था, रचना की छुट्टी थी. वह मेड अंजू के साथ मिल कर घर के काम निबटाने लगी.

शाम तक सीता मौसी फिर आ गई थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी और अपने बेटेबहू से उन की बिलकुल नहीं बनती थी इसलिए घर में उन का आनाजाना लगा ही रहता था. उन का घर दो गली ही दूर था. दोनों बहनें एकजैसी थीं, एकजैसा व्यवहार, एकजैसी सोच. सीता ने आराम से बैठते हुए रचना से कहा, ‘‘तुम्हें समझाया था न अपने पति को जेठानी से दूर रखो?’’

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

राधिका ने रचना को डपटा, ‘‘अनिल को क्यों ले गई थी?’’

‘‘मां, मानसी की बीमारी का पता लगाने के लिए भैया का डीएनए टैस्ट होना था,’’ कह कर रचना किचन में चली गई. रचना ने थोड़ी देर बाद देखा राधिका और सीता की आवाजें मानसी के कमरे से आ रही थीं. सीता जब भी आती थीं, मानसी के कमरे में ही सोती थीं. रचना दरवाजे तक जा कर रुक गई. सीता कह रही थीं, ‘‘अब पोल खुलने वाली है. रिपोर्ट में सच सामने आ जाएगा. बड़े आए हर समय भाभीभाभी की रट लगाने वाले, आंखें खुलेंगी अब, कब से सब कह रहे हैं पति को संभाल कर रखे. निखिल पिता की तरह ही तो डटा है अस्पताल में.’’ राधिका ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘मुझे भी देखना है अब रेखा का क्या होगा. निखिल मेरी भी इतनी नहीं सुनता है जितनी रेखा की सुनता है. इसी बात पर गुस्सा आता रहता है मुझे तो. जब से रेखा आई है, निखिल ने मेरी सुनना ही बंद कर दिया है.’’ बाहर खड़ी रचना का खून खौल उठा. घर की बच्ची की तबीयत खराब है और ये दोनों इस समय भी इतनी घटिया बातें कर रही हैं. अगले दिन मानसी की सब रिपोर्ट्स आ गई थीं. सब सामान्य था. बस, उस का बीपी लो हो गया था.

डाक्टर ने मानसी की अस्वस्थता का कारण पढ़ाई का दबाव ही बताया था. शाम तक डिस्चार्ज होना था, निखिल और रेखा अस्पताल में ही रुके. रचना घर पहुंची तो सीता ने झूठी चिंता दिखाते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है न? वह जो डीएनए टैस्ट होता है उस में क्या निकला?’’ यह पूछतेपूछते भी सीता की आंखों में मक्कारी दिखाई दे रही थी. रचना ने आसपास देखा. उमेश कुछ सामान लेने बाजार गए हुए थे. अनिल अपने रूम में थे. रचना ने बहुत ही गंभीर स्वर में बात शुरू की, ‘‘मां, मौसी, मैं थक गई हूं आप दोनों की झूठी बातों से, तानों से. मां, आप कैसे निखिल और भाभी के बारे में गलत बातें कर सकती हैं? आप दोनों हैरान होती हैं न कि मुझ पर आप की किसी बात का असर क्यों नहीं होता? वह इसलिए कि विवाह की पहली रात को ही निखिल ने मुझे बता दिया था कि वे हर हालत में भाभी और मानसी की देखभाल करते हैं और हमेशा करेंगे. उन्होंने मुझे सब बताया था कि आप ने जानबूझ कर अपने मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे का विवाह एक अनाथ, गरीब लड़की से करवाया जिस से वह आजीवन आप के रौब में दबी रहे. निखिल ने आप को किसी लड़की का जीवन बरबाद न करने की सलाह भी दी थी, पर आप तो पंडितों की सलाहों के चक्कर में पड़ी थीं कि यह ग्रहों का प्रकोप है जो विवाह बाद दूर हो जाएगा.

‘‘आप की इस हरकत पर निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश  करते रहते हैं. वे ही नहीं, मैं भी भाभी की हर परेशानी में उन का साथ दूंगी और रिपोर्ट से पता चल गया है कि अनिल ही मानसी के पिता हैं. मौसी, आप की बस इसी रिपोर्ट में रुचि थी न? आगे से कभी आप मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं और निखिल भाभी को ले कर अलग हो जाएंगे. और इस अच्छेभले घर को तोड़ने की जिम्मेदार आप दोनों ही होगी. हमें शांति से स्नेह और सम्मान के साथ एकदूसरे के साथ रहने दें तो अच्छा रहेगा,’’ कह कर रचना अपने बैडरूम में चली गई. यश उस की गोद में ही सो चुका था. उसे बिस्तर पर लिटा कर वह खुद भी लेट गई. आज उसे राहत महसूस हो रही थी. उस ने अपने मन में ठान लिया था कि वह दोनों को सीधा कर के ही रहेगी. उन के रोजरोज के व्यंग्यों से वह थक गई थी और डीएनए टैस्ट तो हुआ भी नहीं था. उसे इन दोनों का मुंह बंद करना था, इसलिए वह अनिल को यों ही अस्पताल ले गई थी. उसे इस बात को हमेशा के लिए खत्म करना था. वह कान की कच्ची बन कर निखिल पर अविश्वास नहीं कर सकती थी. हर परिस्थिति में अपना धैर्य, संयम रख कर हर मुश्किल से निबटना आता था उसे. लेटेलेटे उसे राधिका की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, तुम कहां चली, सीता?’’

‘‘कहीं नहीं, दीदी, जरा घर का एक चक्कर काट लूं. फिर आऊंगी और आज तो तुम्हारी बहू की निश्ंिचतता का राज भी पता चल गया. एक बेटा तुम्हारा बीमार है, दूसरा कुछ ज्यादा ही समझदार है, पहले दिन से ही सबकुछ बता रखा है बीवी को.’’ कहती हुई सीता के पैर पटकने की आवाज रचना को अपने कमरे में भी सुनाई दी तो उसे हंसी आ गई. पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए उस ने मुसकराते हुए निखिल को फोन मिला दिया था.

Hair Care Tips : कैसे चुनें बालों के लिए सही Conditioner

Hair Care Tips :  बालों की सुरक्षा के लिए आप समय समय पर इन्हें जरूरी ट्रीटमैंट देती रहती हैं. इन्हीं ट्रीटमैंट्स में एक है, हेयर कंडीशनिंग. घरेलू नुसखों के साथ साथ बाजार में कई कंडीशनर भी उपलब्ध हैं, जो हर प्रकार के बालों के लिए बनाए गए हैं. मगर इन का चुनाव सावधानी के साथ करना चाहिए वरना इन का विपरीत प्रभाव बालों की सेहत को बिगाड़ भी सकता है.

अकसर महिलाएं इस बात को नजरअंदाज कर शैंपू और कंडीशनर की आकर्षक पैकिंग और उन के विज्ञापनों पर ही गौर करती हैं. कंडीशनर में मौजूद इनग्रीडिएंट्स उन के लिए महत्त्व नहीं रखते. जबकि सब से पहले किसी भी प्रोडक्ट पर दिए गए निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़ लेना बहुत जरूरी होता है.

एक अध्ययन के मुताबिक 70% महिलाओं को पता ही नहीं होता कि कंडीशनर का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. वे तो बस इसे एक प्रक्रिया के तौर पर बालों में लगा लेती हैं, तो कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो हर बार शैंपू और कंडीशनर बदल लेती हैं. ऐसे में बालों का खराब होना तय होता है.

इन में से कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें कंडीशनर के इस्तेमाल करने का ढंग और उस के फायदों के बारे में तो पता होता है, लेकिन यह पता नहीं होता है कि उन के बालों के टैक्स्चर पर कौन सा हेयर कंडीशनर फायदेमंद साबित होगा.

आइए, जानें कि किस तरह बालों के टैक्स्चर को समझ कर उन पर कौन सा कंडीशनर लगाना चाहिए.

पतले और महीन बाल

बालों के पतले होने के 2 कारण हो सकते हैं, या तो बालों को सही ट्रीटमैंट नहीं दिया जा रहा है या फिर आनुवंशिकता की वजह से भी बालों का टैक्स्चर महीन हो सकता है. लेकिन इन्हें सही ट्रीटमैंट के जरीए कुछ हद तक दुरुस्त किया जा सकता है. खासतौर पर हलके और वौल्यूमाइजिंग फौर्मूला बेस्ड कंडीशनर ऐसे बालों के लिए सब से अच्छा विकल्प साबित होते हैं.

दरअसल, ऐसे बालों को भारीपन के साथ ही चमक की भी जरूरत होती है और इस के लिए जरूरी है कि बालों में नमी रहे. लेकिन ऐसे बालों के लिए कंडीशनर चुनते वक्त यह जरूर देख लें कि उस में बायोटिन, कैफीन, पैंथेनोल और अमोनिया ऐसिड जैसे तत्त्वों का इस्तेमाल न किया गया हो. साथ ही, ऐसे बालों पर कंडीशनर को क्राउन एरिया पर लगने से बचाना चाहिए और जड़ों से लगभग 2 इंच बाल छोड़कर कंडीशनर लगाना चाहिए.

नौर्मल एवं मीडियम बाल

ऐसे बालों को मैंटेन रखने के लिए हाईड्रेशन लैवल में संतुलन बनाए रखना जरूरी है. अच्छी बात है कि आप के बाल शाइनी और हैल्दी हैं, लेकिन उन की इस खूबी को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें जरूरी ट्रीटमैंट मिलता रहे. ऐसे बालों के लिए विटामिन ए, सी और ई युक्त कंडीशनर का इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही यूकलिप्टस और व्हीट प्रोटीन वाले कंडीशनर भी ऐसे बालों में नमी बनाए रखते हैं.

घुंघराले बाल

घुंघराले बालों में मौइश्चराइजिंग कंडीशनर ही लगाना चाहिए. ऐसे कंडीशनर बालों को शाइनिंग देते हैं और पोषण भी. ऐसे बालों के लिए कंडीशनर का चुनाव करते वक्त यह जरूर देख लें कि उस में शामिल सामग्री में प्रोटीन जरूर हो. इस के अतिरिक्त ऐसे बालों में शीया बटर, औलिव औयल और ग्लिसरीन युक्त कंडीशनर भी फायदेमंद साबित होते हैं. ये बालों में हाईड्रेशन और इलास्टिसिटी को भी बनाए रखते हैं.

मोटे बाल

यदि बाल मोटे और कड़े टैक्स्चर वाले हैं तो सब से पहले उन्हें मुलायम बनाया जाए, जिस के लिए कंडीशनर में ऐवोकाडो का तेल और सोया मिल्क जैसे इनग्रीडिएंट्स का शामिल होना बेहद जरूरी है. यह ऐसे बालों को भारी और सिल्की बनाएगा और साथ ही वौल्यूम को भी स्मूद करेगा.

औयली बाल

वैज्ञानिक तौर पर जिन की स्कैल्प ड्राई होती है उन के बाल औयली होते हैं. दरअसल, ड्राईनैस की वजह से स्कैल्प पर मौजूद औयल ग्लैंड तेल निकालना शुरू कर देती है, जिस से बाल ग्रीसी दिखने लगते हैं. कई महिलाएं बाल औयली होने की वजह से कंडीशनर को नजरअंदाज करने लगती हैं. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसे बालों में कंडीशनर को बालों के निचले हिस्से में लगाना चाहिए और वह भी स्प्रिंग की तरह बालों को घुमाघुमा कर कंडीशनर लगाने से फायदा होता है.

Breakfast Benefits : सुबह का नाश्ता क्यों है जरूरी

Breakfast Benefits : अमिता को एक शादी के लिए अपना वजन कम करने की धुन चढ़ी तो उस ने सुबह के नाश्ते में केवल फल और उस से बने सलाद, स्मूदी आदि लेना शुरू कर दिया. 1 महीने के बाद अचानक वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. डाक्टरों के अनुसार उस ने जरूरी पौष्टिक तत्त्वों की अनदेखी की.

होममेकर सुष्मिता की आदत है कि सुबह की पहली चाय के बाद जब तक वह घर का पूरा काम समाप्त नहीं कर लेती तब तक कुछ नहीं खाती. चूंकि दोपहर तक नाश्ते का टाइम ही निकल जाता है इसलिए वह सीधे दोपहर का खाना ही खाती है. वहीं सौम्या अंधविश्वासी है और पूजापाठ में समय बरबाद करने के बाद ही कुछ खाती है.

अकसर इस तरह की आदतें स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं. शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

जरूरी है सुबह का नाश्ता

सुबह का नाश्ता जरूरी है क्योंकि रात्रि के डिनर के लंबे अंतराल के बाद यह पहला मील होता है और पूरे दिन की ऐनर्जी के लिए इसे काफी पौष्टिक होना चाहिए. डाक्टरों के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए इसे नियमित रूप से लेना ही चाहिए पर अधिकांश लोग कुछ भ्रांतियों या व्यस्तता के चलते नाश्ते के ऊपर उतना ध्यान नहीं देते.

आज हम आप को नाश्ते के बारे में आम इंसान के द्वारा किए जाने वाले कुछ हैक्स बता रहे हैं जो आप के लिए काफी मददगार साबित हो सकते हैं :

ब्रेकफास्ट स्किप करना

अकसर कुछ लोग वजन कम करने के उद्देश्य से ब्रेकफास्ट करना छोड़ देते हैं पर आहार विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा करने से शरीर का मेटाबौलिज्म स्लो हो जाता है और ऐनर्जी डाउन हो जाती है जिस से आप पूरे दिन सुस्ती महसूस करते हैं.

रात्रि के खाने के बाद सुबह हमारे शरीर को कार्य करने के लिए अच्छीखासी ऐनर्जी की आवश्यकता होती है इसलिए भले ही आप सुबह ओट्स, कौर्नफ्लैक्स, दलिया, इडली सांभर जैसा हलका नाश्ता लें पर स्किप बिलकुल भी न करें.

केवल मीठा ही खाना

केवल सीरियल्स, पेस्ट्री, डोनट्स, दूध, ब्रैड आदि खाने से ब्लड शुगर जल्दी बढ़ती और कम होती है जिस से बारबार भूख लगती है. इन नाश्तों की अपेक्षा अंडे, अवाकाडो, टोस्ट, नट्स या ग्रीक योगर्ट जैसे प्रोटीन, हैल्दी फैट और फाइबर से भरपूर नाश्ता लें.

चाय कौफी से दिन की शुरुआत

अधिकांश लोग अपने दिन की शुरुआत चाय या कौफी से करते हैं जिस से एसिडिटी और डिहाइड्रेशन बढ़ जाता है और ऐनर्जी लेवल बहुत कम हो जाता है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार चाय या कौफी से पहले गरम पानी, शहद या नीबू पानी पीना सेहतमंद रहता है। साथ में भुने मखाने और पीनट्स भी ले सकते हैं.

अधिक प्रोसेस्ड फूड का सेवन

इंस्टेंट सीरियल्स ऐनर्जी बार, चौकलेट जैसे उत्पादों में शुगर की मात्रा बहुत अधिक होती है इसलिए इन की अपेक्षा घर का बना दलिया, स्मूदी, होममेड प्लेन या स्टफ्ड परांठे को अपने नाश्ते में शामिल करें.

पर्याप्त प्रोटीन न लेना

केवल ब्रेड या कार्बोहाइड्रेट खाने से भी भूख जल्दीजल्दी लगती है। इस की अपेक्षा प्रोटीन रिच फूड आइटम्स बौईल अंडे, ब्रैड आमलेट, दही, पनीर या मूंग दाल चीला आदि का सेवन करना उचित रहता है.

बहुत ज्यादा या बहुत कम खाना

कम खाने से पूरे दिन आप कमजोरी महसूस करेंगे। साथ ही बहुत ज्यादा खाने से शरीर में आलस्य और सुस्ती रह सकती है. इसलिए हमेशा अपने ब्रेकफास्ट में 50% फाइबर (फल सब्जियां), 25% प्रोटीन और 25% हैल्दी फैट लें.

एक जैसा नाश्ता करना

कुछ लोगों को ब्रैड आमलेट, परांठा, ब्रैड बटर या फिर दूध कौर्नफ्लैक्स जैसे नाश्तों को हर दिन करने की आदत होती है. इस की अपेक्षा हर दिन बदलबदल कर नाश्ता करने की आदत डालें। इस से आप एक जैसा खाने से बोर भी नहीं होंगे, दूसरा आप को प्रत्येक खाद्यपदार्थ के पोषक तत्त्व भी मिल पाएंगे.

बड़ी उम्र की लड़कियां बन सकती हैं सहेलियां

सासबहू के रिश्ते को ले कर अकसर कई तरह की धारणाएं बनाई जाती हैं. इन में से एक धारणा यह है कि बड़ी उम्र की लड़कियां (Aged Girls) ससुराल में ऐडजस्ट नहीं कर पाती हैं और इसलिए सास हमेशा छोटी उम्र की लड़कियों को बहू बनाना ज्यादा पसंद करती हैं, क्योंकि उसे वह अपने तरीके से ढाल सकती है. लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि बड़ी उम्र की बहू सास के लिए बेहतर और सही विकल्प क्यों हो सकती है? और उम्र कोई भी हो, बहू बनने का मतलब केवल जिम्मेदारी उठाना नहीं, बल्कि परिवार को समझना, प्यार देना और एकजुट रह कर जीवन जीना होता है?

इसलिए अब समय आ गया है कि हम महिलाओं की भूमिका को उम्र के पैमाने से बाहर निकाल कर देखें और स्वीकार करें.

सोशल मैच्योरिटी और समझदारी

बड़ी उम्र की लड़कियां अधिक मैच्योर होती हैं और जीवन के कई अनुभवों से गुजर चुकी होती हैं. ऐसे में वे सास की मैनेजमेंट ट्रिक्स को जल्दी सीख सकती हैं और उन के साथ मिल कर घर के मामलों को बेहतर तरीके से समझ सकती हैं.

उम्र में बड़ी होने से बहू परिवार के सभी सदस्यों के साथ अच्छे रिश्ते बना सकती है, साथ ही सास के विचारों और आदतों को भी बेहतर समझ सकती है. उस की मैच्योरटी सास के साथ रिश्तों को ज्यादा अच्छे से बना सकती है.

निर्णय लेने की क्षमता

बड़ी उम्र की लड़की अकसर अपने जीवन में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय पहले ही ले चुकी होती है. यह अनुभव उसे घर के मामलों में भी मजबूत बनाता है. सास को अकसर यह भरोसा हो सकता है कि बहू किसी भी मुश्किल स्थिति में ठंडे दिमाग से सही निर्णय लेगी. इस कारण सास को यह विश्वास होता है कि बहू किसी भी संकट का सामना समझदारी से करेगी.

मानसिक स्वतंत्रता और विश्वास

बड़ी उम्र की बहू पहले से ही मानसिक रूप से स्वतंत्र होती है और उसे अपने फैसलों में किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं आता. ऐसे में सास के लिए यह अवसर होता है कि वह अपनी बहू पर ज्यादा दबाव न डाले और उसे अपने तरीके से जीवन जीने का मौका दे. इस मानसिक स्वतंत्रता से दोनों के बीच का रिश्ता और भी मजबूत हो सकता है.

घर की जिम्मेदारी और देखभाल

बड़ी उम्र की बहू को घर की जिम्मेदारियों का अनुभव होता है. उसे घर के कामों को अच्छे से संभालने का तरीका पता होता है. साथ ही, अगर सास को कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है, तो बड़ी उम्र की बहू उन से अधिक स्नेह और समझदारी से निबट सकती है. सास को यह लगता है कि बहू घर की सभी जिम्मेदारियों को समझते हुए उस का अच्छे से खयाल रखेगी.

सास और बहू के बीच सम्मान का रिश्ता

बड़ी उम्र की बहू सास को अपनी मां के समान समझ सकती है और इस रिश्ते में आमतौर पर सम्मान और समझदारी बनी रहती है. छोटी उम्र की बहू के मुकाबले एक बड़ी उम्र की बहू अकसर सास के प्रति ज्यादा सम्मान दिखाती है और परिवार की परंपराओं को आदर देती है. यह सामंजस्यपूर्ण रिश्ते को बढ़ावा देता है.

भावनात्मक स्थिरता

बड़ी उम्र की बहू मानसिक रूप से अधिक स्थिर होती है, क्योंकि उस ने पहले ही जीवन के उतारचढ़ाव को झेला होता है. इस कारण वह सास के साथ रिश्ते में उतारचढ़ाव से बचने में सक्षम होती है. ऐसे में, रिश्ते में कोई भी तनाव उत्पन्न होने पर वह उसे सुलझाने के बजाय संघर्ष को बढ़ाने की बजाय समझदारी से सुलझाती है.

समझदारी से नजरिया

बड़ी उम्र की बहू न केवल अपनी सास से, बल्कि घर के बाकी सदस्यों से भी अच्छे रिश्ते बनाए रख सकती है. वह किसी भी स्थिति में समझदारी से काम ले सकती है और हर किसी की भावनाओं का सम्मान करती है. इस के कारण सास को लगता है कि बहू परिवार के सभी मुद्दों को समझ कर हल करती है, जिस से परिवार का माहौल संतुलित रहता है.

उम्र का रिश्तों पर असर

सामाजिक मान्यताओं के अनुसार, उम्र का रिश्तों पर प्रभाव होता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह हमेशा नकारात्मक हो. बड़ी उम्र की लड़कियां जब बहू बनती है, तो उस की अलग सोच और परिपक्वता रिश्तों को और मजबूत बना सकती है. साथ ही, वह अपनी सास या पति के परिवार से भी अच्छे संबंध स्थापित कर सकती है, क्योंकि उस की मानसिकता परिपक्व और व्यावहारिक होती है.

Sheena Chohan को सोशल वर्क है पसंद, जानें ऐक्ट्रैस का फिल्मी सफर

Sheena Chohan : मलयालम फिल्म से कैरियर की शुरुआत करने वाली खूबसूरत, सुंदर कदकाठी वाली ऐक्ट्रैस शीना चौहान ने हिंदी, तमिल, तेलुगू, हौलीवुड फिल्मों और वैब सीरीज में अभिनय किया है. उन्होंने मलयालम फिल्म ‘द ट्रेन’ में ममूटी के साथ अपनी शुरुआत की, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक जयराज ने निर्देशित किया था, लेकिन उन्हें बड़ी सफलता ओटीटी पर आई फिल्म ‘ऐंट स्टोरी’ से मिली, जिस से उन्हें कई पुरस्कार भी मिले. इस के अलावा उन्होंने बुद्धदेव दासगुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मुक्ति’ और ‘पत्रलेखा’ में मुख्य भूमिका निभाई है. इतना ही नहीं कोलकाता की शीना ‘मिस कोलकाता’ भी रहीं और यही उन्होंने मौडलिंग और थिएटर में काम करना शुरू कर दिया था.

अभिनय के अलावा शीना ह्यूमन राइट्स की ब्रैंड ऐंबेसडर हैं और पूरी दुनिया में इस दिशा पर काम कर रही हैं.

अभी शीना एक हिंदी मूवी ‘संत तुकाराम’ में काम कर रही हैं, जो रिलीज होने पर है. इस में उन्होंने अवली जीजाबाई की भूमिका निभाई है, जबकि तेलुगू फिल्म में पुलिस औफिसर, हौलीवुड और वैब सीरीज में भी काम कर रही हैं. ये सभी फिल्में इस साल रिलीज होने वाली हैं. उन्होंने खास गृहशोभा के साथ बात की. पेश हैं, कुछ खास अंश :

खुश हूं जर्नी से

फिल्मों और वैब सीरीज में एकसाथ काम कर शीना अपनी जर्नी से बहुत खुश हैं और कहती हैं कि हर भूमिका की डिमांड अलगअलग है और मेहनत भी, लेकिन मैं इस से बहुत खुश हूं, क्योंकि अभी मेरी जर्नी रियल में शुरू हुई है और मुझे बेहतर काम मिल रहा है. मैं ने हर क्षेत्रीय भाषाओं में काम किया है और हिंदी में छोटेछोटे रोल किए हैं, लेकिन एक बड़ी भूमिका हिंदी फिल्म में करना मेरे लिए बहुत संतुष्टि देता है.

इतना ही नहीं, अलगअलग क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में काम करने पर ऐक्टिंग का अनुभव बहुत होता है और उसे मैं फिल्मों में प्रयोग कर पाऊंगी.

रिजनल फिल्मों और हिंदी फिल्मों में काम करने में अंतर को ले कर शीना कहती हैं कि अभिनय के इमोशंस एक जैसे होते हैं, लेकिन भाषा, कल्चर, कहानी कहने का अंदाज वगैरह में अंतर होता है. बंगाल और मलयालम में साहित्य को अच्छी तरह दिखाया जाता है. आने वाली हिंदी फिल्म में मैं ने महाराष्ट्रीयन कल्चर को देवनागरी में किया.

मिली प्रेरणा

अभिनय के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में शीना का कहना है कि मेरी मां मेरी प्रेरणास्त्रोत हैं, क्योंकि उन्हें अभिनय का बहुत शौक था, लेकिन ट्रैडिशनल परिवार की होने की वजह से उन्हें यह मौका नहीं मिला. उन का सपना था कि वे हर चीज का अनुभव करें, इसलिए उन्होंने मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट, ड्राइंग, कौन्टैंपररी और क्लासिकल डांस को सिखाया, जिस का फायदा अब मुझे मिल रहा है.

परिवार का सहयोग

शीना कहती हैं कि मां ने मुझे शुरू से थिएटर में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें लगता था कि मैं अधिक से अधिक अभिनय करूं और आगे फिल्म इंडस्ट्री में भी अभिनय करूं, इसलिए मना करने की कोई गुंजाइश नहीं रही.

पंजाब से मुंबई का सफर

शीना कहती हैं कि मैं पंजाब में पैदा हुई थी और स्कूल की पढ़ाई की. बाद में कोलकाता में मैं अपने परिवार के साथ शिफ्ट हुई और बाकी शिक्षा पूरी की. वहां पर मैं ने थिएटर और डांस सीखी, क्योंकि कोलकाता में आर्ट और कल्चर अधिक मात्रा में होता है, वहां हर परिवार में लोग डांस या संगीत को महत्त्व देते हैं. इस के बाद मैं दिल्ली में भारतीय रंगमंच निर्देशक, अरविंद गौड़ के पास गई और वहां पर थिएटर की बारीकियां सीखीं.

दिल्ली में मैं ने मौडलिंग शुरू की और साउथ के निर्देशक ने मुझे मामूटी के साथ फिल्म में काम करने
का मौका दिया. इस से मैं धीरेधीरे पौपुलर हुई और एक के बाद एक काम मिलता गया.

संघर्ष

शीना कहती हैं कि अच्छा काम मिलना एक चुनौती है और मैं ने भी बहुत संघर्ष किए हैं. कोई भी काम मेरे पास चल कर नहीं आया. इस में मैं जिन के साथ काम करना चाहती थी, उन के साथ काम मिलने में समय लगा. मैं ने यह सीखा है कि जीवन में 3 चीजें बहुत जरूरी हैं- दृढ़ विश्वास, पैशन और अटल रहना, ताकि आप मेहनत से आगे बढ़ सकें. कई लोग बहुत जल्दी निराश हो कर दूसरा रास्ता अपना लेते हैं, पर मुझे यह सही नहीं लगता, क्योंकि इस क्षेत्र में रिजैक्शन होता है और उस परिस्थिति में खुद को संभालना पड़ता है, जो पैशन के बिना संभव नहीं हो सकता. अब मैं हर पल को अच्छी तरह जीना पसंद करती हूं.

सोशल वर्क है पसंद

ह्यूमन राइट्स के क्षेत्र में शीना अच्छा काम कर रही हैं और वे इस की ब्रैंड ऐंबेसडर भी हैं. इस क्षेत्र में काम करने की वजह के बारे में उन का कहना है कि मुझे बचपन से इस क्षेत्र में काम करने की इच्छा रही है, क्योंकि मेरी मां जो करना चाहती थीं, उन्हें कभी करने को नहीं मिला. गांवदेहातों में तो आमतौर पर स्त्रियों को कोई सम्मान नहीं मिलता. मेरे अंदर ऐसे बहुत प्रश्न थे, जिन का हल मुझे चाहिए था, ऐसे में ह्यूमन राइट्स और्गेनाइजेशन में ब्रैंड ऐंबेसडर बनने का औफर मिला. मैं ने स्कूल में पढ़ते हुए ही यह काम शुरू कर दिया था, ताकि महिलाओं में जागरूकता बढ़े और उन के हक के बारे में उन्हें परिचित करा सकूं.
अगर किसी को खुद के हक के बारे में पता न हो, तो इसे रोकना संभव नहीं. ‘न’ बोलना तभी संभव होता है, जब आप अपनी सीमा से परिचित हो. मेरा यह पैशन है और इसे मैं फिल्मों, स्कूलों और कालेजों के जरीए करती रहती हूं. इस से ही एक नया समाज बनने का सपना पूरा हो सकेगा.

नारी शक्ति में कमी

स्त्रियों पर आज भी अधिक शोषण होने की वजह के बारे में शीना का कहना है कि अपने अंदर की कौन्फिडेंस को वे जुटा नहीं पातीं, क्योंकि समाज और परिवार के प्रेशर बहुत होते हैं और सहयोग बहुत कम मिलता है. एक औरत की सैल्फ रिस्पेक्ट और कौन्फिडेंस को पहले जगाने की जरूरत है, इस के बाद वे बाहर अपनी बाउंड्री तय कर सकती हैं, ताकि अगर कुछ गलत होता है, तो आप खड़े हो कर सही और गलत को बोल सकती हैं. यही समस्या हर जगह है. जहां की सोसाइटी पुरुषप्रधान है, महिलाओं को झेलना पड़ रहा है. अभी थोड़ा बदलाव दिख रहा है, लेकिन अभी भी फिल्मों में वूमन को ही आब्जेक्टिफाई किया जाता है. मैं इस दिशा में स्त्रियों की आवाज बन कर अधिक काम करना चाहती हूं, क्योंकि इस से मुझे खुशी मिलती है.

शीना आज की लड़कियों से गुजारिश करती हुई कहती हैं कि वे अपने अधिकारों के बारे में जानें. जहां कुछ गलत लग रहा हो, वहां न बोलना सीखें, खुद को हमेशा रिस्पैक्ट दें, अपने ऊपर विश्वास रखें. सफलता का मूलमंत्र यही है.

Family Bond : मेरी पत्नी और मां के बीच रोज झगड़ा होता है, इसका कैसे समाधान करूं?

Family Bond : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

 मैं विवाहित पुरुष हूं. मेरे साथ मेरी मां भी रहती हैं. आए दिन किसी न किसी बात पर मेरी पत्नी व मेरी मां के बीच बहस होती रहती है जिस से मेरी पत्नी मुझ से नाराज हो जाती है. वह बहस या झगड़े के लिए मुझे जिम्मेदार मानती है. नतीजतन, मेरे और पत्नी के संबंधों में कड़वाहट बढ़ रही है. सब से बड़ी बात, मैं अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बना पाता. मैं ऐसा क्या करूं कि मेरी पत्नी और मां के बीच के झगड़े कम हो जाएं और हम पति पत्नी के बीच दूरियां भी खत्म हो जाएं, सलाह दें.

जवाब

विवाह के बाद जब एक लड़की ससुराल में आती है तो वह उम्मीद रखती है कि घर के सदस्य उसे इस नए माहौल में ऐडजस्ट करने में मदद करेंगे. वहीं, सास के मन में बहू के आने से असुरक्षा की भावना पनपने लगती है. उसे अपना राजपाट छिनता नजर आता है. इसलिए वह बातबेबात पर बहू पर अपना रोब झाड़ती है जिस के चलते सासबहू में झगड़े व विवाद शुरू हो जाते हैं. ऐसे में बेटे की जिम्मेदारी होती है कि वह पत्नी और मां के रिश्ते के बीच संतुलन बना कर रखे. मां को मां की जगह दे और पत्नी को पत्नी के अधिकार. आप के मामले में हो सकता है कि आप दोनों रिश्तों के बीच संतुलन न बना पा रहे हों जिस के कारण आप की पत्नी आप से नाराज रहती हो.

आप दोनों रिश्तों के बीच सामंजस्य बना कर रखें तभी आप पतिपत्नी की सैक्सुअल लाइफ खुशनुमा रह पाएगी. वरना आप की पत्नी, आप की मां का गुस्सा आप पर निकालेगी और संबंधों में मधुरता की जगह कड़वाहट बनी रहेगी जैसा कि अभी हो रहा है.

ये भी पढ़ें…

जबरन यौन संबंध बनाना पति का विशेषाधिकार नहीं

विवाह बाद पत्नी से जबरन सैक्स करने को बलात्कार कहा जाने वाला कानून बनाए जाने के खिलाफ जो बातें कही जा रही हैं वे सब धार्मिक नजरिए से कही जा रही हैं. इन का मकसद यह कहना है कि चूंकि हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार जैसी किसी बात के लिए यहां कोई जगह नहीं. जब से विवाहितों के बीच बलात्कार को ले कर चर्चा शुरू हुई तब से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि रोजमर्रा की इस बहुत ही सहज, सरल व सामान्य बात को ले कर इतना शोर मचाने का कोई औचित्य नहीं है.

कभी न कभी हर महिला अपने सुख के लिए नहीं, मात्र पति की यौन संतुष्टि के लिए बिस्तर पर बिछती है. शादी को ले कर उस ने जो सपना बुना होता है वह चूरचूर हो जाता है. कई नवविवाहित युवतियों का पहली रात का अनुभव बड़ा दर्दनाक होता है. इतना कि सैक्स उन के लिए आनंद का नहीं, बल्कि डर का विषय बन कर रह जाता है. कुछ इस डर को रोज झेलती हैं और फिर यह उन की आदत में शुमार हो जाता है.

दरअसल, इस तरह का मामला तब तकलीफदेह हो जाता है जब किसी महिला के पति का संभोग हिंसक यौन हमले का रूप ले लेता है और वह महिला महज यौन सामग्री के रूप में तबदील हो जाती है. वह असहाय हो जाती है. तब जाहिर है, आपसी परिचय और भरोसे की नींव हिल जाती है. कुछ मामलों में वजूद का आपसी टकराव ही ऐसे संबंध की सचाई बन कर रह जाता है. कुछ ज्यादा ही सोचता है. एक लड़की का बदन किस हद तक खुला रहना शोभनीय या अशोभनीय है या फिर किसी बच्ची के लड़की से युवती बनने के रास्ते में कौन से शारीरिक संबंध सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं, इस सब के बारे में सामाजिक व धार्मिक फतवे जारी किए जाते हैं. जबकि इसी समाज में चाचा, मामा और यहां तक कि पिता और भाइयों द्वारा भी लड़कियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं. तो क्या यह भी धर्म और संस्कृति का हिस्सा है? बहरहाल, अब एक और सांस्कृतिकसामाजिक फतवे को सरकारी स्वीकृति दिलाने की कोशिश की जा रही है और यह स्वीकृति है वैवाहिक संबंध में बलात्कार को ले कर. कहा जा रहा है कि धर्म के अनुसार हुए विवाह में बलात्कार की गुंजाइश नहीं है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड के बाद वर्मा कमीशन द्वारा वैवाहिक बलात्कार को बलात्काररोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश से हड़कंप मच गया. मोदी सरकार में मंत्री रहे हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने साफसाफ शब्दों में कहा है कि वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती. इस के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ किया कि विधि आयोग ने बलात्कार संबंधी कानून में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की सूची में शामिल नहीं किया है और न ही सरकार ऐसा करने की सोच रही है.

अंदेशा यह है कि इस से परिवारों के टूटने का खतरा बढ़ जाएगा. इस खतरे को टालने के लिए हमारा समाज पत्नियों की बलि लेने को तैयार है. तर्क यह भी कि भारतीय समाज में केवल विवाहित यौन संबंध को ही सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है और इस पर पत्नी और पति दोनों का ही समान अधिकार है. अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा भी तो भारत की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन ऐसा होता कहां है? ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यौन संबंध बनाने में पत्नी की इच्छा न होने की स्थिति में क्या ऐसा करने का अधिकार अकेले पति को मिल जाता है? जबरन संबंध बनाने का अधिकार अकेले पति  का कैसे हो सकता है? पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को आखिर क्यों बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए?

आइए, जानें कि भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है. कोलकाता हाई कोर्ट के वकील भास्कर वैश्य का कहना है कि भारतीय कानून के तहत पति को केवल 2 तरह के मामलों में बलात्कारी कहा जा सकता है- पहला अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो और पति उस के साथ जबरन यौन संबंध बनाए तो कानून की नजर में यह बलात्कार है और दूसरा, पतिपत्नी के बीच तलाक का मामला चल रहा हो, कानूनी तौर पर पतिपत्नी के बीच विच्छेद यानी सैपरेशन चल रहा हो और पति पत्नी की रजामंदी के बगैर जबरन यौन संबंध बनाता है तो इसे भारतीय कानून में बलात्कार कहा गया है. इस के लिए सजा का प्रावधान भी है. हालांकि इन दोनों ही मामलों में पति को जो सजा सुनाई जा सकती है वह बलात्कार के लिए तय की गई सजा की तुलना में कम ही होती है.

विवाह की पवित्रता पर सवाल

सुनने में यह भी बड़ा अजीब लगता है कि विवाहित महिला कानून यौन संबंध के लिए पति को अपनी सहमति देने को बाध्य है यानी पत्नी यौन संबंध के लिए पति को मना नहीं कर सकती. कुल मिला कर यहां यही मानसिकता काम करती है कि चूंकि हमारे यहां विवाह को पवित्र रिश्ते की मान्यता प्राप्त है और इस का निहितार्थ संतान पैदा करना है, इसलिए पतिपत्नी के बीच यौन संबंध बलात्कार की सीमा से बाहर की चीज है. तब तो इस का अर्थ यही निकलता है कि यौन संबंध बनाने की पति की इच्छा के आगे पत्नी की अनिच्छा या उस की असहमति कानून की नजर में गौण है.

ऐसे में यह कहावत याद आती है कि मैरिज इज ए लीगल प्रौस्टिट्यूशन यानी पत्नी का शरीर रिस्पौंस करे या न करे पति के स्पर्श में प्रेम की छुअन का उसे एहसास मिले या न मिले पति की जैविक भूख ही सब से बड़ी चीज है. यह बात दीगर है कि जब प्रेमपूर्ण स्पर्श पर पति की जैविक भूख हावी हो जाती है तब यह स्थिति किसी भी पत्नी के लिए किसी अपमान से कम नहीं होती. जाहिर है, सभी विवाह पवित्र नहीं होते. हमारे समाज में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन के मन में कभी न कभी यह सवाल उठाता है कि क्या वाकई सैक्स पत्नियों के लिए भी सुख का सबब हो सकता है? जिन के भी मन में यह सवाल आया, उन के लिए शादी कतई पवित्र रिश्ता नहीं हो सकता. रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी अपने एक अधूरे उपन्यास ‘योगायोग’ में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया है. उन्होंने उपन्यास की नायिका कुमुदिनी के जरीए यही बताने की कोशिश की है कि सभी विवाह पवित्र नहीं होते. शादी के बाद पति मधुसूदन के साथ बिताई गई रात के बाद कुमुदिनी ने आखिर अपनी करीबी बुजुर्ग महिला से पूछ ही लिया कि क्या सभी पत्नियां अपने पति को प्यार करती हैं?

गौरतलब है कि यह उपन्यास 1927 में लिखा गया था. जाहिर है, वैवाहिक बलात्कार इस से पहले एक सामाजिक समस्या रही होगी और नारीवादी रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस समस्या को अपने इस उपन्यास में बड़ी शिद्दत से उठाया है.

वैवाहिक बलात्कार और राजनेता

वैवाहिक बलात्कार पर यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड का एक आंकड़ा कहता है कि भारत में विवाहित महिलाओं की कुल आबादी की तीनचौथाई यानी 75% महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में अकसर बलात्कार का शिकार होती हैं. मजेदार तथ्य यह है कि आज भी वैवाहिक बलात्कार के आंकड़े पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं. अगर इस से संबंधित आंकड़े उपलब्ध होते तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाना और भी सहज होता, कभीकभार ही कोई मामला दर्ज होता है. विश्व के ज्यादातर देशों में वैवाहिक बलात्कार की गिनती दंडनीय अपराधों में होती है. यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड के इस आंकड़े के आधार पर ही डीएमके सांसद कनीमोझी ने भी बलात्कार विरोधी कानून में बदलाव की मांग की थी. इसी मांग के जवाब में मोदी सरकार में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथी ने बयान दिया कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था, मूल्यबोध और धार्मिक आस्था के अनुरूप नहीं है.

जाहिर है, 16 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में निर्भया कांड की जांच के लिए गठित किए गए वर्मा कमीशन की रिपोर्ट की हरिभाई पारथी ने अनदेखी कर के बयान दिया था. गौरतलब है कि वर्मा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार को भी बलात्कार विरोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश की थी. हालांकि हमारा बलात्कार संबंधी कानून तो यही कहता है कि यौन संबंध बनाने में महिला की सहमति न हो तो उस की गिनती बलात्कार में होगी. लेकिन पति द्वारा बलात्कार को इस से जोड़ कर देखने में सरकार को भी गुरेज है.

शादी एकतरफा यौन संबंध की छूट नहीं

इस विषय पर आम चर्चा के दौरान मध्य कोलकाता में एक डाकघर में कार्यरत संचिता चक्रवर्ती बड़ी ही बेबाकी के साथ कहती हैं कि कानून की बात दरकिनार कर दें. जहां तक यौन संबंध में महिला की सहमति का सवाल है तो उस का निश्चित तौर पर अपना महत्त्व है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. विवाह का प्रमाणपत्र इस महत्त्व को कतई कम नहीं कर सकता. यौन संबंध में पतिपत्नी दोनों अगर बराबर के साझेदार हों तो वह सुख दोनों के लिए अवर्णनीय होगा. विवाह बंधन जबरन यौन संबंध का लाइसैंस किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता.

संचिता कहती हैं कि मोदी सरकार में मंत्री के बयान की बात करें तो उस से तो यही लगता है कि उन के हिसाब से भारतीय संस्कृति में पत्नी की सहमति के बगैर यौन संबंध बनाने की पति को छूट है. भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का वास है. तथाकथित भारतीय संस्कृति में विवाहित महिला पुरुष की बांदी है, भोग की वस्तु है. इसीलिए वैवाहिक बलात्कार उन की तथाकथित भारतीय संस्कृति में लागू नहीं होता. अमेरिका के शिकागो में एक अस्पताल में कार्यरत भारतीय मूल की सुष्मिता साहा का कहना है कि इस विषय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वैवाहिक बलात्कार पर सख्त कानून होना ही चाहिए. आज भारत में जिस संस्कृति की दुहाई दी जा रही है, वही स्थिति कभी ब्रिटेन या न्यूयौर्क में थी. पर अब वहां वैवाहिक बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए कड़े कानून बनाए गए हैं. फिर भारत में यह क्यों नहीं संभव हो सकता?

सुष्मिता कहती हैं, ‘‘जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार उसी तरह नहीं हो सकता, जिस तरह विवाह का प्रमाणपत्र यौन हिंसा की छूट नहीं देता. इसलिए वैवाहिक बलात्कार भी दरअसल दूसरे बलात्कार की ही तरह यौन हिंसा का ही एक मामला है, ऐसा न्यूयौर्क के अपील कोर्ट ने अपने बयान में कहा था. लेकिन अगर एक पत्नी के नजरिए से देखें तो वैवाहिक बलात्कार अन्य बलात्कार से इस माने में अलग है कि यहां यौन हिंसा को महिला का सब से करीबी व्यक्ति अंजाम देता है. यही बात किसी पत्नी को जीवन भर के लिए झकझोर देती है.

विवाह और यौन स्वायत्तता

भारतीय संस्कृति में पारंपरिक विवाह के तहत लड़कालड़की की पारिवारिकसामाजिक हैसियत को देखपरख कर वैवाहिक रिश्ते तय होते हैं. ऐसे रिश्ते में जाहिर है परस्पर प्रेम व मित्रता शुरुआत में नहीं होती है. हालांकि कुछ समय के बाद पतिपत्नी के बीच प्रेम का रिश्ता बन जाता है. पर ऐसे ज्यादातर विवाह एकतरफा यौन स्वायत्तता का मामला ही होते हैं. मोदी सरकार के मंत्री ने जिस भारतीय संस्कृति की बात की है उस में नारीजीवन की इसी सार्थकता का प्रचार सदियों से किया जाता रहा है और इस संस्कृति में औरत पुरुष के खानदान के लिए बच्चे पैदा करने का जरीया और पुरुष के लिए यौन उत्तेजना पैदा करने की खुराक मान ली गई है.हमारी परंपरा में लड़कियां अपने मातापिता को खुल कर सब कुछ कहां बता पाती हैं? खासतौर पर नई शादी का ‘लव बाइट’ आगे चल कर पति का ‘वायलैंट बाइट’ बन जाए तो शादी के नाम पर लड़की अकसर अपने भीतर ही भीतर घुट कर रह जाती है. माना ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है.

2013 में दिल्ली में पारंपरिक विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बैंकौक पहुंचा. हनीमून के दौरान लड़की के साथ उस के पति पुनीत ने क्रूरता की तमाम हदें पार कर के बलात्कार किया. लौट कर लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने दीनदयाल अस्पताल में लड़की की जांच करवाई तो बलात्कार की पुष्टि हुई. इस के बाद भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दायर किया. साफ है कि वैवाहिक बलात्कार पर हमारा कानून एकदम से खामोश भी नहीं है. इस के लिए भी हमारे यहां प्रावधान है. भारतीय दंड विधान की घरेलू हिंसा की धारा 498ए के तहत शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न और क्रूरता के लिए सजा का प्रावधान है. इसी धारा के तहत वैवाहिक बलात्कार का निदान महिलाएं ढूंढ़ सकती हैं.

अन्य देशों की स्थिति

चूंकि विकास और सभ्यता एक निरंतर प्रक्रिया है, इसीलिए दुनिया के बहुत सारे देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कोई कानून नहीं था. लेकिन विमन लिबरेशन ने महिलाओं को अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करना सिखाया. लंबी लड़ाई के बाद सफलता भी मिली. दोयमदर्जे की स्थिति में बदलाव आया. कहा जाता है कि आज दुनिया के 80 देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कानूनी प्रावधान हैं. बहरहाल, दुनिया में वैवाहिक बलात्कार को ले कर चर्चा ने तब पूरा जोर पकड़ा जब 1990 में डायना रसेल की एक किताब ‘रेप इन मैरिज’ प्रकाशित हुई. इस किताब में डायना रसेल ने समाज को अगाह करने की कोशिश की है कि वैवाहिक जीवन में बलात्कार को पति के विशेषाधिकार के रूप में देखा जाना पत्नी के लिए न केवल अपमानजनक है, बल्कि महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा भी है.

2012 में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आयुक्त भारतीय मूल की नवी पिल्लई ने कहा कि जब तक महिलाओं को उन के शरीर और मन पर पूरा अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक पुरुष और महिला के बीच गैरबराबरी की खाई को पाटा नहीं जा सकता. महिला अधिकारों का उल्लंघन ज्यादातर उस के यौन संबंध और गर्भधारण से जुड़ा हुआ होता है. ये दोनों ही महिलाओं का निजी मामला है. कब, कैसे और किस के साथ वह यौन संबंध बनाए या कब, कैसे और किस से वह बच्चा पैदा करे, यह पूरी तरह से महिलाओं का अधिकार होना चाहिए. यह अधिकार हासिल कर के ही कोई महिला सम्मानित जीवन जी सकती है. 1991 में ब्रिटेन की संसद में वैवाहिक संबंध में बलात्कार का मामला उठाया गया था, जो आर बनाम आर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है. ब्रिटेन संसद के हाउस औफ लौर्ड्स में कहा गया कि चूंकि शादी के बाद पति और पत्नी दोनों समानरूप से जिम्मेदारियों का वहन करते हैं, इसलिए पति अगर पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो अपराधी करार दिया जा सकता है. इस से पहले 1736 में ब्रिटेन की अदालत के न्यायाधीश हेल ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था कि शादी के बाद सभी परिस्थितियों में पत्नी पति से यौन संबंध बनाने को बाध्य है. उस की शारीरिक स्थिति कैसी है या यौन संबंध बनाने के दौरान वह क्या और कैसा महसूस कर रही है, इन बातों के इसलिए कोई माने नहीं हैं, क्योंकि शादी का अर्थ ही यौन संबंध के लिए मौन सहमति है. हेल के इस फैसले को ब्रिटेन में 1949 से पहले कभी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन 1949 में एक पति को पहली बार पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया गया.

ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय अपराध है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में भी इस के लिए कानून बना कर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी पत्नी की रजामंदी के बगैर संभोग को बलात्कार करार दिया है. कोर्ट ने अपनी इस घोषणा का आधार हिंदू धर्म को ही बताते हुए कहा है कि हिंदू धर्म में पति और पत्नी की आपसी समझ को ही महत्त्व दिया गया है. इसलिए यौन संबंध बनाने में पति पत्नी की मरजी की अनदेखी नहीं कर सकता. अब जब गरीब राष्ट्र नेपाल घोषित रूप से भी हिंदू राष्ट्र है, वैवाहिक बलात्कार के लिए महिलाओं के पक्ष में कानून बना सकता है तो भारत में क्या दिक्कत है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें