Festive Special: घर पर मिनटों में तैयार करें नारियल के Instant लड्डू

चाहे शादी ब्याह हो या पूजा पाठ,पार्टी या कोई अन्य फंक्शन मिठाइयों के बिना पूरा हो ही नहीं सकता.मिठाई किसी भी अवसरों की जान होती है. और अगर इन अवसरों पर अच्छी क्वालिटी की मिठाई न मिले तो समझ लीजिए कि अवसर का का मजा किरकिरा हो गया.

भारतीय खाने की तरह भारतीय मिठाइयों में भी बहुत विविधता है. बंगाली मिठाइयों में छेने की प्रमुखता है तो पंजाबी मिठाइयों में खोये की. उत्तर भारत की मिठाइयों में दूध की प्रमुखता है तो दक्षिण भारत की मिठाइयों में अन्न और नारियल की. बेशक त्योहारों व दूसरे अनुष्ठानों में मिठाई का बहुत महत्व होता है और हममे से अधिकतर लोग बाहर की मिलावटी मिठाइयों को उसके नकारात्मक परिणाम को जाने बिना खरीदकर घर लाते हैं, और बच्चे व परिवार के सभी लोग उसे स्वाद से खाते भी हैं.
पर क्या आप जानते है त्योहार के समय मिलावट चरम पर होती है, क्योंकि दूध, मावे की मांग काफी होती है और इससे व्यापारियों को मुनाफा होता है. इसलिए वो अक्सर मिठाईयों को मिलावटी मावे के साथ-साथ सस्ते और हानिकारक रंगों का इस्तेमाल कर, बाजार में सजाकर और आकर्षक बनाकर बेचते है .जिसका परिणाम आपके और आपके परिवार के लिए बेहद घातक साबित हो सकता हैं.
तो क्यों न हम इन मिठाइयों को घर पर बनाने की कोशिश करे.हो सकता है वो बाहर की मिठाइयों की तुलना में देखने में ज्यादा आकर्षक न लगे लेकिन उनसे हमे और हमारे अपनों को कोई नुक्सान नहीं होगा.

तो चलिए आज हम बनायेंगे बिना मावे के नारियल के लड्डू वो भी बहुत आसान तरीके से.ये लड्डू जितनी आसानी से बन जाते है उतने ही ज्यादा ये स्वादिष्ट भी लगते है और इनकी सबसे बड़ी खासियत ये है की ये जल्दी खराब भी नहीं होते .तो चलिए जानते है इसके लिए हमें क्या-क्या चाहिए-

कितने लड्डू बनेंगे-15 से 20 मध्यम आकार के
कितना समय-20 से 25 मिनट
मील टाइप-वेज

हमें चाहिए-

सूखे नारियल का बुरादा- 300 gm
चीनी -100 gm
फुल क्रीम पका हुआ दूध -200 ml
घी -1 छोटा चम्मच
इलाइची पाउडर – ½ छोटी चम्मच (ऑप्शनल)
मिल्क पाउडर-1 टेबल स्पून (ऑप्शनल)

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बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले एक पैन में घी गर्म करे.इसके बाद इसमें नारियल का बुरादा या घिसा हुआ नारियल डाल कर उसे 4 से 5 मिनट माध्यम आंच पर भून ले.

2-अब इसमें दूध डाल कर इसे अच्छे से मिलाये .जब दूध पूरा अच्छे से मिलकर सूख जाये तब उसमे चीनी डाल दे और उसको करीब 7 से 8 मिनट गल जाने तक मिलाये.

3-जब चीनी गल जाये तब उसमे मिल्क पाउडर दाल कर फिर से मिलाये.अब आप देखेंगे की मिश्रण सूख सा गया है .तब आप चाहे तो इसमें पिसी हुई इलाइची डाल सकते है .

4-अब गैस को बंद करके मिश्रण को एक प्लेट में निकाल ले और हल्का ठंडा होते ही इसके गोल -गोल लड्डू बना ले.ये बहुत ही आसानी से बन जायेंगे . [बस एक चीज़ याद रखियेगा की मिश्रण को ज्यादा ठंडा नहीं होने देना है.]

5-अब एक दूसरी प्लेट में नारियल का बुरादा निकाल कर बने हुए लड्डू को उसमे हल्का सा घुमा ले.इससे नारियल का बुरादा लड्डू में अच्छे से चिपक जायेगा और ये देखने में भी अच्छे लगेंगे. इसी तरह से सारे लड्डू बना ले.

6- तैयार है instant नारियल के लड्डू . इन्हें फ्रिज में स्टोर करे.आप इसे आराम से कुछ दिन खा सकते है.

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बढ़ती आय की धर्म पर बर्बादी

राधे राधे .राधे राधे. राधे राधे. जय श्रीराम. जय श्रीराम .जय श्रीराम. रामाकांत पूरी श्रद्धा के महात्मा के साथ भक्ति में लीन थे. पूरी मंडली साथ में घंटी भी बजा रही थी. ये आवाजें दोनों बच्चों को पढ़ने नहीं दे रही थीं. वह बार-बार जाकर अपनी मां से कहता ,”मां प्लीज पापा को बोलो ना कि सब लोग थोड़ी हल्की आवाज में पूजा करें. मेरा कल बोर्ड का पेपर है और मैं पढ़ नहीं पा रहा हूं. जब वह अपने गुस्से को जाहिर कर रहा था तभी रमाकांत ने सुन लिया और तनमनाते हुए बोले ,”यह कोई पढ़ने का टाइम है? अगर कल परीक्षा है तो आज तो तुम्हें भगवान के आगे नतमस्तक होना चाहिए! बोलो जय सियाराम… जय सियाराम”.…फिर रमाकांत अपने बच्चों की परेशानी से बेखबर… उल्टा अपनी पत्नी को झिड़कते हुए, “अकल नहीं है क्या तुझ में! महात्मा बैठे हैं पूजा कर रहे हैं तू यहां बच्चों में लगी हुई है. बेवकूफ औरत जाओ सभी के लिए गर्म दूध बनाकर लेकर आओ. बेचारी करती भी क्या! डरते हुए ,’जी’ बोला और लग गई सेवा टहल में. बीच-बीच में उसकी सास की भी आवाजें आती रहीं, …”बहू प्रसाद बना कि नहीं?… बहू बिस्तर लगाया कि नहीं”… देखो महात्मा की सेवा में कोई कमी ना रह जाए….. जितनी मन से सेवा कर लेगी….. उतनी ही मेवा मिलेगी..… बहुत भाग्य से महात्मा घर में पधारते हैं…. कितने लोगों का निमंत्रण गया होगा…. लेकिन हमारा ही स्वीकारा और आज हम जो भी हैं वह सब इन्हीं की वजह से हैं,,,आदि आदि.”
पूरा दिन और आधी रात तो इस सेवा के चक्कर में ही निकल जाती. मुश्किल से 2 घंटे ही लेट पाती कि 4:00 बजे से ही आवाज लगने लगती..” महात्मा के नहाने का टाइम हो गया है… इंतजाम हुआ कि नहीं… फिर वह सुबह 6:00 बजे प्रभात फेरी के लिए जाएंगे…. याद है ना कि तुम्हें उठकर सबसे पहले स्नान करना है.”

ऐसा हर साल होता था जब से वह इस घर में आई थी यही सब देख रही थी. उसे इस बात का बहुत दुख था कि किसी गरीब या जरूरतमंद को तो मांगने पर भी ₹10 नहीं दिए जाते. लेकिन महात्माओं में लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते थे. शुरु शुरु में तो जब शादी करके आई तब सिर्फ एक स्वामी जी आते थे. वह भी 2 या 3 घंटे के लिए. लेकिन जैसे-जैसे महात्माओं पर विश्वास और उतनी ही तेजी से आदमी की आमदनी बढ़ती गई , वैसे ही एक स्वामी के साथ दो लोग… और.. फिर अब तो महात्मा अपनी पत्नी और पूरे 11 लोगों की मंडली के साथ आते हैं. एक व्यक्ति की सेवा टहल फिर भी आसान थी लेकिन पूरी मंडली की सेवा,ऊपर से आस-पड़ोस और रिश्तेदारों का मेला सभी को महात्मा से मिलना होता है और काम करने वाली वह अकेली. अभी हाल ही की तो बात है जब पड़ोस में साक्षी गोपाल महाराज आए थे, कितने दिनों तक सुबह शाम उनके प्रवचन और सुबह 5:00 बजे प्रभात फेरी में वे बिना नागा शामिल होते रहे. काम धाम की कोई चिंता नहीं थी चिंता थी तो बस बिजनेस को बढ़ाना है महात्मा की सेवा करनी है.

कैसा अंधा विश्वास

विश्वास या आस्था अपनी जगह है. लेकिन अंधा विश्वास यह मेरी समझ से परे है. ऐसा भी कैसा अंधा विश्वास हो गया जो आप अपने परिवार की दुख तकलीफ ना समझ सको. छोटी-छोटी बातों के लिए पंडे पुजारियों और महात्माओं के चक्कर लगाते हुए लोगों को देखती हूं तो खून खौलता है. जैसे-जैसे हम ग्लोबलाइजेशन की तरफ बढ़ रहे हैं वैसे वैसे ही लोगों में अंधविश्वास बढ़ता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अंधविश्वास के मामले में पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं. सच में जिस देश से ने सेटेलाइट जैसे वैज्ञानिक दावे किए हो वह नया भारत अंधविश्वास की तरफ बढ़ रहा है.

दान क्यों?

अकसर नुकसान के डर से पुण्य कमाने को या मनौती मांगने व पूरी होने के एवज में दान दिया जाता है. चढ़ावा चढ़ाया जाता है. कभी कुछ समस्याएं दूर करने के लिए अनाप-शनाप उपाय बताए जाते हैं. तरह तरह से दान होते हैं . धर्मगुरु ,धार्मिक संस्थाएं, सभी इसी तरह धन इकट्ठा करने में लगी रहती हैं. जैसे राजनीतिक पार्टियां अपना फंड इकट्ठा करने के लिए चंदा उगाही करते हैं.
हकीकत में तो भक्त व श्रद्धालु भले ही गरीब और कंगाल हों लेकिन जन्म से मरण तक कर्मकांड करके उनसे वसूली बराबर होती रहती है. प्रायश्चित करने, ग्रह चाल ठीक कराने, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने, आदि बहुत सी समस्याओं के हल के बहाने भी मोटे दान दक्षिणा होती है. सोचने की बात यह है कि जिस धर्म पर भगवान के नाम पर लोगों को डराया जाता है उसके नाम पर चलने ठगने व गलत काम करने में खुद पंडित पुजारी क्यों नहीं डरते .

दिखावे से किसका भला?

उदाहरण- एक एक्सपोर्टर है. शौक और स्वाद सब पाले हुए हैं. लेकिन साल में दो बार बांके बिहारी मंदिर वृंदावन जाकर भंडारा करके आते हैं. पंडो को खुश रखते हैं और यह सोच कर मस्त रहते हैं कि ,”जितना मैं कमा रहा हूं उसका एक हिस्सा भगवान को दे रहा हूं और अब कोई परेशानी नहीं आएगी और नाम होगा वह अलग”. घर की महिलाएं भी पूजा पाठ में लगी रहतीं हैं.

मंदिर तो मंदिर घरों में भी बहुत सी मूर्तियां रख लेते हैं और सुबह शाम उनकी पूजा की जाती है. घरों में महात्माओं को प्रवचन के लिए बुलाना, शान की बात समझी जाती है. जितना बड़ा महात्मा और उसकी टोली, उतनी ही समाज में प्रतिष्ठा की बात मानी जाती है.
गरीबों को धन की और अमीरों को यश की इच्छा रहती है. इसलिए मंदिरों में पत्थर लगाए जाते हैं या घरों में इन महात्माओं को बुलाया जाता है. अब दान पुण्य दिखावे की भेंट चढ़ चुका. सबको जताने का जमाना है, अपनी वाहवाही के लिए लोग दान देते हैं या इन महात्माओं को निमंत्रण. ऐसे भी लोग हैं जो काली कमाई तो बहुत करते हैं, लेकिन पाप से डरते हैं इसलिए वह इस तरह के दान सेवा बेफिक्री से करते हैं. ताकि उन्हें उतना ही पुण्य मिल जाए. झूठी शान और दिखावा चाहे कैसा भी हो एक बुरी आदत है.

हकीकत में जरूरी क्या है?

यदि कोई अनपढ़ ऐसा करें तो भी समझ में आता है लेकिन कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति पैसे को पानी के जैसे बहाये तो शर्म की बात है.पैसा कमाना ही नहीं बचाना भी एक कला है. क्योंकि जो बचाया समझो बस वही काम आया. इसलिए फिजूलखर्ची करके दान देने या चढ़ावा चढ़ाने से बेहतर है बचत करना. उस पैसे से दूसरी जरूरतों को पूरा करना. यदि दान देना व चढ़ावा चढ़ाना बंद हो जाए तो मुफ्त खोरी जैसी समस्या ही खत्म हो जाए. लेकिन ऐसा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है.

हम आज भी अंधविश्वास तथा बेड़ियों की पगडंडी पर घिसट रहे हैं. गरीबी,गंदगी और अशिक्षा विकास के रास्ते का रोड़ा है. ऐसे में दान और चढ़ावा रास्ते के गड्ढे हैं. रोशनी की मशाल नहीं अब पुरानी जंजीरों को तोड़ कर उनसे छुटकारा पाने का वक्त आ गया है. अतः दिखावा और मन का वहम छोड़ें.

पढ़े लिखे भी जिम्मेदार

अगर ढोंगी पन्डे पुजारियों की दुकानें चल रही हैं तो इसका एक कारण वे पढ़े लिखे लोग भी हैं, जो इस जाल में फंसकर अपना बहुत कुछ लुटा देते हैं. बालीवुड भी अछूता नहीं इससे. कोई भी दुकान तभी चलती है जब ग्राहक उसमें जाए पंडे पुजारियों की दुकान है. अगर फल-फूल रही है तो इसमें जितना हाथ गरीब का है उतना ही इन अमीरों का भी सोचने वाली बात है कि जिस धर्म भगवान का नाम लेकर लोग पंडों के पास जाते हैं, उसी भगवान के घर में काम करने वाले कर्मचारियों के मन में गलत हरकत करने की बात क्यों और कैसे आती है?

नाजायज मांगे

उदाहरण – एक दंपक्ति को कई वर्षों से कोई औलाद नहीं थी. वह अक्सर अपने तांत्रिक बाबा से इस विषय पर मिलते थे. उस बाबा ने भी मौके का फायदा उठाया और पति से कहा ,”रात भर के लिए अपनी पत्नी को मेरे पास छोड़ जाओ”. पति ने इस बाबा पर ऐसी अंधभक्ति दिखाई कि उसने खुद अपनी पत्नी को रातभर के लिए बाबा को सौंप दिया. उस बाबा ने पूरी रात महिला के साथ दुष्कर्म किया.

हैरानी तो यह बात सोचकर होती है कि पढ़े-लिखे लोगों और नेताओं के सामने धर्म का गुणगान करने वाले ये बाबा, महात्मा या तांत्रिक जब कोई आपत्तिजनक मांग रखते हैं तो वे उन्हें तमाचा मारने के बजाय उस नाजायज मांग को पूरा करते हैं. साथ ही अंधी आस्था रखते हैं.

उदाहरण

यूपी का एक बाबा दावा करता हैं कि वह गठिया को ठीक कर सकता हैं. वह मरीज का खून निकाल कर उसे एक तांबे के बर्तन में रख देते है और फिर उसे मरीज को पिलाते हैं. हुआ यूं कि एक फिजिशियन की खुद की बहन उनके द्वारा दी गई चेतावनियों के बाद भी इस बाबा के चक्कर में पड़ गयी. और फिर बहुत बीमार भी हो गई क्योंकि उसका हीमोग्लोबिन लेवल 2 हो गया ( नॉर्मल 15 या 12) .
ऐसे उदाहरण हमें हर रोज देखने को मिलते हैं. इस लड़की को कई दिन आईसीयू में बिताने पड़े थे. बहुत डॉक्टर व नर्सो ने उसकी जान बचाने के लिए बहुत मेहनत की. व उसको बचाने के लिए फैमिली ने 5 लाख रुपए खर्च किए. जबकि यदि गठिया का इलाज रूटीन से कराया जाए तो महीने में केवल एक हजार रूपए तक का खर्च आता है.

पढ़े लिखे और नेता भी शामिल है

ये किस्सा है भूपेंद्र सिंह चूडास्मा, जो गुजरात के शिक्षा मंत्री हैं और आत्माराम परमार, जो राज्य के सामाजिक न्याय मंत्रालय का ज़िम्मा संभाले हैं, वह दोनों पिछले दिनों अचानक सुर्खियों में आए. वजह थी कि वह वीडियो वायरल हो गया था जिसमें एक तांत्रिक अपना कारनामा दिखा रहा था और जनता ही नहीं, बल्कि गुजरात के उपरोक्त दोनों मंत्री उस नज़ारे को देख रहे हैं.

भक्ति और पूजा के बीच लोगों में अंधविश्वास इस कदर फैला हुआ है जिसकी कोई सीमा नहीं. विज्ञान के युग में भी अन्धविश्वास पूरी तरह लोगों पर हावी है. लोग सच्चाई के विपरीत बाबाओं के चक्कर में पड़ कर कुछ भी कर रहे हैं. कोई गुर्दे की पथरी निकलवा रहा है, तो कोई पेट में कीलें होने का दावा करते तांत्रिक से उसका इलाज करवा रहा है. इन बातों को सुनकर या देखकर सामने वाले व्यक्ति की बुद्धि पर तरस आता है.अगर भगवान का नाम लेने या पंडे पुजारी के पास जाने और पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाया करते हैं, सुख समृद्धि मिल जाती तो दुनिया में इतना दुख ही क्यों होता है.

Serial Story: सुबह दोपहर और शाम

Serial Story: सुबह दोपहर और शाम (भाग-3)

आजकल विभू कुछ ज्यादा ही चिड़चिड़ा हो गया है. सारा दिन रिरियाता रहता है. अकेला छोड़ो तो कुछ भी उठा कर मुंह में डाल लेता है. 2 दिन से तो लूज मोशन इतने ज्यादा हो गए कि ड्रिप चढ़वाने तक की नौबत आ गई. घबराई सी काव्या उसे पास के डाक्टर को दिखाने ले गई.

‘‘बच्चे के दांत निकल रहे हैं. ऐसे में मसूढ़ों में खुजली होने के कारण बच्चों की हर समय कुछ न कुछ चबाने की इच्छा होती है, इसलिए वे कुछ भी मुंह में डालते रहते हैं. इसी से पेट में इन्फैक्शन हो गया है. आप बच्चे को खिलौनों में उलझाए रखें. कोशिश करें कि बच्चा अकेला न रहे,’’ डाक्टर ने उसे कारण बता कर समझाया.

‘‘हर बार बस मैं ही बुरी कहलाती हूं. अब साथी कहां से लाऊं, बच्चे को अकेले रखने का फैसला भी तो मेरा अपना ही सोच था. काव्या रोआंसी ओ आई. आज उसे सास की बहुत याद आ रही थी. लेकिन मनमरजी से जीने की ऐंठ अभी भी कम नहीं हुई थी.

8 महीने का विभू अब घुटनों के बल चलने लगा था. सो कर उठने के बाद चलना शुरू होता तो फिर चीटी की तरह रुकने का नाम ही नहीं लेता था. घर का वह हर सामान जो उस की पहुंच में आ जाता, बस उठाया और धम्म से नीचे… कभी ड्रैसिंगटेबल उस की जद में होती तो कभी रसोई के बरतन… कभीकभी अभय के जरूरी कागजात भी उस के हाथों जन्नत पा जाते. काव्या उस के पीछेपीछे भागती थक जाती, लेकिन विभू सामान गिराता नहीं थकता, क्या करे काव्या… किसी से शिकायत करने की स्थिति में भी नहीं थी.

फिर एक दिन काव्या दोपहर में विभू के साथ लेटी थी. गृहस्थी के बोझ से उकताई हुई काव्या जल्द ही खर्राटे भरने लगी. विभू की नींद कब खुली उसे पता ही नहीं चला. पलंग से नीचे उतरने की कवायद में विभू औंधे मुंह गिर पड़ा. गिरने के साथ ही पलंग का कोना उस के माथे में लगा और खून निकलने लगा. बच्चे की चीख के साथ काव्या की नींद खुली. बच्चे को खून से लथपथ देख कर काव्या के हाथपांव फूल गए. तुरंत अभय को फोन लगाया और खुद विभू को ले कर डाक्टर के पास भागी.

‘‘सिर में गहरी चोट आई है… 4 टांके लगे हैं… मैं ने आप से पहले भी कहा था कि इस उम्र में बच्चे अधिक चंचल होते हैं, उन्हें हर समय निगरानी में रखना चाहिए… जरा सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है,’’ डाक्टर के कहने के साथ ही काव्या की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘तुम से नहीं पलेगा बच्चा… मां को फोन लगाओ,’’ अभय उस पर लगभग चिल्ला ही उठता पर हौस्पिटल के शिष्टाचार के नाते उसे अपनी जबान पर साइलैंसर लगाना पड़ा. बच्चे की इस हालत के लिए वह काव्या को ही कुसूरवार मान रहा था. काव्या ने मोबाइल निकाला और सास का नंबर डायल किया.

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‘‘यहां नैटवर्क नहीं आ रहा है, मैं बाहर जा कर ट्राई करती हूं,’’ काव्या को उस के ईगो ने बहाने बनाने खूब सिखा दिए थे.

‘‘सुन रिया… यार बहुत बड़ी प्रौब्लम हो गई… लगता है अब अभय अपने मांपापा को बुलाए बिना नहीं मानेगा… बता न क्या करूं? कैसे उन्हें आने से रोकूं?’’ काव्या ने रिया को फोन लगाया और आज के घटनाक्रम का ब्यौरा देने लगी.

‘‘अरे यार, मैं अपनी ससुराल आई हुई हूं… अभी बात नहीं कर सकते… तू नव्या से बात कर न…’’ रिया ने उसे बात पूरी करने से पहले ही टोक दिया.

‘‘तुम और ससुराल? तुम्हें तो सासससुर के साथ रहना कभी नहीं सुहाया… फिर अचानक तुम्हारा यह फैसला… तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न…’’  अब चौंकने की बारी काव्या की थी.

‘‘हां यार, अब मैं भी तुम्हारी ही श्रेणी में आने वाली हूं न… तुम्हारी हालत देखदेख कर मुझे समझ में आ गया कि कुछ दिन का हनीमून पीरियड तो ठीक है, लेकिन हमेशा के लिए परिवार से दूर रहने में कोई समझदारी नहीं है, खासकर तब जब निकट भविष्य में उन की जरूरत पड़ने वाली हो कहने के अंदाज से ही रिया का स्वार्थ टपक रहा था.

काव्या को लगा मानो जिस डाली का वह सहारा लिए बैठी थी उस पर किसी ने कुल्हाड़ी चला दी.

अब तक अभय अपने मांपापा को फोन कर चुका था. शाम होतेहोते दादादादी अपने पोते के पास थे. विभू को अभी तक सिर्फ अपने मांपापा के पास रहने का ही अभ्यास था. इसीलिए अजनबी चेहरों को देखते ही वह काव्या की गोद में दुबक गया. लेकिन खून आखिर अपनी तरफ खींचता ही है… थोड़ी ही देर में विभू दादादादी से घुलमिल गया. रात को भी उन्हीं के साथ सोया.

अगली सुबह काव्या के चेहरे की रौनक और अभय के चेहरे की संतुष्टि

बता रही थी कि महीनों बाद दोनों ने इतनी निश्चिंतता से नजदीकियां भोगी हैं.

पोते के आगेपीछे भागतेभागते दादादादी के घुटनों का दर्द न जाने कहां गायब हो गया. दूधब्रैड के सहारे दिन निकालने वाले घर की रसोई दोनों समय पकवानों की खुशबू से महकने लगी. दादी की कोशिशों से विभू ने फीडिंग बोतल छोड़ कर गिलास से दूध पीना सीख लिया. दादा की उंगली थाम कर डगमगडगमग पग भी भरने लगा था.

‘‘काव्या, इस तरह तो तुम हम सब को खिलाखिला कर तोंदू बना दोगी,’’ एक शाम अभय ने रीझ कर कहा तो काव्या निहाल हो गई.

‘तसवीर के इस दूसरे रुख से मैं अब तक अनजान ही रही… उफ, कितनी बड़ी नासमझ थी,’ सोच काव्या आत्मग्लानि से भर जाती.

‘‘बच्चों के साथ 10 दिन कैसे बीत गए पता पता ही नहीं चला. अब हमें लौटना चाहिए,’’ एक दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर ससुरजी ने कहा तो काव्या हैरत से अपनी सास की तरफ देखने लगी.

‘‘हां, विभू के साथ मेरा तो जैसे बचपन ही लौट आया था, लेकिन फिर भी… बच्चों को उन की जिंदगी उन के तरीके से जीने देनी चाहिए. ये उन के खेलनेखाने के दिन हैं. उम्र का यह दौर लौट कर थोड़े आता है…’’ सास ने चाय पी कर कप नीचे रखते हुए पति की हां में हां मिलाई.

‘‘लौटना तो है ही… लेकिन आप अकेले नहीं जाएंगे, हम सब साथ चलेंगे… मैं ने अपना ट्रांसफर फिर अपने होम टाउन करवाने के लिए ऐप्लिकेशन दे दी है. तब तक आप लोग यहीं रहेंगे… अपने परिवार के साथ…’’ अभय ने एक रहस्यमयी मुसकान उछाली तो काव्या ने भी उस का साथ दिया.

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‘‘बड़े, सयाने सही कहते हैं कि बिस्तर चाहे कितना भी आरामदायक क्यों न हो, पूरी रात एक करवट नहीं सोया जा सकता,’’ दादी पहले अपने मूल और फिर सूद की तरफ देख कर मुसकराईं.

‘‘हां, सुबह के उड़े हुए पंछी शाम को घर लौटते ही हैं… यह अलग बात है कि कभीकभी रात भी हो जाती है, लेकिन लौटते तो अंतत: घोंसले में ही है न.’’  दादा भी मुसकरा दिए.

विभू अपने पापा की उंगली थामे दादा की बगल में खड़ा था. सुबह, दोपहर और शाम तीनों मुसकरा रहे थे.

Serial Story: सुबह दोपहर और शाम (भाग-2)

लुटे मुसाफिर की तरह तीनों गए. बच्चे के जन्म की खुशी फीकी पड़ गई. महीनाभर होने को आया. पतिपत्नी की बातचीत में ठंडापन आ गया. न चुहल… न मानमनौअल..न रूठनामनाना… न शिकवाशिकायत… सबकुछ मशीनी… मां अलग परेशान… अभय अलग परेशान… कहीं किसी मध्यमार्ग की गुंजाइश ही नजर नहीं आ रही थी.

अभय की ससुराल से बच्चे के नामकरण का न्योता आया… सब गए भी… लेकिन बुझेबुझे से… नाम रखा गया ‘विभू.’

‘‘बहू, अभय ने ट्रांसफर ले लिया है… बच्चे को ले कर अब तुम्हें वहीं उस के साथ जाना है…’’ रवानगी से पहले सास के मुंह से झरते अमृत वचनों पर सहसा काव्या विश्वास नहीं कर पाई. उस ने पति की तरफ देखा जो मुंह लटकाए खड़ा था.

अभी तो उदास हो रहे हो सैयांजी… जब खुली हवा में पंख पसारोगे तब पता चलेगा कि आसमान कितना विशाल है…’’ काव्या ने पति की तरफ भरोसा दिलाने की गरज से देखा.

3 महीने के विभू को ले कर काव्या ने अपने सपनों की दुनिया में पहला पांव रखा. नहींनहीं यह जमीन नहीं थी यह तो आसमान था… काव्या की ख्वाहिशों को पंख उग आए थे. ‘हम दो हमारा एक’ कल्पना करती काव्या खुशी से दोहरी हुई जा रही थी. उस ने पर्स एक तरफ पटका… विभू को पालने में लिटाया और पूरे घर में घूमघूम कर ‘स्वीट होम’ वाली फीलिंग लेने लगी.

‘‘एक तरह से देखा जाए तो यह मेरा गृहप्रवेश ही है… क्यों न आज कुछ खास बनाया जाए…’’ अपनी जीत की खुशी मनाते हुए काव्या ने रसोई का रुख किया. सामान खंगाला तो कुछ विशेष हाथ नहीं लगा.

‘‘छड़ों की रसोई ऐसी ही होती है,’’ काव्या मुसकरा दी. सूजी का हलवा बनाने के लिए कड़ाही चढ़ाई ही थी कि विभू रोने लगा. अभय बाथरूम में था. काव्या बच्चे को देखने की जल्दी में रसोई से बाहर लपकी तो गैस बंद करना भूल गई और जब वापस आई तो रसोई की हालत देख कर सिर पीट लिया. कड़ाही के घी ने आग पकड़ ली थी. वह तो अभय ने तुरंत सिलैंडर बंद कर के कड़ाही परे फेंक दी वरना कुछ भी अनर्थ हो सकता था. खैर, किसी तरह कच्चापक्का पका कर अभय को औफिस रवाना किया.

दोपहर के 2 बजने को आए, लेकिन अभी तक काव्या को नहाने तक का समय नहीं मिला. जैसे ही विभू की आंख लगती और काव्या बाथरूम की तरफ जाने को होती, पता नहीं कैसे शैतान को पता चल जाता और वह फिर कुनमुनाने लगता.

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‘‘वहां तो कोई न कोई होता इसे देखने के लिए…’’ काव्या के जेहन में सारा की छवि घूम गई.

‘गुलाब चाहिए तो कांटे भी स्वीकार करने होंगे काव्या रानी,’ काव्या ने अपने निर्णय को जस्टीफाई किया. इतनी जल्दी वह पराजय स्वीकार कैसे कर लेती. फिर उस ने एक जुगाड़ लगाया, विभू का पालना बाथरूम के दरवाजे से सटा कर रख दिया और आननफानन 2 कप शरीर पर डाल कर नहाने की औपचारिकता पूरी की. फटाफट गाउन पहना और 2-4 कौर निगले… तब तक विभू महाराज फिर से कुलबुलाने लगे… काव्या उसे ले कर बिस्तर पर लेट गई. दिन की पहली सीढ़ी ही पार हुई है… पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…

शाम को अभय लौटा तो काव्या तुड़ेमुड़े गाउन में अलसाई सी बैठी थी. विभू अभी भी उस की गोद में था. बच्चे को अभय के हाथों में थमा कर चाय बना लाई और पीतेपीते दिनभर का दुखड़ा रो दिया. अभय ने उस में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.

‘‘मम्मी का चमचा,’’ काव्या ने मुंह सिकोड़ा.

‘‘सुनो, आज खाना बनाने की हिम्मत नहीं है. चलो न कहीं बाहर चलते हैं… वैसे भी पिज्जा खाए बहुत दिन हो गए.’’ काव्या ने चिरोरी की तो अभय चलने के लिए तैयार हो गया.

‘हवा के साथसाथ… घटा के संगसंग… ओ साथी चल… तू मुझे ले कर साथ चल तू… यूं ही दिनरात चल तू…’ काव्या एक हाथ से अभय की कमर पकड़े और दूसरे हाथ से विभू को संभाले बाइक पर उड़ी जा रही थी… अभय के शरीर से उठती परफ्यूम और पसीने की मिलीजुली गंध ने उसे दीवाना बना दिया था. हालांकि अभय अभी भी चुप सा ही था. काव्या चाहती थी कि कुछ देर यों ही हवा से अठखेलियां होती रहें. लेकिन तभी अभय ने पीज्जाहट के सामने ले जा कर बाइक रोक दी.

महीनों बाद दिलबर के साथ आउटिंग थी… काव्या ने जीभर ‘ओनियन,

कैप्सिकम, टोमैटो पिज्जा विद डबल चीज’ खाए, साथ में फ्रैंचफ्राइज और गर्लिक ब्रैड भी… विभू थोड़ी देर तो खुश रहा, फिर परेशान करने लगा तो काव्या ने फीड करवा दिया. मां की छाती से लगते ही बच्चा सो गया. घर पहुंचते ही काव्या ने खुद को बिस्तर के हवाले कर दिया. दिनभर की थकीहारी तुरंत ही नींद के आगोश में चली गई. अभय इंतजार करता रह गया. अभी नींद आंखों में पूरी तरह से घुली भी नहीं थी कि विभू बाबू ने रंग बदलने शुरू कर दिए. आधेआधे घंटे के अंतराल पर 4 बार कपड़े गंदे कर दिए. पोतड़े बदलतेबदलते काव्या का रोना छूट गया. अभय ने उसे दवा दे दी, लेकिन दवा भी तो असर करतेकरते ही करती है. खैर, किसी तरह रात बीती तो विभू की आंख लगी. काव्या ने भी पलकें झपक लीं. आंख खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. अभय औफिस जाने के लिए लगभग तैयार था.

‘‘सुनो, तुम आज खाना बाहर से ही मंगवा लेना,’’ काव्या अपराधबोध से घिर गई.

‘‘आगेआगे देखिए होता है क्या,’’ रात की घटना से बौखलाया अभय बुदबुदाया.

पति के औफिस जाते ही काव्या ने नव्या को फोन लगाया और रात का किस्सा कह सुनाया.

‘‘यह तो मजे की सजा है रानीजी… कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है…’’ बहन ने उसे छेड़ा तो काव्या कुढ़ कर रह गई.

‘‘हो सकता है कि कल तुम ने जो पिज्जा खाया वह बच्चे को हजम नहीं हुआ और वह रातभर परेशान रहा…’’  अब तक रिया भी कौन्फ्रैंसिंग के जरीए उन के साथ बातचीत में शामिल हो चुकी थी.

‘‘यह एक और नई मुसीबत कि मन का खाओ भी नहीं…’’ काव्या ने विभू की तरफ देखा.

‘‘तू एक काम कर न विभू को बोतल से दूध पिलाना शुरू कर दे,’’ नव्या ने फिर सलाह दे डाली.

‘‘लेकिन डाक्टर तो कहते हैं कि कम से कम 6 महीने तक बच्चे को स्तनपान करवाना चाहिए,’’ काव्या ने शंका जाहिर की.

‘‘अरे ओ ज्ञानी की औलाद, जिन बच्चों की मां उन के पैदा होते ही चल बसती हैं, वे भी तो किसी तरह से पलते होंगे न,’’

रिया का यह भद्दा मजाक काव्या को जरा भी रास नहीं आया लेकिन विभू को ऊपर का दूध पिलाने वाली बात जरूर उस के दिमाग में फिट बैठ गई. दूसरे दिन अभय के औफिस जाते ही काव्या फीडिंग बोतल खरीद लाई और ‘मिशन दूध पिलाओ’ में जुट गई.

काव्या ने जैसेतैसे कर के 2 घूंट बच्चे के गले में उड़ेले और सफलता पर अपनी पीठ थपथपाने लगी, लेकिन यह क्या थोड़ी ही देर में विभू ने उलटी कर दी. वह खुद तो उलटी में लिपटा ही, तकिया सहित बैड की चदर भी खराब कर दी. रोने लगा वह अलग मुसीबत.

‘फिर भूख लग आई लगता है,’ सोच कर काव्या ने फिर से बोतल उस के मुंह से लगा दी. बच्चे को दूध हजम नहीं हुआ और 2-3 घंटे बाद ही उस ने दस्त करने शुरू कर दिए.

‘‘लगता है मुसीबतों ने मेरे ही घर का रास्ता देख लिया है,’’ परेशान सी काव्या भुनभुना रही थी. लेकिन शाम होतेहोते फिर से सजधज कर अपनी आजादी का जश्न मनाने के लिए तैयार हो गई. विभू को भी हगीज पहना दिया.  अभय के औफिस से आते ही तीनों फिर चल पड़े हवाखोरी करने.

विभू को बोतल का दूध अब भी कम ही हजम होता था, लेकिन काव्या ने हार

नहीं मानी… हिचकोले खाती गाड़ी चल रही थी…   एक तरफ आजादी की खुली हवा थी तो दूसरी तरफ जिम्मेदारी की बेडि़यां भी थीं… कभी काव्या पंख पसार कर खुश होती तो अगले ही पल पंख सिकुड़ भी जाते. इसी तरह धूपछांव से दिन निकल रहे थे, लेकिन चैन के दिनों से कहीं लंबी बेचैनियों की रातें होने लगी थीं.

2 महीने हो गए सास ने एक बार भी आ कर पोते को नहीं संभाला. बस फोन पर ही हालचाल पूछ लेती थीं. जैसेजैसे विभू बडा हो रहा था, काव्या के लिए अकेले बच्चे को संभालना दूभर होने लगा. कभी वह रातभर रोता…कभी दूध नहीं पीता… कभी घड़ीघड़ी डाइपर खराब करता, तो कभी कुछ और परेशानी खड़ी कर देता.

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इन दिनों तो न कहीं आना न जाना… न रिया से फोन न नव्या से चैटिंग… न कोई सोशल मीडिया पर सक्रियता… ब्यूटीपार्लर की सीट पर बैठे महीनों हो गए… दिनभर विभू और उस के पोतड़े… उनींदी सी काव्या हर समय नींद के अवसर तलाशने लगी थी… अपनी व्यक्तिगत जरूरतें पूरी न होने से अभय भी उस से उखड़ाउखड़ा रहने लगा. खुले आसमान में उड़ने के सपने देखने वाली काव्या अपनी ही इच्छाओं के घेरे में कैद सी हो कर रह गई.

आगे पढ़ें- आजकल विभू कुछ ज्यादा ही चिड़चिड़ा…

Serial Story: सुबह दोपहर और शाम (भाग-1)

‘‘मैं परेशान हो गई हूं इस रोजरोज की चिकचिक से… न मन का खा सकते और न ही पहन सकते… हर समय रोकटोक… आखिर कोई सहन करे भी तो कितना…’’ दोपहर के 2 बज रहे थे और आदत के अनुसार लंच कर के काव्या पलंग पर पसर गई. कमर सीधी करतेकरते ही बड़ी बहन नव्या को फोन लगाया और फिर दोनों बहनें शुरू हो गईं अपनाअपना ससुरालपुराण पढ़ने.

‘‘अरे, क्यों सहन करती है तू सास की ज्यादती? अभय से क्यों नहीं कहती? मैं तो तेरे जीजू से कोई बात नहीं छिपाती… हर रात सोने से पहले उन की मां का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख देती हूं… जब तक वे मेरी हां में हां नहीं मिलाते, हाथ भी नहीं लगाने देती…’’  नव्या ने अपने अनुभव के सिक्के बांटे.

‘‘दीदी, अभय तो बिलकुल ममाज बौय हैं… अपनी मां के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनते. उलटे मुझे ही एडजस्ट करने की नसीहत देने लगते हैं… सच दीदी, ससुराल के मामले में तुत बहुत खुशहाल निकलीं… जीजाजी तुम्हारी उंगलियों पर नाचते हैं… पता नहीं मेरे अच्छे दिन कब आएंगे…’’ काव्या ने एक गहरी सांस भरी.

‘‘वह तो है… अच्छा चल रखती हूं… तेरे जीजू का 2 बार फोन आ चुका है… मेरे बिना चैन नहीं उन्हें भी,’’ नव्या इतराई.

‘‘चल ठीक है… थोड़ी देर में सास महारानीजी की चाय का समय हो जाएगा… मुझे तो दो घड़ी चैन की नींद भी नहीं मिलती…’’ अपने को कोसते हुए काव्या ने फोन काट दिया और फिर एसी की कूलिंग थोड़ी और बढ़ा कर चादर  ओढ़ कर सो गई.

काव्या की अभय से शादी को मात्र 3 वर्ष हुए हैं. अभय एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. सैलरी ठीकठाक है. मांपापा के साथ रहने से मकान का किराया, पानीबिजली, राशन आदि का कोई खर्चा उसे जेब से नहीं देना पड़ता… जो भी पैसा खर्च होता है वह स्वयं और काव्या के निजी शौकों और जरूरतों पर ही होता है. शादी से पहले काव्या ने सपनों सी जिंदगी का कल्पना की थी, जिस में सिर्फ पति के साथ मौजमस्ती ही थी. उस के सपनों की दुनिया में सासससुर नामक खलनायक नहीं थे…

‘एक बंगला बने न्यारा…’ वाले अरमानों के साथ काव्या ने ससुराल की देहरी लांघी थी, लेकिन जब पता चला कि जनाब अभय को अकेले रह कर शादीशुदा जिंदगी के मजे लेने का कोई शौक नहीं है तो वह बुझ सी गई. जबतब अपनी मां के सामने अपना दुखड़ा रो कर मन हलका करने की कोशिश करती, लेकिन मां ने कभी उस की बातों को सीरियसली नहीं लिया और न ही कभी अलग गृहस्थी बसाने के उस के सपने को पोषित किया.

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‘‘ससुराल गैंदे के फूल सा होता है… कोई पंखुड़ी छोटी तो कोई बड़ी… लेकिन जब सब मिल कर आपस में गुंध जाती हैं तो फूल की छवि देखने लायक होती है,’’ मां हमेशा उसे समझाती थीं. लेकिन काव्या के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. इसीलिए वह आजकल मां से बस नपीतुली बात ही करती है. हां, लेकिन बड़ी बहन से बिना नागा बात करती है और उस से ससुराल से अलग घर ले कर रहने से संबंधित सलाह भी मांगती रहती है.

यहां तक तो फिर भी सब ठीक था, लेकिन आग में घी डालने का काम किया सामने वाले घर में किराए पर रहने आए दंपती ने. ये नवल और रिया थे. नवल भी अभय की तरह एक प्राइवेट फर्म में जौब करता है, लेकिन रिया का ठसका तो देखो. कभी जींस.. कभी कैपरी… कभी शौर्ट्स तो कभी कोई और दिल जलाने वाली वैस्टर्न पोशाक… काव्या देखती तो कलेजे पर सांप लोट जाता… ऊपर से स्टाइलिश हैयर कट और मेकअप से पुता चेहरा. काव्या के दिलोदिमाग में हलचल मचाए रहता.

‘क्या जिंदगी है… इसे कहते हैं जिंदगी के असली मजे लूटना… मैं ने पता नहीं कौन सो बुरे कर्म किए थे… तभी तो ये बेडि़यां मेरे पांवों में डल गईं…’ काव्या सोचसोच कर दुबली होने लगी. पेट में पचने वाली तो बात थी ही नहीं… बहन को नमकमिर्च लगा कर बताया.

‘‘अरे तो बावल कुआं तेरे पास है और तू है कि प्यासी घूम रही है… रिया से दोस्ती गांठ और ले ले शाही जिंदगी जीने के…’’ नव्या ने हाथोंहाथ सलाह दे डाली.

बस फिर क्या था. काव्या रिया से नजदीकियां बढ़ाने लगी. रिया तो खुद जैसे उसी की पहल का इंतजार कर रही थी. हायहैलो से शुरू हुई बातचीत धीरेधीरे अंतरंग होने लगी और जल्द ही दोनों घीखिचड़ी सी घुलमिल गईं. कभी रिया काव्या के पास तो कभी काव्या रिया के साथ…

‘‘देखो काव्या, पति नामक जीव को अपने इशारों पर नचाना हो तो लटकेझटके दिखाने ही होंगे… तुम सारा दिन सूटसाड़ी में लिपटी रहती हो… बेचारे अभय का भी मन करता होगा न तुम्हें मौडल सी सजीधजी देखने का… कभी कुछ बोल्ड पहनो… नया ट्राई करो… फिर देखो कैसे अभय तुम पर लट्टू हुआ जाता है…’’ रिया ने भी वही सलाह दे डाली जो नव्या दिया करती है.

‘‘क्या खाक बोल्ड पहनूं… अभय से पहले तो उस के मांपापा देखेंगे… फिर जो कुहराम मचेगा उस का पूरा महल्ला फ्री में मजा लेगा…’’ काव्या ने मुंह बनाया.

‘‘फिर तो बन्नो एक ही उपाय है… कोपभवन… जैसे कैकेयी ने दशरथ से अपनी शर्तें मनवाई थीं वैसे ही तुम भी कोई नाजुक सा मौका तलाश करो… पहले ढील दो और फिर खींच लो डोरी… पतंग न कटे तो मेरा नाम बदल देना…’’  रिया ने मंथरा की भूमिका निभाई.

काव्या मौका तलाशने लगी. समय शायद इस बार काव्या के पक्ष में ही चल

रहा था. अगले ही महीने काव्या ने खुशखबरी दी कि घर में तीसरी पीढ़ी का आगमन होने वाला है. सास ने बलाएं लीं… भारी काम करने से मना किया… ससुर हर समय चहकने लगे… और अभय के तो मिजाज ही निराले लग रहे थे… पत्नी पर बादलों सा उमड़घुमड़ कर प्यार आने लगा… दोस्तों में उठनाबैठना कम हो गया… खिलौने से कमरे में जगह कम पड़ने लगी. मनुहार करकर के खिलानेपिलाने लगा… काव्या के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे… इस हंसीखुशी के बीच कहीं न कहीं साजिशों के बीज भी अंकुरण की जगह तलाश रहे थे.

8 महीने पूरे हुए. काव्या की गोद भराई की रस्म के बाद अब कल उसे अपने मायके जाना है. पूरी रात अभय की हिदायतों का लैक्चर जारी था- यह करना, यह मत करना… ऐसे बैठना… ऐसे सोना… अभय बोले जा रहा था. काव्या सुनने का दिखावा करती लेटी थी. दिमाग में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी.

गर्भ का समय पूरा हुआ और काव्या ने एक नन्हे फरिश्ते को जन्म दिया. दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई. टोकरे भरभर कर मिठाई और बधाइयों का आदानप्रदान हो रहा था. पोते को देखने के लिए दादादादी सिर के बल चले आए. अभय के पांव भी कहां रुकने वाले थे. बिना किसी की परवाह किए सीधे काव्या के पास पहुंचा.

‘‘बेसब्रा कहीं का,’’ कह कर मां मुसकराईं, लेकिन देखा जाए तो खुद उन्हें भी कहां सब्र था. खैर, अभय ने जैसे ही अपने अंश को अंक में भरने की चेष्टा की, काव्या ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया. अभय ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर गड़ा दी.

‘‘इतनी आसानी से नहीं सैयांजी… पहले एक वादा करना होगा…’’  काव्या इठलाई.

‘‘इस अनमोल रत्न के बदले जो चाहे मांग ले रानी…’’ अभय भी नौटंकी करने में कहां कम था.

‘‘झूठ बोले कौआ काटे… देखो, सच्चे मर्द हो तो झूठे वादे मत करना…’’ काव्या ने उस के पौरुष को ललकारा.

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‘‘प्राण जाए पर वचन न जाए…’’ अभय ने भी चुनौती स्वीकार कर ली और इस के साथ ही काव्या ने अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराते हुए नन्हा फरिश्ता पिता की गोद में डाल दिया.

अभय तो उसे छूते ही निहाल हो गया. कभी उस का गाल अपने गाल से सटाता… कभी उस की नन्हीनन्ही उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाता…

‘‘मोगंबो खुश हुआ… कहो क्या मांगती हो?’’ अभय ने बच्चे के चेहरे को निहारते हुए पूछा.

‘‘एक अलग दुनिया… जिस में सिर्फ हम 3 ही हों…’’ काव्या ने सपाट स्वर में कहा.

अभय के हाथपांव कांप गए. क्षणभर में

ही दशरथ और पुत्र बनवास का सा एहसास हो गया. बच्चे पर पकड़ ढीली पड़ने ही वाली थी कि मां ने आ कर संभाल लिया. शायद उन्होंने काव्या की बात सुन भी ली थी. अभय आंखें चुराता हुआ बाहर निकल गया.

आगे पढ़ें- बच्चे के जन्म की खुशी फीकी पड़ गई….

हुंडई क्रेटा का फ्रंट सीट है बेहद आरामदायक, देखें यहां

न्यू हुंडई क्रेटा को कई विशेषताओं के साथ बनाया गया है, जिससे कार के अंदर बैठने वाले यात्रियों को किसी तरह की कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी. दरअसल , कार के ड्राइवर के सीट को और फ्रंट सीट को बेहद ही शानदार तरह से डिजाइन किया गया है. इस सीट पर बैठऩे वाले लोगों को काफी हवा लगेगी.
ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए आप बेहद आराम से कार के सभी फंक्शन को बदल सकते हैं और स्टेरिंग भी चेंज कर सकते हैं.

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आडियो लेबल को कम और ज्यादा कर सकते हैं जिससे आपका ध्यान ड्राइविंग के दौरान कहीं और नहीं जाएगा. आप आराम से अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं.

कार के अंदर एक शानदार  बॉस ऑडियो सिस्टम दिया गया है इसके साथ ही इसके इंटीरियर में काफी ज्यादा स्पेस दिया गया है जिससे आप यात्रा के दौरान बहुत सारा सामान रखकर ले जा सकते हैं. इन सभी फीचर को देखने के बाद आप कह सकते हैं #RechargeWithCreta.

REVIEW: ड्रग्स पर बेहतरीन वेब सीरीज ‘हाई’

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माताः जामिल फिल्मस
लेखक व निर्देशकः निखिल राव
कलाकारःअक्षय ओबेराय, रणवीर शोरी, प्रकाश बेलावड़े, श्वेता बसु प्रसाद.
अवधिः 5 घंटे 38 मिनट, एक एपीसोड 28 मिनट, बाकी 38 से 40 मिनट के कुल, नौ एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर

बौलीवुड में ड्ग्स को लेकर बवाल मचा हुआ है. जिसके चलते पूरे देश में ड्ग्स की ही चर्चा हो रही है. ऐसे ही वक्त में ओटीटी प्लेटफार्म ‘एम एक्स प्लेअर’ निखिल राव निर्देशित क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज ‘‘हाई’’ लेकर आया है, जिसे सात अक्टूबर से ‘‘एम एक्स प्लेअर’’ पर देखा जा सकता है. वेब सीरीज की कहानी ड्ग्स के चलते खोखला हो रही युवा पीढ़ी की बात करते हुए ऐसी दवा की बात करती है, जो कि इन सबको ड्ग्स की लत से छुटकारा दिलाकर इनका जीवन संवार सकती है. मगर यह बात कुछ दवा निर्माण करने वाली कंपनियों को नही सुहाता है.

कहानीः

शिव माथुर(अक्षय ओबेराय)बुरी तरह से ड्ग्स की लत का शिकार है. वह वेश्या से लेकर डांस बार में भी जाता है, पर हर जगह सिर्फ ड्ग्स ही लेता रहता है. एक दिन जब अपने कालेज के कुछ दोस्तों के कहने पर एक डांस बार में जाता है, तो वहां पर उसके साथ हादसा हो जाता है. उसके दोस्त पुलिस तक बात पहुंचने नही देते हैं और उसे एक तड़ेगांव के जंगलो के बीच बने रिहायबिलेशन सेंटर/पुनर्वसन केंद्र  में भिजवा देते हैं. इस गुप्त रिहायबिलेशन सेंटर /पुनर्वसन केंद्र में शिव माथुर का इलाज डॉ राय(प्रकाश बेलावड़े) अपनी टीम डॉ. नकुल(नकुल भल्ला) व डॉ.  श्वेता देसाई (श्वेता बसु प्रसाद)की मदद से करते है. शिव माथुर हर किसी से पावडर /ड्ग्स की मांग करता रहता है, जिसके चलते एक दिन श्वेता अपनी ही लैब मंे बनी हरे रंग के ‘मैजिक’ कैपसूल का पावडर उसे देती है,  जिसके बाद शिव माथुर की जिंदगी बदल जाती है. वह खुद को स्वस्थ महसूस करता है. अब वह जानना चाहता है कि उसे क्या दिया गया?पर कोई उसे कुछ बताना नही चाहता. अचानक डॉ.  राय को नोटिस मिलती है कि जहां पर रिहायबिलेशन सेंटर है, उस पर बैंक का कर्ज बढ़कर 27 करोड़ हो गया है. तीन माह का वक्त है अन्यथा उनकी इस 65 करोड़ की जमीन पर बैंक का कब्जा हो जाएगा. ऐसे वक्त में शिव माथ्ुार उन्हे सलाह देता है कि वह ‘मैजिक’को मंुबई में बड़े स्तर पर बेंचकर 27 करोड़ रूपए इकट्ठा करेंगे और फिर यह फार्मुला वह वेब साइट पर डाल देंगे. इस तरह उनका रिहायबिलेशन सेंटर बंद नही होगा. पर समस्या यह है कि ‘मैजिक’ को कानूनी मान्यता नही मिली है. वास्तव में यह हरे रंग का पीला कैप्सुल नामक ड्ग ‘‘मरीथिमा नेफ्रूलिया’’ नामक पौधे से बनायी जाती है, जो कि हानिप्रद नही है. इससे हर इंसान स्वस्थ हो जाता है. ऐसे में कुछ दवा कंपनियों ने साजिश रचकर सरकार से इस पौध व इससे बनने वाली दवा को ही गैर कानूनी घोषित करवा रखा है. ऐसे में शिव माथुर अपने दोस्त डीजे(मंत्र मुग्धा) व हाई सोसायटी में ड्ग पहुंचाने वाले की मदद लेते हैं. देखते ही देखते सभी ड्ग पैडलर ‘मैजिक’ बेचने लगते हैं. जिसके चलते गुलाम रसूल और मुन्ना भाई(मधुर मित्तल) का ड्ग्स बिकना बंद हो जाता है, तो यह सभी ‘मैजिक’ बनाने वाले की तलाश में जुट जाते हैं. जिसके चलते कई हत्याएं होती हैं. गैंगवार छिड़ जाता है.

दूसरी तरफ दवा निर्माण कंपनी ‘‘डयानोफार्मा’’ की सीईओ अपने महत्वाकांक्षी प्रतिनिधि  व जासूस लाकड़ा(रणवीर शौरी) को भी ‘मैजिक’ वालों की तलाष कर उनकी हत्या करने की सुपारी दे देती है.

तो वहीं एक महत्वाकांक्षी टीवी चैनल पत्रकार आषिमा(मृणमयी गोड़बोले) हैं, जो कि सिगरेट व शराब का सेवन करने के साथ साथ चैनल के अपने बौस राणा का बिस्तर भी गर्म करती रहती है. पर अचानक उसे भी बहुत बडा बनने का भूत सवार होता है. राणा कहता है कि वह कोई बहुत बड़ी खबर लेकर आए, तो चैनल के मालिक तेजपाल उसे संपादक बना देंगे. तभी  आशिमा को ‘मैजिक’ के बारे में रक्षित से पता चलता है कि यह ड्ग तो हर नशेड़ी की लत छुड़ा रही है. वह कइयों के इंटरव्यू करने के बाद मैजिक की सच्चाई जानने के लिए नक्सलवादी करार दिए गए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. राव (वीरेंद्र सक्सेना) से मिलकर उनका इंटरव्यू लेती है, जो कि ‘मैजिक’को पौधे से बनायी गयी स्वास्थ्य के हित वाली ड्गवा बताते हैं. मगर राण इसे चैनल पर प्रसारित करने से इंकार कर देता है कि चैनल तो सरकार के साथ है, ऐसे में वह नक्सली करार दिए गए वैज्ञानिक का इंटरव्यू नही प्रसारित कर सकते. तब आशिमा इसे अपने ब्लाॅग पर डाल देती है, उसके बाद पुलिस, आषिमा पर ही ड्ग बेचने का आरोप लगा देती है.

लेखन व निर्देशनः

जब मसला ड्ग्स का हो तों ड्ग्स की वजह से नषेड़ी युवा पीढ़ी और उनके परिवारों को जिन मुसीबतों का त्वरित रूप से सामना करना पड़ता है, उसका जिक्र होना स्वाभाविक है. गंदी गालियों की बौछार भी है. पत्रकार आशिमा भी गाली गलौज करती है. इसमें बहुत कुछ फिल्मी है. ड्ग्स की लत के शिकार लोगों के हालात पर ज्यादा रोशनी नही डाली गयी है. इस पर एक बेहतरीन कसी हुई वेब सीरीज बन सकती थी, मगर फिल्मकार ने बेवजह तमाम किरदारों के साथ कैनवास बढ़ाकर लंबा खींचा है. निर्देशन कसा हुआ है, मगर पटकथा लेखन में कमियंा है. इसकी गति काफी धीमी है. दर्शक के लिए चालिस चालिस मिनट के लंबे एपीसोड देखना आसान नही होगा. शुरूआती तीन एपीसोड बहुत सुस्त है. डॉन व उसके द्वारा दी जाने वाली यातनाएं हजारों फिल्मों में लोग देख चुके हैं. वेब सीरीज नेक मकसद से बनायी गयी है, मगर इसमें कई खामियां हैं. फिल्मकार इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होने इस वेब सीरीज में इस मुद्दे को बेहतर तरीके से उठाया है कि बड़ी बड़ी दवा निर्माण करने वाली फार्मा कंपनियां अपने फायदे के लिए किस तरह आम इंसान के जीवन के साथ खिलवाड़ करती रहती हैं और इसमंे राजनेताआंे की भी मिली भगत रहती है. यह वेब सीरीज इस बात को भी रेखांकित करती है कि देश में उपलब्ध प्राकृतिक जड़ी बूटी, पेड़ पौधों को अपनी दुकान चलाने वाले आधुनिक विज्ञान के नाम पर किस तरह से खारिज करने के षडयंत्र रचते रहते हैं. फिल्मकार ने समाचार चैनलों के अंदर की गंदगी पर भी रोशनी डाली है.

अभिनयः

शिव माथुर के किरदार में अक्षय ओबेराय ने शानदार परफार्मेंस देकर साबित किया है कि उनकी प्रतिभा को अब तक बौलीवुड में अनदेखा किया जाता रहा है. रणवीर शोरी को पहली बार पूरी फूर्ति के साथ परदे पर खेलने वाला किरदार मिला है. प्रकाश बेलावड़े, नकुल भल्ला, श्वेता बसु प्रसाद, मृणमयी गोड़बोले ने भी अपने अपने किरदारों को ठीक से निभाया है. डॉ. राव के छोटे से किरदार में भी वीरेंद्र सक्सेना अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=EEb830Yr1I8

मां बनी सपना चौधरी, जनवरी में गुपचुप की थी शादी

बीते दिनों कई सेलेब्स पेरेंट्स बनें और बनने वाले हैं, जिनमें अनुष्का शर्मा से लेकर करीना कपूर तक का नाम शामिल है. इसी बीच खबर है कि बिग बौस फेम हरियाणवी डांस क्वीन सपना चौधरी भी मां बन गई हैं. दरअसल, हाल ही में सपना चौधरी बेटे की मां बनी हैं, जिसकी खबर सोशलमीडिया पर छा गई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शादी छिपाने के पीछे ये थी वजह

दरअसल, हाल ही में हुए एक इंटरव्यू में सपना चौधरी के मां बनने और शादी को छिपाकर रखने की वजह बताते हुए कहा है, डांसर ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया है. मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. सपना चौधरी की मां ने बताया कि वह नानी बनकर बेहद खुश हैं. वहीं परिवार में भी इस समय खुशी का माहौल है. वहीं सपना की शादी को छिपाकर रखने के पीछे वजह बताते हुए कहा कि सपना ने हरियाणवी सिंगर, राइटर और मॉडल वीर साहू से जनवरी में कोर्ट मैरिज की थी, जिसके बाद कोई प्रोग्राम इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि वीर साहू के फूफा जी का निधन हो गया था. इसी वजह से सपना की शादी की बात सामने नहीं आ सकी.

 

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फैंस को लगेगा झटका

फैंस के दिलों में अपने डांस से जगह बनाने वाली सपना चौधरी के मां बनने की खबर से जहां उनका परिवार और दोस्त बेहद खुद हैं. वहीं फैंस को इस खबर से झटका लग गया है.

बता दें, सपना चौधरी के डांस की फैन फौलोइंग पूरे हरियाणा में हैं. वहीं बिग बौस में आने के बाद हरियाणा ही नही पूरे देश में बन चुके हैं.

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गुपचुप शादी के बंधन में बंधी ‘इश्कबाज’ फेम नीति टेलर, वैडिंग वीडियो किया शेयर

कोरोनावायरस के बढ़ते कहर के बीच पार्थ समथान संग सीरियल ‘कैसी ये यारियां’ में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस नीति टेलर ने शादी कर ली हैं. ‘इश्कबाज’ एक्ट्रेस नीति टेलर की बीते साल जहां सगाई की फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई थीं तो वहीं अब अचानक हुई बौयफ्रेंड परीक्षित बावा संग शादी की खबरों ने एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. आइए आपको दिखाते हैं नीति टेलर की शादी की फोटोज…

पोस्ट के जरिए दी जानकारी

जहां नीति टेलर और परीक्षित बावा अक्टूबर के महीने में शादी करने का फैसला लिया था, जिसकी बात उन्होंने एक पोस्ट के जरिए बताई थीं. लेकिन अब नीति टेलर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की अपनी शादी की फोटोज से फैंस को सरप्राइज दे दिया है. नीति टेलर ने परीक्षित बावा संग शादी की अपनी फोटो शेयर करते हुए शादी की जानकारी दी है.

 

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शादी की दिखाई झलक

वैडिंग फोटो शेयर करते हुए नीति टेलर ने लिखा ‘मिसेज नीति परीक्षित बावा….तुम कुछ अधूरे से, हम भी कुछ आधे, आधा आधा हम जो दोनों मिला दे, तो बन जाएगी अपनी एक जिंदगानी, ये दुनिया मिले ना मिले हमको, खुशियां भगा देंगी हर गम को, तुम साथ हो फिर क्या बाकी हो, मेरे लिए तुम काफी हो.’

वीडियो भी की शेयर

 

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They are officially married😍❤️ @nititaylor #Partitayles #NitiTaylor

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शादी की एक वीडियो शेयर करते हुए नीति टेलर ने कैप्शन में लिखा है, ‘मिस से लेकर मिसेज तक मेरा सफर पूरा हुआ. मैं आप सभी से शेयर करना चाहती हूं कि मैंने परीक्षित के साथ 13 अगस्त 2020 को शादी कर ली है. कोरोना के चलते हमने माता-पिता की मौजूदगी में  सिंपल तरीके से शादी के सारी रस्में पूरी की हैं. मैं अब चिल्लाकर कह सकती हूं कि हेलो पतिदेव…मैंने 2020 में अपनी खुशियां खुद लिखी हैं.’

 

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Awwieeeee so cute 😍 @nititaylor #NitiTaylor #Partitayles

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बता दें, बीते दिनों नीति टेलर ने ब्राइडल लुक में कुछ फोटोज शेयर की थी, जिसको देखकर फैंस ने शादी से जुड़े सवाल पूछे थे. हालांकि उस वक्त नीति ने शादी की अफवाहों को खारिज किया था. लेकिन अब शादी की खबर से उनके फैंस शौक्ड हैं.

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