दुल्हन बनीं ‘कैसी हैं यारियां’ फेम एक्ट्रेस, Photos Viral

सीरियल ‘कैसी हैं यारियां’, ‘इश्कबाज़’ और ‘ये है आशिकी’ जैसे टीवी सीरियल्स में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकीं एक्ट्रेस नीति टेलर (Niti Taylor) अक्सर ट्रोलिंग का शिकार होती रहती हैं. पर्सनल लाइफ और फोटोज को लेकर नीति को सोशलमीडिया पर होने वाली ट्रोलिंग को लेकर कभी गुस्सा तो कभी अपना दुख जाहिर किया है. वहीं ट्रोलिंग का असर इतना नीति की जिंदगी में पड़ा है कि वह अब कोई भी फोटो या पोस्ट शेयर करने से पहले 50 बार सोचती हैं. लेकिन इस बार उनकी कुछ फोटोज को फैंस ट्रोल करने की बजाय उनकी तारीफ कर रहे हैं. दरअसल, हाल ही में शेयर की गई फोटोज में नीति ब्राइडल लुक में नजर आ रही हैं. हालांकि ये केवल एक फोटोशूट है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं नीति टेलर का ब्राइडल लुक, जिसे आप अपनी वेडिंग लुक के लिए ट्राय कर सकते हैं.

1. लहंगा है बेहद खास

नीति के वायरल हुई फोटोज में वह लाइट कौम्बिनेशन वाले ब्राइडल लहंगे में नजर आ रही हैं, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है. beige कलर के लहंगे में हैवी एम्ब्रौयडरी वाला लुक नीति टेलर पर बेहद खूबसूरत लग रहा है. आजकल दुल्हनें मेहरून या रेड कलर की बजाय पिंक या beige कलर का लहंगा पहनें नजर आती हैं, जो दुल्हन के लुक को स्टाइलिश और खूबसूरत बनाता है.

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2. ज्वैलरी है खास

ब्राइडल लहंगे में सबसे जरूरी होता है ज्वैलरी, जिससे दुल्हन के लुक पर चार चांद लगता है. अगर आप भी ब्राइडल लहंगे के साथ ट्रैंडी लुक देना चाहते हैं तो नीति की तरह खूबसूरत ज्वैलरी ट्राय करें. ये लाइट ज्वैलरी का कौम्बिनेशन है, जिसे आप भी आसानी से कैरी कर सकते हैं.

 

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“A Girls Best Friend” surely does make her look beautiful💕 Jewellery- @purabpaschim Outfit- @payalkeyalofficial

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3. चुनरी का रखें ध्यान

लहंगे की खूबसूरती पर चार चांद लगाने के लिए चुनरी का बेहद खास होना जरूरी है. नीति के लहंगे की चुनरी भले ही पीले कलर का है, लेकिन सर पर ओड़ने वाली दूसरी चुनरी हैवी एम्ब्रायडरी और लाइट कलर का कौम्बिनेशन बेहद खास लग रहा है.

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क्या आपको किसी ने धोखा दिया है? जानें ऐसा क्यों हुआ आपके साथ

धोखा देना आजकल बहुत आम बात हो गई है आपके साथ भी किसी ने धोखा किया है या आपके साथ कोई धोखा कर रहा है. लोग आपके साथ धोखा क्यों करते हैं. अगर किसी ने आपको एक बार धोखा दिया है तो वो व्यक्ति आपको बार बार भी धोखा दे सकता है. धोखा खाने के बाद हम टूट जाते हैं जल्दी से किसी पर भरोसा भी नही कर पाते हैं.

1. वो आपसे क्या चाहते हैं क्या वो उन्हें मिल गया 

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरों का इस्तेमाल करते हैं. जो आपके साथ खुद का काम निकलवाने के लिए होते हैं. अगर आपने उनको जो वो चाहते है वो सब कुछ दे दिया है तो आपके साथ धोखा हो सकता है.क्योंकि व्यक्ति धोखा तभी देता है जब उसकी सभी जरूरत पूरी हो जाती है.

2. वे किसी और के साथ है

जब किसी ने आपको धोखा दिया है तो हो सकता है वह किसी और के साथ हो.जब व्यक्ति को कोई दूसरा साथी मिल जाता है.और आप उनको बोरिंग लगने लगते हो तो वो आपके सम्पर्क में कम ही रहता है और इस समय आप उनके साथ अच्छे सम्बन्ध नही बना पाते है तो वो किसी और के पास चला जाता है और आपको धोखा मिल जाता है.

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3. वे किसी चिंता में रहते हैं

चिंता वो लोग भी कर सकते हैं जो आपको दिखाना चाहते हैं कि वो आपके साथ खुश नही है.आपसे प्यार कैसे करेंगे वो एक रिश्ते में बंधे हुए नही रहना चाहते हैं इस बात की भी उनको चिंता हो सकती है.इस स्थिति में भी आपको धोखा मिल सकता है.

4. वे भावनात्मक रूप से मच्योर नही है 

जो आपके साथ साथ जीने मरने का वादा करते हैं और बाद में आपको भूला देते हैं. या हमेशा आपके साथ हर स्थिति में खड़ा रहने की बात करते हैं और खड़े नही होते. आपके साथ वादे करके भूल जाते हैं. ऐसे व्यक्ति भावनाओं में बह कर आपसे वादे कर देते हैं लेकिन उनको पूरा नही कर पाते. इस स्थिति में भी आपको धोखा मिल सकता है.

वे अपने किसी पर्सनल काम से जा रहे हैं

वैसे तो यह बहुत कम होता है पर जब आपकी किसी से बात होनी शुरू हो जाती है और धीरे धीरे बात आगे बढ़ती है तब आपके साथी के किसी करीबी के साथ कुछ हो जाता है और उस समय वो आपको इग्नोर करते हैं. तो आपको बुरा नही मानना चाहिए क्योंकि उस समय वो दुखी होते हैं और भावनाओं में बह जाते हैं.उनकी स्थिति ठीक होने के बाद आपको उन्हें एक मौका और देना चाहिए इस से आपके बीच प्यार पहले से ज्यादा भी हो सकता है.

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डॉक्टर्स भी हो रहे हैं मानसिक रोग का शिकार, पढ़ें खबर

कोरोना काल में घरों में कैद लोग जिस तरह से मानसिक रूप से बीमार हो रहे है, वैसी ही बीमारी के इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज भी इन दिनों मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे है. इसकी वजह कोविड 19 का नयी बीमारी होना, बीमारी से लड़ने के लिए सही प्रोटेक्शन उन्हें न मिल पाना,लम्बे समय तक काम पर रहना,बीमार लोगों की संख्या में लगातार बढ़ना, परिवार को उनके मरीज़ के बारें में अच्छी समाचार का न दे पाना आदि कई है. इससे वे एंग्जायटी के शिकार होकर मानसिक तनाव में रहने को विवश हो रहे है. इतना ही नहीं कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज से समाज और आसपास के लोग भी अच्छा व्यवहार करने से कतराते है. कही पर उन्हें अपने घरों में रहने से भी रोका गया. उनके साथ बदसलूकी की गई. इस लॉक डाउन में भी उन्हें काम पर आना पड़ा. साथ ही वे वायरस के काफी नजदीक थे, क्योंकि वे इलाज कर रहे है, जिससे उन्हें अपने परिवार की चिंता भी रही है. इससे पाया गया कि एक बड़ी संख्या में हेल्थकेयर से जुड़े लोग एंग्जायटी, इनसोम्निया और मनोवैज्ञानिक डिस्ट्रेस के शिकार हुए.

लेना पड़ता है कठिन निर्णय

इसके अलावा कई देशों में तो डॉक्टर्स को ये भी निर्णय लेना भारी पड़ा, जिसमें वे ये तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे वेंटिलेटर का सपोर्ट दिया जाय किसे नहीं. इसमें पाया गया कि बुजुर्ग से वेंटिलेटर को हटाकर यूथ को दिया गया. जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव डॉक्टर्स पर बहुत पड़ा, जब वे अपने आगे किसी दम तोड़ते हुए व्यक्ति को देखा और वे कुछ नहीं कर पाएं. इसकी वजह उपकरणों का सही तादाद में समय पर न मिलना हुआ है. कई हेल्थकेयर से जुड़े व्यक्ति ने तो मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या तक कर डाली.

खुद और परिवार को सुरक्षित रखना है चुनौती

मुंबई की ग्लोबल हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. संतोष बांगरकहते है कि कोरोना कहर में डॉक्टर्स को सबसे अधिक उनकी खुद की रक्षा करना भारी पड़ता है, जिसमें पीपीइ किट और इलाज के लिए जरुरत के सामान की कमी, उनके परिवार की सुरक्षा आदि होती है. इससे उनकी एंग्जायटी लेवल बढ़ जाता है, इस पेंड़ेमिक में कई डॉक्टर्स में इनसोम्निया की बीमारी अधिक देखी जा रही है. इतना ही नहीं कोरोना मरीज़ की इलाज़ करते हुए डॉक्टर्स अपने परिवार के साथ भी क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते, क्योंकि उन्हें लम्बे समय तक हॉस्पिटल में बिताना पड़ता है. आने के बाद भी वे परिवार से दूर खुद को क्वारेंटिन करते है, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कही उनके साथ संक्रमण तो नहीं आई. इसके अलावा कोरोना संक्रमित मरीजों के परिवार को उनके हालात के बारें में बताना भी उनके लिए मानसिक दबाव होता है, क्योंकि परिवार डॉक्टर्स से कुछ अच्छा ही सुनने की उम्मीद करते है. हालाँकि अस्पताल के प्रबंधन डॉक्टर्स के मानसिक और भावनात्मक हालात को सुधारने के लिए कोशिश कर रही है, पर इसका फायदा बहुत अधिक नहीं दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि दिनोंदिन कोरोना के मरीज़ बढ़ते जा रहे है.

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पर्याप्त उपकरणों की कमी

इसके आगे डॉक्टर का कहना है कि भारत जैसे देश में जहाँ जनसँख्या का भार अधिक है, गरीबी अधिक है,मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर सही नहीं है, कोरोना संक्रमण के व्यक्ति का इलाज करना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे कई उदाहरण है, जहाँ डॉक्टर्स को कठिन निर्णय लेना पड़ा, मसलन रोगी को वेंटिलेटर पर रखे या नहीं, अर्जेंट जरुरत के आधार पर उसका ऑपरेशन करें या नहीं. डॉक्टर्स अधिकतर शांत रहकर सोचते है, पर कुछ विषयों में संभव नहीं होता और तनाव के शिकार होते है. इस तनाव से निकलने के लिए डॉक्टर्स को खुद की फिटनेस, डाइट और स्ट्रेस फ्री रहने के बारें में सोचना पड़ेगा और खुद को लगातार कोविड 19 को लेकर अपडेट रहने की जरुरत है, ताकि उनका मानसिक स्तर सही रहे. इसके बावजूद अगर समस्या है तो एक्सपर्ट की राय अवश्य लेना उचित होगा.

डॉक्टर्स मानते है कि इस मुश्किल घड़ी में कोरोना मरीज जिधर से उनके पास इलाज के लिए आते है वही से वापस ठीक होकर अपने घर जायें. इससे कुछ भी अलग उन्हें मानसिक पीड़ा देती है.सीरियस पेशेंट का इलाज करना आज भी तनाव पूर्ण है. हेल्थकेयर प्रोफेशन से जुड़े हुए लोग हमेशा किसी न किसी तरह के मनोवैज्ञानिक तनाव के शिकार होते है,जिससे निकलने में उन्हें मुश्किल होता है. इस बारें में डॉक्टर्स से जाने कैसे वे अपने मेंटल हेल्थ को बनाये रखते है,

 वोकहार्ड हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल के इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्टडॉ. बेहराम पार्डिवाला कहते है कि इस बात का तनाव हमेशा रहता है कि मुझे कोरोना न हो जाय और उसका रिस्क लेना भी पड़ता है, क्योंकि रोगी को देखना जरुरी है. सावधानियां लेता हूं और हर दिन अच्छा जाय इसकी कामना करता हूं. कई बार कोरोना रोगी अस्पताल में आने के बाद बेड न होने की वजह से उसे मना करना पड़ा. बहुत अफ़सोस और ख़राब लगता है. कई बार वे हाथ जोड़कर वार्ड में रखने के लिए कहते है, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वह तड़प कर मर जायेगा. इसका अफ़सोस बहुत होता है. इसका मानसिक दबाव काफी दिनों तक रहता है. उस मरीज़ की याद आती है. नींद नहीं आती. उस मरीज़ के बारें में जानने की इच्छा होती है. इसके अलावा हर डॉक्टर्स  की सोच एक जैसी नहीं होती. मैंने ये प्रोफेशन आज से सालों पहले कदम रखा था और परिवार का एकलौता डॉक्टर बना था. उस समय मैंने सोच लिया था कि ये पब्लिक सर्विस है, इसे मुझे उसी रूप में करना है और करता हूं. इससे मानसिक शांति बनी रहती है.

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अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल दिल्ली की नवनीत कौर कहती है कि कोरोना संक्रमण के दौरान मैं बहुत अधिक खुद के लिए सावधानियां बरत रही हूं. अस्पताल से घर जाकर भी हायजिन के सभी नियमों का पालन करती हूं. खुद के डाइट का पूरा ध्यान रखती हूं. किसी बात से अधिक तनाव नहीं है, क्योंकि मैं एक डॉक्टर हूं और कैसे क्या करना है जानती हूं. ये सही है कि डॉक्टर्स भी कई बार बहुत अधिक मानसिक तनाव के शिकार होते है. मुझे याद आता है, जब मैं अपने होम टाउन गयी थी और मेरी एक प्रेग्नेंट पेशेंट ने मेरे आने तक इंतजार किया और मेरे कहने पर भी किसी से कंसल्ट नहीं किया. मेरे आने तक उसकी हालत ख़राब हो गयी थी मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर उसे बचा नहीं पाई. कई दिनों तक उसका चेहरा मेरे आगे घूमता रहा. मैं मानसिक दबाव में कई दिनों तक रही. मैं सोचती रही कि काश मैं पहले उसे देख पाती तो शायद उसकी ये दशा न होती. आज भी उस महिला को याद कर मेरा मन दुखी हो जाता है. इस तरीके के तनाव से बचने के लिए सकारात्मक सोच रखनी पड़ती है और आसपास के दोस्त और परिवार से बातचीत बनाये रखना पड़ता है.

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मुंबई की जनरल फिजिशियन डॉ. सरोज शेलार कहती है कि मुझे कई बार मानसिक दबाव से गुजरना पड़ा है, कोरोना संक्रमण का इलाज़ करते हुए पूरी सावधानी मैं लेती हूं, क्योंकि मेरे दो छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर है. मेरे पास केवल कोरोना ही नहीं, बल्कि कई प्रकार के संक्रमित व्यक्ति आते है और मेरा शरीर इससे कुछ हद तक इम्युन हो चुका है, पर परिवार नहीं, इसलिए मानसिक तनाव रहता है. इस प्रोफेशन में मानसिक दबाव हमेशा रहता है. मुझे अभी भी याद है जब मैं एक 10 साल के बच्चे को इस लिए नहीं बचा पायी, क्योंकि मेरे पास संसाधन की कमी थी और मैं इस प्रोफेशन में नयी थी. उसकी याद कई दिनों तक रही, उससे निकलने में काफी समय लगा था. ऐसा जब भी मन समस्या ग्रस्त होता है तो मैडिटेशन, वर्कआउट, परिवार से संवाद आदि करती हूं.

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3 टिप्स: ऐसे करें बालों की एक्‍सरसाइज

जैसा कि आप बालों की देखभाल के लिए औयलिंग, मसाज, हेयरपैक, स्‍टीमिंग और स्‍पा का सहारा लेती हैं. लेकिन क्या आप जानती हैं कि बालों को हेल्दी बनाने के लिए एक्‍सरसाइज की भी जरुरत होती है.

जी हां, जिस तरह स्‍वस्‍थ रहने के लिए आपके शरीर को एक्‍सरसाइज की जरुरत होती है, वैसे ही बालों को भी एक्‍सरसाइज की जरुरत होती है. आप कंघी से बालों को एक्‍सरसाइज करा सकती हैं. तो आइए जानते हैं, कैसे आप बालों की एक्‍सरसाइज करें.

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  1. कितनी बार करें कंघी

हेयर स्टाइलिस्ट के अनुसार एक दिन में तीन बार कंघी करना अच्छा होता है. पर हर बार बालों की कंघी बहुत अच्‍छी तरह की जानी चाहिए. किसी भी तरह का हेयर स्‍टाइल या नाट बनाने की बजाए बालों में सीधे कंघी करना ज्‍यादा अच्‍छा होता है. इससे बालों में नई जान आती है और ग्रोथ में मदद मिलती है.

2. रात को बाल धोती है तो

अगर आप रात में बाल धोना पसंद करती हैं तो रात में ही बालों को सुलझा कर अच्‍छी तरह कोई स्‍कार्फ लपेट कर सोएं, वरना बालों के डैमेज होने का खतरा बना रहता है. तौलिए से बाल सुखाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपकी तौलिया पूरी तरह से सूखा हुआ हो.

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3. ज्‍यादा टाइट न बांधे बाल

कई लोग ऐसे होते हैं जो कंघी करने के बाद बालों को बहुत ही टाइट बांध देते हैं. ऐसा करने से बचना चाहिए. बालों को बहुत टाइट बांध देने से बालों के बीच में से टूट जाने का खतरा बना रहता है.

औनलाइन एक्सरसाइज: महिलाओं की झिझक करें खत्म

देश की राजधानी नई दिल्ली से सटा हरियाणा का फरीदाबाद शहर कभी फैक्टरी कारोबारियों का गढ़ था, पर अब इसे रिहायशी इलाका ज्यादा कह सकते हैं. यहां के सैक्टर 31 में एक खूबसूरत टाउन पार्क बना है, जहां लोग अमूमन ऐक्सरसाइज करने आते हैं. पर चूंकि कोरोना ने सब को घर में बिठा दिया था, तो यह पार्क भी सूना हो गया था. पर पिछले कुछ दिनों से यहां चहलपहल बढ़ी है.

ऐसी ही एक शाम को इस टाउन पार्क में कुछ ऐसा दिखा जो बहुत से लोगों ने पहले नहीं दिखा था. एक महिला एरोबिक्स कर रही थीं, वह भी पूरे नियमों से बंध कर. उन के सामने एक स्टूल पर लैपटौप रखा था और किसी इंगलिश फास्ट गाने पर वे अपने सधे हुए मूव कर रही थीं. उन के पास ही एक आदमी फोन पर कुछ संजीदा बातें कर रहा था.

चूंकि यह सब आम नहीं लग रहा था, लिहाजा मैं ने इस बात की टोह लेनी चाही. जो जानकारी मिली वह हैरान कर देने वाली थी. उन महिला का नाम अनु शर्मा चौहान था और उन के साथ उन के पति वाईएस चौहान थे. वे दोनों सर्टिफाइड एरोबिक्स इंस्ट्रक्टर थे.

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बात करने पर वाईएस चौहान ने बताया, “अनु इस समय एरोबिक्स की औनलाइन क्लास ले रही हैं. लैपटौप पर उन के स्टूडैंट उन्हें फौलो कर रहे हैं.”

वाकई ऐसा ही था. लैपटौप पर कई लोग अनु के साथ जुड़े हुए थे. औनलाइन क्लास कौन ज्यादा जौइन करते हैं? इस सवाल पर वाईएस चौहान ने बताया, “अब चूंकि कोरोना का मामला है, इसलिए वही लोग ज्यादा जुड़ते हैं जो पहले से ये क्लासेज कर रहे होते हैं. बहुत से नए भी होते हैं और खासकर ऐसी महिलाएं होती हैं जो किसी झिझक के चलते जिम नहीं जा पाती हैं या उन के पास पार्क आने का भी समय नहीं होता है. चूंकि औनलाइन क्लास में उन्हें इंस्ट्रक्टर के अलावा कोई बाहर का आदमी ज्यादा नोटिस नहीं करता है, इसलिए वे कंफर्टेबल हो कर ऐक्सरसाइज करती हैं.”

औनलाइन ऐक्सरसाइज में इंस्ट्रक्टर की जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है? इस सवाल पर वे बोले, “बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इंस्ट्रक्टर को हमेशा ऐक्सरसाइज करते रहना पड़ता है, ताकि सब उसे फौलो कर सकें. जिम आदि में तो वह रुक कर थोड़ा आराम कर सकता है, पर इस में ऐसा हो नहीं पाता है.”

यह बात एकदम सही थी, क्योंकि अनु ने अपनी एक घंटे की क्लास में नाममात्र का ब्रेक लिया था, वह भी उन के स्टूडैंट की किसी क्वैरी पर.

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वाईएस चौहान ने एक और बात बताई कि विदेशों में तो औनलाइन ऐक्सरसाइज का तरीका काफी चलन में है और अब भारत में भी यह धीरेधीरे अपनी जड़ें जमा रहा है, पर इस सब में वक्त लगेगा. फिलहाल लोग जिम खुलने के बाद भी वहां जाने से बच रहे हैं, तो औनलाइन ऐक्सरसाइज ने जोर पकड़ा हुआ है, पर बाद में क्या होगा यह अभी नहीं बता सकते हैं, लेकिन अगर भारत में कमजोर नैटवर्किंग सुधर जाए, मतलब डाटा प्रौब्लम खत्म हो जाए तो औनलाइन ऐक्सरसाइज का भविष्य अच्छा हो सकता है. सरकार को इस तरफ भी गंभीरता से सोचना चाहिए.

अगर कोई फ्रैशर औनलाइन ऐक्सरसाइज सीखना चाहता है तो उसे किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इस सवाल पर वाईएस चौहान ने बताया, “मैं पिछले 22 साल से यही सब कर रहा हूं और दूसरों को सिखा रहा हूं और पिछले 6 साल से अनु भी मेरे साथ जुड़ गई हैं. हमारा मानना है कि औनलाइन क्लास जौइन करने वाले फ्रैशर को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. उसे हमारे बताए हर टिप को ध्यान से सुनना चाहिए और जिस तरह हम ऐक्सरसाइज कर रहे हैं, वही दोहराना चाहिए. अगर कोई दिक्कत है तो जरूर पूछना चाहिए.

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“अगर पहले से कोई बीमारी है या चोट आदि लगी हुई है, उस का जिक्र जरूर करना चाहिए. ऐक्सरसाइज करने में कोई दिक्कत आ रही तो तुरंत रुक जाएं. ज्यादा उतावलापन न दिखाएं. हमारी बताई हुई डाइट फौलो करें और शू, कपड़े वही पहनें जो ऐक्सरसाइज करने वाला अमूमन पहनता है. इस से नतीजे बहुत अच्छे आते हैं.”

किसी अपराध से कम नहीं बौडी शेमिंग, सेलेब्रिटी भी हो चुकें है शिकार

हाल ही में फिटरेटेड द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 93% महिलाओं और 83% पुरुषों ने स्वीकार किया कि वे कभी न कभी बौडी शेमिंग का शिकार हो चुके हैं. 2016 में किए गए एक अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को लंबे समय तक बौडी शेमिंग सहनी पड़ती है. 14 की हों या 84 साल की, हर उम्र में अपनी शारीरिक बनावट को ले कर कमैंट्स सुनने पड़ते हैं, जबकि पुरुष समय के साथ अपनी बौडी को ले कर अधिक कौन्फिडैंट हो जाते हैं.

बौडी शेमिंग यानी आप की शारीरिक खामियों पर लोगों द्वारा की गई टिप्पणी और उस की वजह से खुद को ले कर आप के अंदर उत्पन्न शर्मिंदगी की भावना. बचपन में घर वालों से शुरू हुई इस तरह की टीकाटिप्पणियों का सिलसिला स्कूलकालेज में बुलिंग के रूप में और फिर सोशल मीडिया के बढ़ते हस्तक्षेप की वजह से जिंदगीभर टिप्पणियों के रूप में जारी रहता है.

बौडी शेमिंग मुख्यतया वजन, रंगरूप, पहनावा, शारीरिक आकर्षण और नैननक्श को ले कर की जाने वाली आलोचनाएं हैं. इस के शिकार मानसिक रूप से इतने आहत हो जाते हैं कि वे उम्रभर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं.

कैसे समझें कि आप हो रहीं शिकार

आप को कितनी दफा लोगों ने कहा कि आप मोटी और बेडौल दिखती हैं या आप का चेहरा आकर्षक नहीं. आप बेहद पतली हैं या

आप को गोरा दिखने के लिए ज्यादा पाउडर लगाना चाहिए. अगर आप के साथ भी ऐसा हुआ है तो आप यकीनन बौडी शेमिंग की शिकार बन चुकी हैं. यदि आप लोगों के सामने खुद की उपस्थिति को नकारात्मक मानती हैं तो यह बौडी शेमिंग है.

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दूसरों के फिट शरीर को देख कर खुद के बारे में नकारात्मक विचार आना, अपनी बौडी शेप, वेट या साइज को ले कर शर्मिंदगी महसूस करना और इस वजह से लोगों के बीच जाने से बचना बौडी शेमिंग है.

आप कोई खूबसूरत ड्रैस पहनती हैं और आप को महसूस होता है जैसे आप इस ड्रैस में अच्छी नहीं लग रहीं, यह ड्रैस आप पर फिट नहीं बैठ रही है या कोई और इसे पहन कर ज्यादा खूबसूरत दिखेगी, यह सोच इस बात का इशारा करती है कि आप जानेअनजाने बौडी शेमिंग का शिकार हो रही हैं.

आप को यह लगता हो कि बेडौल शरीर या खूबसूरत न होने के कारण ही आज तक आप सिंगल हैं और आप को भविष्य में भी मनचाहा साथी नहीं मिलेगा तो यह भी बौडी शेमिंग का ही लक्षण है.

फोर्टिस हैल्थकेयर ने देशभर के 20 शहरों जिन में दिल्ली, एनसीआर, मुंबई, बैंगलुरु, हैदराबाद,चेन्नई, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, मोहाली आदि शामिल थे, की 15 से 65 वर्ष की आयुवर्ग की 1,244 महिलाओं पर सर्वे किया ताकि बौडी इमेज को ले कर उन के रवैए और सोच को समझा जा सके, साथ ही इस का यह पता लगाना भी मकसद था कि बौडी शेमिंग का मनोवैज्ञानिक असर उन पर कैसा पड़ता है.

बौडी शेमिंग का असर

बौडी शेमिंग हमारी सैल्फ  इमेज पर अटैक करती है. बचपन से हमारे बारे में जो बोला जाता है उन बातों का असर हमारी सबकौंशस पर पड़ता है. इन्हीं बातों के आधार पर हमारे मन में अपनी एक इमेज बन जाती है. समय के साथ दूसरों की टिप्पणियों की वजह से यह अच्छी या बुरी बनती जाती है. मान लीजिए किसी बच्चे को बारबार कहा जाए कि तुम बेवकूफ  हो तो धीरेधीरे उस के मन में यह बात अनजाने ही बैठती जाएगी कि वह वाकई किसी काम का नहीं. उस का आत्मविश्वास कम होता जाएगा और अनजाने ही वह बौडी शेमिंग का शिकार बनता जाएगा.

हीनभावना

समाज द्वारा रिजैक्शन मिलने की वजह से बौडी शेमिंग के शिकार व्यक्ति को महसूस होता है जैसे वह किसी लायक नहीं. उस के अंदर हीनभावना बैठने लगती है और धीरेधीरे वह अपना आत्मविश्वास खो बैठता है. इस तरह काबिलीयत होने के बावजूद वह कुछ अच्छा या ऊंचा करने का हौसला गंवा बैठता है.

ऐसा बहुत कम होता है कि बौडी शेमिंग का शिकार व्यक्ति इस से बाहर निकलने और फिर से मजबूत होने की कोशिश करे, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि वह इस का शिकार हो चुका है. वह या तो जिंदगी से हार जाता है या फिर मानसिक बीमारियों का शिकार बन जाता है. समय के साथ और भी ज्यादा कुंठित हो कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेता है.

कई बार दूसरों की नजरों में अपनी छवि सुधारने और बौडी शेमिंग के जंजाल से उबरने के लिए लोग तरहतरह के प्रयास करने लगते हैं. वजन घटाने के लिए बहुत कम खाने से ले कर आकार सही करने के लिए सर्जरी कराने, लोगों के बीच निकलने से बचने, आत्महत्या का प्रयास करने जैसे कदम भी उठाने लगते हैं. वे सामाजिक स्वीकृति की चाह में जिंदगी जीना भूल जाते हैं. जैसे हैं वैसा खुद को स्वीकार नहीं कर पाते और सारी उम्र डिप्रैशन में गुजार देते हैं.

क्यों की जाती है बौडी शेमिंग

बौडी शेमिंग की घटनाएं भी दूसरे सामाजिक अपराधों की तरह हैं. यह एक तरह का सामाजिक शोषण है. इस का मकसद सामने वाले की कीमत कम करना है. समाज का एक बड़ा तबका समाज द्वारा निर्धारित मानदंडों के मुताबिक अनफिट पाए गए लोगों पर गलत और नकारात्मक टिप्पणियां करता है. उन के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है ताकि उन्हें अपने हिसाब से चला सके, दबा कर रख सके.

यह समाज में बढ़ते वर्गविभेद का ही एक प्रकार है. इस में दूसरे को नीचा दिखाया जाता है. ऐसा करने वाले स्वयं कमजोर और हारे हुए होते हैं. वे दूसरों को गिरा कर खुद उठना चाहते हैं. यह एक तरह का अकारण बैर है अमीर का गरीब से, ताकतवर का कमजोर से और उच्च जाति का निम्न जाति से. यह एक तरह से गु्रपिज्म का आधार है. अपनी लौबी बनाने के लिए दूसरे को जलील किया जाता है.

धर्म की भूमिका

इस मनोवृत्ति के विकास में धर्म की अहम भूमिका होती है. ज्यादातर धर्मग्रंथ इस बात की पुष्टि करते हैं कि आप की समृद्धि, खूबसूरती, जाति आदि पूर्वजन्म के कर्मों का प्रतिफल है. सर्वोत्तम लोगों पर भगवान की असीम कृपा होती है तभी उन्हें खूबसूरत शरीर, गौर वर्ण और उच्च जाति में जन्म मिला है, जबकि बदसूरती या शारीरिक कमियों को देव प्रकोप का नाम दिया जाता है. खूबसूरती, रंग और समृद्धि के आधार पर समाज में आप का स्थान निर्धारित किया जाता है.

जन्म से ही इस तरह की तमाम घुट्टियां पिला दी जाती हैं और फिर सारी उम्र व्यक्ति इसी आधार पर दूसरों या खुद को आंकने का काम करता है.

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धार्मिक ग्रंथों में भेदभाव का आदेश

प्राचीनकाल से भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार कायम रहा है. सती प्रथा, देवदासी प्रथा, बाल विवाह जैसी कितनी ही कुप्रथाएं स्त्रियों की जिंदगी बदतर बनाने के लिए काफी थीं.

यदि विधवा होने पर किसी स्त्री का दोबारा विवाह नहीं होता था तो उस के सिर के बाल काट दिए जाते थे. यह बात अथर्ववेद (14-2-60) में साफतौर पर लिखित है. इस तरह से बाल काट कर उस का अपमान ही किया जाता था वरना पति के मरने का स्त्री के सिर के बालों से क्या संबंध हो सकता है? जाहिर है कि इस तरह बदसूरत बना कर उसे खुद के प्रति शर्मिंदगी महसूस कराने का प्रयास किया जाता था. उसे बौडी शेमिंग का शिकार बनाया जाता था.

ऐसी स्त्रियां किसी समारोह में नहीं जा सकती थीं. किसी अच्छे काम में मौजूद नहीं हो सकती थीं. उन के वजूद पर अशुभ और कुरूप होने का ठप्पा लगा दिया जाता था. किसी स्त्री का पति चल बसा यानी वह अपने पति को खा गई. इस का मतलब वह अंदर से कुरूप है तो फिर बाहर से भी उसे बदसूरती का जामा पहनना चाहिए और शर्मिंदगी के साथ जीवन बिताना चाहिए.

इसी तरह मनुस्मृति जैसे धर्मग्रंथों में विवाह के लिए उपयुक्त लड़कियों की शारीरिक खूबियों का वर्णन मिलता है. कई ऐसी शारीरिक कमियों का भी जिक्र है, जिन की वजह से स्त्री को नीचा दिखाया गया है. ऐसी स्त्रियों से विवाह न करने की हिदायत दी गई है.

मनुस्मृति के अध्याय 3, श्लोक 8 के अनुसार ललाई लिए भूरे रंग वाली, अधिक (या कम) अंग वाली जैसे 6 या फिर 3-4 उंगलियों वाली, ज्यादा बालों वाली या फिर बिना बालों वाली, ज्यादा बोलने वाली और भूरी आंखों वाली कन्या से विवाह न करें.

तीसरे अध्याय के ही 9वें श्लोक में कहा गया है कि बहुत मोटी, बहुत दुबलीपतली, बहुत लंबी, बहुत नाटी, किसी अंग से हीन और झगड़ा करने वाली कन्या से विवाह न करें.

श्लोक संख्या 10 के मुताबिक, जो किसी अंग से हीन न हो, सुंदर नाम वाली हो, हंस तथा हाथी के समान चलने वाली हो, सूक्ष्म रोम तथा पतलेपतले दांतों वाली और सुकुमार शरीर वाली हो, ऐसी कन्या से विवाह करें.

इसी तरह सामुद्रिक शास्त्र में भी लड़कियों की शारीरिक खूबियों और खूबसूरती के मानदंड के आधार पर उन के स्वभाव और भविष्य का आकलन किया गया है-

पूर्णचंद्रमुखी या च बालसूर्य समप्रभा।

विशालनेत्रा विंबोष्ठी सा कन्या लभते सुखम्।1।

या च कांचनवर्णाभ रक्तपुष्परोरुहा।

सहस्त्राणां तु नारीणां भवेत् सापि पतिव्रता।2।

अर्थात् जिस कन्या का मुख चंद्रमा के समान गोल, शरीर का रंग गोरा, आंखें थोड़ी बड़ी और होंठ हलकी सी लालिमा लिए हुए हों तो वह कन्या अपने जीवनकाल में सभी सुख भोगती है.

जिस स्त्री के शरीर का रंग सोने के समान हो और हाथों का रंग कमल के समान गुलाबी हो वह हजारों पतिव्रताओं में प्रधान होती है.

ललनालोचने शस्ते रक्तांते कृष्णतारके।

गोक्षीरवर्णविषदे सुस्निग्धे कृष्ण पक्ष्मणी।1।

राजहंसगतिर्वापि मत्तमातंगामिनि।

सिंह शार्दूलमध्या च सा भवेत् सुखभागिनी।2।

अर्थात् जिस के दोनों नेत्र प्रांत (आंखों के ऊपरनीचे की त्वचा) हलकी लाल, पुतली का रंग काला, सफेद भाग गाय के दूध के समान तथा बरौनियों (भौंहों) का रंग काला हो वह स्त्री सुलक्षणा होती है.

जो स्त्री राजहंस तथा मतवाले हाथी के समान चलने वाली हो और जिस की कमर सिंह अथवा बाघ के समान पतली हो वह स्त्री सुख भोगने वाली होती है.

बचने के लिए क्या करें

खुद को स्वीकार करें

खुद से प्यार करें. चाहें लोगों ने आप की कितनी भी बुरी इमेज बना दी हो पर आप जैसे हैं खुद को वैसा स्वीकार करें. समयसमय पर खुद को सराहें. अपनी अच्छाइयों और खूबियों को पहचानें और उन में निखार लाने का प्रयास करते हुए आगे बढ़ें. अपना विश्वास मजबूत करें. जिन चीजों को सुधारा जा सकता है उन्हें सुधारें. जिन के लिए कुछ नहीं कर सकते उन्हें वैसा ही स्वीकार करें ताकि दूसरों की फुजूल बातों का असर आप पर न पड़े. यदि आप की तारीफ  आप के दोस्त या घर वाले नहीं कर रहे हैं तो खुद अपनी तारीफ  करें और खुद को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रखें.

सैल्फ  हैल्प

इस संदर्भ में साइकोलौजिस्ट डा. कनक पांडेय बताती हैं कि यदि आप 16 साल तक वह नहीं बन पाए जो आप बनना चाहते थे तो आप अपने पेरैंट्स को दोष दे सकते हैं. मगर यदि आप 60 साल तक भी न बन पाए तो इस के लिए सिर्फ  आप जिम्मेदार हैं. इसलिए हारने से पहले एक बार खुद का मूल्यांकन करें और खुद से यह सवाल करें कि क्या आप सचमुच ऐसे हैं तो बहुत सी गांठें खुलने लगेंगी.

आप भले ही खूबसूरत नहीं पर अपनी इंटैलिजैंस का प्रयोग कर ऊंचा मुकाम तो पाया ही जा सकता है. आप को ले कर लोग उलटेसीधे कमैंट करें तो उन पर बिलकुल ध्यान न दें. अपनी सफलता से आप सब का मुंह बंद कर सकती हैं. अपने जीवन का एक मकसद निर्धारित करें और उसे गंभीरता से पाने का प्रयास करें.

किसी फिट और अच्छे व्यक्ति को अपना आदर्श बनाएं और उस के जैसा शरीर पाने की कोशिश करें. अपने अंदर यह विश्वास लाएं कि चाहे कुछ भी हो जाए आप वैसी बन कर दिखाएंगी.

गौसिप का हिस्सा न बनें: यदि आप अपने बारे में बात करने से दूसरों को नहीं रोक सकते तो कम से कम दूसरों के बारे में की जा रही गौसिप का हिस्सा भी न बनें. जब आप किसी की बुलिंग करने में दूसरों की मदद करते हैं तो उस का मतलब है आप खुद ऐसा कर रहे हैं.

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अपने परिजनों और दोस्तों से बात करें. उन्हें बताएं कि जब कोई शारीरिक बनावट की वजह से आप को नीचा दिखाता है तो आप कैसा महसूस करते हैं. उन्हें ऐसा करने से मना करें. बौडी शेमिंग का अर्थ है अपने शरीर को ले कर आप को बुरा महसूस कराना, क्योंकि आप समाज द्वारा निर्धारित खूबसूरती के पैमानों पर खरा नहीं उतरते.

याद रखें आप का व्यक्तित्व और व्यवहार आप की खूबसूरती को दर्शाता है न कि शारीरिक बनावट. अत: बिंदास रहें और खुद को मोटीवेट करती रहें.

सैलिब्रिटी भी इस के शिकार

सैलिब्रिटीज, जिन्हें हम परफैक्ट मानने लगते हैं, वे भी अकसर बौडी शेमिंग का शिकार बनते हैं. एक आम लड़की से विश्व सुंदरी, फिर बौलीवुड और अब हौलीवुड का हिस्सा बन चुकी प्रियंका चोपड़ा ने अपनी काबिलीयत के बल पर एक अलग मुकाम पाया है. प्रियंका चोपड़ा ने हाल ही में अमेरिकी शो ‘द व्यू’ में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं पर चर्चा की. प्रियंका ने बताया कि ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत में उन्हें बौडी शेमिंग का शिकार होना पड़ा था.

प्रियंका ने शो में बताया कि जब वे ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत करने के लिए एक फिल्म प्रोड्यूसर के पास गईं तो उस ने उन का काफी मजाक बनाया और कहा कि तुम्हारी नाक ठीक नहीं है. बौडी की शेप भी अच्छी नहीं है. इस तरह उस वक्त प्रियंका को बौडी शेमिंग का शिकार होना पड़ा था.

विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय की खूबसूरती का दीवाना हरकोई है पर इन्हीं ऐश्वर्या को उस वक्त बौडी शेमिंग से जुड़ी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा जब आराध्या के जन्म के बाद वे बढ़े हुए वजन के साथ नजर आईं. उन के वजन पर कमैंट किए गए. मगर वे खामोश रहीं. उन के पति अभिषेक ने जरूर मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा कि भले ही ऐश एक पब्लिक फिगर है, मगर यह न भूलें कि वह एक औरत है और अब एक मां भी है. अपनी सीमा रेखा पार न करें.

जरीन खान और विद्या बालन को भी अकसर अपने वजन की वजह से कमैंट्स सुनने को मिलते हैं. मगर दोनों ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं देतीं और हमेशा खुद को खूबसूरती से पेश करती हैं.

इसी तरह टैनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स, सिंगर लेडी गागा, जेनिफर लोपेज जैसी हस्तियों पर भी उन की बौडी शेप और बढ़ते वजन की वजह से कमैंट्स किए जाते रहे हैं. यदि आप अपनी बौडी को ले कर कंफर्टेबल नहीं हैं तो जरूर इसे बेहतर बनाने का प्रयास करें. मगर यदि आप कंफर्टेबल हैं तो किसी और को आप पर कोई कमैंट करने का हक नहीं है.

दीपिका पादुकोण को भी कई दफा दुबलेपन की वजह से कमैंट्स सुनने पड़े हैं मगर वे शांत रह कर अपने काम करती रहीं और सफलता की बुलंदियां छूती रहीं.

‘‘समाज द्वारा रिजैक्शन मिलने की वजह से बौडी शेमिंग के शिकार व्यक्ति को महसूस होता है जैसे वह किसी लायक नहीं. उस के अंदर हीनभावना बैठने लगती है और फिर धीरेधीरे अपना आत्मविश्वास खो बैठता है…’’

‘‘समाज का एक बड़ा तबका समाज द्वारा निर्धारित मानदंडों के मुताबिक अनफिट पाए गए लोगों पर गलत और नकारात्मक टिप्पणियां करता है. उन के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है ताकि उन्हें अपने हिसाब से चला सके, दबा कर रख सके…’’

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शाम के नाश्ते में बनाएं उत्तर भारत का मशहूर ढुस्का

ढुस्का, उत्तर भारत की मशहूर रेसिपी है जो बासमती चावल और चना दाल को पीसकर हरी मिर्च और लहसुन के साथ बनाई जाती है. इसे बनाना बेहद आसान है. तो चलिए आपको बताते हैं ढुस्का बनाने की रेसिपी.

सामग्री

बासमती चावल – 2 कप

चना दाल (भीगी हुई) – 1 कप

बारीक कटी हरी मिर्च – 4

लहसुन की कली – 5

करी पत्ता – 4

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नमक – स्वादानुसार

धनिया पत्ता

बारीक कटा प्याज – 1

हल्दी चुटकी भर

पानी – 1/3 कप

विधि

चावल और दाल को अच्छी तरह से धोकर 4-5 घंटे के लिए भिगोकर रख दें.

भिगोए हुए चावल-दाल को हरी मिर्च, लहसुन और थोड़े से पानी के साथ पीस कर पेस्ट बना लें. यह बैटर न ज्यादा गाढ़ा हो, न ज्यादा पतला. इसमें हल्दी और नमक मिलाएं.

कढ़ाई में तेल गर्म करें. लेकिन तेल बहुत ज्यादा गर्म नहीं होना चाहिए. गोल चम्मच लें. इस चम्मच में बैटर लें और तेल में धीरे से डाल दें. दोनों तरह से सुनहरा होने तक अच्छी तरह से फ्राइ करें.

ढुस्का तैयार है जिसे आप किसी भी सब्जी की ग्रेवी, आलू टमाटर की सब्जी, अचार या हरी चटनी के साथ सर्व कर सकती हैं.

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पेनकिलर: वर्षा की जिंदगी में आखिर क्या हुआ?

Serial Story: पेनकिलर (भाग-1)

‘‘हाय,कैसी हो?’’ फोन उठाते ही दूसरी तरफ से विद्या का चहकता स्वर सुनाई दिया.

‘‘अरे विद्या तू… कैसी है? कितने दिनों बाद याद आई आज मेरी,’’ विद्या की आवाज सुनते ही मीता खुशी से बोली.

‘‘तो तूने ही मुझे इतने दिन कहां याद किया मेरी जान?’’ कहते हुए विद्या जोर का ठहाका लगा कर हंस दी, ‘‘अच्छा ये गर्लफ्रैंड वाली शिकवेशिकायतों की बातें छोड़ और यह बता आज घर पर ही है या कहीं जा रही है?’’

‘‘नहीं, कहीं नहीं जा रही घर पर ही हूं,’’ मीता ने कहा.

‘‘ठीक है तो सुबह 10 बजे डाक्टर के यहां अपौइंटमैंट है… तेरा घर उधर ही है तो सोचा आज तुझ से भी मिल लूं. 11 बजे तक फ्री हो कर तेरे घर आती हूं बाय.’’

इस से पहले कि मीता पूछ पाती उसे क्या हुआ है, विद्या ने फोन काट दिया. फिर मीता भी जल्दीजल्दी अपना काम खत्म करने में लग गई ताकि उस के आने से पहले फ्री हो जाए और उस के साथ चैन से बैठ कर बातें कर पाए.

मीता जब किराए के मकान में रहती थी तब विद्या उस की पड़ोसिन थी. हंसमुख स्वभाव की विद्या के साथ जल्द ही मीता की गहरी दोस्ती हो गई. 3 साल मीता उस मकान में रही. इन 3 सालों में वह और विद्या एकदूसरे के साथ बहुत घुलमिल गई थीं. हर सुखदुख, बाहर आनाजाना, फिल्म देखना, शौपिंग करना… कितने सुखद दिन थे वे. फिर मीता अपने घर में शिफ्ट हो गई.

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ठीक 11 बजे विद्या आ गई. मीता काम निबटा कर बेचैनी से उस की राह देख रही थी. आते ही दोनों सखियां आत्मीयता से गले मिलीं.

‘‘पहले यह बता कि डाक्टर के यहां क्यों गई थी?’’ मीता ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘अरे कुछ नहीं बाबा. दांत में दर्द था तो रूट कैनाल ट्रीटमैंट करवाया… आज ड्रैसिंग करवाने आना था तो सोचा इसी बहाने तुझ से मिल लूं. वैसे तो घर छोड़ कर न तेरा आना

हो पाता है और न मेरा,’’ विद्या सोफे पर बैठते हुए बोली.

‘‘अच्छा किया तूने जो चली आई. कम से कम मिलना तो हुआ. एक समय था कि सुबह, दोपहर, शाम जब मन होता पहुंच जाते थे एकदूसरे के पास और कहां अब दोढाई साल हो गए मिले हुए,’’ मीता भी सामने वाले सोफे पर बैठते हुए बोली.

‘‘और बता क्या चल रहा है आजकल?’’ विद्या ने पूछा और फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया. दुनियाजहान की बातों का सिलसिला… लेकिन विद्या देख रही थी कि मीता बहुत धीमी आवाज में बातें कर रही है और खासतौर पर हंसते हुए वह बहुत ही असहज हो जाती व आवाज भी धीमी कर लेती.

विद्या के अनुसार घर में कोई नहीं था. बच्चे स्कूल जा चुके थे और मीता के पति औफिस.  तब मीता इतनी असहज क्यों है?

आखिरकार विद्या से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है मीता कुछ परेशान सी हो, सब ठीक तो है?’’

‘‘नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है… वर्षा ऊपर वाले कमरे में बैठी है, इसलिए और कुछ नहीं,’’ मीता दबी आवाज में बोली.

‘‘अरे वाह वर्षा आई हुई है और तूने मुझे बताया भी नहीं… बुला न उसे. ऊपर क्या कर रही है? नहाने गई है क्या?’’ विद्या ने चहक कर एक के बाद एक कई प्रश्न पूछ डाले.

‘‘आई हुई नहीं है यार वह तो शादी के 3-4 महीनों बाद से ही यहीं है,’’ मीता ने उदास स्वर में कहा.

‘‘यहीं है? लेकिन क्यों?’’ किसी बुरी आशंका से विद्या का कलेजा धड़क गया.

वर्षा मीता की इकलौती ननद है. 2 साल पहले बहुत धूमधाम से मीता और उस के पति ने उस का विवाह किया था. लोग वाहवाह

कर उठे थे. देखभाल कर बहुत अच्छे घर में ब्याहा था उसे. लड़का भी हर तरह से गुणी था. फिर अचानक…

‘‘कुछ नहीं वही इश्क का चक्कर… जल्द ही वर्षा को पता चल गया कि कार्तिक का विवाह के बहुत पहले से ही अपनी कंपनी में काम करने वाली एक विवाहित महिला से अफेयर है. अपने पति से तलाक ले कर कार्तिक से शादी तो नहीं कर रही पर उसे छोड़ भी नहीं रही. कार्तिक भावनात्मक रूप से उस औरत के साथ इतनी गहराई से जुड़ा हुआ था कि न तो वह किसी भी तरह से वर्षा से तालमेल बैठा पा रहा था और न ही उसे स्वीकार कर पा रहा था.

‘‘मांबाप के दबाव में आ कर वर्षा को उस घर की बहू तो बना दिया, लेकिन अपनी पत्नी नहीं बना पाया. बेचारी वर्षा अंदर तक टूट गई. सब के समझानेधमकाने, मिन्नतें करने किसी का भी उन दोनों पर असर नहीं हुआ. सब के सामने कार्तिक और वह औरत अपने रिश्ते से साफ मुकर जाते.

‘‘वर्षा उम्रभर तो किसी की बहू बन कर नहीं रह सकती थी न. आखिर उस बेचारी के भी कुछ अरमान, उमंगें थीं अपने पति से. लेकिन सब खाक हो गया. आखिर फैमिली कोर्ट में चुपचाप आपसी राजमंदी से तलाक दिलवा कर हम वर्षा को घर ले आए,’’ मीता ने संक्षेप में बताया, ‘‘बस तब से डेढ़ साल हो गया बेचारी इतनी मानसिक त्रासदियों से गुजरी है कि जीवन से ही निराश हो गई है. रातदिन चुपचाप पड़ी रहती है. लोग पूछने न लगें इसलिए अपनेआप को घर में ही कैद कर रखा है. कहीं नहीं निकलती, किसी से मिलतीजुलती नहीं.

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‘‘उस के दुख से दुखी हो कर हम भी कहीं आ जा नहीं पाते. उस के उदास, निराश चेहरे को देख कर मन ही नहीं करता. न बाहर जाने का, न तीजत्योहार मनाने का. एक इंसान की गलती की वजह से कितनी जिंदगियों में वीरानी फैल गई. पूरे घर में हर समय नकारात्मकता छाई रहती है. समझ नहीं आता इस स्थिति से हम कैसे बाहर निकलें. हर समय घर में घुटनभरा माहौल रहता है. बच्चे भी सहमेसहमे से रहते हैं.’’

विद्या मीता के चेहरे पर उदासी और घुटन की घनी छाया देख रही थी. विद्या के आने से कुछ समय के लिए मीता के मन से वह छाया लुप्त जरूर हो गई थी, लेकिन अतीत की बात आते ही फिर से घनी हो कर चेहरे पर छा गई. विद्या स्थिति की गंभीरता को समझ गई. ऐसी हताशा से उबरना और दूसरे को उबारना कितना मुश्किल होता है, यह वह समझती थी.

आगे पढ़ें- 5 मिनट तक दोनों के बीच मौन पसरा रहा, फिर…

Serial Story: पेनकिलर (भाग-2)

पहला भाग पढ़ने के लिए- पेनकिलर भाग-1

5 मिनट तक दोनों के बीच मौन पसरा रहा, फिर विद्या ने ही सवाल किया, ‘‘वर्षा की दूसरी शादी करने की नहीं सोची? तलाक तो हो ही चुका है.’’

‘‘वह शादी और पुरुष के नाम से ही इतनी विरक्त हो चुकी है कि इस बारे में सोचना भी नहीं चाहती. बहुत कोशिशें की, मगर वह डिप्रैशन से ग्रस्त हो चुकी है… क्या करें…’’ मीता की आंखें डबडबा आईं.

विद्या समझ रही थी कि वर्षा के हालात का असर न सिर्फ घर पर, बल्कि मीता के

दांपत्य पर भी पड़ रहा होगा. वह और आरुष शायद पिछले डेढ़ साल से फिल्म देखने या घूमने भी नहीं जा पाए होंगे. घर में भी खुल कर बातें या हंसीमजाक नहीं कर पाते होंगे.

‘‘इस बीमारी का इलाज तो तुझे ही करना होगा. वर्षा की बीमारी को तुम सब कब तक भुगतते रहोगे?’’ विद्या ने सहानुभूति से कहा.

‘‘यह तो ऐसा दर्द है जो लगता है उम्रभर के लिए मिल गया है. कुछ समझ ही नहीं आ रहा है कि वर्षा को इस दर्द से कैसे उबारें,’’ मीता दुखी स्वर में बोली.

‘‘डाक्टर नब्ज देखता है, बीमारी पहचानता है और फिर इलाज भी करता है. बिना इलाज किए छोड़ नहीं देता. इसी तरह जीवन में भी दर्द और समस्याएं होती हैं. सिर्फ सहते रहने से ही बात नहीं बनती. उन्हें दूर तो करना ही पड़ता है, समय रहते इलाज करना पड़ता है.

‘‘शरीर के दर्द में डाक्टर पेनकिलर देता है. दर्द बहुत ज्यादा हो तो इंजैक्शन लगाता है. मन के दर्द में राहत देने के लिए हमें ही एकदूसरे के लिए पेनकिलर का काम करना पड़ता है. तुम भी वर्षा के लिए पेनकिलर बन जाओ, चाहे शुरू में थोड़ी कड़वी ही लगे, लेकिन तभी वह दर्द से बाहर आ सकेगी,’’ विद्या ने समझाया.

मीता सोच में डूबी बैठी रही. सचमुच वर्षा का दर्द तो कम नहीं हुआ उलटे वे सब एक बोझिल दर्द के नीचे दब कर छटपटा रहे हैं. वह आरुष, बच्चे सब.

‘‘चल अब फटाफट 3 कप चाय बना. ऊपर वर्षा के साथ बैठ कर पीते हैं,’’ विद्या ने सिर झटक कर जैसे वातावरण में फैले तनाव को दूर करना चाहा.

‘‘लेकिन वर्षा तो किसी से मिलना ही नहीं चाहती. किसी को भी देखते ही बहुत असहज हो जाती है,’’ मीता शंकित स्वर में बोली.

‘‘थोड़ी देर तक ही असहज रहेगी, फिर अपनेआप सहज हो जाएगी. तू मुझ पर विश्वास तो रख,’’ विद्या मुसकराते हुए बोली.

मीता एक ट्रे में चायबिस्कुट ले आई और फिर दोनों वर्षा के कमरे में आ गईं. विद्या ने देखा कि वर्षा खिड़की के बाहर कहीं शून्य में झांक रही थी. किसी के आने का आभास होते ही उस ने दरवाजे की तरफ देखा. मीता के साथ विद्या को आया देख उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उसे लगा कि उस के बारे में सुन कर वे उस से सहानुभूति जताएंगी, उसे बेचारी की नजरों से देखेंगी. फिर उस के घाव हरे हो जाएंगे.

वर्षा का हताश, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर विद्या का दिल पसीज गया. लेकिन अभी समय खुद दर्द में डूबने का नहीं वरन वर्षा को दर्द से बाहर निकालने का है. विद्या ने चाय पीते हुए पुरानी बातें करनी शुरू कर दीं. कालेज, पुराने महल्ले, बाहर घूमनेफिरने के दिनों की मस्तीभरी यादें. विद्या देख रही थी वर्षा के चेहरे से असहजता के भाव धीरेधीरे दूर हो रहे हैं, वह सामान्य हो रही है.

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15-20 मिनट बाद ही जब वर्षा को यकीन हो गया कि विद्या उस के घाव कुरेद कर उसे दर्द देने नहीं आई हैं तो उस के चेहरे पर राहत के भाव आ गए और वह सामान्य हो कर कभी मुसकरा देती तो कभी एकाध शब्द बोल देती. मीता के चेहरे से भी तनाव की परतें छंटने लगीं.

करीब 1 घंटे तक सामान्य हलकीफुलकी बातें करने के बाद अचानक विद्या

बोली, ‘‘आज मैं डैंटिस्ट के यहां गई थी. बहुत दिनों से दाढ़ में असहनीय दर्द हो रहा था. उस दर्द की वजह से सिर, गरदन, जबड़े सबकुछ दर्द करने लगा था. यहां तक कि बुखार तक रहने लगा था. बहुत परेशान हो गई थी. एक छोटी सी दाढ़ ने पूरे शरीर को त्रस्त कर दिया था. शरीर ही क्यों पूरी दिनचर्या, जीवन सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया था. आखिर डाक्टर ने रूट कैनाल ट्रीटमैंट कर के सड़ी हुई नर्व को निकाल दिया. अब चैन मिला है. दर्द खत्म हो गया. अब जीवन, दिनचर्या सबकुछ ठीक हो गया.’’

वर्षा और मीता आश्चर्य से उस की तरफ देखने लगीं कि अचानक यह क्या बात छेड़ दी विद्या ने. दोनों कुछ समझ पातीं उस से पहले ही विद्या ने वर्षा से एक अजीब सवाल कर दिया, ‘‘अच्छा बताओ वर्षा मैं ने सड़ी नर्व निकलवा कर ठीक किया या नहीं या मुझे उम्रभर वह दर्द सहते रहना चाहिए था? क्या उसी दर्द को सहते हुए अपना जीवन, घरपरिवार सबकुछ अस्तव्यस्त कर देना चाहिए था?’’

वर्षा अचकचा गई कि इस सवाल का क्या तुक है. फिर भी उस ने अपनेआप को संभाल कर जवाब दिया, ‘‘न…नहीं … किसी भी दर्द को क्यों सहना? आप ने ठीक ही किया कि उस का इलाज करवा कर दर्द से नजात पा ली. यही तो करना चाहिए था.’’

‘‘तो बस फिर वर्षा, कार्तिक भी तुम्हारी वही सड़ी हुई नर्व है, जिस की वजह से तुम्हारा पूरा जीवन दर्द से भरता जा रहा है और अस्तव्यस्त हो रहा है. समय रहते उसे अपने जीवन से उखाड़ फेंको. थोड़ा दर्द जरूर होगा, लेकिन आगे पूरा जीवन दर्दरहित और सुखमय गुजरेगा. तुम्हारा भी और दूसरों का भी वरना कीड़ा एक दांत के बाद दूसरे दांतों को भी धीरेधीरे खराब करता जाएगा, वे भी बेवजह दर्द और सड़न के शिकार हो जाएंगे. तुम समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रही हूं?’’ विद्या ने वर्षा के हाथ पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा.

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‘‘हां दीदी मैं समझ रही हूं आप क्या कहना चाह रही हो,’’ वर्षा कांपते स्वर में बोली.

विद्या ने अपनी घड़ी देखी और फिर बोली, ‘‘अरे बाप रे ढाई बज गए. बातों में समय कब कट गया पता ही नहीं चला. बच्चों के घर आने का समय हो गया है. मैं चलती हूं.’’

अचानक वर्षा ने विद्या का हाथ पकड़ लिया, ‘‘फिर कब आओगी दीदी?’’

आगे पढ़ें- मीता सुखद आश्चर्य से भर गई…

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