लेखिका- शकीला एस. हुसैन
फिर 40वां आया (40 दिन बाद की रस्म) एक दिन पहले ही सास और ननद जुबेदा के पास आ कर बड़ी मुहब्बत से बातें करने लगीं. उस की सेहत की फिक्र करने लगीं. फिर सास धीरे से बोलीं, ‘‘जुबेदा बेटी, कल इमरान की 40वें की रस्म है. यह बहुत धूमधाम से करनी होती है. यह आखिरी काज है. तुम 40 हजार का एक चैक भर दो ताकि यह प्रोग्राम भी शानदार तरीके से हो जाए. करीब 200 लोगों को बुलाना पड़ेगा. रिश्तेदार भी फलमिठाई वगैरह लाएंगे, पर खाना तो अपने को पकाना पड़ेगा.’’
जुबेदा ने सोचते हुए कहा, ‘‘अम्मां, ऐक्सीडैंट के वक्त मैं ने 1 लाख का चैक सुभान भाई को दिया था. उस में से कर लीजिए 40वें का इंतजाम. अब बैंक में मुश्किल 70-80 हजार होगें जो मेरी बड़ी मेहनत से की गई बचत है. इमरान का वेतन तो घर खर्च व उन के अपने खर्च में ही खत्म हो जाता था.’’
‘‘हां तुम ने 1 लाख दिए थे. उन में से 35-40 हजार तो अस्पताल का बिल बना. 12-13 हजार बाइक ठीक होने में लगे. बाकी पैसे सियूम की फातेहा में खर्च हो गए.’’
जुबेदा ने धीमे से कहा, ‘‘अम्मां मरने वाला तो मर गया… यह गम कितना बड़ा है मेरा दिल जानता है पर इस गम में लोगों को बुला कर खानेपिलाने में खर्च करने का क्या फायदा?’’
‘‘अपना ज्ञान अपने पास रखो. यह 40वां करना जरूरी है. इस से इमरान की रूह को शांति मिलेगी और जितने लोग खाएंगे सब उस के लिए दुआ भी करेंगे.’’
जुबेदा को मजबूरन एक चैक भर कर देना पड़ा पर उस ने सिर्फ 30 हजार भरे. सास व ननद का मुंह बन गया. अभी उस के सामने कई खर्चे थे. एक साल पहले उस ने एक फ्लैट बुक किया था. उस की किस्त भी भरनी थी. अभी और भी कई काम थे.
2 दिन बाद 40वां हुआ. दूरदूर के रिश्तेदार और दूसरे लोग जमा हुए. खूब हंगामा रहा. जुबेदा तटस्थ अपने कमरे में रही. औरतें उस से मिलने आती रहीं.
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वक्त गुजरता रहा. इद्दत भी पूरी हो गई. उस के बाद अम्मां ने मिन्नत कर के भारी बनारसी साडि़यां बेटी के लिए मांग लीं. जेवरों की भी डिमांड करने लगीं. उस ने एक सोने का सैट दे कर जान छुड़ाई. यह सैट उसे अम्मां ने ही दिया था. इस तरह जिंदगी थोड़ी आसान हो गई.
एक दिन जब जुबेदा स्कूल से वापस आई तो रूना भाभी का चेहरा उतरा हुआ था.
आंखें खूब रोईरोई लग रही थीं. उस ने बहुत पूछा क्या हुआ पर रूना भाभी ने कोई जवाब नहीं दिया. उस के बाद रूना ने जुबेदा से बातचीत भी करीबकरीब खत्म कर दी. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बात क्या हुई है? ऐसा क्या हुआ कि ऐसी बेरूखी दिखा रही हैं? आखिर राज एक छुट्टी के दिन खुल गया. वह नाश्ते के बाद सब्जी काट रही थी कि अम्मां ने बात छेड़ी, ‘‘देखो जुबेदा बेटी तुम बहुत कम उम्र में बेवा हो गई. अभी तुम्हारी उम्र सिर्फ 27 साल है. पहाड़ जैसी जिंदगी बिना किसी मर्द के सहारे के गुजारना बड़ा मुश्किल काम है. हमारा क्या है आज हैं कल नहीं रहेंगे. यह दुनिया बड़ी जालिम है. तुम्हें तनहा जीने नहीं देगी. अकेली औरत सब के लिए एक आसान शिकार होती है. मेरी सलाह यह है कि अब तुम शादी कर लो.’’
जुबेदा ने अपने गुस्से को दबा कर कहा, ‘‘अम्मां, मुझे शादी नहीं करनी है. आप तो हिना (ननद) की शादी की फिक्र करें.’’
अम्मां ने मीठे लहजे में कहा, ‘‘जुबेदा, हम हिना के लिए लड़का तलाश कर रहे हैं. तुम्हारे लिए तो रिश्ता घर में ही मौजूद है. सुभान है न इमरान से 4 साल ही बड़ा है, अच्छा कमाता है. फिर मजहब भी 4 शादियों की इजाजत देता है. जरूरत पड़ने पर भाई भाई की बेवा का सहारा बन सकता है. उस से निकाह कर सकता है. कम से कम मजबूरी में वह 2 शादियां तो कर सकता है. तुम्हारे सिर पर एक सायबान हो जाएगा. तुम्हें शौहर के रूप में एक मददगार मिल जाएगा. मैं ने सुभान से बात कर ली है, वह तुम से निकाह करने को राजी है. बस, तुम हां कर दो.’’
जुबेदा तैश से उबल पड़ी, ‘‘अम्मां, आप कैसी बेहूदा बातें कर रही हैं? ऐसा कभी नहीं हो सकता है. वे मेरे लिए बड़े भाई की तरह हैं और मैं उन्हें भाई ही समझती हूं. मैं कभी भी रूना भाभी का घर नहीं उजाड़ूंगी. आप इस बात को यहीं खत्म कर दीजिए.’’ कह कर वह गुस्से में उठ कर अपने कमरे में चली गई. उस के दिमाग में जैसे लावा उबल रहा था. सास के अल्फाज उस के कानों में हथोड़े की तरह बज रहे थे. ‘सुभान तुम से निकाह करने को राजी है.’ वह तो राजी ही होगा शादी करने के लिए कम उम्र, कमाऊ, खूबसूरत औरत जो मिल रही है. उन्हें जरा भी शर्म नहीं आई… 2 बच्चे हैं, रूना भाभी जैसी प्यार करने वाली बीवी है, फिर भी दूसरी बीबी के ख्वाब देख रहे हैं. अब उसे समझ में आया कि रूना भाभी क्यों उस से उखड़ीउखड़ी रह रही थीं. घर में शादी की बातें चल रही होंगी. ये सब सुन कर रूना भाभी दुखी हो रही होंगी. जुबेदा खूब समझ रही थी. सुभान भाई की कोई खास आमदनी नहीं थी. अब उस की तनख्वाह पर नजर है. फिर कुछ सालों में फ्लैट भी मिल जाएगा. उस पर हक जमाएंगे और साथ ही जवान खूबसूरत नई बीवी मिल जाएगी. उस ने पक्का फैसला कर लिया कि वह किसी भी कीमत पर सुभान भाई से शादी नहीं करेगी. वह सोच में डूब गई कि उस का अगला कदम क्या होना चाहिए, क्योंकि वह जानती थी कि ये लोग अपनी जिद पूरी करने की हर संभव कोशिश करेंगे. शादी से बहुत फायदा है उन्हें.
दूसरे दिन जुबेदा ने स्कूल पहुंच कर अपनी सारी परेशानी प्रिंसिपल को बता दी.
प्रिंसिपल बहुत समझदार व जुबेदा की हमदर्द थीं. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘जुबेदा बेटा, मेरी समझ में तो इस का एक ही हल है कि तुम इन लोगों से कहीं दूर चली जाओे… तभी तुम इस अनचाही शादी से बच सकती हो. यहां से करीब 200 किलोमीटर दूर पहाड़ी कसबे सहदपुर में गर्ल्स स्कूल खुला है. उन्हें वहां अच्छी उत्साही टीचर्स की जरूरत है. वहां गर्ल्स होस्टल भी है. उस के वार्डन के लिए एक जिम्मेदार व अनुभवी टीचर की जरूरत है. मेरे पास भी नोटिस आया है. जो टीचर्स रुचि लें, उन्हें प्रेरित कर के मैं इस स्कूल में भेजूं. छोटा है पर अच्छा व सुरक्षित है. तुम्हारा नाम होस्टन वार्डन के तौर पर भिजवा देती हूं. तुम्हारे लिए होस्टल वार्डन क्वार्टर भी है और खाने का मेस भी. तुम्हें सारी सहूलतें मिलेंगी, वेतनवृद्धि भी अच्छी मिलेगी. तुम कहो तो मैं तुम्हारा नाम होस्टल वार्डन के लिए भेज देती हूं, साथ में लैटर भी लिख दूंगी. वहां की प्रिंसिपल मेरी कुलीग रह चुकी हैं. 3-4 साल बाद सही मौका देख कर तुम ट्रांसफर भी ले सकती हो. मेरी राय में तुम्हारी प्रौब्लम का यही उचित हल है.’’
जुबेदा को बात एकदम ठीक लगी. यही हल उस की परेशानी दूर कर सकता है. उस ने उसी वक्त अपना नाम दे दिया. प्रिंसिपल ने ट्रांसफर फार्म भरवा कर, सारी काररवाई पूरी कर अच्छी रिपोर्ट के साथ उस का फार्म विभाग को भिजवा दिया. जुबेदा ने सुकून की सांस ली.
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जुबेदा ने कहकशां को फोन कर सारे हालात बताए. जबरन शादी की बात सुन कर वह भी परेशान हो गई. फिर ट्रांसफर की बात उसे भी पसंद आई. उस ने कहा, ‘‘जुबेदा, तुम जल्दी वहां से निकलने की कोशिश करो. जैसे ही तुम्हारा जौइनिंग और्डर आता है मुझे खबर कर देना. मैं तुम्हारे दूल्हाभाई अरशद के साथ गाड़ी ले कर आ जाऊंगी. तुम्हें जौइन करवा कर, वहां सैट कर के ही हम दोनों वापस आएंगे.’’
जुबेदा ने घर में किसी को इस बात की भनक नहीं लगने दी. सब से नौर्मल व्यवहार रखा. चुपचाप अपनी तैयारी करती रही. उसे कुछ खास तो साथ ले जाना न था. कुछ कपड़े, जरूरी चीजें और कागजात संभाल कर रख लिए. 15 दिनों के बाद ही उस का ट्रांसफर और्डर आ गया. स्कूल से उसे रिलीव कर दिया गया. रात को उस ने पूरी तैयारी कर ली. दूसरे दिन सुबह ही कहकशां और अरशद गाड़ी ले कर आ गए. नाश्ता करने के बाद उस ने सासससुर को बताया कि उस का ट्रांसफर सहदपुर हो गया है. उसे कल ही जौइन करना है, इसलिए वह कहकशां व अरशद के साथ जा रही है. आज ही निकलना जरूरी है.
ट्रांसफर की सुन कर सब सकते में आ गए. सुभान कहने लगा, ‘‘तुम मत जाओ. मैं कुछ दे दिला कर ट्रांसफर रुकवा दूंगा. तुम लंबी छुट्टी ले लो. ऐसा सब तो होता है. मैं सब ठीक कर दूंगा.’’
सासससुर ने भी खूब समझाया. तरहतरह की दलीलें दे कर उसे रोकना चाहा. पर उस ने दोटूक कह दिया, ‘‘मुझे प्रमोशन मिल रही है… मेरे भविष्य का सवाल है. मैं ने जाने का निर्णय कर लिया है. आप लोग परेशान न हों.’’
जुबेदा सोच चुकी थी इस बार इंतहाई कदम उठाना है. इस पार या उस पार. उस के सख्त रवैए को देख कर सब की बोलती बंद हो गई.
जुबेदा ने जाते वक्त रूना भाभी से गले मिलते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप ने मुझे गलत समझा. मैं कभी आप की दुनिया नहीं उजाड़ती. मैं एक औरत का दर्द समझती हूं. मैं अब आप से दूर जा रही हूं. आप बेफिक्र हो कर खुश रहना.’’
रूना भाभी ने रुंधे गले से कहा, ‘‘जुबेदा मुझे माफ कर दो. मुझ से तुम्हें जानने में भूल हुई. पर तुम्हारा अकेलापन देख कर मेरा जी दुखता है…’’
‘‘आप मेरी फिक्र न करें. मैं काम में व्यस्त रहती हूं. वहां तो और भी तनहाई महसूस न होगी. होस्टल वार्डन बन कर जा रही हूं. मैं यह नहीं कहती कि मैं कभी शादी नहीं करूंगी पर अगर मुझे मेरा हमखयाल, हमदर्द, हमसफर मिल गया तो जरूर शादी करूंगी और मुझे उम्मीद है ऐसा मुखलिस बंदा मुझे मिल जाएगा.’’
जुबेदा सब से मिल कर मजबूत कदमों से जिंदगी के नए सफर के लिए रवाना हो गई. एक खुशनुमा जिंदगी उस की मंतजिर थी.
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लेखिका- शकीला एस. हुसैन
जुबेदा पढ़ीलिखी थी, सब समझती थी, पर इमरान की बेइंतहा मुहब्बत पा कर खुश थी. सास की जलीकटी चुपचाप सह लेती. कभी बात न बढ़ाती. रूना भाभी का व्यवहार ठीक ही था पर वे भी उस की नौकरी और खूबसूरती से खार खाती थीं. सुभान उसे खर्चे के सीमित पैसे देता था, इसलिए भी उसे चिढ़ होती थी.
पिछले कुछ दिनों से अम्मां ने एक नया मसला खड़ा कर दिया था कि शादी को 2 साल हो गए. अभी तक बच्चा नहीं हुआ. इस में जुबेदा का कोई कुसूर न था, पर उसे उलटीसीधी बातें सुननी पड़तीं कि बच्चे बिना औरत लकड़ी के ठूंठ जैसी होती है, न फूल लगने हैं न फल. ऐसी औरतें घर के लिए मनहूस होती हैं. रूना को देखो 5 साल में 2 बच्चे हो गए. घर में कैसी रौनक लगी रहती है.
वैसे बच्चे संभालने में कोई कभी मदद न करतीं. कभी थोड़ीबहुत सिलाई कर देतीं या फिर बेटों की फरमाइश पर कुछ पका देतीं. बाकी का वक्त महल्ले की खबरों में चला जाता. सब को सलाहें देने में और टीकाटिप्पणी करने में सब से आगे.
अम्मां की बातें सुन कर इमरान जुबेदा के साथ डाक्टर के पास गया. दोनों को पूरी तरह जांच करने के बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘दोनों एकदम ठीक हैं. कोई खराबी नहीं है. औलाद हो जाएगी.’’
इमरान ने आ कर अम्मां को सब बता दिया और कहा, ‘‘अब आप औलाद को ले कर परेशान न होना. जब होना होगा बच्चा हो जाएगा. अब आप सब्र से बैठें और हां जुबेदा को भी कुछ कहने की जरूरत नहीं है. सब समय पर छोड़ दीजिए.’’
1-2 महीने अम्मां शांत रहीं, फिर एक नया राग शुरू कर दिया कि ‘करामात पीर’ के पास जाना पड़ेगा. उस पीर का एक एजेंट अकसर अम्मां के पास आ फटकता और उन्हें अपने हिसाब से ऊंचनीच समझाना शुरू कर देता. हर बार अम्मां की अंटी कुछ हलकी हो जाती. अम्मां बोलती रहीं पर जुबेदा ने ध्यान न दिया. अनसुनी करती रही.
उस दिन छुट्टी थी. सब घर पर ही थे. नाश्ते के बाद लान में बैठे बातें कर रहे थे कि तभी अम्मां कहने लगीं, ‘‘चलो जुबेदा तैयार हो जाओ. आज हम करामात पीरबाबा के पास जाएंगे. बहुत दिन झेल ली तुम्हारी बेऔलादी… वे एक ताबीज देंगे और पढ़ कर फूकेंगे कि तुम्हारी गोद में बच्चा आ जाएगा. आज तुम्हें चलना पड़ेगा.’’
जुबेदा ने धीरे से कहा, ‘‘अम्मां मैं इन बातों पर यकीन नहीं रखती और यह तो कतई नहीं मानती कि पीरबाबा की फूंक और ताबीज से बच्चे हो जाते हैं.’’
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यह सुन कर अम्मां का पारा चढ़ गया. गुस्से से बोलीं, ‘‘यही तो बुराई है इन पढ़ीलिखी लड़कियों में. ये पीरबाबाओं पर यकीन नहीं रखतीं. पड़ोस की सकीना की बहू पीरबाबा के पास गई थी. 2 महीने से उम्मीद से है और सलामत की बेटी को 5 साल से बच्चा न था. उस की भी गोद भर गई. बाबा की एक और करामात है कि ऐसा पढ़ कर फूंकते हैं कि बेटा ही होता है. चलो, तुम्हारी गोद भी हरी हो जाएगी.’’
जुबेदा ने मजबूत लहजे में कहा, ‘‘अम्मां जब मुझे इन बातों पर यकीन ही नहीं है, तो मैं बाबा के पास क्यों जाऊं? ये सब झूठ है. मुझे समय पर भरोसा है… आप के कहने से सारे टैस्ट करवा लिए. सब ठीक है पर मैं करामात बाबा के पास नहीं जाऊंगी, यह मेरा फैसला है.’’
अम्मां ने शिकायती नजरों से इमरान को देखा तो वह बोला, ‘‘अम्मां, मुझे भी इन बातों पर यकीन नहीं है और मैं जुबेदा की मरजी के खिलाफ उस पर जबरदस्ती नहीं करूंगा. वह नहीं जाना चाहती है तो आप न ले जाएं.’’
इस बात पर अम्मां तैश में आ गईं. पूरा घर उन दोनों को छोड़ कर एक हो गया. कई तरह की खोखली दलीलें दे कर समझाने की कोशिश की गई पर वह न मानी और उठ कर अपने कमरे में चली गई. दरवाजा बंद कर लिया. उस की इस हरकत पर पूरा घर उस से नाराज हो गया. कोई उस से बात नहीं करता. ज्यादातर वह स्कूल या अपने कमरे में रहती. एक डेढ़ महीने के बाद घर का माहौल ठीक हुआ. जुबेदा सब्र से सब सह गई. दिन धूपछांव की तरह गुजरते रहे.
कहकशां जब दूध का गिलास ले कर आई तो जुबेदा चौंक कर अपने खयालों से बाहर आई. कहकशां ने जबरदस्ती उसे थोड़ी बै्रड दूध से खिलाई. 2-3 दिन तक रिश्तेदारों के यहां से खाना आता रहा. तीसरे दिन सियूम (मौत का तीसरा दिन तीजा) था उस दिन घर में खाना बनता है और सब रिश्तेदार व दोस्त वहीं खाना खाते हैं. सियूम बहुत शान से किया गया.
सारा दिन जुबेदा को सब के साथ बैठना पड़ा. पूरा वक्त इमरान की मौत का जिक्र, लोगों की बनावटी हमदर्दी, सियूम की तारीफ, शानदार खाना खिलाने पर वाहवाही. जुबेदा का दिल चाह रहा था वह इस माहौल से कहीं दूर भाग जाए.
कहकशां उसे ले कर कमरे में जाने लगी तो सास ने कहा, ‘‘अभी इसे यहीं बैठने दो. आज दिन भर औरतें पुरसा देने (हमदर्दी जताने) आएंगी. इस का यहां रहना जरूरी है.’’
‘‘जुबेदा को चक्कर आ रहा है. वह बैठ नहीं सकती. मुझे उसे लिटाने दीजिए,’’ कह कर उसे कमरे में ले गई.
उस के बाद 1 महीने की फारोहा हुई.
यह खाना करीबी रिश्तेदारों ने पकवा कर कुछ करीबी लोगों को खिलाया. 40-50 लोग हर बार शामिल होते थे. जुबेदा खामोश सब देखती रहती.
कहकशां 4 दिन के बाद चली गई थी. फिर 1 महीना होने पर बहन की मुहब्बत उसे फिर खींच लाई. 1 महीना होने के बाद दूसरे दिन जुबेदा सादे कपड़े पहन कर स्कूल जाने को तैयार हो गई. जैसे ही वह बाहर निकलने लगी सास और फूफी सास ने रोनापीटना शुरू कर दिया, ‘‘यह कैसी बदशगुनी है कि तुम इद्दत पूरी होने से पहले बाहर निकल रही हो.’’
यह सुन कर जेठ और ससुर भी रास्ता रोक कर खड़े हो गए, ‘‘तुम अभी घर से बाहर निकल कर स्कूल नहीं जा सकती. मैं अभी मौलाना साहब को बुलाता हूं, वहीं तुम्हें समझाएंगे.’’
मौलाना साहब आ गए. जबरन जुबेदा को परदे के पीछे बैठा दिया गया. कहकशां भी बेबस सी उस के पास बैठ गई. उन्होंने एक लंबा लैक्चर दिया, जिस का खुलासा यह था, ‘‘साढ़े 4 महीनों तक औरत न किसी गैरमर्द से मिल सकती है न कहीं बाहर जा सकती है और न ही भड़कीले रंगबिरंगे कपड़े पहन सकती है. उसे अपने कमरे में ही रहना होगा.’’
मौलाना साहब की बात सुन कर, तो सासससुर व जेठ सब को जबान मिल गई सब ने एकसाथ बोलना शुरू कर दिया. जुबेदा ने बुलंद आवाज में कहा, ‘‘एक मिनट, मेरी बात सुन लीजिए.’’
कमरे में सन्नाटा छा गया. जुबेदा ने कहा, ‘‘मौलाना साहब, मैं ने दुनिया के जानेमाने आलिम और इसलाम के बहुत बड़े स्कौलर से यूट्यूब पर सवाल किया था कि क्या औरत इद्दत के दौरान कतई बाहर नहीं निकल सकती? तब उन्होंने जो जवाब दिया उसे आप भी सुन लीजिए. उन का जवाब था, ‘‘औरत की अगर कोई मजबूरी है तो वह बाहर जा सकती है. अगर कोई सरकारी या फिर अदालत का काम करना जरूरी है तो भी उसे बाहर जाने की इजाजत है. अगर वह खुद कफील (खुद कमाने वाली) है और बाहर जाना जरूरी है तो वह परदे की एहतियात के साथ घर से निकल सकती है. मजबूरी की हालत में साढ़े 4 महीने की इद्दत पूरी करना जरूरी नहीं है.’’
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आलिम साहब का बयान सुन कर सन्नाटा छा गया. सब चुप हो गए. परदे के पीछे से जुबेदा की आत्मविश्वास से भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘आप ने आलिम साहब का फतवा सुन लिया. उन के मुताबिक मैं नौकरी के लिए बाहर जा सकती हूं. यह मेरी जरूरत और मजबूरी है. मैं पहले ही 1 महीने की छुट्टी ले चुकी हूं. अब और नहीं ले
सकती. मेरी सरकारी नौकरी है. मेरा स्कूल लड़कियों का स्कूल है. इसलिए बेपर्दगी का सवाल ही नहीं उठता. आलिम साहब के बयान के मुताबिक मुझे बाहर जाने की व नौकरी करने की इजाजत है.’’
मौलवी साहब व दूसरे लोग इतने बड़े आलिम साहब का विरोध करने का साहस न कर सके. उन लोगों के चुप होते ही बाकी लोगों ने भी हथियार डाल दिए. दूसरे दिन से जुबेदा ने हिजाब के साथ स्कूल जाना शुरू कर दिया. जिंदगी फिर सुकून से गुजरने लगी. जुबेदा अपने काम से काम रखती. ज्यादा वक्त तो उस का स्कूल में गुजर जाता. घर के बाकी लोग भी अपने काम में मसरूफ रहते.
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लेखिका- शकीला एस. हुसैन
ऐक्सीडैंट की खबर मिलते ही जुबेदा के तो होश उड़ गए. इमरान से शादी को अभी 3 ही साल हुए थे. इमरान की बाइक को किसी ट्रक ने टक्कर मार दी थी. घर के सभी लोगों के साथ जुबेदा भी अस्पताल पहुंची थी. सिर पर गंभीर चोट लगी थी. जिस्म पर भी काफी जख्म थे. औपरेशन जरूरी था. उस के लिए 1 लाख चाहिए थे. जुबेदा ससुर के साथ घर आई. फौरन 1 लाख का चैक ले कर अस्पताल पहुंचीं, पर तब तक उस की दुनिया उजड़ चुकी थी. इमरान अपनी आखिरी सांस ले चुका था. जुबेदा सदमे से बेहोश हो गई. अस्पताल की काररवाई पूरी होने और लाश मिलने में 5-6 घंटे लग गए.
घर पहुंचते ही जनाजा उठाने की तैयारी शुरू हो गई. जुबेदा होश में तो आ गई थी पर जैसे उस का दिलदिमाग सुन्न हो गया था. उस की एक ही बहन थी कहकशां. वह अपने शौहर अरशद के साथ पहुंच गई थी. जैसे ही जनाजा उठा, जुबेदा की फूफी सास सरौते से उस की चूडि़यां तोड़ने लगीं.
कहकशां ने तुरंत उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘चूडि़यां तोड़ने की क्या जरूरत है?’’
‘‘हमारे खानदान में रिवायत है कि जैसे ही शौहर का जनाजा उठता है, बेवा की चूडि़यां तोड़ कर उस के हाथ नंगे कर दिए जाते हैं,’’ फूफी सास बोलीं.
जुबेदा की खराब हालत देख कर कहकशां ने ज्यादा विरोध न करते हुए कहा, ‘‘आप सरौता हटा लीजिए. मैं कांच की चूडि़यां उतार देती हूं.’’
मगर फूफी सास जिद करने लगीं, ‘‘चूडि़यां तोड़ने का रिवाज है.’’ तब कहकशां ने रूखे लहजे में कहा, ‘‘आप का मकसद बेवा के हाथ नंगे करना है, फिर चाहे चूडि़यां उतार कर करें या उन्हें तोड़ कर, कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ और फिर उस ने चूडि़यां उतार दीं और सोने की 2-2 चूडि़यां वापस पहना दीं.
इस पर भी फूफी सास ने ऐतराज जताना चाहा तो कहकशां ने कहा, ‘‘आप के खानदान में चूडि़यां फोड़ने का रिवाज है, पर सोने की चूडि़यां तो नहीं तोड़ी जाती हैं. इस का मतलब है सोने की चूडि़यां पहनी जा सकती हैं.’’
फूफीसास के पास इस तर्क का कोई जवाब न था.
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जुबेदा को सफेद सलवारकुरता पहनाया गया. फिर उस पर बड़ी सी सफेद चादर ओढ़ा कर उस की सास उसे एक कमरे में ले जा कर बोलीं, ‘‘अब तुम इद्दत (इद्दत शौहर के मरने के बाद बेवा को साढ़े चार महीने एक कमरे में बैठना होता है. किसी भी गैरमर्द से मिला नहीं जा सकता) में हो. अब तुम इस कमरे से बाहर न निकलना.’’
जुबेदा को भी तनहाई की दरकार थी. अत: वह फौरन बिस्तर पर लेट गई. कहकशां उस के साथ ही थी, वह उस के बाल सहलाती रही, तसल्ली देती रही, समझाती रही.
जुबेदा की आंखों से आंसू बहते रहे. उस की आंखों के सामने उस का अतीत जीवित हो उठा. उस के वालिद तभी गुजर गए थे जब दोनों बहनें छोटी थीं. उन की अम्मां ने कहकशां और जुबेदा की बहुत प्यार से परवरिश की. दोनों को खूब पढ़ाया लिखाया. पढ़ाई के बाद कहकशां की शादी एक अच्छे घर में हो गई. जुबेदा ने एमएससी, बीएड किया. उसे सरकारी गर्ल्स स्कूल में नौकरी मिल गई. जिंदगी बड़े सुकून से गुजर रही थी. किसी मिलने वाले के जरीए जुबेदा के लिए इमरान का रिश्ता आया. इमरान अच्छा पढ़ालिखा और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. अम्मां ने पूरी मालूमात कर के जुबेदा की शादी इमरान से कर दी. अच्छा खानदान था. भरापूरा घर था.
इमरान बहुत चाहने वाला शौहर साबित हुआ. मिजाज भी बहुत अच्छा था. दोनों ने 1 महीने की छुट्टी ली थी. उमंग भरे खुशी के दिन घूमनेफिरने और दावतों में पलक झपकते ही गुजर गए. दोनों ने अपनीअपनी नौकरी जौइन कर ली. इमरान सवेरे 9 बजे निकल जाता. उस के बाद जुबेदा को स्कूल के लिए निकलना होता. घर में सासससुर और इमरान से बड़ा भाई सुभान, उस की बीवी रूना और उन के 2 छोटे बच्चों के अलावा कुंआरी ननद थी, जो कालेज में पढ़ रही थी.
अभी तक जुबेदा किचन में नहीं गई थी. इतना वक्त ही न मिला था. बस एक बार उस से खीर पकवाई गई थी. वे घूमने निकल गए. उस के बाद दावतों में बिजी हो गए. आज किचन में आने का मौका मिला तो उस ने जल्दीजल्दी परांठे बनाए. भाभी ने आमलेट बना दिया. नाश्ता करतेकराते काफी टाइम हो गया. इमरान नाश्ता कर के चला गया. आज लंच बौक्स तैयार न हो सका, क्योंकि टाइम ही नहीं था. दोनों शाम को ही घर आ पाते थे.
शाम को दोनों घर पहुंचे. जुबेदा ने अपने लिए व इमरान के लिए चाय बनाई. बाकी सब पी चुके थे. चाय पीतेपीते वह दूसरे दिन के लंच की तैयारी के बारे में प्लान कर रही थी. तभी सास की सख्त आवाज कानों में पड़ी, ‘‘सारा दिन बाहर रहती हो… कुछ घर की भी जिम्मेदारी उठाओ… रूना अकेली कब तक काम संभालेगी. उस के 2 बच्चे भी हैं… उन का भी काम करना पड़ता है. फिर हम दोनों की भी देखभाल करनी पड़ती है. अब कल सुबह से नाश्ता और खाना बना कर जाया करो. समझ गई?’’
जुबेदा दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ गई. सब के लिए परांठे बनाए. भाभी ने दूसरी चीजें बनाईं. उस ने जल्दीजल्दी एक सब्जी बनाई. फिर थोड़ी सी रोटियां बना कर दोनों के लंच बौक्स तैयार कर लिए. जल्दी करतेकरते भी देर हो गई. इसी तरह जिंदगी की गाड़ी चलने लगी. कभी दाल नहीं बन पाती तो कभी पूरी रोटियां पकाने का टाइम नहीं मिलता. हर दूसरेतीसरे दिन सास की सलवातें सुननी पड़तीं. शाम को बसों के चक्कर में इतना थक जाती कि शाम को कुछ खास नहीं कर पाती. बस थोड़ी बहुत रूना भाभी की मदद कर देती.
छुट्टी के दिन कहीं आनेजाने का या घूमने का प्रोग्राम बन जाता तो सब के मुंह फूल जाते. सास सारा गुस्सा जुबेदा पर उतारतीं, ‘‘पूरा हफ्ता तो घर से बाहर रहती हो छुट्टी के दिन तो घर रहा करो. कुछ अच्छी चीजें पकाओ… पर तुम्हें तो उस दिन भी मौजमस्ती सूझती है. जबकि छुट्टी के दिन तो हफ्ते भर के काम करने को होते हैं.’’
जुबेदा जवाब नहीं देती. सास खुद ही बकझक कर के चुप हो जातीं. इमरान सारे हालात देख रहा था. जुबेदा भरसक कोशिश करती पर काम निबटाना मुश्किल था. करने वाले 2 थे. काम ज्यादा लोगों का था और रूना भाभी के बच्चे भी छोटे थे. इमरान ने एक खाना पकाने वाली औरत का इंतजाम कर दिया. उस का वेतन जुबेदा देती थी. अब उसे राहत हो गई थी. वह बस सुबह के परांठे बनाती. तब तक बाई आ जाती. वह सास की सब्जी बना देती. बाकी बाद का काम भी संभाल लेती. रूना भाभी को भी आराम हो गया. दिन सुकून से गुजर रहे थे.
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मुश्किल यह भी कि सास पुराने ख्यालात की थीं. उन्हें जुबेदा का नौकरी करना बुरा लगता था. वे और जगह खुले हाथ से खर्च करती थीं पर घर खर्च में कुछ नहीं देती थीं. इमरान सुभान के बराबर घर खर्च में पैसे देता था. फिर अब्बा की पेंशन भी थी. उस में से सास बचत कर लेती थीं और बेवजह ही घर तंगी का रोना रोतीं. हां, जुबेदा कभी फ्रूट्स ले आती तो कभी नाश्ते का सामान. खास मौके पर सब को तोहफे भी देती. तब सास खूब खुश हो जातीं पर टोकने का कोई मौका नहीं छोड़तीं.
जुबेदा काफी खूबसूरत और नाजुक सी थी. इमरान उस पर जान देता था. उस का बहुत खयाल रखता. यह भी अम्मां को बहुत अखरता था कि उन का लाड़ला उन के अलावा किसी और से मुहब्बत करता है.
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सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है से लेकर कसौटी जिंदगी के 2 के जरिए फैंस के बीच पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस हिना खान बीते दिन 33 साल की हो गई हैं. इस मौके पर जहां फैंस के साथ-साथ सेलेब्स हिना को बधाइयां देते नजर आए तो वहीं हिना फैमिली संग बर्थडे सेलिब्रेट करती नजर आईं. इसकी एक वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं हिना खान के बर्थडे सेलिब्रेशन की वायरल वीडियो और फोटोज…
बर्थडे पर शेयर की फोटोज
हिना खान ने अपने बर्थडे सेलिब्रेशन के बीच अपने सोशलमीडिया पर कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिन्हें फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. दरअसल, बिग बौस के ग्रैंड प्रीमियर का हिस्सा बनने वाली हिना खान ने अपने फोटोशूट से जुड़ी फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह ब्लैक ड्रेस में नजर आ रही हैं.
बौयफ्रेंड ने भी किया विश
रॉकी जैसवाल ने अपनी गर्लफ्रेंड हिना खान को बर्थडे विश करते हुए लिखा- ख्वाहिश का सिला. साथ ही एक फोटो भी शेयर की, जिसमें हिना और रॉकी के बीच की केमेस्ट्री और बॉन्डिंग देखने लायक है. वहीं रॉकी, हिना खान को बर्थडे विश करते हुए आगे लिखते हैं- तेरी आंखों में हमने. इसके साथ शेयर की गई फोटोज में कपल ट्रेडिशनल आउटफिट्स में नजर आ रहे.
बिग बौस 14 में आएंगी नजर
जल्द शुरू होने वाले पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस के 14वें सीजन में तड़का लगाने इस बार हिना खान भी आने वाली हैं. वहीं वायरल वीडियो की बात करें तो उसमें हिना खान डांस करती नजर आ रही हैं. वहीं फैंस भी उनके लुक की सोशलमीडिया की तारीफें करने में लगे हैं.
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रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः यूडली फिल्मस
पटकथा लेखकः विजय नारायण वर्मा और अविनाश सिंह
निर्देशकः अशीश आर शुक्ला
कलाकारः राघव जुआल, अभिषेक चैहाण, संजय मिश्रा, राम कपूर, निधि सिंह.
अवधिः दो घंटे पांच मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म: हॉटस्टार डिज़नी
फिल्म ‘प्राग’के अलावा ‘अनदेखी’ सहित कुछ वेब सीरीज निर्देशित कर चुके अशीश आर शुक्ला इस बार ‘पूंजीवाद, भारतीय लोकतंत्र, भ्रष्ट नेताओं, स्वघोषित फर्जी भगवान, संत या धर्म गुरू के नाम पर उद्योगपति बन चुके लोगों, चरमपंथी विचारधारा पर जबदस्त कटाक्ष करने के साथ ही उच्च शिक्षित बेरोजगारों की स्थिति को लेकर एक हास्यप्रद फिल्म‘‘बहुत हुआ सम्मान’’ लेकर आए हैं. जिसे दो अक्टूबर से ओटीटी प्लटफार्म ‘‘हॉटस्टार डिजनी’’ पर देखा जा सकता है.
कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में वाराणसी मेकेनिकल इंजीनियरिंग के दो छात्र बोनी(राघव जुआल) और फंडू(अभिषेक चैहाण)हैं, जिनके परीक्षा में खराब नंबरों के चलते सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे की नौकरी का सपना बिखर जाता है. इनके साथ जुड़ते हैं स्व घोषित मार्क्सवादी क्रांतिकारी बकचोद बाबा (संजय मिश्रा), जो कि इन लड़कों को अपनी आंतरिक प्रतिभा व शक्ति को एकत्र कर एक नई दिशा में काम करते हुए कॉलेज परिसर में स्थित ‘एमसीबीसी बैंक’ को लूटकर पूंजीवाद को नष्ट करें. एक लंबे और जटिल ऑपरेशन के बाद यह दोनों लुटेरे अंततः बैंक की तिजोरी तक प्रवेश करते हैं, तो पाते है कि बैंक की तिजोरी से कीमती सामान पहले से ही कुछ बदमाशों द्वारा चुरा लिए गए हैं. यह वही बदमाश हैं जो कि खुद बंद सर्किट कैमरों द्वारा इन लड़कों को तिजोरी तक पहुंचते हुए देखते हैं. अपराधी को र्थड डिग्री यातना देकर अपराध के खात्मे के लिए दृढ़ संकल्प सुपर-कॉप बॉबी तिवारी (निधि सिंह)तक इन दो लड़को को बंदी बनाकर पेश किया जाता है. जो कि 32 वर्ष की उम्र में भी मां नही बन पायी है और अपने हताश पति रजत (नमित दास) द्वारा सुझाए जाने वाले सेक्स करने के नए नए तरीकों को अनसुना कर अपने काम में मन लगाए रहती हैं. वह इन लड़कों से बातचीत कर किसी बड़े अपराध को सूंघ लेती है. उधर बकचोद बाबा एक बड़ा वकील कर बोनी व फंदू की जमानत करा देते हैं. उधर राजनेता अजय सिंह परमार ने अपने मतलबी व अपने पैसों पर पलने वाले अपराधी लवली सिंह (राम कपूर)को पेरोल छुड़ाया है. क्योंकि बैंक से एक कीमती किताब गायब हो गयी है, जिसमें कई महत्वपूर्ण फार्मुले हैं, जिनसे स्वघोषित बाबा गुरू आनंद बलराम महाराज(दिव्येंदु भट्टाचार्य)ने ‘पतंजली’ की तरह हर तरह के उत्पाद बनाकर बेच रहे हैं. उन्होने ‘अखंड भारत पंथ’चला रखा है. उनके चेलो में नेता जी भी है. वह हर उत्पाद में एक ऐसा पदार्थ मिला रहे हैं, जिससे पूरे देश के लोगों की सोचने समझने की शक्ति धीरे धीरे खत्म हो जाए. मजेदार बात यह है कि बैंक से चोरी करने वाले दोनों डाकू राजू व भोलू नर्तकी सपना (फ्लोरा सैनी) के प्रेमी हैं. लवली सिंह अब राजेनता के इशारे पर बैंक से चोरी की किताब की तलाश कर रहे हैं. मगर राजू व भोलू के चंगुल से बोनी, फंडू व बकचोद बाबा ने वह किताब हासिल कर पुलिस इंस्पेक्टर बौबी तिवारी को सौंप दी है. इन्हे पता चलता है कि गुरू आनंद बलराम महाराज ने अपनी लैब गोरखपुर में बना रखी है, तो अब पुलिस इंस्पेक्टर बौबी अपने साथ बोनी, फंदू और बकचोद बाबा को लेकर गोरखपुर में उस लैब में पहुंचती हैं, जहां लवली सिंह भी पहुंचता है. गोलियां चलती हैं. अंततः लवली सिंह और पूरी लैब को आग के हवाले करने में यह इंजीनियरिंग के दोनों लड़के, बकचोद बाबा व बौबी सफल होते हैं.
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लेखनः
पटकथा लेखकों ने एक ही फिल्म में कई मुद्दों को पिराने के साथ लोगों को हंसाने के मकसद में कामयाब होने के लिए बौलीवुड फिल्मों के सारे मसाले पिरोकर फिल्म को कमतर बना दिया है. इंटरवल से पहले फिल्म की गति काफी धीमी है. लेखकद्वय ने ‘कंज्यूमरिज्म और धर्म का नशा मिलकर लोगों को पंगु बना देगा और कारखानों-दफ्तरों में इंसान की जगह मशीनें ले लेंगी, तब क्या होगा?यह सवाल उठाकर लोगों को सोचने पर मजबूर भी किया है. मगर फिल्म में बेवजह की गालियां व अष्लील संवादों की भरमार है. हर किरदार सिर्फ सेक्स की ही बात कर रहा है. मसलन एक संवाद है-‘‘गोरखपुर कौन जाता है सेक्स करने के लिए?’’लेखकद्वय कुछ चरित्रों के साथ न्याय करने में सफल नहीं रहे हैं. बैंक लूटने के लिए गटर के रास्ते जाने के दृश्य बौलीवुड की कई फिल्मों में दोहराए जा चुके हैं.
भारत में जिस तरह से सिस्टम काम करता है, उस पर कटाक्ष करता हुआ इंस्पेटर बाॅबी का संवाद ‘‘सिस्टम से लड़ाई हो, तो सिस्टम के कायदे कानून अलग रख दो. ’’, बहुत कुछ कह जाता है.
तो वहीं संजय मिश्रा का एक संवाद ‘‘क्रांति कोई दो-ढाई घंटे की फिल्म नहीं है. डेमोक्रेसी में क्रांति निरंतर चलनी चाहिए. ’’भी युवा पीढ़ी को संदेश देता है.
निर्देशनः
अपनी पिछली फिल्म या वेब सीरीज से शोहरत बटोर चुके निर्देशक अशीष आर शुक्ला इस फिल्म में अपनी निर्देशकीय प्रतिभा का परिचय उस तर्ज पर देने में विफल रहे हैं. फिल्म के वीएफएक्स भी घटिया है.
अभिनयः
बकचोद बाबा के किरदार में अभिनेता संजय मिश्रा ने एक बार पुनः जानदार अभिनय किया है. राघव जुयाल और अभिषेक चैहान ने बेरोजगार छात्रों के रूप में उत्कृष्ट अभिनय किया है. निधि सिंह प्रभावित करती हैं. मगर नमित दास निराश करते हैं. अति छोटे किरदार में भी दिवेंदु भट्टाचार्य अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अन्य किरदार तो सिर्फ दंभ में चूर नजर आते हैं.
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स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल साथ निभाना साथिया का दूसरा सीजन जल्द ही दर्शकों को एंटरटेन करने आ रहा है. लेकिन इससे पहले ही शो के मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो में देवोलिना को दिखाया गया था, जिसके बाद दर्शक उनके शो में नजर आने की बात कर रहे थे. हालांकि प्रोमो में मेन लीड के तौर पर गहना के किरदार की कहानी बताई गई थी, जिसके बाद अब नए प्रोमो में गहना के चेहरे से परदा हटा दिया गया है. आइए आपको दिखाते हैं क्या है नए प्रोमो में खास…
एक बार फिर नजर आईं देवोलिना
‘साथ निभाना साथिया’ सीजन 2 के नए प्रोमो में गोपी बहू एक बार फिर से दर्शकों के साथ बातचीत करती नजर आ रही हैं. इतना ही नहीं गोपी बहू यानी देवोलीना भट्टाचार्जी ने मेन किरदार गहना और आनंद से भी इस प्रोमो में मुलाकात करवाई है.
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गोपी की तरह सीधी है गहना
‘साथ निभाना साथिया 2’ के प्रोमो में गहना को गोपी बहू की तरह ही एक सीधी सादी दिखाया गया है. वह अपने ही घर में नौकरों की तरह काम करती रहती है. उसका पूरा परिवार हुक्म चलाने में माहिर नजर आ रहा है, जिसके चलते गहना की बात सुनने वाला कोई नही है. वहीं दूसरी तरफ, गहना के हाल को देखकर आनंद का दिल पसीज जाता है, जिसके बाद आनंद सबसे गहना के हाल के बारे में बात करने की कोशिश करता है. लेकिन आनंद की परवाह देखकर उसके घरवाले उसे चुप रहने की सलाह देते हुए कहते हैं कि अगर उसे इतना ही बुरा लग रहा है तो नौकरानी को अपनी पत्नी बना ले.
बता दें, बीते दिनों शो की कास्ट को लेकर कई नाम सामने आए थे, जिसमें सिद्धार्थ शुक्ला की नाम भी शामिल था. हालांकि प्रोमो देखने के बाद लगता है कि मेन किरदार में यही सदस्य नजर आने वाले हैं.
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कोरोना के डर के काऱण हर कोई अपनी हैल्थ के प्रति ज्यादा कौन्सियस हो गया है. क्योंकि अगर कोरोना से लड़ना है तो अपनी इम्युनिटी को स्ट्रोंग बनाना ही होगा. लेकिन इस बीच लोगों ने मौखिक स्वास्थय की और ध्यान देना बंद कर दिया है. लौक डाउन में जब से वर्क फ्रोम होम के चलन ने जोर पकड़ा है तब से लोग आफिस के चक्कर में खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहे हैं. पहले जो लोग 8 – 9 घंटे आफिस में काम करते थे , अब वे 10 – 12 घंटे आफिस के काम में ही बिजी रहते हैं. जिन बच्चों को पहले मोबाइल, टीवी , कंप्यूटर के आगे से हटाने के लिए पेरेंट्स कोशिशें करते रहते थे, आज उन्हीं बच्चों को वे ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के लिए कंप्यूटर , मोबाइल के सामने बैठा रहे हैं. बड़ों और बच्चों का ऑनलाइन वर्क बढ़ने से उसका दुष्प्रभाव उनके व्यक्तिगत स्वास्थय पर पड़ रहा है.
विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा डाइट व मौखिक स्वास्थय के बारे में जारी 2018 फैक्टशीट के अनुसार अन हैल्थी डाइट की वजह से हैल्थ के साथ साथ दांतों और जबड़े की हैल्थ भी प्रभावित होती है. क्लोव डेंटल के चीफ क्लीनिकल ऑफ़िसर डाक्टर विमल अरोड़ा का मानना है कि अनहैल्थी डाइट में बहुत अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, शुगर व स्टार्च होते हैं और उसमें विटामिन व कैल्शियम की कमी होती है, जिससे दंत रोग हो जाता है , जिसमें कैविटी आदि शामिल है . जो बच्चे की ओवरआल हैल्थ पर प्रभाव डालने का काम करता है.
मौखिक स्वास्थय पर ध्यान न दिए जाने के चलते आज यह स्तिथि है कि हर उम्र के लोगों में दांतों की समस्या हो रही है. अगर आप यह मान कर चलते हैं कि आपने अपने दांत ब्रश से साफ़ कर लिए हैं , जिससे आप दांतों की या मसूड़ों की बीमारी से बच गए हैं तो आप गलत हैं. अच्छी तरह से दांतों को ब्रश करने के साथ ही पौष्टिक डाइट व डेंटिस्ट के पास नियमित जांच हेतु जाने से ही आप हैल्थी दांत पा सकते हैं.
अकसर बच्चों में तब तक दांतों के रोगों की अनदेखी होती है , जब तक वह काबू से बाहर न हो जाए. उसमें बहुत पीड़ा न होने लगे , आखिर में बीमारी बढ़ने पर डेंटिस्ट के पास जाकर काफी पैसे खर्च करने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है. बता दें कि बच्चे हो या बड़े , किसी को भी दांतों की समस्या के स्पष्ट लक्षण उत्पन होने से पहले यह पता लगने लगता है कि उन्हें कई तरह की खाने पीने की चीजों का सेवन करने में असहजता महसूस हो रही है. ऐसी स्तिथि में अगर बच्चे खाने या फिर चबाने से मना करने लगते हैं तो आप तुरंत समझ जाएं और डॉक्टर को दिखाएं. लेकिन बहुत कम ही ऐसा होता है कि पेरेंट्स बच्चों की इस समस्या का कारण जान पाते हैं. कभी कभी कोई बड़ी कैविटी बन रही होती है , जिसके कारण ये दिक्कत हो रही होती है. इसी तरह बड़ी उम्र के लोगों में गलत ढंग से लगे डेनचर या दर्द देने वाला अल्सर खानेपीने के विकल्पों को सीमित कर सकता है. इससे पोषण सम्बंधित गंभीर समस्या हो सकती है. जो दांतों और जबड़ों पर और अधिक दुष्प्रभाव डाल सकती है.
बता दें कि दंत रोग न सिर्फ ओरल कैविटी पर असर करते हैं बल्कि ये बच्चों के समग्र विकास को प्रभावित करते हैं. छोटी उम्र से ही स्वस्थ दांतों के लिए अच्छा खाना पीना अत्यंत महत्वपूर्ण है. माता पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की खानपान की आदतों पर ध्यान दें और उनमें हैल्थी खाने की हैबिट्स को डालें. चिपकने वाले खाद्य प्रदार्द्ध मसूड़ों की बीमारी की वजह बनते हैं , जिससे बाद में मसूड़ों से खून आने लगता है. इससे बच्चों को दूरी बनाकर रखने को कहें.
हैल्थी डाइट का मुंह की हैल्थ पर सीधा असर पड़ता है. शुगर से भरपूर चीजें खाने से अम्ल अधिक निकलता है , जो दांतों के ऐनामेल पर हमला करता है, जिससे दांत कमजोर हो जाते हैं. इसलिए ऐसी चीजों का कम से कम सेवन करना चाहिए. और खाने के तुरंत बाद कुल्ला जरूर करने की आदत डालें.
जो खाने पीने की चीजें कैल्शियम से भरपूर होती हैं जैसे कम वसा वाला दूध, दही, चीज़, बादाम, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां आदि वे दांतों व हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करती हैं. इसलिए ऐसी चीजों को अलग अलग तरह से बनाकर आप बच्चों के आहार में उसे शामिल करें , ताकि वे हैल्दी खाना पूरे मन के साथ खाएं. अंडे, मछली, डेयरी उत्पाद फॉस्फोरस से भरपूर होते हैं. जो दांतों की हैल्थ के लिए अच्छे माने जाते हैं. पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों के आहार में विटामिन सी युक्त चीजें भी जरूर शामिल करें. क्योंकि इससे मसूड़ों की हैल्थ सही रहती है. बता दें कि विटामिन और खनिज मौखिक स्वास्थय कायम करने में अहम भूमिका निभाते हैं. विटामिन्स व खनिजों की कमी से दांत ख़राब होने के साथ साथ आपकी ओवरआल हेल्थ को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए खानेपीने के साथ भूलकर भी समझौता न करें.
यह सच है कि हम जो चीजें खाते हैं उनसे हमारे शरीर , हड्डियों , दांतों व मसूड़ों को पोषण मिलता है. ऊतकों का नवीनीकरण होता है और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है. डॉक्टरों का मानना है कि बचपन वह सर्वोत्तम अवस्था होती है जब स्वास्थवर्धक आहार की आदतों को अपनाकर शरीर का विकास किया जाता है. इसलिए कम उम्र से ही बच्चों को हैल्थी खाने की आदतें डालनी चाहिए ताकि उनका विकास अच्छे से हो और दांतों सम्बंधित कोई समस्या न आए. क्योंकि हैल्थ से ही सबकुछ है.
अकसर देखा गया है कि बौलीवुड में गायक, संगीतकार, अभिनेता, निर्देशक वगैरह बन कर विश्व में छा जाने के बड़ेबड़े सपने ले कर ज्यादातर लोग अपने परिवार या समाज के बीच बड़ेबड़े दावे कर के या परिवार के विरोध के बावजूद मायानगरी मुंबई पहुंचते हैं. उन के स्वभाव में हार मानना नहीं होता. ऐसे में ये लोग अपनी मेहनत, परिश्रम, लगन के बल पर संघर्ष करना शुरू करते हैं. उन के अंदर की प्रतिभा और मेहनत करने का जज्बा उन्हें सफलता भी दिलाता है. लंबे संघर्ष के बाद जब सफलता मिलती है, तो उस का नशा भी उतना ही बड़ा होता है.
बौलीवुड में सफलता के इस नशे को पचा कर अपनी जड़ों यानी जमीनी हकीकत से जुड़ा रहना असंभव होता है. वास्तव में बौलीवुड में इंसान को जिस स्तर की शोहरत आदि मिलती है, उस के चलते उस की जिंदगी संग काफीकुछ ऐसा होता है जिस की उस ने कल्पना नहीं की होती है. और फिर, वह डिप्रैशन की तरफ बढ़ता जाता है. ऐसा ही कुछ दीपिका पादुकोण के साथ हुआ. एक तरफ उन्हें सफलता मिलती रही, तो दूसरी तरफ वे विवादों की रानी बनती चली गईं. फिर डिप्रैशन में चली गईं और अब तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में ड्रग्स के मामले में उन पर शिकंजा भी कसता जा रहा है.
बैंडमिंटन कोर्ट से बौलीवुड स्टार
मशहूर अंतर्राष्ट्रीय शोहरत बटोर चुके बैंडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की डेनमार्क में जन्मी बेटी दीपिका पादुकोण शुरुआती दिनों में बैंडमिंटन खिलाड़ी बनना चाहती थीं. 17 वर्ष की किशोरावस्था में उन का बैडमिंटन कोर्ट से मोह भंग हो गया और मातापिता से झगड़ कर ग्लैमर की दुनिया से जुड़ने के लिए बेंगलुरु से मुंबई पहुंच गईं. वहां पहुंचते ही उन्हें कुछ विज्ञापन फिल्में मिल गईं.
2005 में हिमेश रेशमिया ने उन्हें म्यूजिक वीडियो ‘नाम है तेरा’ का हिस्सा बना दिया. यह म्यूजिक वीडियो इस कदर लोकप्रिय हुआ कि 2006 में इंद्रजीत लंकेश ने दीपिका को कन्नड़ भाषा की फिल्म ‘ऐश्वर्या’ में अभिनय करने का मौका दे दिया. उस के बाद 2007 में शाहरुख खान ने अपनी प्रोडक्शन की फरहा खान निर्देशित फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में दीपिका पादुकोण को अभिनय करने का अवसर दिया. इस फिल्म में शाहरुख खान ने स्वयं दीपिका पादुकोण के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी.
उसी वर्ष संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘सांवरिया’ भी आई थी, जिस में पहली बार सोनम कपूर और रणबीर कपूर ने अभिनय किया था. दोनों फिल्में एक ही दिन प्रदर्शित हुई थीं. पर समय की बलवान दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ ने बौक्सऔफिस पर जबरदस्त सफलता दर्ज कराई और दीपिका बौलीवुड की स्टार कलाकार बन गईं. उस के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
लगभग 15 वर्षों के कैरियर में एक तमिल, एक कन्नड़, एक अमेरिकी फिल्म सहित 32 फिल्मों में वे अभिनय कर चुकी हैं. हर फिल्म में उन्होंने अलगअलग किरदारों को निभाया है. फिर चाहे वह रोमांटिक किरदार हो, डबल रोल, ऐक्शन हो या स्पैशल अपीयरेंस वाला. पर उन्हें प्रेमकहानी वाली फिल्मों में सर्वाधिक पसंद किया गया. वैसे, उन्होंने 2 पीरियड फिल्में भी कीं.
विवादों की रानी
शुरुआती सफलता के बाद उन की महत्त्वाकांक्षाएं कुछ ज्यादा ही बढ़ गईं. वे धीरेधीरे बौलीवुड के रंग में रंगती चली गईं जहां इंसानी मूल्यों, पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक मूल्यों के कोई माने नहीं हैं. नतीजतन, धीरेधीरे उन के क्रियाकलापों ने उन्हें ‘विवादों का दूसरा नाम’ की संज्ञा दे डाली. दीपिका भी अपनी हर फिल्म के साथ या उस के प्रदर्शन के दौरान विवादों को जन्म देने लगीं. कभी वे रणबीर कपूर के टैटू को गुदवाने को ले कर विवादों में रहीं, तो कभी सिद्धार्थ माल्या संग लिपलौक करने के कारण. कभी क्लीवेज वाली फोटो के चलते विवादो में रहीं, तो कभी ‘दम मारो दम…’ गाने को ले कर. इतना ही नहीं, धीरेधीरे उन्होंने अपनी छवि हिंदूविरोधी बना डाली.
उन की 2 सर्वाधिक सफल फिल्मों, जिन के निर्देशक संजय लीला भंसाली रहे, पर उठे विवादों से उन की छवि हिंदूविरोधी बन गई. सब से पहले फिल्म ‘रामलीला’ को ले कर विवाद उठा कि इस में हिंदू धर्म व संस्कृति के खिलाफ बात की गई है. फिल्म के नाम पर भी एतराज जताया गया. आखिरकार, मजबूरन फिल्म का नाम बदल कर ‘गोलियों की रासलीला: राम लीला’ करना पड़ा. इस के बाद फिल्म ‘पद्मावत’ को ले कर हिंदू संगठनों व करणी सेना ने विरोध किया. इस फिल्म पर भी इतिहास से छेड़छाड़ करने व हिंदूविरोधी होने के आरोप लगे थे. बड़ी मुश्किल से ये फिल्में प्रदर्शित हो पाई थीं.
यों तो ‘पद्मावत’ के विरोध पर फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही दीपिका ने कहा था- ‘मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि इस फिल्म के लिए सब ने काफी मेहनत की है. फिल्म से जुड़े सभी लोग पिछले 2 वर्षों से काम कर रहे थे. दूसरी बात जो वे चाहते हैं, वही हम चाहते हैं. हम भी भारतीय सभ्यता, संस्कृति, इतिहास व पद्मावती की जो कहानी है, उस को सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को दिखाना चाहते हैं. हमारे इरादे एकदम नेक हैं. हमें दुख इस बात का है कि जब हमारे इरादे नेक हैं तो फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही उस का विरोध क्यों किया जा रहा है.
“‘फिल्म देखने के बाद यदि किसी को कुछ गलत लगे, तो वह हम से कहे, हम अपनी गलती मान लेंगे. मगर फिल्म के प्रदर्शन से पहले, जबकि किसी ने न फिल्म देखी है न तो किसी ने फिल्म की पटकथा पढ़ी है, तो फिर वे किस बात को ले कर विरोध कर रहे हैं. मैं यह बात नहीं समझ पा रही हूं. मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रही हूं कि फिल्म के प्रदर्शन के बाद हर राजपूत, हर भारतीय इस फिल्म को देख कर गौरवान्वित महसूस करेगा. क्योंकि हम ने फिल्म में पद्मावती को वह पूरी इज्जत दी है, जिस की वह हकदार है.’
हिंदू व राष्ट्रविरोधी छवि का ठप्पा
जब दीपिका पादुकोण ने मेघना गुलजार संग फिल्म ‘छपाक’ का सहनिर्माण करने के साथ ही उस में एसिड हमले की पीड़िता का किरदार निभाया, तो इस के प्रदर्शन से पहले वे दिल्ली स्थित जेएनयू पहुंच गईं. और उन्होंने न सिर्फ अपनी हिंदूविरोधी छवि को पुख्ता कर डाला, बल्कि वे तथाकथित राष्ट्रवादियों के निशाने पर आ गईं. जिस का खमियाजा उन की फिल्म ‘छपाक’ को भुगतना पड़ा. उन पर हिंदूविरोधी ही नहीं, राष्ट्रविरोधी होने के आरोप लगे. और राष्ट्रवादियों द्वारा ‘छपाक’ का बहिष्कार करने के ऐलान के बाद फिल्म को दर्शक नहीं मिल पाए.
बौलीवुड की राजनीतिक आवाज
‘छपाक’ के प्रदर्शन से ठीक पहले दीपिका पादुकोण के जेएनयू जाने ने उन के समय पर ग्रहण लगा दिया. यों तो उन के जेएनयू जाने पर जब देश के एक तबके ने उन के खिलाफ आवाज बुलंद की, तो दीपिका को बौलीवुड के अंदर के एक खेमे से जबरदस्त समर्थन मिला. इस से उन का मनोबल बढ़ा. ऊपर से उसी वक्त बीबीसी सहित कई समाचार चैनलों ने दीपिका पादुकोण को बौलीवुड की राजनीतिक आवाज का तमगा दे दिया. बीबीसी ने तो साफसाफ कह दिया कि बौलीवुड को राजनीतिक आवाज के रूप में दीपिका पादुकोण मिल गई.
ड्रग्स को ले कर फंसीं
अब जबकि ड्रग्स के संबंध में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो दीपिका पादुकोण से पूछताछ कर चुका है, तो सिर्फ उन के समर्थक ही नहीं, बौलीवुड का एक खेमा लगातार कह रहा है, ‘यह बौलीवुड की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है.’ कुछ वकील समाचार चैनलों पर आ कर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की कार्यवाही को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं. उन की राय में महज व्हाट्सऐप चैट से कोई भी इंसान ड्रग्स के सेवन या व्यापार का दोषी नहीं हो जाता है. वहीं, कुछ लोग दीपिका पादकोण को नशेड़ी गैंग की मुखिया बता रहे हैं.
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मैनेजर द्वारा व्हाट्सऐप चैट संभाल कर रखने के लिए भी दीपिका ही दोषी:
ड्रग्स मामले में दीपिका से पूछताछ के बाद कुछ लोग खुलेआम टीवी चैनलों पर आ कर इन कलाकारों के साथ ही पूरे बौलीवुड को अपराधी करार देने पर तुले हैं. यह सभी दावा कर रहे हैं कि बौलीवुड के 90 प्रतिशत लोग ड्रग्स से जुड़े हुए हैं. जब उन्हें यह बात पता थी, तो अब तक वे सभी चुप क्यों थे. वैसे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बौलीवुड में हर खुशी के मौके पर जश्न की पार्टी में शराब जम कर परोसी जाती है. और यह आज से नहीं, बल्कि कई दशकों से होता आया है. ऐसे में जांच एजेंसी की तरफ से किसी निर्णय पर पहुंचने तक हर किसी को जांच एजेंसी के साथ सहयोग का रवैया अपनाना चाहिए.
जहां तक दीपिका पादुकोण का सवाल है कि वे ड्रग्स लेती हैं या लेती थीं, इस सच को तो उन से बेहतर कौन जान सकता है. अब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के समक्ष सारा सच दीपिका ने उजागर किया या नहीं, पता नहीं, पर ऐसे मन जा रहा है कि दीपिका पादुकोण का दावा है कि उन्हें उन की मैनेजर करिश्मा प्रकाश, जया साहा व ‘क्वान’ कंपनी ने फंसाया है. अब दीपिका को एहसास हो रहा है कि करिश्मा प्रकाश के साथ उन के मोबाइल चैट जानबूझ कर संग्रहीत किए गए थे. बाद में करिश्मा ने अपनी सहकर्मी जया साहा के साथ यह चैट शेयर की जिन को ले कर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जांच कर रहा है. दीपिका यह भी दावा कर रही हैं कि उन्हें पता नहीं है कि उन के मोबाइल स्क्रीनशौट क्यों रखे गए थे.
अगर उन की मैनेजर ने व्हाट्सऐप चैट संभाल कर रखी, तो भी इस में दीपिका पादुकोण की ही गलती है. दीपिका पादुकोण की गलती यह है कि वे अपने बिजनैस मैनेजर व पीआर कंपनी पर आंख मूंद कर यकीन कर उन के इशारों पर नाचती क्यों रहीं? फ़िल्मी कलाकार अकसर अपने मोबाइल फोन अपने पीआर अथवा बिजनैस मैनेजर को पकड़ा देते हैं.
यही नहीं, कलाकारों को अपने पीआर और बिजनैस मैनेजर के सामने नतमस्तक होते हुए भी देखा है. कई बार पत्रकारों से दूरी बनाने के लिए भी कलाकारों को अपने पीआर या बिजनैस मैनेजर के कंधे पर बंदूक रख कर चलाते देखा गया है. जबकि हर कलाकार चाहे तो हर पत्रकार के बारे में जानकारी रखते हुए उन के संपर्क में रह कर ज्यादा अच्छे ढंग से अपना प्रचार कर सकता है. पर वे ऐसा नहीं करते. जबकि, 20 साल पहले ऐसा नही था. तब कलाकार के पास बिजनैस मैनेजर व पीआर की लंबीचौड़ी फौज नहीं हुआ करती थी.
आज कई पत्रकार दोस्त बताते हैं कि उस ने ‘फलां’ कलाकार को एसएमएस या व्हाट्सऐप संदेश भेजा था इंटरव्यू के लिए, तो उस ने जवाब भेज दिया कि उन के पीआर से बात की जाए. आखिर, एक कलाकार अपने पीआर या बिजनैस मैनेजर पर इतना निर्भर कैसे हो सकता है? उस का अपना विवेक कहां रहता है? बहरहाल, अब जो कुछ सामने आ रहा है, शायद उस से हर कलाकार कुछ सबक सीखेगा.
मैनेजर पर निर्भरता बड़ी गलती
इंसान के अंदर अगर जबरदस्त प्रतिभा है, समय का धनी है, और उसे बौलीवुड में बिना संघर्ष किए पहली ही फिल्म से जबरदस्त शोहरत मिल जाए, तब तो वह अपनेआप को खुदा ही समझने लगता है. उस वक्त सफलता का नशा उस के सिर पर चढ़ कर जिस तरह से बोलता है, उस के चलते वह अपने विवेक का उपयोग करना भूल जाता है. फिर धीरेधीरे वह अपने परिवार, समाज, दोस्तों से भी दूर चला जाता है. मजेदार बात यह है कि उसे इस बात का एहसास तक नहीं होता. पहली सफलता मिलते ही उस के इर्दगिर्द बौलीवुड की कार्यशैली के अनुरूप अलग तरह के चापलूसों व चने के झाड़ पर चढ़ाने वालों की टोली जमा हो जाती है. देखते ही देखते वह पीआर मैनेजर, बिजनैस मैनेजर जैसे इंसानों की लंबीचौड़ी फौज खड़ी कर, उसी के इशारों पर सारे निर्णय लेने लगता है.
ऐसा करते समय वह भूल जाता है कि उस के अंदर की कार्यक्षमता, प्रतिभा, पसंदनापंसद, रिश्ते, मानवीय स्वभाव आदि को वे लोग बेहतर ढंग से कैसे समझ सकते हैं जिन्हें उस ने खुद ही अपने इर्दगिर्द सफलता के नशे में चूर हो कर नियुक्त किया है. हकीकत में होता यह है कि बौलीवुड में सफलता मिलते ही जिन लोगों को वह अपने आसपास जमा करता है, वे लोग उस की सोच व विचारों को आगे बढ़ाने की अपेक्षा अपनी सोच व विचारों के अनुरूप उसे ढालना शुरू कर देते हैं. और इंसान कब अपनी जड़ों को भुला बैठता है, इस का एहसास उसे नहीं होता. वह सफलता की ओर बढ़ता जाता है और दूसरों, खासकर बिजनैस मैनेजर व पीआर, पर उस की निर्भरता बढ़ती जाती है.
हजार करोड़ रुपए दांव पर
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जांच के बाद दीपिका पादुकोण को आरोपी ठहराता है या उन्हें बरी करता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. मगर इस से उन के कैरियर पर गहरा असर हुआ है. उन से जुड़े कई निर्माता परेशान हैं क्योंकि बौलीवुड से गंदगी की सफाई अभियान से जुड़े लोग और राष्ट्रवादी नशेड़ी गैंग के सभी कलाकारों, जिन में दीपिका पादुकोण प्रमुख हैं, की फिल्मों का बहिष्कार करने की बातें कर रहे हैं. इस से फिल्म निर्माताओं के 1,500 करोड़ रुपए दांव पर लग गए हैं. ड्रग्स मामले में दीपिका पादुकोण फंस गईं, तो बौलीवुड को 1,500 करोड़ रुपए का नुकसान होने की संभावना व्यक्त की जा रही है.
सब से पहले क्रिकेटर कपिल देव की बायोपिक फिल्म ‘83’ पर असर पड़ेगा. इस फिल्म में दीपिका पादुकोण ने कपिल देव की पत्नी रोमी भाटिया का किरदार निभाया है, जबकि कपिल देव के किरदार में दीपिका पादुकोण के पति रणवीर सिंह हैं. इस फिल्म का दीपिका पादुकोण ने साजिद नाडि़यादवाला, फैंटम और रिलायंस के साथ मिल कर सहनिर्माण भी किया है. लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए के बजट में बनी यह फिल्म 10 अप्रैल को प्रदर्शित होनी थी, मगर कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते प्रदर्शित नहीं हो पाई, अब इसे दिसंबर में प्रदर्शित करने की योजना है.
इस के अलावा, ‘महाभारत’ (600 करोड़), शकुन बत्रा की अनाम डार्क रोमांटिक फिल्म (100 करोड़), लव रंजन की अनाम फिल्म (80 करोड़), प्रभास जिस का नामकरण ‘महानटी’ अथवा ‘सिनेमा एक्सप्रेस’ करने की बात चल रही है (400 करोड़), अमेरिकन कौमेडी फिल्म ‘द इंटर्न’ का हिंदी रीमेक (50 करोड़), ‘पठान’, ‘राना’ (150 करोड़), सपना दीदी की बायोपिक फिल्म ‘रानी’, अमेरिकन फिल्म ‘एक्स एक्स एक्स 4’ (लगभग 900 करोड़ रुपए) अब अधर में लटक गई हैं. इन में से कुछ फिल्मों का दीपिका सहनिर्माण भी कर रही हैं.
डिप्रैशन की वजह?
दीपिका पादुकोण की मैनेजर करिश्मा प्रकाश के साथ ड्रग्स को ले कर व्हाट्सऐप चैट सामने आने के बाद कंगना रानौत ने दीपिका पादुकोण पर निशाना साधते हुए कहा, ‘ड्रग्स लेने से इंसान डिप्रैशन में जाता है.’ मगर मनोचिकित्सक पूर्णरूपेण इस से सहमत नहीं हैं. उन की राय में इंसान जब भावनात्मक रूप से कमजोर हो और भावनात्मक रूप से परेशान हो, उस वक्त लोगों का साथ न मिलने पर डिप्रैशन में जाता है. तो दीपिका पादुकोण के डिप्रैशन में जाने की सब से बड़ी वजह रणबीर कपूर के संग अलगाव को माना गया.
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वास्तव में फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से स्टार बनने के बाद 2008 में दीपिका पादुकोण ने रणबीर कपूर के साथ रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘बचना ऐ हसीनो’ की. उस की शूटिंग के दौरान दोनों के बीच रिश्ता स्थापित हो गया. दीपिका ने रणबीर कपूर संग अपने रिश्ते को छिपाने के बजाय खुल कर बात की थी. उन्होंने अपने गले पर रणबीर कपूर के नाम का टैटू भी गुदवाया था. उस रिश्ते से उन के अंदर काफी बदलाव आ गया था और वे खुद को सामाजिक रूप से भी जिम्मेदार होने का एहसास कराने लगी थीं. लेकिन फिर रिश्ता टूट गया. इस से उन के दिल को गहरी चोट लगी थी.
वर्ष 2010 के अंत में दीपिका ने रणबीर कपूर पर बेवफाई करने का आरोप लगाया था, जिसे बाद में रणबीर कपूर ने स्वीकार भी कर लिया था. उस बातचीत में दीपिका ने कहा था, ‘मेरे लिए सैक्स केवल शारीरिक सुख का मसला नहीं है, बल्कि इस में भावनाएं शामिल हैं. जब मैं किसी रिश्ते से जुड़ी, तो मैं भटकी नहीं, धोखा नहीं दिया. अगर मुझे बेवकूफ बनाया जा जा रहा हो, तो मैं ऐसे रिश्ते में क्यों रहूंगी? बेहतर होगा कि आप सिंगल रहें और मस्ती करें. लेकिन हर कोई ऐसा नहीं सोचता.”
वक्त बदला और 2013 में दीपिका पादुकोण व रणबीर कपूर के बीच गिलेशिकवे मिट गए. दोनों ने एकसाथ अयान मुखर्जी निर्देशित फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ में अभिनय किया. इस के बाद 2015 में ‘तमाशा’ फिल्म भी की. पर इस से पहले 2012 से दीपिका पादुकोण ने रणवीर सिंह के साथ रिश्ता जोड़ लिया था, जिन के साथ उन्होंने 14 नवंबर, 2018 को विवाह रचाया. मगर रणबीर कपूर से संबंधविच्छेद के चलते 2011 में दीपिका पादुकोण डिप्रैशन का शिकार हो चुकी थीं.
2016 में एक मुलाकात में दीपिका पादुकोण ने हमें बताया था कि जब वह डिप्रैशन का शिकार हुई, तब उन की मां बैंगलौर से मुंबई उन के साथ रहने आ गई थी. परिवार व मां के साथ ने उन्हे डिप्रैशन से उबरने में मदद की थी.
‘लिव लव लाफ’ एनजीओ
ऐसा समय भी आया जब दीपिका ने दूसरों को भी डिप्रैशन से उबारने व डिप्रैशन को ले कर जागरूकता फैलाने के मकसद से अपना एनजीओ ‘लिव लव लाफ’ शुरू किया. फिल्म ‘पद्मावत’ के प्रदर्शन से पहले ‘लिव लव लाफ’ संस्था के संदर्भ में दीपिका पादुकोण ने कहा था, ‘हम अपनी संस्था द्वारा डिप्रैशन को ले कर लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना चाहते हैं, क्योंकि इस के प्रति लोगों को बहुत कम जानकारी है. इस बारे में लोग ज्यादा खुल कर बात नहीं करते हैं. किसी डाक्टर के पास जाना हो या किसी को बताना हो कि मेरे साथ ऐसा हो रहा है तो बहुत घबराहट के साथ, बड़ी हिचक के साथ बात करते हैं. हम कोशिश कर रहे हैं कि मानसिक बीमारी यानी मैंटल हैल्थ को हम सभी स्वीकार करें. इसीलिए हम अवेयरनैस पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं.’
बहरहाल, दीपिका पादुकोण के रूप में बौलीवुड की एक सुपरस्टार, खूबसूरत व सम्मानित अभिनेत्री अजीबोगरीब जाल में फंस गई हैं, जिस का उन के कैरियर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, हालांकि, फिल्म इंडस्ट्री के भीतर व बाहर उन के शुभचिंतकों की कमी नहीं है.
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सोनी टीवी के डांस रिएलिटी शो ‘इंडियाज बेस्ट डांसर’ (India’s Best Dancer) में टेरेंस लुईस (Terence Lewis), मलाइका अरोड़ा (Malaika Arora) और गीता कपूर (Geeta Kapoor) के साथ जज के तौर पर नजर आ रही एक्ट्रेस नोरा फतेही (Nora Fatehi) इन दिनों सुर्खियों में हैं. दरअसल, सोशलमीडिया पर एक फेक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें टेरेंस शो के दौरान नोरा फतेही को गलत तरीके से छूते नजर आ रहे थे. हालांकि नोरा ने इस वीडियो के साथ छेड़छाड़ करने की बात कहते हुए साफ किया है कि टेरेंस ने उनके साथ कोई बद्तमीजी नहीं की.
लेकिन आज हम नोरा के किसी कौंट्रवर्सी की नही बल्कि उनके इंडियन फैशन की करेंगे. हर फंक्शन या पार्टी में खूबसूरत लुक में नजर आती है. इसीलिए आज हम आपको कुछ इंडियन फैशन के कुछ औप्शन बताएंगे, जिसे फेस्टिव सीजन में ट्राय कर सकते हैं.
1. मिरर वर्क लहंगा करें ट्राय
अगर आप भी इस फेस्टिव सीजन में कुछ नया ट्राय करने का सोच रही हैं. तो नोरा फतेही का ये मिरर वर्क लहंगा ट्राय करें. इस लहंगे को आप वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकते हैं.
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2. फ्लावर प्रिंट सूट
अगर आप फेस्टिव सीजन में सिंपल लेकिन ट्रैंडी लुक चाहती हैं तो नोरा का फ्लावर प्रिंट सूट ट्राय करना ना भूलें. टैंडी सूट के साथ प्रिंटेड दुपट्टा आपके लुक को कम्पलीट करेगा.
3. सिंपल सूट करें ट्राय
लाइट एम्ब्रायडरी वाले सिंपल प्लेन सूट के साथ आप अपने लुक को फेस्टिव सीजन में खूबसूरत बनाने के लिए ट्राय कर सकते हैं.
4. हैवी शरारा ट्राय करें
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इन दिनों शरारा लुक काफी ट्रैंडी है. अगर आप भी शरारा लुक ट्राय करना चाहती हैं तो एम्ब्रौयडरी से अपने लुक को खूबसूरत बना सकते हैं.
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5. प्रिंटेड साड़ी करें ट्राय
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Life is your birthright, they hid that in the fine print take the pen and rewrite it 🧿
अगर आप साड़ी ट्राय करना चाहते हैं तो नोरा की ये सिंपल प्रिंटेड साड़ी ट्राय कर सकते हैं. इसके साथ आप ट्रैंडी नेकलेस ट्राय कर सकती हैं. जो आपके लुक को ट्रैंडी दिखाने में मदद करेगा.