BIGG BOSS 14: दूसरे ही दिन आपस में भिड़े सिद्धार्थ शुक्ला और गौहर खान, जानें क्या है वजह

कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस 14 का आगाज हो चुका है. जहां कई कोरोनावायरस के बदलाव के बीच कंटेस्टेंट्स के बीच धीरे-धीरे लड़ाइयों से लेकर रोना-धोना शुरू हो गया है. लेकिन अब फैंस को सीनियर्स के बीच भी लड़ाइयां देखने को मिलने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

सिद्धार्थ और गौहर भिड़ते आएंगे नजर

बीते दिन घर के सीनियर्स ने फ्रेशर्स को अपनी उंगलियों पर नचाना शुरु कर दिया है तो वहीं अब खुद सीनियर्स एक दूसरे से टक्कर लेते नजर आने वाले हैं. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड की झलक दिखाई है, जिसमें एक नए टास्क के दौरान लड़ते नजर आएंगे.

 

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टास्क में होगा ये हाल

सिद्धार्थ शुक्ला और गौहर खान के बीच टास्क के दौरान दिखे तीखे तेवर से साफ पता चल रहा है कि दोनों सीनियर्स पूरी तरह से इस खेल के रंग में रंग चुके हैं. वहीं हिना खान इस दौरान खामोश नजर आ रही हैं. हालांकि आने वाले हफ्ते में हिना भी धीरे-धीरे अपना रंग दिखाती नजर आएंगी.

सारा गुरपाल के जीजा बनें सिद्धार्थ

शादी की बात पर सुर्खियों में छाईं सारा गुरपाल भी बिग बौस के घर में काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. इसी बीच वह सिद्धार्थ शुक्ला को जीजा कहती नजर आ रही हैं. दरअसल, हाल ही में जारी किए गए एक प्रोमो में सारा गुरपाल सिद्धार्थ शुक्ला को सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि पूरे पंजाब का जीजा कह रही हैं. वीडियो में सारा गुरपाल कह रही हैं कि भई आप तो हमारे जीजा ही हो, जिस पर सिद्धार्थ शुक्ला कह रहे हैं कि वो भला उनके जीजा कैसे हुए. तो इस पर सारा गुरपाल कह रही हैं कि भई पंजाब में तो ऐसा ही होता है जो बंदा होता है वो जीजा ही होता है. बताओ किसने नहीं देखा बिग बॉस 13. हालांकि वह बिग बॉस 13 की कंटेस्टेंट शहनाज गिल की बात करते हुए सिद्धार्थ शुक्ला को छेड़ती हुई नजर आ रही हैं.

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बता दें कि सिद्धार्थ शुक्ला, गौहर खान और हिना खान को मेकर्स ने 14 दिन के लिए घर में आए हैं, जिस दौरान ये तीनों घरवालों का सुख चौन लूटते नजर आ रहे हैं.

कपिल शर्मा शो के शो में एंकर बने कीकू शारदा, जानें क्या है वजह

सोनी टीवी के पौपुलर कौमेडी शो ‘द कपिल शर्मा शो’ के होस्ट कपिल शर्मा की पौपुलरिटी भारत के घर-घर में हैं. वहीं लौकडाउन के बाद से कपिल शर्मा के एपिसोड्स फैंस को काफी एंटरटेन कर रहे हैं. हाल ही में एक वीडियो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है, जिसे देखकर फैंस अपनी हंसी नही रोक पा रहे हैं. हालांकि इस वीडियो में कपिल शर्मा नहीं बल्कि कीकू शारदा एंकर बने नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

एंकर बने कीकू शारदा

दरअसल, शो के एक एपिसोड में मेहमान बनकर एक्टर मनोज बाजपेयी और डायरेक्टर अभिनव सिंहा आए थे. वहीं खास बात ये है कि इस एपिसोड में कीकू शारदा ने देश के नामी एंकर का रोल निभाते नजर आए थे, जिसमें साथी एंकर कृष्णा अभिषेक के साथ दोनों काफी धमाल मचाते नजर आए.

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सोशलमीडिया पर वायरल हुआ वीडियो

सोनी टीवी के ऑफिशल ट्विटर अकाउंट पर शेयर किए गए वीडियो पर 2.5 हजार के करीब रीट्वीट मिल चुके हैं. वहीं इस वीडियो में खास बात यह है कि जब कीकू कहते हैं, ‘मुझे जग दो, मुझे जग दो’. तो वह किसी एंकर की नकल करते नजर आ रहे हैं.  दरअसल, वीडियो में कीकू शारदा, देश के नामी एंकर की नकल कर रहे हैं जिनकी एक क्लिप ‘मुझे ड्रग दो, मुझे ड्रग दो’ काफी वायरल हुई थी.

मुकेश खन्ना खन्ना ने कही थी ये बात

टीवी के एपिक धारावाहिक ‘ महाभारत’ के 5 लीड एक्टर्स इस शो में पहुंचे थे.  हालांकि शो में महाभारत में ‘ भीष्म पितामह’ का किरदार निभाने वाले मुकेश खन्ना नहीं पहुंचे, जिसके बाद फैंस उनसे इस बात को लेकर सवाल पूछ रहे थे. वहीं इस सवाल का जवाब देते हुए मुकेश खन्ना ने कहा कि ‘ कारण ये है कि कपिल शर्मा शो पूरे देश में पॉपुलर है. परन्तु मुझे इससे ज्यादा वाहियात शो कोई नहीं लगा. फूहड़ता से भरा हुआ, डबल मीनिंग जुमलों से भरपूर, अश्लीलता की ओर हर पल मुड़ता हुआ ये शो है, जिसमें मर्द औरतों के कपड़े पहनता है. घटिया हरकतें करता है और लोग पेट पकड़कर हंसते हैं.’

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बता दें, बीते दिनों मुकेश खन्ना ने शो को वाहियात बताया था, जिसके बाद फैंस को उनका ये बिहेवियर पसंद नही आया और वह मुकेश खन्ना को ट्रोल कर रहे हैं.

डॉ. स्मिता सिंह की मेहनत लाई रंग, 31 साल बाद सच हुआ सपना, हासिल की PhD की डिग्री

कहते हैं कि सपनों को हकीकत में बदलना नामुमकिन नहीं है, अगर कोई भी व्यक्ति पूरी मेहनत और लगन के साथ उसे सच करने की ठान ले तो वो कभी असफल नहीं हो सकता है. इसका ताजा उदाहरण पेश किया है उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण की क्षेत्रीय प्रबंधक डॉ. स्मिता सिंह ने. जिन्होंने 31 साल के लंबे अंतराल के बाद आखिरकार पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली है. लेकिन खास बात ये है कि उन्होंने पीएचडी करने के सपने को छोड़ा नहीं और जिसका नतीजा है कि उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई है और करीब 31 साल बाद उन्होंने अपने सपने को हकीकत में बदलकर दिखाया है. अगर डॉ. स्मिता की शिक्षा की बात करें तो वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं और उन्होंने पीएचडी करने के लिए साल 1990 में ही यूजीसी नेट क्वालीफाई भी कर लिया था, जिसके बाद वे पब्लिक सर्विस में आ गईं. इसके अलावा उन्होंने इस्पात उद्योग में सेल व टाटा स्टील को रिसर्च में रखते हुए इसकी तैयारी की.

लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि डॉ. स्मिता को काम के दौरान जब भी समय मिलता था वह तैयारी में जुटी रहती थी. भले ही उन्हें पीएचडी की उपाधि को पाने में लंबा वक्त लगा हो, लेकिन इसके मिलने की खुशी उन्हें उतनी ही है जितनी की एक छात्र को परीक्षा में मिलनेवाली असाधारण सफलता पर मिलती है. वहीं डा. स्मिता सिंह ने कहा कि नाम के आगे डॉक्टर लिखा जाना अपने आप में गर्व की बात है.

ये वही डॉ. स्मिता सिंह हैं जिन्होंने अपनी कार्यशैली से यूपी के औद्योगिक शहर गाजियाबाद का व्यापार के क्षेत्र में काया पलट कर दी है. स्थानीय व्यापरी स्मिता सिंह के कुछ इस तरह कायल हुए हैं कि,  वह स्पष्ट कहते हैं कि, अधिकारी हो तो ऐसा. लोगों का मानना है कि, स्मिता सिंह के पास जो भी अपनी समस्या लेकर गया, निराश होकर नहीं लौटा, सबकी समस्या का समाधान उन्होंने पूरी ईमानदारी से किया.

बिलकिस के प्रभाव पर टाइम की मुहर 

मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रहे लोगों के आंदोलन पर तो कोरोना वायरस की वजह से ब्रेक लग गया, लेकिन उन प्रदर्शनों की छाप अभी तक लोगों के ज़हन में ताजा है. दिल्ली की हाड़ कंपाती सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे ठंडी ज़मीन पर दुपट्टों से अपने सिर ढंके बैठी हज़ारों मुस्लिम औरतों की अग्रिम पंक्ति में उस 82 साला बुज़ुर्ग खातून बिलकिस बानो के चेहरे की दृढ़ता ने मोदी सरकार की नींदें उड़ा रखी थीं. अपने बच्चों के घर से बेघर होने के डर के चलते बिलकिस आंदोलन की अगुवा बन कर उभरी थीं. बिलकिस एंटी सीएए प्रोटेस्ट के दौरान शाहीन बाग प्रदर्शन का जाना-पहचाना चेहरा बन गयी थीं. लोग इस बात के लिए उनकी तारीफ कर रहे थे कि इस उम्र में भी वह किसी चीज के खिलाफ आवाज उठाने से पीछे नहीं हट रहीं हैं.

बिलकिस रोज हजारों मुस्लिम और गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ शाहीन बाग जाती थीं और प्रदर्शन का हिस्सा बनती थीं. कई बार तो उनकी रातें भी वहीँ गुज़रती थीं और वो सिर्फ कपड़े बदलने के लिए ही घर तक जाती थीं और तुरंत ही लौट आती थीं. बीते साल शाहीन बाग में नागरिकता कानून को वापस लेने की मांग को लेकर 101 दिनों तक धरना प्रदर्शन चला था. बिलकिस करीब 3 महीने तक विरोध के दौरान शाहीन बाग की सड़कों पर बैठी रही थीं. बिलकिस बानो ने यह धरना 11 दिसंबर 2019 को उस वक़्त शुरू किया था जब धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले क़ानून को संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया था. कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे शुरू हुए इस धरना प्रदर्शन ने वैश्विक मीडिया का भी ध्यान खींचा था और बिलकिस बानो ‘शाहीन बाग़ की दादी’ के नाम से मशहूर हो गई थीं. शाहीन बाग़ प्रदर्शन के दौरान बिलकिस देश के अट्ठारह फीसदी नागरिकों की आवाज़ बन गयी थीं. उन्होंने दिल्ली की भीषण सर्दी, बारिश, धूप और उस पर शाहीन बाग़ के आंदोलनकारियों को लगातार मिल रही धमकियों के बावजूद प्रदर्शन-स्थल से ना हटने की हिम्मत दिखाई थी. ‘शाहीन बाग़ की दादी’ के नाम से मशहूर होती बिलकिस मीडिया कैमरों के आगे दहाड़ी थी – अगर कोई बन्दूक भी चला देता है तो भी मैं नहीं हटूंगी.

प्रधानमंती नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को आड़े हाथों लेते हुए बिलकिस ने कहा था –  ‘वे हमें गद्दार बुलाते हैं. जब हम ब्रिटिशरों को देश से बाहर निकाल चुके हैं तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह कौन हैं? आप सीएए और एनआरसी हटा लें तो हम इस जगह को बिना समय व्यतीत किये खाली कर देंगें. जब तक ये सरकार सीएए को वापस नहीं ले लेती है तब तक मैं नहीं हटूंगी.’

शाहीन बाग में दिन रात जारी प्रदर्शन को समाप्त करवाने के लिए जब सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नियुक्‍त वार्ताकार बात करने के लिए वहां पहुंचे थे तब भी बिलकिस बानो ने उनसे कहा था कि – ‘गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं हम सीएए और एनआरसी करवाने में एक इंच नहीं हटेंगे, तो मैं कहती हूं हम एक बाल बराबर नहीं हटेंगे.’ बिलकिस का कहना था कि सीएए ऐसा कानून है जिसमें नागरिकता साबित करने के लिए कागज दिखाने पड़ेंगे, लेकिन देश में तमाम ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई कागज नहीं है. मोदी सरकार देश को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है. हम भारत के रहने वाले हैं, यहीं पैदा हुए हैं और यहीं मरेंगे.

शाहीन बाग़ और शाहीन बाग़ की दादी का ही प्रभाव था कि देखते ही देखते दिल्ली में हुए इस बड़े प्रदर्शन ने कोलकाता, मुंबई, लखनऊ, कानपुर के साथ-साथ कई अन्य जगहों पर भी छोटे आन्दोलनों को जन्म दे  दिया. इसके अलावा देश भर में सीएए विरोधी लोगों ने मार्च निकाल कर शाहीन बाग़ के प्रति समर्थन जताया.

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गौरतलब है कि जीवन भर घर की चारदीवारी के भीतर अपना जीवन बिताने वाली बिलकिस बानो कभी किसी राजनितिक या सामाजिक रैली/समारोह का हिस्सा नहीं रहीं. देश की राजनीति और राजनेताओं से उनका दूर-दूर तक कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहा. मगर निरी घरु और साधारण सी औरत बिलकिस बानो उस वक़्त किसी घायल शेरनी की तरह मोदी सरकार पर चढ़ बैठी जब बात उनकी और उनके बच्चों की नागरिकता साबित करने पर आ गयी. बिलकिस से जब यह पूछा गया कि वे इस उम्र में धरने पर क्यों बैठीं हैं तो उनका साफ जवाब था कि यह जानने के बाद कि मेरे बच्चों को इस देश से बाहर निकाला जा सकता है जो कि उनका घर है, मैं आराम से कैसे बैठ सकती हूँ? मैं यह धरना स्थल तभी छोडूंगी जब मेरे बच्चों का जीवन सुरक्षित होगा.

82 साल की बुजुर्ग बिलकीस के उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं. उनके पति महमूद जो अपने जीवन में खेती/मजदूरी करते थे, करीब दस साल पहले दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. पति के गुजर जाने के बाद बिलकीस करीब 8 साल से दिल्ली में अपने बहू-बेटों के साथ रह रही हैं. उनके पांच बेटे और एक बेटी है.

हापुड़ से कोई बारह किलोमीटर बुलंदशहर के रास्ते में पड़ने वाले एक गाँव खुराना की रहने वाली बिलकिस बानो ने खुद तो कभी स्कूल का मुँह नहीं देखा मगर अपने बच्चो को उन्होंने ज़रूर स्कूली तालीम दिलवाई. बिलकिस कहती हैं, ‘हम तो बस कुरआन शरीफ ही पढ़े हैं. हमेशा घर में ही रहे. एक अच्छी बेटी और एक अच्छी बहू बन कर. दस साल पहले मियाँ का इंतकाल हो गया. फिर हम बेटे के पास दिल्ली रहने चले आये. जब गाँव की याद आती है तो गाँव चले जाते हैं. गाँव में हमारी काफी ज़मीन है. दो बेटे यहां खेती का काम सँभालते हैं. दिल्ली में रहने के वक़्त ही हमने टीवी पर देखा कि कैसे जामिया के बच्चों को पुलिस पीट रही थी. बिचारे मासूम बच्चे थे. फिर हमसे रहा नहीं गया. एनआरसी और सीएए का मसला उठा तो हमारे मोहल्ले के काफी लोगों में खौफ पैदा हो गया. हमारे पास तो फिर भी तमाम दस्तावेज हैं कि हम अपनी नागरिकता साबित कर सकते हैं. सौ साल से हमारे बाप-दादा खुराना गाँव में खेती-बाड़ी कर रहे हैं. हमारे पास काफी ज़मीन है, बाग़ हैं. मगर दिल्ली में तमाम लोग हैं जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, उनमे हिन्दू भाई भी हैं, जो गरीब हैं, मजदूर परिवार हैं, पढ़े-लिखे भी नहीं हैं. तो जब उनके हक़ के लिए लड़ने की बात उठी तो हम भी तैयार हो गए शाहीन बाग़ में धरने पर बैठने के लिए. इन्साफ की लड़ाई थी. हम पीछे कैसे रहते. हमारे बच्चों की जिंदगी का सवाल था.

कमजोर और जर्जर काया मगर मज़बूत इरादों वाली बिलकिस बानो के प्रभाव को शाहीन बाग़ के झरोखे से पूरी दुनिया ने देखा, सराहा और उस पर ठप्पा लगाया. बिलकिस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. अंतराष्ट्रीय मैगज़ीन टाइम के 2020 के सबसे प्रभावशाली 100 लोगों की लिस्ट में बिलकिस बानो का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय मूल की अमेरिकी नेता कमला हैरिस, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ताइवान की राष्‍ट्रपति त्‍साई इंग वेन, जो बाइडेन, एंजेला मर्केल और नैन्सी पॉलोसी जैसे बड़े-बड़े नेताओं के साथ शामिल किया गया है. बिलकिस को ‘आइकन’ कैटेगरी में जगह मिली है. टाइम की लिस्ट में शामिल होने की खबर आने के बाद बिलकिस सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. पत्रकार और लेखक राणा अय्यूब उनके बारे में टाइम मैगज़ीन के लिए लिखे अपने लेख में कहती हैं, “बिलकिस माइनॉरिटी लोगों की आवाज़ बन गयी हैं…एक ऐसे राष्ट्र में प्रतिरोध का प्रतीक बन गयी हैं जहां महिलाओं और अल्पसंख्यकों की आवाज़ को प्रमुख राजनीति द्वारा व्यवस्थित रूप से बाहर किया जा रहा था. उन्हें मशहूर होना चाहिए ताकि दुनिया तानाशाही के खिलाफ संघर्ष की ताकत का एहसास करे.”

टाइम मैगज़ीन हर साल दुनिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण कलाकार, नेता, वैज्ञानिक, कार्यकर्ता और उद्यमी को अपनी लिस्ट में जगह देती है, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हुए दुनिया को प्रभावित करते हैं. इस साल भारत से चुने गए 5 लोगो में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, बॉलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना, गूगल के सीईओ सुन्दर पिचाई, शाहीन बाग के प्रदर्शन का मुख्य चेहरा बिलकिस बानो और एचआईवी/एड्स के ट्रिटमेंट के लिए काम करने वाले प्रोफ़ेसर रवींद्र गुप्ता को शामिल किया गया है. ये सभी लोग इस साल दुनियाभर में चर्चा में रहे.

सम्मान पाने के बाद बिलकीस बानो ने टाइम मैगजीन का शुक्रिया अदा किया है. उनका कहना है कि वह मरते दम तक नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध करती रहेंगी. उन्होंने कहा कि जिस कानून के विरोध में वह धरने पर बैैठी थी, आज दुनिया ने शाहीन बाग का सजदा किया है. यूपी के हापुड़ जिले में अपने रिश्तेदार के घर गईं बिलकीस कहती हैं कि वह अब भी मोदी सरकार से सीएए को वापस लेने की अपील करती हैं. उन्होंने कहा कि हम शांतिप्रिय लोग हैं, इसलिए कोरोना संकट आने के बाद ही खुद प्रदर्शन समाप्त करने का फैसला लिया.

टाइम मैगज़ीन द्वारा दुनिया के प्रभावशाली व्यक्तित्व की लिस्ट में बिलकिस को शामिल करना लोकतंत्र के ज़िंदा रहने की उम्मीद को पुख्ता करता है. हालांकि इससे दक्षिणपंथियों में भारी बेचैनी है. उन्हें इस बात की ख़ुशी नहीं है कि इस लिस्ट के लिए भारत से चुने गए पांच लोगों में वो इकलौती महिला हैं, बल्कि मोदी के समकक्ष इस बुज़ुर्ग मुस्लिम महिला को उन्ही मानकों पर प्रभावशाली बताया जाना उनके गले से नहीं उतर रहा है. मज़े की बात तो यह है कि टाइम मैगज़ीन जहाँ बिलकिस की दृढ़ता और हिम्मत की तारीफ़ करती है, वहीँ उसने पीएम मोदी के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां की हैं. टाइम मैगजीन के संपादक कार्ल विक ने पीएम मोदी पर जमकर निशाना साधा है. टाइम मैगजीन में पीएम मोदी को लेकर लिखा गया है, ”वास्तव में लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष चुनाव अहम नहीं है. इससे केवल यह पता चलता है कि किसे सबसे अधिक वोट मिला. ज्यादा अहम उनका अधिकार है जिन्होंने विजेता को वोट नहीं दिया. सात दशकों से अधिक समय से भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र है. इसकी 130 करोड़ की आबादी में ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन और दूसरे धर्मों के लोग शामिल हैं. भारत में सभी मिलजुलकर रहते हैं, जिसकी तारीफ दलाई लामा ने सद्भाव और स्थिरता के उदाहरण के रूप में की थी. नरेंद्र मोदी ने इन सभी को संदेह में ला दिया है. यद्यपि भारत के लगभग सभी प्रधानमंत्री 80 फीसदी आबादी वाले हिंदू समुदाय से आए, केवल मोदी सरकार ने इस तरह शासन किया कि बाकियों की परवाह नहीं. पहले सशक्तिकरण के लोकप्रिय वादे के साथ चुनकर आए, उनके हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने नाक ना केवल उत्कृष्टता बल्कि बहुलतावाद को भी खारिज कर दिया, विशेषतौर पर भारत के मुसलमानों को टारगेट किया गया. महामारी का संकट अहसमति का गला घोंटने का बहाना बन गया. और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र गहरे अंधेरे में गिर गया है.”
मैगजीन ने पीएम मोदी को मुसलमानों के खिलाफ बताते हुए कहा है कि भारत के लगभग सभी प्रधानमंत्री 80 फीसदी आबादी वाले हिंदू समुदाय से ही रहे हैं. मगर बीजेपी सरकार ने भारत में बहुलतावाद को खत्म कर दिया है. टाइम लिखता है – ‘ नरेंद्र मोदी सशक्तिकरण के लोकप्रिय वादे के साथ सत्‍ता में आए लेकिन उनकी हिंदू राष्‍ट्रवादी पार्टी बीजेपी ने न केवल उत्कृष्टता को बल्कि बहुलवाद खासतौर पर भारत के मुसलमानों को खारिज कर दिया. बीजेपी के लिए अत्‍यंत गंभीर महामारी असंतोष को दबाने का जरिया बन गया और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र अंधेरे में घिर गया है.’
इससे पहले मई 2019 में टाइम मैगजीन ने पीएम मोदी को कवर पेज पर रखते हुए ‘भारत का डिवाइडर इन चीफ’ बता दिया था. चुनाव से ठीक पहले मोदी पर लिखे इस लेख को लेकर काफी विवाद हुआ था, जिसे भारतीय पत्रकार तवलीन सिंह और पाकिस्तानी नेता व कारोबारी सलमान तासीर के बेटे आतिश तासीर ने लिखा था. हालांकि, इसी पत्रिका ने एक लेख में यह भी कहा था कि पीएम मोदी ने जिस तरह भारत को एकजुट किया है उतना किसी और प्रधानमंत्री ने नहीं किया. उस लेख का शीर्षक था, ”मोदी हैज यूनाइडेट इंडिया लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डेकेड्स. इस आर्टिकल को मनोज लडवा ने लिखा था. ये वही व्यक्ति हैं जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ‘नरेंद्र मोदी फॉर पीएम’ अभियान चलाया था.

बिलकिस बानो का साक्षात्कार

–  टाइम पत्रिका में प्रभावशाली लोगों की सूची में आपका नाम आया है, कैसा महसूस हो रहा है?

ये सुनकर बहुत ख़ुशी मिली कि इतनी बड़ी जगह हमारा नाम आया. हमने तो ऐसा कभी सोचा भी नहीं था, बस इन्साफ के लिए आवाज लगाईं थी. ये सब अल्लाह की रहमत है. अल्लाह के हुक्म से शाहीन बाग़ गए, लोगों से मिले, उनकी परेशानियों से रूबरू हुए.

–  अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं.

हम खेती-बाड़ी करने वाले लोग हैं. हम तो पढ़े-लिखे नहीं हैं, सिर्फ कुरआन शरीफ पढ़ी है, मगर हमारे बच्चे सारे तालीमयाफ्ता हैं. खुराना गाँव में हमारी पुश्तैनी ज़मीने हैं, फलों के बाग़ हैं. वहाँ हमारा परिवार खेती करता है. मेरे पांच लड़के हैं और एक लड़की है. दो लड़के गाँव में खेती करते हैं. बाकी शहर में अलग अलग काम-धंधे में हैं. हम ज़्यादातर अपने छोटे बेटे मतलूब के पास कभी दिल्ली रहते हैं, कभी गाँव चले आते हैं. दस साल पहले मियाँ का इंतकाल हो गया था, उनके बाद खेती का काम बेटे बहू संभालते हैं. अल्लाह के करम से किसी बात की कमी नहीं है.

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–  मोदी सरकार की ओर से वो कौन सी बात या पीड़ा आपको महसूस हुई कि जाड़े के ठिठुरते मौसम में आप एक शॉल ओढ़ कर शाहीन बाग़ में जा बैठीं?

हमने टीवी में देखा जामिया के बच्चों को कैसे पुलिस पीट रही थी. बिचारे मासूम बच्चे थे. उनको डंडों से मारा गया. फिर एनआरसी और सीएए का मसला उठ खड़ा हुआ. हमारे पास तो तमाम दस्तावेज हैं कि हम अपनी नागरिकता साबित कर सकते हैं. सौ साल से हमारे बाप-दादा इस जमीन पर खेती-किसानी करते आ रहे हैं. मगर दिल्ली में हमारे मोहल्ले में कितने लोग हैं जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं है. वो गरीब हैं, मजदूर परिवार हैं, पढ़े-लिखे नहीं हैं, वो कैसे साबित करेंगे? उसमे मुसलमान ही नहीं, हमारे हिन्दू भाई-बहिन भी हैं. उनको बेवजह परेशान किया जाता. ये तो नाइंसाफी होती उनके साथ. उनका दर्द सुनकर हमसे रहा नहीं गया और हम भी बाकी औरतों के साथ शाहीन बाग़ में धरने पर बैठ गए.

–  बयासी साल का आपका सफर तय हो चुका है, इससे पहले कभी ऐसी पीड़ा या डर किसी सरकार में महसूस हुई?

नहीं, अपनी ज़िंदगी में इससे पहले कभी ऐसा माहौल नहीं देखा. हम गाँव में सब मिलजुल कर कितने प्यार-मोहब्बत से रहते थे. कोई हिन्दू-मुसलमान वाला मसला ही नहीं था. मगर इस सरकार में भाईचारा ख़त्म हो गया है. सब डरे-डरे से हैं. एक दूसरे पर शक करने लगे हैं. गरीबों के लिए सरकार का रवैया ठीक नहीं है. इससे बहुत तकलीफ होती है.

–  कोरोना के कारण शाहीन बाग़ की लड़ाई बीच में ही रुक गयी. आगे अगर ये लड़ाई फिर शुरू होती है तो आप फिर इसमें शामिल होंगी?

हां बिलकुल शामिल होंगे. ज़रूरत पड़ने पर आगे ही रहेंगे, पीछे क्यों रहेंगे? जब 100 दिन बैठ गए थे तो और भी बैठ सकते हैं. कोरोना की वजह से हट गए वरना किसी बात का कोई डर नहीं था. इंसान का दिल मज़बूत होना चाहिए. हमारा दिल बहुत बड़ा है, छोटा नहीं है. और ये काम काफ़ी बड़ा है, ये छोटा काम थोड़े ना था, सभी से ये काम हो भी नहीं सकता. मगर हमने हिम्मत की. और औरतों को भी करनी चाहिए. अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. औरत और मर्द में फ़र्क़ ही क्या है, बस हिम्मत होनी चाहिए. हिम्मत नहीं तो कुछ भी नहीं है. मगर अभी पहले कोरोना से लड़ना है. उसको भगाना है.

– शाहीन बाग़ ने आपकी ज़िंदगी को काफी बदल दिया है?

जी, बहुत ज़्यादा बदलाव आया है. ज़िंदगी बहुत ज़्यादा बदल गई है. इससे पहले हम अपने घरों से कभी बाहर नहीं निकले थे. लेकिन इस बार निकले. बाहर खुले में जाकर बैठे. सर्दी थी, बारिश थी…सारी रात वहां बैठ-बैठकर काटी है. हवाई जहाज़ में बैठकर कलकत्ता भी गए. चार दिन वहां रहे थे. इतना प्यार मिला. कई-कई गाड़ियां हमें वहां छोड़ने आईं, लेने आईं. प्यार सीखा, मोहब्बत सीखी. भाईचारा क्या होता है, दूसरों के दुःख में शरीक होना क्या होता है, सब देखा. प्यार-मोहब्बत से ज़्यादा और ज़िन्दगी क्या है? और यही हमसे छीना जा रहा है.

– आपको शाहीन बाग़ आंदोलन का चेहरा कहा गया, कैसा लगता है?

इस बात की बहुत ज़्यादा ख़ुशी है. लोग अब हमें बिलकिस नहीं, दबंग दादी, शाहीन बाग़ की दादी कहते हैं. दवा लेने पास की दूकान पर जाती हूँ तो दुकानदार बोलता है – पहले दबंग दादी को दवा दो भाई. लोग बड़ी इज़्ज़त करते हैं. हमारे मोहल्ले में कई लोग हैं जिनके बच्चों को जामिया में मारा गया. उनका दर्द देखा हमने, इसलिए वहां बैठे थे, उनका दर्द भी है और ख़ुशी इस बात की है कि वहां ना बैठते तो आज यहां तक ना पहुंचते.

– अब आप आगे क्या चाहती हैं?

हम ऐसा चाहते हैं कि जैसे पहले प्यार-मोहब्बत थी, वैसी ही आगे भी रहे. कोई किसी को शक की निगाह से ना देखे. परायेपन की नज़र से ना देखे. हम भी इसी मिटटी में पैदा हुए हैं जिसमे तुम हुए हो. हम भी यहीं ख़ाक होंगे. हमें बस लोगों से यह कहना है कि अकेली लकड़ी ना देर तक जलती है और ना पूरा उजाला दे सकती है. हम सबके बीच प्यार और भाईचारा बना रहे इसके लिए सबको साथ आना होगा. बड़े-बूढ़े ये बात कह गए हैं…सभी मिल-जुलकर करेंगे, तभी तो कुछ होगा…थकान किस बात की है, हमसे रात के बारह बजे तक बुलवा लो, बोलने के लिए तैयार हैं.

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जब कुछ न सूझे तो बनाएं मूंग स्क्वेयर करी

आज क्या सब्जी बनाऊँ ये समस्या अक्सर हर गृहिणी के समक्ष आये दिन मुंह बाए खड़ी रहती है. रोज रोज वही दाल और आलू, गोभी, भिंडी और टमाटर से बनाई जाने वाली सब्जी खाकर यदि आप बोर हो गए हैं तो एक बार मूंग स्कवेयर करी बनाकर देखिए. इसे बनाना तो बहुत आसान है ही साथ ही भाप में पकाए जाने के कारण ये पौष्टिकता से भी भरपूर होती है. मूंग में फाइबर, फोलिक एसिड, विटामिन्स, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और पोटैशियम पर्याप्त मात्रा में पाए जाने के कारण यह गर्भवती महिलाओं, दिल के मरीजों के लिए काफी लाभदायक तो होती ही है साथ ही पाचनशक्ति दुरुस्त करने और इम्युनिटी बढ़ाने में भी कारगर है. तो आइए जानते हैं कि इस लाजबाब सब्जी को कैसे बनाते हैं-

कितने लोगों के लिए-4
मील टाइप-वेज
बनाने में लगने वाला समय-25 मिनट

सामग्री
धुली मूंग दाल 1 कप
नमक 1 टीस्पून
ईनो फ्रूट सॉल्ट 1 सैशे
कसूरी मैथी 1 टीस्पून
टमाटर 2
मध्यम आकार का प्याज 1
अदरक, लहसुन पेस्ट 1/2 टीस्पून
हरी मिर्च 3
मगज के बीज 1 टीस्पून
हल्दी पाउडर 1/4टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
गरम मसाला पाउडर 1/4 टीस्पून
धनिया पाउडर 1 टीस्पून
कटा हरा धनिया 1 टेबल स्पून
तेल 3 टेबलस्पून

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बनाने का तरीका

1-मूंग दाल को 5 घण्टे भिगोकर पानी निकाल दें. और मिक्सी में पीसकर एक बाउल में निकाल लें.
2-एक भगौने में 1 लीटर पानी गरम होने गैस पर रख दें.
3-अब पिसी मूंग दाल में फ्रूट सॉल्ट, 1/2 टीस्पून नमक और कसूरी मैथी मिलाएं.
4-चौड़े किनारे वाली थाली में चिकनाई लगाकर तैयार मूंग के मिश्रण को डालकर एकसार कर दें.
5-भगौने के ऊपर एक चलनी रखकर ऊपर से इस थाली को रखकर ढक दें.
6-15 मिनट तक ढककर मध्यम आंच पर पकाएं.
7-गैस बंद कर दें और ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काट लें.
नोट-आप चाहें तो भगौने के स्थान पर इडली अथवा खमण पात्र का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.
8-टमाटर, प्याज, और मगज के बीज को मिक्सी में बारीक पीस लें.
9-एक नॉनस्टिक पैन में तेल गरम करें, जब तेल धुंआ छोड़ने लगे तो मूंग के कटे पीस डालकर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें.
10-बचे तेल में पिसा मसाला डाल दें और चलाकर अदरक, लहसुन पेस्ट और शेष सभी सूखे मसाले डाल दें. धीमी आंच पर मसाले के तेल छोड़ने तक पकाएं.
11-अब इस मसाले में तले मूंग के टुकड़े डालकर चलाएं.
12-आधा टीस्पून नमक और दो कप पानी डालकर तेज आंच पर 2 से 3 मिनट अथवा उबाल आने तक पकाएं.
13-तैयार स्वादिष्ट सब्जी को हरा धनिया डालकर पराँठा या रोटी के साथ सर्व करें.

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स्किन के लिए ऐसे चुनें सही एंटी एजिंग क्रीम

लेखक-ज्योति गुप्ता

उम्र का असर हमारे चेहरे पर भी पड़ता है. बढ़ती उम्र के चलते चेहरे पर महीन रेखाएं, ढीलापन और आंखों के आसपास झुर्रियां आ जाती हैं. आज की मौडर्न महिला चाहे वह वर्किंग हो या फिर गृहिणी खुद को खूबसूरत बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करती है. जब उस के चेहरे पर उम्र का असर दिखना शुरू होता है तो वह एंटीएजिंग क्रीम खरीदने की सोचती है. मगर जब वह दुकान में जाती है तो ढेरों विकल्प देख कर कनफ्यूज हो जाती है. उस का दिमाग काम करना बंद कर देता है. कई बार तो गलत प्रोडक्ट खरीद लेती है. ऐसा आप के साथ भी न हो, इस के लिए इन टिप्स पर गौर कर आप आसानी से पाएं ब्यूटीफुल स्किन…

  1. स्किन टाइप के अनुसार एंटीएजिंग क्रीम

अपने लिए एंटीएजिंग क्रीम खरीद सकती हैं और वह भी जो आप के लिए एकदम परफैक्ट हो.

औयली: इस तरह की स्किन में झुर्रियां तो जल्दी नहीं पड़ती हैं लेकिन, मुंहासे, ऐक्ने की समस्या ज्यादा होती है. इसलिए क्रीम चुनते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसे अप्लाई करने पर आप की स्किन औयली न हो.

नौर्मल: इस तरह की स्किन वाली महिलाओं को ज्यादा समस्या नहीं होती. उन्हें प्रोडक्ट चुनते समय ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होती, लेकिन गलत क्रीम यूज करने का साइड इफैक्ट हो सकता है.

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सैंसिटव: इस स्किन को ज्यादा केयर करने की जरूरत होती है, क्योंकि किसी भी प्रोडक्ट का साइड इफैक्ट इस पर जल्दी होता है.

ड्राई: ड्राई स्किन पर झुर्रियों का असर जल्दी होता है. इसलिए ऐसी स्किन वाली महिलाओं को एंटीएजिंग क्रीम चुनते समय ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत होती है.

चेहरे की समस्या: एंटीएजिंग क्रीम लेने से पहले अपने चेहरे की समस्या को पहले पहचानें कि क्या जरूरी है? क्या झुर्रियां पड़ रही हैं या चेहरे का कसाव कम हो रहा है? अत: वही क्रीम लें जो आप के लिए जरूरी हो.

  1. एक्सपर्ट की राय है जरूरी

एंटीएजिंग क्रीम का चुनाव करने से पहले स्किन ऐक्सपर्ट की राय जरूर लेनी चाहिए ताकि वे आप की स्किन टाइप का पता लगा कर आप के लिए सही प्रोडक्ट का चुनाव करने में मदद कर सकें. इस तरह आप कई तरह की स्किन समस्याओं से बच जाएंगी.

  1. क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले

बहुत सी कंपनियां यह दावा करती हैं कि उन की एंटीएजिंग क्रीम का इस्तेमाल करने से रातोंरात बदलाव हो जाएगा, स्किन एकदम जवान हो जाएगी, लेकिन यह सच नहीं होता. क्रीम का असर दिखने में कम से कम 1 महीने का समय लग जाता है.

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महंगी क्रीम: बहुत सी महिलाएं यह सोचती हैं कि क्रीम जितनी महंगी होगी उतनी ही असरकारक होगी, जबकि ऐसा नहीं होता है. आप अपनी स्किन समस्या को पहचानने के बाद ही किसी प्रोडक्ट का चुनाव करें.

मल्टी टास्किंग क्रीम: बहुत सी महिलाओं को लगता है कि एंटीएजिंग क्रीम लगाने से उन की स्किन की सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी जैसे डार्क सर्कल्स, दाग, मुंहासे. मगर ऐसा नहीं है. यह क्रीम सिर्फ झुर्रियों को रोकने का ही काम करती है.

सिरदर्द को चुटकियों में दूर करेंगे ये 16 तरीके

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में काम का दबाव, तनाव आदि कारणों से सिरदर्द होना एक बहुत सामान्य समस्या है. पर कई बार ये इतना तेज होता है कि बर्दाश्त कर पाना मुश्‍क‍िल हो जाता है. पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि आप दर्द निवारक दवाओं का सेवन करें. इस बारे में जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉक्टर प्रताप चौहान का कहना है कि सिरदर्द में ज्यादा दवाएं लेना भी आपको नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि दर्द निवारक दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि सिरदर्द होने पर आप दवा ही लें, आप घरेलू उपायों से भी सिर के दर्द को दूर कर सकते हैं. यहां हम आपको कुछ ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में बता रहे हैं, जो आपको सिरदर्द से राहत देंगे.

1. अदरक

थोड़े से अदरक के रस में नींबू का रस उतनी ही मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार पीएं. ऐसा करने से बहुत आराम मिलेगा. आप चाहे तो अदरक के पाउडर या कच्चे अदरक को उबालकर इसकी भांप भी ले सकते हैं.

2. सेब

सिरदर्द में राहत पाने के लिए ये एक बहुत कारगर उपाय है.सुबह उठने के साथ ही एक सेब काट लें और उस पर नमक डालकर खाली पेट खाएं. सिरदर्द में आराम मिलेगा.

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3. दालचीनी

दालचीनी पाउडर में पानी मिलाकर पेस्ट बना लें.इस पेस्ट को अपने माथे पर करीब 30 मिनट तक लगाकर लेट जाएं. इसके बाद इसे धो डालें. सिरदर्द से जल्दी आराम मिलेगा.

4. लौंग

एक तवे पर लौंग की कुछ कलियों को गर्म कर लें.इन गर्म लौंग की कलियों को एक रूमाल में बांध लें और कुछ-कुछ देर पर इस पोटली को सूंघते रहें. इससे सिरदर्द में राहत मिलेगी.

5. कालीमिर्च और पुदीना

सिरदर्द होने पर आप कालीमिर्च और पुदीने की चाय भी बना कर पी सकते हैं. इसे पीने से आपको सिरदर्द से राहत मिलती है.

6. नींबू

कई बार पेट में गैस बढ़ने के कारण भी सिरदर्द होता है. ऐसे में एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस मिलाएं और इसका सेवन करें. आप चाहें तो इसमें थोड़ा शहद मिला सकते हैं.अगर आप इसका सेवन रोज सुबह खाली पेट करेंगे तो स्थायी फायदा होता है.

7. लहसुन

लहसुन की एक कली छीलकर आराम से चबाइए और धीरे-धीरे निगल जाइए. कुछ ही देर में सिरदर्द छूमंतर हो जाएगा.

8. बादाम

रात को बादाम की गिरी भिगोकर रखें. सुबह उसे पीसकर व घी में भूनकर गर्म पानी में मिलाकर पी लें. इससे सिरदर्द भी ठीक हो जाएगा.

9. तुलसी

सिरदर्द होने पर अक्सर लोग चाय या कॉफी पीते हैं लेकिन अगर आप सिरदर्द में तुलसी की पत्तियों का पानी पिएंगे तो इससे दर्द से राहत मिलेगी. इस पानी को बनाने के लिए पानी में तुलसी की पत्तियों को पकाएं.जब पक जाए तो उसे चाय की तरह पिएं. ये किसी भी चाय और कॉफी से कहीं अधिक फायदेमंद होती है.

10. एक्यूप्रेशर

सिरदर्द होने पर आप अपनी दोनों हथेलियों को सामने लाएं. फिर एक हाथ से दूसरे हाथ के अंगूठे और इंडेक्स फिंगर के बीच की जगह पर हल्के हाथ से मसाज करें.
सिरदर्द में ये सबसे कारगर नुस्खा है. ये प्रक्रिया दोनों हाथों में दो से चार मिनट तक दोहराइए.

11. पानी

कई बार शरीर में पानी की कमी होने से भी सिरदर्द होता है इसलिए कुछ-कुछ देर पर पानी की थोड़ी-थोड़ी मात्रा का सेवन करें, क्योंकि जब आपका शरीर हाइड्रेटेड हो जाएगा तो सिरदर्द धीरे-धीरे कम होने लगेगा.इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि शरीर में पानी की संतुलित मात्रा बनी रहे.

12. तेल मालिश

सिरदर्द के सबसे आसान उपायों में शामिल है तेल मालिश. इसलिए आप अपनी पसंद के अनुसार सरसों, नारियल बादाम या फिर जैतून के तेल से मालिश करें. मालिश सिर के चारों तरफ और गर्दन तक करें. मालिश करने से सिर की मांसपेशियों को आराम मिलता है.

13. नींद

सिरदर्द में दर्द का सबसे बड़ा कारण होता है नींद की कमी. नींद पूरी नहीं होने से सिरदर्द होना बहुत सामान्य है इसलिए पर्याप्त नींद लेने की कोशिश करें.

14. तकिया

सोते समय तकिये की स्थिति भी सिरदर्द का कारण बनती है इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि तकिया नर्म हो और सोते समय सीधा रखा हो.

15. चंदन

चंदन का पेस्ट सिरदर्द का बहुत पुराना इलाज है. चंदन की लकड़ी को घिसकर पेस्ट बना लें और माथे पर लगाएं. तत्काल आराम मिलेगा.

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16. बर्फ

एक तौलिए में कुछ बर्फ लपेट कर उसे सिर पर 15 मिनट रखें और फिर 15 मिनट का ब्रेक लें. सिर पर बर्फ रखने से काफ़ी राहत मिलती है.

लाइफ पार्टनर चुनने से पहले ध्यान रखें ये 8 बातें

जब तक 2 इंसान अकेले होते हैं वे अजनबी कहलाते हैं. फिर जब इन अजनबियों में जान-पहचान होती है, तो यह परिचय कहलाता है. धीरेधीरे परिचय दोस्ती की ओर कदम बढ़ाता है. फिर जब घनिष्टता बढ़ कर प्रगाढ़ हो जाती है तब इस घनिष्टता को संबंध में बदलने के वादे किए जाते हैं. लेकिन दोस्ती तक तो काफी कुछ सहन और नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन जब बात इस सीमा को लांघ कर पतिपत्नी बनने की दहलीज पर आ रुके तो बहुत से गंभीर निर्णय लेने पड़ते हैं. आइए, उन की चर्चा कर ली जाए.

1. जन्मकुंडली कहां तक मान्य

हिंदू समाज में रिश्ता तय करने से पहले पंडितजी से लड़केलड़की की कुंडली मिलान कराने की आदत बढ़ रही है. मान्यता है कि 36 या कम से कम 20 गुणों का मेल हो जाए तो बात आगे बढ़ाई जाती है. किंतु क्या गुणों का मिलान रिश्ते की सफलता का पैमाना है? कदाचित नहीं. गुण नहीं स्वभाव अधिक महत्त्वपूर्ण है. कहते हैं यदि एक को अग्नि और दूसरे को जल मान लिया जाए तो भी जोड़ी समझबूझ के साथ जम जाती है. यदि दोनों जल हैं तब भी चिंता की कोई बात नहीं. लेकिन यदि दोनों अग्नि तत्त्व हैं तो जीवन नरक बन सकता है, क्योंकि समझौता दोनों को मान्य नहीं होता. यह कुंडली का पाखंड है, जिसे पंडितों ने अपना हित साधने के लिए हिंदू समाज पर थोपा है ताकि विवाह जैसे नितांत व्यक्तिगत मामले में भी दखल दे कर मोटी कमाई की जा सके.

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2. क्या है आय का साधन 

जीवननैया जिस बल के आधार पर चलती या खिसकती है वह है पैसा. अत: यह जानना बेहद जरूरी होता है कि भावी वर काम क्या करता है? किस ओहदे पर है और कमाता कितना है? भावी तरक्की के क्या आसार हैं? यह वह पक्ष है जिसे किसी भी सूरत में हलके में नहीं लिया जा सकता. क्या वह सरकारी नौकर है? क्या वह प्राइवेट कौरपोरेट सैक्टर का कर्मचारी है या फिर अपना कामधंधा है?

3. पति-पत्नी की आयु में अंतर

हालांकि बहुत से मामलों में (क्योंकि वे अपरिहार्य होते हैं) वरवधू के बीच आयु के अंतर को गंभीरता से नहीं लिया जाता, लेकिन ऐसा करना सरासर गलत है. अधिक से अधिक 3 से 5 वर्ष का अंतर मान्य होता है, इस से अधिक समझौता और 10 या अधिक वर्षों का अंतर मजबूरी और या फिर जबरदस्ती कही जाएगी. यदि दोनों युवा हैं और आयु में अंतर भी अधिक नहीं है तो आपसी तालमेल जल्दी और सरलता से हो सकता है. यह भी आवश्यक है कि पुरुष स्त्री से शारीरिक रूप से अधिक पुष्ट हो.

4. शादी मनोरंजन नहीं जिम्मेदारी है

आमतौर पर युवामन विवाह को स्वच्छंदता, यौन स्वतंत्रता और मनोरंजन का लाइसैंस मान लेता है. लेकिन यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि विवाह एक जिम्मेदारी है, जो जीवन के अंत तक निभानी होती है. शादी से पहले का और बाद का जीवन परिवर्तन की पराकाष्ठा का चरम है. पतिपत्नी एक ही रात में (फेरों के बाद) वयस्क हो जाते हैं. इस बिंदु पर जीवन में गंभीरता आ जानी चाहिए.

5. पारिवारिक सजगता

यह अलग बात है कि लाइफपार्टनर को जीवन भर आप का साथ देना है, आप के साथ ही रहना है, लेकिन उस के पारिवारिक संस्कार क्या हैं, रीतिरिवाज क्या हैं, भावी सोच कैसी है, यह सब कुछ जानना भी आवश्यक है.

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6. पार्टनर कितना स्वस्थ

विवाह जैसे गंभीर विषय पर चर्चा, भागदौड़, लेनदेन व अन्य कार्यकलापों के बीच संभवतया किसी का इस बात पर ध्यान नहीं होता कि भावी दंपती का स्वास्थ्य कैसा है? विवाह से पूर्व ब्लड टैस्ट (एच.आई.वी. टैस्ट भी), ब्लड ग्रुप व अन्य परीक्षण जरूर करवाएं ताकि वैवाहिक जीवन निर्बाध चल सके.

7. लाइफस्टाइल कैसा है

वह किसी बुरी आदत जैसे धूम्रपान, शराब अथवा अन्य किसी नशे का आदी तो नहीं है? दूसरी महिलाओं के विषय में क्या सोचता है? बुजुर्गों की इज्जत करता है या नहीं? अपने कैरियर के प्रति कितना गंभीर है? भावी बच्चों को ले कर क्या सोच है? ये सब बातें सुनने में भले अटपटी लगती हैं, लेकिन है गंभीर.

8. कान का कच्चा है या समझदार

शादी के बाद कभीकभी यह समस्या शुरुआती दिनों में ही उठ खड़ी होती है कि अमुक लड़की का तो बौयफ्रैंड था. लड़के की गर्लफ्रैंड थी. ऐसा कोई एकतरफा इश्क के चलते भी कह सकता है, तो कोई द्वेषवश भी ऐसा जहर उगल सकता है. अत: किसी की बात पर ध्यान न दें और अपना परिवार अपने तरीके से चलाएं.

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Festive Special: फैशन के मामले में ‘कुंडली भाग्य’ की ‘प्रीता’ से कम नहीं ‘करण’ की रियल वाइफ

‘कुंडली भाग्‍य’ के ‘करण लूथरा’  यानी एक्‍टर धीरज धूपर इन दिनों फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं. सीरियल में प्रीता के साथ उनकी जोड़ी की तारीफें फैंस करते थकते नही हैं. धीरज धूपर के सीरियल ‘कुंडली भाग्‍य’ में उनकी रील वाइफ श्रद्धा आर्या इन दिनों फैंस के बीच अपने लुक को लेकर छाई हुई हैं. लेकिन आज हम आपको धीरज धूपर की रियल वाइफ विनी अरोरा के फैशन के बारे में बताएंगे, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं.

टीवी की दुनिया से इन दिनों दूर चल रही धीरज धूपर की वाइफ एक्ट्रेस विन्नी अरोडा अक्सर अपने नए-नए लुक्स की फोटोज शेयर करती रहती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं. इंडियन हो वेस्टर्न हर लुक में उनका फैशन परफेक्ट है.

1. लौंग अनारकली सूट करें ट्राय

अगर आप फेस्टिव सीजन में सिंपल सूट ट्राय करना चाहते हैं तो विन्नी अरोड़ा का लौंग अनारकली सूट ट्राय करें. इसके साथ हैवी इयरिंग्स आपके लुक को कम्पलीट करेंगे, जिस लुक को फैस्टिव सीजन में ट्राय कर सकते हैं.

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2. वेडिंग सीजन के लिए परफेक्ट है ये लुक

 

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अगर आप वेडिंग सीजन के लिए कुछ नया ट्राय करना चाहती हैं तो विन्नी का ये सिंपल लेकिन ट्रैंडी पैंट के साथ लाइट कढ़ाई वाला सूट आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. इसके साथ आप ट्रैंडी इयरिंग्स ट्राय कर सकते हैं.

3. प्रिंटेड अनारकाली लुक करें ट्राय 

अगर आप अनारकली लुक के लिए औप्शन्स की तलाश कर रहे हैं तो विन्नी अरोड़ा का लुक ट्राय कर सकते हैं. सिंपल कौैटन सूट के साथ औक्साइड ज्वैलरी आपके लिए अच्छा औप्शन है.

4. साड़ी लुक करें ट्राय

 

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I have done more #namaste in #2020 than I ever did in my entire life (wedding included 🤣) 🙏🏻 #namastayawayfromme

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अगर आप साड़ी के लुक के ट्राय करना चाहते हैं तो सिंपल प्रिंटेड साड़ी के साथ औफशोल्डर ब्लाउज आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. इसके साथ हैवी औक्साइ़ड झुमके परफेक्ट है.

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5. फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट है ये लुक

 

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अगर आप फेस्टिव सीजन के लिए ट्रैंडी सूट ट्राय करना चाहती हैं तो विन्नी अरोड़ा का लुक परफेक्ट औप्शन है.

कोरोना के बाद क्या होगा दफ्तरों का

हाल ही में स्पेशलिस्ट स्टाफिंग फर्म एक्सफीनो के द्वारा किये गए एक सर्वे के अनुसार प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग इस साल के अंत तक घर से ही काम करना चाहते हैं. 10 में से केवल 3 कर्मचारी ऑफिस जाना चाहते हैं. कंपनी ने 15 इंडस्ट्रीज के 550 संस्थानों में यह सर्वे किया.

सर्वे के जरिये एक्सफीनो ने 1,800 कर्मचारियों से संपर्क किया. इस में 70 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि वे इस साल के अंत तक वर्क फ्रॉम होम करना पसंद करेंगे. सर्वे में टॉप भारतीय आईटी सर्विस फर्मों, एमएनसी, भारतीय ई-कॉमर्स कंपनियों, ऑटोमोटिव और प्रमुख बैंकों को शामिल किया गया.

कोविड-19 में ‘वर्क फ्रॉम होम’ कॉन्सेप्ट काफी उपयोगी साबित हुआ है. आइटी के अलावा नॉन-आइटी सेक्टर की कंपनियों ने भी इसे अपनाया है.

शहर की कई बड़ी कंपनियां मौजूदा हालात को देखते हुए वर्क फ्रॉम होम को तव्वजो दे रही हैं. काम करने का यह कल्चर आगे भी जारी रहेगा. बढ़ती महामारी के बीच कंपनियां केवल उन्हीं कर्मचारियों को दफ्तर बुलाएंगी जिन की मौजूदगी बहुत जरूरी है.

बहुत से प्रोफेशनल्स अब अपने घर के एक हिस्से को ऑफिस का लुक दे रहे हैं ताकि उन्हें ऑफिस जैसा माहौल और सुविधाएं मिल सकें और वे पहले की तरह काम कर सकें. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर के किसी रूम, बालकनी या छत पर कुछ रूपए खर्च कर अपने वर्किंग स्पेस का सेटअप तैयार करा रहे हैं ताकि ऑफिस टेबल, रिवॉल्विंग चेयर, कंप्यूटर,प्रिंटर और व्हाइट बोर्ड आदि सेट करा कर प्रॉपर्ली काम कर सकें. बेहतर नेटवर्क के लिए हाई स्पीड डेटा कनेक्शन या वाईफाई भी लगवा लिया है. इस से काम करने में सुविधा भी होती है और डिस्टर्बेंस भी नहीं होती.

कर्मचारियों का प्रोडक्टिविटी लेवल बढ़ा

एक स्टडी के मुताबिक दफ्तर के मुकाबले कर्मचारी घर से ज्यादा बेहतर काम करते हैं. दफ्तर में कर्मचारी ब्रेक ज्यादा लेते हैं. वहीं वर्क फ्राॅम होम में महीने में 1.4 दिन ज्यादा काम कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर कर्मचारियों का प्रोडक्टिविटी लेवल बढ़ गया है. इस से एम्लॉयर्स भी वर्क फ्रॉम होम की संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं. उन्हें भी इस में फायदे नजर आ रहे हैं. अभी तक कामकाज के इस नए तरीके से कतरा रही कंपनियां अब संभावनाएं तलाशने लगी हैं. लाभ का सौदा होने की बात भी कर रही हैं. एक तरफ कर्मचारी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ ऑफिसों में होने वाले बिजली, पानी, कागज़, फर्नीचर और दूसरे रखरखाव के सामानों पर होने वाले खर्चे भी बच रहे हैं.

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इधर कर्मचारियों का भी आनेजाने में लगने वाला समय और किराया दोनों बच रहा है. यही नहीं आमतौर पर कर्मचारियों को वर्क लाइफ और पर्सनल लाइफ के बीच तालमेल बिठाने में दिक्कतें होती हैं. लेकिन वर्क फ्राॅम होम के चलते अब यह आसान हो गया है. वे घर के काम देखते हुए ऑफिस की जिम्मेदारियां भी सहजता से निभा पा रहे हैं. ऑफिस में कई बार काम करने की इच्छा होने पर भी शोरगुल या हंसीमजाक के बीच काम निबटाना संभव नहीं होता. वहां दोस्तों के बीच काम से ब्रेक भी ज्यादा ले लिए जाते हैं मगर घर में अपनी सुविधानुसार रात तक बैठ कर काम निबटाया जा सकता है .

महिलाओं के लिए वर्क फ्रॉम होम अधिक सुविधाजनक है. 31फीसदी से ज्यादा महिलाएं बच्चे के बाद कैरियर में ब्रेक लेती हैं क्योंकि उन के लिए ऑफिस जाना, पूरे दिन बच्चे से दूर रहना और फिर थकेहारे घर लौट कर बच्चे को संभालना आसान नहीं होता. वर्क फ्रॉम होम के कारण अब वे घर और बच्चों के साथसाथ ऑफिस के काम भी संभाल पा रही हैं और वर्कफोर्स में बनी रह पा रही हैं. फ्लैक्सिबल वर्क कल्चर के कारण उन की जिंदगी बदल गई है.

वर्क फ्रॉम होम है आज की जरुरत

कोरोना महामारी के बीच आईटी, बीपीओ सेक्टर और अन्य सेवा प्रदाता कंपनियों के कर्मचारी अब 31 दिसंबर तक वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम कर सकेंगे. दूरसंचार विभाग ने इस के आदेश जारी कर दिए हैं. आईटी कंपनियों में करीब 90 फीसदी कर्मचारी अभी घर से काम कर रहे है. केवल अति महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले कर्मचारी ही कार्यालय जा रहे हैं.
नैसडैक में लिस्टेड बीपीओ और एनालिटिक्स कंपनी ईएक्सएल के लगभग 70 फीसदी कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं.

हाल ही में ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने कहा है कि उन के कर्मचारी जब तक चाहें वर्क फ्रॉम होम कर सकते हैं. ट्विटर हेडऑफिस सैनफ्रान्सिस्को, कैलिफोर्निया में है. अटलांटा, न्यूयाॅर्क, लास एंजिल्स और अमेरिका के कई शहरों में भी इस के दफ्तर हैं. 20 देशों में ट्विटर के कुल 35 ऑफिस हैं. वहीं फेसबुक ने कहा है कि इस के दफ्तर 6 जुलाई को खुल जाएंगे. हालांकि कर्मचारी दिसंबर के आखिर तक वर्क फ्रॉम होम करते रहेंगे.

तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी गूगल ने भी वर्क फ्रॉम होम अगले साल जून तक बढ़ाया. यह अवधि गूगल के उन स्टाफ के लिए बढ़ाई गई है जिन्हें ऑफिस में रह कर काम करने की जरूरत नहीं है.

दुनिया भर में गूगल के लगभग दो लाख से अधिक स्टाफ हैं. गूगल के स्टाफ को इस से अपनी वर्क फ्रॉम होम सेवा बढ़ाने का विकल्प मिलेगा. पहले इस वर्क फ्रॉम होम सेवा को जनवरी 2021 में खत्म किया जाना था. गूगल का यह निर्णय अन्य टेक फर्मो और बड़े नियोक्ताओं को कोरोना से बचाव के लिए ऐसी ही नीति अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है. इस बीच ट्विटर ने कहा है कि वह अपने सभी कर्मचारियों को अनिश्चितकाल तक रिमोट वर्क की अनुमति देने जा रही है.

देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इन हालातों में भारतीय कंपनियां भी किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती हैं. वे कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम की सुविधा को बढ़ा रही हैं.

सिटीबैंक, बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, एचयूएल, केपीएमजी, आरपीजी ग्रुप, कग्निकजेंट, फिलिप्स और प‍िडिलाइट इंडस्ट्रीज उन कंपनियों में शुमार हैं जो केवल जरूरी स्टाफ को ही दफ्तर आने के लिए कह रही हैं. अमेजन वर्क फ्रॉम पॉलिसी को अक्टूबर 2020 से बढ़ाकर जनवरी 2021 कर चुकी है.

इसी तरह केपीएमजी में करीब 5 फीसदी कर्मचारी ऑफिस आ रहे हैं. जब तक स्थितियों में सुधार नहीं होता है, तब तक कंपनी वर्क फ्रॉम होम को जारी रखेगी.

क्या परिवर्तन हैं संभव

अभी इतनी जल्दी वैक्सीन बनने की कोई संभावना नहीं. अगले साल तक वैक्सीन आ भी जाती है तो सामान्य लोगों तक पहुंचने में समय लगेगा. वैसे भी वैक्सीन बनने और मिलने के बाद भी लोग वर्क फ्रॉम होम करने के इतने आदी हो जाएंगे कि उन्हें दफ्तर जा कर काम करने की आदत ही नहीं रह जाएगी. संभव है अगले दोतीन सालों में कुछ दफ्तरों की बिल्डिंगों में जाले लगने लगें. दफ्तर की टेबलकुर्सियों पर धूलमिट्टी जम जाएं. ड्रायर और अलमारियों के दरवाजे जाम हो जाएं. तस्वीरों पर धूल की मोटी परत जम जाए और शीशे गंदे दिखने लगें.

संभव है कि कुछ दफ्तरों की विशालकाय बिल्डिंगों के 1- 2 फ्लोर पर तो थोड़ेबहुत कर्मचारी आ रहे हों पर बाकी फ्लोर खाली पड़े हों जिन्हे किराए पर दूसरे काम के लिए उठा दिए जाएं. कोरोना के खतरे को देखते हुए अब ज्यादातर कर्मचारी घर से काम करना चाह रहे हैं और एम्प्लॉयर खुद भी इस व्यवस्था से संतुष्ट हैं. वे कोरोनावायरस को देखते हुए कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते हैं. ऐसे में जाहिर है कि वे अपने ऑफिस को या तो खाली छोड़ना मंजूर करेंगे या किसी और काम के लिए किराए पर दे देंगे .

कई छोटेमोटे प्राइवेट ऑफिसों के मालिकों ने मौके की नजाकत को देखते हुए पूर्ण रूप से ऑनलाइन काम करवाना शुरू कर दिया है और अब उन्होंने ऑफिस वाली जगह या तो बेच दी है या निश्चिंत हो कर किसी और काम में ले लिया है. कई कंपनियां पूरी तरह बंद भी हो रही है. ज्यादातर कंपनियां अभी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है इसलिए या तो कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा रही है या ऐसे लोगों को हटाया जा रहा है जिन के बगैर काम चल सकता है. वेतन में कटौती के कारण भी लोग वर्क फ्रॉम होम को प्रेफरेंस दे रहे हैं.

आने वाले समय में ऑफिस के बजाय रीजनल हब बनाने पर जोर दिया जा सकता है जहां ज्यादातर एंप्लॉई रहते हों. यानी ऐसी जगहों पर छोटेछोटे कोवर्किंग स्पेस डिवेलप किए जा सकते हैं जहां एम्पलाई कम समय में सहूलियत से आवश्यकतानुसार पहुंच कर जरूरी काम निपटा सकें और बाकी काम घर से करते रहें.

ज्यादातर ऑफिस मीटिंगस अब वीडियो कॉल और ज़ूम मीटिंग आदि के रूप में ही कराया जा रहा है. वैसे भी अब एंप्लॉई ज्यादा टेक्नोलॉजी फ्रेंडली बन चुके हैं. जिन लोगों को ऑनलाइन काम करने की आदत नहीं थी उन्होंने भी इतने समय में सब कुछ सीख लिया है. वीडियो चैट के द्वारा स्टाफ अब खुद को एकदूसरे के ज्यादा करीब महसूस कर पाते हैं. लंबे समय तक ईमेल और जूम और वीडियो चैटिंग के जरिए ही मीटिंग पर्पस पूरे कर लिए जाएंगे और ऑफिस जाने की जरूरत महसूस नहीं होगी.

ऑफिस बिल्डिंग एक बड़े कॉन्फ्रेंस सेंटर के रूप में तब्दील हो सकते हैं. बहुत संभव है कि आने वाले समय में ऑफिस बिल्डिंग का मकसद बदल जाए. भविष्य में हो सकता है कि ऑफिस का प्रयोग महज बड़ी मीटिंग्स या ऑफिशियल गैदरिंग के लिए किया जाए और बाकी काम वर्क फ्रॉम होम से होता रहे. यानी ऑफिस का उपयोग अब मीटिंग्स, कॉन्फ्रेंसिंग और कंपनी के दूसरे इवेंट्स के लिए गेदरिंग स्पेस के तौर पर अधिक हो.

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कुछ बदलाव होंगे आवश्यक

बी पॉजिटिव. यह भी संभव है कि अगले साल तक सब ठीक हो जाए और ऑफिस पूरे कर्मचारियों के साथ खुलने लगें. मगर ऑफिस खुलते भी हैं तो ओपन लेआउट में बदलाव नजर आएंगे. व्यवस्था में बहुत से परिवर्तन लाने पड़ेंगें. लोगों के बीच 6 फीट की दूरी अनिवार्य है. इस वक्त सिंपल डेस्क के बजाय पार्टीशंस पर जोड़ देना पड़ेगा. वर्कर्स खुद भी आसपास बैठना नहीं चाहेंगे. ऑफिसों में अब डोर सेंसर, ऑटोमेटिक सिंक , सोप डिस्पेंसर, ब्रॉड कॉरिडोर और डोरवेज आदि के इस्तेमाल पर गौर करना होगा. हाईजीन और सोशल डिस्टैन्सिंग का ख़ासा ख़याल रखना होगा.

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