इन 5 हेयर मास्क से झड़ते बालों से पाएं छुटकारा

सुंदर और मजबूत बाल भला किसे अच्छे नहीं लगते. लेकिन बदलते मौसम और भाग दौड़ भरी जिंदगी के चलते बालों के झड़ने और डैंड्रफ की समस्या पैदा हो जाती है. ऐसे में प्राकृतिक उपचारों को आजमाना बहुत आवश्‍यक है क्‍योंकि इसका ना तो कोई साइड इफेक्‍ट होता है और ना ही यह बहुत खर्चीला होता है.

आइये जानते हैं कुछ ऐसे प्राकृतिक हेयर मास्‍क जिन्‍हें नियमित लगाने से बालों का झड़ना रूक जाता है.

1. अंडे का मास्‍क

एक कटोरे में 1 अंडा फोड़ कर उसमें थोड़ा सा दूध, 2 चम्‍मच नींबू का रस और जैतून का तेल मिक्‍स करें. फिर इस मिश्रण को सिर पर लगा कर थोड़ा मसाज करें. उसके बाद एक शावर कैप से अपने सिर को ढंक लें और 20 मिनट के बाद बालों को ठंडे पानी से धोएं.

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2. केले का मास्‍क

2 पके हुए केले लें, उसके साथ 1 चम्‍मच जैतून का तेल, नारियल का तेल और शहद मिक्‍स करें. इन्‍हें अच्‍छी प्रकार से एक चम्‍मच की सहायता से मसल लें. फिर इसे अपने हाथों से सिर की त्‍वचा पर लगाएं. अब इसे 5 मिनट तक के लिये सिर पर स्‍थिर हो जाने दें. उसके बाद हल्‍के गुनगुने पानी से सिर धो लें.

3. दही का मास्‍क

इस मास्‍क को बनाने के लिये 1 कप दही के साथ 1 चम्‍मच सेब का सिरका और 1 चम्‍मच शहद ले कर मिक्‍स करें. फिर इसे अच्‍छी तरह से बालों की जड़ों तक लगाएं. 15 मिनट के बाद सिर को ठंडे पानी से धो लें.

4. ग्रीन टी मास्‍क

इस मास्‍क को बनाने के लिये एक अंडे की जर्दी लें, उसमें 2 टी स्‍पून ग्रीन टी की डालें. ग्रीन टी पकी हुई होनी चाहिये. इसे तब तक मिक्‍स करें जब तक कि वह क्रीमी न दिखाई देने लगे. इसे मास्‍क को एक ब्रश की सहायता से बालों की जड़ों में लगाएं. 20 मिनट के बाद बालों को ठंडे पानी और शैंपू से धो लें.

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5. कडी पत्‍ता और नारियल मास्‍क

थोड़ी सी ताजी कड़ी पत्‍तियां लें, उसके साथ कुछ बूंद नारियल तेल का मिलाएं. अब इसे अच्‍छी तरह से उबालें और जो अर्क बच जाए उससे सिर के बालों की मसाज करें. फिर 20 मिनट के बाद बाल धो लें. इस मास्‍क को हफ्ते में दो बार प्रयोग करें.

मृत्यु के बाद सामान का क्या करें

अनुराधा के पति की मृत्यु हुए डेढ़ साल हो चुका है. मृत्यु भी अचानक हो गई थी. कोई बीमारी न थी. बस हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही मृत्यु हो गई. अब उन के जाने के बाद भी उन का सामान यानी चश्मा, मोबाइल, परफ्यूम, घड़ी, शेविंग का सामान, जूते ज्यों के त्यों रखे हैं.

अनुराधा की हिम्मत ही नहीं होती कि वह इन चीजों को हटा या किसी को दे दे. हर चीज के साथ एक याद जुड़ी है और उसे अलग करने की बात सोच कर ही वह कांप जाती है. अपनी मृत्यु से 1 दिन पहले एक परिचित की शादी में वे जिस सूट को पहन कर गए थे, उसे छू कर देखती है.

यहां तक कि उस के बेटे का भी कहना है कि पापा की चीजें जैसे रखी हैं, वैसे ही रखी

रहने दें. उन्हें हटाना नहीं. उन का कमरा भी वैसा ही है आज तक, जिस में वे बैठ कर काम करते थे. यहां तक कि मेज पर रखा लैपटौप तक नहीं हटा पाई है. उसे लगता है कि पति अभी काम करने बैठ जाएंगे.

एक पीड़ा से गुजरना पड़ता है

अगर अचानक किसी की मृत्यु हो जाती है तो पहले से ही किसी तरह की तैयारी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता है. कोई लंबे समय से बीमार हो या वृद्ध तो पहले से बहुत सारी बातों के बारे में सोचा जा सकता है, पर अचानक चले जाने से शोकाकुल परिजनों को न पहले सोचने का मौका मिलता है न बाद में. मृतक से जुड़ी हर चीज जहां उस के होने का एहसास दिलाती है, वहीं उस के न होने का दर्द भी हर पल ताजा किए रहती है. इस पीड़ा को केवल वही समझ सकता है, जिस ने इसे सहा हो. महीनों, कई बार वर्षों लग जाते हैं इस वास्तविकता को स्वीकारने में और तभी निर्णय ले पाते हैं कि उस की चीजों का क्या किया जाना चाहिए.

जाने वाले की चीजों का क्या करना है, यह तय करना बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है, जिस में मृतक के साथ क्या रिश्ता था, यह बात भी शामिल होती है. जैसा रिश्ता होता है, उसी के हिसाब से पीड़ा भी होती है. एक पोते को अपने दादा की चीजें हटाने में उतनी तकलीफ न हो, जितनी उन के बेटे या पत्नी को हो सकती है.

शालिनी को लगता है जब भी वह अपनी मां की चीजें किसी को दान में देती है तो उसे महसूस होता है जैसे उस का कोई हिस्सा उस के हाथ से छूट रहा है. यह जानते हुए भी कि अब मां कभी लौट कर नहीं आएंगी. उस ने उन का चश्मा, उन का तकिया तक संभाल कर रखा है.

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जब कोई चला जाता है तो घर पर उस के टूथब्रश से ले कर धुलने के लिए मशीन में रखे कपड़े, उस की किताबें, उस के सिरहाने रखा पानी का गिलास या लैंप, अधबुना स्वैटर या कौफी का मग तक बारबार उस के चले जाने की याद दिलाता है, मन को कचोटता है. तब यह खयाल आ सकता है कि इन चीजों को बारबार देख कर दुखी होने से तो अच्छा है कि इन्हें फेंक या किसी को दे दिया जाए. खुद के लिए ऐसा करना बेहद मुश्किल हो तो किसी परिजन, मित्र या रिश्तेदार से ऐसा करने को कहा जा सकता है.

समय लें जल्दबाजी न करें

सामान का क्या करना है, इस पर निर्णय लेने में जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं होती है. समय लें, क्योंकि इस प्रक्रिया से गुजरना कोई आसान काम नहीं होता है. लेकिन वास्तविकता को स्वीकारने का कभी कोई सही समय नहीं होता. इसलिए पीड़ा का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार करें. जितना ज्यादा उन चीजों से जुड़े रहेंगे, उतना ही उन्हें अपने से अलग करना कठिन होगा. कुछ समय गुजर जाने के बाद उन यादों से बाहर आने की कोशिश करें, जो मृतक की वस्तुओं से जुड़ी हुई हों.

सामान हटाने का मतलब यह नहीं है कि जाने वाले की यादों से आप छुटकारा पाना चाहती हैं या अब उस से नाता टूट गया. लोग ऐसी बातें बना सकते हैं, उन पर ध्यान न दें क्योंकि यह दुख आप का है और इस से कैसे बाहर निकलना है, यह भी आप को ही तय करना है.

क्या है सही तरीका

मृतक की वस्तुएं घर में अन्य किसी के काम आ सकती हैं जैसे कपड़े, इत्यादि. मगर जरूरी नहीं कि कोई उन का उपयोग करना चाहे. माधवी ने कितनी बार अपने बेटे से कहा कि वह पापा के कपडे़ पहन लिया करे, पर उस ने साफ इनकार कर दिया कि इस तरह तो उसे पापा की और ज्यादा याद आएगी. किसी रिश्तेदार को कपड़े आदि देने की उस की हिम्मत नहीं हुई कि पता नहीं कोई बुरा न मान जाए कि जो चला गया है उस का सामान बांट रही है. कई लोग इसे अपशगुन या अशुभ भी मानते हैं कि जो दुनिया में नहीं है, उस का सामान कोई और इस्तेमाल करेगा तो उस का भी अनिष्ट हो सकता है.

अकसर लोग सुझव देते हैं कि किसी जरूरतमंद यानी गरीब को दे दें. उसे देंगे तो वह दुआ देगा. लेकिन क्या ऐसा होता है? आप जिसे जरूरतमंद समझ कर दे रहे हो, उस के किसी उपयोग का वह सामान न हो और वह उसे किसी को बेच दे या कूड़े में फेंक दे तो क्या यह ठीक होगा? जितनी सैंटीमैंटल वैल्यू आप के लिए उस सामान की है उतनी किसी और को कैसे हो सकती है? किसी गरीब ने कपड़ा पहन भी लिया और वह उस का रखरखाव ठीक से न कर पाया तो क्या गंदे और यहांवहां से फटे कपड़ों को देख पाना आप को सहन हो पाएगा?

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ऐसे में बेहतर विकल्प है कि उस सामान को बेच दिया जाए. बेचने का उद्देश्य यहां पैसा कमाना नहीं है, बल्कि उस से प्राप्त पैसों को उपयुक्त जगह पर लगाया जा सकता है. उन पैसों से किसी की मदद की जा सकती है या यदि मृतक किन्हीं सामाजिक कार्यों से जुड़ा था तो उन में इसे लगाया जा सकता है.

मिलिट्री डाइट क्या है और जानें इसके फायदे

मिलिट्री डाइट का सेना से कोई संबंध नही. इस आहार से लाभ लेने के लिए हमे सहनशक्ति और अनुशासन की जरूरत है इसलिए इसे मिलिट्री डाइट कहा जाता है. यह आहार समय के साथ विकसित हुआ है इसलिए यह मिलिट्री डाइट के रूप में भी जाना जाता है.

मिलिट्री डाइट हमारे लिए वजन घटाने के लिए बहुत मददगार है. हम बिना किसी कठिन व्यायाम किए वजन को आसानी से कम कर सकते हैं. इस आहार का इस्तेमाल करके हम एक सप्ताह में 10 पौंड तक वजन घटा सकते हैं. इसमें क्या खा सकते हैं क्या नही कैसे वजन कम कर सकते हैं , जानते हैं.

 व्यायाम

सप्ताह में पांच दिन आपको कम से कम 30 मिनट तक रोजाना चलना है और संतुलित आहार लेना है. अगर आपको व्यायाम करने के बाद  कमजोरी महसूस होती है तो आपको व्यायाम थोड़ा कम कर देना चाहिए.

 मिलिट्री डाइट के फायदे

मिलिट्री डाइट हमारी कैलोरी को नियंत्रित करती है.  हमारा वजन कम कर हमे फिट रखने में भी हमारी मदद करती है. जिस से हम कोई भी ड्रेस पहनते है तो वो अच्छी लगती है.लम्बे समय तक यह हमारा वजन घटाने में हमारी मदद करती है. इस से मिलने वाली कैलोरी की गुणवत्ता अच्छी होती है .कैलोरी की गुणवत्ता हमारे वजन कम करने में ही नही बल्कि मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को भी बढ़ाती है और बीमारियों से लड़ने में भी हमारी मदद करती है.

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 तीन दिनों का मिलिट्री डाइट प्लान

पहला दिन

सिर्फ 1400 कैलोरी लेनी है

नाश्ता

1 टोस्ट, 2 चम्मच पीनट बटर, आधा ग्रेपफ्रूट और एक कप चाय या कॉफी लें.

लंच

एक स्लाइस टोस्ट, एक कप स्प्राउट्स, एक कप चाय या कॉफी.

डिनर

80 ग्राम पनीर या मीट, एक कप ग्रीन बीन्स, एक  सेब, एक केला, एक कप कस्टर्ड या वनीला आइसक्रीम.

 दूसरा दिन

दूसरे दिन सिर्फ 1200 कैलोरी इनटेक.

नाश्ता- एक टोस्ट, आधा केला, एक उबला हुआ अंडा और एक कप चाय या कॉफी.

लंच- एक उबला हुआ अंडा, एक कप कॉटेज चीज, 5 नमक वाले क्रैकर, चाय या कॉफी.

डिनर- बिना घी की दो रोटी, आधा कप गाजर और ब्रोकली,  केला और आधा कप कस्टर्ड ,या आइसक्रीम

 तीसरा दिन

तीसरे दिन 110 कैलोरी का सेवन करें.

नाश्ता- 28 ग्राम  चीज, 5 नमकीन क्रैकर, एक छोटा सेब, एक कप चाय या कॉफी.

लंच- टोस्ट एक स्लाइस, एक स्क्रैम्बल्ड अंडा (उबला या ऑमलेट आप जैसे भी खाना चाहें), एक कप चाय या कॉफी इच्छा हो तो.

डिनर- एक कप मिक्स दाल,1 केला, लस्सी या वनीला शेक

 शेष 4 दिन

इन चार दिनों में आपकी डाइट यही रहती है. स्नैक्स का सेवन अभी भी करने से बचें. आप कैलोरी की मात्रा बढ़ाकर 1500 कैलोरी कर सकते हैं.

मिलिट्री डाइट में क्या ना खाएं

फलों में आम और कटहल ना खाएं.

डेयरी प्रोडक्ट्स में फुल फैट मिल्क, फुल फैट योगर्ट और फुल फैट क्रीम.

फैट्स और ऑयल में वेजीटेबल ऑयल, बटर, मायोनीज.

सॉफ्ट ड्रिंक्स, पैकेज्ड फ्रूट जूस, पैकेज्ड कोकोनट वाटर और एल्कोहल.

सॉस में टोमैटो सॉस, बार्बेक्यू सॉस, स्वीट चिली सॉस, चिली सॉस और मायोनीज.

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 मिलिट्री डाइट के नुकसान क्या हैं ?

जल्दी वजन घटाना हो तो ये डाइट पैटर्न ठीक है .लेकिन इसको ज्यादा दिनों के लिए फॉलो करना सेहत से खिलवाड़ करना है. असल में जब आप वेट कम करने के लिए मिलिट्री डाइट प्लान फॉलो करते हैं, तो इस से वेट जितनी तेजी से कम होता है, उतनी ही तेजी से छोड़ने पर वजन फिर से बढ़ सकता है. ऐसे में आपको खुद से वजन कम करने के सही तरीके जैसे हेल्दी डाइट, एक्सरसाइज, वर्काउट आदि करने होंगे.

मिलिट्री डाइट प्लान फॉलो करने से पहले डॉक्टर से बात जरूर कर ले.

Interview: इंटिमेट सीन्स में न्यूडिटी पर बोलीं Laxmi Bomb की ये एक्ट्रेस

संगीत से अभिनय कैरियर की तरफ रुख करने वाली अभिनेत्री और सिंगर अमिका शैल कोलकाता की है. उसने 5 साल की उम्र से संगीत का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था और 9 साल की उम्र में संगीत की रियलिटी शो लिटिल चैंप्स में भाग लिया है. बचपन से ही उसे कला से जुड़े काम करने की इच्छा रही है. उसने संगीत की कई रियलिटी शो में भाग लेकर अवार्ड भी जीता है. जिसमें सा रे गा मा पा नेशनल टेलेंट हंट, स्टार वौइस ऑफ़ इंडिया, इंडियन आइडल आदि है, मृदु भाषी और विनम्र अमिका सब टीवी पर बालवीर रिटर्न में वायु परी की भूमिका निभाने के अलावा फिल्म ‘लक्ष्मी बॉम्ब’ में एक भूमिका निभाई है ,जिसे लेकर वह बहुत खुश है, पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- लक्ष्मी बॉम्ब में आपकी भूमिका क्या है?

इसमें अक्षय कुमार के भाई की गर्लफ्रेंड की भूमिका निभा रही हूं. नार्मल लड़की की भूमिका निभा रही हूं. जो बिलकुल मुझ जैसी ही है. अक्षय कुमार के साथ कुछ सीन्स थे. मुझे बहुत अच्छा लगा. बड़े कलाकार के साथ काम करने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

सवाल-संगीत से अभिनय की तरफ मुड़ना कैसे संभव हुआ?

मैं मुंबई संगीत की कई रियलिटी शो में परफॉर्म करने आई थी. ग्रेजुएशन के बाद मैं मुंबई शिफ्ट हो गयी और कई फिल्मों में प्ले बैक सिंगर के रूप में गाने गायें. म्यूजिक वीडियो बनायी. विदेशों में बहुत सारें परफोर्मेंस दिए. एक्टिंग की तरफ नहीं सोचा था. 5 साल के बाद मुझे सिंगर एक्टर का ऑफर आया. मैने ऑडिशन दिया और चुनी नहीं गयी. फिर मैंने अपने आपको ग्रूमिंग की और सीरियल्स के लिए ऑडिशन दिया. ‘उडान’ धारावाहिक मिली, फिर ‘दिव्य दृष्टि’ इसके बाद बाल वीर रिटर्न में वायु परी की भूमिका कर रही हूं, इसके अलावा कई सारे विज्ञापनों में भी अभिनय किया है, ऐसे मुझे काम मिलता गया. वेब सीरीज भी मैंने की है.

सवाल-कोलकाता से मुंबई आने की बात पर माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया रही ? आपने मुंबई में कैसे सरवाईव किया?

बचपन से ही माता-पिता का सहयोग संगीत की तरफ रहा है. मैंने क्लासिकल संगीत की पूरी ट्रेनिंग ले रखी है. पहले मेरे पिता राजी नहीं थे, क्योंकि वे खुद डॉक्टर है और मुझे भी वे डॉक्टर बनने के लिए कहा करते थे. माँ बहुत सपोर्टिव थी, उनकी वजह से मैं यहाँ तक पहुँच पायी हूं, लेकिन पिता ने जब मेरी कामयाबी और पैसा सबकुछ देखा तो वे खुश हुए और आज बहुत गर्व महसूस करते है. मुंबई आने पर सबसे पहले मैंने जॉब ढूढना शुरू किया और कई स्कूलों में जाकर संगीत की टीचर के लिए इंटरव्यू दिए और मुझे जॉब मिला. 6 महीने तक मैंने काम किया. इससे मुझे पैसे मिले और मेरा मुंबई रहना आसान हुआ. बाद में मैंने काम छोड़ दिया. एक संगीत का बड़ा कॉन्सर्ट मिला और एक महीने विदेश में रही. मेरी वित्तीय अवस्था अच्छी हो गयी.

 

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सवाल-क्या अभिनय की वजह से संगीत पीछे नहीं छूट रहा?

संगीत छूटा नहीं है, जब भी समय मिलता है, मैं संगीत की रियाज करती हूं. संगीत की दुनिया में नेपोटिज्म सालों से है और न्यू कमर को अच्छा चांस मिलना बहुत मुश्किल होता है. एक्टिंग में जाने की वजह भी यही है, क्योंकि मुझे संगीत में उतनी सफलता नहीं मिल रही थी. जितनी आज अभिनय में है. यहाँ काम ,पैसा, शोहरत सब मुझे मिला है.

सवाल-तनाव होने पर रिलीज कैसे करती है?

तनाव इस इंडस्ट्री में हर किसी को होता है. आउटसाइडर को थोडा अधिक होता है. इसलिए मैं जिम,मैडिटेशन, साइकिलिंग आदि से इसे कम करने की कोशिश करती हूं.

सवाल-कोरोना के बाद एक्टिंग में सावधानी कितनी है?

अभी सेट पर काफी सावधानी बरती जा रही है. साफ़ सफाई और सेनीटाईजेशन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है. सबके हाथ में ग्लव्स, मुंह पर मास्क और हाथ में सेनिटाईजर होता है. सेट पर कोविड इंस्पेक्टर होते है, जो सेट पर नियमों का पालन सही से हो रहा है या नहीं इसकी देखभाल करते है. केवल शॉट के समय मास्क उतारा जाता है. एम्बुलेंस हमेशा सेट पर मौजूद है. केवल 30 प्रतिशत लोग ही काम कर रहे है. आर्टिस्ट के लिए रूम शेयरिंग अब नहीं होता. सबको सिंगल रूम दिया गया है.

सवाल-इसके आगे कौन सी प्रोजेक्ट है?

वेब सीरीज मिर्ज़ापुर 2 में काम कर रही हूं. इसके अलावा एक हिंदी फिल्म में काम करने वाली हूं.

सवाल-आउटसाइडर को अच्छा काम मिलना क्या अधिक मुश्किल होता है?

मैंने देखा है कि टीवी इंडस्ट्री में आउटसाइडर को अच्छा काम मिलता है. यहां अधिक नेपोटिज्म फिल्मों की तरह अधिक नहीं है, क्योंकि यहां फ्रेश चेहरे को अधिक महत्व दिया जाता है. वेब सीरीज में भी अधिक अवसर नए लोगों को मिलता है. फिल्मों मैं आउटसाइडर को मौका बहुत कम मिलता है. ऑडिशन भी बहुत कम होता है.

सवाल-क्या कोई ड्रीम है?

उम्मीद अधिक नहीं रखती और आगे मिलेगा तो अच्छी परफोर्मेंस वाली फिल्म करना चाहती हूं. निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ काम करना चाहती हूं.

सवाल-इंटिमेट सीन्स को करने में कितनी सहज होती है?

पहले मैं इंटिमेट सीन्स के लिए ना कहती थी, लेकिन अब कई वेब सीरीज इंटिमेट सीन्स के साथ अच्छे बने है और ये कहानी को सूट भी करती है. इंटिमेट सीन्स में अगर न्यूडिटी न हो, तो करने में कोई एतराज नहीं.

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सवाल-आप कितनी फैशनेबल है?

फैशन का सेन्स मुझे अधिक नहीं था. सिंगर के रूप में मैं बहुत कैजुअल थी. एक्टिंग में आने के बाद मैंने अडॉप्ट किया और अच्छा सेन्स रखने लगी हूं.

सवाल-अभिनय के इच्छुक यूथ के लिए क्या मेसेज देना चाहती है?

अभिनय में पैशन, मेहनत, धीरज और आत्मविश्वास होने की बहुत जरुरत होती है, ताकि आप अपने मकसद में कामयाब हो सकें.

Independence Day Special: जानें आज़ादी पर क्या कहते हैं टीवी सितारे

देश एक बार फिर 74 वां स्वाधीनता दिवस मनाने जा रहा है, भारत के विभाजन के बाद जो राजनीतिक सत्ता देश में आई, उसे ही आज़ादी का नाम दे दिया गया, लेकिन 73 सालों बाद भी देश गरीबी, भुखमरी, कुपोषणता, बेरोजगारी के चंगुल से आज भी आजाद न हो सका. ये सही है कि अंग्रेजों के चंगुल से भारत आज़ाद हुआ, लेकिन आज़ादी का लाभ और आजादी किसे मिली? इस पर आज विचार करने की जरुरत है. इतना ही नहीं आज भी देश रुढ़िवादिता और सदियों पुराने रीतिरिवाजों में कैद है. समाज की कुप्रथाएं और बंद विचारधाराएं आज भी मौजूद है, ऐसे में आजादी सिर्फ कहने भर है, वास्तव में कही भी नहीं है. कठिन संघर्ष से मिली इस आजादी को किसी ने संजोया नहीं बल्कि जाति, धर्म, वर्ण, भाषा आदि का नाम देकर कभी इसे एक नहीं होने दिया. कहने के लिए भारत के नागरिक सर्वशक्तिशाली है, लेकिन इसका उदहारण देखने को नहीं मिला, कोरोना कहर में सब कुछ आँखों के सामने स्पष्ट है. बेसिक धरातल पर इस पर मंथन करने की आज जरुरत है. इसी बात पर टीवी जगत के कलाकारों ने अपनी-अपनी विचारधाराएं रखी है, आइये जानते है क्या कहते है वे.

ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम एक्ट्रेस शिल्पा रायजादा कहती है कि आज़ादी की बात अगर मैं करूं तो महिलाओं के बारें में ही करना चाहूंगी. लड़कियों को आज़ादी आज भी नहीं मिली है. कई ऐसे परिवार है जहां बेटी और बहू में फर्क महसूस करवाया जाता है. बेटी अगर बिना सिर ढके घूम सकती है तो बहू क्यों नहीं. इसे बहुएं कहने से भी डरती है, क्योंकि पारिवारिक समस्या हो सकती है. मैं चाहती हूं कि आज़ादी लोगों के माइंड सेट में होने की जरुरत है, ताकि उनके विचार विकास के लिए हो, घुटन के लिए नहीं.

 

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❤️ with my lovely ladies #yrkkh @swatichitnisofficial @simrankhannaofficial @niyatijoshiofficial

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एक्टर विजयेन्द्र कुमेरिया कहते है कि 74 साल के इस स्वाधीनता में बहुत कुछ विकास करने की जरुरत है. जिसमें हेल्थकेयर,गरीबी, शिक्षा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे लाना, सेनिटेशन आदि पर ध्यान देने की जरुरत है. फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की बात कही जाय तो इसमें कभी आजादी मिलती है कभी नहीं, क्योंकि इसमें लोग सोशल मीडिया का अधिक प्रयोग करते है, जिसमें वे इसके नियमावली और फैक्ट को जाने बिना कुछ भी ट्रोल करते है, जो अच्छा नहीं लगता.

विकास सेठी के हिसाब से 7 दशक की इस आज़ादी के बाद भी हम आज ये सोचने पर मजबूर है कि हम कितने आज़ाद है? हमें आज़ादी उतनी नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी. मीडिया और राजनीति की दबाव की वजह से फ्रीडम ऑफ़ स्पीच अब नहीं रही. हमें और समाज को खुले विचारों के साथ इस बारें में सोचने की जरुरत है. जजमेंटल होने की आवश्यकता नहीं है. साथ ही कलाकार, गायक, लेखक सभी को आगे बहुत कुछ कहने की जरुरत है.

आशना किशोर कहती है कि आज़ादी 74 वर्ष में कदम रख दिया है, हम आजाद कहे जाते है, पर मानसिक सोच, विचारधारा में आज़ादी के लक्षण नहीं दिखते. बेटा बेटी में फर्क, धर्म, जाति, रंग भेद आज भी हर रूप में कही न कही मौजूद है. इससे बाहर निकल कर अगर हम कुछ सोच सकेंगे तभी सही मायने में हम आजाद होंगे. ये बदलाव तभी संभव हो पायेगा, जब लोग खुद इसमें पहल करेंगे.

ध्रुवी हल्दंकर कहती है कि मैं अपने आपको आजाद समझती हूं, क्योंकि मैं अपने शहर से दूर वर्किंग वुमन हूं और अपने सपनो को आगे ले जारही हूं. इसमें मुझे पति की सरनेम की जरुरत किसी फ्लैट को किराये पर लेने के लिए नहीं चाहिए , क्योंकि ये बड़ी शहर है, लेकिन गांव में अभी भी मजदूरों को सम्मान नहीं मिलता, किसान आत्महत्या करते है, ऑनर किलिंग होती है, रेप विक्टिम आज भी है. इसके अलावा बेसिक जरुरत की सारी चीजे, मसलन सही टॉयलेट, सेनिटेशन, गरीबी आदि पूरे देश में दिखाई पड़ती है, जो मेरे लिए दुखद है. ‘फ्रीडम ऑफ़ स्पीच’ आज नहीं है, ये केवल रसूखदार इन्सान को ही मिलता है.

जान्हवी सेठी के हिसाब से मैं ‘माई जिंदगी फाउंडेशन’ की को फाउंडर हूं और ये मानती हूं कि आजादी के इतने सालों बाद भी व्यक्ति अपनी मानसिक अवस्था के बारें में खुलकर बात नहीं कर सकता. समाज इसे स्वीकारता नहीं. मैं चाहती हूं कि आगे लोग इस बारें में बेझिझक बात करें और मानसिक अवसाद से अपने आप को मुक्त कर सकें.

jahnvi

आर्विका गुप्ता कहती है कि हमारा कर्तव्य केवल 15 अगस्त को एक दिन मनाना नहीं ,बल्कि उसके अर्थ को समझना है, क्योंकि इसमें हर इंसान को ये सोचने की जरुरत है कि वह अपने तरीके से देश में क्या बदलाव ला सकता है, ताकि पूरा देश उसके साथ चल सकें. कुछ व्यक्ति हमारे अधिकारों की बाते करते है, जो सुनने में अच्छा लगता है, पर वे खुद उसे फोलो नहीं करते. लड़कियों को सम्मान आज भी नहीं है. एक अकेली लड़की आज भी सडक पर अकेले चलने से डरती है. उसकी आजादी कहाँ है?भ्रष्टाचार को हटाना केवल सरकार का काम नहीं, हर इंसान को उस दिशा में कदम बढ़ाने की जरुरत है.

 

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धारावाहिक ‘हमारी देवरानी’ फेम उर्वशी उपाध्याय शारले का कहना है कि इस बार का 15 अगस्त 74 वा आज़ादी का वर्ष है. इस दिन हम सब अंग्रेजी शासन से मुक्त हुए थे, लेकिन जितनी आज़ादी हमें अब तक मिल जानी चाहिए थी वह अभी तक नहीं मिली है. हमारी बुनियादी जरूरते और अधिकार तक नहीं मिल पाया है. शिक्षा जो आज तक सही नहीं है. सरकारी स्कूलों और प्राइवेट स्कूल्स की पढाई में जमीन आसमान का अन्तर है. उसे ठीक करने की आवश्यकता है. इसके अलावा सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पताल की चिकित्सा पद्यति में भी काफी अंतर है. ऐसा क्यों है? जबकि विदेशों में सरकारी और प्राइवेट में अंतर न के बराबर है. क्या देश इन दो बेसिक राइट्स भी जनता को नहीं दे सकती, फिर हम आज़ाद कैसे हुए? सोचने वाली बात है.

 

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Whatever good for your #soul do that🤍 . . . #urvashiupadhyay #goodvibes #rainyvibes #pure #white #rainbow #television #actress

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15 August Special: 1947 में जिन्होंने भुगता दुनिया का सबसे बड़ा विस्थापन कहानी उन रिफ्यूजियों की….!

उनके बारे में अनगिनत कहानियां हैं. ज्यादातर सच, कुछ झूठी और बहुत सारी काल्पनिक. उन पर अब तक लाखों लेख लिखे जा चुके हैं,हजारों  कहानियाँ छप चुकी हैं. सैकड़ों उपन्यास, दर्जनों फिल्में, बीसियों धारवाहिक और उनके अनगिनत जुबानी किस्से लोगों ने सुन रखे हैं. फिर भी लगता है उनका दर्द अभी भी पूरी तरह से बयां नहीं हुआ. हो भी नहीं सकता. आज भी किसी बूढ़े रिफ्यूजी को कुरेद दीजिये तो उसकी आपबीती आपको रुला देगी. विस्थापन के इतिहास में भारत-पाक बंटवारे के की कहानी सबसे त्रासद है. यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन था. दोनों तरफ के 1 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोग इससे सीधे-सीधे प्रभावित हुए थे. विभिन्न दस्तावेजों के मुताबिक़ 15 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे. लाखों लोग हमेशा के लिए अपाहिज हो गए थे. इस बंटवारे से जहाँ 1.20 करोड़ हिंदू तात्कालिक पूर्वी पाकिस्तान या मौजूदा बांग्लादेश में दोयम दर्जे के नागरिक बन जाने को मजबूर हो गए थे वहीं  4 करोड़ से ज्यादा भारत में रह गए मुसलमानों को भी अतिरिक्त डर के साथ जीना पड़ा.

भारत और पाकिस्तान के इतिहास में यह वैसी ही त्रासदी है जैसे पोलैंड और हंगरी के खाते में पहला और दूसरा विश्व-युद्ध. किसी को नहीं लगता था कि विभाजन हो ही जाएगा. यहाँ तक कि जिन्ना को भी. पाकिस्तान बनने के बाद उन्होंने एक बार मीडिया वालों के सामने और कहते हैं एक बार नेहरू से बात करते हुए भी यह कहा था. भले बाद में लोगों ने इसे जिन्ना का मजाक समझा हो मगर हकीकत यही थी की कि लोगों के साथ-साथ नेताओं को भी आखिरी तक लगता था कि शायद बंटवारा नहीं होगा. अंत आते आते बात बन ही जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अंततः बंटवारा हो ही गया. जिसकी सबसे वजनदार दस्तक फरवरी 1938 में ऐसा न चाहने वाले लोगों ने तब सुनी जब महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच विभाजन को रोकने वाली बातचीत बिना किसी नतीजे के खत्म हो गयी.

गांधी-जिन्ना बैठक के बेनतीजा हो जाने या नाकामयाब हो जाने के बाद ही साल 1938 के अंत और 1939 की शुरुआत में मुस्लिम लीग ने “मुसलमानों के उत्पीड़न” की जाँच के लिए एक समिति बनाई. इस समिति ने मानों विभाजन की आशंकित कहानी में जान डाल दी. यह विभाजन की सबसे मजबूत कड़ी साबित हुई. इसी के बाद 23 मार्च 1940 का वह दिन आया, जब मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में पकिस्तान को लेकर एक प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव पाकिस्तान की तरफ कदम बढाने का पहला ठोस व दस्तावेजी कदम था. अगर वास्तव में हमारे राजनेता मुस्लिम लीग को लेकर खुशफहमी का शिकार न होकर दूरदर्शी होते तो इसे ठोस रूप न लेने देते. जिन्ना-गांधी की बातचीत के कई और दौरों की कोशिश करते तो यह कदम रुक जाता जिसके बाद मुस्लिम लीग वालों के लिए पाकिस्तान हासिल करना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया.

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इसी प्रस्ताव को बाद में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ के नाम से जाना गया. इसके तहत एक पूरी तरह आजाद मुस्लिम देश बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया. ठीक उन्हीं दिनों भारत स्थित ब्रिटिश वायसराय लिनलिथगो ने अगस्त प्रस्ताव की घोषणा की. जिसे कांग्रेस और लीग दोनों ने एक जैसे तर्कों के साथ खारिज कर दिया जो इस बात का सबूत था कि अब भी दोनों कई बातों पर एक जैसी राय रखते थे यानी उनके बीच सहमति की गुंजाइश थी. हालाँकि जब कांग्रेस ने उन्हीं दिनों अंग्रेजी शासन के खिलाफ असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया तो मुस्लिम लीग ने साथ तो नहीं दिया, लेकिन विरोध भी नहीं किया. जो एक किस्म से अंग्रेजों की खिलाफत ही थी. 11 मार्च 1942 को ब्रिटिश संसद में घोषणा की गई कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाजवादी नेता सर स्टिफर्ड क्रिप्स को जल्द ही नए सुझावों के साथ भारत भेजा जाएगा जो राजनीतिक सुधारों के लिए भारतीय नेताओं से बातचीत करेंगे. घोषणा के मुताबिक 22-23 मार्च 1942 को सर स्टिफर्ड क्रिप्स दिल्ली आए. उन्होंने भारतीय नेताओं से लंबी बातचीत की और 30 मार्च को क्रिप्स प्रस्ताव प्रकाशित हुआ.

कांग्रेस ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को सिरे से खारिज कर दिया. अब भी मुस्लिम लीग अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के साथ ही थी, यह अलग बात है कि बयानबाजी में अब लीग कांग्रेस से अपनी दुश्मनी दिखाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देती थी. गाँधी और जिन्ना ने सितंबर 1944 में पाकिस्तान की मांग पर फिर बातचीत शुरू की जिसकी इस बार भी बैठक के पहले न तो कोई ठोस भूमिका बनाई गयी और न ही पोस्ट डिस्कशन के बारे में कुछ अनुमान लगाया गया. बहुत कैजुअल बातचीत शुरू हुई कुछ इस अंदाज में जैसे दोनों पक्षों को पहले से ही पता हो कि यह तो टूटनी ही है. गांधी-जिन्ना बैठकों को लेकर अगर गंभीरता से होम वर्क किया गया होता तो शायद बंटवारा रुक जाता. जिन्ना अपनी कामयाबियों से अब उत्साहित हो गए थे और उन्हें पाकिस्तान पहले चाहिए था आजादी बाद में. दरअसल उन्हें टूट रही वार्ताओं के बीच कांग्रेस में न दिखने वाली बेचैनियों ने हौसला भर दिया था.

जिन्ना बुद्धिमान व्यक्ति थे वह समझ गए थे कि कांग्रेस ने मन ही मन पाकिस्तान को मान्यता दे दी है. क्योंकि गांधी 5 सालों से उसी टेक में अटके थे कि पहले आजादी मिल जाए फिर हिंदू बहुमत वाली अस्थायी सरकार,मुसलमानों की पहचान सुरक्षित रखने का ठोस आश्वासन दे. जाहिर है इस बातचीत में रचनात्मकता का अभाव था. नतीजतन 1946 में मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से खुद को अलग कर लिया और आंदोलन छेड़ दिया इसी के बाद से बाद देश भर में मारकाट शुरू हो गई और बंटवारा रोकना करीब-करीब असम्भव हो गया. त्रासद बंटवारे का खौफनाक टेलर तब के कलकत्ता में 16 से 18 अगस्त 1946 के बीच दिखा जब ‘ग्रेट कैलकटा किलिंग्स’ हुई. इस त्रासद घटना में 4000 से ज्यादा लोग मारे गए. हजारों घायल हुए और लगभग एक लाख लोग बेघर हुए.

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इसी हिंसा की आग पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले और बिहार तक फैली. आजादी वाले साल की शुरुआत बिलकुल बेरौनक और खौफ से भरी थी. 28-29 जनवरी1947 की एक लंबी मीटिंग के बाद मुस्लिम लीग ने संविधान सभा को भंग करने की मांग की और एक हफ्ते बाद ही पंजाब में भी सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो गई. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन जून 1948 तक भारत छोड़ देगा और लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय का पद संभालेंगे. 24 मार्च को लॉर्ड माउंटबेटन ने वायसराय  और गवर्नर जनरल के पद की शपथ ली. 15 अप्रैल को गांधी और जिन्ना ने मिलकर आम लोगों से हिंसा और अव्यवस्था से दूर रहने की अपील की. अब तक गांधीजी जी भी बंटवारे को नियति मान चुके थे. 2 जून को माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से विभाजन की योजना पर बात की और 3 जून को नेहरू, जिन्ना और सिख समुदाय के प्रतिनिधि बलदेव सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में इस योजना के बारे में जानकारी दी.

आखिरकार 14 अगस्त को एक नया मुल्क पाकिस्तान बन गया. भारत का बंटवारा हो गया. आजादी देने के नाम पर अंग्रेज अपने षड्यंत्र में कारगर हो गए और दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा मानव विस्थापन इस उपमहाद्वीप को विरासत के रूप में सौंप दिया. जिसे आज भी दोनों देश आजादी के बोझ के रूप में ढो रहे हैं.

Suicide के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए CINTAA ने उठाया ये कदम, पढ़ें खबर

बॉलीवुड के कलाकारों के चेहरे पर लगे मेक-अप के पीछे छिपा असली चेहरा तब सामने आता है, जब किसी के खुदकुशी करने जैसी भयावह खबर और उनके स्वास्थ्य की असलियत सबके सामने आ जाती है. उल्लेखनीय है कि बॉलीवुड के ऐसे चेहरों को समाज के लिए आदर्श माना जाता है.

CINTAA के ज्वाइंट अमित बहल कहते हैं, “एक एक्टर के मेक-अप की परतों के मुक़ाबले दबाव की परतें अधिक होती है.” वे कहते हैं, “सोशल मीडिया अक्सर कलाकारों के मन में सबकी नज़रों में बने रहने से संबंधित तनाव पैदा करता है. इंडस्ट्री महज़  सतत शोहरत और सतत आय का ज़रिया नहीं है. लॉकडाउन ने यकीनन लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी तनाव पैदा कर दिया था, जिसने लोगों में अनिश्चित भविष्य के मद्देनजर डिप्रेशन में जाने पर मजबूर कर दिया. मगर सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिशन (CINTAA) एक अमीर संस्था नहीं है.” वे कहते हैं, “हम अपने सदस्यों तक पहुंचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं और सिर्फ़ महामारी के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के काम आते हैं. CINTAA ने अब ज़िंदगी हेल्पलाईन के साथ साझेदारी की है जो ऐसे जानकारों व हमदर्दों के केयर ग्रुप से बना है जो काउंसिंग कर लोगों की मदद करता है. CINTAA की कमिटी में साइकियाट्रिस्ट, साइकोथेरेपिस्ट, साइकोएनालिस्ट और साइकोलॉजिस्ट का शुमार है. हम इस मुद्दे को लेकर काफ़ी गंभीर हैं और इसे लेकर लोगों की सहायता करना चाहते हैं.”

CINTAA ने खुदकुशी जैसे मुद्दे को उस वक्त गंभीरता से लिया जब संस्था की सदस्य प्रत्युशा बैनर्जी ने 2015 को आत्महत्या कर ली थी. तब से लेकर अब तक संस्था की केयर कमिटी और आउटरीच कमिटी ने कई सेमिनारों और काउंसिंग सत्रों का आयोजन किया है, जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य व योग के सत्रों व साथ ही तनाव, डिप्रेशन, आत्महत्या से बचाव जैसे उपायों पर अमल किया जाता रहा है.”

वे कहते हैं, “हमने यौन उत्पीड़न और #MeToo मूवमेंट में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी. हमने इसपर एक वेबिनार भी किया था. ऐसे ही एक वेबिनारों का आयोजन हमने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मनोचिकित्सक अंजलि छाबड़िया के साथ भी किया है. हमने सोशल मीडिया पर कई सुइसाइड हेल्पलाइन और नंबर भी साझा किये हैं.” अमित कहते हैं कि CINTAA ऐसे बड़े फ़िल्म स्टूडियोज़, हितधारकों, ब्रॉडकास्टरों और कॉर्पोरेट कंपनियों को भी संपर्क करने की कोशिश कर रही है जो अपने CSR के तहत पैसों का योगदान दे सकते ताक़ि कलाकारों और तकनीशियनों के लिए एक 24/7  हेल्पलाइन स्थापित की जा सके.”

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ज़िंदगी हेल्पलाइन की संस्थापक अनुषा श्रीनिवासन कहती हैं, “अपने देश मानसिक बीमारी को कलंक समझा जाता है. कलाकारों को अमर शख़्सियतों के तौर पर देखा जाता है और डिप्रेशन और उत्कंठा को कुछ यूं समझा जाता है जैसे ये शब्द शब्दकोश में हैं कि नहीं. लेकिन उनकी ज़िंदगी व शोहरत संक्षिप्त होती है. वो दूसरों से मदद मांगने में भी असमर्थ होते हैं. गौरतलब है कि हाल के दिनों में दीपिका पा्दुकोण मानसिक बीमारी को लेकर काफ़ी सक्रिय रही हैं और लोगों के सामने वो एक मिसाल के तौर पर उभरी हैं और उन्होंने दूसरों की राह को और आसान बना दिया है. ऐसे में ज़िंदगी हेल्पलाइन एक अहम बदलाव लाने में कारगर साबित होगा.”

वे कहती हैं, “इस ग्रुप में जानकार और हमदर्द होंगे और मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों की अच्छी देखभाल की जाएगी और उन्हें समय पर सहूलियतें मुहैया कराई जाएंगी. एक-दूसरे की मदद करना ही हमारा उद्देश्य है.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हम में से  अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकि‍न कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वीता के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की दौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को भुला बैठते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक संकरी सी रेखा होती है.

चूंकि इस इंडस्ट्री में काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाइफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपटी सी होती है. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. कई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. कई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह की पहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं जैसे कि यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हममें अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकिन कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वी के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की हदौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को खो देते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक पतली सी रेखा होती है.

चूंकि काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाईफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपेट से होते हैं. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. क ई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. क ई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह के बहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

 

नई Hyundai Verna का शानदार लुक आपको हैरान कर देगा

नई हुंडई वरना कार ग्राहकों को काफी लुभा रही है. कंपनी ने पुराने मौडल की जहग इस गाड़ी को ज्यादा बोल्डएडवांस्ड, अट्रैक्टिव और परफॉर्मेंस अवतार में उतारा है.

नई हुंडई वरना अब डुअल-टोन डायमंड-कट अलॉय व्हील 16-इंच रबर में मिलेगी. वहीं इसके बाहरी लुक को कंपनी ने काफी लग्जरी लुक दिया है. साथ ही कार को नए रियर बंपर के साथ अपडेट भी किया है.

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वरना पहली ऐसी ऐसी कार है जो लुक के मामले से पहले से ही अट्रैक्टिव है. इसे और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए ट्विन टिप मफलर का इस्तेमाल किया है. यानी इसकी डिजाइन ऐसी है जो आपको हैरान कर सकती है. तो अब आपको कोई और कार देखने की जरूरत नहीं हैक्योंकि Hyundai Verna #BetterThanTheRest है.

सुशांत सिंह राजपूत केस में वरुण धवन ने की CBI जांच की मांग तो KRK ने लगाई लताड़

बौलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड का मामला फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं राजनीति में भी सुर्खियों में हैं. जहां सुशांत का परिवार और फैंस उन्हें न्याय दिलाने के लिए हर तरह से कोशिश कर रहे हैं. वहीं फैंस के साथ-साथ कई स्टार्स भी उनका सपोर्ट कर रहे हैं. बीते दिनों सुशांत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे और एक्ट्रेस कृति सेनान जैसे बॉलीवुड के और कई सितारों ने सरकार से सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच करने की गुहार लगाई थी. वहीं अब इन सितारों में एक्टर

वरुण धवन का भी नाम शामिल हो गया है. लेकिन लोगों को उनकी यह मांग कुछ खास पसंद आ रही है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

सुशांत के लिए वरुण ने की थी मांग

दरअसल, कुछ समय पहले ही वरुण धवन ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर ‘सीबीआई फॉर एसएसआर’ लिखकर इस मुहिम में हिस्सा लिया था. वह बात अलग है कि सुशांत सिंह राजपूत के लिए पोस्ट लिखकर वरुण धवन केआरके के निशाने पर आ गए हैं.

ssr

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केआरके ने कसा तंज

वरुण धवन की इस मांग पर तंज करते हुए केआरके ने लिखा कि, ‘सड़क 2 के ट्रेलर को जनता ने बहुत बुरी तरह से नकार दिया है. फिल्म सड़क 2 के ट्रेलर को देखकर बॉलीवुड के सभी स्टार किड्स यहां की जनता से बुरी तरह से डर गए हैं, जिसके बाद ये सभी सितारे जमीन पर आ चुके हैं. अब ये सभी सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. अब ये लोग भी चाहते हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की मर्डर मिस्ट्री को सुलझा लिया जाए. पिछले 60 दिनों से ये सभी स्टारकिड्स मुंह में दही जमा कर बैठे थे. अब इन लोगों को इंसाफ चाहिए.’

सड़क 2 के ट्रेलर को इतने लोग कर चुके हैं नापसंद

बीते दिनों रिलीज किए गए स्टार किड आलिया भट्ट और संजय दत्त की अपकमिंग फिल्म ‘सड़क 2’ के ट्रेलर को 2 दिनों में 8 मिलियन से भी ज्यादा लोग नापसंद कर चुके है. इतना ही नहीं कुछ लोग ट्रेलर पर भद्दे कमेंट्स भी लिख रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुशांत के फैंस का बौलीवुड के स्टारकिड्स पर कितना गुस्सा है.

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पिता की हालत के लिए नायरा को जिम्मेदार ठहराएगा कार्तिक! क्या फिर अलग होंगे ‘कायरा’

बीते दिनों सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ टीआरपी देखकर लगता है कि फैंस को सीरियल में आने वाले ट्विस्ट खास पसंद नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते मेकर्स नायरा-कार्तिक को एक बार फिर अलग करने का मन बना रहे हैं. हालांकि सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ 3000 एपिसोड पूरे होने के बाद भी शो के किरदारों की फैन फॉलोइंग में अभी भी कोई कमी नहीं आई है. लेकिन फैंस को एंटरटेन करने के लिए मेकर्स कहानी को नया ट्विस्ट लाने का मन बना लिया है, जिसका अंदाजा हाल ही में रिलीज किए गए प्रोमो से लगाया जा सकता है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

क्या एक बार फिर अलग होगी नायरा कार्तिक की जोड़ी

यह टीवी की दुनिया का सबसे ज्यादा लम्बा चलने वाला शो है, जिसे दर्शक बेशुमार प्यार करते हैं. ताजा रिपोर्ट की बात करें तो कार्तिक और नायरा की जोड़ी में एक बार फिर से दरार आने वाली है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के मेकर्स ने एक प्रोमो जारी किया है, जिसमें कार्तिक और नायरा दोनों लड़ाई करते नजर आ रहे हैं.

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पिता का एक्सीडेंट बनेगा वजह

दरअसल, प्रोमो की मानें तो नायरा की कार से हुआ एक एक्सीडेंट इसकी वजह बनेगा, जिस कारण कार्तिक का गुस्सा सांतवा आसमान पार कर जाएगा. वहीं बीते दिनों एक प्रोमो में कार्तिक को उसके पिता का ख्याल रखते हुए दिखाया गया था, जिसमें यह भी देखने को मिला था कि कार्तिक के पिता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं.

 

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That difference in their speech “mere paapa” and “hamaare papa” 😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭 PS: if kartik had to do this again then what is the use of again bringing them together…I don’t understand this patch up and separation game…. How many more times will a person commit the same mistake..I’m really fed up of kartik’s actions… sometimes feel like kartik’s love is timely,…. Ps2: no negativity just my review will see what happens 🙏🙏🙏🙏 ______________________________________________ #yrkkh #yehrishtakyakehlatahai #kaira #kairav #shivangijoshi #mohsinkhan #kartikgoenka #nairagoenka #shivin #starplus #serial #kairalove #kairaromance _______________________________________________ @shivangijoshi18 @khan_mohsinkhan @vyasbhavna @abdulwaheed5876 @mehzabin.khan_ @yashoda.joshi.33

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बता दें, जल्द ही शो में तीज का सेलिब्रेशन देखने को मिलने वाला है, जिसमें नायरा को एक नई खुशी का पता लगने वाला हैं. हालांकि इस खुशी के साथ नायरा का एक फैसला कार्तिक और उसकी जिंदगी बदलने वाला है.

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