लौकडाउन के बाद कपिल शर्मा के शो में होगी सोनू सूद की एंट्री, देखें New Promo

बीते दिनों सभी सीरियल्स और फिल्मों के शूटिंग की इजाजत मिलने के बाद स्टार्स शो के सेट पर नजर आने लगे हैं. हालांकि कोरोनावायरस गाइडलाइन्स के चलते सीरियल्स में स्टार्स का अलग ही लुक देखने को मिल रहा है. इसी बीच फैंस बेसब्री से अपने फेवरेट कौमेडियन कपिल शर्मा (Kapil Sharma)के शो का भी इंतजार कर रहे हैं. लेकिन अब फैंस का इंतजार खत्म हो गया है. हाल ही में सोनी टीवी ने द कपिल शर्मा शो (The Kapil Sharma Show)का नया प्रोमो रिलीज किया है, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में खास…

शो के नए प्रोमो में दिखा कोरोना का असर

कोरोनावायरस के बढ़ते कहर की झलक शो के नए प्रोमो में भी देखने को मिली है. कौमेडी के सितारे शो में लौकडाउन में उनके दिल का हाल सुनाते हुए नजर आ रहे हैं, जिसमें कपिल शर्मा भी अपना दर्द बयां कर रहे हैं.

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ये स्टार होगा पहला मेहमान

मजदूरों को मुंबई से उनके घर तक पहुंचाने वाले एक्टर सोनू सूद शो के पहले एपिसोड में बतौर मेहमान नजर आने वाले हैं. शो की वायरल फोटोज में ‘द कपिल शर्मा शो’ के सेट पर सोनू सूद और कपिल शर्मा मेकअप करते नजर आ रहे हैं.

इस बार नदारद होगी ऑडियन्स

कोरोनावायरस के कहर के चलते ‘द कपिल शर्मा शो’ के नए एपिसोड्स स्‍टूडियो ऑडियन्‍स नहीं दिखेंगी. हालांकि, कपिल शर्मा का कहना है कि वह ऑडियन्‍स को बहुत ज्‍यादा मिस करेंगे. क्योंकिऑडियन्‍स के सामने परफॉर्म करने का अपना चार्म होता है. वहीं 1 अगस्‍त को लॉकडाउन के बाद पहले एपिसोड का प्रसारण किया जाएगा.

 

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बता दें, हाल ही में कपिल शर्मा ने शूट के पहले दिन शो के सेट से फोटोज शेयर की थी, जिसके बाद उनके फैंस का सिर्फ एक सवाल था कि शो के नए एपिसोड कब से देखने को मिलेंगे. वहीं खबरों की मानें तो मेकर्स सभी की सुरक्षा को ध्यान में रख रहे हैं. सेट को लगातार सैनिटाइज करने के अलावा छिड़काव भी किया जा रहा है. साथ ही शो की पूरी यूनिट को सेट पर पहुंचकर तुरंत कपड़े बदलने और घर जाते वक्त भी भी कपड़े बदलने के निर्देश दिए गए हैं, जिसे अच्छे से पालन किया जा रहा है.

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#coronavirus: अगर आपके बच्चे में भी दिख रहे है ये लक्षण तो तुरंत ले डॉक्टर की सलाह

कोरोना का कहर पूरी दुनिया में छाया हुआ है.कोरोना पीडितो की संख्या में दिन पर दिन लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है.व्यस्क से लेकर बच्चों तक कोई भी इसके संक्रमण से बच नहीं पा रहा है.हालांकि इन सभी मामलों में बच्चो की संख्या काफी कम है.

‘मर्डोक चिल्ड्रन रिसर्च इंस्टिट्यूट’ (MCRI) की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा उम्र के लोगों की तुलना में बच्चे इस बीमारी का कम शिकार हो रहे हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे COVID-19 से उतने गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हो सकते हैं,जितना व्यसक हो सकते हैं क्योंकि बच्चो को अक्सर आम सर्दी खांसी जैसी बीमारियाँ बनी रहती है जिससे इनके शरीर में एंटीबाडी बन जाती है. जो उन्हें कोरोना से उतना ज्यादा नुक्सान नहीं पहुचने देती और वो जल्दी रिकवर कर लेते है
हालाँकि जिन बच्चों को जन्मजात हृदय रोग,ब्लड सुगर ,या ब्लड कैंसर जैसी बीमारियाँ है ,उनमें कोरोना के संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

देश के covid हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले संक्रमित बच्चो के स्वस्थ्य होने का प्रतिशत व्यस्क मरीजों की तुलना में काफी बेहतर है.जहाँ एक तरफ संक्रमित बच्चो में 92% बच्चे स्वस्थ्य हुए है और 95% बच्चे तेज़ी से रिकवर भी कर रहे है..वही दूसरी तरफ बच्चो के मौत का आंकड़ा 0.5 % से भी कम है.

लेकिन ये तभी मुमकिन है जब उन्हें वक़्त पर इलाज मिल सके है.जिन बच्चो में कोरोना का लक्षण जल्दी ही नहीं दिख रहा या जिन बच्चो को हॉस्पिटल ले जाने में देरी हो रही है.उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है.
अगर आपके घर में बच्चे है और उनकी उम्र 10 साल से कम है तो आपको इस वायरस से काफी सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि अब तक ये माना जा रहा था की बुखार या खासी होने पर ही कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा हो सकता है.पर अब परेशान करने वाली खबर ये है की अगर आपके बच्चे को पेट दर्द या दस्त की शिकायत हो रही है तो ये कोई मामूली इन्फेक्शन न होकर कोरोना वायरस के लक्षण हो सकते है.केंद्र सरकार और WHO की guideline के मुताबिक 10 साल से कम उम्र के बच्चो में कोरोना का खतरा ज्यादा है इसलिए उन्हें गंभीर श्रेणी में रखा गया है.
10 साल से कम उम्र के बच्चो में व्यसक मरीजो की तुलना में चौकाने वाले लक्षण देखने को मिले हैं.40% बच्चे जो कोरोना से संक्रमित है ,इनमे लक्षण के तौर पर पेट में इन्फेक्शन पाया गया .ऐसा इसलिए ही क्योंकि छोटे बच्चे खेलते वक़्त हाथ धोने या हाथों को sanatize करने की एहतियात नहीं बरत पाते.जिससे उनमे खेल कूद के दौरान मिटटी या ज़मीन के संपर्क में आने से कोरोना के संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है.
MCRI के डॉक्टर कर्स्टन पैरेट का कहना है कि बच्चों में नजर आने वाले सामान्य से लक्षणों को इग्नोर न करें.अब तक कोरोना से संक्रमित बच्चो में 5 तरह के लक्षण ज्यादा देखने को मिले हैं.

1-अचानक तेज़ बुखार
२-सर्दी खांसी और गले में खराश
३-दश्त की शिकायत होना या पेट में मरोड़ उठना.
4- साँस लेने में कठिनाई
५- त्वचा के रंग में बदलाव, जिसमें नीले होंठ या चेहरे शामिल हैं

अगार आपके बच्चे में इनमे से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो बिलकुल भी लापरवाही न बरते, तुरंत उसका checkup कराये या डॉक्टर की सलाह ले.
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर पेरेंट्स कुछ बातों का ध्यान रखे तो बच्चो को काफी हद तक कोरोना के संक्रमण से बचाया जा सकता है.
1-बच्चो के लिए पूरी नींद जरूरी
2 -बच्चो को रोजाना exercise करवाएं.
3 – घर में बच्चों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, और हैंड वॉश जैसी महत्वपूर्ण बातों की जानकारी दें.

4-घर के खिड़की दरवाज़े खुले रखे.
5 -immunity बढाने वाला खाना खिलाये और जंक फ़ूड से दूरी बनाये.
6 -ताज़ा खाना परोसे . डाइट में हरी सब्जियां, फल, दूध, अंडा और वेजिटेबल सूप जैसी चीजों को शामिल करें.

 जब पति फूहड़ कह मारपीट करने लगे

 किसी भी पति को अपनी पत्नी पर हाथ उठाने का हक नहीं होना चाहिए भले ही वह दावा करे कि उसे फूहड़ पत्नी मिली है, वह उस से परेशान है. किसी भी स्त्री को यह कह कर प्रताडि़त किया जाना बेहद शर्मनाक है.

एक छोटे से शहर की मेधा जब विवाह के बाद एक बड़े शहर में आई तो वह बहुत खुश थी. सुशिक्षित थी, सुंदर थी, पर पति को बातबात पर उसे फूहड़ कह कर अपमान करने की आदत थी.

मेधा बताती है, ‘‘मेरा पति विनोद मु झे फूहड़ कह कर ऐसीऐसी जलीकटी सुनाता है कि मेरा मन कराह उठता है. मैं छोटे शहर की हूं, यह तो उसे शादी के समय भी पता था. मेरे जीने के आसान तरीके उसे फूहड़ों वाले लगते हैं. कहता है कि तुम फूहड़ हो, मु झे तो डर लगता है कि तुम बच्चों को भी कैसे संभालोगी, तुम्हारे जैसी फूहड़ तो मां कहलाने के लायक भी नहीं होगी. सब मु झे ही देखना पड़ेगा.

‘‘वह मु झे फूहड़ कह कर सारा पैसा अपने पास रखता है. मु झे फूटी कौड़ी भी नहीं देता. अब तो फूहड़ कहने के साथसाथ हाथ भी उठाने लगा है. बेकार की बातों पर मेरा अपमान करना उस की आदत बन गई है. तभी तो बच्चे भी नहीं हुए. होंगे तो उन के सामने भी फूहड़ कह कर यही सब करेगा. सोच कर ही बहुत परेशान रहने लगी हूं.’’

सुमन को ड्राइविंग आती है पर उस का पति उसे कार को हाथ तक नहीं लगाने देता, कहता है कि तुम फूहड़ हो. सुमन बताती है कि शादी से पहले वह अपने पापा की कार चला कर आराम से घर के काम कर आती थी, मगर अब उस का पति कपिल वह कहां है, क्या कर रही है यानी उस की पलपल की खबर रखने के लिए बारबार फोन करता है. वह गलती से भी किसी बात पर अपनी राय जाहिर कर दे तो उस पर हाथ तक उठा देता है, इसीलिए अब वह अपने मन की बात जबान पर नहीं लाती.

किस ने दिया पिटाई का हक

अपनी पत्नी को फूहड़ कह कर उस पर हाथ उठाने वाला हर पति यह कहता है कि उस का इस में कोई कुसूर नहीं है पत्नी ही उसे गुस्सा दिलाती है. परिवार के दोस्त भी ऐसे पतियों की बातों में आ जाते हैं और मानने लगते हैं कि पत्नी ही फूहड़ होगी, जिस वजह से पति परेशान हो कर कभीकभी हाथ उठा देता होगा. मगर यह तो वही बात हुई कि उलटा चोर कोतवाल को डांटे यानी पत्नी मार भी सहे और अपने को फूहड़ कहलाए जाने की बदनामी भी  झेले, जबकि सच यह है कि मारपीट की शिकार पत्नी अपने पति को खुश रखने के लिए क्या कुछ नहीं करती. पति का पत्नी को मारना किसी भी हालत में उचित नहीं ठहराया जा सकता.

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पत्नी के साथ दुर्व्यवहार एक ऐसा मामला है, जिसे आसानी से नहीं सुल झाया जा सकता. ऐसी पत्नियों की मदद करने के लिए पहला कदम यह उठाया जा सकता है कि हम प्यार से उन की हर बात सुनें. हम यह याद रखें कि मारपीट की शिकार औरतों को यह बताना अकसर बहुत मुश्किल लगता है कि उन पर क्या बीत रही है. जैसेजैसे ये महिलाएं अपने हालात का सामना करना सीखती हैं, हर कदम पर उन की हिम्मत बंधाई जानी चाहिए. फिर चाहे ऐसा करने में कितना ही समय क्यों न लगे.

पत्नी ले सकती कानून की मदद

मारपीट की शिकार कुछ औरतों को शायद कानून की मदद लेने की जरूरत हो सकती है. कभीकभी बात हद से पार हो जाने पर पुलिस की दखलंदाजी पति को यह एहसास दिला सकती है कि उस की हरकत मामूली नहीं. उसे उस के किए पर शर्मिंदा किया जा सकता है. यह भी होता है कि मामला रफादफा होने पर ऐसा इंसान अकसर पश्चात्ताप या बदलने का कोई भी इरादा अपने मन से निकाल देता है.

ऐसे मामले में अंजलि अपना अच्छा अनुभव बहुत खुशी से शेयर करती हुई कहती है, ‘‘मेरी शादी हुई तो मैं सच में कई चीजों में बहुत फूहड़ थी. न खाना ठीक से बनाना आता था, न साफसफाई का शौक था. मेरे पति अजय को हर चीज ठीक से करने की आदत थी. उसे मु झ पर  झुं झलाहट होती, पर मैं  झट सौरी बोल कर काम में लग जाती और फिर वह प्यार से मु झे सिखाता चला गया और मैं सीखती चली गई. मेरी सासूमां ने भी मु झे कई चीजें बहुत प्यार से सिखाईं, वहीं अगर ससुराल में सब मु झे फूहड़ बताबता कर ताने मारते तो यकीनन अजय और मेरे संबंध काफी खराब होते. कई पति भी तो कई चीजों में अनाड़ी होते हैं, तब पत्नी भी तो उन के साथ खुशीखुशी ऐडजस्ट करती ही है न. फिर थोड़ाबहुत पति भी कर ले तो इस में क्या बुराई है.’’

सीमा अपना दुखद अनुभव शेयर करते हुए कहती है, ‘‘मु झे अपने पति को छोड़ने में 30 साल लगे. यह लंबा समय मैं ने सिर्फ यह सुनते हुए बिताया कि मैं फूहड़ हूं. बच्चे पूछते हैं कि मैं ने पहले क्यों नहीं अलग रहने के बारे में सोचा. मगर मैं सोचती थी कि बच्चों को कैसे पालूंगी? कहां ले कर जाऊंगी, पति न होने से मारपीट करने वाला पति ही ठीक है, पर आज सोचती हूं कि मैं कितनी गलत थी. अपनी लाइफ का कितना समय मैं ने दुखों में बिता दिया. हम कितने ही तरीकों से ऐसे रिश्ते में खुद को बांधे रहने में खुद को ही सम झाते रहते हैं, जबकि हाथ उठाने वाले पति को छोड़ने का एक यही कारण ही बहुत बड़ा है.’’

पेरैंट्स से न छिपाएं

अगर किसी भी पत्नी को फूहड़ कहकह कर उस पर हाथ उठाया जाता रहे तो उसे अपने पेरैंट्स से यह समस्या शेयर कर लेनी चाहिए और इस पर स्ट्रौंग ऐक्शन लेना चाहिए. कई बार पत्नी ही यह सोचने लगती है कि इस मारपीट की वही जिम्मेदार है. उसी ने अपने पति को गुस्सा दिलाया है. मगर यदि यह सिलसिला रुक न रहा हो तो पुलिस की हैल्प लेने की धमकी भी दें. अगर उसे यह सिर्फ धमकी लगे तो पुलिस की हैल्प लेने से पीछे न हटें. किसी भी सूरत में अपने साथ मारपीट न होने दें.

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पत्नी पर हाथ उठाने का कोई भी कारण बताया जाए, स्वीकार्य नहीं है. अगर पत्नी ने यह मारपीट रोकने के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया तो यह मारपीट कभी नहीं रुकेगी. एक स्त्री बहुत कुछ सहन कर लेती है. बचपन में भेदभाव, ससुराल के उलाहने सहने के बाद भी नहीं टूटती, पर वह तब टूट जाती है जब वह जिस के लिए सबकुछ छोड़ आती है, वही उस के साथ दुर्व्यवहार करता है.

हमारी वर्जिनिटी हमारे लिए नहीं, तो बचाएं क्यों ?

हमारे शास्त्रों और सामाजिक व्यवस्था ने वर्जिनिटी को विशेषरूप से महिलाओं के चरित्र के साथ जोड़ कर उन के लिए अच्छे चरित्र का मानदंड निर्धारित कर दिया है. जबकि, समाज में वर्जिनिटी की परिभाषा इस के बिलकुल उलट ही है.

दरअसल, समाज और शास्त्रों के अनुसार इस का अर्थ है कि आप प्योर यानी शुद्ध हैं. यहां किसी चीज की प्योरिटी की बात नहीं की जा रही है बल्कि लड़की की प्योरिटी की बात की जा रही है. लड़की की वर्जिनिटी को ही उस की शुद्धता की पहचान बना दी गई है. लड़कों की वर्जिनिटी की कहीं भी कोई बात नहीं करता.

आज भी कई जगह वर्जिनिटी टेस्ट के लिए सुहागरात को सफेद चादर बिछाई जाती है. वर्ष 2016 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में खाप पंचायत के ज़रिए लड़के द्वारा लड़की को वर्जिनिटी टेस्ट के लिए विवश किया गया. और जब लड़की इस में फेल हुई, तो दोनों को अलग करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सबकुछ आजमाया गया. परंतु लड़के ने हार नहीं मानी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से उसे न्याय मिला.

समाज में न जाने इस तरह के कितने मामले पड़े हुए हैं, जिन में लड़कियों का जीवन इसलिए नरक बन जाता है क्योंकि वह लड़की वर्जिन नहीं होती. यानी, इस से पहले उस ने किसी के साथ संबंध इच्छा या अनिच्छा से बनाया होगा. इसी वजह से उसे कैरेक्टरलैस और बदचलन मान लिया जाता है.

डा. ईशा कश्यप कहती हैं कि वर्जिनिटी को ले कर हमारा समाज बहुत छोटी सोच रखता है. इस के कारण आज भी लड़कियों की स्थिति दयनीय है. यहां तक कि कई बार तलाक तक हो जाते हैं और लड़की की आवाज को अनसुना कर दिया जाता है.

कल्याणपुर की नलिनी सिंह का कहना है कि आज भी अगर लड़की वर्जिन नहीं है तो शादी के बाद उसे उस के पति और समाज की घटिया सोच का शिकार होना पड़ता है.

इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा अखिला पुरवार ने कहा कि जब लड़कों की वर्जिनिटी कोई माने नहीं रखती तो फिर लड़कियों की वर्जिनिटी को ले कर इतना बवाल क्यों?

हम सब अपने को चाहे कितना मौडर्न कह लें, लेकिन अपनी सोच में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं. यदि वर्जिनिटी पर सवाल उठाना ही है तो पहले लड़के की वर्जिनिटी पर सवाल उठाना होगा क्योंकि वह किसी भी समय किसी भी लड़की को शिकार बना कर उस की वर्जिनिटी को जबरदस्ती भंग कर देता है. लेकिन जब शादी का सवाल आता है तो वह ऐसी किसी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाने के पहले उस के चरित्र पर बदचलन का दाग लगाने में एक पल भी नहीं लगाता.

हिंदू धर्म में परस्पर विरोधी बातें कही गई हैं. एक ओर तो कुंआरी कन्या को देवी मानते हुए कंजिका पूजन की प्रथा का आज भी प्रचलन है, सामान्यतया सभी परिवारों में नवरात्र में छोटी कन्या को भोजन और भेंट देने का रिवाज है, दूसरी ओर सभी शास्त्र, पुराण, रामायण, महाभारत एक स्वर में कहते हैं कि स्त्री आजादी के योग्य नहीं है यानी वह स्वतंत्रता के लिए अपात्र है.

मनुस्मृति में तो स्पष्ट कहा है –

‘पिता रक्षति कौमारे , भर्ता रक्षित यौवने

रक्षंति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातंत्र महेति.’ (मनुस्मृति 9-3 )

स्त्री जब कुंआरी होती है तो पिता उस की रक्षा करते हैं, युवावस्था में पति, वृद्धावस्था में पति नहीं रहा तो पुत्र उस की रक्षा करता है. मतलब यह है कि जीवन के किसी भी पड़ाव पर स्त्री को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है. बात केवल मनुस्मृति तक सीमित नहीं है. महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस की पुष्टि करते हुए कहा कि स्वतंत्र होते ही स्त्री बिगड़ जाती है.

‘महावृष्टि चलि फूटि कियारी जिमि सुतंत्र भये बिगरहिं नारी.‘

महाभारत में कहा गया है कि पति चाहे बूढ़ा, बदसूरत, अमीर या गरीब हो; परंतु स्त्री के लिए वह उत्तम आभूषण होता है. गरीब, कुरूप, निहायत बेवकूफ, या कोढ़ी हो, पति की सेवा करने वाली स्त्री को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है.

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मनुस्मृति कहती है कि पति चरित्रहीन, लंपट, अवगुणी क्यों न हो, साध्वी स्त्री देवता की तरह उस की सेवा करे. वाल्मीकि रामायण में भी इसी तरह का उल्लेख है.

हिंदुओं का सब से लोकप्रिय महाकाव्य ऐसी स्त्री को सच्ची पतिव्रता मानता है जो स्वप्न में भी किसी परपुरुष के बारे में न सोचे. तुलसीदास यहां भी नहीं रुके, उन्होंने उसी युग को कलियुग कह दिया जब स्त्री अपने सुख की कामना करने लगती है.

इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव से आज भी हमारे समाज में विवाह से पूर्व कौमार्य का भंग होना बेहद शर्मनाक माना जाता है अर्थात यह आज भी समाज में पहले की ही तरह लगभग अस्वीकार्य है.

सच कहा जाए, तो इसी यौनशुचिता की रक्षा में हमारा ऩ सिर्फ पूरा बचपन और कौशोर्य कैद कर दिया जाता है बल्कि हमारी बुनियादी आजादी भी हम सब से छीन ली जाती है.

वर्जिनिटी को बचाने का सारा टंटा सिर्फ इसलिए है कि महिलाएं अपने पति को यह मानसिक सुख दे सकें कि वही उन के जीवन का पहला पुरुष है. यह वही है जिस के लिए आप ने स्वयं को सालों तक दूसरे लड़कों और पुरुषों से बचा कर रखा है. शादी से पहले लड़कियों को हजारों तरह के निर्देश दिए जाते हैं… यहां नहीं जाओ, उस से मत मिलो, लड़कों से दूरी बना कर रखो, उस से दोस्ती मत करो, रिश्तेदारों के यहां अकेले मत जाओ, शाम से पहले घर लौट आना आदिआदि.

ये सारे प्रतिबंध सिर्फ कौमार्य की रक्षा को दिमाग में रख कर ही लगाए जाते हैं. सूरत की असिस्टेंट प्रोफैसर कहती हैं कि हम यह भी कह सकते हैं कि ‘वर्जिनिटी हमारी है, लेकिन हमारी हो कर भी हमारे लिए नहीं है.’ इसलिए आजकल लड़कियों का कहना है कि जब यह हमारे लिए है ही नहीं, तो इसे बचाने का क्या फायदा.

हालांकि आज 21वीं सदी में वर्जिनिटी को बचाए रखने का चलन अब फुजूल की बात होती जा रही है परंतु आज भी ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है जो इसे कुछ भी न मानते अपनी वर्जिनिटी तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाती हैं. इन में से कुछ के आड़े अपने संस्कार की हैवी डोज या फिर अगर किसी ने जान लिया तो क्या होगा? या कई बार सही मौका नहीं मिल पाना भी इस की वजह बन जाता है.

वैसे अच्छी बात यह हो गई है कि अब लड़कियां उन्हें बुरा नहीं मानतीं जिन्होंने अपनी मरजी से वर्जिनिटी खोने को चुना है.

मार्केटिंग प्रोफैशनल इला शर्मा बीते कई सालों से मुंबई में रहती हैं. वे कहती हैं कि यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है जिस पर इतना बवाल मचाया जाए. यदि लड़के वर्जिन लड़की च़ाहते हैं तो उन्हें भी पहले अपनी वर्जिनिटी को संभाल कर रखना चाहिए.

लड़कियों की वर्जिनिटी के लिए पूरा समाज सजग है और सब यही चाहते हैं कि लड़कियां वर्जिन ही रहें, लेकिन लड़कों के बारे में ऐसा नहीं सोचा जाता. मुझे समाज के इस दोहरे पैमाने से बहुत तकलीफ होती है.

परंतु वर्जिनिटी को ले कर मुखर निशा सिंह एक चौंकाने वाली बात कहती हैं. उन का कहना है कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि एकदो सैंटीमीटर की कोई नाजुक सी झिल्ली, 5 फुट की लड़कियों के पूरे अस्तित्व पर भारी पड़ सकती है. यह सुनने में अजीब सा लगता है परंतु अफसोस, कि सच यही माना जाता है. एक पतली सी झिल्ली, जिसे विज्ञान की भाषा में ‘हाइमन’ कहा जाता है, लड़कियों के पूरे अस्तित्व को किसी भी पल कटघरे में खड़ा कर सकती है.

वे कहती हैं कि उन की उम्र 40 साल होने जा रही है, लेकिन वे आज भी वर्जिन हैं. कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि इतने सालों घर से बाहर रहने के बावजूद दिमाग की कंडीशनिंग काफी हद तक वैसी ही है. सच तो यह है कि कई बार अपने को आजाद छोड़ने के बाद भी अपने को सहज या नौर्मल नहीं पाती हूं. मुझे लगता है कि मेरे संस्कार और मां पापा का भरोसा तोड़ने से जुड़े अपराधबोध के डर से ही मैं आज तक चाहेअनचाहे वर्जिन हूं.

नोयडा की एक विज्ञापन कंपनी में काम करने वाली नीलिमा घोष वर्जिनिटी पर महिलाओं की सोच की थोड़ी स्पष्ट तसवीर दिखाती हैं, “मुझे लगता है कि लड़के चाहते तो हमेशा यही हैं कि उन की पत्नी वर्जिन हो, अगर नहीं, तो भी चल जाता है. यह चला लेना बताता है कि अंदर ही अंदर लड़कों को इस बात से फर्क पड़ता है, इसलिए उन्हें सच बताना आफत मोल लेना है. इसलिए पति हो या बौयफ्रेंड, उस से झूठ बोलना ही ठीक वरना इस बात को ले कर वह किसी भी समय कोई भी सीन क्रिएट कर सकता है. इसलिए अपने सुखी भविष्य के लिए झूठ बोलना ही अक्लमंदी है.”

वैसे तो आज के समय में समझदार लोगों के लिए वर्जिनिटी का कोई मतलब नहीं रह गया है परंतु यह भी स्वीकार करना होगा कि आज भी यदि किसी वजह से कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खो चुकी है तो लोगों के लिए ‘खेलीखाई’ है और वह सर्वसुलभ है. उस के लिए लोगों का सोचना होता है कि जब एक बार किसी के साथ मजे ले चुकी है तो फिर दूसरों के साथ भला क्या दिक्कत है. तलाकशुदा महिलाएं अकसर इस की शिकार होती हैं. मेरठ के एक प्राइवेट स्कूल की अध्यापिका बुलबुल आर्य कहती हैं, “मुझे लगता है कि कई लोग यह सोचते हैं कि मैं उन के लिए आसानी से उपलब्ध हूं. मेरी तरफ से कोई भी इशारा पाए बिना ही सब यह मान कर चलते हैं कि शादी के बाद मैं सेक्स की हैबिचुअल हो चुकी हूं और अब पति मेरे साथ नहीं हैं, इसलिए वे इस कमी को पूरी करने के लिए आतुर रहते हैं. ऐसी सोच मेरी लिए बहुत डिस्गस्टिंग है कि सिर्फ मेरी वर्जिनिटी खत्म होने से मैं उन सब के लिए अवेलेबल लगती हूं. बुलबुल जैसी लड़कियों के लिए व्यक्तिगत रूप से वर्जिनिटी कोई बड़ा मुद्दा न होते हुए भी बड़ा हो जाता है.”

यौनशुचिता को ले कर चली आ रही सोच का पोषण करते हुए विज्ञान ने हाइमन की सर्जरी जैसे उपायों को भी प्रचलन में ला दिया है. यद्यपि अपने देश में यह अभी शुरुआती दौर में है और काफी मंहगी भी है परंतु यह इशारा करता है कि हम विवाहपूर्व भी अपनी सैक्सुअल लाइफ को जीना और एंजौय करना चाहती हैं लेकिन अपनी ‘अच्छीलड़की‘ वाली इमेज कभी टूटने नहीं देना चाहती हैं. ताकि, पति की तरफ से वर्जिन पत्नी को मिलने वाली इज्जत व प्यार मिल सके.

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वास्तविकता यह है कि वर्जिनिटी के सवाल पर हम कुछ कन्फ्यूज्ड हैं. वर्जिनिटी पर हम एक ही समय पर दो तरह से सोचते हैं. एक ओर तो ऐसे सभी कैरेक्टर सर्टिफिकेट्स को चिंदीचिंदी कर के फाड़ कर फेंक देना चाहते हैं जो वर्जिनिटी बताते हैं, दूसरी तरफ हम खुद ही चाहेअनचाहे उसे बचा कर रखना चाहते हैं.

हमारा समाज और हमसभी अभी भी इस सोच से ग्रसित हैं कि वर्जिनिटी खो चुकी लड़कियां गंदी होती हैं.

मांबाप अपनी बेटियों को विवाहपूर्व यौन संबंधों से बचाने के लिए अकसर ही ‘हम तुम पर बहुत भरोसा करते हैं‘ से भावनात्मक हथियार का प्रयोग करते हैं. ऐसे में यदि कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खत्म करती भी है तो वह अपने मांबाप का त्ररोसा तोड़ने के अपराधबोध से ग्रसित हो जाती है.

वैसे अब देखा जाता है कि लड़कियों में यह चाह तो जागने लगी है कि जैसे लड़कों के लिए वर्जिनिटी खोना कोई मसला नहीं है, वैसे ही लड़कियों के लिए भी क्यों न हो. परंतु अभी तो बहुत कोशिशों के बाद भी हमारा समाज इस मसले पर सहज नहीं है. बस, अब इस पर होने वाले बवाल से बचने के लिए लड़कियां झूठ बोलने में ज़रूर सहज हो गई हैं.

इस संदर्भ में ‘पिंक’ मूवी का उल्लेख करना चाहूंगी जो स्त्री की यौन स्वतंत्रता के प्रति समाज की मानसिकता को जगाने का प्रयास करती है. देह उपयोग को ले कर स्त्री की अपनी इच्छाअनिच्छा को भी उसी अंदाज में स्वीकार करना होगा जैसे कि पुरुष की इच्छाअनिच्छा को समाज सदियों से स्वीकार करता आया है. इस विचार से ‘पिंक’ एक पिक्चर नहीं, बल्कि एक मूवमैंट है. यदि स्त्री को अपने अधिकार के लिए लड़ना है तो आवश्यक है कि समाज का माइंडसैट बदलना होगा.

समाज की धारणा को बदलने के लिए पहले स्त्री को स्वयं अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है.

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कैसी होगी 5 जी के बाद की दुनिया?

चीन और अमरीका के बीच जो कई मोर्चों पर ‘फूं फां’ मची हुई है, उसकी जड़ में 5 जी तकनीक है. दरअसल 5 जी तकनीक के मामले में अमेरिका, चीन से पिछड़ गया है. चीन की कंपनी हुवेई या ख्वावे चीन की तकनीकी ताकत का प्रतीक बन गई है. हुवेई दो साल पहले ही 5 जी तकनीकी विकसित कर चुकी है और 2019 से तो वह चीन में इसकी सर्विस भी दे रही है. हुवेई ने पूरी दुनिया में 5 जी के ठेके हासिल करने के लिए टेंडर लिए खड़ी है. चूंकि चीनी कंपनी का कुटेशन दुनिया में सबसे सस्ता होता है, इस कारण उसे तकनीकी तौरपर ठेका मिलने की करीब करीब गारंटी होती है. लेकिन चीन से प्रतिद्वंदिता के चलते अमेरिका और उसके साथी देश, हुवेई को अपने यहां से सुरक्षा का वास्ता देकर रास्ता दिखा रहे हैं. बावजूद इसके हुवेई को आम उपभोक्ता और सर्विस प्रोवाइडरों का समर्थन हासिल है. जिस कारण उसे उम्मीद है कि आज नहीं तो कल दुनिया के तमाम देशों में वही 5 जी तकनीक की असली प्रोवाइडर होगी.
सवाल है आखिरकार 5 जी तकनीक इतनी महत्वपूर्ण क्यों है कि जानकार कह रहे हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे के बावजूद भी हर देश 5 जी तकनीक में जाना चाहता है? आखिरकार लोगों और देशों में इसको लेकर इतना रोमांच क्यों है? इस रोमांच की वजह यह है कि 5 जी तकनीक के बाद दुनिया पूरी तरह से बदल जायेगी.

हकीकत होगी वर्चुअल रियलिटी

इससे यह होगा कि आज हमें जिस हाई डेफिनिशन मूवी को डाउनलोड करने में 30-40 मिनट लगते हैं, तब यह कुछ सेकंड्स में ही हो जायेगा. 5 जी से वीआर और एआर तकनीक को जबरदस्त बढावा मिलेगा. इससे  एंटरटेनमेंट और गेमिंग इंडस्ट्री पूरी तरह से बदल जायेंगी. 5 जी से हमारा घर स्मार्ट हो जायेगा. 5जी से लैस स्मार्ट होम्स सिक्यॉरिटी सिस्टम, बिजली और पानी की खपत को मैनेज कर सकेगा. एक स्मार्ट होम घर के हर काम कर पाएगा और बिजली की फिजूलखर्ची भी रोकेगा. यही नहीं यह हमारी हेल्थ का भी ख्याल रखेगा. इमर्जेंसी होने पर इसके जरिए डॉक्टर को भी बुलाया जा सकेगा. इसे ही हम इंटरनेट ऑफ थिंग्स या आईओटी कहते हैं. कुल मिलाकर इससे जीवन की दिशा और दशा बदल जायेगी इसीलिये पूरी दुनिया में लोग 5 जी नेटवर्क का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

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डायलॉग करेंगी ऑटोमेटिक कारें

5जी के बाद स्वचालित कारें एक दूसरे से आपस में बेहतर संवाद कर पाएंगी और ट्रैफिक व मैप्स से जुड़ा लाइव डेटा साझा कर पाएंगी. क्योंकि 5जी की मदद से स्वचालित कारों के एआई कम्पोनेंट में सुधार किया जा सकेगा. अभी स्वचालित कारों में जल्दबाजी के चक्कर में उनका मार्गदर्शन नहीं हो पाता,जिसकी वजह से उन्हें चलाने के लिए मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत पड़ जाती है. 5जी के आने के बाद हमारा मोबाइल स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों के सेंसर लगातार जुड़े रहेंगे जो आपके स्वास्थ्य के बारे में पल-पल की जानकारी देते रहेंगे. कुल मिलाकर स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं और भी बेहतर हो जाएंगी. उदाहरण के लिए, अगर आप एक डॉक्टर हैं तो दूर बैठे ही मरीज की जांच कर सकते हैं. बाहर किसी देश से आप भारत के किसी अस्पताल में पड़े मरीज का इलाज या ऑपरेशन भी कर पाएंगे.

भारत में मोबाइल तकनीक

मोबाइल की 5जी नेटवर्क तकनीक लोवर फ्रीक्वेंसी पर कार्य करती है. इसे 600 मेगाहर्ट्ज से लेकर 6 गीगाहर्ट्ज तक के नेटवर्क बैंड पर चलाया जा सकता है. जहां 4जी के लिए अधिकतम स्पीड 600 एमबीपीएस तक ही है. वहीं 5जी स्पीड 1जीबीपीएस से ही शुरू होती है. 5जी नेटवर्क पर अधिकत डाटा स्पीड 20 जीबीपीएस तक की है  अब तक कहा जाता है कि भारत तकनीक में दूसरे देशों से काफी पीछे है. यहां लगभग 15 साल की देरी से मोबाइल सर्विस आई. 3जी सर्विस में भी लगभग 10 साल पीछे थे. यूरोपीय देशों ने 2001 में ही 3जी सर्विस लॉन्च करना शुरू कर दिया था, लेकिन भारत में 2011 के बाद यह सर्विस आई. हालांकि 4जी ने देरी के खाई को बहुत हद तक कम कर दिया है. जल्द ही देश में आ गई. इसमें भी लगभग 3 से 4 साल देर थे. वहीं 5जी में शायद अब ऐसा भी न हो. रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर मुकेश अंबानी ने साल 2016 में अपनी 4जी सर्विस की शुरुआत के समय ही यह घोषणा की थी कि जियो नेटवर्क 5जी रेडी है और यहीं से कंपनी ने भारत में 5जी की नींव रख दी थी.

कब आएंगे 5जी डिवाइस?

5जी को लेकर डिवाइस क्षेत्र में भी बड़ी तैयारी की जा चुकी है. मोबाइल चिपसेट निर्माता क्वालकॉम ने वर्ष 2017 में ही 5जी चिपसेट का प्रदर्शन कर दिया था. क्वालकॉम द्वारा एक्स50 5जी चिपसेट तैयार किया गया था, जो 1जीबीपीएस प्रति सेकंड की दर से डाटा कनेक्शन सपोर्ट करने में सझम था. वहीं, पिछले साल कंपनी ने इसका अपडेटेड वर्जन भी पेश किया था, जो न सिर्फ एडवांस था बल्कि पहले की अपेक्षा काफी छोटा भी हो गया था. रही बात डिवाइस आने की तो मोटोरोला ने मोटो जेड3 के साथ 5जी डिवाइस की शुरुआत एक साल पहले कर दी थी. कई कंपनियां लाने वाली हैं 5जी डिवाइस: मोटोरालो के बाद शाओमी ने भी मी मिक्स 3 से 5जी फोन क्षेत्र में कदम रख दिया है. हालांकि मी मिक्स 3 पिछले साल चीन में लॉन्च हुआ था, जो कि लेकिन 5जी के क्षेत्र में यह बड़ी कोशिश थी. क्वालकॉम के 4जी/5जी समिट 2018 में वनप्लस ने जानकारी दी थी कि वर्ष 2019 में लॉन्च होने वाला कंपनी का फोन 5जी रेडी होगा. वनप्लस 7 में 5जी सपोर्ट होगा. पिछले दिनों रिलायंस की एजीएम में मुकेश अंबानी ने घोषणा कि है कि जिओ, गूगल के साथ मिलकर 5 जी फोन काफी सस्ते में भारतीय ग्राहकों को उपलब्ध कराएंगे.

हर देश होड़ में क्यों है?

सूचना को इस युग की संपदा कहा जाता है तो भला कौन देश नहीं चाहेगा कि वह इस संपदा का स्वामी हो. मगर तेज रफ्तार सूचना की इस संपदा को पाना तेज रफ्तार संचार तकनीक से ही संभव है. ऐसे में यह स्वाभाविक है कि दुनिया का हर देश 5 जी तकनीक हासिल करना चाहता है. हासिल ही नहीं करना चाहता बल्कि बाकी देशों से अलग इसमें अगुवा होना चाहता है. यही वजह है कि दुनिया का हर देश अपने अपने ढंग से 5 जी तकनीक का अगुवा होने की कोशिश में लगा है. आइये देखें कौन क्या प्रयास कर रहा है ?
5 जी तकनीक हासिल करने के मामले में भारत क्या कर रहा है? इस सवाल का जवाब यह है कि भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 2 साल पहले यानी  साल 2017 में 5 जी से जुड़ा एक मसौदा जारी किया था. तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा था कि 2020 में जब दुनिया भरमें 5 जी लागू होगा,उसी साल भारत भी इसे अपना लेगा . भारत में बीएसएनएल समेत वोडाफोन और रिलायंस जियो जैसी कंपनियां 5 जी की तैयारी में है.

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अमरीका 5 जी के जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेजी से पूरा करने में लगा है. अमरीका की टेलीफोन नियामक संस्था फेडरल कमिशन ऑफ कम्युनिकेशन कि निगरानी में यह काम हो रहा है. उम्मीद है कि इस साल के अंत तक अमरीका की कुछ कंपनियां 5 जी की सुविधाएं देने लगेंगी और साल 2020 के अंत तक लगभग सभी अमेरिकी संचार कम्पनियां में 5जी की सेवा देने लगेंगी. चीन इस मामले में भारत और अमरीका दोनों से आगे है. चीन की सरकारी कंपनी चाइना यूनिकाम को उम्मीद है कि साल 2020 तक वह देश में 10 हजार 5 जी बेस स्टेशन खड़े कर पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर देगी. इस पायलट प्रोजेक्ट में बीजिंग समेत देश के 15 बड़े शहर शामिल होंगे.

जहां तक जापान की बात है तो यहां कि सबसे बड़ी वायरलेस कंपनी एनटीटी डोकोमो 5 जी पर साल 2010 से ही प्रयोग कर रही है. जापान में साल 2020 में ओलंपिक खेल होने थे, जो कि अब रद्द हो चुके हैं. पहले योजना यही थी कि ओलंपिक शुरु होने के दो महीने पहले यानी मई या जून 2020 में यहां 5 जी की सेवा शुरु हो जायेगी. लेकिन कोरोना के चलते पूरी दुनिया में सन्नाटा पसरा है. उसका शिकार जापान भी हुआ है. फिर भी लोगों को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक जापान अपने यहां पूरी तरह से 5 जी सेवा शुरु कर देगा. कतर की टेलीकॉम कंपनी ओरिडो साल 2016 से 5 जी सुविधा दे रही है तो कुवैत की टेलिकॉम कंपनी जेन साल 2018 में 5 जी लॉन्च किया था. इस तरह देखें तो कोरोना के बावजूद साल 2020, 5जी के निर्णायक रूप से बाजार में आने का साल है.

Monsoon Special: मौनसून के लिए परफेक्ट है सोनाक्षी सिन्हा के ये लुक्स

बौलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा इन दिनों अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. बीते दिनों सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड मामले के बाद स्टार किड्स लोगों के निशाने पर आ गए हैं, जिनमें एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा का नाम भी शामिल है. पर आज हम उनके किसी मामले की नहीं बल्कि उनके फैशन की बात करेंगे. सोनाक्षी जितना खुद को फिट रखने की कोशिश करती हैं उतना ही वह अपने फैशन को भी अप-टू-डेट रखना पसंद करती हैं. ये उनके इंस्टाग्राम की फोटोज से साफ नजर आता है. आज हम मौनसून में ड्रेसेस के लिए सोनाक्षी की ड्रेस के बारे में बताएंगे…

1. मौनसून के लिए परफेक्ट है सोनाक्षी की ये फ्रिल ड्रैस

अगर आप भी मौनसून में कुछ ब्राइट और फैशनेबल ड्रेस पहनना चाहते हैं तो ये ड्रेस आपके लिए एकदम परफेक्ट है. सोनाक्षी की ये ब्लू कलर की फ्रिल ड्रेस आपके लुक को स्टाइलिश और ट्रेंडी बनाएगा.

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2. सोनाक्षी की ये ड्रेस है मौनसून के लिए बेस्ट

मौनसून में अक्सर लोगों को आपने फ्लावर प्रिंट पहनते हुए देखा होगा. फ्लावर प्रिंट आजकल लोगों के बीच एक ट्रेंडी फैशन बन गया है. अगर आप भी अपने आप को ट्रेंडी और सेक्सी लुक देना चाहते हैं तो ग्रीन कलर की फ्लावर प्रिंट ड्रेस आपके लिए परफेक्ट है. वहीं अगर आप पार्टी का हिस्सा बनने जा रहे हैं तो ये सोनाक्षी की ड्रेस की तरह आप भी अपनी ड्रेस में एक सेक्सी सा कट देकर खुद को सेक्सी दिखा सकती हैं.

3. क्रौप टौप के साथ लौग स्कर्ट लुक करें ट्राय

 

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Today for #Kalank on IPL! Styled by @mohitrai (tap for deets) hair by @themadhurinakhale and makeup @mehakoberoi ?

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अगर आप भी मार्केट किसी beach पार्टी के लिए जा रही हैं या गोवा घूमने का प्लान बना रही हैं तो सोनाक्षी की ये ड्रेस कौम्बिनेशन आपके लिए एकदम परफेक्ट है. सोनाक्षी की ये यैलो फ्लावर प्रिंट के क्रौप टौप और स्कर्ट आपके लिए परफेक्ट होगी. वहीं यैलो कलर आजकल बौलीवुड स्टार्स का फेवरेट बना हुआ है तो आप ये ड्रैस में खुद को ट्रेंडी दिखाने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

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Serial Story: तिलिस्मी के सफर में- जब कोरोना के कहर ने तोड़े पूर्बा के सपने

Serial Story: तिलिस्मी के सफर में (भाग-3)

आज के इस मौडर्न जमाने में पापा जैसे मीडियोकर लोग दो पैसे के लिए घर को अशांति का अखाड़ा बनाए रहते हैं, उन्हें आगे बढ़ने, सपनों का पीछा करने से कोई मतलब नहीं है. बस हमेशा आटेदाल का भाव ही गिनते रह जाएंगे. दुर्बा भी तो वैसी है. पूर्बा इतनी करीबी और तंगहाली में नहीं जी सकती. उसे लाट साहेबी ही पसंद है, चाहे ये लोग कितना ही उस का मजाक बनाएं.

इन दिनों पूर्बा धूप में रंग उड़े खाली टीन के डब्बे की तरह हो गई है. ऊपर से पीटो तो ढेर सारी निरर्थक आवाजें, अजूबा बातें ही उस का सहारा थीं इन दिनों, ‘‘बस कुछ दिन और देखना अमुक अभिनेता, अमुक राजनेता, अमुक सैलिब्रिटी मु झे अपने पास बुला लेंगे. मैं अब कुछ दिन में ही मैनेजर बन जाने वाली हूं. फिर छोटे से कमरे में चिकचिक करने वाली बहन के साथ मु झे कैद नहीं रहना होगा. फ्लैट का सार सामान ले कर मैं उस से बड़े फ्लैट में शिफ्ट हो जाऊंगी,’’ अनर्गल, अविराम वह खुद को तसल्ली देती रहती.

दुर्बा एक दिन खासा गुस्सा हो गई, ‘‘सारा दिन घर के लिए हम खट मरें और यह महारानी खाट पर पड़े अंशुल से अपनी सेवा कराए. उठो महारानी दीदी. अंशुल को  झूठी माया के मोहजाल में फांस तुम ने उसे पढ़ाई से दूर किया तो अब मैं तुम्हारी दुश्मन. पापा कुछ सालों में रिटायर हो जाएंगे. अंशुल को जिम्मेदारी न सम झा कर उसे हवा में उड़ा रही हो. बिस्तर पर पड़ेपड़े गाना सुनने के बजाय उठ कर घर में कुछ हाथ बंटाओ.’’

‘‘तू बड़ी है कि मैं बड़ी?’’

‘‘जिम्मेदारी कौन उठा रहा है? परिवार के कामों में कौन हाथ बंटा रहा है? भाई को पढ़ने में मदद कौन कर रहा है? तुम्हारी यहां नहीं चलेगी दीदी महारानी. पापा का और्डर है वरना घर से बाहर जाने को तैयार रहो.’’

‘‘इस लौकडाउन में?’’

अब तक आशुतोषजी सारा वार्त्तालाप सुन रहे थे, वे खुद को अब रोक नहीं पाए, ‘‘हां इसी लौकडाउन में ही. तभी तो बात बाहर जाएगी और पुलिस आएगी और तभी गरीब अनुशासनप्रिय पिता अपना दुख बता सकेगा. अभी से इस घर में सादी जिंदगी से तालमेल बैठाओ… यहां तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी.’’

झल्लाते हुए पूर्बा ने उस वक्त बिस्तर तो छोड़ दिया, लेकिन गहरे सागर में औक्सीजन खत्म हो गए तैराक की स्थिति थी उस की.

ऐसी जिंदगी उसे पसंद नहीं जहां इतना हिसाबकिताब चलता हो. सुखसुविधाओं पर 1-1 पाई गिन कर खर्चना पड़े. एक घेरे के अंदर सांसें आतीजाती रहें बस. यह कोई जिंदगी है. उसे चाहिए तेज रोशनी का सफर. अनंतअंतहीन एक चमचमाता आलोकवर्ष सा जीवन और वह भी आसान रास्तों से, जहां मधुमालती की लताओं में वसंत का गान छिड़ा हो. जहां पुरवाई की मीठी बयारों ने स्वप्नराज्य तैयार कर दिया हो, जहां उस पर कोई सवाल खड़ा करने की गुंजाइश न हो.

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एक और चांस… पूर्बा ने पहचान के सारे सैलिब्रिटी और उस से लाभान्वित होने

वाले उम्मीदवारों को बारीबारी फोन लगा लिया. कहीं फोन बंद, कहीं नंबर बदली, कहीं फोन बज कर खत्म और कहीं पहचानी नहीं गई वह.

कैसे ये इतने बेरहम हो सकते हैं? किसी तरह अपने पास बुला लेते… उन की बातों से आशाएं जगतीं, इस घर से निकलने की उम्मीद बंधती. पता नहीं, लौकडाउन खुलने के बाद भी होटल में सब को काम पर बुलाया जाएगा या नहीं. इस घर की चारदीवारी में तो जैसे पापा और दुर्बा का भुतहा साया चेंप गया है. कुछ भी करो उन का ही डर मंडराता रहता है. पूर्बा बेइंतहा परेशान सी सोचती जा रही थी.

‘‘निहार,’’ अचानक जैसे उसे बंद गुफा का द्वार मिल गया हो. उस के पापा का इसी शहर में घरेलू साजोसामान का अच्छा बड़ा ऐंपोरियम है. सुना है अभी अपने बड़े भैया के साथ वह भी सा झेदारी में दुकान चलाता है.

अगर इस वक्त वह जल्दी निर्णय नहीं ले पाई तो उस का क्व2-4 लाख की शादी में निबटान कर दिया जाएगा. फिर तो जिंदगी का बेड़ा गर्क हो जाएगा. निहार तब तक अच्छा विकल्प है जब तक उसे बड़ा ब्रेक न मिल जाए. ऐसे भी वह काफी सीधासादा है और उस के प्रेम में भी था. उसे न तो शादी के लिए मनाने में दिक्कत आएगी और न ही बाद में किसी बड़े औफर के लिए छोड़ कर जाने में.

निहार ने फोन जल्दी उठा लिया जिसे से पूर्बा काफी उत्साहित हो उठी.

‘‘निहार, मैं ने तुम्हें इन दिनों बहुत याद किया. मैं तुम्हें याद नहीं आई?’’

‘‘क्यों अकेला मैं ही बचा था, हाई क्लास सोसाइटी के तुम्हारे ढेर सारे दोस्त कहां गए? फिर इंस्ट्राग्राम के फौलोवर्स? वे अब कसीदे नहीं बरसाते तुम पर?’’

‘‘ऐ निहार, तुम इतने बदले से क्यों लग रहे हो? तुम मेरे सच्चे दोस्त हो न? वे सब गए. अब कहां इन बदरंग दीवारों वाले कमरों में इंस्ट्राग्राम के लिए तसवीरें खिंचवाऊंगी. पार्लर भी बंद और ब्यूटी प्रोडक्ट्स की दुकानें भी. पर तुम्हारा प्यार तो इन सब का मुहताज नहीं न… अब तो बस तुम और मैं. निहार, मु झे तुम्हारी जरूरत है. कहो कब आऊं तुम्हारे पास?’’

‘‘मैं नहीं बदला पूर्बा, जरूरत के हिसाब से तुम बदल गई हो. मैं खुद को सम झ चुका हूं और तुम्हें भी. सच्चे प्यार की दुहाई तुम मत दो. मेरा रास्ता अब तुम्हारी गली से हो कर नहीं जाता. आगे फोन मत करना.’’

खुद से दूर फोन फेंक कर पूर्बा निराश सी औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ी. हार मानी पूर्बा सिसक पड़ी.

अचानक सिर पर किसी के हाथ का स्पर्श मालूम हुआ. धीरेधीरे

उस के बालों में हाथ फेरता हुआ यह स्पर्श उसे प्रेम और विश्वास के आश्वासन से सराबोर करने लगा. उलटी लेटी पूर्बा सीधी हो गई. दुर्बा को सिर पर हाथ फेरते देख अवाक सी रह गई. वह तो मां की सोच रही थी.

‘‘दुर्बा,’’ वह दुर्बा की गोद में अपना मुंह छिपा कर बिलख पड़ी. क्या दुर्बा अंतर्यामी है. कैसे वह निराशा की घड़ी में साथ हो गई.

‘‘तुम निराश क्यों होती हो दी? तुम इस परिवार की जड़ों में पानी दो, बदले में यह तुम्हें हमेशा छांव देगा. घर के कामों में हाथ बंटाने के बाद बाकी बचे समय में तुम गाने की औनलाइन क्लास शुरू करो, मैं अपने दोस्तों और उन के छोटे भाईबहनों को सूचित कर दूंगी. बस फीस जरा कम रखना. आगे जब तुम्हारे लिए नौकरी की राह आसान होगी तो अपने काम के साथ गाना भी जारी रखना. देखना रोशनी तुम्हारे साथ चलेगी, तुम्हारे सपने पूरे होंगे, लेकिन मेहनत के बल पर.’’

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चौबीस घंटे दुश्मन की तरह सिर पर सवार रहने वाली दुर्बा अचानक कैसे बदल गई? क्या यह वही दुर्बा है? पूर्बा सोच में पड़ गई.

उसे यों एकटक देखती पा कर दुर्बा उस के गाल पर लाड़ से प्यारी सी चपत लगा कर बोली, ‘‘मैं क्या दुश्मन हूं तुम्हारी?’’

पूर्बा ने उठ कर दुर्बा के गाल पर नेह के उत्ताप से भरा एक गहरा चुंबन आंक दिया.

Serial Story: तिलिस्मी के सफर में (भाग-1)

‘‘फिरआज जातेजाते ढाई हजार का उधार ठोंक कर गई तुम्हारी पनौती बेटी पूर्बा.’’ किराना सामान रख कर बापदादा के समय के छोटी से डाइनिंगटेबल से लगी लकड़ी की कुरसी पर बैठते हुए आशुतोष बाबू ने रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछा. पूर्बा की मां बिना कुछ कहे घर के काम में जुटी रही.

एक तो उमस भरी गरमी की शुरुआत और यह कोल्हू की चक्की. 3-4 साल जो भी बचे हैं नौकरी के, क्लर्की में ही निकलेंगे वह तो पता है, लेकिन तब तक पसीने में तब्दील होता गाढ़ी कमाई का खून कितना बचा रहेगा सवाल यह है. वही सुबह वही जरा सा अखबार और ढेर सारी मनहूस खबरें. और फिर छूटते ही बड़ा सा बाजार का थैला, नून लाओ तो तेल खत्म, तेल लाओ तो आटा, दाल, प्याजआलू. जिंदगी के साथसाथ एडि़यां घिस गईं. लेकिन चप्पलें वही चलती ही जा रही हैं, वरना खुद के लिए एक बनियान नहीं खरीद पाता.

फटी बनियान वाले बगल को कमीज के नीचे दबा कर वर्षों चला लेते हैं यहां, अच्छी चप्पलों का शौक कहां से पालें. वह बीवी बेचारी अड़ोसपड़ोस की महिलाओं के लिए साड़ी में फौल, पिको सिलने का काम कर लेती है, घर की साफसफाई, रसोई आदि में छोटी बेटी दुर्बा अपनी 12वीं की पढ़ाई के साथ हाथ बंटाती है, तो बचत के फौर्मूले और छोटीछोटी कमाई के भरोसे क्लर्की के वेतन से घर की चक्की जैसेतैसे चल रही है. छोटा बेटा अंशुल अभी 10वीं से 11वीं में गया है और इस में अगर उस के 80% आए हैं तो यह आशुतोष बाबू की छोटी बेटी दुर्बा का ही हाथ माना जाएगा. ये तो जनाब बाल संवारने और कमीज बदलबदल कर आईने के सामने खड़े होने में ही आधी जिंदगी निकाल दें.

‘‘खाना तैयार है पापा. और क्या कह रहे थे आप? दीदी ने फिर उधारी की?’’

‘‘हफ्तेभर पहले दिल्ली जाते वक्त वह ढाई हजार के हेयर जेल, बौडी लोशन, हेयर स्प्रे कई सौ की क्रीम लिपस्टिक, दुनियाभर के चोंचले वाले प्रोडक्ट ले कर गई है. भई मु झे मालूम है वह होटल इंडस्ट्री में है, उसे रिसैप्शन में ड्यूटी बजाते वक्त इन सारी चीजों की जरूरत हो सकती है, लेकिन उसे अपने परिवार की स्थिति को सम झते हुए जरूरत से बाहर की चीजों को अभी खरीदने से बचना चाहिए. नहीं, बस दूसरों की देखादेखी उसे सबकुछ चाहिए. फिर अपने वेतन से ले न. हम बड़ी मुश्किल से यहां परिवार का खर्चा चलाते हैं जब भी आती है हम उसे खाली हाथ भी नहीं जाने देते. अभी अंशुल के स्कूल और कोचिंग की तगड़ी फीस भरनी पड़ी, आगे की पढ़ाई बची है, तेरी पढ़ाई है, शादी का खर्चा, हमारा बुढ़ापा. लेदे कर मेरे दादाजी का यह पुस्तैनी मकान हमारी शरणस्थली बनी हुई है वरना हमारी तो नैया ही डूब जाती. कुछ सम झना ही नहीं चाहती.’’

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‘‘पापा, आप दीदी के खर्चे के बारे में जानते ही कितना हो? वह अपने वेतन के पैसे अपने खानेपीने, विलास वैभव, घूमनेफिरने, पार्टीशार्टी और दिखावे पर खर्च करती है, इसलिए तो नौकरी के बावजूद हमें यहां कुछ मदद करना तो दूर, महीने के जरूरी खर्चे के लिए हम से ही उम्मीद बांधती है. सालभर की नौकरी है 25 हजार उस के होटल की तरफ से दिए फ्लैट के किराए में ही चले जाते, जबकि चाहती तो दूसरों के साथ शेयर वाले फ्लैट में भी रह सकती थी. उसे कटौती नहीं खर्चे सम झ आते हैं, कर्तव्य नहीं अधिकार सम झ आते हैं.’’

‘‘रात को वीडियो कौल कर के कहना उस से कि हर बार उस के दिल्ली जाते ही यहां किराना दुकान से पता चलता है कि फलांफलां सामान की उधारी चढ़ी है. अब हम से यह बरदाश्त नहीं होगा.’’

रात वीडियो कौल तक अगर दुर्बा बिफरती रही तो दुर्बा की मां बड़ी बेटी पूर्बा की ओर से ऐसे कई तर्क रखती गईं जो पूर्बा को भी खयाल न आता. मसलन, उस की सुंदरता और सफलता पर सब जलते हैं. इस खानदान में ऐसी बेटी कभी आज तक हुई है. स्मार्ट खूबसूरत, ऊंची सोसाइटी में रहने वाली, बड़ेबड़े लोगों से मिलनेजुलने वाली. सुंदरता में मु झ पर गई है तो तुम लोगों के पापा चिढ़े रहते हैं. मैं तो कमा कर कुछ दे रही न घर में, फिर मेरी बड़ी न दे तो क्या.’’

‘दीदी सिर्फ सुंदरता में ही नहीं सबकुछ में तुम पर गई है मां,’’ मन ही मन बुदबुदा कर रह गई दुर्बा.

वीडियो कौल उठा ली थी पूर्बा ने. सुंदर आधुनिक छोटे से फ्लैट में अपने बिस्तर पर पूर्बा पसरी पड़ी थी.

सोने का यह कमरा आधुनिक साजोसामान से सुसज्जित था. पूर्बा अपना फोन ले कर बगल वाले हौल में गई. रसाई से लगे डाइनिंग स्पेस में नया फ्रिज दिखाते हुए उस ने बता दिया कि यह उस की तनख्वाह से है और पापा के बिना उस ने यह खरीदा है. रसोई में नया गैस चूल्हा, माइक्रोवैव, यहां तक कि नया डाइनिंग सैट जो पूर्बा ने उस के किसी हाई प्रोफाइल दोस्त के गिफ्ट चैक से लिया था, दुर्बा को दिखाया.

दुर्बा की दृष्टि तेज थी, ‘‘अरे यह विंड चाइम? यह कब लिया?’’

‘‘मेरा एक दोस्त है निहार, उस ने दिया है. निहार हमेशा ही कुछ न कुछ देना चाहता है, मैं ही उसे ज्यादा भाव नहीं देती. जब हमारे होटल में आए दिन बड़ेबड़े नेता, अभिनेता, गायक और अन्य सैलिब्रिटीज आते हैं और मेरे बिना उन का काम चलता भी नहीं, मैं निहार को भाव दे कर अपना भाव क्यों गिराऊं?’’

‘‘दी, आप से एक बात है…’’

‘‘अरे रुकरुक, अभी फोन रखती हूं, दरवाजे पर कोई है, मैं बाद में बात करूंगी,’’ पूर्बा ने फोन काटा और उठ कर दरवाजा खोलने चली गई.’’

‘‘निहार. ड्यूटी खत्म हो गई क्या?’’

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‘‘देखो क्या लाया हूं तुम्हारे लिए. ‘लजानिया’. इटैलियन डिश मैं ने बनाई है… आज होटल मेन्यू में थी, मेरी जिम्मेदारी में, काम खत्म होते ही मैं ने इसे तुम्हारे लिए पैक किया और दौड़ा आया. चीज और सौस का बढि़या कौंबिनेशन बना कर ओवन में रख इस के कई लेयर्स डाले हैं. तुम ने एक बार खाने की इच्छी जताई थी… यह पकड़ो, मैं जा रहा रहा हूं, अभी ड्यूटी बाकी है मेरी.’’

‘‘अरे कमाल करते हो, थैंक्यू. मैं खाना आर्डर करने ही वाली थी.’’

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Serial Story: तिलिस्मी के सफर में (भाग-2)

‘‘ड्यूटी के वक्त होटल का खाना खाती ही हो, क्यों अपने सैलिब्रिटीज सैफ के दिए माइक्रोवैव में नहीं बनाना?’’

‘‘रिसैप्शन के काउंटर में 10 घंटे खड़ेखड़े हड्डी पसली चूर हो जाती है, कौन छुट्टी में खाना बनाए. ऐसे भी ड्यूटी न भी करूं तो भी खाना बनाना मु झे पसंद नहीं. ये चीजें तो शौक की वजह से लीं.’’

‘‘मैं निकलता हूं, कल बताना कैसी लगी तुम्हें डिश, वैसे कल मैं व्यस्त रहूंगा, बड़ा कोई सिंगर रुक रहा है हमारे होटल में, कौंटिनैंटल डिश की जिम्मेदारी रहेगी मेरी.’’

‘‘अरे हां, उन्हें अटैंड करने की जिम्मेदारी तो मेरी ही रहेगी, ठीक है मैं फोन कर लूंगी तुम्हें.’’

दोनों एक ही बड़े होटल प्रौपर्टी से जुड़े थे. इंडियन इंस्टिट्यूट औफ होटल मैनेजमैंट से पढ़ कर निकलते ही कैंपस सिलैक्शन में दोनों का एकसाथ इस बड़े होटल गु्रप में हो गया था. निहार का फूड ऐंड ब्रेवरेज डिपार्टमैंट में और पूर्बा का बतौर ट्रेनी मैनेजर. कस्टमर और सैलिब्रटी गैस्ट की ओर से अगर बढि़या फीडबैक रहा तो होटल उसे सालभर में पदोन्नति दे कर मैनेजर बना सकता है. पूर्बा आगे बढ़ने के लिए, अपने ऐशोआराम को बढ़ाते रहने के लिए हाई प्रोफाइल लोगों को खुश करने में गुरेज नहीं करती.

22 साल की सुंदर पूर्बा 5 फुट 5 इंच की हाइट और खूबसूरत फिगर के साथ इस होटल

गु्रप की शान ही थी. कस्टमर उस के साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहते और यह बात पूर्बा बखूबी सम झती थी. पूर्बा तो निहार को भी सम झती थी. आज से नहीं कालेज से ही. लेकिन चतुर पूर्बा निहार के साथ जुड़ने के आखिरी अंजाम से भी वाकिफ थी. ज्यादा से ज्यादा क्या एक बिना घूंघट वाली, बिना परदे वाली दुलहन? उस के सपने बड़े हैं. निहार मगर ज्यादा कहां सम झता था पूर्बा को? उसे बस यही लगता था कि सारी कायनात उस के लिए बारबार संयोग पैदा करती है ताकि वह अपने मनमीत से मिल सके. 23 साल का यह नौजवान अपनी रौ में इतना मतवाला था कि पूर्बा को टटोलने की भी उस ने कभी जहमत नहीं उठाई.’’

रोबदार, रसूखदार चमचमाते पैसों की खनक वाले हाई प्रोफाइल लोगों की दीवानी पूर्बा अपनी पुरानी पहचानको भुला कर तिलिस्मी रोशनी के सफर में निकल पड़ी थी.

उसे गिफ्ट अच्छे लगते हैं, महंगे, बेशकीमती आधुनिक सामान की वह शौकीन है और वह भी इतना कि कोई भी कीमत इस के लिए भारी नहीं. घर की याद यानी क्लर्क पापा की तंगहाली की कहानी. घर यानी मां की दो पैसे बचाने की जद्दोजहद और निहार मतलब एक और घर एक और सम झ कर खर्च करने की कसमसाहट.

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निहार उसे अब अच्छा नहीं लग रहा था. वह जानती थी एक बार वह निहारकी हो गई, तो वह उस पर खर्चना बंद कर देगा, दुनियाभर की सारी रौनकें अपना रास्ता बदल लेंगी. निहार अपने गिफ्ट के बदले 2-4 बार सान्निध्य मांग लेता तो शायद पूर्बा उसे निराश नहीं करती. इतनी भी संगदिल नहीं वह और न ही संस्कार का लबादा चढ़ा रखा उस ने. उस की पसंद की जिंदगी इन राहों से हो कर गुजरती नहीं, उसे मालूम है. लेकिन निहार तो उसे ही चाहता है पूरापूरा. उसे हंसी आती है उस पर. ये छोटीछोटी मासूम अनुभूतियां अगर उसे गुलाम बना सकतीं तो वह यों बड़ेबड़े सम झौते नहीं करती. खैर, निहार की मरजी, जब तक लुटाना चाहे लुटाए.

पूर्बा का एक सिंगर के साथ आजकल कुछ ज्यादा उठनाबैठना था, इतना कि यह गायक अकसर होटल के बदले उस के फ्लैट में रुक जाता. इस की संगति में पूर्बा को महसूस हुआ कि वह अच्छा गाती भी है तो उस नामी सिंगर के अधिक निकट रहने की लालसा ने उसे भरसक गाने की प्रेरणा दी.

कुछ दिनों बाद सिंगर विदेश गया, पूर्बा की लाख कोशिशों के बावजूद उस के साथ संपर्क साधा न जा सका और कुछ ही दिनों में उस गायक की शादी की खबर आई.

पूर्बा बुरी तरह  झुं झला गई, लेकिन ऐसी मनमानी तो अब उस की जीवनधारा का हिस्सा है. किनकिन पर खफा हो. जल्द ही उस गायक की यादों से उबर कर एक 50 साल के रसूखदार राजनेता के संपर्क में आ गई थी वह. हीरे की बेशकीमती हार के ले कर जिंदगी को जीने के वादे थे इस बार उस के लिए.

सपने फिर  झील में कमल की तरह खिलने लगे, इस राजनेता का जैक जगा कर इस बार मैनेजर का पद ले लेने की मंशा थी उस की, अचानक देशविदेश में कोरोना की खबरों ने चौंकाना शुरू किया. खबरें थी कि अपना देश भी बंद हो सकता है. सोशल डिस्टैंसिंग की बात के जोर पकड़ते ही उस के सारे हाईप्रोफाइल संपर्क कट गए. जो जहां था थमने लगा. उस ने कई बड़े लोगों से संपर्क करना चाहा, लेकिन हर ओर से उपेक्षा ही हाथ आई. आशाहीन अनिश्चितता  में उस ने फिलहाल घर लौटने का मन बनाया.

होटल वालों ने अपने कुछ स्टाफ को छोड़ बाकी सारे नए स्टाफ को अनिश्चित समय के लिए छुट्टी दे दी थी. अंदर की बात यह थी कि इन्हें फ्लैट भी खाली कर देने का अल्टिमेटम था. पूर्बा को 15 सौ किलोमीटर दूर घर लौटना था.

2 दिन की शुरुआती जनता कर्फ्यू लगने से पहले उस ने निहार को कौल लगाया. निहार ने फोन उठा लिया. पता चला वह घर आ गया है.

‘‘मु झे बताया नहीं,’’ उलाहना दिया पूर्बा ने.

‘‘तुम्हें फुरसत नहीं ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने से, हमारी क्या बिसात. इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया,’’ निहार का टका सा जवाब मिला उसे.

सरकारी वाहन बंद थे, प्राइवेट वाहन का अतिरिक्त खर्च सहते हुए वह घर पहुंची किसी तरह.

घर उसे मुरगीखाने से कुछ कम नहीं लगता था, तिस पर पापा और दुर्बा तो किसी जेलर की तरह हर वक्त हमला बोले रहते. दिनभर सीखों और उलाहनों की बरसात. ऐसा लगता जैसे कोई कीचड़ फेंक कर मार रहा हो. पूर्बा न  झगड़ा करती थी और न ही उन पर उस की कुछ बोलने की ही इच्छा होती, बस ये लोग इस की नजर में न आएं उस की इतनी भर तो इच्छा थी जो पूरी नहीं हो सकती थी. मां की तो पापा के सामने कोई आवाज ही नहीं थी और भाई अंशुल उसे बस ‘दीदी मौडल बनवा दो’, ‘फलाने से एक बार मेरी बात करवा दो’, ‘दीदी एक जींस दिलवा देना,’ ‘दीदी मु झ पर कौन सा हेयर कट सूट करेगा’, ‘जरा इन गूगल की तसवीरों को देख कर बताना.’

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यद्यपि भाई को हाथ में रखने के लिए उसे सब्जबाग दिखाना पड़ता, लेकिन पूर्बा जानती थी कि उसे कितना संघर्ष करना पड़ रहा है अपने बड़े सपनों को सच करने में, तो क्या वह भाई के लिए कुछ कर पाएगी.

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