लेखिका- रेणु सिंह
‘‘हां… हां… रोहित नहीं दिख रहा है कहीं,’’ उस ने इधरउधर देखते हुए पूछा.
‘‘नाम मत लो उस का. मेरा उस से ब्रेकअप हो गया है. एक नंबर का फ्लर्ट है वह. भैया ठीक कहता था कि वह लड़का मेरे लिए ठीक नहीं था. वैसे तुम्हारे बारे में उस की राय सही है.’’
‘‘मेरे बारे में?’’ कुंदन चौंक गया.
‘‘हां, ऐडमिशन के दिन उस ने मुझे तुम्हारे साथ बातें करते देखा था. कह रहा था कि तुम स्कूल में उस के जूनियर थे. मुझे घर ड्रौप कर दो, इसी बहाने भैया से भी मिल लेना.’’
‘‘हांहां… आओ, बैठो,’’ कुंदन की तो बांछें खिल गईं. उस की मनचाही मुराद पूरी हो रही थी. कालेज की सब से हसीन और स्मार्ट लड़कियों में गिनी जाने वाली रोमा उस की बाइक पर, उस की कमर में हाथ डाले हुए थी.
उस दिन के बाद दोनों कभी कैंटीन तो कभी लाइब्रेरी में साथसाथ दिखते. कभीकभी वह उसे घर भी ड्रौप कर देता. पूरे कालेज में दोनों बौयफ्रैंड गर्लफ्रैंड के रूप में मशहूर हो गए.
‘‘कमाल है उस के घर वाले कुछ नहीं कहते तुझे उस के साथ देख कर?’’ एक दिन सुनील ने कुंदन से पूछा.
‘‘कहेंगे क्या, वे तो खुश हैं कि उस लफंगे रोहित से उस का पीछा छूटा. मैं ने खुद सुना था, संजीव अपनी मां से कह रहा था, ‘अच्छा हुआ रोमा ने कुंदन से दोस्ती कर ली. मैं उसे स्कूल से जानता हूं. घर भी देखा है उस का. अच्छे लोग हैं. उस के साथ रहेगी तो उस लफंगे रोहित की बुराइयां खुद ही समझ में आने लगेंगी इसे और वह भी दूसरे लड़के के साथ देख कर इस के पीछे नहीं पड़ेगा. एकदम से छोड़ देने पर वह लफंगा क्या कर दे कुछ भरोसा नहीं. कम से कम एक लड़के को साथ देख कर उस की रोमा को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत नहीं होगी.’’
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‘‘बहुत अच्छा. और अगर उस ने तुम्हें नुकसान पहुंचाने का इरादा कर लिया तो क्या करोगे?’’ स्नेहा ने पूछा.
‘‘वह कुछ नहीं करेगा. आजकल अपने लिए नई गर्लफ्रैंड ढूंढ़ने में बिजी है. मेरी या रोमा की तरफ देखने की तो फुरसत ही नहीं है उसे. आजकल तो दूसरी लड़कियों के आसपास चक्कर लगाता रहता है वह.’’
‘‘तब तो तेरी पांचों उंगलियां घी में हैं. बैठेबिठाए एक अदद गर्लफ्रैंड मिल गई. कहां तो लड़कियों को फंसाने के लिए एक से एक पैंतरे बदल रहा था और कहां मछली खुद ही आ कर जाल में फंस गई.’’
‘‘बस, सब स्टाइल का खेल है मेरे भाई. तुझ से भी कहता हूं कि इस स्कूलबौय वाली इमेज से बाहर निकल. यही तो दिन हैं दुनिया की रंगीनियों के मजे लेने के,’’ सुनील ने छेड़ा तो कुंदन ने गरदन टेढ़ी कर प्रवचन दे डाला.
‘‘अब बाकी रंगीनी क्लास में चल कर करना. वैसे भी रोमा तो तुम्हारे बगल में ही बैठती है,’’ स्नेहा ने कहा.
‘‘आज क्लास अटैंड करने का मूड नहीं है. मैं और रोमा इंगलिश मूवी देखने जा रहे हैं,’’ कुंदन ने कहा.
‘‘अच्छा, अगले साल अपनी गर्लफ्रैंड के साथ ये क्लास कर लेना, क्योंकि तुम दोनों को देख कर लगता तो नहीं कि इस साल पास करने का इरादा है. दोनों क्लास में कम और कैंटीन में ज्यादा दिखते हो.’’
‘‘हैलो कुंदन, क्या तुम अभी फ्री हो?’’ रोमा का फोन आया.
‘‘तुम्हारे लिए तो चौबीसों घंटे फ्री हूं मेरी जान, तुम बस हुक्म करो.’’
‘‘आज मेरी सहेली नर्मदा की सगाई है. भैया बैंकिंग की परीक्षा देने दूसरे शहर गया है. नर्मदा का घर काफी दूर है. शाम को रिकशे या आटो से उतनी दूर अकेले जाने में डर लगता है. क्या तुम मुझे वहां ले जाओगे? मां ने भी कह दिया है तुम साथ रहोगे तभी मुझे जाने देंगी.’’
‘‘अरे, मेरे होते हुए तुम अकेली कैसे हो गई. तैयार हो जाओ, मैं 15 मिनट में पहुंचता हूं.’’
‘‘अरे, तुम तैयार नहीं हुई, सगाई में जींस पहनोगी,’’ रोमा को सादे कपड़ों में देख कुंदन ने पूछा.
‘‘डोंट बी रिडिकुलस कुंदन. वैसी भड़कीली ड्रैस पहन कर बाइक पर चलूंगी तो सारे रास्ते लोग घूरेंगे मुझे. मैं ने अपनी ड्रैस रख ली है, वहीं जा कर तैयार हो जाऊंगी,’’ रोमा ने अपने हाथ में पकड़ा बड़ा सा बैग दिखा कर कहा और बाइक पर उस के पीछे बैठ गई.
‘‘आप बेफिक्र रहिए आंटी. मैं इसे सेफली ले जाऊंगा और वापस भी पहुंचा दूंगा,’’ उस ने रोमा की मां से कहा और बाइक स्टार्ट कर चल दिया.
‘‘बसबस, यहीं रोक दो. यहां से मैं पैदल ही चली जाऊंगी,’’ रोमा ने दयाल कालोनी के पास पहुंचते ही कहा तो उस ने मोटरसाइकिल रोक दी.
‘‘यहां? यहां सुनसान जगह पर क्यों उतर रही हो? कालोनी तो आगे है.’’
‘‘तुम नहीं समझोगे, नर्मदा की फैमिली बड़ी कंजरवेटिव है. उन्हें पता चल गया कि मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ आई हूं तो अजीबोगरीब सवाल पूछ कर मुझे पागल कर देंगे. मैं पैदल चली जाऊंगी. तुम चले जाओ.’’
‘‘जो हुक्म सरकार का. लेने कब आ जाऊं?’’
‘‘लेने आने की जरूरत नहीं है. मैं ने बताया न कि वे कंजरवेटिव लोग हैं. नर्मदा के पापा मुझे घर छोड़ने जाएंगे. देर हुई तो रात को यहीं रुक जाऊंगी.’’
‘‘पर मैं ने तो तुम्हारी मां को कहा था…’’
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‘‘ओ… तुम उन की चिंता मत करो स्वीटहार्ट, उन्हें पता है,’’ रोमा ने फ्लाइंग किस दे कर कहा और अपना बड़ा सा बैग ले कर पैदल कालोनी की ओर चल दी. देर तक कुंदन उसे जाते देखता रहा फिर जब वह कालोनी में चली गई तब वापस लौट आया.
‘कैसे दकियानूसी लोग हैं. आज के जमाने में भी लड़केलड़की को साथ देखा कि कानाफूसी करने लगेंगे. समझते नहीं जमाना बदल गया है. आज के जमाने में जिस लड़के की गर्लफ्रैंड न हो या जिस लड़की का बौयफ्रैंड न हो उसे लल्लू समझते हैं लोग. सुनील और स्नेहा की तरह. कोई स्टाइल नहीं, कोई खूबी नहीं, तभी तो कोई ध्यान नहीं देता.
‘इस उम्र में लड़कालड़की में एकदूसरे के लिए आकर्षण होना तो आम बात है. सभी जानते हैं इस फैक्ट को, पर मान नहीं सकते. रोमा का परिवार ही समझदार है, वरना यहां मां को पता लग गया तो कल ही घर में तूफान खड़ा कर देंगी, कालेज में लड़के नहीं जाते, जो लड़की से दोस्ती कर ली?’ रात बिस्तर पर लेटेलेटे कुंदन ने सोचा.
‘‘कुंदन, अरे ओ कुंदन… घोड़े बेच कर सो रहा है? उठ पुलिस आई है,’’ सुबह पापा ने गुस्से से उसे झिंझोड़ कर जगाया.
आगे पढ़ें- रोमा कहां है? कहां छिपाया है तू ने उसे?’’..
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