अनलॉक की प्रक्रिया में कैसे बचे कोरोना संक्रमण से, आइये जानें 

कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते केसेज के साथ-साथ अनलॉक 2 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, ऐसे में सभी को खुद का ध्यान रखने की जरुरत है, ताकि संक्रमण पर काबू किया जा सके. डॉक्टर्स और पैरामेडिकल फोर्सेज लगातार लोगों को सावधान रहने की गुजारिश कर रहे है, ताकि अस्पतालों पर मरीजों का भार अधिक न पड़े. ये सही है कि मुंबई में हर दिन संक्रमितों और मरने वालों की संख्या बढती जा रही है, पर लॉक डाउन से देश की आर्थिक व्यवस्था इतनी कमजोर हो चुकी है कि इसे पटरी पर लाने से अधिक मेंटेन करना जरुरी है. नहीं तो लोग भूखमरी से मरने लगेंगे. 

अनलॉक की प्रक्रिया में आम इंसान को किस तरह की सावधानी बरतने की जरुरत है? पूछे जाने पर मुंबई की जेन मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, चेम्बूर के इंटेंसिविस्ट एंड इन्फेक्शन डिसीज स्पेशलिस्ट डॉ. विक्रांत शाह कहते है कि लगातार लॉक डाउन करना किसी भी देश के लिए संभव नहीं है. इसलिए पूरा लॉक डाउन न करते हुए आंशिक किया गया है. इसके लिए कई गाइड लाइन्स सरकार ने दिए है, जिसे पालन करना जरुरी है. अभी जरुरत के बिना घर से निकल कर घूमना ठीक नहीं. इससे भीड़ बढ़ेगी और संक्रमितों की संख्या बढ़ेगी. इस समय रेस्पिरेटरी हायजिन की जरुरत है. एक साथ बैठकर खाना, पार्टी मनाना, भीड़ में ट्रेवल करना आदि अब संभव नहीं. सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने की जरुरत है. जिनको बाहर काम पर जाने की जरुरत है, वे ही घर से निकले, बाकी घर पर रहने की कोशिश करें. इसके अलावा जो लोग एस्थमा, मधुमेह या हाइपरटेंशन के शिकार है. उन्हें अपनी ख़ास देखभाल करने की जरुरत है. इसमें बच्चे, बुजुर्ग और प्रेग्नेंट वुमन ख़ास है, जिन्हें बहार निकलने से परहेज करनी चाहिए. इम्म्युनिटी बढाने की जरुरत है, क्योंकि इस बीमारी में इम्युनिटी अच्छी होने पर इन्फेक्शन प्राणघातक नहीं होती. 

ये भी पढ़ें- तोरई के फायदे जानकार हैरान रह जायेंगे आप, कई रोगों का है रामबाण इलाज़

ये बीमारी नयी है. डॉक्टर और रिसर्चर लगातार शोध कर रहे है. इसलिए किसी भी प्रकार की लापरवाही इस बीमारी के लिए ठीक नहीं है.सेल्फ डिसीप्लीन बहुत जरुरी है. लोग मास्क पहनना बहुत जरुरी है. सरकार ने कई जगह मास्क न लगाने पर जुर्माना भी लगाया है.  

वैक्सीन पर काम हो रहा है पर इतनी जल्दी वैक्सीन का निकलना मुश्किल है, क्योंकि इस वायरस के बारें में सही जानकारी मिलने में थोडा समय और लगेगा. पूरा विश्व इस दिशा में काम कर रहा है. एक बार ये बीमारी होने के बाद में फिर से रिपीट नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. इसलिए सावधान रहने की जरुरत है. 

महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या को काबू में रखना सरकार के लिए एक चुनौती बन चुकी है. जहाँ भी थोड़ी ढिलाई दी जाती है लोग घरों से बाहर बिना मास्क के निकल जाते है. इस बारें में रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx  बायो साइंस सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के डॉ. प्रदीप महाजन कहते है कि ये बीमारी सालों तक चलने वाली है, इसलिए पूरी अर्थव्यवस्था को बंद करना संभव नहीं है. इतने रिसर्च के बाद भी यही सामने आ पाया है कि इस बीमारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एक मात्र उपाय है, जिससे संक्रमण कम हो सकती है. इसके अलावा बीमारी ये भी संकेत दे रही है कि धीरे-धीरे यह हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रही है, क्योंकि 80 से 90 प्रतिशत लोग अब बीमारी से ठीक हो जा रहे है. 5 प्रतिशत लोग ही क्रिटिकल हो रहे है, उन्हें सम्हालने की जरुरत है. इसमें रिस्क फैक्टर वाले लोगों जिसमें 60 साल से अधिक उम्र के लोगों, प्रेग्नेंट महिलाएं और 10 साल से कम उम्र के बच्चों को जरुरत के बिना घर से न निकलना है. ये सब सावधानियां बनाये रखने की आज बहुत अधिक आवश्यकता है,क्योंकि पूरे देश को लॉक डाउन करके महीनों तक रखना संभव नहीं है. इसके अलावा जहाँ कोरोना संक्रमण के मरीज कम है, वहां काम काज शुरू करने में कोई हर्ज़ नहीं है, लेकिन अधिक संक्रमित इलाके में सख्ती से नियमों का पालन होना जरुरी है.

इसके आगे डॉक्टर प्रदीप का कहना है कि मुंबई जैसी भीड़भाड़ वाली शहर के लिए सरकार को अनलॉक से पहले अच्छी तरह से प्लानिंग करने की जरुरत है. जिसमें लोकल ट्रेन और बसों में भीड़ न हो उसके लिए सही गाइडेंस लोगों को देना और उसका सही पालन हो इसकी भी जांच करते रहना चाहिए. ट्रेवलिंग की समस्या मुंबई में है, जिसे ठीक करने की जरुरत इस समय है. वैसे भी हमारे देश में इतनी बड़ी समस्या से निपटना बस की बात नहीं है, क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर वैसी नहीं है कि इतनी बड़ी पेंडेमिक से निपटा जाय.

इस समय देश में धार्मिक स्थलों को खोलना और उस पर पैसा लगाना कितना उचित है? पूछे जाने पर डॉक्टर का कहना है कि मौजूदा हालात में धार्मिक स्थलों को खोलना किसी भी लिहाज़ से जरुरी नहीं, क्योंकि इससे भीड़ बढ़ेगी और संक्रमण फैलेगा. आज नए अस्पताल, क्वारेंटाइन प्लेसेस, नए उपकरण, सही दवा आदि अधिक आवश्यक है. अभी अनलॉक करना बहुत जरुरी है, क्योंकि लोगों के पास जो पैसे रिज़र्व में थे वह ख़त्म हो चुके है, ऐसे में काम करना जरुरी है, ताकि वे अपना जीवन चला सकें. 

ये भी पढ़ें- खूबसूरती और हेल्थ से जुड़े हुए नीम के पानी से नहाने के फायदे

इसके आगे वे कहते है कि मुंबई जैसे शहर में बड़ी कोविड हॉस्पिटल जिसमें आई सी यू के साथ नवीनतम उपकरण से लैस होना चाहिए. अभी जो क्रिटिकल मरीज कई अस्पतालों में भटकते है. वे इस अस्पताल में डायरेक्टली पहुँचकर वेंटिलेटर या ओक्सिजन से खुद का इलाज करवा सकते है और 80से 90 प्रतिशत संक्रमित व्यक्ति दूसरे ओपीडी या क्वारेंटाइन सेंटर में जाकर इलाज करवा सकते है, इससे बेड की कमी नहीं होगी और इलाज बेहतर होगा. सेवेन हिल्स हॉस्पिटल में एक हज़ार बेड के आई सी यू यूनिट खुल चुका है जिससे सेंट्रल मोनिटरिंग हो रही है . मुंबई में ऐसी 4 से 5 हॉस्पिटल होने की आवश्यकता है. 

इसके अलावा डॉक्टर्स की माने तो इस बीमारी को ख़त्म करने का सबसे सही तरीका है, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना, सेनिटाइज करते रहना, इम्युनिटी को बढ़ाना आदि है. साथ ही वैक्सीन के उपलब्ध होने से ही इसे खत्म किया जा सकेगा.

टैटू से छुटकारा पाना हुआ आसान

मां ने जब समझाया था कि यह कलाई पर बनवाए गए ड्रैगनफ्लाई टैटू पर तुम बाद में पछताओगे तो तुम्हें उस वक्त अपनी मां की बात पर यकीन नहीं हुआ था. अब जब महज 4 साल बाद एक अंतर्राष्ट्रीय एअरलाइंस में नौकरी का सुनहरा अवसर मिल रहा है, तो इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं यह टैटू कैरियर की राह में मुश्किल न खड़ी कर दे.

खैर, आप अकेले नहीं हैं, जिन्हें यह चिंता सता रही है. पिछले कुछ सालों में टैटू भारतीय युवा संस्कृति के प्रतिमानों का एक अभिन्न अंग बन गया है.

ज्यादातर त्वचा विशेषज्ञ यह चेतावनी देते हैं कि टैटू को पूरी तरह से हटा पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह स्थाई होता है. इसे मिटा पाना बेहद मुश्किल होता है. लेकिन कुछ सर्जन ऐसे भी हैं, जो टैटू को पूरी तरह हटा देने की गारंटी देते हैं. इन 2 रायों के बावजूद हम बताना चाहेंगे कि टैटू हटाने के कई तरीके हैं, जिन का असर प्रभावी साबित हुआ है. इस का परिणाम कई कारकों पर निर्भर करता है, जिन में टैटू का आकार, उस का स्थान, घाव भर पाने की व्यक्तिगत क्षमता, टैटू कैसे बनवाया गया था और कितने लंबे समय से टैटू उस स्थान पर मौजूद है. उदाहरण के लिए अगर टैटू किसी अनुभवी आर्टिस्ट से बनवाया गया है, तो उसे हटा पाना ज्यादा आसान होगा, क्योंकि उस के द्वारा इस्तेमाल किए गए रंग को त्वचा के समान स्तरों पर समान ढंग से भरा गया होगा. पुराने टैटू के मुकाबले नए टैटू को हटा पाना ज्यादा मुश्किल हो सकता है.

टैटू हटाने की प्रक्रिया का विकास

अगर आप 5 साल पहले टैटू हटवाने के बारे में सोचते तो उस वक्त यह प्रक्रिया ज्यादा दर्द भरी, ज्यादा महंगी और 100% परिणाम के आश्वासन के बिना होती. लेकिन अब लेजर तकनीक इस हद तक आधुनिक हो गई है कि वह इस उपचार को सुरक्षित और आरामदायक बनाती है. साथ ही, इस के परिणाम के बारे में पहले से अनुमान भी लगाया जा सकता है.

टैटू हटवाने या उस से छुटकारा पाने के पीछे बहुत कारण हो सकते हैं. टैटू से जुड़ी पिछली कुछ बातों का बोझ हो या शादी के लिए या फिर नौकरी के लिए. कारण कोई भी हो लेजर तकनीक से टैटू मिटा पाना एकदम सुरक्षित है.

लेजर रिमूवल तकनीक

टैटू बनाने में प्रयोग होने वाली स्याही, सीसा, तांबा और मैगनीज जैसी सघन धातुओं से तैयार मिश्रित पदार्थों से मिल कर बनी होती है. कुछ लाल स्याहियों में पारा यानी मरकरी भी मौजूद होता है. इन्हीं धातुओं के कारण टैटू स्थाई हो जाता है. इसलिए टैटू हटाने या उसे बदलने की तमाम विधियों में टैटू का लेजर निष्कासन सब से बेहतर विकल्प है. यह प्रक्रिया अमूमन टैटू के रंगों को हटाने की एक गैरआक्रामक प्रक्रिया (क्यूस्विच लेजर का इस्तेमाल करते हुए) होती है.

आमतौर पर बहुरंगीय टैटू के मुकाबले काले या अन्य गहरे रंगों के टैटू का निष्कासन पूर्ण और ज्यादा आसान होता है.

इस प्रक्रिया के दौरान लेजर किरणें त्वचा के भीतर तक जा कर टैटू की स्याही को सोख लेती हैं. अलगअलग रंगों के टैटू के लिए अलगअलग लेजर की जरूरत होती है, जिस की एक अवशोषण तरंग होती है, जो इन रंगों के साथ मेल खाती है. उदाहरण के लिए काली स्याही को लक्षित करने के लिए हमें 1064 एनएम की एक निश्चित रेडियो तरंग की जरूरत होती है जोकि क्यू स्विच्ड एनडी वाईएजी लेजर है और लाल रंग की स्याही के लिए हमें 532एनएम रेडियो तरंग चाहिए होती है.

टैटू के कण लेजर किरणों को सोखते हैं और गरम हो जाते हैं और फिर छोटे कणों में विस्फोटित हो जाते हैं. इन छोटे कणों को हमारे शरीर का प्रतिरक्षी तंत्र धीरेधीरे सोख लेता है और इस के चलते टैटू मिटने लगता है.

ज्यादातर मरीजों को कई सत्रों में बुलाने

की जरूरत पड़ती है, जिन की संख्या 2 से 10 के बीच हो सकती है. 1 सत्र 2 महीनों के अंतराल पर होता है ताकि विभाजित टैटू स्याही साफ हो सके.

निष्कासन के बजाय फीकेपन को चुनें

कई लोगों का मानना है कि लेजर टैटू निष्कासन की प्रक्रिया शुरू करने का मतलब है टैटू को पूरी तरह से मिटाना और इस की पूरी प्रक्रिया से गुजरना. लेकिन ऐसा नहीं है खासकर जब आप टैटू को पूरी तरह से मिटाने के बजाय उस में कुछ बदलाव चाहते हैं या नए रंगों का प्रयोग करना चाहते हैं. आमतौर पर 3 से 5 सत्रों में इतना रंग हटा दिया जाता है कि आप अपनी त्वचा पर नया टैटू बनवा सकें.

लेजर टैटू निष्कासन धीरेधीरे रंग उतारने की प्रक्रिया है और यह तात्कालिक नहीं है. रंग की प्रत्येक परत को धीरेधीरे हटाया जाता है. इसलिए राज की बात यह है कि अगर पुराने टैटू की जगह नया टैटू लेने वाला है, तो आप की त्वचा की डर्मिस परत से पर्याप्त रंग हटा दिया जाएगा ताकि नए टैटू की स्याही पुराने रंग पर परतदार न लगे. फिर जैसे ही आप नया टैटू बनवाएंगे पुराना टैटू बीते दिनों की याद भर बन कर रह जाएगा.

परिणाम और फायदे

टैटू के पूरी तरह निष्कासन वाले मामलों में ज्यादातर टैटू बिना कोई निशान पीछे छोड़े पूरी तरह मिट जाते हैं, लेकिन कई बार कुछ निशान छूट जाते हैं.

लेजर प्रक्रिया ज्यादा दर्द भरी नहीं होती है और निष्कासन अमूमन सुन्न करने वाली क्रीम के प्रभाव में किया जाता है. इस में मरीज को पहले से भरती होने की कोई जरूरत नहीं होती है और वह सामान्य गतिविधियां तत्काल शुरू कर सकता है. हालांकि जिस जगह पर उपचार किया गया है वहां थोड़ी सूजन और लालपन देखा जा सकता है, लेकिन यह कुछ ही घंटों में ठीक हो जाता है.

लेजर प्रक्रिया की कीमत

टैटू बनवाने से पहले इस तथ्य का जरूर ध्यान रखें कि इसे हटाना बनवाने से ज्यादा महंगा साबित हो सकता है. टैटू हटाने की कीमत आकार और रंग पर निर्भर करती है. लेकिन प्रत्येक सत्र की कीमत 3 हजार से 10 हजार के बीच हो सकती है.

अनचाहे टैटू को हटवाने के इच्छुक व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह किसी निपुण त्वचा विशेषज्ञ से ही इसे हटवाएं, क्योंकि इसे किसी पेशेवर से न हटवाने पर लेजर के कारण त्वचा पर निशान पड़ सकते हैं.

-डा. मुनीष पौल

डर्मैटोलौजिस्ट ऐंड लेजर सर्जन, स्किन लेजर सैंटर

शादी के बंधन में बंधे ‘बिग बौस 8’ विनर गौतम गुलाटी और उर्वशी रौतेला! पढ़ें खबर

कोरोनावायरस के कहर के बीच कई सेलेब्स शादी के बंधन में बंध रहे हैं, जिनमें हाल ही में ससुराल सिमर का फेम एक्टर मनीष रायसिंघानी का नाम भी जुड़ गया है. वहीं अब ‘बिग बॉस 8’ (Bigg Boss 8) के विनर रह चुके एक्टर गौतम गुलाटी (Gautam Gulati) और बौलीवुड एक्ट्रेस  उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें दोनों शादी करते नजर आ रहे हैं, जिसके साथ गौतम गुलाटी (Gautam Gulati) का एक कमेंट लोगों को हैरान कर रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या सच है गौतम गुलाटी की शादी…

शादी को लेकर फोटो की शेयर

गौतम गुलाटी (Gautam Gulati) ने सोशलमीडिया पर एक फोटो शेयर की, जिसमें उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) महरुन रंग के लहंगे में और गौतम गुलाटी क्रीम रंग की शेरवानी सूट में दिख रहे हैं. साथ ही इस फोटो के साथ कैप्शन शेयर करते हुए गौतम गुलाटी (Gautam Gulati) ने लिखा कि, ‘शादी की मुबारक नहीं बोलोगे?’ , जिसके बाद फैंस उनकी शादी को लेकर हैरान हैं.

ये भी पढ़ें- Wedding Photoshoot: पत्नी को कंधे पर उठाते नजर आए ‘ससुराल सिमर का’ फेम एक्टर

फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं गौतम

‘बिग बॉस 8’ विजेता गौतम गुलाटी की फोटो, दरअसल उनकी और उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela)  की अपकमिंग फिल्म ‘वर्जिन भानुप्रिया’ के एक सीन की है. गौतम गुलाटी ने फोटो को शेयर करते हुए कैप्शन में ये भी लिखा है कि, ‘हमारी फिल्म जल्द ही रिलीज होने वाली है. आशा करता हूं कि आप सभी को पसंद आएगी.’ गौतम गुलाटी और उर्वशी रौतेला स्टारर ये फिल्म कॉमेडी ड्रामा जॉनर की है. इस फिल्म में नए जमाने की कहानी दिखाई जाएगी.

https://www.youtube.com/watch?v=AUtpSPziSAs

बता दें, गौतम गुलाटी बिग बौस 8 में काफी पौपुलर हुए थे, जिसके बाद उन्हें बौलीवुड की कई फिल्मों के औफर आने लगे थे. वहीं पर्सनल लाइफ की बात करें तो वह अक्सर सुर्खियां बटोरते हुए नजर आते हैं.

ये भी पढ़ें- नेपोटिज्म का शिकार होने वाले बयान पर ट्रोलिंग का शिकार हुए सैफ अली खान, Memes Viral

‘ससुराल सिमर का’ फेम मनीष का Wedding फोटोशूट, पत्नी को बांहों में लेकर दिए ऐसे पोज

कोरोनावायरस कहर के बीच टीवी के पौपुलर स्टार्स में से एक्टर मनीष रायसिंघानी (Manish Raisinghan) ने अपनी गर्लफ्रेंड एक्ट्रेस संगीता चौहान (Sangeeta Chauhan) के साथ बीते दिनों शादी कर ली थी, जिसमें फैमिली के अलावा बेहद कम लोग शादी के फंक्शन में नजर आए. वहीं ‘ससुराल सिमर का’ फेम एक्टर की फोटोज तेजी से वायरल हो रही है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सेलेब कपल के वेडिंग एल्बम की झलक…

एक दूसरे के साथ खुश नजर आए मनीष-संगीता

नया शादीशुदा जोड़ा मनीष-संगीता का वेडिंग फोटोशूट दोनों ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट के जरिए फैंस के लिए शेयर किया, जिसमें दोनों की खुशी देखते ही बन रही है. वहीं सेलेब्स के साथ-साथ फैन्स दोनों की खुशी देखकर बधाई दे रहे हैं.

सिंपल तरीके से की शादी

वेडिंग फोटोशूट में मनीष रायसिंघानी (Manish Raisinghan) और संगीता चौहान (Sangeeta Chauhan)एक दूसरे के साथ ‘मेड फॉर ईच अदर’ लग रहे हैं. वहीं शादी की तैयारियों की बात करें तो कोरोनावायरस के चलते दोनों ने सिंपल तरीके से शादी की तैयारियां की, जिसमें बेहद कम लोग शामिल हुए.

 

View this post on Instagram

 

❤ Just Married ❤ #sanman Manisshhhh… Thank you for having me in your life.. I’m super Blessed and extremely Lucky to be your Wife.. 😈 (please swipe to the fourth picture) Thank you for being the one I look up to and always being by my side.. Thank you for being my Support and Strength.. I Found You, I Found Myself.. I Love You🤗🤗🤗🤗.. Thank you so much bhakti didi @bhakti_designer for these lovely colourful outfits..💞💞💞 Thank you everyone for ur heart warming wishes. Your beautiful blessings and all the love you all showered on us. Didn’t get an opportunity to respond personally to all your messages but shall slowly and steadily cope up wid that… Thank you once again to one and all… love you all….

A post shared by Sangeita Chauhaan (@sangeitachauhaan) on

ये भी पढ़ें- ‘ससुराल सिमर का’ फेम मनीष रायसिंघानी ने गर्लफ्रेंड संग रचाई शादी, देखें फोटोज

शादी में नजर आया ट्रेडिशनल लुक

शादी में जहां टीवी एक्टर मनीष रायसिंघानी ने कुर्ते पैजामे और एंब्रोइडर्ड जैकेट पहने नजर आए तो वहीं संगीता मैजेंटा कलर का ट्रेडिशनल सलवार सूट में दिखीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

माता-पिता नहीं हुए शादी में शामिल

कोविड-19 के कारण मनीष रायसिंघानी और संगीता चौहान के माता-पिता शादी में शामिल नहीं हो पाए, लेकिन वीडियो कॉल के जरिए पेरेंट्स ने बच्चों की शादी देखी. वहीं सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए दोनों ने शादी की सारी रस्में अदा की.

बता दें, मनीष और संगीता ने 30 जून को शादी की थी, जिस दिन उनकी खास दोस्त अविका गौर का भी जन्मदिन था. वहीं अविका इस बात से बेहद खुश भी नजर आईं थीं.

ये भी पढ़ें- श्वेता तिवारी के बच्चों से मिलने की पाबंदी पर बोले पिता अभिनव कोहली, किए कईं खुलासे  

 

तोरई के फायदे जानकार हैरान रह जायेंगे आप, कई रोगों का है रामबाण इलाज़

सेहतमंद रहने के लिए हमेशा से ही हरी सब्जियों का सेवन करने की सलाह दी जाती रही है.  यह शरीर को कई तरह के लाभ पहुंचाकर हमें निरोग रखती हैं. गर्मी का मौसम है और इस मौसम में हरी सब्जियां खाना हमारे सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है.हरी सब्जियों की बात कर रहे है तो लौकी और तोरई इस मौसम की सबसे फायदेमंद सब्जी है.ये मार्किट में बहुत ही आसानी से मिल जाती है.वैसे तो तोरई को हर जगह  अलग -अलग नाम से जाना जाता है.  कहीं इसको नेनुआ, कहीं घिसोरा, कहीं झींगा, कहीं दोडकी कहते है और इसका इंग्लिश नाम स्प़ंजगार्ड और  रिजगार्ड  हैं.  यह‌ विटामिन, फाइबर, प्रोटीन, मिनरल से भरपूर सब्जी है.

तोरई में भरपूर मात्र में पोषक तत्व होते है . इसमें कैल्शियम, कॉपर , आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस , मैग्नीशियम,मैगनीज  खनीज के तौर पर पाए जाते हैं. इसमें  विटामिन ए,बी, सी , आयोडीन और  फ्लोरिन जैसे तत्व भी पाए जाते हैं.

यह एक ऐसी बेल है, जिसका फल, पत्ते, जड़ और बीज सभी लाभकारी हैं.आइये जानते है इसके फायदों के बारे में-

1. डायबिटीज कन्ट्रोल करने में-एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद एक शोध के मुताबिक तोरई  के पत्ते और इसके बीज में  एथनॉलिक अर्क मौजूद होते है . इस अर्क में ग्लूकोज के स्तर को कम करने वाला हाइपोग्लाइमिक प्रभाव पाया जाता है.  इसी प्रभाव की वजह से तोरई को डायबिटीज नियंत्रित करने के लिए लाभकारी माना जाता है.

2. वज़न कम करने में-तोरई में पानी की मात्रा अधिक होती है साथ ही इसमें फायबर भी भरपूर होता है. यह वजन कम करने में सहायक होता है.

ये भी पढ़ें- खूबसूरती और हेल्थ से जुड़े हुए नीम के पानी से नहाने के फायदे

3. त्वचा सम्बन्धी रोगों को दूर करने में-तोरई की पत्तियां त्वचा सम्बन्धी रोगों के उपचार के लिए काफी फायदेमंद होती है. ये कुष्ठ रोग में भी काफी उपयोगी है.इसकी पत्तियों को पीस कर इसमें लहसुन मिलकर लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ मिलता है. इसकी पत्तियों को पीस कर  मुहांसे और डेड स्किन जैसी समस्याओं से आसानी से राहत  पायी जा सकती है.

4. गर्भवती महिलाओं और होने वाले शिशु के लिए भी है काफी फायदेमंद-तोरई के अंदर विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है. तोरई  के अंदर फोलिक एसिड की उपस्थिति से बच्चे की रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है.  इसे खाने से शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का भी निर्माण होता है. इसलिए ड्रॉक्टर गर्भावस्था के समय तोरई खाने की सलाह देते  है.

5. piles में रहत- इसके फायबर कब्ज को मिटाकर बवासीर में आराम पहुंचाते हैं. तोरई के नियमित उपयोग से बवासीर( Piles )में बहुत लाभ होता है.

ये भी पढ़ें- coronavirus: इन 7 बातों से रखें परिवार को सुरक्षित

6. असमय बाल सफ़ेद होने से रोकती है-तोरई हमारे स्वस्थ के साथ साथ बालों को असमय सफ़ेद होने से रोकने के लिए भी घरेलु नुस्खे की तरह काम करता है. इसके लिए तोरई को छिलके सहित काट कर सुखा लिया जाता है. इसे पीस कर पाउडर बनाया जाता है. इसे तेल में मिलाकर बालों में लगाने से बालों का सफ़ेद होना कम हो जाता है. ध्यान रहे-तोरई कफ तथा वात उत्पन्न करने वाली होती है. जरूरत से अधिक इसका सेवन करना हानिकारक हो सकता है. ब्लड प्रेशर वाले लोगो को तोरई नहीं खाना चाहिए.

डायरी: मानसी को छोड़ अनुजा से शादी क्यों करना चाहता था विपुल?

परमानैंट आईब्रोज बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. मैं परमानैंट आईब्रोज बनाना चाहती हूं. कृपया बताएं कि इस के लिए क्या करना होगा?

जवाब-

परमानैंट आईब्रोज बनाने के लिए मशीन द्वारा एक बार आईब्रोज को मनचाही शेप व कलर में बना दिया जाता है, जो पसीने या नहाने से खराब नहीं होती हैं. इस का असर 12 से 15 साल तक बना रहता है. इस प्रोसैस में किसी औपरेशन की जरूरत नहीं होती है.

जरमन कलर्स ऐंड नीडल्स के द्वारा परमानैंट मेकअप किया जाता है, जिस का कोई बुरा असर नहीं होता है. बस इस प्रोसैस के बाद हलकी सी रैडनैस नजर आती है, जो 15-20 मिनट में चली जाती है.

ये भी पढ़ें- 

हर लड़की चाहती है कि वह सुंदर दिखे. इसके लिए वह पार्लर जाती है. आमतौर पर देखा जाता है कि लड़कियां सुंदर दिखने के लिए अपनी आई ब्रो को लेकर बेहद क्रेजी रहती हैं. वह कम उम्र में ही थ्रेडिंग बनवाने लग जाती हैं.

चेहरे पर मेकअप के साथ-साथ सही आईब्रो का शेप आपके लुक को और भी खूबसूरत बना सकता है. इसलिए जरूरी है यह जानना कि आपके फेस पर किस तरह की आइब्रो अच्छी लगेगी. जानिए, आईब्रो के शेप और कलर से जुड़ी कुछ जरूरी बातें…

– किसी की दोनों आइब्रो पूरी तरह से एक बराबर नहीं होती है. इसलिए ध्यान रहे कि इन्हें एकसमान बनाना बहुत ज़रूरी है. छोटी-बड़ी आइब्रो आपकी सुंदरता बिगाड़ सकती हैं.

पूरी खबर पढने के लिए-आइब्रो शेप दे आपको खास लुक

अब क्या होगा

भारत में ही नहीं अमेरिका तक में सवाल उठ रहा है कि अब क्या घरों को साफ करने वाली पार्टटाइम मेड्स को कैसे आने दिया जाए? देशभर में रैजिडैंशियल सोसाइटियों ने पार्टटाइम मेड्स को कौंप्लैक्सों में आने से मना कर दिया. लौकडाउन के दौरान तो काम चल गया, क्योंकि सब लोग घर में थे और मेहमानों को आना नहीं था. जितना बन सका साफ कर लिया बाकी वैसे ही रह गया. हाथ भी ज्यादा थे.

अब क्या होगा? अमेरिका में भी क्लीनिंग स्टाफ कई घरों में काम करता है और उन सघन इलाकों में रहता है जहां कोविड केसेज ज्यादा हैं. उन के बिना घर साफ रह ही नहीं सकते. अब घर के सारे काम भी करना और काम पर भी जाना न भरेपूरे परिवार के लिए संभव है और न अकेले रहने वालों के लिए.

सवाल हैल्पों की नौकरी का इतना नहीं जितना इन हैल्पों की मालकिनों की नौकरियों का है. अगर बच्चों और घर दोनों को दफ्तर के साथ संभालना पड़ा तो आफत आ जाएगी.

अमेरिका में बच्चों को फुलटाइम आया के पास न रख डे केयर सैंटरों में ज्यादा रखा जाता है जैसे यहां क्रैचों में रखा जाता है पर वहां जो काम कर रही हैं, वे कैसे कोविडपू्रफ होंगी यह सवाल खड़ा हो रहा है.

ये भी पढ़ें- सोशल डिस्टेंसिंग के दबाव में कहीं गायब न हो जाएं खेल के मैदान!

ऊंची पढ़ाई कर के औरतों ने जो नौकरियां पाई थीं वे इन पार्टटाइमफुलटाइम मेड्स के बलबूते पाई थीं. वे होती हैं तो काम पर जाना आसान रहता है नहीं तो साल 2 साल की छुट्टी लेनी होती है.

अब वे हैं पर उन्हें रखना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि वे न जाने कहांकहां से हो कर आ रही हैं, किनकिन से मिल रही हैं.

कोविड अब तक अमीरों

का रोग ही ज्यादा पाया गया है. गरीबों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता ज्यादा है पर यह डर फिर

भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन अब कहने लगा है कि यह बच्चों को भी हो सकता है और बच्चों के माध्यम से वायरस मांबाप तक पहुंच सकता है.

वर्क प्लेस को बदलने में कोरोना एक गेम चेंजर बनेगा. अब लोग समूह में बैठनाउठना पसंद नहीं करेंगे पर जिन लोगों को जान पर खेल कर काम करने ही नहीं उन से अमीर व खास लोग कैसे बचेंगे यह सवाल रहेगा. पहली मार बच्चों वाली औरतों पर पड़ेगी और दूसरी उन के पतियों या साथियों पर जिन्हें बिना हैल्प के घर चलाने में मदद करनी होगी.

ये भी पढ़ें- भगवान पर भारी कोरोना

ऐसे सिखाएं बच्चों को तहजीब, ताकि वह बन सके एक बेहतर इंसान

चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.

रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.

उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’

‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.

‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की. बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.

‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’

‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’

अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं•’’

‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.

‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.

‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’

अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.

दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.

ये भी पढ़ें- जब पति फ्लर्टी हो

आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.

इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.

क्या करें

  • बच्चों के सामने आपस में संवाद करते वक्त बेहद सावधानी बरतें. आप का लहजा, शब्द बच्चे सभी कुछ आसानी से कौपी कर लेते हैं.
  • बच्चों को किसी न किसी क्रिएटिव कार्य में उलझाए रखें. ताकि वे बोर भी न हों और उन में सीखने की जिज्ञासा भी बनी रहे.
  • अपने बीच की बहस या झगड़े को उन के सामने टाल दें. बच्चों के सामने किसी भी बहस से बचें.
  • बच्चों को खूब प्यार दें. मगर साथ ही जीवन के मूल्यों से भी उन का परिचय कराते चलें. खेलखेल में उन्हें अच्छी बातें छोटीछोटी कहानियों के माध्यम से सिखाई जा सकती हैं. इस काम में बच्चों के लिए कहानियां प्रकाशित होने वाली पत्रिका चंपक उन के लिए बेहद मनोरंजक व ज्ञानवर्धक साबित हो सकती है.
  • रिश्तों के माने और महत्त्व जानना बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उतना ही जरूरी है, जितना एक स्वस्थ पेड़ के लिए सही खादपानी का होना.
  • समयसमय पर अपने बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिताएं. इस से आप को उन के मन में क्या चल रहा है, यह पता चल सकेगा और समय पर उन की गलतियों को भी सुधारा जा सकेगा.
  • बच्चों के हिंसक होने पर उन्हें मारनेपीटने के बजाय उन्हें उन की मनपसंद ऐक्टिविटी से दूर कर दें. जैसे आप उन्हें रोज की कहानियां सुनाना बंद कर सकते हैं. उन से उन का मनपसंद खिलौना ले कर कह सकते हैं कि अगर उन्होंने जिद की या गलत काम किए तो उन्हें खिलौना नहीं मिलेगा.

क्या करें

  • बच्चों को बच्चा समझने की भूल हरगिज न करें. माना कि आप की बातचीत के समय वे अपने खेल या पढ़ाई में व्यस्त हैं. पर इस दौरान भी वे आप की बातों पर गौर कर सकते हैं. समझने की जरूरत है कि बच्चों को दिमाग हम से अधिक शक्तिशाली व तेज होता है.
  • बच्चों पर अपनी बात कभी न थोपें, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अच्छी बातें भी बोझ लगती हैं, लिहाजा बच्चे निराश हो सकते हैं. सकारात्मक पहल कर उन्हें किसी भी काम के फायदे व नुकसान से बड़े प्यार से अवगत कराएं.
  • बच्चों की कही किसी भी बात को वक्त निकाल कर ध्यान से सुनें. उसे इग्नोर न करें.
  • बच्चों की तुलना घर या बाहर के किसी दूसरे बच्चे से हरगिज न करें. ऐसा कर आप उन के मन में दूसरे के प्रति नफरत बो रहे हैं. याद रहे कि हर बच्चा अपनेआप में यूनीक और खास होता है.
  • आज के अत्याधुनिक युग में हर मांबाप अपने बच्चों को स्मार्ट और इंटैलिजैंट देखना चाहते हैं. अत: बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें स्मार्ट अवश्य बनाएं. पर समय से पूर्व मैच्योर न होने दें.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: बेतुकी मांगों से महिलाओं पर बढ़ता दबाव

  • बच्चों को अपने सपने पूरा करने का जरीया न समझें, बल्कि उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दें. मसलन, जिंदगी में आप क्या करना चाहते थे, क्या नहीं कर पाए. उस पर अपनी हसरतें न लादें, बल्कि उन्हें अपने सपने पूरा करने का अवसर व हौसला दें ताकि बिना किसी पूर्वाग्रह के वे अपनी पसंद चुनें और सफल हों.
  • विशेषज्ञों की राय अनुसार बच्चों से बाबा, भूतप्रेत आदि का डर दिखा कर कोई काम करवाना बिलकुल सही नहीं है. ऐसा करने से बच्चे काल्पनिक परिस्थितियों से डरने लगते हैं. इस से उन का मानसिक विकास अवरुद्ध होता है और वे न चाहते हुए भी गलतियां करने लगते हैं.

नेपोटिज्म का शिकार होने वाले बयान पर ट्रोलिंग का शिकार हुए सैफ अली खान, Memes Viral

बीते दिनों एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद बौलीवुड में मानो नेपोटिज्म को लेकर जंग छिड़ गई है. जहां कंगना सुशांत के सपोर्ट में आकर बौलीवुड स्टार किड्स के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं तो वहीं आलिया भट्ट की मम्मी सोनी राजदान (Soni Razdan) अपनी बेटी के सपोर्ट में खड़ी होती नजर आई हैं. वहीं अब एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म को लेकर अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया है, जो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. वहीं कुछ लोगों को सैफ अली खान (Saif Ali Khan) को उनके इस बयान पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं सैफ

एक इंटरव्यू के दौरान एक्टर सैफ अली खान ने नेपोटिज्म को लेकर बताया कि शुरूआती दिनों में वो भी नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं. ‘भारत में हर जगह असमानता है, जिसके बारे में बात होनी चाहिए. नेपोटिज्म, फेवरेटिज्म और कैम्प अलग बात है. मैं भी नेपोटिज्म का शिकार हो चुका हूं लेकिन कोई उस बारे में बात नहीं करता है. मुझे खुशी है कि बाहर से इतने लोग इंडस्ट्री में आ रहे हैं और अपनी जगह बना रहे हैं.’

ये भी पढ़ें- कोरियोग्राफर सरोज खान का 71 साल की उम्र में निधन, बौलीवुड सेलेब्स दे रहे

नेपोटिज्म पर बयान को लेकर ट्रोलिंग का शिकार हो रहे सैफ

सैफ अली खान के नेपोटिज्म पर दिए इस बयान के बाद ट्रोलर्स उनका मजाक उड़ा रहे हैं. लोग मानने के लिए तैयार नहीं है कि एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म का सामना किया है. इसी को लेकर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है, ‘शर्मीला टैगौर और मंसूर अली खान पटौदी का बेटा सैफ अली खान कह रहा है कि उसने नेपोटिज्म का सामना किया है. अब तो मौत आ जाए, गम नहीं…’

ट्रोलर्स ने उठाया सवाल

दूसरे यूजर ने ट्वीट कर सैफ अली खान को मिले नेशनल अवॉर्ड पर सवाल उठाया है, ‘सैफ अली खान को फिल्म हम तुम के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था, इसी साल शाहरुख खान की स्वदेस रिलीज हुई थी. फिर भी सैफ नेपोटिज्म की बात कर रहे हैं.’

ये भी पढें- ‘ससुराल सिमर का’ फेम मनीष रायसिंघानी ने गर्लफ्रेंड संग रचाई शादी, देखें फोटोज

बता दें, बीते दिनों कई सेलेब्स नेपोटिज्म को लेकर सामने आए हैं और अपनी कहानी बताई है, जिसके बाद बौलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है. हाल ही में सोनू निगम से लेकर मोनाली ठाकुर ने अपनी जर्नी को शेयर करते हुए नेपोटिज्म की बात शेयर की थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें