Interesting Hindi Stories : मेरा दुश्मन

Interesting Hindi Stories : शादी के 5 साल बाद नन्हा पैदा हुआ तो मुझे लगा कि प्रकृति का इस से बड़ा उपहार और क्या हो सकता है. मैं उस का चेहरा एकटक निहारती पर दिल तक उस की सूरत उतरती ही नहीं थी. उस का चेहरा बस आंखों में ही बस जाता था. मेरे पति मदन हंसते, ‘‘आभा, तुम इस के चेहरे को किताब की तरह एकटक क्यों देखती हो? कलंदरा सा है, न शक्ल न रंग. बस, बेटा पा कर धन्य हुई जा रही हो. जैसे आज तक हमारे यहां बच्चे पैदा ही नहीं हुए हों. बस, गोद ही लिए जाते रहे हों.’’

मदन की बात से मेरे सर्वांग में चिनगारियां उड़ने लगतीं, ‘‘ओहो, तुम तो बड़े गोरे हो जैसे. बेटा तुम्हारे पर गया है. तुम जलते हो. अभी तक घर के एकमात्र पुरुष होने का गौरव था, सो ओछेपन पर उतर आए.’’

‘‘पर मां कहती हैं कि मैं बचपन में बहुत गोरा था. इस की तरह नहीं था.’’

‘‘रहने दो,’’ मैं ने बात काटी, ‘‘यह बड़ा होगा, शेव वगैरह करेगा तो अपनेआप ही इस का रूप निखर आएगा.’’

मदन को भले ही दलील दी पर नन्हे को हलदी, बेसन के उबटन से नहलाती थी, ‘हाय, मेरा बेटा सांवला क्यों हो?’

नन्हा बैठने लगा तो मैं बलिहारी हो गई. नन्हे ने खड़े हो कर एक कदम उठाया तो मैं खुशी से नाच उठी. नन्हे ने अभी तुतला कर बोलना शुरू ही नहीं किया था पर उस से बोलने के लिए मैं ने तुतलाना शुरू कर दिया.

मदन के लिए नन्हा आम बच्चों सा बच्चा था. शायद मां के तन से नहीं मन से भी शिशु का सृजन होता होगा तभी तो मेरे दिलोदिमाग में हर पल बस नन्हा ही समाया रहता.

नन्हा बोलने लगा. शिशु कक्षा में जाने लगा. उस के लिए एक नई दुनिया के दरवाजे खुल गए. अब वह बदल रहा था स्वतंत्र रूप से. मुझ से दूर हो रहा था. उस की आंखों में इतने चेहरे समा रहे थे आएदिन कि मेरा चेहरा अब धूमिल पड़ने लगा था.

मैं पति से कहती, ‘‘देखो, यह नन्हा कितना बदल रहा है…’’

मदन बीच में ही बात काट कर कहते, ‘‘तुम क्या चाहती हो, वह हमेशा तुम्हारे आंचल में मुंह छिपाए लुकाछिपी ही खेलता रहे? अब वह शिशु नहीं रहा, बड़ा हो गया है. कल को किशोर होगा. और भी बहुत तरह के बदलाव आएंगे. तुम भी हद करती हो, आभा.’’

नन्हे को मुझे किसी भी बात के लिए टोकनारोकना नहीं पड़ा. स्कूल से आ कर कपड़े बदल कर खाना खाता और अपनेआप ही गृहकार्य करने बैठ जाता था. मेरी मदद की जरूरत उसे किसी चीज में नहीं थी. स्कूल के साथियों की बातें वह मुझ से नहीं, मदन से करता था. दूसरे बच्चों को नखरे, फरमाइशें करते देखती तो मुझे नन्हे का बरताव और भी खल जाता.

मैं मदन से कहती, ‘‘नन्हा और बच्चों की तरह क्यों नहीं है?’’

लापरवाही के अंदाज में वे कहते, ‘‘शुक्र करो कि वैसा नहीं है. मुझ से तो शैतान बच्चे बिलकुल सहन नहीं होते, बच्चों के लिए बाहर के बजाय अपने भीतर के अनुशासन में रहना ज्यादा अच्छा है. फिर तुम खुद ही उस के लिए पहले से ही सबकुछ तैयार कर के रखती हो तो वह मांगे क्या? तुम अपनी तरफ से मस्त हो जाओ, नन्हा बिलकुल ठीक है.’’

एक बार मुझे बहुत तेज बुखार हो गया. मदन ने छुट्टी ले ली. नन्हे को स्कूल भेजा. फिर डाक्टर को बुला कर मुझे दिखाया. दवा, फल आदि लाए फिर उन्होंने खिचड़ी बनाई. मुझे यों मदन का काम करना अच्छा नहीं लग रहा था. घर की नौकरानी भी छुट्टी पर चली गई. मैं दुखी हो कर बोली, ‘‘अब बरतन भी धोने होंगे.’’

मदन मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘बरतन भी साफ कर लेंगे. तुम निश्ंिचत हो कर आराम करो. फिर नन्हा भी तो अब मदद कर देता है.’’

छुट्टी का दिन था. कमजोरी की वजह से आंखें बंद कर के मैं निढाल सी पड़ी थी. पास ही नन्हा और मदन कालीन पर बैठे थे. अचानक नन्हा बोला, ‘‘पिताजी, घर में मां की क्या जरूरत है?’’

‘‘क्यों, तुम्हारी मां पूरा घर संभालती हैं, तुम्हें कितना प्यार करती हैं, खाना बनाती हैं. अब देखो, हम दोनों से ही घर नहीं संभल रहा.’’

‘‘क्यों, आप खाना बना सकते हैं. मैं सफाई कर सकता हूं, बरतन भी धो सकता हूं. वह काम वाली बाई आ जाएगी तो फिर हमें ज्यादा काम नहीं करना पड़ेगा. हमें मां की क्या जरूरत है फिर?’’

एक पल को मदन चुप रहे. मेरे भीतर हाहाकार सा मच रहा था. मदन ने पूछा, ‘‘नन्हे, तुम मां को प्यार नहीं करते?’’

‘‘मैं आप को ज्यादा प्यार करता हूं.’’

‘‘मां बीमार हैं, तुम्हें बुरा नहीं लगता? मां तुम्हारा कितना खयाल रखती हैं, तुम्हें कितना प्यार करती हैं.’’

‘‘मां मुझे छोटा बच्चा समझती हैं, लेकिन मैं छोटा नहीं हूं. अब मैं बड़ा हो गया हूं,’’ नन्हा लापरवाही से बोला.

मेरी बंद आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. अंदर ही अंदर कुछ पिघल रहा था.

‘‘तो तुम बड़े हो गए हो, देवाशीष. ये पैसे लो और नुक्कड़ वाली दुकान से डबलरोटी और मक्खन ले कर आओ. हिसाब कागज पर लिखवा कर लाना. बचे पैसे संभाल कर जेब में रखना,’’ मदन ने नन्हे को भेज कर मेरे सिराहने बैठ धीरे से पुकारा, ‘‘आभा, आभा.’’

पर मैं चुप पड़ी रही. मदन ने मेरे चेहरे पर हाथ फेरा, ‘‘अरे, तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’

बस, उन के इतना पूछते ही मेरा आंसुओं का दबा सैलाब पूरी तरह बह निकला.

‘‘पगली हो, यों भी कोई रोता है,’’ मदन ने भावुक होते हुए कहा, ‘‘लो, ग्लूकोज का गिलास, एक सांस में खाली कर दो.’’

मैं प्रतिरोध करती रही पर मदन ने गिलास खाली होने पर ही मेरे मुंह से हटाया.

‘‘तुम ने सुना, वह क्या कह रहा था कि मेरी कोई जरूरत नहीं है इस घर में,’’ कहते हुए मेरी आंखें फिर छलकने लगीं.

‘‘तुम भी क्या उस की बात पकड़ कर बैठ गईं. ये उम्र के बदलाव होते हैं,’’ मदन ने सेब काट कर आगे बढ़ाया, ‘‘लो, खाओ और जल्दी से अच्छी हो कर हमें अच्छा सा खाना खिलाओ. यार, मैं तो खिचड़ी, दलिया और नहीं खा सकता, बीमार हो जाऊंगा, तुम खा नहीं रही हो, चाटमसाला छिड़क दूं, स्वाद बदल जाएगा.’’

मदन उठ कर चाटमसाला रसोई से लाए. तभी नन्हा भी अंदर आया. बिलकुल मदन के अंदाज में उस ने सामान मेज पर रखा और जेब से पैसे निकाल कर बिल के साथ मदन को दिए.

मदन ने बिल और पैसे मुझे दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो, तुम्हारा बेटा बड़ा हो गया है. बाजार से अकेले सामान ले कर आया है.’’

‘‘अरे वाह,’’ मेरा मन अंदर से उमड़ रहा था. मैं उस का सिर सहला कर ढेर सा प्यार करना चाहती थी पर मैं ने अपने को रोक लिया. बोली, ‘‘अब तो अच्छा हो गया, जब तुम घर पर नहीं रहोगे, नन्हा मेरा बाजार का काम कर देगा.’’

एक गर्वीली सी मुसकान नन्हे के चेहरे पर खिल उठी.

मदन ट्रे में दूध के 3 गिलास ले कर आए और बोले, ‘‘चलो नन्हे, जल्दी से अपना दूध खत्म करो. फिर हम दोनों मिल कर खाना बनाएंगे.’’नन्हे ने आज्ञाकारी बेटे की तरह गटागट दूध खत्म किया और फिर पिता के संग रसोई में चला गया. उसे जाते देख कर मैं सोच रही थी, ‘अभी पूरे 4 साल का भी नहीं हुआ है पर कितना जिम्मेदार है. आम बच्चों जैसा नहीं है तभी तो इतना अलग है.’

मैं स्वस्थ होते ही घर के कामकाज में पहले की तरह लग गई. इसी बीच नन्हे को फ्लू हो गया. 3-4 दिन में बुखार उतरा. हम दोनों आंगन में धूप सेंक रहे थे. पड़ोस की ज्योति और रमा बुनाई का डिजाइन सीखने आ गईं.

ज्योति अपने घर से बगीचे की मूलियां लेती आई थी. उस ने उन्हें छीला और टुकड़े कर के प्लेट में नमकमिर्च छिड़क कर ले आई. हम तीनों बहुत स्वाद से खा रही थीं. नन्हे का दिल भी खाने के लिए मचल गया. वह बोला, ‘‘मां, मिर्च हटा कर हमें भी दो.’’

मैं बोली, ‘‘नहीं, मुन्ना, अभी तो तुम्हारा बुखार ही उतरा है. कितनी खांसी है, अभी तुम्हें मूली नहीं खानी.’’

नन्हा ललचाया सा देखता रहा. फिर बोला, ‘‘मां, एक टुकड़ा दे दो.’’

‘‘नन्हीं, बेटा, खांसी और बढ़ जाएगी.’’

‘‘नहीं, मां, जरा सा, बस छोटा सा टुकड़ा दे दो,’’ नन्हा मिन्नतें करने पर उतर आया.

मुझे तरस आया. मैं ने पास रखी पानी की बोतल से मूली धो कर उसे दे दी. पर जैसा स्वाद उसे हमें मूली खाते देख कर महसूस हो रहा था शायद वैसा स्वाद उसे नहीं आया.

फिर भी मूली का टुकड़ा खत्म कर के अनमना सा खड़ा रहा, ‘‘आप ने हमें मूली खाने को क्यों दी?’’

ज्योति उस की नकल करती बोली, ‘‘हमें मूली खाने को क्यों दी? अभी गिड़गिड़ा कर मंगते से मांग रहे थे इसीलिए दी.’’

नन्हा नाराजगी से मुझे देखता हुआ बोला, ‘‘हम तो छोटे बच्चे हैं, आप तो बड़ी हैं. आप को पता है न, बच्चों की बात नहीं मानते. मैं पिताजी को बताऊंगा कि मुझे खांसी है फिर भी आप ने मुझे मूली खाने को दी.’’

‘‘क्या मैं ने अपनी मरजी से दी थी?’’ मैं हैरान सी नन्हे को देख रही थी, ‘‘तू किस तरह गिड़गिड़ा कर मांग रहा था.’’

‘‘मांगने से क्या होता है… आप देती नहीं तो मैं खाता कैसे? अब खांसी होगी तो मैं पिताजी को बता दूंगा, आप ने मुझे मूली दी थी इसी से खांसी बढ़ी,’’ वह अडि़यल घोड़े सा अड़ा था.

रमा ने उस का कान धीमे से पकड़ा, ‘‘तुम्हारे जैसे बच्चे की तो पिटाई होनी चाहिए, समझे? आने दो भैया को, मैं उन्हें बताऊंगी कि तुम भाभी को कितना तंग करते हो.’’

नन्हे ने अपना कान छुड़ाया और आंगन में उड़ आई तितली के पीछे भाग गया.

रमा मुझ से बोली, ‘‘सच भाभी, मैं ने ऐसा दूसरा बच्चा कहीं नहीं देखा. तुम्हें तो यह किसी गिनती में नहीं गिनता.’’

मैं मन ही मन सोच रही थी कि बेटा है तो क्या हुआ, है तो मेरा दुश्मन. नन्हा सा, प्यारा दुश्मन.

Hindi Moral Tales : पूर्णाहुति – जया का क्या था फैसला

Hindi Moral Tales : मैं बैठक में चाय ले कर पहुंची तो देखा, जया दीदी रो रही हैं और लता दीदी उन्हें चुप भी नहीं करा रहीं. कुछ क्षणों तक तो चुप्पी ही साधे रही, फिर पूछा, ‘‘जया दीदी को क्या हुआ, लता दीदी? क्या हुआ इन्हें?’’

आंसुओं को रूमाल से पोंछ, जबरदस्ती हंसने का प्रयास करते हुए जया दीदी बोलीं, ‘‘हुआ तो कुछ भी नहीं… लता ने प्यार से मन को छू दिया तो मैं रो दी, माफ करना. तेरे यहां के आत्मीय माहौल में ले चलने के लिए लता से मैं ने ही कहा था, पर कभीकभी ज्यादा प्यार भी रास नहीं आता. जैसे ही लता ने अभय का नाम लिया कि मैं…’’ वे फिर रोने लगी थीं.

‘अभय को क्या हुआ?’ मैं ने अब लता दीदी की तरफ देखते हुए आंखोंआंखों में ही पूछा. इस सब से बेखबर अपने को संयत करने की कोशिश में जया दीदी स्नानघर की तरफ बढ़ गई थीं. मुंहहाथ धो कर उन्होंने कोशिश तो अवश्य की थी कि वे सहज लगने लगें या हो भी जाएं, पर लगता था कि अभी फिर से रो पड़ेंगी.

‘‘मुझे समझ नहीं आता कि कहूं या न कहूं, पर छिपाऊं भी क्या? बात यह है कि अभय अपनी पत्नी सहित मुझ से अलग होना चाह रहा है,’’ भर्राई आवाज में उन्होंने कहा.

‘‘इस में रोने की क्या बात है, जया दीदी, यह तो एक दिन होना ही था,’’ मैं ने कहा.

‘‘यही तो मैं इसे समझा रही थी कि हम दोनों तो इस बात को बहुत दिनों से सूंघ रही थीं,’’ लता दीदी कह रही थीं.

‘‘वह कैसे? तुम लोगों से अचला और अभय बहुत आत्मीयता से मिलते हैं, मेरी सहेलियों में तुम दोनों का घर आना तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है,’’ जया दीदी ने कहा.

‘‘हमारा घर आना क्यों बुरा लगेगा उन्हें. समस्या तो आप हैं, हम नहीं. और फिर बाहर वालों के सामने तो अपनी भलमनसाहत का सिक्का जमाना ही होता है. वाहवाही जो मिलती है उन से. कितनी सुंदर, सुघड़, मेहमाननवाज, सलीकेदार है आप की बहू. भई, मुसीबत तो घर के लोग होते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जया, यह समय सम्मिलित कुटुंब का नहीं रहा है. चाहे परिवार के नाम पर एक मां ही क्यों न हो. और फिर तू घबराती क्यों है? एक प्राध्यापिका की आय कम नहीं होती. 5 साल बाद रिटायर होती भी है तो पैंशन तो मिलेगी ही. एक नौकरानी रख लेना,’’ लता दीदी उन्हें समझा रही थीं.

‘‘जया दीदी, 2-3 साल बाद जो होना है वह अगर अभी हो जाता है तो यह आप के हित में ही है. जब से अभय की शादी हुई है, मैं तो दिनबदिन आप को कमजोर होते ही देख रही हूं. मुझे लगता है, आप भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती हैं. आज की सासें बहुओं को कुछ कह तो सकती नहीं, अपनेआप में ही तनाव झेलती और घुलती रहती हैं. मैं तो सोचती हूं, उन का आप से अलग हो जाना आप के लिए अच्छा ही है,’’ मैं ने कहा.

‘‘फिर जया, अब वह जमाना नहीं है कि तुम बेटे से कहो कि बेटा, मैं ने तुम्हें इसलिए पालापोसा था कि बुढ़ापे में तुम मेरी लाठी बन सको. हम लोगों को बच्चों से किसी भी प्रकार की अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए…’’

‘‘कुछ अपेक्षा नहीं है मेरी,’’ लता की बात को बीच में काटती हुई जया दीदी बोलीं, ‘‘मैं तो केवल यह चाहती हूं कि वे मेरे सामने रहें. साथ रहने के लिए तो मैं ने आगरा विश्वविद्यालय से मिल रही  ‘रीडरशिप’ अस्वीकार कर दी थी.’’

‘‘जो हुआ सो हुआ, अब तुम अपने को उन से अलग हो कर अकेले जिंदगी जीने के लिए तैयार करो. आजकल की मांओं को बेटों के मोह से मुक्त हो कर अलग रहने के लिए तैयार रहना चाहिए. मैं जानती हूं, कहने और करने में बहुत अंतर होता है पर मानसिक तैयारी तो होनी ही चाहिए. अभ्यास से अकेलापन खलता नहीं, विशेषकर हम लोगों को, जिन को पढ़नेलिखने की आदत है. फिर तू तो एक तरह से अकेली ही रही है. अभय के साथ तेरे भीतर का अकेलापन कटा हो, यह तो मैं नहीं मान सकती. हां, दायित्व जरूर था वह तुझ पर.’’

‘‘दायित्व ही सही, व्यस्त तो रखा उस ने मुझे. एक भरीपूरी दिनचर्या तो रही, किसी को मेरी जरूरत है, यह एहसास तो रहा. नहीं लता, यह अकेलापन मुझ से बरदाश्त नहीं होगा.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, जया. चाय ठंडी न कर. रोने का मन है तो बेशक रो ले.’’ लता दीदी के ऐसा कहते ही जया हंसने लगीं, ‘‘इसीलिए तो यहां आई थी कि तुम लोगों में बैठ कर कुछ सही सोच पाऊंगी, अपने में कुछ विश्वास प्राप्त कर सकूंगी.’’

जया दीदी मन से उखड़ी हुई थीं, इसीलिए लता दीदी और मेरे प्रयासों के बावजूद अन्यमनस्क वे एकाएक खड़ी हो गईं और लता दीदी से कहने लगीं, ‘‘चल, अब और न बैठा जाएगा आज.’’

मुझे भी लगा, उन्हें अपने को समेटने के लिए बिलकुल अकेलेपन की जरूरत है, जिस का सामना करने से वे बच रही हैं. मैं ने कहा, ‘‘जया दीदी, मेरे पति तो आजकल बाहर हैं, इसलिए जब चाहे, आइए मेरे पास. मुझे आप का आना अच्छा ही लगेगा. इच्छा हो तो 2-4 दिन मेरे पास ही रह जाइए. मैं फिर दोहरा रही हूं, अभय और अचला के चले जाने पर आप अपने ढंग से रह सकेंगी. हमें भी आप के घर आने पर ज्यादा अपनापन लगेगा. अभी तो लेदे कर आप का शयनकक्ष ही अपना रह गया है.’’

जया दीदी लता दीदी के साथ चली गई थीं, पर मैं अभी भी उन्हीं में खोई हुई थी. अभय बड़ा हो गया है, यह उसी दिन महसूस हुआ. यों समझदार तो वह मुझे पहले से ही लगता था. उन दिनों हिंदी विषय पढ़ने के लिए वह अकसर मेरे पास आता था.

एक दिन वह बोला, ‘‘मौसी, ऐसा कुछ बताइए कि…’’

‘‘एक रात में ही तू पढ़ कर पास हो जाए…है न?’’ उस की बात पूरी करते हुए मैं ने कहा था, ‘‘पर बेटे, थोड़े दिन अपने पाठ्यक्रम को एक बार पूरी तरह से पढ़ तो ले.’’

उस की अभिव्यक्ति में कहीं कोई कमी नहीं थी. साहित्य पर उस की पूरी पकड़ थी. कठिनाई आती थी भाषा के संदर्भ में.

‘‘मौसी, इस बार पास नहीं हुआ तो, ‘औनर्स’ की डिगरी नहीं मिलेगी.’’

‘‘नहीं, मुझे पूरा भरोसा है कि तुम हिंदी पास ही नहीं करोगे, अच्छे अंक भी पाओगे.’’

‘‘ओह, धन्यवाद मौसी.’’

‘आषाढ़ का एक दिन’ नामक नाटक पढ़ने में उसे कठिनाई हो रही थी. मुझे याद है, इसलिए मैं ने उसे उन्हीं दिनों ‘संभव’ द्वारा हो रहे इसी नाटक को देखने के लिए भेजा था. परिणाम यह हुआ था कि ‘विलोम’ के चरित्र को उस ने परीक्षा में बड़े खूबसूरत ढंग से लिखा था. जीवन की उसे समझ थी.

‘मल्लिका’ की वेदना वह उस उम्र में भी महसूस कर सका था. फिर अपनी मां की वेदना को? क्या हुआ है अभय को? पर एकसाथ तनावग्रस्त रहने से तो अच्छे, मधुर संबंधों के साथ लगाव रखते हुए अलग रहना कहीं ज्यादा बेहतर है.

लंबी चुप्पी तो नहीं रही जया दीदी के साथ, पर मिलना भी नहीं हुआ. एक दिन फोन आया तो पूछ ही बैठी, ‘‘दीदी, अभय और अचला ने यह निर्णय क्यों लिया? कोई तात्कालिक कारण तो रहा ही होगा?’’

‘‘हां,’’ उन्होंने बताया, ‘‘तू जानती ही है कि नवरात्रों के अंतिम 2 दिन मेरा उपवास रहता है. अचला सुबह 9 बजे चली जाती थी. 10.50 पर मेरी भी कक्षा थी. सुबह मैं ने दोनों को चाय दे ही दी थी, अष्टमी की वजह से नाश्ते के लिए अंडा नहीं रखा था. बस, इसी पर चिल्ला पड़ी, ‘मैं सुबहसुबह पूरीहलवा नहीं खा सकती.’

‘‘मैं ने इतना कहा, ‘बेटे, आज अंडा, औमलेट या जो चाहिए, बाहर हीटर पर बना लो.’

‘‘पर वह तो पैर पटकती हुई चली गई. उसी शाम दफ्तर से वह मायके चली गई और अभय ने मुझे सूचित किया कि वह अलग घर का इंतजाम कर रहा है.

‘‘मेरे पूछने पर कि मेरा दोष क्या है? वह बोला, ‘मां, आप पर बहुत ज्यादा बोझ है. यहां रहते अचला कभी अपना दायित्व नहीं समझेगी और नासमझ ही रह जाएगी. व्यर्थ में आप को भी परेशानी होती है.’

‘‘नया मकान लेने के बाद अभय के साथ अचला भी आई थी. बहुत प्यार से मिली, ‘मां, हम क्या करें, हमें यहां अजीब तनाव सा लगता था. कभी देर रात तक अभय और हमारे मित्र आते तो लगता, आप परेशान हो रही हैं. आप कुछ कहती तो नहीं थीं, पर हमें अपराधबोध होता था. कुछ घुटाघुटा सा लगता था. यहां देखने में कुछ भी गलत न होने पर लगता था, जैसे सबकुछ ही गलत है.’

‘‘बस, ऐसे चले गए वे. अभय अभी हर शाम आता है, पर कब तक आएगा?’’ जया दीदी शायद रो रही थीं क्योंकि एकाएक चुप्पी के बाद ‘अच्छा’ कहा और रिसीवर रख दिया.

लगभग 15 वर्ष पहले कालेज में एक मेला लगा था. जया दीदी छुट्टी पर थीं. हम लोगों के जोर देने पर अभय को घुमाने के लिए मेले में ले आई थीं.

मां से पैसे ले कर वह कोई खेल खेलने चला गया. भोजन के बाद जया दीदी ने उसे वापस चलने के लिए कहा तो वह बोला, ‘अभी नहीं, अभी और खेलेंगे.’

खेलने के बाद मां को ढूंढ़ते हुए वह हमारे स्टाल पर आया तो हम चाय पी रहे थे. जया दीदी ने फिर कहा था, ‘अब तो चलो अभय, दूर जाना है, बस भी न जाने कितनी देर में मिले.’

तब वह गरदन ऊंची करते हुए बोला, ‘डरती क्यों हो मां. मैं हूं न साथ.’ लेकिन मेला उठने से पहले ही मां को बिना ठिकाने पर पहुंचाए उस ने अपना अलग ठिकाना कर लिया था.

मैं इसी में खोई हुई थी कि फोन की घंटी से तंद्रा भंग हुई, ‘‘अरे आप, सच, लंबी उम्र है आप की. आप ही को याद कर रही थी. कैसी हैं आप? क्या कहा, अभी आप के पास आना होगा? लता दीदी भी आ रही हैं? जैसा आदेश, आती हूं,’’ कहते हुए मैं ने फोन बंद कर दिया था.

जया दीदी का उल्लासयुक्त स्वर बहुत दिनों बाद सुना था. नया फ्लैट दिखाना चाह रही थीं. हमारे परामर्श के बाद ही लेंगी, ऐसा सोच रही थीं. फ्लैट बहुत अच्छा था. लेने का निर्णय भी उसी समय कर लिया था उन्होंने और ‘बयाना’ भी हमारे सामने ही दे दिया था.

बस, अब तो इंतजार था उन के गृहप्रवेश का. एक दिन शाम को उन का फोन आया कि वे हवन नहीं करवा रहीं. कुछ लोगों को सूचित करने के लिए उन्होंने कहा था. वह सब तो किया, पर लगा कि जया दीदी के पास जाना चाहिए.

लता दीदी को फोन कर के उन के फ्लैट पर पहुंची.

‘‘वाह, यहां तो जो आ जाए उस का जाने का मन ही न हो,’’ इस वाक्य से जया दीदी खुश होने के बदले आहत ही हुईं, ‘‘जाने की क्या बात, यहां तो कोई आना ही नहीं चाहता. अभय, अचला ने हवन पर आने से इनकार कर दिया है. सोचा, वही नहीं आ रहे तो फिर काहे का हवन. अब तो लगने लगा है, पूर्णाहुति की बेला में ही आएगा वह यहां. पर प्रश्न है, क्या उस समय मैं उसे देख पाऊंगी?’’

बैठक के द्वार पर मैं स्तब्ध सी खड़ी रह गई थी. क्या कहती, निराश, निढाल, थकी मां को.

Hindi Kahaniyan : नाराजगी – बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

Hindi Kahaniyan : सुमित पिछले 2 सालों से मुंबई के एक सैल्फ फाइनैंस कालेज में पढ़ा रहा था. पढ़नेलिखने में वह बचपन से ही अच्छा था. लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी के लिए मुंबई जैसे बड़े शहर आ गया था. उस की मम्मी स्कूल टीचर थीं और वे लखनऊ में ही जौब कर रही थीं.

मम्मी के मना करने के बावजूद सुमित ने मुंबई का रुख कर लिया था.यहां के जानेमाने मैनेजमैंट कालेज में वह अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था. वहीं उसी विभाग में उस के साथ संध्या पढ़ाती थी. स्वभाव से अंतर्मुखी और मृदुभाषी संध्या बहुत कम बोलने वाली थी. सुमित को उस का सौम्य व्यवहार बहुत अच्छा लगा. सुमित की पहल पर संध्या उस से थोड़ीबहुत बातें करने लगी और जल्दी ही उन में अच्छी दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदलने लगा था. संध्या को इस बात का एहसास होने लगा था. सुमित जबतब यह बात उसे जता भी देता. संध्या अपनी ओर से उसे जरा भी बढ़ावा न देती. वह जानती थी कि वह एक विधवा है. उस के पति की 7 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी.

उस का 8 साल का एक बेटा भी था. सुमित को उस ने सबकुछ पहले ही बता दिया था. इतना सबकुछ जानते हुए भी उस ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया. एक दिन उस ने संध्या के सामने अपने दिल की बात कह दी.‘‘संध्या, मु झे तुम बहुत अच्छी लगती हो और तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम्हें मैं पसंद हूं?’’ उस की बात सुन कर संध्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वह चेतनाशून्य सी हो गई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह सुमित से क्या कहे. किसी तरह से अपनेआप को संयत कर वह बोली, ‘‘आप ने अपनी और मेरी उम्र देखी है?’’ ‘‘हां, देखी है. उम्र से क्या होता है? बात तो दिल मिलने की होती है. दिल कभी उम्र नहीं देखता.’’ ‘‘यह सब आप ने किताबों में पढ़ा होगा.’’ ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा संध्या. मैं सच में तुम्हें अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहता हूं.’’ ‘‘प्लीज, फिर कभी ऐसी बात मत कहना. सबकुछ जान कर भी मु झ से यह सब कहने से पहले आप को अपने घरवालों की रजामंदी लेनी चाहिए थी.’’‘‘

उन से तो मैं बात कर ही लूंगा, पहले मैं तुम्हारे विचार जानना चाहता हूं.’’ ‘‘मैं इस बारे में क्या कहूं? आप ने तो मु झे कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा,’’ संध्या बोली. उस की बातों से सुमित इतना तो सम झ गया था कि संध्या भी उसे पसंद करती है लेकिन वह उस की मम्मी को आहत नहीं करना चाहती. उसे पता है, एक मां अपने बेटे के लिए कितनी सजग रहती है. सुमित के पापा की मौत तब हो गई थी जब वह मात्र 2 साल का था. उस के पिता भी टीचर थे और उस की मम्मी उस के पिता की जगह अब स्कूल में पढ़ा रही थीं.सुमित की मम्मी आशा की दुनिया केवल सुमित तक सीमित थी. वह खुद भी यह बात अच्छी तरह से जानता था कि मम्मी इस सदमे को आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाएंगी, फिर भी वह संध्या को अपनाना चाहता था.

संध्या सोच रही थी कि वह भी तो अर्श की मां है और अपने बच्चे का भला सोचती है. भला कौन मां यह बात स्वीकार कर पाएगी कि उस का बेटा अपने से 7 साल बड़ी एक बच्चे की मां से शादी करे.यही सोच कर वह कुछ कह नहीं पा रही थी. दिल और दिमाग आपस में उल झे हुए थे. अगर वह दिल के हाथों मजबूर होती है तो एक मां का दिल टूटता है और अगर दिमाग से काम लेती है तो सुमित के प्यार को ठुकराना उस के बस में नहीं था. इसीलिए उस ने चुप्पी साध ली. सुमित उस की मनोदशा को अच्छी तरह से सम झ रहा था. संध्या की चुप्पी देख कर वह सम झ गया था कि वह भी उसे उतना उसे पसंद करती है जितना कि वह. 

संध्या के लिए इतनी बड़ी बात अपने तक सीमित रखना बहुत मुश्किल हो रहा था. घर आ कर उस ने अपनी मम्मी सीमा को यह बात बताई. सीमा बोली, ‘‘यह क्या कह रही हो संध्या? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’मम्मी, मु झे दुनिया वालों की परवा नहीं. आखिर दुनिया ने मेरी कितनी परवा की है? मु झे तो केवल सुमित की मम्मी की चिंता है. वे इस रिश्ते को कैसे स्वीकार कर पाएंगी?‘‘संध्या, तुम्हें अब सम झदारी से काम लेना चाहिए.’’‘‘तभी मम्मी, मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. मैं चाहती हूं कि पहले वह अपनी मम्मी को मना ले.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो. ऐसे मामले में बहुत सोचसम झ कर कदम आगे बढ़ाने चाहिए.’’

संध्या की मम्मी सीमा ने उसे  नसीहत दी.कुछ दिनों बाद सुमित ने फिर संध्या से वही प्रश्न दोहराया-‘‘तुम मु झ से कब शादी करोगी?’’ ‘प्लीज सुमित, आप यह बात मु झ से दूसरी बार पूछ रहे हो. यह कोई छोटी बात नहीं है.’’ ‘‘इतनी बड़ी भी तो नहीं है जितना तुम सोच रही हो. मैं इस पर जल्दी निर्णय लेना चाहता हूं.’’ ‘‘शादी के निर्णय जल्दबाजी में नहीं, अपनों के साथ सोचसम झ कर लिए जाते हैं. आप की मम्मी इस के लिए राजी हो जाती हैं तो मु झे कोई एतराज नहीं होगा.’’उस की बात सुन कर सुमित चुप हो गया. उस ने भी सोच लिया था अब वह इस बारे में मम्मी से खुल कर बात कर के ही रहेगा. सुमित ने अपनी और संध्या की दोस्ती के बारे में मम्मी को बहुत पहले बता दिया था.‘‘मम्मी, मु झे संध्या बहुत पसंद है.’’‘‘कौन संध्या?’’‘‘मेरे साथ कालेज में पढ़ाती है.’’‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. तुम्हें कोई लड़की पसंद तो आई.’’‘‘मम्मी. वह कुंआरी लड़की नहीं है. एक विधवा महिला है. मु झ से उम्र में बड़ी है.’’‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’‘‘मैं सच कह रहा हूं.’’‘‘और कोई सचाई रह गई हो तो वह भी बता दो.’’‘‘हां, उस का एक 8 साल का बेटा भी है.’

’ सुमित की बात सुन कर आशा का सिर घूम गया. उसे सम झ नहीं आ रहा था उस के बेटे को क्या हो गया जो अपने से उम्र में बड़ी और एक बच्चे की मां से शादी करने के लिए इतना उतावला हो रहा है. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे संध्या ने सुमित  पर जादू कर दिया हो जो उस के प्यार में इस कदर पागल हो रहा है. उसे दुनिया की ऊंचनीच कुछ नहीं दिखाई दे रही थी.‘‘बेटा, इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हें वही विधवा पसंद आई.’’‘‘मम्मी, वह बहुत अच्छी है.’’‘‘तुम्हारे मुंह से यह सब तारीफें मु झे अच्छी नहीं लगतीं,’’ आशा बोलीं.वे इस रिश्ते के लिए बिलकुल राजी न थीं. उन्हें सुमित का संध्या से मेलजोल जरा सा पसंद नहीं था. इसी बात को ले कर कई बार मम्मी और बेटे में तकरार हो जाती थी.

दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. संध्या का नाम सुनते ही आशा फोन काट देतीं.शाम को सुमित ने मम्मी को फोन मिलाया.‘‘हैलो मम्मी, क्या कर रही हो?’’‘‘कुछ नहीं. अब करने को रह ही क्या गया है बेटा?’’ आशा बु झी हुई आवाज में बोलीं.‘‘आप के मुंह से ऐसे निराशाजनक शब्द अच्छे नहीं लगते. आप ने जीवन में इतना संघर्ष किया है, आप हमेशा मेरी आदर्श रही हैं.’’‘‘तो तुम ही बताओ मैं क्या कहूं?’’‘‘आप मेरी बात क्यों नहीं सम झती हैं? शादी मु झे करनी है. मैं अपना भलाबुरा खुद सोच सकता हूं.’’‘‘तुम्हें भी तो मेरी बात सम झ में नहीं आती. मैं तो इतना जानती हूं कि संध्या तुम्हारे लायक नहीं है.’’‘‘आप उस से मिली ही कहां हो जो आप ने उस के बारे में ऐसी राय बना ली? एक बार मिल तो लीजिए. वह बहू के रूप में आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं देगी.’’‘

‘जिस के कारण शादी से पहले मांबेटे में इतनी तकरार हो रही हो उस से मैं और क्या अपेक्षा कर सकती हूं. तुम्हें कुछ नहीं दिख रहा लेकिन मु झे सबकुछ दिखाई दे रहा है कि आगे चल कर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’‘‘प्लीज मम्मी, यह बात मु झ पर छोड़ दें. आप को अपने बेटे पर विश्वास होना चाहिए. मैं हमेशा से आप का बेटा था और रहूंगा. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनी पसंद आप के सामने व्यक्त की है.’’‘‘वह मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है. तुम इस बात को छोड़ क्यों नहीं  देते बेटे.’’‘‘नहीं मम्मी, मैं संध्या को ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. मु झे उस के साथ ही जिंदगी बितानी है. मैं जानता हूं मु झे इस से अच्छी और कोई नहीं मिल सकती.’’

आशा में अब और बात सुनने का सब्र नहीं था. उस ने फोन कट कर दिया. सुमित प्यार और ममता की 2 नावों पर सवार हो कर परेशान हो गया था. वह इस द्वंद्व से जल्दी छुटकारा पाना चाहता था. उस ने कुछ सोच कर कागजपेन उठाया और मम्मी के नाम चिट्ठी लिखने लगा.‘मम्मी, ‘आप मु झे नहीं सम झना चाहतीं, तो कोई बात नहीं पर यह पत्र जरूर पढ़ लीजिएगा. पता नहीं क्यों संध्या में मु झे आप की जवानी की छवि दिखाई देती है.‘आप ने जिस तरीके से जिंदगी बिताई है वह मु झे याद है. उस समय मैं बहुत छोटा था और यह बात नहीं सम झ सकता था लेकिन अब वे सब बातें मेरी सम झ में आ रही हैं. परिवार की बंदिशों के कारण आप की जिंदगी घर और मु झ तक सिमट कर रह गई थी.

आप का एकमात्र सहारा मैं ही तो था जिस के कारण आप को नौकरी करनी पड़ रही थी और लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. यह बात मु झे बहुत बाद में सम झ  में आई.‘जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मु झे लगता मेरी मम्मी इतनी सुंदर हैं फिर भी वे इतनी साधारण बन कर क्यों रहती हैं? पता नहीं, उस समय आप ने अपनी भावनाओं को कैसे काबू में किया होगा और कैसे अपनी जवानी बिताई होगी? समाज का डर और मेरे कारण आप  ने अपनेआप को बहुत संकुचित कर  लिया था. संध्या बहुत अच्छी है. वह मु झे पसंद है. मैं उसे एक और आशा नहीं बनने देना चाहता.

मैं उस के जीवन में फिर से खुशी लाना चाहता हूं. जो कसर आप के जीवन में रह गई थी मैं उसे दूर करना चाहता हूं. हो सके आप मेरी बात पर जरूर ध्यान दें.‘आप का बेटा, सुमित.’पत्र लिखने के बाद सुमित ने उसे पढ़ा और फिर पोस्ट कर दिया. आशा ने वह पत्र पढ़ा तो उन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने तो कभी ऐसा सोचा तक न था जो कुछ सुमित के दिमाग में चल रहा था. उसे याद आ रहा था कि सुमित की दादी जरा सा किसी से बात करने पर उन्हें कितना जलील करती थीं. किसी तरह सुमित से लिपट कर वे अपना दर्द कम करने की कोशिश करती थीं.आज पत्र पढ़ कर रोरो कर उन की आंखें सूज गई थीं. उन्हें अच्छा लगा कि उन का बेटा आज भी उन के बारे में इतना सबकुछ सोचता है. बहुत सोच कर उन्होंने सुमित को फोन मिलाया.

‘‘हैलो बेटा.’’उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो मम्मी?’’मां की आंसुओं में डूबी आवाज सुन कर वह सम झ गया कि उस की चिट्ठी मम्मी को मिल गई है.‘‘बेटा. मैं मुंबई आ रही हूं तुम से मिलने…’’ इतना कहतेकहते उन  की आवाज भर्रा गई और उन्होंने फोन रख दिया. यह सुन कर सुमित की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने यह बात संध्या को बताई तो वह भी खुश हो गई. एक हफ्ते बाद वे मुंबई पहुंच गई. आशा ने संध्या से मुलाकात की. दोनों के चेहरे देख कर उस का मन अंदर से दुखी था. उम्र की रेखाएं संध्या के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं और उस के मुकाबले सुमित एकदम मासूम सा लग रहा था. दिल पर पत्थर रख कर आशा ने शादी की इजाजत दे दी.

यह जान कर संध्या के परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे. उस के बड़े भैया अशोक ने संध्या से पहले भी कहा था कि संध्या तू कब तक ऐसी जिंदगी काटेगी. कोई अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर ले. अर्श की खातिर तब उस ने दूसरी शादी करने का खयाल भी अपने जेहन में नहीं आने दिया था. इधर सुमित की बातों और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित हो गई थी. आशा की स्वीकृति मिलने पर उस ने शादी के लिए हां कर दी.संध्या की मम्मी सीमा ने जब यह बात सुनी तो उन्हें भी बड़ा संतोष हुआ, बोलीं, ‘‘संध्या, तुम ने समय रहते बहुत अच्छा निर्णय लिया है.’’‘‘मम्मी, मेरा दिल तो अभी भी घबरा रहा है.’’‘‘तुम खुश हो कर नए जीवन में प्रवेश करो बेटा. अभी कुछ समय अर्श को मेरे पास रहने दो.’’ ‘‘यह क्या कह रही हो मम्मी?’’‘‘मैं ठीक कह रही हूं बेटा. तुम्हारी दूसरी शादी है, सुमित की नहीं. उस के भी कुछ अरमान होंगे. पहले उन्हें पूरा कर लो, उस के बाद बेटे को अपने साथ ले जाना.’’ बहुत ही सादे तरीके से संध्या और सुमित की शादी संपन्न हो गई थी. आशा एक हफ्ते मुंबई में रह कर वापस लौट गई थीं.

अभी उन के रिटायरमैंट में 4 महीने का समय बाकी था. संध्या ने उन से अनुरोध किया था, ‘मम्मीजी, आप यहीं रुक जाइए.’ तो उन्होंने कहा था कि वे 4 महीने बाद आ जाएंगी जब तक वे लोग भी अच्छे से व्यवस्थित हो जाएंगे. वे अभी तक इस रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पाई थीं. इकलौते बेटे की खातिर उन्होंने उस की इच्छा का मान रख लिया था. 4 महीने यों ही बीत गए थे. सुमित बहुत खुश था और संध्या भी. वह शाम को रोज अर्श से मिलने चली जाती और देर तक अपनी मम्मी व बेटे से बातें करती. अर्श मम्मी को मिस करता था. सुमित के जोर देने पर वह कुछ दिनों के लिए मम्मी के पास आ गई थी ताकि अर्श को पूरा समय दे सके.रिटायरमैंट के बाद आशा के मुंबई आ जाने से संध्या की घर की जिम्मेदारियां कम हो गई थीं. उस ने अपना घर पूरी तरह से आशा पर छोड़ दिया था.

शाम को संध्या अपने हाथों से खाना बनाती. बाकी सारी व्यवस्था आशा ही देखतीं.आशा महसूस कर रही थीं कि संध्या का व्यवहार वाकई बहुत अच्छा है. भले ही वह सुमित से उम्र में बड़ी थी लेकिन हर जगह पर पति का पूरा मान और खयाल रखती थी. वह कभी उस से बेवजह उल झती न थी. कुछ ही दिनों में आशा के मन में उस के प्रति कड़वाहट कम होने लगी थी. वे सोचने लगीं दुनिया वालों का क्या है? कुछ दिन बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. आखिर जिंदगी तो उन दोनों को एकसाथ बितानी है. उन का आपस में सामंजस्य ठीक रहेगा, तो परिवार की खुशियां अपनेआप बनी रहेंगी.शाम के समय अकसर संध्या खिड़की से खड़े हो कर नीचे ग्राउंड में बच्चों को खेलते हुए देखती रहती.

एक मां होने के कारण आशा उस की भावनाओं से अनभिज्ञ न थी. उसे अपना बेटा अर्श बहुत याद आता था लेकिन उस ने कभी भी अपने मुंह से उसे साथ रखने के लिए नहीं कहा था. एक दिन आशा ने ही पूछ लिया.‘‘तुम्हारा बेटा कैसा है?’’‘‘मम्मीजी, आप का पोता ठीक है.’’‘‘तुम्हें उस की याद आती होगी?’’ आशा ने पूछा तो संध्या ने मुंह से कुछ नहीं बोला लेकिन उस की आंखें सजल हो गई थीं. आशा सम झ गईं कि वह कुछ बोल कर उन का दिल नहीं दुखाना चाहती, इसीलिए कोई उत्तर नहीं दे रही.‘‘तुम उसे यहीं ले आओ. इस से तुम्हारा मन उस के लिए परेशान नहीं होगा,’’ आशा ने यह कहा तो संध्या को अपने कानों पर विश्वास न हुआ. उस ने चौंक कर आशा को देखा.‘‘मैं ठीक कह रही हूं. मैं भी एक मां हूं और सोच सकती हूं तुम्हारे दिल पर क्या बीतती होगी?’’

संध्या ने आगे बढ़ कर उन के पैर छूने चाहे तो आशा ने उसे गले लगा लिया, ‘‘बीती बातें भूल जाओ और नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करो.’’सुमित ने सुना तो उसे भी बहुत अच्छा लगा. वह तो पहले भी उसे अपने साथ लाना चाहता था लेकिन संध्या ने उसे रोक लिया था.दूसरे दिन वे अर्श को साथ ले कर आ गए. अर्श ने अजनबी नजरों से आशा को देखा तो संध्या बोली, ‘‘बेटे, ये तुम्हारी दादी हैं, इन के पैर छुओ.’’ अर्श ने आगे बढ़ कर उन के पैर छुए. आशा ने पूछा, ‘‘कैसे हो अर्श?’’‘‘मैं अच्छा हूं, दादी.’’  उस के मुंह से दादी शब्द सुन कर आशा को बहुत अच्छा लगा. सीमा भी खुश थीं कि अर्श को अपनी मम्मी मिल गई थी. सुमित और आशा के बड़प्पन के आगे संध्या के मायके वाले सभी नतमस्तक थे. उन्होंने कभी सोचा भी न था कि एक बार संध्या की जिंदगी में इतना बड़ा हादसा हो जाने के बाद उस के जीवन में इस तरह से फिर से खुशियों की बहार आ सकती है.

आशा ने परिस्थितियों से सम झौता कर के सबकुछ स्वीकार कर लिया था. अपने दिल से उन्होंने संध्या के प्रति सारी शिकायतें दूर कर दी थीं. सुमित खुश था कि उस ने अपनी मम्मी की ममता के साथ अपने प्यार को भी पा लिया था.आशा अर्श का भी बहुत अच्छे से खयाल रखती थीं. वह भी उन के साथ घुलमिल गया था. उस के दिन में स्कूल से आने पर वे उसे प्यार से खाना खिलातीं और होमवर्क करा देतीं. शाम को वह बच्चों के साथ खेलने चला जाता. आशा पार्क में बैठ कर बच्चों को खेलते देखती रहती. सबकुछ सामान्य हो गया था. तभी एक दिन अचानक आशा के पेट में बहुत दर्द हुआ और उस के बाद उन्हें ब्लीडिंग होने लगी. यह देख कर संध्या और सुमित घबरा गए.

वे तुरंत उन्हें ले कर नर्सिंगहोम पहुंचे. आशा की हालत बिगड़ती जा रही थी, यह देख संध्या बहुत परेशान थी. उस ने तुरंत अपनी मम्मी को फोन मिलाया.कुछ ही देर में सीमा अपने बेटे अशोक के साथ वहां पहुंच गईं. संध्या की घबराहट देख कर उस की मम्मी सीमा बोलीं, ‘‘संध्या, धीरज रखो. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘पता नहीं मम्मीजी को अचानक क्या हो गया? मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’ ‘‘हिम्मत से काम लो, डाक्टर उन की जांच कर रहे हैं. अभी कुछ देर में रिपोर्ट आ जाएगी. तब पता चल जाएगा कि उन्हें क्या हुआ है?’’ अशोक बोले.डाक्टर ने उन्हें भरती कर के तुरंत जांच की और बताया, ‘‘इन के गर्भाशय में रसौली है. उस का औपरेशन करना जरूरी है, वरना मरीज को खतरा हो सकता है.’’ ‘‘देर मत कीजिए डाक्टर साहब. मम्मी को कुछ नहीं होना चाहिए,’’ संध्या बोली. पूरा दिन इसी भागदौड़  में बीत गया था. संध्या ने अर्श को मम्मी के साथ घर भेज दिया था और वह खुद उन्हीं की देखरेख में लगी  हुई थी. शाम तक औपरेशन हो गया.

औपरेशन के बाद आशा को कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. अभी उन्हें ठीक से होश नहीं आया था. सुमित बोला, ‘‘संध्या, तुम घर जाओ. मैं मम्मी की देखभाल कर लूंगा.’’ ‘‘नहीं, तुम घर जाओ. उन की देखभाल के लिए किसी औरत का होना जरूरी है. मैं यहां रुकूंगी.’’ संध्या के आगे सुमित की एक न चली और वह वहीं रुक गई. एक हफ्ते तक संध्या ने आशा की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह दोपहर में थोड़ी देर के लिए कालेज जाती. उस के बाद घर आ कर अपने हाथों से आशा के लिए खाना तैयार करती और फिर नर्सिंगहोम पहुंच जाती. शाम को सुमित मम्मी के साथ रहता. इतनी देर में संध्या घर आ कर खाना तैयार करती और उसे ले कर नर्सिंगहोम आ जाती. फिर दूसरे दिन सुबह घर लौटती.संध्या ने सास की सेवा में रातदिन एक कर दिया था. इस मुश्किल घड़ी में भी वह घर, औफिस और आशा का पूरा खयाल रख रही थी. सुमित यह सब देख कर हैरान था. आशा को अपने से ज्यादा संध्या की चिंता होने लगी थी. संध्या की मम्मी, भाई, भाभी और करीबी रिश्तेदार उन को देखने रोज नर्सिंगहोम पहुंच रहे थे.संध्या की देखभाल से हफ्तेभर में आशा की सेहत में सुधार हो गया था.

वे 8 दिनों बाद घर आ गईं. संध्या की सेवा से आशा बहुत खुश थीं. घर आते ही उन्होंने इधरउधर नजर दौड़ाई और पूछा, ‘‘अर्श कहां है?’’ ‘‘वह नानी के पास है.’’‘‘उसे यहां ले आती.’’‘‘अभी आप को आराम की जरूरत है. वह कुछ दिनों बाद यहां आ जाएगा,’’ संध्या बोली.संध्या के भैया, भाभी और मम्मी सभी ने अपनी ओर से उन की  सेवा और देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.संकट की यह घड़ी भी बीत गई थी, लेकिन अपने पीछे कई सुखद अनुभव छोड़ गई थी. आशा की बीमारी के कारण दोनों परिवार बहुत नजदीक आ गए थे. सीमा अशोक और उस की पत्नी रिया के साथ आशा को देखने उन के घर पहुंचे. वे अपने साथ ढेर सारे फल ले कर आए थे.‘‘इन सब की क्या जरूरत थी? आप अपने साथ हमारे लिए सब से कीमती दहेज तो लाए ही नहीं हैं,’’ आशा बोली तो वे सब चौंक गए.सीमा ने डरते हुए पूछा, ‘‘आप किस दहेज की बात कर रही हैं?’’‘‘हमारे लिए तो सब से कीमती दहेज हमारा पोता अर्श है. मैं उस की बात कर रही हूं,’’ आशा बीमारी की हालत में भी हंस कर बोलीं तो माहौल हलकाफुलका हो गया. आशा की सारी नाराजगी दूर हो गई थी.

Influencer Genia Chadha : बातों के जादू से बनाई हजारों के दिलों में जगह

Genia Chadha का सबसे शॉर्ट इंट्रोडक्शन है कि वह एक इंफ्लूएंसर है. लेकिन हर किसी को देखकर मुस्कान बिखेरने वाली इस गर्ल की ढेरों खूबियां है जैसे वह एक मॉडल हैं, इसके साथ ही एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट और व्लॉगर भी हैं.

हिमाचल के चंबा की खूबसूरत वादियों में जन्मी जीनिया की मीठी बातें लोगों को उनका दीवाना बनाती है और यही वजह है कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर इनके ढेरों फॉलोअर्स हैं. मास कम्युनिकेशन की स्टूडेंट रह चुकी जीनिया का कहना है कि उनकी लाइफ का टर्निंग पॉइंट वह मोमेंट था जब उन्होंने पहली बार कैमरे के सामने एंकरिंग की. उन्होंने कई बड़े मीडिया हाउसेज के लिए रिपोर्टिंग की और तो और एंटरटेनमेंट में खास दिलचस्पी होने की वजह से फिल्म स्टार्स के इंटरव्यू करती रहीं.

जीनिया का कहना है कि आज छोटे शहरों के ढेरों कलाकारों ने अपने जुनून की वजह से बड़े शहरों में अपना मुकाम बनाया जैसे कपिल शर्मा, पंकज त्रिपाठी. जीनिया भी इन सेलिब्रेटीज से प्रेरित होकर इस बड़ी दुनिया में अपनी एक खास पहचान बनाना चाहती हैं.

जीनिया का सपना है कि वह अपना पॉडकास्ट शुरू करें. एक ऐसा पॉडकास्ट जिसके सभी दीवाने बन जाए. वह चाहती हैं इस पॉडकास्ट में वह अपनी जर्नलिज्म स्किल्स का इस्तेमाल करें और एक उद्देश्य के रूप में इसे पॉपुलर बनाएं. 10 मई को मदर्स डे सेलिब्रेट करने के लिए आयोजित गृहशोभा इंस्पायर मॉम्स इवेंट में पहुंची जीनिया ने बताया कि किस तरह उनकी मां ने उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में मदद की.

क्या है Skin Cycling का ट्रैंड

Skin Cycling : आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हरकोई चाहता है कि एक ऐसा स्किनकेयर रूटीन जो काम भी करे और स्किन को थकाए नहीं. जहां एक तरफ बाजार में एक से बढ़ कर एक प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, वहीं दूसरी तरफ ओवरलोडिंग स्किन को नुकसान भी पहुंचा सकती है. ऐसे में स्किन साइक्लिंग एक ऐसा नया साइंटिफिक ट्रैंड बन कर सामने आया है, जो स्किन को ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स से फायदा दिलाता है और वह भी बिना साइड इफैक्ट्स के.

हैली बीबर, कर्टनी कार्डिशियन से ले कर कई ब्यूटी स्पैशलिस्ट स्किन साइक्लिंग को फौलो कर रहे हैं. इन का कहना है कि इस से स्किन ज्यादा क्लीयर, ब्राइट और कैमरा रैडी रहती है.

क्या है स्किन साइकलिंग

यह दरअसल एक रोटेशन बेस्ड स्किनकेयर रूटीन है जिस में 4 रातों का एक साइकिल फौलो किया जाता है. हर रात का एक अलग रूटीन होता है. पहले स्किन को ऐक्सफोलिएट किया जाता है, फिर उसे ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स दिए जाते हैं और फिर 2 दिनों तक उसे रैस्ट और रिपेयर के लिए छोड़ा जाता है.

इस रूटीन का पर्पज है स्किन को बैलेंस देना

जब हर रात एक ही ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट जैसे रैटिनौल या ऐसिड्स लगते हैं तो स्किन पर इरिटेशन, रैडनैस या ड्राईनैस हो सकती है. लेकिन जब इन ऐक्टिव्स को स्मार्टली रोटेट किया जाए तो स्किन को भरपूर फायदा भी मिलता है और रिकवरी का समय भी मिलता है.

4 रातों का साइक्लिंग रूटीन

पहली रात: पहली रात ऐक्सफोलिएशन नाइट है. इस दिन स्किन को कैमिकल ऐक्सफोलिएंट से साफ किया जाता है. इस में ग्लाइकोलिक ऐसिड 7त्न, लैक्टिक ऐसिड या सैलीसिलिक ऐसिड जैसे एएचए/बीएचए प्रोडक्ट्स त्वचा की डैड सैल्स हटाते हैं. इस से न सिर्फ स्किन स्मूद बनती है, बल्कि बाद में प्रयोग किए जाने वाले बाकी इनग्रीडिऐंट्स भी स्किन में अच्छी तरह घुलमिल जाते हैं.

दूसरी रात: यह रैटिनौइड नाइट है. दूसरे दिन रैटिनौल या रैटिनौइड 0.3त्न का इस्तेमाल होता है. यह इनग्रीडिऐंट स्किन सैल टर्नओवर को तेज करता है जिस से फाइनलाइंस, डलनैस, पिगमैंटेशन जैसी समस्याएं धीरेधीरे कम होती हैं.

तीसरी और चौथी रात: इन्हें रिकवरी नाइट्स कहते हैं. इन 2 रातों में स्किन को आराम दिया जाता है यानी कोई हार्श ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट स्किन पर नहीं लगाया जाता. बस, जैंटल मौइस्चराइजर, बैरियर रिपेयर क्रीम और हाइड्रेटिंग सीरम जैसे कि ह्यूलोरोनिक ऐसिड, नियासिनामाइड, सिरामिड मौइस्चराइजर, स्क्वैलें औयल या स्लीपिंग मास्क लगाए जाते हैं ताकि स्किन खुद को रिपेयर कर सके.

मिलती है स्मूद स्किन

स्किन साइक्लिंग को अपनाने के बाद कुछ ही हफ्तों में महसूस होता है कि स्किन पहले से ज्यादा स्मूद और ग्लोइंग हो गई है. रैडनैस और ड्राइनैस कम होने लगती है. स्किन की सैंसिटिविटी कम होने लगती है और स्किन बैरियर मजबूत हो जाता है. यह रूटीन खासतौर पर उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो पहले स्किनकेयर में बहुत सारे प्रोडक्ट्स एकसाथ यूज कर के नुकसान कर बैठते थे.

असल में स्किन साइक्लिंग एक साइंटिफिक अप्रोच है जो स्किन को रैस्ट और रिस्पौंस दोनों का समय देती है. यह खासकर उन लोगों के लिए अच्छा है जिन की स्किन सैंसिटिव है या जो ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स को टौलरेट नहीं कर पाते. यह लौंग टर्म में स्किन हैल्थ को बेहतर बनाता है.

यदि आप की स्किन में ऐक्ने की समस्या है तो पहले डर्मैटोलौजिस्ट से सलाह लें और अगर आप किसी मैडिकेशन (ओरल रैटिनौइड) पर हैं तो इस के साथ मिला कर ऐक्सपेरिमैंट न करें. पहली बार रेटिनौल या ऐसिड्स यूज कर रहे हैं तो ‘लो ऐंड स्लो’ रूल अपनाएं.

जब स्किन को वक्त और सम?ादारी के साथ ट्रीट किया जाए तभी वह सच में चमकती है. स्किन साइक्लिंग एक ऐसा ट्रैंड है जो ट्रैंड से बढ़ कर हैल्दी आदत बन सकता है. अगर आप भी स्किनकेयर को ले कर उलझन में हैं तो इस रूटीन  को अपनाएं और कुछ ही हफ्तों में आप की स्किन मानो बोल उठेगी, ‘थैंक यू.’

Reader’s Problem : मेरी ठुड्डी पर बाल आने लगे हैं, जिनसे मैं बहुत परेशान हूं…

Reader’s Problem :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 45 साल है. मेरी ठुड्डी पर बाल आने लगे हैं, जिन से मैं बहुत परेशान हूं. बताएं मैं इन से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

इस समस्या को हिर्सुटिज्म कहा जाता है. अगर आप की ठुड्डी पर भी अनचाहे बाल हैं तो उन्हें हटाने के लिए रेजर या बैकस का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.

इन को हटाने के लिए थोड़े से पपीते के गूदे को मैश करें और गाढ़ा पेस्ट बनाने के लिए इस में हल्दी पाउडर मिलाएं. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं और 4-5 मिनट धीरेधीरे मालिश करें. 15 मिनट के बाद गरम पानी से धो लें. मसाज से बालों की जड़ें ढीली पड़ने लगती हैं और वे निकलने लगते हैं. इस पैक को आप सप्ताह में 2 बार यूज करें अच्छा रिजल्ट मिलेगा. आप पल्स लाइट लेजर ट्रीटमैंट भी करवा सकती हैं, जिस में कुछ सिटिंग्स में बालों का उगना धीरेधीरे कम होता जाता है.

य़े भी पढ़ें-

चेहरे पर अत्यधिक बाल होना कुछ महिलाओं के लिए बहुत बड़ी समस्या होती है. कुछ पार्लर इस से छुटकारा पाने के लिए वैक्सिंग कराने की सलाह देते हैं परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि चेहरे पर वैक्सिंग कराना नुकसानदायक हो सकता है. चेहरे की स्किन बहुत मुलायम होती है तथा इसे कराने से समय से पहले झुर्रियां पड़ सकती हैं. यदि बाल मोटे हैं तो लेजर हेयर रिमूवल सर्वश्रेष्ठ विकल्प है. आप ब्लीचिंग का विकल्प भी चुन सकती हैं. वैक्सिंग से हेयर फॉलिकल्स को बहुत नुकसान पहुंचता है जिससे संक्रमण और सूजन हो सकती है. इसके कारण दाग भी पड़ सकते हैं, जिनका उपचार करना कठिन होता है.

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एक मां कैसे बनी मामाअर्थ की कोफाउंडर : गजल अलघ

Ghazal Alagh : आज की महिलाएं हर फील्ड में अपनी कामयाबी के झंडे फहरा रही हैं. वे न सिर्फ मदरहुड ऐंजौय करते हुए फैमिली का खयाल रखती हैं बल्कि बाहर जा कर तरक्की के नए सोपानों पर भी चढ़ती हैं. वर्क लाइफ बैलेंस बनाते हुए अपनी जिंदगी के सिरों को नए अंदाज में पकड़ती हैं. अपने दम पर नाम, शोहरत और पैसा कमाती हैं और अपने बच्चे की रोल मौडल भी बनती हैं. वे केवल नौकरियों में ही नहीं बल्कि पौलिटिक्स, स्पोर्ट्स, बिजनैस आदि में भी सफल हो रही हैं. इन्हीं सफल, सैल्फ मेड महिलाओं की सूची में एक नाम गजल अलघ का भी शामिल है.

गजल अलघ ने मां बनने के बाद एक स्टार्टअप की शुरुआत की और करोड़ों की कंपनी खड़ी कर दी. उन को स्टार्टअप का विचार अपने बच्चे को बेबी केयर प्रोडक्ट्स से होने वाली ऐलर्जी से आया. पति वरुण अलघ के साथ मिल कर उन्होंने एक बेबी केयर ब्रैंड मामाअर्थ की शुरुआत की जो आज दुनियाभर में काफी मशहूर ब्रैंड बन गया है. यह एशिया का पहला मेड सेफ प्रमाणित ब्रैंड भी है.

गजल बताती हैं कि उन के बड़े बेटे अगस्त्य की स्किन ऐग्जिमा की वजह से बहुत सैंसिटिव थी. उस को बारबार रैशेज हो जाते थे. वे दिनरात बस यही खोजती रहती थीं कि ऐसे सेफ प्रोडक्ट्स मिल जाएं जो उस की स्किन को कोई नुकसान न करें. पर इंडिया में ऐसे टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट्स मिल ही नहीं रहे थे. उन्होंने बाहर से भी प्रोडक्ट्स मंगवाए लेकिन वे भी उस की स्किन को सूट नहीं कर सके. तब खयाल आया कि अगर उन्हें खुद इतनी दिक्कत हो रही है तो और भी कितने पेरैंट्स होंगे जो इसी परेशानी से जूझ रहे होंगे.

ghazal alagh

उन के हस्बैंड वरुण और गजल ने मिल कर फिर रिसर्च शुरू की, मार्केट को समझ, पेरैंट्स से बात की, डाक्टरों से सलाह ली और उन्हें समझ में आया कि इंडिया में वास्तव में सेफ और टौक्सिन फ्री बेबी केयर प्रोडक्ट्स की बहुत ज्यादा जरूरत है. बस यहीं से उन्हें यह आइडिया आया कि कुछ ऐसा बनाया जाए जिस पर पेरैंट्स भरोसा कर सकें और वे बिना किसी टैंशन के अपने बच्चों की केयर कर पाएं. इसी सोच के साथ 2016 में मामाअर्थ की शुरुआत हुई.

रंग लाई मेहनत

मामाअर्थ यानी एक ऐसा ब्रैंड जो एकदम सेफ, जैंटल और टौक्सिन फ्री बेबी केयर प्रोडक्ट्स पर ध्यान देता है. गजल अलघ को ‘बिजनैस टुडे और फौर्च्यून इंडिया मोस्ट पावरफुल वूमन 2023,’ ‘ईटी 40 अंडर 40,’ ‘सीएनबीसी वूमन फास्ट फौरवर्ड वूमन अचीवर अवार्ड,’ ‘बिजनैस टुडे मोस्ट पावरफुल वूमन 2024,’ ‘बिजनैस वर्ल्ड 40 अंडर 40’ अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

कला में रुचि रखने वाली गजल अलघ की रचनाओं का प्रदर्शन राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ और वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और एक मां होने के साथसाथ गजल आज एक नामचीन बिजनैस वूमन हैं. गजल सोनी चैनल पर आने वाले शो ‘शार्क टैंक सीजन 1’ के जजों में भी एक थीं. गजल ‘एफआईसीसीआई स्टार्ट अप कमेटी 2024’ की सहअध्यक्षा भी हैं.

स्टूडैंट के तौर पर गजल पढ़ाई में अच्छी थीं पर साथ ही स्पोर्ट्स और ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज जैसे पेंटिंग्स वगैरह में भी अच्छी थीं. उन्होंने 12वीं कक्षा में मैथ्स और साइंस लिया क्योंकि उन के मम्मीपापा चाहते थे कि वे इंजीनियरिंग करें. हालांकि उन का शौक हमेशा से कंप्यूटर और आर्ट्स में था. फिर भी पेरैंट्स की चौइस को प्रमुखता देते हुए उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की. मगर 12वीं के बाद उन्हें रियलाइज हुआ कि वे बाकी की जिंदगी यह बिलकुल नहीं कर सकतीं. इस में उन्हें जरा भी मजा नहीं आ रहा था.

गजल अलघ कहती हैं कि इस से फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना हार्ड वर्क कर रहे हैं. अगर आप एक ऐसी फील्ड में हार्ड वर्क कर रहे हैं जो आप को पसंद नहीं है तो आप ज्यादा आगे तक नहीं बढ़ पाएंगे, जबकि आप किसी ऐसी फील्ड में हैं जो आप को बहुत पसंद है तो उस में कम हार्ड वर्क कर के भी आप काफी सफल हो सकते हैं. इसलिए 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग के ऐग्जाम नहीं दिए और इस की जगह कंप्यूटर चूज किया.

बिजनैस की शुरुआत से पहले

गजल ने ग्रैजुएशन के साथसाथ एनआईआईटी से डिप्लोमा कोर्स भी किया था. उसी को करतेकरते अपनी पहली नौकरी भी शुरू की. यह पार्टटाइम काम था जो केवल वीकैंड पर होता था. वह बेसिकली कोऔपरेटिव ट्रेनिंग थी. इस तरह गजल ने अपने कैरियर की शुरुआत कौरपोरेट वर्ल्ड से की थी. वहां उन्होंने सीखा कि प्रोफैशनल ऐन्वायरन्मैंट में कैसे काम किया जाता है, कैसे टीम के साथ मिल कर टारगेट्स पूरे करने होते हैं और कैसे हर दिन कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ना होता है.

गजल बताती हैं कि कौरपोरेट जौब ने उन्हें स्ट्रक्चर और डिसिप्लिन दिया जो आज बिजनैस को चलाने में बहुत मदद करता है. कौरपोरेट ऐक्सपीरियंस ने उन्हें प्रैक्टिकल सोच दी, प्रोसैस को समझना सिखाया और यह भरोसा दिया कि मेहनत और लगन से किसी भी गोल को हासिल किया जा सकता है.

एक मदर से वर्किंग मदर बनने का रास्ता

यह जर्नी बिलकुल आसान नहीं थी. गजल बताती हैं कि जब उन्होंने मामाअर्थ की शुरुआत की तब बेटा बहुत छोटा था और उस उम्र में बच्चे को मां की सब से ज्यादा जरूरत होती है. दिन के 24 घंटे काम में लगाना और साथ ही मां की जिम्मेदारी भी निभाना बहुत ही चैलेंजिंग था. कई बार मीटिंग्स में भी उन्हें अपने बेटे को साथ ले कर जाना पड़ता क्योंकि और कोई रास्ता नहीं होता था. कई बार गिल्ट होता था कि क्या वे अपने बच्चे को उतना समय दे पा रही हैं जितना उसे चाहिए. लेकिन धीरेधीरे उन्होंने सम?ा कि क्वालिटी टाइम क्वांटिटी से ज्यादा इंपौर्टैंट होता है.

उन्होंने खुद को बहुत सारे सैल्फ डाउट से निकाला और यह सीखा कि एक अच्छी मां बनने के लिए परफैक्ट होना जरूरी नहीं है बल्कि प्रेजैंट होना जरूरी है. इस सब में एक स्ट्रौंग सपोर्ट सिस्टम ने उन की बहुत मदद की. यह सपोर्ट सिस्टम था उन के हस्बैंड, फैमिली और टीम. उन के मुताबिक वर्क लाइफ बैलेंस कोई फिक्स्ड गोल नहीं है. यह एक एवौल्विंग जर्नी है जिस में आप के लिए जो सही है आप को उस के लिए काम करना है.

पेरैंट्स की शिक्षा ने बनाया आधार

गजल अलघ चडीगढ़ की एक जौइंट फैमिली से हैं. उन के पिता बिजनैसमैन थे और मां हाउस वाइफ. गजल बताती हैं कि पापा हमेशा कहते थे कि जब बिजनैस प्रौफिट कमाता है तभी पैसे घर आते हैं. मेरे पेरैंट्स ने हमेशा मुझे इंडिपैंडैंट और सैल्फ रिलायंट बनने के लिए मोटिवेट किया. जो वैल्यूज उन्होंने मुझे दीं वे मेरे हर डिसीजन में दिखती हैं.

पापा का कहना था कि अपने सपनों के पीछे भागो लेकिन अपनी वैल्यूज कभी मत छोड़ो. उन्होंने मुझे मेहनत, ईमानदारी और डैडिकेशन की वैल्यू समई आई और ये तीनों चीजें आज भी मेरे हर बिजनैस डिसीजन का बेस हैं. जब भी मुश्किल आई है फैमिली की सपोर्ट और मेरे पेरैंट्स की सीखें ही मेरी सब से बड़ी ताकत बनी हैं. आज मैं जो कुछ भी बना पाई हूं उस में मेरी परवरिश और मेरे पेरैंट्स की सोच का बहुत बड़ा रोल है जैसे कस्टमर के लिए हमेशा ओनैस्ट रहना, क्वालिटी पर कभी कंप्रोमाइज न करना और हर दिन कुछ नया सीखते रहना.

आर्टवर्क का जनून

आर्ट गजल का पैशन रहा है और पेंटिंग एक थेरैपी जैसी जहां वह क्रिएटिव हो कर अपने थौट्स को ऐक्सप्रैस कर पाती हैं. गजल बताती हैं कि वे हमेशा से पेंटिंग करती रही हैं लेकिन जब उन के हस्बैंड ने एक दिन बिना बताए न्यूयौर्क की आर्ट ऐकैडमी में उन के लिए अप्लाई कर दिया तो उन की इस जर्नी ने एक नया मोड़ लिया. उन का ज्यादातर आर्टवर्क ऐब्स्ट्रैक्ट होता है जिस में वे अलगअलग कलर्स और टैक्स्चर्स के साथ ऐक्सपैरिमैंट करती हैं. वे ब्रश की जगह नाइफ और रोलर से काम करती हैं.

जब वे पेंटिंग शुरू करती हैं तब उन्हें नहीं पता होता कि फाइनल रिजल्ट कैसा होगा. यह एक जर्नी होती है जो धीरेधीरे अनफोल्ड होती है. जब माइंड बहुत बिजी होता है तब एक खाली कैनवास उन्हें पीस देता है और न्यू आइडियाज के लिए स्पेस क्रिएट करता है.

बच्चों की परवरिश

गजल के 2 बेटे हैं- अगस्त्य और आयान. अगस्त्य बड़ा है और आयान छोटा. गजल बताती हैं कि वे और उन के हस्बैंड वरुण मिल कर उन की अपब्रिंगिंग में कुछ बेसिक वैल्यूज पर फोकस करते हैं जैसे रिस्पैक्ट, ओनैस्टी और काइंडनैस. वे चाहते हैं कि बच्चे इंडिपैंडैंट बनें, सवाल पूछें और धीरेधीरे यह सम?ों कि उन्हें क्या अच्छा लगता है, क्या चीज उन्हें ऐक्साइट करती है. वे अपने रूट्स से जुड़े रहें.

आज के सोशल मीडिया वाले दौर में जहां हरकोई किसी और से कंपेयर करता है तो ऐसे में वे उन्हें बारबार याद दिलाते हैं कि उन की अपनी एक जर्नी है और उसी को अपनाना सब से जरूरी है.

स्ट्रैस मैनेजमैंट

एक ऐंटरप्रन्योर और मां होने के नाते उन्हें भी स्ट्रैस होता ही है. स्ट्रैस से डील करने का उन का सब से अच्छा तरीका है खुद के साथ टाइम स्पैंड करना. जब वे सुबह उठती हैं तो पहले 15 मिनट किसी से बात नहीं करती, न फोन चैक करती हैं बस खुद से बातें करती हैं. उन का मानना है कि जब इंसान खुद से बात करता है तो बहुत क्लैरिटी मिलती है. आप समझ पाते हो कि आप क्या सोच रहे हो, क्या फील कर रहे हो.

गजल कहती हैं, ‘‘बिजनैस ने मुझे सिखाया है कि हर चीज कंट्रोल में नहीं होती इसलिए जो कंट्रोल में है उसी पर फोकस करना चाहिए. दिन के एंड में मैं हमेशा इस बात पर ध्यान देती हूं कि मैं ने क्या किया न कि क्या रह गया और इसी के साथसाथ अच्छी नींद और हैल्दी खाना भी स्ट्रैस मैनेज करने में काफी मदद करता है.’’

बच्चों के लिए बैस्ट गिफ्ट

गजल के अनुसार, एक वर्किंग मदर का अपने बच्चों के लिए बैस्ट गिफ्ट है- एक रोल मौडल बनना. जब बच्चे अपनी मां को हार्ड वर्क करते, चैलेंजेस से लड़ते और अपने सपने पूरे करते देखते हैं तो उन्हें एक पावरफुल मैसेज मिलता है. वे सीखते हैं कि औरतें सबकुछ कर सकती हैं. दूसरा बैस्ट गिफ्ट है क्वालिटी टाइम. भले ही हम क्वांटिटी टाइम न दे पाएं लेकिन जब भी बच्चों के साथ हों पूरी तरह प्रेजैंट रहें- फोन, लैपटौप और टैंशन साइड में रख कर. तीसरा गिफ्ट है इंडिपैंडैंस का लैसन. वर्किंग मदर्स अपने बच्चों को खुद के लिए स्टैंड लेना, रिस्पौंसिबिलिटी लेना और खुद के सपनों पर भरोसा रखना सिखाती हैं.

एक वर्किंग मदर की सफलता का सीक्रेट

गजल मानती हैं कि एक वर्किंग मदर की सफलता का सब से बड़ा सीक्रेट है गिल्ट फ्री रहना. हम अकसर सोचते हैं कि हम परफैक्ट मां और परफैक्ट प्रोफैशनल दोनों नहीं बन पा रहे हैं. लेकिन हमें सम?ाना चाहिए कि परफैक्ट होना जरूरी नहीं है. दूसरा, एक अच्छा सपोर्ट सिस्टम बनाना जरूरी है- हसबैंड, पेरैंट्स, फ्रैंड्स या हैल्पर्स. तीसरा, अपने लिए टाइम निकालें. अगर आप खुश और हैल्दी नहीं हैं तो आप दूसरों को भी खुशी नहीं दे पाएंगी. चौथा, प्रायरिटाइज करना सीखें- हर चीज में परफैक्ट होने की कोशिश मत करो. जो सब से जरूरी है उस पर फोकस करो. 5वां, फ्लैक्सिबल रहें और अडौप्ट करना सीखें और सब से जरूरी अपनेआप पर और अपने डिसीजंस पर भरोसा रखें. बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम पर फोकस करें क्वांटिटी पर नहीं.

बिजनैस की सफलता के लिए क्या जरूरी

गजल के अनुसार, बिजनैस की सफलता के लिए सब से जरूरी है एक क्लीयर विजन और पैशन. आप को पता होना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं और उस के लिए पूरी लगन से काम करना चाहिए. अपने कंज्यूमर की जरूरतों और समस्याओं को समझना और उन के लिए वैल्यू क्रिएट करना भी उतना ही जरूरी है. एक अच्छी टीम बनाना बेहद अहम है, सही लोगों को हायर करें और उन्हें आगे बढ़ने का मौका दें.

इनोवेशन पर लगातार फोकस रखें, मार्केट ट्रैंड्स को समझें और नए आइडियाज के लिए हमेशा ओपन रहें. बिजनैस में अडौप्टेबिलिटी भी एक बड़ी ताकत है क्योंकि मार्केट लगातार बदलती है और आप को उस के साथ खुद को भी बदलना आना चाहिए. नैटवर्किंग को नजरअंदाज न करें, अच्छे कनैक्शंस बनाएं और मैंटर्स से सीखते रहें. सब से आखिर में पर्सिस्टैंस यानी लगातार आगे बढ़ते रहना, चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, फेल्योर से सीख कर फिर से खड़े होना ही असली सफलता है.

कला में रुचि रखने वाली गजल अलघ की रचनाओं का प्रदर्शन राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ और वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और एक मां होने के साथसाथ गजल आज एक नामचीन बिजनैस वूमन हैं…

बिजनैस ने मुझे सिखाया है कि हर चीज कंट्रोल में नहीं होती इसलिए जो कंट्रोल में है उसी पर फोकस करना चाहिए. दिन के एंड में मैं हमेशा इस बात पर ध्यान देती हूं कि मैं ने क्या किया न कि क्या रह गया और इसी के साथसाथ अच्छी नींद और हैल्दी खाना भी स्ट्रैस मैनेज करने में काफी मदद करता है…

Kantara 2 फिल्म के सितारे गर्दिश में, फिल्म से जुड़े कलाकारों की एक के बाद एक, दो मौतें…

Kantara 2 : ऋषभ शेट्टी स्टारर और निर्देशित फिल्म कांतारा ने बौक्स औफिस पर तहलका मचा दिया था. इस फिल्म को दर्शकों ने बेहद पसंद किया था, जिसके चलते फिल्म के एक्टर और डायरेक्टर ऋषभ शेट्टी ने कांतारा पार्ट 2 बनाने की भी शुरुआत कर दी, कांतारा फिल्म सिर्फ साउथ में ही नहीं बल्कि हिंदी भाषी दर्शकों द्वारा भी सराही गई, 2022 में आई कांतारा जो एक अलग तरह की फिल्म थी दर्शक उसको आज भी नहीं भूले है . इसी वजह से कांतारा की लोकप्रियता को भुनाने के लिए कन्तारा 2 की शूटिंग भी शुरू कर दी गई.

लेकिन लगता है कांतारा 2 की शूटिंग गलत समय पर शुरू हुई है ,क्योंकि जब से इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई है कोई ना कोई हादसा हो रहा है जैसे की शूटिंग के दौरान एक बड़ा हादसा हो गया एक जूनियर आर्टिस्ट पानी में बह गया और उसकी मौत हो गई.

इस फिल्म की शूटिंग सौपर्णिका नदी किनारे हो रही थी, तभी एक जूनियर आर्टिस्ट नदी में अचानक बह गया और उसकी मौत हो गई. उस जूनियर आर्टिस्ट को पानी में ढूंढने की बहुत कोशिश की गई लेकिन वह वापस नहीं आया. केरल का रहने वाला 32 वर्षीय कपिल इस फिल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद आराम करने के उद्देश्य से कोल्लूर के सामने सौपर्णिका नदी में कपिल और कुछ और लोग तैरने के उद्देश्य गए थे, लेकिन पानी का बहाव तेज होने की वजह से कपिल उस पानी में बह गया, गांव वालों ने उसे बचाने की कोशिश भी की लेकिन नाकाम रहे.

कपिल की मौत के बाद कांतारा के सेट पर मातम छा गया, अभी शूटिंग वाले एक घटना से उबरे भी नहीं थे कि कांतारा 2 के एक और एक्टर जो कॉमेडी के लिए जाने जाते थे और जिनका नाम राकेश पुजारे था, राकेश एक शादी अटेंड करने शूटिंग के बाद ही अपने गांव में गए थे वहीं पर शादी के दौरान ही राकेश पुजारे को हार्ट अटैक आया और वह अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पाए. और उनकी मौत हो गई.

कांतारा फिल्म के दो कलाकारों की अचानक मौत ने सबको स्तब्ध कर दिया है. कांतारा की पूरी टीम इन दो सदस्यों की मौत की वजह से बहुत दुखी और परेशान है.

थायराइड और खून में खराबी के चलते Karan Johar अपना वजन कम करने के लिए हुए मजबूर…

Karan Johar  : एक जमाने में गोल मटोल रह चुके करण जौहर, जिनके लिए मोटापा एक बुरे सपने से कम नहीं है, क्योंकि बचपन में मोटापे की वजह से उन्हें कई बार बेइज्जती का सामना करना पड़ा है. इसी वजह से करण जौहर अपनी सेहत को लेकर सचेत रहते हैं , खासतौर पर करण जौहर कभी भी अपना वजन बढ़ता नहीं देखना चाहते . इसलिए करण जौहर अपने आप को दुबला पतला बनाए रखने के लिए तरह तरह के जतन करते रहते हैं.

लिहाजा हाल ही में जब करण जौहर एयरपोर्ट पर ट्रेवलिंग के लिए नजर आए तो वह कुछ ज्यादा ही दुबले पतले नजर आए इसके बाद करण जौहर अपने पतलेपन को लेकर ट्रोल होने लगे, कई लोग उनको देखकर चिंतित हो गए, कुछ लोगों को लगा कि करण जौहर को किसी भयानक बीमारी ने घेर लिया है, तो कुछ लोगों का मानना था कि करण जौहर गलत दवाइयां का सेवन करके अप्राकृतिक ढंग से पतले हो रहे हैं . लेकिन इन सभी बातों का खंडन करते हुए करण जौहर ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह ना तो कोई दवाई ले रहे हैं पतले होने के लिए, और ना ही उन्हें कोई बीमारी हुई है बल्कि उनके पतले होने के पीछे ठोस वजह है.

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान करण जौहर ने अपने पतले होने की वजह और वजन कम करने के लिए अपनाई गई खास टेक्निक पर खुलकर बातचीत की. इस बातचीत में करण जौहर ने अपने सामने आने वाली शारीरिक चुनौतियों और स्वस्थ परिवर्तन को लेकर विशेष रूप से बातचीत की.

करण जौहर के अनुसार वह फिलहाल थायराइड की बीमारी से पीड़ित है इसके काफी सारे उतार चढ़ाव उन्हें देखने पड़ रहे हैं. जिस पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी हो गया था. करण जौहर के अनुसार वह पिछले 15-20 सालों से थायराइड की बीमारी से ग्रस्त है जिस वजह से उन्हें अपना वजन कंट्रोल में रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा है.

वजन कम करने के लिए वह कुछ आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन कर रहे हैं और साथ ही पूरे दिन में एक ही बार भोजन करने का वह भी डाइट के अनुसार उन्होंने बड़ा कदम उठाया है. करण जौहर रात को 7 से 8 के बीच में खाना खा लेते हैं, इसके अलावा जिम जाकर भी जिम ट्रेनर की उपस्थिति में एक्सरसाइज भी करते हैं. इन्हीं सब चीजों की वजह से उनका वजन अचानक ही कम हुआ है , जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी था.

Hindi Kahaniyan : आखिर दोषी कौन है – क्या हुआ था रश्मि के साथ

Hindi Kahaniyan : जिसतरह दीए के साथ बाती का गहरा नाता होता है, अपनी आखिरी सांस तक वह दीए को नहीं छोड़ती, उसी के साथ ही जीती है और उस की बांहों में ही अपना दम तोड़ देती है, कुछ इसी तरह का प्यार करती थी रश्मि अपने प्रेमी आदित्य से. साथ जीनेमरने के वादे करने वाले आदित्य और रश्मि प्यार की राह पर एकदूसरे का हाथ पकड़े बहुत दूर निकल आए थे. एकदूसरे को देखे बिना कभी भी उन का दिन पूरा नहीं होता था. दोनों के परिवार भी इस रिश्ते को बहुत पसंद करते थे. दोनों के असीम प्यार को मिलाने के लिए दोनों परिवारों ने जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी थीं.

आदित्य की मां अनीता ही ने रश्मि के लिए उस की पसंद के कपड़े, गहने सबकुछ तैयार करवा लिया था. इकलौता ही बेटा तो था आदित्य उन का. अपने सूने आंगन में एक बेटी के कदमों को लाने की उन्हें बड़ी जल्दी थी. अपनी मंजिल को पूरा होता देख आदित्य और रश्मि की खुशी का ठिकाना न था. रश्मि के परिवार में भी जोरशोर से विवाह की तैयारियां चल रही थीं.

विवाह का मुहूर्त 1 माह बाद का निकला था. सभी को जल्दी थी, किंतु उस से पहले का कोई मुहूर्त था ही नहीं. अब सभी उस तारीख का इंतजार कर रहे थे. 1-1 कर के दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. वह कहते हैं न कि समय से पहले और हिस्से से ज्यादा किसी को नहीं मिलता. कुछ ऐसा ही आदित्य और रश्मि के साथ भी हुआ.

आज करवाचौथ है. रश्मि बहुत ही उत्साह में थी. आदित्य से भले ही अब तक उस का विवाह न हुआ हो पर मन ही मन वह उसे पति तो मान ही चुकी थी. यही सब सोच कर उस ने भी आज करवाचौथ का व्रत रख लिया.

सुबहसुबह आदित्य के फोन की घंटी बजी. आदित्य गहरी नींद में सो रहा था. जैसे ही देखा रश्मि का फोन है, ‘अरे इतनी सुबह रश्मि का फोन? क्यों किया होगा,’ सोचते हुए उस ने

फोन उठाया.

रश्मि ने कहा, ‘‘आदित्य, आज शाम का कोई प्रोग्राम नहीं बनाना. मैं ने आज करवाचौथ का व्रत रखा है, निर्जला तुम्हारे लिए. रात को

चांद देख कर तुम्हारे हाथों से पानी पी कर ही उपवास तोड़ूंगी. शाम को तुम मेरे लिए बिलकुल फ्री रखना.’’

‘‘अरे रश्मि यह उपवास छोड़ो यार, कहां भूखी रहोगी दिन भर.’’

‘‘नहीं आदित्य, यह व्रत तो मुझे रखना ही है. सिर्फ आज ही नहीं, हर वर्ष तुम्हारे लिए, तुम्हारी लंबी उम्र के लिए.’’

‘‘ठीक है रश्मि, तुम से कभी मैं जीत सका हूं क्या? मैं शाम को अपनेआप को तुम्हारे हवाले कर दूंगा, अब खुश?’’

‘‘आदित्य शाम को 7 बजे तक तुम मुझे लेने आ जाना, शाम को पूजा मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर पर ही करूंगी.’’

‘‘ठीक है रश्मि, जो आज्ञा.’’

रश्मि शाम का इंतजार कर रही थी. हाथों में मेहंदी, सोलहशृंगार, लाल जोड़े में सजीधजी रश्मि बहुत ही सुंदर लग रही थी. ऐसा लग रहा था मानो आज ही उस का विवाह हो.

दुलहन की तरह सजीधजी रश्मि को देख कर अनीता भी फूली नहीं समा रही थीं. चांद का इंतजार सभी कर रहे थे. रश्मि को जोर की भूख लगी थी.

रश्मि बारबार आदित्य से कह रही थी, ‘‘आदि जाओ न बाहर चांद को ढूंढ़ो, कहां छिप कर बैठा है?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘कहां जाऊं रश्मि, मुझे तो चांद मेरी आंखों के सामने ही दिखाई दे रहा है. इस चांद के सामने उस चांद को देखने कौन जाएगा.’’

‘‘जाओ न आदि, भूख लग रही है.’’

कुछ ही समय में चांद भी निकल आया. पूजा कर के छलनी से चांद के साथ आदित्य

को निहारते हुए रश्मि ने धीरे से कहा, ‘‘आई

लव यू आदित्य.’’

आदित्य ने भी वही 3 शब्द कहते हुए अपने हाथों से उसे पानी पिलाया और मिठाई खिला कर उस का व्रत खुलवाया. रश्मि को ये क्षण ऐसे मनमोहक लग रहे थे मानो जिंदगी की सारी खुशियां सिमट कर इन पलों में समा गई हों.

रश्मि की झल सी गहरी आंखों में आदित्य को प्यार ही प्यार नजर आ रहा था. वह उस गहराई में डूबता ही चला जा रहा था.

तभी पीछे से अनीता की आवाज आई, ‘‘आदि चलो रश्मि को खाना खिलाना है या नहीं?’’

‘‘हांहां मां आते हैं.’’

दोनों डाइनिंगरूम में चले गए और फिर सब ने साथ खाना खाया. परिवार के सदस्यों के साथ बातें करते हुए रात के 12 बज गए. रश्मि का घर आदित्य के घर से बहुत दूर था. आदित्य रश्मि को छोड़ने कार से निकला.

दोनों बातें करते हुए एकदूसरे में खोए चले जा रहे थे. रात काफी हो गई थी. हर तरफ अंधेरा पसरा था. रास्ता भी सुनसान था. कहीं कोई हलचल नहीं थी. आदित्य की कार मंजिल की तरफ बढ़ रही थी कि तभी अचानक कार झटके मारने लगी और बंद हो गई.

‘‘रश्मि घबरा गई, क्या हुआ आदित्य?’’

‘‘मालूम नहीं रश्मि, अचानक क्या हो

गया. आज के पहले कभी कार इस तरह रुकी नहीं थी.’’

आदित्य ने अंदर बैठेबैठे 2-3 बार कार स्टार्ट करने की कोशिश की, किंतु वह सफल नहीं हो पाया.

‘‘रश्मि रुको, मैं बाहर बोनट खोल कर देखता हूं. क्या हो गया है, वरना फोन कर के घर से किसी को बुलाना पड़ेगा. तुम अंदर, बैठो,’’ कहते हुए आदित्य बाहर निकल गया.

तब तक अचानक मौसम का अंदाज भी बदल गया. हवा के साथ हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. इस बिन मौसम की बारिश से घबरा कर रश्मि भी कार से बाहर निकल आई और अपने मोबाइल से लाइट दिखाने लगी.

तभी रश्मि ने कहा, ‘‘आदि, मुझे डर लग रहा है, जल्दी से घर पर फोन कर देते हैं पापा

आ जाएंगे.’’

‘‘हां रश्मि, यह कार अपने से तो ठीक होने से रही.’’

तभी अचानक तेजी से एक कार उन के पास आ कर रुकी. उस में नशे में धुत्त 4 लड़के बैठे थे. कार से बाहर निकल कर एक लड़के ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाई? कोई मदद चाहिए क्या?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘जी नहीं थैंक यू.’’

तभी एक लड़के ने आदित्य को जोर से धक्का दिया. आदित्य को बिलकुल

आइडिया नहीं था. अत: वह उस धक्के से कुछ दूर तक लड़खड़ाने के बाद संभलने लगा. तब तक दूसरे दोनों लड़कों ने रश्मि को कार में खींच लिया. तीसरा भी जल्दी से बैठ गया और चौथा ड्राइवर सीट पर पहले से ही बैठा था. उस ने तेजी से कार को भगाना शुरू कर दिया.

रश्मि चिल्लाती रही, आदित्य कार के पीछे भाग रहा था. पीछे के कांच से रश्मि की काली परछाईं कुछ क्षणों तक तड़पते हुए आदित्य को दिखाई देती रही और फिर गायब हो गई. कार दूर तक सुनसान रास्ते पर दौड़ती हुई दिखाई देती रही. आदित्य कुछ भी न कर पाया. उस की आंखों के सामने ही उस की रश्मि का हरण हो गया. एक नहीं यहां तो 4-4 रावण थे.

आदित्य ने तुरंत पुलिस को फोन लगा कर बताया. पुलिस हरकत में आए तब तक वह हैवान रश्मि को कहीं बहुत दूर ले जा चुके थे.

दोनों परिवारों में इस खबर ने तूफान ला दिया. सब चिंता में थे, सदमे में थे. घर में आंसू और सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं था. दोनों परिवार इस दुख की घड़ी में साथ थे. पुलिस अपना काम कर रही थी.

2-3 घंटों के बाद उन लड़कों ने रश्मि को सड़क के किनारे झडि़यों में फेंक दिया.

उन्होंने रश्मि को धमकी देते हुए कहा, ‘‘जान प्यारी हो तो चुपचाप ही रहना वरना हम ने तुम्हारे पति का फोटो भी ले लिया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे, समझ.’’

रश्मि बेहोशी की हालत में सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी हुई थी. सुबह मौर्निंग वाक करने आए पतिपत्नी को झडि़यों में लड़की पड़ी दिखाई दी.

तभी उस महिला ने अपने पति से कहा, ‘‘अरे यह तो कोई दुलहन लग रही है, पर इस तरह झडि़यों में… जल्दी से पुलिस को फोन करो. इस की हालत देख कर लग रहा है मामला कुछ और ही है.’’

उस के पति ने पुलिस को फोन किया. वह महिला रश्मि को होश में लाने की कोशिश कर रही थी. तब तक पुलिस भी आ गई. रश्मि को तुरंत अस्पताल ले जाया गया.

पुलिस ने आदित्य को फोन कर के बताया, ‘‘आदित्य, एक लड़की सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी मिली है. उस की हालत गंभीर है. उसे हम ने अस्पताल में भरती करा दिया है. किसी बुजुर्ग दंपती को वह बेहोशी की हालत में मिली थी. उन्होंने ही हमें खबर दी है. आप आ कर देख लीजिए, लगता है यह वही है, जिस के लिए आप ने शिकायत दर्ज करवाई थी.’’

आदित्य और रश्मि के परिवार तुरंत अस्पताल पहुंच गए. रश्मि की हालत बहुत ही खराब थी. जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती रश्मि इस वक्त बिलकुल असहाय लग रही थी. वह इस समय होश में भी नहीं थी. उस के चेहरे पर लालनीले निशान दिख रहे थे. बाकी शरीर चादर से ढका था. रश्मि की ऐसी हालत देख कर परिवार वालों की तो क्या डाक्टर और नर्स की आंखों में भी आंसू छलक आए.

आदित्य अपनी मां के कंधे पर सिर रख कर आंसू बहा रहा था. वह बहुत देर तक रश्मि की ऐसी हालत देख न पाया और वहां से बाहर निकल गया.

रश्मि को जब होश आया, दोनों परिवार

वहां मौजूद थे. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन जिस की चाहत थी, वही उसे दिखाई नहीं दिया. उस की आंखों से आंसू बिना रुके बहते जा रहे थे.

उस के मुंह से एक ही शब्द निकल रहा था, ‘‘आदि बचाओ मुझे…’’

कुछ समय के लिए वह होश में आती, फिर उस की आंखें बंद हो जातीं. दूसरे दिन सुबह उसे पूरी तरह से होश आया. अपनी मम्मी के गले लग कर वह बुरी तरह रो रही थी. उसे सांत्वना किस तरह से दें, कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था. सब की आंखों में सिर्फ आंसू थे. मुंह में मानो जबान नहीं है.

आखिरकार रश्मि ने चुप्पी तोड़ते हुए अपनी मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी आदित्य कहां है?’’

‘‘बेटा अभी तो यहीं था, शायद डाक्टर से बात करने गया होगा.’’

अनीता ने तुरंत आदित्य को फोन लगाया, ‘‘आदि कहां हो तुम? जल्दी आओ रश्मि को होश आ गया है. वह तुम्हें ही बुला रही है.’’

‘‘मां मैं उसे इस तरह तड़पता नहीं देख सकता… मैं उस का सामना नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो आदित्य तुम? जल्दी से यहां आ जाओ.’’

आदित्य के मन में एक अलग ही तूफान उठा हुआ था. बलात्कार की शिकार हुई रश्मि को स्वीकार करने में अब वह हिचकिचा रहा था. इस तूफान में फंसा आदित्य अपनी मां की बात मान कर रश्मि के सामने आखिरकार आ ही गया.

रश्मि आदित्य से ऐसे लिपट गई जैसे किसी वृक्ष से बेल लिपट जाती है और उसे

छोड़ती ही नहीं. रश्मि बिना कुछ कहे रोती ही जा रही थी.

तब आदित्य ने कहा, ‘‘आई एम सौरी रश्मि, मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया,’’ इतना कहते हुए आंखों में आंसू लिए वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. रश्मि अभी भी बांहें फैलाए उसे जाते देख रही थी.

अनीता को आदित्य का ऐसा व्यवहार देख कर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे तुरंत रश्मि के पास आईं और उसे सीने से लगाते हुए कहने लगीं, ‘‘रश्मि बेटा सब ठीक हो जाएगा. तुम अपने आप को संभालो, हिम्मत रखो बेटा. यह बुरा वक्त था हम दोनों परिवारों के लिए… अब जितनी जल्दी हो सके, हमें इस से बाहर निकलना होगा. आदित्य अपनेआप को दोषी मान रहा है कि वह तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया. इसलिए तुम से नजरें चुरा रहा है.’’

अगले 2 दिनों तक भी आदित्य अस्पताल नहीं आया. अनीता रोज 3-4 घंटे

रश्मि के पास आ कर रुकती थीं.

तीसरे दिन रश्मि ने पूछ ही लिया, ‘‘मां, आदित्य मुझ से मिलने क्यों नहीं आ रहा? क्या वह मुझ से नाराज है?’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं, वह भी बहुत दुखी है. खुद से नाराज है. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. मैं आज ही उसे भेजती हूं.’’

‘‘नहीं मां, जब उस की इच्छा होगी तब वह खुद आएगा. आप उस से जबरदस्ती बिलकुल

मत करना.’’

‘‘ठीक है बेटा.’’

अनीता जब घर पहुंचीं तब मन में ठान चुकी थीं कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है, आज वे जान कर ही रहेंगी.

शाम को वे आदित्य के पास जा कर बैठीं और बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘आदि बेटा

तुम रश्मि से मिलने आखिर क्यों नहीं जा रहे हो? आज उसे तुम्हारी बहुत जरूरत है. मैं जानती हूं तुम दुखी हो, किंतु तुम्हारा इस तरह का व्यवहार रश्मि को तोड़ देगा. जाओ जा कर उस के पास बैठो, उस से बातें करो. उसे यह विश्वास दिलाओ कि तुम उस के साथ हो.

अपने कंधे का सहारा दे कर उस के बहते आंसुओं को तुम्हें ही पोंछना होगा आदित्य. जब भी कुछ आहट होती है, उस की आंखों में केवल यह उम्मीद होती है कि दरवाजे से तुम ही अंदर आओगे. उस की आंखें हर समय केवल और केवल तुम्हें ही ढूंढ़ती रहती हैं, लेकिन हर बार उस की उम्मीद टूट जाती है, जो उस की सूनी आंखों से पानी बन कर बहने लगती है. उठो आदित्य जाओ… उस के परिवार में भी सभी को लग रहा होगा कि आदित्य आखिर क्यों नहीं आ रहा. मैं कब तक बात को संभालूंगी बेटा.’’

इतना सब सुनने के उपरांत भी आदित्य जाने के लिए तैयार नहीं हुआ. अनीता का प्यार गुस्से में बदल रहा था. वे समझ रही थीं कि आदित्य जाना नहीं चाहता.

अनीता ने गुस्से में पूछा, ‘‘आदित्य, तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है, साफसाफ बताओ. क्या तुम अपने पांव पीछे खींच रहे हो?’’

‘‘मां आप क्या चाहती हैं? बलात्कार हुआ है उस के साथ. क्या मैं उस के साथ विवाह कर लूं? समाज, दोस्त सब मेरा मजाक उड़ाएंगे. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेंगे. यदि उस के साथ घर से बाहर जाऊंगा तो कैसी नजरों से उसे देखेंगे? कैसेकैसे तंज कसेंगे? ये सब सोच कर ही मैं कांप जाता हूं. मैं इस का सामना नहीं कर

सकता मां.’’

‘‘अच्छा आदित्य तो यह खिचड़ी पक रही है, तुम्हारे अंदर. मैं तो सच में यह सोच रही थी कि तुम उस की रक्षा नहीं कर पाए, इसलिए दुखी हो, शर्मिंदा हो, इसलिए उस के पास नहीं जा रहे हो. तुम्हारे ऐसे विचार सुन कर मुझे तुम्हारी मानसिकता पर तरस आ रहा है. मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम ने आज मेरा सिर नीचे झका दिया है. इतने वर्षों से प्यार के वादे करने वाले, जन्मों तक साथ रहने के सपने देखने वाले, एक तूफान के आ जाने से साथी को बीच भंवर में डूबने के लिए छोड़ जाते हैं क्या? मैं ने तो रश्मि को इस घर की बेटी मान लिया है. जो भी हुआ, आखिर उस में दोषी कौन है? क्या गलती रश्मि की है?’’

‘‘मां मुझे भी बहुत दुख है पर मैं क्या करूं. मैं अपने मन को कैसे समझऊं?’’

‘‘आदि जो भी हुआ है, तुम्हें उस का सामना करना चाहिए. यों पीठ दिखाने से कुछ नहीं होगा. जो मुझे नहीं बोलना चाहिए, वह भी मैं तुम से पूछती हूं कि आज यदि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाए तो क्या तुम मुझे भी छोड़ दोगे?’’

‘‘मां यह क्या बोल रही हैं आप?’’

‘‘तुम्हें सुनना होगा आदित्य, समाज तो तब भी कुछ न कुछ कहेगा. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेगा. तुम्हारे साथ बाहर कहीं जाऊंगी तो तंज कसेगा. बोलो आदित्य बोलो… यदि तुम्हारी

बहन होती और उस के साथ ऐसा करती तो

क्या तुम उसे भी छोड़ देते? पूरा जीवन उसे अकेले रहने देते? क्या उस के विवाह की कोशिश नहीं करते? नहीं आदित्य, तब तुम कोई ऐसा लड़का अवश्य ढूंढ़ते जो उसे ये सब जान कर भी अपना लेता. तुम खुद ऐसा लड़का क्यों नहीं बन सकते आदित्य?’’

अपनी मां के इस तरह के तेवर देख कर आदित्य घबरा गया. वह कुछ

बोलता उस के पहले ही अनीता ने कहा, ‘‘तुम जैसे कुछ मर्द ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते

हैं और जीवनभर उस की सजा भोगनी पड़ती है स्त्री को. आदित्य तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो, तो तोड़ दो. मैं उस के लिए तुम से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी जो उसे इसी रूप में स्वीकार करे और उतनी ही इज्जत और प्यार दे जितना उस

का हक है. इस के बाद कभी भी मुझे मां कहने की कोशिश भी मत करना,’’ कहते हुए अनीता

रो पड़ीं.

अनीता का हर शब्द आदित्य के सीने को छलनी कर गया. उसे उन का हर शब्द चुभ रहा था.

दूसरे दिन अनीता जब अस्पताल पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर वे दंग रह गईं. आदित्य रश्मि के सिरहाने बैठे उस की आंखों से लगातार बहते आंसुओं को अपने हाथों से पोंछ रहा था. साथ ही वह कह रहा था, ‘‘रश्मि मुझे माफ कर दो. मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया.’’

रश्मि के माथे का चुंबन लेने के लिए जैसे ही वह झका उस की आंखों के आंसू

रश्मि के आंसुओं से जा मिले. यह संगम था आंसुओं के साथसाथ उन दोनों के मिलन का, आदित्य के पश्चात्ताप का, रश्मि की उम्मीदों का और अनीता के प्यार और विश्वास का.

अनीता उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने जैसे ही अपने कदम वापस जाने के लिए उठाए, उस के कानों में आवाज आई, ‘‘आदि मैं

3 दिनों से दरवाजे पर टकटकी लगा कर तुम्हारा इंतजार कर रही थी. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं रही. सिर्फ एक बार तुम से मिल कर, तुम्हारी बांहों में सो जाना चाहती थी. आज तुम ने मेरी वह इच्छा पूरी कर दी,’’ कहते हुए वह आदित्य की बांहों से लिपट गई.

‘‘यह क्या कह रही हो रश्मि? मैं तो

तुम्हें एक बार नहीं हजारों बार पूरी जिंदगी

अपने सीने से लगा कर अपनी बांहों में रखना चाहता हूं.’’

तब तक रश्मि की मम्मी भी आ कर अनीता के साथ खड़े हो कर दुनिया का यह सब से सुंदर अलौकिक नजारा देख रही थीं. उन दोनों ने एकदूसरे को गले मिल कर बधाई दी.

तब तक आदित्य ने रश्मि को अपनी गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो रश्मि घर चलते हैं.’’

रश्मि अपना सारा दुखदर्द भूल कर

आदित्य को निहारे जा रही थी. इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो धरती पर ही उसे स्वर्ग मिल गया हो.

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