लॉकडाउन के बीच Sushmita Sen ने शेयर की अपनी ‘लव स्टोरी’, Video Viral

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) भले ही फिल्मी दुनिया से दूर हैं, लेकिन वह आए दिन अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में आ जाती हैं. इन दिनों लॉकडाउन के कारण पूरा बौलीवुड अपनी फैमिली के साथ समय बिता रही हैं. वहीं सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) भी बौयफ्रेंड रोहमन शॉल संग अपनी बेटियों के साथ समय बिता रही हैं, जिसकी फोटोज और वीडियो सुष्मिता (Sushmita Sen) अपने सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. इसी बीच सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) ने अपनी लव स्टोरी कैप्शन की एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर की है. आइए आपको दिखाते हैं सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) की लव स्टोरी…

बेटियों संग वीडियो की शेयर

 

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My #lovestory 😍❤️I love you guys!!! #duggadugga 🎵

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एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) सेन ने वीडियो को पोस्ट करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘मेरी लव स्टोरी. आई लव यू गायज.’  इस वीडियो में सुष्मिता की दोनों बेटियां एलिजा और ऋने पियानो बजाते हुए दिखाई दे रही हैं. हालांकि इस दौरान एलिजा अपनी बड़ी बहिन ऋने को पियानो की ट्विन्स सिखाती हुई नजर आ रही हैं. वहीं फैंस को उनका वीडियो इतना पसंद आ रहा है कि सुष्मिता सेन की इस पोस्ट पर थोड़ी ही देर में 55 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं.

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बौयफ्रेंड संग फिटनेस का ख्याल रख रही हैं सुष्मिता


सुष्मिता (Sushmita Sen) अपने रिश्ते को फैंस से कभी नहीं छिपाती, इसीलिए वह आए दिन फैंस के लिए बौयफ्रेंड संग वीडियो पोस्ट करती रहती है. वहीं हाल ही में लॉकडाउन के बीच भी सुष्मिता बौयफ्रेंड रोहमन संग अपनी फिटनेस का ख्याल रख रही हैं और वीडियो शेयर कर रही हैं.

बता दें, सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) के फैंस उनकी शादी का इंतजार कर रहे हैं. वहीं फैंस भी उनसे उनकी शादी के बारे में सोशल मीडिया पर सवाल कर रहे हैं. अब देखना ये है कि कैसे करना है सुष्मिता कब बंधती हैं शादी के बंधन में.

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Dipika Kakar के धर्म पर उठे सवाल, पति Shoaib Ibrahim ने दिया ये करारा जवाब

बौलीवुड हो या टीवी सेलेब्स हर कोई किसी न किसी बात पर ट्रोलिंग का शिकार हो जाते हैं. वहीं ट्रोलर्स को सेलेब्स करारा जवाब भी देते हैं. हाल ही में फैंस का एक्टर शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) से वाइफ दीपिका कक्कड़ (Dipika Kakkar) के धर्म को लेकर पूछा सवाल ट्रोलिंग का कारण बन गया है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

फैन ने पूछा ये सवाल…

dipika

दरअसल, शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) के फैंस के साथ ‘आस्कमी क्वेश्चन’ (AskMe Question) सेशन में एक फैन ने शोएब से पूछा था कि, ‘कृपया मुझे बताइए कि आपकी पत्नी हिंदू है या मुस्लिम?’ इस सवाल का जवाब देते हुए शोएब इब्राहिम ने लिखा है कि, ‘इंसान अच्छी है क्या सिर्फ इतना ही काफी नहीं है.’ शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) ने जिस अंदाज में दीपिका कक्कड़ से जुड़े सवाल का जवाब दिया है, वो वाकई में सराहनीय है.

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दीपिका के पहनावे को लेकर भी उठा सवाल

 

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Make your wife smile coz a married women in Islam is called “Rabbaitul bait” means Queen Of The Home.

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इसस पहले भी फैंस के साथ एक सेशन के दौरान एक शख्स ने शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) से दीपिका कक्कड़ के पहनावे को लेकर ऊल-जुलूल सवाल पूछ लिया था. शख्स ने शोएब इब्राहिम से पूछा था कि, ‘दीपिका जी हमेशा सलवार सूट में ही क्यों होती हैं? क्या आपका परिवार उन्हें ऐसा करने के लिए फोर्स करता है?’ इस सवाल को देखकर शोएब इब्राहिम गुस्से से लाल हो गए थे और उन्होंने जवाब में सिर्फ इतना ही कहा कि, ‘जिसकी जितनी सोच है वो वैसे ही सवाल करेगा. भगवान आपको खुश रखें.’

 

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Mere Nabi Ne Kaha hai 👉 When a Husband and a Wife look at each other with Love, Allah look at them with Mercy.

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बता दें, एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ (Dipika Kakkar) और शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) की पहली मुलाकात टीवी सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ के सेट पर हुई थी, जिसके बाद चार साल तक डेटिंग के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया और साल 2018 में दोनों ने शादी कर ली थी.

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Bedroom से लेकर Garden तक कुछ ऐसा है सोनम कपूर अहूजा का ससुराल, Photos Viral

भारत में इन दिनों कोरोनावायरस की मार पूरी जनता झेल रही है तो वहीं बौलीवुड और टीवी सेलेब्स भी शूटिंग बंद होने के कारण घर पर हैं. इसी बीच बौलीवुड की शादीशुदा एक्ट्रेसेस अपनी मैरिड लाइफ में बिजी हो गई हैं. ऐसी ही फैशन आइकन एक्ट्रेस सोनम कपूर (Sonam Kapoor) भी लॉकडाउन को इन दिनों पूरा एंजौय कर रही हैं और अपने पति आनंद अहूजा (Anand Ahuja) और ससुराल वालों के साथ क्वौलिटी टाइम बिता रही है.

लंबे समय से डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहने के बाद सोनम कपूर (Sonam Kapoor) को अपने पति आंनद अहूजा के साथ समय बिताने का मौका मिला है. हाल ही में सोनम कपूर ने सोशल मीडिया पर अपने फैंस के लिए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें सोनम ने अपने ससुराल की झलक दिखाई है. इसीलिए आज हम आपको सोनम कपूर के घर के हर हिस्से की कुछ झलक दिखाने वाले हैं….

1. खूबसरत के साथ सिंपलनेस का कौम्बिनेशन है सोनम कपूर का बैडरूम

 

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Snapshots of Quarantine; @vegnonveg for @hypebeast .. #StayHomeSnaps #ShotOniPhone

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सोनम कपूर ने अपने बेडरुम को अपनी तरह बेहद ही खूबसूरती से सजाया हुआ है. बेडरुम में व्हाइट का ज्यादा काम है, जो कमरे को एक सिंपल टच देता है. वाइट कर्टेन और वाइट बेडशीट रुम को ओर खूबसूरत बना रहे है.

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2. किताबें पढ़ने का शौक रखते हैं पति आनंद

 

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सोनम को किताब पढ़ने का बहेद शौक है, इसलिए वह जहां बेडरूम में आनंद के साथ किताब पढ़ती हुई नज़र आ रही है. वहीं ससुराल में बड़ी लाइब्रेरी में पति आनंद भी किताबों का लुत्फ उठा रहे हैं.

3. किचन है खूबसूरत

लॉकडाउन में कैसे खुद को फिट रखे इसके लिए सोनम योगा और डांस करती है, जिसे देख उनके फैंस भी खुद को फिट रखने के लिए उन्हे फॉलो करते है. सोनम के किचन की बात करें, तो उनका किचन भी बेहद ही शानदार है जहां इन दिनों सोनम किचन किंग बनी हुई है और सबको स्वादिष्ट खाना खिला रही हैं.

4. लॉकडाउन में कर रहे हैं वर्क फ्रौम होम

 

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दूसरी ओर, आनंद भी इन दिनों अपना काम घर पर ही कम्पयूटर से कर रहे है. आनंद का ये वर्किंग प्लेस भी बेहद खूबसूरत है. जहां शीशें के दरवाजे से धूप घर के अंदर आ रही है और मन को सुकून दे रही है.

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5. गार्डन एरिया है बेहद बड़ा

 

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अब बात करते है सबसे खूबसूरत जगह कि, जहां से आनंद और सोनम अपने हर दिन की शुरुआत करते है और खुद को फीट रखते है जी हां, सोनम का गार्डन एरिया भी बहुत बड़ा है. जहां आनंद हर सुबह फिटनेस एक्सरसाइज किया करते है और हर दिन की शुरुआत हसंते-हसंते किया करते है. सोनम के ससुराल के घर की फोटो इन दिनों सोशल मीडिया पर जोरों-शोरों से वायरल हो रही है और फैंस उनकी इन तस्वीरों को देखकर जमकर तारीफ कर रहे है.

सस्ते सरकारी मकान शहरी रिहाइश में क्रांति ला सकते हैं

भारत में तमाम किस्म के माफिया हैं,जिनका किसी न किसी रूप में जिक्र होता रहता है. लेकिन भारतीय शहरों में एक बहुत बड़ा किराया माफिया है,जिसका आमतौर पर जिक्र नहीं होता. हालांकि यह इतना लाउड तो नहीं है कि इसका जिक्र हिंदी फिल्मों के विलेन के रूप में हो पर आंकड़ों की जमीन पर उतरकर देखें तो यह बहुत निर्णायक है. इस किराया माफिया की वजह से शहरों में रह रहे 16 से 20 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ पाते. इस माफिया की बदौलत भारत में उच्च शिक्षा 10-15 प्रतिशत महंगी है. यह किराया माफिया हर महीने 16 से 20,000 करोड़ रूपये की उगाही करता है; क्योंकि भारत की 28 प्रतिशत शहरी आबादी किराए में रहती है, जिसमें 5 प्रतिशत शहरों में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे छात्र भी हैं.

पिछले दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शहरों में मजदूरों तथा दूसरे आम लोगों के लिए जिस सस्ते सरकारी मकानों (पीपीपी योजना के तहत) के बनाने की सरकार की मंशा जाहिर की है, वह योजना आधी भी जमीन में उतर जाए तो कई करोड़ लोग खुशहाल हो जाएं. कम से कम गरीबी रेखा से तो ऊपर आ ही सकते हैं. सस्ते सरकारी या अर्धसरकारी मकान शहरी जीवन में क्रांति ला सकते हैं. क्योंकि शहरों में विशेषकर भारत के महानगरों और मझोले शहरों में एक बड़ी आबादी है जो जितना कमाती है, उसमें से 50 फीसदी से ज्यादा मकान के किराये में खर्च कर देती है. हालांकि यह बात भी सही है कि हिंदुस्तान में आजादी के बाद साल दर साल शहरों में चाहे वे छोटे शहर हों या बड़े किराये में रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आयी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 1961 में जब भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर यह सर्वेक्षण हुआ कि शहरों में रहने वाले कितने लोगों के अपने निजी मकान है, उस दौरान सिर्फ 46 फीसदी लोग ही शहरों में ऐसे थे, जिनके पास अपने मकान थे, वरना तो ज्यादातर लोग पीढ़ी दर पीढ़ी किराये के मकानों में रहा करते थे.

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हिंदुस्तान का एक भी ऐसा बड़ा शहर नहीं है, जहां किरायदारों की एक लंबी और पुरानी संस्कृति मौजूद न हो. खासकर जो शहर आज से 40-50 साल पहले हिंदुस्तान में बड़े औद्योगिक शहर थे, वहां तो किरायेदारी का चलन बहुत व्यवस्थित ढंग से शुरु हुआ था और फल-फूल रहा था. कानपुर और कलकत्ता ये दो ऐसे शहर हैं, जहां 50 साल पहले तक 60 फीसदी से ज्यादा लोग किराये के घरों में रहा करते थे. बड़े बड़े साहूकार और सेठ एक स्थायी आय के लिए जिस कारोबार पर सबसे ज्यादा भरोसा करते थे, वह कारोबार किराये के लिए मकान बनवाने का था. यूं तो पूरे देश में यह कारोबार खूब फलफूल रहा था, लेकिन उन दिनों इन दो शहरों में तो किरायेदारों को ध्यान में रखकर ही हजारों मकान निर्मित हुए थे, जिन्हें हाता या मैसन अथवा बाड़ा कहा जाता था.

किराये के लिए निर्मित होने वाले इन बड़े मकानों में चाहे उन्हें हाता कहें, मैसन कहें, हवेली कहें, बाडा कहें या छत्ता कहें. सबके नाम भले अलग अलग होते रहे हों, लेकिन उनकी डिजाइन, उनकी संरचना करीब करीब एक जैसी होती थी. एक बड़े से प्लाॅट में एक बड़ा सा आंगन निकाला जाता था और उस आंगन के चारों तरफ सैकड़ों छोटे छोटे माचिस के डिब्बों की तरह एक एक कमरे के सैट बनाये जाते थे. इन बहुमंजिला मकानों में कई लोग तो चार चार, पांच पांच, छह छह पीढ़ियों तक रहा करते थे. यहां लोगों का आपस में बिल्कुल गांवों जैसा भाईचारा होता था और हां, इस सबके बीच यह बात भी सही है कि उन दिनों इन मकानों का किराया भी काफी कम या कहें जैनुइन हुआ करता था, जिससे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी किराये के मकान में गुजार देते थे.

लेकिन 80 के दशक के बाद जब भारत में आर्थिक सुधारों की धीरे धीरे शुरुआत हुई और 90 के दशक के बाद इन सुधारों को पंख लगाये गये, तब पारंपरिक किराये के मकान और पारंपरिक किरायेदारी में तो कमी आने लगी और एक स्तर पर आकर यह खत्म भी हो गई. लेकिन इसके बाद शहरों में किरायेदारी का एक नया युग शुरु हुआ. चूंकि अब पारंपरिक कामकाज बदल चुके थे. बड़ी बड़ी मिलें नहीं रह गयी थीं, जहां हजारों लोग एक साथ काम करते और करीब करीब एक साथ रहना पसंद करते थे. साथ ही उन दिनों चूंकि नौकरीपेशा लोगांे की तनख्वाहें भी काफी कम थीं, इसलिए किराये के लिए सस्ते मकान बनाये जाते थे, भले उनमें उसी स्तर की सुविधाएं रहती हों.

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मगर जब 90 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध में लोगों की तनख्वाहें बढ़ीं, सरकारी कर्मचारियों को पांचवे वेतन कमीशन की सिफारिशों के चलते नये वेतनमान दिये गये और विदेशी निवेश के कारण भारत में बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्रों का विकास हुआ तो लोगों की तनख्वाहें अच्छी खासी बढ़ गईं. नतीजतन किराये का मकान चाहने वालों की ख्वाहिशें और हैसियत भी बढ़ीं. यहां से किरायादारी का एक नया युग शुरु होता है, जब किराये के लिए सुविधा सम्पन्न फ्लैट बनाये जाने का चलन शुरु हुआ और इनका अच्छा खासा किराया वसूला जाने लगा. एक वर्ग ऐसा था जिसे अच्छे किराये के मकानों के लिए अच्छा किराया देने में कोई परेशानी नहीं थी.

लेकिन इस वर्ग के चलते एक बहुत बड़े वर्ग को इस चलन ने पीस दिया. शहरों में सस्ते मकान मिलना दुलर्भ हो गये और आम नौकरीपेशा लोगों की तनख्वाहें किरायेदारी में आधी से ज्यादा खर्च होने लगीं. आज की स्थिति यही है, लेकिन अगर सरकार कोरोना संक्रमण के बाद देश के बड़े महानगरों में किराये के लिए सस्ते मकानों को बनाने या पहले से बने मकानों को इस योजना में शामिल करने की शुरुआत करती है, तो यह एक अच्छी पहल होगी. सबसे बड़ी बात यह है कि शहरों में आम लोगों के लिए रहना मुश्किल नहीं रह जायेगा. एक और बात यह भी कि आज मुंबई जैसे शहर में जहां एक एक फ्लैट में 10-10 लोग रह रहे हैं, उस स्थिति से भी छुटकारा मिलेगा. कुल मिलाकर भले यह एक त्रासदी के दौरान राहत पैकेज के रूप में शुरु की जा रही योजना हो, लेकिन अगर इसे सफलतापूर्वक लागू किया गया तो इससे शहरी रहिवास की कायापलट हो जायेगी.

मल्टीप्लैक्स और फिल्म निर्माताओं की लड़ाईः सिनेमा के लिए कितनी नुकसानदेह

सिनेमा में होंगे अमूलचूल बदलाव

कोरोना की बीमारी के चलते पूरे विश्व में लॉक डाउन है, जिससे आम इंसान अपने अपने घरों में कैद है. तो वहीं पूरे विश्व में हर इंसान के साथ हर इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.  इससे पूरे विश्व के साथ साथ भारत की फिल्म व टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है.  अफसोस की बात यह है कि संकट की इस घड़ी में आपस में बैठकर सिनेमा की बेहतरी के लिए किसी नई राह को तलाशने की बजाय कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए अपनी फिल्मों को थिएटर मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन के लिए बेच कर अपनी जेबें भर ली हैं. इस पर निर्माताओं का तर्क है कि उनकी फिल्में फरवरी माह से तैयार थीं,  कोरोना के चलते पता नहीं कब सिनेमाघर खुलेंगे, इसलिए उन्होने अपनी फिल्म की ताजगी को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाया है.

मगर फिल्म निर्माताओं के इस कदम से फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लैक्स मालिकों के बीच तलवारे खिंच गयी हैं. इसके‘यदि दूरदर्शी परिणामों पर गौर किया जाए, तो इसका सबसे बुरा असर सिनेमा पर ही पड़ने वाला है. क्योंकि फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिक तो आते जाते रहेंगे, क्योंकि कुछ भी नश्वर नहीं है. मगर इनकी आपसी खींचतान से सिनेमा और फिल्म उद्योग का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नही है. मगर जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसके मद्दे नजर अब भारतीय फिल्म उद्योग कई खेमों में न सिर्फ बंटा हुआ नजर आएगा, बल्कि यह खेमें यदि एक दूसरे के साथ ‘‘अछूत’’जैसा व्यवहार करते हुए नजर आएं, तो किसी को भी आश्चर्य नही होगा.

15 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हैं

वास्तव में कोरोना के चलते 15 मार्च से पूरे देश के सभी सिनेमाघर बंद चल रहे हैं. 17 मार्च से फिल्म व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद चल रही हैं. इसी के चलते अब टीवी चैनलों, मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघर मालिकों के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म के सामने भी आर्थिक संकट गहरा गया है.

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15 मार्च से अब तक करीबन दस सप्ताह हो गए हैं. एक भी फिल्म प्रदर्शित नही हो पायी हैं. इनमें छोटे बजट से लेकर बडे़ बजट तक की फिल्मों का समावेश है. कुछ फिल्मों में कई सौ करोड़ रूपए लगे हुए हैं और यह फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में रिलीज होनी थीं. पर कोरोना के चलते लॉकडाउन खत्म होने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. तो वहीं लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी एकल सिनेमाघर और मल्टीप्लैक्स कब खुलेंगे और इनमें दर्शक कब फिल्म देखने जाएगा, इसको लेकर किसी के पास कोई ठोस जवाब नही है.

सिनेमाघरों को नजरंदाज कर फिल्म निर्माता चले ओटीटी प्लेटफार्म की शरण में

इन सूरतों में कुछ फिल्म निर्माताओं ने ओटीटी प्लेटफार्म को अपनी फिल्में बेचने का फैसला कर लिया. जैसे ही खबरें आयी कि ‘83’, ‘राधे’ व ‘लक्ष्मी बम’ जैसी बड़े कलाकारों की फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होंगी,  वैसे ही सिनेमाघर मालिकों में खलबली मची और उन लोगों ने मिलकर फिल्म निर्माताओ, कलाकारों व तकनीशियनों से आग्रह किया कि वह ऐसा ना करें. अब तक के नियमानुसार फिल्में पहले सिनेमाघर में ही प्रदर्शित करें. सिनेमाघर मालिकों ने तो यहां तक कहा है कि वह सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं और सरकार से हरी झंडी मिलते ही सिनेमाघर के दर्शकों की क्षमता के 20 प्रतिशत दर्शकों के साथ भी सिनेमाघरों को खोलने के लिए तैयार हैं. उधर 18 मई को पीवीआर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने ऐलान कर दिया कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो वह कुछ सुरक्षात्मक नियमों के साथ पीवीआर मल्टीप्लैकस के सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन शुरू करने वाले है.

खैर, मल्टीप्लैक्स मालिकों के आग्रह के एक सप्ताह बाद ही निर्माता शील कुमार व रॉनी लाहिड़ी ने फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’,  टीसीरीज ने‘झुंड’और ‘लूडो’को ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमैजॉन प्राइम’को बेच दिया. ज्ञातब्य है कि ‘गुलाबो सिताबो’ और ‘झंुड’में अमिताभ बच्चन तथा ‘लूडो’में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन की मुख्य भूमिका है. अमैजॉन प्राइम ने 12 जून को अमिताभ बच्चन और आयुश्मान खुराना के अभिनय से सजी फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’को स्ट्रीम रिलीज करने का एलान किया है.

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिकों ने किया विरोध

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स की तरफ से निर्माताओं के इस कदम का जोर शोर से विरोध किया गया. मल्टीप्लैक्स के मालिकों का दावा है कि वह दर्शकों तक अच्छे ढंग से सिनेमा दिखाने के लिए कई वर्षो से लगातार लंबी रकम लगाकर मल्टीप्लैक्स खड़े कर उसमें बेहतरीन व आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए प्रयासरत हैं. और वह फिल्म निर्माताओं को अपना सहयोगी मानकर चल रहे थे, मगर अब उनके इस कदम से उन्हे कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं.

फिल्म निर्माताओं की दलील

मल्टीप्लैक्स मालिकों की तरफ से जो कुछ कहा जा रहा है, उस पर यदि ‘सिनेमा’केे भलाई के नजरिए से गौर किया जाए, तो उनका तर्क सही है. मल्टीप्लैक्स से भारतीय सिनेमा के विकास में क्रांति आयी. क्योंकि भारत में मल्टीप्लैक्स आने के बाद से ही सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ी और भारत में पांच सौ से हजार करोड़ रूपए की लागत वाली फिल्मों का निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ है. मगर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने जब फिल्म को सीधे ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर दिए जाने का विरोध किया, तो ‘‘फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स गिल्ड’’ने दो पन्ने का एक पत्र जारी कर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्माता को अपना फायदा देखते हुए वर्तमान हालात में ओटीटी प्लेटफार्म को फिल्म देने से रोका नहीं जा सकता.

उसके बाद एक छुटभैए निर्माता ने गिनाया कि मल्टीप्लैक्स किस तरह से समोसे व अन्य खाद्य सामग्री बेचकर धन कमाते आए हैं. इस छुटभैए निर्माता ने यहां तक कहा है कि मल्टीप्लैक्स में अपनी फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए छोटे बजट की फिल्म निर्माताओं को अपने जूते घिसने पड़ते हैं, मगर छोटे बजट की फिल्में मल्टीप्लैक्स वाले जल्दी प्रदर्शित नहीं करते.

छोटे फिल्म निर्माताओं के साथ मल्टीप्लैक्स व ओटीटी प्लेटफार्म का रहा है अपमानित करने वाला रवैया

माना कि इस छुटभैए निर्माता का यह तर्क सही है. मगर वह इस तथ्य को कैसे नजरंदाज कर गए कि छोटे बजट की फिल्मों के साथ अब तक ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म’ का भी यही रवैया रहा है. छोटे बजट में नए कलाकारों को लेकर बेहतरीन कथानक पर फिल्म बनाने वाला निर्माता निर्देशक तो मल्टीप्लैक्स और ओटीटी प्लेटफार्म दोनो से ठोकर खाने के साथ ही अपमानित होता  आया है.

परिवर्तन संसार का नियमः

वहीं कुछ लोग सिनेमाघर मालिकों और फिल्म निर्माताओं की इस लड़ाई यानी कि बहती गंगा में अपने हाथ धोने के लिए अजीबोगरीब तर्क दे रहे हैं. एक शख्स ने  अमिताभ बच्चन को महान बताने के साथ ही फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ के निर्माता के कदम को सही ठहराते हुए मल्टीप्लैक्स वालों को चेताया है कि वह यह न भूले कि कल को वह नही भी रह सकते है. इस शख्स ने तर्क दिया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले भारत में दमानिया के पचास सिनेमाघर थे. मगर द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दमनिया के सिनेमाघर कहां गए? आज की पीढ़ी तो यह भीं नहीं जानती कि दमानिया सिनेमाघर भी हुआ करते थे. इस तरह का अजीबोगरीब तर्क देकर धमकाने वाले लोग प्रकृति के नियम को भूल जाते है कि इस संसार में स्थायी कुछ नही है. मल्टीप्लैकस से पहले  सिंगल सिनेमाघर हुआ करते थे. पर अब यह न के बराबर ही रह गए हैं. सिर्फ मुंबई शहर में पचास से अधिक सिंगल सिनेमाघर खत्म हो गए, किसे पता? क्या मुंबई की नई पीढ़ी को पता है कि मुंबर्ई के अंधेरी इलाके में अंबर, औस्कर व मायनर सिनेमाघर की जगह पर अब ‘शॉपर्स स्टॉप’ नामक शॉपिंग माल है. कहने का अर्थ यह है कि किसी को भी ‘भारतीय सिनेमा’और‘भारतीय फिल्म इंडस्ट्री’ को बचाने की चिंता नही है, सभी कुतर्क करने में लगे हुए हैं.

दक्षिण के मल्टीप्लैक्स ने किया जीवा की फिल्मों का बहिस्कारः

इधर बौलीवुड मुंबई में कुतर्क करते हुए लोग अपनी अपनीतलवारें भांज रहे हैं, उधर दक्षिण भारत के अभिनेता जीवा ने जब अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म को दी, तो दक्षिण के सिनेमाघर मालिकों ने जीवा की सभी फिल्मों का हमेशा के लिए बहिस्कार करने का ऐलान कर दिया. उसके बाद दक्षिण के किसी भी कलाकार या निर्माता ने अपनी फिल्में को ओटीटी प्लेटफार्म पर देने की बात नही की. वहां पर सभी चुप हैं.

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ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म के जाने से खुश नहीं कलाकारः

ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्मों को बेचने के निर्णय से कलाकार खुश नही है. मगर ‘गुलाबो सिताबो’में अमिताभ बच्चन हैं,  इसलिए कलाकार चुप हैं. सूत्रों की माने तो कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है. कुछ कलाकारों का दावा है कि उन्होंनें फिल्म के लिए कई तरह की तैयारी की थी. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था. मेहनत से फिल्म बनायी थी कि दर्शक सिनेमाघर में बडे़ परदे पर उनको देखेगा, और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आने जा रही है, तो यह उनकी मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. इतना ही नही कुछ कलाकार सिनमाघरों की बजाय सीधे ‘ओटीटी’प्लेटफार्म पर फिल्म को प्रदर्शित करने के निर्णय को कलाकार के स्टारडम को खत्म करने का कदम मान रहे हैं. जबकि कुछ कलाकारों का मानना है कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नही रहता कि वह तय करें कि उनकी फिल्म कब,  कैसे और कहां रिलीज होगी.

आयुष्मान खुराना की बेबसीः

बौलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों में स्टारडम का स्वाद चखने वालों में आयुष्मान खुराना भी हैं, जिनकी फिल्म ‘‘गुलाबो सिताबो’’12 जून को ‘अमैजॉन प्राइम’ पर आएगी. फिलहाल आयुश्मान खुराना ने चुप्पी साध रखी है. पर सूत्र बता रहे हैं कि उनकी चुप्पी की पहली वजह यह है कि उन्हे इस फिल्म में पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय करने का अवसर मिला. दूसरी वजह यह है कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़े होने के साथ इस फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार हैं, जिन्होने आयुष्मान ख्ुाराना को पहली बार फिल्म‘‘विक्की डोनर’’में अभिनय करने का अवसर दिया था. तो आयुष्मान खुराना सोच रहे हैं कि उन्होने सुजीत सरकार को ‘गुरू दक्षिणा’चुका दी.

सिनेमाघर वाला आनंद ओटीटी प्लेटफार्म पर नहीं

फिल्मों के ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने के सवाल पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने बड़ी साफगोई के साथ कहा- ‘‘कलाकार के तौर पर मुझे ठीक से जानकारी नही है. क्योंकि मैं बिजनेस को बहुत कम समझता हूं. हालांकि दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं होगा. बड़े स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नही मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा थिएटर@सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एक जैसा कभी नही हो सकता. मगर फिलहाल थिएटर बंद हैं. इस वक्त लोगों की सेहत जरूरी है, इसलिए जिसकी जितनी क्षमता है वह उस हिसाब से देख ले. ’’

क्या हर फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म से हो सकेगी सही कमायी?

फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’के निर्माता का दावा है कि अमैजॉन ने उन्हे संतोषप्रद बहुत बड़ी रकम दी है. हो सकता है कि वह सच कह रहे हों. मगर हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ‘कोरोना’महामारी के फैलने से पहले जब निर्माता अपनी फिल्म को पहले भारतीय और विदेशी सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म को बेचते थे, उस वक्त उन्हें एक फिल्म से जो आमदनी होती थी, क्या उतने पैसे निर्माता को ओटीटी प्लेटफार्म देते रहेंगे?सच तो ही है कि ओटीटी प्लेटफार्म कभी भी उतनी बड़ी राशि हर फिल्म को नहीं दे पाएगा, जितनी राशि एक फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को सिनेमाघर,  टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म तीनों जगहों पर प्रदर्शित कर कमाता रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना महामारी में सिनेमाघर बंद होने, टीवी व सेटेलाइट चैनलों पर पुराने कार्यक्रमों के प्रसारण के चलते ‘ओटीटी’प्लेटफार्मके दर्शक इस वक्त बढ़ें होंगे, मगर जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा,  तब क्या यही हालात बरकरार रहेंगें.

क्या ओटीटी प्लेटफार्म पर हर भारतीय फिल्म के दर्शक हैं

ओटीटी प्लेटफार्म की फिल्में व वेब सीरीज एक साथ करीबन 200 देशों में देखी जाती हैं, इसलिए ओटीटी प्लेटफार्म उन्ही फिल्मों को प्राथमिकता देगा, जिनमें बड़े दर्शक हों या जिनकेदर्शक विदेशों में भी हों. ऐसे में हर कलाकार की किसी भी फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म कभी नही लेगा. सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि ग्लोबलाइजेशन के इस युग में भी अब तक विश्व के चंद देशों में ही भारतीय फिल्में देखी जाती रही हैं. इसके अलावा इस बात को भी नजरंदाज नही किया जा सकता कि कई बड़े भारतीय कलाकारों के अभिनय से सजी हॉलीवुड फिल्मों को पूरे विश्व में नापसंद किया जा चुका है. इसलिए लंबे समय तक बौलीवुड फिल्मों के लिए ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म एकमात्र विकल्प नही हो सकता.

लोग स्वार्थ की लड़ाई लड़ते हुए आवश्यक सवालों को नजरंदाज कर रहे हैं

वास्तव में फिलहाल निजी स्वार्थ के चलते ओटीटी प्लेटफार्म, मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिक और फिल्म निर्माता आपस में तलवारें लेकर खड़े हो गए हैं, मगर किसी को भी ‘बेहतर सिनेमा’और ‘भारतीय फिल्म उद्योग’को बचाने की कोई चिंता नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कई सवाल हैं, जिन पर विचार करने की जरुरत है.

सिनेमा में आएगा अमूल चूल बदलाव

हकीकत में कोरोना महामारी और लॉक डाउन के खात्मे के बाद हर इंसान के साथ साथ सिनेमा को भी अपने अंदर अमूलचूल बदलाव करने ही पड़ेंगे. इस संंबंध में बौलीवुड से जुड़े कई लोगों की राय है कि, ‘‘अब हम उस हालात में पहुंच गए हैं, जहां हमें सबसे पहले फिल्मों के बजट पर अंकुश लगाना पडे़गा. अब कई सौ करोड़ रूपए की लागत से भव्य फिल्मों का निर्माण कुछ वर्षों तक संभव नही. तो वही अब कलाकारों के नाम से भी आम लोगों का मोहभंग हो गया है. अब बदले हुए हालात में दर्शक फिल्म में अच्छी कहानी के साथ मनोरजन की चाह रखेगा. जिसके चलते अब हर कलाकार , निर्देशक,  लेखक,  तकनीशियन , मेकअपमैन,  हेअर ड्रेसर वगैरह को मानकर चलना चाहिए कि अब फिल्में तभी बन सकती हैं, जब यह सभी अपनी पारिश्रमिक राशि में भारी कटौती करेंगे. इसके अलावा लेखक को उचित सम्मान देते हुए बेहतरीन व जमीन से जुड़ी कहानियां लिखवानी पड़ेंगीं. क्योंकि ‘लॉक डाउन’ खत्म होने और सिनेमाघरो के पुनः खुलने के बाद सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचना किसी भी फिल्मसर्जक के लिए आसान नहीं हो सकता. ’’बौलीवुड से जुड़े यह लोग सही दिशा में सोच रहे हैं. ‘कोरोना’और ‘लॉक डाउन’ने दर्शकों को कंगाल कर दिया है. अब हर दर्शक की पहली प्राथमिकता अपने काम काज व नौकरी को सुचारू रूप से चलाने के साथ घरेलू हालात सुधारना ही प्राथमिकता होगी.

ओटीटी प्लेटफार्म के चलते निर्माता व सिनेमाघर के मालिकों की लड़ाई का हश्र क्या हो सकता है?   

फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री के हालात काफी बदतर हो गए हैं. फिल्म निर्माताओ की एक संस्था,  जिसके कर्ता धर्ता अभिनेत्री विद्या बालन के पति सिद्धार्थ रौय कपूर हैं, ने मल्टीप्लैक्स को धमकाते हुए ‘ओटीटी’प्लेटफार्म की ओर हाथ बढ़ाकर युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं. परिणामतः अब फिल्म निर्माता , कलाकार, लेखक आदि कई खंडों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं. हमने कई लोगों से बात की, लोगों अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अपनी राय दी. इनकी बात माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघर के लिए अलग अलग फिल्में बनेंगी. और इनके निर्माता आमने सामने खड़े नजर आ सकते हैं. इस तरह फिल्म इंडस्ट्री दो भागों विभाजित नजर आ सकती है. जब ऐसा होगा, तो फिल्म के कथानक से लेकर कलाकारों के चयन और उनकी शूटिंग आदि में भी बहुत कुछ अंतर नजर आने लगेगा.

कुछ लोगों की राय में फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह के टकराव के चलते ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघरों की फिल्मों से जुड़े लोग एक दूसरे से दूरी बनाए हुए नजर आएंगे. बौलीवुड से जुड़े तमाम लोग  इस बात से आशंकित हैं कि अब ओटीटी प्लेेटफार्म, मल्टीप्लैक्स कीे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई किस हद तक जा सकती है, इसका अनुमान लगाना संभव नही है. हमें इस बात को नही भूलना चाहिए कि जब भारत में टीवी और सेटेलाइट चैनलों में का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ था, तब फिल्मकारों ने टीवी को अपने लिए बड़ा संकट मानकर टीवी से जुड़े लोगों से लंबे समय तक अछूत जैसा व्यवहार किया था. करीबन दस पंद्रह वर्ष बाद यह दूरी बड़ी मुश्किल से खत्म हो पायी थी कि अब कोरोना के चलते एक बार फिर उसी तरह के हालात पैदा होने जा रहे हैंैं. ऐसे मंे भविष्य में यदि सिनेमाघरों के लिए बनने वाली फिल्मांें से जुड़े लोग यदि ‘ओटीटी’के लिए बनने वाली फिल्मों से जुड़े लोगों के संग अछूत जैसा व्यवहार करने लगें, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नही होगी.

मजदूर हो गए पलायनः

यह फिल्म निर्माता अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बजाय अहम की लड़ाई लड़ते हुए ज्यादा नजर आ रहे हैं. एक फिल्म के निर्माण में ज्यूनियर आर्टिस्ट, स्पॉट ब्वॉय,  कैमरा असिस्टटेंट, ज्यूनियर डांसर सहित करीबन दो से चार हजार से अधिक देहाड़ी मजदूरों का योगदान होता है. जिसकी फिक्र किसी ने नहीं की. लॉक डाउन शुरू होने पर सलमान खान ने ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलाइज’संस्था के मार्फत इन देहाड़ी मजदूरों को कुछ राहत सामग्री व धन उपलब्ध कराया था. पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ. सूत्रों की माने तो पचास प्रतिशत से अधिक फिल्म इंडस्ट्री के दिहाडी मजदूर मुंबई छोड़कर जा चुके हैं, बाकी जाने की तैयारी में हैं. इतना ही नही तमाम छोटे कलाकार भी आर्थिक तंगी का शिकार हैं. किसी के पास घर का किराया देने के पैसे नहीं हैं. तो किसी के सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो चुका हैं. इन सभी को बांधकर रखने की दिशा में फिल्म निर्माता वगैरह नहीं सोच रहे हैं.

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 कैसे जानें बच्चा अंतर्मुखी है या शर्मीला

 बच्चा जब गर्भ में होता है उसी समय से बच्चे के भविष्य के बारे में मातापिता की उत्सुकता बनी रहती है, जैसे बच्चा कैसा होगा, उस की पढ़ाईलिखाई, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व आदि के बारे में. बच्चे के जन्म के बाद उस के पालनपोषण और व्यवहार पर ध्यान देना स्वाभाविक है. अगर आप का बच्चा मातापिता और अन्य निकट संबंधियों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में असहज या भय महसूस करे तो बहुत संभावना है कि बच्चा आगे चल कर शांत और अंतर्मुखी (इंट्रोवर्ट) हो या अनावश्यक रूप से शर्मीला हो. यह बच्चे के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास में बाधक हो सकता है.

ऐसा भी नहीं है कि अंतर्मुखी व्यक्तित्व दुर्लभ हैं. देखा गया है कि 30-50 प्रतिशत व्यक्ति अंतर्मुखी होते हैं. यह अकसर अनुवांशिक होता है. फिर भी अगर आप जानना चाहती हैं कि क्या आप का बच्चा अंतर्मुखी होगा तो इस के लिए कुछ संकेत आप को आरंभ में आसानी से मिलेंगे.

अपने आसपास के वातावरण के प्रति संवेदनशील और असहज होना: अगर आप का बच्चा रोशनी में, शोर में या अनजान लोगों के संपर्क में रोने लगता है, जोर से हाथपैर फेंकने लगता है तो वह बड़ा हो कर शर्मीला और आसानी से डरने वाली प्रकृति का या अंतर्मुखी भी हो सकता है. शिशु की ऐसी प्रतिक्रिया होने पर उसे सहज करने के लिए शुरू में रोशनी, शोर कम कर उसे एक सुरक्षित वातावरण दें. पर ऐसी सुरक्षा हमेशा न दे कर उसे समझाएं और वातावरण से एडजस्ट करने के लिए उसे प्रेरित करें.

1. जिज्ञासा, आशंका या भय:

अपने आसपास नई चीजें देख कर सभी बच्चों के मन में उन के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है पर उन की प्रतिक्रिया अलग होती है. कुछ बच्चे उन चीजों के बारे में जानना चाहेंगे पर वे अनावश्यक रूप से आशंकित या भयभीत भी होते हैं. वे उन्हें दूर से देखेंगे और अपनी आंतरिक दुनिया में रहते हुए मन ही मन उन के बारे में सोचेंगे पर उन के निकट जाना या स्वयं शामिल होना नहीं चाहते हैं. ये उन के अंतर्मुखी होने के लक्षण हैं.

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2. जल्द भौंचक्का होना:

कुछ बच्चे मामूली सी अप्रत्याशित आहट, चीख या शोर सुनते ही चौंक उठते हैं और स्वयं को असहज महसूस करने लगते हैं. ऐसे बच्चे भविष्य में अंतर्मुखी हो सकते हैं.

नए बच्चों के संपर्क या नए वातावरण में समायोजित (एडजस्ट) होने में असामान्य विलंब होना. अगर बच्चा अन्य बच्चों और लोगों के बीच या वातावरण में छटपटाने लगे या घबराने लगे और उस स्थिति से एडजस्ट न करना चाहे और खुश न हो कर उदास महसूस करे तो ये बच्चे के अंतर्मुखी होने के संकेत हैं.

3. अपरिपक्व बच्चे के अंतर्मुखी होने की संभावना

देखा गया है कि समय से पहले पैदा होने वाले बच्चे के भविष्य में अंतर्मुखी होने की काफी संभावना है. जन्म के समय वजन बहुत कम होने से भी दुर्बल बच्चे के अंतर्मुखी होने की संभावना है. ऐसे बच्चे के मातापिता को आरंभ से ही सतर्क होना चाहिए और बच्चे को सामाजिक बनने (सोशलाइज) के लिए उन्हें प्रशिक्षित और प्रोत्साहित करना चाहिए.

4. एक चीज या खिलौने में खोया रहना:

अगर कोई बच्चा किसी एक चीज या खिलौने में बहुत देर तक खोया रहता है या खुद को उलझाए रहता है तो वह आगे चल कर अंतर्मुखी हो सकता है. उन के पास अपनी एक जीवित आंतरिक दुनिया होती है और वे कल्पना कर स्वयं का मनोरंजन कर लेते हैं. ऐसी स्थिति में मातापिता और उस के शिक्षक को बच्चे पर ज्यादा ध्यान देना होगा और उसे समझाना होगा और प्रोत्साहित करना होगा कि वह जो सोचता है या उस की जो भी चिंता का विषय हो उस के बारे में खुल कर बात करे. अन्यथा बड़ा हो कर वह अंतर्मुखी और भीरू होगा.

5. अंतर्मुखी और शर्मीलापन में अंतर:

आमतौर पर हम शांत होने का मतलब अंतर्मुखी या शर्मीला होना समझ लेते हैं. इंट्रोवर्ट या अंतर्मुखी शांत वातावरण पसंद करते हैं. दूसरों के नकारात्मक रूख को ले कर कुछ बच्चों के मन में संकोच या भय होता है जिसे शर्मीलापन या शाईनैस कहते हैं. दूसरी ओर कुछ अंतर्मुखी भी शर्मीले होते हैं.

6. इंट्रोवर्ट शर्मीला हो या शर्मीला इंट्रोवर्ट हो कोई जरूरी नहीं है:

अंतर्मुखी व्यक्ति अकेलेपन का आनंद ले सकता है, दूसरे उस के बारे में क्या सोचते हैं इस बात की उसे कोई चिंता नहीं होती है. शर्मीला बच्चा या व्यक्ति अकेले नहीं रहना चाहता पर वह दूसरों के साथ घुमनेमिलने से डरता है. कहा जाता है कि माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स इंट्रोवर्ट हैं पर शर्मीले नहीं हैं.

7. शर्मीलापन से छुटकारा पा सकते हैं:

दूसरों की मदद से या थेरैपी से शर्मीलापन से उबरा जा सकता है पर अंतर्मुखता से नहीं. अंतर्मुखी को बहिर्मुखी या एक्सट्रोवर्ट बनाने के प्रयास से उसे अत्यधिक तनाव होता है और उस के आत्मसम्मान को ठेस लगती है. इंट्रोवर्ट बहुत हद तक सामाजिक स्थिति से निपट तो सकते हैं पर वे एक्सट्रोवर्ट नहीं हो सकते हैं.

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8. भावनात्मक कमजोरी: अंतर्मुखी व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं. अगर उन के सम्मान को चोट पहुंचती है तो उस से उबरने में उन्हें बहुत कठिनाई होती है और लंबा समय लगता है.

जरूरी टिप्स

यदि बच्चा अंतर्मुखी है और उस के आत्मविश्वास में कमी महसूस कर रही हैं तो ये टिप्स आप के बेहद काम आएंगे:

– इस स्वभाव का बच्चा यह फर्क नहीं कर पाता कि उसे क्या करना है और क्या नहीं. ऐसे में आप उसे हर तरह की परिस्थितियों में फर्क करना सिखाएं. धीरेधीरे उसे अपनी दिशा मिल जाएगी.

– यदि बच्चे को नए माहौल, लोगों या किसी खास व्यक्ति के साथ घुलनेमिलने में परेशानी आ रही है तो उस से आराम से बात कर ऐसा होने की वजह जानने की कोशिश करें. खुद को कभी यह कर सांत्वना न दें कि वह तो अंतर्मुखी है इसीलिए ऐसा करता है. खुद को दी गई यह सांत्वना आप के बच्चे के बहुमुखी विकास पर भारी पड़ सकती है.

– अंतर्मुखी बच्चा भी आम बच्चे की तरह ही होता है और उस के अंदर भी वैस ही प्रतिभा होती है. बस जरूरत है उस को उस की प्रतिभा की पहचान कराने की. यह काम आप से बेहतर और कोई नहीं कर सकता.

– हो सकता इस स्वभाव का बच्चा दूसरे बच्चों की तरह बाहर जा कर खेलना न पसदं करे. इस का मतलब यह नहीं कि उसे खेल में रुचि नहीं, बल्कि वह बच्चों के साथ घुलमिल कर खेलने से कतरा रहा है. यहां पर आप की हो जाती है. आप घर पर ही उस के साथ आउटडोर गेम्स खेलने की शुरुआत करें और फिर उसे धीरेधीरे यह बात समझाएं कि इस खेल का असली मजा तभी आता है जब दूसरे बच्चों के साथ टीम बना कर खेला जाए.

– अंतर्मुखी बच्चे के प्रति कभी भूल कर भी सुरक्षात्मक रवैया न अपनाएं जैसे कि हर परिस्थिति में उस की ढाल बन कर खड़े हो जाना या फिर जो काम वह न कर पा रहा हो उसे खुद कर देगा. उसे लगेगा कि उस के अंदर कोई ऐसी कमी है जिसके चलते वह कई सारे काम खुद नहीं कर सकता.

ध्यान रखें कि ह बच्चा स्वभाव और शारीरिक क्षमता में अलग होता है. उस के व्यक्तित्व का सही आंकलन कर ही आप उस के मजबूत भविष्य की नींव रख सकती है.

इम्यूनिटी को तेज़ी से बढाता है ये ख़ास काढ़ा

कोरोना वायरस (Coronavirus) को जड़ से मिटाने के लिए  विश्व स्तर पर सभी देश इसके वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं. भारत में भी वैक्सीन की खोज जारी है.पर अब तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है. अब तक के अध्ययन से यही सामने आया है कि कोरोना से बचाव के लिए लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होना जरूरी है. कोरोनावायरस महामारी ने हमें एहसास दिलाया है कि किसी भी संक्रमणों से लड़ने के लिए हमारे शरीर की  रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) का मजबूत  होना कितना जरूरी है.अगर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक  क्षमता  मजबूत है तो हम किसी भी संक्रमण का आसानी से सामना कर पाएंगे .

कुछ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी)  आनुवंशिक रूप से मजबूत होती है, जबकि अन्य को इसे मज़बूत बनाने के के लिए कई उपाय करने पड़ते हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी)  बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों  से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है.

कोरोना वायरस से निपटने के लिए रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के उपाय के महत्व पर विचार करते हुए आयुष मंत्रालय ने राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदशों को काढ़ा बनाने की विधि सौंपी है. मंत्रालय ने इस काढ़े से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का दावा किया है.

आयुष मंत्रालय ने कहा है कि इलाज से बेहतर रोकथाम है. अभी तक चूंकि COVID-19 के लिए कोई दवा नहीं है तो अच्छा होगा कि ऐसे एहतियाती कदम उठाए जाएं, जो इस वक्त हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं.

आयुष मंत्रालय ने कहा  है कि हर्बल काढ़ा लेने से COVID-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. हर्बल काढ़ा में चार औषधीय जड़ीबूटियों  का समावेश किया गया है, जो भारतीय रसोई में आसानी से मिल जाएँगी.

आइये जानते है की काढ़ा आप अपने घर में कैसे बना सकते हैं –

हमें चाहिए

तुलसी – 4 पत्ते

दालचीनी छाल – 2 टुकड़े

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सोंठ – 2 टुकड़े

काली मिर्च-1

मुनक्का-4

बनाने का तरीका

1-हर्बल टी या काढ़ा बनाने के लिए तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, अदरक और मुनक्का को एक साथ पानी में उबाल लें .

2-उबल जाने के बाद इसे किसी बर्तन में छानकर इस पानी का सेवन करें. ऐसा आप दिन में 1 से 2 बार कर सकते हैं.

3- अगर आपको इस काढ़े को पीने में परेशानी आए तो टेस्ट के लिए आप इसमें गुड़ या नींबू का रस मिला सकते हैं.

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आर्थिक तंगी झेल रहे Hamari Bahu Silk की टीम की मदद के लिए आगे आया CINTAA और FWICE, कही ये बात

कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण फिल्मों से लेकर टीवी सीरियल्स तक की शूटिंग रूक गई है, जिसके कारण स्टार्स और फिल्मी दुनिया से जुड़े वर्कर्स को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में टीवी सीरियल’हमारी बहू सिल्क’ (Hamari Bahu Silk) के सितारों ने उनकी पेमेंट ना मिलने के कारण शो के मेकर्स को सुसाइड की धमकी दी थी. लेकिन अब क्रू मेंबर्स की मदद के लिए  CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) सामने आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

सपोर्ट में उतरी इंडस्ट्री

पेमेंट के मामले में अब CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) इन कलाकारों की मदद के लिए हाथ बढाया है. CINTAA के सीनियर ज्वॉइंट सेक्रेटरी अमित बहल का ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने सभी कलाकारों से बात करने की कोशिश की हैं और उन्हें थोड़ा सा सब्र के साथ काम लेने को कहा है. अमिल बहल का ये भी कहना है कि इस सीरियल के कुछ ही कलाकारों ने अपनी शिकायत दर्ज करवाई है और लॉकडाउन के चलते उन्हें भी ढंग से पूरी बात समझ में नहीं आ पा रही है. अमित ने ये भी कहा है कि वो नहीं चाहते है कि कोई भी कलाकार इस वजह से खुद को नुकसान पहुंचाए. इस वजह से ही उन्होंने चैनल से भी बात की है ताकि वो प्रोड्यूसर से बात करके जल्द से जल्द सभी कलाकारों की शिकायत को दूर किया जा सके.

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जान खान ने कही थी ये बात

सीरियल के लीड एक्टर जान खान ने एक इंटरव्यू में बताया है कि सीरियल ‘हमारी बहू सिल्क’ के प्रोड्यूसर ने सभी कलाकारों को सिर्फ 15 दिन के ही रुपए दिए है और अब वो बाकी फीस देने से इंकार कर रहे हैं. बीते दिनों ही इस सीरियल की पूरी कास्ट ने प्रोड्यूसर को ये धमकी तक दे डाली है कि अगर उन्हें उनकी फीस नहीं मिली तो वो अपनी जान भी ले लेंगे.

बता दे, बीते दिनों आर्थिक तंगी के कारण एक टीवी एक्टर ने सुसाइड कर लिया था. वहीं टीवी एक्ट्रेस सायंतनी घोष ने भी आर्थिक तंगी की बात कही थी.

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#coronavirus: महिला नेताओं ने रोकी मौत की सूनामी

कोरोना जैसे खतरे के बीच एक नई नेतृत्व शैली एक नए युग का आह्वान करती दिख रही है. संकट के समय देश में नेतृत्व की पहचान होती है और अगर बागडोर महिलाओं के हाथ में हो तो उपलब्धि और बड़ी हो जाती है.

आइसलैंड से ताइवान और जर्मनी से न्यूजीलैंड तक महिला नेताओं ने या तो सूझबूझ से देश को कोरोना के संकट से निकाला या इस वायरस को फैलने से रोका.

जल्दी बैन किया

न्यूज़ीलैंड – प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कोरोना संक्रमण की शुरुआत में ही बाहर से न्यूजीलैंड आने वाले लोगों को सेल्फ आइसोलेशन के लिए कहा.

28 दिन का लौकडाउन लगाने से पहले उन्होंने लोगों को 2 दिन का समय दिया, ताकि वे अपनेअपने घरों तक पहुंच कर अपनी जरूरत की चीजों को खरीद लें.

जब उन के देश में महज 6 ही मामले थे, तभी उन्होंने बाहर से आने वालों को बैन कर दिया. उन के कुशल नेतृत्व और निर्णय क्षमता के चलते न्यूजीलैंड इस झंझावात से बचा रह पाया.

प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न को कोरोना महामारी से अपने देश की जनता को बचाने के लिए किए गए उपायों और उन की उत्कृष्ट नेतृत्व शैली के लिए सराहा जा रहा है.

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27 अप्रैल का दिन न्यूजीलैंड के लिए विजय का दिन था, जब प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कोरोना से जंग में पूरे राष्ट्र के प्रयासों के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘न्यूजीलैंड कोविड -19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में देश काफी हद तक सफल रहा है. लेकिन, इस का मतलब यह नहीं है कि वायरस के नए मामले सामने नहीं आएंगे.’

जैसिंडा अर्डर्न के आदेशों का जनता ने सख्ती से पालन किया और कोरोना से उबरने में सफलता पाई.

40 वर्षीय जैसिंडा ने मार्च में अपने देश की सीमाओं को बंद करते हुए देश में 4 हफ्तों के लिए पूरी तरह से लौकडाउन की घोषणा की थी.

इसी दिन भारत में भी लौकडाउन शुरू हुआ था. लेकिन सख्ती और एहतियात के चलते जहां न्यूजीलैंड में हालात तेजी से बेहतर होते गए, वहीं भारत और अन्य पुरुष नेतृत्व वाले देशों में संक्रमण और मौतों का सिलसिला बढ़ता ही चला गया.

भारत 2 महीने के बाद अब कम्युनिटी स्प्रेड की ओर कदम बढ़ा चुका है यानी अब कोरोना भारत के गांवकसबों तक मार करेगा और मोदी सरकार कुछ नहीं कर पाएगी.

वजह हैं, बिना योजना बनाए आदेश जारी कर देना, गरीबों की समस्याओं को नजरअंदाज करना, स्वास्थ्य सेवाओं की बेहिसाब कमी होना और प्रवासियों को उन के गंतव्य तक पहुंचाए बिना ही लौकडाउन में अजनबी शहरों में भूखेप्यासे कैद कर देना यानी परिणाम का आंकलन किए बिना ही चल पड़ना.

इस के विपरीत महिला शासित देशों में पूरी योजना के साथ आदेश जारी किए गए और फिर उन का सख्ती से पालन करवाया गया. नतीजा सामने है.

कहते हैं, औरतों के पास छठी इंद्री होती है, जो आने वाले खतरे से उसे आगाह करती है. कहना गलत न होगा कि न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न में दूरदृष्टि और खतरों को भांप लेने की क्षमता अद्भुत है. ये क्षमता शायद इसलिए भी है, क्योंकि वे एक महिला हैं.

न्यूजीलैंड का निवासी चाहे देश में हो या कहीं विदेश में, जैसिंडा अर्डर्न ने सब का ध्यान रखते हुए लौकडाउन का आदेश जारी किया.

न्यूजीलैंड में कोरोना का पहला मरीज 28 फरवरी, 2020 को मिला था. 3 फरवरी से ही सरकार ने चीन से न्यूजीलैंड आने वाले यात्रियों की एंट्री पर रोक लगा दी थी. हालांकि, इस से न्यूजीलैंड के नागरिकों और यहां के परमानेंट रेसिडेंट को छूट थी.

इस के अलावा जो लोग चीन से निकलने के बाद किसी दूसरे देश में 14 दिन बिता कर आए थे, उन्हें ही न्यूजीलैंड में आने की इजाजत थी. इस के बाद 5 फरवरी को ही न्यूजीलैंड ने चीन के वुहान में फंसे अपने यात्रियों को चार्टर्ड फ्लाइटों से वापस बुला लिया.

न्यूजीलैंड में 20 मार्च से ही विदेशी नागरिकों की एंट्री पर रोक लगा दी गई, जबकि भारत में 25 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद हुईं थीं.

न्यूजीलैंड में कोरोना से निबटने के लिए 4 लेवल का अलर्ट सिस्टम बनाया गया था.
न्यूजीलैंड के 4 लेवल अलर्ट सिस्टम में जितना ज्यादा लेवल, उतनी ज्यादा सख्ती, उतना ज्यादा खतरा शामिल था.

वहां के हालात अब बेहतर हैं. एक तरह से न्यूजीलैंड ने कोरोना पर काबू पा लिया है. न्यूजीलैंड के लोगों ने आइसोलेशन को समझा और लौकडाउन को गंभीरता से लिया, जबकि भारत में ऐसा कम ही नजर आया.

हमारे यहां ढाई हजार से ऊपर हुई मौतों के बाद भी लोग लौकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कभी बसअड्डों पर भीड़ उमड़ पड़ती है, तो कभी रेलवे स्टेशनों पर तो कभी शराब की दुकानों पर वगैरह.

लोगों को बारबार सामाजिक दूरी के बारे में बताया जा रहा है कि कोरोना को रोकने का यही एक उपाय है, बावजूद इस के देशभर में जगहजगह लौकडाउन का उल्लंघन करने वाली भीड़ के दृश्य सामने हैं.

न्यूजीलैंड में अब लौकडाउन खुलने के बाद भी लोग अनुशासन और नियमों का पालन उसी तरह कर रहे हैं.

इस का उदाहरण इस बात से मिल जाता है कि लौकडाउन खुलने के बाद जब रेस्टोरेंट और कैफे खुले और जब प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न अपने पुरुष मित्र के साथ एक कैफे में गईं तो वहां सोशल डिस्टेंसिंग के मद्देनजर जितनी सीटें लगाई गई थीं, वे भरी होने के कारण उन को वहां एंट्री नहीं दी गई और उन्हें उलटे पैर लौटना पड़ा.

प्रधानमंत्री होने के नाते उन को कोई विशेष छूट नहीं दी गई, बल्कि वहां रुक कर जमावड़ा लगाने से भी मना किया गया. इसे कहते हैं आदेश का पालन करना और करवाना.

सच बताया
जर्मनी- चांसलर एंजेला मर्केल

जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने समय रहते ही देशवासियों को बता दिया कि यह वायरस देश की 70 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता है, इसलिए इसे गंभीरता से लें. अब वहां हालत पूरी तरह से नियंत्रण में हैं और उन्होंने लौकडाउन भी हटा दिया है.

कहना गलत न होगा कि जर्मनी ने अपनी चांसलर एंजेला मर्केल की अगुआई में मौत की सूनामी रोक ली है. कोरोना पर विजय पाने के लिए जर्मनी की काफी तारीफ हो रही है.

दरअसल ये इस वजह से भी है क्योंकि जर्मनी की मर्केल सरकार ने महामारी विज्ञान के मौडल सहित अपनी कोरोना वायरस नीति विकसित करने के लिए विभिन्न सूचना स्रोतों पर विचार किया, चिकित्सा प्रदाताओं से डेटा कलेक्ट किया और दक्षिण कोरिया के परीक्षण और अलगाव के सफल कार्यक्रम को अपने यहां लागू किया.

मार्च के दूसरे सप्ताह की बात है, पूरा यूरोप कोरोना वायरस का नया केंद्र बनता जा रहा था. चीन से हट कर पूरी दुनिया का ध्यान यूरोप पर केंद्रित हो गया था. आने वाले दिनों में ये साबित भी हो गया और इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश बुरी तरह कोरोना की चपेट में आ गए. चारों देशों में हालात अभी भी काफी मुश्किल बने हुए हैं.

इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में हर दिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है, लेकिन जर्मनी इन सब से काफी दूर है.

आखिर जर्मनी ने ऐसा किया क्या है, जिस से यहां मरने वाले लोगों की संख्या काफी कम है.

उल्लेखनीय है कि जर्मनी में कोरोना से हुई मौतों की दर मात्र 0.3 प्रतिशत है, जबकि इटली में ये 9 प्रतिशत और ब्रिटेन में 4.6 प्रतिशत है. इस का पूरा श्रेय जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल को जाता है. उन की सूझबूझ और दूरदृष्टि को जाता है.

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जर्मनी ने जनवरी माह के शुरू में ही कोरोना टेस्ट करने की तैयारी कर ली थी और टेस्ट किट डेवलप कर लिया था. यहां कोरोना का पहला मामला फरवरी माह में आया था, लेकिन उस के पहले ही जर्मनी ने पूरे देश में टेस्ट किट्स की व्यवस्था कर ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि दक्षिण कोरिया की तरह जर्मनी में न सिर्फ ज्यादा टेस्टिंग हुई, बल्कि उस हिसाब से लोगों को अस्पतालों में भरती भी कराया गया.

जर्मनी ने शुरू से ही टेस्टिंग को काफी प्राथमिकता दी. जर्मनी के कई शहरों में टेस्टिंग टैक्सियां चलाई गईं, जो लौकडाउन के दौर में लोगों के घरघर जा कर टेस्ट करती रहीं. इस से समय पर लोगों को इलाज कराने में आसानी हुई, जिन में शुरुआत में यूरोप के कई देश चूक गए.

जर्मनी में स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों तक ये संदेश पहुंचाया कि अगर आप को संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो अस्पताल आने की आवश्यकता नहीं. लोगों को सिर्फ अधिकारियों को फोन से सूचित करना होता है और उन की टेस्टिंग घर पर ही हो जाती है.

जर्मनी ने एक सप्ताह में एक लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की. समय पर टेस्ट करने का फायदा यह हुआ कि लोगों का इलाज भी समय पर हुआ. लोगों को समय से आइसोलेशन में रखा गया और इस के बेहतर नतीजे देखने को मिले.

रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट के प्रेसिडेंट लोथर वीलर का कहना है, ‘जर्मनी ने बहुत पहले ही टेस्टिंग शुरू कर दी थी. हम ने हलके लक्षण वालों को भी ढूंढ लिया जो बाद में ज्यादा बीमार पड़ सकते थे. हम ने न सिर्फ लोगों की टेस्टिंग की, बल्कि डाक्टरों और नर्सों की भी नियमित टेस्टिंग की, ताकि कोरोना ज्यादा न फैले. साथ ही, ये टेस्ट्स फ्री में किए गए. इस का फायदा यह हुआ कि जनता सामने आई और समय पर लोगों को इलाज मिला.’

जर्मनी ने टेस्टिंग के साथसाथ ट्रैकिंग को भी उतनी ही प्राथमिकता दी, जबकि यूरोप के कई देश और अमेरिका भी इस में चूक गया.

चांसलर एंजेला मर्केल ने दक्षिण कोरिया से ट्रैकिंग के बारे में सबक लिया और ट्रेकिंग के आदेश जारी किए.

जर्मनी के अच्छे हेल्थ केयर सिस्टम की भी इस मामले में तारीफ हो रही है. जर्मनी ने समय रहते आईसीयू और बेड्स की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया.

जर्मनी की स्वास्थ्य व्यवस्था की इसलिए भी तारीफ हो रही है, क्योंकि यहां ऐसी गंभीर बीमारियों के लिए हर 1,000 लोगों पर 6 के लिए आईसीयू बेड्स हैं, जबकि फ्रांस में ये औसत 3.1 है और स्पेन में 2.6. ब्रिटेन में तो 1,000 लोगों पर सिर्फ 2.1 ऐसे बेड्स हैं.

खास बात यह है कि जर्मनी का हेल्थ केयर सिस्टम अपने नागरिकों के लिए पूरी तरह फ्री है, इसलिए लोगों को और आसानी हुई और लोगों ने आगे आ कर संक्रमण के बारे में जानकारी दी.

इन सब के अलावा जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने समय रहते काफी सख्त कदम उठाए. चाहे सीमाएं बंद करने का फैसला हो या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का. सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य पाबंदियों को ले कर जनता ने चांसलर का खूब समर्थन किया.

जर्मनी की जनता में जागरूकता भी खूब देखी गई. इसी कारण देश में पूर्ण लौकडाउन न होते हुए भी लोग पाबंदियों का अच्छी तरह पालन कर रहे हैं. और यह एक बड़ी वजह है कि जर्मनी में कोरोना से कम लोगों की मौत हुई हैं.

कई जानकारों का मानना है कि जर्मनी में अभी बुरा दौर आना बाकी है. जर्मनी में वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या कम नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि जर्मनी में मृत्युदर काफी कम है.

‘द बर्लिन स्पेक्टेटर’ में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मनी अपनेआप को मुश्किल दौर के लिए तैयार कर रहा है. जर्मनी के मंत्री हेल्गे ब्राउन का कहना है कि ये चिंता संक्रमित लोगों की बड़ी संख्या को ले कर है.

देखा जा रहा है कि दुनिया के वो ज्यादातर देश, जिन का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है, कोविड – 19 से लड़ने में ज्यादा सफल रहे हैं. जर्मनी में ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और स्पेन की तुलना में मौतों का आंकड़ा काफी कम है.

फिनलैंड की बागडोर 34 साल को सना मारिन के हाथ है. उन्होंने वहां 4 अन्य राजनितिक पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई है. गठबंधन की इन चारों पार्टियों का नेतृत्व भी महिलाएं ही कर रही हैं.

स्वीडन के मुकाबले फिनलैंड में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा 10 फीसदी से भी कम है.

उधर ताइवान ने तो लौकडाउन के बिना ही कोरोना पर विजय पाने का खिताब हासिल कर लिया है.

ताइवान में कोरोना के व्यापक टेस्ट, संपर्क ट्रेसिंग, क्वारंटीन जैसे उपाय कर के वायरस संक्रमण को फैलने से रोक लिया है. इस के लिए वहां की प्रथम महिला राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन की खूब प्रशंसा हो रही है. सब से पहले और सब से तेज प्रतिक्रिया ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन की थी.

जनवरी में जब पहला केस ताइवान में सामने आया था, तो उन्होंने बिना लौकडाउन किए 124 उपायों को अपना कर इस पर काबू पाया. अब वे अमेरिका और यूरोप में एक करोड़ मास्क भेज रही हैं.

आइसलैंड की बेहतरीन परफौर्मेंस के लिए प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्स्डोट्टिर की तारीफ हो रही है. उन्होंने शुरू से ही स्क्रीनिंग और नियमित जांच पर जोर दिया. खास बात यह है कि सभी नागरिकों को मुफ्त जांच के लिए प्रोत्साहित किया गया. दक्षिण कोरिया और सिंगापुर की तरह धड़ाधड़ जांच से संक्रमितों को आइसोलेट किया गया.

दिसंबर माह में दुनिया की सब से युवा प्रधानमंत्री बनने वाली फिनलैंड की सना मारिन ने कोरोना से लड़ने के लिए सोशल मीडिया को अस्त्र बनाया. मारिन ने उन लोगों से संपर्क किया, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और लोग जिन की बातें खूब मानते हैं. उन के जरीए सना मारिन ने पूरे देश को अपनी बात समझाई.

नार्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग ने कोरोना के खतरे से देश को बचाने के लिए टीवी को माध्यम बनाया. खासकर उन्होंने बच्चों को समझाया कि हमें घर में रहना क्यों जरूरी है. निजी और सरकारी संस्थानों को समय रहते ही बंद कर दिया. और अब वहां लौकडाउन पूरी तरह हटने वाला है.

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डेनमार्क की 42 वर्षीय प्रधानमंत्री मेट फ्रेडरिक्शन ने समय रहते कोरोना के संकट को भांप लिया. उन्होंने देश में जल्दी लौकडाउन किया. लेकिन इस से अधिक उन्होंने टीवी और सोशल मीडिया के जरीए देश के लोगों को वायरस के खतरे को बखूबी समझाया और प्रभावी नियंत्रण पाया.

पुरुष नेता दुनियाभर में अगले चुनाव की या पिछले फाइनैंसरों और धार्मिक महागुरुओं की चिंता करते रहे, जबकि महिला नेताओं ने घरों की दृष्टि से नीतियां बनाईं. मोदी सरकार को सिर्फ दुनिया की वाहवाही लूटने, ऊंची जाति वालों, हिंदूमुसलिम कराने की चिंता रही.

अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप नवंबर में होने वाले चुनावों की चिंता करते रहे हैं. चीन के शी जिनपिंग को कोविड में विश्व विजय के सपने दिख रहे हैं. पाकिस्तान के इमरान खान धर्म से डरे रहे, जबकि बांग्लादेश की महिला प्रधानमंत्री का प्रदर्शन दोनों पड़ोसियों से अच्छा रहा है.

शिवांगी जोशी के बर्थडे पर हुआ दादा का निधन, फैंस से कही ये बात

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने हाल ही 7 साल बाद अपना 24वां जन्मदिन मनाया था, जिसकी फोटोज शिवांगी ने सोशलमीडिया पर शेयर करके कहा था कि ये बर्थडे उनके लिए कितना स्पेशल है, लेकिन उनका इस बर्थडे की खुशी दुख में बदल गई जब उनके दादाजी का निधन उसी दिन हो गया है. वहीं शिवांगी ने फैंस से अपना दुख शेयर करते हुए एक पोस्ट शेयर किया है आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी का इमोशनल पोस्ट…

पोस्ट में लिखी ये बात

एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने अपने बर्थडे पर सोशल मीडिया पर फैंस के साथ लाइव चैट करने का वादा किया था लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई, जिसके चलते उन्होंने फैंस के लिए एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि, ‘हेलो दोस्तों…कुछ निजी कारणों के चलते मैं आज लाइव नहीं आ पाऊंगी. माफ करिएगा और मुझे समझने के लिए आप सभी का शुक्रिया.’

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दादाजी के कारण कैंसल किया लाइव सेशन

दरअसल, शिवांगी जोशी ने एक पोस्ट के जरिए बताया है कि उन्होंने ये लाइव सेशन कैंसिल करने की वजह बताते हुए पोस्ट में लिखा कि, ‘दुर्भाग्यवश कल ही मैंने अपने दादाजी को खो दिया है…भगवान करें वो इस वक्त मुस्कुरा रहे हो और आसमान से हमारी ओर ही देख रहे हो.’

दादाजी की प्यारी थीं शिवांगी

शिवांगी अपने दादाजी के बेहद करीब थीं और फैमिली आउटिंग पर शिवांगी जोशी अपने दादाजी को भी साथ ले जाया करती थी और इस दौरान सभी लोग मिलकर खूब मस्ती करते थे. वहीं जब शिवांगी के दादाजी ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर आते थे तो सेट पर अलग ही रौनक देखने को मिलती थी. शिवांगी जोशी के दादाजी काफी जिंदादिल थे और अपनी मौजूदगी से वह हर किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आते थे.

 

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बता दें, शिवांगी जोशी को ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर आकर उनके दादाजी अक्सरप सरप्राइज दिया करते थे, जिसके चलते शिवांगी बेहद खुश होती थी. वहीं उनका शिवांगी के बर्थडे पर निधन होना शिवांगी के लिए एक सदमा है.

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