#coronavirus: WHO ने चेतावनी देते हुए एक और खतरनाक लक्षण के बारे मे बताया, पढ़ें पूरी खबर

कोरोनावायरस के भारत में 1 लाख से ज्यादा मरीज बढ़ चुके हैं. वहीं दुनिया की बात करें तो मरीजों की संख्या कम होने का नाम ले रही हैं. इसी बीच कोरोनावायरस के लक्षणों में बदलाव देखने को मिल रहा है. हर दिन कोरोना के नए लक्षणों से लोग हैरान है. वहीं शुरुआत में खांसी और बुखार इसके प्रमुख लक्षण बताए जा रहे थे, पर अब इनमें कुछ और लक्षण को और जोड़ दिया गया है, जिसे लोग हैरान हो जाएंगे. आइए आपको बताते हैं क्या है कोरोना के नए लक्षण….

बोलने में हो सकती है परेशानी

WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के हेल्थ एक्सपर्ट्स ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कोरोना पॉजिटिव इंसान को बोलने में काफी परेशानी होती है. और अगर किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण नजर आ रहे हैं तो उसे तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए. WHO की तरफ से जारी बयान में कहा गया, ‘कोविड-19 के मरीजों को सांस से जुड़ी तकलीफ होती है. यदि वह एक्सपर्ट द्वारा बताई गई गाइडलाइंस का ठीक ढंग से पालन करेंगे तो निश्चित ही वह बिना किसी इलाज के ठीक हो सकते हैं. केवल गंभीर मामलों में ही डॉक्टर या अस्पताल से संपर्क करने की जरूरत होती है.’

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सावधानी है जरूरी

एक्सपर्ट्स ने कहा, ‘जरूरी नहीं कि कोरोना के सभी मरीजों में बोलने या संवाद करने की दिक्कत नजर आए. बाकी लक्षणों की तरह ये लक्षण भी छिप सकता है या देरी से सामने आ सकता है.’ किसी इंसान में इस तरह के लक्षण दिखने पर आपको बेहद सावधान रहना चाहिए. बोलने में कठिनाई होना एक चिकित्सा या मनोवैज्ञानिक स्थितियों का भी संकेत हो सकता है.

जबान का स्वाद गायब होना भी है लक्षण

इससे पहले भी कोरोना के कई अजीब से लक्षण सामने आ चुके हैं, जिनमें जब डॉक्टर्स ने जुबान से स्वाद गायब होने और कान में दबाव होने जैसे लक्षणों का खुलासा किया था.

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बता दें कि ऑक्सीजन एंड ला ट्रॉब यूनिवर्सिटी (मेलबर्न) के रिसर्चर्स ने कोरोना मरीजों में ‘साइकोसिस’ की प्रौब्लम को बताया था, जिसमें प्रमुख डॉक्टर ऐली ब्राउन ने साफतौर पर कहा था कि कोविड-19 में मेंटल स्ट्रेस का खतरा काफी बढ़ जाता है, जिसके कारण कई मरीज बोलने, सुनने या जुबान से स्वाद को पहचानने की शक्ति खो बैठते हैं. लोगों में साइकोसिस की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने MERS और SARS वायरस का परीक्षण किया था.

कोरोना के बाद कैसी होगी करियर की दुनिया?

कोरोना का कहर सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं है जो इसके संक्रमण से काल कवलित हो गये हैं या जिनकी अच्छी खासी नौकरियां इसके संक्रमण के बाद छूट गयीं. कोरोना से वे लोग भी प्रभावित होंगे, जिन पर इसके मौजूदा संक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. सिर्फ आज नहीं आने वाले अगले दसियों सालों तक कॅरियर के मामले में कोरोना का प्रभाव देखा जायेगा.

ऐसा नहीं है कि अब कभी वे दिन नहीं आएंगे, जब कोरोना के खौफ से दुनिया मुक्त नहीं होगी. लेकिन शायद कामकाज के ऐसे दिन पूरी तरह से लौटकर कभी न आएं, जैसे दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले थे. दुनिया के किसी भी देश ने कभी इतने बड़े पैमाने पर लाॅकडाउन नहीं किया, जितने बड़े लॉकडाउन कोरोना के चलते दुनिया के अलग अलग देशों ने देखे और झेले हैं. कोरोना ने पारंपरिक दुनिया को अपने गुरिल्ला आक्रमण से इस कदर झकझोर दिया है कि दुनिया का कोई भी देश उसका मुकाबला नहीं कर सका, चाहे वह अमरीका जैसा बहुत ताकतवर देश ही क्यों न हो?

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अब उसके इस हमले का असर आने वाले दिनों में कुछ ऐसी नौकरियों के रूप में सामने आयेगा, जो नौकरियां ऐसे अप्रत्याशित हमलों से मुकाबले के लिए ही डिजाइन की जाएंगी. पश्चिम की दुनिया ने कोरोना के चलते पैदा हुए अप्रत्याशित संकट को ‘ब्लैक स्वान’ की संज्ञा दी है. जो उस परिस्थिति को कहते हैं, जिससे प्रभावित होने वाला व्यक्ति पूरी तरह से अपरिचित होता है. यहां तक कि उसने इसकी दूर दूर तक कल्पना भी नहीं की होती. ऐसे में दुनिया भविष्य की ऐसी ही ब्लैक स्वान गतिविधियों से तैयार रहने के लिए हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में ‘क्विक रिस्पोंस’ टीमें गठित करेगी. दुनियाभर की सरकारें और प्रशासनिक संस्थान ऐसी टीमों को डिजाइन करने में लग गई हैं. ये क्विक रिस्पोंस टीमें भविष्य में कोरोना जैसी ही किसी और परिस्थिति के पैदा होने पर सक्रिय होंगी और दुनिया को इस तरह से अपंग नहीं होने देंगी, जिस तरह से दुनिया कोरोना संक्रमण के चलते हुई है.

कोरोना से सबक लेते हुए अब कई क्षेत्रों की मसलन बैंकिंग (वित्त), एनर्जी (खास तौरपर आणविक एनर्जी), यातायात (विशेषकर हवाई यातायात), शिक्षा (विशेषकर प्रतियोगी और डिग्री परीक्षा) तथा मेडिकल और खानपान से संबंधित ऐसी एक्सपर्ट टीमें या इन क्षेत्रों में एक छोटा विशेष प्रभाग खोला जायेगा, जो ऐसी किसी भी आपदा के समय सक्रिय होगा, जिससे दुनिया का सामान्य कारोबार अस्त व्यस्त नहीं होगा. जिस तरह से तमाम सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्सेस के बाद भी स्पेशल कमांडोज की एक छोटी और त्वरित टुकड़ी होती है, जो सबसे खतरनाक टारगेट को अप्रत्याशित सफाई से सम्पन्न करती है. भविष्य में कोरोना जैसे भौंचक कर देने वाले किसी संकट से निपटने के लिए ऐसी टुकड़ियां बनायी जाएंगी. दूसरे शब्दों में हर क्षेत्र में कमांडोज टुकड़ियां बनेंगी.

कोरोना के बाद जैसा कि अब तक हम सब जान गये हैं पूरी दुनिया में तकरीबन 40 फीसदी से ज्यादा दफ्तरी कर्मचारियों को दफ्तर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ना पड़ेंगा, उन्हें वर्क फ्रौम होम या फ्रीलांस के बतौर काम करना होगा. क्योंकि हर कोई वर्क फ्रौम होम नहीं कर सकता, हर काम घर से नहीं किया जा सकता. जो काम घर से संभव नहीं होंगे, वे काम आमतौर पर फ्रीलांसरों के पास चले जाएंगे या ऐसी छोटी यूनिटों के पास जो बड़ी कंपनियों के लिए ठेके पर काम करेंगी. लब्बोलुआब यह है कि कोरोना के बाद पूरी दुनिया में जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी हो गई है, उसके कारण औफिस चलाना अब पहले से कहीं ज्यादा महंगा हो गया है. नतीजतन बड़े पैमाने पर मौजूदा कर्मचारियों को घर से काम करने की हिदायत दी जायेंगी. जो लोग इसके लिए तैयार नहीं होंगे, उन्हें अगर बहुत जरूरी नहीं हुआ तो हिसाब कर लेने के लिए कहा जाएगा. फिर वो अपने निजी तौरपर चाहे अपनी कंपनी के लिए या दूसरी कंपनी के लिए काम करेंगे.

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कोरोना के मौजूदा कुरूप चेहरे को देखकर न सिर्फ आम लोग बल्कि पारंपरिक जीवन व्यवस्था भी खौफजदा हो गई है. इसलिए खाने पीने से लेकर मिलने जुलने और मनोरंजन की गतिविधियां तक सब उलट पुलट होने की तैयारी में हैं. कोरोना का यह कहर देखने के बाद लंबे समय तक भारत ही नहीं इटली, स्पेन और फ्रांस के उन रेस्त्रांज की भी सांसें नहीं लौटेंगी, जहां कोरोना के पहले तक भारी भीड़ हुआ करती थी और अपनी इस भीड़ को ये रेस्त्रां अपनी खूबी के रूप में भुनाया करते थे. ऐसे रेस्टोरेंट के मालिक यह कहते नहीं थकते थे कि उनके रेस्त्रांओं में तिल रखने तक की जगह नहीं होती. भारत में तो इसके खास अनुभव है. ऐसा कोई मुहल्ला नहीं होगा, जहां कम से कम एक खानेपीने का ऐसा प्वाइंट न हो, जहां बाकी जगहों के मुकाबले भीड़ का आलम देखा जाता था. अब ये भीड़ हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गई कहानी हो जायेगी.

कहने का मतलब यह है कि कोरोना जाने के बाद भी होटल और खास तौरपर रेस्टोरेंट इंडस्ट्री दोबारा से उस शेप में नहीं लौटेगी, जहां लोग एक के ऊपर एक बैठकर खाते पीते थे. अब टेक अवे डिलीवरी रेस्त्रांओं का मुख्य तरीका बन जायेगा. अब बहुत नामी गिरामी रेस्त्रां ही, जिनके पास बहुत स्पेस होगा, लोगों को बैठा के खिला सकते हैं. हौस्पिटैलिटी या टूरिज्म और इसके कई रूप भी इस कोरोना संकट के बाद पहले जैसे नहीं रहेंगे. वैसे तो पर्यटन उद्योग के दावे हैं कि अगले पांच सालों तक भी 2019 के स्तर का पर्यटन दुनिया में नहीं लौटेगा. लेकिन जो लौटेगा भी वह वैसा नहीं होगा, जैसा वह कोरोना के पहले था. कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि कोरोना से सिर्फ आज ही प्रभावित नहीं है, इसका बड़ा और स्थायी प्रभाव भविष्य के कामकाज में दिखेगा.

7 ब्यूटी हैक्स : सुबह समय बचाने में करें मदद

हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है लेकिन यह आसान काम नहीं है, खासकर सुबह के व्यस्त समय में. हाल के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, एक कामकाजी महिला प्रतिदिन अपने मेकअप पर लगभग 55 मिनट खर्च करती है. आप के लिए सुबह का वक्त काफी कीमती होता हैं, इसलिए अपने सौंदर्य को निखारने के लिए अपनी दिनचर्या को हाई एफिशिएंसी मोड में लाने के लिए इन बातों पर गौर करें.

1. रात को प्लान कर लें

अपने सामान को व्यस्थित रखें. सुबह ज्यादा समय अपने सामान को ढूंढ़ने में न लगाएं. आप रात को ही सुबह की प्लानिंग कर सकती हैं. इस से सुबह आप को फैसला लेने में कम वक्त लगेगा.

2. बाल पोंछने के लिए माइक्रोफाइबर टौवेल

नियमित टौवेल के मुकाबले माइक्रोफाइबर टौवेल ज्यादा जल्दी पानी सोखता है. अपना काम खत्म करने के बाद टौवेल खोल दें. यह न केवल आप के ड्रायर से बाल सुखाने का समय आधा करता है, बल्कि आप के बालों को लगने वाली गरमी की मात्रा भी कम करता है.

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3. बीबी क्रीम

रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाली बीबी क्रीम एसपीएफ होती है. यह आप की त्वचा को नमी देती है, कोमल बनाती है. धूप से बचाती है और चमकदार बनाती है. इसे लगाने के

बाद आप को कंसीलर, फाउंडेशन, मौइश्चराइजर और सनस्क्रीन लगाने की जरूरत नहीं है.

4. क्विक फिक्स की तलाश करें

यदि आप का नेलपेंट टूट रहा है या सुबह बाल बहुत ज्यादा चिकने हो गए हैं तो क्विक फिक्स की तरह नेलपेंट रीटचिंग या ड्राई शैंपू का इस्तेमाल करें. यदि आप नाखूनों पर पेंट लगाने बैठ गईं या बालों को धोने लगीं तो देर होनी तय है.

5. मेकअप आखिर में करें

सुबह कपड़े पहन रेडी होने के बाद मेकअप करें. समय न होने पर थोड़ाबहुत मेकअप भी चल जाता है, क्योंकि बाद में समय होने पर मेकअप रीटच भी हो सकता है.

6. सही हेयरकट कराएं

यदि आप का हेयरकट सही है तो आप अपने 30 मिनट रोज बचा सकती हैं. अपने बालों का ऐसा हेयरस्टाइल रखें कि जिस से उन्हें मेंटेन रखने में ज्यादा वक्त न लगे. इस के लिए अपनी स्टाइलिस्ट ट्रेनर से बात करें.

7. समय प्रबंधन जरूरी

त्वचा की देखभाल या ब्यूटी रिजीम से बचें, जैसे आईब्रो प्लक करना, क्यूटिकल्स को क्लिप करना या ऐक्सफौलिएटिंग. यह वीकैंड के लिए रख सकती हैं.

– भव्या चावला,

चीफ स्टाइलिस्ट, वोनिक डौट कौम

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25 साल की हुई ‘कार्तिक’ की ‘नायरा’, 7 साल बाद फैमिली के साथ मनाया बर्थडे 

स्टार प्लस टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Ye Rishta Kya Kehlata Hai) की नायरा यानी एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने हाल ही में अपना बर्थडे मनाया है. शिवांगी इन दिनों लॉकडाउन के कारण अपनी फैमिली के साथ देहरादून में हैं और 7 साल बाद अपनी फैमिली के साथ शिवांगी (Shivangi Joshi) ने अपने बर्थडे की कुछ फोटोज शेयर की है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी के बर्थडे की खास फोटोज…

होमटाउन में Shivangi Joshi ने सेलिब्रेट किया बर्थडे

टीवी एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने अपने होमटाउन देहरादून में बर्थडे सेलिब्रेट किया.  शिवांगी जोशी(Shivangi Joshi)  के घरवालों ने उनके लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया और इस दौरान टीवी की एक्ट्रेस की खुशी का कोई भी ठिकाना नहीं था. क्योंकि शिवांगी 7 साल बाद अपनी फैमिली के साथ अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रही है.

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Shivangi Joshi को मिला सरप्राइज

शिवांगी जोशी को एक वीडियो के जरिए उनके खास दोस्तों ने जन्मदिन की बधाई दी. वहीं घरवालों की मौजूदगी में शिवांगी जोशी ने नए अंदाज में अपने जन्मदिन का केक काटा.

बर्थडे पर कुछ यूं नजर आई Shivangi Joshi

बर्थडे सेलिब्रेशन के दौरान शिवांगी जोशी पिंक कलर की ड्रेस में नजर आईं, जिसके साथ शिवांगी जोशी ने अपनी ड्रेस से मैचिंग किया हुआ बर्थडे गर्ल Sash पहना हुआ था.

फैंस को किया शुक्रिया

शिवांगी जोशी ने खास अंदाज में फैंस को जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया अदा किया. साथ ही  शिवांगी जोशी ने केक का एक पीस हाथ में लेकर फैंस को कुछ इस अंदाज में शुकिया कहा .

फैंस को करती हैं एंटरटेन

लोगों की फेवरेट नायरा अक्सर अपनी वीडियो और फोटोज के जरिए लॉकडाउन के दौरान फैंस को एंटरटेन करती रहती हैं. वहीं फैंस को भी उनका ये अंदाज काफी पसंद आता है, जिसके कारण उनकी फोटोज अक्सर वायरल होती रहती है.

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बता दें, शिवांगी जोशी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वह शो के सेट और टीम को काफी मिस कर रही हैं. साथ ही वह मुंबई को काफी पसंद कर रही हैं और जल्द ही मुंबई जाने की उम्मीद कर रही है.

#coronavirus: जिस्म पर भी हमलावर रोग प्रतिरोधक क्षमता

जिस्म के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता एक रक्षात्मक लड़ाकू सेना की तरह होती है. जब कोई दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस जिस्म में घुसता है तो कोशिकाओं (सैल्स) की यह क्षमता यानी लड़ाकू सेना उससे लड़ती है और उसे कमजोर करके खत्म कर देती है.

दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस या बीमारी से लड़ने वाली यह सेना कभीकभी जरूरत से ज्यादा सक्रिय होकर असंतुलित, या कह लें कंफ्यूज्ड, हो जाती है. और तब दुश्मन को खत्म करने की कोशिश में लगी होने के साथसाथ जिस्म को भी नुकसान पहुंचाने लगती है. यानी, कोशिकाओं की इस सेना को जिन कोशिकाओं की रक्षा करनी होती है, यह उन पर भी हमला बोल देती है. ऐसी अवस्था को ‘साइटोकाइन स्टौर्म’ कहते हैं और ऐसे मामलों को ‘साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम’ कहते हैं.

साइटोकाइन आमतौर पर जिस्म में मौजूद एक इम्यून प्रोटीन होता है जो बाहरी बीमारियों, वायरसों से उसकी रक्षा करता है. लेकिन कोरोना के मामले में इसमें गड़बड़ी भी देखी जा रही है.

बर्मिंघम स्थित अलाबामा यूनिवर्सिटी के डा. रैंडी क्रौन का कहना है कि साइटोकाइन एक तरह का प्रतिरोधक प्रोटीन होता है जो शरीर से संक्रमण और कैंसर जैसी बीमारियों को भगाने में मदद करता है, लेकिन अनियंत्रित होने पर यह व्यक्ति को काफी गंभीरूप से बीमार कर सकता है, जान भी ले सकता है.

अमेरिका के सैंटर फौर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के चलते मारे गए लोगों में से सबसे ज्यादा बुजुर्ग हैं जिनमें से 85 साल के ऊपर वायरस से मारे गए लोगों में से 27 फीसदी तक लोगों की मौत की वजह साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम ही था.

फेफड़ों की कोशिकाओं पर हमला करते हैं वायरस:

डा. रैंडी क्रौन ने एक इंग्लिश डेली को बताया कि कोरोना वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं को अपने रहने, उन्हें बीमार करने और आखिर में उन्हें खाकर नए वायरस पैदा करने के लिए इस्तेमाल करता है. कोरोना वायरस हमारे फेफड़ों की कोशिकाओं को इसलिए उपयोगी समझता है क्योंकि ये कोशिकाएं शरीर में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को थोड़ा देर में  रिस्पौंस करती हैं. जब कोरोना वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से छिपते हुए फेफड़ों की कोशिकाओं में जाता है तो वहीं से शरीर के अंदर शुरू होता है जीवन और मौत का असली युद्ध.

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वायरस से लड़ने के लिए सक्रिय होते हैं टी सैल्स:

डा. क्रौन के अनुसार, कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अब सामने आते हैं टी सैल्स. कोविड-19  से लड़ने के लिए टी सैल्स सक्रिय होने के साथ साइटोकाइन यानी इम्यून प्रोटीन रिलीज करते हैं. परिणामस्वरूप, और टी सैल्स बनते हैं और वे और अधिक साइटोकाइन रिलीज करने लगते हैं. यानी, कोरोना से लड़ने के लिए टी सैल्स काफी ज्यादा मात्रा में बनने लगते हैं. और फिर ये वायरस पर हमला कर देते हैं.

बता दें कि टी सेल्स का एक और प्रकार साइटोटौक्सिक टी सैल्स भी है. ये टी सैल्स कोरोना वायरस और उससे संक्रमित कोशिकाओं को खोजखोज कर मार डालते हैं. इससे कोरोना वायरस कोशिकाओं को खाकर और ज्यादा वायरस नहीं पैदा कर पाता है.

टी सैल्स को ही कंफ्यूज्ड करता है कोरोना वायरस:

मजबूर होकर कोरोना वायरस साइटोटौक्सिक टी सैल्स को भ्रमित करने की कोशिश शुरू करता है. दरअसल, जब हमारे शरीर में साइटोटौक्सिक टी सैल्स वायरस से लड़ाई कर रहे होते हैं तो उसी समय एक अलग प्रकार का रसायन निकलता रहता है, जो टी सैल्स को यह इंडिकेट करता है कि अब दुश्मन निष्क्रिय हो चुके हैं, अब बस करो.

लेकिन, दूसरे वायरसों से अलग यह कोरोना वायरस जिस्म से निकलने वाले इस रसायन की मात्रा को कमज्यादा करने लगता है. इसके चलते टी सैल्स भ्रमित हो जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में ये टी सैल्स और विकराल रूप ले लेते हैं. नतीजतन, ये टी सैल्स दुश्मन वायरस और उससे संक्रमित कोशिकाएं को मारने के साथसाथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगते हैं, यानी, रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस के साथ जिस्म पर भी हमला कर देती है.

दुनियाभर में कोरोना वायरस से मरने वालों में ज़्यादातर वे लोग हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरों को इससे ख़तरा नहीं. कोरोना से मरने वालों में बहुत से नौजवान और सेहतमंद लोग भी शामिल हैं.

कोमा में भी जा सकते हैं मरीज़:

जिस्म में जब भी साइटोकाइन स्टौर्म होता है तो यह सेहतमंद कोशिकाओं को भी प्रभावित करता है. डाक्टरों का कहना है कि साइटोकाइन स्टौर्म के दौरान मरीज़ को तेज़ बुखार और सिरदर्द होता है. कई मरीज़ कोमा में भी जा सकते हैं. हालांकि, अभी तक डाक्टर इस परिस्थिति को सिर्फ समझ पाए हैं. जांच का कोई तरीक़ा उपलब्ध नहीं है.

कोविड-19 के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टौर्म पैदा होने की जानकारी दुनिया को वुहान के डाक्टरों से मिली है. उन्होंने 29 मरीज़ों पर एक रिसर्च की और पाया कि उनमें आईएल-2 और आईएल-6 साइटोकाइन स्टौर्म के लक्षण थे.

वुहान में ही 150 कोरोना केस पर की गई एक अन्य रिसर्च से यह भी पता चला कि कोविड से मरने वालों में आईएल-6 सीआरपी साइटोकाइन स्टौर्म के मौलिक्यूलर इंडिकेटर ज़्यादा थे, जबकि जो लोग बच गए थे उनमें इन इंडिकेटरों की उपस्थिति कम थी.

ऐसा पहली मर्तबा नहीं है कि साइटोकाइन स्टौर्म का रिश्ता किसी महामारी से जोड़ कर देखा जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक़, 1918 में फैले फ्लू और वर्ष 2003 में सार्स महामारी (सार्स महामारी का कारण भी कोरोना वायरस परिवार का ही एक सदस्य था) के दौरान भी शायद इसी वजह से बड़े पैमाने पर मौत हुईं थीं. और शायद एच1एन1 स्वाइन फ़्लू में भी कई मरीज़ों की मौत, अपनी रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के बाग़ी हो जाने की वजह से ही हुई थी.

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वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारियों वाले फ़्लू में मौत शायद वायरस की वजह से नहीं, बल्कि मरीज़ के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक सक्रिय होने की वजह से होती है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही असंतुलित हो जाएगी तो मौत होना तय है.

Alia Bhatt से लेकर Sonam Kapoor तक ये हेयरस्टाइल है समर के लिए परफेक्ट, देखें फोटोज

गरमी हो या सरदी बौलीवुड स्टार्स अपने लुक का ख्याल हर वक्त रखते हैं. वहीं एक्ट्रेसेस की बात करें तो वह अपने आउटफिट से लोगों को अट्रेक्ट करती हैं. वहीं बात करें उनके लुक से लेकर स्टाइल की तो वह समर में अक्सर अपने आपको कूल रखने के लिए ट्रैंडी हेयरस्टाइल्स ट्राय करती हुई नजर आती हैं. अगर आप भी समर में बौलीवुड स्टार्स के लुक के साथ हेयरस्टाइल का कौम्बिनेशन ट्राय करना चाहते हैं तो आज हम आपको बौलीवुड एक्ट्रेसेस के कुछ समर हेयर स्टाइल्स के बारे में बताएंगे, जो आपको गरमी से तो राहत दिलाएगा ही साथ आपके लुक को खूबसूरत भी बनाएगा.

दीपिका का ये हेयर स्टाइल है समर परफेक्ट

 

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Hello!💕#jiomamimumbaifilmfestival

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अगर आपको चोटी लुक पसंद नहीं है तो दीपिका पादुकोण का सिंपल पोनी वाला लुक एकदम परफेक्ट है. इस हेयरस्टाइल को आप अपने बालों की लम्बाई के अनुसार अलग-अलग तरह से ट्राय कर सकती हैं.

Aila Bhatt  की फिश टेल पोनी लुक करें ट्राय

 

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What it took.. to get the IIFA look 👻 Link in bio..💄💇‍♀️

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कौलेज गर्ल्स के बीच सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस आलिया भट्ट बीते साल अदाकारा जब आईआईएफए अवार्ड्स के लिए इस लुक में गई थी तो सभी की निगाहें आलिया भट्ट की शॉर्ट फिश टेल पोनी पर अटक गई थीं, जिसे आप समर सीजन में ट्राय कर सकती हैं.

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नई नवेली दुल्हन के लिए परफेक्ट है Sonam Kapoor जैसा जूड़ा

सोनम कपूर ने फ्रेंच ब्रेड स्टाइल का जूड़ा बनाकर काफी सुर्खियां बटोरी थी. सोनम का ये हेयरस्टाइल देखने में कूल है और बनाने में भी ज्यादा मुश्किल नहीं है. गर्मियों के मौसम में ये आपके लुक में चार चांद लगाएगा और समर सीजन में कूलिंग का एहसास कराएगा.

इन एक्ट्रेसेस का हेयरस्टाइल भी है परफेक्ट

 

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#Day2 Breezing through interviews for #TheSkyIsPink in @jonathansimkhai. In theatres Oct 11!

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अगर आपको अलग-अलग तरह की चोटियां बनाने का क्रेज है तो आप कृति सेनॉन की इस टॉप्सी पोनीटेल भी भी ट्राय कर सकते हैं. वहीं हाल ही में फिल्म स्काई इज पिंक के प्रमोशन के दौरान अदाकारा प्रियंका चोपड़ा ने इस सिंपल से जूड़े के दौरान फैंस का दिल जीत लिया था.

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Kareena Kapoor का साड़ी के साथ हेयरस्टाइल है परफेक्ट

अगर आप सोचते हैं कि फ्रेंच ब्रेड सिर्फ लंबे बालों में ही अच्छी लगती है तो आप करीना कपूर खान का ये लुक देख सकते है. द कपिल शर्मा शो में अपनी फिल्म के प्रमोशन के दौरान करीना की साड़ी के साथ-साथ उनके इस शॉर्ट टेल हेयरस्टाइल ने फैंस का दिल जीत लिया था.

मेरे हाथ बहुत ज्यादा ड्राई होने लगे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 28 वर्ष की हूं. मेरे हाथ बहुत ज्यादा ड्राई होने लगे हैं. मैं क्या करूं?

जवाब-

कई बार मौसम बदलने, धूलमिट्टी, प्रदूषण के कारण स्किन ड्राई होने लगती है. इस का सब से ज्यादा असर हाथों पर देखा जा सकता है. पूरा दिन काम करने की वजह से हाथ रूखे और खुरदरे होने लगते हैं. लेकिन नैचुरल तरीके से आप अपने हाथों को कोमल बना सकती हैं. इस के लिए निम्न तरीके आजमाएं: शहद: शहद में ऐंटी औक्सिडैंट और ऐंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं, जो बढ़ती उम्र को छिपाने में मदद करते हैं और त्वचा को मुलायम बनाते हैं. शहद को हाथों पर लगाएं और 5 मिनट तक मालिश करें. फिर 15 मिनट बाद हाथों को कुनकुने पानी से धो लें.

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कोरोना वायरस की वजह से लगातार हाथ धोने की सलाह आज सभी को दी जा रही है, क्योंकि रिसर्चर्स ने पाया है कि साबुन या हैंड सेनेटाइजर से इस वायरस को खत्म किया जा सकता है, इसलिए हाथों को बार-बार 20 सेकेण्ड साबुन से धोने पर इस महामारी के संक्रमित होने से बहुत हद तक बचा जा सकता है, लेकिन जब आप साबुन से बार बार हाथ धोते है, तो हाथों की स्किन रुखी और बेजान हो जाती है. खासकर ड्राई स्किन वालों को इस बात का अधिक ध्यान देना पड़ता है, ऐसे में हाथ की स्किन की नमी को बनाये रखने के लिए क्यूटिस स्किन क्लिनिक की डर्मेटोजिस्ट डॉ. अप्रतिम गोयल कहती है कि बार-बार साबुन से हाथ धोने से स्किन रुखी हो जाती है, जिससे इचिंग और कट्स हो जाया करती है, ऐसे में मोयस्चराइजर अधिक लगाने की जरुरत होती है, ताकि किसी भी प्रकार की एलर्जी और इन्फेक्शन से बचा जा सकें.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- #coronavirus:  हाथ धोएं बार–बार, पर स्किन का भी रखें ख्याल

#coronavirus: रोगाणुनाशक  छिड़काव, रोग का फैलाव

दुनिया के तकरीबन हर देश में पसर चुके कोरोना से सरकारें मुश्किल में हैं. दुनियावासी सहमे हुए हैं. बचाव के उपायों में कुछ सरकारें अपने देशों में रोगाणुनाशक का छिड़काव भी करा रही हैं.

रोगाणुनाशक छिड़काव का फैसला सरकारों ने खुद लिया है, स्वास्थ्य पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइजेशन यानी डब्लूएचओ ने नहीं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्तियों की मौजूदगी में रोगाणुनाशक छिड़कना शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है और किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर या रोगाणुनाशक की निकलने वाली बूंदों के जरिए यह छिड़काव वायरस फैलाने की क्षमता को कम नहीं करेगा.

यही नहीं, क्लोरीन या अन्य जहरीले रसायनों का छिड़काव करने से लोगों की आंखों और त्वचा में जलन, ब्रोन्कोस्पास्म और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रभाव हो सकते हैं. यानी, कोरोना वायरस को तो यह खत्म करेगा नहीं, उलटे, इंसानों को दूसरे रोगों का शिकार बना देगा.

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भारत समेत दुनिया के कई देशों में यह देखा गया है कि सड़कों और रास्तों को संक्रमणमुक्त करने के नाम पर रोगाणुनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.

स्वास्थ्य मामले की दुनिया की सबसे बड़ी संस्था डब्लूएचओ ने चेतावनी देते हुए कहा है कि रोगाणुनाशकों के इस्तेमाल से कोरोना वायरस ख़त्म होने वाला नहीं है बल्कि इस का स्वास्थ्य पर उलटा असर पड़ सकता है.

कोविड-19 की महामारी को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने स्वच्छता और सतह को रोगाणुमुक्त करने के लिए एक गाइडलाइन जारी की है जिसमें बताया गया है कि रोगाणुनाशकों का छिड़काव बेअसर हो सकता है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है, “बाहर की जगहें, जैसे सड़क, रास्ते या बाज़ारों में कोरोना वायरस या किसी अन्य रोगाणु को ख़त्म करने के लिए रोगाणुनाशकों, चाहे वह गैस के रूप में ही क्यों न हो,  के छिड़काव करने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि धूल और गर्द से ये रोगाणुनाशक बेअसर हो जाते हैं. भले ही कोई जीवित चीज़ मौजूद न हो लेकिन रासायनिक छिड़काव सतह के हर छोर तक पर्याप्त रूप से पहुंच जाए और उसे रोगाणुओं को निष्क्रिय करने के लिए ज़रूरी समय मिले, इसकी संभावना कम ही है.”

कोरोना वायरस को सतह पर निष्प्रभावी बनाने के लिए सफाई पर आधारित एक दस्तावेज में डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि  कार्बनिक पदार्थों की अनुपस्थिति में वायरस को निष्क्रिय करने के लिए रासायनिक छिड़काव के जरिये पर्याप्त रूप से सभी सतहों को कवर करने की संभावना नहीं है.

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दस्तावेज़ में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि व्यक्तियों की मौजूदगी में कीटाणुनाशक छिड़कना किसी भी परिस्थिति में अनुशंसित नहीं है. यह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है.

इसी बीच, चिकित्सकों और लाइसोल एवं डेटौल बनाने वाली कंपनियों ने आगाह किया है कि रोगाणुनाशक का शरीर में प्रवेश खतरनाक है.

रोगाणु या रोगजनक, दरअसल, सूक्ष्‍म जीव होते हैं जो शरीर में दाखिल हो जाएं तो बीमारी और संक्रमण पैदा कर सकते हैं. रोगाणु लोगों के हाथों, आमतौर पर संक्रमित लोगों या सतह, को छूने से घर में चारों ओर फैल सकता है. रोगाणु हवा में छोटे धूलकणों या हमारे मुंह और नाक से खांसी, छींक या बातचीत के दौरान निकली पानी की बूंदों पर यात्रा कर सकते हैं.

वहीं, रोगाणुनाशक संक्रमण रोगों को नियंत्रित या ठीक करने का जीवनदायी इलाज है तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से लड़ने का एक महत्तवपूर्ण हथियार लेकिन, हमें इन औषधियों को बहुत सोचसमझ कर, तर्कसंगत और असरदार तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए वरना नुकसान हो सकता है.

उधर, आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं और आईआईटी कानपुर में शुरू किए गए स्टार्टअप ने मिलकर हालिया एक ‘रोगाणुनाशक चैंबर’ तैयार किया है. यह स्वचालित रोगाणुनाशक चैंबर पूरी तरह से बंद है.  इसमें जब कोई व्यक्ति प्रवेश करेगा तो उसके शरीर पर रोगाणुनाशक का छिड़काव होगा और वह रोगाणुओं से मुक्त हो जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया में कुछ ही सैकंड का वक्त लगता है.

आईआईटी कानपुर का कहना है कि चैंबर का आकार ऐसा है कि इसे किसी भी औफिस या सार्वजनिक स्थल पर मेटल डिटैक्टर के साथ रख कर परिसर को कोविड-19 से मुक्त रखा जा सकता है.

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उधर, रोगाणुनाशक के बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ दिनों पहले कहा था कि लोग कोरोना वायरस से बचने के लिए रोगाणुनाशक इंजैक्शन लागाएं, इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी. उन्होंने डाक्टरों से भी ऐसा करने को कहा था.

ट्रंप की इस विचित्र व अस्वस्थ सलाह के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने तीखी आलोचनाएं कीं और कहा कि लोग खब्ती राष्ट्रपति की ‘खतरनाक’ सलाह को नजरअंदाज कर दें.

बहरहाल, इसमें शक नहीं है कि रोगाणुनाशक रोगाणुओं को खत्म कर सकते हैं लेकिन नोवल कोरोना वायरस के मामले में स्थिति दूसरी है. ऐसे में डब्लूएचओ के दिशानिर्देश पर अमल करना आवश्यक हो जाता है.

भटकते सांपों का एक सहृदय मसीहा

सुरेश,जिन्हें वावा सुरेश (1974 में जन्म) के अलावा और भी कई नामों से जाना जाता है-जैसे वसुर और स्नेक मास्टर. लेकिन अगर उनका सबसे अच्छा कोई नाम हो सकता है, जो उनके साथ न्याय करे,तो वह ‘भटकते साँपों का मसीहा’ ही हो सकता है. सुरेश एक ऐसे अद्भुत व्यक्ति हैं,जैसा शायद ही दुनिया में कोई दूसरा हो.वह सांपों से बहुत प्यार करते हैं.सांपों के प्रति उनके इस प्यार में माँ की ममता तथा पिता का संरक्षक भाव एक साथ शामिल है.पूरी दुनिया में अपनी सबसे कीमती पारिस्थितिकीय धरोहर जहरीले साँपों के लिए जाने जाने वाले वेस्टर्न घाट की यह धरोहर शायद लुप्त हो गयी होती या लुप्त हो जाती अगर दुनिया को बावा सुरेश जैसा सांपों का पैदाइशी मसीहा न मिला होता.

बावा सुरेश को भटके हुए सांपों को बचाने का जूनून है.माना जाता है कि अब तक वह कोई 50,000 भटकते साँपों को पकड़कर उन्हें सुरक्षित जगहों तक पंहुचा चुके हैं.  उनके इस जूनून के पीछे साँपों की सुरक्षा और संरक्षण के अलावा कोई और लालच नहीं है.यहाँ तक कि उनसे काम से प्रभावित होकर साल 2012 में जब केरल के मंत्री केबी गणेश कुमार द्वारा उन्हें सांप पार्क में एक अस्थायी सरकारी नौकरी की पेशकश की तो सुरेश ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह नौकरी करते हुए समाज की उस तरह से मदद नहीं कर सकता,जिस तरह से वह करना चाहता है.गौरतलब है कि सुरेश को चिंता है कि अगर सजगता से वेस्टर्न घाट के तमाम लुप्त हो रही सर्प प्रजातियों को न बचाया गया तो वे हमेशा हमेशा के लिए धरती से गायब हो जायेंगी.

सुरेश आमतौर पर उन चमत्कारिक सांप पकड़ने वालों में से नहीं हैं जो यह दावा करें कि सांप उनको काट ही नहीं सकता या कि किसी सांप के काटने का उन पर किसी जादुई ताकत के चलते कोई असर ही नहीं होता.सुरेश ने जनवरी 2020 तक 176 सबसे ज्यादा जहरीले किंग कोबरों को पकड़ा था जबकि उनके द्वारा अब तक पकड़े गए सभी साँपों की बात करें तो उन्होंने कोई  50,000 से ज्यादा भटकते सांपों को बचाया है.इस दौरान उन्हें  300 बार जहरीले सांपों  और करीब 3000 से अधिक बार आम दूसरे सांप भी काट चुके हैं.यही नहीं जहरीले साँपों द्वारा डसे जाने के चलते सुरेश अब तक 6 बार आईसीयू और वेंटीलेटर तक पहुंच चुके हैं.हाल में फरवरी 2020 में भी वह मरते मरते बचे हैं.उनके लिए केरल में कई जगह वन्यजीव प्रेमियों ने बचने की दुआएं भी थीं.

सुरेश न केवल लुप्तप्राय साँपों की प्रजातियों को बचाने का काम करते हैं बल्कि वह लोगों को साँपों के बारे में शिक्षित भी करते हैं.सांपों और उनके व्यवहार के बारे में सुरेश आम लोगों में जागरूकता भी पैदा करते हैं.वह मानव आबादी वाले क्षेत्रों से विषैले सांपों को पकड़कर उनके लिए सुरक्षित जगह पहुंचाते हैं. सुरेश के इंस्टाग्राम अकाउंट में उनकी साँपों के साथ एक से एक फोटो देखी जा सकती हैं. इस साल फरवरी में जब वह पठानमथिट्टा में एक घातक सांप को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और वहां मौजूद सैकड़ों लोग उन्हें यह करते हुए देख रहे थे, तभी उस  खतरनाक किस्म के सांप पिट वाइपर बिट ने सुरेश को काट लिया.सांप ने सुरेश की उंगली पर काटा, उसके बाद वो बेहोश होकर गिर गए.आसपास मौजूद लोग उनको लेकर तुरंत अस्पताल गए,बेहतर चिकित्सा सहायता के लिए सुरेश को उनके गृहनगर तिरुवनंतपुरम स्थित एक मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. वहां उसे 72 घंटे तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया .

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डॉक्टरों के मुताबिक़ सुरेश का शरीर एंटी वेनम उपचारों के लिए प्रतिरोधी बन चुका है, इस वजह से उसे अधिक समस्या नहीं होती है.फिर भी जहर तो जहर है.46 साल के सुरेश दक्षिण भारत में सबसे प्रसिद्ध स्नैक कैचर्स में से एक हैं ,उन्होंने अब तक के केरल पाए जाने वाले 110 किस्म के साँपों को पकड चुके हैं.भारत में हर साल कोई 28 लाख लोगों को सांप काटते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ करीब 46,000 मौतें हर साल इस सर्पदंश से होती हैं और करीब 40,000 लोग विकलांग हो जाते हैं.

#corornavirus: आबादी के बढ़ते बोझ से जल अकाल की तरफ बढ़ता देश

भले इन दिनों देश में छाये कोरोना संकट के चलते,जल संकट मीडिया की सुर्ख़ियों में जगह न बना पा रहा हो,मगर सच्चाई यही है कि देश का पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सा विशेषकर महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, उडीसा और मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से में जल संकट कोरोना की तरह ही दैनिक जीवन के लिए बड़ा संकट बना हुआ है. लेकिन यह कोई इस साल या पिछले किसी साल का अचानक आया संकट नहीं है बल्कि अब जल संकट,पिछले एक दशक से भारत का स्थायी संकट बन चुका है. यह कम और मझोले स्तर पर तो देश के करीब दो तिहाई भू-भाग में पूरे साल बना रहता है,लेकिन फरवरी खत्म होकर मार्च माह के मध्य तक पहुँचते पहुँचते यह देश के काफी बड़े हिस्से में भयावह संकट बन जाता है.

इसकी एक बड़ी वजह जल संसाधन पर आबादी का बढ़ता बोझ भी है. भारत के पास धरती की समस्त भूमि का सिर्फ 2.4 प्रतिशत ही है जबकि हमारे खाते में विश्व की 16.7 फीसदी जनसंख्या है. इससे साफ है कि हमारे सभी तरह के संसाधनों पर जिस तरह आबादी का दबाव है,वही दबाव जल संसाधन पर भी है. जल संसाधन पर भारी दबाव के कारण ही हम भूमि जल का दोहन तय अनुपात से कई सौ प्रतिशत ज्यादा करते हैं. हम तय सीमा से भूमि जल का कितना ज्यादा दोहन करते हैं इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भयंकर भू-जल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच भू-जल स्तर में 61% तक की कमी आ चुकी है. अब देश के 40% तक भू-भाग में  सूखे का संकट हर साल रहता है. एक अध्यययन के  मुताबिक़ साल 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी.

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पेय जल को लेकर पूरी दुनिया में जो संकट मंडरा रहा है, भारत में वह दलगातार बढ़ती आबादी के कारण ज्यादा गहरा हो रहा है. भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच,पानी की मांग एवं आपूर्ति में जो अंतर पैदा हो रहा है उसके कारण 2025 तक भारत विश्व के सर्वाधिक जल संकट वाला देश बन सकता है. साथ ही यह भी अनुमान है कि अगले कुछ सालों में विदेशी कंपनियां भारत में 13 अरब डॉलर  से ज्यादा का निवेश कर सकती हैं. जल क्षेत्र में एक प्रमुख परामर्श कंपनी ईए वाटर के एक अध्ययन के अनुसार, ‘भारत में पानी की मांग सभी मौजूदा स्रोतों से होने वाली आपूर्ति के मुकाबले ऊपर चले जाने की आशंका है और देश 2025 तक जल संकट वाला देश बन सकता है.’

कम्पनी के अध्ययन के मुताबिक ‘परिवार की आय बढ़ने तथा सेवा तथा उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है.’ देश की सिंचाई का करीब 70 प्रतिशत तथा घरेलू जल खपत का 80 प्रतिशत हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है. हालांकि एक तरफ जहां यह आसन्न संकट है वहीं कारपोरेट क्षेत्र इसे बड़े अवसर के रूप में भी देख रहा है यही कारण है कि इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस संकट की आशंका के चलते कनाडा, इस्राइल, जर्मनी, इटली, अमेरिका, चीन और बेल्जियम की कई कंपनियां भारत के घरेलू जल क्षेत्र में 13 अरब डॉलर मूल्य के निवेश का अवसर देख रही हैं.

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देश में जल आपूर्ति और दूषित जल प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे के विकास समेत विभिन्न संबंधित क्षेत्रों में काफी अवसर हैं. पारंपरिक रूप से भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है. इसीलिए, पंचवर्षीय योजनाओं में, कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं जैसे- भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी, नागार्जुन सागर, इंदिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई हैं. वास्तव में, भारत की वर्तमान में जल की मांग, सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए सबसे अधिक है. भारत में वह जल चाहे धरातलीय हो यानी धरती के ऊपर का या फिर भूमि जल यानी धरती के नीचे भूमि में मौजूद. इन दोनों ही किस्म के जलों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कृषि के लिए ही होता है.

धरातलीय जल का लगभग 89 प्रतिशत और भूमि जल का 92 प्रतिशत तक कृषि में इस्तेमाल होता है. औद्योगिक सेक्टर में, भूमि जल का केवल 2 प्रतिशत और धरातलीय जल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है. घरेलू सेक्टर में धरातलीय जल का उपयोग भूमि जल की तुलना में अधिक है. भविष्य में विकास के साथ-साथ देश में औद्योगिक और घरेलू सेक्टरों में जल का उपयोग कई गुना ज्यादा बढ़ जाने की आशंका है. पानी की कीमत का अभी हम अंदाजा नहीं लगा पा रहे. अगर सब कुछ ऐसा ही रहा और भारत के लोगों ने पानी का मोल न समझा तो वर्ष 2025 तक देश में जल की समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है.

देश में पानी की उपलब्धता की खराब होती स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल यानी 2020 के अंत तक पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम रह जाएगी. तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़े जाने की आशंकाओं के बीच वाकई आज भारत में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है नतीजतन कई राज्य पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. पानी के इस्तेमाल के प्रति लोगों की लापरवाही अगर बरकरार रही तो भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. विश्व बैंक के एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 27 एशियाई शहरों में चेन्नई और दिल्ली पानी की उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले महानगर हैं. इस फेहरिस्त में मुम्बई दूसरे स्थान पर जबकि कोलकाता चैथी पायदान पर है.

साफ पानी न मिलने के कारण हर साल भारत में दो लाख लोग जान गवां रहे हैं. देश के करीब 60 करोड़ लोग पीने के पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं. वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि बढ़ती आबादी के कारण 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्धता से दोगुनी हो जाएगी. तब इसका असर भारत के जीडीपी पर पडेगा. माना जा रहा है कि पानी की किल्लत के कारण तब भारत की जीडीपी में 6 प्रतिशत तक की कमी आने की आशंका है.

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