अब अपना काम खुद करें

टीवी पर चलते, जलते और मिटते मजदूरों को देख कर कंधे न उचकाएं कि हमें क्या. ये एक ऐसी समस्या पैदा कर रहे हैं, जिस का नुकसान देश के पूरे मध्यवर्ग और उस की औरतों को होगा. जब भी गांवों से दलितों और पिछड़ों को भगाया गया और उन्हें शहरों में नौकरियां मिलनी शुरू हुईं उस का सब से बड़ा फायदा शहरी ऊंची जातियों की औरतों को मिला.

एक जमाना था जब शहरों या गांवों की ऊंची ठाकुरों, बनियों और ब्राह्मणों की औरतों को भी दिन में 16-17 घंटे काम करना पड़ता था. उन का काम कभी खत्म नहीं होने वाला था. उन दिनों पिछड़ों को घरों में ही नहीं आने दिया जाता था, तो फिर दलितोंअछूतों की तो बात क्या? पर जैसेजैसे गांवों से पिछड़े और दलित शहर आते गए औरतों के काम कम होते गए. इन्होंने चैन की सांस ली. मर्दों को चाहे खास फर्क नहीं पड़ा पर घरेलू नौकरों और बाइयों की वजह से औरतों की जिंदगी सुधरने लगी. उन के हाथों में कोमलता आने लगी, चेहरों पर लाली फैलने लगी.

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जो धन्नासेठ हैं उन्हें तो छोडि़ए, साधारण 3 कमरों के मकानों में रहने वालों को भी इन शहरों में आए पिछड़ों और दलितों की वजह से फायदा होने लगा. मकानों की उपलब्धता बढ़ गई, क्योंकि मजदूरमजदूरनियां मिलने लगे, बस्तियां बसने लगीं. इन बस्तियों तक सामान पहुंचने लगा, जो इन पिछड़ों द्वारा चलाए ठेलों से पहुंचा और फिर इन की जगह टैंपों ने ले ली. भरपूर दुकानें खुलने लगीं.

घरों में तरहतरह की सुविधाएं मिलने लगीं. आटा पिसापिसाया और पैक किया मिलने लगा, क्योंकि कारखानों में पिछड़े काम करते थे. मशीनें थीं फिर भी इन दलित मजदूरों ने उठाई धरी, ट्रक चलाने का काम ले लिया. मसाले मिलने लगे. कपड़ा मिलें बढ़ने लगीं. तकनीक तो सुधरी पर बाजार इन्हीं की वजह से चलते थे ही, थोक मंडियों में, बाजारों में और मौलों में भी छा गए.

इन पिछड़ों और दलितों की बीवियोंबेटियों ने भी घरों में काम करना शुरू कर दिया. औरतों को झाड़ू लगाने, खाना पकाने और बच्चे पालने से फुरसत मिली. घरों में बढि़या सामान भरने लगा. तरहतरह के बैड आ गए, हर कमरे में सोफा लग गया, एसी, कूलर आ गए, बत्तियां जगमगाने लगीं. हरेक को लगाने वाले तो पिछड़े दलित हैं ही, रखरखाव वाले भी यही लोग हैं.

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शहरों में आनाजाना आसान हो गया. पैदल चलने की जगह पहले रिकशा, फिर औटो, फिर टैक्सी, फिर उबेर, ओला या खुद की ड्राइवर वाली गाड़ी आ गई. औरतों को समय मिला तो उन्होंने पति के साथ काम करना शुरू कर दिया, क्योंकि घर पर कोई और सहायक है. कामकाजी औरतें सासों और मांओं पर ही निर्भर नहीं रह गईं. उन्हें लगातार काम करने वाले मिलते रहे. यही वे लोग थे जो टीवी स्क्रीनों पर, बसों, ट्रेनों, ट्रकों और तपती धूप में सड़कों पर दिखे.

हमारे मध्य व उच्चवर्ग ने इन का खयाल न के बराबर रखा. देशभर में स्लम बन गए, जिन में बिना रनिंग वाटर, बिना फ्लश वाले शौचालयों के 1-1 कमरे के मकान में 10-10,

20-20 को रखा गया. इन का सपना था कि एक दिन ये कमा कर शहरी बाबुओं और मेमसाहबों जैसे बन जाएंगे. इन्हें गुमान था कि ये गांवों की गंदगी, घुटन, गरीबी, भुखमरी से बच कर आ गए हैं. इन को पट्टी पढ़ा रखी थी कि सेवा करो, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में जरूर कुछ लाभ होगा.

न जाने क्यों कोरोना ने इन्हें झकझोर दिया. 24 मार्च से ही लाखों की गिनती में लोग गांवों में लौटने लगे. यह सिलसिला जून तक चल रहा है. लोग पैदल भी चल रहे हैं और ट्रेनों में भरभर कर भी जा रहे हैं. उद्योगों को चलाने वालों के तो हाथपैर फूल रहे हैं कि कारखानों में काम कौन करेगा पर असल मार औरतों पर पड़ सकती है.

अब औरतों को सहायक मिलने कम हो सकते हैं. हो सकता है घरों में बाइयां न मिलें, औटो व टैक्सियां न मिलें. सामान घरों तक आना कम हो जाए या बंद हो जाए अथवा महंगा हो जाए. लौकडाउन के दौरान करोड़ों घरवालियों ने देख लिया है कि बिना बाहरी सहायता के जिंदगी कितनी दुश्वार है. काम के घंटे बढ़ गए. घरों में फुरसत कम हो गई. अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है इसलिए आय कम होने लगी और ऊपर से इन हैल्पों की कमी का डर.

अभी तो सभी को लग रहा है कि ये लोग वापस आएंगे पर जिस ढंग से रिवर्स माइग्रेशन हुआ है उस से लगता है इन्हें ठेलठाल कर फिर शहरों में लाना अब मुश्किल होगा. 30-40 साल पहले ये लोग शहरों की ओर भागे थे, क्योंकि खेतों पर काम नहीं था. गांवों में उपज कम थी. अब तकनीक, बिजली, ट्रैक्टरों, पंपों की वजह से गांव भी बेहतर हैं, चाहे 2-3 करोड़ लोग वापस गए हों और लगता है कि वे गांवों में भीड़ पैदा कर देंगे पर देखा जाए तो लाखों गांवों में बिखर जाने वाले ये लोग हर गांव में 100-200 होंगे जो आसानी से खप सकते हैं. इस का मतलब यही है कि हो सकता है कि अगले सालों में शहरी औरतों को छठी का दूध याद आने लगे. हैल्प मिले ही नहीं या बहुत महंगी हो.

औरतों को बहुत सा काम उसी तरह खुद करना पड़ेगा जैसे अमेरिका व यूरोप में करना पड़ रहा है. केवल बहुत अमीर ही बाइयों या मेड्स को रख पाएंगे.

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फिलहाल यह समस्या दिख नहीं रही, क्योंकि शहरियों की खुद की आय कम हो गई है. करोड़ों की नौकरियां चली गई हैं. मध्य व उच्चवर्ग भी पैसे की तंगी की मार झेल रहा है. अभी सारे मकान और सामान खराब नहीं हुआ है पर धीरेधीरे एसी, फ्रिज, कूलर, मोबाइल, लैपटौप खराब होने शुरू होंगे. बिजली के तार सड़ेंगे, बाथरूम फिटिंग खराब होगी, मकानों का रंग काला पड़ेगा, प्लास्टर में क्रैक्स आएंगे.

तब मजदूर मिलेंगे, टैक्नीशियन मिलेंगे, सामान मिलेगा आज गारंटी नहीं. इस सब का खमियाजा औरतों को भुगतना होगा. उन के घरों में कोई नहीं जाएगा. उन की मौजमस्ती पर रोक लगेगी. धर्म ने इस देश की औरतों को पहले से कमजोर कर रखा है, कोरोना का साइड इफैक्ट इन की सांसों को और मुश्किल कर दे तो बड़ी बात नहीं. यह आने वाले कल की तसवीर हो सकती है. ऐसा न हो तो अच्छा है पर होगा तो बड़ी बात न होगी.

पत्नी की सलाह मानना दब्बूपन की निशानी नहीं

मिस्टर कपिल एक इंजीनयर हैं. लोक सेवा आयोग से चयनित राकेश उच्च पद पर हैं. विभागीय परिचितों, साथियों में दोनों की इमेज पत्नियों से डरने, उन के आगे न बोलने वाले भीरु या डरपोक पतियों की है. पत्नियों का आलम यह है कि नौकरी संबंधी समस्याओं की बाबत मशवरे के लिए पतियों के उच्च अधिकारियों के पास जाते समय भी वे उन के साथ जाती हैं.

उच्चाधिकारियों से मशवरे के दौरान कपिल से ज्यादा उन की पत्नी बात करती है. सोसाइटी में कपिल की दयनीय स्थिति को ले कर खूब चर्चाएं होती हैं. वहीं, राकेश ने अपनी स्थिति को जैसे स्वीकार ही कर लिया है और उन्हें इस से कोई दिक्कत नहीं है. असल में, उन्हें पत्नी की सलाह से बहुत बार लाभ हुए. बहुत जगह वह खुद ही काम करा आती. वे सब के सामने स्वीकार करते हैं कि शादी के बाद उन की काबिल पत्नी ने बहुत बड़ा त्याग किया है. वे घर व बाहर के सभी काम ख़ुशी ख़ुशी करते हैं, पत्नी की डांट भी खाते हैं और कभी ऐसा नहीं लगता कि वे खुद को अपमानित महसूस करते हों.

वास्तव में जो पतिपत्नी आपस में अच्छी समझ रखते हैं और मिलजुल कर निर्णय लेते हैं उन के घर में आपसी सामंजस्य और हंसीखुशी का माहौल रहता है. जरूरत इस बात की है कि पति हो या पत्नी, दोनों एकदूसरे की राय को बराबर महत्त्व व सम्मान दें और कोई भी निर्णय किसी एक का थोपा हुआ न हो. यदि पत्नी ज़्यादा समझदार, भावनात्मक रूप से संतुलित व व्यावहारिक है तो  पति अगर उस की राय को मानता है तो इस में पति को दब्बू न समझ कर, समझदार समझा जाना चाहिए.

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इस के विपरीत, महेश और उन की पत्नी का दांपत्य जीवन इसलिए कभी सामान्य नहीं रह पाया क्योंकि उन्होंने अपनी दबंग पत्नी के सामने खुद को समर्पित नहीं किया. उन का सारा वैवाहिक जीवन लड़तेझगड़ते, एकदूसरे पर अविश्वाश और शक करते हुए बीता. इस के चलते उन के बच्चे भी इस तनाव का शिकार हुए.

कई परिवार ऐसे दिख जाएंगे जिन में पति की कोई अस्मिता या सम्मान नहीं दिखेगा और पत्नियां पूरी तरह से परिवार पर हावी रहती हैं. ये पति अपने इस जीवन को स्वीकार कर चुके होते हैं और परिस्थितियों से समझौता कर चुके होते हैं. ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ये दब्बू या कायर व्यक्ति हैं जिन का कोई आत्मसम्मान नहीं है? या फिर किन स्थितियों में उन्होंने हालात से समझौता कर लिया है और अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया है ? अगर गहन विश्लेषण करें तो इन स्थितियों के कारण सामाजिक, पारिवारिक ढांचे में निहित दिखते हैं. जिन के कारण कई लोगों को अवांछित परिस्थितियों को भी स्वीकार करना पड़ता है.

समाज में एक बार शादी हो कर उस का टूटना बहुत ही  ख़राब बात मानी जाती है. विवाह जन्मजन्मांतर का बंधन माना जाता है. और फिर बच्चों का भविष्य, परिवार की जगहंसाई, समाज का संकीर्ण रवैया आदि कई बातें हैं जिन के कारण लोग बेमेल शादियों को भी निभाते रहते हैं. कर्कशा और झगड़ालू पत्नियों के साथ  पति सारी जिंदगी बिता देते हैं. ऐसी स्त्रियां बच्चों तक को अपने पिता के इस तरह खिलाफ कर देती हैं कि बच्चे भी बातबात पर पिता का अपमान कर मां को ही सही ठहराते हैं और पुरुष बेचारे खून का घूंट पी कर सब चुपचाप सहन करते रहते हैं. समाज का स्वरूप पुरुषवादी है और यदि वह पत्नी की बात मानता है, उस की सलाह को महत्त्व देता है तो परिवार व समाज द्वारा उस पर दब्बू होने का ठप्पा लगा दिया जाता है.

श्रमिक कल्याण विभाग के एक आफिसर की पत्नी ने पति की सारी कमाई यानी घर, प्रौपर्टी हड़प कर, बच्चों को भी अपने पक्ष में कर के गुंडों की मदद से पति को घर से निकलवा दिया और वह बेचारा दूसरे महल्ले में किराए का कमरा ले कर रहता है, कभीकभार ही घर आता है. आखिर,  इस तरह के एकतरफा सम्बंध चलते कैसे रहते हैं?  इतना अपमान झेल कर भी पुरुष क्यों  ऐसी पत्नियों के साथ निभाते रहते हैं?

वास्तव में सारा खेल डिमांड और सप्लाई का है. भारतीय समाज में शादी होना एक बहुत बड़ा आडंबर होने के साथसाथ एक सामाजिक बंधन ज्यादा है. चाहे उस बंधन में प्रेम व विश्वाश हो, न हो, फिर भी उसे तोड़ना  बहुत ही कठिन है. वैवाहिक संबंध को तोड़ने पर समाज, रिश्तेदारों, आसपास के लोगों के सवालों को झेलना और सामाजिक अवहेलना को सहन करना बहुत ही दुखदाई होता है. और एक नई जिंदगी की शुरुआत करना तो और भी दुष्कर होता है. ऐसे में व्यक्ति अकेला हो जाता है और मानसिक रूप से टूट जाता है. बच्चों का भी जीवन परेशानियों से भर जाता है. उन की पढ़ाई, कैरियर सब प्रभावित होते हैं, साथ ही, बच्चे मानसिक रूप से अस्थिर हो कर कई तरह के तनावों का शिकार हो जाते हैं.

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इन परिस्थितियों में अनेक लोग इसी में समझदारी समझते हैं कि बेमेल रिश्ते को ही झेलते रहा जाए और शांति बनाए रखने के लिए चुप ही रहा जाए. जब पति घर में शांति बनाए रखने के लिए चुप रहते है और पत्नी के साथ जवाबतलब नहीं करते तो इस तरह की अधिकार जताने वाली शासनप्रिय महिलाएं इस का भी फायदा उठाती हैं और पतियों पर और ज्यादा हावी होने की कोशिश करने लगती हैं. ऐसी पत्नी को इस बात का अच्छी तरह भान होता है कि यह व्यक्ति उसे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता. अगर पति कुछ विरोध करने की कोशिश करता भी है तो वह उस पर झूठा इलजाम लगाने लगती है. यहां तक कि उसे चरित्रहीन तक साबित कर देती है. .

ऐसी हालत में पुरुष की स्थिति मरता क्या न करता की हो जाती है. इधर कुआं तो उधर खाई. पति को अपने चंगुल में रखना ऐसी स्त्रियों का प्रमुख उद्देश्य होता है. वे घर तो घर, बाहर व चार लोगों के सम्मुख भी पति पर अपना अधिकार और शासन प्रदर्शित करने से बाज़ नहीं आतीं. और धीरेधीरे यह उन की आदत में आ जाता है. स्थिति को और ज्यादा हास्यास्पद बनने न देने के लिए पतियों के पास चुप रहने के सिवा चारा नहीं होता. इसे उन का दब्बूपन समझ कर  उन पर दब्बू होने का ठप्पा लगा दिया जाता है. यह इमेज बच्चों की नज़रों में भी पिता के सम्मान को कम कर देती है और ये औरतें बच्चों को भी अपने स्वार्थ व अपने अधिकार को पुख्ता बनाने के लिए इस्तेमाल करती हैं. समस्या की जड़ हमारे समाज का दकियानूसी ढांचा है जहां व्यक्ति इस संबंध को तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाता और अपना सारा जीवन इसी तरह काट देता है.

हमेशा केवल स्त्रियों की त्रासदी का जिक्र किया जाता है. कई पुरुषों का जीवन भी त्रासदीपूर्ण होता है, ऐसा ग़लत स्त्री से जुड़ जाने के कारण हो जाता है. ऐसे पुरुषों के प्रति भी सहानुभूति रखनी चाहिए और वैवाहिक जीवन को डिमांड व सप्लाई का खेल न बना कर प्रेम व एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना से पूर्ण बनाना चाहिए.

इस समस्या को दूसरे पहलू से भी देखा जाना चाहिए. एक धारणा बना रखी गई है कि पुरुष हमेशा स्त्री से ज्यादा समझदार होते हैं. समाज ने पारिवारिक, आर्थिक व सामाजिक सभी तरह के निर्णय लेने के अधिकार पुरुष के लिए रिज़र्व कर दिए हैं. जबकि, यह तथ्य हमेशा सही नहीं हो सकता कि पुरुष ही सही निर्णय ले सकते हैं, स्त्री नहीं. जो स्त्री सारा घर चला सकती है, उच्चशिक्षा ग्रहण कर बड़ेबड़े पद संभाल सकती है वह पति को निर्णय लेने में अपनी सलाह या मशवरा क्यों नहीं दे सकती?  कई बार देखा गया है कि स्त्रियां परिस्थितियों को ज़्यादा सही ढंग से समझ पाती हैं और अधिक व्यावहारिक निर्णय लेती हैं. ऐसे में यदि पति अपनी पत्नी की राय को सम्मान देता है, उस के मशवरे को मानता है  तो उस पर दब्बू होने का ठप्पा लगा देना कैसे उचित है.

परिवार में केवल एक के द्वारा लिए गए फैसले एकतरफ़ा और ज़ल्दबाज़ी में लिए गए भी हो सकते हैं. जब कहते हैं कि, पतिपत्नी एक गाड़ी के 2 पहिए हैं तो भला एक पहिए से गाड़ी कैसे चल सकती है? पत्नी को पति की अर्धांगिनी कहा जाता है लेकिन वही अर्धांगिनी अपनी बात मानने को या उस की राय पर विचार करने को कहे तो उसे शासन करना कहा जाता है. अब  वह समय आ गया है कि  दकियानूसी धारणाओं को छोड़ परिवार के निर्णयों को लेने में स्त्री की राय को भी प्राथमिकता दी जाए और उसे पूरा महत्त्व दिया जाए.

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Hyundai #AllRoundAura: बेहतरीन ब्रेकिंग सिस्टम के साथ

हुंडई Aura में आपको मिला है एक शक्तिशाली इंजन, मगर इस से भी जरूरी यह है कि Aura में आपको उतने ही शक्तिशाली ब्रेक्स भी मिलते है. एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस) और इलेक्ट्रॉनिक ब्रेक-फोर्स डिस्ट्रिब्यूशन के साथ Aura अगले पहियों में डिस्क ब्रेक और पिछले पहियों में ड्रम ब्रेक के इस्तेमाल से खुद को सुरक्षित रूप से रोकता है. रुकते समय Aura का एबीएस ड्राईवर को फिसलन भरे हालात में भी नियंत्रण देता है, जिस से ड्राइवर आपातकालीन स्थिती में ब्रेक लगाते समय किसी वस्तु से टकराने से बच सकता है .

वैसे तो Aura में सभी सुरक्षा सुविधाएं दी गई है, लेकिन इसके मजबूत ब्रेक यह पक्का करते हैं कि आपको अन्य सुरक्षा सुविधाओं का उपयोग करने की ज़रूरत पड़े ही ना. #AllRoundAura

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बौलीवुड में फिल्म, टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग को लेकर अनिश्चितता कायम

कोरोना महामारी की वजह से 17 मार्च से फिल्म,टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग बंद होने के साथ ही बौलीवुड पूरी तरह से ठप्प है. जिसके चलते लगभग पंाच लगभग दिहाड़ी मजदूर गंभीर आर्थिक संकट व भूखमरी के शिकार हो रहे हैं. बौलीवुड से जुड़े तमाम दिहाड़ी मजदूर तो मुंबई छोड़कर अपने अपने गांव जा चुके हैं. कई कलाकार व तकनीशियन भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. पर निर्माताओं या सरकार की इस बात की कोई परवाह नही है.
मई माह के दूसरे सप्ताह से फिल्म निर्माताओं ने महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे संग बैठक कर अपनी विपत्ति का रोना रोया और स्टूडियो के किराए में छूट आदि की मांग करने के अलावा शूटिंग शुरू करने की इजाजत मांगी.मगर इन निर्माताओं ने सरकार के सामने तकनीशियन या ज्यूनियर डांसर, या स्पाॅट ब्वाॅय सहित किसी भी दिहाड़ी मजदूर की समस्या का रोना नहीं रोया.बहरहाल, महाराष्ट् सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने 31 मई की देर शाम सोलह पन्नों की गाइडलाइन्स के साथ फिल्म, टीवी सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करने के आदेश जारी कर दिए थे.सरकार की तरफ से गाइड लाइंस जारी किए जाने के 22 दिन बाद भी शूटिंग शुरू नहीं हो पायी है. इसकी मूल वजह यह है कि ‘सिंटा’और‘एफडब्लू वाय सी ई’’ के अनुसार महाराष्ट्र सरकार की गाइड लाइंस में कलाकारों ,तकनीशियन और दिहाड़ी मजदूरों के हितों को नजरंदाज किया गया है.
उधर फिल्म निर्माता संगठनों ने बीस जून से शूटिंग शुरू करने के कृत संकल्प के साथ सरकार की गाइड लाइंस के अनुसार मुंबई में ‘फिल्मसिटी’स्टूडियो के संचालक के पास श्ूाटिंग की इजाजत के लिए कागजी काररवाही पूरी कर ली.मगर निर्माताओं के संगठन ने कलाकारों व कामगारों के हितांे पर ध्यान दिए बगैर ‘सिंटा’ और ‘एफडब्लू वाय सी ई’के सदस्यांे को फोन कर शूटिंग पर आने के लिए आदेश देने शुरू कर दिए.इसी बीच निर्माताओं के संगठन‘इम्पा’ने एक अलग तरह की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी.

इन हालातों के बीच 22 जून को मंुबई में ‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’से जुड़े लोगो ने ‘‘वच्र्युअल जूम बैठक’’ कर इस मसले पर विस्तृत बातचीत कर कुछ नई गाइड लाइन्स तैयार की.इस बैठक में ‘‘सिंटा’’की तरफ से मनोज जोशी(वरिष्ठ उपाध्यक्ष),अमित बहल(वरिष्ठ संयुक्त सचिव), राजेश्वरी सचदेव(संयुक्त सचिव), राशिद मेहता (कार्यकारणी सदस्य),संजय भाटिया (कार्यकारणी सदस्य) और अयूब खान (कार्यकारणी सदस्य) तथा ‘एफडब्लू वाय सी ई’की तरफ से बी एन तिवारी (अध्यक्ष) व गंगेश्वर श्रीवास्तव(कोषाध्यक्ष) ने हिस्सा लिया.इस बैठक में शूटिंग के वक्त सेट की दिक्कतें,पारिश्रमिक राशि अदा करने की अवधि,शूटिंग करने की समयावधि सहित कई मुद्दो पर गंभीरता से विचार विमर्श किया गया. इसके बाद ‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’की तरफ से संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गयी, जिसमें कहा गया है कि,‘‘हमारे संगठनों ने कलाकारों, तकनीशियनों,वर्करों व अन्य क्राफ्ट से जुड़े लोगों के हितों के संबंध में कई बार निर्माताओं के संगठन‘‘इंडियन फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसस् कौंसिल’’(आईएफटीपीसी )के संज्ञान में लेकर आए,मगर ‘आईएफटीपीसी’की तरफ से कोई स्पष्ट जवाब न आने से भ्रम व अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. इतना ही नहीं अब निर्माता एकतरफा काम करते हुए हमारे संगठनों से जुड़े कलाकारों व वर्करों को फोनकर शूटिंग के लिए बुला रहे हैं.यह निर्माता ‘कोविड 19’’के आवश्यक सुरक्षा नियमो पर घ्यान देने की भी बात नही कर रहे हैं.’’

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इतना ही नही इस प्रेस विज्ञप्ति में निर्माताओ पर आरोप लगाते हुए कहा गया है-‘‘यह बताते हुए हमें बड़ा अफसोस है कि‘कोविड 19’’महामारी के बीच सरकार द्वारा लाॅक डाउन की घोषणा से पहले अभिनेताओं, कामगारों और तकनीशियनों के हक के कमाए हुए पारिश्रमिक राशि का काफी समय से बकाया राशि,जिसका भुगतान तुरंत करने के लिए सभी निर्माताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए सख्त निर्देशों के बाद भी,निर्माताओं ने अभी भी हमारे सदस्यों की बकाया देय राशि,उनके हक के पैसे नहीं दिए हैं.इसलिए हमारे सभी सदस्यों की पूरी बकाया राशि पुनः शूटिंग शुरू होने से पहले दे देना चाहिए.’’

इसके अलावा ‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’ दोनो ने संयुक्त रूप से निम्न मुद्दों पर हर पक्ष से संज्ञान लेेकर उचित समाधन की मांग भी की है.

‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह मुद्दे इस प्रकार हैंः

1-हर दिन सिर्फ आठ घंटे श्ूाटिंग ंके नियम का सख्ती से पालन हो.

2-दैनिक भुगतानः दैनिक रूप से सहभागी अभिनेताओं,तकनीशियनों व श्रमिको को भुगतान दिन के अंत में किया जाए.

3-मासिक भुगतानः कॉट्रेक्ट पर काम कर रहे सभी कर्मचारियों, अभिनेताओं और तकनीशियनों को 30 दिन में भुगतान किया जाए.

3-कंवेयंसः सभी को हर दिन का कंवेयंस (आने-जाने का किराया)दिया जाए.

4-साप्ताहिक छुट्टीः हर हफ्ते एक दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया जाए.

5-सरकार के निर्देशों के अनुसार कड़े स्वास्थ्य व सुरक्षा प्रोेटोकॉल का पालन किया जाए.

6-बीमाः ‘‘कोविड -19’’विशेष  कवरेज के साथ स्वास्थ्य और जीवन बीमा.‘कोविड -19’’संक्रमित होकर यदि किसी अभिनेता, श्रमिकां या  तकनीशियनों की मृत्यू हो जाए तो उनके लिए पचास लाख रूपए के  बीमा कवर की मांग.

7-तय पारिश्रमिक राशि में कोई कटौती नहींःकिसी भी अभिनेता,श्रमिक या तकनीशियन के मद से कोई पारिश्रमिक राशि कटौती / छूट नहीं की जाएगी.

8-किसी को भी काम से निकाला न जाएःकिसी भी अभिनेता/ तकनीशियन/ श्रमिक को धनराशि में कटौती न मानने पर न तो उसे परेशान किया जाए और न ही सीरियल से निकाला जाए.

9-इमरजेंसी मेडिकल सुिवधाएँः स्टूडियो और लोकेशन पर एक डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ (नर्स आदि) के साथ सभी उपकरणों से युक्त एक एंबुलेस सेट के बाहर तैनात रहे.

‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’ ने मांग की है शूटिंग शुरू करने से पहले उपर्युक्त मुद्दों पर पूरी स्पष् टता हो जानी चाहिए,जिससे अभिनेता,तकनीशियन,श्रमिक किसी के भी जीवन के साथ किसी भी तरह का जोखिम न हो.‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’अपनी तरफ से किसी के भी जीवन का जोखिम नहीं उठा सकता.

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‘‘सिंटा’’और ‘‘एफडब्लू वाय सी ई’’अपनी तरफ से पिछले डेढ़ माह से इन मुद्दों को उठाते आ रहे हैं,मगर फिल्म निर्माता संगठन और सरकार के कानों पर जूूं नहीं रेंग रही है.सभी अपनी अपनी ठपली अपना अपना राग अलापने में लगे हुए हैं.

मोहसिन खान के एक्टिंग करियर के 6 साल पूरे, ‘नायरा’ के ‘कार्तिक’ ने ऐसे मनाया जश्न

टीवी के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Ye Rishta Kya Kehlata Hai) की शूटिंग दोबारा शुरू होने का इंतजार फैंस बेसब्री से कर रहे हैं. इसी बीच फैंस का दिल जीतने वाले कार्तिक यानी मोहसिन खान (Mohsin Khan) को इंडस्ट्री में 6 साल पूरे हो गए हैं. हाल ही में टीवी की दुनिया में पौपुलर एक्टर्स में से एक मोहसिन खान नें 6 साल के अपने करियर का जश्न  अपने फैंस के साथ मनाया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर शेयर की. आइए आपको दिखाते हैं मोहसिन (Mohsin Khan) के फैंस के साथ औनलाइन सेलिब्रेशन की खास फोटोज…

फैंस के साथ मिलकर मोहसिन खान ने मनाया जश्न

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इंडस्ट्री में 6 साल पूरे होने की खुशी का जश्न मोहसिन खान (Mohsin Khan) ने अपने खास फैंस के साथ मनाते हुए लाइव चैट के जरिए अपने फैंस से बात की. वहीं सोशल मीडिया पर पूरे दिन फैंस मोहसिन खान (Mohsin Khan) की फोटोज का कोलाज बनाकर शेयर करते रहे.

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मोहसिन खान के खास दोस्त ने भेजा ये तोहफा

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सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के कोरियोग्राफर हिमांशु गडानी ने भी मोहसिन खान (Mohsin Khan) के नाम एक खास तोहफा भेजा. इसी बीच अपने फैंस और दोस्तों का प्यार देखकर मोहसिन खान (Mohsin Khan) खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

फैंस ने मोहसिन खान को भेजे कई कार्ड

 

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6 साल पूरे होते ही मोहसिन खान (Mohsin Khan) के फैंस ने उन्हें ढेर सारे खूबसूरत कार्ड्स भी भेजे. इसी के साथ मोहसिन खान ने अपनी मम्मी पापा की एनिवर्सरी भी मनाते हुए नजर आए.

सोशलमीडिया पर फैंस करते हैं वीडियो शेयर

‘लव बाय चांस’ से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले मोहसिन खान (Mohsin Khan) की शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) संग वीडियो अक्सर सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं.

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बता दें, सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की शूटिंग जल्द शुरू होने वाली है, जिसके चलते स्टार्स का अपने लुक और स्टोरी पर काम करना शुरू कर दिया है. वहीं अब देखना है कि लौकडाउन के बाद शो के ट्रैक में क्या क्या बदलाव आएंगे.

सुशांत की औनस्क्रीन बहन को फिर आई उनकी याद, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

 बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बात सोशलमीडिया पर फैंस ने नेपोटिज्म पर बौलीवुड स्टार्स को घेरना शुरू कर दिया है, जिस पर स्टार्स भी अपने रिएक्शन दे रहे हैं. इसी बीच बायोपिक फिल्म एम एस धोनी में सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की बहन का रोल निभा चुकीं एक्ट्रेस भूमिका चावला को भी उनकी जाना खल रहा है. हाल ही में भूमिका चावला ने सुशांत की फोटो के साथ एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया है, जिसे फैंस काफी सराहा रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं भूमिका का सुशांत के लिए इमोशनल पोस्ट…

कीचड़ उछालने की कही बात

भूमिका चावला ने सुशांत के लिए इस पोस्ट में लिखा कि, ‘डियर सुशांत, आप जहां भी है…भगवान के हाथों में हैं. आपको गए हुए आज 1 हफ्ता हो चुका है. आपके जाने की क्या वजह रही…ये वजह भी आपके साथ ही चली गई. जो लोग इससे प्रभावित हुए है मैं उनसे यहीं कहूंगी कि आप अपना ख्याल रखिए और अपने आसपास के लोगों पर भी ध्यान दीजिए. ऐसा क्यों हुआ…इसे लेकर कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. कीचड़ उछाला जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि कौन जिम्मेदार है…इंडस्ट्री ने ऐसा किया….रिलेशनशिप की वजह से ऐसा हुआ…और भी बहुत कुछ’.

 

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Dear Sushant – wherever you are – you are in the hands of God …. it’s Been a week since you have gone … What took you away —- THE SECRET HAS GONE WITH YOU — buried deep in your heart and mind …. I wish to tell all the people who are affected by this to pray and devote your time to things like —-Taking care of yourself , of the people around you … There are speculations of why it happened …. THERE IS MUD SLINGING – there is wrath – there is —“ who is to be blamed “ —— there is “ industry did it “ —- “ relationship did this” … so on and so forth …. Dear PEOPLE RESPECT A SOUL GONE … PRAY AND LOOK AHEAD ….. SPEND THAt TIME In caring for each other / CARING FOR THE NEEDS OF kids who need education : teach them in which ever way you can / PRAY for yourselves and others around you / EXERCISE —- stay positive … LETS NOT BLAMe PEOPLE —— LETS RESPECT Each other … LET THE industry find a solution within itself and not do public discussions on public domains —- Prayers for him

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लोगों को जिम्मेदार ठहराना सही नही

भूमिका ने आगे लिखा है कि, ‘कृपया जो चला गया है उसका सम्मान करिए. इस समय को सदुपयोग करिए और हर एक पल को एक-दूसरे के साथ बिताइए. अपने बच्चों को सिखाइए कि आप जहां भी जाए अपने आसपास के लोगों का ख्याल रखें. सकारात्मक रहिए. लोगों को जिम्मेदार मत ठहराइए. एक-दूसरे का सम्मान करिए. इंडस्ट्री को इसके तह तक जाने दीजिए और पब्लिक डोमेन पर इसका डिस्कशन मत करिए. उनके लिए प्रार्थना करिए.’

बता दें, सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड मामले में मुंबई पुलिस जांच-पड़ताल करने में जुटी हुई है. वहीं अब तक तकरीबन रिया चक्रवर्ती समेत 15 से भी ज्यादा लोगों के बयान दर्ज कर चुकी है. इसी के साथ कई बौलीवुड सेलेब्स भी सुशांत के सपोर्ट में खड़े हो चुके हैं, जिनमें कंगना समेत कई सेलेब्स शामिल हैं.

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जीवन की नई शुरुआत: भाग-1

अरे रे रे, कोई रोको उसे, मर जाएगा वो,” अचानक से आधी रात को शोर सुन कर सारे लोग जाग गए और जो देखा, देख कर वे भी चीख पड़े. जल्दी से उसे वहां से खींच कर नीचे उतारा गया, वरना जाने क्या अनर्थ हो गया होता.

यह तीसरी बार था, जब रघु अपनी जान देने की कोशिश कर रहा था.  लेकिन इस बार भी उसे किसी ने बचा लिया, वरना अब तक तो वह मर गया होता.

क्वारंटीन सेंटर का निरीक्षण करने पहुंचे डीएम यानी जिलाधिकारी को जब रघु की आत्महत्या करने की बात पता चली और यह भी कि वह न तो ठीक से खातापीता है और न ही किसी से बात करता है. वह खुद में ही गुमशुम रहता है. कुछ पूछने पर बस वह अपने घर जाने की बात कह रो पड़ता है, तो डीएम को भी फिक्र होने लगी कि अगर इस लड़के ने क्वारंटीन सेंटर में कुछ कर लिया तो बहुत बुरा होगा.

जिलाधिकारी ने वहां रह रहे एकांतवासियों से पूछा कि उन्हें दिया जा रहा भोजन गुणवत्तायुक्त है या नहीं? हाथ धोने के लिए साबुन, मास्क, तौलिया आदि की व्यवस्था के बारे में भी जानकारी ली, फिर वहां की देखभाल करने वाले केयर टेकर को खूब फटकार लगाई कि वह करता क्या है?एक इनसान आत्महत्या करने की क्यों कोशिश कर रहा है, उस से जानना नहीं चाहिए?

“फांसी लगाने की कोशिश कर रहे थे, पर क्यों?” उस जिलाधिकारी ने जब रघु के समीप जा कर पूछा, तो भरभरा कर उस की आंखें बरस पड़ीं.

“कोई तकलीफ है यहां? बोलो न, मरना क्यों चाहते हो? अपने परिवार के पास नहीं जाना है?”

जब जिलाधिकारी मनोज दुबे ने कहा, तो सिसकियां लेते हुए रघु कहने लगा, “जाना है साहब, कब से कह रहा हूं मुझे मेरे घर जाने दो, पर कोई मेरी सुनता ही नहीं.”

कहते हुए रघु फिर सिसकियां लेते हुए रो पड़ा, तो जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई.

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“हां, तो चले जाना, इस में कौन सी बड़ी बात है, बल्कि यहां कोई रहने नहीं आया है.  अवधि पूरी होगी, सभी को भेज दिया जाएगा अपनेअपने घर.  बताओ, और कोई बात है? यहां किसी चीज की समस्या हो रही है?”

“नहीं… लेकिन, मेरे मांबाप बूढ़े और बीमार हैं, उन्हें मेरी जरूरत है,” कहते हुए रघु का गला भर्रा गया.  लेकिन जिलाधिकारी को लग रहा था कि बात कुछ और भी है, जो रघु को खाए जा रही है.

अपने घरपरिवार से दूर क्वारंटीन सेंटर में 15-20 दिनों से रह रहे रघु पर मानसिक दबाव बढ़ने लगा था. वह रात को उठ कर यहांवहां घूमने लगता और अजीब सी हरकतें करता था. कभी वह क्वारंटीन सेंटर की ऊंची दीवार को नापता, तो कभी बड़े से लंबे दरवाजे को आंखें गड़ा कर देखता. कई बार तो वह पेड़ पर चढ़ जाता, ताकि वहां से फांद कर दीवार पार कर सके, पर कामयाब नहीं हो पाता.

रघु की इस हरकत पर उसे फटकार भी पड़ी थी.  लेकिन उस का कहना था कि उसे घर जाना है, क्योंकि अब उस के सब्र का बांध टूटने लगा है. उस ने कई बार मरने की भी धमकी दी थी कि अगर उसे उस के घर नहीं जाने दिया गया तो वह अपनी जान दे देगा. लेकिन कौन सुनने वाला था यहां उस का? सब उसे ‘पागल-बताहा’ कह कर चुप करा देते और हंसते. जैसे सच में वह कोई पागल हो.  लेकिन वह पागल नहीं था. यह बात कैसे समझाए सब को कि उसे यहां से जाना है, नहीं तो सब खत्म हो जाएगा.

जिलाधिकारी मनोज के पूछने पर रघु कहने लगा, “साहब, अच्छीखासी खुशहाल जिंदगी चल रही थी हमारी. किसी चीज की कमी नहीं थी. पर इस कोरोना ने एक झटके में सब बरबाद कर दिया साहब, कुछ नहीं बचा, कुछ नहीं, ना ही नौकरी और ना ही मेरा प्यार…”

बोलतेबोलते रघु की हिचकियां बंध गईं और वह बिलख कर रोने लगा, “साहब, हम गरीबों की तो किस्मत ही खराब है, वरना क्या दालरोटी पर भी मार पड़ जाती? अच्छीखासी जिंदगी चल रही थी हमारी.  मेहनतमजदूरी कर के खुश थे हम. लेकिन सब मटियामेट हो गया.”

अपने आंसू पोंछते हुए रघु बताने लगा कि अभी दो साल पहले ही वह अपने गांव सिवान से गुजरात आया था. वह यहां मिस्त्री का काम करता था, जिस से उस की अच्छीखासी कमाई हो जाती थी. अपने मांबाप के पास घर भी पैसे भेजता था. लेकिन अब क्या करेगा, समझ नहीं आ रहा है.

बताने लगा कि वह यहां अहमदाबाद में एक कमरे का घर ले कर रह रहा था. सोचा था कि मांबाप को भी ले आएगा, सब साथ मिल कर रहेंगे. लेकिन जिंदगी में ऐसी उथलपुथल मच जाएगी, नहीं सोचा था.

रघु हमेशा खुश रहने वाला, हंस कर बोलने वाला इनसान था और यही बात मुन्नी को, जो उस की ही बस्ती में रहती थी और वह नेपाल से थी, उस के करीब लाता था.

रघु का साथ मुन्नी को खूब भाता था. उस के पिता बड़े बाजार से थोक भाव में सब्जीफल ला कर बाजार में बेचते थे. उसी से उन के 8 परिवार का खर्चा चलता था. मुन्नी भी दोचार घरों में झाड़ूबरतन कर के कुछ पैसे कमा लेती थी. मगर रघु को मुन्नी का दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना जरा भी अच्छा नहीं लगता था. उसे जब कोई गंदी नजरों से घूरता, तो रघु की आंखों में खून उतर आता. मन करता उस का कि जान ही ले ले उस की. कितनी बार उस ने मुन्नी से कहा कि छोड़ दे वह लोगों के  घरों में काम करना. पर मुन्नी उस की बात को यह कह कर टाल दिया करती कि उसे क्यों बुरा लगता है? कौन लगती है वह उस की?

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वैसे तो मुन्नी को भी दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना अच्छा नहीं लगता था, मगर क्या करे वह भी? अब  8-8 जनों का पेट एक की कमाई से थोड़े ही भर सकता था.  कितनी बार लोगों की भेदती नजरों का वह निशाना बनी है. जिन घरों में वह काम करती है, वहां के मर्द ही उस पर गंदी नजर रखते हैं.

कहते तो बेटीबहन समान है, पर गलत इरादों से यहांवहां छूछाप कर देते हैं. देखने की कोशिश करते हैं कि लड़की कैसी है? लेकिन मुन्नी उस टाइप की लड़की थी ही नहीं. वह तो अपने काम से मतलब रखती थी. गरीबों के पास एक इज्जत ही तो होती है, वही चली जाए तो मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है. कुछ बोल भी नहीं सकती थी, अगर आवाज उठती तो उलटे मुंह गिरती. सो बच कर रहने में ही अपनी भलाई समझती थी.

गलती मुन्नी के मांबाप की भी कम नहीं थी. एक बेटे की खातिर पहले तो धड़ाधड़ 5 बेटियां पैदा कर लीं और अब उसी बेटी को दूसरेतीसरे घरों में काम करने भेजने लगे, ताकि पैसे की कमाई होती रहे.

चूंकि मुन्नी घर में सब से बड़ी थी, इसलिए छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी भी उस के ऊपर ही थी. बेचारी दिनभर चक्करघिन्नी की तरह पिसती रहती, फिर भी मां से गालियां पड़तीं कि ‘करमजली कहां गुलछर्रे उड़ाती फिरती है पूरे दिन.’

इधर मुन्नी को देखदेख कर रघु का कलेजा दुखता रहता, क्योंकि प्यार जो करने लगा था वह उस से. अपने काम से वापस आ कर हर रोज वह घर के बाहर खटिया लगा कर बैठ जाता और मुन्नी को निहारता रहता था. लेकिन आज कहीं भी उसे मुन्नी नहीं दिख रही थी, सो हैरानपरेशान सा वह इधरउधर देख ही रहा था कि उस के सिर पर आ कर कुछ गिरा. देखा, तो पेड़ पर चढ़ी मुन्नी उस के सिर पर पत्ता तोड़तोड़ कर फेंक रही थी.

“ओय मुन्नी… तू ने फेंका?” रघु लपका.

“नहीं तो… फेंका होगा किसी ने,” एक पत्ता मुंह में दबाते हुए शरारती अंदाज में मुन्नी बोली.

“देख, झूठ मत बोल, मुझे पता है कि तुम ने ही फेंका है.”

“अच्छा… और क्याक्या पता है तुझे?” कह कर वह पेड़ से नीचे कूद कर भागने लगी कि रघु ने झपट कर उस का हाथ पकड़ लिया.

“छोड़ रघु, कोई देख लेगा,” अपना हाथ रघु की पकड़ से छुड़ाते हुए मुन्नी बोली.

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“नहीं छोडूंगा. पहले ये बता, तू ने मेरे सिर पर पत्ता क्यों फेंका?” आज रघु को भी शरारत सूझी थी.

“हां, फेंका तो… क्या कर लेगा?” अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए मुन्नी बोली और दौड़ कर अपने घर भाग गई.

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अमित शाह की तर्ज वाला नेपाल का नया नागरिकता कानून, भारत की बेटियों के लिए मुसीबत

लेखक- संजय रोकड़े 

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाखंड की नीतियों को अमलीजामा पहनाने के लिए जिस तरह से आक्रामक होकर अपने कानून बदलें अंजाम उनका असर दूसरे देशों पर भारत के खिलाफ जाता लिखने लगा है.

भारत का हर बड़ा शहर, पिछले दिसंबर में नरेन्द्र मोदी सरकार की उस नागरिकता कानून का विरोध कर रहा था जो उपर से तो लगा रहा था कि सबको नागरिकता देने का कानून है लेकिन इसके पीछे विदेशी हिंदूओं को रियायत देकर भारत में बसाने की रणनीति काम कर रही थी जो आरएसएस की नीति का एक हिस्सा थी. इससे बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी नाराज से हुए क्योंकि उन पर कानून से माइनौरिटीज को तंग करने का आरोप लगा दिया गया.

इस नागरिकता कानून का उलटा असर हमारे पड़ोसी हिंदू राष्ट्र नेपाल में भारतीय बेटियों पर मुसीबत के रूप में सामने आ रहा है. हमारे पीएम ने जिस तरह से हिंदू-हिंदूत्व और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को एक उकसावे के रूप में बढ़ावा दिया था अब उसके परिणाम हमारे ही गैर भारतीय लोगों की मुसीबत के रूप में आने लगे है.

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नेपाल ने भी अब नागरिकता कानून में बदलाव किया है. नेपाल के गृहमंत्री राम बहादुर थापा ने साफ कहा कि बदलाव विशेष कर भारतीयों द्वारा नेपाल की नागरिकता पाने के संदर्भ में किया गया है.  उन्होंने भारतीय कानून का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह से भारत में किसी विदेशी नागरिकता वाले व्यक्ति को किसी भारतीय से शादी करने के सात साल बाद ही नागरिकता दी जाती है उसी तरह से नेपाल में भी किया जा रहा है.

नेपाली पुरुष से शादी करने वाली विदेशी महिला को सात साल बाद अपनी पुरानी नागरिकता त्यागने का प्रमाण या उससे जुड़ा प्रमाण दिखाने के बाद ही नेपाली नागरिकता दी जाएगी.  यह कानून भारत सहित सभी विदेशी महिलाओं पर लागू होगा.

इस बदलाव ने भारतीय बेटियों के लिए एक नई औैर बढ़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. इस कानून में बदलाव के चलते भारतीय बेटियों की नागरिकता पर असर यह होगा कि जब भी कोई भारतीय बेटी नेपाली युवक से शादी कर बहू बन कर नेपाल जाएगी तो उसे वहां लगातार 7 साल रहने के बाद ही नेपाल की नागरिकता मिलेगी.

आम चर्चाएं है कि पड़ोसी राष्ट्रों में इस तरह के कानून मोदी सरकार की एकपक्षीय व हठधर्मिता से भरी नीतियों के चलते सामने आ रहे है. मोदी सरकार ने जिस तरह से देश में अपने राजकाज में मनमर्जियों को तरजीह दी है ठीक उसी तरह से वह इस नीति को अपने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ भी प्रयोग करना चाह रही थी लेकिन पासा उलटा पड़ गया है. जिसे कमजोर समझ कर डराने की कोशिश की जाने लगी थी अब वही हावी होने लग गया.

हमारे सुलझे हुए बड़े-बड़े भाजपा नेताओं व मंत्रियों के बड़बोलेपन ने भी  पड़ोसी देश से संबंध खराब करने में खासी भूमिका निभाई. दरअसल होना यह चाहिए था कि मोदी सरकार के मंत्रियों को एक सफल कुटनीतिज्ञ की तरह बयान देकर स्थिति को कंट्रोल में लानी चाहिए थी पर हुआ इसके ठीक उलट. इसी बीच मंत्री धमकी भरे अंदाज में किसी बयानवीर की तरह चैलेंज करते दिखाई दिए.

अब राजनाथ सिंह को ही ले लें. ये बहुत पुराने और सुलझे हुए नेता की श्रेणी में आते है. इनकी इसी समझदारी के चलते अबकि बार इन्हें अहम माने जाने वाले जैसा रक्षा मंत्रालय सौपा गया है. लेकिन नेपाल के मसले पर इनने भी किसी ठस ठाकुर की तरह रोबिले अंदाज में बयानबाजी कर कह दिया कि नेपाल का भारत के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता दुनिया की कोई ताकत नहीं तोड़ सकती है. जिस अंदाज और लहजे में राजनाथसिंह का बयान सामने आया उसने नेपाल को उकसाने का ही काम किया. अब नेपाल के इस कदम के बाद लग रहा है कि भारत-नेपाल का रोटी-बेटी का ये रिश्ता कमजोर पडऩे लगेगा. भारतीय बेटी और थाईलैंड की औरत अब बराबर हो गई हैं. खास स्टेटस खत्म.

यह बात स्पष्ट है कि नेपाल के साथ भारत का विवाद चल रहा है. जिस तरह की परिस्थिति चल रही है उसको देखते हुए ही कोई भी बयानबाजी कुटनीतिक स्तर पर होनी चाहिए थी न कि किसी प्रकार के उकसावे वाली. सनद रहे कि इस कानून के पूर्व नेपाल ने भारत की आपत्ति को दरकिनार करते हुए नया नक्शा पारित कर दिश था क्योंकि भारत ने संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद मनमर्जी नक्शा भी तो जारी कर दिया था.

नेपाल ने तीन दिन पहले ही विवादित नक्शे को कानूनी अमलीजामा पहनाया था. नेपाली संसद के उच्च सदन से संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने हस्ताक्षर कर इसे संविधान का हिस्सा घोषित कर दिया. बता दें कि इस नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में दिखाया है जबकि भारत इन पर अपना दावा करते रहा है.

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल के साथ असफल कूटनीति का ही परिणाम है कि नेपाल की सत्ता में बैठे वामपंथी दल ने चीन से नजदिकीयां बढ़ा ली. नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है. वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी वामपंथी हैं और नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे. इस समय उनको नेपाल के तमाम वामपंथी नेताओं का एक तरफा समर्थन हासिल है. केपी शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए भी जाने जाते हैं लेकिन मोदी इस पर कुछ ध्यान नही दे पाए और स्थिति आज सबके सामने है.

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बता दे कि बीते 12 जून को भारत-नेपाल सीमा पर तैनात नेपाल के सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक 22 साल के एक भारतीय युवक की मौत भी हो चुकी है, जबकि 3 गंभीर घायल हो गए थे. इसके पूर्व वर्ष 2015 में भारत के नाकेबंदी के बाद भी केपी शर्मा ने नेपाली संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए चीन के साथ दोस्ती बढ़ा कर एक डील कर ली. इसके तहत चीन ने अपने पोर्ट को इस्तेमाल करने की इजाजत नेपाल को दे दी.

नेपाल हमें कूटनीतिक रूप से परास्त करते जा रहा है और हमारे प्रधानमंत्री और उनके मंत्री गलत बयानबाजी से उठ कर कुछ कर नही पा रहे हैं.

चैटिंग के जरिए चीटिंग के 12 संकेत

 अगर आप का साथी लगातार फोन पर है, कभी कोने में, कभी दूसरे कमरे में जा कर चैटिंग करने लगता है, भले आप को उस पर कितना ही विश्वास हो, आप को उस की कुछ हरकतें तो खटक ही जाती हैं, आप को अलर्ट हो भी जाना चाहिए अगर इन में से कुछ बातों पर आप का ध्यान जाए.

वह अपने फोन से कौल्स और मैसेज डिलीट तो नहीं करता रहता? उस का फोन नए जैसा तो नहीं, न कोई मैसेज, न कौल की डिटेल्स, ये सब डिलीट करना चीटिंग का पावरफुल साइन है.

1. अकसर चीटिंग करने वाले पुरुष अपने अफेयर्स के नाम या नंबर को अलग तरह से रखते हैं.

2. क्या आप का साथी फोन पर बात करते हुए या चैटिंग करते हुए आप से एक दूरी तो नहीं रख रहा होता, आप उस की पार्टनर हैं, फैमिली या काम, किसी की भी बात आप से छिपाने की उसे जरूरत नहीं होने चाहिए.

3. आप से छिपाने का एक अच्छा रीजन भी हो सकता है, हो सकता है आप का साथी आप के लिए ही कोई सरप्राइज प्लान कर रहा हो, उस पर शक करने से पहले यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि सच में क्या चल रहा है.

4. मौडर्न टैक्नोलौजी के दौर में किसी अफेयर में रुचि रखने वाले इंसान को घर से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं, चैटिंग, औनलाइन डेटिंग लिंक्स, सीक्रैट एड्रैसेस ने इमोशनल अफेयर्स में बढ़ावा किया है. यदि आप का साथी बहुत ज्यादा औनलाइन रहता है, थोड़ा अलर्ट हो जाएं.

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5. यदि आप का साथी औफिस से आ कर आप के साथ एक कप चाय पीने का भी टाइम न निकाले और फौरन चैटिंग में बिजी हो जाए, आप को इस पर बात जरूर करनी चाहिए.

6. सरप्राइजिंग सीक्रैसी एक चिंता का विषय हो सकती है, अगर इस से पहले रिश्ता ईमानदार और खुला रहा हो.

7. यदि आप का पार्टनर फोन बजते ही या कोई मैसेज आते ही अलर्ट हो कर दूसरे रूम में जाए, आप के न होने पर ही फोन चैक करे, तो कुछ तो है जो ठीक नहीं है. किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए ईमानदारी सब से महत्वपूर्ण है, उस से सच पता करने से पहले सारे पौइंट्स पर गौर कर लें.

8. जब उस का फोन आप के हाथ में है, देखें, वह नर्वस तो नहीं. यह नर्वस होना दिखाता है कि कुछ ठीक नहीं है. किसी के पास अगर कुछ छिपाने के लिए नहीं होगा, तो वह नर्वस नहीं होगा.

9.  यदि आप स्वभाव से जेलस नहीं हैं, पर आप को उस का कोने में जा कर चैटिंग करना खटक रहा है, ता उस से खुल कर बात करें, सब को प्राइवेसी का हक है पर कुछ छिपाना नजर आ रहा हो तो जरूर पूछें.

10. आजकल सभी अपनेआप फोन को अलगअलग तरीकों से पासवर्ड डाल कर प्रोटैक्ट करते हैं, अपने फोन में, औनलाइन नेटवर्क में, ईमेल्स में पासवर्ड रखना नार्मल है, एकदूसरे को पासवर्ड न बताना भी ओके है, पर यदि अगर आप उस के और वह आप के सब कोड्स अब तक जानते थे और अचानक वह सब बदल दे और आप को बताना न चाहे तो यह चीटिंग का साइन हो सकता है.

11. यदि आप का पति अपना फोन हमेशा अपने साथ रखे, यहां तक कि वाशरूम में भी साथ ले कर जाए, जहां इस की बिलकुल भी जरूरत नहीं, अलर्ट हो जाएं.

12. मोबाइल की ऐक्टिविटीज पर ध्यान देना ज्यादा आसान है, ध्यान दें कि जब वह फोन पर है तो क्या उस का स्वभाव बदल जाता है, क्या वह आप के सोने के बाद भी बहुत देर तक मैसेज या चैटिंग में व्यस्त रहता है, याद रखें, हर अफेयर शारीरिक नहीं होता, कभीकभी औनलाइन बातचीत या फोन की ऐक्टिविटीज इमोशनल चीटिंग हो सकती है.

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न्यू यौर्क के क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक जैसन व्हीलर का कहना है, ‘‘दूसरे ऐडिक्शंन की तरह फोन का ज्यादा यूज होते किसी को दोषी न मानें, फोन का ज्यादा प्रयोग आप के रिश्तों की बड़ी प्रौब्लम्स से बचने के लिए भी हो सकता है, इस तरह का व्यवहार और बड़ी प्रौब्लम्स से बचने के लिए भी हो सकता है, पर यह एक बुरी आदत है, इस से बचने के लिए और उपाय किए जा सकते हैं,’’ आप इस बात को अपने पार्टनर से बिना उस की इंसल्ट किए भी बता सकते हैं जैसे ‘‘मुझे बहुत बुरा लगता है, जब तुम्हारा ध्यान मुझ पर नहीं जाता, फोन पर ही रहता है.’’ यह ट्रिक काम करती है. आप उस पर कोई आरोप भी नहीं लगा रहे हैं, अपनी फीलिंग्स शेयर कर रहे हैं, तो प्रौब्लम फोन पर रहने से ज्यादा बड़ी है.

हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां फोन होना हमारे जीवन की एक बहुत बड़ी जरूरत हो गई है, हमारी काम की चीजें, पासवर्ड्स और भी बहुत कुछ इस छोटी सी चीज में समाया है, हम जहां चाहें, यह जानकारी भरा साधन अपने साथ ले जा सकते हैं, अपने पार्टनर को फोन फ्री होने में हैल्प करें.

शिष्टाचार विशेषज्ञ डेन्ना होम्स के अनुसार एक ऐडिक्ट को यह समझने में कुछ टाइम लग सकता है कि लाइफ हर समय वाईफाई के बिना भी जी जा सकती है. व्हीलर की सलाह है कि अपने पार्टनर को रात को फोन पहुंच से बाहर रखने के लिए कहें, टाइम सैट कर लें कि किस टाइम आप दोनों फोन से दूर रहेंगे, कुछ नियम बनाएं, खाना खाते हुए फोन न देखे जाएं, होम्स के अनुसार बैडरूम में फोन होना रिलेशनशिप किलर का काम करता है, हमें तुरंत रिजल्ट्स की आशा भी नहीं रखनी चाहिए. धीरेधीरे अपने पार्टनर की इस आदत को छोड़ने में हैल्प करें, यदि आप के कहने पर हर बार लड़ाई होने लगे तो मामला गंभीर है, सफल रिश्ते के लिए फिजिकल कौंटैक्ट, आई कौंटैक्ट, बातचीत और समझने जरूरी होते हैं, यदि पार्टनर इन सब में से किसी चीज की कोशिश नहीं कर रहा है तो इसे चिंता की बात समझें.

शादी के बाद Kamya Punjabi का बदला लुक, आप भी कर सकती हैं ट्राय

शक्ति अस्तित्व के एहसास (Shakti- Astitva Ke Ehsaas Ki) की एक्ट्रेस काम्या पंजाबी (Kamya Punjabi) शादी के बाद अपनी लाइफ को बेहद खूबसूरती से जी रही हैं. हाल ही में काम्या (Kamya Punjabi) अपने सीरियल की शूटिंग के लिए गुरूग्राम से मुंबई पहुंच गई हैं. वहीं उन्होंने लौकडाउन और कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच शूटिंग को लेकर कहा है कि हर मिडिल क्लास फैमिली घर पर बैठकर काम करना अफोर्ड नहीं कर सकती. हर किसी को काम के लिए घर से बाहर आना पड़ेगा, जिसके चलते मैं भी दूसरों के लिए अपने घर से बाहर आई हूं.

मैरिड लाइफ की बात करें तो काम्या पंजाबी (Kamya Punjabi) शादी के बाद बेहद खूबसूरती से अपने लुक को संवारते हुए नजर आती हैं औऱ फैंस के लिए अपने लुक की फोटोज शेयर करती है. आज हम आपको काम्या पंजाबी के कुछ लुक बताएंगे, जिसे आप शादी के बाद अपने फैमिली फंक्शन या किसी पार्टी में ट्राय कर सकती हैं.

1. शरारा लुक है परफेक्ट

अगर आप किसी फैमिली फंक्शन में कुछ नया और ट्रैंडी ट्राय करने का सोच रही हैं तो काम्या पंजाबी का ब्लैक औऱ गोल्डन कौम्बिनेशन वाला शरारा लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये सिंपल के साथ-साथ ट्रैंडी भी है.

 

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Beautiful outfit on a beautiful day 😍 Eid Mubarak Sabko 🤗 @anusoru

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2. कलरफुल लहंगा है परफेक्ट

 

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💃🏻

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अगर आपकी हाल ही में शादी हुई है और आप अपने लुक को कलरफुल दिखाना चाहती हैं तो काम्या पंजाबी का ये मल्टी कलर लहंगा और चोली ट्राय करें ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

3. पीला सूट करें ट्राय

शादी के बाद सिंपल और कूल लुक रखना चाहती हैं तो काम्या पंजाबी का पीला कलर का अनारकली सूट आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

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4. सिंपल साड़ी लुक है परफेक्ट

 

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Wishing everyone a Very happy Diwali 😊

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गरमी में अगर आप किसी फंक्शन में सिंपल लुक के साथ हैवी ज्वैलरी कौम्बिनेशन ट्राय करना चाहती हैं को काम्या पंजाबी की तरह प्लेन गोल्डन साड़ी के साथ हैवी नेकपीस आपके लुक के लिए परफेक्ट है.

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