प्रिया ने पता नहीं क्या समझा और फिर मेरे गले लग कर बोली, ‘‘डोंट वरी मां आप के सपने को आप की बेटी पूरा करेगी,’’ फिर अपने भाई का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सुन नालायक मैं अब डाक्टर नहीं बनूंगी तू बनेगा और पापा का हौस्पिटल संभालेगा. मैं तो अपनी मम्मा का सपना पूरा करूंगी.’’
उस दिन के बाद से वह जैसे नए जोश में भर गई. तुरंत विज्ञान विषय को बदल कर हिस्ट्री, इंग्लिश और इकौनोमिक्स ले लिया. मेरा मार्गदर्शन तो था ही. जल्दी ही वह दिन आ गया जब एमए करने के बाद उस ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में कुछ कम नंबर आने पर दोबारा परीक्षा में बैठी. इस बार शुरू के 50 लोगों में नंबर था. मसूरी से ट्रेनिंग करने के बाद उस की रायपुर में ही अतिरिक्त कलैक्टर के पद पर प्रशिक्षु के रूप में नियुक्ति हो गई. उस के बैच के 6 और लड़के थे. उन को हम ने खाने पर बुलाया. सभी बहुत खुशमिजाज थे. खाना खाने के बाद भी बड़ी देर बातचीत चलती रही. मैं ने महसूस किया कि उन में से एक की नजर प्रिया पर ही थी. प्रिया भी उस को अलग नजर से देख रही थी. पूछताछ करने पर पता चला कि वह गुजरात का रहने वाला था. उस के पापा आर्मी में थे. उस का नाम शरद था. मैं लड़की की मां की तरह सोच रही थी कि लड़का अच्छा है. बराबर के पद पर है और सब से बड़ी बात कि प्रिया को पसंद भी कर रहा है. प्रिया भी शायद उसे पसंद करती है. मैं ने इन से बात करनी चाही पर इन्होंने मुझे मीठी झिड़की दी कि अरे कुछ तो सोच बदलो. आजकल का जमाना नया है. लड़केलड़की बराबरी से हंसीमजाक करते हैं. जरूरी नहीं कि वे आपस में प्यार करते हों. मुझे गुस्सा आ गया और मैं करवट बदल कर सो गई. पर मेरा अंदाजा कितना सही था, यह मुझे दूसरे दिन पता लग गया. शाम को जब प्रिया औफिस से आई तब कार में उस के साथ शरद भी था. मैं ने तुरंत चायनाश्ता लगवाया. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने देखा दोनों एकदूसरे को कुछ इशारे कर रहे हैं. मुझे भी हंसी आने लगी. मैं जानबूझ कर औफिस और राजनीति की बातें करती रही.
आखिर प्रिया ने कहा, ‘‘मां, शरद को आप से कुछ कहना है.’’
मेरे कान खड़े हो गए. जब कोई बात मनवानी होती थी तब दोनों बच्चे मुझे मां कहते थे. अत: मैं ने कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा क्या बात है?’’
शरद ने धीरेधीरे पर बड़े विश्वास से मुझे अपने और परिवार के बारे में बताया. उस के पापा आर्मी में ब्रिगेडियर थे. वह अकेला लड़का था. प्रिया उस को पसंद थी. मसूरी में ही उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उस के मातापिता को शादी पर कोई ऐतराज नहीं. प्रिया को मेरी मंजूरी चाहिए थी.
मुझे इस शादी पर तो कोई ऐतराज था ही नहीं और मैं तो कल रात से ही सपने देख रही थी पर मुझे एहसास हुआ कि शरद को सच बता देना चाहिए. कुछ सोचने के बाद मैं ने कहा कि मैं उस से अकेले में बात करना चाहती हूं. यह सुन कर प्रिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मी जरूर तुम्हें अपनी लड़की का पीछा छोड़ने के लिए पैसे देने वाली हैं. तुम फिल्मी हीरो की तरह पैसे ठुकरा मत देना. अच्छीखासी रकम मांग लेना. फिर हम दोनों खूब शौपिंग करेंगे.’’
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मैं ने उस के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसे वहीं रुकने की बोल शरद को अपने कमरे में ले गई. कमरा बंद कर मैं ने अपनी अलमारी से वे बरसों पुराने कोर्ट के कागज निकाल कर उसे दिखाए और बताया कि प्रिया हमारी अपनी बच्ची नहीं, गोद ली हुई है, पर वह है इसी घर की बच्ची. संक्षेप में उसे प्रिया की कहानी बताई.
अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम इस बात को भूल चुके हैं, पर तुम उसे जीवनसाथी बना रहे हो तो इस के लिए यह जरूरी है कि तुम सच जान लो. अब तुम्हारा जो फैसला हो बता दो,’’ कह कर मैं आंखें बंद कर बैठ गई. दिल धकधक कर रहा था कि पता नहीं मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी का बुरा तो नहीं कर दिया.
थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि शरद मेरे आंसू पोंछ रहा है. शरद ने सारे कागज वापस अलमारी में रखे और मेरे हाथों को अपने माथे से लगाते हुए बोला, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर मैं इस घर से रिश्ता जोड़ कर रहूंगा.’’
बस इस के बाद शरद के मम्मीपापा आए. बड़े ही अच्छे माहौल में सारी बातें तय हुईं और सगाई तय कर दी. प्रियंक भी अमेरिका से अपनी एमएस की पढ़ाई पूरी कर वापस आ गया. शहर के बड़े होटल में हम ने प्रिया की सगाई रखी. पापा के बहुत पुराने दोस्त आर्मी से रिटायर हो कर गवर्नर बन गए थे. पापा ने उन्हें भी बुलाया. वे सहर्ष आए. शहर के कुछ प्रमुख लोग, कुछ परिचित और प्रिया और शरद के औफिस के अधिकारी सब मिला कर करीब सौ मेहमान हो गए थे. गवर्नर साहब के आने से फोटोग्राफर्स ने तो बस मौका ही नहीं छोड़ा. हजारों फोटो ले डाले और उन्हीं में से एक फोटो समाचारपत्रों में छपा था, जिसे मैं उस दिन देख रही थी. तभी वह फोन आया था.
मैं वापस वर्तमान में लौट आई. पता नहीं क्याक्या हुआ होगा. प्रिया को सब पता लग गया क्या? क्या वह मुझ से नाराज हो गई? यदि नहीं तो वह यहां क्यों नहीं दिख रही? मुझे कुछ हो और प्रिया पास न हो ऐसा कभी हो सकता है?
तभी रूम की घड़ी ने सुबह के 6 बजाए. बेटा झटके से उठा और मेरी तरफ बढ़ा. मुझे आंखें खोले देख खुशी से चिल्ला पड़ा, ‘‘ओह मां, आप जाग गईं. पता है तुम्हारी बेटी ने तो मेरा 4 दिन से जीना मुश्किल कर दिया था. कल रात जब मैं ने बोला कि अब मां ठीक हैं सुबह तक ठीक हो जाएंगी तब पापा को घर ले जाने के बहाने उसे घर भेज पाया हूं. दोनों बोल गए थे चाहे कितनी रात को तुम्हें होश आए उन्हें जरूर बुला लूं,’’ फिर दरवाजे की तरफ देख कर बोला, ‘‘लो, आप के देवदास और आप की चमची दोनों हाजिर हैं. बिना बुलाए सुबह 6 बजे आ धमके.’’
मैं ने भी दरवाजे की तरफ देखा. प्रियांशु और प्रिया भागे चले आ रहे थे. दोनों आ कर बैड की एक तरफ खड़े हो गए. प्रिया तो मेरे गले लग कर रोने ही लगी, ‘‘क्या मां, आप ने तो डरा ही दिया. मेरी शादी का इतना दुख है, तो मैं नहीं करती शादी.’’
मेरा बेटा फौरन बोला, ‘‘अरे, जाओ, मम्मी तो खुशी बरदाश्त नहीं कर पाईं… और अटैक तो मुझे आना था खुशी का कि अब कम से कम घर पर मेरा राज होगा.’’
प्रिया ने तुरंत उस का कान पकड़ा, ‘‘बड़ा आया… विदेश से क्या पढ़ कर आया है. 4 दिन लगा दिए मम्मी को ठीक करने में… पहले डाक्टरी तो ठीक से कर, फिर घर पर राज करना.’’
दोनों की नोकझोंक सुन कर मैं निहाल हुई जा रही थी. प्रिया पहले की तरह ही थी. लगता है वह नहीं आया होगा. मैं ने चैन की सांस ली.
1 सप्ताह बाद मैं अपने घर की राह पर थी. कार में प्रियांशु और शरद आगे बैठे थे. प्रिया मुझे संभाले पीछे थी. अचानक प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे पता है आप को किस बात का सदमा लगा. वह आदमी आया था जिस के कारण आप हौस्पिटल पहुंची.’’
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मैं ने चौंक कर उसे देखा. तभी प्रियांशु ने बात संभाली और बोला, ‘‘हां पारुल वह आया था. मुझे तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं पर अच्छा हुआ तुम ने शरद को सब बता दिया था. उस ने ही प्रिया को तुम्हारे कमरे में ले जा कर कोर्ट के सारे कागज दिखाए और फिर बाकी कहानी मैं ने प्रिया को बताई. इन दोनों ने उस का वह हाल किया कि मजा आ गया. मेरी बहन और पापा के मन को भी शांति मिल गई होगी.’’
सारी बात जानने को उत्सुक हो गई तब इन लोगों ने बताया कि प्रिया ने उसे बहुत खरीखोटी सुनाई. उस के बेटे निकम्मे निकले. सारी संपत्ति पहले ही खो चुका था, इसलिए सोचा होगा कि तुम्हें डरा कर कुछ पैसे ऐंठ लेगा, पर तुम तो उस का फोन सुनते ही बेहोश हो गईं. वह जब घर आया तब तुम हौस्पिटल में थीं. उस ने यह नहीं सोचा था कि उस का सामना प्रिया से ही हो जाएगा. वह अपनी बेटी के आधार पर भरणपोषण का दावा करने की सोच रहा था पर प्रिया ने सारे कागज उस के सामने लहरा दिए और धमकी भी दे डाली कि यह सोच कर आए थे कि मेरे मम्मीपापा से पैसे वसूल करोगे? तुम हो कौन? मेरी मां से तो तुम्हारा कोई संबंध ही नहीं, यह तो तुम कई बरस पहले कोर्ट में बता चुके हो. मैं तुम्हारी बेटी नहीं. फिर कैसे मुझ से भरणपोषण मांगने का केस करोगे और केस तो अब मैं करूंगी… मेरे परिवार को तुम ने नुकसान पहुंचाया है. मेरी मां तुम्हारे कारण हौस्पिटल में हैं. अब जाते हो या पुलिस को बुलाऊं?’’ और फिर तुरंत एसपी साहब को फोन भी कर दिया कि एक आदमी धमकी देने आया है. अब वह इस शहर में दिखना नहीं चाहिए. तुरंत पुलिस आ गई और उसे यह कह कर चले जाने को कहा कि दोबारा इस शहर में पैर रखा तो सीधे जेल में दिखोगे.
प्रिया ने मेरे गले लगते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी इतनी कमजोर नहीं मां और न हमारा रिश्ता इतना कमजोर है जो किसी के कुछ कहने से खत्म हो जाए, फिर आप क्यों दिल से लगा कर बैठ गईं उस की धमकी को? उस की तो शक्ल देखने लायक थी… अब पता चलेगा बच्चू को. सुना है भूखे मरने की नौबत आ गई है उस की.’’
मैं ने राहत की सांस ले कर प्रिया को गले लगा लिया. घर आ गया था, पर फिर मेरा भावुक मन यह सोच कर परेशान हो गया कि आखिर है तो प्रिया का पिता ही… भूखों मर रहा है यह तो ठीक नहीं…
प्रिया ने जैसे मेरे मन की बात जान ली. बोली, ‘‘आप चिंता न करो मां. मैं ने और शरद ने मेरठ के कलैक्टर से बात कर के उसे वृद्धाश्रम भेजने का प्रबंध कर लिया है. जब तक जीवित है निराश्रित पैंशन भी उसे मिलती रहेगी. वह भूखा नहीं मरेगा.’’
मैं ने जब नजर भर कर उसे देखा तो मेरे गले लग कर बोली, ‘‘मुझे धरती पर लाने का एहसान तो किया था उस ने वरना इतनी प्यारी मां कैसे मिलतीं, इसलिए वह कर्ज चुका दिया. अब और इस से ज्यादा की आशा मत रखना कि मैं कभी उस से मिलने जाऊंगी या और कुछ करूंगी.’’
मैं ने हंस कर अपनी बेटी को गले लगा लिया. हमारा रिश्ता कागज से बना था पर खून के रिश्ते से ज्यादा गहरा और प्यारा था. मैं ने अपनी प्यारी बिटिया को गले लगाए घर में प्रवेश किया.