तनाव के कोरोना से जूझती कामकाजी महिलाएं

विश्व में जब भी कोई आपदा या महामारी आती है, तो लोग उससे जूझते हैं, लड़ते हैं और फिर उससे पार पाकर बाहर आते हैं.  पर उसका दुष्प्रभाव सदियों तक रहता है, खासकर मनुष्य के शरीर पर और उससे ज्यादा मन पर.

ठीक वैसे ही जैसे आज हम कोरोना से लड़ रहे हैं. कल को इस महामारी की वैक्सीन बनने और उचित स्वास्थ विज्ञान के होने से हम निश्चित ही इस पर विजय प्राप्त कर लेंगे, पर इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से हम कब और कैसे उबरेंगे, यह कह पाना फिलहाल तो बहुत ही कठिन है.

जहां आज इस वैश्विक बीमारी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है, वहीं मौत का आंकड़ा भी कम नहीं है. एक और जहां इससे पुरुष, स्त्रियां, बच्चे सभी प्रभावित हो रहे हैं, पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव महिलाओं पर खासकर नौकरीपेशा महिलाओं पर अलग ही तरीके से पड़ रहा है. एकदम अदृश्य कोरोना वायरस की तरह.

यह डर बेवजह नहीं है. यूएन वीमेन एशिया पैसिफिक का मानना है कि आपदाएं हमेशा जेंडर इनइक्वालिटी को और भी खराब कर देती हैं. एक महिला के लिए तो यह एक दोहरी नहीं, बल्कि तिहरी जिम्मेदारी सी आई है. घर की जिम्मेदारियां, ऑफिस की जिम्मेदारीयां, और अब कोविड 19 संग आईं नई जिम्मेदारियों के संग तालमेल बिठाना अपने आप में जैसे एक सुपर स्पेशिएलिटी ही है.

स्कूलबंदी का तनाव

एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में सिर्फ प्राथमिक कक्षाओं में जाने लायक 5.88 करोड़ लड़कियां और 6.37 करोड़ लड़के हैं. लगभग हर घर में स्कूल जाते बच्चों के अनुसार ही घर के कामों की रूटीन बैठाई जाती है.अचानक ही कोरोना के कारण हुए इस स्कूलबंदी ने सामंजस्य घटक का कार्य किया है.

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अब सोचिए कि उन महिलाओं का क्या जिन्होंने बच्चों के स्कूल के हिसाब से घर के कार्यो को सेट किआ था? अब वही बच्चे न तो स्कूल ही जा पा रहे हैं, न ही कोचिंग, खेल के मैदान और पार्क की तो बात ही छोड़ दो. यहां तक कि बच्चो की संख्या अगर 2 या 2 से अधिक है तो घर को अखाड़ा बनते भी देर नही लगती. यह सिरदर्दी उन घरों में और ज्यादा बढ़ गई है जहां महिलाएं नौकरीपेशा हैं. नौकरी के साथ साथ बच्चों का मेलोड्रामा, उनके अपने साइकोलॉजिकल ट्रॉमा, बड़े बच्चो में पढ़ाई का प्रेशर और छोटे बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज… कामकाजी महिलाओं में तनाव बढ़ाने का आसान रास्ता.

गौर करने की बात है कि एक 5 वर्षीय बच्चे की मम्मी को कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी उसकी एलकेजी क्लास के लिए… ऑनलाइन स्क्रीन के सामने बिठाना, पढ़ाई करवाना और साथ ही साथ अपने दूसरे जरूरी काम भी करना.

वर्क फ्रॉम होम- समस्या या समाधान

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 27 प्रतिशत महिलाओं नौकरी करती हैं. इस कम आंकड़े की एक महत्वपूर्ण वजह घर में इसके अनुकूल वातावरण का न होना भी है. आज कोविड 19 से कारण बहुत सारी कंपनियों ने सितंबर महीने तक वर्क फ्रॉम होम दे रखा. घर में माहौल का न होना, घरेलू कार्य और बच्चे सब मिलकर इस सुविधा को असहज करते हैं.

टीसीएस में कार्यरत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का कहना है कि बच्चों की धमाचौकड़ी की वजह से घर में ऑफिस के काम के प्रति एकाग्रता नहीं बन पा रही है जिस से काम में रुकावट पैदा हो रही है. कई बार तो उनके सोने के बाद काम करना पड़ता है जो बहुत ही थकाऊ प्रोसेस है.

आप जैसे ही काम करने के लिए बैठते हैं, बच्चो की फरमाइशों की लिस्ट आ जाती है. आप उन्हें पूरा करते हैं, तबतक वर्क फ्रंट से अलग ही प्रेशर बन चुका होता है.कई बार तो ऐसा होता है कि आपकी एक इम्पोर्टेन्ट क्लाइंट मीटिंग की वी सी चल रही होती और आपके बच्चे बीच में आकर अपनी शरारतें करने लगते हैं या कभी कभी आपस में ही इस कदर गुत्थमगुत्था हो जाते हैं कि आपको तब कैमरा ऑफ के साथ मीटिंग म्यूट करनी पड़ती है और उनके झगड़े सुलझाने होते हैं.वापस मीटिंग में आने के बाद आपके व्यवहार में चिड़चिड़ाहट आना भी स्वभाविक हो जाता है और एक अच्छी खासी मीटिंग का सत्यानाश हो जाता है.

घरेलू हिंसा की भयावता

कोरोना के कारण उपजे अवसाद और आर्थिक तंगी ने एक ऐसा कॉकटेल बना दिया है जो घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा है. यहां तक कि मुम्बई हाईकोर्ट भी इस बात को स्वीकारता है कि कोरोना काल के इस दौर में घरेलू हिंसा के मामले भी अपने आप मे एक रिकॉर्ड बना रहे हैं खासकर भारत जैसे विकासशील देश में जो कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार महिलाओं की सहभागिता (अर्थोपार्जन में) के अनुसार विश्व के 130 देशों के आगे 120वीं रैंक पर है.

कोविड 19 ने दुनिया का आयाम ही बदल दिया है. वर्क फ्रंट में काम की तंगी, व्यवसायों का ठप्प होना, करोड़ों अरबों रुपयों का नुकसान होना एक अवसाद तो उत्पन्न कर ही रहा है ऊपर से भविष्य की चिंता अलग ही विकराल रूप ले रही है और इन सबका एकमात्र शिकार होती हैं घर की महिलाएं जिन पर सारे तनाव घरेलू हिंसा के रूप में बेवजह रिलीज किए जाते हैं.

ऑफिस का तनाव

अब जबकि लोकडाउन तकरीबन खत्म हो चुका है, बहुत सारे कार्यलय खुल चुके हैं और लोगों को  ऑफिस बुलाया जाने लगा है, ऐसे वक्त में हॉउस हैल्पर का न होना (इसमें रिवर्स माइग्रेशन का भी एक अहम योगदान है), स्कूल और क्रेशेज का न खुलना जैसी समस्याएं और भी मुश्किलें पैदा कर रही हैं. ऐसे में महिलाओं का जॉब खोना और कई बार पूरी तल्लीनता से काम न कर पाने की वजह से वेतन कटौती का भी सामना करना पड़ रहा है.

ऐसी ही एक सिंगल मदर हैं जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोजिशन पर हैं. उनका 6 साल का बच्चा है. पहले जहां बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद वे ऑफिस आती थीं, स्कूल के बाद बच्चा वहीं क्रेश में उनके ऑफिस से लौटने तक रहता था. कोविड के कारण अब यह संभव नही है.घर पर फिर भी कुछ मुश्किलों से ही सही पर बच्चे की देखरेख के साथ ऑफिस का काम हो पाता था, पर चूंकि अब औफिस जाना ही है और स्कूल और क्रेश बंद हैं, तो यह एक अलग ही समस्या सामने खड़ी हो गई है.

फ्रंटलाइन वर्कर्स

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार स्वास्थ्य विभाग में 70 प्रतिशत सहभागिता महिलाओं की है. घर की दोहरी जिम्मेदारी तो उन्हें परेशान करती ही है, ऊपर से कार्यस्थल की परेशानियां अलग ही होती हैं. कितनी ही जगहों पर तो महिलाओं के साथ अभद्रता की भी रिपोर्ट आ रही हैं.वहीं पर महिलाओं को हाईजीन की भी परेशानी आ रही है, जो पीपीई किट के उपयोग के कारण 10-10 घंटे तक वाशरूम तक का भी प्रयोग नहीं करने के कारण हो रहा है.

कोविड 19 के रोगियों के साथ काम करने की वजह से खुद को परिवारों से आइसोलेट करके रखना भी एक समस्या है. परिवार से दूर रहना भी चिंता में एक इजाफा ही है. छोटे छोटे बच्चों को उनकी माँ से दूर बिलखते देख तो जैसे कलेजा ही फाड़ देता है. आंसुओं से भीगे अपने बच्चों के गालों को वीडियो कॉलिंग में देखना और पुचकार के साथ उन्हें पोंछ न पाने का मर्म सिर्फ एक मां ही समझ सकती है.

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इन सारी परेशानियों के साथ साथ कोविड 19 के भयावह वातावरण का अवसाद, परिवार की चिंता यहां तक कि छोटे छोटे बच्चों की बढ़ती स्क्रीन टाइमिंग भी महिलाओं को परेशान कर रही है, पर इन सब मुसीबतों के बीच लोगों खासकर महिलाओं का मैगजीनों के प्रति बढ़ता रुझान बताता है कि सोशल डिस्टेनसिंग और परिवार और हाउस हेल्पर की अनुपस्थिति में उन्हें एक सच्चा साथी मिल पा रहा है, जो उन्हें उनके लिए वक्त दे रहा है.

अलविदा सुशांत सिंह राजपूत: चकाचौंध की जिंदगी के पीछे काली छाया 

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का अचानक आत्महत्या कर लेना हर सिनेमा प्रेमी के लिए एक चौकाने वाली घटना रही. हिंदी सिनेमा जगत के सारे लोग भी इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे है. आखिर क्यों एक सफल कलाकार ने आत्महत्या किया है ? क्यों वे अपनी ग्लैमरस जिंदगी को अच्छी तरह जी नहीं पाए? क्या समस्याएं थी? क्यों वे ऐसी कदम उठाने से पहले अपने परिवार और माता-पिता को याद नहीं कर पाए आदि न जाने कितने ही सवाल हर कलाकार के सुसाइड के बाद उनको चाहने वालों के जेहन में आती है, जिसके बारें में जानना और समझना जरुरी है. 

ये सही है कि आज एक सफल कलाकार का बनना बॉलीवुड में आसान नहीं होता, यहाँ प्रतिभा से अधिक भाई-भतीजावाद और बड़े-बड़े निर्माताओं की लॉबी पूरी तरह से हावी रहती है, ऐसे में इंडस्ट्री के बाहर से आकर अपनी पहचान बनाने के लिए मेहनत और धीरज की बहुत जरुरत होती है. खासकर मुंबई जैसे शहर में जहाँ ये आर्टिस्ट्स बहुत अधिक संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते है, ऐसे में एक सफल कलाकार का ऐसा कदम सबको चकित करता है, जबकि उन्हें आर्थिक तंगी भी नहीं थी.

 दरअसल सफल कलाकारों को इस चकाचौंध की जिंदगी जिसमें प्यार, पैसा और शोहरत सब शामिल होता है, जिसके लिए ये अपना शहर और घर छोड़कर कुछ हासिल करने के जज्बे से मुंबई चले आते है और काफी मेहनत के बाद उन्हें सफलता मिलती है और वे ग्लैमरस जिंदगी जीने लगते है, लेकिन धीरे-धीरे जब इंडस्ट्री की हकीकत से परिचित होने लगते है, तो सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो जाता है. जिसका सामना कलाकार कई बार करने में असमर्थ होते है और डिप्रेशन का शिकार हो जाते है, जो आगे चलकर आत्महत्या का रूप ले लेती है. इसमें सुशांत सिंह राजपूत के अलावा जिया खान, प्रत्युषा बैनर्जी, दिव्या भारती, गुरुदत्त, परवीन बॉबी, मनमोहन देसाई आदि कई नाम है, जिन्होंने आत्महत्या की.

इस बारें में निमये हेल्थ केयर के मनोचिकित्सक डॉ. पारुल टांक कहती है कि सुइसाइड करने की वजह को समझना मुश्किल होता है, क्योंकि ये केवल सेलिब्रिटी ही नहीं कोई भी कर सकता है, यहाँ ये सेलिब्रिटी है, इसलिए हम जान पाते है. इसे करने के कई कारण हो सकते है.

  • जिन्हें उदासीनता की बीमारी हो, 
  • ड्रग और अधिक एल्कोहल लेने वाले लोग,
  • कुछ बड़ी बीमारी से पीड़ित लोग जैसे स्किजोफ्रिनिया, बाइपोलर आदि,  
  • डिप्रेशन की वजह से पहले कभी सुसाइड का अटेम्प्ट किया हो,
  • फॅमिली हिस्ट्री आत्महत्या की हो,ये सभी आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते है.

सेलिब्रिटी या नॉन सेलिब्रिटी पैसे से इसका कोई सम्बन्ध अधिक नहीं होता. गरीब और अमीर दोनों ही करते है. ये पैसे से भी अधिक ख़ुशी से सम्बंधित होता है. सूत्रों की माने तो सुशांत सिंह राजपूत का भी मानसिक बीमारी का इलाज चल रहा था, पर उन्होंने ऐसा क्यों किया? कौन से कारण थे? ये अभी पता नहीं चल पाया है. ये सही है कि सेलिब्रिटी में मानसिक और सामाजिक दबाव अधिक होता है. ये सहजता से किसी बात को किसी से कहने में असमर्थ होते है. 

जब भी ऐसे हालत बनते हो, तो प्रोफेशनल मनोरोग चिकित्सक की मदद लेन ही सही होता है. दवा और काउंसलिंग से इसे कम किया जा सकता है. ये कोई स्टिग्मा नहीं है. प्रोफेशनल के पास जाने से शर्म महसूस नहीं करना चाहिए. इसके अलावा अपने परिवार और दोस्तों का सहारा लेना जरुरी होता है, जो आपको समझ पाएं. हर इंसान के पास एक या दो लोग होने चाहिए जो डिप्रेशन से आपको निकाल सके. इसके अलावा सही डाइट और व्यायाम भी डिप्रेशन से व्यक्ति को राहत दिलाती है, क्योंकि व्यायाम हैप्पी हार्मोन को इम्प्रूव करती है. आत्महत्या किसी भी चीज का समाधान नहीं होता, क्योंकि इससे माता-पिता, परिवार जन और आसपास के सभी आहत होते है. डिप्रेशन एक या दो दिन में नहीं आता, ये दो हफ्ते से महीने तक चलता है, इसके लक्षण निम्न  है…

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  • उदासीनता, 
  • किसी बात में मन न लगना, 
  • नकारात्मक भाव का आना,
  • आत्मविशवास और आत्मसम्मान का कम हो जाना,
  • नींद न आना,
  • भूख नहीं आना, 
  • किसी चीज में मन नहीं लगना, बहुत रोना आदि अगर होने लगे, तो मनोरोग चिकित्सक की सलाह अवश्य लें. 

सूत्रों की माने तो सुशांत सिंह राजपूत भी किसी बड़ी प्रोडक्शन लॉबी के शिकार हुए थे और कुछ ही दिनों में उनके हाथ से कई बड़ी फिल्में जा चुकी थी, जिसका उन्हें मलाल था और इसे न सह पाने की स्थिति में उन्होंने आत्महत्या को अंजाम दिया. जिसकी छानबीन जारी है. ये सही है कि बॉलीवुड लॉबी माफिया के बारें में पहले कंगना रनौत ने भी खुलकर अपनी बात रखी थी और उसने डटकर सामना किया था, जो सुशांत सिंह राजपूत नहीं कर पाए और जिंदगी को ख़त्म कर दिया.

जीवन में आये इस उतार-चढ़ाव से गुजरना और डटकर सामना करना किसी भी कलाकार के लिए आसान नहीं होता, क्योंकि सफलता का स्वाद कलाकारों की मुरादों की लिस्ट को पूरा करती रहती है और जब ये उनके हाथ से निकलती जाती है तो अपने आपको सम्भाल पाना बहुत मुश्किल होता है, ऐसे ही कुछ कलाकारों ने अपने अनुभव शेयर किये,जब वे किसी न किसी वजह से तनाव के शिकार हुए और अपने आपको सम्हाला. आइये जानते है क्या कहते है सितारे, 

अमिताभ बच्चन 

लाइफ कभी भी आसान नहीं होती, मेरे पिता कहा करते थे कि जीवन हमेशा संघर्षमय होता है. जब तक आप जीवित रहते है, ये संघर्ष चलता रहता है, सभी को उससे गुजरना पड़ता है. जब साल 1969 में ‘साथ हिन्दुस्तानी’ फिल्म केवल 5 मिनट में मिली थी,तो बहुत ख़ुशी हुई. इसके बाद फिल्म ‘आनंद’ साल 1971 में आई,जो सफल रही. इसके बाद कई सालों का गैप मेरे कैरियर में आया, लोग मुझे भूलने लगे थे कि मैं एक परफ़ॉर्मर हूं. कई बार अकेलापन मेरी जिंदगी में आया, पर परिवार और दोस्तों ने सहारा दिया और मैं आगे बढ़ा. 

मिथुन चक्रवर्ती

मुझे रातोंरात सफलता नहीं मिली थी. मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा. मैं अपने शुरुआती पलों को याद करना भी अब नहीं चाहता, क्योंकि अब मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं. संघर्ष के बाद जब फिल्मों का मिलना शुरू हुआ, तो मेरी माँ ने मुझसे कही थी कि हमेशा नीचे की तरफ देखकर चलो, अगर ऊपर की तरफ देखकर चलोगे, तो ठोकर खाकर गिर जाओगे. इसी मन्त्र को लेकर मैं चला हूं और एक सुपर स्टार बना, लेकिन ये भी पता था कि ये चिरस्थायी नहीं है. इसे डाईजेस्ट करना मेरे लिए आसान नहीं था, इसलिए अब मैं अपना समय अपने डॉगी और प्लांट्स के साथ बिताता हूं.

रणवीर सिंह 

जब आप रैट रेस में होते है, तो अपनों के साथ समय बिताना भूल जाते है. सफलता के बाद मेरी दोस्तों की लिस्ट बहुत कम हो चुकी है, जिसे मैं अब समय देने लगा हूं. मैं काम और परिवार के बीच में सामंजस्य रखना जानता हूं. तनाव होने पर मैं एक लम्बी सांस लेकर जिम में चला जाता हूं और सारे तनाव को बाहर निकाल लेता हूं. सफलता और पैसा जिंदगी में उलझन लाती है. इसलिए जब भी शूटिंग नहीं होता, मैं फ़ोन को स्विच ऑफ कर परिवार के साथ समय बिताता हूं. 

अक्षय कुमार 

मेरा शुरूआती दौर बहुत संघर्षमय था, कई रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने धीरज धरी और आगे बढ़ा. सफलता से आज मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि आज मेरे करोड़ो फैन फोलोवर्स है, जो मुझे अच्छा लगता है. मैं अपने फैन्स को कभी भी मायूस नहीं करना चाहता, पर कई बार फिल्में फ्लॉप हो जाती है. कंट्रोवर्सी का सामना करना पड़ता है. तनाव भी होता है, लेकिन ऐसे समय में मैं जिम में जाकर सारे तनाव को निकाल देता हूं.

सारा अली खान 

सारा कहती है कि सफल कलाकार जब सामने कुछ भी नकारात्मक चीज देखता है, तो उसे मानसिक तनाव होने लगता है, ऐसे में उसके आसपास के लोग ही उसे उस तनाव से निकाल सकते है, लेकिन सफलता की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते कलाकार अधिकतर अपने आसपास के लोगों को भूलते जाते है, ऐसे में जब उन्हें किसी के सहारे की जरुरत होती है, तो वह अकेला होता है और कुछ भी गलत कदम वह उठा सकता है. मुझे भी इसका अनुभव है जब मुझे पहली फिल्म मिली और उसकी सफलता के लिए मैंने कितना इंतजार किया. डर भी था, पर मां ने मेरा साथ दिया था. 

दीपिका पादुकोण 

मानसिक दबाव में जीना बहुत मुश्किल होता है. कोई आपकी समस्या को समझ नहीं सकता. खुद को ही उससे निकलना पड़ता है, लेकिन इसमें मेरे परिवार और दोस्तों ने बहुत सहायता की. एक समय मैंने सबसे दूर और अकेले रहने को सोची थी, कई गलत ख्याल भी आये पर मैंने एक्सपर्ट का हेल्प लिया और आज मैं बहुत खुश हूं कि एक अच्छी जिंदगी बिता रही हूं.

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श्रध्दा कपूर 

जब मेरी शुरू की कई फिल्में फ्लॉप हुई तो बहुत बड़ा झटका लगा. कई बार ये सोचने पर मजबूर हुई कि मैं इस फील्ड के लिए ठीक नहीं, डिप्रेशन में चली गयी थी, लेकिन मेरे परिवार ने मुझे समझाया और मैं आगे बढ़ी. बहुत मुश्किल होता है, तनाव से निकलना. मुझे इसका बहुत बढ़ा अनुभव है और आज मैं इस परिस्थिति से निकलना जानती हूं. असफलता ने ही मुझे इसकी सीख दी है.

बेहतर सुरक्षा देने वाले मास्क पर चिपके नोवल कोरोना को कैसे नष्ट करें

आज सब की प्राथमिकता में स्वस्थ रहना है. किसी को कैंसर या उस जैसी जानलेवा दूसरी बीमारियों से डर नहीं है. डर है तो सिर्फ कोविड-19 बीमारी से, जो नोवल कोरोना वायरस के हमले से हो जाती है.

वैश्विक महामारी कोविड-19 से बचाव के लिए जारी की गईं गाइडलाइन्स को सभी जानते हैं. इस में बेसिक 3 बातें अहम हैं- हैंडवाश, सोशल डिस्टेंसिंग और फेसमास्क. यह भी सभी को मालूम है. लेकिन इन में से सब से बेहतर बचाव फेसमास्क से होता है. पहले हाथ धोने और सामाजिक दूरी को ही अहमियत दी गई थी. फेसमास्क पर जोर नहीं था. रिसर्च हुई तो फिर फेसमास्क के इस्तेमाल पर भी जोर दिया गया. उस के बाद की रिसर्च के बाद फेसमास्क को कुछ देशों में अनिवार्य कर दिया गया. अब तकरीबन पूरे भारत में भी इसे जरूरी कर दिया गया है.

मास्क से बेहतर बचाव :

दुनिया के देशों में कोरोना पर रिसर्चें हो रही हैं. कम समय में जितनी रिसर्चें इस विषय पर हुईं और हो रही हैं, उतनी शायद किसी दूसरे विषय पर नहीं हुईं. एक ताजा रिसर्च सामने आई है जिस में कोरोना वायरस के इन्फैक्शन से बचाव के लिए फेसमास्क को हैंडवाश और सोशल डिस्टेंसिंग से बेहतर करार दिया गया है.

अमेरिका में की गई एक स्टडी से यह संकेत मिला है कि हैंडवाश और सोशल डिस्टेंसिंग की तुलना में फेसमास्क इंसानों को कोरोना वायरस से बचाने में अधिक कारगर हो रहे हैं. यह स्टडी अमेरिका के युद्धपोत थियोडोर रूजवेल्ट पर की गई. इस युद्धपोत पर करीब एक हजार लोग कोरोना से संक्रमित हो गए थे.

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मार्च में ही युद्धपोत थियोडोर रूजवेल्ट के 4,900 क्रू मेंबर्स में से 1,000 से अधिक कोरोना पौजिटिव हो गए थे. एक शख्स की मौत भी हो गई थी. बाद में
नेवी और अमेरिका के सेंटर फौर डिजीज कंट्रोल ने युद्धपोत के 382 क्रू मेंबर्स से सैंपल ले कर स्टडी की.

अमेरिका के एक इंग्लिश डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने पाया कि मास्क पहनने और न पहनने वाले लोगों के कोरोना संक्रमित होने में 25 फीसदी का अंतर है. जबकि, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और न करने वाले लोगों के कोरोना संक्रमित होने में 15 फीसदी का अंतर था. वहीं, कोरोना संक्रमित होने को ले कर हैंडवाश करने और न करने वाले लोगों के बीच सिर्फ 3 फीसदी का अंतर था.

382 लोगों के सैंपल पर की गई स्टडी में पता चला था कि मास्क पहनने वाले 55 फीसदी लोग संक्रमित हो गए. जबकि नहीं पहनने वाले लोगों में संक्रमित होने वालों की संख्या 80 फीसदी थी. यानी, मास्क
पहनने से संक्रमण रोकने में 25 फीसदी की कमी
आई.

मास्क पर लगे वायरस को नष्ट करें :

अब जब दुनिया के अधिकतर देशों में लौकडाउन को ख़त्म किया जा रहा है और बाज़ार खुलने लगे हैं तो मास्क का प्रयोग लोगों की रोज़मर्रा की आदत बन गया है.

सवाल यह है कि जब मास्क को पाबंदी से इस्तेमाल करना है तो क्या तरीक़ा है कि मास्क पर संभावित रूप से लगे कोरोना वायरस को मारा जाए और मास्क को फिर से इस्तेमाल करने के लायक़ बनाया जाए?

उस मास्क की बात नहीं की जा रही है जो डाक्टर और चिकित्सा विभाग के स्टाफ़ के लोग प्रयोग करते हैं और जिसे एन-95 मास्क कहा जाता है. बात आम मास्क के बारे में है जो आमतौर पर लोग इस्तेमाल करते हैं.

यह मास्क पतला होता है. इसे धोना मुश्किल होता है. इस प्रकार के मास्क को इस्तेमाल करने के बाद अगर 72 घंटे के लिए किसी जगह पर रख दिया जाए, तो अगर उस पर कोरोना वायरस लगा भी है तो वह मर जाएगा. कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि मास्क को एक सप्ताह के लिए छोड़ देना चाहिए, तब तक उस पर मौजूद वायरस ख़त्म हो जाएगा.

ऊपर 2 अलगअलग विचारों की वजह यह है कि कोरोना वायरस अलगअलग वातावरण में अधिक या कम अवधि में समाप्त हो जाता है. यदि तापमान कम है तो वायरस अधिक समय तक जीवित रहता है और यदि तापमान ज़्यादा है तो वह  जल्दी ख़त्म हो जाता है.

मैडिकल विशेषज्ञों की इस बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण अनुशंसाएं हैं, उन्हें आप भी जानिए.

* मास्क को जैविक ख़तरे के रूप में देखना चाहिए, जब भी उसे हाथ लगाएं तो अपने हाथ साबुन से 20 सैकंड तक ज़रूर धोएं.

* यदि मास्क गंदा हो जाए तो फिर उसे इस्तेमाल न करें.

* मास्क कहीं से भी फटा हुआ नहीं होना चाहिए.

* मास्क को प्रयोग करने के बाद काग़ज़ के लिफ़ाफ़े में डाल कर एक हफ़्ते तक छोड़ दें, उस के बाद उसे फिर इस्तेमाल करें.

* जिस लिफ़ाफ़े में मास्क रखा है, उसे बच्चों से दूर रखें.

* एक हफ़्ते के बाद लिफाफे से मास्क बाहर निकालें तो इसे वही व्यक्ति इस्तेमाल करे जिस ने पहले इस्तेमाल किया है, कोई दूसरा व्यक्ति नहीं.

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दुनिया ने अब जब मान लिया है कि कोरोना संग जीना है तो हर इंसान को सावधानियां तो बरतनी हो होंगी अन्यथा जीवन का समय गुजारना दुश्वार हो जाएगा. वायरस के दौर में स्वस्थ जिंदगी के लिए मास्क अनिवार्य और बहुत ही महत्त्वपूर्ण टूल है. सो, हमआप सभी इस का सुरक्षित इस्तेमाल करें वरना दिक्कत हो सकती है.

Father’s day Special: अपने रिश्तों को दें यादगार तोहफा

आप किसी न किसी को गिफ्ट देने के बारे में जरूर सोच रही होंगी. मगर पैसे की बात मतलब कि आपका बजट आड़े आ जाता है. अगर ऐसा है तो आपकी मुश्क‍िल हल करने का एक आसान सा तरीका है. कुछ ऐसे गिफ्ट आइडियाज जो किफायती हैं और गिफ्ट के रूप में जिन्हें पाकर आपके लोग खुश हो जाएंगे.

1. पेंटिंग्स

मौका आपकी किसी सहेली की शादी का हो. आपकी सहेली अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रही होती है, ऐसे मौके पर अपनी सहेली के घर को सजाने के लिए आप उसे पेंटिंग्स गिफ्ट कर सकती है. किसी की शादी की बजाय अगर फादर्स डे पर भी आप अपनी मां के घर और पापा के ऑफिस को सुंदर बनाने के लिए उन्हें पेंटिंग्स तोहफे में दे सकती हैं.

2. चांदी की चमक

अब जब मौका खास है तो आपका गिफ्ट भी कुछ खास होना चाहिए. अगर आप भी इस बात को समझती हैं, तो फिर चांदी के गहने से बेहतरीन विकल्प और कुछ हो ही नहीं सकता. चांदी के गहने न सिर्फ आपके बजट में होंगे, बल्कि आपके तोहफे को यादगार भी बना देंगे.

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3. ड्रैस भी हो सकती है खास तोहफा

शादी हो या कोई और खास मौका ड्रेस गिफ्ट कर के भी आप अपने रिश्ते की मजबूती को दिखा सकती हैं. आप पिता को भी कपड़े भी तोहफे में दे सकतीं हैं. शादी में तो बहुत सारे कार्यक्रम होते हैं ऐसे में पिता का खास दिखना बेहद जरूरी होता है, तो आप ऐसे ही किसी खास प्रोग्राम के लिए अपने पिता को कपड़े दे सकतीं हैं. आपका यह तोहफा उसे हमेशा याद रहेगा.

4. फोटो फ्रेम और फोटो कोलाज

तस्‍वीरें जिंदगी के कई खूबसूरत लम्‍हों की गवाह होती हैं और इन्हें सहेज कर रखना हर किसी को अच्छा लगता है. आपकी मां को भी यादों की इन निशानियों से बहुत लगाव होगा और उनके घर को सबारने में आपका यह तोहफा भी उनकी मदद करेगा तो उनकी जिंदगी के कुछ महत्‍वपूर्ण पलों को संजोकर उन्‍हें तोहफे में दें यादों का कोलाज.

5. खूबसूरत सफर

अगर आप अपने पिता से दूर रहते हैं तो उनके साथ समय बिताने से ज्‍यादा खुशी आप उन्‍हें कुछ नहीं दे सकती. उनकी पसंद की कोई जगह फिक्‍स करें और उन्हें मदर्स डे का तोहफा दें यकीनन यह तोहफा पिता को जरूर पसंद आएगा और सफर की यादें भी हमेशा साथ रहेंगी.

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6. सबसे खास दोस्त किताबें

अगर आपके मां-पापा को किताबे पढ़ने का शौक है तो उनकी पसंद की किताबों का सेट आप उन्हें दे सकती हैं. किताबें अच्छी दोस्त भी होती हैं और हमेशा साथ भी होती हैं.

मेरे माथे पर अभी से झुर्रियां आ गई हैं, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. मेरे माथे पर अभी से झुर्रियां आ गई हैं, जो भद्दी दिखती हैं. क्या इन को हटाने का कोई घरेलू उपाय है?

जवाब-

उम्र से पहले अगर आप के माथे पर झुर्रियां आ गई हों, तो अलसी का तेल एक बहुत ही अच्छा और अस्थाई घरेलू तरीका है. इस तरीके में आप को अलसी के तेल से मालिश नहीं करनी है, बल्कि 1 चम्मच अलसी का तेल दिन में 3-4 बार पीना है. यह स्किन की बाहरी परतों को ऊपर उठाते हैं, जिस से माथे की महीन रेखाएं और झुर्रियां कम होती हैं.

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आपके चेहरे की चमक झुर्रियों के कारण खो जाती हैं. और आप झुर्रियां हटाने के लिए तरह-तरह के क्रीम मार्केट से लाती हैं, फिर भी चेहरे पर लगाने के बाद नहीं हटती हैं. तो ऐसे में  आपको परेशान होने की कोई बात नहीं है. आज हम आपको कुछ घरेलू नुस्खों बताएंगे जिससे आप झुर्रियों से छुटकारा पाने के लिए आजमा सकती हैं.

1. मुल्तानी मिट्टी

झुर्रियों पर मुल्तानी मिट्टी सबसे ज्यादा असर करती है. यह त्वचा में कसाव लाती है और महीन रेखाओं को भी खत्म करती है. आप मुल्तानी मिट्टी लगाने से पहले उसे आधे घंटे के लिए भिगा दें. मिट्टी गल जाए तो उसमें खीरे का रस, टमाटर का रस और शहद मिलाएं. इस मिश्रण को चेहरे पर लगाएं. पर ध्यान रहे कि लेप लगाने के बाद बैठे या खड़े न रहें, बल्क‍ि लेट जाएं. और फिर सुखने के बाद इसे ठंडे पानी से धो लें.

2. केला

केले का क्रीम जैसा पेस्ट बनाकर उसे चेहरे पर लगाएं. आधे घंटे तक लगाएं रखें फिर सादे पानी से धो लें. त्वचा को अपने आप सूखने दें, उसे पोछे नहीं. केले के इस्तेमाल से त्वचा में कसाव आता है और झुर्रियों पर फर्क नजर आने लगता है.

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अपनी ‘बेबी गर्ल’ के लिए ट्राय करें शाहिद की बेटी के ये लुक्स

बौलीवुड चाहे सेलेब्स हो या स्टार किड्स अपने फैशन के लिए हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं. उन्हीं स्टार किड्स में से एक शाहिद कपूर की बेटी मिशा कपूर भी हैं. 3 साल की मिशा कपूर भले ही छोटी हों, लेकिन उनका फैशन बड़ों-बड़ों को पीछा छोड़ सकता है. अगर आपकी भी बेटी है और उसे क्यूट और ब्यूटीफुल दिखाना चाहती हैं तो मीशा कपूर के ये फैशन आपके लिए बेस्ट होंगे. आइए आपको दिखाते हैं मीशा कपूर के कुछ सिंपल लेकिन ट्रेंडी फैशन…

1. मीशा कपूर का बेबी शर्ट फैशन करें ट्राई

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अगर आप अपनी बेटी को सिंपल दिखाना चाहती हैं, तो मीशा कपूर की ये ड्रैस आपके लिए परफेक्ट है. लौंग किड शर्ट को बेल्ट के साथ मिक्सअप करके आप एक सिंपल और ट्रेंडी लुक पा सकते हैं.

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2. फ्लौवर प्रिंट है हर किसी की पसंद

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फ्लौवर प्रिंट आजकल सेलेब्स का फैशन ट्रेंड बन गया है, आप चाहे तो मिशा की तरह अपनी बेटी को फ्लौवर प्रिंट फ्रौक के साथ सिंपल फुटवियर ट्राई कर सकती हैं.

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3. बर्थडे पार्टी के लिए ये ड्रेस है परफेक्ट

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अगर आपकी किसी पार्टी में जा रही है और आप उसे हैवी ड्रेस नही पहनाना चाहते तो ये ड्रेस आपके लिए बेस्ट औप्शन रहेगा. सिंपल वाइट टौप और अटैच फ्लौवर प्रिंट स्कर्ट आपकी बेटी को बर्थडे पार्टी में सबसे अलग दिखाएगी.

4. मीशा की ये ड्रेस समर के लिए है परफेक्ट

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अगर आप समर में अपनी बेटी के लिए कोई ड्रैस चुनना चाहती हैं तो ये ड्रैस आपकी चौइस के लिए बेस्ट औप्शन होगा. आजकल गरमी बढ़ गई है, जिसके लिए आप औफ शोलडर कपड़े अपने बच्चों के लिए चनते होंगे. ये औपशन आपके लिए परफेक्ट है.

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5. शादी में मीशा की लहंगा ड्रैस है परफेक्ट

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अगर आप भी अपनी किसी की शादी के लिए अपनी बेटी के लिए ड्रैस के लिए सोच रहें हैं, तो मीशा का ये लहंगा आपके लिए बेस्ट औपशंस है.

Father’s day Special: संवेदनहीन और स्वार्थी होती संतानें, पढ़िए एक पिता की व्यथा

रेमंड शूटिंग्स के विज्ञापनों की एक खास बात जो हर किसी के जेहन में जानेअनजाने में दर्ज हो जाती है वह है रिश्तों के तानेबाने को भुनाना. रेमंड के विज्ञापनों में अपने उत्पाद की सीधी तारीफ नहीं होती, बल्कि दिखाया यह जाता है कि एक कामयाब पूर्ण पुरुष कैसा होता है. सफलता के पीछे नातेरिश्तों और उन की भावुकता के साथसाथ परिधान का संबंध एक मिनट से भी कम वक्त में दिखा कर बाजार में छा जाने और बाजार लूट ले जाने वाले रेमंड के पूर्व चेयरमैन और संस्थापक विजयपत सिंघानिया इस साल प्रमुख सुर्खियों में रहे.

वे सुर्खियों में इसलिए नहीं रहे कि उन्होंने कोई नया ब्रैंड लौंच किया था या फिर हवा में उड़ते वर्ल्ड रिकौर्ड बनाते  कोई नया कारनामा दिखाया था, बल्कि इसलिए कि जिन रिश्तेनातों की भावुकता को वे अपने विज्ञापनों में परोसा करते थे वह एक क्रूरता की शक्ल में हकीकत बन उन के सामने आ खड़ी हुई थी. इस क्रूरता को जब वे अकेले बरदाश्त नहीं कर पाए तो मीडिया के जरिए अपनी व्यथा साझा करते दिखे. 79 वर्षों की अपनी जिंदगी में वे पहली दफा इतने सार्वजनिक हुए कि रेमंड का इश्तहार और उस की ब्रैंडिंग बगैर किसी खर्च के हो गई. लेकिन जिस तरीके से हुई उस ने उद्योग जगत और समाज को हिला कर रख दिया. जिस ने भी देखासुना उस ने विजयपत सिंघानिया से हमदर्दी जताई. वे हमदर्दी के हकदार थे भी.

गुलाबी रंगत के रोबदार चेहरे वाले विजयपत की गिनती माह अगस्त तक वाकई कंपलीट मैन्स में शुमार होती थी. ऐसी उम्मीद किसी को न थी कि कल तक अरबोंखरबों की जायदाद के मालिक विजयपत सिंघानिया, जिन्हें कारोबारी दुनिया में विजयपत बाबू के नाम से ज्यादा जाना जाता है, पाईपाई की मुहताजी का अपना दुखड़ा मीडिया के जरिए रो कर हमदर्दी व इंसाफ मांगने को मजबूर होंगे.

विजयपत सिंघानिया कामयाबी का दूसरा नाम है, यह कहना अतिशयोक्ति की बात इसलिए भी नहीं होगी कि उन्होंने अपने पूर्वजों के कारोबार को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन में समझ थी और जोखिम उठाने का माद्दा भी. लिहाजा, एक वक्त में टाटा और बिड़ला के बाद सिंघानिया का नाम तीसरे नंबर के उद्योगपतियों व रईसों में शुमार किया जाने लगा था.

80 के दशक के भारतीय पुरुष को अपने ड्रैसिंग सैंस के प्रति अगर किसी ने सजग किया था तो इस का श्रेय रेमंड को ही जाता है जिस के कंपलीट मैन के माने थे एक ऐसा भावुक पुरुष जो अपने परिवार का पूरा ध्यान रखता है, वह पत्नी और बच्चों सहित मातापिता को भी चाहता व उन का खयाल रखता है. तब हर किसी की ख्वाहिश ऐसा ही कंपलीट मैन बन जाने की हो चली थी तो बात कतई हैरत की नहीं थी. विजयपत सिंघानिया की कारोबारी समझ की इसे खूबी कहा जाएगा कि वे परिधान के जरिए भारतीय घरों में झांके और इस तरह छा गए कि एक समय ऐसा रहा कि भारतीय दूल्हों के पास कुछ और हो न हो पर उन के शरीर पर रेमंड का सूट होना एक अनिवार्यता सी हो गई थी.

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व्यथा एक पिता की

विजयपत सिंघानिया की जिंदगी अब किसी हिंदी पारिवारिक फिल्म सरीखी हो गई है जिस में पिता ने बेशुमार दौलत और नाम दोनों कमाए पर जब अशक्त हो गया और मोह के चलते सबकुछ बेटे को दे दिया तो कथित कलियुगी बेटे ने उसे पाईपाई का मुहताज बनाते घर से बेघर कर डाला.

अगस्त के दूसरे हफ्ते में देशभर में उस वक्त सनाका खिंच गया जब विजयपत सिंघानिया ने मीडिया के जरिए अपने बेटे गौतम हरि सिंघानिया, जो अब रेमंड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरैक्टर हैं, पर यह आरोप लगाया कि साल 2015 में उन्होंने रेमंड के अपने हिस्से के 1 हजार करोड़ रुपए मूल्य के शेयर उसे दे दिए थे लेकिन गौतम ने बेटे का फर्ज नहीं निभाया.

अपने वकील दिनयार मदान के जरिए विजयपत ने यह रोना भी रोया कि गौतम ने उन से कार और ड्राइवर भी छीन लिए हैं. सो, वे अब सड़क पर पैदल चल रहे हैं.

एक लंबेचौड़े लेकिन पेचीदे पारिवारिक व कारोबारी विवाद को संक्षेप में समेटते विजयपत ने अभिभावकों से एक आग्रह यह कर डाला कि अपने जीतेजी बेटे को सबकुछ मत दीजिए. जरूरी नहीं कि बेटा आप का खयाल रखे. बकौल विजयपत, लोग परिवार से प्यार करते हैं लेकिन बच्चों के प्रति एक कमजोरी पैदा कर लेते हैं और इसी कमजोरी के किसी क्षण में उन्होंने एक हजार करोड़ रुपए के शेयर बेटे के नाम कर दिए थे.

गौरतलब है कि वे इन दिनों दक्षिण मुंबई की एक सोसायटी ग्रांड पराडी के फ्लैट में किराए पर रह रहे हैं. जिस का किराया 7 लाख रुपए महीना रेमंड कंपनी दे रही थी. साल 2007 तक सिंघानिया  परिवार जेके हाउस में रहा करता था. रेमंड कंपनी ने इसे रिनोवेट कराने के नाम पर सभी से खाली कराया और लिखित अनुबंध किया कि इस में रह रहे सभी वारिसों को एकएक ड्यूप्लैक्स मकान 9 हजार रुपए प्रति वर्गफुट की दर पर दिया जाएगा. लेकिन साल 2015 आतेआते गौतम की नीयत बदल गई और वे मकान देने के अपने वादे से मुकर गए. इस की एक वजह जमीनों की कीमतों में हजार गुना तक की बढ़ोतरी हो जाना थी. यानी, रेमंड कंपनी अनुबंध की गई दरों पर ड्यूप्लैक्स देती तो उसे करोड़ों रुपयों का नुकसान होता.

इतना ही नहीं, बेटे ने उस फ्लैट का किराया तक देना बंद कर दिया जिस में रेमंड से हुए एक करार के मुताबिक वे रह रहे थे. जब पैसों की तंगी होने लगी तो लाचार और बेबस हो चले इस पिता ने मुंबई हाईकोर्ट में बेटे पर मुकदमा दायर कर दिया. इस में उन्होंने बेटे से जेके हाउस में अपना ड्यूप्लैक्स मकान भी मांगा, जिस के बाबत साल 2007 में सिंघानिया परिवार के सदस्यों के बीच एक अनुबंध हुआ था.

विजयपत सिंघानिया को मजाक में खानदानी मुकदमेबाज भी कहा जाता है तो इस की अपनी अलग वजहें और उदाहरण हैं जिन से समझ आता है कि सिंघानिया खानदान ने केवल कारोबार में ही रिकौर्ड तरक्की नहीं की, बल्कि जायदाद को ले कर मुकदमेबाजी में भी वे अव्वल हैं.

ये सब बातें अब उघड़ कर सामने आ रही हैं तो इस की एक बड़ी वजह गौतम सिंघानिया हैं जिन के बारे में विजयपत ने यह भी कहा कि जो मांबाप जीतेजी जायदाद बच्चों को देते हैं उन की हालत लगभग भिखारियों सरीखी हो जाती है. झल्लाए विजयपत ने बेटे गौतम को बदतमीज बताया तो सहज यह भी समझ आया कि लड़ाई व्यावसायिक ज्यादा है. बकौल विजयपत, बेटे को प्यार करिए, मगर आंख बंद कर के नहीं. वरना आप पाईपाई के लिए मुहताज हो सकते हैं.

उन्हीं दिनों विजयपत का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिस में वे बेहद दुबलेपतले, कमजोर और थकेहारे नजर आ रहे थे. आमतौर पर जींस पर हाफ शर्ट या टीशर्ट पहनने वाले इस भूतपूर्व खरबपति की दयनीय हालत देख उन पर हर किसी को दया आई थी. पर जब कुछ और बातें उजागर हुईं तो अक्तूबर आतेआते उन के बारे में लोगों की राय बदलने लगी. कहा यह जाने लगा कि विजयपत सिंघानिया अपनी करनी की सजा भुगत रहे हैं.

अक्तूबर में ही उन का अपनी पत्नी आशा देवी सहित एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिस में पतिपत्नी दोनों एक गाना गा रहे हैं- ‘जाने वे कैसे लोग थे जिन के प्यार से प्यार मिला, हम ने तो बस कलियां मांगीं, काटों का ताज मिला….’ लेकिन पहले के फोटो और इस वीडियो के विजयपत में काफी फर्क था. वीडियो में उन के चेहरे की रंगत पहले जैसी दिखाई दे रही थी और उन का ड्राइंगरूम भी भव्य दिख रहा था. मुमकिन है कि यह किसी फाइवस्टार होटल का कमरा रहा हो. पर, संपन्नता विजयपत और आशा दोनों के चेहरों से टपकी रही थी.

बेटे को कोसकोस कर विजयपत मीडिया और आम जनमानस की दिलचस्पी व सुर्खी बन गए. कभी प्रचार जिस शख्स का मुहताज होता था वही अगर प्रचार का मुहताज हो चला था तो जाहिर है बात बापबेटे की जायदाद की लड़ाई भर नहीं है. सिंघानिया परिवार के गौरवशाली इतिहास की झलक के साथसाथ यह भी दिख रहा है कि पारिवारिक कलह झुग्गीझोंपडि़यों से ले कर आलीशान महलों तक में है और हिंसा व क्रूरता की हद तक है. इसकी एक झलक दिखलाते किसी खास मंशा से विजयपत ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि एक बार गौतम नेउन के भाई (बड़े भाई मधुपति सिंघानिया) की हत्या कर देने की बात तक कही थी.

पीढ़ी दर पीढ़ी तरक्की

सिंघानिया परिवार एकाएक ही इतना रईस नहीं हुआ कि मुंबई के वीआईपी इलाके मालाबार हिल्स में जेके हाउस बना डाला जो आज भी देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर ‘एंटीलिया’ से कहीं ऊंचा है. जेके हाउस 1960 में बना था तब यह 14-मंजिला था लेकिन बाद में इसे और ऊंचा कर के 37 मंजिला कर दिया गया.

सिंघानिया घराने के संस्थापक यानी विजयपत के दादा लाला जुग्गीलाल राजस्थान के शेखावटी इलाके के गांव सिंघाना से आ कर कानपुर में बस गए थे. तब वे कपास की गांठों का कारोबार करते थे. अपने बेटे कमलापत के साथ उन्होंने इस कारोबार को और बढ़ाया और खुद के और बेटे के नाम के पहले अक्षरों को ले कर जेके समूह की स्थापना की.

कमलापत के 3 बेटे पदमपत, कैलाशपत और रमेशपत हुए. ये तीनों भी पिता और दादा की तरह मेहनती व व्यावसायिक बुद्धि के धनी थे. 40 के दशक में इस परिवार ने व्यवसाय बढ़ाए और देखते ही देखते उन की गिनती न केवल कानपुर, बल्कि देश के शीर्ष औद्योगिक घरानों में होने लगी. जेके समूह अब टायर से ले कर टैलीविजन व कागज से ले कर सीमेंट तक बनाने लगा. पर इस की शुरुआत एक कपास मिल और बर्फ की फैक्टरी से हुई थी.

तीसरी पीढ़ी में शांतिपूर्वक यानी बगैर किसी बड़े विवाद के बंटवारे हो गए थे. कैलाशपत के 2 बेटे अजय और विजयपत हुए. बंटवारे के बाद और आजादी के 3 वर्षों पहले  कैलाशपत ने मुंबई आ कर तब के मशहूर उद्योगपति वाडिया से रेमंड कंपनी खरीदी थी. रेमंड का नाम पहले ईडी ऐंड कंपनी था जिस के 2 डायरैक्टर्स अलबर्ट और अब्राहम रेमंड के नाम पर उस का यह नाम रखा गया था. कानुपर में पैदा हुए और पलेबढ़े विजयपत बाद में मुंबई आ कर बस गए और फैब्रिक कारोबार में रम गए.

भारत में क्यों व्यावसायिक घराने इतने कम वक्त में उम्मीद से ज्यादा तरक्की कर लेते हैं, इस बात पर विदेशी अर्थशास्त्री भी हैरान होते रहते हैं और काफी शोध के बाद उन्हें जवाब यही मिलता है कि दरअसल, पीढ़ीदरपीढ़ी व्यवसाय बढ़ता है और पूरी प्रतिबद्धता से हर पीढ़ी इसे करती है.

पदमपत और रमेशपत के बेटों ने बंटवारे के बाद दिल्ली और कानुपर में अपनेअपने कारोबार संभाले और उन का नाम भी उद्योग जगत में इज्जत से लिया जाता है. यह कम हैरत की बात नहीं है कि पदमपत सिंघानिया महज 30 साल की उम्र में फिक्की जैसे प्रमुख व्यावसायिक संगठन के अध्यक्ष बन गए थे.

जेके समूह से अलग हो कर विजयपत ने अपने भागीदार, सगेभाई अजयपत के साथ रेमंड को चमकाया और साल 1980 में रेमंड की विधिवत कमान संभाली. लेकिन इसी दौरान अजयपत की मृत्यु हो गई तो उन के परिवार की देखभाल का कथित जिम्मा भी विजयपत पर आ गया.

विजयपत ने अपनी यह जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई होती तो तय है अजयपत की पत्नी बीना देवी और भतीजों अनंत व अक्षयपत को जायदाद को ले कर उन पर मुकदमा दायर न करना पड़ता. तब विजयपत पर भाभी और भतीजों की अनदेखी व उन का वाजिब हिस्सा न देने के आरोप लगे थे. ये मुकदमे अभी भी चल रहे हैं, जिन में जेके हाउस के 2-मंजिला मकान का विवाद भी शामिल है. इस बाबत रेमंड का करार विजयपत और अजयपत के उत्तराधिकारियों से यह हुआ था कि कंपनी उन्हें एकएक 2-मंजिला मकान देगी.

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इन सब फसादों के बाद भी विजयपत हवा में उड़ते रेमंड को भी शीर्ष पर ला पाने में कामयाब हो पाए तो इस की वजह उन की तीक्ष्ण व्यावसायिक बुद्धि और धुआंधार भावनात्मक प्रचार शैली थी. साथ ही, रेमंड की गुणवत्ता भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी.

विजयपत ने कपड़ों को नई पहचान देते गरम सूट बनाने के लिए आस्ट्रेलियाई भेड़ों का ऊन लाना शुरू किया था. लेकिन यह काम खर्चीला था और इस में वक्त भी ज्यादा लगता था, इसलिए उन्होंने खास किस्म की आस्ट्रेलियाई भेड़ों को भारत में ही पालना शुरू कर दिया था जिन के ऊन से बने कपड़े वाकई नरम और गरम होते थे.

साल 1986 में विजयपत ने अपना प्रीमियम ब्रैंड पार्क ऐवन्यू लौंच किया तो उस दौर के युवाओं ने इसे हाथोंहाथ लिया और विजयपत अपने चचेरे भाइयों से ज्यादा चर्चित हो उठे. एक वक्त में रेमंड का कारोबार 12 हजार करोड़ रुपए तक जा पहुंचा था जिसे गौतम ने गिरने नहीं दिया. अपनी शैली में व्यवसाय करते गौतम ने विदेशों तक में कारोबार फैलाया जबकि विजयपत सिर्फ मांग पर और शौकिया तौर पर निर्यात करते थे. जैसा कि आमतौर पर होता है, इन बापबेटों के बीच भी व्यवसाय की शैली और तौरतरीकों को ले कर विवाद होने लगे. लेकिन विजपयत ने कभी गौतम को नए प्रयोग करने से बहुत ज्यादा रोका नहीं.

गौतम से उन का लगाव इस हद तक था कि उस के लिए उन्होंने अपने बड़े बेटे मधुपति को एक तरह से घर से निकाल दिया था. मधुपति साल 1999 में पिता के कारोबार और जायदाद से अपना हिस्सा ले कर सिंगापुर चले गए और अपने पूर्वजों की तरह व्यवसाय में वहां खुद को स्थापित कर लिया था. सिंगापुर जातेजाते मधुपति ने पिता पर पक्षपात का आरोप लगाते कहा था कि वे बड़े के बजाय छोटे बेटे को रेमंड का मुखिया बनाना चाहते हैं और भेदभाव करते हैं.

तब एक सधे बिजनैसमैन की तरह विजयपत ने मधुपति से लिखवा लिया था कि जो उस ने ले लिया, उस के अलावा वह उन की जायदाद से कुछ और नहीं मांगेगा. मधुपति ने कभी ऐसा किया भी नहीं. लेकिन उन की चारों संतानों ने दादा पर मुकदमा ठोंकते हिंदू उत्तराधिकार अधिनयम के उस प्रचलित कानून का सहारा लिया जिस के तहत मातापिता को भी यह अधिकार नहीं कि वे दादापरदादा की जायदाद छोड़ दें या फिर हिस्सा न मांगें. चूंकि ये चारों 1996 के अनुबंध के वक्त नाबालिग थे, इसलिए मधुपति का किया समझौता या करार गलत साबित करते उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया. औद्योगिक घरानों में जायदाद के झगड़ों के ऐसे मुकदमे आम होते हैं और सालोंसाल चलते रहते हैं पर जब गौतम और विजयपत का विवाद सामने आया तो पता चला कि विजयपत अपनी पत्नी को छोड़ कर परिवार के हर सदस्य से मुकदमा लड़ रहे हैं.

उसी वक्त में यह सवाल भी तेजी से उठा कि जब विजयपत सिंघानिया खुद को पाईपाई का मुहताज बता रहे हैं तो उन के पास इतनी महंगी अदालती लड़ाइयां लड़ने के लिए पैसा कहां से बरस रहा है. इस पर विजयपत खामोश हैं. हालांकि वे गौतम से सुलह के लिए इस मामूली शर्त पर तैयार हैं कि वह अगर तिरुपति बालाजी के मंदिर में चल कर खुद के बेईमान न होने की कसम खा ले, तो वे अपना मुकदमा वापस ले लेंगे. गौरतलब है कि न केवल विजयपत और गौतम, बल्कि पूरा सिंघानिया परिवार तिरुपति बालाजी का अंधभक्त है. ये लोग सालभर में जितना टैक्स सरकार को देते होंगे, शायद उस से कहीं ज्यादा चढ़ावा इस मंदिर में चढ़ाते हैं.

बहरहाल, गौतम ने कसम वाली पेशकश पर ध्यान न देते पिता की ही भाषाशैली में जवाब दिए तो समझ आया कि कहीं न कहीं विजयपत सिंघानिया भी गलत हैं.

गौतम सिंघानिया-शौक बड़ी चीज है

सिंघानिया परिवार में शौक बड़ी चीज मानी जाती है. जहां विजयपत सिंघानिया को हवा में वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने का शौक था वहीं उन के बेटे गौतम सिंघानिया, जिन्होंने कथित तौर पर अपने पिता को रोड पर छोड़ दिया है, कम शौकीन नहीं हैं. आजकल लोग भले ही गौतम सिंघानिया को अपने पिता के साथ ज्यादती करने वाले इंसान बतौर देखते हों लेकिन उन की जिंदगी के कुछ रोचक और अनछुए पहलू भी हैं. गौतम सिंघानिया का पूरा नाम गौतम हरि सिंघानिया है और उन का जन्म 9 सितंबर, 1965 में हुआ था. उन्होंने पारसी समुदाय की महिला नवाज मोदी से विवाह किया है जिन से उन की एक बेटी निहारिका है. गौतम रेमंड गु्रप के चेयरमैन और सीईओ तो हैं ही, साथ में कामसूत्र कंडोम भी रेमंड का ही प्रोडक्ट है, जिसे एक अन्य फर्म के साथ जौइंट वैंचर में रेमंड्स ही उत्पादित करता है.

स्वभाव से शौकीन गौतम ने मुंबई के बांद्रा में एक पौपुलर क्लब भी खोला है. पोइजन नाम के इस क्लब में डीजे अकील के साथ गौतम की पार्टनरशिप है. गौतम को महंगी और सुपरफास्ट कारों का भी तगड़ा शौक है, शायद इसलिए उन के कार्स कलैक्शन में दुनिया की सब से महंगी गाडि़यों का अंबार लगा है.

बहरहाल, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते गौतम के शौक उतने ही नवाबी हैं जितने उन के पिता के रहे हैं. यह अलग बात है कि अब उन के पिता को शौक पूरे करने के लिए गौतम के आगे हाथ फैलाने पड़ रहे हैं.

विजय माल्या की जगह गौतम सिंघानिया

जब तक विजय माल्या बैंकों का मोटा पैसा मार कर देश से भागे नहीं थे तब तक मोटर स्पोर्ट्स की दुनिया में उन का ही सिक्का चलता था. लेकिन अब वह जगह गौतम सिंघानिया लेंगे. गौरतलब है कि एफएमएससीआई भारत में मोटर स्पोर्ट्स की प्रशासक बौडी है और इसे भारत सरकार की मान्यता प्राप्त है. भारत सरकार से मान्यता पाने वाली यह देश की एकमात्र मोटर स्पोर्ट्स संस्था है. फैडरेशन औफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब औफ इंडिया यानी एफएमएससीआई ने उद्योगपति और मोटर स्पोर्ट्स के शौकीन गौतम सिंघानिया को फैडरेशन इंटरनैशनल डि औटोमोबाइल यानी एफआईए की वर्ल्ड मोटर्स स्पोर्ट्स काउंसिल यानी डब्ल्यूएमएससीआई में भारत का प्रतिनिधि चुना है.

खेल मंत्रालय के एतराज के बाद एफएमएससीआई ने विजय माल्या से पद छोड़ने को कहा था. उस के बाद जुलाई से यह पद खाली था. इस के चुनाव में उन के पक्ष में 7, जबकि विरोध में 1 वोट पड़ा. गौतम सिंघानिया एफएमएससीआई द्वारा डब्ल्यूएमएससीआई के लिए चुने जाने पर बेहद खुश हैं और भारतीय मोटर स्पोर्ट्स के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के तमाम दावे करते हैं. हालांकि, यूरोप में फेरारी चैलेंज में भाग ले चुके गौतम सिंघानिया अपनी घरेलू रेस में ट्रैक से भटकते लग रहे हैं.

विजयपत के रिकौर्ड

उड्डयन खेलों का सर्वोच्च पुरस्कार फैडरेशन एयरोनौटिक इंटरनैशनल गोल्ड मैडल, 1994 में.

भारतीय वायुसेना की एयर कमोडोर की मानद उपाधि तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन द्वारा दी गई.

भारतीय वायुसेना के वेटल एक्सेज के स्क्वाड्रन नंबर-7 के इकलौते असैनिक सदस्य.

दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों की यात्रा खुद जहाज उड़ा कर करने वाले एकमात्र भारतीय.

हवाई खेलों के लिए साल 2008 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित.

उन्होंने 1994 में 24 दिनों में अपने विमान से 34 हजार किलोमीटर का चक्कर लगाया था.

2005 में सिंघानिया गुब्बारे में बैठ कर 70 हजार फुट या 21,336 मीटर की ऊंचाई तक जाने का नया रिकौर्ड बनाना चाहते थे. इस से पहले यह रिकौर्ड स्वीडन के पेर लिंडस्ट्रांड के नाम था जिन्होंने 19 हजार 811 मीटर की उड़ान भरने का रिकौर्ड 1988 में बनाया था. विजयपत सिंघानिया का गुब्बारा उस रिकौर्ड को तोड़ते हुए 2 घंटे में ही 21 हजार मीटर यानी 21 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंच गया.

जवाब बेटे का

व्रिवाद जब आम हुआ तो गौतम चुप रहे. लेकिन पिता के बयानों का असर जब कंपनी और कारोबार पर पड़ने लगा तो उन्हें जवाब देना जरूरी हो गया. पहले बयान में उन्होंने पिता पर ताना कसते कहा कि जो लोग झुकते नहीं है वे टूट जाते हैं और अलगथलग पड़ जाते हैं.

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यह जवाब मुकम्मल नहीं था और न ही पिता के आरोपों का खंडन था, बल्कि एक तरह से उन की पुष्टि करता हुआ था, जिस में यह साफ दिख रहा था कि मांबाप दोनों आलीशान ही सही, पर किराए के मकान में रहते बुढ़ापा तनहाई में काट रहे हैं, किसी भी मांबाप के लिए बेहद मानसिक और भावनात्मक यंत्रणा देने जैसी बात है. इस से यह धारणा खंडित हुई कि केवल निम्न और मध्यवर्गीय ही मांबाप को बुढ़ापे में इस तरह अकेला छोड़ देते हैं.

साल 2015 से विजयपत और गौतम में बातचीत बंद थी. इधर जब हमालवर और आक्रामक होते पिता आरोपों के मामले में व्यक्तिगत स्तर पर आ गए तो गौतम का तिलमिलाना स्वभाविक था. यहां तक बात के कोई माने नहीं थे कि विजयपत यह कहें कि गौतम रेमंड को अपनी जागीर समझते चला रहे हैं. पर जब विजयपत ने गौतम की बदमिजाजियों और भाई की हत्या कर देने जैसी बातें बतानी शुरू कीं तो गौतम को शायद समझ आया कि एक पिता जो उंगली पकड़ कर चलना सिखाता है, वह धक्का देने का भी माद्दा रखता है तो वे थोड़ा झुके.

सुलह का इशारा करते हुए गौतम ने कहा कि वे अपने पिता से बात करने को तैयार हैं. इस पर विजयपत का अहं फिर जाग उठा और उन्होंने कथित तौर पर बात करने आए बेटे से मिलना भी मुनासिब न समझा. इस पर गौतम ने कहा कि उन के पिता को निहित स्वार्थों के लिए बहकाया जा रहा है. उन की इस हालत पर उन्हें दुख है.

बचाव की मुद्रा में आते गौतम ने रेमंड के हितों का हवाला देते कहा कि जेके हाउस में ड्यूप्लैक्स मकान वे इसलिए नहीं दे पा रहे क्योंकि ऐसा कंपनी के शेयर होल्डर्स नहीं चाहते और उन के लिए कंपनी और शेयर होल्डर्स के हित सर्वोपरि हैं.

इस के पहले अदालत इन्हें मिलबैठ कर अपना विवाद सुलझाने की सलाह दे चुकी थी. लेकिन पितापुत्र के बीच मध्यस्थता कराने के लिए कोई आगे नहीं आया. गौतम की मुश्किलें उस वक्त और बढ़ गईं जब अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में उन के चचेरे भाईबहनों ने जेके हाउस में अपनी दावेदारी को ले कर एक और याचिका दायर कर दी. इन लोगों का आरोप यह है कि गौतम अपने करार और वादे से मुकरते हुए बेवजह जेके हाउस को आलीशान बनाने में कंपनी का पैसा जाया कर रहे हैं, यानी एक तरह से मामला टरकाते जा रहे हैं.

पेचीदे हिंदू उत्तराधिकार कानून के लिहाज से भी सिंघानिया परिवार के मुकदमे काफी दिलचस्प मोड़ पर हैं. वहीं विजयपत सिंघानिया की यह उजागर ख्वाहिश भी शायद ही कभी पूरी हो कि वे चाहते हैं कि एक बार फिर उन का परिवार एकसाथ रहे.

जिंदगीभर कारोबार में व्यस्त रहे और हवा में उड़ने का शौक पूरा करते बुढ़ापे की फुरसत की जलालत काट रहे विजयपत सिंघानिया को अब समझ आ रहा है कि इन्कंपलीट फेमिली की त्रासदी की मार बूढ़ों पर ज्यादा पड़ती है और गौतम को पूरी कंपनी सौंप देना उन की भारी भूल थी.

अब अंत जो भी हो लेकिन एक बात इस विवाद से आईने की तरह साफ हुई कि वाकई पैसों और जायदाद के मामलों में बेटों पर आंख बंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए. यह बेटों के प्रति ज्यादती नहीं, बल्कि समझदारी वाली बात होगी कि पैसा अपने पास ही रखा जाए वरना विजयपत सिंघानिया जैसे खरबपति की हालत जब भिखारियों सरीखी हो सकती है तो आम आदमी की बिसात क्या और हैसियत क्या.

बापबेटे और संपत्ति का जानलेवा खेल

पुरानी कहावत है कि झगड़े की 3 प्रमुख वजहें होती हैं. जर, जोरू और जमीन. फिलहाल आज के दौर के ज्यादातर झगड़ों, हत्या और विवादों के पीछे जमीन यानी संपत्ति ही प्रमुख वजह रही है. फिर चाहे वह अमीरों, कौर्पोरेट घरानों का विवाद हो या मध्यम या निचले वर्ग का. संपत्ति विवाद के चलते ही अंबानी बंधुओं का अलगाव हुआ. सिंघानिया परिवार विवाद भी इसी कारण से हो रहा है. नवंबर 2012 में ही विवादास्पद शराब कारोबारी पौंटी चड्ढा और उन के भाई दक्षिण दिल्ली स्थित एक फार्महाउस में उस समय मारे गए जब संपत्ति विवाद को सुलझाने के लिए बुलाई गई बैठक में दोनों पक्षों ने एकदूसरे पर गोलीबारी की.

संपत्ति को ले कर पौंटी और उन के भाई हरदीप के रिश्ते तल्ख थे. पौंटी और हरदीप के बीच संपत्ति को ले कर तकरार चली और फिर गोलियां. आज भी ऐसी घटनाएं देखनेसुनने को मिल जाती हैं जहां संपत्ति के लालच में अपने ही अपनों का या तो गला काट रहे हैं या फिर उन्हें रास्ते पर दरदर की ठोकर खाने पर मजबूर कर रहे हैं.

17 अक्तूबर, 2017 : लोग खुशियों और रोशनी के पर्व दीवाली की तैयारियों में जुटे थे. लेकिन एक दंपती के जीवन में उस के बेटों ने ही अंधेरा भर दिया. राजस्थान के अनूपगढ़ तहसील के सुंदर देवी और मनीराम को उन के बेटों व पोते ने धोखे से उन की जमीन अपने नाम करवा ली, घर पर कब्जा कर लिया व मारपीट कर घर से निकाल दिया.

27 जुलाई, 2017 :  होशियारपुर में रोबिन कुमार अपनी पत्नी व अपने पिता विजय कुमार के साथ एक ही घर में रहते थे. विजय कुमार अपनी पुरानी प्रौपर्टी को बेचना चाहता था. इसी को ले कर पितापुत्र के बीच अकसर तकरार हुआ करती थी. तकरार इस कद्र बढ़ गई कि पिता विजय कुमार ने अपनी लाइसैंसी डबल बैरल गन से अपने ही पुत्र रोबिन को गोली मार दी.

22 मई, 2017  :  देश की राजधानी दिल्ली में एक बेटे ने प्रौपर्टी के लिए अपने ही पिता और सौतेली मां को गोली मार दी. मामला आउटर दिल्ली के बाबा हरिदास नगर थाना इलाके का है.

26 सिंतबर, 2017  :  संपत्ति के विवाद में बेटे की हत्या करने के आरोप में कोर्ट ने पिता सहित 4 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. दरअसल, 28 नवंबर, 2010 को घर के लोग विवाद को सुलझाने के लिए बैठे थे. बेटे सुंदर ने उन की बात को मानने से इनकार कर दिया था. इस के बाद पिता गैंदा ने अपने दूसरे बेटे शिव कुमार और परिवार के अन्य लोगों की मदद से सुंदर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए उस के शव को जला दिया था.

27 सितंबर, 2017 :  उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के थाना क्षेत्र नीमगांव के गांव पिपरी कलां के छन्नू का जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए उस का अपने पिता से विवाद हो गया. विवाद कुछ इस कदर बढ़ गया कि छन्नू ने आव देखा न ताव, घर में रखी लोहे की एक रौड से अपने पिता पर वार कर दिया. इस से ओम प्रकाश की मौके पर ही मौत हो गई.

संपत्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

एक तरफ सिंघानिया परिवार में पितापुत्र के बीच संपत्ति को ले कर उठे विवाद के पेंच उलझते जा रहे हैं वहीं इसी परिवार की एक और कड़ी संयुक्त परिवार में अपनी संपत्ति का दावा करती हुई मुकदमा ठोक चुकी है. ऐसे में सितंबर माह में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला गौरतलब है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार का कोई सदस्य अगर परिवार से अलग होना चाहता है और वह संपत्ति पर दावा करना चाहता है तो उसे यह साबित करना होगा कि उस ने संपत्ति को खुद से अर्जित किया है या फिर वह संपत्ति पैतृक संपत्ति है.

Hyundai #AllRoundAura: भरोसे के साथ वारंटी भी

हुंडई Aura आती है एक ऐसे वारंटी के साथ, जिसे हुंडई कहती है वंडर वारंटी. यह एक ऐसा प्रोग्राम है, जहां आप अपने इस्तेमाल के अनुसार वारंटी की लंबाई चुन सकते है. यहां आप वारंटी के तीन विकल्प में से चुन सकते हैं, जो आपको 3 साल से 5 साल तक की कवरेज देता हैं. तीन साल वाले विकल्प में आपको 1,00,000 किलोमीटर या 3 साल का समय, जो भी पहले पूरा हो जाए, उतनी वारंटी मिलती है. इसके अलावा 4 साल / 50,000 किमी और 5 साल की वारंटी है, जो 40,000 किमी के लिए अच्छी है. वंडर वारंटी के साथ, आप अपनी जरूरतों के हिसाब से वारंटी चुन सकते हैं.

ऐसी वारंटी और भरोसे के साथ हुंडई Aura हमारा आत्मविश्वास बढ़ाती है. #AllRoundAura

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सुशांत सिंह राजपूत के घर पहुंची एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे, देखें वीडियो

बौलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड की तहकीकात जारी है. वहीं इसी बीच बौलीवुड के कई सितारे उनकी अचानकर मौत से सदमे में है. बीते दिन कई बॉलीवुड और टीवी सितारे सुशांत सिंह राजपूत के अंतिम संस्कार में पहुंचे, जहां एक तरफ उनकी रूमर्ड गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती उनके अंतिम संस्कार के दौरान शामिल रही. तो वहीं उनकी एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे नजर नही आईं. लेकिन अब अंकिता उनके घर पर नजर आईं. आइए आपको दिखाते हैं अंकिता के सुशांत के घर पर वीडियो…

 फूटफूटकर रोती दिखीं अंकिता

सुशांत सिंह राजपूत के अंतिम संस्कार के बाद उनकी एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) उनके घर पहुंची हुई नजर आई हैं. जहां पर एम एस धोनी स्टार ने आत्महत्या की थी. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही वीडियो में अंकिता लोखंडे, सुशांत सिंह राजपूत के घर के अंदर जाती नजर आ रही है. जैसे ही अंकिता लोखंडे ने सुशांत के घर में एंट्री की वैसे ही उनके सब्र का बांध टूट गया. ऐसे में अंकिता लोखंडे घर की खिड़की को पकड़कर फूट फूट कर रोती नजर आई.

 

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#ankitalokhande today at #SushantSinghRajput home to meet his family #rip 🙏

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मां के साथ सुशांत के घर पहुंची अंकिता

वीडियो में अंकिता लोखंडे को उनकी मां और परिवार के बाकी लोग संभालते नजर आ रहे हैं. गौरतलब है कि अंकिता लोखंडे, सुशांत सिंह राजपूत के घर अपनी मां के साथ पहुंची थी. वीडियो देखकर साफ पता चल रहा है कि अंकिता लोखंडे ने रो रोकर अपना कितना बुरा हाल कर लिया है. कैमरा देखकर भी उनके आंसू नहीं थमे.

टूट गई हैं अंकिता

बीते दिनों सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड की खबर से एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे को भी सदमा लग गया है. हाल ही में सीरियल पवित्र रिश्ता में उनके साथ काम कर चुकी एक्ट्रेस प्रार्थना बेहेरे ने इस बात का खुलासा किया था कि अंकिता लोखंडे का रो-रो कर बहुत बुरा हाल है. वह सुशांत सिंह राजपूत के जाने से बुरी तरह टूट गई हैं. वह एक बार सुशांत सिंह राजपूत से मिलना चाहती है और उनसे बात करना चाहती है. अंकिता लोखंडे समझने को तैयार ही नहीं है कि सुशांत सिंह राजपूत अब इस दुनिया में नहीं रहे.

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बता दें, अंकिता और सुशांत का 6 साल का रिश्ता टीवी का सबसे पौपुलर रिश्ता रहा है, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था. लेकिन दोनों के ब्रेकअप के बाद फैंस का दिल भी टूट गया था.

 

सावधान: 15 दिन बाद 10 हजार का जुर्माना समेत रद्द हो जाएगा PAN कार्ड, पढ़ें खबर

लॉकडाउन के बीच कई नियमों में बदलाव हुए हैं, जिसका पालन ना करने पर भारी जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है. हाल ही में आयकर विभाग के आयकर कानून के सेक्शन 272B के तहत एक नया नोटिफिकेशन जारी किया गया है, जिसके तहत पैन को आधार से लिंक करने की आखिरी तारीख 30 जून की गई है. आइए आपको देते हैं पैन कार्ड से जुड़ी पूरी जानकारी….

अगर आपके पास पैन कार्ड है तो फिर 10 हजार रुपये की पेनाल्टी देनी पड़ सकती है. दरअसल, पैन को आधार से लिंक करने की आखिरी तारीख 30 जून तय की गई है जबकि इससे पहले आधार को पैन कार्ड से लिंक कराने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2020 थी. लेकिन कोरोना वायरस महामारी के चलते हुए लॉकडाउन की वजह से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी आखिरी तारीख बढ़ाकर के 30 जून कर दी थी. वहीं इसके अलावा पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार कार्ड भी जरूरी है.

रद्द हो जाएगा आपका पैन कार्ड

आयकर कानून के तहत अगर आपको दोनों कार्ड लिंक नहीं हैं तो फिर 30 जून के बाद पैन कार्ड रद्द हो जाएगा. साथ ही 10 हजार रुपये का जुर्माना भी आपसे वसूला जाएगा. इसलिए जरूरी है कि 15 दिन में आप अपने पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करा लें.

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ऐसे चेक करें पैन-आधार लिंक है या नहीं

सबसे पहले आयकर विभाग की ईफाइलिंग वेबसाइट www.incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं और सबसे ऊपर ‘Quick links’ हेड में जाकर ‘Link Aadhaar’ पर क्लिक कीजिए.

इसके बाद स्क्रीन पर एक नया पेज खुलेगा और सबसे ऊपर एक हाईपरलिंक होगा जिस पर अंग्रेजी में लिखा होगा आप पहले ही आधार लिंक करने का अनुरोध कर चुके हैं, तो स्टेटस जानने के लिए यहां क्लिक कीजिए.

इस हाईपर लिंक पर क्लिक करने के बाद आपको अपने पैन और आधार की डीटेल्स डालनी होंगी. ‘व्यू लिंक आधार स्टेटस’ पर क्लिक कीजिए. इसके रिजल्ट में आपको पता चल जाएगा कि पैन आपके आधार से जुड़ा है या नहीं.

पैन को आधार से लिंक ऐसे करें लिंक

पैन-आधार से लिंक करने के लिए इनकम टैक्स की ई-फाइलिंग वेबसाइट पर जाएं.

साइट पेज पर बाईं तरफ आपको क्विक लिंक्स का ऑप्शन मिलेगा. यहां आपको ‘लिंक आधार’ ऑप्शन पर क्लिक करना है.

यहां आपको अपना पैन, आधार नंबर और नाम एंटर करना है. ये जानकारियां देने के बाद आपको एक ओटीपी भेजा जाएगा. ओटीपी को एंटर करने के बाद आपका आधार और पैन लिंक हो जाएगा.

ध्यान रखें कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपकी डीटेल्स को क्रॉसचेक करता है कि आपके आधार और पैन की जानकारी वैलिड है कि नहीं.

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बता दें, लॉकडाउन के कारण वन राशन कार्ड की योजना भी चालू कर दी है, जिसके तहत आप पूरे देश में अपने राशन कार्ड से किसी भी जगह से राशन खरीद सकते हैं, जिससे कई लोगों को फायदा मिल रहा है.

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