Mother’s Day 2020: Mohena Kumari को आई मां की याद, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह (Mohena Kumari Singh) इन दिनों अपनी मां से दूर हैं, लेकिन मदर्स डे के मौके पर वह अपनी मां को याद करना नहीं भूलीं. मोहेना (Mohena Kumari Singh) ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट से अपनी शादी की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह अपनी मां के साथ नजर आ रही है. वहीं इन फोटोज को देखकर लग रहा है कि मोहेना (Mohena Kumari Singh) को अपनी फैमिली की कितनी याद आ रही है. आइए आपको दिखाते हैं मोहेना का अपनी मां के लिए लिखा इमोशनल मैसेज….

रीवा की राजकुमारी को आई मां की याद

 

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When words don’t matter. #ma

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ये रिश्ता क्या कहलाता है स्टार मोहेना कुमारी सिंह (Mohena Kumari Singh) ने मदर्स डे (Mother’s Day) के मौके पर अपनी विदाई की मां के साथ कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें लग बहुत रो रही हैं.  साथ ही इन फोटोज को शेयर करते वक्त मोहेना ने अपनी मां के लिए लिखा, ‘जब शब्दों की जरुरत न हों…मां’.

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सासू मां को भी मदर्स डे किया विश

मोहेना कुमारी सिंह ने अपनी मां ही नहीं, बल्कि अपनी सासू मां को भी मदर्स डे विश करते हुए एक लंबी पोस्ट लिखी. इस पोस्ट के साथ मोहेना ने अपनी सासू मां की तारीफ करते हुए लिखा है कि आखिर वो कैसे अपने बड़े से परिवार का ध्यान इतने अच्छे से रख लेती हैं.

मोहेना की सास के साथ है बेहद प्यारी बौंडिग

 

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Saas Bahu Saga 💛💚❤️

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रीवा की राजकुमारी मोहेना कुमारी सिंह एक अच्छी बेटी ही नहीं बल्कि एक संस्कारी बहू भी है. वो हर वक्त अपनी सासू मां के साथ एक आदर्श बहू की तरह दिखती है. वहीं शादी को अभी कुछ ही महीने हुए है. लेकिन मोहिना कुमारी सिंह इतने कम वक्त में भी अपनी सासू मां की चहेती बन गई हैं और उनके साथ जमकर एन्जॉय करती है.

 

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वसुधैव कुटुम्बकं

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बता दें, मोहेना कुमारी सिंह शादी के बाद से अपने फैंस के लिए नए-नए पोस्ट डालती रहती हैं. मोहेना भले ही टीवी की दुनिया से दूर हो गई हैं, लेकिन फैंस उनका हर बात पर सपोर्ट करते हैं.

Lockdown में नहीं खरीद पा रहें हैं मोबाइल तो यह कंपनी देगी होम डिलीवरी

इस Lockdown में आप का स्मार्टफोन जबाब दे गया है और आप बंदी के चलते स्मार्टफोन (Smartphone) की खरीददारी नहीं कर पा रहें हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्यों की हांगकांग ( Hong Kong) की टेक्‍नोलॉजी कंपनी ट्रांजिसन (TRANSSION HOLDINGS) के स्‍मार्टफोन ब्रांड टेक्‍नो (Tecno) नें भारत में अपने ग्राहकों के लिए स्मार्टफोन (Smartphone) की होम डिलीवरी की पहल शुरू की है. इसके तहत इस मोबाइल कंपनी के वेबसाइट की विजिट कर आप को स्मार्टफोन का ब्रांड सिलेक्ट करना होगा और उसकी ऑनलाइन बुकिंग करनी होगी. इसके बाद आप के घर के सबसे नजदीक दुकानदार के जरिये आप द्वारा बुक की गई मोबाइल की डिलेवरी दे दी जायेगी.

कम्पनी के इस पहल के तहत 35,000 आउटलेट्स के जरिये इस सुविधा की शुरुआत की गई है. जिसके लिए ग्राहक को वेबसाइट के जरिये अपनी पसंद की दुकान का चयन करना होगा. इसके लिए टेक्नो की वेबसाइट के जरिये अपने एरिया का पिन कोड डाल कर अपनी पसंद की दुकान का चयन करना होगा. ऑनलाइन बुकिंग के बाद सरकार द्वारा कोविड-19 (COVID-19) के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए जोन के हिसाब से ऑर्डर की आपूर्ति 24 घंटे में की जाएगी. इसके लिए उपभोक्ताओं से कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा. इसके साथ ही कम्पनी नें धमाका ऑफर शुरू किया है जिसके तहत 799 रूपये का ब्लूटूथ ईयरपीस फ्री दिया जा रहा है.

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इस डोरस्टेप डिलीवरी सिस्टम में कंपनी नें अपने लोकप्रिय स्मार्टफोन कैमोन-15, कैमोन-15 प्रो और स्पार्क गो प्लस जैसे तमाम ब्रांड्स को शामिल किया है.

TRANSSION HOLDINGS के सीईओ अरिजीत तालपात्रा (Arijeet Taalpatra) ने एक बयान में कहा कि हम ग्राहकों की जरूरतों पर फोकस करने वाले ब्रांड है. इस संकट के समय स्टोर में जाकर खरीदारी करना किसी भी ग्राहक के लिए काफी मुश्किल काम है. हम ग्राहकों को 35 हजार से ज्यादा रिटेलर्स के नजदीक लाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं. उन्होंने अपनें बयान में कहा की यह डोर-स्टेप डिलिवरी एक नया लीड जेनरेशन मॉडल है. जिससे हम बिजनेस को जारी रखने का माहौल बना पाएंगे. इससे हमारे रिटेलर्स, ग्राहकों और सप्लाई चेन में शामिल सभी लोगों को मजबूती मिलेगी. उन्होंने कहा की यह सभी कार्य सरकार द्वारा तय किए गए दिशा निर्देशों और सलाह का पालन करते हुए किए जाएंगे.
उन्होंने कहा की Lockdawn के चलते मंदी से जूझ रहे रिटेलर्स को इस नए माडल से अपने कारोबार नए सिरे शुरू करनें में मदद मिलेगी.वहीं इस कम्पनी के उपभोक्ताओं को भी अपने घर में सुरक्षित रहते हुए मनपसंद उत्पाद चुननें में मदद मिलेगी.

शुरू होगा नोएडा कारखाना

TRANSSION HOLDINGS कंपनी अपने स्‍मार्टफोन ब्रांड टेक्‍नो (Tecno) का उत्पादन शुरू करने के लिए 11 मई से नोएडा कारखाने को फिर से चालू कर रही है. जो सरकारों की सलाह और दिशा निर्देशों को ध्यान में रख कर किया जाएगा.

वारंटी के विस्तार की कर चुकी है घोषणा

Lockdown के चलते घरों से निकलनें की पाबन्दी के चलते कई ग्राहकों के स्मार्टफोन में खराबी आने के बावजूद भी वारंटी का लाभ नहीं मिल पाया है. ऐसे में जिन ग्राहकों के डिवाइस की वारंटी 20 मार्च से 31 मई 2020 के बीच समाप्त हो रही है. उन ग्राहकों को कंपनी नें सहूलियत देते हुए दो महीने की वारंटी के विस्तार नीति को लागू करने घोषणा भी की है. इसके लिए टेक्नो नें अपनें 370 से अधिक सेवा केंद्रों का संचालन शुरू कर दिया है.

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मैं जब भी धूप में जाती हूं तो मेरी त्वचा लाल होने लगती है, इसका क्या कारण है?

सवाल-

मैं 28 साल की युवती हूं. मैं जब भी धूप में जाती हूं तो मेरी त्वचा लाल होने लगती है और त्वचा में सूजन भी दिखने लगती है. ऐसा क्यों होता है?

जवाब-

धूप में गाल और कानों का लाल होना आम बात है. लेकिन यदि आप की त्वचा पर लालपन के साथ-साथ सूजन और जलन भी हो रही है तो इस का मतलब है कि आप को धूप से ऐलर्जी है. ऐसे में बाहर जाने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें और खुद को कवर कर के निकलें. यदि आप को यह समस्या अधिक हो रही है तो आप एक बार किसी अच्छे स्किन डाक्टर से संपर्क जरूर करें.

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गर्मियों के मौसम में आप चाहे कितनी भी कोशिश करें घर से बाहर ना निकलने की पर किसी ना किसी वजह से हमें घर से बाहर जाना ही पड़ता है. रोज रोज धूप में जाने की वजह से आपको सनबर्न या टैनिंग जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है. ऐसे में इससे बचने के लिए त्वचा को खास देखभाल की आवश्यकता होती है. जानिए सनबर्न से त्वचा को सुरक्षित रखने के कुछ बहुत ही आसान लेकिन प्रभावशाली उपाय जो आपकी त्वचा को निखारने के साथ ही साथ आपकी खूबसूरती पर चार चांद लगा देगा.

– जितना हो सकें सुबह 10 बजे से लेकर शाम छह बजे के बीच धूप में निकलने से बचने की कोशिश करें, क्योंकि इस दौरान तेज धूप होती है. लेकिन अगर इस समय आपको घर से बाहर जाना ही पड़ता है तो आप अपने साथ हमेशा सनस्क्रीन रखें. सनस्क्रीन लगाए बिना घर से बाहर नहीं निकलें. बाहर निकलने से कम से कम 15 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं और हर दो-तीन घंटे पर इसे लगाते रहे. त्वचा के अनुसार सन प्रोटेक्शन फैक्टर (एसपीएफ) 15 या इससे ज्यादा एसपीएफ वाला सनस्क्रीन लगाएं.

– होठों, कानों, स्कैल्प और पैरों को नजरअंदाज न करें. शरीर के इन अंगों की देखभाल को आम तौर पर हम अनदेखा कर देते हैं. आजकल एसपीएफ युक्त लिप बाम आ रहे हैं, जिनका आप इस्तेमाल कर सकती हैं. पैरों को जूते या मोजे से ढककर रखें, जबकि सिर और कानों को आप स्कार्फ से ढक सकती हैं. अपने पैरों और कानों पर भी सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलें.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- यूं करें सनबर्न से अपनी त्वचा की सुरक्षा

ब्रेकअप के बाद एक्स पार्टनर एक दूसरे से बार बार पूछते हैं जो सवाल

ब्रेकअप हो जाने के बाद भी ब्रेकअप से सम्बन्धित न तो सवाल खत्म होते हैं और न ही जवाब.यह बात उन तथाकथित सेलेब्स पर भी लागू होती है,जो खुद को ब्रेकअप के बाद भी अच्छा दोस्त बताते नहीं थकते.ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ब्रेकअप सच में पीड़ादायी होता है और यह बात हम सब जानते हैं.लेकिन एक बात जो हम या तो कम जानते हैं वो है ब्रेकअप के बाद पैदा होने वाले अनगिनत सवाल.मनोविद कहते हैं चाहे जितनी स्पष्ट वजहों और आरोपों के चलते यह ब्रेकअप हुआ हो लेकिन  बदहवास सवालों की लम्बी सूची फिर भी बन ही जाती है.हाँ यह बात है कि उसी एक्स पार्टनर के बाद ज्यादा सवाल होते हैं,जिसे उस ब्रेकअप से ज्यादा पीड़ा हुई होती है.

हार्वर्ड की एक स्टडी के मुताबिक ब्रेकअप में ज्यादा टूटते तो लड़के हैं,लेकिन वे किसी से अपनी टूटन का जिक्र नहीं करते. मन ही मन घुलते रहते हैं.जबकि लड़कियों के ब्रेकअप के बारे में कम से कम उनकी 2 सहेलियों को तो पता ही होता है.हद तो यह है कि कई बार रोजाना एक ही बस या ट्रेन से सफर करने वाली उनकी सफरी सहेली को भी यह सब पता होता है.इससे उन्हें इस गम से उबरने में आसानी होती है.दूसरी तरफ लड़कों का आलम यह होता है कि उनके रूममेट तक को उनकी यह करूण कथा नहीं मालुम होती,जिससे वह इससे अकेलेद-अकेले ही घुलते रहते हैं.

जहां तक ब्रेकअप के बाद किसी एक पार्टनर द्वारा लगायी जाने वाली बदहवास सवालों की झड़ी का सवाल है तो स्टडी कहती है कि यूँ तो ब्रेकअप के बाद दोनों ही पार्टनरों को लगता है कि उन्हें एक दूसरे से बहुत से सवालों के जवाब जानने हैं,लेकिन ऐसे सवालों को पूछने की झड़ी किसी एक पार्टनर द्वारा ही लगाई जाती है.इसका सीधा सा निष्कर्ष यह होता है कि उन दोनों उसे इससे ज्यादा पीड़ा हुई होती है.मनोविद सवालों की इस झड़ी को फिर से एक साथ होने के लिए लगाईं गयी गुहार कहते हैं.आइये जानते हैं कि ये किस तरह के सावल होते हैं.

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ये अच्छा नहीं किया तुमने ?

यह सवाल भले आरोप की शक्ल में सामने आता हो लेकिन इसका आशय यही होता है कि तुमने ऐसा क्यों किआ ? यह सवाल कोई एक एक्स पार्टनर एक हजारवीं बार भी पहली बार के जैसे आश्चर्य के साथ कर सकता है.अपने इस सवाल का साथ देने के लिए वह साथ में इन सवालों को भी जोड़ता है-

क्या तुम मेरे बिन खुश हो ? जिंदगी में क्या तुम मुझे याद रखोगे ? भले ब्रेकअप के पहले ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड एक दूसरे को कितनी ही बार कहते हों- ‘आई मिस यू’ लेकिन ब्रेकअप के बाद यह सवाल स्थाई हो जाता है.लड़कियां तो खासतौर पर इस सवाल का जवाब जानना चाहती हैं कि उनका एक्स आखिर उन्हें कितना मिस करता है ?

तुम्हें कब लगा कि हमारी स्टोरी खत्म होनी चाहिए ?

स्टडी बताती है कि बहुत अजीब मनःस्थिति होती है हम जिस सवाल से बचना चाहते हैं,उसी को बार बार दोहराते हैं. शायद यह गुहार सुलह के लिए होती है.जो पार्टनर फिर से सुलह करना चाहता है वह विशेष तौरपर यह जानना चाहता है कि वह कौन सी स्थिति रही होगी जब उनके साथी को लगा होगा कि बस बहुत हो गया,अब यह रिश्ता आगे नहीं जा सकता.

क्या हमारा रिश्ता एक गुनाह था ?

ब्रेकअप के बाद आप चाहे जितने आत्मविश्वास वाले हों आपका आत्मविश्वास गड़बड़ा जाता है.इसलिए यह सवाल अक्सर जेहन में आता है.खासकर तब जब दोनों में से कोई एक दूसरे को इस ब्रेकअप से परेशान नहीं पाता.दरअसल स्टडी कहती है कि जो पार्टनर इस ब्रेकअप को खत्म करना चाहता है,उसे इस रिश्ते में अब भी संभावना दिखती है  इसलिए वह बारदृबार यह सवाल पूछता है.

क्या मेरे साथ रहना वाकई मुश्किल हो गया था?

अगर जिससे सवाल किया गया है वह पहली बार में ही जवाब के तौर पर हाँ कह दे तब भी यह सवाल बार बार पूछा जाएगा,पूछा जाता है. क्योंकि जो पार्टनर यह रिश्ता ब्रेक नहीं करना चाहता वह इस स्थिति को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा होता.इसलिए वह फिर फिर दोहराता है-

क्या मेरे साथ रहना वाकई मुश्किल हो गया था ? 

असल में सवाल पूछने वाला जवाब सुनना चाहता है- नहीं ऐसा नहीं था.

क्या मुझसे अलग होकर तुम्हें अफसोस हुआ?

लड़कियां ही नहीं लड़के भी अपने एक्स से यह जानना चाहते हैं कि क्या अलग होकर उनके एक्स पार्टनर को जरा भी अफसोस है?

लड़के तो आमतौर पर सवाल करके ही संतुष्ट हो जाते हैं,भले जवाब न मिले. लेकिन लड़कियां इस सवाल का जवाब भी हर हाल में चाहती हैं ताकि वे अब भी इस एहसास से राहत महसूस कर सकें कि जानना चाहती हैं कि वाकई कभी वह किसी की जिंदगी के लिए कितनी अहम थीं.

ये तुमने क्या स्टाइल बना रखी है ?

ये सवाल नहीं बल्कि एक किस्म से अब भी एक्स साथी के पास बची अधिकार की भावना होती है.खास तौरपर यह अधिकार लडकियां ज्यादा जताती नजर आती हैं.मतलब अब भी वह सिखाना नहीं छोड़तीं.

अब तुम्हारी लाइफ स्टाइल कैसी है ?

अकसर अपने एक्स को खोने के बाद लोगों के जेहन में यह सवाल कौंधता है.वह जानना चाहते हैं कि उनका एक्स, पार्टनर क्या अब भी उन्हें याद करता है ? क्या कहीं उसकी कमी महसूस करता है ?

मेरे बाद तुमने नया क्या किया ?

एक्स पार्टनर इस सवाल के जवाब में सुनना चाहता है कुछ नहीं. दरअसल इस सवाल के पीछे यह जानने की इच्छा बनी रहती है कि कहीं सब कुछ सही तो नहीं चल रहा जिससे उसकी याद का रस्ता ही बंद हो जाए ?

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क्या मुझसे मिलने का कभी मन करता है ?

यह भी वैसा ही सवाल है जिसका हर एक्स पार्टनर हाँ में जवाब सुनना चाहता है,भले अब इस जवाब का कोई मतलब न रह गया हो.

#coronavirus: गंगा में डुबकी लगाने को बेकरार सरकार

धर्मकर्म में लिपटी भाजपाई हुकूमत की सोच का दायरा ज्यादातर धर्म के इर्दगिर्द ही रहता है. गोमूत्र और गोबर से कोरोना के इलाज में असफलता के बाद अब गंगाजल में कोरोना का उपचार तलाशा जा रहा है. हालांकि, मैडिकल साइंस ने सरकार के इस अंधविश्वास की हवा निकाल दी है.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने गंगाजल से कोरोना के मरीज़ों के इलाज के मोदी सरकार के प्रस्ताव को टाल दिया है.

मालूम हो कि कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज के लिए गंगाजल का ट्रायल करने के भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय के प्रस्ताव को आईसीएमआर ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. परिषद का कहना है कि इसके लिए उसे अधिक वैज्ञानिक आंकड़ों की ज़रूरत है.

आईसीएमआर में अनुसंधान प्रस्तावों का मूल्यांकन करने वाली समिति के प्रमुख डाक्टर वाई के गुप्ता ने कहा कि फिलहाल उपलब्ध आंकड़े इतने पुख्ता नहीं हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए विभिन्न स्रोतों और उद्गमों से गंगाजल पर क्लिनिकल अनुसंधान किया जाए.

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अधिकारियों ने बताया कि जलशक्ति मंत्रालय के तहत आने वाले ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ को गंगा नदी पर काम करने वाले विभिन्न लोगों और गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) से कई प्रस्ताव मिले हैं जिनमें कोविड-19 मरीजों के इलाज में गंगाजल के उपयोग पर क्लिनिकल अनुसंधान करने का अनुरोध किया गया है. उन्होंने बताया कि इन प्रस्तावों को आईसीएमआर को भेज दिया गया.

गंगा मिशन के अधिकारियों ने बताया कि इन प्रस्तावों पर राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की गई थी. गौरतलब है कि नीरी ने गंगा नदी के विशेष गुणों को समझने के लिए उसके जल की गुणवत्ता और गाद का अध्ययन किया था. नीरी के अध्ययन के मुताबिक, गंगाजल में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के मुकाबले जीवाणुभोजी विषाणुओं (वायरस) की संख्या कहीं ज्यादा है. गंगा मिशन और नीरी के बीच हुई चर्चा के दौरान वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि अभी इसका कोई साक्ष्य नहीं है कि गंगाजल या गंगा की गाद में विषाणुरोधी गुण हैं.

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ग़ौरतलब है कि इससे पहले मोदी सरकार के कई मंत्री और भाजपा के कई नेता कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए गोमूत्र पीने और गोबर खाने तथा शरीर पर मलने का सुझाव दे चुके हैं. भाजपा के कई नेताओं ने तो कैमरे के सामने गोमूत्र पीकर महामारी के मुक़ाबले में इसके लाभदायक होने पर ज़ोर भी दिया था.

देश के मुखिया यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद भी कोरोना को भगाने के लिए देशवासियों से ताली व थाली बजाने और दीया जलाने जैसे कृत्य करवा चुके हैं. लेकिन जैसेजैसे देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, इस तरह के नेता परदे से नदारद होते जा रहे हैं.

मैं फ्रंट लाइन में काम करने वालों को सैल्यूट करता हूं – अक्षय ओबेरॉय

राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘इसी लाइफ में’ से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता अक्षय ओबेरॉय को शुरू से अभिनय करने की इच्छा थी, जिसमें उसके माता-पिता ने साथ दिया. विदेश में अपनी पढाई पूरी करने के बाद वे मुंबई आये और पृथ्वी थिएटर ज्वाइन किया और अभिनय की तालीम ली. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में और वेब सीरीज में काम किया और अपनी जर्नी से खुश है.

अक्षय ओबेरॉय का इस जर्नी में साथ दे रही उनकी पत्नी ज्योति है, जो उनके बचपन की प्रेमिका रही है. दोनों का बेटा अव्यान है. अक्षय ने हमेशा अलग और रुचिपूर्ण कहानियों को महत्व दिया और कामयाब रहे. वे सेल्फ मेड इंसान है और खुद की मेहनत को प्रमुखता देते है. उनसे बात करना रोचक था पेश है कुछ अंश.

सवाल-लॉक डाउन में क्या कर रहे है?

इनदिनों मैं अपने तीन साल के बेटे के साथ समय बिता रहा हूं उसे खाना खिलाना, खेलना, गार्डनिंग करना, किताबे पढ़ना, घर की साफ़ सफाई करना आदि करता हूं.मैंने पिछले कुछ सालों में बहुत सारा काम किया है अब थोडा समय मिला है. अपने परिवार के साथ बिता रहा हूं.

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सवाल-अभिनय के क्षेत्र में आने की इच्छा कैसे हुई?

मैं जब 12-13 साल का था, तो लगा कि एक्टिंग मेरी दुनिया है, क्योंकि मेरे पिता को फिल्मों से रूचि थी और वे मुझे फिल्में दिखाते थे, उस समय मैंने गुरुदत्त, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की कई फिल्में देख, लगा कि मुझे अभिनय ही करना है.

 

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Gardening!! #ThingsIDoDuringQuarantine

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सवाल-जब पिता को पहली बार अभिनय के बारे में बताया तो उनका रिएक्शन क्या था? उनका सहयोग कितना था?

12 साल की उम्र में जब मैंने पिता को अभिनय के बारें में कहा, तो वे पहले मेरी तरफ देखते रह गए और मेरी निश्चयता को परखने की कोशिश की. वे एक्टिंग फील्ड से परिचित थे, इसलिए अधिक कुछ नहीं कहा. बाद में मैंने भी उसी दिशा में ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया. स्टडी ख़त्म होने के बाद मैं फ्लाइट पकड़ कर मुंबई आ गया और काम करने की दिशा में लग गया. मैंने हमेशा अच्छी फिल्मों में काम करने की कोशिश की है. इससे दर्शकों का प्यार मुझे मिला है.

मेरे मुंबई आने से कुछ साल पहले मेरे माता-पिता अमेरिका से मुंबई आ चुके थे इसलिए यहाँ आने के लिए अधिक सोचना नहीं पड़ा. मुंबई आकर मैंने सबसे पहले पृथ्वी थिएटर में काम करना शुरू कर दिया. वहां मकरंद देशपांडे से मिला और कई नाटक किये. इससे सबसे परिचय हुआ और मैंने अपना पोर्टफोलियो हर प्रोडक्शन हाउस में छोड़ आगे बढ़ता गया.

सवाल-पहला ब्रेक मिलने में कितना संघर्ष रहा?

पहला ब्रेक मिलना बहुत मुश्किल होता है, बाहर से आने पर ये और अधिक मुश्किल होता है, लेकिन मुझे ये मौका राजश्री प्रोडक्शन वालों की तरफ से मिला जो मेरे लिए अच्छी बात रही. फिल्म अच्छी नहीं चली. फिर मैं थिएटर करने चला गया. वहां से टीवी और उसके बाद फिल्म ‘पिज़्ज़ा’ मिली. इसके बाद से मुझे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. मेरी सफल फिल्म ‘गुडगांव’ है, जिसे आलोचकों ने काफी सराहा. मैंने हमेशा उन फिल्मों को चुना, जिसमें मुझे अभिनय करने का मौका मिला. मैं अपने आपको वर्सेटाइल एक्टर कहलाना पसंद करता हूं.

सवाल-लॉक डाउन के बाद किस तरह से इंडस्ट्री को ग्रो करने की जरुरत होगी?

सभी बड़े निर्माता और निर्देशक इस बारें में अवश्य सोच रहे होंगे. कुछ सावधानियां लेनी पड़ेगी. सेट पर मास्क पहनना और हायजिन का ध्यान रखना पड़ेगा, क्योंकि इस लॉकडाउन के बाद में दर्शक भी कुछ नया देखना चाहेंगे.

सवाल-वेब सीरीज को आप कितना सराहते है?

ये एक अच्छा प्लेटफार्म है और आज के दर्शक भी बहुत स्मार्ट है, इसलिए अच्छी-अच्छी कहानियां वेब पर दिखाने की कोशिश लगातार चल रही है. फिल्मों को अगर टक्कर देने की बात हो, तो और भी अच्छी कहानियां लिखनी पड़ेगी. मैंने कई वेब सीरीज किये है, जो आगे आने वाली है. वेब सीरीज के विषय बहुत अच्छे होते है और किसी चरित्र को दिखाने के लिए बहुत समय मिलता है. क्रिएटिवली इसमें संतुष्टि अधिक मिलती है.

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सवाल-आपने एक छोटी सी भूमिका अभिनेता इरफ़ान खान की फिल्मपिकूमें किया था, कैसा अनुभव रहा?

मैंने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी जिसमें उनके साथ अभिनय का मौका नहीं मिला, पर मैं उनके काम से बहुत प्रभावित हूं. उनकी फिल्म ‘मकबूल’ मुझे बहुत पसंद है, उन्हें देखकर मुझे इंडस्ट्री में काम करने का हौसला मिला है. ऋषिकपूर की फिल्म ‘डी डे’ मुझे बहुत अच्छी लगी थी.

सवाल-क्या मेसेज देना चाहते है?

मैं इस समय फ्रंट लाइन पर काम करने वाले सभी को सैल्यूट करना चाहता हूं, जिसमें डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस, वोलेंटियर्स और सफाईकर्मी सभी है. उनकी वजह से हम सभी सुरक्षित है. वे हमारे सुपर हीरो है.

लॉकडाउन के साइड इफेक्ट: युवाओं की भी निकल आयी है तोंद

रिसर्च एजेंसी गैलप द्वारा हाल में किया गया एक रिसर्च सर्वे इन दिनों खूब चर्चा में है. इसके मुताबिक 4 मई के बाद जिन कुछ शहरों में लॉकडाउन में रियायतें दी गई है और दफ्तरों को खोल दिया गया है, हैरानी की बात है कि यहां के बहुत सारे लोग काम पर जाना ही नहीं चाहते. सरकारों ने जितनी संख्या में कर्मचारियों को ऑफिस आने की इजाजत दी है लोग उतनी संख्या में भी नहीं पहुँच रहे.

हद तो यह है कि जो लोग घरों से काम कर रहे हैं,उनमें से भी ज्यादातर लोगों के लिए ये छुट्टियों जैसा टाइम है और ये इसे खत्म होना नहीं देखना चाहते. हालांकि घरों से काम करते हुए भी ये लोग ईमानदार नहीं हैं. रिसर्च सर्वे के निष्कर्ष के मुताबिक़ ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के ज्यादातर लोगों के लिए आलस्य से बढ़कर कुछ नहीं है. इस सर्वे का तो यहां तक मानना है कि बहुत सारे लोग तो इस बात के लिए भी तैयार हैं कि भले ही उनकी तन्ख्वाहें कम कर दी जाएं लेकिन उन्हें काम पर अब न न बुलाया जाए.

वास्तव में यह इस लॉकडाउन का सबसे बुरा साइड इफेक्ट है. लेकिन युवाओं का आलस्य कोई पहली बार निकलकर सामने नहीं आया. सच्चाई तो यह है कि तमाम जिम कल्चर के हल्ले के बावजूद हिन्दुस्तान का कामकाजी युवा दुनिया में सबसे ज्यादा आलसी है और दैहिक नजरिये से दुनिया में सबसे बेडौल भी है. सिर्फ इस लॉकडाउन की ही बात नहीं है,वैसे भी पूरी दुनिया में ऑफिस जाने वाले युवाओं में भारतीय युवा ही ऐसे हैं जिनकी सबसे ज्यादा तोंद निकली हुई होती है. इन दिनों तो आलस्य का कारण लॉकडाउन और उसमें तय रूटीन का न होना है लेकिन जब सामान्य दिन होते हैं तब भी युवाओं का घंटों कुर्सी पर बैठकर काम करना.  काम की अधिकता और समय की कमी की स्थितियों का होना तथा दिन भर अस्त-व्यस्त रहना.  ये कुछ ऐसी बातें हैं जिनके चलते हमारे युवाओं का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे खराब है.

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बेतरतीब लाइफस्टाइल के कारण हमारी यह अस्वस्थ्यता सबसे पहले  हमारी बढ़ी हुई तोंद के रूप में ही दिखती है. यह अकारण नहीं है कि लॉकडाउन के पहले भी हर पांचवा भारतीय नौजवान औसत से ज्यादा मोटा था और हर आठवें नौजवान की तोंद बाहर निकली हुई थी. यह अलग बात है कि युवाओं की तोंद अधेड़ों जितनी तीखी या स्पष्ट नहीं दिखती. लेकिन नाभि के पास से अगर पेट खींचने पर पेट का एक बड़ा हिस्सा रबर की तरह खिंच जाए या हाथ पर आ जाए तो समझो तोंद निकली हुई . कई बार यह तोंद हमारे लिए इंबैरेसमेंट की वजह भी बन जाती है.  लेकिन अगर हम इससे शर्मिंदा न भी हों तो भी तो यह हमारे लिए कई किस्म की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह तो बनती ही है.

सवाल है इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? आप कहेंगे लाइफस्टाइल. अगर लाइफस्टाइल जिम्मेदार है तो इसे बदल दो. आप कहोगे आपके लिए यह संभव नहीं है; क्योंकि बाजार की यही डिमांड है. अगर लाइफस्टाइल बदलना संभव नहीं है; क्योंकि भूमंडलीकरण के चलते दुनिया आपस में एक जैसा जीवन जीने के लिए बाध्य है तो क्या पूरी दुनिया का भी यही हाल है ? इस सवाल का जवाब है-‘नहीं’. दुनिया में और कहीं भी युवाओं के स्वास्थ्य का ऐसा हाल नहीं है जैसे हमारे यहाँ है . वास्तव में हम हिंदुस्तानी चाहे युवा हों या अधेड़ इस कहावत को बेहद संजीदगी से अपनाते हैं कि आराम सबसे बड़ी चीज है.

हम लोग कसरती काम को बिल्कुल भी तरजीह नहीं देते हैं.  पांच  साल पहले हुए ‘मैक्सबूपा वॉक फॉर हेल्थ सर्वे’  में यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया था कि हर चौथा हिंदुस्तानी कसरत से जी चुराता है,चाहे वह युवा हो या अधेड़. सर्वे के मुताबिक जो लोग तथाकथित वर्जिश करते भी हैं वे भी दौड़ने या तैरने जैसी मेहनत भरी वार्जिशों से बचते हैं. इसकी जगह बागो बहार में टहलना पसंद करते हैं.  दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों के लोगों से बातचीत के आधार पर हुए सर्वे के मुताबिक 56 फीसदी लोग वर्जिश के नाम पर टहलना पसंद करते हैं. इसी सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक 42 फीसदी लोग स्वस्थ रहना चाहते हैं, इसलिए टहलते हैं जबकि 34 फीसदी लोग ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं इसलिए टहलते हैं.  इसी क्रम में 24 फीसदी ऐसे भी हैं, जिन्हें डॉक्टर साहब ने कहा तो टहलने लगे वरना इनका अपना कोई एजेंडा नहीं था.

सबसे चिंताजनक बात यह है कि 50% युवा मानते हैं स्वास्थ्य की चिंता करना तो बुड्ढों का काम है ,हम क्यों इसे लेकर परेशान रहें  हम क्या कोई बुड्ढे हैं ? कुल मिलकर कहने की बात यह है कि निकलती तोंद लाइफस्टाइल या बदले हुए वर्क नेचर का नतीजा नहीं बल्कि हमारी नासमझी और स्वास्थ्य को लेकर जागरूक न होने का नतीजा है.  बहरहाल इस सब पर आपकी कितनी भी आलोचना कर ली जाए कोई फायदा नहीं. इसलिए आइये देखते हैं कि खानपान की सजगता से बढ़ती हुई तोंद पर कैसे काबू पाया जा सकता है? अगर आपकी तोंद निकली हुई है तो आपके लिए पुदीना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.  नियमित रूप से इसकी चटनी और पुदीने से बनी चाय  पीजिये.  जल्द ही मोटापा से निजात मिलेगा और तोंद से भी.  आपके लिए सौंफ भी कापी फायदेमंद साबित हो सकती है.  इसके लिए आधा चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबालें और फिर करीब 10 मिनट तक के लिए इसे ढक कर रख दें.  इसके बाद इस पानी का सेवन करें.  लगातार तीन महीने तक ऐसा करने से वजन में फर्क पड़ेगा और मोटापे में भी.

मूली को सलाद में तो खाते ही होंगे. अब इसके रस का भी सेवन करना शुरू करिए. दो बड़े चम्मच मूली के रस में शहद मिलाकर बराबर मात्रा मिलाकर इसे पानी के साथ पीयें.  एक महीना ऐसा करने से आपका वजन में निश्चित फर्क दिखेगा.  टमाटर और प्याज भी फैट कम करने में काफी फायदेमंद साबित होते हैं.  इसके लिए खाने के साथ टमाटर और प्याज के सलाद पर काली मिर्च और नमक डालकर खाइए.  इससे बढ़ता वजन कम होने लगेगा.  साथ ही आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, आयरन, पोटैशियम, लाइकोशपीन और ल्यूटिन भी पहुंचेगा.

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करेले की सब्जी खाने से भी वजन में फर्क पड़ता है.  इसके लिए कम तेल में कटे हुए करेले की सब्जी खाएं न कि तले हुए करेले. ग्रीन टी भी मोटापा कम करने में सहायक है.  ग्रीन टी का सेवन शुरू करें बिना चीनी और दूध.  इसमें मौजूद एंटी ऑक्सिडेंट्स आपके चेहरे से झुर्रियों को भी हटाता है और साथ ही साथ वजन को भी नहीं बढ़ने देता. लौकी का जूस वजन घटाने का एक अच्छा माध्यम है. इससे आपका पेट भी भरा रहता है और लौकी में मौजूद फाइबर भी शरीर को स्वस्थ रखते हैं.  जाहिर है मोटापा तो कंट्रोल में रहता ही है.  हरी मिर्च भी आपके इस अभियान में सहायक बन सकती है बशर्ते तीखी हो और उसे खाते हुए बार बार आप पानी न पीयें.

आपके लक्ष्य को हासिल करने में गाजर की भी काफी उपयोगिता है.  इसके लिए करें ये कि खाना खाने से कुछ देर पहले गाजर खाएं. गाजर का जूस भी वजन कम करने में सहायक होता है. लेकिन बाजार में पीयें तो ध्यान रखें उसमें चीनी या स्क्रीन न हो. पपीता भी फायदेमंद है. पपीता हर मौसम में उपलब्ध है. लंबे समय तक पपीते का सेवन चर्बी कम करता है.  मोटापा कम करने के लिए छाछ भी काफी उपयोगी है. लेकिन लस्सी की तरह से पीने में नहीं.  इसके लिए आंवले और हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर इसका पाउडर बना लें और इसे रोजाना छाछ के साथ पीयें. बहरहाल मेहनत करके तोंद नहीं सिकोड़ना चाहते तो खानपान की सजगता से ऐसा कर सकते हैं. तोंद कम होगी.

कैसी है आप की बौडी लैंग्वेज

लेख- निरंजन धुलेकर

घर में घुसते ही श्रीमतीजी, जो रोज हाथ से ब्रीफकेस ले कर मुसकराती थीं आज मुंह घुमा कर अंदर चली गईं. मैं समझ गया कि आज श्रीमतीजी नाराज हैं. किस बात पर, जानने के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ेगी.

इन से पूछा, ‘‘क्या बनाऊं खाने में?’’ जवाब में बिना बोले अखबार पटक कर उठ कर चले गए. फौरन समझ गई कि सवेरे की नाराजगी गई नहीं है अब तक.

मांजी से पूछा, ‘‘कुछ लाना है बाजार से?’’ और वे फौरन अनसुना करते हुए कुछ गुनगुनाने लगीं. मैं समझ गई कि आज माताश्री का मूड खराब है.

बेटा स्कूल से लौटा और बिना कुछ बोले बैग पटक कर अपने कमरे में चला गया. इस का मतलब आज टिफिन का खाना पसंद नहीं आया छोटे नवाब को.

भीड़ में राकेश ने मुझे देखा तो जरूर पर अनदेखा करते हुए निकल गया. आज उसे मेरे पैसे जो लौटाने थे.

सुरेश अपनी बीवी के साथ रैस्टोरैंट में बैठा दिखा, हलके से मुसकरा कर बातों में व्यस्त हो गया. मैं समझ गया कि डिस्टर्ब न करूं इसी में खैरियत है.

हमेशा फौर्मल से मिलने वाले हरजीत ने मुझे देखा और गले ही लगा लिया. समझ गया कि आज कुछ मतलब है इस का. आप जोड़ते चलिए, ये है हावभाव की भाषा यानी बौडी लैंग्वेज.

आप ने अकसर महसूस किया होगा कि कुछ लोग आप को देख कर नजरें फेर लेते हैं, गरदन घुमा लेते हैं या आप

के ऊपर से निगाहें इस तरह फेर लेंगे कि आप को एहसास हो जाए कि उन्होंने इग्नोर कर दिया.

आप ने यह भी देखा होगा कि कुछ लोगों से नजरें मिलते ही दोनों के पैर एकदूसरे की तरफ बढ़ने लगते हैं. हाथ हाय की मुद्रा में ऊपर उठ जाते हैं और होंठों पर मुसकान भी आ जाती है.

दोनों तरफ से एकजैसी हरकत हो तो कोई दिक्कत नहीं पर कोई बस जरा सा हाथ उठा कर दूसरी तरफ देखने लगे तो?

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गरदन घुमाना, झटके देना, मुंह घुमाना, गरदन और कंधों का झुकना, बालों में हाथ फेरना, मुसकराना, आंखें फेर लेना, हाथों के इशारे, पैर पटकना आदि सब बौडी लैंग्वेज के ही तरीके हैं. शारीरिक हावभाव यानी बौडी लैंग्वेज भावों के संप्रेषण की वह विद्या है जिस में शब्दों की आवश्यकता नहीं होती.

आप ने अकसर सुना होगा कि फलां आदमी की बौडी लैंग्वेज ही ऐसी है कि उस के साथ बात करने का मन ही नहीं करता था. कुछ लड़कियों की बौडी लैंग्वेज ही ऐसी होती है कि कोई लड़का उन के साथ बदतमीजी करने की सोच भी नहीं सकता. या फिर कुछ लोगों की बौडी लैंग्वेज ऐसी होती है कि सामने वाला स्वयं ही उन के साथ सहज हो जाता है.

बौडी लैंग्वेज यानी शारीरिक हावभाव के माध्यम से ही सामने वाले की मंशा जाहिर हो जाए. यह क्रिया सिर्फ मनुष्यों में ही नहीं, मूक जानवरों में भी पाई जाती है जिन्हें पशुप्रेमी बड़ी लगन से सीखते हैं. जैसे, कोई गाय मरखनी कहलाती है, आप को देखते ही उस का सिर वार करने के लिए नीचे झुक जाएगा, वह पैर पटकने लगेगी, सांप का सुरक्षा में फन निकालना और शेर का गुस्से में पूंछ को मरोड़ना बौडी लैंग्वेज ही है.

कोई ऐसा रिश्तेदार या चिपकू दोस्त जो बेवजह और गलत समय पर टपक पड़े तो आप मुंह से तो कुछ न बोल पाएंगे पर चेहरे के हावभाव से ही वह समझ जाएगा कि वह अवांछित है और उसे निकल लेना चाहिए.

मिलनसार लोगों के हावभाव आप को अपनी तरफ खींच लेंगे पर खड़ ूस टाइप के लोगों की भौंहें हमेशा तनी रहेंगी और नाक चढ़ी होगी. क्लास में कुछ शिक्षक मुसकराते हुए घुसते हैं तो कुछ आते ही त्योरियां चढ़ा कर गुस्सैल चेहरा बना लेते हैं.

इंटरव्यू लेने वाले भी हर कैंडिडेट की बौडी लैंग्वेज को बारीकी से पढ़ते हैं ताकि उस का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सके और उस की पर्सनैलिटी को जाना जा सके.

कुछ को देखते ही आप को नींद सी आने लगती है या किसी दूसरे के आने की खबर से ही मूड फ्रैश हो जाता है.

कुछ निकम्मे लोग अपने चेहरे पर ऐसे बेवकूफीभरे हावभाव ले कर सामने आएंगे कि आप को समझ में आ जाएगा कि इस की कुछ भी समझ में नहीं आया.

वहीं, कुछ लोगों को देखते ही आप के दिल में उम्मीद जागने लगेगी कि चलो, अब कुछ काम हो जाएगा.

अकसर लड़का और लड़की जब पहली बार एकदूसरे को देखते हैं तो एकाएक उन की बौडी लैंग्वेज यह स्पष्ट कर देती है कि सूरत पसंद आई या नहीं.

यही हाल उन के पेरैंट्स का भी होता है कि प्रथम दृष्टया ही लड़का या लड़की अगर जंचे नहीं तो आप उन के हावभाव से ही समझ जाएंगे कि अब ये मात्र औपचारिकता निभा

रहे हैं.

बौडी लैंग्वेज 3 तरह की होती है, पहली आदतन, दूसरी इरादतन और तीसरी मजबूरन.

पहली श्रेणी आदतन में वे लोग होते हैं जिन के हावभाव स्थायी होते हैं अर्थात सब को मालूम रहता है कि यह आदमी टेढ़ा ही है, यानी यह उस के व्यक्तित्व का हिस्सा है, या कोई आदमी हमेशा व्यथित ही रहेगा तो कोई नाराज, कोई मस्तमौला तो कोई हर वक्त निर्विकार.

दूसरी श्रेणी इरादतन वाली. इस में व्यक्ति किसी खास जगह के परिवेश में प्रवेश करते ही बौडी लैंग्वेज बदल देता है. अनेक महिला कर्मचारियों की दफ्तर में छवि एकदम कड़क स्त्री की होती है पर अगर उन के घर जाएं तो वे मिलनसार निकलेंगी. पूछने पर जवाब यही होगा कि वह तो मैं जानबूझ कर बौडी लैंग्वेज ऐसी बना लेती हूं कि कोई मेरे पास ही न फटके.

यानी हावभाव को आप एक बेहतरीन मुखौटा भी बोल सकते हैं जिसे व्यक्ति स्वयं के हितों को साधने के लिए लगाता है.

घर में भी पत्नी की बौडी लैंग्वेज से पति को समझ में आ जाता है कि आज मामला अलग है, या तो नाराजगी है या आज बेहद खुश है.

तीसरी श्रेणी वह जो किसी परिस्थिति के सामने आते ही हरकत में आ जाएगी. उदाहरणस्वरूप, यदि परिणाम इच्छानुसार आ गया तो दूर से ही देख कर घर वाले समझ जाते हैं कि मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई और अगर फेल हो गए तो आप की चालढाल से ही अपयश टपकने लगेगा, आप को बोलने की जरूरत नहीं.

बौडी लैंग्वेज का एक ज्वलंत उदाहरण पूरे देश ने टीवी पर तब देखा जब हमारा विक्रम चांद से कुछ दूरी पर खो गया.

इसरो के वैज्ञानिकों के हावभाव तुरंत ही बदल कर हमें बता रहे थे कि कुछ बहुत अनपेक्षित अनहोनी हो गई है. कुछ क्षण पहले जो चेहरे खुशी और कुतूहल से मौनिटर्स की तरफ देख रहे थे, दूसरे पल उन्हीं चेहरों पर घोर आश्चर्यजनित निराशा छा गई. गरदनें झुक गईं और कुछ आंखें नम सी हो गईं.

इसी तरह के उदाहरण खेल के मैदान में भी हम ने देखे हैं जब किसी निश्चितरूप से हारने वाली या जीतने वाली टीम के हर सदस्य के शरीर के हावभाव में हार या जीत स्पष्ट झलकती है. चेहरों पर विषाद या प्रसन्नता के साथ ही पूरा शरीर भी अपनी भाषा से सब को बताता चलता है कि उस के मालिक का मन दुखी है या सुखी. अनेक बार आप को चेता दिया जाता है कि ज्यादा दांत मत निकालना उन के सामने या एकदम गंभीर हो कर मत रहा करो उन के सामने. यानी आप को जबरन ही सही, अपने हावभाव बदलने को कहा जाता है ताकि किएकराए पर पानी न फिर जाए.

हमें भी किसी खास व्यक्ति से एक विशेष बौडी लैंग्वेज की आदत हो जाती है, अगर उस में जरा भी अंतर दिखे तो हम बोल पड़ते हैं, ‘आज कुछ गड़बड़ है.’ असल बात तो यह है कि बात करने के बजाय हम लोग बौडी लैंग्वेज या हावभाव के जरिए अपनी पसंद, नापसंद या इरादे साफ कर देते हैं आखिर जबान क्यों खराब करनी? अनजाने व्यक्ति की बौडी लैंग्वेज भी हम आसानी से पहचान सकते हैं. सफर में कोई व्यक्ति बिना वजह हंसे, करीब आने की कोशिश करे, तो हम तुरंत सावधान हो जाते हैं कि कुछ तो गड़बड़ है.

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एक बात तो स्पष्ट है कि व्यक्तिगत रूप से हम चाहे जितने खुश या व्यथित हों, इस का बोझ सामने वाले पर डालने की आवश्यकता नहीं. सामने वाले को क्या पता कि आप की मानसिक स्थिति क्या है? स्वभाव में परिपक्वता शायद इसी को कहते हैं. हर हाल में दूसरे के सामने अपनी मानसिक स्थिति पर काबू कर के समभाव रखना और अपनी खुशी या दुख का भार सामने वाले पर न डालना क्योंकि वह अनभिज्ञ है आप की खुशी या दुख से.

सीधा उपाय यह है कि अपने आचार और व्यवहार में सकारात्मक रहिए, स्वाभाविक रहिए. हमें याद रखना चाहिए कि नकली स्वभाव यानी मुखौटे अधिक समय तक टिके नहीं रहते. नखरे और उलटेसीधे अवांछित, असामयिक हावभाव दिखा कर हम खुद की कमजोरी ही प्रदर्शित करते हैं और बिना वजह बुराई मोल ले लेते हैं.

संवाद से गांठें खुलती हैं और अवांछित शारीरिक भाषा से मामले और मसले उलझ व बिगड़ जाते हैं. जो बोलना चाहते हैं नम्रता से स्पष्टरूप से कहिए. हमारे शरीर के हर अंग के कार्य बंटे हुए हैं. मुंह, आवाज और भाषा का उपयोग संदेश संप्रेषण के लिए करें. वाणी और हावभाव दोनों को सदैव नियंत्रित रखें, यही उचित होगा. अपने दिल के राज बिनबोले खोलना ठीक नहीं. बौडी लैंग्वेज ऐसी कभी मत रखिए जिस से आप के व्यक्तित्व को लोग अटपटा कहें या आप से दूर भागें. आदतन बौडी लैंग्वेज में यदि बदलाव कर सकें तो जरूर करिए.

चेहरे पर सजी मुसकराहट सामने वाले को सहज करती है और गिलेशिकवे दूर करने और स्वस्थ व सफल संवाद साधने की पहली सीढ़ी होती है, जो फासलों को पाटने के भी काम आती है. इसे कभी गलत हावभाव से काटने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. निश्च्छल मुसकराहट ही एकमात्र ऐसी बौडी लैंग्वेज है जो सर्वप्रिय होती है. इसे कभी चेहरे से अलग न होने दें.

Serial Story: फैसला (भाग-3)

लेखक- सुशील कुमार भटनागर

ब्याह के बाद रंजना और निखिल शिमला चले गए थे घूमने. वहां से लौटने के बाद रंजना अपने पति निखिल के साथ ही आई थी अजमेर. निखिल का चेहरा मुरझाया हुआ था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अपने विवाह की कतई खुशी नहीं है. सुबह नाश्ते के बाद अनायास ही मुझ से वह पूछ बैठा था, ‘पापाजी, यदि आप बुरा न मानें तो एक बात पूछ सकता हूं आप से?’

‘हां बेटा, क्या बात है, पूछो?’

‘पापाजी, मुझे ऐसा लगता है जैसे रंजना मेरे साथ खुश नहीं है.’

‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है बेटा. रंजना ने तो खुद ही तुम्हें पसंद किया है?’ रीना बीच में ही बोल पड़ी थी.

‘नहीं, मम्मीजी, रंजना का कहना है कि वह किसी और से प्यार करती है. उस की शादी मेरे साथ उस की इच्छा के विपरीत जबरदस्ती कराई गई है.’

निखिल की बात सुन कर हम दोनों के चेहरे उतर गए थे.

‘अरे बेटा, रंजना कालेज में नाटकों में भाग लिया करती थी सो मजाक करती होगी तुम से. वैसे भी बड़ी ही चंचल और मजाकिया स्वभाव की है हमारी रंजना. उस की किसी भी बात को कभी अन्यथा मत लेना. बड़े लाड़प्यार में पली है न, सो शोखी और नजाकत उस की आदतों में शुमार हो गई है,’ रंजना की मां ने बड़ी सफाई से बात टाल दी थी.

‘पर मम्मीजी, अभी हमारी शादी को 1 महीना ही तो हुआ है. रंजना जबतब मुझ से जिद करती रहती है कि मैं उसे उस के फ्रैंड से मिलवा दूं जिस से वह प्यार करती है, नहीं तो वह आत्महत्या कर लेगी. कभी यह कहती है कि आप क्यों मेरे साथ नाहक अपना जीवन बरबाद कर रहे हो, क्यों नहीं मुझे तलाक दे कर दूसरा ब्याह कर लेते? यह सब सुनसुन कर तो मेरे होशोहवास गुम हो जाते हैं.’

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‘बहुत बुरी बात है बेटा, मैं उसे समझा दूंगी. तुम थके होगे, आराम कर लो कुछ देर,’ कहती हुई रंजना की मां कांपते कदमों से रसोई की ओर बढ़ गई थीं. मौके की नजाकत भांपते हुए मैं भी बाहर आंगन में आ कर अखबार खोल कर बैठ गया था.

रंजना निखिल के साथ ससुराल जाने को अब कतई तैयार नहीं थी. रीना और मैं ने उसे खूब समझाया था. रंजना की मां यह कहते हुए रो पड़ी थीं, ‘अब क्यों अपने मांबाप की लाशें देखना चाहती है तू? क्यों जान लेने पर तुली है हमारी? तू यही चाहती है न कि तेरी करतूतें जगजाहिर हों और हम कहीं के न रहें, बिरादरी में नाक कट जाए हमारी. अपनी इज्जत की खातिर जहर खा कर मर जाएं हम.’

‘बेटी, तेरी शादी हो गई, तेरा घर बस गया. इतना अच्छा, सुंदर, समझदार पति और इज्जतदार ससुराल मिली है तुझे, उस के बाद भी ऐसी बेवकूफी करने पर तुली है तू. जरा अक्ल से काम ले, अपना जीवन देख, अपना भविष्य देख, अपनी गृहस्थी देख. क्यों मूर्खताभरी बातें करती है? जो संभव नहीं है उस के लिए क्यों सोचती है? हम तेरे भले के लिए कह रहे हैं, और इसी में सीमा की भी भलाई है. तू अब यह फिल्मी प्यारमोहब्बत का चक्कर छोड़ और अपना घर व अपनी मानमर्यादा देख.

‘सीमा तेरी सगी बड़ी बहन है. अभी तक उसे कुछ भी पता नहीं चला है. तू ही सोच जब उसे पता चलेगा इन सब बातों का तो उस का क्या हाल होगा? भूचाल सा आ जाएगा उस की हंसतीखेलती जिंदगी में,’ मैं गिड़गिड़ाते हुए रो पड़ा था.

हमारे समझाने पर रंजना अपनी ससुराल चली गई थी पर 5वें दिन ही निखिल का पत्र मिला. लिखा था, ‘पापाजी, रंजना का फिर वही हाल है. कहती है, मैं बंधुआ मजदूर हूं आप की, दासी हूं आप की, नौकरानी हूं आप की पर पत्नी किसी और की हूं. छोड़ दो मुझे और मुक्त हो जाओ वरना मैं घर से किसी दिन भाग जाऊंगी या आत्महत्या कर लूंगी, फिर तुम सब लोग कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस जाओगे. हम सब बहुत तनाव में हैं, आप पत्र मिलते ही फौरन चले आइए.’

हम निखिल के पत्र पर कोई कदम उठा पाते इस के पहले ही हमें खबर मिल गई थी कि रंजना ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा ली थी. जब तक हम जयपुर पहुंचे तब तक सारा खेल खत्म हो चुका था. वह जल कर मर चुकी थी.

रंजना की पार्थिव देह देख कर मन हुंकार कर उठा था. ऐसा जी चाह रहा था कि नरेंद्र की जान ले लूं. यह सब नरेंद्र की वजह से ही हुआ था. पर मैं मजबूर था, ऐसा नहीं कर सकता था. एक तरफ रंजना की पार्थिव देह थी तो दूसरी तरफ नरेंद्र, मेरी बड़ी बेटी सीमा का सुहाग था. और फिर जिस राज को जान कर सीमा का घर बरबाद न हो, यह सोच कर छिपाए बैठे थे हम, उसे यों ही आवेश में आ कर उजागर कर देना मूर्खता ही होती.

‘नहीं, नहीं, यह राज दफन कर दूंगा मैं अपने सीने में,’ मैं बुदबुदा उठा था.

पुलिस केस बना था रंजना की मौत पर. पुलिस ने मुझ से, रंजन से और रंजना की मां से भी पूछताछ की थी पर हम ने स्पष्ट कह दिया था कि हमें कुछ भी पता नहीं कि रंजना की मौत किन परिस्थितियों में हुई है. अभी हम कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं हैं. और फिर रंजना के दाहसंस्कार के बाद हम अजमेर चले आए थे. उस के बाद क्या हुआ, कुछ पता नहीं. साले साहब से इतना जरूर पता चला था कि पुलिस ने दहेज हत्या का केस बना कर गिरफ्तार कर लिया था रमानाथजी के पूरे परिवार को. उस के बाद क्या हुआ हम ने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की थी. रंजना की यादें उस पुराने मकान में सताती थीं इसलिए हम ने उस मकान से दूर नया मकान खरीद लिया था और नए मकान में आ गए थे.

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प्रकरण की सुनवाई हेतु हमें कोर्ट से भी कोई नोटिस नहीं मिला था. पर आज आरती को इस हाल में देख कर अपराधबोध हुआ था मुझे और मैं सिहर उठा था किसी अनजाने भय से.

दीवारघड़ी ने रात के 2 बजने की सूचना दी तो मेरी तंद्रा भंग हो गई. अपनी उंगलियों में फंसी हुई समाप्तप्राय सिगरेट को खिड़की से बाहर उछाल दिया और पलट कर पुन: पलंग पर लेट कर अपनी आंखें मूंद लीं मैं ने.

‘‘जीजाजी, दरवाजा खोलिए, चाय लाई हूं मैं,’’ सलहज साहिबा ने दरवाजा खटखटाया तो मेरी आंख खुल गई. मैं ने नजर उठा कर दीवारघड़ी की ओर देखा, सुबह के 6 बज रहे थे. रीना भी जाग गई थी दरवाजे पर थाप की आवाज सुन कर. मैं ने दरवाजा खोला तो सलहज साहिबा मेरा चेहरा देख कर बोलीं, ‘‘लगता है जीजाजी रात भर सोए नहीं.’’

‘‘हां, आज रात जाग कर एक बहुत महत्त्वपूर्ण फैसला किया है मैं ने.’’

‘‘क्या?’’ वह आश्चर्य से मेरे चेहरे पर अपनी नजरें टिकाते हुए पूछ बैठी.

‘‘यही कि रिश्ते के नाम पर कलंक हूं मैं. जब मेरी गरज थी, रंजना को ब्याहना था तब तो रमानाथजी के हाथ जोड़े फिरता था मैं, और जब रंजना ने गलत कदम उठा कर अपनी ससुराल में आत्मदाह कर लिया तो उन निर्दोष लोगों की सुध तक नहीं ली कभी मैं ने. मैं अपने फर्ज से, अपने कर्तव्य से विमुख हो गया. क्या रंजना के मरने से रिश्ता भी मर गया? नहीं, रिश्ते तो प्रीत की डोर के पक्के बंधन होते हैं, ये यों ही नहीं टूट जाया करते.

आज आएदिन अखबारों में दहेज और दहेज हत्याओं के प्रकरण प्रकाशित होते रहते हैं. मैं यह तो नहीं कह सकता कि उन में से कितने सही होते हैं पर इतना जरूर कह सकता हूं कि उन में से ज्यादातर मामले में मेरे जैसे कायर पिता और आजकल की रंजना जैसी नादान और बेवकूफ लड़कियां होती हैं जो विवाह पूर्व के प्रेमप्रसंग, स्वतंत्र और उन्मुक्त जीवन की चाह में अपनी ससुराल में अपने संबंध बिगाड़ लेती हैं.

इस तरह पैदा हुई कलह पर अपना पूरा जोर दिखाने के लिए दहेज विरोधी कानून का सहारा ले कर अपने जीवन को या तो तलाक के कगार तक पहुंचा देती हैं या जीवनभर के लिए अपने पति और ससुराल वालों से रिश्तों में विष घोल लेती हैं और या फिर रंजना की तरह ही आत्महत्या कर लेती हैं.

पर अब मैं चुप नहीं रहूंगा. मैं अगर अब भी चुप रहा तो चैन से मर भी न सकूंगा. यह बोझ अब और नहीं ढो पाऊंगा. जो इस समाज के डर से, अपनी इज्जत के डर से अब तक ढोता आ रहा हूं. पर अब मैं कोर्ट में अपना बयान दूंगा. जज साहब को रंजना की मौत के सभी सत्य तथ्यों से अवगत करा दूंगा और निखिल का वह पत्र भी अजमेर से ला कर सौंप दूंगा जो उस ने मुझे रंजना के आत्मदाह से पूर्व लिखा था. हम अब रमानाथजी और उन के परिवार को रंजना का हत्यारा होने के गलत आरोप से बचाएंगे. यह हमारा फर्ज है, और अटल फैसला भी.’’

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Serial Story: फैसला (भाग-1)

लेखक- सुशील कुमार भटनागर

ब्लौक शिक्षा अधिकारी के पद पर पदोन्नति के साथ ही मेरा तबादला अजमेर से जयपुर की आमेर पंचायत समिति में हो गया था. मेरे साले साहब जयपुर में रहते हैं. वे यहां के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर हैं. पिछले माह मेरे बेटे रंजन को भी उदयपुर से एमबीबीएस करने के बाद चिकित्साधिकारी के पद पर आमेर के ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रथम नियुक्ति मिली थी इसलिए जयपुर में अपने मामा के पास ही रह रहा था वह. मेरे रिटायरमैंट में अभी 2 साल बाकी थे. सोचा, चलो मन को तसल्ली तो रहेगी कि 32 साल सरकार की सेवा करने के बाद कम से कम अधिकारी पद से तो सेवानिवृत्त हुए. मन के किसी कोने में अधिकारी बनने का सपना भी था.

बड़ी बेटी सीमा के पैदा होने के 2 साल बाद रंजन और रंजना जुड़वां बच्चे हुए थे. 6 माह पहले बेटी रंजना के अपनी ससुराल में आत्मदाह कर लेने के बाद दिल और दिमाग को कुछ ऐसा झटका लगा कि शरीर घुल सा गया था मेरा. पत्नी रीना तभी से मेरे पीछे पड़ी थी कि अब मैं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लूं. बीमार शरीर को क्यों और बीमार बना रहा हूं. घर में रहूंगा तो आराम मिलेगा और स्वास्थ्य में भी कुछ सुधार ही होगा पर मैं हमेशा यह कह कर टाल देता था कि चलताफिरता रहूंगा तो ठीक रहूंगा और अगर घर में बैठ गया तो रहासहा शरीर भी बेकार हो जाएगा और जल्दी ही प्राण खो बैठूंगा. वह मेरे इस जवाब से चिढ़ जाती थी.

रीना के साथ अपनी कार से जयपुर पहुंचने पर साले साहब को बहुत खुशी हुई थी. रंजन तो पहले से यहां था ही, अब मैं और रीना भी आ गए थे उन के आलीशान बंगले में. साले साहब के 2 ही लड़के थे. बड़ा बेटा शादी कर अमेरिका में सैटल हो गया था और छोटा बेटा एमबीए कर दिल्ली की किसी प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर हो गया था. घर में बस ये 2 ही प्राणी थे, साले साहब और सलहज साहिबा.

हमें आया देख सलहज साहिबा तो खुशी के मारे जैसे पागल ही हुई जा रही थीं. कार से उतरते ही मेरे हाथ से सूटकेस झपट कर नौकर को पकड़ाते हुए बोली थीं, ‘‘जीजाजी, सच पूछिए तो आप लोगों के आने से मेरा तो जैसे सेरों खून बढ़ गया है. आप लोगों के साथ मेरा मन भी लगा रहेगा. इन्हें और रंजन को तो अपने मरीजों और अस्पताल से ही फुर्सत नहीं मिलती. मैं अकेली पड़ीपड़ी सड़ती रहती हूं घर में. भला अखबार, पत्रिकाओं, टीवी और इंटरनैट से कब तक जी बहलाऊं? मैं तो बोर हो गई इन सब से. अब आप लोग आ गए हैं तो देखना कैसी चहलपहल और रौनक हो जाएगी घर में. खाने और पकाने में भी अब मजा आएगा,’’ कहते हुए वे तेज कदमों से ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गईं. यह रात का खाना खा कर मैं सो गया और रीना अपने भैयाभाभी के साथ गपशप में व्यस्त हो गई.

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दूसरे दिन सुबह औफिस बड़े हर्षोल्लास से जौइन किया मैं ने. अभी अपने स्टाफ से मेरा परिचय का सिलसिला चल ही रहा था कि सहसा  मेरी मृत बेटी रंजना की विधवा ननद आरती को देख कर मैं सकपका गया.

आरती किसी मूर्ति की भांति नजरें झुकाए औफिस में आई, हाजिरी रजिस्टर खोल कर अपने हस्ताक्षर किए, एक क्षण अपनी पलकें उठा कर निरीह दृष्टि से मुझे देखा जैसे कह रही हो, ‘किस जुर्म की सजा दे रहे हो हम सब को. हमारा हंसताखेलता घरसंसार उजाड़ दिया तुम ने. आग लगा दी हमारे चमन में. जीतेजी मार डाला हम सब को.’ और फिर सिर झुकाए चुपचाप वहां से चली गई.

उस के जाने के बाद बड़े बाबू ने बताया, ‘‘सर, इस का नाम आरती है. यहीं औफिस के पीछे ही किराए का एक कमरा ले कर रह रही है. बड़ी अभागी है बेचारी. शादी होने के सालभर बाद ही विधवा हो गई. विधवा कोटे में तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर 2 वर्ष पहले नियुक्त हुई थी.

‘‘कोई 6 महीने पहले इस की भाभी ने दहेज की मांग, पति और ससुराल वालों की मारपिटाई से तंग आ कर अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा ली थी और फिर अस्पताल ले जाते समय ही उस ने अपने प्राण त्याग दिए थे. पुलिस केस बन गया था. पुलिस इस के भाई और बूढ़े मातापिता को गिरफ्तार कर ले गई थी.

‘‘आरती अपनी भाभी की मौत का वीभत्स दृश्य नहीं देख सकी थी और बेहोश हो गई थी. 3 दिन बाद तबीयत कुछ सामान्य हुई और अस्पताल से छुट्टी मिली तो पुलिस ने इसे भी गिरफ्तार कर लिया था. आरती के स्कूल स्टाफ ने अच्छा वकील किया और जैसेतैसे कोर्ट से इस की जमानत करवा ली पर आरती के भाई और बूढ़े मातापिता की जमानत की अरजी  दहेज हत्या के गंभीर मामले को देखते हुए जज ने खारिज कर दी. अपने बचाव में बेचारे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं. आज तक इस के घर वाले जेल की सलाखों के पीछे कैद हैं. आरती भी पुलिस हिरासत में 10 दिन रहने और पुलिस केस होने के कारण सस्पैंड चल रही है. आरती का कहना है कि पुलिस ने झूठा केस बनाया है.

‘‘वैसे सर, आरती के आचरण को देख कर लगता तो नहीं कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं. लोगबाग इस के परिवार को भी बड़ा अच्छा समझते हैं. फिर ये सब. न जाने असलियत क्या है?

पुलिस, कोर्ट- कचहरी के चक्करों में कौन पड़ता है नाहक, इसीलिए कोई इन की मदद को भी आगे नहीं आता, बदनामी अलग.’’

बड़े बाबू की बात ने मुझे भीतर तक झकझोर डाला था. अधिकारी पद का मेरा पहला दिन ही मन में इतनी कड़वाहट घोल देगा, मैं ने कभी सोचा भी न था.

शाम को औफिस से निकल कर मैं अपनी कार से मुख्य सड़क पर पहुंचा ही था कि बीच रास्ते में भीड़ देख कर मैं रुक गया. कार से उतर कर भीड़ को चीर कर देखा तो सन्न रह गया. जर्जर और कमजोर आरती बीच सड़क पर बेहोश पड़ी थी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त हो गए थे. एक ओर सब्जी का थैला लुढ़का पड़ा था जिस में से कुछ भाजी लुढ़क कर सड़क पर बिखर गई थी.

एक क्षण गौर से आरती के चेहरे पर नजर डाल कर मैं मन ही मन बुदबुदा उठा, ‘क्या हाल हो गया है आरती का? सालभर में ही हड्डियों का ढांचा भर रह गई है. हाथों में नीली नसें उभर आई हैं. चेहरा निस्तेज हो गया है. रंजना के ब्याह के समय विधवा होने के बावजूद कैसी चिडि़या सी चहकती, फुदकती रहती थी.’

सच पूछा जाए तो रंजना की शादी अपने बड़े भाई निखिल से शीघ्र करवाने में आरती की ही अहम भूमिका रही थी, फिर निखिल के वृद्ध मातापिता ने भी सोचा था कि घर में विधवा बेटी की हमउम्र बहू आ जाएगी तो उस के साथ आरती का थोड़ा मन बहल जाया करेगा.

‘‘भाई साहब, जरा मदद करेंगे आप. ये बहनजी हमारे बच्चों को पढ़ाती हैं, बड़ी अच्छी हैं. प्लीज, अपनी कार में इन्हें यहीं पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचा दीजिए, आप की बड़ी मेहरबानी होगी,’’ पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा.

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‘‘हां, हां, क्यों नहीं. वहां मेरा बेटा डाक्टर है, आप घबराओ मत, वह सब संभाल लेगा. पर मैं नया हूं यहां, मुझे रास्ता पता नहीं है, तुम बताते जाना,’’ मैं बोला.

उस आदमी ने सड़क पर बेहोश पड़ी आरती को अपनी गोद में उठाया और कार की पिछली सीट पर लिटा दिया. फिर उस ने सड़क पर बिखरी हुई सब्जी आरती के थैले में भरी और कार की पिछली सीट पर रखी और आरती का सिर अपनी गोद में बड़े प्यार से रख कर बैठ गया.

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