#WhyWeLoveTheVenue: वैन्यू को पसंद करने की खास वजह है ब्लूलिंक

हुंडई हमेशा अपने ग्राहकों का खास ख्याल रखती है और इसलिए समय-समय पर सेफ्टी के नए फीचर्स से लैस कारें मार्केट में लॉंच करती है. जरा इंटरनेट की शक्ति का अंदाजा लगाइए और सोचिए अगर इसका इस्तेमाल आपकी कार में हो तो…यकीकन यह और ज्यादा पॉवरफुल होगा.

आपको जानकार खुशी होगी कि Hyundai Venue में खास तकनीक BlueLink का प्रयोग किया है. जिसकी मदद से आपकी कार कार हर वक्त इंटरनेट से कनेक्ट रहेगी. जिससे आप पहेल ज्यादा सुक्षित महसूस करेंगे. दरअसल, BlueLink इमरजेंसी के समय ऑटोमैटिक रूप से कॉल सेंटर और सर्विस सेंटर पर तुरंत सूचना पहुंचती है और आपकी लोकेशन भी इमरजेंसी नंबर पर शेयर करती है.

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इस ऐप के जरिए आप कार के अंदर वॉयस कमांड का उपयोग कर ब्लूलाइन को एक्सेस कर सकते हैं वहीं कार से दूर होने पर भी आप अपने फोन पर वेन्यू को रिमोटली भी चेक कर सकते हैं. BlueLink मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए ऑटोमैटिक रूप से अधिकारियों को सचेत करती है और समय की बचत करती है. यही नहींसहायता के लिए आप सड़क के किनारे भी इसका उपयोग कर सकते हैं.

BlueLink आपके कार को और ज्यादा सुरक्षित बनाता है. कार को अलर्ट पर सेट करने बाद आप इसे आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. जैसे मान लीजिए आपकी कार आपके निर्धारित लोकेशन के बदले कहीं और ट्रेवल कर रही है या उसकी स्पीड ज्यादा है. इसके साथ ही आप कार चोरी होने से भी रोक सकते हैं.  

भई, गर्मी के दिनों में धूप में खड़ी कार में बैठकर कहीं जाना भला किसे अच्छा लगती है, लेकिन BlueLink है तो पॉसिबल है. क्योंकि इसके जरिए आप पहले इंजन को स्टार्ट कर सकते हैं और फिर एयर कंडीशनिंग सिस्टम को, ताकि धूप में भी जब आप कार ड्राइव करें तो वह ठंडी हो.

फिलहाल, यह तो ब्लूलिंक सिस्टम के बारे सिर्फ छोटी सी टिप है, तो अब तो आप समझ ही गए होंगे कि #WhyWeLoveTheVenue

ऋषि कपूर की याद में आलिया भट्ट ने लिखा दिल को छू लेने वाला ये इमोशनल मैसेज

बौलीवुड के रोमेंटिक एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के निधन से पूरा बौलीवुड सदमें में हैं. वहीं बेटे रणबीर कपूर की रूमर्ड गर्लफ्रेंड और एक्ट्रेस आलिया भट्ट (Alia Bhatt) भी काफी दुखी हैं. बीते दिन ऋषि कपूर को अंतिम विदाई देने के दौरान भी आलिया बेहद इमोशनल नजर आईं. ऋषि कपूर को पिता की तरह मानने वाली आलिया ने अब उनके लिए सोशलमीडिया पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया है, जिसमें वह अपने दिल की बात कह रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनका ऋषि कपूर के लिए इमोशनल पोस्ट….

ऋषि कपूर की पुरानी फोटोज की शेयर

 

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love you ❤️

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ऋषि कपूर के निधन से जहां सभी दुखी हैं तो वहीं अब उनके बेटे रणबीर कपूर की खास दोस्त आलिया भट्ट ने भी उनकी मृत्यु पर दुख जताया है. आलिया ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए ऋषि कपूर की कुछ पुरानी Photos साझा की हैं. आलिया ने ऋषि कपूर और नीतू सिंह की एक बहुत पुरानी तस्वीर साझा की है. साथ ही एक इमोशनल नोट भी लिखा है. जिसके जरिए उन्होंने बताया है कि वो ऋषि कपूर के कितना करीब थीं.

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❤️❤️❤️

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आलिया ने लिखा ये पोस्ट

 

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beautiful boys 🤍

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आलिया ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘मैं क्या कह सकती हूं इस खूबसूरत आदमी के बारे में, जो मेरी जिंदगी में इतना ज्यादा प्यार और अच्छाई लेकर आए. आज हर कोई ऋषि कपूर के लीजेंड होने की बात करता है और मैंने पिछले दो सालों में एक दोस्त, चाइनीज फूड लवर, सिनेमा लवर, एक फाइटर, एक लीडर, एक सुंदर स्टोरीटेलर, एक अति उत्साही ट्विटर यूजर और एक पिता के रूप में जाना है.’ आगे आलिया लिखती हैं, ‘इन पिछले दो वर्षों में मुझे जो प्यार मिला है, मैं इसे हमेशा संजोकर रखूंगी. मैं ब्रह्मांड का शुक्रिया अदा करती हूं कि मुझे आपको जानने का मौका मिला. आज शायद हम में से अधिकतर लोग कह सकते हैं कि वह परिवार की तरह हैं क्योंकि उन्होंने ऐसा ही महसूस करवाया. लव यू ऋषि अंकल. हम आपको हमेशा याद रखेंगे.’

बता दें, ऋषि कपूर की अंतिम विदाई के दौरान आलिया भट्ट नीतू सिंह और रणबीर कपूर के साथ पूरे समय थीं.

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Dr Pk Jain: यहां मिलेगा सेक्सुअल लाइफ से जुड़ी हर प्रॉब्लम का सोल्यूशन

आलोक के सासससुर व मातापिता परेशान हो गए. आलोक की बीवी उसके घर आने को तैयार नहीं थी. उसे बहुत समझाया, मगर वह मानी नहीं. इसकी पूरी पड़ताल की गई. तब सचाई का पता चला कि आलोक को शीघ्रपतन की समस्या है, जिसकी वजह से वो अपनी बीवी को सतुंष्ट नहीं कर पा रहा है, इस कारण उस की बीवी उस के पास रहना नहीं चाहती थी.

आलोक के शब्दों में-

शादी से पहले अधिक हस्तमैथुन करने की वजह से मुझे शादी के बाद सेक्स पावर और उत्तेजना में कमी और शीघ्रपतन की शिकायत हो गई थी. समय से पहले सही इलाज न मिलने के कारण मेरी पत्नी मुझे छोड़कर चली गई. मैंने कई लोगों से संपर्क किया और कई जगह इलाज कराया, लेकिन कोई भी मेरा सही तरीके से इलाज नहीं कर पाया.

 ऐसे मिले डॉक्टर पी के जैन…

मेरे एक दोस्त को मेरी इस समस्या के बारे में पता चला तो उसने मुझे डॉक्टर पीके जैन के बारे में बताया. जो 40 सालों से इन्हीं समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. मेरे दोस्त ने मुझे डॉक्टर पी के जैन के कई सफल केसेस के बारे में बताया, जिसके बाद में बिना देर किए डॉक्टर पी के जैन से मिलने पहुंचा. जहां मैं डॉक्टर पी के जैन और उनकी टीम डॉक्टर पीयूष जैन, डॉक्टर संचय जैन से मिला.

ऐसे ही अन्य वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें…

डॉक्टर पी के जैन ने किया पूरा इलाज…

डॉक्टर पी के जैन ने मुझे बताया कि मेरी प्रॉब्मल कोई बड़ी बात नहीं है. पहले भी उनके पास ऐसे कई पेशेंट आ चुके हैं. डॉक्टर पी के जैन ने मेरा पूरा डायगनोसिस किया और मेरी बीमारी को अच्छे से समझने के बाद मुझे उसके हिसाब से दवा दी. अपनी कामयाब आयुर्वेदिक दवाओं के जरिए उन्होंने मेरा सफल इलाज किया. डॉक्टर पी के जैन की वजह से ही आज मैं और मेरी पत्नी अपना वैवाहिक जीवन खुशी खुशी बिता रहे हैं.

मैं तो यही कहूंगा कि आपकी सेक्स लाइफ में भी अगर कोई समस्या है तो बिना यहां वहां भटकने के बजाय सीधे डॉक्टर पी के जैन से मिले और अपना इलाज करवाएं.

लखनऊ के डॉक्टर पी. के. जैन, जो पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. पी. के. जैन द्वाराृ.

ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें….

दुनिया भर के मजदूरों का सबसे बड़ा त्योहार Workers Day

1. शिकागो से शुरुआत हुआ 

मई दिवस जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के नाम से भी जाना जाता है, कामगार लोगों के संघर्ष की याद में हर वर्ष दुनियाभर में एक मई को यह दिवस मनाया जाता है. यह तारीख आज भी श्रमिकों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करती है तथा इसके साथ जुड़ी घटना की स्मृति उनमें विद्युत-जैसा उत्साह उत्पन्न करती है. इस दिन की शुरुयात अमेरिका का शिकागो शहर से काम के लिए आठ घंटे का  आन्दोलन से हुई और आज यह दिवस विश्व के कोने कोने में मनाया जाता है. मजदूरो के हित कों याद करने और पूंजीपतियों के बढ़ते प्रभाव कों समय-समय पर रोकने के उद्देश्य से हर साल  प्रथम मई का विशिष्ट महत्व होता है.

2. मई दिवस का इतिहास और काम के घण्टे 

 मई दिवस की कहानी काफी लम्बी है, सदियों से चली आरही यह कहानी आज भी चल रही है और मजदूरो के हित के लिए सदियों तक चलती रहेगी. मई दिवस का जन्म काम के घण्टे कम करने के आन्दोलन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. पुराने जमाने में श्रमिक को पंद्रह-बीस घंटे तक काम करना पड़ता था और उसमें भी यदि मालिक उस श्रमिक के कार्य से संतुष्ट नहीं होता तो उसका वेतन काट लिया जाता था. कार्य की अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के लिए भी मजदूरों को कठोर संघर्ष करना पड़ा है.  काम के घण्टे कम करने के इस आन्दोलन का मज़दूरों के लिए बहुत अधिक राजनीतिक महत्त्व है. जब अमेरिका में फैक्ट्री-व्यवस्था शुरू हुई, लगभग तभी यह संघर्ष उभरा.शुरुयाती हड़तालों में अमेरिका में अधिक तनख्वाहों की माँग की गई थी, लेकिन जब भी मज़दूरों ने अपनी माँगों को सूत्रबद्ध किया, काम के घण्टे कम करने का प्रश्न और संगठित होने के अधिकार का प्रश्न केन्द्र में रहा. समय के साथ ही मजदूर संगठनो कों यह महसूस होने लगा की उनका शोषण बढ़ता गया और उनके साथ को अमानवीय रूप से लम्बे समय तक काम लिया जाता है. इसके फलस्वरूप मज़दूरों ने काम के घण्टों में आवश्यक कमी की माँग भी मजबूत कर दिया.

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3. सूर्योदय से सूर्यास्त –

उन्नीसवीं सदी शुरुआत में मजदूरो की मांग और तेज कर दिया गयी, उस समय काम के घंटे सूर्योदय से सूर्यास्त तक (चौदह, सोलह और यहाँ तक कि अठारह घण्टे ) होता था, जिसका विरोध में अमेरिका के कई इलाकों में मज़दूरों ने संगठित  होकर इसका विरोध किया. उन्नीसवीं सदी के दूसरे और तीसरे दशक काम के घण्टे कम करने के लिए हड़तालों से भरे हुए थे. कई औद्योगिक केन्द्रों में तो एक दिन में काम के घण्टे दस करने की निश्चित माँगें भी रखी गयीं. क्वमैकेनिक्स यूनियन ऑफ फि़लाडेल्फियां को , जो दुनिया की पहली ट्रेड यूनियन मानी जाती है, 1827 में फि़लाडेल्फिया में काम के घण्टे दस करने के लिए निर्माण-उद्योग के मज़दूरों की एक हड़ताल करवाने का श्रेय जाता है. इस हड़ताल के कारण काम के घंटे कम करनी की बात प्रभावशाली बनती गयी, फलस्वरूप  वांन ब्यूरेन की संघीय सरकार को सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए काम के घण्टे दस करने की घोषणा करनी पड़ी.

4. आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम

समय के साथ  पूरे विश्व-भर में काम के घण्टे दस करने का संघर्ष शुरू हो गया. कई बाधायो  के बाद मजदूरो कों विश्व के कई इलाकों में सफलता मिली, अपने आन्दोलन के दम पर उन्होंने विश्व के कई इलाकों में  काम के घंटे दस करवा ली, जिससे मजदूरो को काफी राहत मिली. फिर भी मजदूरो का आन्दोलन यही नही रुका काम के दस घंटे की बात उद्योगों में मान ली गई, तो मज़दूरों ने काम के घण्टे आठ करने की माँग उठानी शुरू कर दी. पचास के दशक के दौरान लेबर यूनियनों को संगठित करने की गतिविधियों ने इस नयी माँग को काफी बल दिया. बीच-बीच में बहुत बाधाये आई, लेकिन मजदूरो का सघर्ष चलता रहा. यह आन्दोलन मात्र अमेरिका तक ही सीमित नहीं था. यह आन्दोलन हर उस जगह प्रचलित हो चला था जहाँ उभरती हुई पूँजीवादी व्यवस्था के तहत मज़दूरों का शोषण हो रहा था. अमेरिका से पृथ्वी के दूसरे छोर पर स्थित आस्ट्रेलिया में निर्माण उद्योग के मज़दूरों ने यह नारा दिया – आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम और उनकी यह माँग 1856 में मान भी ली गई. उस समय मजदूर आन्दोलन को एक और सफलता मिली. 14 जुलाई,1889 कों विश्वभर के समाजवादी कार्ल माक्र्स की विचारधारा को व्यावहारिक स्वरूप देने की दृष्टि से फ्रांस की राजधानी पेरिस में एकत्रित हुए एवं  अंतराष्ट्रीय समाजवादी संगठन (सेकंड इंटरनेशनल) की स्थापना की और  मजदूरों के लिए कार्य की अधिकतम अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के  माँग के साथ संपूर्ण विश्व में प्रथम मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव पेश किया.

5. भारत में मई दिवस :-

जब पुरे विश्व में मई दिवस के लिए सघर्ष चल रहा था तों मजदूरों के इस विश्वव्यापी आंदोलन से भारत भी अछूता नहीं रह सका. हमारे देश में मई दिवस का प्रथम आयोजन 1923 में हुआ था. मद्रास के समुद्र तट पर आयोजित इस प्रथम मई दिवस के समारोह के अध्यक्ष मजदूर नेता श्री सिंगारवेलु चेट्टियार  थे. प्रथम मई दिवस सम्मलेन में हजारो मजदूरो ने भाग लिया और हर साल प्रथम मई कों मई दिवस के रूप में मनाये जाने की शपथ ली.सिंगारवेलु चेट्टियार देश के आरम्भ के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली टेऊड यूनियन और मजदूर तहरीक के नेता थे. सिंगारवेलू ने इस दिन मजदूर किसान पार्टी की स्थापना की घोषणा की तथा उसके घोषणा पत्र पर प्रकाश डाला. कई कांग्रेसी नेताओं ने भी मीटिंगों में भाग लिया.  इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर और संगठित रूप में इसका आयोजन मई दिवस का आयोजन 1928 में हुआ. इस आयोजन से लेकर अब तक हमारे यहाँ मई दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष बहुत उत्साह के साथ होता रहा है.  भारत में मई दिवसयह ध्यान देने की बात है कि भारत में मजदूरों की होने वाली पहली हड़तालों में अप्रैल-मई 1862 की हड़ताल थी जब 1200 मजदूरों ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर कई दिनों के लिए काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर 8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई, काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर  8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई. समय  के साथ उनके मांगो को लेकर आन्दोलन और हड़ताल का सिलसिला चलता रहा , फिर पुरे भारत वर्ष में काम के आठ घंटे का नियम लागू कर दिया गया.

6. पहले लागू करवाना होगा पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम 

मई दिवस विश्व भर के तमाम मजदूरो कों समर्पित है,फिर  भी कई जगहों पर मजदूर इस दिन भी जी तोड़ मेहतन कर दो जून की रोटी जुटाते है. आज भी विश्व के अनेक देशों में मजदूरो के लिए  आठ घंटे की कार्यावधि भी लागू नहीं हो पाई है. सही माईने में अगर मजदूरो कों समर्पित मई दिवस माना है, तों पहले पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम लागू करवाना होगा और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए बनाने वाली योजनायो के हर मजदूर तक पहुचना होगा. अगर हम सभी ऐसा कर पाते है, तभी सही माईने में मजदूर दिवस मनाया जा सकता है.

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7. कईयों के लिए मई दिवस मतलब सामान्य दिन

वे मजदूर  जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार निर्भर करता है. मई दिवस के शुरुयाती काल से आज तक कर्म को ही पूजा समझने वाले मेहनती मजदूर वर्ग आज भी  श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए तरस रहा है. आज भी विश्व के कोने-कोने में 1 मई कों मई दिवस मानी जाती है.  इस अवसर पर हमारे देश  में भी इस दिन काफी हल्लाचल रहती है. देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएँ होती हैं, बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किए जाते हैं. जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं. जिन्हें सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या ही बाकी नहीं रहेगी. इस दिन पूरा देश मजदूरो के हित की बाते करता है, किन्तु अगले ही दिन सब कुछ पहले जैसा हो जाता है. शोषण,गुलामी और जिल्लत भारी जिंदगी फिर से हर मजदूर भाई के सामने होता है. कई जगहों पर मजदूरो से मई दिवस के दिन भी काम लिया जाता है,  दो जून  के रोटी के लिए मजदूरो का  एक बड़ा वर्ग इस दिन भी काम करने से माना नही कर पाता है. उनके पास यही मजबूरी होती है कि यदि वे एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगी.

8. मजदूरों का विकास क्यों नही होता

आजाद भारत में मजदूरो के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई कानून बनाई गए और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए विभिन्न नीति-निर्देश और  योजना बनाई जाती है. फिर भी मजदूरो का विकास क्यों नही होता ? क्यों कि अधिकांश मजदूर या तो अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं या फिर वे अपने अधिकारों के लिए इस वजह से आवाज नहीं उठा पाते कि कहीं इससे नाराज होकर उनका मालिक उन्हें काम से ही निकाल दे और उनके परिवार के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ जाए. मजदूरो की समस्या समाज का हर तबका वाकिफ होता है, लेकिन गिने चुने मामलों में ही मजदूरो कों समाज और सरकार से सही माईने में सहायता मिलाती है. मजदूरो के विकास के लिए हमारे देश में हर वर्ष श्रम के वाजिब मूल्य, उनकी सुविधाओं आदि के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की परम्परा सी बन चुकी है. समय-समय पर मजदूरों के लिए नए सिरे से मापदंड निर्धारित किए जाते हैं, लेकिन इनको क्रियान्वित करने की फुर्सत ही किसे है?

9.  निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाता 

सरकारी अथवा गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में काम करने पर मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी तय करने की घोषणाएँ  तों जोर-शोर से करती है, लेकिन इसके पीछे कुछ और होता  हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार  तकऱीबन 36 करोड़ श्रमिकों में से 34 करोड़ से अधिक को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही.

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अलविदा: रोमांटिक फिल्मों के सुपरस्टार थे Rishi Kapoor

करीब 50 सालों से हिंदी सिनेमा जगत पर राज कर रहे 67 वर्ष के अभिनेता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) ने हिंदी सिनेमा जगत को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. दो सालों से बोन मैरो कैंसर से जूझने के बाद उन्होंने आज सवेरे मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. उन्होंने इंडस्ट्री में 25 साल तक सिर्फ चोकलेटी हीरो की भूमिका निभाई थी. तब से लेकर आज तक, हर तरह की भूमिका निभाने के बावजूद उन्हें हमेशा हर किरदार नया लगा. उन्होंने उम्र को एक नंबर और अपने आपको हमेशा जवान समझा है. उन्हें रोमांटिक फिल्में आज भी पसंद थी.

उन्होंने एक इंटरव्यू में Rishi Kapoor ने कहा था कि वे स्पस्टभाषी है और हमेशा से ही खरी-खरी बातें करना पसंद करते है, जिसकी वजह से कई बार उन्हें इसका बहुत खामियाजा भुगतना पढ़ा. सोशल मीडिया पर भी उनकी बातें कई लोगों को पसंद नहीं आती थी. किसी को ठेस पहुँचने पर कई बार वे उसे निकाल भी लेते थे, पर उन्हें ये माध्यम पसंद था, क्योंकि इसमें रिएक्शन जल्दी मिलता था. ये डिजिटल इंडिया का रूप है और भविष्य भी, जिसमें हर चीज घर बैठे मिलता है. ऋषिकपूर ‘बॉबी’ फिल्म में ढाई रूपये में हीरो बने थे ,जबकि रणवीर कपूर 250 रूपये में फिल्म ‘सवरियाँ’ में हीरो बने, ये अंतर पिता और बेटे में है. जेनरेशन के बाद हर चीज बदलती है.

https://www.youtube.com/watch?v=17LL_iqlHE8

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फ़िल्मी माहौल में पैदा हुए ऋषि कपूर ने जन्म से ही कला को अपने आस-पास देखा है. उन्हें गर्व रहा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के 105 साल पूरे होने में उनके परिवार का 97 साल का योगदान रहा है. उन्होंने आजतक करीब 150 फिल्मों में काम किया है और हर तरह के किरदार निभाए है, लेकिन आज भी जब वे कुछ नया पढ़ते थे, तो उसे करने की इच्छा पैदा होती थी. उनके हिसाब से अभिनय की प्रतिभा व्यक्ति में जन्म से होती है.कोई अच्छा अभिनेता हो सकता है ,पर ख़राब अभिनेता कभी नहीं होता. व्यक्ति या तो एक्टर होता है या एक्टर नहीं होता है. इन दोनों के बीच कोई नहीं होता.

उन्होंने हमेशा उस फिल्म को करने की कोशिश की, जिसमें मनोरंजन हो इसके साथ उसमें कुछ संदेष चला जाय. इस दौर को ऋषि कपूर अच्छा मानते रहे, जिसमें पुराने कलाकार को नए एक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला. इसका श्रेय उन्होंने अमिताभ बच्चन को दिया, जिन्होंने इस दौर की शुरुआत की, जिसका फल सभी को मिला. पुराने कलाकार आज गुमनाम के अँधेरे में नहीं,बल्कि नए दौर में नए कलाकारों के साथ अपनी भूमिका निभाते है. आज पुराने कलाकारों की फिल्में हिट होती है और नयी जेनरेशन उनके लिए कहानी लिखती और निर्देशन करती है. ऋषि कपूर को पिता की भूमिका निभाना कभी पसंद नहीं था. हबीब फैजल की फिल्म ‘दो दुनी चार’ उन्हें बहुत अच्छी लगी थी, जिसमें ऋषि कपूर लीड रोल में थे और उन्होंने नीतू सिंह के साथ इसमें अभिनय किया था और ये फिल्म सफल भी रही . इससे पहले नीतू सिंह और ऋषि कपूर ने 16 फिल्में साथ की थी. दोनों की जोड़ी को दर्शक पर्दे पर तब देखना बहुत पसंद करते थे. अभिनय को ऋषि कपूर अपने जीवन का जूनून मानते थे, जिसकी सीमा उनके जीवन में कभी नहीं थी.

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Rishi Kapoor के आखिरी दर्शन नहीं कर पाईं बेटी riddhima, इमोशनल पोस्ट में लिखा- वापस आ जाओ पापा

बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) की फैमिली वैसे तो मुंबई में ही हैं. लेकिन उनकी बेटी रिद्धिमा कपूर लॉकडाउन के कारण (riddhima kapoor sahani) दिल्ली में हैं. ऐसे में रिद्धिमा ने गृह मंत्रालय से मुंबई जाने की अनुमति मांगी थी, जो उनको सड़क के रास्ते की मिली ना कि चार्टेड प्लेन की. पिता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के अंतिम दर्शन में न पहुंच पाने का दुख रिद्धिमा कपूर ने अपने सोशल मीडिया पर इमोशनल पोस्ट को शेयर करते हुए बताया. आइए आपको दिखाते हैं रिद्धिमा कपूर का इमोशनल पोस्ट….

रिद्धिमा ने लिखा-वापस आ जाओ ना पापा…

पिता के अंतिम दर्शन में न पहुंच पाने के दौरान रिद्धिमा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट किया और अपने दिल का दुख लोगों के साथ शेयर किया. रिद्धिमा कपूर ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘पापा मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं और करती रहूंगी. आपकी आत्मा को शांति मिले पापा…. मैं आपको हमेशा मिस करूंगी. मैं आपके साथ फेसटाइम कॉल्स भी मिस करूंगी.. काश मैं वहां पर होती और आपको गुडबाय कह पाती… जब तक हम दोबारा नहीं मिलते आई लव यू पापा….’

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स्टोरी पर शेयर करके लिखी ये बात


इमोशनल पोस्ट के साथ रिद्धिमा ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर पिता के साथ फोटोज शेयर करते हुए लिखा कि वापस आ जाओ ना पापा. लव यू पापा के साथ रिद्धिमा ने अपने पिता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) को अंतिम विदाई दी. दरअसल, पिता ऋषि के अंमित दर्शन के लिए रिद्धिमा कपूर को मुंबई जाने के लिए लॉकडाउन के चलते फ्लाइट से जाने की बजाय सड़क के रास्ते जाने की इजाजत दी गई थी. ऐसे में उन्हें सड़क के माध्यम से दिल्ली से मुंबई के बीच का करीब 1400 किलोमीटर का फासला तय करने पड़ता, लेकिन वह नहीं जा पाईं.

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Last rites of the legendary actor #rishikapoor #ranbirkapoor #ridhimakapoor #kareenakapoor #kapoorfamily

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बता दे, ऋषि कपूर सभी के बहुत चहेते उनके न रहने से पूरे बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गयी है. ऋषि कपूर के दोस्त और बॉलीवुड स्टार्स ने सोशल मीडिया के जरिए अपना दुःख फैंस के साथ शेयर किया है.

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12 साल बाद: भाग-3

आसान नहीं था, फिर भी दूसरे दिन सुबह से तन्वी ने सब कुछ भुला कर सामान्य रूप से दिनचर्या शुरू कर दी, क्योंकि उसे अपने मानअपमान से ज्यादा आस्था की चिंता थी. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी आस्था के कोमल मन पर उस के मातापिता की आपसी तकरार का बुरा असर पड़े.

जिस प्रकार गाड़ी का एक पहिया पंक्चर हो जाए तो गाड़ी सही तरीके से चल तो नहीं सकती सिर्फ कुछ दूर तक घसीटी जा सकती है, ठीक उसी तरह तन्वी को भी लगने लगा था कि जहां तक भी हो सके, अपनी जिंदगी की गाड़ी को घसीटते जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है.

गृहस्थी बचाने के लिए अंतर्मन पर पड़ती चोटों को लगातार अनदेखा करती जा रही तन्वी के मन में खुशहाल जिंदगी का सपना सच होने की एक उम्मीद अचानक जाग गई, जब एक दिन औफिस से बड़े अच्छे मूड में आ कर अजीत ने तन्वी से कहा कि औफिस में लगातार 3 दिनों की छुट्टी पड़ रही है अत: 2 दिन के फैमिली टूर का प्रोग्राम औफिस से बनाया गया है. तुम तैयारी कर लो. शुक्रवार की शाम को चलना है.

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सुन कर तन्वी को अच्छा लगा. वह सोचने लगी कि ऐसे कार्यक्रमों से थोड़ा मूड भी बदलेगा और दूसरे पतियों को देख कर शायद अजीत के व्यवहार में भी कुछ सुधार हो.

पर कुछ भी सुधार हुआ होता तो भला आज तन्वी अपने हाथों से अपनी जिंदगी बिखेर कर क्यों निकल पड़ती? शुक्रवार को निश्चित समय से पहले ही तन्वी पूरी तरह तैयार हो चुकी थी. घर से निकलने से पहले जब उस ने आस्था को गोद में उठाया, तो उस ने देखा कि आस्था ने पौटी की हुई है. उस ने अजीत से

2 मिनट में आने को कहा और आस्था को ले कर बाथरूम की ओर चल पड़ी.

‘‘इस निकम्मी को सिवा इस के और कुछ आता भी है?’’ बाथरूम की ओर जाती तन्वी के कान में अजीत का यह वाक्य पड़ा तो दिल किया कि पलट कर इस का करारा जवाब दे पर अच्छाखासा माहौल वह खराब नहीं करना चाहती थी अत: चुप रह गई. उस ने फटाफट आस्था को साफ किया और उस की नैपी को कागज में लपेट कर डस्टबिन में डाल दिया. आस्था को पैंट पहनाती हुई ही 2 मिनट से कम समय में ही तन्वी बाहर आ गई. बाहर आ कर देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. बाहर न तो आटो था और न ही अजीत. तन्वी का सूटकेस गेट के पास पड़ा हुआ था. अजीत तन्वी को छोड़ कर चला गया था.

आश्चर्य से तन्वी का मुंह खुला का खुला रह गया. अजीत ऐसा भी कर सकता है उस को यकीन नहीं आ रहा था. अपनी तसल्ली के लिए उस ने इधरउधर झांक कर देखा भी, पर उस का क्या फायदा था. उस की आंखें अपमान और आक्रोश के मिश्रित आंसुओं से झिलमिलाने लगीं. एक ऐसा आक्रोश, जिसे वह न चीख कर व्यक्त कर सकती थी न चिल्ला कर. अपमान की ऐसी अनुभूति, जो पल भर में ही पूरा शरीर जला गई. विवेकशून्य सी तन्वी दरवाजे पर ही खड़ी रह गई.

उस की सहेली नीरू को उस के प्रोग्राम की जानकारी थी और वह उसे बाय करने के मकसद से अपने घर के बाहर खड़ी थी. उस ने सब कुछ देखा तो सोच में डूब गई कि ऐसे इंसान के साथ आखिर तन्वी कैसे जीवन बिता रही है? तन्वी की दशा वह अच्छी तरह समझ रही थी अत: उस का मन बहलाने के लिए उसे अपने घर में चाय पीने के लिए बुला लिया. उस दिन नीरू के सामने तन्वी अपने को रोक न सकी और रोरो कर अपनी सारी पीड़ा बहा दी.

उस ने कहा, ‘‘नीरू, मैं यह अच्छी तरह समझ चुकी हूं कि अजीत एक कायर और कर्तव्यविमुख आदमी है. वह अपनी जिम्मेदारियों से हमेशा मुंह छिपाता रहता है और मैं या कोई और उसे कुछ कहे, इस से पहले ही वह मुझ पर आरोप मढ़ देता है और माहौल इतना खराब कर देता है कि मुख्य मुद्दा ही खत्म हो जाए. मैं उस की इस कमजोरी को समझ चुकी हूं और उस के आधार पर खुद को ढाल कर जीना शुरू कर दिया था, तो अब उस के अंदर की हीनभावना ने मेरा जीना हराम कर दिया है.

‘‘मेरा किया कोई अच्छा काम या किसी के द्वारा की गई मेरी तारीफ वह बरदाश्त नहीं कर पाता है और मौकेबेमौके जगहजगह पर मुझे अपमानित कर आत्मसंतुष्टि महसूस करता है. मेरे बरदाश्त की सीमा अब खत्म हो रही है, डर लगता है मैं कहीं कुछ कर न बैठूं. मेरी सहनशक्ति को अजीत मेरी कमजोरी मान बैठा है और दिनबदिन मेरा जीना हराम किए जा रहा है.’’

नीरू ने तन्वी को बड़े प्यार से समझाया कि घर की सुखशांति बनाए रखना और आस्था को बेहतर परवरिश देना दोनों की जिम्मेदारी उस की ही है. घर छोड़ देना या कुछ कर बैठना किसी समस्या का समाधान नहीं होता. वह थोड़ा सब्र करे और किसी दिन अच्छा समय देख कर अजीत से बात करे और उसे बताए कि उस के इस तरह के व्यवहार से न केवल उन की गृहस्थी पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि आस्था का कोमल मन भी प्रभावित हो रहा है.

घर आ कर तन्वी बुरी तरह अपसैट थी. अजीत ने उस के साथ जो किया था उसे सोचसोच कर उस का दिल नफरत से भरता जा रहा था, पर नीरू की कही बात सोच कर उस ने एक बार अजीत से बात कर के सब कुछ ठीक करने की एक और कोशिश करने का निश्चय किया.

अजीत के वापस आने के कुछ ही दिन बाद उन की शादी की 12वीं सालगिरह पड़ी. तन्वी ने तय किया था कि उस दिन अजीत से बात कर के उपहार के बदले उस से उस के व्यवहार में कुछ परिवर्तन लाने का वादा लेगी.

उस दिन वह रोज की अपेक्षा जल्दी उठी और अजीत और आस्था के जगने से पहले ही घर का सारा काम यह सोच कर निबटा लिया कि आराम से बैठ कर अजीत से अपनी समस्याओं पर चर्चा करेगी. उस ने चाय बनाई और अजीत को उठाया. वह मन ही मन सोच रही थी कि किन शब्दों से अजीत को शादी की सालगिरह मुबारक कहे, तभी अजीत उस से अखबार मांग बैठा.

‘‘अखबार तो अभी नहीं आया है, थोड़ी देर में आएगा, तन्वी के इतना कहते ही अजीत ने चाय का कप दीवार पर दे मारा, ‘‘कितनी बार कहा है कि पेपर वाले को कहो कि पेपर जल्दी डाला करे, पेपर नहीं आया है तो क्या अपना थोबड़ा दिखाने के लिए उठा कर बैठा दिया मुझे?’’

बधाई देने और अपनी समस्या पर विचार करने के लिए हफ्ताभर सोचे गए उस के सारे शब्द धरे के धरे रह गए. वह पल ही तन्वी के लिए उस घर में अंतिम पल बन गया. पहली बार उस ने भी उस के ही शब्दों में उसे जवाब दिया और अपने हाथ में पकड़ा चाय का कप भी जमीन पर दे मारा. आक्रोश से भरी तन्वी ने उसी समय अपने और आस्था के कपड़े सूटकेस में डाले और सोती हुई आस्था को गोद में उठा कर घर से निकल गई.

अपने दुखद अतीत को पीछे छोड़ कर घर से निकल आई तन्वी रहरह कर अपने उठाए गए कदम और भविष्य को ले कर आशंकित होती जा रही थी, पर जब वह पिछले 12 वर्षों तक पाया तिरस्कार और अपमान याद करती थी तो उसे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं होता था.

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‘उस ने मुझे जो मानसिक यंत्रणाएं दी हैं, उस की सजा क्या मैं उसे दे सकूंगी? शायद पत्नी और बेटी के बिना उस के जीवन में आया खालीपन ही उस के लिए माकूल सजा होगा. अपने पैरों पर खड़े हो कर अपना व आस्था का भविष्य संवार पाने की आशा में ही मुझे अपना सुनहरा भविष्य दिखाई दे रहा है,’ आस्था के माथे पर हाथ रख कर यह सोचतेसोचते तन्वी ने आंखें बंद कर लीं.

12 साल बाद: भाग-2

पढ़ी-लिखी तन्वी भी सुखशांति, मायके की इज्जत और छोटी बहनों के भविष्य के बारे में सोचसोच कर वर्षों तक अजीत की ज्यादतियां बरदाश्त करती रही और अपमान के कड़वे घूंट पी कर भी चुप रही, पर अब सब कुछ असहनीय हो गया था. तन्वी को लगने लगा कि अब वह और नहीं बरदाश्त कर पाएगी और अंतत: उसे अपना घर छोड़ने जैसा कदम उठाना पड़ गया.

अपना अपमान और तिरस्कार तो तन्वी कैसे भी बरदाश्त कर रही थी, पर आस्था के साथ भी अजीत का वही रवैया उस से बरदाश्त न हो पाया. कुछ दिन पहले ही आस्था की तबीयत खराब होने पर अजीत का जो व्यवहार था, उसे देख कर भविष्य में अजीत के सुधरने की जो एक छोटी सी उम्मीद थी, वह भी जाती रही.

उस ने सुना था कि बच्चा होने के बाद पतिपत्नी में प्यार बढ़ता है, क्योंकि बच्चा दोनों को आपस में बांध देता है. इसी उम्मीद पर उस ने 10 वर्ष तक संयम रखा कि शायद पिता बनने के बाद अजीत के अंदर कुछ परिवर्तन आ जाए, पर ऐसा कुछ भी न हुआ. शादी के 10 साल बाद इतनी मुश्किलों से हुई बेटी से भी अजीत का कोई लगाव नहीं झलकता था. आस्था के प्रति अजीत का उस दिन का रवैया सोच कर आज भी तन्वी की आंखें नम हो जाती हैं.

उस दिन सुबह जब तन्वी ने आस्था को गोद में उठाया, तो उसे ऐसा लगा कि उस का शरीर कुछ गरम है. थर्मामीटर लगाया तो 102 बुखार था. दिसंबर का महीना था और बेमौसम बारिश से गला देने वाली ठंड पड़ रही थी. ऐसे में आटोरिकशा में आस्था को डाक्टर के पास ले कर जाना तन्वी को ठीक नहीं लगा. अत: उस ने औफिस फोन कर के अजीत को आने को कहा तो उस ने थोड़ी देर में आने के लिए कहा.

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तन्वी इंतजार करती रही थी पर शाम तक न ही अजीत आया और न ही उस का फोन. आस्था का बुखार बढ़ता गया और शाम होतेहोते उसे लूज मोशन के साथसाथ उलटियां भी होने लगीं. घबरा कर उस ने दोबारा अजीत को फोन किया, तो उस ने बताया कि वह अपने बौस के यहां बर्थडे पार्टी में है और 2 घंटे में घर पहुंचेगा.

तन्वी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जिस की बेटी बुखार में तप रही हो वह उसे डाक्टर को दिखाने के बजाय बर्थडे पार्टी अटैंड कर रहा है. बाहर का मौसम और आस्था की हालत देखते हुए तन्वी के हाथपैर ठंडे हो गए और उस की आंखों से बेबसी के आंसू निकल पड़े.

उस ने किसी तरह खुद को संयत किया और पड़ोस में रहने वाली अपनी एक सहेली को फोन कर के उस से मदद मांगी. संयोग से उस के पति औफिस से आ चुके थे. वे अपनी गाड़ी से आस्था और तन्वी को डाक्टर के पास ले गए. वहां डाक्टर ने आस्था की हालत देख कर तन्वी को खूब डांट लगाई कि बच्चे को अब तक घर पर रख कर उस की हालत इतनी बिगाड़ दी. अपने आवेगों पर नियंत्रण रख बुखार में तपती बेसुध आस्था को ले कर जब तन्वी घर पहुंची तो घर के बाहर अजीत को खड़ा पाया. हड़बड़ी में ताला लगा कर तन्वी चाबी पड़ोस में देना भूल गई थी.

तन्वी को देखते ही अजीत उस पर बरस पड़ा, ‘‘चाबी दे कर नहीं जा सकती थीं? घंटे भर से बाहर खड़ा इंतजार कर रहा हूं मैं.’’

हालांकि अजीत का ऐसा अमानवीय व्यवहार तन्वी के लिए कोई आश्चर्यजनक नहीं था, फिर भी साथ में खड़ी सहेली और उस के पति की वजह से तन्वी का चेहरा अपमान से लाल हो गया. लेकिन उस ने अपने सारे संवेगों को दबाते हुए बात को सहज बनाते हुए कहा, ‘‘आस्था की हालत देख कर मैं इतनी घबरा गई कि हड़बड़ी में चाबी देना याद ही नहीं रहा.’’

‘‘बुखार ही तो था कोई मर तो नहीं रही थी, जो सुना रही हो कि हालत बिगड़ रही थी,’’ कहते हुए उस ने तन्वी के हाथ से चाबी ली और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

बाहर खड़ी तन्वी की सहेली और उस के पति को धन्यवाद के शब्द कहना तो दूर उन की ओर नजर उठा कर देखने तक की जहमत नहीं उठाई उस ने. अपमान से लाल हुई तन्वी मुंह से कुछ न कह सकी, बस हाथ जोड़ कर अपनी डबडबाई आंखों से उन के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर दी.

अजीत की अमानवीयता पर आश्चर्यचकित वे दोनों तन्वी को आंखों से ही हौसला बंधाते हुए वहां से चले गए. तन्वी अंदर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि अजीत का अगला बाण चल निकला, ‘‘यारों के साथ ही जाना था, तो मुझे फोन करने का नाटक करने की क्या जरूरत थी?’’

उस समय तन्वी का मन किया था कि पास पड़ा गुलदस्ता उठा कर अजीत के सिर पर दे मारे, पर आस्था की मम्मीमम्मी की आवाज सुन उस ने स्वयं को रोक लिया और ‘तुम जैसा गंदी मानसिकता वाला इंसान इस से ज्यादा और सोच ही क्या सकता है?’ कहते हुए स्वयं को आस्था के साथ कमरे में बंद कर लिया.

उस रात तन्वी बहुत आहत हुई थी. ऐसा नहीं था कि अजीत ने पहली बार उस के साथ इतना संवेदनहीन व्यवहार किया था, पर इस बार बात केवल तन्वी के दिल को पहुंची चोट तक ही सीमित नहीं थी. बेटी का तिरस्कार और उस के लिए ‘मर तो नहीं रही थी’ जैसे शब्द, पड़ोसियों का अपमान, पड़ोसियों के सामने उस की बेइज्जती और फिर उस के चरित्र पर कसा हुआ फिकरा, सब कुछ एकसाथ मिल कर उस के मस्तिष्क में कुलबुलाहट पैदा कर रहा था और सब्र को तारतार कर रहा था.

इस तरह का व्यवहार करना इंसान की कायरता की पहली निशानी होती है. कायर इंसान ही अपनी गलती को छिपाने के लिए अनायास दूसरों पर चीखते और चिल्लाते हैं. वे समझते हैं कि चीख और चिल्ला कर, अपनी गलती दूसरे पर थोप कर वे सब के सामने निर्दोष सिद्ध हो जाएंगे, पर वे बहुत गलत सोचते हैं.

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उन के ऐसे व्यवहार से दूसरों के मन में उन के लिए नफरत के अलावा और कुछ उत्पन्न नहीं होता. अजीत ने भी वही किया. उस के समय पर न पहुंचने के लिए उसे तन्वी या कोई और कुछ कह न सके, इस से बचने के लिए उस ने पहले ही तन्वी पर आरोपों की झड़ी लगा कर खुद की गलती ढकने की एक तुच्छ कोशिश की. अजीत की बातों से आहत तन्वी की वह सारी रात रोतेरोते ही गुजर गई.

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12 साल बाद: भाग-1

आज पूरे 12 साल बाद आखिर तन्वी के सब्र का बांध टूट ही गया. वह अपनी 2 साल की बेटी को गोद में उठाए अपना घर छोड़ कर निकलने को मजबूर हो गई. घर से सीधे रेलवे स्टेशन जा कर उस ने अपने मायके के शहर का टिकट लिया और टे्रन में चढ़ गई. गुस्से के मारे उस का शरीर उस के वश में नहीं था.

बेटी आस्था को सीट पर लिटा कर वह खुद खिड़की से सिर टिका कर बैठ गई. टे्रन ज्योंही स्टेशन छोड़ कर आगे बढ़ी, घंटों से रोका हुआ उस का आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और वह अपनी हथेलियों से मुंह छिपा कर रो पड़ी. आसपास के सहयात्रियों की कुतूहल भरी निगाहों का एहसास होते ही उस ने अपनेआप को संभाला और आंसू पोंछ कर खुद को संयत करने की कोशिश करने लगी. थोड़ी ही देर में वह ऊपर से तो सहज हो गई पर भीतर का भयंकर तूफान उमड़ताघुमड़ता रहा.

आसान नहीं होता है किसी औरत के लिए अपना बसाबसाया घरसंसार अपने ही हाथों से बिखेर देना. पर जब अपने ही संसार में सांस लेना मुश्किल हो जाए, तो खुली हवा में सांस लेने के लिए बाहर निकलने के अलावा कोई चारा ही नहीं रह जाता. रहरह कर तन्वी की आंखें गीली होती जा रही थीं. सब कुछ भूलना और नई जिंदगी की शुरुआत कर पाना दोनों ही बहुत मुश्किल थे, पर अजीत के साथ पलपल मरमर कर जीना अब उस के बस की बात नहीं रह गई थी.

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टे्रन अपनी पूरी गति से भागी जा रही थी और उसी गति से तन्वी के विचार भी चल रहे थे. आगे क्या होगा कुछ पता नहीं था. उसे इस तरह आया देख पता नहीं मायके में सब की प्रतिक्रिया कैसी होगी? शादी के बाद अपने पति का घर छोड़ कर मायके में लड़की कितने दिन इज्जत से रह पाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. अपना तो कुछ नहीं पर आस्था के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे जल्दी से जल्दी अपना जीवन व्यवस्थित करना पड़ेगा और अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा. तन्वी सोच रही थी कि सब कुछ जानने के बाद शुरू के कुछ दिन तो सब का रवैया सहानुभूतिपूर्ण और सहयोगात्मक रहेगा, पर धीरेधीरे वह सब पर बोझ बन जाएगी. वहां लोग उसे अपने पर बोझ समझें, इस से पहले ही उसे अपने पैरों पर हर हाल में खड़ा हो जाना होगा और अपना एक किराए का घर ले कर अलग रहने का इंतजाम करना होगा.

नौकरी और पैरों पर खड़े होने की बात दिमाग में आते ही तन्वी का ध्यान फिर से अजीत की तरफ चला गया. शादी से पहले अच्छीभली नौकरी कर रही थी तन्वी, पर अजीत की ही वजह से उसे वह नौकरी छोड़नी पड़ी थी.

तन्वी देखने और बातव्यवहार दोनों में ही अजीत से कहीं ज्यादा अच्छी थी और इसी वजह से औफिस से ले कर घर तक हर जगह उस की तारीफ हुआ करती थी. शुरू में तो इस का कोई खास असर नहीं पड़ा था अजीत पर, लेकिन शादी के बाद 3 साल के अंदर ही तन्वी को

2 प्रमोशन मिल गए और अजीत को 1 भी नहीं, तो धीरेधीरे अजीत के मन की हीनभावना बढ़ती चली गई और उस ने अलगअलग बहानों से घर में क्लेश करना शुरू कर दिया. उस का एक ही समाधान वह निकालता था कि तन्वी तुम नौकरी छोड़ दो. हार कर घर की सुखशांति के नाम पर तन्वी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

उस समय तो तन्वी को इतना नहीं खला था, पर अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. अजीत की याद आते ही तन्वी फिर से असहज होने लगी. उस के द्वारा दी गई मानसिक यंत्रणाएं तन्वी के विचारों को मथने लगीं.

तन्वी सोचने लगी, ‘मैं और कितना बरदाश्त कर सकती थी. बरदाश्त की भी एक सीमा होती है. घरपरिवार की सुखशांति के नाम पर आखिर कोई औरत कब तक अपमान और तिरस्कार के घूंट पीती रह सकती है? सामने वाला किसी को हर पल यह एहसास दिलाता रहे कि हमारे जीवन में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है, तो क्या साथ रहना आत्मसम्मान को चोट नहीं पहुंचाता है? मानसिक यंत्रणाओं को आखिर कब तक मैं घर की सुखशांति और मानमर्यादा के नाम पर सहती और चुप रहती कि कम से कम मेरी चुप्पी से मेरी गृहस्थी तो बची रहेगी. घर का कलह बाहर वालों के सामने तो नहीं आएगा.’

अजीत को तो किसी की भी परवाह नहीं ?थी कि लोग क्या कहेंगे. उस की दुनिया तो उस से शुरू हो कर उस पर ही खत्म हो जाती थी. अपनेआप को किसी शहंशाह से कम नहीं समझता था अजीत.

अपना अतीत जैसेजैसे तन्वी को याद आता जा रहा था उस का मन और कसैला हुआ जा रहा था. उसे खुद पर आश्चर्य होता जा रहा था कि आखिर इतने सालों तक वह सब कुछ क्यों और कैसे बरदाश्त करती रही? उसे लगने लगा कि शायद पति के अत्याचार बरदाश्त करते रहना पत्नियों की आदत में ही शुमार होता है.

औरतों का एक तबका ऐसा होता है, जो रोज पति के लातघूंसे खाता है. ऐसी औरतें बिरादरी के सामने पति को गालियां देती हैं, लेकिन सब कुछ भूल कर दूसरे ही दिन पति के साथ हंसतीखिलखिलाती नजर आती हैं.

दूसरा तबका वह होता है, जो पति की एक धौंस भी बरदाश्त नहीं करता. ऐसी औरतें रातोंरात पति के अस्तित्व को ठोकर मार कर अपनी एक अलग दुनिया बसा लेती हैं. औरतों के ये दोनों तबके खुश रहते हैं.

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सब से अधिक मजबूर होती हैं संतुलित परिवारों की महिलाएं, जो न तो इतनी सक्षम होती हैं कि रातोंरात पति से अलग हो कर एक अलग दुनिया बसा सकें और न ही इतनी आत्मसम्मानविहीन कि पति की ज्यादतियों को रात गई बात गई की तर्ज पर भुला सकें.

वे तो बस सहती हैं और चुप रहती हैं. कभी पड़ोसियों के कानों तक बात न पहुंचे यह सोच कर, तो कभी बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा यह सोच कर. कभी उन्हें यह भय सताता है कि अगर वे पति का घर छोड़ कर मायके चली गईं तो उन की छोटी बहनों के विवाह में दिक्कतें आएंगी, तो कभी यह डर सताता है कि उन के मातापिता इतना बड़ा सदमा बरदाश्त न कर सके तो?

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#lockdown: समर में ट्राय करें Ishqbaaz फेम Surbhi Chandna का कलरफुल Headband फैशन

कोरोनावायरस का कहर में दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण लॉकडाउन को भी तीन मई तक के लिए बढ़ा दिया गया, जिसे खत्म होने अब कम दिन बाकी हैं. वहीं गरमियों ने भी इसी बीच दस्तक दे दी है. टीवी और बौलीवुड सेलेब्स घर पर रहने को मजबूर है, जिस कारण वह अपने फैंस के लिए नये, स्टाइलिश और फैशनेबल फोटोज शेयर कर रहे हैं. हाल ही में इश्कबाज (Ishqbaaz)सीरियल फेम एक्ट्रेस सुरभि चंदना (Surbhi Chandna) ने समर फैशन से जुड़ी एक्सेसरी (Hair Accessories) फैंस के साथ शेयर की है, जो उन्हें काफी पसंद आ रही है.

आज हम आपको सुरभि चंदना (Surbhi Chandna) के हेयरबैंड की कुछ फोटोज दिखाएंगे, जिसे आप समर में घर हो या बाहर कहीं भी ट्राय कर सकती हैं.

1. बालों में कलरफुल हेयरबैंड में खूबसूरत लग रही हैं Surbhi Chandna

 

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My Favourite Hour of the Day 🏋️‍♀️ #marshallspeakers #sweatitoutyoubeauty #swipeleft

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गरमी से बचने के लिए सुरभि चंदना (Surbhi Chandna) हेयरबैंड लगाना ही बेहतर समझती हैं, जिसका अंदाजा उनके लेटेस्ट फोटोज में कलरफुल हेयरबैंड देखकर लगाया जा सकता है.

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2. हर जगह Surbhi Chandna लगाती हैं हेयरबैंड


जिम हो या फिर खाना इन सब कामों को करने से पहले सुरभि चंदना(Surbhi Chandna) हैयरबैंड लगा लेती हैं. सुरभि चंदना के इस स्टाइल के चलते उनको अपने बाल बनाने की चिंता नहीं होती है.

3. हर आउटफिट के साथ अलग है हेयरबैंड

 

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Umeed Ka Diya 🪔

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बिना बालों के हेयरस्टाइल की फिक्र किए सुरभि चंदना हेयरबैंड के जरिए अपने बालों को सवारती हैं. अगर आप भी न्यू ट्रैंड में रहकर अपने लुक को स्टाइलिश बनाना चाहती हैं तो सुरभि चंदना की तरह कलरफुल हेयरबैंड का इस्ते माल करें, जो आपके लुक को फैशनेबल और नया बनाने में मदद करेगा.

4. अलग प्रिंट वाले हेयरबैंड करें ट्राय

अपने स्टाइलिश हेयरबैंड लगाकर सुरभि चंदना कैमरे के आगे खूब पोज देती हैं. अगर आप भी सुरभि की तरह अपनी नई फोटोज से सोशल मीडिया पर छाना चाहती हैं तो फ्लावर प्रिंट और डौट पैटर्न वाले हेयर बैंड ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक को खूबसूरत बनाएगा.

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